Gujarat Board GSEB Solutions Class 8 Hindi Chapter 4 कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 8 Hindi Chapter 4 कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री
कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री अभ्यास
1. (अ) कथनों का आशय स्पष्ट कीजिए :
प्रश्न 1.
“शास्त्री जी को निष्काम कर्मयोगी कहना अधिक उचित है।”
उत्तर :
शास्त्री जी के लिए कर्म ही ईश्वर था। बिना किसी फल की आशा के वे संपूर्ण भाव से कर्म में लगे रहते थे। जब भी उन्हें अपने कर्म का फल पाने के अवसर मिले, उन्होंने उनकी उपेक्षा की। फल पाने के लालच से उन्होंने कभी कोई काम नहीं किया। शास्त्री जी के इस स्वभाव को देखते हुए उन्हें केवल ‘कर्मयोगी’ कहना पर्याप्त नहीं है। उन्हें निष्काम कर्मयोगी ही कहना अधिक उचित है।
प्रश्न 2.
“शास्त्री जी का व्यक्तित्व बापू के अधिक करीब था।
उत्तर :
गाँधीजी देश के बहुत बड़े नेता थे। फिर भी उनमें अद्भुत विनम्रता, सादगी और सरलता थी। इन गुणों ने उन्हें अधिक महान और लोकप्रिय बना दिया था। गाँधीजी के ये गुण लालबहादुर शास्त्री में भी थे। इसीलिए शास्त्री जी का व्यक्तित्व बापू से अधिक करीब था।
प्रश्न 3.
“शास्त्री जी का संपूर्ण जीवन श्रम, सेवा, सादगी और समर्पण का अनुपम उदाहरण है।”
उत्तर :
शास्त्री जी कर्म को ईश्वर मानकर उसकी पूजा के रूप में श्रम करते थे। देश और समाज की सेवा में ही उन्हें जीवन की सार्थकता लगती थी। उन्हें सादा भोजन और सादा पहनावा ही पसंद था। उन्होंने जो कुछ किया पूरी निष्ठा और लगन से किया। उनकी ये विशेषताएँ बहुत कम लोगों में पाई जाती हैं।
2. अगर महात्मा गाँधी आपके स्वप्न में आयें तो आप उनसे कौन-कौन से प्रश्न पूछेगे? और महात्मा गाँधी क्या-क्या उत्तर देंगे? सोचिए और बताइए।
उत्तर :
अगर महात्मा गाँधी मेरे स्वप्न में आएँ तो मैं उनसे निम्नलिखित प्रश्न पूछूगा और बापू उनके निम्नलिखित उत्तर देंगे।
मैं : बापूजी, सत्य क्या है?
गाँधीजी : जिसका नाश कभी नहीं होता, जो अनंत और सदा भरोसेलायक है, वही सत्य है।
मैं : बापूजी, क्या जीवन में पूरी तरह अहिंसक बनना संभव है?
गाँधीजी : जहाँ तक हो सके वहाँ तक किसी जीव को आघात नहीं पहुँचाना चाहिए।
मैं : बापूजी, आपने अपने व्यस्त जीवन में से अपनी आत्मकथा लिखने का समय कैसे निकाला?
गाँधीजी : मुझे कई बार लंबी – लंबी जेलयात्राएँ करनी पड़ती थीं। उनका उपयोग मैं आत्मकथा लिखने में करता था। आत्मकथा का अधिकांश भाग जेल में ही लिखा गया।
3. संवाद को आगे बढ़ाइए (जिसमें कम से कम आठ से दस प्रश्न और जवाब हों):
रिया : गाँधी जी का जन्म कब हुआ था?
सुनिल : गाँधी जी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 में हुआ था।
रिया : गाँधी जी ने उच्च शिक्षा कहाँ से प्राप्त की?
सुनिल : गाँधी जी ने इंग्लैंड से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी।
रिया : ……..
उत्तर :
रिया : गाँधीजी का जन्म कब हुआ था?
सुनिल : गाँधीजी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को हुआ था।
रिया : गाँधीजी ने उच्च शिक्षा कहाँ से प्राप्त की थी?
सुनिल : गाँधीजी ने इंग्लैंड से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी।
रिया : गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका क्यों गए थे?
सुनिल : गाँधीजी वकील के रूप में एक मुस्लिम व्यापारी का मुकदमा लड़ने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए थे।
रिया : दक्षिण अफ्रीका में रहकर गाँधीजी ने किसका विरोध किया?
सुनिल : दक्षिण अफ्रीका में रहकर गाँधीजी ने वहाँ की सरकार की रंगभेद की नीति का विरोध किया।
रिया : दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटकर गाँधीजी ने क्या किया?
सुनिल : दक्षिण अफ्रीका से भार, गैटकर गाँधीजी ने यहाँ चल रहे स्वतंत्रताआंदोलन को आगे बढ़ाया।
रिया : गाँधीजी ने राजनीति में अपना गुरु किसे बनाया?
सुनिल : गाँधीजी ने राजनीति में अपना गुरु गोपालकृष्ण गोखले को बनाया।
रिया : गाँधीजी ने नमक सत्याग्रह कब किया?
सुनिल : गाँधीजी ने सन् 1930 में नमक सत्याग्रह किया।
रिया : गाँधीजी ने चरखे को क्यों महत्त्व दिया?
सुनिल : गाँधीजी ने देश की गरीबी दूर करने के उद्देश्य से चरखे को महत्त्व दिया।
रिया : सन् 1942 में गाँधीजी ने कौन – सा आंदोलन किया?
सुनिल : सन् 1942 में गाँधीजी ने ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ का आंदोलन किया।
रिया : गाँधीजी की हत्या कब और कहाँ हुई?
