GSEB Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Economics Chapter 4 पूर्ति Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Economics Chapter 4 पूर्ति
GSEB Class 11 Economics पूर्ति Text Book Questions and Answers
स्वाध्याय
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए :
1. कीमत घटने के कारण पूर्ति में होनेवाले परिवर्तन को क्या कहते हैं ?
(A) वृद्धि
(B) विस्तरण
(C) संकोचन
(D) कमी
उत्तर :
(C) संकोचन
2. कीमत को छोड़कर अन्य परिबलों द्वारा प्रेरित परिवर्तन के कारण पूर्ति में होनेवाले परिवर्तन को क्या कहते हैं ?
(A) वृद्धि
(B) संकुचन
(C) संकुचन-विस्तरण
(D) वृद्धि-कमी
उत्तर :
(D) वृद्धि-कमी
3. वस्तु की कीमत और पूर्ति के बीच कैसा सम्बन्ध है ?
(A) सीधा
(B) विरोधी
(C) ऋण
(D) व्यस्त
उत्तर :
(A) सीधा
4. क्या कम हो तो लाभ का प्रमाण कम होने से पूर्ति कम की जाती है ?
(A) जत्था
(B) पूर्ति
(C) कीमत
(D) मूल्य-सापेक्षता
उत्तर :
(C) कीमत
5. पूर्ति कुल जत्था की अपेक्षा …………………….
(A) अधिक हो सकती है ।
(B) कम हो सकती है ।
(C) अधिक नहीं हो सकती है ।
(D) नहींवत् हो सकती है ।
उत्तर :
(A) अधिक हो सकती है ।
6. पूर्ति की अनुसूचि के सभी पद कैसे होते हैं ?
(A) एकदूसरे के पूरक
(B) एकदूसरे के वैकल्पिक
(C) सहायक विरोधी
(D) एकदूसरे पर आधारित
उत्तर :
(B) एकदूसरे के वैकल्पिक
7. फलन की संज्ञा क्या है ?
(A) f
(B) G
(C) D
(D) S
उत्तर :
(A) f
8. पूर्ति रेखा का ढाल कैसा होता है ?
(A) ऋण
(B) धन
(C) व्यस्त
(D) पूरक
उत्तर :
(B) धन
9. सामान्यतः उत्पादन खर्च घटने पर पूर्ति ………………………… है ।
(A) बढ़ती है ।
(B) घटती है ।
(C) स्थिर है ।
(D) अस्थिर है ।
उत्तर :
(A) बढ़ती है ।
10. पूर्ति जत्थे से ………………………….. नहीं हो सकती है ।
(A) कम
(B) समान
(C) अधिक
(D) इनमें से एक भी नहीं
उत्तर :
(C) अधिक
11. भविष्य में वस्तु की कीमते बढ़नेवाली हों तो वर्तमान में पूर्ति …………………………. है ।
(A) घटती
(B) बढ़ती
(C) स्थिर
(D) अधिक
उत्तर :
(A) घटती
12. पूर्ति के नियम को कितने परिबल असर करते हैं ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
उत्तर :
(B) दो
13. पूर्ति का नियम किन वस्तुओं पर लागू नहीं होता है ?
(A) प्रतिष्ठावाली
(B) नाशवंत
(C) टिकाऊ
(D) उत्पादित
उत्तर :
(B) नाशवंत
14. वस्तु की कीमत माँग और ………………………. संयुक्त रीति से निश्चित करती है ।
(A) कीमत
(B) अन्य परिबल
(C) भविष्य की अटकले
(D) पूर्ति
उत्तर :
(D) पूर्ति
15. निम्न में से अप्राप्य वस्तु कौन-सी है ?
(A) दूध
(B) अण्डा
(C) कलाकृति
(D) पके फल
उत्तर :
(C) कलाकृति
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए :
1. पूर्ति की व्याख्या दीजिए ।
उत्तर :
निश्चित समय और निश्चित कीमत पर उत्पादक उत्पादन का जो भाग विक्रय की इच्छा, शक्ति और तैयारी दर्शाये तो उसे पूर्ति कहते हैं ।
2. पूर्ति की अनुसूचि (तालिका) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कोई भी उत्पादक या व्यापारी किसी एक समय वस्तु की अलग-अलग कीमत पर वस्तु का कितना जत्था विक्रय की तैयारी दर्शाता है व दर्शानेवाली सूची को ही पूर्ति की अनुसूचि (तालिका) के नाम से जानते हैं ।
3. जत्था अर्थात् क्या ?
उत्तर :
उत्पादन का जो भाग प्रवर्तमान कीमत पर उत्पादक विक्रय के लिए तैयार नहीं है उसे जत्था कहते हैं ।
4. पूर्ति का ख्याल कौन-सी दो बातों के संदर्भ में प्रस्तुत किया जाता है ?
उत्तर :
पूर्ति का ख्याल निश्चित समय और निश्चित कीमत जैसी दो बातों के संदर्भ में प्रस्तुत किया जाता है ।
5. पूर्ति रेखा का ढ़ाल कैसा होता है ?
उत्तर :
पूर्ति रेखा का ढाल धन होता है ।
6. पूर्ति का नियम किस प्रकार की वस्तुओं के लिए अपवाद है ?
उत्तर :
पूर्ति का नियम दुर्लभ या अप्राप्य तथा नाशवंत वस्तुओं के लिए अपवाद है ।
7. दुर्लभ वस्तुओं पर पूर्ति का नियम क्यों लागू नहीं पड़ता है ?
उत्तर :
दुर्लभ या अलभ्य वस्तुएँ का नया उत्पादन संभव नही हैं । इसलिए चाहे कितनी ही कीमत बढ़ा दी जाये तो भी पूर्ति संभव नहीं है ।
8. नाशवान वस्तुएँ पूर्ति के नियम का अपवाद क्यों गिनी जाती हैं ?
