Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Chapter 22 भीतरी समृद्धि Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Chapter 22 भीतरी समृद्धि
GSEB Class 10 Hindi Solutions भीतरी समृद्धि Textbook Questions and Answers
स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
किसके बढ़ने पर जीवन-भक्ति कम हो जाती है ?
(अ) द्रव्य-भक्ति
(ब) तरल-भक्ति
(क) धन-भक्ति
(ड) प्रभु-भक्ति
उत्तर :
(अ) द्रव्य-भक्ति
प्रश्न 2.
पोम्पीनगर के खंडहरों से मिले एक नर-कंकाल की मुट्ठी में क्या था ?
(अ) चाँदी
(ब) सोना
(क) मोती
(ड) हीरा
उत्तर :
(ब) सोना
प्रश्न 3.
मनुष्य अंदर से कब तक अमीर था ?
(अ) विज्ञान की खोज नहीं हुई थी तब तक
(ब) टी.वी. को खोज नहीं हुई थी तब तक
(क) टेलिफोन की खोज नहीं हुई थी तब तक
(ड) पैसों की खोज नहीं हुई थी तब तक
उत्तर :
(ड) पैसों की खोज नहीं हुई थी तब तक
प्रश्न 4.
इनमें से वनस्पतिविज्ञान का महान पंडित कौन बन गया ?
(अ) विवेकानंद
(ब) दयानंद
(क) डंकन
(ड) श्री अरविंद
उत्तर :
(क) डंकन
2. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
लोग अंत:करण की अमीरी की सुगंध कब खो देते हैं ?
उत्तर :
जब लोग अमीर बनने के कृत्रिम चाव में फस जाते हैं, तब वे अंत:करण की अमीरी की सुगंध खो देते हैं।
प्रश्न 2.
सुख का जादूगर और शांति का डकैत कौन-सा है ?
उत्तर :
धन सुख का जादूगर और शांति का डकैत है।
प्रश्न 3.
आज जीवन का नियंत्रक परिबल कौन है ?
उत्तर :
आज जीवन का नियंत्रक परिबल धन है।
प्रश्न 4.
अमीर धन कैसे कमाता है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार अमीर दूसरों को उल्लू बनाकर धन कमाता है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
तृष्णा को परंपरागत डाकूरानी क्यों कहा गया है ?
उत्तर :
डाकू का उद्देश्य किसी भी प्रकार से दूसरे का माल असबाब लूटना होता है, इसी तरह अप्राप्य वस्तु को पाने की तीव्र इच्छा तृष्णा का उद्देश्य भी येन केन प्रकारेण वांछित वस्तु पाना है। इसमें इन्हें कोई बुराई नजर नहीं आती। इस तरह डाकू और तृष्णा में कोई अंतर नहीं ६ होता, इसीलिए तृष्णा को परंपरागत डाकूरानी कहा गया है।
प्रश्न 2.
व्यापारी ने अपनी अंतिम साँस लेते समय रुपयों की थैली मजबूती से हाथ में क्यों पकड़ रखी थी ?
उत्तर :
तृष्णातुर मनुष्य की तृष्णा अंतिम सांस तक उसका पीछा करे रहती है, यह तृष्णापूर्ति धन से होती है। व्यापारी के मन में अंतिम समय तक अपनी इच्छाओं की पूर्ति की उम्मीद थी। इसलिए अंतिम सांस लेते समय भी रुपयों की थैली उसने मजबूती से हाथ में पकड़ रखी थी।
प्रश्न 3.
आज वास्तविक धन कौन-कौन-से गुण में हैं ? क्यों ?
उत्तर :
आज वास्तविक धन मनुष्य के सहदयता, आत्मीयता, आशा, उल्लास तथा प्रेम आदि गुणों में हैं। इन गुणों के द्वारा जो धन प्राप्त होता है, वह चिरस्थायी होता है। जबकि द्रव्य के रूप में कठिन परिश्रम से अर्जित किया गया धन स्थायी नहीं होता।
प्रश्न 4.
आज मनुष्य की वृत्ति व प्रवृत्ति दोनों ही भ्रष्ट क्यों हो गई है ?
उत्तर :
आधुनिक जीवन में धन जीवन को नियंत्रित करनेवाली शकित होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति धनोपार्जन में व्यस्त है। गरीब अपनी जीविका चलाने के लिए तो अमौर अधिक अमीर बनने धन कमाने में जुटे हुए है। इसलिए आज मनुष्य की वृत्ति और प्रवृत्ति दोनों ही भ्रष्ट हो गई हैं।
प्रश्न 5.
