Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 15 स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन
GSEB Class 10 Hindi Solutions स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Textbook Questions and Answers
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
कुछ पुरातन पंथी लोग खियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदीजी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?
उत्तर :
द्विवेदीजी ने स्त्री-शिक्षा के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए हैं
- नाटकों में स्त्रियों का प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं, क्योंकि सभी पढ़े-लिखे लोग संस्कृत बोलते थे, इसका कोई भी प्रमाण नहीं।
- पुराने समय में स्त्रियों के लिए विश्वविद्यालय नहीं था। इसका कोई भी प्रमाण नहीं है। जिस तरह से पुराने जमाने में विमान उड़ते थे, उनके बनाने की विद्या सिखानेवाला कोई शास्त्र उपलब्ध नहीं है।
- विश्ववरा, शीला, विज्जा, अत्रि की पत्नी, गार्गी, मण्डन, मिश्र की पत्नी आदि का उदाहरण देकर द्विवेदीजी ने तर्क किया है कि ये सभी शिक्षित थी, इसलिए स्त्रियों को पढ़ाना चाहिए। शकुंतला, सीता, रूक्मिणी आदि का उदाहरण देकर द्विवेदीजी ने स्त्री शिक्षा पर बल दिया है।
प्रश्न 2.
‘स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं’ – कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदीजी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं,’ द्विवेदीजी ने कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन करते हुए उन लोगों पर करारा व्यंग्य किया है। यदि खियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं तो पुरुषों द्वारा किया हुआ अनर्थ भी पुरुष-शिक्षा का परिणाम है। बम के गोले फेंकना, नरहत्या करना, डाके डालना, चोरियां करना, घूस देना यदि ये सब पढ़ने-लिखने का परिणाम है तो सभी स्कूल, कॉलेज बंद कर देना चाहिए। शकुंतला का दुष्यंत से कुवाक्य कहना या अपने परित्याग पर सीता का राम के प्रति क्रोध करना उनकी शिक्षा का परिणाम न होकर उनकी स्वाभाविकता ही है।
प्रश्न 3.
द्विवेदीजी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है – जैसे ‘यह सब पापी पढ़ने का अपराध हैं! न वे पढ़ती न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।’ आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।
उत्तर :
स्त्री-शिक्षा से संबंधित कुछ व्यंग्य द्विवेदीजी द्वारा दिए गए हैं वे निम्नलिखित हैं
1. स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का चूंट ! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतों के आधार पर कुछ लोग त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।
2. अत्रि की पत्नी धर्म पर व्याख्यान देते समय घंटों पांडित्य प्रकट करे, गार्गी बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों को हरा दे, मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दे। गजब ! इससे अधिक भयंकर बात क्या हो सकेगी!
3. जिन पंडितों ने गाथा-सप्तशती, सेतुबंध-महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में बनाए है, वे यदि अपढ़ और गवार थे तो हिन्दी के प्रसिद्ध से भी प्रसिद्ध अखबार का सम्पादक को इस जमाने में अपढ़ और गंवार कहा जा सकता है, क्योंकि वह अपने जमाने की प्रचलित भाषा में अखबार लिखता है।
प्रश्न 4.
पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत हैं- पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना उनके अपढ़ होने का सबूत नहीं है, क्योंकि उस समय बोलचाल की भाषा प्राकृत ही थी। जिसे सुशिक्षितों द्वारा भी बोला जाता था। जिस प्रकार आज हिन्दी जन साधारण की भाषा है। वर्तमान समय में अखबारों की भाषा हिन्दी है। उच्च से उच्च पदवी धारण किए लोग समाचारपत्रों के सम्पादक हैं, उसी प्रकार उस समय प्राकृत बोलनेवाले भी अपद, गवार नहीं हो सकते इसका एकमात्र कारण है कि प्राकृत उस समय की सर्व-साधारण भाषा थी। प्राकृत भाषा में जैनों और बौद्धों के अनेक ग्रंथों की रचना हुई। तो स्त्रियों के द्वारा प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का सबूत नहीं है।
प्रश्न 5.
परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों – तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए ही परंपराएं बनाई जाती हैं। इससे मनुष्य का जीवन सुन्दर व सुखमय बनता है। सृष्टि में स्त्री और पुरुष दोनों की समान भागीदारी है। आज महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। खी-पुरुष परस्पर मिलकर परिवार और समाज की उन्नति में योगदान दे रहे हैं।
तो ऐसे में वे परम्पराएँ जो प्राचीनकाल से चली आ रही हैं, और आज के समय के अनुकूल नहीं है जो स्त्री-पुरुष में भेदभाव रखते हैं उन परम्पराओं को त्याग देना चाहिए। वर्तमान समय को ध्यान में रखते हुए जो परंपराएं प्रासंगिक बनी हुई हैं उनको स्वीकार करने में संकोच नहीं करना चाहिए। अतः परम्परा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष की समानता को बढ़ाते हैं।
प्रश्न 6.
तब की शिक्षा प्रणाली और आज की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।
उत्तर :
तब की शिक्षा प्रणाली और आज की शिक्षा प्रणाली में जमीन-आसमान का अन्तर है। उस समय छात्र विद्याध्ययन करने गुरुकुल में जाते थे, वहीं रहकर अभ्यास करते थे, वर्तमान समय में छात्र विद्यालय जाते हैं, प्रतिदिन आवागमन करते हैं। पहले की शिक्षा प्रणाली में स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था किन्तु आज ऐसा नहीं है। लड़की और लड़का समान रूप से एक ही विद्यालय में एक साथ बैठकर शिक्षा प्राप्त करते हैं।
पहले शिक्षा चुनिंदा लोग ही ग्रहण करते थे अब किसी भी जाति, धर्म, वर्ग के लोग शिक्षा ग्रहण करते हैं। आज की शिक्षा प्रणाली में स्त्री-पुरुषों की शिक्षा में अंतर नहीं किया जाता है। पहले की शिक्षा जीवन मूल्यों पर आधारित थी। छात्र वेद-वेदांतों, आदर्शों की शिक्षा ग्रहण करते थे। आज व्यावहारिक, व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिया जाता है। आज के समय में गुरु-शिष्य परम्परा समाप्त हो गई है।
रचना और अभिव्यक्ति :
प्रश्न 7.
महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?
उत्तर :
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने अपने निबंध ‘स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतकों का खंडन’ में त्रियों की शिक्षा के प्रति अपने विचार प्रकट किए हैं और जो स्त्री-शिक्षा के विरोधी हैं, उन पर करारा व्यंग्य किया है। उस समय स्त्री-शिक्षा पर प्रतिबंध था। किन्तु द्विवेदीजी ने स्त्रियों को पढ़ाने के लिए अपना समर्थन दिया है।
जो स्त्री अशिक्षित होगी वह अपनी संतान में अच्छे संस्कारों का सिंचन नहीं कर सकती। विद्यालय जाने से पूर्व माँ ही उस बालक को प्रारंभ से ही अच्छे संस्कारों का सिंचन करेगी तो बालक आगे चलकर जागरूक और योग्य नागरिक बन सकता है। समाज की उन्नति में स्त्रियों का महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है यदि वे शिक्षित हों। तभी द्विवेदीजी ने स्त्री-शिक्षा पर बल दिया है।
उनकी यह सोच दूरगामी है। इसका परिणाम हम आज देख सकते हैं। किसी भी क्षेत्र में स्त्रियाँ पुरुषों से पीछे नहीं है। स्त्री-पुरुष समान रूप से घर-गृहस्थी संभालते हैं, समाज व देश के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। अत: हम कह सकते हैं कि यह निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है।
प्रश्न 8.
