Gujarat Board GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 14 वे आँखें Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 14 वे आँखें
GSEB Class 11 Hindi Solutions वे आँखें Textbook Questions and Answers
अभ्यास
कविता के साथ
प्रश्न 1.
‘अंधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन ।’
क. आम तौर पर हमें डर किन बातों से लगता है ?
उत्तर :
आम तौर पर हमें लड़ाई-झगड़े, डरावनी चीखों, जंगली हिंसक प्राणी, मौत, आँधी-तूफान, घनघोर अंधकार, बादलों के जोर से गरजने, बिजली के चमकने आदि से डर लगता है ।
ख. ‘उन आँखों से’ किसकी ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर :
‘उन आँखों से’ अर्थात् किसान की पथराई हुई आँखें । जिन आँखों में गरीबी, शोषण, अभाव, लाचारी, हताशा एवं निराशा का घोर अंधकार छाया हुआ है।
ग. कवि को उन आँखों से डर क्यों लगता है ?
उत्तर :
कवि अपने आपमें एक संवेदनशील प्राणी होता है । वह दूसरों की पीड़ा को समान अनुभूति के साथ महसूस कर सकता है । भारतीय किसानों की दयनीय स्थिति से उसका दिल दहल जाता है । वह किसानों की आँखों में छाई बेबसी का सामना नहीं कर पाता । इसीलिए कवि को उन आँखों से डर लगता है ।
घ. डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन क्यों किया है ?
उत्तर :
साहित्य केवल मनोरंजन का साधन मात्र नहीं होता बल्कि कई बार समाज परिवर्तन में अपनी अहम भूमिका निभाता है । वह भूले को राह दिखाता है, गिरे हुए को ऊपर उठाता है । यहाँ कवि भारतीय किसानों की बदहाली के यथार्थ से सबस करवाना चाहता है और प्रकारांतर से उनके जीवन की बेहतरी चाहता है ।
ङ. यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता क्या तब भी वह कविता लिखता ?
उत्तर :
कवि के द्वारा देखा या भोगा हुआ यथार्थ ही आखिर में कविता का संवेदन-विश्व बनता है । अतः यदि कवि को किसानों की नारकीय यंत्रणा का बोध ही नहीं होता, वह उनकी निराशाभरी आँखों में झाँकता ही नहीं, तो डरता कैसे ? कवि में किसानों के प्रति संवेदनशीलता कैसे जगती ? अतः कवि इन आँखों से नहीं डरता तो वह कविता नहीं लिखता ।
प्रश्न 2.
कविता में किसान की पीड़ा के लिए किन्हें जिम्मेदार बताया गया है ?
उत्तर :
कविता में किसान की पीड़ा के लिए जमींदार, महाजन, कोतवाल आदि को जिम्मेदार बताया गया है । जमींदार, महाजन आदि किसानों का मनमाने ढंग से आर्थिक, शारीरिक और मानसिक शोषण करते हैं । इनका शोषणतंत्र इतना निर्मम है कि किसानों का घर, बैल, गाय, खेत, खलिहान सबको हड़प लेने पर भी तरस नहीं खाता ।
इन शोषकों, आतताइयों की वजह से ही गरीब किसान अपने परिवारजनों का इलाज नहीं करा पाते, जवान बेटे की हत्या कर रो-धोकर चुपचाप भयातुर स्थिति में सहमकर के बैठ जाते हैं । पुत्रवधू के शारीरिक शोषण और आत्महत्या को चुपचाप सहन कर जाते हैं । समाज, सरकार और व्यवस्थातंत्र की दायित्वहीनता भी उतनी ही जिम्मेदार है।
प्रश्न 3.
‘पिछले सुख की स्मृति आँखों में क्षणभर एक चमक है लाती’ इसमें किसान के किन पिछले सुखों की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर :
“पिछले सुख की स्मृति आँखों में क्षण भर एक चमक है लाती’ इसमें किसान के अतीत के निम्नलिखित सुखों की ओर इशारा किया गया है –
- उसका अपना खेत और लहलहाती फसल
- उसका अपना घर
- उसके बैलों की जोड़ी
- दुधारू गाय (उजली)
- पत्नी, बिटिया
- जवान बेटा और पुत्रवधू आदि ।
प्रश्न 4.
संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें :
क. उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती ?
सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ‘वे आँखें’ कविता से लिया गया है । इन पंक्तियों में महाजनी अत्याचार से पीड़ित किसान की दयनीय दशा का वर्णन है ।
व्याख्या : कवि किसान की दयनीय दशा का वर्णन करते हुए कहता है कि किसान कर्ज में डूब गया । महाजन ने धन व व्याज की वसूली के लिए किसान की स्थायी संपत्ति घर-द्वार, बैलों की जोड़ी जो उसके रोजगार का साधन थे आदि सब कुछ को नीलाम कर देते हैं ।
किसान अपनी प्यारी गाय कि जिसका नाम उजरी (उजली) था, उसे भी याद करता है । दुधारू गाय किसान के घर-आंगन की शोभा होती है । वह उसके सिवाय अन्य किसी को अपने पास दूध दुहने को फटकने तक नहीं देती थी । मजबूरी के कारण प्यारी उजली (गाय) को उसे बेचना पड़ा । इन सब बातों को याद करके किसान बहुत व्यथित होता है ।
विशेष :
- किसान पर महाजनों के अत्याचारों का सजीव वर्णन है ।
- गरीबी के कारण अपनी प्रिय गाय बेचने का दृश्य कारुणिक है ।
- देशज शब्द ‘उजरी’ तथा ‘दुहाने’ का सटीक प्रयोग है ।
- ग्रामीण परिवेश साकार हो उठा है ।
ख. घर में विधवा रही पतोहू
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन
सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ‘ये आँखें’ नामक कविता से लिया गया है । इन पंक्तियों में किसान के बेटे की हत्या का दोषी उसकी पुत्रयधु को बताया जाता है । यह नारी पर होनेवाले अत्याचारों की पराकाष्ठा है ।
व्याख्या : किसान की पारिवारिक स्थिति का वर्णन करते हुए कवि बताता है कि उसकी पत्नी दया-दाल के अभाव में मर गई । पत्नी की मृत्यु के बाद उस पर आश्रित किसान की नन्हीं बच्ची भी दो दिन बाद मर गई । किसान के जवान बेटे की हत्या हो जाने से अब घर में उसकी जवान पुत्रवधू बची हुई थी । उसका नाम लछमी था, किंतु उसे ‘पति घातिन’ समझा जाता था।
भारतीय समाज की रूढ़ मान्यताओं के अनुसार पत्नी के रहते जवान पति मर जाए तो उसे अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता ।। उसे पति की हत्या का जिम्मेदार मान लिया जाता है । लछमी इस कलंक को कैसे सह पाती ? इतना ही नहीं, कोतवाल ने पूछताछ के बहाने बुलवाकर उसकी इज्जत लूटी । रक्षक ही भक्षक बन गया ।
आखिर उसने कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली । समाज में विधया के प्रति नकारात्मक रवैया है । कसूर न होते हुए भी उसकी पुत्रवधू को पति घातिन कहा जाता है ।
विशेष :
- किसान की गरीबी, शोषण, लाचारी का सजीव वर्णन है ।
- पति की हत्या के बाद नारी के प्रति समाज के कटु दृष्टिकोण का पता चलता है ।
- खड़ी बोली है।
ग. पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षणभर एक चमक है लाती।
तुरंत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती ।
सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ‘वे आँखें’ नामक कविता से लिया गया है । इन पंक्तियों में कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है ।
व्याख्या : कवि कहता है कि किसान को अपने खुशहाली के दिनों की याद आते ही उसकी आँखों में खुशी की चमक या खुशी की लहर दौड़ जाती है । वे खुशी के दिन जब उसके पास अपना ख्नेत था, घर था, बैलों की जोड़ी थी, प्यारी दुधारू गाय (उजली) थी, प्रिय पत्नी थी, प्यारी-सी नन्ही-सी बिटिया थी, जवान बेटा था, पुत्रवधू थी यानी भरा-पूरा घर था ।
मगर जैसे ही उसे यथार्थ का आभास होता है, वे सुखद प्रीतिकर यादें अचानक उसे घोर निराश में धकेल देती है । उसकी नज़र कहीं शून्य में खोकर पथरा जाती है । ऐसी स्थिति में वही सुखद यादें तीखी नोक के समान उसके रोम-रोम में चुभने लगती हैं ।
विशेष :
- ‘तीखी नोक सदृश’ में उपमा अलंकार है।
- खड़ी बोली है ।
- ग्रामीण परिवेश का चित्रण है ।
प्रश्न 5.
“घर में विधवा रही पतोहू ………… । खैर पैर की जूती, जोरू / एक न सही दूजी आती ।” इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए ‘वर्तमान समाज और स्त्री’ विषय पर एक लेख लिने ।
उत्तर :
भारतीय समाज में नारी की स्थिति सदियों से सोचनीय रही है । प्रस्तुत कविता में कवि ने नारी के प्रति भारतीय समाज की रूढ़िचुस्त और रूग्ण मानसिकता को प्रकट किया है । नारी को इस समाज में पशु से भी बदतर जीवन जीने के लिए विवश होना पड़ा है । आंगन में बंधे प्राणियों तक का इलाज कराया जाता है । मगर स्त्री का इलाज करने की आवश्यकता ही नहीं समझी जाती ।
उसे पैरों की जूती समझकर वस्तु की तरह देखा जाता है । जूती फट जाने पर दूसरी खरीद या पहन ली जाती है, उसी तरह पत्नी के मर जाने पर दूसरी औरत के साथ घर बसाया जा सकता है । समाज में आज भी नारी को उचित महत्त्व और सम्मान नहीं मिलता । विधवा नारी के प्रति तो समाज का रवैया और भी अधिक उपेक्षापूर्ण, कठोर और निर्दयी है ।
उस पर तमाम प्रकार की पाबंदियों और निर्योग्यताएँ थोपी जाती है । इतना ही नहीं, उसे पतिनाशनी समझा जाता है । कई बार शारीरिक शोषण का भी शिकार होना पड़ता है । यहाँ तक कि कुएँ में कूदकर आत्महत्या करने को विवश होना पड़ता है ।। इन अबलाओं के लिए रक्षक ही भक्षक बन जाते हैं ।
कविता के आसपास
प्रश्न 1.