डंकन के जीवन से क्या संदेश मिलता है ?
उत्तर :
डंकन एक गरीब बुनकर के पुत्र होने के बावजूद अपनी प्रबल इच्छाशक्ति से वनस्पतिशास्त्र के विद्वान बने। उनकी प्रतिभा और खराब आर्थिक स्थिति को देखकर अनेक लोगों ने उनको बड़ी-बड़ी रकम के चैक भेजे वह पैसे डंकन ने प्राकृतिक विज्ञान के विद्यार्थियों के कल्याण में लगा दिये। उनके जीवन से यह संदेश मिलता है कि धन का उपयोग गरीबों की सहायता तथा अच्छे कार्यों के लिए करना चाहिए।
4. निम्नलिखित प्रश्नों के चार-पाँच वाक्यों में उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
पोम्पीनगर के खंडहरों के कंकाल और एक व्यापारी के हाथ में अंतिम समय तक क्या था ? क्यों ?
उत्तर :
पोम्पीनगर के खंडहरों में खुदाई करते समय एक नरकंकाल मिला था। उसकी मुट्ठी को बड़ी मुश्किल से खोला जा सका। मुट्ठी खुलने पर पता चला कि मृत व्यक्ति की मुट्ठी में सोना था। ठीक इसी प्रकार इसी शहर के एक व्यापारी ने अपनी अंतिम सांस लेते समय तकिए के नीचे से पैसों से भरी हुई थैली बाहर निकाली थी। जब तक उसके प्राण निकल नहीं गए, तब तक उसने उसे मजबूती से पकड़ रखा था। इससे उनमें धन के प्रति मोह की भावना दिखाई देती है, जिन्हें वे हमेशा संभालकर रखना चाहते थे।
प्रश्न 2.
डंकन वनस्पतिशास्त्र का महापंडित कैसे बना ?
उत्तर :
डंकन स्कॉटलैंड में रहनेवाले एक गरीब बुनकर का पुत्र था। वह अनपढ़, अशक्त, कुबड़ा था तथा कंगाल परिवार से था। उसे बच्चे चिढ़ाते थे। वह दोर चराने का काम करता था और उसका मालिक उस पर बहुत अत्याचार करता था। सोलह साल की उम में उसने मूलअक्षर सीखना शुरू किया था। फिर वह जल्दी-जल्दी पढ़ना लिखना सीखता गया। जंगल में घूमने के कारण उसे पहले से वनस्पतियों की जानकारी थी। उसने वनस्पतिशास्त्र का ग्रंथ खरीदकर वनस्पतिशास्त्र का गहरा अध्ययन किया और इस विषय का महापंडित बन गया।
प्रश्न 3.
भारत के महापुरुषों को कीचड़ में खिलने वाले कमल क्यों कहा है ?
उत्तर :
भारत में अनेक महापुरुष हुए हैं। उन्होंने गरीबी, अभाव और कठिनाइयों में अपने जीवन की शुरुआत की थी। इसके बावजूद उन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में अपना मूल्यवान योगदान दिया है। धन की समस्या कभी उनके आड़े नहीं आई। धन के लिए उन्होंने कभी ऐसा कोई काम नहीं किया, जिससे उनको लज्जित होना पड़ा हो। धन के लालच में उन्होंने कभी अपनी नीयत खराब नहीं की। उनके प्रदेय जगआहिर हैं। अभावों और कठिनाइयों से जूझकर उन्होंने ऐसे कार्य कर दिखाए, जिनके बल पर वे महापुरुष कहलाए। इसीलिए उन्हें कीचड़ में से निकलनेवाले कमल कहा गया है।
प्रश्न 4.
‘बाहर ही नहीं अंदर से श्रीमंत अथवा अमीर बनना ही पैसा पचाने की कला है ।’ समझाइए ।
उत्तर :
धन कमाने पर आदमी श्रीमंत अथवा अमीर बनता है। इससे वह दुनिया में सम्मानपूर्वक जीना चाहता है। लेकिन केवल धन से ही आदमी को सम्मान मिलना मुश्किल होता है। आदमी को सम्मान तभी मिलता है, जब वह बाहर और अंदर दोनों से धनवान बने। अर्थात् व्यक्ति को ऊपर से श्रीमंत होने के साथ-साथ उदार भी होना चाहिए। उसे अपने धन से गरीबों और असहाय लोगों की सहायता करनी चाहिए। तभी आदमी बाहर और अंदर दोनों से श्रीमंत कहा जा सकता है। तभी उसके पैसे का सदुपयोग होता है। जब वह बाहर-अंदर दोनों तरफ से श्रीमंत या अमीर होता है, तभी वह अपने पैसे को पचाने अथवा उसका सही उपयोग करने में समर्थ होता है। पैसा पचाने यानी उसका सदुपयोग करने की यही कला है।
5. निम्नलिखित कथनों को समझाइए :
प्रश्न 1.