द्विवेदीजी की भाषाशैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी भाषा को एक नई दिशा प्रदान की। वे भाषा-सुधारकों में उनका नाम सर्वोच्च है। प्रस्तुत निबंध में उनकी विद्वता एवं बहुजता के साथ सरसता व सहजता भी झलकती है। कहीं-कहीं पर उन्होंने व्यंग्यात्मक भाषा का भी प्रयोग किया है। द्विवेदीजी ने अपने निबंध में विषय के अनुरूप गंभीर, सरस एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया है। इस निबंध में उन्होंने संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं पर देशज शब्द भी आए हैं, इस निबंध में सर्वत्र भाषा का परिष्कृत रूप ही दिखाई देता है।
भाषा-अध्ययन :
प्रश्न 9.
निम्नलिखित अनेकार्थी शब्दों को ऐसे वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए, जिनमें उनके एकाधिक अर्थ स्पष्ट हो- चाल, दल, पत्र, हरा, पर, फल, कुल।
उत्तर :
- चाल – रमेश को चाल बहुत तेज है।
- चाल – अवंतिका उसकी चाल में बुरी तरह फंस गई।
- दल – उस दल का नेता बहुत कुटिल स्वभाव का है।
- दल – तुलसीदल सूख गया।
- पत्र – रमा ने अपनी सखी को पत्र लिखा।
- पत्र – एक पत्र छाँह भी मांग मत, कर शपथ, कर शपथ।
- हरा – मुझे हरा रंग अच्छा लगता है।
- हरा – मैंने शतरंज में राहुल को हरा दिया।
- पर – टेबल पर पुस्तक रखी हैं।
- पर – किस चिड़िया के सिर पर पैर ?
- फल – इस पेड़ पर फल लगे हैं।
- फल – तुम्हें अपनी करनी का फल अवश्य मिलेगा।
- कुल – मेरी कक्षा में कुल 36 छात्र हैं।
- कुल – मैं क्षत्रिय कुल का हूँ।
Hindi Digest Std 10 GSEB स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Important Questions and Answers
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए :
प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार स्त्री-शिक्षा का विरोध कैसे लोग करते हैं ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार स्त्री-शिक्षा का विरोध ऐसे लोग करते हैं जो सुशिक्षित हैं। जिन्होंने बड़े-बड़े स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा पाई है, जो धर्म शाख और संस्कृत के ग्रंथों से परिचित हैं तथा जिनका पेशा कुशिक्षितों को सुशिक्षित करना है, कुमार्गगामियों को सुमार्गगामी बनाना है।
प्रश्न 2.
बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ की रचना प्राकृत में होने का क्या कारण था ?
उत्तर :
बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ की रचना प्राकृत में होने का एक मात्र कारण यही है कि प्राकृत भाषा उस समय की सर्वसाधारण भाषा थी। जैनों व बौद्धों के ग्रंथ की रचना प्राकृत भाषा में ही होती थी। इसलिए त्रिपिटक जो बौद्धग्रंथ है, उसकी रचना प्राकृत में हुई थी।
प्रश्न 3.
स्त्री-शिक्षा विरोधियों के किसी एक तर्क का अशेख कीजिए।
उत्तर :
स्त्री-शिक्षा के विरोधियों ने जो कुतर्क दिया है उनमें से एक है – संस्कृत के पुराने नाटकों में कुलीन स्त्रियाँ भी अशिक्षितों की भाषा में बात करती है जो यह सिद्ध करता है कि इस देश में स्त्रियों को पढ़ाने का चलन नहीं था।
प्रश्न 4.
स्त्री-शिक्षा के समर्थन में लेखक द्वारा दिए गए किसी एक तर्क का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
स्त्री-शिक्षा के समर्थन में लेखक ने जोरदार तर्क प्रस्तुत किए हैं। उनमें से एक है – स्त्रियों द्वारा किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने का परिणाम हो तो – पुरुषों का किया हुआ अनर्थ उनकी विद्या और अशिक्षा का परिणाम समझना चाहिए।
प्रश्न 5.
दुष्यंत ने शकुंतला के प्रति कौन-सा दुराचार किया था ?
उत्तर :
दुष्यंत और शकुंतला एक दूसरे से बेहद प्रेम करते थे। दुष्यंत ने शकुंतला से गंधर्व-विवाह किया, उसके साथ कुछ दिन रहे फिर उन्होंने उसका परित्याग कर दिया था।
प्रश्न 6.
द्विवेदीजी ने स्त्री शिक्षा से जुड़े आलोचकों को क्या सुझाव दिया है?
उत्तर :
द्विवेदीजी ने स्त्री शिक्षा से जुड़े आलोचकों को सुझाव दिया है कि हमें लड़कियों को पढ़ने से रोकना नहीं चाहिए बल्कि शिक्षा प्रणाली में संशोधन करने का प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न 7.
स्त्रियाँ शैक्षिक-दृष्टि से पुरुषों से कम नहीं है – इसके लिए महावीरप्रसाद द्विवेदी ने कौन से उदाहरण दिए हैं ?
उत्तर :
स्त्रियाँ शैक्षिक दृष्टि से पुरुषों से कम नहीं है – इसके लिए लेखक ने निम्न उदाहरण दिए है
- अत्रि की पत्नी अनसूया पत्नी धर्म पर व्याख्यान देकर अपना वैदुष्य प्रकट करती हैं।
- त्रिपिटक में मेरी गाथा में सैकड़ों स्त्रियों की पद्य रचनाएँ हैं जो यह बताती है कि उस जमाने की स्त्रियाँ पढ़ी-लिखी थीं।
प्रश्न 8.
‘प्राकृत केवल अपढ़ों की नहीं अपितु, सुशिक्षितों की भी भाषा थी’ – द्विवेदीजी ने यह क्यों कहा है ?
उत्तर :
प्राक्त उस समय आम बोलचाल की भाषा थी। बौद्धग्रंथों की रचना प्राकृत में ही हुई थी। विद्वानों ने गाथा सप्तसती, कुमारपाल चरित, सेतुबंध महाकाव्य जैसे ग्रंथों की रचना प्राकृत भाषा में ही की। इसलिए द्विवेदीजी ने कहा ‘प्राकृत केवल अपड़ों की ही नहीं अपितु सुशिक्षितों की भी भाषा थी।’
प्रश्न 9.
सीता ने राजा शब्द का संबोधन किसके लिए किया है ? क्यों ?
उत्तर :
सीता ने राजा शब्द का संबोधन अपने पति श्रीराम के लिए किया है। सीता ने अपने पति के समक्ष आग में कूदकर अपनी विशुद्धता साबित कर दी थी फिर भी श्रीराम ने उनका परित्याग किया। पति या स्वामी शब्द के बदले ‘राजा’ शब्द कहकर उनका उपहास करने के लिए सीता ने ‘राजा’ शब्द का प्रयोग किया।
प्रश्न 10.
समाज की दृष्टि में कैसे लोग दंडनीय है? क्यों?
उत्तर :
जो लोग यह कहते हैं कि पुराने जमाने में यहाँ स्त्रियां न पढ़ती थी अथवा उन्हें पढ़ने की मुमनियत थी वे या तो इतिहास से अभिज्ञता नहीं रखते या जान बूझकर लोगों को धोखा देते हैं। समाज की दृष्टि में ऐसे लोग दण्डनीय हैं, क्योंकि लियों को निरक्षर रखने का उपदेश देना समाज का अपकार और अपराध करना है, समाज की उन्नति में बाधा डालना है।
प्रश्न 11.
वर्तमान शिक्षा प्रणाली के विषय में लेखक की क्या राय है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार इस देश की शिक्षा प्रणाली बुरी है। इस शिक्षा-प्रणाली का संशोधन करना या कराना चाहिए। पाठ्यक्रम में क्या पढ़ाना चाहिये कितना पढ़ाना चाहिए, किस तरह की शिक्षा देनी चाहिए और कहाँ देनी चाहिए, घर या स्कूल में इन सब पर बहस होनी चाहिए। विचार करना चाहिए फिर निर्णय लेना चाहिए।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए :
प्रश्न 1.