सुनिल : गाँधीजी की हत्या 30 जनवरी, 1948 को राजधानी दिल्ली में
रिया : गाँधीजी की समाधि कहाँ है? वह किस नाम से प्रसिद्ध है?
सुनिल : गाँधीजी की समाधि दिल्ली में है। वह ‘राजघाट’ के नाम से प्रसिद्ध है।
4. निम्नलिखित परिच्छेद का शुद्ध रूप से अनुलेखन कीजिए :
कोलकाता में हमारा घर एक शांत जगह पर है। हमारे बगीचे की दीवार के उस तरफ एक सँकरी सड़क है। यह सँकरी सड़क वन प्रांत पर जाकर खत्म होती है। इस सड़क के दोनों ओर मकान हैं और अधिक यातायात न होने से यह बहुत ही शांत रहती है। सारे दिन इसके आसपास गिलहरियाँ एक-दूसरे का पीछा करती हैं। हमारे आस-पास के पेड़ों पर अनेक प्रकार के पक्षी दिखाई पड़ते हैं। सारा दिन हवा में पक्षियों का संगीत तैरता रहता है।
उत्तर :
वर्तनी, विरामचिह्न आदि का ध्यान रखकर सुवाच्य एवं सुंदर अक्षरों में इस परिच्छेद का अनुलेखन विद्यार्थी अपनी कॉपी में करें।
कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री स्वाध्याय
1. प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
शास्त्री जी ने देश की किस आकांक्षा को पूरा किया? कैसे?
उत्तर :
प्रधानमंत्री के रूप में पंडित नेहरू एक समृद्ध राजनीतिक विरासत छोड़कर गए थे। उनकी मृत्यु के बाद उसे कुशलतापूर्वक सँभालकर शास्त्री जी ने देश की आकांक्षा पूरी की। शास्त्री जी का चरित्र निर्मल था। उनमें अद्भुत संकल्पशक्ति थी।
राष्ट्र को लाभ पहुंचाना उनके हर कर्म का एकमात्र उद्देश्य रहता था। उनके इन्हीं गुणों के बल पर वे नेहरू जी की विरासत को सँभालने और उसे आगे बढ़ाने का कठिन काम पूरा कर सके।
(2) लालबहादुर शास्त्री पर गाँधी जी के आदर्शों का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
लालबहादुर शास्त्री का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था और उसीमें उनकी परवरिश भी हुई। प्रधानमंत्री जैसे ऊँचे पद पर पहुंचने पर भी वे सामान्य ही बने रहे। विनम्रता, सरलता, सादगी और जनसेवा की भावना उनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग बन गई थी।
ये सारे गुण महात्मा गाँधी के थे, जो शास्त्री जी में अपने आप आ गए थे। गाँधीजी की तरह उन्होंने अछूतोद्धार कार्यक्रम भी चलाया। इस प्रकार लालबहादुर शास्त्री पर गाँधीजी के आदर्शों का गहरा प्रभाव पड़ा।
(3) शास्त्री जी के संसदीय जीवन की शुरुआत कैसे हुई?
उत्तर :
शास्त्री जी में कार्य के प्रति गहरी निष्ठा थी। वे मेहनत करने की अदम्य क्षमता भी रखते थे। अपने इन्हीं गुणों के कारण सन् 1937 में वे संयुक्त प्रांत की व्यवस्थापिका सभा के लिए निर्वाचित हुए।
स्वतंत्रता – प्राप्ति के बाद कई बार वे संसद के लिए चुने गए। परंतु उनके संसदीय जीवन की वास्तविक शुरुआत सन् 1937 के निर्वाचन से ही हुई।
(4) छात्रों के दीक्षांत समारोह में शास्त्री जी ने कौन-से विचार व्यक्त किए?
उत्तर :
अलीगढ़ विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शास्त्री जी ने छात्रों से कहा था कि भविष्य में आप कुछ भी बनें, लेकिन सबसे पहले आप इस देश के नागरिक हैं। देश का संविधान आपको कुछ अधिकार देता है, साथ ही आप पर कुछ कर्तव्यों का भार भी डालता है।
देश में प्रजातंत्र होने के कारण प्रत्येक नागरिक को निजी स्वतंत्रता भी मिली है। इस स्वतंत्रता का उपयोग हमें समाज के हित में करना चाहिए।
2. परिच्छेद में रेखांकित शब्दों के अर्थ शब्दकोश में से ढूँढकर उन्हें शब्दकोश के क्रम में लिखिए :
विद्यार्थी जीवन को मानव जीवन की रीढ़ की हड्डी कहें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। विद्यार्थी काल में मानव में जो संस्कार पड़ जाते हैं, जीवन भर वही संस्कार अमिट रहते हैं। इसीलिए यही काल आधारशिला कहा गया है। यदि यह नींव दृढ़ बन जाती है तो जीवन सुदृढ़ और सुखी बन जाता है।
यदि इस काल में बालक कष्ट सहन कर लेता है तो उसे ज्ञान मिलता है, उसका मानसिक विकास होता है, जिस वृक्ष को प्रारंभ से सुंदर सिंचन और खाद मिल जाती है, वह पुष्पित एवं पल्लवित होकर संसार को सौरभ देने लगता है।
इस प्रकार विद्यार्थी काल में जो बालक श्रम, अनुशासन, संयम एवं नियमन के साँचे में ढल जाता है, वह आदर्श विद्यार्थी बनकर सभ्य नागरिक बन जाता है।
उत्तर :
रीढ़ – मेरुदंड
अमिट – अटल
आधारशिला – नींव
खाद – जमीन का उपजाऊपन बढ़ानेवाला पदार्थ
पल्लवित – विकसित, जिसमें पल्लव लगे हों
सौरभ – सुगंध
सभ्य – शिष्ट
शब्दों के अर्थ का शब्दकोश क्रम : अटल, जमीन का उपजाऊपन बढ़ानेवाला पदार्थ, नींव, मेरुदंड, विकसित, शिष्ट, सुगंध।
प्रश्न 3.
