Gujarat Board GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 4 विदाई-संभाषण Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 4 विदाई-संभाषण
GSEB Class 11 Hindi Solutions विदाई-संभाषण Textbook Questions and Answers
अभ्यास
पाठ के साथ :
प्रश्न 1.
शिवशंभु की दो गायों की कहानी के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
शिवशंभु की दो गायों की कहानी के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि भारत में बिछड़ते समय बड़ा पवित्र, बड़ा निर्मल और कोमल भाव होता है। बिछुड़ने पर लोग दुःखी हो जाते हैं। यह भाव मनुष्यों में ही नहीं पशु-पक्षियों में भी देखने को मिलता है। इसलिए बलशाली गाय दुर्बल गाय को मारती थी, उसे गिरा देती थी फिर भी मारनेवाली गाय को पुरोहित को दे दिया तो दुर्बल गाय ने घास-चारा को छुआ तक नहीं।
प्रश्न 2.
आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आपने जरा भी ध्यान नहीं दिया – यहाँ किस ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर :
यहाँ बंग-भंग (बंगाल विभाजन) की ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया है। लॉर्ड कर्जन ने क्रांतिकारी घटनाओं को रोकने के लिए कूटनीति अपनाते हुए बंगाल विभाजन कर दिया। पूर्व और पश्चिमी बंगाल जनता ने बहुत विरोध किया और प्रार्थना की परंतु लॉर्ड कर्जन ने अपनी जिद नहीं छोड़ी।
प्रश्न 3.
कर्जन को इस्तीफा क्यों देना पड़ गया ?
उत्तर :
कर्जन को निम्नलिखित कारणों से इस्तीफा देना पड़ गया।
लार्ड कर्जन के बंगभंग के कारण भारतीय उनके विरुद्ध खड़े हो गये और भारत में अशांति फैल गयी। लार्ड कर्जन का घोर, विरोध हुआ।
लॉर्ड कर्जन एक फौजी अफसर को अपनी इच्छा के पद पर रखना चाहते थे, पर ब्रिटिश सरकार ने उनकी बात नहीं मानी इसलिए उन्होंने गुस्से में इस्तीफा दे दिया।
प्रश्न 4.
विचारिए तो क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गयी। कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे ! आशय
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों बालमुकुंद गुप्त द्वारा लिखित शिवशंभु के चिट्ठे के विदाई-संभाषण में से ली गई हैं। जिसमें लॉर्ड कर्जन को भारत में जितना सम्मान और शान-शौकत भोगने मिली, वैसी किसी अन्य शासक को नहीं मिली। राजा के दाहिनी ओर कर्जन और उसकी लेडी को सोने की कुर्सी पर बैठाया जाता। सभी रईस उन्हें सलाम ठोकते। राजा एक इशारे पर हाजिर हो जाते। जुलुस में सबसे ऊँचा हाथी और सबसे आगे होता था।
हौदा, चेवट, छत्र सबसे बढ़-चढ़कर थे। इनके एक इशारे पर देश के धनीमानी लोग हाथ बांधे खड़े रहते थे। ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद इस देश में इन्हीं का एक दर्जा था, परंतु इस्तीफा देने के बाद सब कुछ खत्म हो गया। लार्ड कर्जन की सिफारिश पर एक आदमी भी नहीं रखा गया। जिद के कारण इतना सारा वैभव नष्ट हो गया। इस प्रकार कहा गया कि आप विचारिए तो क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गयी। कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे।
प्रश्न 5.
आपके और यहाँ के निवासियों के बीच में कोई तीसरी शक्ति और भी है – यहाँ तीसरी शक्ति किसे कहा गया है ?
उत्तर :
आपके और यहाँ के निवासियों के बीच तीसरी शक्ति ब्रिटिश सरकार है, जो लॉर्ड कर्जन और भारत के निवासियों को नियंत्रित कर रही है। जिसके सामने भारत के निवासियों की बात तो अलग लॉर्ड कर्जन भी निरीह हैं। उस शक्ति के सामने किसी की भी नहीं चलती है। दोनों की स्थिति एक जैसी है।
पाठ के आस-पास :
प्रश्न 1.
पाठ का यह अंश शिवशंभु के चिट्ठे से लिया गया है। शिवशंभु नाम की चर्चा पाठ में भी हुई है। बालमुकुन्द गुप्त ने इस नाम का उपयोग क्यों किया होगा ?
उत्तर :
भारत के लोगों को ब्रिटिश शासक का विरोध करने की आजादी नहीं थी। इसलिए बालमुकुन्द गुप्त ने शिवशंभु नामक काल्पनिक पात्र का सहारा लेकर शासन की पोल खोलने की युक्ति खोज निकाली। शिवशंभु सदा भाँग के नशे में मस्त रहता तथा सबके सामने खरी-खरी बातें कहता और ब्रिटिश शासन की बखिया उधेड़ता जो शिवशंभु के चिट्ठे के नाम से जनता तक पहुँचता था। इस प्रकार गुप्तजी ने शिवशंभु नामके पात्र से ब्रिटिश शासन का विरोध किया।
प्रश्न 2.
नादिर से भी बढ़कर आपकी जिद है – कर्जन के संदर्भ में क्या आपको यह बात सही लगती है ? पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर :
हाँ, हम इस तर्क के पक्ष में हैं क्यों कि नादिरशाह ने दिल्ली में कत्लेआम करवाया था। परंतु आसिफ जाह के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर उसने कल्लेआम उसी समय रोक दिया। परंतु लॉर्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन की जिद की थी। आठ करोड़ जनता ने प्रार्थना की फिर भी उसने अपनी जिद नहीं छोड़ी। इस प्रकार लॉर्ड कर्जन की जिद नादिर से भी बढ़कर है।
प्रश्न 3.
क्या आँख बंद करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ न सुनने का नाम ही शासन है ? इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए शासन क्या है ? इस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर :
शासन का अर्थ है – सुव्यवस्था या प्रबंध। शासन व्यवस्था में शासक और प्रजा दोनों की भागीदारी होती हैं। प्रजा की अपनी बात कहने का पूरा अधिकार होता है। शासन का अपनी प्रजा के प्रति उत्तरदायित्व होता है उसका विकास करे, उसे सुख-सुविधा प्रदान करवाये। इसी प्रकार जनता का भी अपने शासन के प्रति कर्तव्य होता है कि उसे उसकी व्यवस्था में सहयोग दे।
परंतु इस पाठ में लॉर्ड कर्जन शासक है। वह भारतीय प्रजा की अनसुनी करके शासन चलाता है। उसने प्रजा को दुःख ही दिया है। जितनी भी योजनाएँ या कार्य किये जाते वे ब्रिटिश हित में ही होते है। उन्होंने आठ करोड की प्रजा की बात की अनसुनी करके बंगाल विभाजन की जिद की। इस प्रकार पाठ में जनता तो सकारात्मक है परंतु शासन अपने कर्तव्य से विमुख है।
प्रश्न 4.
