GSEB Solutions Class 12 Organization of Commerce and Management Chapter 3 आयोजन

Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 12 Organization of Commerce and Management Chapter 3 आयोजन Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 12 Organization of Commerce and Management Chapter 3 आयोजन

GSEB Class 12 Organization of Commerce and Management आयोजन Text Book Questions and Answers

स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प पसन्द करके लिखिए :

प्रश्न 1.
संचालन का सर्वप्रथम कार्य कौन-सा है ?
(A) व्यवस्थातंत्र
(B) आयोजन
(C) मार्गदर्शन
(D) नियंत्रण
उत्तर :
(B) आयोजन

प्रश्न 2.
आयोजन का किसके साथ सम्बन्ध है ?
(A) भूतकाल
(B) वर्तमान
(C) उत्पादन
(D) भविष्य
उत्तर :
(D) भविष्य

प्रश्न 3.
आयोजन की विधि का प्रथम चरण/सोपान है ?
(A) लक्ष्य निर्धारण
(B) आधार स्पष्ट करना
(C) वैकल्पिक योजना बनाना
(D) गौण योजना बनाना
उत्तर :
(A) लक्ष्य निर्धारण

प्रश्न 4.
आयोजन का कार्य अर्थात् क्या ?
(A) दैनिक कार्य
(B) निश्चित कार्य
(C) चयन का कार्य
(D) कठिन कार्य
उत्तर :
(C) चयन का कार्य

प्रश्न 5.
आयोजन में निर्धारित उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए संचालक जो निर्णय और व्यूहरचना तय करे उसे क्या कहा जाता है ?
(A) कार्यक्रम
(B) नीति
(C) नियम
(D) अन्दाजपत्र
उत्तर :
(B) नीति

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प्रश्न 6.
सफल आयोजन के लिए पूर्वशर्त क्या है ?
(A) समय की दीर्घ अवधि
(B) समय की अल्प अवधि
(C) व्यवस्थातंत्र
(D) परिवर्तनशीलता
उत्तर :
(D) परिवर्तनशीलता

प्रश्न 7.
आयोजन की प्रक्रिया का अन्तिम सोपान बताइए ।
(A) योजना का मूल्यांकन
(B) निश्चित योजना स्वीकार करना
(C) योजना की जाँच करना
(D) विकल्पों का विचार करना
उत्तर :
(A) योजना का मूल्यांकन

प्रश्न 8.
इनमें से आयोजन का घटक कौन-सा है ?
(A) सतत प्रक्रिया
(B) नियंत्रण
(C) मार्गदर्शन
(D) नियम
उत्तर :
(D) नियम

प्रश्न 9.
इकाई का जीवन-ध्येय तय करने वाली योजना कौन-सी है ?
(A) स्थायी योजना
(B) व्यूहात्मक योजना
(C) सुनियोजित योजना
(D) एक उपयोगी योजना
उत्तर :
(B) व्यूहात्मक योजना

प्रश्न 10.
‘आयोजन का कार्य अर्थात् चयन का कार्य ।’ उपरोक्त परिभाषा इनमें से किसने दी है ?
(A) डॉ. बीली गोऐट्ज
(B) डॉ. जॉर्ज आर. टेरी
(C) डॉ. उविक डेविड
(D) श्री हेनरी फेयोल
उत्तर :
(A) डॉ. बीली गोऐट्ज

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प्रश्न 11.
योजना के कितने प्रकार है ?
(A) 5
(B) 4
(C) 6
(D) 9
उत्तर :
(C) 6

प्रश्न 12.
आयोजन के घटक कितने है ?
(A) 4
(B) 7
(C) 6
(D) 8
उत्तर :
(B) 7

प्रश्न 13.
धन्धे में जो प्रवृत्तियाँ करनी हो उनके बारे में जानकारी प्राप्त करके, पूर्व विचार करना तथा इन प्रवृत्तियों को किस प्रकार इसके बारे में योजना अर्थात् …………………………. ।
(A) व्यवस्थातंत्र
(B) कला
(C) संकलन
(D) आयोजन
उत्तर :
(D) आयोजन

प्रश्न 14.
आयोजन की प्रक्रिया अथवा क्रम की विधि के कितने सोपान है ?
(A) 8
(B) 6
(C) 9
(D) 7
उत्तर :
(A) 8

प्रश्न 15.
‘कार्य की योजना अर्थात् परिणामों की पूर्व विचारणा कार्य के अनुसरण के लिए नीति की व्यवस्था और उपयोग में ली जानेवाली पद्धति निर्धारित करना’ उपरोक्त परिभाषा किसने दी है ?
(A) पीटर ड्रकर
(B) फ्रेडरिक टेलर
(C) डॉ. जॉर्ज आर. टेरी
(D) डॉ. उर्विक डेविड
उत्तर :
(C) डॉ. जॉर्ज आर. टेरी

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प्रश्न 16.
‘आयोजन एक ऐसी बौद्धिक प्रक्रिया है, कार्यों को व्यवस्थित करना, इसके लिए पूर्व विचारणा करते है तथा केवल अनुमानों के बदले में निश्चित वास्तविकताओं के आधार पर कदम उठाते हैं ।’ उपरोक्त व्याख्या किसने दी है ?
(A) डॉ. उर्विक डेविड
(B) डॉ. जॉर्ज आर. टेरी
(C) डॉ. बीली गोऐट्ज
(D) ल्युथर ग्युलिक
उत्तर :
(A) डॉ. उर्विक डेविड

प्रश्न 17.
इकाई के कार्यक्रम को पूर्ण करने की व्यवस्था दर्शाना अर्थात् ……………………………..
(A) नीति
(B) पद्धति
(C) अन्दाज-पत्र
(D) हेतु
उत्तर :
(B) पद्धति

प्रश्न 18.
इकाई के निर्धारित उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए नियंत्रण के माध्यम के रूप में किसका उपयोग किया जाता है ?
(A) नीति
(B) नियम
(C) कार्यक्रम
(D) अन्दाज-पत्र
उत्तर :
(D) अन्दाज-पत्र

प्रश्न 19.
धन्धाकीय इकाई में किये जानेवाले कार्यों को जो क्रम दिया जाता है, उन्हें क्या कहा जाता है ?
(A) अन्दाज-पत्र
(B) कार्यक्रम
(C) नियम
(D) नीति
उत्तर :
(B) कार्यक्रम

प्रश्न 20.
वर्तमान में भविष्य के लिए पूर्व विचारणा अर्थात् –
(A) नियंत्रण
(B) कर्मचारी व्यवस्था
(C) आयोजन
(D) व्यवस्थातंत्र
उत्तर :
(C) आयोजन

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प्रश्न 21.
धन्धाकीय इकाई के निर्धारित उद्देश्य को सिद्ध करने के लिए मध्य स्तर पर अल्पकालीन जो योजनाओं का निर्माण किया जाये तो उन्हें कौन सी योजना कहा जाता है ?
(A) सुनियोजित योजना
(B) कार्यकारी योजना
(C) व्यूहात्मक योजना
(D) स्थायी योजना
उत्तर :
(A) सुनियोजित योजना

प्रश्न 22.
धन्धाकीय इकाई के विभागों, कार्य-समूहों और व्यक्तियों के पास से कार्य सम्बन्धी अपेक्षित परिणामों को प्राप्त करने के लिए निर्मित की गई योजनाओं को कौन-सी योजना कहा जाता है ?
(A) सुनियोजित योजना
(B) बाल संकलित योजना
(C) कार्यकारी योजना
(D) व्यूहात्मक योजना
उत्तर :
(C) कार्यकारी योजना

प्रश्न 23.
इनमें से कौनसी योजना निर्मित करने के लिए विशिष्ट ज्ञान और कौशल्य अनिवार्य है ?
(A) व्यूहात्मक योजना
(B) स्थायी योजना
(C) कार्यकारी योजना
(D) सुनियोजित योजना
उत्तर :
(D) सुनियोजित योजना

प्रश्न 24.
सर्वप्रथम प्रत्येक विभाग विभाग का अन्दाजपत्र बनाना पड़ता है, उसके पश्चात् इन पर चर्चाविचारणा करके जो अन्दाज-पत्र बनाया जाये उसे क्या कहते हैं ?
(A) सर्वोच्च अन्दाज-पत्र
(B) नकद अन्दाज-पत्र
(C) उत्पादन अन्दाज-पत्र
(D) वितरण खर्च अन्दाज-पत्र
उत्तर :
(A) सर्वोच्च अन्दाज-पत्र

प्रश्न 25.
भारत में आयोजन का महत्त्व स्वीकार करके केन्द्र सरकार ने किसकी रचना की है ?
(A) संघ लोकसेवा आयोग
(B) नीति आयोग
(C) कर्मचारी चयन आयोग
(D) रेलवे भर्ती
उत्तर :
(B) नीति आयोग

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2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए ।

प्रश्न 1.
आयोजन कौन-कौन से क्षेत्र में देखने को मिलता है ?
उत्तर :
आयोजन युद्ध का मैदान, खेलकूद का मैदान, धन्धाकीय इकाइयाँ, राजनैतिक, व्यापार, वाणिज्य, धार्मिक व सामाजिक इत्यादि क्षेत्रों में देखने को मिलता है ।