‘धन सुख का जादूगर भी है और शांति का डकैत भी ।’
उत्तर :
सुखमय जीवन जीने के लिए धन बहुत जरूरी है। धन से तरह-तरह की सुख-सुविधा की चीजें खरीदी जा सकती हैं। मनुष्य जादू की गति से ऐशो-आराम की जिंदगी जी सकता है। पर धन का एक दोष भी है। धन आने पर मनुष्य की अधिक-से-अधिक धन प्राप्त करने की तृष्णा बढ़ती जाती है। वह किसी भी तरह से अधिक-से-अधिक धन एकत्र करने का प्रयास करने में जुट जाता है। इससे मनुष्य की शांति गावव हो जाती है। उसका मन अशांत हो जाता है। वह धन के पीछे पागलों की तरह भागने लगता है। इसीलिए कहा गया है कि ‘धन सुख का जादूगर भी है और शांति का डकैत भी।’
प्रश्न 2.
‘पहले त्याग द्वारा आनंद की प्राप्ति होती थी पर अब भोगने के बाद फेंक देना’ – मूल मंत्र हो गया है ।
उत्तर :
त्याग और भोग एक-दूसरे के विपरीतार्थक शब्द हैं। पहले हमारे देश में त्याग की भावना प्रमुख थी। हमारे देश के महापुरुषों ने त्याग का मार्ग अपनाया था और उन्होंने देश और समाज के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया था और अपना सर्वस्व त्याग दिया था।
उन्होंने अपने महान लक्ष्य के लिए यह व्रत अपनाया था और उसकी _पूर्ति होने पर उनके आनंद की कोई सीमा नहीं होती थी। आज भोग
की प्रवृत्ति का जोर है। आज के अमीरों में यह प्रवृत्ति धड़ल्ले से पनप रही है। महंगे वस्त्रों और गहनों के भोंडे प्रदर्शन इसके सबूत हैं।
प्रश्न 3.
‘आज जीवन में धन ही जीवन का नियंत्रक परिबल बन गया है ।’
उत्तर :
आज के जमाने में धन बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है। चाहे छोटा काम हो या बड़ा, बिना धन के उसे पूरा नहीं किया जा सकता। गरीब आदमी को अपना और अपने परिवार का पेट पालने और तन दकने के लिए धन की आवश्यकता होती है। अमीर आदमी को और अधिक अमीर बनने के लिए धन की जरूरत होती है। आज के मनुष्य की वृत्ति और प्रवृत्ति दोनों ही भ्रष्ट हो गई हैं। इस तरह आज धन ही जीवन का नियंत्रक परिबल बन गया है।।
6. सूचनानुसार लिखिए :
प्रश्न 1.
मुहावरों का अर्थ देकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
चैन की साँस लेना, खून-पसीना एक करना
उत्तर :
- चैन की सांस लेना – संकट आदि से छुटकारा पाना वाक्य : लगातार तीन वर्षों के अकाल के बाद इस साल मुशलाधार वर्षा होने पर किसानों ने चैन की सांस ली।
- खून-पसीना एक करना – घोर परिश्रम करना वाक्य : रमेश ने खून-पसीना एक करके डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया।
- धज्जियाँ उड़ाना – टुकड़े टुकड़े कर देना वाक्य : हमारी सेना ने दुश्मनों की धज्जियाँ उड़ा दी।
- फिदा होना – आसक्त होना वाक्य : श्रीकृष्ण की मुरली पर सारा ब्रज फिदा हो गया।
- उल्लू बनाना – मूर्ख बनाना वाक्य : नौकर सेठ को उल्लू बनाकर तिजोरी खाली कर गया।
प्रश्न 2.
दिए गए शब्दों के विशेषण बनाइए :
- अमीर
- परिवार
- अभिमान
- परिश्रम
- दिन
- दर्शन
उत्तर :
- अमौराना
- पारिवारिक
- अभिमानी
- परिश्रमी
- दैनिक
- दर्शनीय
प्रश्न 3.
