Gujarat Board GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 12 किन्तोः कुटिलता Textbook Exercise Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 12 किन्तोः कुटिलता
GSEB Solutions Class 11 Sanskrit किन्तोः कुटिलता Textbook Questions and Answers
किन्तोः कुटिलता Exercise
1. अधोलिखितेभ्यः विकल्पेभ्यः समुचितम् उत्तरं चिनुत।
(1) लेखकः किम् आदाय एकस्य साहित्यमर्मज्ञस्य नेतुः समीपम् अगच्छत्।
(क) अभियोगम्
(ख) पुस्तकम्
(ग) भोजनम्
(घ) चित्रम्
उत्तर :
(ख) पुस्तकम्
(2) मुखस्य कवलमपि कदाचित् किम् अवरोधयति?
(क) किन्तुशब्दः
(ख) चिन्ता
(ग) गरिष्ठपदार्थः
(घ) वैद्यः
उत्तर :
(क) किन्तुशब्दः
(3) भूमिः कस्य वंशजानाम् अधिकारे वर्तते?
(क) राज्ञः
(ख) लेखकस्य
(ग) वैद्यस्य
(घ) साक्षिजनानाम्
उत्तर :
(ख) लेखकस्य
(4) लेखकेन नेतृमहोदयाय किं समर्पितम्?
(क) संस्कृतपत्रम्
(ख) संस्कृतपुस्तकम्
(ग) पुस्तकम्
(घ) पुष्पम्
उत्तर :
(ख) संस्कृतपुस्तकम्
(5) कस्य कुटिलता प्रायः सर्वत्र विराजते?
(क) मानवस्य
(ख) देवस्य
(ग) किन्तोः
(घ) राज्ञः
उत्तर :
(ग) किन्तोः
2. संस्कृतभाषया उत्तरं लिखत।
1. भूमेः अभियोग: कुत्र चलति स्म?
उत्तर :
भूमेः अभियोग: न्यायालये चलति स्म।
2. मह्यं केन अभयं दत्तम्?
उत्तर :
मह्यं वाक्कीलेन अभयं दत्तम्।
3. नेतृमहोदयस्य साक्षात्कारः कदा सजात:?
उत्तर :
यदा लेखकः नेतृमहोदयस्य गृहम् अगच्छत् तदा तस्य साक्षात्कारः सञ्जातः।
4. लेखकाय कीदृशं भोजनं निषिद्धम् अस्ति?
उत्तर :
लेखकाय गरिष्ठपदार्थानां भोजनं निषिद्धमस्ति।।
5. केन न्यायेन अहं भोजगोष्ठ्यां सन्तोषम् अकरवम्?
उत्तर :
आघ्राणे अर्ध भोजनम् इति न्यायेन अहं भोज-गोष्ठ्यां सन्तोषम् अकरवम्।
3. Answer in your mother tongue:
Question 1.
Why did the judge suspend his judgment’
उत्तर :
यद्यपि भूमि के संबद्ध सभी प्रमाण एवं साक्ष्य लेखक के पक्ष में ही थे तथापि न्यायाधीश ने न्याय स्थगित किया क्योंकि राजस्व विभाग के अधिकारी ने लेखक के विरुद्ध एक पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया था।
Question 2.
Why was the writer sure about the book?
उत्तर :
लेखक पुस्तक के सन्दर्भ में निश्चिन्त थे क्योंकि पुस्तक का विषय, प्रस्तुति, मुद्रण सौष्ठव एवं चित्र संयोजन सब कुछ सुन्दर था।
अत: उन्हें विश्वास था कि पुस्तक, नेता महोदय को अवश्य ही रूचिकर प्रतीत होगी।
Question 3.
Why could the writer not eat anything in the dinner party?