प्रश्न 2.
O.R. का विस्तृत रूप दीजिए ।
उत्तर :
O.R. = Operation Research (कार्यात्मक संशोधन)

प्रश्न 3.
संचालन का प्रथम और अन्तिम कार्य बताइए ।
उत्तर :
संचालन का प्रथम कार्य आयोजन है और अन्तिम कार्य नियंत्रण है ।

प्रश्न 4.
‘विस्मृतीकरो और आगे बढ़ो’ का सिद्धांत कब अपनाया जाता है ?
उत्तर :
जब अपने क्रमश: आगे बढ़ते है तब ‘विस्मृति करो और आगे बढ़ो’ (Look and Leap) का सिद्धांत अपनाया जाता है ।

प्रश्न 5.
अन्दाज-पत्र के प्रकार बताइए ।
उत्तर :
अन्दाज-पत्र के प्रकार पूँजी खर्च अन्दाज-पत्र, उत्पादन अन्दाज-पत्र, उत्पादन खर्च अन्दाज-पत्र, विक्रय अन्दाज-पत्र और नकद अन्दाज-पत्र आदि होते है ।

प्रश्न 6.
आयोजन में किन कारणों से अनिश्चितताएँ उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर :
आयोजन के मूल में धारणाएँ और पूर्वानुमान होता है । जिसका सम्बन्ध भविष्य के साथ होता है, परन्तु भविष्य अनिश्चित है । जिसके कारण ऐसे पूर्वानुमान सम्पूर्ण रूप से सही नहीं होते । इस तरह, आयोजन का सम्बन्ध भविष्य के साथ होने से इसमें अनिश्चितता रहती है ।

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प्रश्न 7.
आयोजन के आधार बताइए ।
उत्तर :
आयोजन के आधार अनुमान अथवा पूर्वधारणाएँ है । इकाई को प्रभावित करनेवाले आन्तरिक और बाह्य परिबलों को ध्यान में रखकर पूर्वधारणाएँ की जाती है ।

प्रश्न 8.
पद्धति किसे कहते हैं ?
उत्तर :
पद्धति अर्थात् इकाई के कार्यक्रम को पूर्ण करने की व्यवस्था दर्शाता है । यानि कि निर्धारित किये गये उद्देश्यों को किस तरह पूरा किया जायेगा इसका मार्ग दर्शाता है । संक्षिप्त में पद्धति/विधि अर्थात् अमुक प्रवृत्ति किस तरह करना इस हेतु का तरीका ।

प्रश्न 9.
आयोजन को चैतन्य (सभान) और बौद्धिक प्रक्रिया किसलिए कहा जाता है ?
उत्तर :
आयोजन को चैतन्य और बौद्धिक प्रक्रिया इसलिए कहा जाता है कि आयोजन में निर्णय चैतन्यपूर्वक तथा गणना के अन्दाज के आधार पर लिए जाते है । जिससे आयोजन को सभान और बौद्धिक प्रक्रिया कहते हैं ।

प्रश्न 10.
कार्यक्रम किसे कहते हैं ?
उत्तर :
धन्धाकीय इकाई में किये जानेवाले कार्यों को जो क्रम दिया जाता है जिसे कार्यक्रम कहते हैं ।

प्रश्न 11.
आयोजन के घटक कितने है ? व कौन-कौन से ?
उत्तर :
आयोजन के 7 घटक है :

  1. ध्येय
  2. व्यूहरचना
  3. नीति
  4. पद्धति/विधि
  5. नियम
  6. अन्दाज-पत्र
  7. कार्यक्रम

प्रश्न 12.
डॉ. बीली गोऐट्ज के अनुसार आयोजन की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर :
डॉ. बीली गोऐट्ज : ‘आयोजन का कार्य अर्थात् चयन का कार्य ।’

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प्रश्न 13.
केन्द्र सरकार ने आयोजन के महत्त्व को स्वीकार करके किसकी रचना की है ?
उत्तर :
केन्द्र सरकार ने आयोजन के महत्त्व को स्वीकार करके नीति आयोग (नीति पंच) की रचना की है ।

प्रश्न 14.
आयोजन की दो मर्यादाएँ/सीमाएँ बताइए ।
उत्तर :
आयोजन की दो मर्यादाएँ निम्न है :

  1. खर्चीली प्रक्रिया
  2. लम्बी प्रक्रिया

प्रश्न 15.
आयोजन के महत्त्व के दो मुद्दे लिखिए ।
उत्तर :
आयोजन के महत्त्व के दो मुद्दे निम्न है :

  1. आयोजन से धन्धाकीय इकाई की सभी प्रवृत्तियाँ व्यवस्थित होती है ।
  2. ध्येय प्राप्ति के लिए उपयोगी है ।

प्रश्न 16.
विकल्पों की जाँच करने के लिए कम्पनियाँ क्या करती है ?
उत्तर :
विकल्पों की जाँच करने के लिए कम्पनियाँ OR अर्थात् Operation Research कार्यात्मक संशोधन किया जाता है ।

प्रश्न 17.
योजना के मूल्यांकन के लिए कौन-सा सिद्धांत अपनाना पड़ता है ?
उत्तर :
योजना के मूल्यांकन के लिए ‘विस्मृति करो और आगे बढ़ो Look and Leap का सिद्धांत अपनाना पड़ता है ।

प्रश्न 18.
अन्दाज-पत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अन्दाज-पत्र अर्थात् आय-व्यय का पत्रक है । अन्दाज-पत्र यह निश्चित भावी समय के लिए अपेक्षित वित्तीय व्यय-आय दर्शाता पत्रक है ।

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प्रश्न 19.
अन्दाज-पत्र समिति किसे कहते हैं ?
उत्तर :
विभिन्न विभाग के अनुसार अन्दाज-पत्र तैयार कराकर उच्च संचालकों द्वारा स्वीकृत करवाने के लिए विभिन्न विभागीय अधिकारिया की जो समिति बनाई जाती है जिसे अन्दाज-पत्र समिति कहते हैं ।

प्रश्न 20.
आयोजन में निर्णय प्रक्रिया क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
आयोजन यह उद्देश्य के सन्दर्भ में होता है । जिससे लक्ष्य प्राप्ति आयोजन पर आधारित है । इसमें विविध प्रकार के विकल्पों के बारे में विचारणा की जाती है एवं उसके बाद ही निर्णय लिया जाता है । इस तरह आयोजन में निर्णय प्रक्रिया जरूरी है ।

प्रश्न 21.
धन्धाकीय इकाई का मुख्य हेतु क्या है ?
उत्तर :
ध्येय निर्धारित करना और उन्हें सफल बनाना यह धन्धाकीय इकाई का मुख्य हेतु है ।

प्रश्न 22.
आयोजन की पूर्वशर्त क्या है ?
उत्तर :
परिवर्तनशीलता आयोजन की पूर्वशर्त है ।

प्रश्न 23.
आयोजन के घटक किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
आयोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है । यह तैयार करते समय बहुत-सी छोटी-छोटी योजनायें, कार्यक्रम बनाकर आयोजन बनाया जाता है । जिन्हें आयोजन के घटक कहा जाता है । जैसे धन्धाकीय इकाई का अन्दाजपत्र बनाना हो तो सर्वप्रथम प्रत्येक विभाग का अन्दाज-पत्र बनाना पड़ता है, उसके पश्चात् उन पर चर्चा-विचारणा करके इकाई का मुख्य अन्दाज-पत्र बनाया जा सकता है ।

3. निम्न प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए ।

प्रश्न 1.
हेतु-निर्धारण किसे कहते हैं ?
उत्तर :
हेतु-निर्धारण अथवा हेतुओं का चयन योग्य रूप से हुई हो तो ही आयोजन संचालकों को उपयोगी बना सकते हैं । हेतु व्यवहारिक होना चाहिए अर्थात् कि वह वास्तविक और बुद्धिगम्य होना चाहिए ।
अथवा
हेतु निर्धारण अर्थात् हेतु को निश्चित करने की प्रक्रिया ।

प्रश्न 2.
आयोजन किसे कहते हैं ?
उत्तर :
धन्धे में जो प्रवृत्तियाँ करनी हो इसके बारे में जानकारी एकत्रित करना, पूर्व विचारणा करना और इन प्रवृत्तियों किस तरह करना इसके बारे में बनाई जानेवाली योजना अर्थात् आयोजन ।

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प्रश्न 3.
व्यूहरचना किसलिए जरूरी है ?
उत्तर :
व्यूहरचना का उपयोग सेना और खेल-कूद जैसे क्षेत्र में बड़े पैमाने में किया जाता है । व्यूहरचना स्पर्धियों से गुप्त रहे यह भी जरूरी हैं । योग्य व्यूहरचना के कारण ही इकाई को अधिकतम सफलता का विश्वास मिलता है ।

प्रश्न 4.
आयोजन के घटक बताइए ।
उत्तर :
आयोजन के 7 घटक हैं :

  1. उद्देश्य – हेतु (Objective)
  2. व्यूह रचना (Strategy)
  3. नीति (Policy)
  4. पद्धति/विधि (Method/Procedure)
  5. नियम Rules
  6. अन्दाज-पत्र (Budget)
  7. कार्यक्रम (Programme)