इस पाठ में आए अलिफ लैला, अलहदीन, अबुल हसन और बगदाद के खलीफा के बारे में सूचना एकत्रित कर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी स्वयं प्रवृत्ति करेंगे। जिसमें शिक्षक का सहयोग ले सकते हैं।
गौर करने की बात :
क. इससे आपका जाना भी परंपरा की चाल से कुछ अलग नहीं है। तथापि आपके शासनकाल का नाटक घोर दुखांत है, और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरम्भ किया था, वह दुखांत हो जायेगा।
सूचना : प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से विद्यार्थी स्वयं विचार करें और शिक्षा (सीख) लेने का प्रयत्न करें।
जैसे : लॉर्ड कर्जन को भारत का दो बार वायसराय बनाया गया। भारत की प्रजा को इतना कष्ट इतना दुख दिया कि भारत के निवासी कभी भी इच्छित नहीं करते थे कि वे आएँ।
उन्होंने यहाँ आकर ऐसी नीति-योजनाएँ बनाई जिससे ब्रिटिश शासन को लाभ हुआ और भारतीय प्रजा को दुःख। जिसने लार्ड कर्जन को इतनी शानो-शौकत दी इतना सम्मान दिया। उसने क्या दिया दुःख, बंग विभाजन की जिद। प्रजा की एक भी नहीं सुनी इस अहंकार में थे कि हम यहाँ से नहीं जाएँगे। परंतु परिणाम क्या आया जिसके (ब्रिटिशों) के लिए काम किया उसी ने उनकी एक भी नहीं सुनी। उनके आदमी को नौकरी पर नहीं रखा।
गुस्से में इस्तीफा दे दिया। उसे ब्रिटिश सरकार ने स्वीकार भी कर लिया। इस प्रकार समय के साथ सब कुछ बदल जाता है। इसलिए हमें अपने कर्तव्य को भूलना नहीं चाहिए। क्योंकि अंत तो सब का होना है। इसलिए अहंकार, मद, सत्ता को त्याग देना चाहिए।
ख. यहाँ की प्रजा ने आपकी जिद्द का फल यहीं देख्न लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिद्द ने इस देश की प्रजा को पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहाँ तक कि आप स्वयं उसका शिकार हुए।
सूचना : प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से विद्यार्थी स्वयं विचार करें और शिक्षा (सीख) लेने का प्रयत्न करें।
उदाहरणस्वरुप : मनुष्य को उसके कर्मों का फल यहीं मिल जाता है। अच्छे हों या बुरे। लॉर्ड कर्जन ने अपनी जिद्द के कारण बंगाल विभाजन का विचार किया। जिससे यहाँ की प्रजा को दुःख हुआ। आक्रोशित प्रजा के कारण अशांति फैल गयी।
जिस जिद्द के कारण यहाँ की प्रजा पीड़ित हुयी उसी जिद्द ने आपको भी वायसराय के पद से हटवा दिया। अपने जाल में अपने ही फँस गये। इस प्रकार हमें यहाँ सीख लेना चाहिए कि दूसरों के लिए कुआँ खोदनेवाला खुद उसमें गिर सक्ता है।
भाषा की बात :
प्रश्न 1.
वे दिन-रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान यहाँ से पधारें। सामान्य तौर पर आने के लिए पधारे शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। यहाँ पधारे शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
यहाँ पधारें शब्द का अर्थ है – सिधारें या जाएँ (विदा हों) आने के बजाय जाने के रूप में उपयोग किया गया है।
प्रश्न 2.
पाठ में से कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं, जिनमें भाषा का विशिष्ट प्रयोग (भारतेंदु युगीन हिंदी) हुआ है। उन्हें सामान्य हिन्दी में लिखिए –
क. आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत को उनको जाना पड़ा।
उत्तर :
पहले भी इस देश में जो प्रधान शासक हुए, उन्हें अंत में जाना पड़ा।।
ख. आप किस को आए थे और क्या कर चले ?
उत्तर :
आप किसलिए आए थे और क्या करके चले ?
ग. उनका रखाया एक आदमी नौकर न था।
उत्तर :
उनके रखवाने से एक आदमी नौकर न रखा गया।
घ. पर आशीर्वाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से लाभ करे।
उत्तर :
पर आशीर्वाद देता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त करें।
Hindi Digest Std 11 GSEB विदाई-संभाषण Important Questions and Answers
अतिरिक्त प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए :
प्रश्न 1.
‘बिछुड़न के समय बड़ा करुणोत्पादक होता है।’ समझाइए।
उत्तर :
बिछुड़न के समय मनुष्य निर्मल, पवित्र और बड़ा कोमल हो जाता है। यह समय ऐसा होता है, कि आपसे घृणा-नफरत करनेवाले भी प्रेम करने लगते हैं। इसे बालमुकुन्द गुप्त ने लॉर्ड कर्जन के विदाई-संभाषण में व्यक्त किया है। भारतीय प्रजा लॉर्ड कर्जन के आगमन से खुश नहीं थी। उसकी इच्छा थी कि वह कब चले जायें। लॉर्ड कर्जन ने भी भारतीय निवासियों को दुख देने में कुछ भी कमी नहीं की।
उनकी एक नहीं सुनी थी। परंतु लॉर्ड कर्जन ने जब इस्तीफा दे दिया तो वे यहाँ से जाने लगे, तब यहाँ के लोग दुःखी हो गये। लेखक ने स्पष्ट किया है कि हमारी संस्कृति कृतज्ञता की संस्कृति है। मनुष्य तो छोड़ो यहाँ के पशु-पक्षियों में भी यह भाव है। और इसे स्पष्ट करने के लिए शिवशंभु के दो बैलों की कथा सुनाते हैं। जिसमें बलशाली बैल दुर्बल बैल को गिरा देता है।
वह दुःखी है, परंतु बलशाली बैल को पुरोहित को दे देने पर दुर्बल बैल दुखी हो जाता है। वह उस दिन चारे का तिनका भी नहीं छूता है। अर्थात् हमारी संस्कृति में है कि बिछुड़न के समय यहाँ पशु-पक्षी भी सब कुछ भूलकर निर्मल, पवित्र और कोमल होकर दाखी हो जाते हैं। इसी प्रकार लॉर्ड कर्जन ने इस देश के निवासियों को दुःख, पीड़ा, परेशानियाँ ही दी। परंतु वही प्रजा लॉर्ड कर्जन के जाने पर दुःखी हो जाती है। इस प्रकार बिछुड़न का समय बड़ा करुणोत्पादक होता है।
प्रश्न 2.
‘परदे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे खबर नहीं !’ से क्या आशय है ? समझाइए।
उत्तर :
बालमुकुंद गुप्त द्वारा लिखित शिवशंभु के चिट्ठ का अंश ‘विदाई संभाषण’ की यहाँ पंक्तियाँ दी गई है। जिसमें तीसरी शक्ति की महत्ता को स्थापित किया है। जब लॉर्ड कर्जन ने भारत में आकर शानो-शौकत से शासन किया। लेकिन भारत में अशांति और कौंसिल में बेकानूनी कानून पास करते और कनवोकेशन अभिभाषण देते समय बुद्धि का दीवालिा निकाल दिया।
परिणामस्वरूप उन्हें भारत से इस्तीफा देना पड़ा जब ये वापस जा रहे थे। तब लेखक लॉर्ड कर्जन के विदाई संभाषण में उन्हें संबोधित करते हुए कहते हैं आप जा रहे हैं इसमें नया कुछ भी नहीं है। आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत में उनको जाना पड़ा। परंतु यह तो परंपरा है। परंतु आपके शासन काल का नाटक घोर दुखांत है।
और आश्चर्य इस बात का है कि दर्शक तो क्या स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जायेगा। जिसके आदि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सुख था, उसका अंत ऐसे घोर दुःख के साथ कैसे हुआ ? आह ! घमंडी खिलाड़ी समझता है कि दूसरों को अपनी लीला दिखाता हूँ।
परंतु परदे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे पग नहीं। अर्थात् मनुष्य इतना अज्ञानी है कि उसे लगता है कि सब कर्ता मैं ही हूँ। परंतु कर्ता तो कोई दूसरा ही है। जिसकी खबर किसी को भी नहीं है।
प्रश्न 3.
लॉर्ड कर्जन ने बंबई में उतरकर क्या इरादे जाहिर किये थे ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन भारत में वायसराय के रूप में 1899 से 1904 तथा 1904 से 1905, तक दो बार रहे। उन्होंने बंबई में उतरते ही अपने इरादे जाहिर किये कि यहाँ से जाते समय भारत वर्ष को ऐसा कर जाऊँगा कि मेरे बाद आनेवाले बड़े लाटों को वर्षों तक कुछ करना न पड़ेगा, वे कितने ही वर्षों सुख की नींद सोते रहेंगे।
प्रश्न 4.
लॉर्ड कर्जन अपने बाद के लाटों के लिए क्या छोड़कर गए ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन ने कहा था कि मैं भारत को ऐसा करके जाऊँगा कि मेरे बाद आनेवाले बड़े लाटों को वर्षों तक कुछ भी नहीं करना पड़ेगा, वे कितने वर्षों तक सुख की नींद सोते रहेंगे। किंतु बात उलटी हुई। स्वयं को इस बार बेचैनी उठानी पड़ी। लॉर्ड कर्जन के कारण देश में अशांति फैल गई।
जिससे उनके आने के बाद वाले लाटों की भूख हराम हो गयी। लेखक कर्जन को सम्बोधित करते हुए कहता है कि बिस्तरा गरम राख पर रखा है और भारतवासियों को गरम तवे पर पानी की बूंदों की भाँति नचाया है। जिसे आपको और आपके बाद आनेवालों को भोगना पड़ेगा।
प्रश्न 5.