उत्तर :
कई दिनों पश्चात् रोग से मुक्त होने पर प्राप्त भोजन समारंभ में जाने से पूर्व लेखक वैद्य के पास गए थे, क्योंकि वे जानना चाहते थे कि वे भोजन-समारंभ में जा सकते हैं या नहीं। वैद्य की सलाह के अनुसार वे भोजन समारंभ में गरिष्ठ-पदार्थ नहीं खा सकते थे।
इस सलाह के भय से उन्हें भोजन-समारंभ में प्रत्येक पदार्थ गरिष्ठ ही प्रतीत हो रहा था। अतः वे भोजन समारंभ में कुछ भी नहीं खा सके।
Question 4.
What was the opinion/reaction of the leader about the book of the writer?
उत्तर :
नेता ने लेखक की पुस्तक के सन्दर्भ में कहा कि उनकी वह पुस्तक अद्भुत थी, तथा बहुत समय के पश्चात् उन्होंने ऐसी पुस्तक देखी थी किन्तु यदि लेखक ने वह पुस्तक संस्कृत में न लिखकर हिन्दी में लिखी होती तो और अधिक श्रेयस्कर होता।
Question 5.
Why does the writer call the word ‘kutil’ treacherous?
उत्तर :
लेखक को जीवन में ऐसे कई अनुभव हुए हैं जब उनका कार्य सम्पूर्णतया सफल प्रतीत होता था, हर प्रकार से सफलता हस्तगत होती थी, एवं जैसे ही सफलता की प्रतिमा उनके सम्मुख उपस्थित होती थी वैसे ही उसी समय इस क्रूर ‘किन्तु’ शब्द ने मध्य में प्रवेश कर के सफल प्रतीत होनेवाले उस कार्य को ध्वंस कर दिया था, विनष्ट कर दिया था, अत: लेखक शत्रुरूपी इस ‘किन्तु’ शब्द को कुटिल कहते हैं।
4. Write an analytical note on :
1. अभियोगः
न्याय प्राह्यर्थ न्यायालय में किया गया आवेदन, याचिका, केस या दावे के लिए अभियोग शब्द का प्रयोग किया जाता है। सामान्यतया दावे दो प्रकार के होते हैं – दीवानी (सिविल- Civil) एवं आपराधिक (क्रिमिनल-Criminal) भूमि, बँटवारा, अधिकार आदि से संबद्ध याचिका को दीवानी याचिका कहा जाता है। हत्या, मारपीट आदि याचिकाओं को आपराधिक याचिका कहा जाता है।
जब व्यक्ति पारस्परिक समझदारी से किसी समस्या या प्रश्न का समाधान दिखाई नहीं देता है तब वह न्यायालय का आश्रय लेता है। न्यायालय दोनों पक्षों को सुनकर साक्षी एवं प्रमाणों के आधार पर कानून के अनुसार उन समस्याओं या प्रश्नों का समाधान किया जाता है।
2. किन्तुकुन्तः
किन्तु शब्दरूपी शूल या भाला। कुन्तः अर्थात् भाला। पाठ्य-पुस्तक में किन्तुकुन्तः शीर्षक से प्रदत्त पाठ में निबन्धकार पं. श्री मथुरानाथ ने अपने जीवन में ‘किन्तु’ शब्द के द्वारा सर्जित झंझावात का वर्णन किया है। किसी विशिष्ट परिस्थिति में सब कुछ मानव की इच्छानुसार सम्यक् प्रकार से होता है।
अत: मानव को सुख की अनुभूति होती है। उस परिस्थिति में कभी-कभी किन्तु शब्द से प्रारंभ होनेवाला विधान तत्क्षण परिस्थितियों को न केवल प्रभावित करता है प्रत्युत परिवर्तित कर देता है। इस परिस्थिति में मानव को ऐसा प्रतीत होता है मानों सहसा किसीने भाले से उसे विदीर्ण कर दिया हो।