प्रश्न 5.
गौण योजना किसे कहते हैं ?
उत्तर :
मूल योजना के अनुरुप अथवा मूल योजना के सहायक बने इसके बारे में प्रकल्पों अथवा विकल्पों पर विचारणा की जाती है । जिन्हें गौण योजना के रूप में पहचाना जाता है । जैसे कार बनानेवाली कम्पनी टायर बनाना या बाहर से खरीदना इसके बारे में जो निर्णय करें तो उन्हें गौण योजना कहा जा सकता है । इस गौण योजना को तैयार करने के बाद उनकी सफलता के बारे में जाँच की जाती है । जिससे भविष्य में मूल या मुख्य योजना को कोई समस्या उत्पन्न न हो ।

प्रश्न 6.
सर्वोच्च अन्दाज-पत्र किसे कहते हैं ? ।
उत्तर :
धन्धाकीय इकाई का अन्दाज-पत्र बनाना हो तो सर्वप्रथम प्रत्येक विभाग का अन्दाज-पत्र बनाना पड़ता है, इन अन्दाज-पत्रों पर चर्चा-विचारणा करने के बाद इकाई का मुख्य अन्दाज-पत्र बनाया जाता है, जिसे सर्वोच्च अन्दाज-पत्र या मुख्य अन्दाज-पत्र अथवा सर्वग्राही अन्दाज-पत्र कहते हैं ।

प्रश्न 7.
आयोजन परिवर्तनशील होना चाहिए । किसलिए ।
उत्तर :
आयोजन में अलग-अलग प्रकार की गणनाएँ और धारणाएँ होती है, लेकिन धन्धाकीय इकाइयों को प्रभावित करनेवाले बाह्य तत्त्वों के कारण समय, संयोगो और परिस्थिति अनुसार उसमें आवश्यक परिवर्तन करने पड़ते है । अत: आयोजन परिवर्तनशील होना चाहिए । क्योंकि परिवर्तनशीलता आयोजन की पूर्वशर्त है ।

प्रश्न 8.
संचालन के कार्यों में आयोजन प्रथम स्थान रखता है । किसलिए ।
उत्तर :
संचालन के कार्यों में आयोजन प्रथम स्थान रखता है । क्योंकि संचालन का आरम्भ ही आयोजन से ही होता है । इनके आधार पर ही संचालन के अन्य कार्य जैसे कि व्यवस्थातंत्र, कर्मचारी व्यवस्था, मार्गदर्शन और नियंत्रण जैसे कार्यों को अमल में लाया जाता है ।

प्रश्न 9.
नीति किसे कहते हैं ?
उत्तर :
नीति (Policy) अर्थात् आयोजन में निर्धारित किए गये उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए संचालक जो निर्णय और व्यूहरचना तय करें । नीति इकाई की छाप पैदा करती है । इकाई की कुशलता और कार्य पद्धति का परिचय देती है । जैसे शान पर मान । का विक्रय करने की नीति।

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प्रश्न 10.
आयोजन व्ययी प्रक्रिया है । किसलिए ।
उत्तर :
आयोजन व्ययी प्रक्रिया है, क्योंकि आयोजन की तैयारी के लिए निष्णांतों की सलाह ली जाती है । इनकी फीस अधिक होती है । इसके उपरांत आयोजन को तैयार करने में समय, शक्ति और पूँजी का खर्च होता है । इस तरह कहा जाता है कि आयोजन व्ययी प्रक्रिया है ।

प्रश्न 11.
0.R. संज्ञा समझाइए ।
उत्तर :
O.R. अर्थात् Operation Research का संक्षिप्त रूप है । कम्पनी के द्वारा किये जानेवाले कार्यात्मक संशोधन को संक्षिप्त में ‘OR’ दर्शाते है । जिसके आधार पर एक आदर्श योजना मोडल तैयार होता है ।

प्रश्न 12.
धन्धाकीय इकाई के चार उद्देश्य बताइए ।
उत्तर :
धन्धाकीय इकाई के चार उद्देश्य निम्न है :

  1. लाभ में वृद्धि
  2. विक्रय में वृद्धि
  3. कर्मचारी संतोष
  4. बाजार में हिस्सा बढ़ाना ।

प्रश्न 13.
आकस्मिक लाभ का आधार किस पर होता है ?
उत्तर :
आकस्मिक लाभ का आधार विक्रय, उत्पादन और कर्मचारी सहकार पर होता है ।

प्रश्न 14.
विस्मृति करो और आगे बढ़ो’ (Look and Leap) का सिद्धांत समझाइए ।
उत्तर :
Look & Leap का सिद्धांत अर्थात् जब आयोजन में क्रमशः आगे बढ़ते है तब प्रत्येक स्तर पर मूल्यांकन जरूरी होता है । जिससे सत्य मत प्राप्त होता है तथा जोखिम घटता है ।

प्रश्न 15.
अन्दाज-पत्र का विचलन से आप क्या समझते है ?
उत्तर :
अन्दाज-पत्र में दर्शायी गई प्रवृत्तियों से सम्बन्धित आँकड़ों को ध्यान में रखकर प्रवृत्तियाँ की जाती है । यह पूर्ण होने के बाद वास्तविक परिणाम के आँकड़े प्राप्त करके उन्हें अन्दाज-पत्र के आँकड़े के साथ तुलना करके दोनों के मध्य जो अन्तर पाया जाये, उन्हें अन्दाज-पत्र का विचलन (Budget Variances) कहा जाता है, जो कि सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकता है ।

प्रश्न 16.
‘आयोजन का कार्य अर्थात् चयन का कार्य’ उपरोक्त कथन समझाइए ।
उत्तर :
उपरोक्त कथन सत्य है । धन्धाकीय इकाई उद्देश्य द्वारा क्या सिद्ध करना चाहती है यह तय करती है । उद्देश्य प्राप्ति के लिए एक से अधिक विकल्प होते है । जैसे लाभ में वृद्धि करने के लिए विक्रय में वृद्धि करना, वस्तु की लागत में कमी करना, वस्तु की कीमत में वृद्धि करना इत्यादि विकल्प हो सकते है । आयोजन द्वारा अनेक विकल्पों में से श्रेष्ठ और लाभप्रद विकल्प का चयन किया जाता है । इस तरह आयोजन का कार्य अर्थात् चयन का कार्य ।

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प्रश्न 17.
‘आयोजन से नुकसान और मितव्ययिता कैसे सम्भव बनती है ।’ समझाइए ।
उत्तर :
आयोजन निर्मित करने से इकाई के उपलब्ध साधनों का महत्तम उपयोग सम्भव बनता है । जिससे नुकसान और अनुत्पादक ख म कमी आती है और मितव्ययिता सम्भव बनती है ।

प्रश्न 18.
आयोजन स्थिरता को प्रेरित करता है । किस तरह ?
उत्तर :
आयोजन एक तरह से कार्यक्रम है । जिनका भविष्य के साथ सम्बन्ध है । आयोजन को अमल में रखते समय उत्पन्न होने वाली विपरीत परिस्थिति में अधिकारी या कर्मचारी परिवर्तन नहीं कर सकते । इनमें परिवर्तन करने की जोखिम लेना पसन्द नहीं करते और आयोजन का अमल करते हैं । इस तरह कहा जाता है कि आयोजन जड़ता को अर्थात् स्थिरता का प्ररित करता है ।

प्रश्न 19.
निम्नलिखित विधानों को समझाइए :

(1) आयोजन संचालकीय कार्यों का मुख्य कार्य है ।
यह विधान सत्य है । संचालन के मुख्य कार्यों में से आयोजन मुख्य एवं प्रथम कार्य है । निर्धारित हेतु निश्चित होने के बाद इसे पूर्ण करने के लिए आयोजन बनाया जाता है । आयोजन का उपयोग व्यवस्थित हो इसलिए योग्य व्यवस्थातंत्र की रचना की जाती है । व्यवस्थातंत्र की रचना के पश्चात् कर्मचारी व्यवस्था की जाती है । कर्मचारी के द्वारा सरल एवं सहकार की भावना बढ़े इसलिए माहिती प्रेषण एवं कार्य आयोजन के अनुसार हुआ या नहीं इसलिए अंकुश रखा जाता है । इसलिए आयोजन संचालन का मुख्य कार्य है ।

(2) अंदाजपत्र अंकों का माया जाल है ।
यह विधान सत्य है । अंदाजपत्र में विभागीय प्रवृत्तियों के लिए भविष्य में किए जाने वाले खर्च का विवरण अंकों में दर्शाया जाता है । विभागीय अंदाजपत्रों का निरीक्षण करके इसके आधार पर भविष्य में सम्पूर्ण इकाई के लिए निर्धारित हतु को पूर्ण करने के लिए कुल कितना खर्च होगा, कितनी आवक होगी इसका अंदाज अंकों में दर्शाया जाता है । भविष्य के आंतरिक एवं बाह्यरीय परिबलों में परिवर्तन होने से इनका सामना करने हेतु कुल कितना खर्च होगा इसका अंदाजित खर्च अंकों में दर्शाया जाता है । अतः अंदाजपत्र भविष्य के लिए निर्धारित हेतु के लिए तैयार किया गया माया जाल है ।

