GSEB Solutions Class 12 Organization of Commerce and Management Chapter 4 व्यवस्थातंत्र

Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 12 Organization of Commerce and Management Chapter 4 व्यवस्थातंत्र Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 12 Organization of Commerce and Management Chapter 4 व्यवस्थातंत्र

GSEB Class 12 Organization of Commerce and Management व्यवस्थातंत्र Text Book Questions and Answers

स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प पसन्द करके लिखिए :

प्रश्न 1.
एक की अपेक्षाकृत अधिक व्यक्ति समान उद्देश्यों की प्राप्ति करने के लिए सामूहिक रूप से कार्य कर सके इस हेतु रचे जानेवाले ढाँचे को क्या कहा जाता है ?
(A) आयोजन
(B) व्यवस्थातंत्र
(C) नियंत्रण
(D) मार्गदर्शन
उत्तर :
(B) व्यवस्थातंत्र

प्रश्न 2.
कार्यों के विभागीकरण के कारण इनमें से क्या सम्भव बनता है ?
(A) विशिष्टीकरण
(B) आयोजन
(C) संकलन
(D) मार्गदर्शन
उत्तर :
(A) विशिष्टीकरण

प्रश्न 3.
कौनसे व्यवस्थातंत्र को सेनाओं का व्यवस्थातंत्र कहते हैं ?
(A) श्रेणिक
(B) कार्यानुसार
(C) रैख्रीय
(D) अनौपचारिक
उत्तर :
(C) रैख्रीय

प्रश्न 4.
इनमें से कौन-से व्यवस्थातंत्र में विभाग की अपेक्षाकृत कार्य को अधिक महत्त्व दिया जाता है ?
(A) रैखीय
(B) कार्यानुसार
(C) अनौपचारिक
(D) श्रेणिक
उत्तर :
(B) कार्यानुसार

प्रश्न 5.
मानव सम्बन्धों के आधार पर प्राकृतिक रूप से रचित मानव सम्बन्धों का जाल किस नाम पहचाना जाता है ?
(A) अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र
(B) रैखीय व्यवस्थातंत्र
(C) औपचारिक व्यवस्थातंत्र
(D) श्रेणिक व्यवस्थातंत्र
उत्तर :
(A) अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र

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प्रश्न 6.
तल स्तर पर आदेश प्राप्त करनेवाला व्यक्ति क्या कहलाता है ?
(A) अधिनस्थ
(B) उच्च
(C) प्रोजेक्ट मैनेजर
(D) अधिकारी
उत्तर :
(C) प्रोजेक्ट मैनेजर

प्रश्न 7.
प्रोजेक्ट ढाँचा और सामान्य ढाँचे के संयोजन से रचित व्यवस्थातंत्र को क्या कहते हैं ?
(A) श्रेणिक व्यवस्थातंत्र
(B) रैवीय व्यवस्थातंत्र
(C) कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र
(D) औपचारिक व्यवस्थातंत्र
उत्तर :
(A) श्रेणिक व्यवस्थातंत्र

प्रश्न 8.
जिन इकाइयों में समस्त सत्ता उच्च संचालकों के पास ही केन्द्रित हो उसे किस नाम से पहचाना जाता है ?
(A) विकेन्द्रीकरण
(B) केन्द्रीकरण
(C) विपूँजीकरण
(D) ध्रुवीकरण
उत्तर :
(B) केन्द्रीकरण

प्रश्न 9.
इनमें से क्या अपनाने से भावी संचालक तैयार हो सकते हैं ?
(A) विकेन्द्रीकरण
(B) केन्द्रीकरण
(C) विपूँजीकरण
(D) श्रम विभाजन
उत्तर :
(A) विकेन्द्रीकरण

प्रश्न 10.
इनमें से क्या सौंपा नहीं जा सकता ?
(A) अधिकार
(B) दायित्व
(C) उत्तरदायित्व
(D) कार्य
उत्तर :
(C) उत्तरदायित्व

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प्रश्न 11.
व्यवस्थातंत्र की रचना के कितने सोपान/चरण है ?
(A) 5
(B) 6
(C) 7
(D) 8
उत्तर :
(C) 7

प्रश्न 12.
धंधाकीय इकाई के स्वरूप, कद और दायित्व के विभागीकरण के आधार पर व्यवस्थातंत्र के कितने प्रकार निर्धारित किये गये
(A) 3
(B) 5
(C) 6
(D) 7
उत्तर :
(B) 5

प्रश्न 13.
अधिकार और दायित्व का विभाजन सीधी रेखा में अर्थात् उच्च से निम्न की तरफ कौन-से व्यवस्थातंत्र में पाया जाता है ?
(A) रैवीय व्यवस्थातंत्र
(B) कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र
(C) श्रेणिक व्यवस्थातंत्र
(D) अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र ।
उत्तर :
(A) रैवीय व्यवस्थातंत्र

प्रश्न 14.
इनमें से कौनसे व्यवस्थातंत्र में प्रत्येक कर्मचारी उनके उच्च अधिकारी के प्रति जिम्मेदार होते है ?
(A) औपचारिक व्यवस्थातंत्र
(B) अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र
(C) रैवीय व्यवस्थातंत्र
(D) कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र
उत्तर :
(C) रैवीय व्यवस्थातंत्र

प्रश्न 15.
इनमें से कौन-से व्यवस्थातंत्र में जितना पद उच्च अधिकार अधिक और जितना स्थान निम्न उतने अधिकार कम होते है ? (A) कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र
(B) अनौपचारिक
(C) औपचारिक व्यवस्थातंत्र
(D) रैवीय व्यवस्थातंत्र
उत्तर :
(D) रैवीय व्यवस्थातंत्र

प्रश्न 16.
विभागीय व्यवस्थातंत्र अर्थात् कौन-सा व्यवस्थातंत्र ?
(A) रैवीय व्यवस्थातंत्र
(B) कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र
(C) अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र
(D) श्रेणिक व्यवस्थातंत्र
उत्तर :
(A) रैवीय व्यवस्थातंत्र

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प्रश्न 17.
रैवीय व्यवस्थातंत्र में सर्वोच्च सत्ता किसके पास होती है ?
(A) जनरल मैनेजर
(B) संचालक मंडल
(C) विभागीय अधिकारी
(D) मुख्य अधिकारी
उत्तर :
(B) संचालक मंडल

प्रश्न 18.
रैवीय व्यवस्थातंत्र में जनरल मैनेजर का स्थान इनमें से किस रूप में होता है ?
(A) CEO
(B) BOD
(C) Purchasing Officer
(D) Marketing Manager
उत्तर :
(A) CEO

प्रश्न 19.
व्यवस्थातंत्र का ढाँचा यह व्यवस्थातंत्र के क्या दर्शाता है ?
(A) नियम
(B) विधि
(C) प्रकार
(D) कार्यक्रम
उत्तर :
(C) प्रकार

प्रश्न 20.
इनमें से कौन-से व्यवस्थातंत्र में श्रम-विभाजन और विशिष्टीकरण को विशेष स्थान दिया जाता है ?
(A) रैख्रीय व्यवस्थातंत्र
(B) कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र
(C) श्रेणिक व्यवस्थातंत्र
(D) औपचारिक व्यवस्थातंत्र
उत्तर :
(B) कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र

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प्रश्न 21.
कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र में सर्वोच्च सत्ता किसके पास में होती है ?
(A) मुख्य अधिकारी
(B) कारखाना विभाग
(C) संचालक मंडल
(D) जनरल मैनेजर
उत्तर :
(A) मुख्य अधिकारी

प्रश्न 22.
कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र में इकाई को कितने विभाग में बाँटा गया है ?
(A) 4
(B) 5
(C) 6
(D) 2
उत्तर :
(A) 4

प्रश्न 23.
इकाई के संचालक निश्चित ध्येय को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति और कार्य के सम्बन्धों का जो विधिवत ढाँचा स्थापित होता है, . वह क्या कहलाता है ?
(A) रैवीय व्यवस्थातंत्र
(B) औपचारिक व्यवस्थातंत्र
(C) कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र
(D) अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र
उत्तर :
(B) औपचारिक व्यवस्थातंत्र

प्रश्न 24.
अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र यह कौन-से व्यवस्थातंत्र की प्रतिछाया है ?
(A) श्रेणिक व्यवस्थातंत्र
(B) कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र
(C) औपचारिक व्यवस्थातंत्र
(D) रैखीय व्यवस्थातंत्र
उत्तर :
(C) औपचारिक व्यवस्थातंत्र

प्रश्न 25.
…………………….. व्यवस्थातंत्र यह औपचारिक व्यवस्थातंत्र पूरक है ?
(A) कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र
(B) रैखीय व्यवस्थातंत्र
(C) श्रेणिक व्यवस्थातंत्र
(D) अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र
उत्तर :
(D) अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र

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प्रश्न 26.
श्रेणिक व्यवस्थातंत्र का ढाँचा कितने प्रकार का होता है ?
(A) 2
(B) 4
(C) 7
(D) 10
उत्तर :
(A) 2

प्रश्न 27.
इनमें से कौनसे व्यवस्था तंत्र में कार्यानुसार विभागीकरण और प्रोजेक्ट विभागीकरण का समन्वय देखने को मिलता है ?
(A) रैवीय व्यवस्थातंत्र
(B) कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र
(C) श्रेणिक व्यवस्थातंत्र
(D) अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र
उत्तर :
(C) श्रेणिक व्यवस्थातंत्र

प्रश्न 28.
अधिकार किसकी कुंजी है ?
(A) संचालन
(B) व्यवस्थातंत्र
(C) उत्तरदायित्व
(D) दायित्व
उत्तर :
(A) संचालन

प्रश्न 29.
व्यवस्थातंत्र किसकी कुंजी है ?
(A) संचालन
(B) अधिकार सौंपना
(C) केन्द्रीकरण
(D) अधिकार
उत्तर :
(B) अधिकार सौंपना

प्रश्न 30.
व्यवस्थातंत्र में उच्च स्तर सत्ता केन्द्रित करना अर्थात् ………………………
(A) अधिकार
(B) अधिकार सौंपना
(C) केन्द्रीकरण
(D) विकेन्द्रीकरण
उत्तर :
(C) केन्द्रीकरण

प्रश्न 31.
उच्च स्तर से निम्न स्तर की तरफ क्रमश: अधिकार सौंपने का व्यवस्थित प्रयत्न अर्थात् …………………..
(A) केन्द्रीकरण
(B) विकेन्द्रीकरण
(C) अधिकार
(D) अधिकार सौंपना
उत्तर :
(B) विकेन्द्रीकरण