अत: कई बार लेखक ने अपने निन्यानवे प्रतिशत सफल हो चुके कार्य में ‘किन्तु’ शब्द के द्वारा उत्पन्न किए गए विघ्नों की अनुभूति की है। ‘किन्तु’ शब्दरूपी भाले के आक्रमण से सफलता के शिखर पर आरूढ कार्यों को लेखक ने कई बार असफल होते हुए देखा है।
‘किन्तु’ शब्द के कार्य-ध्वंसकारी, विनाशकारी प्रभाव को देखते हुए शत्रु-रूपी किन्तु शब्द के लिए लेखक ने ‘किन्तु’ शब्द को शूल कहते हुए ‘किन्तुकुन्तः’ शब्द का प्रयोग किया है।
लेखक द्वारा प्रयुक्त यह शब्द, दोबार क कार के प्रयोग से वर्णानुप्रास – अलंकार का सुन्दर उदाहरण भी बन गया है। श्रवण-माधुर्य से युक्त यह शब्द इसके भाव को भी सहज प्रकट करता है।
3. अधिकारभुक्ता
अधिकार से उपभुक्त भूमि को अधिकार-भुक्ता कहा जाता है। स्मृति-ग्रन्थों के अनुसार तथा कुछ अंश तक वर्तमान नियमों के अनुसार भी किसी भूमि को कुछ नियत वर्षों तक यदि कोई व्यक्ति जोतता है।
उस पर कृषि-कार्य करता है या उसका उपयोग करता है तथा उसका मालिक यदि उस-कार्य का विरोध नहीं करता है तब वह भूमि उस व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र में आ जाती है जो उसका उपयोग कर रहा है या कृषि-कार्यार्थ जोत रहा है।
कुछ – वर्षों पूर्व जो हल चलाए या कृषि कर्म करे उसकी ही भूमि इस नियम के अनुसार सहस्रों कृषकों को भूमि प्राप्त हुई थी।
5. Find out the character from the bracket and write who speaks the following sentences. (न्यायाधीशः, नेता, वैद्यः)
वक्ता | वाक्यम् |
(i) अतः सम्प्रति न्यायः स्थगितः। | ……………………………………………. |
(ii) पुस्तकं ते वस्तुतः एव अद्भुतं निर्मितम् अस्ति। | ……………………………………………. |
(iii) किन्तु गरिष्ठपदार्थानां भोजनं निषिद्धमस्ति। | ……………………………………………. |
(iv) किमहं भोजन गोष्ठयाम् गन्तुम् समर्थः अस्मि? | ……………………………………………. |
(v) तेनाहं निश्चिन्तः आसन्। | ……………………………………………. |
(vi) बहुकालान्तरम् एतादृशं पुस्तकं पश्यामि। | ……………………………………………. |
उत्तर :
वक्ता | वाक्यम् |
(i) न्यायाधीशः | अतः सम्प्रति न्यायः स्थगितः। |
(ii) नेता | पुस्तकं ते वस्तुतः एव अद्भुतं निर्मितम् अस्ति। |
(iii) वैद्यः | ‘किन्तु गरिष्ठपदार्थानां भोजनं निषिद्धम् अस्ति। |
(iv) लेखकः | किमहं भोजन गोष्ठ्याम् गन्तुं समर्थः अस्मि? |
(v) लेखक: | तेनाहं निश्चिन्तः आसम्। |
(vi) नेता | बहुकालानन्तरम् एतादृशं पुस्तकं पश्यामि। |
Sanskrit Digest Std 11 GSEB किन्तोः कुटिलता Additional Questions and Answers
किन्तोः कुटिलता स्वाध्याय
1. अधोलिखितेभ्य: विकल्पेभ्य: समुचितम् उत्तरं चिनुत।
પ્રશ્ન 1.
जीवनस्य विविधक्षेत्रे किन्तोः कुटिलताम् का अन्वभवत्।
(क) वैद्यः
(ख) लेखकः
(ग) न्यायाधीशः
(घ) साहित्यमर्मज्ञस्य नेता
उत्तर :
(ख) लेखकः
પ્રશ્ન 2.
वाक्कीलेन कस्मै अभयम् दत्तम्?
(क) न्यायाधीशाय
(ख) वैद्याय
(ग) साहित्यमर्मज्ञस्य नेत्रे
(घ) लेखकाय
उत्तर :
(घ) लेखकाय
પ્રશ્ન 3.