लॉर्ड कर्जन की भारत में शान-शौकत का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन की भारत में बड़ी शान थी। अलिफ लैला के अलहदीन ने चिराग रगडकर और अबुलहसन ने बगदाद के खलीफा की गद्दी पर आँख खोलकर वह शान न देखी वह शान दिल्ली दरबार में लॉर्ड कर्जन की थी। उनकी और उनकी लेडी की कुर्सी सोने की थी। राजा के छोटे भाई और उनकी पत्नी की कुर्सी चाँदी की थी।
भाई से ज्यादा लॉर्ड कर्जन की पूछ थी। इस देश के सभी रईस कर्जन को पहले सलाम ठोकते थे। जुलूस में लॉर्ड कर्जन का हाथी सबसे आगे और सबसे ऊँचा होता था। हौदा, चेवट, छत्र आदि सबसे बढ़-चढ़कर थे। सारांश यह है कि ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद इस देश में लॉर्ड कर्जन का ही दर्जा था।
प्रश्न 6.
लेखक ने लॉर्ड कर्जन को शासक का प्रजा के प्रति क्या कर्तव्य बताये हैं ?
उत्तर :
बालमुकुंद गुप्त हिन्दी के प्रसिद्ध देशभक्त रचनाकार हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में शासन व्यवस्था की बात की है। जिसमें शासक के क्या कर्तव्य हैं उन्हें स्पष्ट किया है। इस पाठ में भी ये लॉर्ड कर्जन के माध्यम से शासक के कर्तव्य बोध को याद दिलाते हुए उलाहना देते हुए कहते हैं माइ लॉर्ड, एक बार अपने कामों की ओर ध्यान दीजिए।
आप किस काम को आए थे और क्या कर चले। शासक का प्रजा के प्रति कुछ तो कर्तव्य होता है, यह बात आप निश्चित मानते होंगे। सो कृपा करके बतलाइए, क्या कर्तव्य आप इस देश की प्रजा के साथ पालन कर चले। क्या आँख बंद करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ न सुनने का नाम ही शासन है ?
क्या प्रजा की बात पर कभी कान न देना और उसको दबाकर उसकी मर्जी के विरुद्ध जिद्द से सब काम किये चले जाना ही शासन कहलाता है ? एक काम तो ऐसा बतलाइए, जिसमें आपने जिद्द छोड़कर प्रजा की बात पर ध्यान दिया हो। आप तो कैसर और जार से भी ज्यादा जिद्दी हैं। आप तो नादिरशाह से भी अधिक हिंसक हैं।
जो एक शासन व्यवस्था का नहीं हो सकता। शासन तो प्रजा की इच्छा से प्रजा की भलाई के लिए कार्य करता है। आपने जिसके लिए किया उन्हीं ने आपको हटा दिया। इस प्रकार आपने शासन का कर्तव्य नहीं निभाया। परिणाम यह हुआ कि आप भी दुखी और प्रजा भी दुखी। क्या आप सुलतान की तरह आप भारत के ऋण को स्वीकार करेंगे ? और क्षमा याचना करेंगे ? लेकिन आप में यह उदारता कहाँ ?
प्रश्न 7.
नर सुलतान नाम के राजकुमार का परिचय दीजिए।
उत्तर :
भारत में प्रजा नर सुलतान नाम के राजकुमार के गीत गाये जाते हैं। जिसमें सुलतान बुरे दिनों में नरवर गढ़ में रहकर समय व्यतीत किया। वहाँ उसने चौकीदारी से लेकर ऊँचे पद पर भी रहा। जिस दिन घोड़े पर सवार होकर वह उस नगर से विदा हुआ, नगर-द्वार से बाहर आकर उस नगर को जिस रीति से उसने अभिवादन किया वह अनुकरणीय है।
उसने कहा – ‘प्यारे नरवर गढ़ ! मेरा प्रणाम ले ! आज मैं तुझसे जुदा होता हूँ। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपद के दिन मैंने तुझमें काटे हैं। तेरे ऋण का बदला मैं गरीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवर गढ़। यदि मैंने जानबूझकर एक दिन भी अपनी सेवा में चूक की हो, यहाँ की प्रजा की शुभ चिंता न की हो, यहाँ की स्त्रियों को माता और बहन की दृष्टि से न देखा हो तो मेरा प्रणाम न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर एक बार मेरा प्रणाम ले और मुझे जाने की आज़ा दे।’
इस प्रकार नर सुलतान अपनी उस भूमि के प्रति कृतज्ञता दिखाता है जिसने उसे विपद के समय में सहारा दिया। उसका ऋण स्वीकार किया। उसे प्रणाम किया। अर्थात् ऐसे गुण शासक में होना चाहिए, जो लॉर्ड कर्जन में नहीं हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए।
प्रश्न 1.
शिवशंभु की दो गायों की क्या कथा है ?
उत्तर :
शिवशंभु की दो गायें थीं, उनमें एक बलवाली थी दूसरी कमजोर। बलवान गाय कभी-कभी अपने सींगों की टक्कर से दूसरी कमजोर गाय को गिरा देती थी। एक दिन टक्कर मारनेवाली गाय पुरोहित को दे दी गई। देखा, दुर्बल गाय उसके चले जाने से प्रसन्न नहीं हुई, उलटे उस दिन वह भूखी खड़ी रही, चारा छुआ तक नहीं।
प्रश्न 2.
लॉर्ड कर्जन की शान किससे भी अधिक थी ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन की शान अलिफ लैला के अलहदीन ने चिराग रगड़कर और अबुलहसन ने बगदाद के खलीफा की गद्दी पर आँख्न खोलकर वह शान न देखी जो वह लॉर्ड कर्जन ने देखी।
प्रश्न 3.
अंत में लॉर्ड कर्जन को दिवालिया क्यों होना पड़ा ?
उत्तर :
लेखक लॉर्ड कर्जन को संबोधित करते हुए कहता है कि आप बहुत धीर-गंभीर प्रसिद्ध थे। उस सारी धीरता-गंभीरता का आपने इस बार कौंसिल में बेकानूनी कानून पास करते और कनवोकेशन वक्तृता देते समय दिवाला निकाल दिया। यह दिवाला तो इस देश में हुआ। उधर विलायत में आपके बार-बार इस्तीफा देने की धमकी ने प्रकाश कर दिया कि जड़ हिल गई हैं। और वहाँ भी कर्जन का दिवालिया होना पड़ा।
प्रश्न 4.
नादिरशाह ने कत्लेआम क्यों रोक दिया ?
उत्तर :
नादिरशाह ने जब दिल्ली में कत्लेआम कर रहा था तब आसिफ़जाह द्वारा तलवार गले में डालकर और कत्ल न करने की प्रार्थना करने पर उसने कत्लेआम उसी दम (समय) रोक दिया।
प्रश्न 5.
कैसर का परिचय दीजिए।
उत्तर :
रोमन तानाशाह जूलियस सीज़र के नाम से बना जो तानाशाह जर्मन शासकों (962 से 1876 तक) के लिए प्रयोग होता था।
प्रश्न 6.
ज़ार का परिचय दीजिए।
उत्तर :
ज़ार जुलियस सीज़र से बना शब्द है जो विशेष रूप से रूस के तानाशाह शासकों (16वीं सदी से 1917 तक) के लिए प्रयुक्त
होता था। इस शब्द का पहली बार बुल्गेरियाई शासक (913 में) के लिए प्रयोग हुआ था।
प्रश्न 7.
नादिरशाह कौन था ?
उत्तर :
(1688-1747) 1736 से 1747 तक ईरान के शाह रहे। अपने तानाशाही स्वरूप के कारण ‘नेपोलियन ऑफ पर्शिया’ के नाम – से भी जाने जाते थे। पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली को नादिरशाह ने ही आक्रमण के लिए भेजा था।
निम्नलिखित का ससंदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
प्रश्न 1.
