Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 9 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 7 मेरे बचपन के दिन
Std 9 GSEB Hindi Solutions मेरे बचपन के दिन Textbook Questions and Answers
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
‘मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।’ इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि
क. उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी ?
उत्तर :
उस समय समाज में लड़कियों की दशा अत्यंत दयनीय थी। लड़कियों को बोझ समझा जाता था। तभी तो उसके पैदा होते ही उसे मार दिया जाता था। स्त्रियों को शिक्षा पाने का भी अधिकार नहीं था। कुछ सम्पन्न परिवार की गिनी चुनी स्त्रियाँ ही शिक्षा पाती थीं। अतः समाज में स्त्रियों की दशा ठीक नहीं थी।
ख. लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं ?
उत्तर :
पहले की तुलना में लड़कियों के जन्म के संबंध में काफी बदलाव आया है। लड़का-लड़की का अन्तर धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। किन्तु यह भेदभाव आज भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। पहले के लोग लड़की को जन्म देने के बाद मार डालते थे। आज विज्ञान और तकनीक का प्रयोग करके लोग कोन में ही लड़कियों की हत्या कर देते हैं। कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध कानून बन जाने के कारण स्थिति में थोड़ा सुधार अवश्य हुआ है।
प्रश्न 2.
लेखिका उर्दू-फारसी क्यों नहीं सीख पाई ?
उत्तर :
लेखिका को बचपन में उर्दू-फारसी भाषा के प्रति तनिक भी रूचि नहीं थी। उन्हें उर्दू-फारसी पढ़ाने के लिए मौलवी रखा गया था। किन्तु उसे देखते ही वे चारपाई के नीचे छिप जाती थीं। यही कारण है कि लेखिका उर्दू फारसी नहीं सीख पाई।।
प्रश्न 3.
लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ?
उत्तर :
लेखिका की माता अच्छे संस्कारोंवाली एवं धार्मिक स्वभाव की महिला थीं। वे नित्य पूजा-पाठ किया करती थीं। सुबह शाम मीरा के पदों को गाती थीं। प्रभाती भी गाया करती थीं। सुबह-सुबह वे ‘कृपानिधान पंछी बन बोले’ पद गाती थी। लेखिका की माता लिखा भी करती थीं। उनके द्वारा मीरा के पदों को सुनकर लेखिका ने ब्रजभाषा में लिखना प्रारंभ किया। यों लेखिका की माता शिक्षित धार्मिक सरोकारोंवाली, ईश्वर में आस्था रखनेवाली महिला थीं। संस्कृत भाषा भी जानती थीं अतः महादेवीजी को हिन्दी और संस्कृत भाषा का ज्ञान अपनी माता द्वारा प्राप्त हुआ।
प्रश्न 4.
ज्वारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है ?
उत्तर :
स्वतंत्रता से पूर्व हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच इतना भेदभाव नहीं था। लेखिका के साथ नवाब परिवार का संबंध इसका सबूत है। लेखिका का परिवार हिन्दू था और जवारा के नवाब मुस्लिम थे किन्तु दोनों परिवारों के बीच जबरजस्त आत्मीय संबंध था। दोनों धर्म के लोग एकदूसरे के त्यौहारों को साथ मिलकर मनाया करते थे। उनके संबंधों में भाषा और जाति की भेदक रेखा नहीं थी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत का बँटवारा हुआ। पाकिस्तान मुस्लिम प्रधान देश बना तो भारत हिन्दुस्तान देश। तब से दोनों धर्मों के बीच आपसी तनाव बढ़ गया है। वो आत्मीयता नहीं रही। आये दिन दंगे-फसाद होते रहते हैं। अब दोनों के बीच पहले जैसे आत्मीय संबंध नहीं रहे। इसलिए लेखिका ने जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा कहा है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 5.
जेबुन्निसा महादेवी वर्मा के लिए बहुत काम करती थीं। जेबुन्निसा के स्थान पर यदि आप होती/होते तो महादेवी से आपकी क्या अपेक्षा होती ?
उत्तर :
जेबुन्निसा के स्थान पर यदि मैं होती/होता तो मैं उनके कामों में मदद कर दिया करती/करता। बदले में उनसे जहाँ मुझे कठिनाई
पढ़ती/पढ़ता तो मैं उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करती/करता। उनके साथ कवि सम्मेलन में ले जाने के लिए कहती/कहता ताकि मैं भी कवि-सम्मेलन का आनंद ले सकूँ। मैं स्वयं काव्य-रचना करती/करता और उन्हें पढ़कर सुनाती/सुनाता | काव्यगत क्षतियों को उनसे दूर करयाती/करवाता।
प्रश्न 6.
महादेवी वर्मा को काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला था। अनुमान लगाइए कि आपको इस तरह का कोई पुरस्कार मिला हो और वह देशहित में या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़े तो आप कैसा अनुभव करेंगे/करेंगी ?
उत्तर :
मुझे काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला हो या कोई अन्य पुरस्कार, यदि देशहित या किसी आपदा निवारण के काम में मुझे उसे दे देना पड़े तो मैं उस पुरस्कार को सहर्ष दे दूंगी/दूँगा। देश के प्रति हमारा भी तो कुछ कर्तव्य बनता है। ये तो रही पुरस्कार देने की बात। यदि आवश्यकता पड़े तो देश के लिए मैं अपने जान की बाजी भी लगा दूँगी/दूंगा। मुझे इस बात की खुशी होगी कि मैं अपने देश के काम आया। अपने देश के लिए पुरस्कार देने में मैं अपने आपको गौरवान्वित महसूस कलंगी/कसँगा।
प्रश्न 7.
लेनिका ने छात्रावास के जिस बहुभाषी परिवेश की चर्चा की है उसे अपनी मातृभाषा में लिखिए।
उत्तर :
महादेवी वर्मा कास्थवेट गर्ल्स स्कूल के छात्रावास में रहकर अभ्यास करती थीं। उस छात्रावास में अलग-अलग प्रान्त की लड़कियाँ पढ़ने आती थीं। कोई अवधि बोलती थीं, तो कोई बुंदेली, कोई मराठी तो कोई ब्रज भाषा में बात करती थीं। किन्तु सभी हिन्दी की पढ़ाई करती थीं। उन्हें छात्रावास में उर्दू की भी शिक्षा दी जाती थी। इस तरह लेखिका का छात्रावास बहुभाषी था। फिर भी सभी लड़कियाँ मिल-जुल कर रहती थी। सब एक मेस में खाना खाती थीं। एक प्रार्थना में सब खड़ी होती थीं। किसी के बीच कोई भेदभाव नहीं था।।
प्रश्न 8.
महादेवी जी के इस संस्मरण को पढ़ते हुए आपके मानस-पटल पर भी अपने बचपन की कोई स्मृति उभरकर आई होगी, उसे संस्मरण शैली में लिखिए।
उत्तर :
मेरे हिन्दी के अध्यापक ने मुझे पन्द्रह अगस्त के शुभ अवसर पर एक स्पीच तैयार करवाया था। मैंने उस स्पीच को अच्छी तरह से याद कर लिया था। पन्द्रह अगस्त के दिन मुझे दो कार्यक्रम के बाद अपना स्पीच देना था। जैसे ही उद्घोषक कोई घोषणा करता तो मैं भीतर से काँप जाता था। हृदय की गति तेज हो गई थी। मैंने जो स्पीच याद किया था उसे बार-बार मन में दोहरा रहा था।
तभी उद्घोषक ने मेरे नाम की घोषणा की। मैं मंच पर पहुँचा। थोड़ा संकुचाया किन्तु अपनी तेज और मधुर आवाज से मैंने अपने स्पीच की शुरुआत की। धीरे-धीरे आत्मविश्वास बढ़ता गया और मेरी आवाज का जादू चल गया। स्पीच के खत्म होते ही तालियों की गड़गड़ाहट से सभी ने मेरा स्वागत किया। भारतमाता की जय बोलकर मैं मंच से नीचे उतर गई। इस दिन को मैं कभी नहीं भूल सकता।
प्रश्न 9.