कस्य किन्तुकुन्तः अद्यापि लेखकस्य अन्तःकरणं कृन्तति?
(क) न्यायाधीशस्य
(ख) वाक्कीलस्य
(ग) राजस्वविभागाधिकारिणः
(घ) लेखकस्य
उत्तर :
(क) न्यायाधीशस्य
પ્રશ્ન 4.
‘बहुकालानन्तरम् एतादृशं पुस्तकं पश्यामि।’ इति वाक्यं कः वदति?
(क) वैद्यः
(ख) लेखक:
(ग) साहित्यमर्मज्ञस्य नेता
(घ) वाक्कील:
उत्तर :
(ग) साहित्यमर्मज्ञस्य नेता
પ્રશ્ન 5.
साहित्यमर्मज्ञस्य नेतुः सम्मतौ यदि पुस्तकं कस्यां भाषायां स्यात् तर्हि सम्यक् अभविष्यत्?
(क) हिन्दी भाषायाम्
(ख) संस्कृत भाषायाम्
(ग) आंग्ल भाषायाम्
(घ) उर्दूभाषायाम्
उत्तर :
(क) हिन्दी भाषायाम्
પ્રશ્ન 6.
लेखक: सोत्साहं कस्य गृहं प्रत्यगच्छत्?
(क) वैद्यस्य
(ख) वाक्कीलस्य
(ग) राजस्व विभागाधि कारिणः
(घ) नेतृमहोदयस्य
उत्तर :
(क) वैद्यस्य
પ્રશ્ન 7.
वैद्यस्य वचनानि श्रुत्वा भोजगोष्ठ्यां गमनस्य कस्य इच्छा अर्धमात्रायां समाप्ता?
(क) लेखकस्य
(ख) नेतृमहोदयस्य
(ग) वाक्कीलस्य
(घ) न्यायाधीशस्य
उत्तर :
(ख) नेतृमहोदयस्य
પ્રશ્ન 8.
लेखकस्य कण्ठनलिकायां किं संलग्नम्?
(क) मोदक:
(ख) प्रस्तरखण्डः
(ग) किन्तुशब्दः
(घ) न्यायाधीशः
उत्तर :
(ग) किन्तुशब्दः
પ્રશ્ન 9.
भोजगोष्ठ्यां किं निषिद्धम् आसीत्?
(क) गरिष्ठ पदार्थाः
(ख) सूपम्
(ग) शाकम्
(घ) पूरिका:
उत्तर :
(क) गरिष्ठ पदार्थाः
પ્રશ્ન 10.
कस्य भोज: भोजनं विनैव समाप्तः?
(क) लेखकस्य
(ख) वैद्यस्य
(ग) न्यायाधीशस्य
(घ) वाक्कीलस्य
उत्तर :
(क) लेखकस्य
પ્રશ્ન 11.
क: मध्ये प्रविश्य सर्वं कार्यं विनाशयति?
(क) वैद्यः
(ख) शत्रुः
(ग) मित्रम्
(घ) किन्तु
उत्तर :
(घ) किन्तु
2. संस्कृतभाषया उत्तरं लिखत।
પ્રશ્ન 1.
कस्य शब्दस्य कुटिलता मानवस्य जीवने सर्वत्र विराजते?
उत्तर :
किन्तु शब्दस्य कुटिलता मानवस्य जीवने सर्वत्र विराजते।
પ્રશ્ન 2.
कः शब्दः कुन्तवत् लेखकस्य अन्त:करणं कृन्तति?
उत्तर :
किन्तु शब्दः कुन्तवत् लेखकस्य अन्तःकरणं कृन्तति।
પ્રશ્ન 3.
लेखकस्य जीवने कस्य शत्रुता अनेकवारं सम्मुखमुपस्थिता भवति?
उत्तर :
लेखकस्य जीवने किन्तुशब्दस्य शत्रुता अनेकवारं सम्मुखमुपस्थिता।
પ્રશ્ન 4.