‘किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं’ इस विषय पर परिचर्चा आयोजित करें तथा कारणों की भी पड़ताल करें ।
उत्तर :
भारत कृषि प्रधान देश है । देश के लगभग 75% लोग गाँव में रहते हैं और खेती पर निर्भर रहते हैं । खेती उनके जीवन का मुख्य आधार है । खेती किसानों के लिए व्यवसाय नहीं वरन् जीवन का अभिन्न अंग है । मगर किसानों की स्थिति हमेशा से ही उपेक्षापूर्ण रही है । वह शोषण का शिकार होता आया है । आज किसान गाँव से शहर की ओर पलायन कर रहे हैं । उसके कुछ कारण निम्नानुसार है –
- मेहनत की तुलना में उचित आय प्राप्त नहीं होती ।
- अधिकांश किसानों के पास अपनी जमीन नहीं है ।
- जमीन के बदले जर्मीदारों को उसकी मेहनत का बड़ा हिस्सा चला जाता है ।
- प्रकृति-वर्षा की अनिश्चिता (अतिवृष्टि, अनावृष्टि) कृषि में बाधक बनती है ।
कृषि से संबंधित साधन-सामग्री, बीज-खाद, दवाइयाँ, ट्रेक्टर, पानी, बिजली, बुआई-कटाई के लिए मजदूरों की मजदूरी आदि की मँहगाई की मार । तैयार हुई फसल का बाज़ार में उचित दाम न मिलना ।। सरकारों का उपेक्षापूर्ण रवैया । शहरों में शिक्षा, रोजगार आदि की संभावनाएँ जैसे अन्य कई कारण हैं ।
Hindi Digest Std 11 GSEB वे आँखें Important Questions and Answers
कविता के साथ
प्रश्न 1.
‘वे आँखें’ कविता का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता कवि पंत की प्रगतिशील विचारों को व्यक्त करती है । कविता के केन्द्र में भारतीय गरीब, शोषित किसान है। ” किसान सदियों से शोषण का शिकार होता आया है । जगत का पेट भरनेवाला किसान (अन्नदाता) स्वयं भूखा ही सो जाता है । उसका महाजन, जमींदार आदि मनमाने ढंग से शोषण करते हैं ।
भारतीय किसान रात-दिन पसीना बहाकर भी भूखा और फटेहाल ही रह जाता है । जब कि महाजन, जमींदार आदि शोषक वर्ग कुछ न करके बहुत कुछ पा जाते हैं । अपना पेट ही नहीं पेटियाँ भी भरते हैं । प्रस्तुत कविता में किसान के जीवन की त्रासदी को ब्याजखोरों के षड्यंत्रों के द्वारा व्यक्त किया गया है । जिसमें किसान एक-एक करके अपना खेत, घर, बैलों की जोड़ी, दुधारू गाय, पत्नी, बिटिया, जवान बेटा और पुत्रवधू तक को खो देता है।
सबकुछ लुट चुके किसान की आँखों में हताशा और निराशा के घोर बादल छाए हुए हैं, कुछ न सुझनेवाला गहन अंधकार छाया हुआ है । यही दिखाना तथा उसके जीवन में पुनः कैसे आनंद, उमंग और उजाला फैलाया जा सके इसकी चिन्ता भी व्यक्त हुई है । अमीर और गरीब दो वर्गों में बँटे समाज की सच्ची तस्वीर उभारना भी इस कथिता का उद्देश्य रहा है ।
योग्य विकल्प पंसद करके रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए ।
प्रश्न 1.
सुमित्रानंदन पंत का मूल नाम ………… था ।
(a) गोसाँई दत्त
(b) वासुदेव सिंह
(c) धनपतराय
(d) राजेन्द्र दत्त
उत्तर :
(a) गोसाँई दत्त
प्रश्न 2.
सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई, सन् ………….. में हुआ था ।
(a) 1800
(b) 1900
(c) 1700
(d) 1901
उत्तर :
(b) 1900
प्रश्न 3.
सुमित्रानंदन पंत की माता का नाम …………… था |
(a) विद्यादेवी
(b) लक्ष्मीदेवी
(c) सरस्वतीदेवी
(d) शारदादेवी
उत्तर :
(c) सरस्वती देवी
प्रश्न 4.
सुमित्रानंदन पंत जी के पिता का नाम ……………… था ।
(a) रामदत्त
(b) रामनरेश त्रिपाठी
(c) श्यामलाल
(d) गंगा दत्त
उत्तर :
(d) गंगा दत्त
प्रश्न 5.