‘अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, खयं सूत्रधार भी नहीं जानता था।’
उत्तर :
संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक के “विदाई-संभाषण’ नामक पाठ से लिया गया है, जिसके लेखक बालमुकुन्द गुप्त हैं। इन पंक्तियों में लॉर्ड कर्जन की स्थिति का वर्णन किया गया है।
व्याख्या : लॉर्ड कर्जन के इस्तीफे के कारण उन्हें भारत छोड़कर जाना पड़ता है। तब विदाई संभाषण में लेखक कहता है कि आपका जाना कोई आश्चर्य नहीं है। क्योंकि जाना तो सभी को है। परंतु अधिक आश्चर्य इस बात का है कि लॉर्ड कर्जन की बनाई गयी दुनिया में वही अनजान है। इसलिए कहा गया है कि आपका जाना परंपरा की चाल है। परंतु आपका जाना शासनकाल का नाटक घोर दुखांत है। और अधिक आश्चर्य इस बात का है कि दर्शक तो क्या स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जायेगा।
प्रश्न 2.
‘यहाँ की प्रजा ने आपकी जिद्द का फल यहीं देख लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिद्द ने इस देश की प्रजा को पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहाँ तक कि आप स्वयं उसका शिकार हुए।’
उत्तर :
संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘शिवशंभु के चिट्टे’ में से ‘विदाई-संभाषण’ नामक पाठ से लिया गया है। जिसके लेखक बालमुकुंद गुप्त हैं। लार्ड कर्जन के पतन के कारण पर प्रकाश डाला गया है।
व्याख्या : बालमुकुंद गुप्त का ‘शिवशंभु के चिट्टे’ एक प्रसिद्ध व्यंग्य है। जिसमें लॉर्ड कर्जन की स्थिति का वर्णन किया गया है। लेखक ने स्पष्ट किया है कि लॉर्ड कर्जन ने अपने शासन में भारतीय प्रजा को बहुत दुःख दिया, पीड़ित किया। एक भी बात न सुनी। बंगाल विभाजन की जिद्द की। लेकिन अपने ही जाल में ऐसे फँसा कि उसके मन पसंद का एक अफ्सर भी नहीं रखा।
गुस्से में इस्तीफा दे दिया। ब्रिटिश सरकार ने उसे स्वीकार भी कर लिया। यह उसकी ही जिद्द थी। परिणाम स्वरूप लॉर्ड कर्जन की जिद्द का फल प्रजा ने यहीं देख लिया। जिस जिद्द (बंगाल विभाजन) ने देश की प्रजा को पीड़ित किया उसी जिद्द (अफ्सर को नियुक्त करवाना) ने उसे कम पीड़ा न दी और खुद भी उसका शिकार हुआ।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो वाक्य में लिखिए :
प्रश्न 1.
‘विदाई-संभाषण’ यह किस रचना का अंश है ?
उत्तर :
“विदाई-संभाषण’ “शिवशंभु के चिट्टे’ का एक अंश है।
प्रश्न 2.
‘शिवशंभु के चिट्ठ’ रचना की विधा कौन सी है ?
उत्तर :
“शिवशंभु के चिढे’ रचना की विधा व्यंग्य है।
प्रश्न 3.
किसकी विदाई-संभाषण है ?
उत्तर :
वाइसराय लॉर्ड कर्जन की विदाई-संभाषण है।
प्रश्न 4.
लॉर्ड कर्जन का कार्यकाल बताइए।
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन का समय 1899 से 1904 और 1904 से 1905 तक भारत के वायसराय रहे।
प्रश्न 5.
बिछुड़न कैसी होती है ?
उत्तर :
बिछडन समय बड़ा करुणोत्पादक होता है।।
प्रश्न 6.
बिछुड़न के समय मनुष्य कैसा हो जाता है ?
उत्तर :
बिछुड़न के समय मनुष्य बड़ा पवित्र, बड़ा निर्मल और बड़ा कोमल हो जाता है।
प्रश्न 7.
बिछुड़न के समय क्या छूट जाता है और किसका आविर्भाव हो जाता है ?
उत्तर :
बिछुड़न के समय वैरभाव छूट जाता है और शांत रस का आविर्भाव होता है।
प्रश्न 8.
दीन ब्राह्मण को क्या सौभाग्य नहीं मिला ?
उत्तर :
दीन ब्राह्मण को माइलॉर्ड का देश (इंग्लैंड) देखने का सौभाग्य नहीं मिला।
प्रश्न 9.
भारत में बिछुड़ते समय किस-किस को दुःखी देखा ?
उत्तर :
भारत में बिछुड़ते समय मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी दुःखी होते है।
प्रश्न 10.
बलवान गाय किसे दे दी ?
उत्तर :
बलवान गाय पुरोहित को दे दी गई।
प्रश्न 11.
लॉर्ड कर्जन के शासनकाल का नाटक कैसा हुआ ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन के शासनकाल का नाटक दुखांत हुआ।
प्रश्न 12.
लॉर्ड कर्जन और भारत के निवासियों के बीच तीसरी शक्ति कौन-सी है ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन और भारत के निवासियों के बीच तीसरी शक्ति ब्रिटिश सरकार है।
प्रश्न 13.
लॉर्ड कर्जन भारत में कहाँ उतरा ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन भारत के बंबई (मुंबई) में उतरा।
प्रश्न 14.
लॉर्ड कर्जन ने भारतवासियों को किस प्रकार नचाया ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन ने भारतवासियों को गरम तवे पर पानी की बूंदों की भाँति नचाया।
प्रश्न 15.
लॉर्ड कर्जन और उसकी लेडी की कुर्सी किसकी बनी थी ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन और उसकी लेडी की कुर्सी सोने की थी।
प्रश्न 16.
लॉर्ड कर्जन ने किसके सामने पटखनी खाई ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन ने जंगी लाट के सामने पटखनी खाई।
प्रश्न 17.
लॉर्ड कर्जन किसके लिए प्रसिद्ध थे ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन धीर-गंभीरता के लिए प्रसिद्ध थे।
प्रश्न 18.
लॉर्ड कर्जन ने अपनी धीरता-गंभीरता का कब दिवाला निकाल दिया ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन ने अपनी धीरता-गंभीरता का कौंसिल में बेकानूनी कानून पास करते और कनवोकेशन अभिभाषण देते समय दिवाला निकाल दिया।
प्रश्न 19.
हाकिम किसकी ताल पर नाचते थे ?
उत्तर :
हाकिम लॉर्ड कर्जन की ताल पर नाचते थे।
प्रश्न 20.
लॉर्ड कर्जन की कृपा से किसे बड़े-बड़े अधिकारी बना दिये ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन की कृपा से मिट्ठी-काठ के खिलौने बड़े-बड़े पदाधिकारी बना दिये।
प्रश्न 21.
लॉर्ड कर्जन के इशारे से क्या हो गया ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन के इशारे से देश की शिक्षा पायमाल हो गयी और स्वाधीनता उड़ गई।
प्रश्न 22.
इच्छित पद पर कौन नियुक्त न हो सका ?
उत्तर :
फौजी अफसर उनके इच्छित पद पर नियुक्त न हो सका।
प्रश्न 23.
कौन-कौन से शासक भी प्रजा की बात सुन लेते थे ?
उत्तर :
कैसर और जाट शासक भी प्रजा की बात सुन लेते थे।
प्रश्न 24.
नादिरशाह के सामने किसने तलवार गले में डालकर प्रार्थना की ?
उत्तर :
नादिरशाह के सामने आसिफ़जाह ने तलवार गले में डालकर प्रार्थना की।
प्रश्न 25.
लॉर्ड कर्जन की जिद्द किससे बढ़कर है ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन की जिद्द नादिर से बढ़कर है।
प्रश्न 26.
भारत की प्रजा दुःख और कष्टों की अपेक्षा किसका ध्यान अधिक रखती है ?
उत्तर :
भारत की प्रजा दुख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का ध्यान रखती है।
प्रश्न 27.
लॉर्ड कर्जन की आँखों में किसे देखने का सामर्थ्य नहीं है ?
उत्तर :
लॉर्ड कर्जन की आँखों में शिक्षितों को देखने का सामर्थ्य नहीं है।
प्रश्न 28.