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ पाठ में निहित संदेश को लिखिए।
उत्तर :
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतों का खंडन’ पाठ में लेखक ने स्त्री-शिक्षा के विरोधियों पर करारा व्यंग्य किया है। उन्होंने स्त्री-शिक्षा का समर्थन करते हुए वर्तमान-शिक्षा प्रणाली में कमियों की ओर निर्देश किया है और उसमें संशोधन का सुझाव दिया है। स्त्री-शिक्षा के अभाव में देश का गौरव बनाए रखना संभव नहीं है।
एक बालक में अच्छे संस्कारों का सिंचन करने के लिए शिक्षित माँ की आवश्यकता है अतः यह तभी संभव है जब स्त्री-सुशिक्षित होगी। स्त्री-शिक्षा का ही प्रभाव है कि आज प्रत्येक क्षेत्र में स्त्री, पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है। हर क्षेत्र में उसने अपने हुनर का परिचय दिया है। परिवार, समाज, राष्ट्र को वैभवपूर्ण और समृद्ध बनाने के लिए खी-शिक्षा अनिवार्य है यही लेखक ने इस पाठ द्वारा संदेश दिया है।
प्रश्न 2.
शकुंतला और सीता का उदाहरण देकर लेखक क्या सिद्ध करना चाहते हैं ?
उत्तर :
शकुंतला और सीता का उदाहरण देकर लेखक यह सिद्ध करना चाहते हैं कि पुरुषों द्वारा किए गए दुराचार को वे चुपचाप सहन नहीं करेंगी। शांत और विनम्रता की मूर्ति स्त्री पुरुषों के अत्याचार को तब तक सहन कर सकती हैं जब तक उनका धैर्य साथ देता है। धैर्य समाप्त होने पर स्त्री अपने वास्तविक रूप में आकर अपनी शक्ति का परिचय करा देती है।
शकुंतला और सीता ने अपने-अपने पतियों के लिए जो वाक्य कहें है वह मात्र शब्द नहीं पुरुषों के हृदय को बेधनेवाले वाक्य हैं। अत: लेखक यही कहना चाहते हैं कि पुरुषों द्वारा किए जानेवाले अत्याचारों के विषय में सोचना चाहिए, अपनी सोच में परिवर्तन लाना चाहिए। खियों का सम्मान न करने पर, उनके साथ दुराचार करने पर पुरुषों के अहित की संभावना बनी रहती है।
प्रश्न 3.
सिद्ध कीजिए कि वर्तमान में लड़कियां क्षमता में लड़कों से पीछे नहीं है।
उत्तर :
वर्तमान समय में लड़कियों लड़कों से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है। हर जगह उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। वर्तमान में लड़कियाँ अध्यापिका, डोक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, वकील, जज, प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस ऑफिसर, सैनिक यहाँ तक की पायलट, रेल ड्राइवर आदि पदों पर कार्यरत होकर अपनी कार्यक्षमता का परिचय दे रही हैं। लड़कियों ने पुरानी धारणा को तोड़कर नये-नये कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं, विदेशों में राजदूत, प्रदेशों की गवर्नर, संसद सदस्या, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री के पदों पर कार्यरत है। किसी भी क्षेत्र में स्त्रियाँ पुरुषों से पीछे नहीं है।
प्रश्न 4.
स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ पाठ में शकुन्तला के उदाहरण को स्पष्ट कीजिए। लेखक इस उदाहरण द्वारा क्या सिद्ध करना चाहते हैं?
उत्तर :
राजा दुष्यंत ने शकुन्तला के साथ गान्धर्व विवाह किया था परन्तु बाद में जब शकुन्तला उनके पास गई तो उन्होंने उसे पहचानने से इन्कार कर दिया। दुष्यंत के इस दुराचार से क्षुब्ध और व्यथित शकुंतला ने उनको कटु वचन कहे। पुरुषों का एक वर्ग शकुंतला के इस व्यवहार को अनुचित मानता हैं। परंतु लेखक ने शकुन्तला का पक्ष लेते हुए उसके व्यवहार को स्वाभाविक बताया है।
लेखक ने शकुंतला के इस व्यवहार से यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि पुरुषों की तरह स्त्री को भी अपने साथ हुए अन्याय और अत्याचार का विरोध करने का पूरा अधिकार है। अत्याचार सहन कर कुछ न बोलना कायरता है। शकुंतला ने यदि दुष्यंत को कटुवचन कहे तो यह स्वाभाविक था, अनुचित नहीं। त्रियों को अपने साथ हुए अत्याचार के खिलाफ आवाज उठानी ही चाहिए।
प्रश्न 5.
परम्पराएं विकास के मार्ग में अवरोधक हों तो उन्हें तोड़ने में ही हित है। कैसे?
अथवा
परम्पराएं विकास के मार्ग में अवरोधक हों तो उन्हें तोड़ना ही चाहिए, कैसे ? ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतों का खंडन’ पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए।
उत्तर :
किसी भी समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए परम्पराओं का निर्धारण किया जाता है। इससे समाज में एक व्यवस्था बनी रहती है। किन्तु जिस परम्परा से किसी को नुकसान हो, अकल्याण हो तो ऐसी परम्पराओं को बदलते समय के अनुसार तोड़ देना चाहिए। आज की मांग है स्त्रियों को शिक्षित करना। पहले के समय में पुरुषों को ही शिक्षा पाने का अधिकार था आज भी कुछ लोग इसके हिमायती हैं। स्त्रियों को शिक्षा से दूर रखने पर समाज और देश की प्रगति में बाधा उत्पन्न होगी। अत: जो परम्पराएं विकास के मार्ग में अवरोधक हों उन्हें तोड़ देने में ही हित है।
प्रश्न 6.
पुराने जमाने में नियमबद्ध शिक्षा-प्रणाली का उल्लेख न मिलने पर लेखक ने आश्चर्य नहीं माना। क्यों?
उत्तर :
पुराने जमाने में नियमबद्ध शिक्षा-प्रणाली का उल्लेख नहीं मिलता है। उदाहरण के तौर पर पुराने जमाने में विमान उड़ते थे, परंतु उनके बनाने की विद्या सिखानेवाला कोई शास नहीं मिलता। पुराणों में विमानों और जहाजों द्वारा की गई यात्राओं के उदाहरण मिलते हैं और हम उनके अस्तित्व को गर्व के साथ स्वीकार करते हैं, परंतु विमान बनाने का शास्त्र या विद्यालय न होने पर कोई आचर्य नहीं करते हैं। लेखक का मानना है कि जिस पुस्तक में उसका उल्लेख हुआ हो, हो सकता है कि वह नष्ट हो गया हो। इसलिए लेखक पुराने जमाने में नियमबद्ध शिक्षा-प्रणाली का उल्लेख न मिलने पर आश्चर्य नहीं मानते हैं।
प्रश्न 7.
वर्तमान में स्त्रियों को पढ़ाना क्यों जरूरी माना गया है, तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
वर्तमान समय में स्त्रियों को पढ़ाना इसलिए जरूरी माना गया है क्योंकि –
- पुरुषों के समकक्ष चलने के लिए पढ़ना आवश्यक है।
- स्त्रियों को पढ़ाने से परिवार शिक्षित बनता है। पढ़ी-लिखी माँ अपनी संतान को शिक्षित करेगी। उनमें उच्च संस्कारों का सिंचन करती
- शिक्षित स्त्री अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग रहती है।
- शिक्षित स्त्री शोषण और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाती हैं।
- शिक्षा से स्त्री का घर, समाज, परिवार में मान-सम्मान बढ़ जाता है।
- शिक्षित स्त्री आत्मनिर्भर बनती है और उसे किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ती।
प्रश्न 8.
