GSEB Class 10 Hindi Rachana गद्यार्थग्रहण

Gujarat Board GSEB Solutions Class 10 Hindi Rachana गद्यार्थग्रहणन Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 10 Hindi Rachana गद्यार्थग्रहण

प्रश्नपत्र में गद्यार्थग्रहण के बारे में एक प्रश्न रहता है। इसमें आठदस पंक्तियों का एक अपठित (पाठ्येतर) परिच्छेद और उसके नीचे तीन से चार प्रश्न दिए जाते हैं। परिच्छेद के आधार पर उन प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में लिखने के लिए कहा जाता है।

गद्यार्थग्रहण करते समय ध्यान में रखने योग्य बातें:

  1. परिच्छेद के भाव को समझकर अपनी भाषा में प्रश्नों के उत्तर लिखने चाहिए। जो विद्यार्थी उत्तर के रूप में मूल परिच्छेद की दो-चार पंक्तियाँ ज्यों-की-त्यों लिख देते हैं, उन्हें अच्छे अंक नहीं मिलते।
  2. परिच्छेद को एक-दो बार ध्यान से पदिए। उत्तर की कच्ची रूपरेखा तैयार कीजिए।
  3. अपेक्षित उत्तर संक्षेप में और सरल भाषा में लिखिए।
  4. परिच्छेद का मुख्य विचार या भाव समझकर संक्षिप्त, उचित और आकर्षक शीर्षक दीजिए।
  5. उत्तर में वर्तनी, विरामचिहन आदि की ओर भी ध्यान दीजिए।

GSEB Class 10 Hindi Rachana गद्यार्थग्रहण

अपठित गद्यार्थग्रहण के नमूने

निम्नलिखित प्रत्येक परिच्छेद को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :

1. मानव के व्यक्तित्व का निर्माण करनेवाले विभिन्न तत्त्वों में चरित्र का सबसे अधिक महत्त्व है। चरित्र एक ऐसी शक्ति है जो मानवजीवन को सफल बनाती है। चरित्र की शक्ति ही आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता उत्पन्न करती है। चरित्र मनुष्य के क्रिया-कलाप और आचरण के समूह का नाम है। चरित्ररूपी शक्ति के सामने पाशविक शक्ति भी नष्ट हो जाती है। चरित्र की शक्ति विद्या, बुद्धि और संपत्ति से भी महान होती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि कई चक्रवर्ती सम्राट धन, पद, वस्तु और विद्या के स्वामी थे, परंतु चरित्र के अभाव में अस्तित्वविहीन हो गए।

प्रश्न :

  1. चरित्र किसे कहते हैं?
  2. चरित्र का क्या महत्त्व है?
  3. पाशविक शक्ति किसके सामने नहीं टिक पाती?
  4. इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।

उत्तर :

  1. मनुष्य के आचरण तथा व्यवहार को ‘चरित्र’ कहते हैं अर्थात् मनुष्य के सद्गुणों के समूह का नाम ही चरित्र हैं।
  2. चरित्र व्यक्तित्व का निर्माण करनेवाला एक ऐसा तत्त्व है, जिससे मनुष्य का जीवन सफल बनता है। अतः चरित्र का सबसे अधिक महत्त्व है।
  3. चरित्र की शक्ति में अदभुत प्रभाव होता है। पाशविक शक्ति सच्चरित्र के सामने नहीं टिक पाती।
  4. उचित शीर्षक: मानवजीवन में चरित्र का महत्त्व

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2. नारी ईश्वर की देन है और ईश्वर की बेटी है। भगवान के बाद हम स्त्री के ही देनदार हैं – जिंदगी देने के लिए और फिर जिंदगी योग्य बनाने के लिए। वह माता के समान हमारी रक्षा करती है तथा मित्र और गुरु के समान हमें शुभ कार्यों के लिए प्रेरित करती है। नारी का त्याग और बलिदान भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है। परंतु ईश्वरीय प्रवृत्ति एवं ईश्वर द्वारा किसी भी नारी से किया गया असामयिक कर मजाक वह होता है, जब नारी का सर्वेसर्वा मार्गदर्शक उसका भविष्य निर्माता उसे इस असीम दुनिया में नितांत अकेली छोड़कर, _अनायास काल-कवलित हो जाता है। विधवा हो जाने पर उसे जीवन पर्यंत दूसरों पर आश्रित रहना होता है तथा संसार की सभी बहारों, रंगीनियों से उसे वंचित किया जाता है।