‘कला और बूढ़ा चाँद’ काव्य संग्रह के रचनाकार …………… हैं ।
(a) सुमित्रानंदन पंत
(b) जयशंकर प्रसाद
(c) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(d) महादेवी वर्मा
उत्तर :
(a) सुमित्रानंदन पंत
प्रश्न 6.
‘लोकायतन’ और ‘सत्यकाम’ पंत रचित ………….. है ।
(a) खण्डकाव्य
(b) महाकाव्य
(c) निबंध
(d) उपन्यास
उत्तर :
(b) महाकाव्य
प्रश्न 7.
……………. रचना के लिए कवि को सोवियत संघ तथा उत्तरप्रदेश सरकार से पुरस्कार प्राप्त हुआ ।
(a) सत्यकाम
(b) लोकायतन
(c) चिन्दबरा
(d) युगान्त
उत्तर :
(b) लोकायतन
प्रश्न 8.
‘वे आँखें’ कविता के रचनाकार ……………. हैं ।
(a) जयशंकर प्रसाद
(b) त्रिलोचन शास्त्री
(c) सुमित्रानंदन पंत
(d) दुष्यंतकुमार
उत्तर :
(c) सुमित्रानंदन पंत
प्रश्न 9.
‘अंधकार की गुह गुहा सरीखी’ पंक्ति में …………… अलंकार है ।
(a) रूपक
(b) उत्प्रेक्षा
(c) श्लेष
(d) उपमा
उत्तर :
(d) उपमा
प्रश्न 10.
‘दारूण्य दैन्य दुख’ पंक्ति में ……. …. अलंकार है ।
(a) अनुप्रास
(b) रूपक
(c) उपमा
(d) श्लेष
उत्तर :
(a) अनुप्रास
प्रश्न 11.
कवि को किसान की ……………… से डर लगता है।
(a) आँखों
(b) पत्नी
(c) बेटे
(d) कोई नहीं
उत्तर :
(a) आँखों
प्रश्न 12.
कवि को किसान की आँखें अंधेरी ……………. के समान दिखती है ।
(a) रात
(b) गुफा
(c) कोठरी
(d) गली
उत्तर :
(b) गुफा
प्रश्न 13.
किसान की आँखों में भयानक ………….. का दुख व्याप्त है ।।
(a) अमीरी
(b) गरीबी
(c) बीमारी
(d) कोई नहीं
उत्तर :
(b) गरीबी
प्रश्न 14.
‘जीवन की हरियाली’ पंक्ति में ………….. अलंकार है ।।
(a) उपमा
(b) पुनरुक्ति प्रकाश
(c) रूपक
(d) अनुप्रास
उत्तर :
(c) रूपक
प्रश्न 15.
किसान की जमीन को ………….. ने कानूनों का सहारा लेकर हड़प लिया था ।
(a) कोतवालों
(b) जींदारों
(c) पुलिस
(d) गुंडों
उत्तर :
(b) जमींदारों
प्रश्न 16.
‘आँखों का तारा’ किसान का जवान गवान …………………. था ।
(a) बेटी
(b) पत्नी
(c) बेटा
(d) पुत्रवधू
उत्तर :
(c) बेटा
प्रश्न 17.
किसान के ………… की हत्या जमींदार के कारिंदों ने पीट-पीटकर कर दी थी ।
(a) बेटी
(b) बेटा
(c) पत्नी
(d) भाई
उत्तर :
(b) बेटा
प्रश्न 18.
उजारी किसान की प्रिय ………… थी ।
(a) बकरी
(b) बिल्ली
(c) भैंस
(d) गाय
उत्तर :
(d) गाय
प्रश्न 19.
किसान के घर में उसकी ………… पुत्रवधू बची हुई थी।
(a) विधवा
(b) सधवा
(c) बीमार
(d) सुन्दर
उत्तर :
(a) विधया
प्रश्न 20.
किसान की विधवा पुत्रवधू को …………….. कहा जाता था ।
(a) कुलनासी
(b) डायन
(c) पतिघातिन
(d) सभी
उत्तर :
(c) पतिघातिन
प्रश्न 21.
किसान की . ………….. ने आत्महत्या की थी ।
(a) बेटी
(b) बेटे
(c) पत्नी
(d) पतोहू
उत्तर :
(d) पतोहू
प्रश्न 22.
किसान की पुत्रवधू का नाम ………….. था ।
(a) सरस्वती
(b) पार्वती
(c) लक्ष्मी
(d) सीता
उत्तर :
(c) लक्ष्मी
प्रश्न 23.
‘तन-तन’ पंक्ति में ………… अलंकार है ।
(a) उत्प्रेक्षा
(b) यमक
(c) पुनरुक्ति प्रकाश
(d) श्लेष
उत्तर :
(c) पुनरुक्तिप्रकाश
प्रश्न 24.
‘वे आँखें ………… रसप्रधान कविता है।
(a) करुण
(b) वीर
(c) शांत
(d) शृंगार
उत्तर :
(a) करुण
प्रश्न 25.