दिए गए शब्दों से भाववाचक बनाइए :
- मनुष्य – …………
- डाकू – …………
- व्यक्ति – …………
- दुर्बल – …………
- लज्जा – …………
उत्तर :
- मनुष्य – मनुष्यता
- डाकू – डकैती
- व्यक्ति – व्यक्तित्व
- दुर्बल – दुर्बलता
- लज्जित – लज्जा
Hindi Digest Std 10 GSEB भीतरी समृद्धि Important Questions and Answers
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार-पाँच वाक्यों में लिखिए :
प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार ‘तृष्णा’ परंपरागत डाकूरानी क्यों है?
उत्तर :
डाकू का उद्देश्य केवल एक ही होता है। धावा बोलकर किसी भी कीमत पर दूसरे का माल-असबाब लूट लेना। इसमें उसे कोई बुराई नजर नहीं आती। अप्राप्य वस्तु को पाने की तीव्र इच्छा का नाम तृष्णा है। इस स्थिति में भी मनुष्य येन-केन प्रकारेण वांछित वस्तु पा लेने का दुर्गम प्रयास करता है और उसमें भलाई-बुराई का विवेक नहीं रह जाता। इस तरह किसी डाकू और तृष्णा में कोई अंतर नहीं होता। इसीलिए तृष्णा को परंपरागत डाकूरानी कहा गया है।
प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार डंकन के जीवन से क्या संदेश मिलता है?
उत्तर :
जॉन डंकन स्कॉटलैंड के रहनेवाले एक गरीब बुनकर के पुत्र थे। अपनी प्रबल इच्छाशक्ति और प्रयास से वे वनस्पतिशास्त्र के महापंडित बन गए। उनकी प्रतिभा और खराब आर्थिक स्थिति को देखकर अनेक लोगों ने उन्हें बड़ी-बड़ी रकम के चैक भेजे। पर डंकन ने उस धन का उपयोग अपने लिए कभी नहीं किया। उन्होंने यह सारा धन प्राकृतिक-विज्ञान का अध्ययन करनेवाले गरीब विद्यार्थियों की सहायता, १ स्कॉलरशिप तथा पारितोषिक के लिए दान कर दिया। उनके जीवन से यह संदेश मिलता है कि धन का उपयोग गरीबों की सहायता तथा अच्छे कार्यों के लिए करना चाहिए।
निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए।
प्रश्न 1.
गरीब को पेट भरने के लिए किसकी जरूरत होती है?
उत्तर :
गरीब को पेट भरने के लिए अन्न की जरूरत होती है।
प्रश्न 2.
मनुष्य कब तक अमीर था?
उत्तर :
जब तक पैसों की खोज नहीं हुई थी, तब तक मनुष्य अमीर था।
प्रश्न 3.
पोम्पीनगर के खंडहरों में से किसकी मुट्ठी में सोना मिला? ह
उत्तर :
पोम्पीनगर के खंडहरों में से नर कंकाल की मुट्ठी में है सोना मिला।
प्रश्न 4.
वनस्पति-विज्ञान के महान पंडित का नाम क्या था?
उत्तर :
वनस्पति-विज्ञान के महान पंडित का नाम डंकन था।
प्रश्न 5.
तृष्णाएं बढ़ने पर क्या समाप्त हो जाता है?
उत्तर :
तृष्णाएं बढ़ने पर मनुष्य की नेकी समाप्त हो जाती है।
प्रश्न 6.
तृष्णा क्या है?
उत्तर :
तृष्णा परंपरागत डाकूरानी है।
निम्नलिखित कथनों का आशय स्पष्ट कीजिए :
प्रश्न 1.
मनुष्य यदि उदार बनता है, तो देवदूत और यदि नीच बनता है, तो शैतान।
उत्तर :
प्रत्येक मनुष्य में अच्छाई और बुराई दोनों प्रवृत्तियाँ होती हैं। यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह इन दोनों में से किसे अपनाए। दानशीलता और दूसरों की भलाई करने से बड़ा और कोई काम नहीं होता। भलाई करनेवाले व्यक्ति की सभी प्रशंसा करते हैं, जबकि बुराई किसी को पसंद नहीं आती। बुराई से कोई व्यक्ति अपार धन-संपत्ति क्यों न अर्जित कर ले, पर समाज में उसे अच्छे व्यक्ति के रूप में मान्यता कभी नहीं मिलती है। बुरे कार्यों से अर्जित धन में शैतानियत की झलक मिलती है। इस तरह नीच कर्म से मनुष्य शैतान ही बनता है, जबकि अपने सद्कर्मों से मनुष्य को देवदूत के रूप में प्रतिष्ठा मिलती है।
सही वाक्यांश चुनकर निम्नलिखित विधान पूर्ण कीजिए :
प्रश्न 1.
