GSEB Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 9 संगतकार

Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 9 संगतकार

GSEB Class 10 Hindi Solutions संगतकार Textbook Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है?
उत्तर :
संगतकार के माध्यम से जीवन के हर क्षेत्र में काम करनेवाले उन व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है जो अपने मुखिया से स्वयं को थोड़ा नीचे रखकर मुखिया की सफलता में विनम्र भाव से अपना योगदान देता है। वह नींव की ईंट की भांति नीचे दबा रहकर, अदृश्य रहकर नींव को मजबूती तथा भवन को ऊंचाई प्रदान करता है।

प्रश्न 2.
संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं ?
उत्तर :
संगतकार जैसे व्यक्तियों का एक वर्ग होता है, जो प्राय: जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में देखने को मिल जाता है। जैसे –

  1. शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करनेवाले अनेक अध्यापक संस्था के आचार्य के कार्यों में संगतकार की भाँति भूमिका निभाते हुए उन्हें यशस्वी बनाते
  2. सेना तथा पुलिस के जवान अपने उच्च अधिकारियों के लिए सदैव संगतकार की भूमिका निभाते दिखते हैं।
  3. राजनीति के क्षेत्र में मुख्य नेता को मदद करनेवालों का एक बड़ा नेतृवर्ग होता है, जो अपने नेता के लिए संगतकार की भूमिका निभाता
  4. गायक-गायिकाओं के संगतकार तो जगप्रसिद्ध है; वे गायन तथा वादन दोनों क्षेत्रों से जुड़े होते हैं।

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प्रश्न 3.
संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं ?
उत्तर :
संगतकार निम्नलिखित तरह से मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं –

  1. मुख्य गायक-गायिका के स्वर में अपना स्वर मिलाकर उसे प्रभावशाली बनाते हैं।
  2. मुख्य गायक गायिका के तारसप्तक में चले जाने पर अपने स्वर से उसे संभाल लेते हैं।
  3. मुख्य गायक-गायिका के राग से भटक जाने पर स्थायी पंक्ति को बार-बार दुहराकर उसे संभलने का अवसर-संकेत देते है।
  4. संगतकार मुख्य गायक-गायिका के स्वर में अपना स्वर मिलाकर उसे इस बात का अहसास कराते हैं कि वह अकेला नहीं है।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए –
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊंचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
उत्तर :
संगतकार की आवाज़ में एक हिचक स्पष्ट सुनाई देती हैं कि वह अपने स्वर को जानबूझकर मुख्य गायक के स्वर से ऊपर नहीं जाने देता है। इसके
लिए वह सायास प्रयत्न करता है। यह उसकी अयोग्यता या विफलता नहीं हैं। बल्कि उसकी मानवता हैं, ताकि मुख्य गायक जो उसका श्रद्धेय है उसकी आवाज़ कहीं दब न जाए । मुख्य गायक की पहचान, उसका अस्तित्व कमतर न हो जाए । कवि ने इसे संगतकार का मानवीय गुण माना है।

प्रश्न 5.
किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पानेवाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से अपना योगदान देते हैं। किसी एक उदाहरण द्वारा इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
प्रसिद्धिप्राप्त लोगों के जीवन को निकट से देखें तो पता चलता है कि उनकी प्रसिद्धि में घर-परिवार, गाँव-समाज तथा सहकर्मियों का योगदान या
सहयोग अवश्य रहता है। शिवाजी को छत्रपति शिवाजी बनाने में नेपथ्य में रह गए व्यक्तियों – माता जीजाबाई, गुरु रामदास, कोंणदेव तथा उनके सेनापतियों सैनिकों का प्रचंड योगदान रहा है।

प्रश्न 6.
‘कभी-कभी तारसप्तक की ऊंचाई पर पहुंचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नजर आता है, उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मुख्य गायक अपनी आवाज़ को ऊंची करते हुए तारसप्तक तक ले जाता है तब कभी-कभी उसकी आवाज़ बिखरने लगती है, स्वर बैठने लगता
है। मुख्य गायक की इस स्थिति में संगतकार उसे समझता है। निराश हुए मुख्य गायक को सहारा देने हेतु संगीत की स्थायी पंक्ति टेक को गाकर
स्वर के बचा लेने की भूमिका से बचाने के साथ ही उसे इस बात को भी प्रतीति करवाता है कि मुख्य गायक अकेला नहीं है।