उत्तर :
दूध, दूध से उत्पादित वस्तुएँ, हरी सब्जीयाँ, माँस, अण्डा, फल आदि नाशवंत वस्तुएँ होने से भाव घटने पर पूर्ति घटा नहीं सकते क्योंकि इन वस्तुओं का संग्रह संभव नहीं है ।
9. उत्पादन किसे कहते हैं ? ।
उत्तर :
निश्चित समय में उपलब्ध साधनों द्वारा जितने प्रमाण में वस्तुएँ उत्पन्न हो तो उसे उत्पादन कहते हैं ।
10. पूर्ति रेखा किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कीमत और पूर्ति के बीच सम्बन्ध दर्शानेवाली रेखा को पूर्ति रेखा कहते हैं ।
11. पूर्ति में विस्तरण किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अन्य तत्त्व स्थिर हों और कीमत बढ़ने पर पूर्ति में जो वृद्धि होती है उसे पूर्ति में विस्तरण कहते हैं ।
12. पूर्ति में वृद्धि किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कीमत स्थिर हो और अन्य परिबलों में परिवर्तन होने से जो पूर्ति बढ़ती है तो उसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं ।
13. पूर्ति में संकुचन का अर्थ लिखो ।
उत्तर :
अन्य तत्त्व स्थिर हों और कीमत घटने पर पूर्ति घटे तो उसे पूर्ति में संकुचन कहते हैं ।
14. पूर्ति में कमी किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कीमत स्थिर हो और अन्य परिबलों में परिवर्तन के कारण पूर्ति में जो कमी होती है उसे पूर्ति में कमी कहते हैं ।
15. व्यक्तिगत पूर्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कोई एक उत्पादक या पेढ़ी द्वारा बाजार में किसी एक चीजवस्तु को अलग-अलग कीमत पर विक्रय के लिए तैयार हो तो उसे व्यक्तिगत पूर्ति कहते हैं ।
16. बाजार पूर्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर :
किसी एक निश्चित कीमत पर अनेक उत्पादकों द्वारा जितनी पूर्ति बाजार में रखी जाये उसके कुल योग को बाजार पूर्ति कहते हैं ।
17. संतुलित कीमत किसे कहते हैं ?
उत्तर :
माँग और पूर्ति द्वारा चीजवस्तु और सेवा की जो कीमत निश्चित होती है उसे संतुलित कीमत कहते हैं ।
18. पूर्तिफलन का सूत्र लिखो ।
उत्तर :
Sx = f(Px, T, PF, Pe, U)
19. पूर्ति रेखा किस ओर गति करती है ?
उत्तर :
पूर्ति रेखा बायी ओर से दायी ओर गति करती है ।
20. कीमत और पूर्ति के बीच कैसा सम्बन्ध है ?
उत्तर :
कीमत और पूर्ति के बीच सीधा सम्बन्ध है ।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए :
1. अंतर समझाइए : जत्था और पूर्ति
जत्था | पूर्ति |
1. उत्पादन का ऐसा भाग जो प्रवर्तमान कीमत पर उत्पादक विक्रय के लिए तैयार न हो तो उसे जत्था कहते हैं । | 1. निश्चित समय और कीमत पर उत्पादक उत्पादन का जो भाग विक्रय की इच्छा, शक्ति और तैयारी दर्शाये तो उसे पूर्ति कहते हैं । |
2. जत्था को गोदाम में संग्रह किया जाता है । | 2. पूर्ति को बाजार में विक्रय के लिए रखा जाता है । |
3. जत्था पूर्ति से अधिक व्यापक है । | 3. पूर्ति जत्था का एक भाग है । |
2. व्यक्तिगत पूर्ति और बाजार पूर्ति का अर्थ समझाइए ।
उत्तर :
व्यक्तिगत पूर्ति : कोई एक उत्पादक या पेढ़ी द्वारा बाजार में किसी चीजवस्तु की अलग-अलग कीमत पर जो उत्पादन हुयी वस्तुओं के विक्रय के लिये रखा जाता है उसे व्यक्ति पूर्ति कहते हैं ।
बाजार पूर्ति : किसी निश्चित कीमत पर अनेक उत्पादकों द्वारा वस्तुओं की जितनी पूर्ति बाजार में रखी जाती है उः . कुल योग को कुल पूर्ति या बाजार पूर्ति के नाम से जानते हैं ।
3. किस लिए पूर्ति उत्पादन की अपेक्षा अधिक हो सकती है, परंतु कुल जत्थे की अपेक्षा अधिक नहीं हो सकती ?
उत्तर :
उत्पादन अर्थात् निश्चित समय उपलब्ध साधनों द्वारा जितने प्रमाण में वस्तुएँ उत्पन्न हो वह उत्पादन है । उत्पादन यह उत्पन्न हुयी वस्तुओं का प्रमाण दर्शाता है । जबकि निश्चित समय और कीमत पर उत्पादक उत्पादन का जो भाग विक्रय के लिए इच्छा, शक्ति और तैयारी दर्शाये तो पूर्ति कहते हैं । जत्था अर्थात् उत्पादन का ऐसा भाग जो प्रवर्तमान कीमत पर उत्पादक विक्रय के लिए तैयार न हो तो उसे जत्था कहते हैं । जैसे किसी ऑयल कम्पनी ने 500 डब्बे तेल का उत्पादन किया । अब इसमें से वह 200 डिब्बे विक्रय के लिए तैयार हो तो 200 डिब्बे पूर्ति है, शेष 300 डिब्बों को बेचने के लिए तैयार नहीं है इसलिए उसे गोदाम में रखता है । इसलिए उसे जत्था कहते हैं ।
इस प्रकार पूर्ति उत्पादन से अधिक हो सकती है परंतु जत्थे से अधिक नहीं हो सकती है ।
4. पूर्ति रेखा का ढ़ाल धन क्यों होता है ?
उत्तर :
अन्य परिबल स्थिर होने पर वस्तु की कीमत बढ़ने से लाभ की संभावना अधिक होती है । इसलिए उत्पादक या व्यापारी पूर्ति बढ़ाकर लाभ कमाने के लिए प्रयत्नशील होते है । उसी प्रकार कीमत घटने पर लाभ कम होने से पूर्ति घटने के लिए प्रयत्नशील होते है । इस प्रकार पूर्तिरेखा नीचे से ऊपर की ओर अर्थात् दायीं ओर सीधी दिशा में बढ़ती है । इसलिए पूर्ति रेखा का ढाल धन होता है ।
5. किन परिस्थितियों में उत्पादन, जत्था और पूर्ति समान होते हैं ?
