Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 11 Solutions Rachana विचार-विस्तार Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 11 Hindi Rachana विचार-विस्तार
निम्नलिखित विधानों का विचार-विस्तार लिखिए :
प्रश्न 1.
बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय?
उत्तर :
हम जैसा काम करेंगे, वैसा ही हमें फल मिलेगा। हम जिस फल का बीज बोएंगे, उसी फल के पेड़ उगेंगे और फिर हमें वैसे ही फल मिलेंगे। बबूल का बीज बोया है तो हमें आम के फल कैसे मिलेंगे? बबूल के पेड़ से हमें काटे ही मिलेंगे। आम के फल तो आम का बीज बोने पर ही मिलेंगे। इसी प्रकार हम अच्छा काम करेंगे तो हमें उसका अच्छा फल मिलेगा और बुरे काम करेंगे तो उनका बुरा फल मिलेगा। इसलिए स्वस्थ, सुखी और सफल जीवन जीना है तो हमें अपने में अच्छे गुणों का विकास करके मेहनत तथा ईमानदारी से सत्कर्म करने चाहिए। हमारे सत्कर्म ही हमें सुख और शांति देंगे।
प्रश्न 2.
अपाहिज तन, अडिग मन।
उत्तर :
हमारे जीवन में मन का बड़ा महत्त्व है। यदि शरीर एक रेलगाड़ी है, तो मन उसका इंजन और शरीर के अंग डिब्बों के समान है। सारे शरीर का संचालन मन ही करता है। यदि मन में कोई प्रबल इच्छा हो तो तन की अपंगता उसकी पूर्ति में बाधक नहीं बन सकती। ऐसे कई चित्रकार देखे जाते हैं जिनके हाथ नहीं हैं और वे पैर से सुंदर चित्र बना लेते हैं। कई अपंगों को तैराकी में प्रथम पुरस्कार मिले हैं। अंधों को उच्च शिक्षा की डिग्रियाँ पाते देखा जाता है। अपंगों, नेत्रहीनों की ये स्वर्णिम सफलताएँ वास्तव में उनके मन की दृढ़ता के चमत्कार हैं।
यदि मन अडिग हो तो अपाहिज तनवाला व्यक्ति भी अपने जीवन को शानदार और यशस्वी बना सकता है।
प्रश्न 3.
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत ।
उत्तर :
मन बलवान है तो शरीर से कमजोर व्यक्ति भी बड़ेबड़े काम कर डालता है और मन कमजोर है तो हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति भी कुछ नहीं कर पाता। मन की शक्ति ही साहस है। वही आत्मबल है। दृढ़ विश्वास भी उसी का नाम है। कई बार व्यक्ति अपने किसी काम में असफल हो जाता है। असफल होना उतना बुरा नहीं है, जितना उस असफलता से मन का हार जाना। मन नहीं हारा है तो दुबारा प्रयत्न करने पर वह उसमें सफल हो सकता है।
एक ही परीक्षा में कई बार असफल होकर अंत में सफल हुए व्यक्ति देखे गए हैं। इसका कारण यही है कि वे मन से निराश नहीं हुए, मन से नहीं हरि हैं। व्यक्ति का ऐसा मनोबल ही उसकी हार को भी जीत में बदल देता है। महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी जैसे पुरुष ऐसे ही योद्धा थे जो मन से कभी नहीं हारे थे। उनकी दृढ़ आत्मशक्ति ने ही उनकी पराजयों को भी विजय में बदल दिया था। इसीलिए कहा गया है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
प्रश्न 4.
का वर्षा जब कृषि सुखाने।
उत्तर :
हर काम के लिए समय का बड़ा महत्त्व है। जिस समय जो काम होना चाहिए, यदि वह उस समय न हो पाए तो फिर होने से क्या लाभ? खेती सुख जाने पर वर्षा का होना कोई महत्त्व नहीं रखता। परीक्षा से पहले विद्यार्थी ने पढ़ाई नहीं की और फेल हो गया तो बाद – में उसके पढ़ने का कोई अर्थ नहीं। अपेक्षित गाड़ी छूटने के बाद स्टेशन पर पहुंचे तो पछताने के सिवा और क्या होगा? रोगी के मर जाने पर डॉक्टर आए तो उसके आने का क्या फायदा? इस प्रकार किसी कार्य के लिए उसका योग्य समय पर होना बहुत आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 5.