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प्रश्न 32.
अधिनस्थों को अधिकार सौंपकर, कार्य विभाजन करके, निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना अर्थात् विकेन्द्रीकरण । यह परिभाषा
किसने दी है ?
(A) हेरल्ड
(B) कून्ट्ज
(C) हेनरी फेयोल
(D) पीटर ड्रकर
उत्तर :
(C) हेनरी फेयोल

प्रश्न 33.
अधिकार सौंपने के कितने मूल तत्त्व है ?
(A) 2
(B) 3
(C) 5
(D) 7
उत्तर :
(B) 3

प्रश्न 34.
दायित्व सौंपना यह अधिकार सौंपने का कौनसा तत्त्व है ?
(A) प्रथम
(B) द्वितीय
(C) तृतीय
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर :
(A) प्रथम

प्रश्न 35.
अधिकार सौंपने का मार्ग किस तरफ जाता है ? ।
(A) निम्न से उच्च
(B) उच्च से निम्न
(C) उपरोक्त दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(B) उच्च से निम्न

प्रश्न 36.
उत्तरदायित्व का मार्ग किस तरफ जाता है ?
(A) उच्च से निम्न
(B) निम्न से उच्च
(C) समकक्ष
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर :
(B) निम्न से उच्च

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प्रश्न 37.
दो अथवा दो से अधिक व्यक्तियों के सहकार द्वारा होने वाली प्रवृत्ति अर्थात् व्यवस्थातंत्र/उपरोक्त व्याख्या किसने दी है ?
(A) लुइस ऐलन
(B) ल्युथर ग्युलिक
(C) चेस्टर आई. बर्नाड
(D) हेनरी फेयोल
उत्तर :
(C) चेस्टर आई. बर्नाड

प्रश्न 38.
व्यवस्थातंत्र की प्रक्रिया अथवा चरण का प्रथम सोपान कौन-सा है ?
(A) कार्यों का विभागीकरण
(B) लक्ष्यों की स्पष्टता
(C) आंतर सम्बन्धों की स्पष्टता
(D) व्यवस्थातंत्र का नक्शा तैयार करना
उत्तर :
(B) लक्ष्यों की स्पष्टता

प्रश्न 39.
इनमें से किसको सौंपा नहीं जा सकता ?
(A) अधिकार सौंपना
(B) उत्तरदायित्व
(C) केन्द्रीकरण
(D) दायित्व सौंपना
उत्तर :
(B) उत्तरदायित्व

प्रश्न 40.
व्यवस्थातंत्र का उत्तम उदाहरण कौन-सा है ?
(A) मानव का हृदय
(B) मानव का रक्त
(C) मानव का शरीर
(D) मानव के हाथ व पैर
उत्तर :
(C) मानव का शरीर

प्रश्न 41.
रैखीय व्यवस्थातंत्र में अधिकार को किस तरह सौंपा जाता है ?
(A) रेखीय
(B) समांतर
(C) कार्यानुसार
(D) उल्टा-सीधा
उत्तर :
(A) रेखीय

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प्रश्न 42.
इनमें से कौन-सा व्यवस्थातंत्र मानवीय सम्बन्ध व मित्रता पर आधारित होता है ?
(A) औपचारिक व्यवस्थातंत्र
(B) अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र
(C) रैवीय व्यवस्थातंत्र
(D) श्रेणिक व्यवस्थातंत्र
उत्तर :
(B) अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र

प्रश्न 43.
अधिकार और ………………… संतुलित होने चाहिए ।
(A) आयोजन
(B) दायित्व
(C) वेतन
(D) संकलन
उत्तर :
(B) दायित्व

प्रश्न 44.
इनमें से मुख्य अधिकारी का कार्यबोझ किसमें बढ़ता है ?
(A) नेतृत्व
(B) अभिप्रेरण
(C) केन्द्रीकरण
(D) विकेन्द्रीकरण
उत्तर :
(C) केन्द्रीकरण

प्रश्न 45.
अधिकार के विकेन्द्रीकरण के कारण अधिकारी …………………………….
(A) वेतन अधिक मिल सकता है ।
(B) संकलन बना सकते है ।
(C) शीघ्र निर्णय ले सकते है ।
(D) सहकार मिल सकता है ।
उत्तर :
(C) शीघ्र निर्णय ले सकते है ।

प्रश्न 46.
रैनीय व्यवस्थातंत्र एवं कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र किसके प्रकार है ?
(A) औपचारिक व्यवस्थातंत्र
(B) श्रेणिक व्यवस्थातंत्र
(C) अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर :
(C) अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र

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2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए :

प्रश्न 1.
व्यवस्थातंत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर :
समान उद्देश्यों को सिद्ध करने के लिए प्रवृत्ति हुए व्यक्तियों के मध्य अधिकार और दायित्व का वितरण करनेवाला ढाँचा अर्थात् व्यवस्थातंत्र।

प्रश्न 2.
अधिकार सौंपना किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अधिकार सौंपना अर्थात् कार्य को दूसरे को सौंपना और वह कार्य करने के लिए अधिकार प्रदान करना ।

प्रश्न 3.
अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कोई भी समानतापूर्वक उद्देश्य के अलावा सामूहिक परिणामों में योगदान देने के लिए स्वत: रचित आन्तरिक सम्बन्धों का ढाँचा अर्थात् अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र ।

प्रश्न 4.
श्रेणिक व्यवस्थातंत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिन व्यवस्थातंत्र में दो अलग-अलग प्रकार के ढाँचे होते है । एक सामान्य क्रम का ढाँचा जो कि निर्णय प्रक्रिया का भाग है और दूसरा टेक्नीकल प्रश्नों के निराकरण के बारे में ढाँचा जिसे प्रोजेक्ट ढाँचा कहते हैं । उपरोक्त दोनों ढाँचे के संयोजन से उत्पन्न व्यवस्थातंत्र को श्रेणिक व्यवस्थातंत्र कहते हैं । अर्थात् प्रोजेक्ट ढाँचा व सामान्य ढाँचे के संयोजन से रचित ढाँचा अर्थात् श्रेणिक व्यवस्थातंत्र ।

प्रश्न 5.
दायित्व किसे कहते हैं ?
उत्तर :
दायित्व यह उच्च अधिकारी द्वारा सम्बन्धित कार्य हेतु सौंपा गया कर्तव्य है । किसी निश्चित कार्य को पूर्ण करने हेतु जो कार्य सौंपने का आवश्यक हिस्सा है अर्थात् वह दायित्व है ।

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प्रश्न 6.
उत्तरदायित्व से आप क्या समझते है ?
उत्तर :
अधिनस्थों द्वारा किये गये कार्यों का उत्तर (स्पष्टीकरण) देने का दायित्व उच्च अधिकारी का है, जिसे उत्तर दायित्व कहते हैं । अधिकारी को प्राप्त अधिकार का उपयोग योग्य रूप से हुआ है या नहीं और संचालकों की अपेक्षा अनुसार परिणाम प्राप्त हुये हैं या नहीं, इनका उत्तर देना अर्थात उत्तर दायित्व ।

प्रश्न 7.
किसको सौंपा नहीं जा सकता है ?
उत्तर :
उत्तर दायित्व को सौंपा नहीं जा सकता ।

प्रश्न 8.
भावी संचालक किसके माध्यम से तैयार हो सकते है ?
उत्तरे :
विकेन्द्रीकरण के माध्यम से भावी संचालक तैयार हो सकते है ।

प्रश्न 9.
केन्द्रीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जब किसी भी इकाई में समस्त सत्ता संचालक के पास ही केन्द्रीत हो तो उन्हें केन्द्रीकरण कहते हैं ।

प्रश्न 10.
कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र में किसको अधिक महत्त्व दिया जाता है ?
उत्तर :
कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र में कार्य को महत्त्व अधिक दिया जाता है ।

प्रश्न 11.
रैखीय व्यवस्थातंत्र में किसका महत्त्व होता है ?
उत्तर :
रैखीय व्यवस्थातंत्र में विभाग का महत्त्व होता है ।

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प्रश्न 12.
विशिष्टीकरण किसके द्वारा सम्भव बनता है ?
उत्तर :
विशिष्टीकरण कार्यों के विभागीकरण द्वारा सम्भव बनता है ।

प्रश्न 13.
श्रेणिक व्यवस्थातंत्र में किसका समन्वय दिखाई देता है ?
उत्तर :
श्रेणिक व्यवस्थातंत्र में कार्यानुसार विभागीकरण और प्रोजेक्ट विभागीकरण का समन्वय दिखाई देता है ।

प्रश्न 14.
विकेन्द्रीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर :
उच्च स्तर से निम्न स्तर की तरफ क्रमश: अधिकार सौंपने का व्यवस्थित प्रयत्न कहलाता है ।

प्रश्न 15.
चेस्टर आई. बर्नाड के अनुसार व्यवस्थातंत्र की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर :
चेस्टर आई. बर्नाड के अनुसार : ‘दो अथवा दो से अधिक व्यक्तियों के सहकार द्वारा होने वाली प्रवृत्ति अर्थात् व्यवस्थातंत्र ।’

प्रश्न 16.
व्यवस्थातंत्र की प्रक्रिया का अन्तिम सोपान बताइए ।
उत्तर :
व्यवस्थातंत्र की प्रक्रिया का अन्तिम सोपान व्यवस्थातंत्र का नक्शा तैयार करना है ।

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प्रश्न 17.
व्यवस्थातंत्र में मानव का स्थान किस पर होता है ?
उत्तर :
व्यवस्थातंत्र में मानव केन्द्र स्थान पर होता है ।

प्रश्न 18.
व्यवस्थातंत्र की रचना द्वारा कार्यकारण का सम्बन्ध स्थापित होता है, जिससे इनकी रचना विधिवत होना आवश्यक है । यह कथन किसने दिया है ?
उत्तर :
उपरोक्त कथन पीटर एफ. ड्रकर द्वारा दिया गया है ।

प्रश्न 19.
‘अधिकार सौंपना यह अन्य व्यक्ति को अधिकार और दायित्व सौंपकर असरकारक बनाने के लिए उत्तर दायित्व की स्थापना करते हैं ।’ यह कथन किसने दिया है ?
उत्तर :
उपरोक्त कथन लुईस ऐलन ने अधिकार सौंपने के बारे में दिया है ।

प्रश्न 20.
अधिकार और दायित्व का मार्ग किस तरफ जाता है ? ।
उत्तर :
अधिकार का मार्ग उच्च से निम्न की तरफ जाता है । और दायित्व का मार्ग नीचे से ऊपर की ओर जाता है ।

