Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 12 Solutions Rachana पत्र-लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 12 Hindi Rachana पत्र-लेखन
पत्र लिखते समय ध्यान में रखने योग्य बातें :
1. स्थान (पता) और दिनांक : पत्र लिखनेवाले को सबसे ऊपर दाहिने किनारे पर (on right side) अपना स्थान (प्रेषक का पता) और उसके नीचे दिनांक (तारीख) लिखना चाहिए।
प्रायः प्रश्नपत्र में पता दिया जाता है। इसलिए विद्यार्थी को वही पता लिखना चाहिए। परीक्षार्थी पत्र में अपना पता न लिखें।
2. संबोधन और अभिवादन : विद्यार्थी जिसे पत्र लिखना चाहता है, उसके संबंधविशेष के अनुसार उसे शिष्ट संबोधन (प्रशस्ति) लिखना पड़ता है।
जैसे पूज्य पिताजी, आदरणीय गुरुजी, प्रिय मित्र, चिरंजीव अशोक आदि।
इसके बाद दूसरी पंक्ति में उचित अभिवादन (शिष्टाचारसूचक शब्द) लिखना चाहिए। जैसे सादर प्रणाम, सादर नमस्कार, सस्नेह नमस्ते, शुभाशीर्वाद आदि संबोधन और अभिवादन दो अलग-अलग पंक्तियों में इस प्रकार लिखिए :
संबोधन …..
पूज्य पिताजी,
अभिवादन ………
सादर प्रणाम।
कार्यालयीन पत्रों में ‘सेवा में’ लिखकर जिसे पत्र लिखना हो, उसका नामनिर्देश और पता लिखा जाता है। फिर ‘विषय’ या ‘संदर्भ’ शीर्षक लिखकर पत्र का हेतु संक्षेप में स्पष्ट किया जाता है और इसके बाद उसे उचित संबोधन किया जाता है।
व्यावसायिक पत्रों में ‘सेवा में’ की जगह ‘प्रति’ लिखा जाता है।
3. पत्र का कलेवर या विषय : संबोधन और अभिवादन के बाद पत्र के कलेवर की पहली पंक्ति शुरू होती है। पत्र में विशेष भूमिका या प्रस्तावना की जरूरत नहीं होती। फिर भी पत्र के कलेवर या विषय को साधारण रूप से हम तीन भागों में बाँट सकते हैं:
(अ) आरम्भ : व्यक्तिगत पत्रों के आरम्भ में कुशल समाचार लिखे जाते हैं। पत्र में ऐसी प्रस्तावना करनी चाहिए, जिससे मूल विषय की चर्चा स्वाभाविक प्रतीत हो। व्यावसायिक पत्र में संदर्भ का उल्लेख करने के पश्चात् सीधे विषय की शुरूआत की जाती है।
(ब) मध्य : यह पत्र का मुख्य भाग है। इसमें पत्र का प्रयोजन स्पष्ट रूप से लिखा जाता है। मूल विषय को भलीभांति समझकर औचित्य और आवश्यकता के अनुसार उसकी चर्चा करनी चाहिए।
(क) अन्त : अन्त में जिसे पत्र लिखा जाता है, उसके परिवार या संबंधी के कुशलक्षेम के लिए अभिलाषा प्रकट की जाती है, या उसे पत्रोत्तर लिखने के लिए कहा जाता है।
4. समाप्ति : अंत में शिष्टाचार के रूप में छोटे-बड़े के संबंध अनुसार आपका आज्ञाकारी, हितेच्छु, आदि लिखा जाता है और उसके नीचे पत्रलेखक का नाम (प्रश्नपत्र के अनुसार) लिखा जाता है।
कुछ विद्यार्थी पत्र की समाप्ति में (‘क ख ग’ या ‘X Y Z’) लिख देते हैं। ऐसा कभी नहीं लिखना चाहिए। प्रश्नपत्र में पत्रलेखक का जो नाम दिया गया हो वही लिखना चाहिए।
कार्यालयीन एवं व्यावसायिक पत्र के अंत में शिष्टाचार के रूप में प्रायः ‘भवदीय’, ‘आपका विनीत’ आदि लिखा जाता है।
इस प्रकार पत्र लिखने का परिचय और हस्ताक्षर पत्र की दायीं ओर सबसे नीचे लिखा जाता है। इन्हें इस प्रकार लिखिए :
परिचय, ……….