जहाँ सुमति तह सम्पत्ति नाना।
उत्तर :
सुमति का अर्थ है सद्बुद्धि। चाणक्य ने कहा था कि मेरा सर्वस्व चला जाए तो मुझे उसकी चिन्ता नहीं बस मेरी बुद्धि मेरा साथ न छोड़े। सचमुच, जहाँ सद्बुद्धि है वहीं सन्मार्ग है, वहीं आपसी एकता और मेल है। सद्बुद्धि ऐसी संपत्ति है जिसके पास अन्य संपत्तियां अपने आप खिच आती हैं। सबुद्धिवाला कम आय में भी सुखमय जीवन “बिता सकता है।
दुर्बुद्धिवाला व्यक्ति बहुत कमाकर भी दुःखी रहता है। सद्बुद्धि आय के ही नहीं, व्यय के भी सही मार्ग बताती है। उससे धन-संपत्ति का दुरुपयोग नहीं होता। एकता और सुमेल होने से संपत्ति नष्ट नहीं होती। इतना ही नहीं, सद्बुद्धि से जीवन में शांति, धैर्य, सच्चरित्रता, सुयश, प्रतिष्ठा, सच्ची मित्रता रूपी संपत्ति भी प्राप्त होती है। इस प्रकार जहाँ सुमति है, वहीं तरह-तरह की संपत्तियों का वास है।
प्रश्न 6.
बशीकरन एक मंत्र है, तज दे वचन कठोर ।
उत्तर :
लोगों को प्रभावित करके उन्हें वशीभूत करने की इच्छा का होना स्वाभाविक है। वशीकरण के अनेक मंत्र हैं, परंतु कवि हमें उसके . लिए एक बहुत ही सरल मंत्र देता है। वह कहता है कि यदि तुम लोगों को अपने वश में करना चाहते हो तो कठोर वाणी बोलना छोड़ दो। व्यवहार में वाणी का बहुत महत्त्व है। मधुर वाणी सबको अच्छी लगती है। ऐसी वाणी बोलनेवाला सबका प्रिय होता है। उसके वचनों पर मुग्ध होकर सब अपने आप उसके वशीभूत हो जाते हैं। इसके विपरीत कटु वचन बोलनेवाले को कोई पसंद नहीं करता। सब उससे दूर भागते हैं। सचमुच, मीठी वाणी बोलना वशीकरण का सर्वश्रेष्ठ मंत्र है, उपाय है।
प्रश्न 7.
मन का गुलाम, सबका गुलाम ।
उत्तर :
मन बड़ा चंचल होता है। उसे नियंत्रण में रखना सरल कार्य नहीं है। चंचल और कमजोर मन को केवल ज्ञानेन्द्रियाँ ही नहीं नचाती, अन्य लोग भी नचाते हैं। दुर्बल मनवाले व्यक्ति में स्वाभिमान नहीं होता। वह जरा-सी विपत्ति आने पर घबरा जाता है। जरा-सा लोभ उसे अपने जाल में फांस लेता है। उसकी इस कमजोरी का लाभ उठानेवालों की कमी नहीं है।
जिनके पास शक्ति है, संपन्नता है, वे ऐसे लोगों से मनचाहा काम लेते हैं और उन्हें अपने अधीन बनाए रखते हैं। परिवार के सदस्य ही नहीं, पड़ोसी भी उससे अपने मन के मुताबिक काम करा लेते हैं। कायर, डरपोक और आत्मसम्मान रहित व्यक्ति सबके गुलाम होते हैं। आत्मविश्वास और स्वाभिमान का अभाव उन्हें दूसरों की गुलामी करने के लिए विवश कर देता है।
प्रश्न 8.
कर भला, होगा भला ।
उत्तर :
कहते हैं कि जैसी करनी, वैसी भरनी। जैसा हम करेंगे, वैसा ही पाएंगे। आम के बीज बोएंगे तो आम के मीठे स्वादिष्ट फल मिलेंगे और बबूल बोएँगे तो काँटे मिलेंगे। देने और पाने की यह शाश्वत परम्परा हैं, इसलिए यदि हम किसी का भला करेंगे तो निश्चित रूप से हमारा भी भला होगा। भलाई का बीज कभी व्यर्थ नहीं जाता।
यदि हमने भलाई का बीज बोया है तो हमें उसके वृक्ष से भलाई के फल ही मिलेंगे। चींटी ने शिकारी के पैर में काटकर तोते की जान बचाई, तो तोते ने उसे डूबने से बचाया। एक ग्रीक गुलाम ने सिंह के पैर से काँटा निकालकर उसे राहत दी तो सिंह ने उस पर आक्रमण न करके उसे गुलामी के जीवन से मुक्त करवा दिया। इस प्रकार की हुई भलाई, भलाई के रूप में ही वापस आती है।
प्रश्न 9.
