Gujarat Board GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 15 घर की याद Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 15 घर की याद
GSEB Class 11 Hindi Solutions घर की याद Textbook Questions and Answers
अभ्यास
कविता के साथ
प्रश्न 1.
पानी के रात भर गिरने और प्राण मन के घिरने में परस्पर क्या संबंध है ?
उत्तर :
कवि अपने घर से बहुत दूर जेल में कैद है । उसे घर से दूर रहने की पीड़ा है । बरसात का मौसम है । पानी बरस रहा है । बहुत पानी बरस रहा है । रातभर बारिश होती रही है । रातभर कवि का मन घर की यादों से घिर जाता है। रातभर लगातार बरसात होने से एक दर्दनाक खामोशी चारों तरफ घिर गई है ।
धनघोर बरसात, दूर छूटे हुए घर की याद से कवि एक अजीब प्रकार का अकेलापन महसूस करता है । जैसे-जैसे पानी गिर रहा है, वैसे-वैसे कवि के हृदय में प्रियजनों की स्मृतियाँ चलचित्र की तरह उभरती जा रही हैं । पानी के बरसने के कारण ही उसके प्राण व मन घर की याद में व्याकुल हो जाते हैं ।
प्रश्न 2.
मायके आई बहन के लिए कवि ने घर को परिताप का घर क्यों कहा है ?
उत्तर :
कवि को अपने चार भाईयों और पीहर में आई बहन की भी याद आती है । विवाहिता बहन अपने ससुराल के दुख के कारण पिता के घर आई है । और इधर उसका पाँचवाँ भाई (कवि भवानी प्रसाद मिश्र) भी घर पर नहीं है, जेलवास भोग रहा है । इसीलिए कवि ने बहन की मनोव्यथा व्यक्त करते हुए लिखा है, “हाय रे परिताप के घर ।” यहाँ ‘हाय’ शब्द कवि और उसकी बहन दोनों के हृदय की पीड़ा को व्यक्त करता है । इस कारण कवि ने घर को परिताप का घर कहा है।
प्रश्न 3.
पिता के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं को उकेरा गया है ?
उत्तर :
कविता में पिता के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं को उकेरा गया है – कवि की स्मृति पटल पर अपने स्वस्थ, तंदुरस्त पिता जो कि बुढ़ापे से दूर हैं, अर्थात् बूढ़े होने के बावजूद वे अब भी दौड़ लेते हैं, खिलखिलाते हैं, मौत से भी नहीं डरते, वे बोलते हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे बादल गरजता है, जरा भी आलस नहीं, किसी भी काम में स्फूर्ति दिखाते हैं, आज भी नियमित गीता पाठ करते हैं, दो सौ –
तीन सौ दंड बैठकें पेलना उनकी दिनचर्या का एक अनिवार्य हिस्सा है, मुगदर चलाना, मुडियाँ मिला-मिलाकर अपने कसरती शरीर-सौष्ठव को बनाए रखना, अपनी माँसपेशियों को मजबूत करते रहना उनके रोज का क्रम है । वे भावुक प्रवृत्ति के हैं । अपने पाँचवें बेटे को याद करके उनकी आँखें भर आती हैं । वे देशप्रेमी हैं । उनकी प्रेरणा पर ही कवि ने स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया ।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों में बस शब्द के प्रयोग की विशेषताएँ बताइए ।
‘मैं मजे हूँ सही है,
घर नहीं हूँ बस यही है,
किंतु यह बस बड़ा बस है,
इसी बस से अब विरस है,
उत्तर :
कवि ने बस शब्द का लाक्षणिक प्रयोग किया है । पहली बार के प्रयोग का अर्थ है कि यह केवल घर पर ही नहीं है । दूसरे प्रयोग का अर्थ है कि वह घर से दूर रहने के लिए विवश है । तीसरा प्रयोग उसकी लाचारी व विषशता को दर्शाता है । चौथे बस से कवि को मन की व्यथा प्रकट होती है जिसके कारण उसके सारे सुख छिन गए हैं ।
प्रश्न 5.
कविता की अंतिम 12 पंक्तियों को पढ़कर कल्पना कीजिए कि कवि अपनी किस स्थिति व मनास्थितियों को अपने परिजनों से छिपाना चाहता है ?
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने जेलवास की यातनाओं, खामोशीपन, एकांत की पीड़ा आदि मनःस्थितियों को अपने परिजनों से छिपाना चाहता है । इसीलिए वह सावन को अच्छी तरह से सब-कुछ समझा देना चाहता है कि – देखो मेरी यहाँ की जो स्थितियाँ हैं उधर किसी से कह न देना । उनकी याद में रात-रातभर जागता हूँ, किसी भी आदमी से बात करना मुझे अच्छा नहीं लगता, खामोशियों में बंद ज्वालामुखी की तरह मौन रहता हूँ, मैं कुछ तय नहीं कर पा रहा हूँ कि क्या करूँ – क्या न करूँ ?
ऐसा कुछ भी तुम वहाँ बक न देना । कोई भी ऐसी बात वहाँ न करना कि उन्हें मेरी चिंता होने लगे या किसी अनहोनी की आशंका होने लगे । इसलिए हे हरियाले सावन ! हे पुण्य और पवित्र सावन ! तुम जी भर के बरस लो मगर याद रहे थे (मेरे मातापिता) अपने पाँचवें बेटे के लिए न तरसें । उन्हें न मेरी याद आए और न ही उनकी आँखों में आँसू बरसे ।
कविता के आसपास
प्रश्न 1.
ऐसी पाँच रचनाओं का संकलन कीजिए – जिसमें प्रकृति के उपादानों की कल्पना संदेशवाहक के रूप में की गई है।
उत्तर :
- कालिदास द्वारा लिखित ‘मेघदूतम्’
- मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा लिखित ‘पद्मावत’
- मीरा के पद
- नागार्जुन द्वारा लिखित ‘कालिदास’ कविता
- सूर के पदों में
प्रश्न 2.