उत्तर :
यदि कुल जत्था कुल उत्पादन जितना ही हो अर्थात् पहले का उत्पादित जत्था शेष न हो तो उत्पादन एवं जत्था दोनों समान होंगे । ऐसी स्थिति में यदि संपूर्ण जत्था एक निश्चित समयावधि में, निश्चित कीमत पर बेचा जाए या बेचने के लिए प्रस्तुत किया जाए तब पूर्ति भी उत्पादन एवं जत्थे के समान होगी ।
6. कीमत कम होने पर नाशवान वस्तुओं की पूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
हरी सब्जियाँ, पके फल, अंडे, मांस, मछली, दूध एवं दूध की अन्य बनावटें अति नाशवान वस्तुएँ हैं । इन नाशवान वस्तुओं की कीमत में कमी होने पर भी पूर्ति में कमी नहीं आती । नाशवान वस्तुओं का संग्रह नहीं किया जा सकता । यदि इनका संग्रह किया जाए तो या तो बिगड़ जाती हैं या तो सड़ जाती है । अतः उसमें से प्राप्त होनेवाले सीमांत तुष्टिगुण का नाश होता है । अतः नाशवान वस्तुओं की कीमत कम होने पर भी उनकी पूर्ति में कमी नहीं आती । इसे पूर्ति के नियम के अपवाद के रूप में भी जाना जाता है ।
7. किन कारणों से कई प्रकार के श्रम की कीमत बढ़ने पर उसकी पूर्ति में कमी होती है ?
उत्तर :
जब श्रमिक के वेतनदर में वृद्धि होती है तो श्रमिकों की पूर्ति में भी वृद्धि होती है । निश्चित समय पश्चात् वेतनदर बढ़ने पर श्रमिक काम के बजाय आराम अधिक पसंद करते हैं । इस प्रकार एक निश्चित समय बाद वेतनदर बढ़ने पर श्रम की पूर्ति में कमी आती है । एक निश्चित आय की अपेक्षावाले श्रमिक अमुक समय बाद वेतनदर बढ़ने पर श्रम की पूर्ति कम कर देते हैं । अब एक निश्चित आय होने से वे काम के बजाय आराम अधिक पसंद करते हैं । परिणामस्वरूप वेतन पाने पर श्रम की पूर्ति में कमी होती है ।
8. किस स्थिति में भाव बढ़ने पर भी पूर्ति स्थिर रहती है अथवा घटती है ?
उत्तर :
प्राचीन सिक्के, डाक टिकटें, कलाकृतियाँ, महान लेखकों नाटककारों की कृतियों की हस्तप्रत आदि दुर्लभ अथवा अप्राप्य वस्तुएँ हैं । ऐसी वस्तुओं की कीमत में चाहे कितनी ही वृद्धि क्यों न हो उनकी पूर्ति नहीं बढ़ाई जा सकती । ऐसी वस्तुओं की पूर्ति बढ़ाना मनुष्य की सामर्थ्य से बाहर होता है । अतः ऐसी वस्तुओं की कीमत बढ़ने पर भी उनकी पूर्ति स्थिर रहती है । ऐसी अप्राप्त वस्तुएँ यदि किसी कारणवश नष्ट हो जाएँ तो पूर्ति कम भी हो सकती है ।
9. भविष्य में वस्तु की कीमत बढ़ने या घटने की आशंका हो तो पूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
विक्रेता को यदि ऐसी आशंका हो कि वस्तु की कीमत निकट भविष्य में बढ़ेगी तो वे वर्तमान में वस्तु की पूर्ति को कम कर देंगे । भविष्य में ऊँची कीमत पर वस्तु बेचने से विक्रेता के लाभ में वृद्धि होती है । इसके विपरीत यदि विक्रेता को उम्मीद हो तो वस्तु की कीमत भविष्य में कम हो जाएगी तो वे वर्तमान में पूर्ति को बढ़ा देंगे । ऐसा वह इसलिए करते हैं कि भविष्य में कम कीमत पर वस्तु बेचने पर लाभ में कमी हो जाती है अथवा तो विक्रेता को हानि भी उठानी पड़ सकती है । इस प्रकार विक्रेता को यदि भविष्य में कीमत बढ़ने की आशंका हो तो वर्तमान में पूर्ति में कमी आ जाती है और यदि भविष्य में कीमत में कमी होने की आशंका हो तो वर्तमान में पूर्ति बढ़ जाती है । ऐसी स्थिति में पूर्ति का नियम कार्यशील नहीं रहता ।
10. उत्पादन खर्च में परिवर्तन होने पर पूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
यदि किसी कारणवश उत्पादन के साधनों की कीमतों में कमी आ जाए तो उत्पादन खर्च कम हो जाता है । जैसे कि जमीन को कम किराया चुकाना पड़े, मूड़ी पर ब्याज की दर में गिरावट हो, मजदूरों के वेतन में कमी हो तो उत्पादन खर्च में भी कमी आती है । उत्पादन खर्च में कमी हो और वस्तु की कीमत यथावत् रहे तो विक्रेता के लाभ में वृद्धि होती है । विक्रेता के लाभ में वृद्धि होने के कारण वस्तु की पूर्ति में भी वृद्धि होती है । ठीक इसी प्रकार यदि उत्पादन खर्च में किसी कारण से वृद्धि हो और वस्तु की कीमत बढ़ानी संभव न हो तो विक्रेता के लाभ में कमी आती है । लाभ में कमी आने से पूर्ति में भी कमी आती है ।
11. कीमत और पूर्ति के बीच सीधा संबंध क्यों है ? ।
उत्तर :
अन्य तत्त्व स्थिर हों और
- कीमत बढ़ने पर विक्रेता-उत्पादक को लाभ अधिक मिलने के कारण पूर्ति बढ़ाने और कीमत घटने पर लाभ कम होने की वजह से पूर्ति घटाने के लिए प्रेरित होते हैं ।
- पहले की नीची कीमत में जिस उत्पादक या व्यापारी को बाज़ार में पूर्ति रखने की अनुकूलता नहीं होती थी वह अब कीमत बढ़ने से संभाव बनती है । इसलिए कीमत और पूर्ति दोनों एक ही दिशा में परिवर्तन करती हैं । इसलिए कीमत और पूर्ति के बीच सीधा संबंध है ।
* यदि उत्पादन के साधन की कीमत घटे, उत्पादन खर्च घटे, उत्पादन पद्धति में सुधार हो, अन्य वस्तुओं के भाव घटे, सरकार की नीति पूर्ति बढ़ाने की हो, पेढ़ीयों की संख्या में वृद्धि हो, इस परिस्थिति में वस्तु की कीमत में परिवर्तन न हो फिर भी पूर्ति में वृद्धि होती है । इस स्थिति में मूल पूर्ति रेखा अपने स्थान से दायीं ओर खिसकती है जिसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं ।