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर ।
उत्तर :
बड़प्पन वहीं है जिसमें उदारता हो, परोपकार की भावना हो। केवल अधिक धन-दौलत से ही कोई बड़ा नहीं हो जाता। खजूर का पेड़ बहुत ऊँचा होता है। भूखे पथिक को न उसके फल खाने को मिलते हैं और न थके राही को वह पर्याप्त शीतल छाया दे पाता है। उसके ऊँचा होने से किसी को कोई लाभ नहीं होता। कवि बड़ा उसी को कहते हैं, जो दूसरों का भला करे और परोपकार में ही अपने जीवन की सार्थकता अनुभव करे।
प्रश्न 10.
कर्म करना श्रेयस्कर है।
उत्तर :
जीवन में कर्म का बड़ा महत्त्व है। सच तो यह है कि कर्म करने के लिए ही हमें यह जीवन मिला है। कर्म करके ही व्यक्ति को आजीविका प्राप्त होती है और वह अपने परिवार का पालन करता है। कर्म करने से समय का सदुपयोग होता है और व्यक्ति जीवन में ऊँचा उठ सकता है। अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार कर्म करके ही कोई उद्योगपति, कोई वैज्ञानिक, कोई नेता, कोई कलाकार या साहित्यकार बनता है। असाधारण कर्म करके राम, कृष्ण, ईसा आदि देवत्व को प्राप्त हुए। महान कर्म करके ही तिलक, गांधी, लिंकन आदि पुरुष महापुरुष बने। कर्मयोगी व्यक्ति ही समाज के लिए आदरणीय बनते हैं। इतिहास के पृष्ठों पर उन्हीं की गौरवगाथा लिखी जाती है। इसलिए जीवन में कर्म करना श्रेयस्कर है।
प्रश्न 11.
जो डरता है, वह खोता है।
उत्तर :
भय मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। डरपोक व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता। साहसी पुरुष व्यापार करके लाखों का मुनाफा कमाते हैं, परंतु डरपोक व्यक्ति हानि होने के भय से व्यापार करने में घबराता है और कमाने के अवसर खो देता है। डरपोक शासक पराजय के भय से शत्रु पर आक्रमण नहीं करता और अंत में अपना राज्य गँवा देता है।
देश के डरपोक लोगों ने यहाँ के क्रांतिकारियों का साथ नहीं दिया। इसीलिए हमारा देश सदियों तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा। कहते हैं कि इस धरती के सुख तो वीरपुरुष ही भोगते हैं, लक्ष्मी कायरों का वरण नहीं करती। डरपोक व्यक्ति तो भूत के भय से रात के अंधेरे में सो भी नहीं पाते ! दिन में तरह-तरह की शंकाएँ-कुशंकाएँ उन्हें चैन नहीं लेने देतीं। इस प्रकार जो डरते हैं, उनके भाग्य में खोने के सिवाय और कुछ नहीं होता।
प्रश्न 12.
विपत्ति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत ।
उत्तर :
जब मनुष्य के पास धन होता है, तब लोग कई प्रकार से उससे मैत्री सम्बन्ध जोड़ लेते हैं। परन्तु ऐसी मैत्री अधिकतर मैत्री का नाटक ही होती है। जैसे सोने के खरे या खोटे होने की परख उसे कसौटी पर कसने के बाद ही होती है उसी प्रकार मित्रता की पहचान विपत्ति रूपी कसौटी पर कसने पर होती है। विपत्ति सच्चे और झूठे मित्रों की पहचान करा देती है। सच्चे मित्र ही ऐसे समय व्यक्ति का । साथ देते हैं और झूठे मित्र मुंह फेर लेते हैं।
प्रश्न 13.