घर से अलग होकर आप घर को किस तरह से याद करते हैं ? लिखें ।
उत्तर :
गुजराती में कहायत है – ‘दुनियानो छेड़ो घर’ अर्थात् पूरी दुनिया का अंतिम छोर (आश्वस्ति स्थल) घर है । पूरी दुनिया घूम आओ भगर सुख-चैन तो घर पर ही मिलता है । घर से दूर रहकर घर-परिवार याद आना किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए सहज बात है । घर से दूर होकर मैं सुबह की क्रियाकलापों के साथ ही सबसे पहले आँगन के पेड़ पर चहचहानेवाले पक्षी । को याद करता हूँ ।
उन्हीं की मधुर गुंजन से में जगती हूँ । फिर माँ का हम सबको जगाना, नहा-धोकर तैयार होने के साथ ही माँ के द्वारा बनाया हुआ गरम, स्वादिष्ट और पोष्टिक नाश्ते की याद आए बिना नहीं रहती । घर से बाहर निकलते ही माँ की नसीहतें याद आने लगती हैं, सड़क ध्यान से क्रोस करना, जल्दबाजी मत करना, नाश्ता समय पर कर लेना आदि ।
घर में किसी की तबियत ठीक न होने पर परिवार में सभी सदस्यों की चिंता, आपसी स्नेह, सहकार को कैसे भुलाया जा सकता है । खासकर दादा-दादी के देशी उपचार और माता-पिता की आकुलता-व्याकुलता, भाई-बहनों का आपसी प्यार याद आए बिना नहीं रहता । पास-पड़ोस के लोगों की सद्भावनाएँ और सद्व्यवहार भी याद आता है ।
शाम-सुबेरे दूधवाले की एक खास प्रकार की पुकार | सब्जीवाले की आवाज । गली में बच्चों की अठखेलियाँ । सब रह-रहकर याद आने लगता है । अपने हाथों आँगन । में उगाया हुआ पौधा भी अपनी ओर ध्यान खींचता है, जिज्ञासा बढ़ाता है कि वह कितना विकसित हो गया होगा!
Hindi Digest Std 11 GSEB घर की याद Important Questions and Answers
कविता के साथ
प्रश्न 1.
कवि स्वयं को अभागा क्यों कहता है ?
उत्तर :
कवि स्वयं को इसलिए अभागा कहता है क्योंकि वह जेल में बंद है । सावन के अवसर पर सारा परिवार इकट्ठा हुआ है । वह परिवार के सदस्यों – भाइयों, बहनों और वृद्ध माता-पिता के सांनिध्य से दूर है । उसे उनके प्यार की कमी खल रही है ।
प्रश्न 2.
‘यह तुम्हारी लीक ही है’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
‘यह तुम्हारी लीक ही है’ से तात्पर्य है कि माँ पिता जी को समझाती है कि भयानी तुम्हारे ही आदर्शों पर चलकर जेल गया है । तुम भी भारतमाता को परतंत्र नहीं देख सकते हो । यह भी अंग्रेजी शासन का विरोध करते हुए जेल गया है । यह आपकी ही तो परंपरा है ।
प्रश्न 3.
कवि सावन से अपने माता-पिता को क्या संदेश देने को कहता है ?
उत्तर :
कयि सावन को संबोधित करते हुए कहता है कि देखो, तुम मेरे माता-पिता को सांत्वना देना, उन्हें धैर्य बँधाना और हाँ उनसे कहना कि आपका बेटा जेल में भी लिख रहा है, पढ़ रहा है । काम कर रहा है । ऐसा काम कर रहा है कि उसकी लोक चाहना बढ़ने लगी है । उसका नाम होने लगा है । आप अपने बेटे (भवानी) को लेकर जरा भी चिंता न करें ।
हे हरियाल सावन ! मेरे माता-पिता से यह भी कहना कि मैं बिलकुल मस्त हूँ । रोज सूत कातने में व्यस्त रहता हूँ | मैं भरपेट खाता हूँ । मेरा वजन भी सत्तर सेर का हो गया है । खेलता हूँ, कूदता हूँ, मजे में हैं, किसी बात का दुःख नहीं है । मैं अपने आप में मस्त हैं, मुझे किसी बात की परवाह नहीं । और हाँ, उन्हें यह तो भूल से भी न कहना कि मैं निराश या निरतेज हो गया हूँ। –
निम्नलिखित विकल्पों में से योग्य विकल्प पसंद करके प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।
प्रश्न 1.
‘घर की याद’ कविता के रचनाकार कौन है ?
(a) भवानी प्रसाद मिश्र
(b) दुष्यंतकुमार
(c) निर्मला पुतुल
(d) रामधारीसिंह दिनकर
उत्तर :
(a) भवानी प्रसाद मिश्र
प्रश्न 2.
भवानी प्रसाद मिश्र जी का जन्म कब हुआ था ?
(a) सन् 1913
(b) सन् 1914
(c) सन् 1915
(d) सन् 1916
उत्तर :
(a) सन् 1913
प्रश्न 3.
‘गीत फरोश’, ‘त्रिकाल संध्या’, ‘इंद न मम’, ‘तुस की आग’, ‘कालजयी’ किसकी रचना है ?
(a) निराला
(b) भवानी प्रसाद मिश्र
(c) महादेवी
(d) पंत
उत्तर :
(b) भवानी प्रसाद मिश्र
प्रश्न 4.
भवानी प्रसाद मिश्र को किस कृति के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया ?
(a) अनाम तुम आते हो
(b) बुनी हुई रस्सी
(c) नीली रेखा तक
(d) सन्नाटा
उत्तर :
(b) बुनी हुई रस्सी
प्रश्न 5.
भवानी प्रसाद जी का निधन कब हुआ था ?
(a) 1983
(b) 1984
(c) 1985
(d) 1986
उत्तर :
(c) 1985
प्रश्न 6.
कवि के पिता का नाम क्या था ?
(a) पं. राम जी
(b) पं. लक्ष्मण जी
(c) पं. सीताराम जी
(d) पं. दिनानाथ
उत्तर :
(c) पं. सीतारामजी
प्रश्न 7.