* इसके विरुद्ध यदि उत्पादन के साधनों की कीमत बढ़े, उत्पादन खर्च बढ़े, अन्य वस्तुओं के भाव बढ़े, सरकार की नीति पूर्ति घटाने की दिशा में हो ऐसी मान्यता, उत्पादकों या व्यापारियों में हो तो इस परिस्थिति में कीमत में परिवर्तन न हो तो भी पूर्ति में कमी दिखायी देती है । इस स्थिति में मूलपूर्ति रेखा अपने स्थान से बायीं ओर खिसकती है । जिसे पूर्ति में कमी कहते हैं ।
आकृति में x- अक्ष पर वस्तु की पूर्ति इकाई में और y- अक्ष पर वस्तु की कीमत रु. में दर्शायी है । उत्पादक या व्यापारी मूल संतुलन b बिंदु पर अर्थात् कि पूर्ति रेखा S2S2 पर थी । वस्तु की प्रति इकाई कीमत 20 रु. थी तब उत्पादक या व्यापारी पूर्ति रेखा S2S2 के b बिंदु पर वस्तु की 300 इकाई पूर्ति विक्रय के लिए तैयार था । कीमत स्थिर 20 रु. ही रहती है । अन्य परिबलों में परिवर्तन होने से पूर्ति 300 । से बढ़कर 400 इकाई हो जाती है, जिसे बिंदु c तथा पूर्ति रेखा S3S3 पर पहुँचती है जिसे वृद्धि कहते हैं । अर्थात् मूल पूर्ति रेखा (S2S2) से दायीं ओर (S3S3) का स्थान लेती है । इसी प्रकार अन्य परिबलों में परिवर्तन होने से पूर्ति 300 से घटकर 200 इकाई रह जाती है ।
जिसे S1S1 पूर्तिरेखा तथा a बिंदु का स्थान लेती है जो कमी का निर्देश करते है । पूर्तिरेखा बायीं ओर खिसकती है ।
5. पूर्ति में विस्तरण-संकुचन आकृति सहित समझाओं ।
उत्तर :
जब अन्य परिबल स्थिर हों और मात्र कीमत में परिवर्तन होने से पूर्ति पर असर होती है । वस्तु की कीमत बढ़ने पर पूर्ति में वृद्धि होती है जिसे पूर्ति का विस्तरण कहते हैं और वस्तु की कीमत घटने पर वस्तु की पूर्ति में कमी आती है जिसे पूर्ति में संकुचन कहते हैं । जिसे नीचे की आकृति में देखें :
आकृति में x-अक्ष पर वस्तु की पूर्ति और y-अक्ष पर वस्तु की कीमत में दर्शायी गयी है । वस्तु की कीमत 60 रु. पर तब पेढ़ी Ss पूर्ति रेखा के b बिंदु पर संतुलन था । जब वस्तु की कीमत 70 रु. हो जाती है, तब पूर्ति 600 इकाई हो जाती है, जिसे c बिंदु से दर्शाया है । b से c की तरफ गति करता है । जिसे विस्तरण कहते हैं । जब वस्तु की कीमत घटकर 50 रु. होने पर पूर्ति घटकर 200 इकाई रह जाती है b बिंदु से बायीं ओर खिसकर a पर पहुँच जाती है । जिस पूर्तिरेखा में संकुचन होता है ।
6. पूर्ति के नियम की धारणाएँ बताइए ।
उत्तर :
कीमत और पूर्ति के बीच का सम्बन्ध कुछ धारणाओं पर बनाया गया है । पूर्ति को असर करनेवाले विविध परिबलों में से कीमत को छोड़कर परिबलों को स्थिर माना गया है । मात्र वस्तु की कीमत और उसकी पूर्ति पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है तभी पूर्ति के नियम का निष्कर्ष निकाल सकते हैं । इसका अर्थ ऐसा नहीं है कि कीमत की तुलना में अन्य परिबलों की पूर्ति पर असर कम होती है । वास्तव में अन्य परिबलों में से एक परिबल कीमत की अपेक्षा पूर्ति अधिक प्रभाव डाल सकती है ।
पूर्ति का नियम निम्नलिखित कारणों पर ही सही है :
- उत्पादन के साधनों की कीमत स्थिर रहती है अर्थात् उत्पादन के साधनों में कमी-वृद्धि नहीं होती है ।
- उत्पादन पद्धति में परिवर्तन नहीं होता है अर्थात् टेक्नोलॉजी का स्तर स्थिर होता है ।
- अन्य वस्तुओं के भाव स्थिर रहता है अर्थात् उसमें भी कोई परिवर्तन नहीं होता है ।
- बाजार में भविष्य की कीमत सम्बन्धी अटकलें स्थिर होती हैं ।
- अन्य परिबल जैसे कि सरकार की नीति, वाहनव्यवहार की सुविधा, प्राकृतिक परिबल, पेढ़ीयों की संख्या आदि स्थिर रहती है।
इन धारणाओं पर ही नियम सही होता है । इसलिए पूर्ति के नियम को शरती नियम कहते हैं ।
7. ‘उत्पादन, पूर्ति और जत्था एकसमान नहीं है ।’ विधान समझाइए ।
उत्तर :
उत्पादक के द्वारा जितनी वस्तु का उत्पादन किया जाएगा वह निश्चित समय का उत्पादन है । उत्पादित वस्तु में से जितनी वस्तुएँ गोदाम में संग्रह के लिए रखा जाय अर्थात् बेचने के लिए प्रस्तुत न किया जाय वह जत्था है और जितनी मात्रा में ग्राहकों के सम्मुन बेचने के लिए प्रस्तुत किया जाय उसे पूर्ति कहते हैं ।
इसलिए यदि पुराना जत्था (उत्पादन किया हुआ) पड़ा हो तो नये उत्पादन के साथ जत्थों में वृद्धि हो सकती है । उसकी पुरानी और नई उत्पादित वस्तु को हम कुल जत्था कह सकते हैं । संपूर्ण जत्था बेचने के लिए प्रस्तुत नहीं किया जाता उसमें से कुछ हिस्सा ही बेचने के लिए आता है इसलिए वह पूर्ति कहलाता है ।
जैसे : किसी टी.वी. कंपनी के पास पुराने 100 नंग टी.वी. पड़े हों जिसे हम जत्था कहेंगे । चालु वर्ष में 500 टी.वी. बनाए जाएँ तो उत्पादन मात्र 500 टी.वी. ही माना जाएगा । जब कि जत्था 600 टी.वी. का कहलाएगा । उसमें से 400 टी.वी. बेचने के लिए बाज़ार में प्रस्तुत किए जाएँ तो यह उस टी.वी. की पूर्ति कहलाएगी ।
