GSEB Solutions Class 10 Social Science Chapter 18 मूल्यवृद्धि और ग्राहक जागृति

Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 10 Social Science Chapter 18 मूल्यवृद्धि और ग्राहक जागृति Textbook Exercise Important Questions and Answers.

मूल्यवृद्धि और ग्राहक जागृति Class 10 GSEB Solutions Social Science Chapter 18

GSEB Class 10 Social Science मूल्यवृद्धि और ग्राहक जागृति Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सविस्तार लिखिए :

प्रश्न 1.
मूल्यवृद्धि के कारणों की विस्तार से चर्चा कीजिए ।
उत्तर:
मूल्यवृद्धि के लिए निम्नलिखित कारक जवाबदार है:
1. वित्तीय पूर्ति में वृद्धि : अर्थतंत्र में वित्त की पूर्ति बढ़े, तो लोगों की आय बढ़ती है, क्रयशक्ति बढ़ती है, चीज-वस्तुओं और सेवाओं की प्रभावशाली माँग बढ़ती है परंतु उनके सामने कुल पूर्ति में वृद्धि नहीं होती, जिससे भाववृद्धि होती है । सरकार योजनाकीय और गैर योजनाकीय खर्च को पूरा करने के लिए वित्तपूर्ति की नीति अपनाती है जिससे नयी वित्त का सर्जन करके वित्त की पूर्ति बढ़ाती है । सरकार के प्रशासनिक खर्च, बिन योजनाकीय खर्च में, संरक्षण खर्च में हुई वृद्धि या विविध कल्याणकारी योजनाओं, उत्सवों का खर्च, सार्वजनिक खर्च में वृद्धि से बाजार में वित्त की पूर्ति एकदम बढ़ती है जो क्रय शक्ति को बढ़ाती है, जो मूल्य स्तर को ऊँचा ले जाती है । इस प्रकार क्रय शक्ति में वृद्धि से मूल्य वृद्धि होती है ।

2. जनसंख्या वृद्धि : भारत में औसतन 1.9% की जनसंख्या वृद्धि दर है । भारत की कुल जनसंख्या 2011 में 121 करोड़ दर्ज हुई थी, 2001 से देश की कुल जनसंख्या में हुई तीव्र वृद्धि चीज-वस्तुओं और सेवाओं की माँग में वृद्धि करके माँग पूर्ति की स्थिति का असंतुलन बढ़ाती है । वस्तु की कमी सर्जित होते ही मूल्य वृद्धि उत्पन्न जन्मती है ।

3. निर्यात में वृद्धि : विदेशी बाजार में देश की माँग में वृद्धि होने के कारण सरकार द्वारा निर्यात बढ़ाने के प्रोत्साहक कदमों के कारण निर्यात की चीज-वस्तुओं की स्थानीय और आंतरिक बाजार में उपलब्धता घटती है, कमी सर्जित होती है, माँग की अपेक्षा
पूर्ति कम होने से मूल्यवृद्धि होती है ।

4. कच्चे माल की ऊँची किमत पर प्राप्ति : कच्चे माल की कमी सर्जित हो और उसकी कीमत बढ़े जिससे वस्तु का उत्पादन खर्च बढ़ता है अंत में वस्तु की किमत बढ़ती है । दूसरी तरफ उत्पादित वस्तु के ग्राहक ये मजदूर या प्रजा है । वे क्रयशक्ति घटते वेतनधारा की माँग करते है और वे संतुष्ट करने पर फिर से वस्तु के उत्पादन खर्च में वृद्धि होती है जो फिर भाववृद्धि के परिणाम है । इस प्रकार भाववृद्धि का विषचक्र चलता रहता है ।

5. काला धन : सरकार को चुकाए जानेवाले आय कर से बचने के लिए कुछ आर्थिक व्यवहारों को हिसाबी खाते दर्ज नहीं किया जाता है । कुछ लोग अपनी ऊँची आय या अतिरिक्त आय को छुपाते है । इसे हिसाबी खाते में नहीं दर्ज और जिस पर कर चुकाया नहीं हो ऐसी बिनहिसाबी आय को काला धन कहते हैं । काला धन संग्रह नहीं किया जा सकता और अनावश्यक वस्तुओं को खरीदते है । इस पर काला धन मूल्य वृद्धि का पोषक बनता है ।