भोजगोष्ठ्यां प्रत्येक: पदार्थः कीदृशोऽस्ति इति प्रतीति: भवति स्म।
उत्तर :
लेखकस्य कृते भोजगोष्ठ्या प्रत्येकः पदार्थः गरिष्ठः एवास्ति इति प्रतीति: भवति स्म।
પ્રશ્ન 5.
‘अहम् निश्चिन्तः अभवम्।’ अत्र अहं शब्दः कस्मै प्रयुक्तः?
उत्तर :
‘अहं निश्चिन्तः अभवम्’ अत्र अहं शब्दः लेखकाय पण्डिताय श्रीमथुरानाथाय प्रयुक्तः।
પ્રશ્ન 6.
लेखकेन पुस्तकं कस्मै समर्पितम्?
उत्तर :
लेखकेन पुस्तकं साहित्यमर्मज्ञस्य नेतृमहोदयाय समर्पितम्।
પ્રશ્ન 7.
लेखकस्य अभियोगस्य विरोधे पत्रं कः प्रेषितवान्?
उत्तर :
लेखकस्य अभियोगस्य विरोधे राजस्वविभागस्य अधिकारी एकं पत्रं प्रेषितवान्।
3. विवरणात्मक टिप्पणी लिखिए।
1. आघ्राणे अर्ध भोजनम् :
यह एक प्रकार का कल्पित न्याय है। संस्कृत-साहित्य में प्रयुक्त न्याय पाठ्य-पुस्तक के अंत में पठनीय हैं। इन न्यायों में से कई व्यवहार के अनुभवों पर निर्मित है। यह न्याय भी ऐसे ही किसी व्यवहार के आधार पर निर्मित है। लेखक एक भोजन-गोष्ठी में उपस्थित है। यहाँ विविध व्यञ्जनों को परोसा जा रहा है। लेखक कुछ भी खा नहीं सकते थे, क्योंकि अस्वस्थ होने के कारण वैद्य ने गरिष्ठ (पचने में कठिन) पदार्थों का सेवन नहीं करने के लिए कहा था।
अतः वैद्य वचनानुसार वे भोजन-समारंभ में सम्पूर्ण भोजन का रसास्वादन नहीं कर सकते थे। अतः उस परिस्थिति में भोजन की सुगंध लेकर ही अपने मन को मना रहे थे। अत: स्वाभाविक है कि भोजन की सुगन्ध-मात्र से आस्वादन पूर्ण भोजन नहीं बन सकता है।
इस प्रकार लेखक ने भोजन की सुगन्ध से अर्धभोजन – आधा भोजन पूर्ण कर लेने की बात कही है। इस प्रकार जब भोजन सम्मुख हो तथा किसी कारणवश व्यक्ति संपूर्णता से उसका आस्वादन नहीं कर सकता हो तब वह सुगन्ध मात्र से ही आधा भोजन पूर्ण होने का अनुभव कर सकता है – संतोष प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार की मनः स्थिति व्यक्त करने हेतु इस न्याय का प्रयोग किया जा सकता है।
किन्तोः कुटिलता Summary in Hindi
सन्दर्भ : निबंध की साहित्यिक विधा वर्तमानकाल की देन है। संस्कृत में निबंध नामक एक प्रकार ग्रन्थों के लिए प्रचलित है। किसी एक धर्मशास्त्रीय विषय पर समसामयिक चर्चा से युक्त लघु ग्रंथ को निबंध ग्रन्थ के रूप में जाना जाता है। यथा श्राद्ध से संबद्ध विचार प्रकट करनेवाले श्राद्धप्रदीप: जैसे ग्रन्थ निबन्ध-ग्रन्थों के रूप में विख्यात है।
वर्तमान युग की इस विधा को स्वीकार करके वर्तमान में संस्कृत-साहित्य के विशारदों ने अनेक सुललित निबंधों की रचना की है। इस प्रकार के निबंध सामान्यतया संस्कृत भाषा की पत्रिकाओं में छपते रहते हैं। कुछ विद्वानों ने स्व लिखित निबंधों को संगृहीत करके पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित किए हैं।