(3) आयोजन धंधे की सफलता की चाबी है ।
यह विधान सत्य है । इकाई के निश्चित हेतु को निश्चित समय में पूर्ण करने के लिए भूतकाल के अनुभव एवं भविष्य के अनमाना पर तैयार की गई योजनाएँ आयोजन कहलाती है । आयोजन तैयार करते समय भविष्य के अनुमानों का सामना करने के लिए ‘ विविध विकल्पों का विचार किया जाता है । इन विकल्पों में से योग्य विकल्पों के आधार पर योजनाएँ तैयार की जाती है । इस योजनाओं के अनुसार इकाई की सम्पूर्ण प्रवृत्ति की जाती है । जिसके एक ही आयोजन के अनुसार प्रत्येक विभाग की प्रवृत्ति की जाती है । जिससे प्रवृत्तियों में एकरुपता, कर्मचारी एवं अधिकारियों में सहकार की भावना बनी रहती है । अतः आयोजन से निर्धारित हेतु निश्चित समय में सफल बनता है ।

(4) आयोजन परिवर्तनों को अंकुश में रखता है ।
यह विधान सत्य है । इकाई में आंतरिक एवं बाहरीय परिवर्तनों की असर रहती है । जैसे भाव में वृद्धि, माँग में कमी, तालाबंदी, स्पर्धा, कर्मचारियों की हड़ताल इत्यादि परिवर्तनों से इकाई की प्रवृत्तियों में परिवर्तन संभव बनता है । आयोजन तैयार करते समय भविष्य में होने वाले आंतरिक एवं बाहरीय परिवर्तनों का सामना करने के लिए कौन से विकल्पों का माध्यम लेना होना उसका पहले से ही अनुमान लगा लिया जाता है । अत: आयोजन से भविष्य के परिवर्तनों का सामना करने के लिए वर्तमान में ही योग्य विकल्प, योजनाएँ, योग्य व्यवस्था की रचना की जाती है । जिससे आयोजन परिवर्तनों को अंकुश में रखता है ।

(5) आयोजन सतत प्रक्रिया है ।
यह विधान सत्य है । इकाई की स्थापना करते समय उद्देश्य निश्चित किया जाता है । उद्देश्य को समयानुसार सफल बनाने के लिए आयोजन तैयार किया जाता है । आयोजन यह संचालकीय कार्यों में से सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रथम कार्य है । आयोजन निश्चित हेतु समयानुसार पूर्ण होने के पश्चात् पुनः इकाई में आंतरिक एवं बाहरीय परिबलों को ध्यान में रखते हुए उद्देश्य निश्चित किया जाता है । इस उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए पुन: आयोजन तैयार किया जाता है । अत: आयोजन यह सतत चन्नने वाली प्रक्रिया है ।

(6) आयोजन से. कर्मचारियों में सहकार की भावना बढ़ती है । यह विधान सत्य है । इकाई में निश्चित उद्देश्य की सफलता का मुख्य आधार कर्मचारियों पर है । उच्च स्तर के अधिकारियों द्वारा योग्य एवं कुशल कर्मचारी व्यवस्था की रचना की गई हो लेकिन कर्मचारियों को अपने काम के प्रति जानकारी न हो, कर्मचारियों को कौन-सा कार्य कब करना है । कितने समय में करना है । इसकी स्पष्टता न होने पर कर्मचारियों में आत्नग्य की भावना बढ़ती है । अतः आयोजन तैयार करते समय निश्चित हेतु को लक्ष्य में लेकर कार्य की योजनाएँ, पद्धतियाँ, कौनसा कार्य कौन कितने समय में करेगा । यह आयोजन द्वारा निर्धारित होता है । अतः कर्मचारियों को कार्य के प्रति स्पष्टता होती है । एवं कर्मचारियों में सलाहकार की भावना देखने को मिलती है । आयोजन तैयार करने के बाद प्रबंध एवं कर्मचारी व्यवस्था सरल बनती है । आयोजन के आधार पर ही योग्य कर्मचारी व्यवस्था की रचना की जाती है ।

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4. निम्न प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर लिखिए :

प्रश्न 1.
‘आयोजन से संचालकीय कार्यों में सरलता रहती है ।’ समझाइए ।
उत्तर :
आयोजन धन्धाकीय इकाई का आधारभूत कार्य है । प्रक्रिया के दौरान क्या करना है ? किस पद्धति से करना है ? और क्या करना है ? इसका उत्तर प्राप्त हो जाता है । इसके आधार पर व्यवस्थातंत्र, मार्गदर्शन और नियंत्रण के कार्यक्रम होते है । अत: हम कह सकते हैं कि आयोजन से संचालकीय कार्यों में सरलता रहती है ।

प्रश्न 2.
आयोजन के कोई भी चार घटक समझाइए ।
उत्तर :
आयोजन के चार घटक निम्न है :
(1) उद्देश्य (Objective) : उद्देश्य के आधार पर ही आयोजन तैयार किया जाता है । आयोजन किस उद्देश्य के लिए तैयार करना है वह स्पष्ट होना चाहिए उद्देश्य स्पष्ट एवं निश्चित होना चाहिए । धंधे में विविध उद्देश्य भी होते हैं । जैसे मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना सहायक उद्देश्य ग्राहकों की अच्छी सेवा संक्षिप्त में मुख्य एवं गौण (सहायक) उद्देश्य क्या है यह निश्चित होना चाहिए ।

(2) नीति (Policy) : योजना की सफलता के लिए नीतियाँ निश्चित की जाती है । नीति अर्थात् कौन-सा कार्य किस प्रकार करना है । इस सम्बन्ध में मार्गदर्शक सूचन, जो कर्मचारियों को कार्य करने में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं । जैसे शाखनीति, कर्मचारियों को सिनियोरिटी के अनुसार प्रमोशन की नीति इत्यादि, नीति भी एक प्रकार की योजना ही है ।

(3) पद्धतियाँ (Procedures) : नीतियाँ निर्णय लेने में मार्गदर्शन देती हैं । जबकि पद्धतियाँ निश्चित प्रवृत्तियों को किस क्रम में करना है । वह निश्चित करती है । जैसे ग्राहकों को शान पर माल बेचना वह नीति है । परन्तु ओर्डर के अनुसार माल कैसे भेजना यह पद्धति है। आयोजन में पद्धतियों का समावेश होता है । पद्धतियों से प्रत्येक विभाग का कार्य कर्मचारियों द्वारा एक समान और से होता है ।

(4) नियम (Rule) : नियम अर्थात् आदेश । आयोजन में निश्चित योजनाओं का पालन व्यवस्थित हो इसलिए कर्मचारियों के द्वारा निर्धारित नियमों का पालन होना चाहिए । नीति एवं पद्धतियों का परिपालन सरल बने इसलिए अनेक नियमों को निश्चित किया जाता है । जैसे – कर्मचारियों को विभाग में कार्य करते समय धूम्रपान नहीं करना चाहिए ।

(5) कार्यक्रम (Programmes) : स्पष्ट कार्यक्रम आयोजन को सफल बनाते हैं । कार्यक्रम अर्थात् आयोजन का अमल (परिपालन) करवाने की योजनाएँ । योजनाओं के उद्देश्य की पूर्ण करवाने के लिए नीतियाँ, विधियाँ एवं अंदाजपत्र का समावेश करके कार्यक्रम तैयार किया जाता है । जैसे – गत वर्ष के कर्ता चालु वर्ष में 30% लाभ में वृद्धि करने की योजना के लिए नीति, विधि एवं अंदाजपत्र तैयार करके कार्यक्रम निर्धारित किया जाता है ।

(6) अंदाजपत्र (Budget) : अंदाजपत्र यह आयोजन और अंकुश का साधन है । इसमें अंदाजित लक्ष्य अंकों में निर्धारित किया जाता है । अंदाज पर निश्चित समय के लिए तैयार होता है । अंदाजपत्र में निश्चित समय के परिणाम अंकों में दर्शाए जाते हैं । आयोजन पूर्ण करने के लिए कुल कितना खर्च होगा उसका अंदाज दर्शाया जाता है । आयोजन का मुख्य साधन अंदाजपत्र है ।

(7) व्यूहरचना (Strategy) : स्पर्धा का सामना करने के लिए तथा योग्य लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक साधन सामग्री की व्यवस्था करना व्यूहरचना कहलाती है । व्यूहरचना आयोजन का मूल है । स्पर्धा से इकाई की प्रवृत्तियों में क्या परिवर्तन होगें उसके लिए कौन-कौन से कदम उठाए जायेगें । उसकी योजना बनाना अर्थात् व्यूहरचना जैसे – स्पर्धात्मक पेढी भाव में कमी करे तो हमें विज्ञापन द्वारा उच्च गुणवत्ता की असर ग्राहकों को समझाने का प्रयास करना चाहिए ।

प्रश्न 3.
आयोजन की चार सीमायें बताइए ।
उत्तर :
आयोजन की चार सीमायें निम्न है :