केवल धन से आदमी को …
(अ) सम्मान मिलना मुश्किल होता है।
(ब) नौकरी नहीं मिल सकती।
(क) विदेश नहीं जाना मिलता।
उत्तर :
केवल धन से आदमी को सम्मान मिलना मुश्किल होता है।
प्रश्न 2.
डंकन स्कॉटलैंड में रहनेवाले एक ….
(अ) गरीब बहन का भाई था।
(ब) गरीब बुनकर का पुत्र था।
(क) गरीब मजदूर का बेटा था।
उत्तर :
डंकन स्कॉटलैंड में रहनेवाले एक गरीब बुनकर का पुत्र था।
प्रश्न 3.
त्याग और भोग ….
(अ) एक-दूसरे के विपरीतार्थक शब्द है।
(ब) एक-दूसरे के परस्पर है।
(क) एक-दूसरे के लिए बने शब्द है।
उत्तर :
त्याग और भोग एक-दूसरे के विपरीतार्थक शब्द है।
प्रश्न 4.
गरीब अपनी जीविका चलाने के लिए …
(अ) धनोपार्जन में लगा है।
(ब) चोरी करता है।
(क) मां-बाप को वृद्धाश्रम में भेज देता है।
उत्तर :
गरीब अपनी जीविका चलाने के लिए धनोपार्जन में लगा है।
प्रश्न 5.
जब लोग अमीर बनने की कुत्रिम चाँव में फंस जाते हैं, …
(अ) तब गरीब बन जाते हैं।
(ब) तब कुत्रिमता आ जाती है।
(क) तब वे अंत:करण की अमीरी की सुगंध खो देते हैं।
उत्तर :
जब लोग अभीर बनने की कुत्रिम चौब में फंस जाते हैं, तब वे अंत:करण की अमीरी की सुगंध खो देते हैं।
सही विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
प्रश्न 1.
- …….. परंपरागत डाकूरानी है। (भूख, तृष्णा)
- जॉन डंकन ……….. के निवासी थे। (स्कॉटलैंड, इंग्लैंड)
- …….. जॉन डंकन के पिताजी थे। (वॉलकर, बुनकर)
- ……….. वर्ष की उम्र में जॉन ने पढ़ाई शुरू की। (चौदह, सोलह) है
- ………. बढ़ने पर जीवन-भक्ति कम हो जाती है। (द्रव्य-भक्ति, भव्य-भक्ति)
- पोम्पीनगर के खंडहरों से मिले एक नर-कंकाल की मुठ्ठी में …….. था। (पैसा, सोना)
- ……….. वनस्पति-विज्ञान के महान पंडित बन गए। (डंकन, डार्विन)
- ………. जीवन का नियंत्रक परिबल है। (वैभव, धन)
- दूसरों को ……….. बनाकर अमौर धन कमाते हैं। (उल्लू, गरीब)
- गरीब ………….. एक करके धन कमाता है। (रात-दिन, यन-पसीना)
उत्तर :
- तृष्णा
- स्कॉटलैंड
- बुनकर
- सोलह
- द्रव्य-भक्ति
- सोना
- डंकन
- धन
- उल्लू
- खून-पसीना
निम्नलिखित प्रश्नों के नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
धन ही जीवन का नियंत्रक ……. है।
A. परिबल
B. गहना
C. मामला
D. संबंध
उत्तर :
A. परिबल
प्रश्न 2.
भलाई करनेवाले व्यक्ति की सभी क्या करते हैं?
A. बुराई
B. प्रशंसा
C. गिनती
D. अप्रशंसा
उत्तर :
B. प्रशंसा
प्रश्न 3.
धावा बोलकर माल असबाब लूट लेना, किसका उद्देश्य है?
A. व्यक्ति का
B. भले व्यक्ति का
C. डाकू का
D. पुरुषों का
उत्तर :
C. डाकू का
प्रश्न 4.
तृष्णा को क्या कहा है?
A. परंपरागत डाकूरानी
B. डाकू
C. भला
D. बुरा
उत्तर :
A. परंपरागत डाकूरानी
व्याकरण
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए :
प्रश्न 1.
- द्रव्य – …………..
- कृत्रिम – …………..
- नेकी – …………..
- गहना – …………..
- कीर्ति – …………..
- फूल – …………..
- क्षुद्र – …………..
- उपाय – …………..
- अमीर – …………..
- शांति – …………..
- अंतिम – …………..
- डाल – …………..
- अभिमानी – …………..
- खून – …………..
- मालिक – …………..
- आशा – …………..