महादेवी ने कवि सम्मेलनों में कविता पाठ के लिए अपना नाम बुलाए जाने से पहले होनेवाली बेचैनी का जिक्र किया है। अपने विद्यालय में होनेवाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते समय आपने जो बेचैनी अनुभव की होगी, उस पर डायरी का एक पृष्ठ लिखिए।
उत्तर :
शुक्रवार
26 जनवरी, 2018
आज हमारे विद्यालय में एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया था। इस काव्य-गोष्ठी में 10 विद्यालय के छात्रों ने भाग लिया। काव्य-गोष्ठी का विषय पहले से निर्धारित था। प्रतिभागियों को ‘देशप्रेम’ से संबंधित रचनाएँ प्रस्तुत करनी थी। 10 बजे के करीब काव्य-गोष्ठी का प्रारंभ होना था। निर्णायक गण अपनी-अपनी कुर्सियों पर विराजमान थे।
मुख्य अतिथि के आते ही दीप प्रज्ज्वलित किया गया और काव्यगोष्ठी प्रारंभ की गई। दसों विद्यालय के प्रतिभागी एक कतार में बैठे थे। उद्घोषक जैसे ही किसी नाम की घोषणा करता मैं भीतर से डर जाता था। तन में सिहरन दौड़ जाती थी। पाँच प्रतिभागियों के बाद उद्घोषक ने मेरा नाम पुकारा। मैं थोड़ा डरा हुआ किन्तु शीघ्र ही मंच पर पहुँच गया। पूरे आत्मविश्वास के साथ मैंने अपनी कविता प्रस्तुत की। कविता के अन्त में सभी ने जोरदार तालियाँ बजाई। मैं बहुत खुश था। मेरी कविता को प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मैं इस दिन को कभी नहीं भूल सकता।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 10.
पाठ से निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द ढूँढकर लिखिए।
उत्तर :
शब्द – विलोम
- विद्वान × मूर्ख
- अनंत × अंत, ससीम
- निरपराधी × अपराधी
- दंड × पुरस्कार
- शांति × अशांति
प्रश्न 11.
निम्नलिखित शब्दों से उपसर्ग, प्रत्यय कीजिए और मूल शब्द बताइए।
उत्तर :
प्रश्न 12.
निम्नलिखित प्रत्यय, उपसर्गों की सहायता से दो-दो शब्द लिखिए।
उपसर्ग – अन्, अ, सत्, स्य, दुर
प्रत्यय – दार, हार, वाला, अनीय
उत्तर :
- उपसर्ग – उपसर्ग युक्त शब्द
- अन् – अनुचित, अनुदार, अनेक, अनुभव
- अ – अचल, अमर, अधम, अपूर्व
- सत् – सज्जन, सदाचार, सत्कर्म, सद्गति
- स्व – स्वधर्म, स्वतंत्र, स्वार्थ, स्वावलंबन
- दूर – दुर्गुण, दुर्लभ, दुर्योधन, दुर्भिक्ष
- प्रत्यय – प्रत्यय युक्त शब्द
- दार – देनदार, लेनदार, चौकीदार, पहरेदार
- हार – होनहार, पालनहार, खेवनहार, दिखावनहार
- वाला – चायवाला, फलवाला, अखबारवाला, झाडूवाला
- अनीय – दर्शनीय, अकथनीय, पूजनीय, आदरणीय
प्रश्न 13.
पाठ में आए सामासिक शब्दों को छाँटकर विग्रह कीजिए।
उत्तर :
- पूजा-पाठ – पूजा और पाठ
- परमधाम – परम है जो धाम
- दुर्गा-पूजा – दुर्गा की पूजा
- कुल-देवी – कुल की देवी
- पंचतंत्र – पंच (पाँच) तंत्रों का समूह
- उर्दू-फारसी – उर्दू और फारसी
- चारपाई – चार पायों का समूह
- वातावरण – वात (वायु) का आवरण
- छात्रावास – छात्र (छात्रों) का आवास
- कृपानिधान – कृपा के निधान
- सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह
- कवि-सम्मेलन – कवियों का सम्मेलन
- प्रभाती – जो गीत प्रभात में गाया जाता हो
- जेबखर्च – जेब के लिए खर्च
- रोना-धोना – रोना और धोना (चिल्लाना)
- चाची-ताई – चाची और ताई
- निराहार – (निर्) बिना आहार किए
- मनमोहन – मन को मोह लेता है जो यानी श्रीकृष्ण
- जन्मदिन – जन्म का दिन
- स्त्री-दर्पण – स्त्रियों का दर्पण
GSEB Solutions Class 9 Hindi मेरे बचपन के दिन Important Questions and Answers
आशय स्पष्ट कीजिए
प्रश्न 1.
बचपन की स्मृतियों में एक विचित्र सा आकर्षण होता है ?
उत्तर :
मनुष्य के जीवन में बचपन की यादों की मीठी कसक जीवनभर रहती है। अपने बचपन की यादों को मनुष्य जीवनभर नहीं भूलता। उन यादों में, स्मृतियों में एक विचित्र सा आकर्षण होता है, जिसे चाहकर भी मनुष्य भुला नहीं पाता। हर कोई अपने बचपन के दिनों को पाना चाहता है पर यह संभव नहीं। उसे बचपन में बिताये दिन सपनों के से लगते हैं। मनुष्य अपने बचपन की मधुर स्मृतियों को सदैव संजोये रहता है।
प्रश्न 2.
वातावरण ऐसा था उस समय कि हम लोग बहुत निकट थे।
आज की स्थिति देखकर लगता है, जैसे वह सपना ही था।
आज वह सपना खो गया।
उत्तर :
लेखिका व उनके भाई मनमोहन वर्मा को बचपन से ऐसे संस्कार मिले थे कि चाहे हिन्दु हो या मुस्लिम, मिल-जुलकर भाईचारे के साथ रहना चाहिए। जवारा के नवाब और लेखिका के परिवारवालों के साथ बहुत घनिष्ट संबंध था। लोग एक-दूसरे के त्यौहार आपस में मनाया करते थे। उनके भाई मनमोहन वर्मा के यहाँ भी हिन्दी और उर्दूभाषा चलती थी। वे स्वयं अपने घर में अवधी बोलते थे।
हिन्दू-मुस्लिम जैसी कोई भावना उस समय के लोगों में नहीं थी। स्वतंत्रता के बाद हिन्दुस्तान – पाकिस्तान के बँटवारे के साथ दोनों धर्मों के लोगों के बीच दूरियाँ बढ़ गई हैं। आये दिन दोनों के बीच दंगे-फसाद होते रहते हैं। तब लेखिका को वो दिन एक सपना लगता है, जब नवाब और उनके परिवार एकसाथ मिलजुल कर रहते थे। आज वह सपना हो गया है। वह सपना कहीं खो गया है, क्योंकि पुनः इन दोनों धर्मों के लोगों में पहले की तरह सहजता नहीं आ सकती। परिवार की तरह एकजुट होकर रहने की भावना समाप्त हो गई है।
लघूत्तरी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
लेखिका के परिवार में लड़कियाँ क्यों नहीं थी ?
