Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Vyakaran वर्तनी Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 9 Hindi Vyakaran वर्तनी
वर्तनी को उर्दू में ‘हिज्जे’ और अंग्रेजी में ‘Spelling कहा जाता है। जिस शब्द में जितने वर्ण या अक्षर जिस अनुक्रम में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें उसी क्रम में लिखना ही ‘वर्तनी’ है।
हम वर्तनी संबंधी कुछ जानकारियों का अभ्यास करेंगे। उन्हें लिखते एवं बोलते समय मनन करने से वर्तनीदोष निश्चित रूप से दूर हो जाएगावर्णो की लिखावट में सावधानी :
- ‘ख’ को ‘रव’ की तरह न लिखें इससे ‘ख’, ‘रव’ बनकर वर्ण से शब्द बन जाएगा और अर्थ हो जाएगा – दाना। जैसे रवादार (दानेदार)
- ‘घ’ पर पूरी शिरोरेखा होती है, जबकि ‘त’ वर्गीय व्यंजन ‘ध’ का पूर्व का गोलवाला शिरा मुड़ा होता है और मुड़े भाग तथा शिरोरेखा के बीच रिक्त स्थान रहता है।
- इसी तरह थ, भ, य, श, क्ष और श्र की लिखावट में ऊपर से मुड़े भाग के ऊपर शिरोरेखा नहीं होती। भ के ऊपर पूरी तरह से शिरोरेखा देने से ‘म’ का भ्रम पैदा हो सकता है।
निम्नांकित संयुक्ताक्षर एवं इन संयुक्ताक्षरों का जिन शब्दों में उपयोग हुआ है, ऐसे शब्दों का अध्ययन कीजिए :
द + व = दु – विद्वान, द्वार
द् + द = द्द – तहन, राजगद्दी
द् + म = द्म – पद्म, छद्म
द् + य = ध – पद्य, विद्या
द् + ध = द्ध – युद्ध, प्रसिद्ध
द् + घ = ध – उद्घाटन, उपोद्घात
ह + य = ह्य – बाहा, सह्य
ह + ॠ = ह – हृदय, अपहत
श् + र = अ – श्रवण, श्रेष्ठ
ट् + र = ट्र – राष्ट्र, ट्रक
संयुक्ताक्षरों का प्रयोग हुआ हो, ऐसे अन्य शब्द अपनी कापी में लिखिए :
अनुस्वार और चन्द्रबिन्दु :
पूर्ण अनुस्वार | अर्ध-अनुस्वार (चन्द्रबिन्दु) |
आंत | आँत |
गंध | गाँव |
तंतु | ताँत |
दंभ | दाँत |
पंच | पाँच |
हंस | हँसी |
ऊपर दिये गए उदाहरणों में अंत, दंभ, पंच इत्यादि में जिस चिहन (.) का प्रयोग किया गया है, उसे ‘अनुस्वार’ कहते हैं; और आंत, दाँत, पाँच इत्यादि में जिस चिह्न (.) का प्रयोग हुआ है, उसे अर्ध-अनुस्वार या चन्द्रबिन्दु कहते हैं।
पूर्ण अनुस्वार दो तरह से लिखा जाता है। उसके लिखने की दोनों रीतें निम्नांकित हैं:
वर्ग के अंतिम अनुनासिक वर्ण के साथ | अनुस्वार के चिह्न के साथ |
शङ्कर, शंख – इ | शंकर, शंख |
अञ्जन, चञ्चल – ञ् | अंजन, चंचल |
घण्टा, डण्डा – ण | घंटा, डंडा |
चन्दन, सन्त – न् | चंदन, संत |
अर्धानुस्वार का उच्चारण पूरे अनुस्वार की अपेक्षा कोमल और हल्का होता है। इसे पूरे अनुस्वार की भाँति अनुनासिक वर्ण के साथ नहीं लिखा जा सकता। उदाहरण के लिए ‘अंत’ को हम ‘अन्त’ लिख सकते हैं, पर ‘आंख’ को ‘आन्ख’ नहीं लिख सकते। अतएव जहाँ अनुस्वार का उच्चारण कोमल हो और जिसे छ, ज, ण, न और म् आदि अनुनासिक संयुक्त वर्णों से न लिखा जा सके वहाँ अर्ध-अनुस्वार समझना चाहिए