प्रश्न 21.
उत्तरदायित्व का मार्ग किस तरफ जाता है ?
उत्तर :
उत्तर दायित्व का मार्ग निम्न से उच्च की तरफ जाता है ।

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प्रश्न 22.
अधिकार सौंपना कौन-कौन सी बातों से सम्बन्धी हो सकता है ?
उत्तर :
अधिकार सौंपना जैसे कि मार्केटिंग मैनेजर को उनके विभाग के लिए आवश्यक खर्च करने का अधिकार, कर्मचारियों को नियुक्त करने का अधिकार, शिक्षात्मक कदम उठाने का अधिकार इत्यादि बातों से सम्बन्धी हो सकता है ।

प्रश्न 23.
प्रशासन के जिस स्तर पर कार्य करना है उस स्तर के कर्मचारी को निर्णय लेने का अधिकार सौंपना अर्थात् क्या ?
उत्तर :
प्रशासन के किस स्तर पर कार्य करना है, उस स्तर के कर्मचारी को निर्णय लेने का अधिकार सौंपना अर्थात् विकेन्द्रीकरण ।

प्रश्न 24.
हेनरी फेयोल के अनुसार विकेन्द्रीकरण की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर :
हेनरी फेयोल के अनुसार ‘अधिनस्थों को अधिकार सौंपकर, कार्य विभाजन करके, निर्णय प्रक्रिया शामिल रखना अर्थात् विकेन्द्रीकरण ।

प्रश्न 25.
संचालन की सफलता का आधार महदअंश पर किस पर रहता है ?
उत्तर :
संचालन की सफलता का आधार महदअंश पर अधिकार और दायित्व के योग्य वितरण पर रहता है ।

प्रश्न 26.
आधुनिक समय में धन्धाकीय इकाइयों में किसका उपयोग बडे पैमाने में दिखाई देता है ?
उत्तर :
आधुनिक समय में धंधाकीय इकाइयों में विकेन्द्रीकरण का उपयोग बड़े पैमाने में दिखाई देता है ।

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प्रश्न 27.
रेखीय व्यवस्थातंत्र कौन-सी इकाइयों में अनुकूल होता है ?
उत्तर :
रैवीय व्यवस्थातंत्र निम्न इकाइयों में अनुकूल होता है ।

  1. जिन धंधाकीय इकाई का कद छोटा हो ।
  2. उनका कार्यक्षेत्र सीमित हो ।
  3. तथा नियंत्रण और अनुशासन के प्रश्न कम हो ।

प्रश्न 28.
रैखीय व्यवस्थातंत्र में अधिकार व दायित्व किस तरफ जाता है ।
उत्तर :
रैनीय व्यवस्थातंत्र में अधिकार उच्च से निम्न की तरफ जाता है । तथा दायित्व निम्न स्तर से उच्च स्तर की तरफ जाता है ।

प्रश्न 29.
व्यवस्थातंत्र की रचना किसके आधार पर होती है ?
उत्तर :
व्यवस्थातंत्र की रचना मानव व्यवहार पर आधारित होती है । जो कि एक समान विचारधारा या लगाव, अभिरूचि, मूल्य, रुचि, आदत और मान्यता प्राप्त व्यक्तियों द्वारा औपचारिक ढाँचे में अनौपचारिक समूह की रचना होती है, जिसके आधार पर व्यवस्थातंत्र की रचना होती है।

प्रश्न 30.
कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र में इकाई को कौन-कौन से विभागों में विभाजित किया गया है ।
उत्तर :
कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र में इकाई को मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है :

  1. वहीवट/प्रशासन/प्रबन्ध विभाग
  2. कारखाना विभाग

प्रश्न 31.
औपचारिक व्यवस्थातंत्र किसकी प्रतिछाया है ?
उत्तर :
अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र यह औपचारिक व्यवस्थातंत्र की प्रतिछाया है ।

प्रश्न 32.
अधिकार किसकी कुंजी है ?
उत्तर :
अधिकार संचालन की कुंजी है ।

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प्रश्न 33.
अधिकार सौंपना किसकी कुंजी है ?
उत्तर :
अधिकार सौंपना व्यवस्थातंत्र की कुंजी है ।

प्रश्न 34.
अधिकार सौंपने का प्रथम सोपान बताइए ।
उत्तर :
दायित्व सौंपना अधिकार सौंपने का प्रथम सोपान है ।

प्रश्न 35.
अधिकार सौंपने के कितने तत्त्व है ? व कौन-कौन से ?
उत्तर :
अधिकार सौंपने के तीन तत्त्व है :

  1. दायित्व सौंपना (Entrustment of Responsibility)
  2. अधिकार को सौंपना (Delegation of Authority)
  3. उत्तरदायित्व का सर्जन (Creation of Accountability)

प्रश्न 36.
दायित्व, अधिकार सौंपना और उत्तर दायित्व इन तीनो पहियों का महत्त्व कैसा होता है ?
उत्तर :
दायित्व, अधिकार सौंपना और उत्तरदायित्व इन तीनों पहियों का महत्त्व समान होता है ।

प्रश्न 37.
व्यवस्थातंत्र का कौन-सा प्रकार अधिक प्रचलित होता जा रहा है ?
उत्तर :
अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र का प्रकार अधिक प्रचलित होता जा रहा है ।

प्रश्न 38.
श्रेणिक व्यवस्थातंत्र कहाँ अधिक अनुकूल होता है ?
उत्तर :
श्रेणिक व्यवस्थातंत्र निम्न स्थिति में अधिक अनुकूल होता है जहाँ टेक्नोलॉजी और कामगीरी दोनों महत्त्वपूर्ण हों, ऐसे संयोगों में समन्वय कराना आवश्यक बनता है तब इस प्रकार का व्यवस्थातंत्र अधिक अनुकूल होता है ।

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प्रश्न 39.
श्रेणिक व्यवस्थातंत्र में सर्वोच्च सत्ता किसके पास होती है ?
उत्तर :
श्रेणिक व्यवस्थातंत्र में सर्वोच्च सत्ता जनरल मैनेजर के पास में होती है ।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त में उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
‘व्यवस्थातंत्र यह इकाई का शरीर है और आयोजन यह इनका प्राण है ।’ समझाइए ।
उत्तर :
इकाई के ध्येय को सिद्ध करने और कार्य सफलता का आधार इकाई के कर्मचारियों के मध्य कार्यों का स्पष्ट विभाजन, अधिकार व दायित्व का विभाजन, अधिकार को सौंपना जैसी बातों पर निर्भर करता है । संचालन की प्रक्रिया में जो हेतु निर्धारित होते है उन्हें विधिवत रूप से अमल में रखने के लिए व्यवस्थातंत्र अनिवार्य है । जिससे कहा जा सकता है कि व्यवस्थातंत्र यह इकाई का शरीर है और आयोजन यह इनका प्राण है । और संचालन यह धंधाकीय साहस का मस्तिष्क है ।

प्रश्न 2.
‘अधिकार और दायित्व का विभाजन यह व्यवस्थातंत्र का आधार है ।’ समझाइए ।
उत्तर :
अधिकार और दायित्व का विभाजन यह व्यवस्थातंत्र का आधार है । उपरोक्त कथन सत्य है । व्यवस्थातंत्र में अलग-अलग विभागों की रचना की जाती है । विभिन्न विभागो और व्यक्तियों के मध्य अधिकार और दायित्व को सौंपा जाता है । व्यवस्थातंत्र में अधिकार व दायित्व के मध्य सन्तुलन बना रहना चाहिए । अर्थात् कर्मचारियों को योग्य प्रमाण में अधिकार और दायित्व को सौंपा जाना चाहिए । यदि आवश्यकता से अधिक अधिकार दिया गया हो तो अधिकार का दुरुपयोग हो सकता है । यदि दायित्व के प्रमाण में अधिकार कम दिया गया हो तो अधिनस्थ थोड़ा दायित्व कम करने का प्रयत्न करेगा अथवा उनको सौंपा गया कार्य करने में असफल होगा ।

प्रश्न 3.
औपचारिक और अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र एक-दूसरे के पूरक है । समझाइए ।
उत्तर :
इकाई के संचालकों द्वारा निश्चित उद्देश्यों को सिद्ध करने के लिए व्यक्ति और कार्य के मध्य के सम्बन्धो का जो विधिवत रूप से जो ढाँचा रचा जाता है, उन्हें औपचारिक व्यवस्थातंत्र कहते हैं । जबकि कोई भी समानतापूर्वक हेतु के अलावा सामूहिक परिणामों में योगदान देने के लिए स्वत: रचित आंतरिक सम्बन्धों का ढाँचा अर्थात् अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र । व्यवस्थातंत्र में कार्यरत व्यक्तियों के मध्य अनिवार्य रूप से अमुक विशिष्ट सामाजिक सम्बन्धों का विकास होता है । ऐसे सम्बन्ध व्यवस्थातंत्र में प्राकृतिक या अनौपचारिक रूप से बनते है । ऐसे सम्बन्धों की स्थापना नहीं की जाती जिससे औपचारिक व्यवस्थातंत्र की तरह उनका नक्शा नहीं बनाया जा सकता । अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र यह औपचारिक व्यवस्थातंत्र की प्रतिछाया है । औपचारिक व्यवस्थातंत्र में ही इनका उद्भव होता है । अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र यह औपचारिक व्यवस्थातंत्र का पूरक है ।

प्रश्न 4.
श्रेणिक व्यवस्थातंत्र की मर्यादा क्या है ?
उत्तर :
श्रेणिक व्यवस्थातंत्र की मर्यादा निम्न है :

  1. श्रेणिक व्यवस्थातंत्र में जितने प्रोजेक्ट हो उतने प्रोजेक्ट मैनेजर की नियुक्ति की जाती है । अत: यह खर्चीली पद्धति होती है ।
  2. प्रोजेक्ट मैनेजर का दायित्व प्रोजेक्ट को समय पर पूर्ण करना पड़ता है ।
  3. प्रोजेक्ट कार्य के लिए जरूरी निष्णांतो के स्टाफ को अलग-अलग विभाग में से प्राप्त करना पड़ता है ।
  4. कई बार जरूरी निष्णांत सर्वगुण सम्पन्न नहीं मिल पाते ।
  5. श्रेणिक व्यवस्थातंत्र में सत्ता का प्रवाह दोहरा होता है ।

प्रश्न 5.
विकेन्द्रीकरण कब सम्भव बनता है ?
उत्तर :
विकेन्द्रीकरण निम्न स्थिति में सम्भव बनता है :