उत्तर :
लेखिका के परिवार में दो सौ वर्ष पूर्व से लड़कियों के जन्म के साथ उन्हें परलोकधाम भेज दिया जाता था। अर्थात् उनकी हत्या कर दी जाती थी। इसलिए लेखिका के परिवार में लड़कियाँ नहीं थी।
प्रश्न 2.
लेखिका के घर में हिन्दी का वातावरण क्यों नहीं था ?
उत्तर :
लेखिका के बाबा फारसी और उर्दू जानते थे। उनके पिता ने अंग्रेजी की शिक्षा पाई थी। उनके परिवार में कोई हिन्दी नहीं बोलता था। इसलिए लेखिका के घर में हिन्दी का वातावरण नहीं था।
प्रश्न 3.
लेखिका के चारपाई के नीचे छिपने का क्या कारण था ?
उत्तर :
उर्दू और फारसी पढ़ना लेखिका को अच्छा नहीं लगता था। उनके बाबा ने उर्दू-फारसी पढ़ाने के लिए एक मौलवी को रखवा दिया। जब वे उसे उर्दू-फारसी पढ़ाने आये तो लेखिका डर के मारे चारपाई के नीचे छिप गई। लेनिका का मानना है कि उर्दू-फारसी सीखना उनके बस का नहीं था।
प्रश्न 4.
लेनिका का मन मिशन स्कूल में क्यों नहीं लगा ?
उत्तर :
लेखिका के घर का वातावरण कुछ और था, वहाँ वे संस्कृत, ब्रजभाषा आदि सिखती थीं। मिशन स्कूल का वातावरण दूसरा था। वहाँ इसाई धर्म के अनुसार शिक्षा-दिक्षा-संस्कार दिए जाते थे, वहाँ की प्रार्थना दूसरी थी। इसलिए उनका मन वहाँ नहीं लगा।
प्रश्न 5.
लेखिका के बाबा अन्य पुरुषों से किस प्रकार अलग थे ?
उत्तर :
लेखिका के बाबा शिक्षित थे। वे स्त्रियों का महत्त्व जानते थे। जहाँ दूसरे पुरुष लड़की का जन्म होते ही उसे मार डालते थे वहीं वे अपने घर में लड़की का जन्म हो, इसके लिए पूजा-पाठ करते थे, लड़की का जन्म होने पर उसका स्वागत किया। उसकी शिक्षा-दिक्षा, लालन-पालन पर पूरा ध्यान दिया। वे लेखिका को विदूषी बनाना चाहते थे।
प्रश्न 6.
महादेवी वर्मा के परिवार में कौन-कौन-सी भाषाएँ बोली जाती थी ?
उत्तर :
महादेवी वर्मा का परिवार सुशिक्षित था। उनके बाबा उर्दू और फारसी के ज्ञाता थे। उनके पिता ने अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त की थी। उनकी माता जबलपुर से अपने साथ हिन्दी भाषा लाई थी। वे स्वयं संस्कृत और हिन्दी भाषा की जानकार थी। ब्रजभाषा में मीरा के पद गाती थीं। अतः महादेवी वर्मा के घर में उर्दू, फारसी, अंग्रेजी, हिन्दी, ब्रज, संस्कृत आदि भाषाएँ बोली जाती थी।
प्रश्न 7.
महादेवी वर्मा की शिक्षा-दिक्षा में उनकी माँ का क्या योगदान था ?
उत्तर :
महादेवी वर्मा की शिक्षा-दीक्षा में उनकी माँ का बहुत योगदान था। वे जबलपुर से आई थी। वहाँ से वे हिन्दी भाषा अपने साथ लाई थी। उन्होंने महादेवी को हिन्दी भाषा सिखाई। ‘पंचतंत्र’ पढ़ना सिखाया। सुबह-शाम वे पूजा-पाठ करते समय संस्कृत व ब्रजभाषा बोलती थी। मीरा के पद गाया करती थी। संस्कृत के श्लोक बोलती थी। महादेवी इसे गुनती थी | महादेवी वर्मा की रूचि इन भाषाओं में होती गई। इस प्रकार प्रारंभिक शिक्षा में उनकी माँ का बहुत बड़ा योगदान था।
प्रश्न 8.
जेबुन्निसा कौन थी ? वे महादेवी की मदद कैसे करती थी ?
उत्तर :
जेबुन्निसा एक मराठी लड़की थी, जो कोल्हापुर से आई थी। सुभद्रा कुमारी के स्थान पर छात्रालय में यह रहने लगी। वे महादेवी का डेस्क साफ कर देती थी, उनकी पुस्तकें ढंग से रख देती थी। इससे महादेवी को ज्यादा अवकाश मिल जाता। चे पूरा समय कविता लेखन में लगा देती थी। उन्हें कविता लिखने के लिए अधिक समय मिल जाता था।
प्रश्न 9.
सुभद्राकुमारी ने महादेवी के डेस्क की तलाशी क्यों ली ?
उत्तर :
महादेवी भी सुभद्राकुमारी की तरह खड़ी हिन्दी में काव्य रचना करने लगी थी। किन्तु वे यह सब छुप-छुप कर लिखती थी।
सुभद्राकुमारी को इसकी भनक लगी कि महादेवी भी कविता लिखती हैं, तो उन्होंने उनके डेस्क के किताबों की तलाशी ली।
जहाँ से उनके द्वारा लिखी कविताएँ मिली।
प्रश्न 10.
नवाब साहब का परिचय दीजिए।
उत्तर :
नवाब साहब जवारा के नवाब थे। उनकी नवाबी छिन गई थी। वे एक बंगले में रहते थे। लेखिका भी उसी कंपाउण्ड में रहती थी। नवाब साहब व लेखिका के परिवार के बीच काफी आत्मीय संबंध थे। दोनों परिवार के बीच आपसी मेल-मिलाप था। इन दोनों परिवारों के बीच हिन्दू-मुस्लिम की कोई भेद रेखा नहीं थी।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा की काव्य-यात्रा में सुभद्राकुमारी चौहान का क्या योगदान था ?
उत्तर :
महादेवी वर्मा को छात्रावास में सुभद्राजी का साथ मिला। उनके कमरे में जो चार छात्राएँ थीं, उनमें से सुभद्राजी एक हैं। महादेवी उस समय तुकबंदी कर लेती थी। महादेवी ने अपनी माँ से प्रेरणा पाकर ब्रजभाषा में काव्य लिखना प्रारंभ कर दिया था। किन्तु सुभद्राजी खड़ी बोली में कविता लिखती थी। महादेवी ने उनका अनुकरण कर उनके जैसी कविता लिखने लगी। उस समय सुभद्राजी प्रतिष्ठित कवयित्री थीं।
महादेवी वर्मा उनसे छिपा-छिपाकर कविता लिखती थी। एक बार सुभद्राजी ने महादेवी वर्मा को पूछा कि ‘महादेवी, तुम कविता लिखती हो ? तो महादेवी ने डर के मारे ‘नहीं’ कह दिया। फिर सुभद्राजी ने उनके डेस्क के किताबों की तलाशी ली। उनमें से बहुत-सी कविताएँ निकली। सुभद्राजी ने एक हाथ से कागज़ पकड़ा, एक हाथ से महादेवी को और पूरे हॉस्टल में दिखा आई कि ये कविता लिखती हैं।
इसके बाद दोनों की मित्रता हो गई। जब लड़कियाँ खेलती तो सुभद्रा व महादेवी डाल पर बैठकर कविता का सर्जन करती। दोनों कवि-सम्मेलन में काव्य-पाठ करने लगी। महादेवी वर्मा को काव्य-पाठ के लिए प्रथम पुरस्कार मिलता था। उन्होंने कम से कम सौ पदक मिले होंगे। यो सुभद्राकुमारी के सानिध्य में आकर महादेवी वर्मा की कविताओं का परिमार्जन होता रहा, वे उनकी गणना श्रेष्ठ कवत्रियों में होने लगी। महादेवी वर्मा आगे चलकर छायावाद का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ मानी गई। इस प्रकार महादेवी वर्मा की काव्य-यात्रा में सुभद्राकुमारी का महत्त्वपूर्ण योगदान था।
प्रश्न 2.