  1. आयोजन में भविष्य की अनिश्चितता होने के कारण सफलता नहीं मिल पाती ।
  2. आयोजन एक खर्चीली प्रक्रिया है ।
  3. आयोजन एक लम्बी प्रक्रिया है ।
  4. आयोजन में बाह्य परिबलों की सदैव अनिश्चितताएँ रहती है ।

प्रश्न 4.
आयोजन के महत्त्व के मुद्दे बताइए ।
उत्तर :
आयोजन के महत्त्व के मुद्दे निम्न है :

  1. आयोजन से धन्धाकीय इकाइयों की सभी परवृत्तियाँ व्यवस्थित होती हैं ।
  2. साधनों के अपव्यय को रोका जा सकता है ।
  3. आयोजन से अनिश्चितता घटती है ।
  4. आयोजन से सावधानी में वृद्धि होती है ।
  5. आयोजन ध्येय प्राप्ति के लिए उपयोगी होता है ।
  6. आयोजन से संचालकीय कार्यों में सरलता रहती है ।
  7. कर्मचारियों को सहकार आयोजन के माध्यम से प्राप्त होता है ।
  8. आयोजन द्वारा विभिन्न प्रवृत्तियों के साथ संकलन बना रहता है ।
  9. आयोजन के माध्यम से प्रभावशाली नियंत्रण रख सकते हैं ।

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प्रश्न 5.
कार्यकारी और आकस्मिक योजना समझाइए ।
उत्तर :
कार्यकारी योजना (Operational Plan) : धन्धाकीय इकाई के विभागों, कार्यसमूहों और व्यक्तियों के पास से कार्य सम्बन्धी इच्छित परिणाम प्राप्त करने के लिए निर्मित की जानेवाली योजनाओं को कार्यकारी योजनाएँ कहते हैं । ऐसी योजनायें अधिकांशतः एक-दो वर्ष के अल्प समय के लिए होती है । जैसे निर्धारित किये गये वार्षिक उत्पादन के लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए मासिक या त्रिमासिक उत्पादन की योजना बनाई जाती है । व्यूहात्मक योजना के अमलीकरण के लिए विभागीय अधिकारियों द्वारा ऐसी योजनाओं को तैयार किया जाता है । ऐसी योजनाएँ दैनिक कार्यों के साथ होने से सम्बन्धित विभाग के कर्मचारियों के साथ चर्चा विचारणा करके तैयार किया जाये तो इस योजना का अमल प्रमाण में अधिक सरल बनता है । कार्यकारी योजना सुनियोजित योजना जैसी ही होती है ।

आकस्मिक योजना : (Contingency Plan) : धन्धाकीय इकाई में बदलती हुई परिस्थिति के साथ बने रहने के लिए बहुत ही आवश्यक है । कई निश्चित परिबल जैसे कि राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक या प्राकृतिक परिबलों के कारण धन्धाकीय पर्यावरण में भी परिवर्तन होते हैं । जिसके कारण पहले ही योजना में परिवर्तन करना पड़ता है अथवा नई योजना बनाई जाये तो उन्हें आकस्मिक योजना कहा जाता है ।

प्रश्न 6.
एकल उपयोगी योजना (Single Use Plan) के बारे में समझाइए ।
उत्तर :
विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एकल उपयोगी योजना तैयार होती है । विशिष्ट प्रवृत्तियों के लिए ही इस योजना को तैयार किया जाता है । अर्थात् कि जिन कार्य-प्रवृत्तियों का पुनरावर्तन नहीं होता ऐसी प्रवृत्तियों के लिए एक उपयोगी योजना तैयार होती है । जैसे जहाज निर्माण, भवन निर्माण, पैकेजिंग, प्रिन्टिंग आदि योजनाएँ महत्वपूर्ण होती है ।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित विधान समझाइये :

1. आयोजन चैतन्य और बौद्धिक प्रक्रिया है ।
उत्तर :
आयोजन द्वारा धन्धाकीय इकाई के उद्देश्यों को सिद्ध करने के लिए विचार किया जाता है । आयोजन करते समय निर्धारित हेतु को लक्ष्य में रखा जाता है । तथा भविष्य के परिणामों पर विचार किया जाता है । आयोजन तैयार करते समय ग्राहक, कर्मचारी, मुद्रा आदि परिबलों पर होने वाली असरों को ध्यान में लिया जाता है ।

2. आयोजन अप्रस्तुत/अप्रचलित है ।
उत्तर :
आयोजन में सदैव अनिश्चितता रहती है । समय, संयोगों या इकाई को असर करनेवाले परिबलो के कारण पूर्व से तैयार किये गये आयोजन कई बार अप्रचलित अथवा अप्रस्तुत बन जाता है, जिसके कारण आयोजन असफल हो जाता है ।

3. आयोजन का भविष्य के साथ सम्बन्ध है ।
उत्तर :
आयोजन का भविष्य के साथ सम्बन्ध है । उपरोक्त विधान सत्य है । क्योंकि आयोजन में भविष्य की अनिश्चितताओं को पहले ख्याल प्राप्त करना होता है । उसके बाद वो इसके बारे में पूर्व विचारणा तथा धारणाएँ की जाती है । संक्षिप्त में, भविष्य का वर्तमान में मूल्यांकन करना व इसके बारे में जरूरी व्यवस्था करना । इस तरह आयोजन का भविष्य के साथ सम्बन्ध है ।

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5. निम्न प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए :

प्रश्न 1.
आयोजन (Planning) का अर्थ एवं इसके लक्षण समझाइए ।
उत्तर :
आयोजन अर्थात भविष्य में क्या सिद्ध करना है व किस तरह ? इसके लिए विभिन्न विकल्पों की विचारणा करके उन विकल्पों
की सूची में से श्रेष्ठ विकल्प अपनाने के लिए जो योजना तैयार किया जाये ।

लक्षण/विशेषताएँ (Characteristics)
आयोजन के लक्षण निम्नलिखित है :
(1), आयोजन सर्वव्यापी है : प्रत्येक प्रकार की प्रवृत्ति में आयोजन करना अनिवार्य बनता है । चाहे वह राजकीय, धार्मिक, शैक्षणिक, या सामाजिक प्रवृत्ति हो, प्रत्येक इकाई के उच्च, मध्य एवं निम्न स्तर में आयोजन करना पड़ता है । इकाई का कद छोटा हो या बड़ा आयोजन करना ही पड़ता है । अतः आयोजन सर्वव्यापक है ।

(2) आयोजन संचालन का सर्वप्रथम कार्य है : संचालन प्रक्रिया का प्रारंभ आयोजन से ही होता है । इसके पश्चात ही अन्य – कार्य होते हैं । जब तक योजनाएँ नहीं बनती तब तक व्यवस्थातंत्र की रचना नहीं होती । आयोजन के साथ संचालन. के सभी कार्य सम्बन्ध रखते हैं ।

(3) आयोजन चैतन्य (वास्तविक) एवं बौद्धिक प्रक्रिया है : आयोजन द्वारा धंधाकीय इकाई के उद्देश्यों को सिद्ध करने के लिए विचार किया जाता है । आयोजन करते समय निर्धारित हेतु को लक्ष्य में रखा जाता है । तथा भविष्य के परिणामों पर विचार किया जाता है । आयोजन तैयार करते समय ग्राहक कर्मचारी, मुद्रा इत्यादि परिबलों पर होने वाली असरों को ध्यान में लिया जाता है ।

(4) आयोजन सतत प्रक्रिया है : इकाई की स्थापना के समय आयोजन किया जाता है । इसका अंत नहीं होता – उद्देश्य निर्धारित करने के बाद इसे पूर्ण करने के लिए आयोजन तैयार करना उद्देश्य पूर्ण होने के बाद पुनः उद्देश्य निर्धारित करना पुन: आयोजन तैयार किया जाता है । जब तक संचालन का कार्य अस्तित्व रखता है । तब तक आयोजन का कार्य सतत किया जाता है ।

(5) आयोजन परिवर्तनशील है : आयोजन तैयार करते समय भविष्य के आंतरिक एवं बाहरीय परिबलों में परिवर्तन होते रहते
हैं । जैसे विक्री बढ़ेगी तो उत्पादन बढ़ेगा, उत्पादन बढ़ेगा तो कच्चामाल अधिक खरीदना होगा । ऐसे परिवर्तनों के कारण आयोजन में भी परिवर्तन करना पड़ता है । अतः आयोजन परिवर्तनशील है ।

(6) आयोजन में निश्चयात्मक होती है : आयोजन में निश्चितता होनी चाहिए । आयोजन करते समय बुद्धिपूर्वक एवं भविष्य के निश्चित अनुमानों पर विचार किया जाता है । आयोजन मात्र स्वप्न एवं इच्छाओं की सूची नहीं है । आयोजन में एकत्रिक की गई सूचनाओं का निर्णय बुद्धिपूर्वक एवं निश्चिता के अनुसार किया जाता है ।

(7) आयोजन के लिए पूर्वानुमान अनिवार्य है : धंधे में भविष्य में क्या होगा ? भविष्य में क्या होने की सम्भावना है? इस पर धंधे के उद्देश्य की सफलता निर्भर करती है । इतना विचार करने के पश्चात ही आयोजन निर्धारित हो सकता है । हेनरी फेयोल ने भविष्य के पूर्वानुमान पर विचार करने के पश्चात ही भविष्य के विकास की रूपरेखा तैयार की है ।