अनपढ़ प्रजा किसके गीत गाती है ?
उत्तर :
अनपढ़ प्रजा नर सुलतान नाम के राजकुमार के गीत गाती है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए।
प्रश्न 1.
विदाई-संभाषण पाठ के लेखक …………. हैं।
(a) बालमुकुन्द गुप्त
(b) प्रेमचंद
(c) शेखर जोशी
(d) महावीर प्रसाद
उत्तर :
(a) बालमुकुंद गुप्त
प्रश्न 2.
किसके शासन का अंत हो गया ?
(a) लॉर्ड जोर्ज
(b) लॉर्ड कर्जन
(c) वायसराय
(d) वाइस पंचम
उत्तर :
(b) लॉर्ड कर्जन
प्रश्न 3.
बिछुड़न-समय बड़ा ………..
(a) हर्षोल्लास का होता है।
(b) प्रसन्नता का होता है।
(c) करुणोत्पादक का होता है।
(d) तटस्थ होता है।
उत्तर :
(c) करुणोत्पादक का होता है।
प्रश्न 4.
बिछुड़न के समय किस रस का आविर्भाव होता है ?
(a) शांत रस
(b) वीर रस
(c) हास्य रस
(d) करुण रस
उत्तर :
(a) शांत रस
प्रश्न 5.
शिवशंभु की कितनी गायें थी ?
(a) एक
(b) तीन
(c) चार
(d) दो
उत्तर :
(d) दो
प्रश्न 6.
टक्कर मारनेवाली गाय किसे दे दी ?
(a) पंडित को
(b) पुरोहित को
(c) पुजारी को
(d) माता को
उत्तर :
(b) पुरोहित को
प्रश्न 7.
कौन-सी गाय भूखी खड़ी रही ?
(a) काली गाय
(b) सफेद गाय
(c) बलयाली गाय
(d) दुर्बल गाय
उत्तर :
(d) दुर्बल गाय
प्रश्न 8.
आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत में उनको ….
(a) जाना पड़ा
(b) भागना पड़ा
(c) आना पड़ा
(d) मरना पड़ा
उत्तर :
(a) जाना पड़ा
प्रश्न 9.
लॉर्ड कर्जन के शासनकाल का नाटक घोर …
(a) सुखांत है।
(b) दुखांत है।
(c) मध्यम है।
(d) निम्नतम है।
उत्तर :
(b) दुखांत है।
प्रश्न 10.
लॉर्ड कर्जन भारत में कहाँ उतरे ?
(a) दिल्ली
(b) चैन्नई
(c) कंडला
(d) मुंबई
उत्तर :
(d) मुंबई
प्रश्न 11.
इस बार आपने अपना …………….. गरम राख पर रखा है।
(a) बिस्तरा
(b) हाथ
(c) पैर
(d) शरीर
उत्तर :
(a) बिस्तरा
प्रश्न 12.
महाराज के छोटे भाई और उनकी पत्नी की कुर्सी किसकी थी ?
(a) लकड़ी की
(b) सोने की
(c) चांदी की
(d) पीतल की
उत्तर :
(c) चांदी की
प्रश्न 13.
राजा-महाराजा डोरी हिलाने से सामने हाथ बाँधे ………
(a) भागे जाते थे।
(b) हाजिर होते थे।
(c) बैठ जाते थे।
(d) खड़े हो जाते थे।
उत्तर :
(b) हाजिर होते थे।
प्रश्न 14.
जिस प्रकार आपको बहुत ऊँचे चढ़कर …..
(a) कूदना
(b) मरना
(c) गिरना
(d) सोना
उत्तर :
(c) गिरना
प्रश्न 15.
अपनी दशा पर आपको कैसी…………… आती है।
(a) घृणा
(b) प्यार
(c) स्नेह
(d) क्रोध
उत्तर :
(a) घृणा
प्रश्न 16.
शासक.. ……. के प्रति कुछ कर्तव्य होता है।
(a) देश
(b) प्रजा
(c) विदेश
(d) प्रदेश
उत्तर :
(b) प्रजा
प्रश्न 17.
दिल्ली में किसने कत्लेआम किया ?
(a) आसिफजाह
(b) जार
(c) लॉर्ड कर्जन
(d) नादिरशाह
उत्तर :
(d) नादिरशाह
प्रश्न 18.
लॉर्ड कर्जन ने किसके विभाजन की जिद की ?
(a) भारत
(b) बंगाल
(c) पाकिस्तान
(d) ईरान
उत्तर :
(b) बंगाल
प्रश्न 19.
कितनी करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर ध्यान नहीं दिया ?
(a) आठ
(b) दस
(c) बारह
(d) तीस
उत्तर :
(a) आठ
प्रश्न 20.
दुख का समय भी एक दिन निकल जायेगा, इसी से सब दुःखों को झेलकर ……….. सहकर भी जीती है।
(a) स्वतंत्रता
(b) कष्ट
(c) पराधीनता
(d) आनंद
उत्तर :
(c) पराधीनता
प्रश्न 21.
दीन प्रजा की ……………. अपने साथ ले जा सके, इसका बड़ा दुःख है।
(a) श्रद्धा-भक्ति
(b) दान-पुण्य
(c) प्रेम-लोभ
(d) लाभ-हानि
उत्तर :
(a) श्रद्धा-भक्ति
प्रश्न 22.
सुलतान ने …………. नाम के एक स्थान में काटे थे।
(a) कुम्भल गढ़
(b) माधो गढ़
(c) नरवर गढ़
(d) जगमल गढ़
उत्तर :
(c) नरवर गढ़
प्रश्न 23.
नरवर गढ़ में चौकीदारी से लेकर उसे एक …………… तक काम करना पड़ा।
(a) नीचे पद
(b) ऊँचे पद
(c) मध्यम पद
(d) चौकीदार
उत्तर :
(b) ऊँचे पद
प्रश्न 24.
तेरे ऋण का बदला मैं गरीब ……………. नहीं दे सकता।
(a) सिपाही
(b) चौकीदार
(c) ब्राह्मण
(d) आदमी
उत्तर :
(a) सिपाही
प्रश्न 25.
‘माइ लॉर्ड’ जिस प्रजा में ऐसे ………… के गीत गाया जाता है।
(a) राजा
(b) मंत्री
(c) वायसराय
(d) राजकुमार
उत्तर :
(d) राजकुमार
प्रश्न 26.
जब तक मेरे हाथ में शक्ति थी तेरी. …………… की इच्छा मेरे जी में न थी।
(a) बुराई
(b) भलाई
(c) अच्छाई
(d) विकास
उत्तर :
(b) भलाई
प्रश्न 27.
लॉर्ड कर्जन का वायसराय का भारत में कुल समय कितना था ?
(a) 1880 से 1904
(b) 1899 से 1905 तक
(c) 1905 से 1950
(d) 1901 से 1947
उत्तर :
(b) 1899 से 1905 तक
प्रश्न 28.
आप दाहिने थे, वह बाएँ, आप प्रथम थे, वह ……….
(a) तीसरे
(b) दूसरे
(c) चौथे
(d) पहले
उत्तर :
(b) दूसरे
प्रश्न 29.
गुप्तजी की आरंभिक शिक्षा ………… में हुई।
(a) उर्दू
(b) हिन्दी
(c) अंग्रेजी
(d) संस्कृत
उत्तर :
(a) उर्दू
प्रश्न 30.
बालमुकुंद गुप्त जी का जन्म किस राज्य में हुआ था ?
