Gujarat Board GSEB Solutions Class 10 Hindi Vyakaran संधि-विच्छेद (विग्रह) Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 10 Hindi Vyakaran संधि-विच्छेद (विग्रह)
संधि के बारे में प्रश्न इस प्रकार होंगे :
दिए हए चार पर्यायों में से –
- गलत संधि बताना।
- उचित संधिविग्रह बताना।
भाषा में शब्दों के मेल का बहुत महत्त्व है। इससे भाषा सरस और समर्थ बनती है। शब्दों का मेल प्रायः समास या संधि के रूप में होता है।
भाषा में संधि का अर्थ है- दो या दो से अधिक शब्दों का निश्चित नियमों के अनुसार मेल करना। शब्दों का यह मेल उनके अंत्य और आदि वर्ण को मिलाकर किया जाता है। जैसे –
सूर्य + अस्त = सूर्यास्त
इस उदाहरण में ‘सूर्य’ शब्द का अंत्य वर्ण ‘अ’ (य् + अ) है और ‘अस्त’ शब्द का आदिवर्ण ‘अ’ है। व्याकरण के नियम के अनुसार ‘अ’ और ‘अ’ मिलकर ‘आ’ हो जाता है। इसलिए य (य् + अ) का ‘अ’ ‘अस्त’ के ‘अ’ से मिलकर ‘आ’ हो गया। इस प्रकार दोनों शब्दों की संधि से ‘सूर्यास्त’ शब्द बना।
इति + आदि = इत्यादि
यहाँ ‘ति’ (त + इ) के इ तथा ‘आदि’ के आ में संधि हुई है। नियम के अनुसार ‘इ’ और ‘अ’ मिलकर ‘य’ बनता है। यहाँ ‘इ’ और ‘आ’ मिलकर ‘या’ हो गया है। ‘ति’ में से ‘इ’ स्वर निकल जाने पर उसका मूल रूप ‘त्’ बच गया है। ह और या मिलकर त्या बना है।
सत् + जन – सज्जन
यहाँ ‘त’ तथा ‘ज’ में संधि होने से ‘ज्ज’ रूप बना है।
इस प्रकार दो निश्चित अक्षरों के पास-पास आ जाने के कारण उनके मेल से जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं।
संधि-विच्छेद : शब्दों की संधि और उसका विच्छेद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
संधि के विच्छेद (विग्रह) की क्रिया संधि से एकदम उल्टी है। बिच्छेद में संधि के कारण आए हुए विकार हटाकर संधि में जड़े हुए शब्दों को उनके मूल रूप में लिखा जाता है।
संधि का संबंध मुख्यतया संस्कृत भाषा के शब्दों अर्थात् तत्सम शब्दों से है। हिन्दी की वर्णमाला संस्कृत की वर्णमाला के अनुसार ही है। उसके अनुसार वर्ण (अक्षर) दो प्रकार के होते हैं :
- स्वर और
- व्यंजन।
जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से हो सकता है या कर सकते हैं, उन्हें स्वर कहते हैं। जिनका उच्चारण करने में स्वर की सहायता की जरूरत पड़ती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं।
हिन्दी भाषा की वर्णमाला में निम्नलिखित बारह स्वर और तैंतीस व्यंजन हैं:
स्वरों के प्रकार :
- हस्व स्वर : अ इ उ ऋ
- दीर्घ स्वर : आ ई ऊ ऋ
- दीर्घ एवं संयुक्त स्वर : ए ऐ ओ औ (अं अः)
व्यंजनों के प्रकार :
क से लेकर म् तक के पच्चीस व्यंजनों को बोलते समय जीभ का कोई न कोई भाग मुख के दूसरे भागों का स्पर्श करता है। इसलिए इन पच्चीस व्यंजनों को स्पर्श व्यंजन कहते हैं। उपर्युक्त तालिका के अनुसार इन्हें क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग और प वर्ग में बांटा गया है।
य, र, ल और व का उच्चारण स्वरों और व्यंजनों के बौच का है। इसलिए इन चार व्यंजनों को अर्धस्वर अथवा अंत:स्थ व्यंजन कहते हैं।