(8) आयोजन का भविष्य के साथ संबंध है : आयोजन में भविष्य की प्रवृत्तियों पर वर्तमान में विचारणा की जाती है । भविष्य में क्या होगा ? इसके क्या परिणाम आएगे ? इसकी धंधे पर क्या असर होगी ? इसका आयोजन में विचार किया जाता है । अतः हेनरी फेयोल ने संचालन का प्रत्यक्ष कार्य आयोजन एवं पूर्वानुमानों को बतलाया है ।

(9) आयोजन विकल्पों की सूची है : आयोजन किसी भी क्षेत्र का हो उसमें विविध प्रकार की योजनाएँ होती हैं । इन योजनाओं के लिए विविध विकल्पों पर विचार किया जाता है । जैसे बिक्री घटेगी तो क्या होगा ? विक्री बढे तो क्या होगा ? और विक्री उत्पादन के जत्था के अनुरूप हो तो क्या होगा ? इस प्रकार के अनेक विकल्पों पर विचार किया जाता है । इनमें से आयोजन तैयार करने हेतु योग्य विकल्प पसंद किया जाता है । यह संचालकों के निर्णय शक्ति की कसौटी है ।

(10) आयोजन ध्येयलक्षी प्रवृत्ति है : आयोजन के द्वारा इकाई का हेतु निश्चित होता है । आयोजन के द्वारा विविध प्रवृत्तियों के लिए विविध योजनाएँ बनाई जाती हैं । आयोजन उद्देश्य की सफलता के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों की आगाही करता है । अतः आयोजन ध्येय लक्षी प्रवृत्ति है ।

(11) आयोजन में निर्णय प्रक्रिया आवश्यक है : आयोजन पर उद्देश्य की सफलता निर्भर करती है । आयोजन तैयार करते समय भविष्य में अनेकों अनुमानों पर विचार करने से विकल्पों की जानकारी होती है । इन विकल्पों में से योग्य विकल्प पसंद करने का निर्णय लिया जाता है । निर्णय का कार्य कठिन है । कारण कि इसे भविष्य में परिपालन करना होता है । उपसंहार : उपरोक्त लक्षणों से यह ज्ञात होता है कि आयोजन भविष्य के साथ सम्बन्ध रखता है । आयोजन संचालन का चावीरुप कार्य है । इसलिए आधुनिक समय में आयोजन कार्य पर विशेष ध्यान दिया जाता है ।

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प्रश्न 2.
आयोजन की व्याख्या और इसकी विधि/प्रक्रिया समझाइए ।
उत्तर :

  • डॉ. बीली गोऐट्ज : ‘आयोजन का कार्य अर्थात् चयन का कार्य ।’
  • डॉ. ज्योर्ज टेरी : ‘कार्य की योजना अर्थात् परिणामों की पूर्व विचारणा, कार्य का अनुसरण करने की नीति, प्रक्रिया और उपयोग में ली जानेवाली पद्धति निश्चित करना ।’
  • डॉ. उर्विक डेविड : ‘आयोजन मुख्य रूप से ऐसी बौद्धिक प्रक्रिया है’ व्यवस्थित कार्य करने, इसके लिए पूर्व विचारणा करते है, और केवल अनुमानों के स्थान पर सचोट वास्तविकताओ पर कदम उठाये जाते हैं ।’
  • एम. एस. हर्ले के मतानुसार “आयोजन अर्थात् क्या करना है ? यह पहले से ही निश्चित करना इसमें उद्देश्य, नीति, कार्यवाहियाँ और कार्यक्रम के विविध विकल्पों की पसंदगी सम्मलित है ।”
  • हेनरी फोथोल के मतानुसार “कार्य का आयोजन करना अर्थात् परिणामों की पूर्ण विचारणा करना, कार्य करने की योग्य पद्धतियाँ निर्धारित करना ।”
  • डॉ. टेरी के मतानुसार “आयोजन अर्थात् योग्य परिणामों को प्राप्त करने के लिए वास्तविकता की पसंदगी करना । इसके
    लिए पूर्वानुमान द्वारा योग्य पद्धतियों की पसंदगी करना ।”
  • मेरी कुशिंग नाइल्स के मतानुसार “आयोजन अर्थात् निर्धारित उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए योग्य कार्यक्रम की पसंदगी करना । इसके आधार पर संचालकीय प्रक्रिया में उत्साह एवं तीव्र बनती है ।”

आयोजन प्रक्रिया के विविध पहेलू : आयोजन भविष्य के लिए वर्तमान में तैयार किया गया विशिष्ट स्वरूप है । आयोजन यह बौद्धिक प्रक्रिया है । इसकी निष्फलता इकाई के लिए हानिकारक है । अर्थात् आयोजन की प्रक्रिया निश्चित पहलूओं से प्रसार होनी चाहिए । आयोजन के पहलू निम्नलिखित हैं :

(1) उद्देश्य निश्चित करना : आयोजन प्रक्रिया का प्रथम पहलु उद्देश्य को निश्चित करना है । सर्वप्रथम किन उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए आयोजन करना है । इसका निश्चित होना आश्यक है । उद्देश्य निश्चित होने के बाद भविष्य में क्या करना है ? कैसे करना ? कब करना ? यह निश्चित होता है । निर्धारित हेतु व्यवस्थित एवं स्पष्ट तथा सुसंकलित होना चाहिए । कारण कि इस उद्देश्य के आधार पर अलग-अलग विभागों के उद्देश्य निश्चित किए जाते है ।

(2) आयोजन का आधार स्पष्ट करना : आयोजन की रचना वर्तमान के आधार पर नहीं परन्तु भविष्य के अनुमानों एवं भूतकाल के अनुभव पर आधारित है । आयोजन तैयार करते समय योग्य आधार स्पष्ट होना चाहिए जैसे भविष्य की परिस्थिति का अनुमान करना, भविष्य की परिस्थिति कैसी होगी उसका विचार करना, इसमें बाजार की स्थिति, विक्रय का प्रमाण वस्तु की कीमत इत्यादि है । आयोजन का आधार मुख्यतः तीन प्रकारों से रख सकते है :

  1. अंकुश बाहर के परिबल जैसे – सरकारी नीति, भावस्तर
  2. अर्ध अंकुशित परिबल जैसे शाजनीति, उत्पादन नीति
  3. अकुशित परिबल जैसे कंपनी के भविष्य सम्बन्धि विकास की योजना, बिक्री का प्रमाण ।

(3) सूचनाओं का एकत्रीकरण करना व वर्गीकरण व विश्लेषण करना : आयोजन का आधार निश्चित होने के बाद इन
आधारों से सम्बन्धित सूचनाओं का एकत्रीकरण किया जाता है । सूचनाओं का एकत्रीकरण करते समय सूचनाओं का प्रमाण एवं आवश्यक सूचना की प्राप्ति आवश्यक है । जैसे कंपनी के भूतकाल की प्राप्ति आवश्यक है । जैसे कंपनी के भूतकाल का रिकोर्ड, वर्तमानपत्र, सरकारी प्रकाशन इत्यादि ।

आयोजन भविष्य के लिए तैयार किया जाता है । एकत्रित सूचनाएँ आवश्यक, अनावश्यक, उलझन पूर्ण एवं विस्तृत होता है । इंन सूचनाओं का पालन करने से भविष्य के अनुमानों पर स्पष्ट विचार नहीं किया जा सकता । अतः प्राप्त सूचनाओं का वर्गीकरण एवं विश्लेषण करने से अर्थघटन सम्भव बनता है । जिससे एकत्रित सूचना के बीच कार्यकारण का संबंध बढ़ता है ।

(4) वैकल्पिक योग्यता तैयार करना : आयोजन के लिए तैयार की गई योजनाओं का आधार सूचनाओं के वर्गीकरण एवं विश्लेषण के साथ-साथ वैकल्पिक योग्यता पर भी होता है । उद्देश्य निश्चित करने के लिए कई वैकल्पिक मार्ग पसंद किए जाते है । जिससे उद्देश्य की सफलता का मार्ग सरल बनता है । जैसे – अतिरिक्त पूँजी प्राप्त करने के लिए सामान्य अंश, प्रेफरन्स अंश, डिबेन्चर प्रकाशित करना इन तीनों में से कोई एक विकल्प पसंद किया जाता है ।

(5) विकल्पों पर विचार करना : आयोजन अर्थात् पसंदगी अनेकों विकल्पों में से योग्य विकल्प पसंद किया जाता है । जैसे लाभकारक, उत्पादकता ग्राहक संबंधी, नगद प्रवाह इत्यादि अनेक प्रकार से करनी पड़ती है । इसके लिए संसोधन लेख एवं सेमिनार के द्वारा बौद्धिक प्रक्रिया से ग्रहण कर सकते हैं ।

(6) योजना की पसंदगी : आयोजन यह अनिश्चितता को दूर करता है । इसके लिए विकल्पों की पसंदगी की जाती है । विचार करते समय गणितिक व आंकड़ाशास्त्र के उपयोग द्वारा संस्था कार्यात्मक संशोधन का कार्य करती है । अर्थात् कम्पनियाँ Operation Research द्वारा एक आदर्श योजना तैयार करती है । योग्य विकल्प की पसंदगी विकल्पों के अभ्यास में होती है ।