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प्रश्न 7.
सफलता के उच्च शिखर पर पहुंचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाता है तब उसके सहयोगी उसे किस प्रकार संभालते हैं ?
उत्तर :
सफलता के चरम शिखर पर पहुंचने के दरम्यान लड़खड़ानेवाले व्यक्ति को उसके सहयोगी उसे इस प्रकार विश्वास देकर कि सब उसके साथ हैं, उसका आत्मबल बनाए रखने की पूरी कोशिश करते हैं। स्वयं आगे बढ़कर एक सुरक्षा कवच बन उसके पौरुष की प्रशंसा करते हैं। उसके लड़खड़ाने के कारणों की खोजबीन करके उनका समाधान ढूंढ़ने में सहयोगी अपनी सारी ऊर्जा लगा देते हैं। पूर्ण आत्मीयता के साथ उसकी देखभाल करते हैं।

Hindi Digest Std 10 GSEB संगतकार Important Questions and Answers

भावार्थग्रहण संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1.
भटके स्वर को संगतकार कब संभालता है ? इसका मुख्य गायक पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
संगतकार मुख्य गायक के भटके स्वर को उस समय संभाल लेता है जब कभी मुख्य गायक गाते समय बीच के अंतरे की जटिल तान में भटककर
सरगम की सीमा लांघ जाता है, अनहद में चला जाता है। इससे मुख्य गायक को सहारा मिल जाता है और उसका गायन प्रभावपूर्ण बना रहता है।

प्रश्न 2.
संगतकार की अहमियत कब पता चलती है ?
उत्तर :
वैसे तो संगतकार का महत्त्व हमेशा ही रहता है किन्तु जब कभी मुख्य गायक सरगम को लांघकर अनहद में चला जाता है तब पुनः स्थायी को बार बार दुहरा कर सरगम की ओर लौटाने का काम करनेवाले संगतकार की अहमियत का पता चलता है।

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प्रश्न 3.
यहां नौसिखिया किसे कहा गया है?
उत्तर :
नौसिखिया का अर्थ ही है नया सीखने वाला। नौसिखिया यहाँ पर मुख्य गायक को उसके गायन के शुरुआती दिनों की याद दिलाने के लिए प्रयोग किया गया है। जब मुख्य गायक नौसिखिया था तब वह भी यही कार्य करता था।

प्रश्न 4.
मुख्य गायक को कब आभास होने लगता है कि आवाज़ उसका साथ नहीं दे रहा है?
उत्तर :
मुख्य गायक की आवाज तारसप्तक तक पहुंचने के बाद जब क्षीण होने लगती है, गला बैठने लगती है, प्रेरणा साथ छोड़ने लगती है, उसका उत्साह मंद पड़ने लगता है, तब उसे यह आभास होने लगता है कि उसकी आवाज़ अब उसका साथ नहीं दे रही है।

प्रश्न 5.
‘आवाज़ से राख जैसा गिरता हुआ’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
मुख्य गायक की आवाज़ तारसप्तक तक पहुंचकर क्षीण होने लगती है। आवाज़ के क्षीण होने की प्रक्रिया को कवि ने ‘राख जैसा कुछ गिरता हुआ’ कहा है।

प्रश्न 6.
कठिन परिस्थिति में संगतकार मुख्य गायक को क्या अहसास दिलाता है ? कैसे ?
उत्तर :
कठिन परिस्थिति में संगतकार मुख्य गायक को यह अहसास दिलाता है कि आप अकेले नहीं है। बिगड़ते हुए राग को अपना स्वर देकर उसे संवार देता है, इस तरह वह गायन को संभाल लेता है, बिगड़ने से बचा लेता है।

प्रश्न 7.
‘संगतकार’ की आवाज़ में कौन-सी हिचक स्पष्ट सुनाई देती है ?
उत्तर :
संगतकार की आवाज़ में अपनी आवाज़ को मुख्य गायक/गायिका की आवाज़ से ऊंचा न उठाने की हिचक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है।