  1. वृहद इकाइयो में व्यवस्थातंत्र अलग-अलग भागों में विभाजित हो ।
  2. इकाई में शीघ्र निर्णय लेने हेतु ।
  3. विशिष्टीकरण का लाभ लेने के लिए ।
  4. भावी संचालक तैयार करने हेतु ।
  5. उच्च स्तर कार्यरत अधिकारियों के कार्यबोझ को कम करने हेतु ।
  6. संकलन, नियंत्रण, योग्य सूचना संचार आदि अपनाने हेतु ।

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प्रश्न 6.
निम्न विधान समझाइए ।

1. संचालन की सफलता या निष्फलता का आधार अन्य परिबलों की तुलना में उसके व्यवस्थातंत्र पर अधिक है ।
जिस व्यवस्थातंत्र की योजना खामीयुक्त होगी हो वह कामचलाऊ व्यवस्था होगी तो संचालन में मुश्किल होगी । दूसरी तरफ तर्कबद्ध स्पष्ट एवं रोजबरोज की आवश्यकताओं को पूरी कर सके । इस आधार पर बनाया गया व्यवस्थातंत्र इकाई की सफलता का सूचक है । अत: औद्योगिक इकाई की सफलता का आधार इसके व्यवस्थातंत्र पर अधिक है ।

2. व्यवस्थातंत्र ढाँचा भी है एवं प्रक्रिया भी है ।
आयोजन के अनुसार उद्देश्य को हासिल करने के लिए व्यवस्थातंत्र के ढाँचे की रचना की जाती है । उद्देश्य हासिल करने के लिए सत्ता एवं जवाबदारी को सौंपने का कार्य भी किया जाता है इस सम्पूर्ण विधि के लिए व्यवस्थातंत्र के ढाँचे की जरूरत पड़ती है । इसलिए. व्यवस्थातंत्र ढाँचा भी है कार्य को करने के लिए कितनी प्रवृत्ति करनी है । उसकी सूची तैयार करनी पड़ती है । उसके पश्चात् अलग-अलग प्रवृत्तियों को उनके समूह में विभाजन करना पड़ता है । और प्रत्येक समूह की अमुक कर्मचारी एवं अधिकारियों को सौंपना पड़ता है । उसके लिए योग्य सत्ता एवं जवाबदारी सौंपनी पड़ती है । इस सम्पूर्ण प्रक्रिया के लिए व्यवस्थातंत्र की रचना की जाती है । जिसे व्यवस्थातंत्र की प्रक्रिया कहा जाता है ।

3. अधिकार एवं दायित्व के बीच समतुला व्यवस्थातंत्र का आधार है ।
सत्ता एवं जवाबदारी के बीच समानता होती है । तो जवाबदारी योग्य रीत से पूरी की जा सकती है । इकाई के कार्य का स्थिररुप से हो । दो विभागीय अधिकारियों को सत्ता प्रदान करनी पड़ती है और कार्य के परिणाम के लिए सहायकों को जवाबदारी स्वीकार करनी पड़ती है । विभागीय अधिकारी सत्ता प्रदान करते समय योग्य जवाबदारी भी निश्चित कर देता है यदि सत्ता एवं जवाबदारी के बीच समानता नहीं होगी तो व्यवस्थातंत्र का ढाँचा बिन कार्यक्षम साबित होगा । यदि सत्ता से अधिक जवाबदारी होती है । सत्ता को भी उचित रूप से जवाबदारी नहीं निभायी जा सकती है । यदि जवाबदारी से सत्ता अधिक प्रदान की जाती है । तो सहायक सत्ता का दुरुपयोग करने लगते है इसलिए सत्ता एवं जवाबदारी के बीच समतुला होनी चाहिए ।

4. आयोजन धंधे का विभाग है तो व्यवस्थातंत्र शरीर का ढाँचा है ।
मानव शरीर में मस्तिष्क का महत्त्वपूर्ण स्थान है आयोजन एवं नीतियों को निश्चित करता है और पूरे शरीर को नियमन करने की व्यवस्था करता है अर्थात् दिमाग मनुष्य के सम्पूर्ण शरीर का संचालन करता है इसी प्रकार आयोजन के द्वारा औद्योगिक इकाई के नीति-नियम एवं उद्देश्य निश्चित किये जाते हैं । आयोजन के द्वारा औद्योगिक इकाई का संचालन होता है । दूसरे शब्दों में मानवशरीर करता है क्योंकि मानव शरीर भी एक ढाँचे के समान है । इसी प्रकार आयोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है और व्यवस्थातंत्र एक ढाँचा है. आयोजन के नीति-नियमों का पालन व्यवस्थातंत्र के द्वारा किया जाता है । इसलिए यह कहा जा सकता है कि आयोजन धन्धादारी इकाई का दिमाग है और व्यवस्थातंत्र उसका शरीर है ।

5. अवैधिक (अनौपचारिक) व्यवस्थातंत्र वैधिक (औपचारिक) व्यवस्थातंत्र की प्रतिछाया है ।
अथवा
अवैधिक व्यवस्थातंत्र वैधिक व्यवस्थातंत्र का अंग है ।
इकाई के संचालन निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य एवं व्यक्ति के बीच संबंधो का ढाँचा तैयार करता है कार्य की जवाबदारी के लिए आवश्यक सत्ता प्रदान करते है और कर्मचारियों के बीच आन्तरसंबंध का विकार कर रहे है । इसे वैधिक व्यवस्थातंत्र कहा जाता है । अवैधिक व्यवस्थातंत्र में मानव संबंधो के आधार पर मानव समूह की रचना की जाती है । मानव संबंधो के आधार पर एक दूसरे के साथ कार्य करने की तैयारी दर्शाते हैं । अवैधिक व्यवस्थातंत्र की रचना वैधिक व्यवस्थातंत्र प्रत्येक ढाँचे से मेल खाती है । जैसे कि आदर, भौगोलिक स्थान, रुचि के आधार पर समान समूहों की रचना की जाती है । वैधिक संबंधो के आधार पर ही अवैधिक व्यवस्थातंत्र रचना की जाती है अर्थात् अवैधिक व्यवस्थातंत्र वैधिक व्यवस्थातंत्र की परछायी है ।

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6. सत्ता सौंपना अधिकारियों के कार्य में कमी करता है जवाबदारी में नहीं ।
जवाबदारी का व्यापक स्वरूप हे उच्च अधिकारी स्वयं के सहायकों को कार्य एवं सत्ता सौंपकर अपने कार्य में अवश्य कमी कर सकते हैं । इसके अलावा सहायकों को सौंपे गये कार्य की जवाबदारी तो उच्च अधिकारियों को ही रहती है स्पष्टरूप से हम कह सकते हैं कि उच्च अधिकारी अपने कार्य करवाने के लिए किसी भी व्यक्ति को कार्य एवं सत्ता सौंपकर कार्य करवा सकता है लेकिन जवाबदारी से मुक्त नहीं हो सकता है इसलिए यह कहा जा सकता है कि व्यवस्थातंत्र में सत्ता को सौंपा जा सकता है परन्तु जवाबदारी नहीं ।
अपनी सत्ता को सौंपकर कार्य बोझ कम किया जा सकता है जवाबदारी नहीं ।

7. सत्ता जवाबदारी एवं उत्तरदायित्व सत्ता सौंपने के प्रक्रिया के तीन आधारभूत स्तंभ है ।
सत्ता सौंपना एक प्रक्रिया है जिसमें संचालक या उच्च अधिकारी स्वयं के सहायकों को कार्य सौंपते है और कार्य उचित रूप से पूरा करने के लिए योग्य सत्ता प्रदान करते हैं सत्ता सौंपने के बाद सहायकों को सौंपे गये कार्य की जवाबदारी सहायकों को रहेगी । इस प्रकार सत्ता सौंपने के तीन आधारभूत तत्व है । सामान्य रूप जवाबदारी सत्ता एवं उत्तरदायित्व दोनों का समान महत्व है दोनों स्वतंत्र होने पर परस्पर एक इकाई पर आधारित है । जैसे तिपाही में तीनों पायों का समान महत्व है ।

8. सत्ता सौंपना एवं विकेन्द्रिकरण के बीच सूक्ष्म भेद रेखा है । सत्ता सौंपना एवं विकेन्द्रियकरण एक सिक्का के दो पहलू के समान है । उच्च स्तर पर कार्य करने वाले अधिकारी स्वयं के नीचे कार्य करनेवाले कर्मचारियों से कार्य करने की जवाबदारी सौंपते हैं इसके साथ-साथ कार्य करने के सत्ता भी प्रदान करते हैं उच्च स्तर के अधिकारी अपने सहायकों का कार्य एवं सत्ता सौंपकर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्रता प्रदान करते हैं इसके अलावा सत्ता सौंपने वाला अधिकारी स्वयं के हाथ के नीचे कार्य करनेवाले कर्मचारियों सत्ता निरीक्षण एवं अंकुश रखते है जिससे विकेन्द्रियकरण अधिकारियों को आचारसंहिता अनुसार कार्य करने में एवं निर्णय लेने में स्वतंत्रता होती है । जिससे यह कहा जा सकता है सत्ता सौंपने में एवं विकेन्द्रियकरण के बीच बहुत पतली भेदरेखा है ।

9. सत्ता एवं जवाबदारी के बीच समानता होनी चाहिए । सत्ता के प्रमाण में ही जवाबदारी निश्चित होनी चाहिए । सत्ता सौंपने से कर्तव्य का पालन एवं कार्य करवाने का अधिकार प्राप्त होता है । यदि सत्ता एवं जवाबदारी के बीच समानता नहीं होगी तो व्यवस्थातंत्र का ढाँचा बिन कार्यक्षम साबित होगा । यदि सत्ता से अधिक जवाबदारी प्रदान की जाती है तो कर्मचारी सत्ता के अभाव और जवाबदारी के प्रति उत्पन्न हो जाती है । इसके विपरीत जवाबदारी के अपेक्षा सत्ता अधिक प्रदान की जाती है तो सहायक सत्ता का दुरुपयोग करने लगते हैं इसलिए सत्ता एवं जवाबदारी में समानता होनी चाहिए ।

10. सत्ता सौंपना कर्मचारियों को किस प्रकार प्रोत्साहित करते है ।
प्रत्येक कर्मचारी की इच्छा होती है उसका महत्त्व ऊपरी अधिकारी द्वारा स्वीकार किया जाय । सत्ता द्वारा कर्मचारी का महत्त्व होता है सत्ता कर्मचारियों को मान मर्यादा एवं कार्यक्षमता में वृद्धि करते हैं । सत्ता से कर्मचारियों के स्वाभिमान में वृद्धि होती है. । सत्ता सौंपने से कर्मचारी उत्साह से कार्य करता है इससे कहा जा सकता है सत्ता सौंप देने का कार्य कर्मचारियों को प्रोत्साहित करता है ।