पति की मृत्यु के लिए पत्नी को दोषी मानना समाज की ………….. मानसिकता का परिचायक है ।
(a) स्वस्थ
(b) श्रेष्ठ
(c) प्रबल
(d) रुग्ण
उत्तर :
(d) रुग्ण
अपठित गद्यांश
इस कविता को पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।
हाय ! मृत्यु का ऐसा अमर, अपार्थिव पूजन ? जय विषण्ण, निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन ! संग-सौंध में हो शृङ्गार मरण का शोभन, नग्न, क्षुधातुर वास विहीन रहें. जीवित जन ? मानव ! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति ?
आत्मा का अपमान, प्रेत औ, छाया से रति !! प्रेम अर्चना यही, करें हम मरण को वरण ? स्थापित कर कंकाल, भरे जीवन का प्राङ्गण ? शव को दें हम रूप, रंग, आदर मानव का मानव को हम कुत्सित चित्र बना दें शव का ? गत युग के मृत आदर्शों के ताज मनोहर मानव के मोहांध हृदय में किए हुए घर, भूल गये हम जीवन का संदेश अनश्वर, मृतकों के है मृतक जीवितों का है ईश्वर ! – सुमित्रानंदन पंत
प्रश्न 1.
कवि ने किस इमारत को मृत्यु का अपार्थिव पूजन कहा है ?
उत्तर :
कवि ने ताजमहल को मृत्यु का अपार्थिव पूजन कहा है ।
प्रश्न 2.
कवि द्वारा जीवितजनों की दुर्दशा का चित्रण किस प्रकार किया गया है ?
उत्तर :
जग का जनजीवन अत्यंत खिन्न और निर्जीव पड़ा है । लोग नग्न हैं, क्षुधातुर (भूखें) हैं । रहने के लिए आवास नहीं है ।
प्रश्न 3.
कवि को ताज से क्या-क्या शिकायते हैं ?
उत्तर :
कवि पूछता है कि मनुष्य जीवित आत्माओं का अपमान करते हुए जीवन से विरक्त हो रहा है क्या ? वह मृतात्मा की छायाप्रेत पूजा में रत है ? क्या यही प्रेम की अर्चना है कि हम मृत्यु का वरण करते हुए कंकालों से अपने जीवन-प्रांगण को भरेंगे ? शव को हम मानव जैसा रूप-रंग आदर देते हुए जीवित मनुष्य के जीवन को कुत्सित बनायेंगे ?
प्रश्न 4.
इस कविता की भाषा कैसी है ?
उत्तर :
इस कविता की भाषा तत्सम सामासिक पदावलीयुक्त खड़ीबोली है ।
प्रश्न 5.
‘क्षुधातुर’ का विग्रह करते समास का नाम लिखिए ।
उत्तर :
क्षुधातुर – क्षुधा (भूख) से आतुर (व्याकुल) में तत्पुरुष समास है ।
वे आँखें Summary in Hindi
जीवन परिचय : सुमित्रानंदन पंत का मूल नाम गोसाँई दत्त था । प्रकृति के सुकुमार कवि पंतजी का जन्म अल्मोड़ा जिले के । कौसानी नामक गाँव में 20 मई, 1900 ई. को हुआ । माता सरस्वती देवी उन्हें जन्म देने के बाद मूर्छितावस्था में ही स्वर्गवासी हो गयी थीं, फलतः पिता गंगादत्तजी ने इन्हें माता-पिता दोनों का स्नेह प्रदान किया । साथ ही यह भी सोच है कि प्रकृति ही इनकी धात्री – रही ।
कवि की प्राथमिक शिक्षा घर पर ही हुई । फिर वाराणसी के जयनारायण कॉलेज में प्रवेश किया । यहाँ इनका नाम गुसाँई दत्त से सुमित्रानंदन पंत हो गया । उच्च शिक्षा हेतु आपने प्रयाग के म्योर सेन्ट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया । अभी दो वर्ष ही वहाँ अध्ययन कर पाये थे कि गाँधीजी के आह्वाहन पर सन् 1921 में विलायती शिक्षा सदा के लिये छोड़ दी ।
तत्पश्चात् आपने स्वाध्याय और साहित्य साधना को ही जीवन का लक्ष्य बना लिया । कुछ समय आप काला कांकर राज्य में भी रहे । आपने मार्क्सवाद से प्रभावित होकर ‘रूपाभ’ पत्रिका के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत किये । तत्पश्चात् आकाशवाणी में भी काम किया ।
पंतजी का व्यक्तित्व बड़ा सौम्य, सरल और ऋषि तुल्य था । इन्द्रनाथ मदान के शब्दों में – ‘पंत मितभाषी हैं, जनभीरू हैं और स्वभाव से संकोचशील हैं । उनका व्यक्तित्व बड़ा ही सौम्य और आकर्षक है । धुंघराले, रेशम से लम्बे लम्बे बाल, स्वच्छ और स्निग्ध आँखें, गंभीर और सरल मुखाकृति आकर्षण के साधन हैं । उनकी वेशभूषा अत्यंत सादी होने पर भी उसमें सुरुचि का प्रथम स्थान है । कुरूपता से उन्हें चिढ़ है । सौंदर्य से प्रेम, स्वाभिमानी और आत्मविश्वासी होने के साथ-साथ जीवन में संयम के पक्षपाती हैं ।’