श, ष, स् और ह का उच्चारण करते समय मुंह में एक प्रकार की सुरसुराहट-सी होती है। इसलिए इन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं।
अनुस्वार तथा विसर्ग : अं को अनुस्वार तथा अ: (:) को विसर्ग कहते हैं।
अनुस्वार का उच्चारण ‘छ’, ‘म्’ अथवा ‘न’ की तरह होता है। जैसे- गंगा, चंपा, अंत, वंश, हंस आदि।
विसर्ग का उच्चारण ‘ह’ की तरह होता है। जैसे – प्रातः, दुःख, क्रमशः, प्रायः आदि।
स्वरान्त शब्द : शब्दों के अन्त में जो स्वर होता है उसके अनुसार शब्दों को अकारान्त, आकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त, ऊकारान्त आदि कहते हैं। जैसे –
- राम, श्याम, केशव (अकारान्त)
- राधा, रमा, माला (आकारान्त)
- गति, मति, रवि (इकारान्त)
- नदी, सती, माधवी (इकारान्त)
- भानु, धेनु, गुरु, बिन्दु (उकारान्त)
- वधु (ऊकारान्त)
संधि के प्रकार :
स्वरसंधि : दो स्वर पास-पास आने पर उनमें जो परिवर्तन होता है उसे स्वरसंधि कहते हैं। जैसे –
- सूर्य + अस्त = सूर्यास्त [अ + अ = आ]
- नदी + ईश = नदीश [ई + ई = ई]
नीचे स्वरसंधि के कुछ नियम उदाहरणों के साथ दिए गए हैं :
ए, ऐ, ओ और औ के पश्चात् कोई भी स्वर आए तो उनकी जगह क्रमशः अय, आय, अव और आव होता है। जैसे –
व्यंजनसंधि : हिन्दी भाषा की वर्णमाला का परिचय आगे दिया जा चुका है। उनमें से व्यंजनों के बारे में विशेष जानकारी संक्षेप __ में यहाँ दी जाती है:
विसर्गसंधि : अ : (:) को विसर्ग कहते हैं। अतः, प्रातः, स्वतः आदि विसर्गवाले शब्द हैं। विसर्गसंधि के उदाहरण और मुख्य नियम इस प्रकार हैं:
महत्वपूर्ण संधि-विच्छेद :
- दुर्लभ = दुस (दुः) + लभ
- उच्छ्वास = उत् + श्वास
- पुरुषार्थ = पुरुष + अर्थ
- नाविक = नौ + इक
- निष्प्राण = निस् + प्राण
- निराश्रय = निस् (निः) + आश्
- दुश्चिन्ता = दुर् (दु:) + चिन्ता
- शिलालेख = शिला + आलेख
- व्यापक = वि + आपक
- आनन्दोपभोग = आनन्द + उपभोग
- नास्तिकता = न + आस्तिकता
- निर्माण = निस् (नि:) + मान
- अध्ययन = अधि + अयन
- उन्मुक्त = उत् + मुक्त
- सज्जन = सत् + जन
- निर्दोष = निस् (नि:) + दोष
- रवीन्द्र = रवि + इन्द्र
- उल्लेख = उत् + लेख
- निराहार = निस् (नि:) + आहार
- निषिद्ध = निस् (नि:) + सिद्ध
- उज्ज्वलता = उत् + ज्वलता
- गौरागिनी = गौर + अंगिनी
- आशीर्वाद = आशी: + वाद
- निर्णय = निस् (नि:) + नय
- निरीक्षण = निस (नि:) + ईक्षण
- नीरव = निस् (नि:) + रख
- उन्मत्त = उत् + मत्त
- साकार = स + आकार
- राजेन्द्र = राजा + इन्द्र
- व्यर्थ = वि + अर्थ
- नदीश = नदी + ईश
- अधिकांश = अधिक + अंश
- मनोवृत्ति = मनस् + वृत्ति
- महत्त्वाकांक्षा = महत्त्व + आकांक्षा
- अनावश्यक = अन् + आवश्यक
- व्यवस्था = वि + अवस्था
- पर्याप्त = परि + आप्त
- सदैव = सदा + एव
- यद्यपि = यदि + अपि
- यतीन्द्र = यति + इन्द्र
- निरन्तर = निस् (नि:) + अन्तर
- अन्वेषण = अनु + एषण
- अनभिज्ञ = अन् + अभिज्ञ
- वृद्धाश्रम = वृद्ध + आश्रम
- निर्विरोध = निस् (नि:) + विरोध
- साष्टांग = स + अष्ट + अंग
- यथोचित = यथा + उचित
- कमलेश = कमल + इश