इस इकाई से हम लालबहादुर जी के जीवन में से कौन-कौन से सद्गुण ग्रहण कर सकते हैं?
उत्तर :
लालबहादुर जी छोटे कद के बड़े व्यक्ति थे। उनके जीवन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपना कर्तव्य निष्काम भाव से करना चाहिए। अपने उद्देश्य के प्रति हमारी दृढ़ आस्था हो। उसे पाने के लिए हमें कर्म में लगे रहना चाहिए तथा उसके प्रति हमारा संपूर्ण आत्मसमर्पण होना चाहिए।
हमारे जीवन में श्रम, सेवा, सरलता, विनम्रता और सादगी हो यह आवश्यक है। हम जो कहें, वही करें और अपने राष्ट्र को लाभ पहुंचाने की वृत्ति रखें। इस प्रकार हम शास्त्री जी के जीवन से अनेक सद्गुण ग्रहण कर सकते हैं।
प्रश्न 4.
एक था शेर। उसे अपनी ताकत पर बड़ा घमंड था। जंगल के प्राणियों ने उनको सबक सिखाने की बात सोची। छोटी चींटी बोली, “मैं शेर का घमंड उतार दूंगी। ……………………………….
अब आप इस कहानी को आगे बढ़ाइए और बताइए कि चींटी ने शेर का घमंड कैसे उतारा होगा?
उत्तर :
एक था शेर। उसे अपनी ताकत पर बड़ा घमंड था। जंगल के प्राणियों ने उसे सबक सिखाने की बात सोची। छोटी चींटी बोली, “मैं शेर का घमंड उतार दूंगी।”
चींटी अपने बिल में गई और वहाँ से बहुत – सी चींटियों को ले आई। शेर जहाँ सो रहा था, वहाँ जाकर सभी चींटियाँ शेर के शरीर पर चढ़ गई। वे उसके पेट, पीठ और टाँगों में बुरी तरह काटने लगीं। शेर उन्हें अपने पंजों से मारने की कोशिश करता था, तब वे उसके बालों में छिप जाती थीं।
थोड़े ही समय में शेर आकुलव्याकुल हो गया, उस चींटी ने उससे कहा, “वनराज, इन चींटियों से परेशान होना आपको शोभा नहीं देता। आपको तो अपनी ताकत पर बहुत घमंड है न?” शेर ने कहा, “चींटी बहन, मैंने तुमसे हार मान ली। अब मैं कभी अपनी ताकत पर घमंड नहीं करूंगा।
मैं शेर हूँ तो तुमने सवाशेर बनकर दिखा दिया।”
जंगल के प्राणियों ने खुश होकर चींटी का विजय – जुलूस निकाला।
Hindi Digest Std 8 GSEB कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री Important Questions and Answers
कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री प्रश्नोत्तर
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
प्रश्न 1.
शास्त्री जी के नाम के साथ ‘कर्मयोगी’ विशेषण लगाना क्यों उपयुक्त है?
उत्तर :
शास्त्री जी का सारा जीवन कर्ममय था। वे भाग्य पर भरोसा कर बैठनेवालों में नहीं थे। वे अपने चिंतन और कर्म – शक्ति पर भरोसा रखते थे, हाथ की लकीरों पर नहीं। उनके लिए कर्म ही उनका ईश्वर था। उसके प्रति वे निःस्वार्थ भाव से समर्पित थे।
इस प्रकार जीवनभर निष्काम कर्म में लगे रहने के कारण उनके नाम के साथ ‘कर्मयोगी’ विशेषण लगाना बिलकुल उपयुक्त है।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो – दो वाक्यों में दीजिए :
प्रश्न 1.
लालबहादुर शास्त्री जी प्रधानमंत्री के पद तक कैसे पहुँचे?
उत्तर :
शास्त्री जी निरंतर कर्म में लगे रहनेवाले कर्मयोगी थे। अपनी इसी विशेषता के कारण वे एक सामान्य परिवार से ऊपर उठकर देश के प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे थे।
प्रश्न 2.
शास्त्री जी देश के प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचे, उसका क्या रहस्य है? क्यों?
उत्तर :
शास्त्री जी उन लोगों में से नहीं थे, जो भाग्य के भरोसे बैठे रहते हैं और कभी अचानक सफलता प्राप्त कर लेते हैं। शास्त्री जी देश के प्रधानमंत्री के महत्त्वपूर्ण पद पर पहुँचे, उसका रहस्य उनके कर्मयोगी होने में ही छिपा हुआ है।
प्रश्न 3.
शास्त्री जी की सबसे बड़ी विशेषता क्या थी?
उत्तर :
शास्त्री जी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे एक साधारण परिवार में पैदा हुए थे और उनकी परवरिश भी साधारण परिवार में ही हुई थी। जब वे देश के प्रधानमंत्री बने तब भी वे साधारण ही बने रहे।
प्रश्न 4.
श्रीमती इंदिरा गाँधी शास्त्री जी को अपना राजनैतिक गुरु क्यों मानती थी?
उत्तर :
शास्त्री जी को भारतीय राजनीति की सही और गहरी जानकारी थी। इसीसे प्रभावित होकर श्रीमती इंदिरा गाँधी शास्त्री जी को अपना राजनैतिक गुरु मानती थी।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक – एक वाक्य में दीजिए :
प्रश्न 1.
शास्त्री जी किसे संपूर्ण भाव से समर्पित रहते थे?