नवाब साहब के बेगम साम्प्रदायिक सौहार्द फैलाने की दिशा में अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है ? कैसे ? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जवारा के नवाब का परिवार और महादेवी वर्मा का परिवार एक ही कम्पाउण्ड में रहता था। नवाब साहब की बेगम हिन्दु-मुसलमान का भेद किए बिना स्वयं को ताई कहने के लिए कहती। उनके बच्चे लेखिका की माँ को चचीजान कहते हैं। बच्चों के जन्मदिन एक दूसरे के यहाँ मनाते थे। तर त्यौहार पर कोई भेदभाव रखे बिना एक-दूसरे के त्योहारों को मनाया करते थे।
राखी के त्यौहार पर बेगम अपने बेटे को पानी तक पीने नहीं देती थी। जब तक लेखिका राखी न बाँध दे। फिर ये लेखिका को उपहार देती थी। लेखिका के यहाँ जब छोटाभाई पैदा हुआ तो हम से नेग भी माँगा और बच्चे के लिए कपड़े आदि भी ले गई थी। वे लेखिका की माँ को दुलहिन कहकर संबोधित करती थी। इन दोनों परिवारों का व्यवहार साम्प्रदायिकता के नाम पर तमाचा था। इस प्रकार नवाब की बेगम ने साम्प्रदायिक सौहार्द फैलाने कि दिशा में अनुकरणीय उदाहरण पेश किया था।
गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
आद्रा नक्षत्र। आकाश में काले काले बादलों की घुमड़, जिसमें देव दुन्दुभी का गम्भीर घोष। प्राची के निरन कोने से स्वर्णपुरुष झाँकने लगा था – देखने लगा था – महाराज की सवारी शैल माला के अंचल में समतल उर्वरा भूमि में सोंधी-सौंधी बास उठ रही थी। नगर-तोरण में जयघोष हुआ, भीड़ में गजराज का चामरधारी झुण्ड उन्मत्त दिखाई पड़ा। यह हर्ष और उत्साह का समुद्र हिलोरे भरता आगे बढ़ने लगा। प्रभात की हेम किरणों से अनुरंजित नन्ही-नन्ही बूदों का एक झोंका आया और स्वर्ण मल्लिका के समान बरस पड़ा। मंगल सूचना से जनता ने हर्षध्वनि की।
प्रश्न 1.
देव-दुन्दुभी गम्भीर घोष कब हो रहा था ?
उत्तर :
आद्रा नक्षत्र में काले काले बादलों की उमड़ घुमड़ के मध्य देव दुन्दुभी का घोष हो रहा था।
प्रश्न 2.
स्वर्ण – पुरुष कहाँ से झाँक रहा था ?
उत्तर :
प्राची के निरभ्र कोने से स्वर्ण पुरुष झाँक रहा था।
प्रश्न 3.
सोंधी सोंधी बास कहाँ से उठ रही थी ?
उत्तर :
शैलमाला के अंचल की समतल और उर्वरा भूमि से सोंधी सोंधी बास उठ रही थी।
प्रश्न 4.
किसका झुंड उन्नत दिखाई दिया ?
उत्तर :
गजराज का चामरधारी झुण्ड उन्नत दिखाई दिया।
प्रश्न 5.
जनता ने हर्ष ध्वनि क्यों की ?
उत्तर :
प्रभात की किरणों से अनुरंजित नन्ही-नन्ही बूंदों का एक झोंका आया और स्वर्ण मल्लिका के समान बरस पड़ा। इस मंगल सूचना से जनता ने हर्ष ध्वनि की।
नीचे दिए गये प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से चुनकर लिखिए।
प्रश्न 1.
लेखिका के परिवार में कितने वर्षों से लड़कियाँ नहीं थीं ?
(क) एक सौ वर्ष
(ख) दो सौ वर्ष
(ग) तीन सौ वर्ष
(घ) चार सौ वर्ष
उत्तर :
(ख) दो सौ वर्ष
प्रश्न 2.
लेखिका के बाबा उन्हें क्या बनाना चाहते थे ?
(क) डॉक्टर
(ख) शिक्षिका
(ग) विदुषी
(घ) नर्स
उत्तर :
(ग) विदुषी
प्रश्न 3.
लेखिका की माँ मीरा का कौन-सा पद गाती थीं ?
(क) पायोजी मैंने राम रतन धन पायो
(ख) मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई
(ग) स्याम म्हाने चाकर राखो जी
(घ) जागिए कृपानिधान पंछी बन बोले
उत्तर :
(घ) जागिए कृपानिधान पंछी बन बोले
प्रश्न 4.
लेखिका ने पुरस्कार के रूप में मिला चाँदी का कटोरा किसे दे दिया ?
(क) जवाहरलाल नेहरू को
(ख) सरोजिनी नायडू को
(ग) सुभद्राकुमारी चौहान को
(घ) महात्मा गाँधी को
उत्तर :
(घ) महात्मा गाँधी को
प्रश्न 5.
लेखिका के छोटे भाई का नामकरण किसने किया था ?
(क) स्वयं लेखिका ने
(ख) ताई साहिबा ने
(ग) नवाब साहब ने
(घ) लेखिका की माँ ने
उत्तर :
(ख) ताई साहिबा ने
प्रश्न 6.
लेखिका के भाई मदन मोहन वर्मा किन दो यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर बने ?
(क) जम्मू व गोरखपुर यूनिवर्सिटी
(ख) जम्मू व गुजरात यूनिवर्सिटी
(ग) जम्मू व दिल्ली यूनिवर्सिटी
(घ) गोरखपुर विश्वविद्यालय
उत्तर :
(क) जम्मू व गोरखपुर यूनिवर्सिटी
अर्थबोध संबंधी प्रश्नोत्तर
अपने परिवार में मैं कई पीढ़ियों के बाद लड़की उत्पन्न हुई। मेरे परिवार में प्राय: दो सौ वर्ष तक कोई लड़की थी ही नहीं। सुना है, उसके पहले लड़कियों को पैदा होते ही परमधाम भेज देते थे। फिर मेरे बाबा ने बहुत दुर्गा-पूजा की। हमारी कुनदेवी दुर्गा थीं। मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है। परिवार में बाबा फ़ारसी और उर्दू जानते थे। पिता ने अंग्रेजी पढ़ी थी | हिंदी का कोई वातावरण नहीं था।
प्रश्न 1.
लेखिका के परिवार में दो सौ वर्ष तक कोई लड़की क्यों नहीं थी ?
उत्तर :
लेखिका के परिवार में दो सौ वर्ष पहले से परिवार में यदि कोई लड़की पैदा होती थी तो उसे मार दिया जाता था। इसी कारण लेखिका के परिवार में दो सौ वर्ष तक कोई लड़की नहीं थी।
प्रश्न 2.