(7) गौण (सहायक) योजना का गठन व जाँच : योजना की पसंदगी करने के पश्चात इस योजना को सरलता से सफल बनाया जा सके इसलिए सहायक योजनाएँ बनाई जाती हैं । योजना तैयार करते समय इसकी छोटी से छोटी बातों पर भी विशेष गौर किया जाता है । इकाई में विविध विभाग या खाते हों तो प्रत्येक के लिए योजना का चयन किया जाता है ।

(8) गौण योजना का मूल्यांकन करना : आयोजन सतत सर्वव्यापी एवं बौद्धिक प्रक्रिया हो । आयोजन तैयार करते समय योजनाओं का विचार एवं चिंतन किया जाता है । यह विचार-विमर्श अलग-अलग पहेलुओं पर किया जाता है । अर्थात् Look & Leap देखो ओर आगे बढ़ो के सिद्धांत पर आधारित है । इसके लिए कंपनियाँ सलाहकारों की सहायता लेती है । जिससे सही निर्णय एवं नुकसान घटता है ।

सारांश : उपरोक्त चर्चा से यह निष्कर्ष निकलता है कि आयोजन एक प्रक्रिया है । इसे कई पहलूओं से प्रसार होना पड़ता है । यह बौद्धिक व्यायाम (कसरत) है । आयोजन में अनेको विकल्पों पर विचारणा करने के बाद ही योग्य विकल्प पसंद करके निश्चित योजनाएँ तैयार की जाती है । जिससे आयोजन के कारण लाभकारकता एवं उत्पादन में वृद्धि देखने को मिलती है ।

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प्रश्न 3.
आयोजन के घटक (Elements of Planning) समझाइए ।
उत्तर :
आयोजन के 7 घटक है :

  1. हेतु (Objective),
  2. व्यूहरचना (Strategy)
  3. नीति (Policy)
  4. पद्धति/विधि (Method/Procedure)
  5. नियम (Rules)
  6. अन्दाज-पत्र (Budget)
  7. कार्यक्रम (Programme)

(1) हेतु (Objects) : ध्येय तय करना और उनको सफल बनाना यह धन्धाकीय इकाई का मुख्य ध्येय होता है । यह तय करते समय इकाई को प्रभावित करनेवाले प्रत्येक परिबल को ध्यान में लेना पड़ता है । ध्येय प्राप्त कर सके ऐसे वास्तविक होने चाहिए । यह अधिक महत्त्वकांक्षी नहीं होने चाहिए ।

(2) व्यूहरचना (Strategy) : आयोजन में निर्धारित किये गये उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए उपयोग में ली जानेवाली युक्ति अर्थात् व्यूहरचना । इससे इकाई बाजार में स्पर्धकों के सामने अथवा असर करनेवाले अन्य परिबलों के सामने टिक सके । व्यूहरचना का उपयोग सेनाओं और खेल-कूद जैसे क्षेत्रों में बड़े प्रमाण में किया जाता है । कोई भी व्यूहरचना स्पर्धियों से गुप्त रहे यह भी आवश्यक है । योग्य व्यूहरचना के कारण ही इकाई को महत्तम सफलता का विश्वास मिलता है ।

(3) नीति (Policy) : आयोजन में निर्धारित किये गये ध्येय को पूर्ण करने के लिए संचालक जो निर्णय और व्यूहरचना तय करें उसे नीति कहते हैं । नीति इकाई की एक छाप उत्पन्न करती है । इकाई की कुशलता और कार्य पद्धति का परिचय देती है । ध्येय की तरह नीति भी व्यवहारिक और वास्तविक होनी चाहिए । जैसे शान पर माल का विक्रय करने की नीति ।

(4) पद्धति/विधि (Method/Procedure) : पद्धति यह इकाई के कार्यक्रम को पूरा करने की व्यवस्था दर्शाता है । व्यूहरचना इकाईयों को स्पर्धियों के सामने बने रहने की व्यवस्था दर्शाते है । नीति उद्देश्यों को किस तरह पूरा किया जा सके इसकी जानकारी प्रदान करती है । जबकि विधि निर्धारित किये गये उद्देश्यों को किस तरह पूरा किया जायेगा इसका मार्ग दर्शाते है । जैसे इकाई बिमासिक विक्रय के आँकडे प्राप्त करके वार्षिक विक्रय के ध्येय को पूर्ण करने का प्रयत्न करते है । ऐसा करने से सफलता मिलने की सम्भावना बढ़ती है, संक्षिप्त में, विधि अर्थात् अमुक प्रवृत्ति किस तरह करना इसका तरीका ।

(5) नियम (Rules) : आयोजन में निर्धारित किये गये कार्यक्रम को पूर्ण करने के लिए नियम जरूरी है । नियम विधि निश्चित करते है । स्पष्ट समझ देते है । जिससे कर्मचारियों में अनुशासन स्थापित होता है तथा ध्येय प्राप्ति और निरीक्षण का कार्य सरल हो जाता है । जैसे कार्य के घण्टों के दौरान कर्मचारियों के मोबाइल का उपयोग नहीं करना, इकाई में धूम्रपान नहीं करना इत्यादि ।

(6) अन्दाज-पत्र (Budget) : इकाई में निश्चित किये गये उद्देश्यों को पूर्ण करने के नियंत्रण के माध्यम के रूप में अन्दाजपत्र का उपयोग किया जाता है । अन्दाज-पत्र के विभिन्न प्रकार होते है जैसे कि पूँजी खर्च अन्दाज-पत्र उत्पादन अन्दाज-पत्र, उत्पादनखर्च अन्दाज-पत्र, विक्रय अन्दाज-पत्र और नकद अन्दाज-पत्र । अन्दाज-पत्र इकाई की प्रक्रिया पर नियंत्रण रखते हैं और संचालन को कार्यक्षम बनाते हैं ।

(7) कार्यक्रम (Programme) : धन्धाकीय इकाई के जो कार्य करने हो उनको जो क्रम दिया जाता है उन्हें कार्यक्रम कहा जाता है । यदि कार्यक्रम के अनुसार काम-काज हो तो लक्ष्य-प्राप्ति का प्रश्न उत्पन्न नहीं होता । संचालन का कार्य कार्यक्रम के अनुसार होता है या नहीं यह देखना हैं और उन्हें निर्धारित किये गये स्तरों के साथ तुलना करने पर यदि उनमें विचलन पाया जाये तो सुधारलक्षी कदम उठाना आवश्यक होता है ।

प्रश्न 4.
आयोजन की सीमाएँ (Limitations of Planning) समझाइए ।
उत्तर :
प्रस्तावना : आयोजन यह एक वैकल्पिक प्रक्रिया है । आयोजन भविष्य के लिए तैयार किया जाता है । जो सामान्यतः अनिश्चितता पर निर्भर है । आयोजन के बिना दैनिक जीवन व्यवस्थित नहीं चल सकता । प्रत्येक व्यक्ति परिवार, समाज, नगर, राज्य एवं देश इत्यादि सभी के लिए आयोजन आवश्यक है । आयोजन का स्वीकार सर्वव्यापी है । इसके बावजूद भी आयोजन में कई मर्यादाएं रही हुई हैं । आयोजन की अनेकों मर्यादाएं, दोष बतलाए गए हैं । उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :

आयोजन की सीमाएँ :
(1) आयोजन के अनुसार कार्य न होने से आयोजन आवश्यक नहीं : आयोजन तैयार करने के पश्चात भी आयोजन अनुसार कार्य न होने से आयोजन बिन आवश्यक प्रवृत्ति है । आयोजन तैयार करने का खर्च इकाई के लाभ से अधिक होता है । कई बार तो आयोजन सम्पूर्णतः निष्फल हो जाता है ।

(2) आयोजन का आधार अनिश्चित है : आयोजन भूतकाल के अनुभव एवं भविष्य के अनुमान पर आधारित होता है । भविष्य
के अनुमान निश्चित नहीं परन्तु अनिश्चित होते हैं । आयोजन अधिकाशत: अनिश्चितता पर निर्भर होता है । अत: आयोजन का आधार अनिश्चित है ।

(3) आयोजन अधिक खर्चीली एवं लंबी प्रक्रिया है : आयोजन तैयार करते समय अनेक सूचनाएँ, अभिप्राय एकत्रित करने पड़ते हैं । इनका विश्लेषण करना पड़ता है । ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर वैकल्पिक योजनाएँ तैयार की जाती हैं । इन सबके लिए अनुभवशील, कुशल व्यक्तियों की सलाह ली जाती है । जिसका खर्च बहुत अधिक होता है । आयोजन अनेक पहेलुओं से
पसार होता है । अतः यह लम्बी प्रक्रिया है ।

(4) आयोजन से संचालन की प्रवृत्ति स्थिर बनती है : निर्धारित हेतु की सफलता हेतु कार्य की शुरूआत से पहले आयोजन तैयार । किया जाता है । राजकीय, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक कारणों से परिस्थिति में परिवर्तन होता है । परंतु संचालक आयोजन के अनुसार ही प्रवृत्ति करते हैं । आयोजन के विपरीत आंशिक प्रवृत्ति करने में स्वयं जोखिम नहीं उठाते ।