सावन के मौसम में कवि को क्या भीगी आँखों में तैरता सा नजर आने लगता है ?
(a) परिवार
(b) गाँव
(c) माता-पिता
(d) घर
उत्तर :
(d) घर
प्रश्न 8.
कवि कहाँ कैद है?
(a) कमरे में
(b) घर में
(c) शहर में
(d) जेल में
उत्तर :
(d) जेल में
प्रश्न 9.
कवि कितने भाई हैं ?
(a) चार
(b) पाँच
(c) सात
(d) दो
उत्तर :
(b) पाँच
प्रश्न 10.
कवि के घर कौन आई हुई है?
(a) भाभी
(b) बहन
(c) भाँजी
(d) भतीजी
उत्तर :
(b) बहन
प्रश्न 11.
कवि स्वयं को क्या मानता है ?
(a) अभागा
(b) भाग्यशाली
(c) कायर
(d) वीर
उत्तर :
(a) अभागा
प्रश्न 12.
कवि के पिता अपने बेटों को किसके समान मानते हैं ?
(a) चाँदी
(b) लोहा
(c) सोना
(d) पीतल
उत्तर :
(c) सोना
प्रश्न 13.
किसे देखकर कवि को घर की याद आती है ?
(a) बसंत को
(b) शीत ऋतु को
(c) ग्रीष्म ऋतु को
(d) सावन के बादलों को
उत्तर :
(d) सावन के बादलों को
प्रश्न 14.
कवि ने भाइयों को ………. के समाच कर्मशील व बलिष्ठ बताया है ।
(a) भुजाओं
(b) हृदय
(c) मन
(d) कोई नहीं
उत्तर :
(a) भुजाओं
प्रश्न 15.
कवि ने अपनी बहनों को किसका भंडार बताया है।
(a) स्नेह
(b) ममता
(c) खुशियों
(d) दयालु
उत्तर :
(a) स्नेह
प्रश्न 16.
कवि की माँ क्या है ?
(a) निरक्षर
(b) साक्षर
(c) ज्ञान
(d) अज्ञानी
उत्तर :
(a) निरक्षर
प्रश्न 17.
कवि के पिता की आवाज में क्या है ?
(a) गर्जना
(b) मीठास
(c) दहाड़
(d) फुफकार
उत्तर :
(a) गर्जना
प्रश्न 18.
कवि के पिता किसका पाठ करते है ?
(a) रामायण
(b) महाभारत
(c) गीता
(d) कुरान
उत्तर :
(c) गीता
प्रश्न 19.
कवि की कितनी बहनें हैं ?
(a) एक
(b) दो
(c) चार
(d) तीन
उत्तर :
(c) चार
प्रश्न 20.
कवि न रहने पर पिता को अपने चार बेटे कैसे लगते हैं ?
(a) दुःखी
(b) सुखी
(c) वीर
(d) हीन
उत्तर :
(d) हीन
प्रश्न 21.
पिता सोने पर सुहागा किसे मानते हैं ?
(a) भवानी प्रसाद मिश्र
(b) निराला
(c) अज्ञेय
(d) कोई नहीं
उत्तर :
(a) भवानी प्रसाद मिश्र
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए ।
प्रश्न 1.
- भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म सन् ………………. में हुआ था।
- भवानी प्रसाद मिश्र जी के पिता का नाम ………….
- ‘घर की याद’ कविता के कवि………….
- भवानी प्रसाद मिश्र का देहावसान सन् …………. में हुआ था ।
- भवानी प्रसाद मिश्च रचित ………. पहला काव्य-संग्रह है ।
- कवि को …………….. के दौरान घर से विस्थापन की पीड़ा सालती है ।
- …………. को देखकर कवि को घर की याद आती है ।
- कवि ने ………… को भुजाओं के समान कर्मशील व बलिष्ठ बताया है ।
- कवि के पिता पर …………… का प्रभाव नहीं है ।
- कवि के पिता …………… दंड लगाकर मुगदर हिलाते हैं ।
- कवि के चार भाई और …………… बहनें हैं ।
- कवि के पिता जब सभी भाई-बहनों को खड़े या खेलते देखते हैं उन्हें अपने पाँचवें पुत्र ……………. की याद आती है ।
- पिता अपने चार बेटों को ………….. के समान तथा पाँचवें को सुहागा मानते हैं ।
- कवि के पिता को उनकी …………….. सांत्वना देती हैं।
- यदि कवि देश के सम्मान व रक्षा कार्य से अपने कदम पीछे हटा लेता तो …………… लजा जाता।
- कवि ने …………. को यह संदेश देने को कहा कि वह मजे में है, घरवाले उसकी चिंता न करें ।
- बहन के घर आने पर कवि ने घर को ……………. का घर कहा है ।
उत्तर :
- 1913
- पं, सीताराम
- भवानी प्रसाद मिश्र
- 1985
- गीतफरोश
- जेल-प्रवास
- बरसात
- भाईयों
- बुढ़ापे
- दो सौ साठ
- चार
- भवानी
- सोने
- माँ
- माँ की कोख्य
- सावन
- परिताप
सही या गलत बताइए ।
प्रश्न 1.