(a) गुजरात
(b) पंजाब
(c) हरियाणा
(d) मध्य प्रदेश
उत्तर :
(d) हरियाणा
व्याकरण
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
- शासन – सत्ता
- सरकार रात – रजनी
- रात्रि पानी – जल
- नीर महाराज – सम्राट
- राजा स्वाधीनता – स्वतंत्रता
- आजादी हुक्म – आदेश, आज्ञा
- आँख – नयन, नेत्र
- दिन – दिवस, दिवा
- सूर्य – सूरज, भास्कर
- संसार – दुनिया, विश्व
- हर्ष – खुशी, प्रसन्नता
- प्रजा – जनता, रियाया
- धीर – धैर्य, धीरज
- घृणा – नफरत, विद्वेष
- निकट – पास, नजदीक
- जुदा – अलग, भिन्न
- लाभ – मुनाफा, फायदा
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए :
- अंत × आरम्भ
- देश × विदेश
- करुणा × हर्ष
- दुःख × सुख
- उदास × प्रसन्न
- कठिन × सरल
- सुखांत × दुखांत
- अशांति × शांति
- बिछुड़न × मिलन
- वैर × मित्रता
- जन्म × मृत्यु
- स्वदेश × परदेश
- नीचे × ऊँचे
- त्याग × स्वीकार
- चढ़कर × उतरकर
निम्नलिखित शब्दसमूह का एक शब्द लिखिए।
- जिसके हाथ में संचालन की बागडोर हो = सूत्रधार, संचालक
- जिसका अंत दुःखद हो = दुखांत
- जिसका अंत सुखद हो = सुखांत
- अभिनय करनेवाला = अभिनेता
- हमेशा रहनेवाला = चिरस्थायी
- शासन करनेवाला = शासक
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद कीजिए।
- करुणोत्पादक = करुण + उत्पादक
- दुखांत = दुख + अंत
- मनोबल = मनः + बल
- नमस्ते = नमः + ते
- नीरोग = निः + रोग
- स्वागत = सु + आगत
- दुर्बल = दु: + बल
- सुखांत = सुख + अंत
- आशीर्वाद = आशिः + वाद
- निष्फल = निः + फल
- प्रत्येक = प्रति + एक
- निश्चय = निः + चय
निम्नलिखित शब्दों का विग्रह करके समास लिखिए।
- देशवासी = देश के वासी (तत्पुरुष समास)
- घुड़सवार = घोड़े पर सवार (तत्पुरुष समास)
- देशनिकाला = देश से निकाला (तत्पुरुष समास)
- बिछडन-समय = बिछुड़न का समय (तत्पुरुष समास)
- पशु-पक्षी = पशु और पक्षी (द्वन्द्व समास)
- महाराज = महान राजा (कर्मधारय समास)
- आपबीती = अपने आप पर बीती (तत्पुरुष समास)
- नगर-द्वार = नगर का द्वार (तत्पुरुष समास)
निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग जोड़कर नया शब्द बनाइए।
- संभव = अ + संभव = असंभव
- शांति = अ + शांति = अशांति
- कानूनी = गैर + कानूनी = गैरकानूनी
- राजा = महा + राजा = महाराजा
- दशा = अव + दशा = अवदशा
- दौलत = ब + दौलत = बदौलत
- स्थायी = चिर + स्थायी = चिरस्थायी
निम्नलिखित शब्दों का भाववाचक संज्ञा बनाइए।
- पराधीन = पराधीनता
- ब्राह्मण = ब्राह्मणत्व
- उदास = उदासी
- कमजोर = कमजोरी
- प्रसन्न = प्रसन्नता
- चौकीदार = चौकीदारी
- विपद = विपदा माता
- माता = मातृत्व
- भला = भलाई
- उदार = उदारता
निम्नलिखित शब्दों में प्रत्यय जोड़कर नया शब्द बनाइए।
- निकट = निकट + ता = निकटता
- लूट = लूट + एरा = लुटेरा
- भला = भला + ई = भलाई
- देन = देन + दार = देनदार
- सूत्र + धार = सूत्रधार
- सुख = सुख + अंत = सुखांत
- दुःख = दुःख + अंत = दुखांत
- चतुर = चतुर + आई = चतुराई
- समझ = समझ + कर = समझकर
निम्नलिखित शब्दों का लिंग बदलिए :
- महाराज × महारानी
- भाई × बहन
- पति × पत्नी
- ब्राह्मण × ब्राह्मणी
- लॉर्ड × लेडी
- राजकुमार × राजकुमारी
- राजा × रानी
- चौकादार × चौकीदारिन
- पुरुष घोड़ा × घोड़ी
- नट × नटी, नटनी, नट्टिन
- महोदय × महोदया
- श्रीमान × श्रीमती
निम्नलिखित शब्दों का वचन बदलिए :
- खिलौने × खिलौना
- इशारे × इशारा
- निवासी × निवासियों
- भारतवासी × भारतवासियों
- ब्राह्मण × ब्राह्मणों
- बूँद × बूंदों
- हाकिम × हाकिमों
- निवासियों × निवासी
- नौकर × नौकरों
- कामों × काम
अपठित गद्य
नीचे दिए गए गयखंड को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
आज सुबह ही बात हो रही थी। किसी ने कहा, ‘अब विनोबाजी किसान – जैसे दिखते हैं।’ तो दूसरे ने कहा, ‘लेकिन जब तक उनकी धोती सफेद है, तब तक वे पूरे किसान नहीं हैं। इस कथन में एक दंश था। खेती और स्वच्छ धोती की अदावत है, इस धारणा में देश है। जो अपने को ऊपर की श्रेणीवाला समझते हैं उनको यह अभिमान होता है कि हम बड़े स्वच्छ रहते हैं, हमारे कपड़े बिलकुल बगले के पर जैसे सफेद होते हैं।
लेकिन उनका यह सफाई का अभिमान मिथाय और कृत्रिम है। उनके शरीर के डॉक्टरी जाँच – मैं मानसिक जाँच की तो बात ही छोड़ देता हूँ – की जाय और हमारे परिश्रम करनेवाले मजदूरों के शरीर की भी जाँच की जाय और दोनों परीक्षाओं की रिपोर्ट डॉक्टर पेश करे तो कह दे कि कौन ज्यादा साफ है। हम लोटा मलते हैं तो बाहर से। उसमें अपना मुँह देख लीजिए।
लेकिन अंदर से मलने की हमें जरूरत ही नहीं जान पड़ती। हमारे लिए अंदर की कीमत ही नहीं होती। हमारी स्वच्छता केवल बाहरी और दिखावही होती है। हमें शंका होती है कि खेत की मिट्टी में काम करनेवाला किसान कैसे साफ़ रह सकता है। लेकिन मिट्टी में या खेत में काम करनेवाले किसान के कपड़े पर जो मिट्टी का रंग लगता है वह मैल नहीं है।
सफेद कमीज के बदले किसी ने लाल कमीज पहन लिया तो उसे रंगीन कपड़ा समझाते हैं। वैसे ही मिट्टी का भी एक प्रकार का रंग होता है। रंग और मैल में काफी फर्क है। मैल में जंतु होते हैं, पसीना होता है, उसकी बदबू आती है। मृत्तिका तो ‘पुण्यगंधा’ होती है। गीता में लिखा है – ‘पुण्योगंधः पृथिव्यांच’।
मिट्टी का शरीर है, मिट्टी में ही मिलनेवाला है, उसी मिट्टी का रंग किसान के कपड़े पर है। तब वह मैला कैसे ? लेकिन हमको तो बिलकुल सफेद, कपास जितना सफेद होता है उससे भी बढ़कर सफेद, कपड़े पहिनने की आदत पड़ गई है। मानो ‘व्हाइट वाश’ ही किया है। उसे हम सफेद कहते हैं। हमारी भाषा विकृत हो गई है।
प्रश्न 1.
सुननेवाले व्यक्ति के कथन में क्या दंश था ?
उत्तर :
सुननेवाले व्यक्ति के कथन में इस बात का दंश था कि पहले व्यक्ति ने विनोबा भावे को किसान कहा था, जबकि उनकी धोती एकदम सफेद थी। यह बात सच है कि किसान की धोती एकदम सफेद नहीं हो सकती, उस पर मिट्टी का मटमैन्मा रंग अवश्य चढ़ा होगा।
प्रश्न 2.
‘खेती और स्वच्छ धोती की अदावत है’ का आशय समझाइए।
उत्तर :
लेखक के कथन का यह आशय है कि खेती करनेवाले किसान की धोती कभी भी एकदम स्वच्छ बगुल पंख जैसी नहीं रह सकती। क्योंकि किसान को मिट्टी में काम करना पड़ता है। जिससे स्वच्छ वस्त्र और खेती के बीच मानो दुश्मनी हो, ऐसा कहा गया है।
प्रश्न 3.
अपने को ऊपरी श्रेणीवाला समझनेवालों के स्वच्छता का अभिमान मिथ्या और कृत्रिम कैसे है ?