उत्तर :
शास्त्री जी कर्म को ही अपना ईश्वर मानते थे और उसीके प्रति संपूर्ण भाव से समर्पित रहते थे।
प्रश्न 2.
शास्त्री जी का जीवन – दर्शन किसका प्रतिरूप था?
उत्तर :
शास्त्री जी का जीवन – दर्शन ‘गीता’ के निष्काम कर्मयोगी का प्रतिरूप था।
प्रश्न 3.
बाइबिल की कौन – सी उक्ति शास्त्री जी पर लागू होती है?
उत्तर :
बाइबिल की यह उक्ति शास्त्री जी पर लागू होती है – ‘विनम्र ही पृथ्वी के वारिस होंगे।’
प्रश्न 4.
शास्त्री जी की लोकप्रियता का कारण क्या था?
उत्तर :
शास्त्री जी की लोकप्रियता का कारण यह था कि वे हमेशा आत्मसंयम से काम लेते थे और अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों को अधिक महत्त्व देते थे।
प्रश्न 5.
शास्त्री जी के जीवन का संदेश क्या है?
उत्तर :
शास्त्री जी के जीवन का संदेश यह है : ‘कर्म के प्रति अटल आस्था और संपूर्ण समर्पण।’
4. कोष्ठक में से उचित शब्द चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए : (पद, कर्तव्यों, लोकसेवा मंडल, बापू, गीता, विचारों)
(1) शास्त्री जी का जीवन – दर्शन …………………………………………… के निष्काम कर्मयोगी का प्रतिरूप था।
(2) शास्त्री जी के व्यक्तित्व में …………………………………………… का अनोखा समन्वय था।
(3) शास्त्री जी ने …………………………………………… से प्रभावित होकर अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी।
(4) शास्त्री जी 1926 में …………………………………………… में शामिल हो गए।
(5) शास्त्री जी अपने को कभी भी अपने …………………………………………… के कारण ऊँचा नहीं मानते थे।
(6) शास्त्री जी ने अधिकारों से अधिक …………………………………………… को तरजीह दी।
उत्तर :
(1) शास्त्री जी का जीवन – दर्शन गीता के निष्काम कर्मयोग का प्रतिरूप था।
(2) शास्त्री जी के व्यक्तित्व में विचारों का अनोखा समन्वय था।
(3) शास्त्री जी ने बापू से प्रभावित होकर अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी।
(4) शास्त्री जी 1926 में लोकसेवा मंडल में शामिल हो गए।
(5) शास्त्री जी अपने को कभी भी अपने पद के कारण ऊँचा नहीं मानते थे।
(6) शास्त्री जी ने अधिकारों से अधिक कर्तव्यों को तरजीह दी।
5. सही वाक्यांश चुनकर पूरा वाक्य फिर से लिखिए :
प्रश्न 1.
शास्त्री जी लोकसेवा मंडल में शामिल हो गए, क्योंकि ………………………………………
(अ) वे सामाजिक कार्य करना चाहते थे।
(ब) उसके अध्यक्ष से वे बहुत प्रभावित थे।
(क) उसमें शामिल होने के लिए शुल्क नहीं देना पड़ता था।
उत्तर :
शास्त्री जी लोकसेवा मंडल में शामिल हो गए, क्योंकि वे सामाजिक कार्य करना चाहते थे।
प्रश्न 2.
शास्त्री जी सन् 1932 में जेल गए, क्योंकि ………………………………………….
(अ) वे नमक कानून तोड़ने के आंदोलन में शामिल हुए थे।
(ब) उन्होंने किसान – आंदोलन में भाग लिया था।
(क) वे ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के प्रमुख नेता थे।
उत्तर :
शास्त्री जी सन् 1932 में जेल गए, क्योंकि उन्होंने किसान – आंदोलन में भाग लिया था।
प्रश्न 3.
लालबहादुर शास्त्री केंद्रीय सरकार में मंत्री बने, क्योंकि …
(अ) जनता ने इसके लिए मांग की थी।
(ब) राष्ट्रपति ने उनके लिए सिफारिश की थी।
(क) नेहरू जी ने उनसे इसके लिए अनुरोध किया था।
उत्तर :
लालबहादुर शास्त्री केंद्रीय सरकार में मंत्री बने, क्योंकि नेहरू जी ने उनसे इसके लिए अनुरोध किया था।
6. निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए :
प्रश्न 1.
शास्त्री जी के लिए कर्म क्या था?
A. धर्म
B. भक्ति
C. जीवन
D. ईश्वर
उत्तर :
D. ईश्वर
प्रश्न 2.
‘विनम्र ही पृथ्वी के वारिस होंगे।’ – यह उक्ति ………………………………………. की है।
A. बाइबिल
B. गीता
C. कुरान
D. रामायण
उत्तर :
A. बाइबिल
प्रश्न 3.
शास्त्री जी ने अपनी शिक्षा कहाँ पूरी की?
A. नागपुर विश्वविद्यालय में
B. काशी विद्यापीठ में
C. मुंबई विश्वविद्यालय में
D. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में
उत्तर :
B. काशी विद्यापीठ में
प्रश्न 4.
भारत के नौवें राष्ट्रपति कौन थे?
A. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
B. श्री शंकरदयाल शर्मा
C. सरदार जेलसिंह
D. डॉ. राधाकृष्णन्
उत्तर :
B. श्री शंकरदयाल शर्मा
7. निम्नलिखित वाक्यों में से अव्यय छाँटिए। आपने जो ‘अव्यय’ छाँटे हैं, उनके आधारित अन्य वाक्य बनाइए :
(1) आज मैंने बहुत कम खाना खाया।
(2) अंजली, सोनल के आगे बैठी है।
(3) मीनाक्षी और सालवी गाँव जा रही हैं।
(4) अरे! ये क्या कर रहे हो?