आपका आज्ञाकारी पुत्र,
हस्ताक्षर ……….
विनोदकुमार
निम्नलिखित सूचनानुसार पत्र लिखिए :
प्रश्न 1.
40, प्राचीना सोसायटी, अहमदाबाद -380009 से प्रदीप व्यास सूरत में रहनेवाले अपने मित्र राजेश दवे को समाचारपत्र के पढ़ने से होनेवाले लाभ बताते हुए पत्र लिखता है।
उत्तर:
40, प्राचीना सोसायटी,
अहमदाबाद – 3800091।
13 अक्तूबर, 2020
प्रिय राजेश,
सप्रेम नमस्कार।
बहुत दिनों के बाद तुम्हारा पत्र मिला और यह जानकर खुशी हुई कि पहले की तरह तुम केवल किताबी कीड़े ही नहीं रहे हो। किन्तु अब तुम नियमित रूप से समाचारपत्र पढ़ने लगे हो।
सचमुच, आज के वैज्ञानिक युग में प्रतिदिन समाचारपत्र पढ़ना बहुत आवश्यक है। दुनिया के कोने-कोने का हाल जानने का सबसे सरल साधन समाचारपत्र ही है। इनके द्वारा हमें अपने देश और दुनिया की राजनीतिक परिस्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है और हमारे समाज के सही दर्शन होते हैं। विद्वानों के विचार या नेताओं के विविध स्थानों पर दिए कहानी, काव्य या साहित्य-सामग्री आदि द्वारा समाचारपत्र हमारा मनोरंजन करते हैं। संपादकों के आलोचनात्मक लेख हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
समाचारपत्रों का चिकित्सा विभाग स्वास्थ्य लाभ में सहायक बनता है। – व्यापारिक और औद्योगिक बातों की जानकारी भी समाचारपत्रों से मिलती है। यही नहीं, इनके द्वारा खेल-कूद, आकाशवाणी, दूरदर्शन और सिनेमा के समाचार भी प्राप्त होते हैं। सच तो यह है कि समाचारपत्र द्वारा हम हर पल आगे बढ़ती हुई दुनिया के साथ कदम मिलाकर चल सकते हैं।
आशा है, तुम समाचारपत्र पढ़ना जारी रखोगे। इससे तुम्हारी ज्ञानसाधना में बड़ी सहायता मिलेगी। तुम्हारे माता-पिता को सादर प्रणाम । पत्रोत्तर की प्रतीक्षा करूंगा।
तुम्हारा मित्र,
प्रदीप व्यास
प्रश्न 2.
15, शिवनगर सोसायटी, नवरंगपुरा, अहमदाबाद-380009 से हेतल भट्ट भावनगर-निवासिनी अपनी सहेली चिंतल भट्ट को ‘टीवी देखने का अधिकतम शौक पढ़ाई में बाधक बनता है’, यह बात समझाते हुए पत्र लिखती है।
उत्तर:
15, शिवनगर सोसायटी,
नवरंगपुरा,
अहमदाबाद – 380009।
12 दिसम्बर, 2020
प्रिय चिंतल,
सप्रेम नमस्कार।
कल शाम को बाजार से लौटी तो माँ ने तुम्हारा पत्र दिया। यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि तुम्हारे घर में बड़ा LED टीवी आ गया है। इस खुशी के साथ कुछ भय और चिन्ता का भी अनुभव हुआ। पूछोगी, ‘क्यों?