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ पाठ की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन’ पाठ का उद्देश्य यही है कि प्राचीन काल से चली आ रही स्त्री-शिक्षा विरोधी परम्परा को तोड़कर हर हाल में स्त्रियों को शिक्षा दी जाये। आवश्यकता पड़ने पर शिक्षा प्रणाली में भी परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। स्त्री और पुरुष दोनों में समानता लाने के लिए स्त्रियों का पढ़ना अति आवश्यक है।
तभी दोनों के सोच-विचार में तालमेल लाना संभव हो पाएगा। स्त्री और पुरुष जीवनरूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। दोनों पहियों का समान होना आवश्यक है तभी जीवनरूपी गाड़ी ठीक प्रकार से चल सकेगी। अतः समाज के हित के लिए लेखक ने यही संदेश दिया है कि स्त्रियों को शिक्षित करना चाहिए। आज की मांग के हिसाब से यह अत्यंत प्रासंगिक भी है।
अतिलघुत्तरीय प्रश्न (विकल्प सहित) :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से चुनकर सही उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
जिस भाषा में शकुंतला ने श्लोक रचा था वह भाषा कैसी थी?
(क) अपड़ों की भाषा
(ख) शिक्षितों की भाषा
(ग) गवारों की भाषा
(घ) सर्वसाधारण जन की भाषा
उत्तर :
(क) अपड़ों की भाषा
प्रश्न 2.
भवभूति और कालिदास आदि के नाटक जिस जमाने के हैं उस जमाने में शिक्षितों का समस्त समुदाय कौन-सी भाषा बोलता था?
(क) प्राकृत भाषा
(ख) पाली भाषा
(ग) संस्कृत भाषा
(घ) अपढ़ों की भाषा
उत्तर :
(ग) संस्कृत भाषा
प्रश्न 3.
दुष्यंत ने किसके साथ गन्धर्व विवाह कर उसका परित्याग किया था?
(क) सीता
(ख) शकुंतला
(ग) गार्गी
(घ) शीला
उत्तर :
(ख) शकुंतला
प्रश्न 4.
वर्तमान शिक्षा-प्रणाली के विषय में लेखक ने क्या राय दी है?
(क) प्रणाली बुरी होने के कारण बंद करना चाहिए।
(ख) उसे वैसे ही जारी रखना चाहिए।
(ग) प्रणाली में संशोधन करना व कराना चाहिए।
(घ) प्रणाली पर बहस करना चाहिए।
उत्तर :
(ग) प्रणाली में संशोधन करना व कराना चाहिए।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न :
1. बड़े शोक की बात है, आजकल भी ऐसे लोग विद्यमान हैं जो स्त्रियों को पढ़ाना उनके और गृह-सुख के नाश का कारण समझते हैं। और, लोग भी ऐसे-वैसे नहीं, सुशिक्षित लोग – ऐसे लोग जिन्होंने बड़े-बड़े स्कूलों और शायद कॉलिजों में भी शिक्षा पाई है, जो धर्म-शास्त्र और संस्कृत के ग्रंथ साहित्य से परिचय रखते हैं, और जिनका पेशा कुशिक्षितों को सुशिक्षित करना, कुमार्गगामियों को सुमार्गगामी बनाना और अधार्मिकों को धर्मतत्त्व समझाना है। उनकी दलीलें सुन लीजिए –
प्रश्न 1.
लेखक ने किसे शोक की बात माना है ?
उत्तर :
आजकल ऐसे लोग विद्यमान हैं जो त्रियों को पढ़ाना उनके और गृह-सुख के नाश का कारण समझते हैं, लेखक ने इसे शोक की बात माना हैं।
प्रश्न 2.
कौन से लोग स्त्रियों को पढ़ाना गृह-सुख के नाश का कारण समझते हैं ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार सुशिक्षित लोग जिन्होंने बड़े-बड़े स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा पाई है, जो धर्मशास्त्र और संस्कृत के ग्रंथ साहित्य से परिचय रखते हैं और जिनका पेशा कुशुक्षितों को सुशिक्षित, कुमार्गगामियों को सुमार्गगामी और अधार्मिकों को धर्मतत्त्व समझाना है, ऐसे लोग स्त्रियों को पढ़ाना गृह-सुख के नाश का कारण समझते हैं।
प्रश्न 3.
‘गृह-सुख’ व ‘धर्म-शास्त्र’ समास का विग्रह करके प्रकार बताइए।
उत्तर :
समास विग्रह और प्रकार निम्नलिखित है –
- गृह-सुख – गृह का सुख तत्पुरुष समास
- धर्म-शास्त्र – धर्म के लिए शास्त्र तत्पुरुष समास
2. नाटकों में स्त्रियों का प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं। अधिक से अधिक इतना ही कहा जा सकता है कि वे संस्कृत न बोल सकती थीं। संस्कृत न बोल सकना न अपढ़ होने का सबूत है और न गंवार होने का। अच्छा तो उत्तररामचरित में ऋषियों की वेदांतवादिनी पत्नियाँ कौनसी भाषा बोलती थीं ? उनकी संस्कृत क्या कोई गॅवारी संस्कृत थी ?
भवभूति और कालिदास आदि के नाटक जिस जमाने के हैं उस जमाने में शिक्षितों का समस्त समुदाय संस्कृत ही बोलता था, इसका प्रमाण पहले कोई दे ले तब प्राकृत बोलनेवाली स्त्रियों को अपढ़ बताने का साहस करे। इसका क्या सबूत कि उस जमाने में बोलचाल की भाषा प्राकृत न थी? सबूत तो प्राकृत के चलन के ही मिलते हैं।
प्राकृत यदि उस समय की प्रचलित भाषा न होती तो बौद्धों तथा जैनों के हजारों ग्रंथ उसमें क्यों लिखे जाते, और भगवान शाक्य मुनि तथा उनके चेले प्राकृत ही में क्यों धर्मोपदेश देते? बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ की रचना प्राकृत में किए जाने का एकमात्र कारण यही है कि उस जमाने में प्राकृत ही सर्व साधारण की भाषा थी।
प्रश्न 1.
बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ की रचना प्राकृत में होने का कारण क्या था ?
उत्तर :
बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ की रचना प्राकृत में किए जाने का एक मात्र कारण यही है कि उस जमाने में प्राकृत भाषा सर्वसाधारणजन की भाषा थी। भगवान शाक्य मुनि और उनके चेले उस समय की प्राकृत भाषा में ही धर्मोपदेश देते थे।
प्रश्न 2.
प्राकृत भाषा के विषय में जानकारी दीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत गद्यांश में प्राकृत भाषा विषयक जानकारी दी गई है। प्राकृत भाषा उस समय की प्रचलित भाषा थी। सर्व साधारण लोग इसी भाषा में बात
करते थे। इसी भाषा में जैन व बौद्ध धर्म के ग्रंथ लिखे गए। प्राकृत बोलना व लिखना अपढ़ और अशिक्षित होने का प्रमाण नहीं है।
प्रश्न 3.
भवभूति और कालिदास के जमाने में शिक्षित किस भाषा का प्रयोग करते थे ?
उत्तर :
भवभूति और कालिदास के जमाने में शिक्षितों का समस्त समुदाय संस्कृत भाषा का प्रयोग करते थे।
प्रश्न 4.
‘धर्मोपदेश’ शब्द का संधि-विच्छेद कीजिए।
उत्तर :
धर्मोपदेश का संधि-विच्छेद है –
धर्मोपदेश – धर्म + उपदेश
3. प्राकृत बोलना और लिखना अपढ़ और अशिक्षित होने का चिह्न नहीं। जिन पंडितों ने गाथा-सप्तशती, सेतुबंध – महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में बनाए हैं, वे यदि अपढ़ और गवार थे तो हिंदी के प्रसिद्ध से भी प्रसिद्ध अखबार का संपादक इस जमाने में अपढ़ और गवार कहा जा सकता है; क्योंकि वह अपने जमाने की प्रचलित भाषा में अखबार लिखता है।
हिंदी, बाग्ला आदि भाषाएँ आजकल की प्राकृत हैं, शौरसेनी, मागधी, महाराष्ट्रीय और पाली आदि भाषाएँ उस जमाने की थौं। प्राकृत पढ़कर भी उस जमाने में लोग उसी तरह सभ्य, शिक्षित और पंडित हो सकते थे जिस तरह कि हिंदी, बांग्ला, मराठी आदि भाषाएँ पढ़कर इस जमाने में हम हो सकते हैं। फिर प्राकृत बोलना अपढ़ होने का सबूत है।
यह बात कैसे मानी जा सकती हैं ? जिस समय आचार्यों ने नाट्यशास्त्र संबंधी नियम बनाए थे उस समय सर्वसाधारण की भाषा संस्कृत न थी। चुने हुए लोग ही संस्कृत बोलते या बोल सकते थे। इसी से उन्होंने उनकी भाषा संस्कृत और दूसरे लोगों तथा स्त्रियों की भाषा प्राकृत रखने का नियम कर दिया।
प्रश्न 1.