प्रश्न 7.
अन्तर समझाइये ।
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प्रश्न 8.
संक्षिप्त उत्तर दीजिए :

1. केन्द्रीकरण की मर्यादाएँ बताइए ।
उत्तर :
केन्द्रीकरण की मर्यादाएँ निम्न होती है :

  1. आत्मकेन्द्रित
  2. अयोग्य निर्णय
  3. असहयोग
  4. विशिष्टीकरण का अभाव
  5. उच्च अधिकारियों के कार्य बोझ में वृद्धि । इत्यादि ।

2. विकेन्द्रीकरण की मर्यादाएँ बताइए ।
उत्तर :
विकेन्द्रीकरण की मर्यादा निम्न होती है :
जहाँ पर बहुत ही छोटे पैमाने पर व्यवस्थातंत्र की रचना करनी हो तथा रहस्यों की सुरक्षा अथवा गोपनियता रखनी जरूरी हो, ऐसे संजोगों में विकेन्द्रीकरण नहीं अपनाया जा सकता । कई बार समान नीति के अमल के अभाव व संकलन के अभाव के कारण विकेन्द्रीकरण सफल नहीं होता ।

3. कानून की दृष्टि से अधिकार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कानून की दृष्टि से अधिकार अर्थात् विधिवत रूप से कदम उठाने का अधिकार ।

धंधाकीय इकाई में संचालन की दृष्टि से अधिकार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
धंधाकीय इकाई में संचालन की दृष्टि से अधिकार अर्थात् आदेश देना और उनका अमल हो यह देखने का अधिकार ।

4. केन्द्रीकरण कहाँ उपयोगी होता है ?
उत्तर :
केन्द्रीकरण लघु इकाइयों में और जहाँ रहस्यों की गुप्तता महत्त्वपूर्ण हो वहाँ पर केन्द्रीकरण उपयोगी होता है ।

4. निम्नलिखित प्रश्नों के मुद्दासर उत्तर लिखिए ।

प्रश्न 1.
अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र के लक्षण समझाइए ।
उत्तर :
अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र (Informal Organisation) के लक्षण निम्नलिखित है :

  • अनौपचारिक ढाँचा : इस व्यवस्थातंत्र का ढाँचा अनौपचारिक होता है, जो कि आन्तर सम्बन्धों से बनता है । एक ही औद्योगिक
    इकाई में कार्यरत कर्मचारियों में समान ध्येयों की प्राप्ति के लिए प्राकृतिक रूप से इस ढाँचे की रचना होती है ।
  • मानवीय व्यवहार पर आधारित : ऐसा व्यवस्थातंत्र मानव के व्यवहार पर आधारित होता है । एक समान विचारधारा, अभिरूचि, मूल्य, रूचि, आदत और मान्यता प्राप्त व्यक्तियों द्वारा औपचारिक ढाँचे की रचना होती है, जिसके आधार पर इस व्यवस्थातंत्र की रचना होती है ।
  • परिवर्तनशील : यह व्यवस्थातंत्र का ढाँचा सम्पूर्ण रूप से परिवर्तनशील होता है । कोई भी कर्मचारी एक विभाग में से दूसरे विभाग में कार्य हेतु स्थानान्तरण होता है तब नये रुप से मानवीय सम्बन्धो में परिवर्तन होते है तथा जिसके कारण अनौपचारिक .. तंत्र में परिवर्तन देखने को मिलता है ।
  • सर्वव्यापी : यह व्यवस्थातंत्र सर्वव्यापी है । जो कि केवल उद्योगों में ही नहीं, बल्कि समान हितों व मूल्यों वाले प्रत्येक मानवीय
    प्रवृत्तियों में अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र दिखाई देता है ।
  • अनौपचारिक सूचना संचार : अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र में कर्मचारियों के मध्य सूचना संचार अनौपचारिक रूप से होता है । अधिकांशतः वह मौखिक स्वरूप में होता है । जिससे इसमें वास्तविकता की अपेक्षाकृत अभिप्रायों का प्रमाण होने की सम्भावना बढ़ जाती है । इन व्यवस्थातंत्र में सूचना संचार बहुत ही शीघ्र होता है ।
  • छोटा कद : अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र का कद अधिकांशतः छोटा रहता है । क्योंकि वह व्यक्तिगत सम्बन्धों पर निर्भर करता है | जो कि सदस्यों के मध्य की आंतर प्रक्रिया का परिणाम है, जो कि संख्या में अधिक समूह होते है, परन्तु कद में बहुत ही छोटे प्रकार के व्यवस्थातंत्र होते है ।
  • नियंत्रण की कमी : ऐसे व्यवस्थातंत्र पर कर्मचारियों की प्रवृत्तियों पर विधिवत् रूप से नियंत्रण नहीं रख सकते । इसमें व्यक्ति स्वेच्छा से स्वयं का तथा सह कर्मियों का कार्य करते है ।
  • औपचारिक व्यवस्थातंत्र का पूरक : अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र की रचना औपचारिक व्यवस्थातंत्र से ही जन्म लेती है, जिससे कहा जा सकता है कि वह औपचारिक व्यवस्थातंत्र का पूरक है ।

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प्रश्न 2.
कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र का अर्थ, रचना आकृति सहित समझाइए ।
उत्तर :
कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र (Functional Organisation) :
अर्थ : रैखिक व्यवस्थातंत्र में विभाग महत्त्व अधिक और कार्य महत्त्व कम है । किन्तु व्यवस्थातंत्र एक ही व्यक्ति को बहुत से कार्य सौंप देने से बिन कार्यक्षमता का उद्भव होता है । इसे दूर करने के लिए कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र की भलामण की है । एक ही अधिकारी प्रत्येक कार्य में विशेषज्ञ नहीं हो सकता है । जिससे विशिष्टीकरण नहीं अपनाया नहीं जा सकता है । जिससे कार्य विशेषज्ञों को महत्त्व मिलता है तथा विशिष्टीकरण अपनाया जा सकता है । इसके लिए कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र ही उपयोग में लाया जा सकता है । फ्रेडिक विन्सलो टेलर (Fredeick winsloro Taylor) जिनको वैज्ञानिक संचालन का पिता कहा जाता है । उन्होंने प्रत्येक कार्य में कार्यक्षमता में वृद्धि करने के कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र को भलामण की ही उन्होंने कहा है कि ‘कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र वैज्ञानिक संचालन की इमारत का एक स्तंभ है ।’

रचना : इस व्यवस्थातंत्र में सत्ता एवं जवाबदारी सौंपने कार्य विभाग के अनुसार नहीं बल्कि इकाई के कार्यों के अनुसार किया जाता है । जिससे इसे कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र के नाम से जाना जाता है । प्रत्येक कार्य के लिए अलग-अलग विशेषज्ञ नियुक्त किया जाता है । विशेषज्ञ किसी निश्चित विभाग के लिए नहीं बल्कि सम्पूर्ण इकाई के लिए स्वयं के कार्य के विषय में जवाबदारी सौंपी जाती है । जैसे खरीद अधिकारी सम्पूर्ण इकाई के प्रत्येक विभाग के लिए खरीद का कार्य करता है । कर्मचारी अधिकारी इकाई के सभी कर्मचारियों के लिए पसंदगी, प्रशिक्षण आदि का कार्य संभालता है ।

प्रत्येक कर्मचारी एक ही अधिकारी के प्रति जवाबदार नहीं क्योंकि वह अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग विभागों के अधिकारियों से आदेश प्राप्त करना पड़ता है इस कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र में विशेषज्ञ स्वतंत्र नहीं बल्कि एकदुसरे से जुड़े हुए है । विशेषज्ञों के विशिष्ट शान से सम्पूर्ण तंत्र की कार्यक्षम एवं सरल बनाया जा सकता है । नीचे दी गयी आकृति के द्वारा कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र को अधिक स्पष्ट किया जा सकता है ।
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कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र में सर्वोच्च सत्ता मुख्य अधिकारी के पास छोटी है और इसे दो भागों में विभाजित किया जाता है । (1) प्रबंध विभाग (2) कारखाना विभाग प्रत्येक विभाग के अलग कार्यों की जवाबदारी अलग-अलग विशेषज्ञों की होती है जैसे सूचना अधिकारी, मार्गदर्शन अधिकारी, अनुशासन अधिकारी, हिसाबी अधिकारी, खरीद अधिकारी, गुणवत्ता अधिकारी आदि । इसलिए प्रत्येक अधिकारी अपने कार्य के विषय में प्रत्येक कर्मचारी आदेश दे सकता है । यहाँ पर विभाग का महत्त्व नहीं है बल्कि कार्य का महत्त्व होता है ।

प्रश्न 3.
श्रेणिक व्यवस्थातंत्र (Matrix organisation) पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
अर्थ : व्यवस्थातंत्र के प्रकारों में से आधुनिक स्वरूप का व्यवस्थातंत्र है । इन व्यवस्थातंत्र में अलग-अलग प्रकार के ढाँचे होते हैं । एक सामान्य क्रम का ढाँचा जो कि निर्णय प्रक्रिया का भाग है । और दूसरा टेक्नीकल प्रश्नों के निराकरण के बारे में ढाँचा जिसे प्रोजेक्ट ढाँचा कहते हैं । उपरोक्त दोनों ढाँचे के संयोजन उत्पन्न व्यवस्थातंत्र को श्रेणिक व्यवस्थातंत्र कहते हैं । इस तरह श्रेणिक व्यवस्थातंत्र यह कार्यानुसार तथा प्रोजेक्ट व्यवस्थातंत्र की विशेषताओं को समाविष्ट आधुनिक प्रकार का विशिष्ट ढाँचा है । इस प्रकार के व्यवस्थातंत्र में कार्यानुसार विशिष्टीकरण का लाभ मिलता रहता है तथा प्रोजेक्ट संचालन द्वारा होनेवाले लाभ भी मिल जाता है । यह बहुविध आदेश पद्धतियों का उपयोग करनेवाला व्यवस्थातंत्रीय ढाँचा है ।