उत्तर :
(1) आज – क्रियाविशेषण अव्यय।
(2) आगे – संबंधबोधक अव्यय।
(3) और – समुच्चयबोधक अव्यय।
(4) अरे – विस्मयादिबोधक अव्यय।
इन अव्ययों पर आधारित वाक्य :
- हम आज घूमने जाएंगे।
- गाँधीजी सबसे आगे चल रहे थे।
- सोनल और मीना सिनेमा देखने गई हैं।
- अरे! विजय, तुम यहाँ कैसे?
योग्यता विस्तार
प्रश्न 1.
‘मेरा प्रिय नेता’ विषय पर निबंध लिखिए।
उत्तर :
मेरा प्रिय नेता
भारत नेताओं की भूमि है। गोखले, तिलक, महात्मा गाँधी, सुभाषचंद्र बोस, सरदार पटेल, पंडित नेहरू, लालबहादुर शास्त्री आदि अनेक नेताओं के नाम भारत के इतिहास में अमर हो गए हैं। यद्यपि सभी नेताओं के प्रति मेरे मन में आदर है, पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी मेरे सबसे अधिक आदरणीय और प्रिय नेता हैं।
गाँधीजी का जन्म गुजरात के पोरबंदर नगर में सन् 1869 की दूसरी अक्तूबर को हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गाँधी और माता का नाम पुतलीबाई था। स्वदेश में पढ़ाई पूरी करने के बाद वे विदेश गए और बैरिस्टर बनकर भारत लौटे।
इसके बाद वे दक्षिण अफ्रीका चले गए। वहाँ भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने अहिंसक सत्याग्रह किया और उसमें सफलता प्राप्त की। इसके बाद स्वदेश आकर उन्होंने भारत की आजादी के लिए अहिंसात्मक आंदोलन चलाए। उनके भगीरथ प्रयत्नों से भारत की जनता जाग्रत हुई।
उनकी पुकार जनता की पुकार बनी। उन्होंने भारत को स्वाधीनता दिलाकर ही चैन की साँस ली। सचमुच, गाँधीजी एक आदर्श लोकनेता थे।
गाँधीजी ने नए समाज की नींव डाली। उन्होंने तकली और चरखे द्वारा गरीब भारतवासियों की रोजी – रोटी की समस्या हल करने की कोशिश की। उन्होंने अछूतों और मजदूरों का उद्धार किया। शराबबंदी, निरक्षरता – निवारण, स्त्री – शिक्षा, ग्रामोद्धार आदि के लिए उन्होंने जी – तोड़ प्रयत्न किए।
देशवासियों के कल्याण के लिए वे जीवनभर प्रयत्नशील रहे।
गाँधीजी सत्य, अहिंसा और प्रेम के पुजारी थे। वे वास्तव में भारत की गरीब जनता के सच्चे प्रतिनिधि थे। वे सही अर्थ में ‘बापू’ थे। वे दया और क्षमा के अवतार थे। उन्होंने नए भारत का निर्माण किया। इसीलिए वे भारत के ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में प्रसिद्ध हुए।
ऐसे युगनिर्माता महापुरुष महात्मा गांधी मेरे प्रिय नेता हैं।
प्रश्न.
(2) राष्ट्रीय नेताओं के चित्र चार्ट पर चिपकाइए।
(3) जिनमें राष्ट्रीय नेता का चित्र / तसवीर हो, ऐसे डाकटिकटों का संग्रह कीजिए।
(4) किसी राष्ट्रीय नेता के जीवन के दो प्रेरक प्रसंग सुनाइए।
(5) ‘नमक सत्याग्रह’ और ‘हिन्द छोड़ो’ आंदोलन के बारे में सचित्र जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
‘नमक सत्याग्रह’
ब्रिटिश सरकार ने नमक पर कर लगाया था। इससे नमक महँगा हो गया। गाँधीजी ने इसका विरोध किया। 12 मार्च, 1930 को उन्होंने साबरमती से दांडी की ओर कूच की। हजारों लोगों ने उनका साथ दिया। दांडी पहुँचकर और समुद्र के किनारे से नमक उठाकर उन्होंने नमक का कानून तोड़ा। गुजरात के धारासणा में सरोजिनी नायडू के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह हुआ था।
“हिन्द छोड़ो’ आदोलन
‘हिन्द छोड़ो’ आंदोलन 1939 में विश्वयुद्ध आरंभ हुआ। भारतवासियों की इच्छा इस युद्ध में शामिल होने की नहीं थी। फिर भी अंग्रेज सरकार ने भारतीय जवानों को सेना में भरती कर इस युद्ध में लड़ने के लिए भेजा। अंग्रेजों को इस युद्ध में भारतीयों के संपूर्ण सहयोग की आवश्यकता थी।
कांग्रेस ने इसके लिए भारत में राष्ट्रीय सरकार की स्थापना की माँग की। सरकार ने इस माँग को ठुकरा दिया। इसके विरोध में अगस्त 1942 में गाँधीजी ने ‘करेंगे या मरेंगे’ का नारा देते हुए अंग्रेजों से भारत छोड़ने को कहा। ‘हिन्द छोड़ो’ आंदोलन ने ही भारत को स्वतंत्रता दिलाने की भूमिका तैयार की।
प्रश्न 6.
महापुरुष और उनके नारों की सूची बनाइए :
उत्तर :
महापुरुष – नारा
- गाँधीजी : “करेंगे या मरेंगे।”
- सुभाषचंद्र बोस : “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।”
- लालबहादुर शास्त्री : “जय जवान, जय किसान।”
- लोकमान्य तिलक : “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।”
- जवाहरलाल नेहरू : आराम हराम है।’
प्रश्न 7.