राजस्थान के जयपुर-निवासी पं. मथुरानाथ ने समसामयिक विषयों पर अनेक सुंदर निबंध लिखे है। वे निबंध भिन्न-भिन्न समय पर भिन्न-भिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। उनमें से कुछ निबंधों को एकत्र संग्रह करके प्रबन्ध पारिजातः नामक एक निबन्धग्रन्थ प्रकाशित हुआ है।
उसमें किन्तोः कुटिलता शीर्षक से एक निबंध है। इस निबंध के एक लघु अंश को यहाँ सम्पादित करके पाठ्य- पुस्तक के नियत भाषास्तर के अनुरूप परिवर्तित करके प्रस्तुत पाठ तैयार किया गया है।
भाषा में प्रयुक्त एक लघु किन्तु शब्द किस-किस-प्रकार की विचित्र स्थितियाँ उत्पन्न करता है, यहाँ उसका सुन्दर आलेखन किया गया है। यदा-कदा अनुकूल परिस्थिति मानव-मन को पुलकित कर देती है, तब उस अवस्था में सहसा किन्तु शब्द का प्रवेश होता है एवं मन विषाद में मग्न हो जाता है।
यह ही किन्तु शब्द की कुटिलता है। इस प्रकार की तीन घटनाओं का वर्णन यहाँ इस पाठ में किया गया है।
किन्तोः कुटिलता शब्दार्थ
अन्वभवम् = अनुभव किया – अनु + भू धातु, ह्यस्तन भूतकाल, उत्तम पुरुष, एकवचन। द्वित्राः = दो-तीन -ढे वा तिस्रः वा – बहुव्रीहि समास। अभियोग: = न्याय प्राह्यर्थ न्यायालय में किया गया आवेदन, याचिका, केस या दावा। चलतिह्य = चलता था। यथाकालम् = समय के अनुसार, कालम् अनतिक्रम्य – अव्ययीभाव – समास। साक्षिजनानाम् = साक्षियों की – साक्षी चासौ जनः तेषाम् – कर्मधारय समास। साक्ष्यम् = साक्षी, प्रमाण। अस्मदीयानां वंशजानाम् = हमारे वंशजों का। वाक्कील: = वकील। भवदधिकारभुक्ता = आपके अधिकार से भुक्त (उपभोग किया हुआ)। भाग्यनिर्णयः = भाग्य का निर्णय – भाग्यस्य निर्णय: – षष्ठी तत्पुरुष समास। अभियोक्तु: = वादी का, दावा करनेवाले का। उपस्थापितम् = प्रस्तुत किया। परिज्ञातम् = जान लिया।
राजस्वविभागस्य राजस्व विभाग का। प्रेषितवान् = भेजा। लक्ष्यदानम् = ध्यान देना – लक्ष्यस्य दानम्। मन्यामहे = (हम) मानते हैं। – मन धातु, वर्तमानकाल, उत्तम पुरुष, बहुवचन। मदीया = मेरी। किन्तुकुन्तः = किन्तु रूपी शूल – भाला। समन्तात् = चारों ओर से। कृन्तति = बींधता है। नितान्तम् = सतत। अनुतापम् = संताप, दुःख। साहित्यमर्मज्ञस्य = साहित्य के मर्मज्ञ – जानकार का। नेतुः – नेता का। मुद्रण सौष्ठवम् = मुद्रण – छपाई की सुन्दरता। चित्र – योजनम् = चित्रों को सुव्यवस्थित करना। चित्रस्य/चित्राणाम् योजनम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। रूचिकरम् = मन को अच्छा लगनेवाला। क्षणद्वयान्तरम् = दो क्षण (मिनट) के पश्चात्। साक्षात्कारः = प्रत्यक्ष मिलन। कर-कमलयो: = हाथरूपी कमल में। अवोचत् = कहा।