लेखिका ने ऐसा क्यों कहा कि मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हर्ड
उत्तर :
लेखिका के परिवार में दो सौ वर्ष तक कोई कन्या नहीं थी। कन्या के जनमते ही उसे मार दिया जाता था। लेखिका के बाबा ने अपनी कुलदेवी दुर्गा की खूब पूजा-अर्चना की तब कहीं जाकर इनका जन्म हुआ। लेखिका के जन्म होने पर उनकी बड़ी खातिर हुई। परिवार की अन्य लड़कियों के जैसा व्यवहार उनके साथ नहीं किया गया।
प्रश्न 3.
‘हिन्दी का कोई वातावरण न था’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
लेखिका के परिवार में उस समय कोई हिन्दी नहीं बोलता था। उनके बाबा फारसी और उर्दू जानते थे। पिता ने अंग्रेजी पढ़ी थी अतः हिन्दी कोई नहीं बोलता था।
प्रश्न 4.
‘दुर्गा-पूजा’ तथा ‘कुलदेवी’ का सामासिक विग्रह कीजिए।
उत्तर :
‘दुर्गा-पूजा’ = दुर्गा की पूजा
‘कुलदेवी’ = कुल की देवी
मेरे संबंध में उनका विचार बहुत ऊँचा रहा। इसलिए ‘पंचतंत्र’ भी पढ़ा मैंने, संस्कृत भी पढ़ी। ये अवश्य चाहते थे कि मैं उर्दू-फ़ारसी सीख लूँ, लेकिन वह मेरे वश की नहीं थी। मैंने जब एक दिन मौलयी साहब को देखा तो बस, दूसरे दिन में चारपाई के नीचे जा छिपी। तब पंडित जी आए संस्कृत पढ़ाने। माँ थोड़ी संस्कृत जानतीं थीं। गीता में उन्हें विशेष रूचि थी। पूजा पाठ के समय मैं भी बैठ जाती थी और संस्कृत सुनती थी।
प्रश्न 1.
लेखिका चारपाई के नीचे क्यों छिप गई ?
उत्तर :
लेखिका को उर्दू-फारसी पढ़ना अच्छा नहीं लगता था। एक दिन जब उन्होंने देखा कि उर्दू-फारसी पढ़ाने मौलवी साहब आयें है तो वे चारपाई के नीचे जाकर छिप गई।
प्रश्न 2.
लेखिका को संस्कृत सीखना क्यों आसान लगा ?
उत्तर :
लेखिका की माँ थोड़ी संस्कृत जानती थीं, उन्हें गीता में भी विशेष रूचि थी। पूजा-पाठ चे संस्कृत भाषा में करती थी। लेखिका ये सब सुनती थी अतः वे संस्कृत भाषा से परिचित थीं। उनके बाबा ने संस्कृत पढ़ाने के लिए एक पंडित को भी रखवा दिया था। इसलिए लेखिका को संस्कृत सीखना आसान लगा।
प्रश्न 3.
‘चारपाई’ और ‘पूजा-पाठ’ समास का प्रकार बताइए।
उत्तर :
चारपाई – चार पायों का समाहार – द्विगु समास
पूजा-पाठ – पूजा के लिए पाठ – तत्पुरुष समास अथवा पूजा और पाठ – द्वंद्व समास
उन्होंने मिशन स्कूल में रख दिया मुझको। मिशन स्कूल में वातावरण दूसरा था, प्रार्थना दूसरी थी। मेरा मन नहीं लगा। वहाँ जाना बंद कर दिया। जाने में रोने-धोने लगी। तब उन्होंने मुझको क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में भेजा, जहाँ मैं पाँच दर्जे में भर्ती हुई। यहाँ का वातावरण बहुत अच्छा था उस समय। हिंदू लड़कियाँ भी थीं, ईसाई लड़कियाँ भी थीं। हम लोगों का एक ही मेस था। उस मेस में प्याज़ तक नहीं बनता था।
प्रश्न 1.
लेखिका मिशन स्कूल क्यों नहीं जाना चाहती थीं ?
उत्तर :
लेखिका ने अपनी माता व पंडित द्वारा संस्कृत सीख ली थी। अपनी माता की पूजा-पाठ से अवगत थी। मिशन स्कूल का
वातावरण अलग था। यहाँ की प्रार्थना दूसरी थी। उनका वहाँ मन नहीं लगता था। इसलिए वे मिशन स्कूल नहीं जाना चाहती
थीं।
प्रश्न 2.
लेखिका को पाँचवें दर्जे में कहाँ दाखिला दिलवाया गया ? वहाँ का वातावरण कैसा था ?
उत्तर :
लेखिका को पाँचयें दर्जे में क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में दाखिला दिलवाया गया। वहाँ का वातावरण बहुत अच्छा था। हिंदू और ईसाई लड़कियाँ वहाँ साथ-साथ पढ़ती थीं।
प्रश्न 3.
‘बातावरण’ शब्द का संधि-विच्छेद कीजिए।
उत्तर :
वातावरण = वात + आवरण
बचपन में माँ लिखती थीं, पद भी गाती थीं। मीरा के पद विशेष रूप से गाती थीं। सवेरे ‘जागिए कृपानिधान पंछी बन बोले’ यही सुना जाता था। प्रभाती गाती थीं। शाम को मीरा का कोई पद गाती थीं। सुन-सुनकर मैंने भी ब्रजभाषा में लिखना आरंभ किया। यहाँ आकर देखा कि सुभद्रा कुमारी जी खड़ी बोली में लिखती थीं। मैं भी वैसा ही लिखने लगी।
प्रश्न 1.
लेखिका को ब्रजभाषा में काव्य-लेखन की प्रेरणा कैसे मिली ?
उत्तर :
लेखिका की माँ बचपन में लिखती थीं, पद भी गाती थीं, वे मीरा के पद विशेष रूप से गाती थीं। सुबह-शाम अपनी माँ द्वारा गाये जानेवाले पदों को सुन-सुनकर उन्होंने भी ब्रजभाषा में लिखना प्रारंभ किया। इस तरह उन्हें अपनी माँ द्वारा ब्रजभाषा में काव्य लिखने की प्रेरणा प्राप्त हुई।।
प्रश्न 2.
लेखिका को खड़ी बोली में काव्य लेखन की प्रेरणा कहाँ से मिली ?
उत्तर :
छात्रावास में आने पर लेखिका ने देखा कि सुभद्राकुमारी जी खड़ी बोली में लिखती हैं। लेखिका भी उनका देखा-देखी खड़ी बोली में कविता लिखने लगी। यों सुभद्राकुमारी जी से उन्हें खड़ीबोली में कविता लिखने की प्रेरणा मिली।
प्रश्न 3.
‘प्रभाती’ अर्थात् क्या ?
उत्तर :
प्रभाती शब्द प्रभात से बना है। इसका अर्थ है भोर (सुबह) में गाया जानेवाला एक प्रकार का गीत। उस समय एक पत्रिका निकलती थी – ‘स्वी दर्पण’ – उसी में भेज देते थे। अपनी तुकबंदी छप भी जाती थी। फिर यहाँ कविसम्मेलन होने लगे तो हम लोग भी उनमें जाने लगे। हिंदी का उस समय प्रचार-प्रसार था। मैं सन् 1917 में यहाँ आई थी।
उसके उपरांत गांधी जी का सत्याग्रह आरंभ हो गया और आनंद भवन स्वतंत्रता के संघर्ष का केन्द्र हो गया। जहाँ-तहाँ हिंदी का भी प्रचार चलता था। कवि-सम्मेलन होते थे तो क्रास्थवेट से मैडम हमको साथ लेकर जाती थीं। हम कविता सुनाते थे। कभी हरिऔध जी अध्यक्ष होते थे, कभी श्रीधर पाठक होते थे, कभी रत्नाकर जी होते थे, कभी कोई होता था। कब हमारा नाम पुकारा जाए, बेचैनी से सुनते रहते थे।
प्रश्न 1.