6. सरकार द्वारा मूल्य वृद्धि : सरकार समय-समय पर प्रशासनिक आदेश देकर पेट्रोलियम उत्पादों, अन्य चीजवस्तुओं, कृषि फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाकर और खाद्यपूर्ति बढ़े जिसके कारण भाव बढ़ते है । इस प्रकार सरकार द्वारा ही भाव वृद्धि की जाती है ।

7. प्राकृतिक कारण : अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूकंप, महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण तथा युद्ध, तूफान, आंदोलन, हड़ताल, औद्योगिक अशांति के कारण, तालाबंदी जैसे मानवीय परिबलों के कारण उत्पादन घटता है और उसकी पूर्ति पर विपरित प्रभाव पड़ता है, पूर्ति घटने से उसके सामने वित्त की मात्रा स्थिर रहने से चीजवस्तुओं की माँग के दबाव से मूल्य स्तर में वृद्धि होती है ।

8. करचोरी, संग्रहखोरी और कालाबाजार : कई बार आयातकार की ऊँची दरों के कारण तथा कुछ चीजों के आयात पर नियंत्रण या निर्यात पर प्रतिबंध के कारण करचौरी करने के इरादे से, चोरी छुपे, कर नहीं भरकर मालसामान देश में उतारा जाता है जिसे करचोरी (तस्करी) कहते हैं । भविष्य में भाव बढ़ने से अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से वस्तुओं का संग्रह कर लिया जाता है जिससे बाजार में वस्तु की कृत्रिम कमी होती है और मूल्य बढ़ता है । इसे संग्रहखोरी कहते हैं । बाजार में वस्तु की कमी होने पर उसे अधिक मूल्य पर बेचा
जाता है उसे कालाबाजारी कहा जाता है ।

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प्रश्न 2.
भाव (मूल्य) नियंत्रण के मुख्य दो उपायों की समीक्षा कीजिए ।
उत्तर:
1. वित्तीय कदम :

  • भारतीय मध्यस्थ बैंक RBI अर्थतंत्र से वित्त की आपूर्ति कम कर देती है जिससे लोगों की उपभोग खर्चवृत्ति पर अंकुश लगता है, जिससे वस्तुओं की माँग घटने से मूल्य घटते है ।
  • RBI द्वारा ऋणनीति में ब्याजदर ऊँची करती है जिससे लोन महँगा होता है, अनावश्यक पूँजीनिवेश या सट्टाकीय निवेश रुकता है । दूसरी तरफ ब्याजदर बढ़ने से लोगों की बचतवृत्ति में वृद्धि होती है और डिपोजिटों में, विविध बचतों के निवेश बढ़ते है । इस प्रकार कोष प्राप्ति के अभाव में सट्टाखोरी, संग्रहखोरी रुकती है और नफाखोरी पर अंकुश लगता है ।
  • बैंक दर में वृद्धि होते व्यापारिक बैंकों को कर्ज दर बढ़ानी पड़ती है जिससे कर्ज की मात्रा घटती है । ब्याजदर बढ़ने से सट्टाखोरी से अतिरिक्त वित्त खिंचकर अर्थतंत्र में बचत स्वरूप वापिस आता है जिससे पूँजी सर्जन दर बढ़ती है । नये धंधे-रोजगार के क्षेत्र खुलते है ।
  • बैंकों की निवेश आरक्षण की मात्रा में वृद्धि होते ही व्यापारिक बैंकों की शान पर नियंत्रण लगता है, कर्ज घटता है ।
  • खुले बाजार में सरकारी जामीनगीरी का बिक्री करके व्यापारिक बैंकों की ओर प्रजा की निवेश आरक्षण में कमी करती है ।
    लोगों के हाथ में वित्त की पूर्ति घटते, उपभोग खर्च घटता है, भावों पर अंकुश रहता है ।

2. राजकोषीय उपाय :