अतिरिक्त – प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी भी क्षेत्र में संगतकार वर्ग के लोग प्रतिभावान होते हुए भी मुख्य या शीर्षस्था पर क्यों नहीं पहुंच पाते?
उत्तर :
संगतकार वर्ग के लोग प्रतिभावान होते हुए भी अपने आपको सदैव सहायक के रूप में कार्य करते हैं, जिससे उनकी वैसी ही आदत बन जाती है, जिसके कारण उनमें अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन स्वतंत्र रूप से करने का साहस वे नहीं जुटा पाते । कभी-कभी मुख्य व्यक्ति भी सर्तक रूप से संगतकार को मुख्य व्यक्ति की भूमिका में आने का अवसर नहीं देता, जिससे वे संकुचित स्वभाव के बने रह जाते हैं।

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प्रश्न 2.
संगतकार की क्या भूमिका होती है ? इसके द्वारा कवि समाज के किस तरह के व्यक्तियों की तरफ इशारा कर रहा है ?
उत्तर :
संगतकार मुख्य गायक/गायिका के साथ सहयोग में गाने या बजानेवाला वह व्यक्ति है जो मुख्य गायक के पीछे-पीछे टेक की पंक्ति स्थायी गाता है और अपनी उपस्थिति का अहसास कराते हुए उसका साथ देने के लिए उसके समीप रहता है। इस कविता के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि समाज के हर क्षेत्र में संगतकार जैसे व्यक्ति होते हैं, जो मुख्य व्यक्ति की सफलता और प्रसिद्धि में चुपचाप योगदान देने को सदैव तत्पर रहते हैं और उसे ही अपना कर्तव्य मानते हैं।

प्रश्न 3.
संगतकार चाहकर भी अपना स्वर मुख्य गायक से कभी ऊँचा नहीं करता है। क्या यह उसका दायित्वबोध है या और कुछ ?
उत्तर :
संगीत के आयोजन में संगतकार कभी भी चाहकर भी अपना स्वर मुख्य गायक से ऊंचा नहीं करता, वास्तव में यह संगतकार का दायित्व बोध ही है। क्योंकि यदि संगतकार का स्वर मुख्य गायक के स्वर से ऊंचा हो जाएगा तो संगीत आयोजन का उद्देश्य और सफलता प्रभावित होगी। यदि संगतकार को ऐसा लगने लगा कि मेरा स्वर मुख्य गायक से श्रेष्ठ है, उत्तम है तो मख्य गायक की प्रतिभा क्षीण होगी जो परे आयोजन को प्रभावित करे बिना न रहेगा। इसलिए उत्तम संगतकार सदैव सहयोगी की भूमिका में ही रहना उचित तथा श्रेयस्कर मानता है।

प्रश्न 4.
संगतकार कविता में कवि क्या संदेश देना चाहता है ?
उत्तर :
‘संगतकार’ कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि मुख्य गायक की गायकी को सफल बनाने के दायित्व बोध से संगतकार कभी भी मुख्य गायक से अपनी आवाज़ को ऊंची नहीं करता, इसका यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि वह कमजोर है या असफल है। कवि आगे कहता है कि यह संगतकार की विफलता नहीं अपितु मानवता है जो अपने अस्तित्व को छिपाए रखकर मुख्य गायक के लिए पथ प्रशस्त करता है।

प्रश्न 5.
मुख्य गायक और संगतकार की परंपरा के औचित्य पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
मुख्य गायक/गायिका और संगतकार की परंपरा सदियों से हमारे देश में चली आ रही है। हमारे यहाँ गायकी के घराने इसी परंपरा का प्रतिफल हैं। इस परंपरा को समाप्त नहीं किया जा सकता है, पर इस परंपरा का महत्त्व निर्विवाद है। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि यह परंपरा उचित ही है।

आज के युग में जहाँ सभी परंपराओं में परिवर्तन हो रहा है या किया जा रहा है, वहां इस परंपरा में मुख्य गायक और संगतकार के अंत: संबंधों में भी कुछ परिवर्तन तो आया है किन्तु वह पूर्णतया नहीं बदला है। दोनों का पारस्परिक संबंध इस परंपरा को टिकाए हुए है।