संतोष की बात है कि हमारे भारत में कुछ विधवा-विवाह होने लगे हैं। परंतु समाज ने इस पद्धति को पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं किया है। लोग विधवा को लेने व देने, दोनों में ही हिचकिचाते हैं। विधवाविवाह एक गौरव की बात है, जो समाज की शुद्धता और देशोन्नति के लिए अत्यावश्यक है।

प्रश्न :

  1. हम भगवान के बाद किसके देनदार हैं? और क्यों?
  2. नारी के जीवन का सबसे अधिक क्रूर ईश्वरीय मजाक क्या है?
  3. विधवा हो जाने पर नारी की क्या स्थिति होती है?
  4. इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।

उत्तर :

  1. हम भगवान के बाद नारी के देनदार हैं, क्योंकि उसी से हमें जीवन मिलता है। माता, मित्र और गुरु के रूप में वह हमें जीने योग्य बनाकर शुभ कार्यों की प्रेरणा देती है।
  2. असमय में ही विधवा हो जाना नारी के जीवन का सबसे अधिक कर ईश्वरीय मजाक है।
  3. विधवा होने पर नारी को पराधीन होकर जीना पड़ता है। उसका जीवन पतझर की तरह सूना हो जाता है।
  4. उचित शीर्षक : विधवा-विवाह : एक गौरव का विषय
    अथवा
    विधवा-विवाह : समय की मांग

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3. इस धरती पर प्रभु की सर्वोत्तम रचना मानव है, परंतु यह सर्वश्रेष्ठ क्यों? संभवतः कम लोग ही इसका रहस्य जानते हैं। इस धरती के सभी जीवजंतुओं एवं प्राणधारियों में सोना, खाना, पीना, बच्चे पैदा करना आदि अधिकांश बातें समान हैं। विशेषता है तो केवल मानवधर्म की। जीवन में कर्तव्य और ज्ञान की। यह कैसी विडंबना है कि मानव इस धरती पर सर्वश्रेष्ठ होने के बावजूद यह सोच नहीं पाता है कि वह इस संसार में क्यों आया है? उसे क्या करना है, कहाँ जाना है? तथा उसके जीवन का ध्येय क्या है? उद्देश्य क्या है? इन बातों पर विचार करने के बजाय वह अपने शरीर को सुख देनेवाले कार्यों में लीन रहता है।

किन्तु यह भूल जाता है कि वह शरीर कितना गंदा है, इससे निकलनेवाली प्रत्येक वस्तु कितनी दुर्गंधयुक्त और अपवित्र है। आँख, कान, नाक और गुदा द्वारा गंदा मल निकलता है। जिन्हें एक क्षण भी हम अपने पास नहीं रख सकते। किन्तु वही मल जब शरीर के अंदर होता है, तब तक इससे किसी भी प्रकार की गंध नहीं आती, क्योंकि उसे शुद्ध करनेवाली आत्मा शरीर में होती है। इस आत्मारूपी शक्ति को जानने की तथा उसे उग्रीव करने के लिए कभी सोचा? कभी प्रयत्न किया? योगसाधना इसका मार्ग है। योगसाधना ही मनुष्य को सर्वोत्तम प्राणी सिद्ध कर सकता है।

प्रश्न :

  1. प्रभु की सर्वोत्तम रचना कौन है?
  2. कौन-कौन-सी बातें जीवजंतु तथा प्राणधारियों में समान हैं?
  3. मानवजीवन की विडंबना क्या है?
  4. इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।

उत्तर :