उत्तर :
अपने को ऊपरी श्रेणी का समझनेवाले लोगों के वस्त्र तो एकदम झकाइक सफेद चमकदार होते हैं जो बाहरी स्वच्छता है। आंतरिक स्वच्छता ही वास्तविक स्वच्छता है जो श्रम करनेवालों में होती है। इसलिए मात्र स्वच्छ वस्त्रयालों की स्वच्छता कृत्रिम
प्रश्न 4.
लेखक ने मिट्टी लगे किसान कपड़े की महिमा का गान किस प्रकार किया है ?
उत्तर :
लेखक गीता का उद्धरण देकर मिट्टी को ‘पुण्यगंधा’ कहता है। यह शरीर मिट्टी का है और मिट्टी में मिल जानेवाला है। किसान के कपड़े पर इसी मिट्टी का रंग है, इसलिए वह मैल नहीं है। वह एक प्रकार का रंग है जो मिट्टी का है। मिट्टी के रंग को मैल समझनेवाले के दिमाग का ‘व्हाइट वाश’ हो गया है।
प्रश्न 5.
बदबू में शामिल उपसर्ग को पहचानकर उससे दो नए शब्द बनाकर लिखिए।
उत्तर :
बदबू में ‘बद’ उपसर्ग है। बद से बने दो शब्द हैं – बदनाम, बदमाश।
प्रश्न 6.
विकृत का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
विकृत – अन्य भाषाओं के प्रभाव से भाषा विकृत हो सकती है।
विदाई-संभाषण Summary in Hindi
लेखक परिचय :
बालमुकुंद गुप्त का जन्म 14 नवम्बर, 1865 को हरियाणा के रेवाड़ी जिले के गाँव गुड़ियानी में हुआ था । आपके पिता का नाम लाला पूरणमल था । आपने अपना पूरा जीवन अध्ययन, लेखन एवं संपादन में लगाया एवं जीवनभर स्वतंत्रता की अलख जगाए रखी ।
उर्दू और फारसी की प्रारंभिक शिक्षा के बाद 1886 में पंजाब विश्व विद्यालय से मिडिल परीक्षा प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में पास की । विद्यार्थी जीवन से उर्दू पत्रों में लेख लिखने लगे । झन्झर (जिला रोहतक) के ‘रिफाहे आम’ अखबार और मथुरा के ‘मथुरा समाचार’ उर्दू मासिको में पं. दीनदयाल शर्मा के सहयोगी रहने के बाद 1886 में चुनार उर्दू अखबार ‘अखबारे चुनार’ के दो वर्ष तक संपादक रहे ।
1888-1889 ई. में लाहौर के उर्दू पत्र कोहेनूर का संपादन किया । उर्दू के महत्त्वपूर्ण रचनाकारों में शामिल थे । 1889 में काला काँकर (अवध) हिन्दी दैनिक ‘हिंदोस्थान’ के सहयोगी संपादक रहे । यहीं उनकी मुलाकात पं. प्रतापनारायण मिश्र से हुयी, उन्हें अपना काव्य गुरु स्वीकार किया । सरकार के खिलाफ लिखने से उन्हें वहाँ से हटा दिया ।
अपने घर गुड़ियानी से ही मुराबाद के ‘भारत प्रताप उर्दू का संपादन किया तथा हिन्दी एवं बँगला पुस्तकों का उर्दू अनुवाद भी किया । ई.स. 1893 में ‘हिंदी बंगवासी’ के सहायक संपादक के रूप में कोलकता गए, 6 वर्ष तक काम किया, नीति सम्बन्धी मतभेद होने से इस्तीफा दिया । 1899 ई. में ‘भारत मित्र’ के संपादक हुए तथा 18 सितम्बर, 1907 में उनकी मृत्यु हुई।
भारत में आपके प्रौढ़ संपादकीय जीवन का निखार हुआ । भाषा साहित्य और राजनीति के सजग प्रहरी रहे । देश भक्ति की भावना उनमें सर्वोपरि थी । भाषा के प्रश्न पर सरस्वती संपादक, पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी से इनकी नोंक-झोक, लार्ड कर्जन की शासन नीति की व्यंग्यपूर्ण और चुटीली आलोचनायुक्त साहित्य विशेषरूप से उल्लेखनीय है ।
लेखनशैली सरल, व्यंग्यपूर्ण, मुहावरेदार है । तीक्ष्ण राजनीतिक सूझ और पत्रकार की निर्भीकता तथा तेजस्विता इनमें कूट-कूटकर भरी थी ।
पत्रकार होने के साथ ही आप एक सफल अनुवादक और कवि थे ।
- रचनाएँ : हरिदास, खिलौना, खेलतमाशा, स्फुट कविता, शिवशंभु का चिट्ठा, सन्निपात चिकित्सा, बालमुकुंद गुप्त निबंधावली, उर्दू बीबी के नाम चिट्ठी ।
- संपादन : अखबारे चुनार (उर्दू अखबार), कोहेनूर (उर्दू अखबार), भारत प्रताप (उर्दू मासिक), भारत मित्र, बंगवासी
- अनुवाद : ‘मडेल भगिनी’ (बांग्ला उपन्यास)
‘रत्नावली’ (हर्षकृत नाटिका) - रचना परिचय : विदाई-संभाषण उनकी सर्वाधिक चर्चित व्यंग्य कृति ‘शिवशंभु के चिट्टे’ का एक अंश है । यह पाठ वायसराय कर्जन (1899-1904 एवं 1904-1905 तक दो बार वायसराय रहे) के समय में भारतीयों की स्थिति का खुलासा करता है ।
कर्जन के समय में अनेक विकास के कार्य हुए परंतु उनका उद्देश्य अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करना था । वे सरकारी निरंकुशता के पक्षधर थे ।’ लिहाजा प्रेस पर भी प्रतिबंध लगा दिया । अंततः कौंसिल में मनपसंद अंग्रेज सदस्य नियुक्त करवाने के मुद्दे पर उन्हें देश-विदेश दोनों में नीचा देखना पड़ा । दुःखी होकर उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया और वापस इंग्लैंड चले गये ।
पाठ में भारतीयों की बेबसी, दुःख्न एवं लाचारी को व्यंग्यात्मक ढंग से लॉर्ड कर्जन की लाचारी से जोड़ने की कोशिश की है । साथ यह बताने का प्रयत्न किया है कि शासन के आततायी रूप से हर किसी को कष्ट होता है चाहे वह सामान्य जन हो या वायसराय लॉर्ड कर्जन । भाषा पाठ की विशेषता है, जो तत्कालीन गद्य के नमूने को प्रस्तुत करता है ।
पाठ का सारांश :
लेखक संभाषण की शुरुआत माइलॉर्ड कर्जन से ही करते हैं कि आपके शासन का अंत हो गया जो आपने भी नहीं सोचा था । न देशवासियों ने इसलिए ऐसा लगता है कि आपके और यहाँ निवासियों के बीच कोई तीसरी शक्ति भी है जिस पर आपका भी नियंत्रण नहीं है ।
बिछुड़न का समय करुणोत्पादक होता है । यहाँ के लोगों को आपने दख्ख ही दिये । यह नहीं चाहते थे कि आप आयें । वे यही दिन-रात प्रार्थना करते थे कि आप चले जायें । परंतु जब आप यहाँ से जा रहे हैं तब सब दुःखी हैं इसी से जाना कि बिछुड़न समय बड़ा करुणोत्पादक होता है । मुझे तो आपके देश में जाने का सौभाग्य नहीं मिला जिससे पता चलता कि आपके यहाँ बिछड़ते समय कैसा भाव होता है ।
परंतु इस देश के तो पशु-पक्षी भी दुःखी हो जाते हैं । शिवशंभु की दो गायें थी । एक बलशाली गाय सींग से दूसरी को मारती थी । मारनेवाली गाय पुरोहित को दे दी । परंतु दुर्बल गाय प्रसन्न नहीं हुयी । उसने उस दिन चारा भी नहीं छुआ । जब बिछुड़ने की दशा इन पशु-पक्षियों की ऐसी है तो मनुष्यों की दशा कैसी होगी इसका अंदाज लगा सकते हैं ।