(5) बाह्य परिस्थिति की अनिश्चितता : वर्तमान में भविष्य के अनुमानों पर विचार विमर्श करके आयोजन की रचना की जाती है । आयोजन वर्तमान में तैयार अवश्य किया जाता है । लेकिन इसका उपयोग भविष्य में होता है । आयोजन तैयार करने से उपलब्ध साधनों का योग्य उपयोग किया जाता है । परंतु राज्यस्तर अथवा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की परिस्थितियों में परिवर्तन होने से आयोजन, असफलता के रास्ते पर चला जाता है । जैसे – पेट्रोल, डिज़ल के भाव में वृद्धि ।

(6) अपूर्ण (अधूरी) जानकारी : आयोजन के लिए योजनाएँ तैयार की जाती है । योजनाओं के लिए अनेक सभी प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त की जाती हैं । जानकारियाँ अधूरी एवं अस्पष्ट होने से सही योजना तैयार नहीं होती इस आधार पर तैयार किया जाता । जैसे – भारत में क्रेडिट कार्य का उपयोग कम होता है । इसका यह कारण नहीं कि यह आवश्यक नहीं है । परन्तु इसके लिए एकत्रित जानकारियाँ अधूरी एवं अस्पष्ट होती है ।

(7) कर्मचारी की स्वतंत्रता पर अंकुश प्रहार : निश्चित हेतु को पूर्ण करने के लिए आयोजन तैयार किया जाता है । कर्मचारियों . को तैयार किए गए आयोजन के अनुसार अधिकारियों द्वारा आदेश दिया जाता है । इसके अनुसार ही कर्मचारी कार्य करते हैं । कुशल एवं अनुभवशील कर्मचारी मात्र कर्मचारी ही होता है । वह तैयार किए गए आयोजन के विपरीत कार्य नहीं कर सकता ।

(8) क्षतियुक्त पद्धति का उपयोग : आयोजन तैयार करते समय गणितीक पद्धतियाँ, आंकड़ाशास्त्रीय जानकारी एवं कम्प्यूटर का विशाल उपयोग होता है । इनके उपयोग में कई बार क्षतियुक्त निर्णय लेने से आयोजन में क्षतियुक्त योजनाओं की रचना की जाती है । जिससे आयोजन क्षतियुक्त बनता है । एक लेखक ने कहा है कि आयोजन परिवर्तन को अंकुश में रखने का श्रेष्ठ साधन है ।

(9) भविष्य के अनुमान सम्पूर्णत: सत्य नहीं होते : आयोजन भविष्य के लिए किया जाता है । भविष्य अनिश्चित होता है । अनिश्चित भविष्य के कारण आयोजन में तैयार की गई योजनाएँ निश्चित नहीं होती अर्थात् आयोजन का आधार ही अनिश्चित है । प्रत्येक क्षेत्र में आयोजन का महत्व बढ़ता ही जा रहा है । आयोजन से निर्धारित हेतु समयानुसार सफल होता है । आयोजन की कोई मर्यादा नहीं परन्तु आयोजन की रचना करने वाले व्यक्तियों में कुशलता का अभाव, अपूर्ण जानकारी, प्राप्त करने की इच्छा सलाहकार की सलाह सूचन का अभाव इन सभी कारणों से आयोजन त्रुटिओं का पात्र बना है ।

(10) आयोजन का अप्रचलित होना : आयोजन में सदैव अनिश्चितता रहती है । समय, संजोग अथवा इकाई को असर करनेवाले परिबलों को कारण से पूर्व निर्धारित आयोजन कई बार अप्रचलित बन जाता है, जिसके कारण से आयोजन असफल हो जाता है ।

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प्रश्न 5.
योजना के प्रकार समझाइए ।
उत्तर :
योजना के प्रकार (Type of Plan) निम्न है :
(1) स्थायी योजना (Standing Plan) : स्थायी योजना बार-बार उपयोग में ली जा सकती है जो कि कार्यों के बारे में दैनिक निर्णय लेने होते हैं ऐसे कार्यों के लिए ऐसी योजना तैयार की जाती है, जहाँ व्यवस्थाकीय प्रवृत्तियों का पुनरावर्तन होता हो वहाँ वो प्रवृत्तियाँ शीघ्रता से हो इस उद्देश्य से प्रमाणित नीति तय की जाती हैं, जिन्हें स्थायी योजना कहा जा सकता है । आयोजन में नीति, विधि और नियम दीर्घ समय के लिए तय किये जाते हैं, जिससे अधिनस्थ कर्मचारी शीघ्र निर्णय ले सकते हैं । जैसे – ग्राहकों को उनके ऑर्डर के अनुरूप माल भेजने के बारे की विधि या साख नीति का निर्माण किया गया हो तो उनका अमल कर्मचारी शीघ्रता से कर सकते हैं । इस हेतु उच्च अधिकारियों को पूछने बार-बार जाना नहीं पड़ता ।

(2) व्यूहात्मक योजना (strategic Plan) : धन्धाकीय इकाइयाँ उनकी विचारधारा के अनुसार ध्येय तय करती है । इस हेतु इकाई अपने जीवनकाल दौरान कौनसी विचारधारा से काम करेंगे यह तय किया जाता है । जिसे इकाई का जीवन-ध्येय कहा जाता है । इकाई के उद्देश्य को सिद्ध करने के लिए विभिन्न दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन व्यूहरचनाओं का निर्माण किया जाता है । धन्धाकीय इकाई धन्धाकीय पर्यावरण, इनकी शक्तियों और कमियों को ध्यान में लेकर योजना का निर्माण किया जाता है । इस योजना के लिए दीर्घ दृष्टि और अनुभव जरूरी है । व्यूहात्मक योजना के असर दीर्घ अवधि पर देखने को मिलते है । इस योजना के लिए सुसंगत निर्णय लेने पड़ते है । यानि कि निर्णयों की व्यापकता इन योजना में महत्त्वपूर्ण है ।

(3) सुनियोजित योजना (Tractical Plan) : धन्धाकीय इकाई के निर्धारित उद्देश्य को सिद्ध करने के लिए मध्य स्तर पर अल्पकालीन
योजनाओं का निर्माण किया जाता है जिन्हें सुनियोजित योजना कहते हैं । इस योजना का समय काल एक वर्ष या इससे कम समय के लिए बनाई जाती है । यह योजना अल्पकालीन उद्देश्यों को स्पष्टीकरण करती रहती है जिससे इकाई की प्रवृत्तियाँ उद्देश्यलक्षी बनती है और सुनियोजित रूप से होती है । कार्य कौन से विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों के पास से करवाना है यह स्पष्ट होता है । इस योजना को बनाने के लिए विशिष्ट ज्ञान और कौशल्य जरुरी है ।

(4) कार्यकारी योजना (Operational Plan) : कार्यकारी योजना धन्धाकीय इकाई के विभागों, कार्य समूहो और व्यक्तिओं के पास से कार्य सम्बन्धी इच्छित परिणाम प्राप्त करने के लिए निर्मित की जानेवाली योजनाओं को कार्यकारी योजनाएँ कहते हैं । ऐसी योजनायें अधिकांशतः एक-दो वर्ष के अल्प समय के लिए होती है । जैसे निर्धारित किये गये वार्षिक उत्पादन के लक्ष्य के पूर्ण करने के लिए मासिक या त्रिमासिक उत्पादन की योजना बनाई जाती है । व्यूहात्मक योजना के अमलीकरण के लिए विभागीय अधिकारियों द्वारा ऐसी योजनाओं को तैयार किया जाता है । ऐसी योजनाएँ दैनिक कार्यों के साथ होने से सम्बन्धित विभाग के कर्मचारियों के साथ चर्चा विचारणा करके तैयार किया जाये तो इस योजना का अमल प्रमाण में अधिक सरल बनता है । कार्यकारी योजना सुनियोजित योजना जैसी ही होती है ।

(6) एक उपयोगी योजना (Single use Plan) : विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक उपयोगी योजना तैयार होती है । विशिष्ट प्रवृत्तियों के लिए ही इस योजना को तैयार की जाती है । अर्थात् कि जिन कार्य प्रवृत्तियों का पुनरावर्तन नहीं होता ऐसी प्रवृत्तियों के लिए एक उपयोगी योजना तैयार होती है । जैसे जहाज निर्माण, भवन निर्माण, पैकेजिंग, प्रिन्टिंग आदि योजनाएँ महत्वपूर्ण होती है ।

(6) आकस्मिक योजना (Contigency Plan) : धन्धाकीय इकाई में बदलती हुई परिस्थिति के साथ बने रहने के लिए बहुत ही आवश्यक है । कई निश्चित परिबल जैसे कि राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक या प्राकृतिक परिबलों के कारण धन्धाकीय पर्यावरण में भी परिवर्तन होते है । जिसके कारण पहले की योजना में परिवर्तन होते है । जिसके कारण पहले की योजना में परिवर्तन करना पड़ता है, अथवा कई योजना बनाई जाये तो उन्हे आकस्मिक योजना कहा जाता है ।

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