- पृथ्वी – …………..
- व्यवस्था – …………..
- समुद्र – …………..
- हिम्मत – …………..
- अनपड़ – …………..
- विनती – …………..
- नौयत – …………..
- रौब – …………..
उत्तर :
- द्रव्य – संपत्ति
- कृत्रिम – नकली
- नेकी – अच्छाई
- गहना – जेवर
- कीर्ति – यश
- फूल – पुष्प
- क्षुद्र – तुच्छ
- उपाय – तरकीब
- अमीर – श्रीमंत
- शांति – चैन
- अंतिम – आखिरी
- डाल – शाखा
- अभिमानी – घमंडी
- खून – रक्त
- मालिक – स्वामी
- आशा – उम्मीद
- पृथ्वी – धरती
- व्यवस्था – प्रबंध
- समुद्र – सागर
- हिम्मत – साहस
- अनपढ़ – अशिक्षित
- विनती – प्रार्थना
- नौबत – आशय
- रौब – गर्व
निम्नलिखित शब्दों के विरोधी शब्द लिखिए :
प्रश्न 1.
- नेकी × ………..
- जादूगर × ………..
- महंगी × ………..
- त्याग × ………..
- सहदयता × ………..
- समस्या × ………..
- ताजगी × ………..
- देवदूत × ………..
- साक्षर × ………..
- समाप्त × ………..
- मुश्किल × ………..
- जीवित × ………..
- आनंद × ………..
- जमा × ………..
- मुरझाना × ………..
- समर्थन × ………..
उत्तर :
- नेकी × बदी
- जादूगर × दर्शक
- महंगी × सस्ती
- त्याग × भोग
- सदयता × निर्दयता
- समस्या र समाधान
- ताजगी × बासीपन
- देवदूत × शैतान
- साक्षर × निरक्षर
- समाप्त × आरंभ
- मुश्किल × आसान
- जीवित × मृत्यु
- आनंद × विषाद
- जमा × खर्च
- मुरझाना × खिलना
- समर्थन × विरोध
निम्नलिखित संधि को छोड़िए:
प्रश्न 1.
- दयानंद – …………..
- दुर्बल – …………..
- विद्यार्थी – …………..
- स्वार्थ – …………..
- ग्रंथालय – …………..
- तृष्णातुर – …………..
- अत्याचार – …………..
- वृद्धावस्था – …………..
- पृथ्वी – …………..
उत्तर :
- दयानंद = दया + आनंद
- दुर्बल = दु: + बल
- विद्यार्थी = विद्या + अर्थी
- स्वार्थ = स्व + अर्थ
- ग्रंथालय = ग्रंथ + आलय
- तृष्णातुर = तृष्णा + आतुर
- अत्याचार = अति + आचार
- वृद्धावस्था = वृद्ध + अवस्था
- पृथ्वी = पृथु + ई
निम्नलिखित शब्दसमूह के लिए एक शब्द लिखिए :
प्रश्न 1.
- मृत्यु के बाद कर्तव्य का आदेशपत्र
- वनस्पतियों के अध्ययन का शास्त्र
- जीवनभर की घटनाओं का विवरण
- सारा जीवन
- कर्तव्य करनेवाला
- परंपरा से चला आ रहा
- विद्या ही जिसका अर्थ है
- आर्यसमाज के संस्थापक
- स्वामी विवेकानंद का पूर्व नाम
- वनस्पति-विज्ञान का महापंडित
- कीचड़ का दूसरा नाम
- अधिक पाने की इच्छा
- गिरे हुए मकान के अवशेष
उत्तर :
- वसीयतनामा
- वनस्पतिशास्त्र
- आत्मरचित
- जीवनभर
- कर्तव्यपरायण
- परंपरागत
- विद्यार्थी
- दयानंद
- नरेन्द्र
- जॉन डंकन
- दलदल
- तृष्णा
- खंडहर
निम्नलिखित शब्दों की भाववाचक संज्ञा लिखिए :
प्रश्न 1.
- कम – …………..
- अमौर – …………..
- नेक – …………..
- खोदना – …………..
- महंगी – …………..
उत्तर :
- कम – कमी
- अमीर – अमीरी
- नेक – नेकी
- खोदना – खुदाई
- महंगी – महंगाई
निम्नलिखित शब्दों की कर्तृवाचक संज्ञा लिखिए :
प्रश्न 1.
- भक्ति – …………..
- डाका – …………..
- कमाना – …………..
- खोज – …………..
- लेख – …………..
- ध्यान – …………..
- बुनाई – …………..
- खरीद – …………..