शठ सुधरहिं सत्संगति पाए।
उत्तर :
सत्संग की महिमा अपार है। जैसे औषधि खाने से बीमार व्यक्ति स्वस्थ हो जाते हैं, टॉनिक लेने से दुर्बल व्यक्तियों में शक्ति आ जाती है, उसी प्रकार सत्संग से बुरे व्यक्ति अच्छे बन जाते हैं। सत्संग का मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। उससे बुरे व्यक्ति को अपनी बुराई का बोध होता है, उससे घृणा हो जाती है और तब वह उसे छोड़ देता । है। डाकू रत्नाकर को देवर्षि नारद का सत्संग मिला तो वह महाकवि वाल्मीकि बन गया!
हत्यारे अंगुलिमाल को भगवान बुद्ध का सत्संग प्राप्त हुआ तो वह बौद्ध भिक्षु बन गया। सत्संग के प्रभाव से कितने शराबियों ने शराब छोड़ दी, कितने चोरों ने चोरी से तोबा कर ली। सत्संग ने कितनों को धूम्रपान से मुक्ति दिला दी, कितनों ने मांसाहार छोड़कर शाकाहार अपना लिया। इस प्रकार तुलसीदासजी ने ठीक ही कहा है- शठ सुधरहिं सत्संगति पाए। पारस परसि कुधातु सुहाए।
प्रश्न 14.
मानव हृदय महासागर के समान है।
उत्तर :
महासागर में अथाह जल होता है। उसकी अगम्य गहराई पता नहीं क्या-क्या अपने भीतर छिपाए रहती है। उसमें अनेक रत्न होने से उसे रत्नाकर भी कहते हैं। शांत महासागर की लहरें बड़ी सुन्दर लगती हैं। उसमें जलयान सुखद यात्रा करते हैं। परंतु तूफान आने पर महासागर भयंकर रूप ले लेता है। अनेक जलयान उसमें डूब जाते हैं।
मानव हृदय भी किसी महासागर से कम नहीं है। उसकी गहराई का भी पता लगाना मुश्किल है। उसमें भी भावनाओं की तरंगें उठती रहती हैं। मानव हृदय रूपी शांत महासागर में प्रेम, करुणा, बंधुत्व, सहकार, न्याय, नीति के बहुमूल्य रत्न होते हैं। परंतु जब इस हृदय में उग्र भावनाएँ तूफान का रूप ले लेती हैं, तब वे घातक बन जाती हैं। निराशा के तूफान में आशा के जहाज डूब जाते हैं। हिंसा के झंझावात में अन्याय, अत्याचार आदि नृशंस कांड होते हैं। क्रूरता की तूफानी लहरों में मानवता लापता १ हो जाती है। इस प्रकार मानव हृदय सचमुच महासागर के समान है।
प्रश्न 15.
मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है।
उत्तर :
भाग्यवादी लोग मानते हैं कि व्यक्ति को उनके भाग्य के विधान के अनुसार फल मिलता है। भाग्य में सुख लिखा है तो सुख मिलेगा और दुःख लिखा है तो दुःख ही मिलेगा। भाग्यवादी व्यक्ति भाग्य के भरोसे बैठकर अपना जीवन बरबाद करते रहते हैं। वे उद्योग करते ही नहीं, क्योंकि वे मानते हैं कि भाग्य के बिना उद्योग भी फलीभूत नहीं होगा।
परंतु पुरुषार्थी व्यक्ति अपने पुरुषार्थ पर भरोसा करता है। वह अपनी जन्मपत्री लेकर ज्योतिषियों के दरवाजे नहीं खटखटाता। वह अपनी योजना के अनुसार काम करता है। वह कभी समय नहीं गवाता। उसकी कर्मनिष्ठा सदैव उसे प्रेरणा देती रहती है। वह हमेशा आगे बढ़ने के प्रयत्न में लगा रहता है।
जमशेदजी टाटा, जुगलकिशोर बिड़ला, डॉ. हॉमी भाभा, मोतीलाल नेहरू, टॉमस अल्वा एडिसन जैसे व्यक्तियों ने अथक परिश्रम करके धन और यश कमाया। उन्होंने साबित कर दिया मनुष्य का भाग्य उसके हाथ की रेखाओं में नहीं, बल्कि उसके हाथों में होता है, उसके आत्मविश्वास में होता है। वह चाहे तो पुरुषार्थ करके स्वयं अपने भाग्य का निर्माण कर सकता है।
प्रश्न 16.