रचना (Design) : श्रेणिक व्यवस्थातंत्र में कार्यानुसार विभागीकरण और प्रोजेक्ट विभागीकरण का समन्वय दिखाई देता है । इस तरह के व्यवस्थातंत्र में प्रत्येक प्रोजेक्ट मैनेजर को अलग-अलग प्रोजेक्ट का दायित्व सौंपा जाता है । इसमें जितने प्रोजेक्ट होते है, उतने ही प्रोजेक्ट मैनेजर की नियुक्ति की जाती है । प्रोजेक्ट मैनेजर का दायित्व प्रोजेक्ट को समय पर व सफलतापूर्वक पूरा करना होता है । प्रोजेक्ट कार्य के लिए जरूरी निष्णांतो के स्टाफ को विभिन्न कार्य विभाग में से प्राप्त किया जाता है । इस तरह प्राप्त निष्णांतो को अलग-अलग भागों में बाँटा जाता है । जैसे- जैसे संशोधन और विकास निष्णांत, उत्पादन रचना निष्णांत, तकनिकी निष्णांत, कम्प्यूटर निष्णांत आदि । इन निष्णांतो को प्रोजेक्ट कार्य दौरान सम्बन्धित विभाग में से लिया जाता है । प्रोजेक्ट पूर्ण होते ही उनको मूल विभाग में उनको वापस भेजा जाता है ।
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उपरोक्त आकृति से स्पष्ट होता है कि श्रेणिक व्यवस्थातंत्र में सत्ता का प्रवाह दो गुणा होता है । जैसे कि जनरल मैनेजर की ओर से विभिन्न विभागो को तथा विभिन्न प्रोजेक्टस के संचालकों को उच्च से निम्न की तरफ सीधी रेखा में सत्ता को वहन किया जाता है । बाईं तरफ जो दर्शाया गया है कि प्रत्येक प्रोजेक्ट और प्रोजेक्ट मैनेजर स्वतंत्र रूप से कार्य करते है । इसके लिए जरूरी निष्णांत अलग-अलग विभागों में से प्राप्त हुए व्यक्ति है । इस तरह व्यवस्थातंत्र में श्रेणिक की रचना होती है ।

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प्रश्न 4.
अधिकार सौंपने के मूल तत्त्व (Elements of Delegation of Authority) समझाइए ।
उत्तर :
अधिकार सौंपने के तीन मूल तत्व होते हैं :
(1) दायित्व को सौंपना (Entrustment of Responsibility)
(2) अधिकार को सौंपना (Delegation of Authority)
(3) उत्तरदायित्व का सर्जन (Creation of Accountability)

इस तरह दायित्व, अधिकार सौंपना और उत्तरदायित्व इन तीनों पहियों का समान महत्त्व होता है । ये तीनों तत्त्व स्वतंत्र होने के बावजूद भी परस्पर जुड़े हुए होते है, जिसके समतोल से कार्यक्षम व्यवस्थातंत्र के ढाँचे की रचना की जाती है ।

1. दायित्वको सौंपना (Entrustment of Responsibility) : दायित्व यह उच्च अधिकारी द्वारा सम्बन्धित कार्य हेतु सौंपा गया कर्तव्य है । किसी भी निर्धारित कार्य को पूर्ण करने के लिए जो कार्य को सौंपना एक आवश्यक हिस्सा बन जाता है – वह दायित्व है । दायित्व के कारण आदेशकर्ता और अधिनस्थ के सम्बन्ध स्थापित होते है, क्योंकि अधिनस्थ को आदेशकर्ता द्वारा सौंपे गये समस्त कर्तव्यों का पालन करना होता है । इस तरह दायित्वका प्रवाह निम्न से उच्च की तरफ जाता है । जैसे कि अधिनस्थ सदैव अपने उच्च अधिकारी के प्रति दायित्व निभाना होता है ।

2. अधिकार को सौंपना (Delegation of Authority): अधिकार यह एक ऐसा अधिकार है, जिसके द्वारा अन्य के पास से काम
लिया जा सकता है । संचालकों की ओर से अधिनस्थों को जो कार्य सौंपा गया हो उनको अच्छी तरह से पूरा किया जा सके इसके लिए जरूरी अधिकार को सौंपा जाना चाहिए । अधिकार सौंपना यह उच्च से निम्न स्तर की तरफ जाता है । जिसमें सामान्यतः निर्णय लेना और आदेश देने का अधिकार सौंपा जाता है । अधिकार सौंपना विभिन्न मामलों में हो सकता है । जैसे कि मार्केटिंग मैनेजर को उनके विभाग के लिए आवश्यक खर्च करने का अधिकार, कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार, शिक्षात्मक कदम उठाने का अधिकार आदि दिये जाते है ।

3. उत्तरदायित्व का सजन (Creation of Accountability) : अधिनस्थों द्वारा किये गये कार्यों का उत्तर देने (स्पष्टीकरण) का
दायित्व निकटस्थ उच्च अधिकारी (Immediate Superior) का है, जिन्हें उत्तरदायित्व कहते हैं । दायित्व और अधिकार सौंपने के बाद अधीनस्थ उनको सौंपे गये कार्य को व्यवस्थित रूप से करते हैं या नहीं, यद देखना चाहिए । अधीनस्थों को सौंपे गये कार्य के सम्बन्ध में उच्च अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से नहीं हट सकते है ।

अधिकारी को प्राप्त अधिकार का उपयोग योग्य रूप से हुआ है या नही और संचालकों की अपेक्षा अनुसार परिणाम प्राप्त हुये है या नहीं, इनका उत्तर देना अर्थात् उत्तर दायित्व । उत्तरदायित्व को सौंपा नहीं जा सकता है । उत्तरदायित्व का मार्ग नीचे से ऊपर की तरफ जाता है । जैसे हिसाबी अधिकारी अपने एकाउन्टेन्ट के पास से हिसाब तैयार कराता है । फिर भी उसमें त्रुटि या घोटालों का उत्तर देने का दायित्व हिसाबी अधिकारी का ही होता है । अर्थात् हिसाबी अधिकारी का उत्तरदायित्व जनरल मैनेजर की ओर होता है ।

प्रश्न 5.
रैखीय व्यवस्थातंत्र (Linear organisation) का अर्थ एवं रचना समझाइए ।
उत्तर :
रैखीय व्यवस्थातंत्र (Linear organisation) : इस प्रकार का व्यवस्थातंत्र सबसे सरल एवं प्राचीन है । इस व्यवस्थातंत्र का
उपयोग सेना में वर्षों से होता आ रहा है । इसलिए इसे लश्करी व्यवस्थातंत्र के नाम से भी जाना जाता है । इस व्यवस्थातंत्र में सत्ता एवं जवाबदारी का बँटवारा सीधी रेखा में ऊपरी स्तर से निचले स्तर होता है । प्रत्येक व्यक्ति अपने ऊपरी अधिकारी के प्रति जवाबदार होता है इस व्यवस्थातंत्र में जिसका स्थान ऊँचा होता है उसके पास सत्ता अधिक होती है जिसका स्थान नीचा होता है । उसके पास सत्ता कम होती है । इस व्यवस्थातंत्र में कार्य के अनुसार नहीं बल्कि सत्ता एवं जवाबदारी के आधार पर व्यवस्था की जाती है । इसका प्रवाह ऊपर से नीचे की तरफ सीधी रेखा में होता है। इसलिए रैखिक व्यवस्थातंत्र के नाम से जाना जाता है ।

रचना रैवीय. व्यवस्थातंत्र की रचना के लिए सम्पूर्ण इकाई का अलग-अलग विभागों में विभाजित किया जाता है । जैसे उत्पादन विभाग, विक्रय विभाग, प्रशासन विभाग/प्रबंध विभाग आदि प्रत्येक विभाग के लिए विभागी अधिकारी की नियुक्ति की जाती है उस विभागीय अधिकारी को स्वयं के विभाग से सम्बन्धित सम्पूर्ण सत्य एवं जवाबदारी सौंपी जाती है । विभाग से सम्बन्धित कर्मचारियों को स्वयं के विभागीय अधिकारी के आदेशों का पालन करना पड़ता है । इस व्यवस्थातंत्र में विभाग का महत्व होता है । इसलिए इसे विभागीय व्यवस्थातंत्र भी कहा जाता है । रैखिक व्यवस्थातंत्र का ढाँचा आकृति के माध्यम से अधिक स्पष्ट किया जा सकता है ।
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रैवीय व्यवस्थातंत्र में सर्वोच्च सत्ता संचालक मंडल के पास में होती है, जो कि नीति विषयक निर्णय लेते है । उनके पास से जनरल मैनेजर जरूरी सत्ता प्राप्त करते है । जनरल मैनेजर का स्थान मुख्य प्रबन्धकीय अधिकारी CEO – Chief Executive Officer) के रूप में कहलाता है । रेखीय व्यवस्थातंत्र में अधिकार उच्च से निम्न स्तर की तरफ और दायित्व निम्न स्तर से उच्च स्तर की तरफ जाता है ।

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प्रश्न 6.
औपचारिक व्यवस्थातंत्र (Formal Organisation) का अर्थ, लक्षण/विशेषताएँ समझाइए ।
उत्तर :
औपचारिक व्यवस्थातंत्र का अर्थ : Meaning of formal organisation) : इकाई में संचालकों द्वारा निर्धारित उद्देश्यों को
सिद्ध करने के लिए व्यक्ति और कार्य के मध्य के सम्बन्धों का जो विधिवत रूप से ढाँचा स्थापित होता हो, उन्हें औपचारिक व्यवस्थातंत्र कहते हैं ।

लक्षण/विशेषताएँ (Characteristics) : इनके लक्षण निम्न है :

  1. औपचारिक ढाँचा : निश्चित ध्येय को सिद्ध करने के लिए संचालक सभानतापूर्वक औपचारिक ढाँचे की रचना की जाती है ।
  2. अपरिवर्तनीय : इस तरह के व्यवस्थातंत्र में कर्मचारियों के स्थान अधिकांशतः अपरिवर्तनीय होता है । कर्मचारियों का स्थान एक बार निश्चित करने के बाद भाग्येज इसमें परिवर्तन दिखाई देता है ।
  3. उच्च से निम्न की तरफ अधिकार को सौंपना : उच्च अधिकारियों द्वारा अधिकार को सौंपा जाता है, तथा इनका स्थान उच्च से निम्न की तरफ होता है ।
  4. वृहद आकार : औपचारिक व्यवस्थातंत्र का ढाँचा वृहद आकार का होता है ।
  5. निश्चित सम्बन्ध : ऐसे ढाँचे की रचना विधिवत रूप से होती है, जिससे कर्मचारियों के मध्य के सम्बन्ध निश्चित होते है ।
  6. सूचना संचार : इस व्यवस्थातंत्र में सूचना संचार औपचारिक प्रकार के मार्ग द्वारा ही होते है । अनौपचारिक सूचना संचार को कोई भी स्थान नहीं ।

प्रश्न 7.
व्यवस्थातंत्र का अध्ययन करने से कौन-सी बातें स्पष्ट होती है ?
उत्तर :
व्यवस्थातंत्र का अध्ययन करने से दो बातें स्पष्ट होती है ।