आज के प्रसिद्ध अखबार के सम्पादक को अपढ़, गवार क्यों कहा जा सकता है?
उत्तर :
लेखक कहते हैं कि यदि उसे जमाने के पंडितों ने गाथ-सप्तशती, सेतुबंध – महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में लिखे है, यदि वे अपढ़, गवार हैं तो आज के प्रसिद्ध अखबार के सम्पादक को भी अपढ़, गवार कहा जा सकता है क्योंकि वे अपने जमाने की प्रचलित भाषा में अखबार लिखते हैं।
प्रश्न 2.
आज की प्राकृत और उस जमाने की प्राकृत भाषा कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर :
आज की प्राकृत भाषा है हिंदी, बांग्ला, मराठी आदि तो उस जमाने की प्राकृत भाषा है शौरसेनी, मागधी, महाराष्ट्री और पाली।
प्रश्न 3.
‘गवार’ तथा ‘अशिक्षित’ शब्द का विलोम शब्द लिखिए :
उत्तर :
विलोम शब्द हैं –
- गवार × सभ्य
- अशिक्षित × शिक्षित
4. वेदों को प्राय: सभी हिंदू ईश्वर-कृत मानते हैं। सो ईश्वर तो वेद-मंत्रों की रचना अथवा उनका दर्शन विश्ववरा आदि स्त्रियों से करावे और हम उन्हें ककहरा पढ़ाना भी पाप समझें। शीला और विज्जा आदि कौन थी? वे स्त्री थी या नहीं ? बड़े-बड़े पुरुष-कवियों से आदृत हुई हैं या नहीं? शार्ङ्गधर-पद्धति में उनकी कविता के नमूने हैं या नहीं ?
बौद्ध-ग्रंथ त्रिपिटक के अंतर्गत थेरीगाथा में जिन सैकड़ों स्त्रियों की पद्य-रचना उद्धृत है वे क्या अपढ़ थीं? जिस भारत में कुमारिकाओं को चित्र बनाने, नाचने, गाने, बजाने, फूल चुनने, हार गूंथने, पैर मलने तक की कला सीखने की आज्ञा थी उनको लिखने-पढ़ने की आशा न थी। कौन विज्ञ ऐसी बात मुख से निकालेगा? और, कोई निकाले भी तो मानेगा कौन?
प्रश्न 1.
प्राचीनकाल में स्त्रियां पढ़ी-लिखी थीं ? इसके क्या प्रमाण है ?
उत्तर :
प्राचीनकाल में स्त्रियाँ पढ़ी लिखी थीं। वेदों में वेदमंत्रों की रचना स्त्रियों ने की है। शीला और विज्जा विदुषियाँ बड़े-बड़े पुरुष-कवियों से सम्मानित हुई थीं। शाङ्गधर-पद्धति में इनकी कविता के नमूने हैं। ये सभी प्रमाण बताते हैं कि उस जमाने में भी स्त्रियाँ पढ़ी-लिखी थीं।
प्रश्न 2.
भारत में कुमारिकाओं को कौन-कौन सी कलाएं सिखाई जाती थीं ?
उत्तर :
भारत में कुमारिकाओं को चित्र बनाने, नाचने, गाने, बजाने, फूल चुनने, हार गूंथने, पैर मलने की कलाएँ सिखाई जाती थीं।
प्रश्न 3.
‘कवि’ तथा ‘कुमारिका’ का लिंग परिवर्तन कीजिए।
उत्तर :
लिंग परिवर्तन है –
- कवि – कवयित्री
- कुमारिका – कुमार
5. अत्रि की पत्नी पत्नी धर्म पर व्याख्यान देते समय घंटों पांडित्य प्रकट करें, गार्गी बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों को हरा दे, मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी शंकराचार्य के छो छुड़ा दे ! गजब ! इससे अधिक भयंकर बात और क्या हो सकेगी ! यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं। यह सारा दुराचार स्त्रियों को पढ़ाने ही का कुफल है। समझे। स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूट ! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतों के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।
प्रश्न 1.
प्राचीन भारत में स्त्रियाँ विदुषी थीं इसके क्या प्रमाण हैं ?
उत्तर :
प्राचीन भारत में स्त्रियाँ विदुषी थीं। इसके कई प्रमाण है। महर्षि अत्रि की पत्नी ने धर्म पर घंटों विद्वतापूर्ण बातें कहीं थीं। गार्गी ने शास्त्रार्थ में बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों को हरा दिया था। तो मंडन मिश्र की पत्नी ने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में हरा दिया था। इस आधार पर कहा जा सकता है कि प्राचीन भारत में स्त्रियाँ विदुषी थीं।
प्रश्न 2.
स्त्री शिक्षा विरोधियों की दृष्टि में दुराचार क्या है ?
उत्तर :
स्त्री-शिक्षा विरोधियों की दृष्टि में स्त्रियों द्वारा पांडित्य प्रदर्शन करना, ब्रह्मवादियों और शंकराचार्यों को विद्वतापूर्ण बातचीत में हरा देना दुराचार है। वे न पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करती।
प्रश्न 3.
‘दुराचार’ व ‘कुफल’ शब्द में से उपसर्ग अलग कीजिए।
उत्तर :
दुर् + आचार (दुर् उपसर्ग)
कु + फल (कु उपसर्ग)
6. मान लीजिए कि पुराने जमाने में भारत की एक भी स्त्री पढ़ी-लिखी न थी। न सही। उस समय स्त्रियों को पढ़ाने की जरूरत न समझी गई होगी। पर अब तो है। अतएव पढ़ाना चाहिए। हमने सैकड़ों पुराने नियमों, आदेशों और प्रणालियों को तोड़ दिया है या नहीं ? तो, चलिए, स्त्रियों को अपढ़ रखने की इस पुरानी चाल को भी तोड़ दें।
हमारी प्रार्थना तो यह है कि स्त्री-शिक्षा के विपक्षियों को क्षणभर के लिए भी इस कल्पना को अपने मन में स्थान न देना चाहिए कि पुराने जमाने में यहाँ की सारी स्त्रियाँ अपढ़ थीं अथवा उन्हें पढ़ने की आज्ञा न थी। जो लोग पुराणों में पढ़ी-लिखी स्त्रियों के हवाले मांगते हैं उन्हें श्रीमद्भागवत, दशमस्कंध के उत्तरार्द्ध का त्रेपनवा अध्याय पढ़ना चाहिए।
उसमें रुक्मिणी-हरण की कथा है। रुक्मिणी ने जो एक लंबा-चौड़ा पत्र एकांत में लिखकर, एक ब्राहाण के हाथ, श्रीकृष्ण को भेजा था वह तो प्राकृत में न था। उसके प्राकृत में होने का उल्लेख भागवत में तो नहीं। उसमें रुक्मिणी ने जो पांडित्य दिखाया है वह उसके अपढ़ और अल्पज्ञ होने अथवा गवारपन का सूचक नहीं।
प्रश्न 1.
स्त्री-शिक्षा के विषय में लेखक के क्या विचार हैं?
उत्तर :
लेखक का कहना है कि पुराने जमाने में स्त्रियाँ भले न पढ़ी हों किन्तु इस जमाने में उन्हें पढ़ाना चाहिए। वर्तमान समय में स्त्री-पुरुष में समानता लाने के लिए स्त्री-शिक्षा आवश्यक है।
प्रश्न 2.
लेखक ने श्रीमद्भागवत का त्रेपनवा अध्याय पढ़ने की सलाह क्यों देते हैं?