साहित्यिक परिचय : पंतजी जन्मजात कवि हैं । बचपन से ही कविता लिखने लगे थे । बाद में उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन किया । उनकी रचनाओं को इस प्रकार वर्गीकृत कर सकते हैं –
काव्य-संग्रह :
‘वीणा’, ‘पल्लव’, ‘गुंजन’, ‘छायावादी शैली में सौंदर्य और प्रेम’ की प्रस्तुति है । ‘युगान्त’, ‘युगवाणी’ और ‘ग्राम्या’ में पंत के प्रगतिवादी तथा यथार्थ परक भावों का प्रकाशन हुआ है । ‘स्वर्ण किरण’, ‘स्वर्णधूलि’, ‘युगपथ’, ‘उत्तरा’, ‘अतिमा’ तथा ‘रजत रश्मि’ संग्रहों में अरविन्द दर्शन का प्रभाव लक्षित होता है । उपरांत ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पर आपको साहित्य अकादमी, दिल्ली पुरस्कार तथा ‘चिन्दबरा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान प्राप्त हुआ हैं । –
महाकाव्य :
‘लोकायत’ और ‘सत्यकाम’ पंत रचित महाकाव्य है । ‘लोकायतन’ में कवि की विचारधारा और लोकजीवन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता , अभिव्यक्त हुई है । इस रचना पर कवि को सोवियत संघ तथा उत्तर प्रदेश सरकार से पुरस्कार प्राप्त हुआ है ।
काव्य-रूपक :
छाया, मानसी, रजत शिखर, ज्योत्स्ना, युग पुरुष और शिल्पी आदि ।
उपन्यास :
‘हार’ और ‘शून्य’ (अपूर्ण)
निबंध :
‘शिल्प और दर्शन’, ‘गद्य पथ’ आदि ।
उपरोक्त रचनाओं के अतिरिक्त अनुवाद के रूप में भी आपकी रचनाएँ मिलती है । उमर खय्याम की रूबाइयों पर आधारित ‘मधुज्वाल’ आपकी प्रसिद्ध अनुवादित रचना है । कुछ अन्य रचनाएँ भी यदा कदा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है ।
काव्य सारांश :
‘वे आँखें’ शीर्षक कविता में पंत के प्रगतिशील विचार व्यक्त हुए हैं । प्रस्तुत कविता में कवि ने आर्थिक विषमताओं पर सवाल उठाएँ हैं । अन्नदाता किसान रात-दिन मेहनत करके भी भूखा ही सो जाता है । सदियों से सेठ, साहूकारों, सामंतों और जमींदारों आदि के शोषण का शिकार होते आ रहें हैं । किसानों की दयनीय स्थिति से कवि आहत हैं ।
स्वतंत्रता के पश्चात् किसानों की जीयन-स्थितियों में कोई प्रभावात्मक परिवर्तन नहीं आए हैं । सरकारी उपेक्षा, योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन न होना, कर्ज की मार जैसे अन्य कई ऐसे सवाल हैं जो किसानों की बदहाली के कारण हैं । प्रस्तुत कविता में कवि ने किसानों की बहुविध समस्याओं को अत्यन्त मार्मिक और संवेदनात्मक रूप से व्यक्त किया है।
पंत का हृदय मानव के उत्पीड़न और उसके दैन्य रूप को देखकर कराह उठा आकाशी कोमल कल्पनाओं का आँचल छोड़कर वह पृथ्वी पर आ गया । उसने अपने प्रगतिवादी काव्य में श्रमिक, किसान और निर्धन व्यक्तियों का चित्रण किया है । कवि ने निर्धन वर्ग के प्रति सहानुभूति प्रकट की है । कवि पूँजीवादी सामन्ती लोगों की मान्यताओं, रुढ़ियों और परंपराओं को संसार से नये विचार, ‘नये भाव, नये सौन्दर्य और नये जीवन तथा नई संस्कृति का स्वागत करते हुए घोषणा करता है –
‘द्वत झरो जगत के जीर्णपत्र, हे त्रस्त ध्वस्त !
हे शुष्क-शीर्ण’ कवि ने मानव जीवन की विविध समस्याओं का समाधान करने के लिए ‘गाँधीवाद’ और मार्क्सवाद का सहारा लिया । मार्क्सवाद द्वारा कवि भारतीय दृष्टि से फैली असमानता को दूर करने का वर्णन करता है । पन्त जी की कविता में जो क्रांति का स्वर सुनायी पड़ता है वह मार्क्सवाद का ही प्रभाव हैं । कवि गाँधीवादी विचारों से प्रभावित हुआ ।
काव्य का भावार्थ :
अंधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुख का नीरव रोदन !
वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा आँखों में इसका,
छोड़ उसे मँझधार आज
संसार कगार सदृश बह ख्रिसका !