हमारे यहाँ भी पिछले साल टीवी आया था। इसके आते ही हम सब भाई-बहन इसके दीवाने हो गए। स्कूल से आते ही टीवी से चिपक : जाते थे। रात देर तक सारे कार्यक्रम देखते रहते थे। परिणाम यह हुआ : कि हम पढ़ाई में पिछड़ने लगे। टीवी से बंधकर स्कूल का गृहकार्य : करने की इच्छा ही नहीं होती थी। न पाठ्यपुस्तक पढ़ने में मन लगता : था और न प्रश्नों के उत्तर याद हो पाते थे।
टीवी के विविध कार्यक्रमों : का जादू मन को पढ़ाई में लगने ही नहीं देता था। टीवी के अत्यधिक : शौक के कारण ही पिछली अर्धवार्षिक परीक्षा में हममें से कोई भी सभी विषयों में उत्तीर्ण नहीं हुआ। मुझे डर है कि कहीं तुम्हारी पढ़ाई पर : भी टीवी का ऐसा ही बुरा असर न पड़े। मैं आशा करती हूँ कि तुम टीवी के कार्यक्रम देखने में काफी संयत रहोगी और किसी भी हालत : में टीवी देखने के शौक को पढ़ाई पर हावी न होने दोगी।
तुम्हारे माता-पिता को मेरे प्रणाम।
बंटी और पप्पु को बहुत प्यार।
तुम्हारे पत्र का इन्तजार करूंगी।
तुम्हारी सहेली,
हेतल भट्ट
प्रश्न 3.
आनंद भवन, स्टेशन रोड, बनारस – 221001 से कल्याणी, अपनी सखी अनुराधा को दहेज-प्रथा की बुराइयाँ समझाते हुए एक पत्र लिखती है।
उत्तर:
आनंद भवन,
स्टेशन रोड,
बनारस – 221 001।
15 दिसम्बर, 2020
प्रिय सखी अनुराधा,
सप्रेम नमस्कार।
तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारी पड़ोसिन की नव-विवाहिता बेटी दीपा की करुणकथा पढ़कर मर्मातक पीड़ा हुई। दहेज की बलिवेदी पर देश की नव-वधुएं, पता नहीं, कब तक शहीद होती रहेंगी! अचरज की बात है कि समाज-सुधारकों के प्रयासों और सरकारी कानून के बावजूद समाज में दहेज का दूषण बढ़ता ही जा रहा है। शायद ही ऐसा कोई दिन हो, जब अखबार में किसी दहेज-मृत्यु की खबर पढ़ने को न मिले।
मनचाहा दहेज न मिलने पर नव-वधू को सताना, मारना-पीटना और हो सके तो चिता के हवाले कर देना आज आम बात हो गई है। यहाँ तक कि समाज में आगे बढ़ा हुआ शिक्षित-संपन्न वर्ग भी दहेज लेने में पीछे नहीं है! कुछ लोग सीधे ढंग से दहेज न लेने का ढोंग करके उसे किसी दूसरे रूप में वसूल कर लेते हैं! दहेज का मायावी दानव नित नये रूप धारण करके समाज का शोषण कर रहा है। नयी-नवेली वधुएं दहेज की आग में खाक हो रही हैं, लेकिन किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती।
मुझे लगता है कि दहेज के इस दैत्य का नाश करने के लिए देश की नारी-शक्ति को ही महिषासुर-मर्दिनी माँ दुर्गा का रूप धारण करना होगा। समाचारपत्र, रेडियो, टीवी, समाज एवं युवा पीढ़ी को दहेज-प्रथा दूर करने के लिए ठोस प्रयत्न करने होंगे। तुम्हारा क्या विचार है? दीपा के शोकसंतप्त परिवारजनों के प्रति गहरी संवेदना के साथ।
तुम्हारी सखी,
कल्याणी
प्रश्न 4.