8. कीमत और पूर्ति के बीच के सम्बन्ध को समझाइए ।
उत्तर :
कीमत और पूर्ति के बीच सम्बन्ध होने के दो कारण हैं :
- उत्पादक का उद्देश्य महत्तम लाभ प्राप्त करना होता है । जब कीमत अधिक होती है तब उस वस्तु का पूर्ति बढ़ाने के लिए प्रेरित होता है, कारण कि पूर्ति बढ़ाकर अधिक लाभ कमाने का प्रयत्न करता है ।
- वस्तु की कीमत बढ़ने के कारण लाभ की संभावना बढ़ती है । परिणामस्वरुप बाजार में नये उत्पादकों के प्रवेश करने से कुल पूर्ति में वृद्धि होती है ।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के विस्तारपूर्वक उत्तर दीजिए :
1. पूर्ति किसे कहते हैं ? पूर्ति को प्रभावित करनेवाले परिबलों की चर्चा विस्तार से कीजिए ।
उत्तर :
उत्पादकों के द्वारा उत्पादित इकाईयों के समूह को “उत्पादन” कहते हैं । कुल उत्पादित इकाईओं में से जितना जत्था ग्राहकों के सम्मुख बेचने के लिए प्रस्तुत नहीं होता और गोदामों में संग्रह किया जाता है उसे जत्था कहते हैं । जितना हिस्सा बाज़ार में बेचने के लिए प्रस्तुत किया जाता है उसे पूर्ति कहते हैं ।
परिभाषा : “निश्चित कीमत पर, निश्चित समय में विक्रेता या उत्पादक वस्तु का जितना जत्था बेचने की तत्परता दर्शाते हैं उतने जत्थे को पूर्ति कहते हैं ।”
पूर्ति को प्रभावित करनेवाले तत्त्व :
(1) वस्तु की कीमत : किसी भी वस्तु की पूर्ति पर प्रभाव डालनेवाला सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व कीमत है । यदि अन्य तत्त्व यथावत् रहें तो वस्तु की कीमत बढ़ने पर वस्तु की पूर्ति भी बढ़ती है एवं कीमत घटने पर वस्तु की पूर्ति भी कम होती है । इस प्रकार कीमत एवं वस्तु की पूर्ति में सीधा या धन संबंध है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वस्तु की कीमत बढ़ने से विक्रेता के लाभ में वृद्धि होती है । इसलिए वह और अधिक लाभ कमाने के लिए वस्तु की पूर्ति को बढ़ाता है । ठीक इसके विपरीत कीमत कम होने पर विक्रेता के मुनाफे में भी कमी आती है । इसलिए वह वस्तु की पूर्ति को भी कम कर देता है । इस प्रकार किसी भी वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करनेवाला सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व उस वस्तु की कीमत है ।
(2) कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्त्व : किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन न हो तो भी उस वस्तु की पूर्ति में परिवर्तन हो सकता है । ऐसा होने का मुख्य कारण कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्त्वों में होनेवाला परिवर्तन है । अन्य तत्त्वों के कारण पूर्ति में जो भी परिवर्तन होता है उसे पूर्ति में वृद्धि-कमी के रूप में जाना जाता है । इन तत्त्वों को हम निम्नरूप में समझ सकते हैं –
(i) उत्पादन के साधनों की कीमतें अथवा उत्पादन खर्च : आधुनिक युग में किसी भी वस्तु का उत्पादन करने में चार साधनों का उपयोग होता है । इन चार साधनों में जमीन, पूँजी, श्रम एवं नियोजक का समावेश होता है । जमीन को किराया, पूँजी को ब्याज, श्रमिक को वेतन एवं नियोजक को लाभ प्राप्त होता है । इनमें से किसी एक या एक से अधिक साधनों की कीमतों में वृद्धि होने पर उत्पादन खर्च भी बढ़ता है । इनकी कीमतों में कमी आने पर उत्पादन खर्च भी कम होता है । यदि वस्तु की कीमत स्थिर रहे और उत्पादन खर्च में कमी आए तो विक्रेता का लाभ बढ़ता है । परिणामस्वरूप वस्तु की पूर्ति भी बढ़ती है । ठीक इसके विपरीत यदि वस्तु की कीमत स्थिर रहे और उत्पादन के साधनों की कीमत बढ़े अर्थात् उत्पादन खर्च बढ़े तो उत्पादक के लाभ में कमी आने के कारण वस्तु की पूर्ति में भी कमी आती है । इस प्रकार उत्पादन खर्च पूर्ति को प्रभावित करनेवाला महत्त्वपूर्ण परिबल है ।
(ii) उत्पादन पद्धति : किसी भी वस्तु के उत्पादन में आधुनिक टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाए तो उत्पादन में वृद्धि होती है । छोटे पैमाने की जगह बड़े पैमाने (Large Scale) पर उत्पादन किया जाए तो उत्पादन खर्च में कमी आती है । साथ-साथ नियत समय . में उत्पादन भी बढ़ता है जिससे वस्तु की पूर्ति भी बढ़ती है ।
(iii) अन्य वस्तुओं के भाव : कई वस्तुएँ एक-दूसरे की स्थानापन्न (Substitutes) होती है । सामान्यत: चाय एवं कॉफी एकदूसरे की प्रतिस्थापन्न हैं । चाय की कीमत स्थिर रहे एवं कॉफी की कीमत में वृद्धि हो तो उत्पादक अधिक लाभ कमाने के लिए कॉफी का उत्पादन बढ़ा देंगे एवं चाय का उत्पादन कम कर देंगे । परिणामस्वरूप कॉफी की पूर्ति तो बढ़ेगी परन्तु चाय की पूर्ति में कमी आएगी ।
(iv) भविष्य की भाव संबंधी अटकलें : विक्रेता को यदि उम्मीद हो कि वस्तु की कीमत भविष्य में बढ़ेगी तो वर्तमान में वह वस्तु की पूर्ति में कमी कर देगा । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यदि वह वस्तु को भविष्य में बेचेगा तो अधिक अथवा ऊँची कीमत की वजह से लाभ में भी वृद्धि होगी । इसके विपरीत यदि भविष्य में कीमतों के गिरने की संभावना हो तो विक्रेता के मुनाफे में कमी न हो इसलिए वह वस्तु की पूर्ति को बढ़ाएगा ।