सुमित्रानंदन पंत मूलतः छायावादी कवि हैं, मगर उनकी कविताओं में विचार के स्तर पर परिवर्तन होता रहा है । प्रस्तुत कविता में उनके प्रगतिशील विचार अभिव्यक्त हुआ है जिसमें भारतीय किसान की दुर्दशा और बेबसी का यथार्थ चित्रण हुआ है । यहाँ कवि चारों ओर से शोषण की मार खा रहे किसान की दारूण स्थिति का चित्रण करते हुए कहता है कि शोषित-पीड़ित किसान की गड्ढ़ों में फँसी हुई आँखें अंधेरी गहन-गुफा की तरह दिखती हैं ।
ऐसी आँखों से मन डरता है । अर्थात् लगातार, शोषण, कर्ज और ना-ना प्रकार के जुल्मों को सहता आ रहा किसान घोर गरीबी और अभाव-ग्रस्त जीवन जी रहा है । उसके जीवन में कोई रोशनी (खुशी) के आसार नज़र नहीं आ रहा । उसके जीवन में दुःख-दैन्य का मौन रूदन छाया हुआ है । वह कहे भी तो किससे कहे ?
एक समय था जब भारत का किसान स्वाधीन था, उसकी आँखों में स्वाभिमान झलकता था, क्योंकि वह किसी का मोहताज नहीं था, उसके पास अपने खेत थे । यही किसान आज अकेला पड़ गया है । संसार ने उसे इस कदर उपेक्षित कर दिया है कि समस्याओं के दल-दल घिरा हुआ छोड़कर किनारे की तरह बहकर उससे दूर चला गया है । कोई उसकी सुनने या मदद करनेवाला नहीं रह गया है ।
लहराते वे खेत दृगों में
हुआ बेदखल यह अब जिनसे,
हँसती थी उसके जीवन की
हरियाली जिनके तन-तृन से !
आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी आँखों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा !
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि एक ओर जहाँ किसानों की विगत सुखद स्थितियों का वर्णन करता है, वहीं दूसरी ओर उसकी आज की दयनीय स्थिति का भी चित्रण करता है । किसान अपने खुशी के दिनों को याद करता है, जब उसके अपने खेत में फसल लहलहाती थी । वह फसल उसकी आँखों में आज भी लहराती है । दुर्भाग्यवश आज वह उसी खेत से बेदखल कर दिया गया है अर्थात् शोषकों, व्याजखोरों ने उसकी जमीन हड़प ली है । वह जमीन जिस पर ऊगी फसल उसके जीवन की हरियाली थी, जिसे देख वह हर्षित होता था आज वह सब कुछ लुट गया है ।
किसान का अपना प्यारा बेटा था । वह भुलाये नहीं भूलता । सदैव उसका चेहरा उसकी आँखों में घूमा करता है । वह लाडला कि जिसकी जींदारों के कारिंदों ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी । जवानी में ही मारे गये बेटे को एक किसान पिता कैसे सह सकता है ? उसकी निर्मम हत्या से उसके बुढ़ापे की लाठी ही छिन गयी ।
बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह-रह आँखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी !
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती ?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती !
प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में कवि ने भारतीय किसान के निर्मम शोषण की हृदय-विदारक तस्वीर प्रस्तुत की है । महाजन ने किसान की आवश्यकता पर कर्ज क्या दिया मनमाने ढंग से अंधी लूट ही मचा दी । उसका ऐसा शोषण किया कि वह कहीं का न रहा । महाजन ने मूलधन तो ठीक परंतु ऊँचे व्याज की एक-एक कोड़ी का हिसाब वसूल किया । उस बेबस किसान का घर हड़प लिया । इतने पर भी जी नहीं भरा तो किसान के बैलों की जोड़ी की नीलामी करके पैसे वसूले । उन बैलों की जोड़ी को यह भुला नहीं पाता, रह-रहकर उसकी आँखों में चुभती है । बैलों की जोड़ी की नीलामी क्या हुई ? उसकी रोजी-रोटी का साधन ही छीन लिया गया ।
किसान अपनी प्यारी गाय कि जिसका नाम उजरी (उजली) था, उसे भी याद करता है । दुधारू गाय किसान के घर-आंगन की शोभा होती है । यह उसके सिवाय अन्य किसी को अपने पास दूध दुहने को फटकने तक नहीं देती थी । मजदूरी के कारण प्यारी उजली (गाय) को उसे बेचना पड़ा । अपनी प्यारी चीजों-जीवों को एक-एक करके खोने का दंश किसान को रह-रहकर कचोटता है । ये सारे दुःखद दृश्य उसकी आँखों के सामने उभरने लगते हैं । उसकी सुखभरी खेती, उसके जीवन का आनंद-उल्लास-उमंग सब कुछ उजड़ गया है । उसकी आँखों में बेबसी, निराशा और हताशा के बादल छाये हुए हैं ।
बिना दवा दर्पन के घरनी
स्वरग चली, आँखें आती भर,
देख-रेख के बिना दुधमुँही
बिटिया दो दिन बाद गई मर !