निम्नांकित कोष्ठक में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दस अमर क्रांतिकारियों के नाम छिपे हैं। यदि आप अपनी बुद्धि से रिक्त स्थानों में सही अक्षर भर सके, तो वे नाम स्पष्ट हो जाएँगे। जरा उठाइए अपनी कलम और इस्तेमाल कीजिए अपनी बुद्धि का।
उत्तर :
- अजीतसिंह
- अमीरचंद
- सावरकर
- यशपाल
- रामप्रसाद बिस्मिल
- शचींद्र सान्याल
- चंद्रशेखर आजाद
- बटुकेश्वर दत्त
- भगतसिंह
- मंगल पांडे
कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री Summary in Hindi
कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री पाठ का सार
महान कर्मयोगी : लालबहादुर शास्त्री महान कर्मयोगी थे। वे भाग्य के भरोसे बैठनेवाले व्यक्ति नहीं थे। उनके लिए कर्म ही ईश्वर था। कर्म के प्रति बिना किसी फल की आशा किए वे पूरी तरह समर्पित थे। उनमें ‘गीता’ के निष्काम कर्मयोगी के लक्षण देखे जा सकते हैं।
तीन मुख्य बातें : शास्त्री जी के चरित्र और जीवन – दर्शन में तीन बातें मुख्य थीं : (1) अपने उद्देश्य के प्रति दृढ़ आस्था, (2) उस उद्देश्य को पाने के लिए कर्मयोग का अनुसरण और (3) कर्म के प्रति पूर्ण समर्पण। शास्त्री जी मानते थे कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए समर्पित भाव से कर्म करना जरूरी है। कर्म के प्रति मन में भक्ति होनी चाहिए।
शास्त्री जी की विशेषताएँ : शास्त्री जी जो कुछ कहते थे, वही करते थे। वे जो कुछ भी करते थे, वह राष्ट्र के लाभ के लिए ही करते थे। वे विशिष्ट होकर भी जीवनभर सामान्य बने रहे! विनम्रता, सादगी और सरलता उनके व्यक्तित्व में घुल – मिल गई थीं।
वे जीवनभर महात्मा गाँधी तथा डॉ. भगवानदास के आदर्शों पर चलते रहे। ‘विनम्र ही पृथ्वी के वारिस बनेंगे।’ – बाइबिल की यह उक्ति उन पर बिलकुल सही बैठती थी। वे स्वयं को कभी शासक न मानकर हमेशा जनता का सेवक ही मानते थे।
लोकसेवा मंडल : शास्त्री जी सन् 1926 में ‘लोकसेवा मंडल’ के सदस्य बने और जीवनभर उसके सदस्य रहे। इस संस्था के द्वारा ही उन्होंने अछूतों के उद्धार का कार्यक्रम चलाया।
जेलयात्राएँ : शास्त्री जी सन् 1930 में नमक कानून तोड़ने के सिलसिले में जेल गए। सन् 1942 तक कुल मिलाकर वे सात बार जेल गए।
विभिन्न अनुभव : सन् 1935 में वे संयुक्त प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव बने। सन् 1936 में उन्हें किसानों की दशा का अध्ययन करनेवाली एक कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। उसकी जो रिपोर्ट उन्होंने पेश की, उसमें जमींदारी – उन्मूलन पर विशेष जोर दिया गया था।
वे 6 वर्षों तक इलाहाबाद की नगरपालिका से भी जुड़े रहे। इस प्रकार विभिन्न पदों पर काम करते हुए उन्हें देहाती और शहरी जनता की विभिन्न समस्याओं से परिचित होने का अवसर मिला। सन् 1937 में वे संयुक्त प्रांत की व्यवस्थापिका सभा के लिए चुने गए। यह उनके संसदीय जीवन की शुरुआत थी।
स्वतंत्रता के बाद : देश की स्वतंत्रता के बाद वे उत्तर प्रदेश तथा केंद्र सरकार के विभिन्न पदों पर रहे। केंद्रीय मंत्री के रूप में उन्होंने परिवहन, संचार, वाणिज्य, उद्योग तथा गृहमंत्रालय की जिम्मेदारियाँ सँभालीं। हर पद पर रहकर उन्होंने अपनी प्रशासकीय क्षमता का परिचय दिया।
उनका दृष्टिकोण अत्यंत व्यावहारिक होता था। 19 महीने तक प्रधानमंत्री के पद पर रहकर उन्होंने उल्लेखनीय सफलताएँ और लोकप्रियता प्राप्त की।
संदेश : शास्त्री जी कहते थे कि आपका कर्मक्षेत्र कोई भी हो, सबसे पहले आप देश के नागरिक हैं। संविधान ने आपको कुछ अधिकार दिए हैं, तो कुछ कर्तव्य भी सौंपे है। आपको जो स्वतंत्रता मिली है, उसका उपयोग देश और समाज के हित में होना चाहिए।
कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री Summary in English
Great performer of action : Lalbahadur Shastri was a great performer of action. He was not such a man who depended only on luck. He believed that work is God. He was completely devoted to action without expectation of fruit. The characteristics not to expect the fruit of action of ‘The Geeta’ were seen in him.
The three main subjects : There were three main subjects in Shastriji’s character and philosophy of life : (1) Firm faith in our own aim, (2) Performing action to reach the aim, (3) Complete dedication to action. Shastriji believed that to be successful in any field of life it is necessary to perform our actions with the spirit of dedication. We must have devotion towards action in our mind.