बहुकालानन्तरम् = बहुत-समय के पश्चात्। मत्सम्मतौ = मेरी मान्यता के अनुसार। विलिख्य = लिखकर के। वि + लिन धातु + ल्यप् प्रत्यय – सम्बंधक भूत-कृदन्त। प्रतिनिवर्तमानः = वापस आते (लौटते) हुए। किन्तुकृताया: = ‘किन्तु’ शब्द के द्वारा की गई। मर्मवेधक शिक्षा = मर्म भेदी शिक्षण – मर्म को वींधनेवाला शिक्षण। मर्मस्य वेधिका – षष्ठी तत्पुरुष समास, मर्मवेधिका चासौ शिक्षा = मर्म वेधकशिक्षा। अमर्दयम् = मर्दन किया। पारयामि = पार पाता हूँ, पूर्ण करता हूँ। कवलम् = कौर। अवरोधयति = रोकता है। भोजगोष्ठयाम् = भोजनसमारंभ में। गरिष्ठपदार्थाः = भारी पदार्थ, पचने में कठिन पदार्थ।
निषिद्धम् = निषेध किया गया। अर्धमात्रायाम् = आधीमात्रा में। समाप्ता = पूर्ण – समाप्त हो गई। कण्ठनलिका = कंठ की नली। आघ्राणे अर्धभोजनम् = सूंघने मात्र से आधा भोजन हो गया। इति न्यायेन = इस न्याय से। सम्मुखमुपस्थिता = सामने उपस्थित। सम्पद्यते = होता है। हस्तगता = सहजता से प्राप्त। सफलतायाः मूर्तिः = सफलता की मूर्ति। किन्तो: कुटिलता = ‘किन्तु’ शब्द की कुटिलता। विराजते = सुशोभित होता है। रहता है।
अनुवाद:
जीवन के विविध क्षेत्रों में मैंने किन्तु की कुटिलता का अनुभव किया। मेरे जीवन में घटी हुई घटनाओं में से दो-तीन घटनाएँ मैं यहाँ वर्णन करता हूँ।
एक बार राज्य से प्राप्त मेरी भूमि का अभियोग न्यायालय में बहुत काल से चल रहा था। मेरे पक्ष से सभी आवश्यक प्रमाण यथा-काल दे दिये गए थे। साक्षी जनों का साक्ष्य भी मेरे पक्ष में हुआ कि वह भूमि हमारे वंशजों के अधिकार में है। अधिवक्ता (वकील) के द्वारा भी मुझे अभय दिया गया था कि यह भूमि प्रमाणों के बल से अवश्य ही आपकी अधिकारमुक्त (क्षेत्र की) हो जाएगी।
आज इस अभियोग के भाग्य-का निर्णय था। न्यायाधीश ने निर्णय कहा, ‘हम देखते हैं कि अभियुक्त के पक्ष से सभी आवश्यक प्रमाण यहाँ प्रस्तुत किए गए हैं। राज्य से प्राप्त भूमि के दान-पत्र भी प्रस्तुत किए गए हैं। न्यायालय के द्वारा यह ज्ञात हो चुका है कि यह भूमि अभियुक्त की अधिकार-भुक्ता (अधिकार-क्षेत्र) की है।
मैं निश्चित हो गया। परन्तु न्यायाधीश ने आगे कहा, ‘किन्तु राजस्व विभाग के अधिकारी ने इसके विरोध में एक पत्र भेजा है। हम मानते हैं, इस पर ध्यान देना आवश्यक है। अत: अब न्याय स्थगित किया जाता है।’
मेरी चिन्ता गई हुई भी वापस आ गई। न्यायाधीश का वह किन्तु रूपी भाला आज भी मेरे अन्त:करण को चारों ओर से वींधता है और अन्य (विषय) भी इस किन्तु शब्द के द्वारा आनन्द के अनुभव-प्रसंग में मैंने सतत संताप का अनुभव किया है।