  • राजकोषीय नीति अर्थात् सरकार की सार्वजनिक आय और खर्च संबंधित नीति, कर और सार्वजनिक ऋण की नीति ।
  • सरकार अपने खर्च में जहाँ तक संभव हो वहाँ तक कमी करके देश के कुल खर्च में कमी करके वित्त की पूर्ति घटाती है । जिन योजनाओं पर अधिक मात्रा में खर्च होता हो और तात्कालिक वह लाभदायक न हो तो ऐसी योजनाओं को स्थगित करती
    है । प्रशासनिक खर्च में मितव्ययीता और अनावश्यक खर्चों में कमी करती है ।
  • कर की नीति के तहत सरकार भाव बढ़े तब लोगों के पास से खर्चपात्र रकम की पूर्ति घटे इस उद्देश्य से चालु करो में वृद्धि करती है । आयकर, कंपनीकर, संपत्ति कर आदि बढ़ाए जाते है । निर्यातों पर नियंत्रण लगाया जाता है । आयातों पर ऊँची दर के
  • सीमांकर लगाकर आयात की वस्तुएँ मेहगी होने से आयात घटता है ।
  • सार्वजनिक ऋणनीति : सार्वजनिक ऋण नीति अनुसार सरकार लोन देकर या ‘अनिवार्य बचत योजना’ जैसी स्कीम लाकर समाज में से होते कुल खर्च को मर्यादित करने का प्रयास करती है । बचतों को प्रोत्साहन देने हेतु विविध प्रोत्साहकीय कदम उठाती है, सार्वजनिक कों की मात्रा घटाती है । सबसीड़ी में कमी करती है, प्रत्यक्ष कर की मात्रा और क्षेत्र बढ़ाती है, श्रीमंत वर्ग की मोजशोक की वस्तुओं पर ऊँची दर पर कर लादकर, उनका उत्पादन घटाने और आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाने का कार्य करती है ।
  • इस प्रकार इन उपायों से हाथ में आय की मात्रा घटती है जिससे वस्तु माँग घटती है और अंत में मूल्य घटते है ।

प्रश्न 3.
ग्राहक अधिकारों के विषय में (छ मुद्दे) सविस्तार समझाओ ।
उत्तर:
ग्राहक बाजार का राजा है । वह वस्तु या सेवा के क्रय द्वारा अर्थतंत्र को जीवित रखता है । ग्राहक स्वयं के अधिकारों के विषय में जागरूक हो तो ग्राहक-जागृति सुरक्षा का कार्य सरल बन जाता है । व्यापारियों, उत्पादकों को भी ग्राहक के अधिकारों के विषय में कानून की व्यवस्थाओं को ध्यान में रखना चाहिये जो नीचे दी गई है –
1.सलामती का अधिकार : जीवन और जायदाद संबंधी जरुरी वस्तुओं के क्रय-विक्रय के सामने सुरक्षा बनाने का अधिकार है । यदि खरीदने में आयी हुई वस्तु से जान का खतरा हो तो उससे सुरक्षा पाने का अधिकार है । मौलिक पर्यावरण की सुरक्षा और जीवन की गुणवत्ता की सुरक्षा करने का अधिकार है ।

2. जानकारी प्राप्त करने का अधिकार : ग्राहक व्यापार की अयोग्य रीतियों और विक्रय की युक्ति-प्रयुक्तियों से सुरक्षित रहे इस लिये चीज-वस्तुओं की गुणवत्ता, प्रमाणमाप, शुद्धता, भाव और स्तर के संबंध में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है ।

3. पसंदगी करने का अधिकार : संभव हो सके वहाँ तक स्पर्धात्मक और विविधता रखनेवाली अनेक वस्तुओं की जानकारी लेने का अधिकार है । एकधारा उत्पादन और बंटवारे की परिस्थिति में बाजार में वस्तु की उचित कीमत, संतोषप्रद गुणवत्ता और सेवाओं की गारंटी लेने का अधिकार है ।