- ‘घर की याद’ कविता भवानी प्रसाद मिश्र की नहीं है।
- कवि चार बहन और एक भाई हैं ।
- ‘हाय रे परिताप के घर’ कवि बहन के घर आने पर ऐसा कहता है ।
- बरसात के कारण कवि को अपने घर की याद आती है ।
- कवि को माँ का पत्र इसलिए नहीं मिल पाता, क्योंकि वह अनपढ़ हैं, निरक्षर होने के कारण वह पन भी नहीं लिख सकती ।
- पिता को भवानी से बहुत लगाव नहीं था ।
- कवि स्वयं को अभागा कहता है, क्योंकि वह परिवार के सदस्यों, भाइयों, बहनों और वृद्ध माता-पिता के सांनिध्य से दूर है ।
- पिता अपने बेटों को सोने के समान तथा पाँचयें को सुहागा मानते हैं ।
- भवानी के पिता देशभक्त थे, वह ब्रिटिश सत्ता को खत्म करना चाहते थे ।
- माँ पिताजी को समझाती है कि भवानी तुम्हारे ही आदर्शों पर चलकर जेल गया है, तुम भी भारतमाता को परतंत्र नहीं देख्न सकते हो, वह भी
- अंग्रेजी शासन का विरोध करते हुए जेल गया है, यह आपकी ही तो परंपरा है ।
- भवानी का जीवन सुखमय है, क्योंकि वह घर से दूर है ।
- कवि सावन से कहता है कि तुम चाहे जितना बरस लो, लेकिन ऐसा कुछ करो कि मेरे माता-पिता मेरे लिए तरसें तथा आँसू बहाएँ ।
- कवि जेल में लिखता है, पढ़ता है, काम करता है, सूत कातता है तथा खेलता-कूदता है, इस प्रकार कवि दुखों का डटकर मुकाबला करता है।
उत्तर :
- गलत
- गलत
- सही
- सही
- सही
- गलत
- सही
- सही
- सही
- सही
- गलत
- गलत
- सही
अपठित पद्य :
इस कविता को ध्यान से पढ़िए, उस पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।
उठो धरा के अमर सपूतों
पुनः नया निर्माण करो ।।
जन-जन के जीवन में फिर से
नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो ।
नया प्रात है, नई बात है
नई किरण है, ज्योति नई ।
नई उमंगें, नई तरंगें,
नई आस है, सांस नई ।
युग-युग के मुरझे सपनों में
नई-नई मुसकान भरो ।
उठो धरा के अमर सपूतों
पुनः नया निर्माण करो ।। 1 ।।
डाल-डाल पर बैठ बिहग कुछ
नए स्वरों में गाते हैं ।
गुन-गुन, गुन-गुन करते भौरे,
मस्त उधर मडराते हैं ।
नवयुग की नूतन वीणा में
नया राग नव गान भरो
उठो धरा के अमर सपूतों
पुनः नया निर्माण करो ।। 2 ।।
कली-कली खिल रही इधर
फूल-फूल नुष्काया है ।।
धरती माँ की आज हो रही,
नई सुनहरी काया है ।
नूतन मंगलमय ध्वनियों से
गुंजित जन-उधान करो ।
उठो धरा के अमर सपूतों
पुनः नया निर्माण करो ।। 3 ।।
सरस्वती का पावन मंदिर
यह संपत्ति तुम्हारी है।
तुम में से हर बालक इसका
रक्षक और पुजारी है।
शत-शत दीपक जला ज्ञान के
नवयुग का आह्वान करो ।
नूतन मंगल ध्वनियों से
गुंजित जन-उधान करो ।
उठो धरा के अमर सपूतों
पुनः नया निर्माण करो ।। 4 ।।
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
प्रश्न 1.
कवि किनका आह्वान कर रहा है ? और क्यों ?
उत्तर :
कवि ने देश के सपूतों का आह्वान किया है, क्योंकि उसे देश का नवनिर्माण करना है।
प्रश्न 2.
प्रकृति की नूतनता किस रूप में व्यक्त हुई है ?
उत्तर :
प्रातःकाल नया लग रहा है, प्रातः की किरण और ज्योति नई है । लोगों में नई चाह है, नई उमंगें हैं । लोगों में नई आशा जगी है । युगों की गुलामी से जो सपने मुरझा गए थे उनमें नई मुस्कान भरने की बात कवि कर रहा है।
प्रश्न 3.
‘सरस्वति के पावन मंदिर’ का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
सरस्थति के पावन मंदिर से तात्पर्य पाठशालाओं – महाविद्यालयों से है ।
प्रश्न 4.
कवि सपूतों से जन-उद्यान को कैसे गुंजित करवाना चाहता है ?
उत्तर :
कवि सपूतों द्वारा नूतन मंगलमय ध्वनियों से जन-उद्यान को गुंजित कराना चाहता है ।
प्रश्न 5.
इस कविता का उचित शीर्षक दीजिए ।
उत्तर :
उचित शीर्षक – ‘उठो धरा के अमर सपूतों’ रखा जा सकता है ।
घर की याद Summary in Hindi
कवि – परिचय
नाम – भवानी प्रसाद मिश्र
जन्म – सन् 1913, टिगरिया गाँव, जि. होशंगाबाद (म. प्र.)