- अध्ययन – …………..
- सोना – …………..
- सैर – …………..
- व्यवस्था – …………..
- घूमना – …………..
- दृष्टि – …………..
- दान – …………..
- कला – …………..
- शिल्प – …………..
- बंदूक – …………..
उत्तर :
- भक्ति – भक्त
- डाका – डाकू
- कमाना – कमाऊ
- खोज – खोजी
- लेख – लेखक
- ध्यान – ध्यानी
- बुनाई – बुनकर
- खरीद – खरीदार
- अध्ययन – अध्ययेता
- सोना – सुनार
- सैर – सैलानी
- व्यवस्था – व्यवस्थापक
- घूमना – घुमक्कड़
- दृष्टि – दृष्टा
- दान – दानी
- कला – कलाकार
- शिल्प – शिल्पी
- बंदूक – बंदूकधारी
निम्नलिखित शब्दों की विशेषण संज्ञा लिखिए :
प्रश्न 1.
- प्रतिष्ठा
- लोभ
- देवी
- स्वार्थ
उत्तर :
- प्रतिष्ठित
- लोभी
- दैवीय
- स्वार्थी
निम्नलिखित समास को पहचानिए :
प्रश्न 1.
- जीवन-भक्ति
- नर-कंकाल
- मानव-चिड़ियाँ
- खून-पसीना
- भलाबूरा
- चरणकमल
- द्रव्यभक्ति
- ताजगीभरी
- कीर्ति-स्तंभ
- छोटे-बड़े
- धन-राशि
- महापंडित
उत्तर :
- तत्पुरुष
- तत्पुरुष
- कर्मधारय
- द्वन्द्व
- कर्मधारय
- कर्मधारय
- तत्पुरुष
- तत्पुरुष
- कर्मधारय
- इन्द्र
- तत्पुरुष
- कर्मधारय
भीतरी समृद्धि Summary in Hindi
विषय-प्रवेश :
जीवन जीने के लिए धन आवश्यक है। धन से ऐशो-आराम से जीवन जिया जा सकता है और मनचाही चीजें अर्जित की जा सकती हैं। इसे भौतिक सुख कहा जाता है। भौतिक सुख की गणना मनुष्य के बाह्य सुखों में की जाती है। मनुष्य का आंतरिक सुख उदारता और त्याग में समाया हुआ है। जब तक किसी व्यक्ति को आंतरिक सुख-शांति नहीं मिलती, तब तक उसका जीवन सार्थक नहीं होता। प्रस्तुत निबंध में यही बात बताई गई है।
पाठ का सार:
द्रव्य-भक्ति एवं जीवन-भक्ति : आज के जमाने में लोगों में धन की प्यास बढ़ती जा रही है। धन की प्यास का अंत नहीं है। लोग यह __नहीं समझते कि धन से सुख तो पाया जा सकता है, पर इससे शांति गायब हो जाती है।
पोम्पीनगर के नर-कंकाल : धन के मोह के प्रत्यक्ष उदाहरण पोम्पीनगर की खुदाई में मिले दो नर-कंकाल हैं। एक कंकाल की मुट्ठी खोलने में काफी कठिनाई हुई। उसकी मुट्ठी खुली तो पता चला, उसने मरते समय मुट्ठी में सोना दबा रखा था। इसी तरह यहाँ के एक व्यापारी ने अंतिम सांस लेते समय तकिए के नीचे से पैसों से भरी हुई एक थैली निकाली थी तथा प्राण निकलने तक उसे जकड़ कर पकड़ रखा था। धन के प्रति मोह के ये दो प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
पहले त्याग अब भोग : पहले त्याग की भावना को सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त था, पर आज लोगों में भोग की प्रवृत्ति है। अब ‘भोगने के बाद फेंक देना’ मूलमंत्र हो गया है।
धन का बोलबाला : आज के युग में धन का महत्त्व बहुत बढ़ गया है। लोग अधिक-से-अधिक धन कमाने में लगे हैं। गरीब अपना पेट भरने के लिए और अमीर और अधिक अमीर बनने के लिए धन के पीछे भाग रहे हैं।
एक लेखक के विचार : एक लेखक के विचार से असली धन द्रव्य नहीं, बल्कि मनुष्य की सहदयता, आत्मीयता, आशा, उल्लास तथा प्रेम हैं। उनके अनुसार यह पृथ्वी उसी की संपत्ति है, जो इसका उपयोग कर पाता है। संसार में जो भी चीजें हैं, वे सब लोगों की हैं। समुद्र, हवा, पक्षी, फूल आदि सबके हैं। पहलेवाले सभी युग हमारे लिए सब काम कर गए हैं। हमें तो केवल अन्न, वस्त्र ही प्राप्त करना है। इन्हें प्राप्त करना बहुत सरल है। व्यक्ति बिना धन के भी महान हो सकता है। वाल्मीकि, स्वामी रामतीर्थ, विवेकानंद, दयानंद तथा अरविंद आदि ऐसे ही महापुरुष थे।