घर में विधवा रही पतोहू,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
पकड़ मँगाया कोतवाल ने,
‘डूब कुएँ में मरी एक दिन !
किसान की करुण कहानी को आगे बढ़ाते हुए कवि कहता है कि, चारों ओर से शोषण के शिकंजे में फँसा किसान घोर आर्थिक तंगदिली में जीता है। पैसे-पैसे तरसने लगता है । ऐसे में बीमार पत्नी का इलाज कैसे करवाता ? दवा-दास के अभाव में ही मर गई । अपनी बेबस स्थितियों को याद करते ही उसकी आँखें डबडबा जाती हैं । पत्नी की मृत्यु के दो दिन बाद उसकी प्यारी-सी, नन्ही सी बिटिया भी देख-भाल के अभाव में चल बसती है ।
किसान के जवान बेटे की हत्या हो जाने से अब घर में उसकी जवान पुत्रवधू बची हुई थी । उसका नाम लछमी था, किंतु उसे ‘पति घातिन’ समझा जाता था । भारतीय समाज भी रूढ़ मान्यताओं के अनुसार पत्नी के रहते जवान पति मर जाए तो उसे अच्छी नजर से नहीं देखा जाता । उसे पति की हत्या का जिम्मेदार मान लिया जाता है ।
लछमी इस कलंक को कैसे सह पाती ? इतना ही नहीं, कोतवाल ने पूछताछ के बहाने बुलवाकर उसकी इज्जत लूटी । रक्षक ही भक्षक बन गया । आखिर उसने कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली । इस प्रकार किसान का अपना भरा-पूरा परिवार तबाह हो गया ।
खैर, पैर की जूती, जोरू
न सही एक, दूसरी आती,
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लोटते, फटती छाती ।
पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक है लाती,
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती ।
प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों के माध्यम से कवि ने एक ओर भारतीय किसान की दयनीय स्थिति का वर्णन किया है, वहीं भारतीय समाज की नारी-विरोधी रूग्ण मानसिकता भी उजागर की है । किसान को अपनी पत्नी की मृत्यु इतनी नहीं सालती, जितनी कि जवान बेटे की हत्या । वह सोचता है, पत्नी तो पैरों की जूती है, फटने पर दूसरी पहनी जा सकती है ।
अर्थात् जिस प्रकार जूती फटने पर दूसरी खरीदी या पहनी जा सकती है वैसे ही पत्नी की मृत्यु पर दूसरा विवाह करके घर बसाया जा सकता है । मगर जवान बेटे की याद आते ही वह व्याकुल हो जाता है, उसकी छाती मानो फटने लगती है । पुत्र-वत्सल पिता के लिए अपने पुत्र की हत्या असहनीय है । किसान को अपने अतीत के खुशहाली के दिनों की याद आते ही उसकी आँखों में खुशी की चमक या खुशी की लहर दौड़ जाती है ।
वे खुशी के दिन जब उसके पास अपना खेत था, घर था, बैलों की जोड़ी थी, प्यारी दुधारू गाय (उजली) थी, प्रिय पत्नी थी, प्यारी-सी नन्ही-सी बिटिया थी, जवान बेटा था, पुत्रवधू थी यानि भरा-पूरा घर था । मगर जैसे ही उसे यथार्थ का आभास होता है, वे सुखद, प्रीतिकर यादें अचानक उसे घोर निराशा में धकेल देती हैं । उसकी नज़र कहीं शून्य में खोकर पथरा जाती है । ऐसी स्थिति में वही सुखद यादें तीखी नोक के समान उसके रोम-रोम में चुभने लगती हैं ।
शब्दार्थ :
- सरीखी – समान
- चितवन – दृष्टि
- कारकुन – ज़मीदारों के कारिंदे, क्लर्क
- बरों – बैलों
- गुहा – गुफा
- नीरव – शब्दरहित
- खाधीन – स्वतंत्र
- मैंझधार – समस्याओं के बीच
- सदृश – समान
- दृग – आँख
- आँखों का तारा – बहुत प्यारा
- कौड़ी – पैसे छोटा एक पुराना सिक्का (मूल्य हीन)
- सिवा – बिना
- आँखों में नाचना – बार-बार स्मृति में आना
- पतोहू – पुत्रवधू
- घातिन – मारनेवाली
- सुध – याद
- फटती छाती – बहुत दुख होना
- चमक लाना – खुशी लाना
- दारूण – घोर, निर्दय, कठोर
- बेदखल – कब्जे से अलग करना
- कुर्क – नीलामी
- घरनी – घरवाली, पत्नी, जोरू
- दैन्य – दीनता
- रोदन – रोना
- अभिमान – गर्व
- कगार – किनारा
- लहराते – लहलहाते, झूमते
- तुन – तिनका, तृण
- महाजन – साहूकार, ऋणदाता
- उजरी – उजली
- दुहाने – दूध दुहने के लिए
- दुधमुंही – नहीं
- लछमी – लक्ष्मी
- पैर की जूती – उपेक्षित
- साँप लोटना – अत्याधिक व्याकुल होना
- स्मृति – याद
- शून्य – आकाश