प्रमुख रचनाएँ :
- गीत फरोश
- चकित है दुःख (1968)
- अंधेरी कविताएँ (1968)
- गाँधी पंचशती (1969)
- बुनी हुई रस्सी (1984)
- खुशबू के शिलालेख
- त्रिकाल संध्या (1976)
- व्यक्तिगत (1974)
- परिवर्तन जिए (1985)
- अनाम तुम आते हो (1985)
- इंद न मम (1984)
- शरीर, कविता, फसलें और फूल
- मानसरोवर दिन
- नीली रेखा तक (1984)
- तुस की आग (1985)
- कालजयी (1986)
- सतपुड़ा के जंगल
- सन्नाटा
- संप्रति (1982)
- तुकों के खेल (बाल साहित्य)
- जिन्होंने मुझे (संस्मरण)
- कुछ नीति कुछ राजनीति (निबंध) (1983)
पुरस्कार :
भवानी प्रसाद मिश्र को ‘बुनी हुई रस्सी’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किये गये । सन् 1981-82 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के ‘संस्थान सम्मान’ से सम्मानित हुए । 1983 में मध्य प्रदेश शासन के ‘शिखर सम्मान’ से सम्मानित किये गये । दिल्ली प्रशासन का गालिब पुरस्कार एवं पद्मश्री से अलंकृत ।
मृत्यु – सन् 1985 (20 फरवरी)
भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च, 1913 को मध्यप्रदेश में होशंगाबाद जिले के टिगरिया गाँव में हुआ था । उसके पितामह बुन्देलखंड के हमीर नामक कस्बे से मध्यप्रदेश में आये थे । उनकी जीविका मंदिर में पूजा करके चलती थी । उनके पाँच बेटे थे, बेटी एक भी नहीं थी । कवि के पिता पं. सीतारामजी सबसे छोटे भाई थे ।
वे और उनसे बड़े दो भाइयों ने अंग्रेजी शिक्षा पाई, बाकी के. तीनों बड़े भाइयों को पितामह ने संस्कृत का ही अभ्यास कराया । पिता जी को सबसे बड़े भाई वेणीमाधव युवावस्था में ही पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद विरक्त हो गए थे । बचपन में भवानी प्रसाद ने अंग्रेजी स्कूल में प्रवेश ले लिया और क्रमशः सोहागपुर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर में अध्ययन किया ।
सन् 1934 में बी. ए. पास कर लिया । बकौल भवानी प्रसाद ‘बचपन में पशुओं के आत्मीय भाव के कारण उनकी लीलाभूमि अर्थात् प्रकृति को भी बचपन से ही उसके वत्सल रूप में देखा । हरे-भरे खुले मैदान, जंगल या पहाड़, झरने और नदियाँ इन्हीं के तुफैल से मेरे बने ।’
‘कई बार तो स्कूल चुकाकर गायें चराने निकल जाता था । उन दिनों खेलों में गुल्ली-डंडा में ठीक खेलता था । चकरी और भौंरा भी खेलता था किन्तु उस में सफाई नहीं सधी थी । स्कूल में होनेवाले खेलों में दिलचस्पी नहीं थी।’
कवि कहता है युवा होते ही राजनीति के क्षेत्र में मेरी दिलचस्पी बढ़ी । परंतु मैं राजनीति के क्षेत्र में अंग्रेज सरकार से लड़ाई के दिनों तक ही रहा । स्वतंत्रता पाने की हद तक हाथ बँटाना मेरी विवशता थी । उसके बाद राजनीतिज्ञों पर निगाह जरूर रखता रहा और उनके काम मुझे तकलीफ देते रहे, उन्हें गलत कामों से विरत भी नहीं कर पाया । अनेक राजनीतिज्ञ मित्र गलत राजनीति के खिलाफ लड़ते रहें, मैं उसमें भी नहीं पड़ा लेकिन लिखने के माध्यम से जो कर सकता था वही किया ।
मैंने माना कि कविता लिखना और राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय रूप में लड़ते रहना, साथ-साथ नहीं चल सकता । राजनीति के क्षेत्र गाँधी की राजनीति की तरह त्याग और साफ-सुथरेपन का क्षेत्र होता तो कविता वहाँ भी निखर सकती थी किन्तु जब भारत की राजनीति भी संसार की तरह ही बनी रही तो मैं उसे अपना क्षेत्र कैसे मानता ?
गाँधीजी के विचारों के अनुसार देने के विचार से भवानी प्रसादजी ने एक स्कूल शुरू किया । सन् 1942 के आंदोलन में गिरफ्तार हुए । 1945 में मुक्त हए । उसी वर्ष महिलाश्रम वर्धा में शिक्षक के रूप में गये और पाँच साल वर्धा में बिताए । उन दिनों असहयोग आंदोलन का सिलसिला जारी था । कवि लिखते है कि ‘मेरा जीवन बहुत खुला-खुला बीता है ।
किसी बात की तंगी मैंने महसूस नहीं की । थोड़े में आनंद के साथ जीना दरिद्रता ब्राह्मण परिवार से विरासत में मिला । इसीलिए ज्यादा पढ़-लिखकर पैसा कमाने की इच्छा भी मन में नहीं जागी । एक छोटा-सा स्कूल चलाकर आजीविका प्रारंभ की और जब वह स्कूल सरकार ने छीन लिया तो उसकी छाया ‘ में चला गया जो दुनिया के लिए छाया सिद्ध हुआ है । चार साल स्नेह और मुक्ति से भरे वर्धा के वातावरण में रहा । जीषिका के लिए कई स्थानों पर घूमता रहा ।’
कवि का कविताएँ लिखना लगभग सन् 1930 से नियमित प्रारंभ हो गया था । कुछ कविताएँ पंडित ईश्वरीप्रसाद शर्मा के संपादकत्व में निकलनेवाले “हिंदूपंच’ में प्रकाशित हो चुकी थी । उनके आदर्श कवि एक नहीं अनेक है । जिनमें हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, मराठी और बंगला के नये पुराने अनेक नाम शामिल हो जाते हैं । हिन्दी में तुलसी, कबीर, सर्वाधिक प्रिय रहे । संस्कृत के कालिदास एवं बंगल तो रवीन्द्रनाथ को पढ़ने के लिए ही सीखी । मराठी में ज्ञानेश्वर और तुकाराम विशेष प्रिय रहे ।