15, विवेकानंद सोसायटी, विसनगर – 384315 से स्मिता अपनी सूरतवासी सखी जागृति को हिन्दी भाषा का महत्त्व बताती हुई एवं हिन्दी बोलने का अनुरोध करती हुई पत्र लिखती है।
उत्तर:
15, विवेकानंद सोसायटी,
विसनगर – 384315।
5 अगस्त, 2020
प्रिय जागृति,
सप्रेम नमस्कार।
कल तुम्हारा पत्र मिला। यह जानकर अफसोस हुआ कि तुमने राष्ट्रभाषा के वर्ग में जाना बन्द कर दिया है और राष्ट्रभाषा कोविद तक पढ़ने का अपना इरादा छोड़ दिया है।
जागृति, ऐसा लगता है कि समाज में अभी भी अंग्रेजी का बोलबाला देखकर हिन्दी पढ़ना तुम्हें व्यर्थ लगता है, लेकिन ऐसी बात नहीं है। गुजरात में गुजराती से हमारा काम बड़े मजे से चलता है, लेकिन गुजरात से बाहर गुजराती हमारे काम नहीं आ सकती। दूसरे प्रांतों में जाने पर या दूसरे प्रांतों के लोगों से मिलने पर हिन्दी हमारे काम आ सकती है।
वही एक ऐसी भाषा है, जिसे लगभग सारे देश के लोग बोल और समझ सकते हैं। हिन्दी का ज्ञान हमें अपने देश में कहीं भी परायापन महसूस नहीं होने देता। इसके द्वारा हम सभी प्रांतों के लोगों से हिल-मिल सकते हैं और उनसे आसानी से बातचीत कर सकते हैं। जो राष्ट्रभाषा सारे देश के दिलों को जोड़कर एक कर सकती है, उसे सीखना हम सबका पवित्र कर्तव्य है।
हमें सदा यह बात याद रखनी चाहिए कि हिन्दी राष्ट्रीय एकता, प्रेम और भाईचारे की भाषा है। वही भारत की भारती है। उसका अध्ययन गर्व की बात है। हिन्दी भाषा का साहित्य बहुत समृद्ध है। इसे पढ़ने से ज्ञान एवं मनोरंजन दोनों प्राप्त होते हैं। इसलिए, मुझे विश्वास है कि तुम राष्ट्रभाषा की पढ़ाई फिर से शुरू कर दोगी और अपने दैनिक कार्यों में हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग करोगी।
शुभकामनाओं के साथ।
तुम्हारी सखी,
स्मिता
प्रश्न 5.
27, वसंत सोसायटी, अलकापुरी, सूरत – 395 003 से कमल शाह अपने छोटे भाई सुलभ को व्यायाम का महत्त्व बताते हुए पत्र लिखता है।
उत्तर:
27, वसंत सोसायटी,
अलकापुरी,
सूरत – 395003।
27 अक्तूबर, 2020
प्रिय भाई सुलभ,
सस्नेह आशीर्वाद।
दीदी के पत्र से तुम्हारी अस्वस्थता का समाचार मिला। तुम आए दिन इस प्रकार बीमार पड़ जाते हो, इसका क्या कारण है? तुम्हारी प्रथम सत्रांत परीक्षा भी नजदीक आ रही है। माताजी और पिताजी भी बहुत चिंतित होंगे।
तुम्हारा शरीर कमजोर हो गया है, इसलिए तुम बार-बार बीमार हो जाते हो। व्यायाम तुम करते नहीं। खेल-कूद से तुम हमेशा दूर भागते हो। तुम्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि सिर्फ अच्छा भोजन करने से ही अच्छी सेहत नहीं बन जाती। अच्छे भोजन से अच्छी सेहत तभी बन सकती है, जब उचित और पर्याप्त व्यायाम भी किया जाए। व्यायाम से भोजन का पाचन ठीक से होता है। शरीर मजबूत बनता है। आलस्य कभी पास नहीं फटकता। मन में उत्साह बना रहता है। स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन ही सारी सफलताओं के आधार हैं। सचमुच, व्यायाम सुखी और सफल जीवन की कुंजी है।
तुम्हें प्रतिदिन सुबह या शाम नदी के किनारे घूमने जाना चाहिए। रोज सुबह पच्चीस दंड-बैठक और कुछ आसन करने चाहिए । खेलों से भी अच्छा व्यायाम हो जाता है।
मुझे विश्वास है कि मेरी सलाह मानकर तुम तुरंत व्यायाम शुरू कर दोगे। माताजी और पिताजी को प्रणाम । छोटी मनीषा को खूब दुलार ।
तुम्हारा भाई,
कमल शाह
प्रश्न 6.