Peculiarity of Shastriji : Shastriji would do whatever he said. Whatever he would do, it was for welfare of the nation. He lived the whole life as a simple man. Humbleness, simplicity and easy going nature made his personality attractive in a unique manner. He lived his whole life according to the ideals of Mahatma Gandhi and Dr Bhagavandas. ‘Only humble people will be the heirs of the world.’
The saying of the Bible completely suit to him. He never believed himself a ruler, he believed himself the servant of the people.
Lokseva Mandal (Organisation of Public Service) : Shastriji became a member of Lokseva Mandal in 1926 and remained one throughout his life. Through this organisation he started the movement of deliverance for untouchable people.
Prison life : Because of breaking the salt law he went to jail in 1930. He went to jail for seven times by 1942.
Different experiences : He became the sachiv of Regional Congress Committee in 1935. In 1936 he was selected as the president of the committee to study the condition of farmers. In his report he emphasized to end the rule of landlordship. He remained associated with Allahabad Municipality for 6 years. In this way, he got the chance to know the problems of rural and urban people. He was elected for Regional Management Assembly in 1937. In this way his parliamentary life began.
After independence : After independence he remained on different posts of Uttar Pradesh and Central government. As a cabinet minister he performed his responsibilities of transport, communication, commerce, industry and home ministry. He proved his efficiency in his administration of his each post. He had a great practical outlook. He performed his duty as the Prime Minister for 19 months and gained remarkable success and popularity.
Message : Shastriji would say, “You may have any field of work, first of all you are a citizen of the country. The constitution has given you some rights, as well as some responsibilities. You should use your freedom which you have gained, for the welfare of the country and the society.”
कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री Summary in Gujarati
कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री ગુજરાતી સારાંશ
મહાન કર્મયોગી લાલબહાદુર શાસ્ત્રી મહાન કર્મયોગી હતા. તેઓ ભાગ્યને ભરોસે બેસી રહેનારા માણસ નહોતા. તેઓ કર્મને જ ઈશ્વર માનતા. ફળની આશા રાખ્યા વિના તેઓ કર્મ પ્રત્યે પૂર્ણ રૂપે સમર્પિત હતા. તેમનામાં “ગીતા’ના નિષ્કામ કર્મયોગીનાં લક્ષણો જોવા મળે છે.
ત્રણ મુખ્ય બાબતો શાસ્ત્રીજીના ચરિત્ર અને જીવન-દર્શનમાં ત્રણ બાબતો મુખ્ય હતી : (1) પોતાના ઉદ્દેશ્ય પ્રત્યે દઢ શ્રદ્ધા, (2) તે ઉદ્દેશ્યને પ્રાપ્ત કરવા માટે કર્મયોગનું અનુસરણ અને (3) કર્મ પ્રત્યે પૂર્ણ સમર્પણ. શાસ્ત્રીજી માનતા હતા કે જીવનના કોઈ પણ ક્ષેત્રમાં સફળ થવા માટે સમર્પિત ભાવનાથી કર્મ કરવાં જરૂરી છે. કર્મ પ્રત્યે મનમાં ભક્તિ હોવી જોઈએ.
શાસ્ત્રીજીની વિશેષતાઓ શાસ્ત્રીજી જે કાંઈ કહેતા, તે જ કરતા. તેઓ જે કાંઈ કરતા, તે રાષ્ટ્રના હિતને માટે જ કરતા. તેઓ વિશિષ્ટ વ્યક્તિ હોવા છતાં જીવનભર સામાન્ય વ્યક્તિ બનીને જ રહ્યા ! વિનમ્રતા, સાદાઈ અને સરળતા તેમના વ્યક્તિત્વમાં ઓતપ્રોત થઈ ગયાં હતાં.
તેમણે સમસ્ત જીવન મહાત્મા ગાંધી અને ડૉ. ભગવાનદાસના આદર્શો અનુસાર વિતાવ્યું. ‘વિનમ્ર લોકો જ સંસારના વારસદાર બનશે.’ – બાઇબલની આ ઉક્તિ તેમને અક્ષરશઃ લાગુ પડે છે. તેઓ પોતાને કદી શાસક માનતા નહોતા, જનતાના સેવક જ માનતા હતા.
લોકસેવા મંડળઃ શાસ્ત્રીજી ઈ. સ. 1926માં ‘લોકસેવા મંડળ’ના સભ્ય બન્યા અને જીવનભર તેના સભ્ય રહ્યા. આ સંસ્થા દ્વારા જ તેમણે અછૂતોદ્ધારનો કાર્યક્રમ ચલાવ્યો.
જેલયાત્રાઓ : શાસ્ત્રીજી ઈ. સ. 1930માં મીઠાનો કાયદો તોડવાના કારણે જેલમાં ગયા. ઈ. સ. 1942 સુધીમાં તેઓ કુલ સાત વખત જેલમાં ગયા હતા.
જુદા જુદા અનુભવોઃ ઈ. સ. 1935માં તેઓ સંયુક્ત પ્રાંતીય કોંગ્રેસ સમિતિના સચિવ બન્યા. ઈ. સ. 1936માં તેમને ખેડૂતોની પરિસ્થિતિનો અભ્યાસ કરનારી સમિતિના અધ્યક્ષ બનાવવામાં આવ્યા. તેનો જે રિપોર્ટ તેમણે રજૂ કર્યો તેમાં જમીનદારી પ્રથાનો અંત કરવા પર વિશેષ ભાર મૂકવામાં આવ્યો હતો. તેઓ 6 વર્ષ સુધી અલાહાબાદની નગરપાલિકા સાથે પણ સંકળાયેલા રહ્યા.