उस समय हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए क्या किया जाता था ?
उत्तर :
उस समय हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए हिन्दी में पत्रिकाएँ छापी जाती थीं। जगह-जगह कवि-सम्मेलन का आयोजन किया जाता था। श्रेष्ठ व प्रतिष्ठित कवि इन सम्मेलनों की अध्यक्षता करते थे व श्रेष्ठ कवियों को पुरस्कार से सम्मानित करते थे।
प्रश्न 2.
सन् 1917 के आस-पास देश की परिस्थितियाँ कैसी थीं ?
उत्तर :
सन् 1917 के आस-पास देश में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई थीं। आनंदभवन स्वतंत्रता के संघर्ष का केन्द्र बन गया था। गाँधीजी का सत्याग्रह आंदोलन शुरू हो गया था। देशवासी अपने-अपने ढंग से स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपना योगदान देते थे। छात्र अपने बचाये हुए जेबखर्च को दान में दे देते थे।
प्रश्न 3.
‘सत्याग्रह’ सामासिक शब्द का विग्रह करके प्रकार बताइए।
उत्तर :
सत्याग्रह → सत्य के लिए आग्रह – तत्पुरुष समास।
उसी बीच आनंद भवन में बापू आए। हम लोग तब अपने जेब-खर्च में से हमेशा एक-एक, दो-दो आने देश के लिए बचाते थे और जब बापू आते थे तो वह पैसा उन्हें दे देते थे। उस दिन जब बापू के पास मैं गई तो अपना कटोरा भी लेती गई। मैंने निकालकर बापू को दिखाया। मैंने कहा, ‘कविता सुनाने पर मुझको यह कटोरा मिला है।’ कहने लगे, ‘अच्छा, दिखा तो मुझको।’ मैंने कटोरा उनकी ओर बढ़ा दिया तो उसे हाथ में लेकर बोले, ‘तू देती है इसे ?’ अब मैं क्या कहती ? मैने दे दिया और लौट आई। दुःख यह हुआ कि कटोरा लेकर कहते, कविता क्या है ? पर कविता सुनाने को उन्होंने नहीं कहा।
प्रश्न 1.
स्वतंत्रता आंदोलन में छात्र-छात्राएँ अपना योगदान कैसे देते थे ?
उत्तर :
छात्रावास में लेखिका तथा अन्य छात्राएँ अपने जेब-खर्च में से देश के लिए हमेशा एक-एक, दो-दो आने बचाया करते थे और जब बापू आनंद-भवन आते थे तो सभी लोग इस बचाये हुए पैसे बापू को देते थे। इस प्रकार वे अपना योगदान देते थे।
प्रश्न 2.
लेखिका ने अपना योगदान कैसे दिया ?
उत्तर :
लेखिका को एक कविता पर चाँदी का एक नक्काशीदार सुन्दर कटोरा मिला था। बापू जब आनंद-भवन आये तो वे उन्हें दिखाने के लिए अपने साथ ले गईं। जब उन्होंने कटोरा बापू को दिखाया तो उन्होंने इसे माँग लिया। लेखिका ने इसे सहर्ष उन्हें दे दिया। इस तरह से लेखिका ने चाँदी का कटोरा बापू को देकर अपना योगदान दिया।
प्रश्न 3.
कटोरा देने के बाद लेखिका को दुःख क्यों हुआ ?
उत्तर :
कटोरा लेने के बाद बापूजी ने लेखिका को कविता सुनाने को नहीं कहा इसलिए उन्हें दुख हुआ।
प्रश्न 4.
जेव-खर्च का सामासिक विग्रह कीजिए।
उत्तर :
जेब-खर्च का सामासिक विग्रह है – जेब के लिए खर्च।
सुभद्रा जी छात्रावास छोड़कर चली गई। तब उनकी जगह एक मराठी लड़की ज़ेबुन्निसा हमारे कमरे में आकर रही। वह कोल्हापुर से आई थी। जेबुन मेरा बहुत-सा काम कर देती थी। वह मेरी डेस्क साफ़ कर देती थी, किताबें ठीक से रख देती थी और इस तरह मुझे कविता के लिए कुछ और अवकाश मिल जाता था। जेबुन मराठी शब्दों से मिली-जुली हिंदी बोलती थी।
प्रश्न 1.
ज़ेबुन्निसा कौन थी ? वह किसकी जगह आई थी ?।
उत्तर :
जेबुन्निसा एक मराठी लड़की थी, जो कोल्हापुर से आई थी। सुभद्राजी छात्रावास छोड़कर चली गईं तब वह उनकी जगह पर आई थी।
प्रश्न 2.
लेखिका को कविता लेख्नन के लिए कुछ और अवकाश कैसे मिल जाता था ?
उत्तर :
सुभद्राकुमारी की जगह ज़ेबुन्निसा आ गई थी। वे लेखिका का कार्य स्वयं कर देती थीं। वह लेखिका का डेस्क साफ कर देती थीं, किताबें ठीक से रख देती थीं। इस तरह से उन्हें काव्य लेखन के लिए कुछ और अवकाश मिल जाता था।
प्रश्न 3.
छात्रावास का संधि-विग्रह कीजिए।
उत्तर :
छात्रावास का संधि-विग्रह है :
छात्र + आवास अथवा छात्रा + आवास
उस समय यह देखा मैंने कि सांप्रदायिकता नहीं थी। जो अवध की लड़कियाँ थीं, वे आपस में अवधी बोलती थीं; बुंदेलखंड से आती थीं, वे बुंदेली में बोलती थीं। कोई अंतर नहीं आता था और हम पढ़ते हिंदी थे। उर्दू भी हमको पढ़ाई जाती थी, परंतु आपस में हम अपनी भाषा में ही बोलती थीं। यह बहुत बड़ी बात थी। हम एक मेस में खाते थे, एक प्रार्थना में खड़े होते थे; कोई विवाद नहीं होता था।
प्रश्न 1.
सप्रमाण बताइए कि उस समय साम्प्रदायिकता नहीं थी ?
उत्तर :
लेखिका अपने छात्रावास के दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि उन दिनों साम्प्रदायिकता नहीं थी। अलग-अलग राज्य व क्षेत्र से आनेवाली लड़कियाँ अपनी-अपनी भाषाएँ बोलती थीं। कहीं कोई भेदभाव नहीं था। हिन्दी के साथ-साथ उर्दू भी पढ़ाई जाती थी। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि उस समय साम्प्रदायिकता नहीं थी।
प्रश्न 2.
लेखिका का छात्रावास बिनसाम्प्रदायिकता का बेमिशाल उदाहरण था। कैसे ?
उत्तर :
लेखिका जिस छात्रावास में पढ़ती थीं वहाँ कई जाति धर्म की लड़कियाँ पढ़ती थीं। वे हिन्दी के साथ-साथ उर्दू भी पढ़ती थीं। एक मेस में सभी खाना खाती थीं, एक प्रार्थना में सभी खड़े होते थे; कोई विवाद नहीं होता था। यह बिनसाम्प्रदायिकता का बेमिशाल उदाहरण है।
प्रश्न 3.