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प्रश्न 6.
‘संगतकार’ कविता में संगतकार त्यागमूर्ति है, कैसे ?
उत्तर :
‘संगतकार’ त्याग की मूर्ति है, क्योंकि उसका संपूर्ण जीवन मुख्य गायक के लिए अर्पित हो जाता है। उसकी सामर्थ्य तथा योग्यता मुख्य गायक की सफलता को अर्पित हो जाती है। संगतकार कभी भी मुख्य गायक को पछाड़कर उससे आगे निकलने का प्रयास नहीं करता । यह संभव है कि संगतकार के मन में उससे आगे निकलने की भावना हो, तब वह या तो उसे कुचल देता है अथवा मुख्य गायक से अलग होकर अपनी अलग टीम बना सकता है। दोनों ही स्थितियों में त्याग अनिवार्य बन जाता है।

संगतकार Summary in Hindi

कवि – परिचय :

मंगलेश डबराल का जन्म उत्तराखंड के काफल पानी गाँव (जिला-टेहरी-गढ़वाल) में सन् 1948 में हुआ और शिक्षा-दीक्षा देहरादून में । पत्रकारिता को आपने अपना कार्यक्षेत्र बनाया । आरंभ में दिल्ली में हिंदी पेट्रियट’, ‘प्रतिपक्ष’ और ‘आसपास’ में काम किया। तत्पश्चात् भारत भवन, भोपाल से प्रकाशित होनेवाली मासिक पत्रिका ‘पूर्वग्रह’ में सहायक संपादक हुए।

इलाहाबाद तथा लखनऊ से प्रकाशित ‘अमृत प्रभात’ में भी थोड़े दिनों तक नौकरी की। सन् 1983 में ‘जनसत्ता’ अखबार में साहित्य संपादक बने । कुछ समय तक “सहारा समय” में संपादन कार्य करने के बाद ‘नेशनल बुक ट्रस्ट’ से जुड़े। मंगलेश डबराल के चार कविता संकलन प्रकाशित है – ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’ और ‘आवाज भी एक जगह हैं।’

कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, समूह माध्यमों और संस्कृति के सवालों पर निरंतर लेखन करते रहे है । मंगलेशजी की ख्याति एक अनुवादक के रूप में भी है। मंगलेश डबराल की कविताओं में सामंती बोध तथा पंजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार है। उनका यह प्रतिकार किसी प्रचार या नारेबाजी के बगैर प्रतिपक्ष में एक सुंदर स्वप्न के रूप में साकार होता है।

उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी । कविताओं के लिए उन्हें पहल सम्मान तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनकी कविताएं भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अनेक यूरोपीय भाषाओं – अंग्रेजी, जर्मन, रूसी, स्पेनिश और बल्गारी इत्यादि में अनूदित होकर प्रकाशित हो चुकी हैं।

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कविता का सार (भाव) :

‘संगतकार’ संगीत-नृत्य विद्या से जुड़ा शब्द है, जिसका तात्पर्य है गायन या वादन में गायक या नर्तक के लिए गानेवाला या वाद्य बजानेवाला सहयोगी कलाकार।

यह कविता गायन में मुख्य गायक का साथ देनेवाले सहयोगी कलाकार – ‘संगतकार’ के महत्त्व का चित्राकन करती है। संगतकार का महत्त्व दृश्य-श्राव्य माध्यमों के लिए तो सही है ही, समाज और इतिहास में भी ऐसे अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं, जहाँ नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

यह कविता हमारे अंदर यह सूक्ष्म संवेदनाशीलता विकसित करती है कि प्रत्येक संगतकार का अपना-अपना महत्त्व है और उसका मंच पर दिखाई न देना उसकी कमजोरी नहीं अपितु मानवीयता है। कविता की बिम्बात्मकता और संगीत की सूक्ष्म समझ इस कविता को इस तरह गतिमान करते हैं मानो हम इसे अपने सम्मुख घटित होते हुए प्रत्यक्ष करते हैं।

1. मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज़ सुंदर कमजोर कांपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
मुख्य गायक की गरज में
वह अपनी गूंज मिलाता आया है प्राचीन काल से
गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है
या अपने ही सरगम को लाँघकर
चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थायी को संभाले रहता है
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था।

भावार्थ:

कवि का कथन है कि मुख्य गायक की चट्टान जैसी भारी आवाज़ का साथ देनेवाली सुंदर, कमजोर काँपती हुई आवाज संगतकार की थी। संगतकार मुख्य गायक का छोटा भाई या उसका शिष्य अथवा दूर-दराज से पैदल चलकर उसके पास गायन सीखने के लिए आनेवाला कोई दूर का रिश्तेदार या नौसिखिया हो सकता है।

संगतकार पुराने समय से ही मुख्य गायक की ऊंची और गंभीर आवाज़ में अपना स्वर मिलाता चला आ रहा है। जब कभी मुख्य गायक संगीत की कठिन तानों में भटक जाता है यानी स्वर के साथ ठीक से गा नहीं पाता उस समय संगतकार ही उसके स्वर को संभालता है। कभी-कभी मुख्य गायक इतना भटक जाता है कि अनहद् की गूंज में लड़खड़ाता है तब संगतकार गीत के प्रथम चरण-अंतरा को गा-गाकर परिस्थिति को बिगड़ने से संभाल लेता है, संभाले रखता है।

इस भूमिका में उसे ऐसा प्रतीत होता है मानो वह मुख्य गायक के छूट गए सामानों को समेट रहा हो। ऐसा करके वह मुख्य गायक को यह अहसास दिलाता है कि जब मुख्य गायक नौसिखिया था तब वह भी ऐसा ही करता था।

2. तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढांढस बंधाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग
और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊंचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।

भावार्थ :

कवि के मतानुसार संगतकार का महत्त्व केवल मुख्य गायक की सहायता करने के कारण ही नहीं है, अपितु उसके अपने मानवीय गुणों के कारण भी उसका महत्त्व है। कवि का कथन है कि मुख्य गायक जब उच्च (तार) स्वर में गाता है तब उसकी आवाज़ तारसप्तक तक पहुंच जाती है। तार स्वर में गाने के कारण उसका गला बैठने लगता है, आवाज़ भर्राने लगती है, प्रेरणा उसका साथ छोड़ने लगती है, उसका उत्साह कम होने लगता है।

उसे यह लगने लगता है कि उसकी आवाज़ उसका साथ नहीं दे रही है। निराशा गायक पर अपना प्रभाव दिखलाने लगती है तब संगतकार उसे ढाढ़स बंधाता हुआ प्रोत्साहित करता है। कभी-कभी संगतकार मुख्य गायक का साथ देकर उसे इस बात की प्रतीति कराता है कि वह अकेला नहीं है। उसे संकेत देता है कि राग बिगड़ गया है, तुम इसे फिर से गा सकते हो ।

संकोचवश संगतकार अपनी आवाज़ को मुख्य गायक की आवाज़ जितनी ऊंची नहीं करता। उसमें ऐसा कर सकने की सामर्थ्य नहीं है, ऐसी बात नहीं है अथवा वैसा करने में वह विफल हो जाता है बल्कि यह उसकी मानवीयता है। वह मुख्य गायक को अपनी श्रद्धा का पात्र मानता है अत: उसकी बराबरी नहीं करता । संगतकार की यह मानवीय संवेदना वास्तव में प्रशंसनीय है।

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शब्दार्थ-टिप्पण :

  • संगतकार – मुख्य गायक के साथ-साथ गानेवाला, बाद्यकार, सहयोगी
  • मुख्य गायक – पहले गानेवाला गायक, प्रमुख
  • गायक – गरज ऊंची गंभीर आवाज़
  • अंतरा – गीत को टेक, गीत का पहला चरण
  • जटिल – कठिन
  • तान – संगीत के स्वर का विस्तार
  • सरगम संगीत के स्वर
  • लांघकर – पार करके
  • समेटना – इकट्ठा करता हुआ
  • नौसिखिया – सीखने के लिए नया-नया आया व्यक्ति
  • अनहद – हद (सीमा) न हो जिसका, हद के बाहर
  • स्थायी – टेक, टेक की पंक्ति,
  • तारसप्तक – मध्य सप्तक के ऊपर की ध्वनि
  • सप्तक – संगीत के सात स्वर (सा रे ग म प ध और नी)
  • अस्त होना – छिपना, डूबना
  • राख-जैसा कुछ गिरता हआ – बुझता स्वर
  • ढाढस बंधाना – सांत्वना देना
  • हिचक – संकोच, झिझक
  • विफलता – असफलता
  • मनुष्यता – मानवता

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