यहाँ दो शासक यहाँ आये उनको जाना पड़ा परंतु आपको भी जाना पड़ा वह परंपरा हैं । परंतु आपके जाने का नाटक दुखांत है । जो लीला आप दिखा रहे थे उस लीला का सूत्रधार तो परदे के पीछे कोई और ही निकला । इस बार आप मुंबई में उतरकर आपने इरादे जाहिर किये थे क्या उसमें से कुछ भी पूरे हुये ।
आपने कहा था कि यहाँ से जाते समय भारत वर्ष को ऐसा कर जाऊँगा कि मेरे बाद आने वाले लाट साहबों को कुछ नहीं करना पड़ेगा परंतु आपने तो अशांति और – फैला दी जिसे उन्हें शांत करने में उनकी नींद हराम हो जायेगी । आपने अपना बिस्तरा गर्म राख्ख पर रखा है तथा भारतवासियों को गरम तवे पर पानी की बूंदों की तरह नचाया है । आप भी खुश न हो सके तथा प्रजा को भी सुखी नहीं होने दिया ।
विचारिए आपकी शान इस देश में कैसी थी । आपकी और आपकी लेडी की कुर्सी सोने की थी । आपको सलाम पहले करते थे राजा के भाई को बाद में । जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे और सबसे ऊँचा था, ओहदा, चँवर, छत्र आदि सबसे बढ़-चढ़कर । ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद आपका ही दर्जा था । परंतु आपको देखते हैं कि जंगी लाट के मुकाबले आपने पटखनी खायी है ।
पद त्यागने से भी ऊँचे नहीं हो सके । आप धीर गंभीर थे । परंतु धीर-गंभीरता कौंसिल में गैरकानूनी कानून पास कराते समय सब दिवालिया निकाल दिया । आपकी धमकी भी काम नहीं आयी । वहाँ भी आपका दिवालिया हो गया । इस देश का हाकिम आपके इशारे पर नाचता था । राजा-महाराजा आपके इशारे से हाजिर हो जाते थे । आपके एक इशारे से कितने राजा-महाराजा नष्ट हो गये । कितने ही पदाधिकारी बन गये ।
आपके इशारे से यहाँ शिक्षा पायमाल हो गयी, स्वाधीनता चली गयी । बंग देश के सिर पर आटह रखा गया । और आपकी यह दशा कि आप एक व्यक्ति को नियुक्त नहीं करवा सके । गुस्से से इस्तीफा दे दिया । वह स्वीकार भी हो गया । जिस प्रकार आपका गिरना यहाँ के निवासियों को दुखित करता है गिरकर पड़ा रहना उससे भी अधिक दुखी कर रहा है ।
अपनी दशा पर आपको कैसी घृणा आती है । इसको जानने का अवसर इन देशवासियों को नहीं मिला । पर पतन के पीछे इतनी उलझन में पड़ते उन्होंने किसी को नहीं देखा । माइ लॉर्ड एक बार अपने कामों पर ध्यान दीजिए । आप किसलिए आए थे और क्या कर चले । आपने इस प्रजा के प्रति क्या कर्तव्य निभाया जरा बताइए ।
क्या आँख बंद करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ भी न सुनना ही शासन है ? क्या कभी प्रजा की न सुनना शासन है ? आप एक काम तो बतलाइए कि आपने जिद्द छोड़कर प्रजा की बात पर ध्यान दिया हो । कैसर और जाट भी प्रजा की बात सुन लेते थे । आप ऐसा उदाहरण बता दीजिए जब आपने ऐसा किया हो ।
नादिरशाह ने जब दिल्ली में कत्लेआम किया तो आसिफ़जाह के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर कत्लेआम उसी समय रोक दिया पर आपने आठ करोड़ की प्रार्थना नहीं सुनी । बंग विच्छेद किए बिना आपको जाना पसंद नहीं है । क्या आपकी जिद से प्रजा को दुख नहीं होता है । आपके कहने से पद न देने से नौकरी छोड़ दी । परंतु यहाँ प्रजा कहाँ जाये ?
आपकी जिद ने देश की प्रजा को पीड़ित किया परंतु आपको भी कम पीड़ा नहीं दी । यहाँ तक आप भी उसके शिकार हुए । लेकिन यहाँ प्रजा परिणाम पर अधिक ध्यान देती है । उसे पता है सब बातों का अंत है । ऐसे ही दुःखों का भी अंत होगा । पराधीनता सहकर भी जीती है । इस कृतज्ञता की भूमि की महिमा आपने कुछ भी नहीं समझी इसका दुःख है ।
यहाँ आपने शिक्षितों को तो देखा नहीं । अनपढ़-गूंगी प्रजा का नाम कभी-कभी आपके मुँह से निकल जाता है । वही प्रजा नर सुलतान नाम के राजकुमार का गीत गाती है । जो अपनी विपदा के समय नरवर गढ़ में रहा । वहाँ चौकीदारी से लेकर ऊँचे पद पर रहा था । लेकिन जब वह वहाँ से बिदा हुआ तो उसने कहा – ‘प्यारे नरवर गढ़ ! मेरा प्रणाम हो ।आज मैं तुझसे जुदा होता हूँ ।
तू मेरा अन्नदाता है । मैं तेरे ऋण का बदला कभी नहीं दे सकता ।’ माइ लॉर्ड क्या आप भी चलते समय कुछ ऐसा ही संभाषण करेंगे ? क्या आप कह सकेंगे – ‘अभागे भारत ! मैंने तुझसे सब प्रकार का लाभ उठाया । तेरी बदौलत शान देखी जो इस जीवन में असंभव है । तूने मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ा पर मैंने तेरे बिगाड़ने में कुछ भी कमी न रखी । संसार के सबसे पुराने देश ! जब तक मेरे हाथ में शक्ति थी तेरी भलाई की इच्छा मेरे जी में न थी ।
अब कुछ शक्ति नहीं है जो तेरे लिए कुछ कर सकूँ । पर आशीर्वाद देता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से लाभ करे । मेरे बाद आनेवाले तेरे गौरव को समझें ।’ आप कर सकते हैं और यह देश आपकी पिछली सब बातों को भूल सकता है, पर इतनी उदारता माइ लॉर्ड में कहाँ ?
शब्द-छवि :
- चिरस्थायी – हमेशा रहनेवाला, टिकाऊ
- करुणोत्पादक – करुणा (दुःख) उत्पन्न करनेवाला
- दुखित – पीड़ित, जिसे कष्ट हो
- विषाद – दुःख, उदास
- आविर्भाव – प्रकट होना
- दुखांत – जिसका अंत दुःखद हो
- सूत्रधार – जिसके हाथ में संचालन की बागडोर हो
- सुखांत – जिसका अंत सुखद हो
- लीलामय – नाटकीय
- सारांश – निष्कर्ष, निचोड़
- पटखनी – चित कर देना, गिरा देना
- तिलांजलि – त्याग देना
- पायामाल – दुर्दशाग्रस्त, नष्ट
- आरह – आरा, अदना – छोटा-सा, हेय
- विच्छेद – टूटना, ताब – सामर्थ्य
- काल – समय
- बिछुड़न – अलग होना, जुदा होना
- प्रसन्न – खुश, हर्ष
- निर्मल – स्वच्छ, पवित्र
- दीन – गरीब
- उदास – दुःखी
- बलशाली – शक्तिशाली
- दुर्बल – कमजोर
- बरंच – फिर भी
- दशा – स्थिति
- अंदाज – अनुमान, कल्पना
- दर्शक – देखनेवाला
- बंबई – वर्तमान मुंबई
- इरादे – इच्छा
- धीरता – धैर्य
- विलायत – विदेश
- दिवालिया – बड़ा नुकसान होना, पायामाल
- हुक्म – आदेश
- कैसर – रोमन तानाशाह जूलियस सीजर के नाम से बना शब्द जो तानाशाह जर्मन शासकों के लिये प्रयोग होता था
- जार – यह भी जूलियस सीजर से बना शब्द है जो विशेष रूप से रूस के तानाशाह शासकों के लिए प्रयुक्त होता था । इस शब्द का पहली बार बुल्गेरियाई शासक के लिए प्रयोग हुआ था, नादिरशाह – 1736 से 1747 तक ईरान का शाह रहे