(v) परिवहन एवं बैंकिंग सेवा का विकास : देश में यदि वाहनव्यवहार एवं बैंकिंग सेवाओं का विकास हो तो वस्त की पर्ति में वृद्धि होती है । अच्छी सड़कों, अच्छे रेलमार्ग एवं राष्ट्रीय मार्ग का विकास होने से वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया सकता है । प्रांतों एवं देशों के बीच की दूरी कम होने से व्यापार के प्रमाण में वृद्धि होती है । नाशवान वस्तुएँ (Perishable Commodities) जिनकी पूर्ति आम तौर पर स्थानिक होती है । वाहनव्यवहार की सुविधाओं के विकास से सर्वत्र उपलब्ध होती हैं । बैंकों का उचित विकास उत्पादकों अथवा विक्रेताओं को उचित समय एवं स्थान पर पैसा उपलब्ध करा सकता है । परिणामस्वरूप उत्पादन में वृद्धि होती है एवं पूर्ति भी बढ़ती है ।
(vi) सरकार की आर्थिक नीति : सरकार की आर्थिक नीति यदि उत्पादकों को प्रोत्साहनकारी हो तो उत्पादन बढ़ने से पूर्ति में भी वृद्धि होती है । यदि सरकार देश में उद्योगों के विकास के लिए उन्हें सस्ते दर पर विद्युत, पानी, कच्चा माल, कर में राहतें अथवा कर मुक्त करे तो औद्योगिक उत्पादन बढ़ता है एवं पूर्ति भी बढ़ती है । इसके विपरीत यदि सरकार की नीति इसके विपरीत हो तो औद्योगिक उत्पादन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है एवं पूर्ति में कमी हो जाती है । इसी प्रकार सरकार अपनी आर्थिक नीति द्वारा किसानों को सस्ते दर पर ऋण, अच्छे किस्म के बीज, आधुनिक औजार, जंतुनाशक दवाएँ, रासायनिक खाद आदि उचित एवं सस्ते दरों पर उपलब्ध करवाये तो कृषि उत्पादकों को प्रोत्साहन मिलता है । फलस्वरूप देश में कृषि उत्पादन अथवा पूर्ति बढ़ती है । भारत सरकार प्रतिवर्ष अपनी आर्थिक नीति में इस प्रकार परिवर्तन करती है कि जिससे कृषि एवं औद्योगिक उत्पादकों को प्रोत्साहन मिले और देश का कुल उत्पादन बढ़े।
(vii) पीढ़ियों की संख्या : पीढ़ियों की संख्या में वृद्धि-कमी होने पर भी वस्तु की पूर्ति में वृद्धि-कमी होती है । सामान्यत: पीढ़ियों की संख्या के वृद्धि होने पर पूर्ति बढ़ती है, एवं पीढ़ियों की संख्या में कमी होने पर पूर्ति में कमी आती है । कभी-कभी पीढ़ियों की संख्या न बढ़े फिर भी पूर्ति में वृद्धि हो सकती है । इसका कारण यह है कि यदि प्रवर्तमान पेढ़ियाँ अपना उत्पादन बढ़ा दे तो भी पूर्ति बढ़ जाती है । इसके विपरीत यदि पीढ़ियों की संख्या कम न हो तो परंतु प्रवर्तमान पेढ़ियाँ उत्पादन घटा दे तो भी वस्तु की पूर्ति में कमी आती है । इस प्रकार बाज़ार में किसी भी वस्तु की पूर्ति पर केवल पीढ़ियों की संख्या का प्रभाव नहीं होता बल्कि उनके उत्पादन प्रमाण का भी प्रभाव होता है ।
भारत में एक या दो वर्ष पूर्व देश के अंदर एक ही विमानी सेवा (Indian Airlines) उपलब्ध थी, परंतु आजकल नई पीढ़ियों जैसे कि मोदी लुफ्त, ईस्ट वेस्ट एयरलाइन्स, जेट एयर वेज (Modiluft, East-West Airlines, Jet Airways) आदि के प्रवेश से विमानी सेवाओं की पूर्ति में वृद्धि हुई है । इस प्रकार नई पीढ़ियों के प्रवेश से वस्तु की पूर्ति में वृद्धि होती है और उनके विकास से पूर्ति में कमी आती है।
2. पूर्ति के नियम की विस्तृत अनुसूचि (तालिका) को आकृति सहित समझाइए ।
उत्तर :
माँग की तरह पूर्ति भी निश्चित कीमत, निश्चित समय दरम्यान के साथ सम्बन्ध है । इसलिए ‘अन्य परिबल स्थिर होने पर निश्चित कीमत पर निश्चित समय दरम्यान वस्तु की कीमत बढ़ने पर पूर्ति का विस्तरण होता है और वस्तु की कीमत घटने पर पूर्ति का संकुचन होता है ।’ इस प्रकार – कीमत और पूर्ति के बीच सीधा सम्बन्ध है, जिसे अर्थशास्त्र में पूर्ति के नियम के नाम से जानते हैं । जिसे नीचे की तालिका और आकृति से समझेंगे :
पूर्ति की तालिका (अनुसूचि): कोई एक उत्पादक या व्यापारी किसी एक समय वस्तु की अलग-अलग कीमत पर वस्तु का कितना जत्था विक्रय की तैयारी दर्शाता है वह दर्शाती हुई सूची को पूर्ति की अनुसूचि या तालिका कहते हैं । एक काल्पनिक तालिका द्वारा इस बात को सरलता से समझ सकते हैं । मानो कि कोई उत्पादक या व्यापारी किसी एक महीने के दरम्यान सेब की भिन्न-भिन्न कीमत पर विक्रय करने की तैयारी दर्शाता है, वह काल्पनिक अनुसूचि में दर्शाया है :
सेब की (प्रति किलोग्राम कीमत रु. में) | सेव की पूर्ति (किग्रा में) |
50 | 200 |
60 | 400 |
70 | 600 |
80 | 800 |
90 | 1000 |
पूर्तिरेखा की आकृति :