कविता और साहित्य के साथ-साथ राष्ट्रीय आंदोलन में जिन कवियों की सक्रिय भागीदारी थी उनमें ये प्रमुख हैं । गाँधीवाद पर आस्था रखनेवाले मिश्रजी ने गाँधी वाड्मय के हिन्दी खंड़ों का संपादन कर कविता और गाँधीजी के बीच सेतु का काम किया । भवानी प्रसाद मिश्र की कविता हिन्दी की सहज लय की कविता है । इस सहजता का संबंध गाँधी के चरख्ने की लय से भी जुड़ता है ।
इसीलिए उन्हें कविता का गाँधी भी कहा गया है । मिश्र जी की कविताओं में बोल-चाल के गद्यात्मक से लगते वाक्य-विन्यास , को ही कविता में बदल देने की अद्भुत क्षमता है । इसी कारण उनकी कविता सहज और लोक के अधिक करीब है । भवानी प्रसाद मिश्र जिस किसी विषय को उठाते हैं उसे घरेलू बना लेते है – आँगन का पौधा, शाम और दूर दिखती पहाड़ की नीली चोटी भी जैसे परिवार का एक अंग हो जाती है ।
वृद्धावस्था और मृत्यु के प्रति भी एक आत्मीय स्वर मिलता है । उन्होंने प्रौढ़ प्रेम की कविताएँ भी लिखी हैं जिनमें उद्दाम श्रृंगारिकता की बजाय सहजीवन के सुख-दुःख और प्रेम की व्यंजना है । नई कविता के दौर के कवियों में मिश्रजी के यहाँ व्यंग और क्षोभ भरपूर है किन्तु वह प्रतिक्रियापरक न होकर सृजनात्मक है ।
‘घर की याद’ शीर्षक कविता में कवि ने अपने जेलवास के दरमियान घर और परिवार से जुड़ी यादों को संजोया है । बारिश हो रही है, कवि जेल में है । कवि का ध्यान सहज ही अपने घर और परिवार के एक-एक सदस्य से गुजरती है और उनसे जुड़े अपने – आत्मीय पारिवारिक संबंधों को कुरेदने लगती है । भाई, बहन, माँ, पिता को याद करते हुए कवि सावन को संबोधित करते हुए उससे यह विनय करते हैं कि तुम बरस लो मगर वे (परिवारजनों की आँखें) मेरे लिए न बरसें न तरसें ।
काव्य का सारांश ‘घर की याद’ कविता में घर के मर्म को बखूबी उकेरा गया है । मकाँ नहीं ‘घर’ की अवधारणा की मार्मिक तथा सार्थक अभिव्यक्ति इस कविता का केन्द्रीय भाव-संवेदन है । स्वाधीनता संघर्ष के दौरान कारावास भोग रहे कवि को सावन की वर्षावाली एक रात में घर से दूर रहने की वेदना कचोटती है ।
कवि के स्मृति-विश्व में एक-एक करके उसके सभी परिजन-भाई, बहन, माता-पिता शामिल होते चले गए हैं । कवि सावन से निवेदन करते हैं कि वह वहाँ जाने पर उसके परिवार जनों को उसके दुख के विषय में कुछ भी न बताए । कालिदास के ‘मेघदूत’ का यह एक भिन्न अवतरण है।
काव्य का भावार्थ :
घर की याद आज पानी गिर रहा है, बहुत पानी गिर रहा है, रात भर गिरता रहा है, प्राण मन घिरता रहा है, बहुत पानी गिर रहा है, घर नज़र में तिर रहा है, घर कि मुझसे दूर है जो, घर खुशी का पूर है जो । प्रस्तुत कविता में कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने 1942 के भारत आंदोलन के जेलवास की यादों को संजोया है । बरसात का मौसम है ।
पानी बरस रहा है । बहुत पानी बरस रहा है । रात-भर बारीश होती रही है । रात-भर कवि का मन घर की यादों से घिर जाता है । रात-भर लगातार बरसात होने से एक दर्दनाक खामोशी चारों तरफ घिर गई है । घनघोर बरसात, दूर छूटे हुए घर की याद से कवि एक अजीब प्रकार का अकेलापन महसूस करता है । उसके मन को घर और परिवार से जुड़ी हुई यादें एक-एक करके घेर लेती हैं ।
कवि को अपना घर भीगी आँखों में तैरता सा नजर आने लगता है । मगर क्या करे कवि लाचार हैं, वह बन्दी है और घर बहुत दूर है । घर कि जिसमें खुशियाँ ही खुशियाँ है । कवि को अपने परिवार के संग बिताए खुशियों क्षण रह-रहकर याद आते हैं।
घर कि घर में चार भाई,
मायके में बहिन आई,
बहिन आई बाप के घर,
हाय रे परिताप के घर !
कवि को अपने चार भाइयों ओर पीहर में आई हुई अपनी बहन की भी याद आती है । विवाहिता बहन अपने ससुराल के दुष्पा के कारण पिता के घर आई है । और इधर उसका पाँचवाँ भाई (कवि भवानी प्रसाद मिश्र) भी घर पर नहीं है, जेल-वास भोग रहा है । इसीलिए कयि ने बहन की मनोव्यथा व्यक्त करते हुए लिखा है, “हाय रे परिताप के घर ।” यहाँ ‘हाय’ शब्द कवि और उसकी बहन दोनों के हृदय की पीड़ा को व्यक्त करता है ।
घर कि घर में सब जुड़े हैं,
सब कि इतने कब जुड़े हैं,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें,
और माँ बिन-पढ़ी मेरी,
दुख में वह गढ़ी मेरी
माँ कि जिसकी गोद में सिर,
रख लिया तो दुख नहीं फिर,
माँ कि जिसकी स्नेह-धारा,
का यहाँ तक भी पसारा,
उसे लिखना नहीं आता,
जो कि उसका पत्र पाता ।
कवि घर की याद करते हुए अपने मन में एक दृश्य उभारने लगता है । उसे लगता है कि घर में सब आए हुए है, सब एकत्रित हुए है । वह सोचता है कि इतने प्रेमानुराग से अपने भाई-बहन, माता-पिता आदि पहले कभी नहीं जुड़े थे । चार भाई और बहने जो कि प्यार के प्रतीक है और भाई आपसी संगठन शक्ति और बाबुओं की ताकत का प्रतीक है ।