और उसे चन्द्रबिन्दु के साथ लिखना चाहिए।
‘श’, ‘ष’ एवं ‘स’ का प्रयोग :
यदि किसी शब्द में ‘स’ हो और उसके पहले ‘अ’ या ‘आ’ हो तो ‘स’ नहीं बदलता।
जैसे – दस (‘स’ के पहले ‘अ’)
पास, घास, विश्वास, इतिहास (‘स’ के पहले ‘आ’) यदि अ / आ से भिन्न स्वर रहे तो ‘घ’ का प्रयोग होता है।
जैसे – प्रेषित, आकर्षित, विषम, भूषण, आकर्षण, हर्षित, धनुष आदि। ‘ह’ वर्ग के पूर्व ‘ष’ का प्रयोग होता है।
जैसे – क्लिष्ट, विशिष्ट, नष्ट, कष्ट, भ्रष्ट, षडानन, षोडश आदि। ‘ऋ’ के बाद ‘घ’ का प्रयोग होता है।
जैसे – ऋषि, कृषि, वृष्टि, कृषक, तृषित, ऋषभ आदि। आगे ‘च’ वर्ग रहने पर ‘श’ का प्रयोग होता है।
जैसे – निश्चित, निश्चय, निश्छल आदि। ..
यदि ‘श’ एवं ‘ध’ दोनों का साथ प्रयोग हो तो पहले ‘श’ फिर ‘ष’ का प्रयोग होगा। यदि ‘स’ भी रहे तो क्रमश: स, श और ष होगा।
जैसे – विशेष, शेष, शोषण, शीर्षक, विश्लेषण, संश्लेषण आदि।
क, ख, ग, ज और फ़ का प्रयोग :
1. डमरु – अकड़
डर – बड़ाई
डाक – रणछोड़
डाली – झाड़
2. ढंग – गढ़
ढब – पढ़ाई
ढेरी – बाढ़
ढोल – सीढ़ी
ऊपर दिये गए उदाहरणों को ध्यान से देखें। इनमें क, ख, ग, ज और फ़ के बगल में नुक्ता या बिन्दी लगाई गई है। इन शब्दों के बगल में बिन्दी केवल इनके उच्चारण को स्पष्ट करने के लिए लगाई जाती है। अरबी-फारसी भाषा के इन शब्दों में निर्देशित वर्गों का उच्चारण कोमल और हल्का होता है।
ड और द का प्रयोग :
ऊपर दिये गए नं. (1) और (2) के शब्दों को ध्यान से पड़िए। नुक्तावाले इन ‘इ’ और ‘द’ के संबंध में यह बात याद रखनेलायक है कि दोनों अक्षर कभी शब्द के शुरू में और अनुस्वार के बाद नहीं आते। हूस्व-दीर्घ की भूलों के उदाहरण :
‘इ’ की जगह ‘ई’ की भूलें :
‘ई’ की जगह ‘इ’ की भूलें:
‘ऊ’ की जगह ‘उ’ की भूलें :
‘उ’ की जगह ‘ऊ’ की भूलें :
हस्व-दीर्घ की भूलों के निर्देशित उदाहरणों के अलावा कुछ और भूलों के उदाहरण और उनसे बचने के सामान्य नियम निम्नांकित हैं :
जब संयुक्ताक्षर के अत्य स्वर पर भार हो तो उसके पहलेवाला वर्ण हस्व लिखा जाता है
इकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के बहुवचन के रूपों में दीर्घ ‘ई’ हूस्व ‘इ’ में बदल जाती है।
श्रेष्ठतावाचक शब्दों का प्रत्यय ‘इष्ट’ की जगह ‘इष्ठ’ होता है।
‘ईय’ प्रत्यय में ‘ई’ दीर्घ होती है।
सामान्यतया ‘इक’ प्रत्यय में ‘इ’ हुस्व होता है।
सामान्यतया ‘ईन’ प्रत्यय में ‘ ‘ दीर्घ होता है।
प्रत्यय संबंधी भूलें:
उपर्युक्त शब्दों के उदाहरण से पता चलता है कि प्रत्ययांत शब्दों के बाद प्रत्यय लगाना ठीक नहीं है।