5, मृणाल सोसायटी, महात्मा गांधी मार्ग, राजकोट – 360001 से सुस्मिता पटेल, अपनी सहेली रीटा को विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व बताते हुए पत्र लिखती है।
उत्तर:
5, मृणाल सोसायटी,
महात्मा गांधी मार्ग,
राजकोट – 3600011।
10 दिसम्बर, 2020
प्रिय रीटा,
सप्रेम नमस्कार।
कल ही तुम्हारी दीदी का पत्र आया। उससे पता चला कि तुम स्कूल में बहुत मनमानी करती हो । कक्षा में बातें करती हो, अध्यापकों – की खिल्ली उड़ाती हो और कुछ विषयों के पीरियड में गैरहाजिर भी रहती हो। इन सबका नतीजा यह हुआ कि प्रथम सत्रान्त परीक्षा में तुम : बुरी तरह फेल हो गई।
प्यारी रीटा, तुम्हारे विषय में ये सब बातें जानकर मुझे बड़ा दु:ख हुआ है। लगता है, तुमने अनुशासन का महत्त्व नहीं समझा। अनुशासन के बिना हम प्रगति नहीं कर सकते। विद्यार्थी अनुशासन में रहेंगे तभी शांति से पढ़ाई कर सकेंगे और शिक्षकों को भी पढ़ाने में आनंद आएगा। विद्यार्थी ध्यान से शिक्षकों की बातें सुनेंगे तो विषय को भलीभांति समझ।
सकेंगे। अनेक पुस्तकें पढ़कर विद्यार्थी जो नहीं सीख सकते, उसे वे कक्षा में ध्यान देकर आसानी से सीख सकते हैं। सच पूछो तो अनुशासन ही विद्यार्थी जीवन की नींव है। तुम्हारी यह नींव ही कच्ची है, फिर उस पर सफलता का महल कैसे बना सकोगी?
चलो, जो हुआ सो हुआ। अब मेरी सीख मानकर तुम अपने स्कूल के नियमों का पालन करो। कक्षा में अपना व्यवहार अनुशासनपूर्ण रखकर पढ़ाई में पूरा ध्यान दो। मुझे विश्वास है कि अनुशासन का पालन करने से तुम सब जगह नाम कमाओगी। तुम्हारी सफलता, तुम्हारे यश पर मुझे भी बहुत गर्व होगा। मेरी प्यारी रीटा, मेरी इस राय को अवश्य मानेगी, मुझे तुम पर पूरा विश्वास है। अपने चाचा और चाची से मेरा प्रणाम कहना।
तुम्हारी सहेली,
सुस्मिता पटेल
प्रश्न 7.
21, सरस्वती सदन, दरियापुर, अहमदाबाद -380001 से सलीम शेख, “कौमी एकता’ पर अपने विचार, सूरत-निवासी अपने मित्र महेन्द्र पटेल के नाम लिख भेजता है।
उत्तर :
21, सरस्वती सदन,
दरियापुर,
अहमदाबाद – 380001।
10 अगस्त, 2020
प्रिय मित्र महेन्द्र,
सप्रेम नमस्कार।
कल तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारे शहर में दंगा होने की खबर से बड़ा सदमा पहुंचा।
कौमी दंगे होना देश का दुर्भाग्य है। इनसे सामाजिक शांति भंग होती है और भाईचारा नष्ट होता है। देश की उन्नति के लिए कौमी एकता बहुत जरूरी है। कौम की एकता ही देश को शक्तिशाली और समृद्ध बनाती है। कौमी एकता न रहने से ही हमारा देश सदियों तक गुलाम रहा। अपने इतिहास से सबक लेकर हमें अपनी राष्ट्रीय एकता को कमजोर करनेवाली हरकतों से दूर रहना चाहिए। रेडियो, टीवी और समाचारपत्रों को भी कौमी एकता को मजबूत करने के लिए प्रयत्न करते रहना चाहिए।
यह बहुत खुशी की बात है कि तुम्हारे सभी मित्रों में कौमी एकता और भाईचारा पहले से भी अधिक है।
तुम्हारा मित्र,
सलीम शेख
प्रश्न 8.
ए/4/33, सामवेद, शाहीबाग, अहमदाबाद -380004 से प्रतीक सुरेका अपने मित्र सुनील चौधरी जयपुर को एक पत्र लिखकर ‘नर्मदा योजना’ से गुजरात में होनेवाली । हरित क्रांति का परिचय देता है।
उत्तर :
ए/4/33, सामवेद,
शाहीबाग,
अहमदाबाद – 380004।
7 सितम्बर, 2020
प्रिय सुनील,
सप्रेम नमस्कार।
तुम्हारा पत्र मिला। नर्मदा योजना पूरी होने में हो रही देरी और इस पर बढ़ते जा रहे खर्च के बारे में तुम्हारी चिंता उचित है। तुम इस योजना को बंद कर देने के पक्ष में हो, परंतु तुम्हारा यह विचार उचित नहीं है। सरदार सरोवर के निर्माण में करोड़ों रुपये व्यय हो चुके हैं। क्या इतनी बड़ी धनराशि को यों ही बेकार जाने दिया जाए?