  1. प्रभु की सर्वोत्तम रचना मानव है।
  2.  सोना, खाना, पीना, बच्चे पैदा करना आदि बातें जीवजंतु तथा प्राणधारियों में समान हैं।
  3. मानवजीवन की विडंबना यह है कि धरती का सर्वश्रेष्ठ प्राणी होने पर भी मनुष्य यह नहीं सोचता कि संसार में उसके आने का हेतु क्या है।
  4. उचित शीर्षक : मनुष्यजीवन में योगसाधना की महिमा

4. गीता जीवन की कला सिखाती है। जब मैं देखता हूँ कि हमारा समाज आज हमारी संस्कृति के मौलिक सिद्धांतो की अवहेलना करता है तब मेरा हृदय फटता है। आप चाहे जहाँ जाएं, परंतु संस्कृति के मौलिक सिद्धांतो को सदैव साथ रखें। संसार के सारे सुख क्षणभंगुर एवं अस्थायी होते हैं। वास्तविक सुख हमारी आत्मा में ही है। चरित्र नष्ट होने से मनुष्य का सबकुछ नष्ट हो जाता है। संसार के राज्य पर विजयी होने पर भी आत्मा की हार सबसे बड़ी हार है। यही है हमारी संस्कृति का सार, वो अभ्यास द्वारा सुगम बनाकर कार्यरूप में परिणत किया जा सकता है।

प्रश्न :

  1. लेखक का हृदय कब फटता है?
  2. मनुष्य का सबकुछ कब नष्ट हो जाता है?
  3. संस्कृति का सार क्या है?
  4. इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।

उत्तर :

  1. भारतीय समाज को अपनी संस्कृति के मौलिक सिद्धांतों की अवहेलना करते देखकर लेखक का हृदय फटता है।
  2. मनुष्य का चरित्र नष्ट होने पर उसका सबकुछ नष्ट हो जाता है।
  3. संसार पर विजय पाने की अपेक्षा अपनी आत्मा पर विजय पाने का श्रेष्ठ आदर्श ही हमारी संस्कृति का सार है।
  4. उचित शीर्षक : गीता का संदेश अथवा गीता और जीवनकला अथवा आत्म सुख ही सच्चा सुख है

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5. अहिंसा और कायरता कभी साथ नहीं चलती। मैं पूरी तरह शस्त्र-सज्जित मनुष्य के हृदय से कायर होने की कल्पना कर सकता हूँ। हथियार रखना कायरता नहीं तो डर का होना तो प्रकट करता ही है, परंतु सच्ची अहिंसा शुद्ध निर्भयता के बिना असम्भव है। क्या मुझमें बहादुरों की यह अहिंसा है? केवल मेरी मृत्यु ही इसे बताएगी। अगर कोई मेरी हत्या करे और मुंह से हत्यारे के लिए प्रार्थना करते हुए तथा ईश्वर का नाम जपते हुए और हृदय मन्दिर में उसकी जीती-जागती उपस्थिति का भान रखते हुए मरूं तो ही कहा जाएगा कि मुझमें बहादुरों की अहिंसा थी। मेरी सारी शक्तियों के क्षीण हो जाने से अपंग बनकर में एक हारे हुए आदमी के रूप में नहीं मरना चाहता। किसी हत्यारे की गोली भले मेरे जीवन का अन्त कर दे, मैं उसका स्वागत करूंगा। लेकिन सबसे ज्यादा तो मैं अन्तिम श्वास तक अपना कर्तव्य पालन करते हुए ही मरना पसंद करूंगा।

प्रश्न :

  1. सच्ची अहिंसा किसके बिना असम्भव है?
  2. महात्मा गांधी सच्ची अहिंसा के लिए मनुष्य में किस गुण का होना आवश्यक मानते है?
  3. गांधीजी को किस प्रकार मरना पसंद था?
  4. इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।

उत्तर :

  1. सच्ची अहिंसा शुद्ध निर्भयता के बिना असम्भव है।
  2. महात्मा गांधी सच्ची अहिंसा के लिए मनुष्य में निर्भयता के गुण का होना आवश्यक मानते हैं।
  3. गांधीजी को अन्तिम श्वास तक अपना कर्तव्य पालन करते हुए मरना पसंद था।
  4. उचित शीर्षक : अहिंसा

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