उत्तर :
जिन लोगों का मानना है कि प्राचीन समय में स्त्रियाँ पढ़ी-लिखी नहीं थी। स्त्री-शिक्षा का विरोध करनेवालों को उपरोक्त अध्याय की सलाह देते हैं। इसी अध्याय में रूक्मिणी द्वारा कृष्ण को पत्र लिखने का उल्लेख है जो साबित करता है कि उस जमाने में भी स्त्रियाँ पढ़ी लिखी थी।
प्रश्न 3.
‘जो लोग पुराणों में पढ़ी-लिखी स्त्रियों के हवाले मांगते हैं उन्हें श्रीमद्भागवत, दशमस्कंध के उत्तरार्ध का त्रेपनवा अध्याय पढ़ना चाहिए।’ वाक्य का प्रकार बताइए।
उत्तर :
मिश्र वाक्य हैं।
7. स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ने ही का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा ही का परिणाम समझना चाहिए। बम के गोले फेंकना, नरहत्या करना, डाके डालना, चोरियाँ करना, घूस लेना – ये सब यदि पढ़ने-लिखने ही का परिणाम हो तो सारे कॉलिज, स्कूल और पाठशालाएं बंद हो जानी चाहिए।
परंतु विक्षिप्तों, बातव्यथितों और ग्रहग्रस्तों के सिवा ऐसी दलीलें पेश करनेवाले बहुत ही कम मिलेंगे। शकुंतला ने दुष्यंत को कटु वाक्य कहकर कौन-सी अस्वाभाविकता दिखाई ? क्या वह यह कहती कि – “आर्य पुत्र, शाबाश ! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति है!”
पत्नी पर घोर से घोर अत्याचार करके जो उससे ऐसी आशा रखते हैं वे मनुष्य-स्वभाव का किंचित् भी ज्ञान नहीं रखते। सीता से अधिक साध्वी स्त्री नहीं सुनी गईं। जिस कवि ने शकुंतला नाटक में अपमानित हुई शकुंतला से दुष्यंत के विषय में दुर्वाक्य कहाया है उसी ने परित्यक्त होने पर सीता से रामचंद्र के विषय में क्या कहाया है, सुनिए –
प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार पुरुषों की विद्या और शिक्षा का क्या दुष्परिणाम है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार पुरुषों की विद्या और शिक्षा का दुष्परिणाम उनके द्वारा किया गया अनर्थ है। बम के गोले फेंकना, नर हत्या करना, डाके डालना, चोरियाँ करना, घूस लेना ये सभी पुरुषों की विद्या और शिक्षा का ही दुष्परिणाम है।
प्रश्न 2.
शकुंतला द्वारा दुष्यंत को कहे गए कटु वाक्य को लेखक अस्वाभाविक क्यों नहीं मानते ?
उत्तर :
शकुंतला द्वारा दुष्यंत को कहे गए कटु वाक्य को लेखक अस्वाभाविक इसलिए नहीं मानता क्योंकि दुष्यंत शकुंतला से गंधर्व-विवाह करके भूल गए थे। इस तरह दुष्यंत ने अपनी पत्नी पर घोर अत्याचार किया था। उनका यह कृत्य दुराचारपूर्ण था।
प्रश्न 3.
‘पाठशाला’ व ‘ग्रहग्रस्त’ सामासिक शब्दों का विग्रह करके प्रकार बताइए।
उत्तर :
समास विग्रह और प्रकार निम्नवत् है –
- पाठशाला – पाठ के लिए शाला तत्पुरुष समास
- ग्रहग्रस्त – ग्रह से ग्रस्त तत्पुरुष समास
8. ‘शिक्षा’ बहुत व्यापक शब्द है। उसमें सीखने योग्य अनेक विषयों का समावेश हो सकता है। पढ़ना-लिखना भी उसी के अंतर्गत है। इस देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली अच्छी नहीं। इस कारण यदि कोई स्त्रियों को पढ़ाना अनर्थकारी समझे तो उसे उस प्रणाली का संशोधन करना या कराना चाहिए, खुद पढ़ने-लिखने को दोष न देना चाहिए।
लड़कों ही की शिक्षा-प्रणाली कौन-सी बड़ी अच्छी है। प्रणाली बुरी होने के कारण क्या किसी ने यह राय दी है कि सारे स्कूल और कॉलिज बंद कर दिए जाएँ? आप खुशी से लड़कियों और स्त्रियों की शिक्षा प्रणाली का संशोधन कीजिए। उन्हें क्या पढ़ाना चाहिए, कितना पढ़ाना चाहिए, किस तरह की शिक्षा देना चाहिए और कहाँ पर देना चाहिए – घर में या स्कूल में – इन सब बातों पर बहस कीजिए, विचार कीजिए, जी में आवे सो कौजिए; पर परमेश्वर के लिए यह न कहिए कि स्वयं पढ़ने-लिखने में कोई दोष है – वह अनर्थकर है, वह अभिमान का उत्पादक है, वह गृह-सुख का नाश करनेवाला है। ऐसा कहना सोलहों आने मिथ्या है।
प्रश्न 1.
‘शिक्षा’ शब्द का व्यापक अर्थ समझाइए।
उत्तर :
‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है। उसमें सीखने योग्य अनेक विषयों का समावेश हो जाता है। पढ़ना-लिखना भी इसी के अन्तर्गत आ जाता है।
प्रश्न 2.
वर्तमान शिक्षा प्रणाली के विषय में लेखक की क्या राय हैं?
उत्तर :
वर्तमान शिक्षा प्रणाली के विषय में लेखक की राय है कि यह शिक्षा प्रणाली अच्छी नहीं है। इस कारण यदि कोई स्त्रियों को पढ़ाना अनर्थकारी समझे तो उसे इस प्रणाली का संशोधन करना या कराना चाहिए।
प्रश्न 3.
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में क्या संशोधन होना चाहिए?
उत्तर :
लेखक के अनुसार वर्तमान शिक्षा प्रणाली में लड़के व लड़कियों को क्या पढ़ाना चाहिए, कितना पढ़ाना चाहिए, किस तरह की शिक्षा देनी चाहिए और कहाँ देनी चाहिए – घर में या स्कूल में इन सब बातों को ध्यान में रखकर संशोधन किया जाना चाहिए।
प्रश्न 4.