जांन डंकन का उदाहरण : जॉन डंकन स्कॉटलैंड के एक गरीब बुनकर का पुत्र था। वह अनपढ़, कुबड़ा और कंगाल था। मुहल्ले का उपेक्षित और लोगों द्वारा प्रताड़ित किया जानेवाला। सोलह वर्ष की उम में उसने वर्णमाला सीखना शुरू किया और तेजी से लिखना, पढ़ना सीखता गया। जंगल में भटकने के कारण वह वनस्पतियों से भलीभांति परिचित था। उसने वनस्पतिशास्त्र का गहरा अध्ययन किया और वह उस विषय का महापंडित बन गया।
सारी धन-राशि दान में : एक बार डंकन को एक अमीर आदमी मिला। उसने उसका चरित्र अखबार में छपवा दिया। इससे अनेक लोगों ने डंकन को बड़ी-बड़ी रकम के चेक भेजे। लेकिन उसने उस धन का उपयोग अपने लिए न कर सारी राशि प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन करनेवाले विद्यार्थियों के लिए दान कर दी।
हमारे महापुरुष : हमारे देश के अनेक महापुरुषों ने गरीबी और अभावों में ही अपने कार्यों की शुरुआत की थी और वे दलदल में कमल की तरह खिले। इन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में महान कार्य किए। इनकी विशेषता थी कि धन के लिए ये कभी कर्तव्यच्युत नहीं हुए। अर्थात् ये बाहर और अंदर दोनों से श्रीमंत अथवा अमीर थे। सोक्रेटिस जैसे महान विचारक यही कहते हैं कि सम्मानपूर्वक जीने का एक ही मार्ग है – आप अपने आपको जैसा बाहर से दिखाना चाहते हैं, वैसा ही भीतर से भी बनें।
भीतरी समृद्धि शब्दार्थ :
- द्रव्य-भक्ति – धन-दौलत के प्रति आकर्षण।
- जीवनभक्ति – जीवन के प्रति श्रद्धा।
- कृत्रिम – बनावटी।
- चाव – अभिलाषा, अनुराग।
- अंतःकरण – हृदय, मन।
- सुगंध – खुशबू।
- तृष्णा – प्यास।
- नेकी – भलाई, उपकार।
- अंगरखा – कोट की तरह का एक लंबा पहनावा।
- तृष्णातुर – कोई चीज पाने के लिए आतुर।
- लदी-फंदी – भारयुक्त होना।
- अभिमानी – गीली।
- संस्कारिता – संस्कारों का पालन करना।
- षड्यंत्र – भीतरी चाल।
- तिलमात्र – जरा-सा।
- मूलमंत्र – मुख्य तत्त्व।
- नियंत्रक – नियंत्रण करनेवाला।
- परिबल – शक्ति।
- प्रवृत्ति – झुकाव।
- भ्रष्ट – निंदनीय आचरणवाला।
- स्वाभिमान – आत्मसम्मान, अपनी प्रतिष्ठा का अभिमान।
- सहृदयता – दूसरों के सुख-दुःख की समझ।
- वास्तविक – सच्चा।
- शिल्प – कारीगरी।
- नक्षत्र – तारों का समूह।
- मष्टा – रचयिता।
- प्रेरणादायक – प्रेरणा देनेवाला।
- वृद्धावस्था – बुढापा।
- जीर्णशीर्ण – फटा-पुराना।
- करामात – अदभुत कार्य।
- महापंडित – महान विद्वान।
- जीवन-चरित्र – जीवन में किए गए कार्यों का वर्णन।
- पारितोषिक – पुरस्कार।
- महापुरुष – महान व्यक्ति।
- दलदल – वह गीली जमीन, जिस पर खड़े होने पर पैर धंसता है।
- कर्तव्यपरायण – निष्ठापूर्वक कार्य करनेवाला।
- नीयत – इरादा, मंशा।
- छेड़छाड़ – छेड़खानी।
- मनुष्यत्व – मानवता।
- देवदूत – फरिश्ता।
- सदगुण – अच्छे गुण।
- श्रीमंत – धनाड्य।
- पचाना – हजम करना।