  1. कई धन्धाकीय इकाइयाँ ऐसी होती है, जिसमें केवल उच्च स्तर पर ही सत्ता केन्द्रित होती है । उच्च स्तर द्वारा ही अधिकांशतः
    निर्णय लिये जाते है ।
  2. कई धन्धाकीय इकाइयों में प्रत्येक स्तर पर काम करनेवाले कर्मचारियों को अमुक निर्णय लेने की सत्ता दी जाती है । जिससे वो अपने कार्य के संदर्भ में योग्य निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होते है ।

5. निम्नलिखित प्रश्नों के विस्तारपूर्वक उत्तर लिखिए ।

प्रश्न 1.
व्यवस्थातंत्र के कितने प्रकार होते है ? विस्तार से समझाइए ।
उत्तर :
व्यवस्थातंत्र के 5 प्रकार होते है :

  1. रैखीय व्यवस्थातंत्र (Linear organisation)
  2. कार्यानुसार व्यवस्थातंत्र (Functional organisation)
  3. औपचारिक व्यवस्थातंत्र (Formal organisation)
  4. अनौपचारिक व्यवस्थातंत्र (Informal organisation)
  5. श्रेणिक व्यवस्थातंत्र (Matrix organisation)
    उपरोक्त सभी प्रकार का विस्तृत वर्णन पिछले विभिन्न प्रश्नों के रूप दिया गया है ।

प्रश्न 2.
व्यवस्थातंत्र की प्रक्रिया की अवस्थाएँ (step for the process of organisation) समझाइए ।
अथवा
व्यवस्थातंत्र की रचना (Formation of organisation) समझाइए ।
उत्तर :
व्यवस्थातंत्र की रचना एक वैज्ञानिक अभिगम है । जब एक व्यावसायिक इकाई का अस्तित्व रहेगा तब तक व्यवस्थातंत्र का अस्तित्व रहेगा । बदलती परिस्थिति के समय परिवर्तनशील व्यवस्थातंत्र ही सफलतापूर्वक कार्य कर सकता है । व्यवस्थातंत्र का कोई भी तैयार ढाँचा सभी इकाईयों के लिए अनुकूल नहीं होता है । बल्कि प्रत्येक इकाई अपने उद्देश्य एवं कार्यक्षेत्र के संदर्भ में अनुकूल हो उसी प्रकार की व्यवस्थातंत्र रचना की जाती है ।
व्यवस्थातंत्र की आदर्श रचना करने के लिए निम्नलिखित तथ्य सहायक होते है ।

(1) उद्देश्य की स्पष्टता (Clarification of Objective) इकाई का मुख्य एवं गौण उद्देश्य क्या है । इसकी स्पष्टता होना जरूरी है । इसके पश्चात ही व्यवस्थातंत्र की स्थापना की जा सकती है । उद्देश्य के आधार पर ही व्यवस्थातंत्र का ढाँचा तैयार किया । जाता है उद्देश्य के बिना स्पष्टता के तैयार किया गया व्यवस्थातंत्र निष्फल होने की सम्भावना में वृद्धि हो जाती है ।

(2) कार्यों की सूची तैयार करना (List of Functions) इकाई को अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिए कौन से कार्य करने पड़ेंगे उनकी विगतवार सूची तैयार करना जरूरी होता है । जिससे कोई कार्य छूट नहीं जाय और कार्य का स्पष्ट ख्याल बना रहे । प्रत्येक कार्य के लिए क्या करना उसे इकाई कार्य से किस प्रकार अलग रख सकते हैं यह निश्चित किया जाता है ।

(3) कार्य का विभागीकरण (Departmentation) : सूची में दर्शाये गये कार्यों को अलग-अलग समूह में या अलग-अलग विभागों में बाँट देना चाहिए । जैसे विक्रय-विभाग, खरीद विभाग, हिसाब विभाग आदि कार्यों का विभागीयकरण करने से श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण को अपनाया जा सकता है । उत्पादन वृद्धि के अनुसार कार्यानुसार भौगोलिक विस्तार आदि के आधार पर भी विभागीय करण किया जा सकता है ।

(4) विभागीय होद्दो एवं उसकी योग्यता निश्चित करना : विभाग निश्चित करने के बाद प्रत्येक विभाग के कार्यों की जवाबदारी संभाल सके । ऐसा विभागीय पद निश्चित करना चाहिए । जैसे – विक्रय विभाग के लिए विक्रय अधिकारी प्रत्येक पद का कार्य सही ढंग से संभाल सके । और प्रत्येक को सही ढंग से न्याय प्रदान कर सके, इसके लिए किस प्रकार की योग्यता होनी चाहिए । यह भी निश्चित करना चाहिए ।

(5) सत्ता एवं जवाबदारी सौंपना : प्रत्येक विभागीय अधिकारी को उनकी जवाबदारी सौंप देनी चाहिए, जवाबदारी सफलता पूर्वक निर्वाह कर सके उनके लिए योग्य सत्ता प्रदान करनी चाहिए । प्रत्येद पद की सत्ता का स्पष्टीकरण होना चाहिए । जिससे जवाबदार व्यक्ति अपनी अपनी जवाबदारी सही ढंग से पूरी कर सके ।

(6) आन्तरसम्बन्धों की स्थापना : सभी विभागों के बीच आंतर संबंधो की स्पष्ट होनी चाहिए । कौन अधिकारी है कौन चपरासी है कौन किसको आदेश देगा । यदि अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच आन्तर संबंधो की स्पष्टता होगी तो ही असरकारक संकलन दिखाई पड़ेगा ।

(7) व्यवस्थातंत्र का नक्शा तैयार करना : व्यवस्थातंत्र की आकृति स्वरूप चार्ट या नक्शा तैयार करना चाहिए । जिससे व्यवस्थातंत्र में समाविष्ट अधिकारी एवं कर्मचारी स्वयं के स्थान के विषय में जानकारी प्राप्त कर सके ।

इसके उपरांत विभागीय अधिकारी के नीचे अधिक से अधिक कितने कर्मचारियों की जरूरत होती है । उन पर असरकारक अंकुश . रखने के लिए अंकुश मर्यादा का विचार व्यवस्थातंत्र की रचना करते समय करना चाहिए ।

GSEB Solutions Class 12 Organization of Commerce and Management Chapter 4 व्यवस्थातंत्र

प्रश्न 3.
व्यवस्थातंत्र के लक्षण/विशेषताएँ समझाइए ।
उत्तर :
व्यवस्थातंत्र का अर्थ : सामान्य शब्दों में कहे तो ‘समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रवृत्त हुए व्यक्तियों के मध्य अधिकार और
दायित्व का वितरण करनेवाला ढाँचा अर्थात् व्यवस्थातंत्र ।

व्याख्याएँ : चेस्टर आई. बर्नाड के अनुसार : ‘दो या उससे अधिक व्यक्तियों के सहकार द्वारा होने वाली प्रवृत्ति अर्थात् व्यवस्थातंत्र ।’ लुइस ऐलन के मतानुसार : ‘व्यवस्थातंत्र यह ऐसी प्रक्रिया है कि जिसमें निश्चित हेतुओं को सिद्ध करने के लिए लोगों में अधिक से अधिक प्रभावी रूप से कार्य कर सके इस उद्देश्य से कार्य की स्पष्टता करने का, वर्गीकरण करने का, दायित्व और अधिकार को सौंपना से तथा सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया है ।

व्यवस्थातंत्र की अलग-अलग लेखको ने अलग-अलग प्रकार से व्याख्या दी है । मुने एवं रेलेना के मतानुसार ‘सामान्य उद्देश्य प्राप्ति के लिए प्रत्येक प्रकार का मानवीय संगठन अर्थात् व्यवस्थातंत्र’ ।

ज्योर्ज आर. टेरी के शब्दों में ‘इकाई के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक कार्यों के विषय में निर्णय, व्यवस्था तथा कार्यों के अमल के लिए जवाबदार व्यक्तियों को सत्ता एवं जवाबदारी की स्पष्टता व्यवस्थातंत्र करता है ।’

ज्होन फिकनर के अनुसार ‘व्यवस्थातंत्र खास करके एक कर्मचारी एवं दूसरे कर्मचारी, एक कार्य एवं दूसरा कार्य तथा एक विभाग एवं दूसरे विभाग के बीच संबंध दर्शाती है ।

एल उर्विक मतानुसार ‘व्यवस्थातंत्र यानि इकाई की अमुक प्रवृत्तियों का विभागीकरण करना और अलग-अलग व्यक्तियों को सौंपने का कार्य करने की प्रक्रिया ।’

व्यवस्थातंत्र का अर्थ आर्थिक स्पष्ट करने के लिए लक्षणों का जानना आवश्यक है व्यवस्थातंत्र के लक्षण इस प्रकार है ।

लक्षण :
(1) व्यवस्थातंत्र एक उद्देश्यलक्षी प्रवृत्ति है : प्रत्येक धंधादारी इकाई के एक या अधिक उद्देश्य होते हैं जिसमें एक मुख्य होता है और दूसरा गौण होता है । व्यवस्थातंत्र की रचना के द्वारा इकाई के उद्देश्यों को हासिल किया जाता है ।

(2) व्यवस्थातंत्र द्वारा सत्ता, फरज एवं जवाबदारी सौंपना, : व्यवस्थातंत्र के द्वारा सत्ता, फरज एवं जवाबदारी सौंपने का कार्य किया जाता है । प्रत्येक को उसकी योग्यत एवं अनुभव के आधार पर सत्ता एवं जवाबदारी सौंपी जाती है । जिससे प्रत्येक व्यक्ति हो सत्ता एवं जवाबदारी का स्पष्ट ख्याल रहता है ।

(3) व्यवस्थातंत्र आयोजन पर आधारित : व्यवस्थातंत्र की रचना आयोजन पर आधारित है । व्यवस्थातंत्र की रचना के पहले आयोजन होना जरूरी है । आयोजन के द्वारा उद्देश्य निश्चित किया जाता है । जिसके आधार पर व्यवस्थातंत्र की रचना की जाती है. । भविष्य की प्रवृत्तियों का आयोजन एवं नक्शा सामने होने पर व्यवस्थातंत्र की रचना की जा सकती है ।

(4) व्यवस्थातंत्र में मानव तत्त्व का महत्त्व : व्यवस्थातंत्र की रचना में मनुष्य का केन्द्र स्थान होना चाहिए । क्योंकि व्यवस्थातंत्र की सफलता का आधार मनुष्य पर है अर्थात् व्यवस्थातंत्र सफलतापूर्वक कार्य करे इसके लिए मानव संबंधो का विकास होना चाहिए ।