साम्प्रदायिकता शब्द में से मूल शब्द व प्रत्यय अलग कीजिए।
उत्तर :
दाय मूल शब्द है। इसमें ‘ईक’ + ‘ता’ प्रत्यय लगा है तथा सम् + प्र उपसर्ग है।
बचपन का एक और भी संस्कार था कि हम जहाँ रहते थे वहाँ जवारा के नवाब रहते थे। उनकी नवाबी छिन गई थी। थे। बेचारे एक बंगले में रहते थे। उसी कंपाउंड में हम लोग रहते थे। बेगम साहिबा कहती थीं – ‘हमको ताई कहो ! हम लोग उनको ‘ताई साहिबा’ कहते थे। उनके बच्चे हमारी माँ को चची जान कहते थे। हमारे जन्मदिन यहाँ मनाए जाते थे।
उनके जन्मदिन हमारे यहाँ मनाए जाते थे। उनका एक लड़का था। उसको राखी बाँधने के लिए वे कहती थीं। बहनों को राखी बाँधनी चाहिए। राखी के दिन सवेरे से उसको पानी भी नहीं देती थीं। कहती थीं, राखी के दिन बहनें रानी बाँध जाएँ तब तक भाई को निराहार रहना चाहिए। बार-बार कहलाती थी – ‘भाई भूखा बैठा है, राखी पैंधवाने के लिए।’ फिर हम लोग जाते थे।
प्रश्न 1.
‘बचपन का एक और संस्कार था।’ के माध्यम से लेखिका क्या कहना चाहती हैं ?
उत्तर :
इसके माध्यम से लेखिका कहना चाहती हैं कि छात्रावास के दिनों में भी अलग-अलग जातिधर्म के लोग बिना किसी भेदभाव के रहते थे। लेनिका बचपन में जिस कम्पाउण्ड में रहती थीं, वहाँ एक नवाब और उनकी पत्नी रहते थे। दोनों के घरों में अनोखी घनिष्ठता थी। दोनों एकदूसरे के त्योहारों को मनाया करते थे। अतः बिनसाम्प्रदायिक रूप से रहना लेखिका का बचपन का संस्कार था।
प्रश्न 2.
‘राखी’ के त्यौहार के विषय में बेगम साहिबा के क्या विचार थे ?
उत्तर :
रानी के त्यौहार के दिन बेगम साहिबा लेखिका को राखी बाँधने को कहती थीं और अपने बेटे को सवेरे से पानी भी नहीं देती थीं। उनका मानना था कि राखी के दिन बहने राखी बाँध जाएँ तब तक भाई को निराहार रहना चाहिए।
प्रश्न 3.
‘ताई साहिबा कौन थीं ? लेखिका ने उनका जिक्र पाठ में क्यों किया है ?
उत्तर :
ताई साहिबा जवारा के नवाब की पत्नी थीं। लेखिका ने पाठ में उनका जिक्र बिन साम्प्रदायिकता सौहार्दपूर्ण व्यवहार और अलग अलग धर्म के होते हुए भी पारिवारिक संबंध बनाये रखने के उदाहरण के रुप में किया है। वे हिन्दुओं के त्योहार मनाती थीं साथ-साथ अपने त्योहार में लेखिका के घर को शामिल करती थीं। कहीं कोई साम्प्रदायिक भेदभाव नहीं था।
प्रश्न 4.
‘संस्कारी’ तथा ‘सवेरे’ शब्द का विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर :
उपर्युक्त शब्दों का विलोम शब्द निम्नलिखित है :
संस्कारी × असंस्कारी
सवेरे × सांझ
मेरे बचपन के दिन Summary in Hindi
लेखक – परिचय महादेवी वर्मा का नाम भारत की प्रतिभासंपन्न लेखिका – कवयित्री के रूप में अंकित है। महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ था। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। वे कई वर्षों तक प्रयाग महिला विद्यापीठ की आचार्या रही। ये उत्तर प्रदेश विधान परिषद की मनोनीत सदस्या भी रहीं। उनकी इस प्रतिभा को सम्मान देते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से अलंकृत किया।
कवयित्री के रूप में उनके काव्य में वेदना और करुणा के स्वर प्रधान हैं तो गद्य लेखिका के रूप में उन्होंने अपने समय के पीड़ित व्यथित लोगों एवं जीवों की वेदना को वाणी दी। महादेवी वर्मा जीव प्रेमी थीं। जीवों के प्रति उनकी संवेदना और करुणा यथार्थ के धरातल पर अवस्थित हैं, जो उनके संस्मरणों एवं रेखाचित्रों में दिखाई देती है। ‘नीहार’, ‘सांध्यगीत’, ‘रश्मि’, ‘दीपशिखा’ तथा ‘यामा’ इनके प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ तथा ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘शृंखला की कड़ियाँ’ और ‘अतीत के चलचित्र’ आदि उनकी प्रमुख गद्य रचनाएँ हैं। ‘यामा पर उन्हें ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था।
प्रस्तुत पाठ ‘मेरे बचपन के दिन’ महादेवी वर्मा द्वारा लिखित एक संस्मरण है। इस संस्मरण में उन्होंने अपने जन्म की कथा से लेकर शिक्षा, दिक्षा, संस्कार, विद्यालय की सहपाठिनों, काव्य लेखन की शुरुआत से लेकर एक सधी हुई कवयित्री बनने तक की चुनी हुई घटनाओं का सजीव वर्णन किया है। छात्रावास के दिनों में स्वतंत्रता आंदोलन के प्रसंग का उल्लेख भी किया गया है।
पाठ का सार :
कई पीढ़ियों बाद लेखिका महादेवी वर्मा का जन्म और आदर-सत्कार :
महादेवी वर्मा अपने बचपन के दिनों को स्मरण करते हुए बताती हैं कि उनका जन्म कई पीढ़ियों बाद हुआ। दो सौ वर्ष से उनके परिवार में लड़की नहीं थी। यदि कन्या जन्म भी लेती थी तो उसे मार दिया जाता था। महादेवी वर्मा के बाबा ने दुर्गा की उपासना की तब जाकर उनका जन्म हुआ और परिवार में उनको मान-सम्मान दिया गया। जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ा यह महादेवी को नहीं सहना पड़ा।
शिक्षित वातावरण में शिक्षा :
उनके परिवार में बाबा फारसी और उर्दू जानते थे। उनके पिता ने अंग्रेजी पढ़ी थी। उनकी माता जी हिन्दी जानती थीं। उन्होंने ही पहले-पहले महादेवी को ‘पंचतंत्र’ पढ़ना सिखाया। महादेवी के बारे में उनके बाबा का पहले से ही विचार बहुत ऊँचा था। वे महादेवी को विदुषी बनाना चाहते थे। महादेवी ने संस्कृत पढ़ी। उनके बाबा चाहते थे कि वे उर्दू-फारसी सीख लूँ।