तुम्हें पता होना चाहिए कि यह योजना पूरी हो जाने पर गुजरात के अनेक भागों को पर्याप्त पानी मिल सकेगा। हमारे यहाँ कच्छ और सौराष्ट्र जैसे इलाके हमेशा जल के अभाव से जूझते रहे हैं। नर्मदा का पानी मिलने पर इन इलाकों को सिंचाई की सुविधा प्राप्त होगी और पेय जल भी उपलब्ध होगा। इस योजना से 4 लाख हेक्टर जमीन हरी-भरी होने का अनुमान है।
इसके साथ ही 26 हजार किलोवाट बिजली भी उपलब्ध होगी। इससे गुजरात के शहरों को ही नहीं, गाँवों को भी भरपूर विद्युत आपूर्ति हो सकेगी। इस विद्युत से राज्य के उद्योग फले-फूलेंगे। इसमें संदेह नहीं कि इस कल्याणकारी योजना से गुजरात देश का एक खुशहाल राज्य बन जाएगा। तुम्हें पता होगा गुजरात को इस योजना का लाभ मिलना प्रारंभ हो गया है।
क्या अब भी तुम इस योजना का विरोध करोगे? मैं तो ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि यह योजना यथासंभव शीघ्र पूरी हो। अपने परिवार में सबसे मेरा यथायोग्य कहना।
तुम्हारा ही,
प्रतीक सुरेका
प्रश्न 9.
24, कोहिनूर सोसायटी, नारणपुरा, अहमदाबाद -380013 से गौरव शाह, सूरत-निवासी अपने मित्र किरण पटेल को पत्र लिखकर उससे बाढ़पीड़ितों की सहायता करने का अनुरोध करता है।
उत्तर:
24, कोहिनूर सोसायटी,
नारणपुरा,
अहमदाबाद – 380013।
10 सितम्बर, 2020
प्रिय मित्र किरण,
सप्रेम नमस्कार।
तुम्हारा पत्र मिला। यह जानकर बड़ा अफसोस हुआ कि आजकल तुम पर हर नई फिल्म देखने की धुन सवार है। इस समय देश के बड़े प्रदेश में बाढ़ के प्रकोप से जो वातावरण बना है, उसे देखते हुए मैं फिल्मों के बारे में तो सोच भी नहीं सकता।
टीवी के समाचारों में तुम बाढ़ की विनाशलीला के दर्दनाक दृश्यों को अवश्य देखते होगे। अखबारों में भी बाढ़ से हुए विनाश के बारे में पढ़ते होगे। इस समय गुजरात के कई क्षेत्र बाढ़ के पानी में डूबे हुए हैं। कई शहरों में मोटरों, बसों की जगह नावें चल रही हैं, लाखों बाढ़-पीड़ितों को शिविरों में रखा गया है। सरकार बाढ़पीड़ितों को राहत देने के काम में लगी है, परंतु यह काम अकेली सरकार के बस का नहीं है।
लोगों के सहयोग की भी बड़ी जरूरत है। इसलिए मेरा आग्रह है कि तुम फिल्म देखने में समय गंवाना छोड़ो और बाढ़पीड़ितों की सेवा के काम में लग जाओ। अपने मुहल्ले में एक सहायता-समिति का गठन करो। किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को उसका मुखिया बनाओ। समिति के सदस्य लोगों से बाढ़पीड़ितों के लिए धन, वस्त्र, अनाज आदि एकत्र करेंगे। यह सामग्री सहायता केन्द्र पर जमा करा दी जाए। इस तरह के हमारे छोटे-छोटे प्रयत्न इस बड़े संकट से जूझने में बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे।
मैं तो आजकल इसी कार्य में लगा हुआ हूँ। मानवता की सेवा ही प्रभु की पूजा है। आशा है, मेरे अनुरोध को स्वीकार करके तुम भी इस सेवा-यज्ञ में जुट जाओगे।
तुम्हारा मित्र,
गौरव शाह
प्रश्न 10.