नर जो करनी करे तो नारायण बन जाय।
उत्तर :
मनुष्य के जीवन में ‘करनी’ अर्थात् ‘कर्म’ का बड़ा महत्त्व है। मनुष्य के कर्म ही समाज में उसकी श्रेणी निर्धारित करते हैं। नीच कर्म करनेवाला अधम और श्रेष्ठ कर्म करनेवाला व्यक्ति उत्तम मागा जाता है। हम राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, नानक आदि को भगवान मानते हैं, क्योंकि उन सबने अच्छे कर्म किए थे।
इन्होंने लोगों की भलाई में अपना सारा जीवन लगा दिया। परोपकारं ही इनके जीवन का ध्येय था। इन महापुरुषों के सत्कर्मों ने ही इन्हें महान बना दिया कि लोग उन्हें भगवान मानने लगे और उनकी पूजा करने लगे। इस प्रकार नारायण की तरह पूज्य और वंदनीय बनने के लिए मनुष्य को सच्चरित्र और कर्तव्यनिष्ठ बनना चाहिए।
प्रश्न 17.
जो बीत गई सो बात गई।
उत्तर :
इसमें संदेह नहीं कि बीता हुआ समय मनुष्य के मन पर अपनी गहरी छाप छोड़ जाता है, परंतु उस छाप का क्या महत्त्व है! भूतकाल की बीती बातों की जुगाली करने से कोई लाभ नहीं होता। बीती बातों पर अधिक सोचने से हमारी मानसिक शक्तियाँ क्षीण हो जाती हैं। हम अपनी क्रियाशक्ति खो देते हैं। पुरानी असफलताओं को याद करने से भविष्य भी अंधकारमय दिखने लगता है। सामने कर्तव्य पड़े होते हैं, पर उन्हें करने का उत्साह नहीं रहता। इसलिए बीती बातों को भूल जाने में ही भलाई है।
पुरानी शत्रुता, पुरानी कडवाहटें दिमाग से निकाल दें और वर्तमान में चैन से जीने की कोशिश करें। हम आशा का आँचल थामकर मन में नया उत्साह लाएं। इससे हम एक नए जीवन का अनुभव करेंगे। इसलिए ‘जो बीत गई सो बात गई’ उक्ति का यही आशय है कि हम विगत के सूखे-मुरझाए फूलों को फेंककर अनागत के पुष्पों की सुगंध का आनंद लें।
प्रश्न 18.
वृक्ष ही जल है, जल ही रोटी है और रोटी ही जीवन है।
उत्तर :
वृक्ष, जल और रोटी ये तीनों अलग-अलग वस्तुएँ हैं, फिर भी इनमें गहरा सम्बन्ध है। अलग-अलग होकर भी ये परस्पर जुड़े हुए हैं। वृक्ष वन का प्रतीक है। सधन वन बरसाती बादलों को आकर्षित करते हैं। इसलिए वनप्रदेशों में अच्छी वर्षा होती है। वनों में जल संचित रहने से उनमें से होकर बहनेवाली नदियों में भी जल का प्रवाह बराबर बनता रहता है। पानी की सुविधा होने से खेती अच्छी होती है और खाद्यान्नों की आपूर्ति में कमी या रुकावट नहीं जाती। भरपूर खाद्यान्न होने से लोगों को भरपेट भोजन मिलता है।
वे स्वस्थ और सक्रिय रहते हैं। वे सुखी और सम्पन्न जीवन बिताते हैं। रेगिस्तानों में वृक्षों के अभाव के कारण वर्षा भी नहीं के बराबर होती है और इसलिए वहाँ अन्न का अभाव रहता है। यही कारण है कि रेगिस्तानों में लोगों का जीवन बहुत संघर्षपूर्ण होता है। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि वृक्ष ही जल है और जल ही रोटी है और रोटी ही जीवन है।
प्रश्न 19.
पराधीन सपनेहूँ सुख नाहीं।
उत्तर :
पराधीनता का अर्थ है अपनी इच्छाएँ मारकर दूसरे की इच्छा के अनुसार काम करना। पिंजरे में बंद तोता क्या आकाश में उड़ने की अपनी चाहत पूरी कर सकता है? चिड़ियाघर में पिंजरों में बंद – प्राणी क्या जंगल के अपने स्वाभाविक जीवन का आनंद लूट सकते हैं? पराधीनता की यह पीड़ा ही गुलाम देशों को आज़ादी के लिए तड़पाती है।
पराधीनता की पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए ही महात्मा गांधी, पं. नेहरू, सरदार पटेल जैसे नेता आंदोलन करते हैं, लाठियाँ खाते हैं और जेल जाते हैं। अपनी मातृभूमि को पराधीनता के नरक से मुक्त करके स्वतंत्रता के स्वर्ग में ले जाने के लिए ही भगतसिंह, बिस्मिल, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे व्यक्ति फांसी के फंदे पर लटक गए हैं। व्यक्ति का विकास स्वतंत्रता में ही होता है। स्वंतत्र राष्ट्र ही गौरवपूर्ण ढंग से जी सकता है। इसलिए पराधीनता में सुख पाने की आशा करना व्यर्थ है।
प्रश्न 20.