આમ, જુદાં જુદાં પદ પર રહીને કાર્ય કરતી વખતે તેમને ગ્રામીણ અને શહેરી જનતાની જુદી જુદી સમસ્યાઓથી માહિતગાર થવાનો અવસર મળ્યો. ઈ. સ. 1937માં તેમને સંયુક્ત પ્રાંતની વ્યવસ્થાપિકા સભાને માટે ચૂંટવામાં આવ્યા. આ રીતે તેમના સંસદીય જીવનની શરૂઆત થઈ.
સ્વતંત્રતા પછીઃ દેશને સ્વતંત્રતા મળ્યા પછી તેઓ ઉત્તર પ્રદેશ અને કેન્દ્ર સરકારનાં જુદાં જુદાં પદ પર રહ્યા. કેન્દ્રીય મંત્રી તરીકે તેમણે પરિવહન, સંચાર, વાણિજ્ય, ઉદ્યોગ તથા ગૃહમંત્રાલયની જવાબદારીઓ સંભાળી. દરેક પદ પર રહીને તેમણે પોતાની શાસકીય ક્ષમતાનો પરિચય આપ્યો.
તેમનો દષ્ટિકોણ અત્યંત વ્યાવહારિક રહેતો. 19 માસ સુધી પ્રધાનમંત્રીના પદ પર રહીને તેમણે ઉલ્લેખનીય સફળતા અને લોકપ્રિયતા પ્રાપ્ત કરી.
સંદેશઃ શાસ્ત્રીજી કહેતા કે તમારું કર્મક્ષેત્ર ગમે તે હોય, સૌથી પહેલાં તમે દેશના નાગરિક છો. સંવિધાને તમને કેટલાક અધિકારો આપ્યા છે, તો કેટલાંક કર્તવ્યો પણ સોંપ્યાં છે. તમને જે સ્વતંત્રતા મળી છે, તેનો ઉપયોગ દેશ અને સમાજના હિતમાં કરવો જોઈએ.
विषय – प्रवेश
लालबहादुर शास्त्री भारत के लोकप्रिय नेता थे। जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद वे स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने। इस पद पर वे केवल 19 महीने रहे। इस दरमियान देश कठिन परीक्षा की घड़ी से गुजरा। पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया।
भारतीय सेनाओं ने उसका मुँहतोड़ उत्तर दिया। सारी दुनिया ने शास्त्री जी के नेतृत्व का लोहा माना। इस पाठ में लेखक ने कर्म को ही ईश्वर माननेवाले शास्त्री जी के व्यक्तित्व का सुंदर विश्लेषण किया है।
कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री शब्दार्थ (Meanings)
- कर्मयोगी – कर्ममार्ग का अनुसरण करनेवाला, सदा फल की अपेक्षा न रखकर कर्म करनेवाला; performer of action
- उपयुक्त – उचित; proper
- रहस्य – भेद; secret
- बजाय – बदले; instead
- चिंतन – मनन, सोचना, विचारना; thinking
- क्रमशः – क्रम अनुसार, धीरे – धीरे; gradually, slowly
- समर्पित – न्योछावर, अर्पित होना; dedicated
- उपेक्षित – उदासीन, बेपरवाह; neglected
- निष्काम – फल की अपेक्षा न रखना, अनासक्त; not to expect the fruit of work
- प्रतिरूप – उदाहरण, नमूना; illustration, example
- आस्था – श्रद्धा; faith
- जीवनदर्शन – जीवन में अपनाई हुई विचारधारा; philosophy of life
- दायित्वजिम्मेदारी; responsibility
- समन्वय – मेल; co – ordination
- निहित – भीतर रहा हुआ; to have in
- अनुपम – बेजोड़; unique
- अभिव्यक्ति पाना – प्रकट होना; to express
- अहसास – अनुभव; experience
- विरासत – उत्तराधिकार; hereditary right
- निर्मल – शुद्ध, पवित्र; pure, holy
- संकल्प – निश्चय; decision, vow
- आकांक्षा – इच्छा, अपेक्षा; expectation
- परवरिश – पालनपोषण; bringing up
- विनम्रता – विनय; politeness
- प्रभाव – असर; effect
- बाइबिल – ईसाइयों की धर्मपुस्तक; Bible, the religious book of Christians
- वारिस – उत्तराधिकारी, रक्षक; heir, protector
- आह्वान – ललकार, चुनौती; challenge
- अनुरूप – अनुसार, योग्य; suitable
- अध्याय – पाठ, प्रकरण; lesson, chapter
- अंदाजा – अनुमान; guess, estimate
- ललक – तीव्र इच्छा; keen desire
- दौरान – दरमियान; during
- लगाव – संबंध, आकर्षण; relation, attraction
- अध्यक्ष – किसी संस्था का प्रधान; president
- उन्मूलन – जड़मूल से नष्ट करना; to destruct
- निराकरण – समाधान; compromise
- अदम्य – उत्कट, जो दबाया ना जा सके; irrepressible
- क्षमता – शक्ति; efficiency
- निर्वाचित – बहुमत द्वारा चुना हुआ; elected by majority
- सही मायने में – सच्चे अर्थ में, वास्तव में; in fact
- समापन – समाप्ति; conclusion, end
- परिवहन – माल, सामान आदि एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना; transport
- संचार – संदेशवहन; communication
- प्रशासकीय – शासन से संबंधित; related to government
- दक्षता – निपुणता; proficiency, skill
- औपचारिकता – जो केवल कहने – सुनने या दिखलाने के लिए ही हो; formality
- निधन – मृत्यु; death
- धुंधलापन – (यहाँ) अस्पष्टता; (here) unclear, faint
- भटकाव – लक्ष्य को छोड़कर इधरउधर होना; to wander leaving the aim
- तरहीज – प्राधान्य, महत्त्व; priority, importance
- तहत – अधीन; subject to, subordinate to