माँ अनपढ़ है मेरे दुख से वह परेशान होगी । माँ तो माँ होती है ! बस उसकी गोद सिर रख दो तो मन तमाम प्रकार की आधि-व्याधि-उपाधि से मुक्त हो जाता है । वह माँ से बहुत दूर है फिर भी महसूस करता है कि माँ की ममता की धारा दूर देश में भी उसके अन्तर्मन में अन्तासलिला की भाँति बह रही है । माँ अनपढ़ है, पत्र नहीं लिख सकती तो क्या हुआ ? कवि माँ की सारी भावनाओं को महसूस करता है ।
पिता जी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
जो अभी भी दौड़ जाएँ,
जो अभी भी खिलखिलाएँ,
मौत के आगे न हिचकें,
शेर के आगे न बिचकें,
बोल में बादल गरजता,
काम में झंझा लरजता,
आज गीता पाठ करके,
दंड़ दो सौ साठ करके,
खूब मुगदर हिला लेकर,
मूठ उनकी मिला लेकर ।
अपने भाईयों – बहनों और माँ को याद करके कवि को अपने पिता की याद सहज ही आ जाती है । कवि की स्मृतिपटल पर अपने स्वस्थ, तंदुरस्त पिता जो कि बुढ़ापे से दूर है अर्थात् बूढ़े होने के बावजूद चे अब भी दौड़ लेते है, खिलखिलाते हैं, मौत से भी नहीं डरते, वे बोलते है तो ऐसा लगता है कि जैसे बादल गरजता है, जरा भी आलस नहीं, किसी भी काम में स्फूर्ति दिखाते है, आज भी नियमित गीतापाठ करते हैं, दो सौ – तीन सौ दंड-बैठकें पेलना उनकी दिनचर्या का एक अनिवार्य हिस्सा है, मुगदर चलाना, मुट्ठियाँ मिला-मिलाकर अपने कसरती शरीर-सौष्ठव को बनाए रखना, अपनी मांस-पेशियों को मजबूत करते रहना उनके रोज का क्रम है।
जब कि नीचे आए होंगे,
नैन जल से छाए होंगे,
हाय, पानी गिर रहा है,
घर नज़र में तिर रहा है,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें,
खेलते या खड़े होंगे,
नज़र उनको पड़े होंगे ।
पिता जी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
रो पड़े होंगे बराबर,
पाँचवें का नाम लेकर ।
कवि मन ही मन सोच रहा है कि उसके पिता अब पूजा-पाठ करके नीचे उतरे होंगे । अपने नौ बच्चों में से (चार भाई – चार बहन) जब पाँचवें को (भवानी को) न देखकर किस कदर रो पड़े होंगे ? हाय पानी घिर रहा है, तेज बरसते बरसात में कवि को अपना घर नज़र के समक्ष तिरने लग जाता है । पिता को उनके चार बेटे और चार बेटियाँ खेलते हुए नज़र पड़े होंगे मगर पाँचवें को न पाकर बराबर रो पड़े होंगे – वे पिता जो किसी से डरते नहीं । पिता लाजवश खुलकर रो भी न पाये होंगे । अंदर ही अंदर कसमसाते और छटपटाते रहे होंगे ।
पाँचवाँ मैं हूँ अभागा,
जिसे सोने पर सुहागा,
पिता जी कहते रहे हैं,
प्यार में बहते रहे हैं,
आज उनके स्वर्ण बेटे,
लगे होंगे उन्हें हेटे,
क्योंकि मैं उन पर सुहागा,
बँधा बैठा हूँ अभागा,
और माँ ने कहा होगा,
दुःख कितना बहा होगा,
आँख में किस लिए पानी,
वहाँ अच्छा है भवानी ।
कवि अपने आप को अभागा बतलाता है, जब कि पिताजी उसे बेहद चाहते थे और उसे सोने पर सुहागा अर्थात् सभी बेटों में सर्वश्रेष्ठ बतलाते हुए अपना प्यार व्यक्त करते थे । मगर आज उनके सोने सरीखे बेटे उन्हें तुच्छ लगे होंगे क्योंकि उनका प्यारा बेटा तो जेल में बन्द है । पिता की पीड़ा को समझते हुए माँ ने समझाने की कोशिश की होगी । कठोर और ठोस मनोबलवाले पिता की आँखों में आँसू देखकर माँ ने कहा होगा – “अरे ! आपकी आँखों में आँसू ! भवानी तो वहाँ बहुत अच्छी तरह से हैं । उसकी चिंता करने की आवश्यक्ता नहीं है ।”
वह तुम्हारा मन समझकर,
और अपनापन समड़ाकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,
पाँव जो पीछे हटाता,
कोख को मेरी लज़ाता,
इस तरह होओ न कच्चे,
रो पड़ेंगे और बच्चे,
पिता जी ने कहा होगा,
हाय, कितना सहा होगा,
कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
घीर मैं खोता, कहा हूँ ।
प्रस्तुत काव्यांश में कवि की माँ उसके पिता को समझाते हुए कह रही है कि भवानी गया है, तो अच्छा ही है । उसने आपकी सोच और अपने परिवार की परंपरा के अनुसार ही कार्य किया है । यदि वह ऐसा न करता तो अपने दायित्व से मुँह मोड़ लेता । उसकी पीछेहठ से तो मेरी कोख लजाती । मैं उस पर गर्व कैसे करती ? जैसे कि आज कर रही हूँ ।
आप मन को कमजोर न करें । आपके इस कदर हिम्मत हारने से तो बच्चों पर क्या गुजरेगी ? जरा उनका ख्याल करके हिम्मत रखो । पिता जी की धीरज के सारे बंधन टूट जाने के बावजूद वे अपने आपको सँभालते हुए माँ से कहते हैं कि – ‘अरे पगली ! मैं रोता कहाँ हूँ और न ही अपना धैर्य खो रहा हूँ ।’ ऐसा कहते हुए उनके मन पर क्या बीती होगी, यह तो पिता ही जानते हैं ।
हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवें को वे न तरसें,
मैं मजे मैं हूँ सही है,
घर नहीं हूँ बस यही है,
किंतु यह बस बड़ा बस है,
इसी बस से सब विरस है ।