आकृति में x-अक्ष पर सेब की पूर्ति किग्रा में और y-अक्ष पर सेब की कीमत रु. में दर्शायी है । तालिका के अनुसार 50 रु. की कीमत पर सेब की पूर्ति 200 किग्रा थी । जिसे a बिंदु से दर्शाया गया है । 50 रु. से कीमत बढ़कर रु. 60, 70, 80 और 90 पर क्रमश: पूर्ति 400, 600, 800 और 1000 किग्रा हो जाती है । जिन्हें b, c, d और e बिंदु से दर्शाया है । a, b, c, d और e बिंदु को जोड़ने से पूर्ति रेखा SS बायीं ओर से दायी ओर की गति करती है । अर्थात् पूर्ति रेखा का ढाल धन है । धन ढाल कीमत और पूर्ति के बीच सीधा सम्बन्ध दर्शाता है ।
3. बाजार में कीमत-
निर्धारण की प्रक्रिया आकृति सहित समझाइए ।
उत्तर :
माँग का अर्थ : “माँग किसी वस्तु की वह मात्रा है, जो कि कोई व्यक्ति एक दिए गए मूल्य पर खरीदने को तत्पर होता है ।” – प्रो. J. S. Mill
अर्थात् किसी एक कीमत पर, निश्चित समय पर ग्राहक जितनी वस्तुओं को खरीदता है उतनी वस्तुओं की वह माँग करता है ऐसा कहा जाता है । अर्थात खरीद की मात्रा माँग है ।
पूर्ति का अर्थ :
किसी निश्चित समयावधि में, किसी निश्चित कीमत पर व्यापारी अथवा उत्पादक वस्तु का जितना जत्था (मात्रा) बेचने की तत्परता दर्शाता है, उतने जत्थे (मात्रा) को उस वस्तु की पूर्ति कहते हैं ।”
कीमत निर्धारण की प्रक्रिया :
लोग कई बार ऐसा मानते हैं कि वस्तु की उपयोगिता उसकी कीमत निर्धारित करती है । अर्थात् जिसकी माँग अधिक होती है उसकी कीमत भी अधिक होती है । जैसे : रेत या मिट्टी की तुलना में अनाज की उपयोगिता अधिक होती है, इसलिए उसकी कीमत भी अधिक होती है । परंतु यह तर्क सत्य नहीं है । क्योंकि अनाज, पानी, हवा, सूर्यप्रकाश जीवन में अत्यंत आवश्यक होने के बावजूद भी उसकी कीमत सोना-चांदी, हीरा-जवाहरात की तुलना में कम होती है । जबकि उसकी उपयोगिता बहुत अधिक है ।
कितने ही लोगों का यह मानना है कि बाज़ार में वस्तु की पूर्ति उसकी कीमत निश्चित करती है । अर्थात् जिस वस्तु की पूर्ति जितनी अधिक होगी उतनी उस वस्तु की कीमत कम और जिस वस्तु की पूर्ति जितनी कम होगी उतनी ही उस वस्तु की कीमत अधिक होगी । परंतु यह तर्क भी सही नहीं है क्योंकि अहमदाबाद शहर में मकान की पूर्ति दिन-प्रतिदिन अधिक होने के बावजूद मकान की कीमत बढ़ती ही जाती है ।
इस प्रकार न तो केवल वस्तु की माँग और न ही अकेले वस्तु की पूर्ति वस्तु की कीमत निर्धारित करते हैं ।
माँग और पूर्ति द्वारा वस्तु की कीमत-निर्धारण : उपरोक्त विवेचनों के आधार पर हम कह सकते हैं कि माँग-पूर्ति दोनों मिलकर संयुक्त रूप से वस्तु की कीमत को निर्धारित करते हैं ।
प्रो. मार्शल के मतानुसार : “जिस प्रकार यह बताना कठिन है कि कैंची के उपर का फल कपड़ा काटता है या नीचे का फल ?” उसी प्रकार यह बता पाना भी मुश्किल है कि बाज़ार में वस्तु की कीमत वस्तु की माँग निश्चित करती है या पूर्ति । जिस प्रकार कैंची के दोनों फल मिलकर कपड़ा काटते हैं उसी प्रकार माँग और पूर्ति संयुक्त रूप से मिलकर बाज़ार में वस्तु की कीमत निर्धारित करते हैं ।
माँग, पूर्ति की काल्पनिक तालिका
वस्तु की कीमत (रु. में) | वस्तु की माँग (किग्रा में) | वस्तु की पूर्ति (किग्रा में) |
10 | 1000 | 200 |
20 | 800 | 400 |
30 | 600 | 600 |
40 | 400 | 800 |
50 | 200 | 1000 |
कीमत निर्धारण की आकृति :
आकृति में DD वस्तु की माँग रेखा है और SS वस्तु की पूर्ति रेखा है । दोनों एकदूसरे को P बिंदु पर प्रतिच्छेदित करती है । जिसे PM कीमत अर्थात् कि 30 रु. निश्चित होती है । इस कीमत पर वस्तु और पूर्ति OM जितनी अर्थात् कि 600 किग्रा समान है और संतुलन स्थापित होता है । PM कीमत संतुलन की कीमत कही जायेगी ।
अब कीमत PM से बढ़े अर्थात् 40 रु. हो तो आकृति में दर्शाये अनुसार वस्तु की माँग 600 किग्रा से घटकर 400 किग्रा हो जाती है और पूर्ति बढ़कर 800 हो जाती है । माँग और पूर्ति के बीच AB जितना अंतर सर्जित होता है । माँग की अपेक्षा पूर्ति बढ़ जाती है, परिणामस्वरूप कीमत नीची होने की संभावना होती है ।
इसी प्रकार कीमत PM की अपेक्षा कम हो अर्थात् रु. 20 हो तब माँग 600 किग्रा से बढ़कर 800 किग्रा हो जाता है और पूर्ति घटकर 400 किग्रा हो जाती है । माँग और पूर्ति के बीच EF जितना अंतर सर्जित होता है । पूर्ति की अपेक्षा माँग बढ़ जाती है । परिणामस्वरुप कीमत बढ़ने की संभावना हो जाती है ।
निष्कर्ष रुप में ऐसा कह सकते हैं कि वस्तु की कीमत माँग और पूर्ति दोनों ही निर्धारण करती है । जब तक इन दोनों में कोई परिवर्तन न हो तो यह संतुलित कीमत टिकी रहती है ।
4. व्यक्तिगत पूर्ति और बाजार पूर्ति को आकृति से समझाइए ।
उत्तर :
कोई एक उत्पादक या पेढ़ी द्वारा बाजार में किसी चीजवस्तु अलग-अलग कीमत पर जो उत्पादन हुआ वस्तुओं को विक्रय किया . जाता है, उसे व्यक्तिगत पूर्ति कहते हैं । किसी निश्चित कीमत पर अनेक उत्पादकों द्वारा वस्तुओं का जितनी पूर्ति बाजार में रखी जाये, उसके योग को ध्यान में लिया जाता है उसे कुल पूर्ति या बाजार पूर्ति के नाम से जानते हैं । इसे नीचे की तालिका और आकृति से समझेंगे :