हलन्त का प्रयोग :
मान् / वान् / हान् प्रत्ययान्त शब्दों में हलन्त का प्रयोग अवश्य होना चाहिए।
जैसे – श्रीमान्, आयुष्यमान्, महान्, विद्वान् ।
त् / मम् / उत् प्रत्ययान्त तत्सम शब्दों में हलन्त का प्रयोग किया जाता है।
जैसे – स्वागतम्, जगत्, परिषद्, पश्चात्, शरद्, सम्राट्, विद्युत आदि।
ये दोनों प्रचलित हैं और सही भी :
- दुकान – दूकान
- अंजलि – अंजली
- सरदी – सर्दी
- तुरग – तुरंग
- बिलकुल – बिल्कुल
- विहग – विहंग
- आत्मा – आतमा
- कलश – कलस
- धबराना – धबड़ाना
- चाहिए – चाहिये
- दम्पती – दम्पति
- पृथिवी – पृथ्वी
- वशिष्ठ – वसिष्ठ
- उषा – ऊषा
- गरमी – गर्मी
- वरदी – वर्दी
- भुजग – भुजंग
- हलुआ – हलवा
- रियासत – रिआसत
- सोसाइटी – सोसायटी
- मुस्कान – मुसकान
- एकत्र – एकत्रित
- ग्रस्त – ग्रसित
- जाए – जाये
- पिंजरा – पिजड़ा
- सामान्यतः – सामान्यतया
स्वाध्याय
निम्नलिखित शब्दों के शुद्ध रूप के सामने (✓) का चिहन लगाइए:
निम्नलिखित शब्दों में अशुद्ध वर्तनीवाले शब्द है। इन्हें छोटकर उनके सामने उनके शुद्ध रूप लिखिए ।
अशुद्ध वर्तनीवाले शब्द तथा उनके शुद्ध रूप
- उलंघन – उल्लंघन
- शुरु – शुरू
- निर्दयी – निर्दय
- अमावश्या – अमावस्या
- उसर – ऊसर
- एच्छिक – ऐच्छिक
- सहस्त्र – सहस्र
- एश्वर्य – ऐश्वयं
- डमरु – डमरू
- बढई – बढ़ई
- एनक – ऐनक
- हंसमुख – हंसमुख
- दिवार – दीवार
- बांसुरी – बाँसुरी
- अरोग्य – आरोग्य
- लडाई – लड़ाई
- जाग्रति – जागृति
- सन्मुख – सम्मुख
निम्नलिखित वाक्यों में दो-दो शब्दों की वर्तनी अशुद्ध है। अशुद्ध शब्दों के स्थान पर शुद्ध वर्तनी का प्रयोग करते हुए वाक्यों को दुबारा लिखिए :
गुरूजी ने छात्रों को आशिर्वाद दिया।
गुरुजी ने छात्रों को आशीर्वाद दिया।
नेताजी ने औजस्वी भाशण दिया।
नेताजी ने ओजस्वी भाषण दिया।
मैने प्रातकाल घास पर औस पड़ी देखी।
मैंने प्रातःकाल घास पर ओस पड़ी देखी।
नोकर तोलिया लेकर आया।
नौकर तौलिया लेकर आया।
बूडा सीड़ियाँ नहीं चढ़ पाया।
बूढ़ा सीढ़ियाँ नहीं चढ़ पाया।
भारत ने औद्योगिक क्षेत्र में बहूत उन्नती की है।
भारत ने औद्योगिक क्षेत्र में बहुत उन्नति की है।
ददीचि ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी हड्डीयाँ दे दी।
दधीचि ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी हड्डियाँ दे दी।
वेपार में घाटा होने के कारण वह टनटनगोपाल हो गया है।
व्यापार में घाटा होने के कारण वह ठनठनगोपाल हो गया है।
हमें दुसरों के कार्य में हस्ताक्षेप नहीं करना चाहिए।
हमें दूसरों के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
उसकी अलोचना सुनकर मुझे कस्ट हुआ।
उसकी आलोचना सुनकर मुझे कष्ट हुआ।