किन्तु यह उनके वश की बात नहीं थी। संस्कृत पढ़ाने के लिए पंडित की भी व्यवस्था की गई। उनकी माता को संस्कृत आती थी। उनकी माता जब पूजा-पाठ करती और संस्कृत में पाठ करतीं तो महादेवी उसे सुनती थी। इस प्रकार उन्हें शिक्षित वातावरण मिला। लेखिका का दाखिला मिशन स्कूल में करवाया गया। वहाँ उनका मन नहीं रमा। इसके बाद उन्हें क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में पाँचवी कक्षा में दाखिला करवाया गया। यहाँ का वातावरण साम्प्रदायिकता से दूर सौहार्दपूर्ण था। सभी धर्म की लड़कियाँ एक-साथ रहती और एक मेस में खाना खाती थीं।
प्रथम सखी सुभद्राकुमारी :
महादेवी छात्रावास में जब रहती थीं तब एक कमरे में चार छात्राएँ थी जिनमें पहली साथिन थीं सुभद्राकुमारी। सुभद्राजी तय। महादेवी से दो दर्जे आगे थीं। वे कविता लिखती थीं। लेखिका भी थोड़े बहुत तुकबंदी में कविताएँ लिखती थीं। अपनी माँ द्वारा मीरा के पद गाये जाने के कारण वे ब्रजभाषा से अवगत थी। अतः उन्होंने ब्रजभाषा में भी लिखना शुरू किया। सुभद्राजी तब साड़ी बोली में कविता लिखती थी। महादेवी भी वैसा ही लिखने लगी। वे सुभद्राजी से छिप-छिपकर लिखती थीं। एक दिन सुभद्राजी ने उनकी कविताएँ पकड़ ली और पूरे हॉस्टल में सबको बता दिया कि यह भी कविता लिखती हैं। इस तरह दोनों में घनिष्ठ मित्रता हो गई।
कवि सम्मेलन में असंख्य पदक :
‘स्त्री दर्पण’ पत्रिका में महादेवी की कविता छपती थीं। जब कवि सम्मेलन होने लगा तो ये और सुभद्राजी भी कवि-सम्मेलनों। में काव्य पाठ करने लगीं। इन कवि सम्मेलनों में कभी हरिऔध अध्यक्ष होते थे तो कभी श्रीधर पातक, कभी ‘रत्नाकर’ होते थे तो। कभी कोई और होता था। अपने बारी का महादेवी बैचेनी से इंतजार करती थीं। प्रायः उनको प्रथम पुरस्कार मिलता था। करीबन सौ से अधिक पदक उन्हें मिले थे।
चाँदी का कटोरा और महात्मा गांधी :
एक बार लेखिका को कवि सम्मेलन में नक्काशीदार, सुन्दर कटोरा मिला। यह बात जब उन्होंने सुभगाजी को बताया तो उन्होंने उसी कटोरे में खीर खाने की इच्छा प्रकट की। इसी बीच बापू आनंद भवन में आये। बच्चे अपने बचाये पैसे उन्हें दिया करते थे। महादेवी ने चाँदी का कटोरा बापूजी को दिखाया। बापूजी ने उस कटोरे को मांग लिया।
महादेवी ने भी उस कटोरे को दे दिया। किन्तु बापू ने कविता के बारे में कुछ न पूछा तो महादेवी को थोड़ा दुःस्व भी हुआ। महादेवी को इस बात की खुशी थी कि उन्होंने पुरस्कार में प्राप्त कटोरा बापू को दे दिया। सुभद्राजी को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने उसी कटोरे में ही खीर खाने की जिद की।
नई सनी जेबुन :
सुभद्राकुमारी के जाने के बाद लेखिका के कमरे में एक नई लड़की जेबुन आई। यह कोल्हापुर से आई थी। जेबुन उनका बहुत सा काम कर देती थी। इसलिए महादेवी को कविता लिखने का अवकाश मिल जाता था। जेबुन मराठी शब्दों से मिली-जुली हिन्दी बोलती थी। महादेवी भी उनसे कुछ-कुछ मराठी सीखने लगी। जेबुन मराठी महिलाओं की तरह किनारीदार साड़ी और वैसा ही ब्लाउज पहनती थीं।
असाम्प्रदायिक वातावरण :
महादेवी जहाँ पढ़ती थीं यहाँ कई राज्यों की लड़कियाँ पढ़ती थीं। उनमें सांप्रदायिकता नहीं थी। जो अवध की लड़कियाँ थीं, वे आपस में अवधी बोलती थीं; बुंदेलखंड से आनेवाली लड़कियाँ बुंदेली में बोलती थीं। सभी हिन्दी पढ़ा करती थीं। उर्दू भाषा भी पढ़ाई जाती थी, परन्तु आपस में वे अपनी भाषा में ही बोलती थीं, जो बहुत बड़ी बात थी। सभी लड़कियाँ एक मेस में खाती थीं, एक प्रार्थना में खड़े होते थे; कोई विवाद नहीं होता था।
बचपन के संस्कार और नवाब से घनिष्टता :
लेखिका जब विद्यापीठ आई तो बचपन के वही संस्कार अपने साथ लाई। और वही क्रम चलता रहा। उनके कम्पाउण्ड में एक नवाब रहते थे। उनकी नवाबी छिन गई थी। किन्तु दोनों परिवार में बहुत घनिष्टता थी। उनके बच्चों के जन्मदिन लेखिका के यहाँ और लेखिका का जन्मदिन उनके यहाँ मनाया जाता था। त्यौहार भी मिल-जुल कर मनाया जाता था। राखी के समय लेखिका नवाब के बेटे को राखी बाँधती थीं। बेगम साहिबा भी जब तक रानी न बँध जाये, लड़के को पानी नहीं पीने देती थी। जब लेखिका के घर उनका भाई पैदा हुआ तो उन्हीं बेगम साहिबा ने बच्चे का नाम मनमोहन रखा। यो महादेवी बिन साम्प्रदायिकता की बेमिशाल उदाहरण थी।
सौहार्दपूर्ण वातावरण : एक सपना :
मनमोहन वर्मा आगे चलकर प्रोफेसर तथा जम्मू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे। बेगम साहिबा द्वारा दिया गया नाम ही चला। उनके यहाँ हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाएँ चलती थीं। और अपने घर में वे अवधी बोलते थे। उस समय का वातावरण सौहार्द्र से परिपूर्ण था। आज की स्थिति देखकर उन्हें ऐसा लगता है कि यह सब सपना था जो आज खो गया है।
शब्दार्थ और टिप्पण :
- स्मृति – याद
- विचित्र – अनोखा
- परमधाम – मृत्युलोक
- खातिर – सम्मान
- आकर्षण – खिचाव
- कुलदेवी – परिवार की देवी
- पंचतंत्र – नीतिपरक कहानियों की पुस्तक
- विदुषी – ज्ञानी, बुद्धिमति
- मेस – भोजनालय
- साथिन – सनी, सहेली
- दर्जा – कक्षा
- छात्रावास – छात्रों के रहने का स्थान
- कृपानिधान – ईश्वर
- प्रतिष्ठित – सम्मानित
- तलाशी – खोजबीन
- बन – वन, जंगल
- पंछी – पक्षी
- प्रभाती – भोर में गाया जानेवाला गीत
- होस्टल – छात्रावास
- डाल – टहनी
- तुकबंदी – प्रास मिलाना
- प्रसार – फैलाव
- सत्याग्रह – गाँधीजी द्वारा चलाया गया एक आन्दोलन, सत्य के लिए आग्रह
- बेचैनी – उत्सुकता, आतुर, उत्तेजित
- नक्काशीदार – बेलबूटे से बनी सजावट
- फूल – काँसा, एक धातु
- अवकाश – समय
- साम्प्रदायिकता – जातिगत भेदभाव
- निराहार – बिना आहार के
- नेग – उपहार, पुरस्कार, भेंट
- लहरिया – धारीदार, वाइस
- चांसलर – उप-कुलपति।