यहाँ कवि सावन के महीने को संबोधित करते हुए कहता है कि ‘हे सजीले हरे सावन ! तुम अत्यंत पुण्य और पवित्र हो । तुम चाहे जितना बरसो मगर यह ध्यान रखना ‘वे न बरसे’ अर्थात् मेरे माता-पिता मेरी याद में न रोये, न बिलख्खे । वे पाँचवें (कवि भवानी) के लिए न तरसे । उनसे कहना कि मैं यहाँ बेहद मजे हूँ । बस अपने घर पर सभी के संग न होकर यहाँ उनसे दूर हूँ । कवि स्वघर और स्वजनों के वियोग को नगण्य समझ रहा है । दरअसल यह कोई साधारण घटना नहीं है । इस दर्द को तो वही महसूस कर सकता है जिसने इस बिछोह को भोगा हो ।
किंतु उनसे यह न कहना,
उन्हें देते धीर रहना,
उन्हें कहना लिख रहा हूँ,
उन्हें कहना पड़ रहा हूँ,
काम करता हूँ कि कहना,
नाम करता हूँ कि कहना,
चाहते हैं लोग कहना,
मत करो कुछ शोक कहना ।
कवि फिर सावन को संबोधित करते हुए कहता है कि देखो, तुम मेरे माता-पिता को सांत्वना देना, उन्हें धैर्य बँधाना और हाँ उनसे कहना कि आपका बेटा जेल में भी लिख रहा है, पढ़ रहा है । काम कर रहा है । ऐसा काम कर रहा है कि उसकी लोकचाहना बढ़ने लगी है । उसका नाम होने लगा है । आप अपने बेटे (भवानी) को लेकर जरा भी चिंता न करें ।
और कहना मस्त हूँ मैं,
कातने में व्यस्त हूँ मैं,
वजन सत्तर सेर मेरा,
और भोजन ढेर मेरा,
कूदता हूँ, खेलता हूँ,
दुख डट कर ठेलता हूँ,
और कहना मस्त हूँ मैं,
यों न कहना अस्त हूँ मैं ।
हे हरियाले सावन ! मेरे माता-पिता से यह भी कहना कि मैं बिलकुल मस्त हूँ । रोज सूत कत्तने में व्यस्त रहता हूँ | मैं भरपेट खाता हूँ । मेरा वजन भी सत्तर सेर का हो गया है । खेलता हूँ, कूदता हूँ, मजे में हैं, किसी बात का दुख नहीं है । मैं अपने आप में मस्त हूँ, मुझे किसी बात की परवाह नहीं । और हाँ, उन्हें यह तो भूल से भी न कहना कि मैं निराश या निस्तेज हो गया हूँ ।
हाय रे, ऐसा न कहना,
है कि जो वैसा न कहना,
कह न देना जागता हूँ,
आदमी से भागता हूँ,
कह न देना मौन हूँ मैं,
खुद न समझू कौन हूँ मैं,
देखना कुछ बक न देना,
उन्हें कोई शक न देना,
हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो ये न बरसें,
पाँचवें को वे न तरसे ।
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने जेलवास की यातनाओं, खामोशीपन, एकांत की पीड़ा आदि मनास्थितियों को अपने परिजनों से छिपाना चाहता है । इसीलिए वह सावन को अच्छी तरह से सब-कुछ समझा देना चाहता है कि – देखो, मेरी यहाँ की जो स्थितियाँ हैं उधर किसी से कह न देना ।
उनकी याद में रात-रात भर जागता हूँ, किसी भी आदमी से बात करना मुझे अच्छा नहीं लगता, खामोशियों में बंद ज्वालामुखी की तरह मौन रहता हूँ, मैं कुछ तय नहीं कर पा रहा हूँ कि क्या करूँ – क्या न करूँ ? ऐसा कुछ भी तुम वहाँ बक न देना ? कोई भी ऐसी बात वहाँ न करना कि उन्हें मेरी चिंता होने लगे या किसी अनहोनी की शंका होने लगे ।
इसलिए हे हरियाले सावन ! हे पुण्य और पवित्र सावन ! तुम जी भर के बरस लो मगर याद रहे वे (मेरे माता-पिता) अपने पाँचवें बेटे के लिए न तरसें ? उन्हें न मेरी याद आये और न ही उनकी आँखों में आँसू बरसे ।’
शब्दार्थ :
- नजर में तिर रहा है – आँखों में तैर रहा है, स्मृति
- परिताप – अत्यधिक सुख / कष्ट
- हेठे – गोण, हीन, तुच्छ
- पूर हे जो – यह घर जो परिपूर्ण है यानी खुशियों से भरापूरा है
- नवनीत – मक्खन
- लीक – परंपरा
- गिर रहा – बरसना
- खुशी का पूर – खुशी की बाढ़
- स्नेह – प्रेम
- पत्र – चिट्ठी
- खिलखिलाएँ – खुलकर हँसना
- बिचकें – डरें, सकुचाएँ, नाराज हों
- लरजना – काँपना
- मुगदर – व्यायाम करने का उपकरण
- तिर – तैरना
- प्यार में बहना – भाव-विभोर होना
- पाँव पीछे हटाना – कर्तव्य से हटना
- कच्चे – कमजोर
- पुण्य पावन – अति पवित्र
- विरस – रसहीन, फीका
- शोक – दुःख
- मस्त – अपने में मग्न रहना
- मौन – चुपचाप
- शक – संदेह
- नजर – निगाह, नेत्र
- गढ़ी – डूबी
- पसारा – फैलाव
- व्यापा – फैला हुआ
- हिचकें – संकोच करना
- झंझा – तूफान
- दंड – व्यायाम का तरीका
- मूट – पकड़ने का स्थान
- क्षण – पल
- सोने पर सुहागा – वस्तु या वक्ति का दूसरों से बेहतर होना
- स्वर्ण – सोना
- कोख को लजाना – माँ को लज्जित करना
- धीर खोना – धैर्य खोना
- बस – नियंत्रण, केवल
- धीर – धैर्य
- डटकर ढेलना – तल्लीनता से हटाना
- अस्त – निराश
- बक देना – फिजूल की बात कहना
मुहावरों का अर्थ लिखिए –
- घर का नजर में तिरना – घर की बहुत याद आना
- दुःख में गढ़ना – दुःख में डूबना
- सोने पे सुहागा होना – बहुत अच्छा
- पाँव पीछे हटाना – हिम्मत हारना, कायरता दिखाना
- लीक पर चलना – परंपरा का निर्वाह करना
- कोन लजाना – माँ को लज्जित करना
- कच्चा होना – कमजोर होना
- डटकर ठेलना – डटकर मुकाबला करना
- अस्त होना – डूबना, समाप्त होना