एक बार अनेक वर्षों के परिश्रम से रची हुई वर्तमान में ही (अभी-अभी) प्रकाशित अपनी एक पुस्तक लेकर मैं एक साहित्य मर्मज्ञ के नेता के समीप गया। इस पुस्तक का विषय, उसकी प्रस्तुति, मुद्रण-सौंदर्य और चित्र-योजना सब कुछ सुन्दर था। नेता महोदय के लिए यह पुस्तक अवश्य रुचिकर होगी यह मेरी दृढ़ श्रद्धा थी। इस कारण मैं निश्चित था।
मैं उत्साहपूर्वक नेतामहोदय के घर गया। दो क्षणों के पश्चात् नेता महोदय का साक्षात्कार हो गया। मैंने नेता-महोदय के करकमलों में पुस्तक समर्पित की। पुस्तक देखकर नेता महोदय प्रसन्न हो गए। और उन्होंने कहा, ‘तुम्हारी पुस्तक वस्तुत: ही अद्भुत निर्मित की गई है। मैं बहुत काल के पश्चात् ऐसी पुस्तक देख रहा हूँ।’ तत्पश्चात् तत्काल ही उन्होंने कहा, ‘मेरे मतानुसार यह पुस्तक संस्कृत में न लिखकर हिन्दी में लिखी होती तो अच्छा होता।’
घर की ओर लौटते हुए मैं समस्त राजमार्ग पर भी ‘किन्तु’ (शब्द) के द्वारा की गई मर्मवेधक शिक्षा पर चिन्ता-मग्न होकर कान मोड (ऐंठ) रहा था। इस किन्तु (शब्द) के द्वारा मुझे जो शिक्षा दी गई उसे यदि तुम या मैं अनुसरण करूँ तो कदापि संस्कृत भाषा में पुस्तक नहीं लिख सकूँगा।
कदाचित् यह क्रूर किन्तु शब्द मुख के कौर को भी रोक लेता है। एक बार मैं (रोगी) रोग-ग्रस्त हुआ। वैद्य महोदय की कृपा से बहुत काल के पश्चात् मैं स्वस्थ हो गया। इस समय ही मित्र-गोष्ठी का निमन्त्रण प्राप्त हुआ। भोजन की गोष्ठी में जाने के लिए मेरी भी इच्छा हुई। मैं चिकित्सालय गया। वहाँ जाकर वैद्य से कहा, ‘क्या मैं भोजन – गोष्ठी में जाने के लिए समर्थ हूँ? उत्तर मिला, ‘आप जा सकते हैं। ………. किन्तु गरिष्ठ-पदार्थों का भोजन निषिद्ध है।’
वैद्य के वचनों को सुनकर भोजन-गोष्ठी में जाने की आधी इच्छा तो वहाँ ही समाप्त हो गई। तथापि मैं भोजन-गोष्ठी में गया। यहाँ वैद्य महोदय का किन्तु शब्द मेरे कंठ की नली में अटक गया था। भोजन-गोष्ठी में जिस-जिस पदार्थ को मैं देखता हूँ वह गरिष्ठ ही है ऐसा प्रतीत होता था। अतः भोजन के बिना ही मेरा भोजन समाप्त हो गया। सूंघने मात्र से ही आधा भोजन समाप्त हो जाता है। ‘आघ्राणे अर्ध भोजनम्’ इस न्याय से मैंने भोजन-गोष्ठी में संतोष कर लिया।
इस प्रकार कई बार इस किन्तु शब्द की शत्रुता (मेरे) सामने उपस्थित हुई है। कई बार मैंने देखा है जो कार्य सर्वथा पूर्ण प्रतीत होता है, सब-भाँति सिद्धि हस्तगत होती है, जैसे ही सफलता की मूर्ति मेरे सामने आती है वैसे ही यह क्रूर किन्तु (शब्द) बीच में प्रवेश करके सारे कार्य को नष्ट कर देता है। मानव के जीवन में किन्तु की यह कुटिलता प्राय: सर्वत्र विद्यमान है।