तालिका का अवलोकन करने पर पता चलता है कि जब वस्तु की कीमत अधिक होती है तब पेढ़ी द्वारा बाजार में पूर्ति अधिक होती है । इसके विरुद्ध जब वस्तु की कीमत कम होती है तब पूर्ति कम होती है । इस बात को समझाने का महत्त्वपूर्ण नियम ‘पूर्ति के नियम’ के नाम से जानते है । उपर्युक्त तालिका के अनुसार आकृति में देखते हैं :
आकृति की समझ : उपर्युक्त अनुसूचि में A पेढ़ी और B पेढ़ी की अलग-अलग कीमत पर पूर्ति को प्रस्तुत किया गया है । जब कि बाजार पूर्ति अर्थात् कि A पेढ़ी और B पेढ़ी के पूर्ति के योग बाजार पूर्ति रेखा में प्रस्तुत किया गया है । तालिका पर से पेढ़ी A पेढ़ी की पूर्ति रेखा और B पेढ़ी की पूर्ति रेखा का निर्धारण अलग-अलग आकृति द्वारा किया गया है । इसके उपरांत तालिका के अनुसार कुल पूर्ति रेखा अर्थात बाजार पूर्ति रेखा का निर्धारण भी किया गया है । तीनों का धन ढाल है ।
5. पूर्ति के नियम के अपवादों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
पूर्ति का नियम यह दर्शाता है कि किसी भी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर वस्तु की पूर्ति में भी परिवर्तन होता है अर्थात् वस्तु की कीमत बढ़ने पर पूर्ति बढ़ती है और वस्तु की कीमत घटने पर पूर्ति भी घटती है । लेकिन खास परिस्थितियों में यह नियम लागू नहीं भी होता है । जिन्हें पूर्ति के नियम के अपवाद कहते हैं । लेकिन फिर भी इन अपवादों के विषय में अलग-अलग मत अलग-अलग अर्थशास्त्रीओं ने दिये हैं ।
पूर्ति के नियम के अपवाद :
(1) दुर्लभ वस्तुएँ : जो अप्राप्य और दुर्लभ वस्तुएँ हैं उनकी कीमतें बढ़ने पर चाहते हुए भी उसकी पूर्ति में वृद्धि नहीं की जा सकती । जैसे : प्राचीन कलाकृतियाँ-सिक्के, माइकल एन्जलो के चित्र-कलाकृतियाँ, पुरानी डाक टिकटें, रविन्द्रनाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ की मूल हस्तप्रत इत्यादि की कीमत बढ़ने पर भी उनकी पूर्ति में वृद्धि नहीं हो सकती । लेकिन वास्तव में देखें तो ऐसी दुर्लभ वस्तुओं का स्टॉक (stock) होता है उनकी पूर्ति नहीं होती ।
(2) श्रम की पूर्ति : सामान्यतः श्रमिकों का वेतन बढ़ाने पर उनके श्रम की पूर्ति भी बढ़ाई जा सकती है । लेकिन निश्चित मर्यादा के उपरांत श्रमिकों के वेतन में कितनी भी वृद्धि करने पर उनके श्रम की पूर्ति में वृद्धि नहीं की जा सकती । क्योंकि श्रमिक जीवित व्यक्ति होने से उसकी शारीरिक और मानसिक शक्ति मर्यादित होने के कारण एक हद के बाद उस में वृद्धि नहीं की जा सकती । उसे आराम की आवश्यकता पड़ती ही है । लेकिन आंशिक रूप से श्रमिक के मुआवजे वेतन में प्रारंभिक दौर में प्रभावित करनेवाली वेतन वृद्धि के कारण श्रमिक को अधिक लाभ दिखाई देता है जिसकी वजह से वह अपने श्रम में वृद्धि करता है ।
इस प्रकार निश्चित मर्यादा तक तो श्रम में वृद्धि की जा सकती है । इसलिए यह अपवाद संपूर्ण सत्य नहीं माना जा सकता ।
(3) अनाज की पूर्ति : सामान्य कृषि उपज की कीमत बढ़ने पर भी उनका उत्पादन निश्चित समय और निश्चित मात्रा में होने के कारण उसकी पूर्ति में वृद्धि नहीं की जा सकती । लेकिन आधुनिक युग में कृषि का व्यापारीकरण होने की वजह से निश्चित आय से किसान संतुष्ट नहीं रहता और स्वउपभोग या संग्रह किये (आपातकालीन परिस्थितियों के लिए) अनाज की कीमतें बढ़ने पर वह अधिक लाभ कमाने के अवसर मिलने से अनाज की पूर्ति में वृद्धि करता है । जो अनाज की पूर्ति अपवाद है उसको संपूर्ण सही नहीं बताता ।
(4) नाशवान वस्तुएँ : दूध, दही या उससे बने व्यंजनों की, फल, माँस, अंडा, मछली, हरि सब्जी इत्यादि नाशवान वस्तुओं की तत्काल पूर्ति में कमी-वृद्धि संभव नहीं होती इसलिए ये पूर्ति के नियम के अपवाद हैं । वास्तव में आधुनिक विकास के युग में आधुनिक तकनीकों का लाभ ऐसी वस्तुओं के उपयोगिता मूल्य को लम्बे समय तक बनाए रखने के अवसर प्राप्त होते हैं । इसलिए ऐसी वस्तुएँ जल्दी नष्ट नहीं होती और उनकी पूर्ति में निश्चित समय तक वृद्धि की जा सकती है ।
उपरोक्त चर्चा से हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि उपरोक्त अपवाद वास्तव में संपूर्ण रूप से सत्य नहीं हैं ।
6. तालिका के वैकल्पिक पदों पर से A, B, C और D उत्पादकों की व्यक्तिगत पूर्ति रेखा और बाजार पूर्ति रेखा एक ही आलेख पर दर्शाकर उसका अवलोकन कीजिए ।
उत्तर :
तालिका :
आलेख :
विवरण : उत्पादक A की पूर्ति रेखा A है, उत्पादक B की पूर्ति रेखा B है, उत्पादक C की पूर्तिरेखा C है, उत्पादक D की पूर्ति रेखा D है और SS1 पूर्ति रेखा बाज़ार पूर्ति रेखा है । उपरोक्त आलेख से स्पष्ट होता है कि –
- व्यक्तिगत पूर्ति रेखा का ढाल बाज़ार पूर्ति रेखा से कम है ।
- व्यक्तिगत पूर्ति रेखा की ढलान धनात्मक प्राप्त होती है ।
- किसी एक कीमत पर व्यक्तिगत पूर्ति अलग-अलग और समान दोनों है ।
- अलग-अलग पूर्ति (व्यक्तिगत) रेखाओं की सहायता से बाज़ार पूर्ति रेखा बनाई जाती है ।
- एक ही आलेख पर व्यक्तिगत पूर्ति रेखा कई जबकि बाज़ार पूर्ति रेखा एक ही प्राप्त होती है ।