(5) व्यवस्थातंत्र परिवर्तनशील है । व्यवस्थातंत्र का ढाँचा भविष्य को ध्यान में रखकर गतिशील एवं परिवर्तनशील होना चाहिए । भविष्य में नवी प्रवृत्ति चालू प्रवृत्ति का विकास या नई शोध खोज या कानूनी नीति नियम के परिवर्तन के कारण पुरानी परिर्थाित में परिवर्तन हो तो व्यवस्थातंत्र उसके अनुरूप होना चाहिए ।

(6) कार्य एवं होद्दाओं या विभागों की बीच आंतर संबंधो की स्थापना : व्यवस्थातंत्र कर्मचारियों के बीच एक कार्य एवं दूसरे कार्य के बीच, एक विभाग एवं दूसरे विभाग के बीच आन्तरिक सम्बन्धों की स्थापना करता है ।

(7) देखरेख-अंकुश एवं संकलन आवश्यक : इकाई में कर्मचारियों के कार्य के विषय में सत्ता एवं जवाबदारी के विषय में जानना जरूरी होता है । कार्य सही ढंग से हो रहा है या नही उसके लिए अंकुश एवं देखरेख जरूरी होती है ।

(8) व्यवस्थातंत्र एक सामूहिक प्रवृत्ति है : प्रत्येक धंधाकीय इकाई में उद्देश्य सिद्ध करने के लिए एक से अधिक व्यक्ति कार्य करते हैं । अनेक व्यक्ति एक होकर उद्देश्य हासिल करते हैं व्यवस्थातंत्र इन प्रयत्नों को व्यवस्थित बनाता है ।

(9) व्यवस्थातंत्र, श्रम, सत्ता, जवाबदारी का विभाजन करता है : धंधाकीय इकाई की अलग प्रवृत्तियों का विभागीयकरण व्यवस्थातंत्र के द्वारा किया जाता है । प्रत्येक विभाग के कार्यों को अलग-अलग व्यक्तियों को सौंपा जाता है ।

(10) व्यवस्थातंत्र संचालकीय ढाँचा : संचालकों के द्वारा निश्चित की गयी नीतियों के अमल के लिए आयोजकों द्वारा योजना तैयार की जाती है । योजना के वास्तविक अमल के लिए संचालकीय ढाँचा तैयार किया जाता है जिसे व्यवस्थातंत्र के नाम से जाना जाता है ।

प्रश्न 4.
विकेन्द्रीकरण का अर्थ, परिभाषाएँ एवं महत्त्व समझाइए ।
उत्तर :
विकेन्द्रीकरण का अर्थ (Meaning of Decentralisation) : उच्च स्तर से निम्न स्तर की तरफ क्रमश: अधिकार सौंपने की व्यवस्थित प्रयत्न को विकेन्द्रीकरण कहा जाता है ।

व्याख्याएँ (Definitions) :
हेनरी फेयोल के मतानुसार : ‘अधिनस्थों को अधिकार सौंपकर के, कार्य विभाजन करके, निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना अर्थात्वि केन्द्रीकरण ।

इस तरह प्रबन्ध के जिस स्तर से कार्य करना हो, उसी स्तर के कर्मचारियों को निर्णय लेने का अधिकार सौंपना विकेन्द्रीकरण कहते हैं ।

महत्त्व (Importance) : विकेन्द्रीकरण का महत्त्व निम्नलिखित है :
(1) संचालक एवं उच्च अधिकारियों के कार्य बोझ में कमी : विकेन्द्रिय व्यवस्थातंत्र में निम्न स्तर के अधिकारी भी निर्णय लेने का कार्य करते हैं । इससे संचालक एवं अधिकारियों का बोझ कम हो जाता है । जिससे ये महत्त्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान दे सकते हैं ।

(2) शीघ्र निर्णय : जो व्यक्ति जिस प्रवृत्ति के साथ जुड़ा होता है तो वह उसके विषय में शीघ्र निर्णय ले सकता है । जिससे निर्णय का अमल भी शीघ्रता से हो सकता है ।

(3) अभिप्रेरणा में वृद्धि : निर्णय लेने की सत्ता प्राप्त होने से कर्मचारी उत्साह से कार्य करते है । उनके उत्साह में वृद्धि होती है । विकेन्द्रियकरण कर्मचारियों की अभिप्रेरणा में वृद्धि करता है ।

(4) संवादिता का सृजन : विकेन्द्रीकरण से प्रत्येक स्तर की कार्यक्षमता को ध्यान में लिया जाता है । प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे के सम्पर्क में आती है जिससे सहकारिता का वातावरण उत्पन्न होता है । जिससे संवादिता की स्थापना होती है ।

(5) अधिकारियों का विकास : विकेन्द्रित व्यवस्थातंत्र एवं अधिकारियों को सत्ता देकर विकास का अवसर दिया जाता है । यह केन्द्रित व्यवस्थातंत्र संभव नहीं होता है ।

(6) असरकारक अंकुश : निम्नस्तर के अधिकारियों के पास आवश्यक सत्ता होने से देखरेख का कार्य सरल सत्ता है । सहायकों को भूल के लिए शिक्षात्मक कार्यवाही की जा सकती है और नियंत्रण में तभी सरलता रहती है ।

(7) विभागीयकरण सरल : विकेन्द्रीयकरण व्यवस्थातंत्र में कार्यों का विभागीकरण सरल हो जाता है ।

(8) व्यवस्थातंत्र में परिवर्तनशीलता : इससे व्यवस्थातंत्र की परिवर्तनशीलता में वृद्धि होती है व्यवस्थातंत्र का अलग विभागों में विभागीकरण करने से और अलग-अलग सत्ता सौंपने से आवश्यक परिवर्तन आसानी से किये जा सकते है ।

(9) संचालकीय प्रतिभा का विकास : विकेन्द्रीकरण में मध्य और निम्न स्तर के कर्मचारी अपनी सत्ता के अनुरूप निर्णय लेते है और उनके परिणाम के बारे में जिम्मेदारी स्वीकारते है । उनको सम्बन्धित कार्य के लिए निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जानी होने से उनके अधिनस्थों को नेतृत्व प्रदान करना, उनके मध्य संकलन बनाने की, अपने कार्य का आयोजन करने का और नियंत्रण बनाये रखना इत्यादि बातों की आदत बन जाती है । जिससे कर्मचारियों को विविध परिस्थितियों में निर्णय लेकर उनकी प्रतिभा सिद्ध करने का अवसर मिलता है । जिससे भविष्य में संचालक तैयार होते है ।

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प्रश्न 5.
अधिकार सौंपने का अर्थ, व्याख्या और महत्त्व समझाइए ।
उत्तर :
अधिकार सौंपने का अर्थ (Meaning of Delegation of Authority) : सामान्य अर्थ में अधिकार सौंपना अर्थात् कार्य का
दूसरों को सौंपना और वह कार्य करने के लिए अधिकार प्रदान करना ।

व्याख्या : श्री लुईस ऐलन के मतानुसार : ‘अधिकार सौंपना एक ऐसी प्रक्रिया है कि जिसमें संचालक स्वयं को प्राप्त अधिकार में से विधिवत रूप से अपने अधीनस्थों को कार्य और कर्तव्य के साथ अधिकार सौंपते है तथा अधीनस्थ अन्य व्यक्तियों के सहकार से सम्बन्धित कार्य को अमल करने के उद्देश्य से, सचेतता पूर्वक उन्हें स्वीकार करते है ।’

महत्त्व (Importance) : अधिकार सौंपने से उच्च संचालकों का कार्यबोझ कम हो जाने से वो नीति-विषयक निर्णयों पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं । इनका महत्त्व निम्नलिखित है :

(1) कार्यक्षम संचालन : अधिकार सौंपने के कारण इकाई के उच्च स्तर पर कार्यरत अधिकारियों के कार्यबोझ में कमी होती है, दैनिक कार्यों को सौंपने से अन्य स्तर पर सौंपने से उच्च स्तर के संचालक महत्त्वपूर्ण बातों पर ध्यान देकर लक्ष्यो की प्राप्ति कर सकते है । जिसके परिणाम स्वरुप संचालन का कार्य प्रभावशाली बनता है ।

(2) कर्मचारियों का विकास : इकाई में कार्यरत विविध कर्मचारियों को अधिकार सौंपने से विविध निर्णय लेने का अवसर मिलते है । जिसके कारण उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है । बार-बार एक ही प्रकार के निर्णय लेने होते है, जिससे उनकी निर्णय शक्ति अधिक से अधिक तर्क संगत और असरकारक बनती है ।

(3) अभिप्रेरण का साधन : इनके द्वारा कर्मचारियों की प्रतिभा को विकसित करने का अवसर मिलता है । जिसके द्वारा अनेक मनोवैज्ञानिक लाभ भी मिलते है, जब अधिकारी द्वारा अधीनस्थ को कार्य सौंपा जाता है तथा दायित्व सौंपा जाता है, तब अधीनस्थ केवल उस कार्य में साझेदार ही नहीं बनते, बल्कि उस कार्य की सफलता से उनके आत्म सम्मान में भी वृद्धि होती है, जिससे .
कर्मचारी को अभिप्रेरण अथवा प्रोत्साहन मिलता है ।

(4) विशिष्टीकरण का लाभ : इकाई में कार्यरत सभी व्यक्ति सभी प्रकार के कार्यों में कुशल व सक्षम नहीं होते ऐसा स्वभाविक हैं । अधिकार के सौंपने के कारण विविध व्यक्तियों को कार्य की जिम्मेदारी और अधिकार प्रदान किया जाता है । इन प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता, कौशल्य और ज्ञान अलग-अलग होने से विशिष्टीकरण का लाभ मिलता है ।

(5) संकलन : अधिकार सौंपने के कारण अधीनस्थ और उच्च अधिकारी जैसे सम्बन्ध स्थापित होते है । निम्न स्तर के कर्मचारी को अपने कार्य के निर्णय लेने के लिए स्वतंत्रता मिलती है । उनके सलाह-सूचन और सफलता को ध्यान में लिया जाता है । उनके मंतव्यो व अभिप्रायों को भी स्थान दिया जाने से इकाई आंतर ढाँचाकीय सम्बन्ध विकसित होते है । जिसके द्वारा संकलन का अर्थ असरकारक होता है ।

(6) विस्तार करने का अवसर : अधिकार सौंपने से इकाई के कई कार्य अधीनस्थों को सौंपकर उच्च संचालक धंधाकीय इकाई के विस्तार का विचार कर सकते है । जिसके द्वारा इकाई का विस्तार बढ़ाकर लक्ष्य प्राप्ति को सफल बनाया जा सकता है ।

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