जस फल बोये, तस फल चाखा।
उत्तर :
कर्म और उसके फल के बीच गहरा सम्बन्ध है। मनुष्य जैसा कर्म करेगा, उसे वैसा ही फल मिलेगा – जैसे आम का पेड़ लगाने पर आम के ही फल मिलेंगे और बबूल का पेड़ लगाने पर काँटे मिलेंगे। अच्छा काम अच्छा फल देगा और बुरे काम का फल भी बुरा ही होगा। जो विद्यार्थी लगन और परिश्रम से पढ़ाई करेगा, उसे परीक्षा में सुनहरी सफलता मिलेगी।
इसके विपरीत पढ़ाई से जी चुरानेवाले को असफलता का मुंह देखना पड़ेगा। चोरी, डकैती आदि अपराध करनेवालों को कठोर सजा ही मिलेगी। जो नेता जनता की सेवा-सहायता करेगा, वही चुनाव में विजय की वरमाला पहनेगा। इस प्रकार फल हमेशा कर्म का अनुसरण करता है। इसीलिए मनुष्य को हमेशा सत्कर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।
प्रश्न 21.
खाली दिमाग शैतान की दुकान ।
उत्तर :
समय का सदुपयोग व्यक्ति का सबसे बड़ा गुण है, सबसे बड़ी बुद्धिमत्ता है। व्यक्ति को हमेशा किसी-न-किसी उपयोगी काम में लगा रहना चाहिए। व्यस्तता से समय का सदुपयोग तो होता ही है, मन की प्रक्रिया भी सही दिशा में कार्यरत रहती है। व्यक्ति काम में लगा रहता है तो उसका मन भी काम में लगा रहता है। काम न होने पर व्यक्ति का मन विचलित रहता है। वह यहाँ-वहाँ की व्यर्थ कल्पनाओं में रहता है।
उसे तरह-तरह की खुराफातें सूझती रहती हैं। जब बच्चों के पास कोई काम नहीं होता, तो तरह-तरह की शरारतें उनके दिमाग में आती है। वे उत्पात मचाते हैं। इसी प्रकार निकम्मे युवकों के मन में गलत योजनाएँ बनती रहती हैं। काम के अभाव में वे गलत रास्तों पर चल पड़ते हैं। आजकल जितने अपराध हो रहे हैं, उनमें अधिकतर बेरोजगार युवक ही शामिल रहते हैं। यदि ये काम में लगे होते तो ये ऐसे गलत चक्करों में क्यों पड़ते?
प्रश्न 22.
असफलता सफलता का सोपान है।
उत्तर :
सफलता सबको अच्छी लगती है। असफल होना कोई नहीं चाहता। परंतु यह नहीं भूलना चाहिए कि विश्व के अनेक महान वैज्ञानिकों को अपने प्रारंभिक प्रयोगों में असफलता का मुंह देखना पड़ा था। कई महान लेखकों की आरंभिक रचनाओं को छापने से इन्कार कर दिया गया था। बड़े-बड़े उद्योगपतियों को अपने कारोबार की शुरूआत में घोर निराशा ही हाथ लगी थी। परंतु वे वैज्ञानिक, लेखक और उद्योगपति अपनी आरंभिक असफलता से हताश नहीं हुए।
असफलता से उनका हौसला कम न हुआ। असफलता के आईने में उन्होंने अपनी कमियों और कमजोरियों को देखा और उन्हें दूर किया। दृढ संकल्प से वे फिर आगे बढ़े और एक दिन सफलता के शिखर पर पहुंच गए। सच कहा जाए तो उनकी प्रारंभिक असफलता उनकी सफलता के ताले को खोलने की कुंजी बन गई। इस प्रकार यदि असफलता से हताश न हुआ जाए तो वह सफलता की प्रबल प्रेरणा और उसका सोपान बन सकती है।