7, निसर्ग, आंबावाडी, अहमदाबाद -380015 से स्मिता देसाई अपनी पाठशाला में आयोजित हिन्दी वक्तृत्वस्पर्धा का वर्णन अपनी चेन्नई-निवासिनी सहेली कल्पना को लिख भेजती है।
उत्तर :
7, निसर्ग, आंबावाडी,
अहमदाबाद – 380015।
5 सितम्बर, 2020
प्रिय कल्पना,
सप्रेम नमस्कार।
कुछ दिन पहले तुम्हारा पत्र मिला था, लेकिन मेरा पत्र न पाकर शायद तुम नाराज हुई होगी। खैर, अब तुम सारा हाल जानकर मारे खुशी के झूम उठोगी। पिछले शनिवार को हमारी पाठशाला के हिन्दी-मंडल की तरफ से हिन्दी वक्तृत्वस्पर्धा का आयोजन किया गया था। स्पर्धा का विषय था ‘स्त्रियों का कार्यक्षेत्र घर या बाहर?’ इस स्पर्धा में कई विद्यार्थिनियों ने भाग लिया। पहली तीन विद्यार्थिनियों ने ‘स्त्रियों का कार्यक्षेत्र घर ही है।
यह सिद्ध करने की पूरी कोशिश की। इसके बाद एक लड़की आई। वह तो जैसे इतिहास और पुराणों के पन्ने घोंटकर आयी थी। मैत्रेयी, गार्गी, चांदबीबी, झांसी की रानी से लेकर विजयालक्ष्मी, इंदिरा गांधी, किरण बेदी, कल्पना चावला आदि प्रसिद्ध नारियों के कर्तव्यों का उसने ऐसा वर्णन किया कि सब देखते ही रह गये।
दो-तीन छात्राओं के बाद मेरा नाम पुकारा गया। जैसे-तैसे साहस बटोरकर मैंने बोलना शुरू किया। मैंने वर्तमान जीवन की चर्चा करते हुए बताया कि गृहिणी ही घर है। गृहशांति विश्वशांति की जड़ है और उसका आधार है स्त्री। फिर भी स्त्रियों को बाहरी क्षेत्र की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। मैं जोरदार शब्दों में अपने विचार प्रकट करके बैठ गई। मेरे बाद और एक विद्यार्थिनी बोली, फिर वक्तृत्वस्पर्धा पूरी हुई।
निर्णायक के रूप में हिन्दी की एक कवयित्री और दो अन्य प्राध्यापिकाएं थीं। 15 मिनट के बाद निर्णायिकाओं ने स्पर्धा का परिणाम सुनाया। सफल वक्ताओं में सबसे पहला नाम मेरा था। निर्णायिकाओं, अध्यापकों और मित्रों ने मुझ पर अभिनंदनों की वर्षा की। पुरस्कार के रूप में मुझे 151 रुपये नक़द और कुछ पुस्तकें मिलीं। मेरी खुशी का ठिकाना न रहा।
पुरस्कार वितरण के बाद आचार्य महोदया ने आभार प्रदर्शन किया। – राष्ट्रगीत के साथ कार्यक्रम पूरा हुआ। सचमुच, उस दिन तुम्हारी बहुत याद आई। शेष कुशल है।
तुम्हारी सहेली,
स्मिता देसाई
प्रश्न 11.