‘अभिमान’ तथा ‘मिथ्या’ शब्द का अर्थ लिखिए।
उत्तर :
अर्थ निम्नलिखित है : अभिमान – घमंड, मिथ्या – झूठ।
संधि-विच्छेद कीजिए :
- मन्वादि – मनु + आदि
- दुर्वाक्य – दु: + वाक्य
- महर्षि – महा + ऋषि
- प्राक्कालीन – प्राक् + कालीन
- उल्लेख – उत् + लेख
- नामोल्लेख – नाम + उल्लेख
- पुराणादि – पुराण + आदि
- दुष्परिणाम – दु: + परिणाम
- दुराचार – दु: + आचार
- द्वीपांतर – द्वीप + अंतर
- पापाचार – पाप + आचार
- परमेश्वर – परम् + ईश्वर
- संशोधन – सम् + शोधन
विलोम शब्द लिखिए :
- सुशिक्षित × कुशिक्षित
- सुमार्गगामी × कुमार्गगामी
- नियमबद्ध × नियममुक्त
- कटु × मिष्ट मीठा
- कुपरिणाम × सुपरिणाम
- नागरिक × गवार
- बरबाद × आयाद
- उपेक्षा × अनुपेक्षा
- उपेक्षित × अनपेक्षित
- अशिक्षित × शिक्षित
- सभ्य र असभ्य
- पंडित × मूर्ख
- कुफल × सुफल
- विपक्ष × पक्ष
- स्वाभाविक × अस्वाभाविक
- कल्पना × यथार्थ
- शुद्ध × अशुद्ध
- अन्याय × न्याय
- कुलीनता × अकुलीनता
- अनर्थकर × अर्थकर
सविग्रह समास भेद बताइए :
- गृह-सुख – गृह (गृहस्थी/घर) का सुख – तत्पुरुष
- धर्म-शास्त्र – धर्म से संबंधित शास्त्र – तत्पुरुष
- नियमबद्ध – नियम में बद्ध – तत्पुरुष
- धर्मतत्त्व – धर्म का तत्त्व – तत्पुरुष
- नाट्यशास्त्र – नाट्य से संबंधित शास्त्र – तत्पुरुष
- धर्मावलंबी – धर्म का अवलंबी – तत्पुरुष
- पत्नी-धर्म – पत्नी का धर्म – तत्पुरुष
- स्त्री-शिक्षा – स्त्रियों के लिए शिक्षा – तत्पुरुष
- शारंगधर-पद्धति – शारंगधर की पद्धति – तत्पुरुष
- शाङ्गधर – पद्धति – शार्ङ्गधर की पद्धति – तत्पुरुष
- शिक्षा-प्रणाली – शिक्षा की प्रणाली – तत्पुरुष
स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Summary in Hindi
लेखक-परिचय :
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 में ग्राम दौलतपुर जिला रायबरेली (उ.प्र.) में हुआ था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण स्कूल की पढ़ाई पूरी करके रेल्वे में नौकरी कर ली। बाद में उस नौकरी को छोड़कर सन् 1903 में प्रसिद्ध हिन्दी मासिक पत्रिका ‘सरस्वती’ का सम्पादन शुरू किया और सन् 1920 इस पत्रिका का सम्पादन करते रहे। सन् 1938 में इनका निधन हो गया।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे। वे हिन्दी के पहले व्यवस्थित संपादक, भाषावैज्ञानिक, इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, वैज्ञानिक चिंतन एवं लेखन के स्थापक, समोलचक और अनुवादक थे। महावीर प्रसाद द्विवेदी से परिचित होना यानी हिंदी साहित्य के गौरवशाली अध्याय से परिचित होना है।
उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – ‘रसज्ञ रंजन’, ‘साहित्य-सीकर’, ‘साहित्य-संदर्भ’, ‘अद्भुत आलाप’, (निबंध संग्रह); ‘संपत्तिशास्त्र’ उनकी | अर्थशास्त्र से संबंधित पुस्तक है। महिला मोद महिला उपयोगी पुस्तक है। ‘हिन्दी काव्य माला’ में उनकी कविताएं संग्रहित हैं। इनका सम्पूर्ण साहित्य महावीर प्रसाद द्विवेदी रचनावली के पंद्रह खंडों में प्रकाशित है।
हिन्दी गद्यभाषा का परिष्कार करने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान हैं। इन्होंने कविता की भाषा के रूप में ब्रज भाषा के बदले खड़ी बोली को प्रतिष्ठित किया। उन्होंने सरस्वती पत्रिका के माध्यम से पत्रिकारिता का श्रेष्ठ स्वरूप सामने रखा । द्विवेदीजी के लेखन की प्रमुख विशेषता विद्वता एवं बहुजता के साथ सरसता है। उनके लेखन में व्यंग्य की छता बस देखते ही बनती है।
प्रस्तुत पाठ ‘स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतों का खंडन’ में लेखक ने उन लोगों से लोहा लिया है जो स्त्री-शिक्षा को बेकार तथा समाज व परिवार के विघटन का कारण मानते हैं। इस निबंध में लेखक ने यह भी बताया है कि प्राचीन परंपराओं का ज्यों का त्यों अनुकरण नहीं करना चाहिए। विवेक से निर्णय लेकर उचित-अनुचित का विचार करके ही रूढ़ियों तथा परम्पराओं को ग्रहण करना चाहिए। परम्परा का वह हिस्सा जो सड़-गल चुका है, उसका परिष्कार अथवा त्याग करने में ही भलाई है। इस निबंध का ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्व है।
पाठ का सार (भाव) :
स्त्रियों के विषय में सुशिक्षितों की राय : लेखक का कहना है कि यह बड़े दुःख की बात है कि समाज में कुछ सुशिक्षित लोगों का मानना है कि खियों को पढ़ाना गृह-सुख के नाश का कारण है। ऐसे सुशिक्षित लोग जो धर्म-शास्त्र और संस्कृत के ग्रंथ साहित्य से परिचय रखते हैं, जिनका पेशा कुशिक्षितों को सुशिक्षित करना, कुमागियों को सुमार्गगामी बनाना और अधार्मिकों को धर्मतत्त्व समझाना है। स्त्रियों के विषय में उनकी दलीलें हैं –
- पुराने संस्कृत कवियों के नाटकों में कुलीन स्त्रियों में भी अपढ़ों की भाषा में बातें कराई गई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि उस समय स्त्रियों को पढ़ाने का प्रचलन नहीं था।
- स्त्रियों को पढ़ाने पर अनर्थ होता है। शकुंतला कम पढ़ी लिखी थी। उसकी कम शिक्षा ने भी अनर्थ कर डाला।
- जिस भाषा में शकुंतला ने श्लोक रचा था वह अपड़ों की भाषा थीं। अत: नागरिकों के भाषा की बात तो दूर रही स्त्रियों को अपढ़ो, गवारों की भाषा पढ़ाना स्त्रियों को बरबाद करना है।
स्त्रियों का प्राकृत बोलना : नाटकों में स्त्रियों का प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। इतना कहा जा सकता है कि वे संस्कृत नहीं बोल सकती थीं । संस्कृत न बोल सकना अनपढ़ होने का सबूत नहीं है और न गवार होने का। उस जमाने में शिक्षित संस्कृत भाषा बोलते थे पहले कोई यह साबित करके बताये। बाद में प्राकृत बोलनेवाली स्त्रियों को अपढ़ बताने का साहस करें।
इसका कोई सबूत है कि उस जमाने में बोलचाल की भाषा प्राकृत न थी? लेखक का कहना है कि प्राकृत यदि उस समय को प्रचलित भाषा न होती तो बौद्धों तथा जैनों के हजारों ग्रंथ उसमें क्यों लिखे जाते, और भगवान शाक्य मुनि तथा उनके चेले प्राकृत ही में क्यों धर्मोपदेश देते ? बौद्धों के त्रिपिटक ग्रंथ की रचना प्राकृत में किए जाने का एकमात्र कारण यही है कि उस जमाने में प्राकृत ही सर्व साधारण की भाषा थी।
अतएव प्राकृत बोलना और लिखना अपढ़ और अशिक्षित होने का चिह्न नहीं। लेखक का कहना है कि प्राकृत पढ़कर भी उस जमाने के लोग उसी तरह सभ्य, शिक्षित और पंडित हो सकते थे जिस तरह कि हिंदी, बांग्ला, मराठी आदि भाषाएँ पढ़कर इस जमाने में हो सकते हैं।
