Gujarat Board GSEB Solutions Class 9 Hindi Vyakaran समास (1st Language) Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 9 Hindi Vyakaran समास (1st Language)
‘समास’ का अर्थ है ‘संक्षेप’। पंडित कामता प्रसाद गुरु के अनुसार ‘दो या अधिक शब्दों (पदों) का परस्पर सम्बन्ध बतानेवाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधिक शब्दों से जो एक स्वतंत्र शब्द बनता है, उस शब्द को सामासिक शब्द कहते हैं और उन दो या अधिक शब्दों का जो संयोग होता है उसे समास कहा जाता है।’
- समास कम से कम दो पदों का योग होता है।
- समस्त पद में (विभक्ति प्रत्ययों) कारक चिह्नों का लोप हो जाता है।
- समस्त पदों को खंडों में विभाजित करके सम्बन्ध को स्पष्ट करना ‘विग्रह’ कहलाता है।
उदा. – सामासिक शब्द – नभचर समास विग्रह – नभ में विचरण करनेवाला।
समास के कई भेद हैं। हिन्दी के मुख्य समास इस प्रकार है :
1. अव्ययीभाव समास :
अव्ययीभाव समास में पहला पद अव्यय और दूसरा पद संज्ञा होता है। दोनों को मिलाकर पूरा शब्द अव्यय के समान हो जाता है। अव्ययीभाव समास लिंग, वचन, कारक, पुरुष आदि की दृष्टि से परिवर्तित नहीं होते हैं। उदाहरण –
- समस्त पद – विग्रह
- यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
- आजीवन – जीवनभर
- यथासमय – समय के अनुसार
- सपरिवार – परिवार के साथ
- प्रत्यक्ष – आँखों के सामने
2. द्वन्द्व समास :
जहाँ दोनों पद प्रधान हों वहाँ द्वन्द्व समास होता है। विग्रह करने पर ‘और’, ‘तथा’, ‘या’, अथवा आदि योजक शब्द लगते हैं। उदाहरण :
- समस्त पद – विग्रह
- रामकृष्ण – राम और कृष्ण – राम या कृष्ण
- माता-पिता – माता और पिता – माता या पिता
- पाप-पुण्य – पाप और पुण्य – पाप या पुण्य
- सुख-दुःख – सुख और दुःख – सुख या दुःख
- नर-नारी – नर और नारी – नर या नारी
3. बहुब्रीहि समास :
जिस समास का कोई भी पद प्रधान नहीं होता, बल्कि अन्य पद प्रधान होता है, उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं। समास होने पर पूरा पद विशेषण की तरह काम करता है। वह किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान आदि विशेष्य की अपेक्षा रखता है।
उदाहरण :
- समस्त पद – विग्रह
- चक्रपाणि – चक्र है हाथ में जिसके अर्थात् विष्णु
- लम्बोदर – लंबा (बड़ा) है उदर जिसका अर्थात् गणेश
- अजातशत्रु – नहीं पैदा हुआ है जिसका शत्रु अर्थात् वह
- तिरंगा – तीन रंगोंवाला अर्थात् भारत का राष्ट्र ध्वज
- निशाचर – निशा (रात) में विचरण करनेवाला अर्थात् राक्षस
4. द्विगु समास :
जिन सामासिक पदों का पूर्वपद संख्यावाची शब्द हो, वहाँ द्विगु समास होता है। अर्थ की दृष्टि से यह समास प्राय: समूहवाचक होता है; जैसे –
- त्रिभुज – तीन भुजाओं से बनी बंद आकृति
- चौराहा – जहाँ चार रास्ते मिलते हैं (चार राहों का समूह)
- शताब्दी – शत (सौ) अब्द (वर्षों) का समूह
- पंचवटी – पंच (पाँच) वट (वृक्षों) का समूह आदि।
5. कर्मधारय समास :
जहाँ समस्त पद के दोनों खंडों में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय संबंध हो, वहाँ कर्मधारय समास होता है। यानी कर्मधारय समास का पूर्वपद विशेषण या उपमावाचक होता है; जैसे –
- नीलाकाश (नीला + आकाश) = नीले रंग का आकाश
- महाराज = महान् राजा
- कमलनयन = कमल रूपी नयन
- चरणकमल = कमल रूपी चरण आदि।
6. तत्पुरुष :
जहाँ सामासिक उत्तर पद प्रधान होता है तथा पूर्वपद गौण। इस समास की रचना में दो पदों के बीच में आनेवाले कारक चिह्नों (परसों) का लोप हो जाता है। (कर्ता, संबोधन के परसर्गों को छोड़कर) जैसे –
- विद्यालय (विद्या + आलय) = विद्या के लिए आलय
- हस्तलिखित = हस्त (हाथ से लिखित)
- रसोईघर = रसोई के लिए घर
- राजकुमार = राजा का वर (कुमार)
- पदच्युत = पद से च्युत
- पदप्राप्त = पद को प्राप्त
- ध्यानमग्न = ध्यान में मग्न आदि।
विशेष : आगे की कक्षाओं में आपको इन समासों के उपभेदों की भी जानकारी दी जाएगी।
विग्रह करके समास का नाम लिखिए।
1. दो बैलों की कथा
2. ल्हासा की ओर
3. उपभोक्तवांद की संस्कृति
4. सँवले सपनों की याद
5. नानासाहब की पुत्री देवी मौन को….
6. प्रेमचंद के फटे जूते
7. मेरे बचपन के दिन
8. एक कुत्ता और मौन
अभ्यास के लिए
1. निरमलिखित समाप्त पदों विग्रह करके समास के नाम बताइए :
उत्तर:
2. सविग्रह समास भेद बताइए :
स्वयं हल करें
1. विग्रह करके समास भेद बताइए :
ध्यानपूर्वक, प्रतिदिन, ईश्वरदत्त, राहखर्च, अंधविश्वास, निर्दोष, त्रिभुज, विद्यारहित, हवनकुंड, मुखचंद्र, चंद्रमुखी, पुरुषोत्तम, इकहरा, चारपाई, अछूत, दीर्घायु, दोपहर, सीधा-सादा, अन्याय, हृष्टपुष्ट, क्रोधाग्नि, जन्मांध, कंदमूल, चतुर्भुज, ऋणमुक्त, सर्वोत्तम, भलाबुरा, पंचवटी, पदभ्रष्ट, निर्भय, धीरे-धीरे, निशिचर, राग-विराग, जलचर, देशांतर, चक्रपाणि, अनुरुप, पतझड़, कनकटा, सुखद, चौपगा, आशुतोष।