7, ‘मल्हार’, सुरावली पार्क, सुरम्यनगर, सुभाष रोड, सूरत – 395003 से सलील शाह वडोदरा-निवासी अपने मित्र तुषार त्रिवेदी को अपने स्कूल द्वारा आयोजित ‘वृक्षारोपण-समारोह’ का वर्णन लिख भेजता है।
उत्तर:
7, ‘मल्हार’,
सुरावली पार्क,
सुरम्यनगर,
सुभाष रोड,
सूरत – 395003।
5 सितम्बर, 2020
प्रिय मित्र तुषार,
सप्रेम नमस्कार।
तुम्हारे पत्र का बहुत इंतजार किया, किन्तु लगता है जैसे समय ने तुम्हें खरीद लिया है। आखिर, मैं ही पत्र लिखता हूँ। पिछले साल की तरह इस साल भी अगस्त के अंतिम सप्ताह में हमारे स्कूल द्वारा वृक्षारोपण-समारोह को उत्साह से मनाया गया। समारोह का अध्यक्षपद नगरपालिका के प्रमुख श्री मनोहर जोशीजी ने सुशोभित किया। वृक्षारोपण के लिए स्कूल के सामनेवाले मार्ग के दोनों तरफ पचास-पचास गड्ढे खोदे गये थे। कुछ गड्ढे स्कूल के आसपास की भूमि में खोदे गये थे। नर्सरी से तरह-तरह के पौधे मंगवाये गये थे।
पहले दिन सुबह आठ बजे सभी अध्यापक और आठवीं, नौवीं तथा दसवीं कक्षा के छात्र स्कूल के प्रांगण में एकत्र हुए। श्री जोशीजी के आने पर स्कूल के आचार्य श्री यशवंत शुक्ल ने पुष्पहार पहनाकर उनका स्वागत किया। इस अवसर पर श्री जोशीजी ने वृक्षों की महिमा पर सरस भाषण दिया। इसके बाद एक गड्ढे में कुछ पौधे लगाकर उन्होंने कार्यक्रम का उदघाटन किया। तत्पश्चात सभी अध्यापक और छात्रों ने मिलकर गड्ढों में पौधे लगाए। फिर खाद डालकर उन गड्ढों को पानी से भर दिया गया ।
इस अवसर पर ‘वृक्ष हमारे मित्र हैं’ इस विषय पर एक वक्तृत्वस्पर्धा रखी गई। एक दिन ‘वृक्षमित्र’ नाम से कवि-सम्मेलन का आयोजन भी किया गया। स्कूल के चिकित्सा कक्ष में पेड़-पौधों से संबंधित चित्रप्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। छात्रों के अभिभावक एवं नगर के कई प्रतिष्ठित यह प्रदर्शनी देखने आये। इस वृक्षारोपण-समारोह में स्कूल के सभी अध्यापक, कर्मचारी एवं छात्रों ने भी जी जान से भाग लिया।
प्रिय तुषार, तुम्हारे विद्यालय के क्या समाचार हैं? पत्र अवश्य लिखना। अपने माता-पिताजी से मेरा प्रणाम कहना।
तुम्हारा मित्र,
सलील शाह
प्रश्न 12.
अशोकविला, कुबेरनगर, राजकोट – 395003 से राकेश शाह परीक्षा में असफल हुए अपने मित्र सुभाष दवे को आश्वासन पत्र लिखता है।
उत्तर:
अशोकविला,
कुबेरनगर,
राजकोट – 395003।
2 मई, 2020
प्रिय सुभाष,
सप्रेम नमस्कार।
आज ही तुम्हारे बड़े भाई के पत्र से मालूम हुआ कि तुम अपनी वार्षिक परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गए हो। यह जानकर मुझे और भी दु:ख हुआ कि इस कारण से आजकल तुम बहुत उदास रहते हो। प्यारे सुभाष, परीक्षा में असफल होने से दुःख होना स्वाभाविक है, पर तुम तो बड़े समझदार हो। क्या तुम नहीं जानते कि मनुष्य के जीवन में छोटी-मोटी असफलताएं तो आया ही करती हैं? उनसे निराश होना कायरता है। मनुष्य के जीवन की सार्थकता केवल सफलता में नहीं वरन् उच्च ध्येय में है।
सुभाष, इस वर्ष तुम्हारे अभ्यास में कितनी बाधाएं पहुंची हैं ? वर्ष के प्रारंभ में ही तुम्हारी माताजी दो मास तक बीमार रही। फिर पिताजी की बदली हो जाने से तुम्हें अभ्यास के साथ घर के कई छोटे-मोटे काम करने पड़े। दूसरे सत्र में दुर्भाग्य से तुम स्वयं ‘टाइफाइड’ के शिकार हो गए। इस परिस्थिति में तुम्हारी असफलता के लिए मैं तुम्हें दोषी नहीं समझता। उलटे, मैं तो तुम्हारे धैर्य और पुरुषार्थ की कद्र करता हूँ।
कुछ दिनों के लिए तुम यहाँ चले आओ। तुम सबसे पहले अपने दिल की बेचैनी निकाल दो। फिर से पढ़ने में जी लगाओ। मेरा विश्वास है, स्वर्णिम सफलता तुम्हारे चरण चूमेगी। यहाँ सब कुशल हैं। मैं तुम्हारे पत्र की राह देगा।
तुम्हारा ही,
राकेश शाह