जिस समय में आचार्यों ने नाट्यशास-संबंधी नियम बनाए थे उस समय सर्वसाधारण की भाषा संस्कृत न थी ! कुछ चुने हुए लोग संस्कृत बोल सकते थे। इसीसे उन्होंने उनकी भाषा संस्कृत और दूसरे लोगों तथा स्त्रियों की भाषा प्राकृत रखने का नियम कर दिया।
पुराने समय में स्त्रियों के लिए विश्वविद्यालय नहीं : स्त्री शिक्षा का विरोध करनेवाले तर्क देते हैं कि पुराने समय में त्रियों की शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। लेखक अपना तर्क देते हैं कि पुराने समय में विमान थे, किन्तु उनके निर्माण का कोई विधान नहीं मिलता तो उसके अस्तित्व को क्यों स्वीकार किया जाता है।
पुराने ग्रंथों में प्रगल्भ पंडितों के नाम पढ़कर भी तत्कालीन स्त्रियों को मूर्ख, अपढ़ और गवार क्यों बताते हैं । वेदों में वेदमंत्रों की रचना त्रियों ने की हैं। शीला और विज्जा आदि स्त्रियाँ ही थीं जो बड़े-बड़े कवियों से सम्मानित हुई थीं। भारत में यदि प्राचीन समय में स्त्रियों को चित्र बनाने, नाचने, गाने, बजाने, फूल चुनने, हार गूंथने की कला सीखाने की आशा थी, वहाँ उन्हें पढ़ने-लिखने की आज्ञा न थी।
कौन विज्ञ इस बात को स्वीकार करेगा। अत्रि की पत्नी आख्यान दे, गार्गी बडे-बडे ब्रह्मवादियों को हरा दे. मंडन मिश्र की सहधर्मिणी शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दे तो लोग यही कहेंगे कि वे न पढ़ती और न पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं । यह सारा दुराचार स्त्रियों को पढ़ाने का कुफल है। जो लोग यह मानते हैं कि स्त्रियों को पढ़ाना कालकूट है और पुरुषों को पढ़ाना पीयूष की पूंट ।
इन व्यर्थ की दलीलों को आधार मानकर खियों को अपढ़ रखा जाय तो भारत वर्ष का गौरव कदापि नहीं बढ़ेगा। पुरानी परम्पराओं को तोड़ देने में ही स्त्रियों का हित : लेखक का तर्क है कि पुराने समय में स्त्रियों को पढ़ाने की जरूरत नहीं समझी गई होगी। पर अब तो है। हमने कई पुराने नियमों, परम्पराओं को तोड़ा है तो इस परम्परा को तोड़ देने में ही स्त्रियों का हित है।
जो लोग यह तर्क देते हैं कि पुराने समय में स्त्रियाँ अपढ़ थी उन्हें श्रीमद् भगवद् में रुक्मिणी-हरण की कथा पढ़ लेनी चाहिए। उस पत्र में रूक्मिणी ने जो पांडित्य दिखाया है वह उसके अपढ़ और अल्पज्ञ होने या गवारपन का सूचक नहीं है। अर्थात् उस समय में भी स्त्रियाँ पढ़ती थीं ऐसा लेखक का मानना है।
स्त्रियों की शिक्षा अनर्थ तो पुरुषों की सार्थक कैसे? : लेखक कहते हैं कि स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ने का परिणाम है तो पुरुषों द्वारा किया गया अनर्थ भी शिक्षा का ही परिणाम समझना चाहिए। बम के गोले फेंकना, नर हत्या करना, डाका-चोरियाँ करना, घूस लेना आदि सार्थक कैसे हो सकता है। यदि ये सब शिक्षा का ही परिणाम है तो सभी स्कूल, कॉलेज, पाठशालाएँ बन्द होनी चाहिए । शकुंतला ने दुष्यंत को जो कटु वाक्य कहे वह स्वाभाविक ही है।
गान्धर्व विवाह करने के पश्चात् मुकर जाने पर शकुंतला द्वारा कटु वाक्य कहना स्वाभाविक ही है। जो लोग पत्नी पर घोर अत्याचार करके ऐसी आशा रखते हैं वे मनुष्य-स्वभाव का किंचित भी ज्ञान नहीं रखते । राम के द्वारा परित्यक्त होने पर सीता ने लक्ष्मण के द्वारा संदेश दिलवाया है – लक्ष्मण ! जरा उस राजा से कह देना कि मैंने तो तुम्हारी आँख के सामने ही आग में कूदकर अपनी विशुद्धता साबित कर दी थी।
तिस पर भी, लोगों के मुख से निकला मिथ्यावाद सुनकर ही तुमने मुझे छोड़ दिया। क्या यह बात तुम्हारे कुल के अनुरूप है? अथवा क्या यह तुम्हारी विद्वता या महत्ता को शोभा देनेवाली है। सीता का यह संदेश कटु नहीं तो क्या मीठा है? ‘राजा’ मात्र कहकर उनके पास अपना संदेश भेजा। यह उक्ति किसी गवार स्त्री की नहीं अपितु महाब्रह्मज्ञानी राजा जनक की लड़की और मनु आदि महर्षियों के धर्मशास्त्रों का ज्ञान रखनेवाली रानी की है। अतः शकुंतला की तरह अपने परित्याग को अन्याय समझनेवाली सीता का रामचंद के विषय में कटु वाक्य कहना सर्वथा स्वाभाविक है।
शिक्षा अनर्थ नहीं : लेखक कहते हैं कि पढ़ने-लिखने में स्वयं कोई बात ऐसी नहीं जिससे अनर्थ हो सके । अनर्थ का बीज उसमें हरगिज नहीं है। अनर्थ की संभावना तो पढ़े-लिखे अपढ़ किसी से भी हो सकती है। अनर्थ पापाचार, दुराचार के कारण तो और भी बहुत से हो सकते हैं। अत: जो लोग यह कहते हैं कि पुराने जमाने में स्त्रियाँ नहीं पढ़ती थी या तो वे इतिहास से अनभिज्ञ हैं या फिर जानबूझकर लोगों को धोखा देते हैं। ऐसे लोग दंडनीय है क्योंकि स्त्रियों को निरक्षर रखने का उपदेश देना समाज का अपकार या अपराध करना है। समाज की उन्नति में अवरोध खड़ा करना है।
शिक्षा-प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता : लेखक का कहना है कि जिस शिक्षा प्रणाली में स्त्रियों को पढ़ाना अनर्थकारी समझा जाता है उस शिक्षा प्रणाली को बदल देना चाहिए। बुरी शिक्षा प्रणाली होने पर भी कोई स्कूल या कॉलेज बंद करने की राय नहीं देता, यह उचित भी नहीं है। फिर त्रियों की शिक्षा बंद करने की राय देना भी उचित नहीं है।
शिक्षा-प्रणाली में बदलाव लाया जाना चाहिए कि त्रियों को क्या पढाना चाहिए और कितना पढाना चाहिए। किस तरह की शिक्षा देनी चाहिए और कहाँ देनी चाहिए। परन्तु यह सोचना, कहना उचित नहीं है कि लड़कों के पढ़ने-लिखने में कोई दोष नहीं है और लड़कियाँ का पढ़ाना अनर्थक है।
शब्दार्थ और टिप्पण :
- शोक – दुःख
- विद्यमान – उपस्थित
- कुमार्गगामी -बुरी राह पर चलनेवाला
- सुमार्गगामी – अच्छी राह पर चलनेवाले
- अधार्मिक – धर्म से संबंध न रखनेवाला
- धर्मतत्त्व – धर्म का सार
- दलीलें – तर्क
- अनर्थ – बुरा
- अपढ़ – अनपढ़, अशिक्षित
- उपेक्षा – ध्यान न देना
- प्राकृत – एक प्राचीन भाष
- वेदांतवादिनी – वेदांत दर्शन पर बोलनेवाली
- दर्शक ग्रंथ – जानकारी देनेवाली पुस्तक
- तत्कालीन – उस समय का
- तर्कशास्त्रज्ञता – तर्कशास्त्र को जानना
- न्यायशीलता – न्याय के अनुसार आचरण करना
- कुतर्क – अनुचित तर्
- खंडन – दूसरे के मत का युक्तिपूर्वक इन्कार करना
- प्रगल्भ – प्रतिभावान
- नामोल्लेख – नाम का उल्लेख करना
- आदत – आदर पाना
- विज्ञ – विद्वान
- ब्रह्मवादी – वेद पढ़ने-पढ़ानेवाला
- दुराचार – निंदनीय आचरण
- सहधर्मचारिणी – पत्नी
- कालकूट – जगर
- पीयूष – अमृत
- दृष्टांत – उदाहरण
- पांडित्य – ज्ञान
- अल्पज्ञ – कम जाननेवाला
- प्राक्कालीन – पुरानी
- व्यभिचार – पाप
- विक्षिप्त – पागल
- गृह-ग्रस्त – पाप ग्रह से प्रभावित
- किंचित – थोड़ा
- दुर्वाक्य – निंदा कनेवाला
- परित्यक्त – पूरी तरह से त्याग दिया गया
- मिथ्यावाद – झूठी बात
- निर्भत्सना – तिरस्कार, निंदा
- नीतिज्ञ – नीति का ज्ञाता