4. प्रस्तुतीकरण का अधिकार : ग्राहकों के हितों के रक्षण तथा उनके हितों के संबंध में उचित स्थान पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करे। ऐसी व्यवस्था हो जिसमें ग्राहक के कल्याण के संबंध में अलग-मंडल, चर्चाओं में प्रतिनिधित्व करने के अधिकार का समावेश । होता है । ग्राहक और राजकीय रूप तथा अन्य संस्थाओं द्वारा कलने में आयी गई अलग समितियों में ग्राहक संबंधी विषयों पर । प्रतिनिधित्व दे सकते है ।

5. शिकायत निवारण का अधिकार : व्यापारी की अनुचित प्रणालियों तथा ग्राहक के अनैतिक शोषण का शिकायतों का निवारण और सच्ची और योग्य शिकायतों को सुयोग्य रीति से सुलझाने के अधिकार का समावेश होता है ।

6. ग्राहक शिक्षण का अधिकार : जीवनभर एक जानकार ग्राहक बनने के लिये सभी जानकारियाँ और कौशल प्राप्त करने का अधिकार । ग्रामीण ग्राहकों में शोषण के लिये अज्ञानता और जागृति का अभाव विशेष रूप से उत्तरदायी है । उन्हें वस्तुओं तथा उनके अधिकारों के विषय में जानकारी मिलनी चाहिये और उनका उपयोग करना चाहिये । इस तरह का ज्ञान देना चाहिये । तभी ग्राहकों का शोषण और धोखाघड़ी से रक्षण हो सकेगा।

7. मुआवजा मिलने का अधिकार : ग्राहक को हल्की गुणवत्तावाली और कमीयुक्त सेवाओं से होनेवाले आर्थिक, मानसिक प्रवृत्तियाँ के नुकसान के कारण व्यापारी या कंपनी के पास से मुआवजा लेने का अधिकार है ।

8. अनुचित प्रवृत्तियों द्वारा होनेवाले शोषण के विरुद्ध अधिकार : वस्तु के वजन, कीमत, गुणवत्ता, उत्पादन विक्रय के बाद की सेवाओं बनावट, मिलावट, नफाखोरी, संग्रहखोरी द्वारा होनेवाले ग्राहक के शोषण के विरुद्ध न्याय और रक्षण प्राप्त करने का अधिकार है ।

9. जीवन की आवश्यक सेवाएँ प्राप्त करने का अधिकार : ग्राहक को आवश्यक सुविधा, गैस, पानी, बीजली, टेलिफोन, रेलवे बस, डाक-तार आदि सुलभ रूप से तुरंत प्राप्त करने का अधिकार है ।

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प्रश्न 4.
ग्राहक अदालतों के प्रावधानों की जानकारी दीजिए ।
उत्तर:
सन् 1986 की राष्ट्रीय ग्राहक सुरक्षा धारा के तहत ‘केन्द्रीय ग्राहक सुरक्षा काउन्सिल’ की रचना की गयी । जिसने त्रिस्तरीय अर्धन्यायी अदालतों की रचना की थी ।
1. जिला फोरम (जिलामंच) :

  • प्रत्येक जिले में लगभग एक अदालत है जो सबसे महत्त्वपूर्ण अदालत है, जो ग्राहकों की शिकायतें सुनकर उनका समाधान करती है और ग्राहकों को हुए नुकसान का मुआवजा दिलाती है ।
  • देश में लगभग 571 ग्राहक जिला फोर्म कार्यरत है । इस कोर्ट में रु. 20 लाख तक के मुआवजे के लिए दावों की निर्धारित फीस भरकर अर्जी की जाती है ।
  • जिला फोरम के निर्णय से नाराज हुआ पक्ष निर्णय की सूचना मिलने के 30 दिनों में राज्य कमिशन में अपील दाखिल कर सकता
  • इससे पूर्व उसे मुआवजे के दावे की रकम की 50% या 25000 रु. जो कम हो वह निश्चित शर्तों के आधार पर जमा करवानी होती है ।

2. राज्य कमिशन (राज्य फोरम)

  • देश में लगभग 35 राज्य फोरम कार्यरत है ।
  • 20 लाख से 1 करोड़ रुपये तक के मुआवजे की रकम की शिकायत निर्धारित फीस भरकर दाखिल कर सकते है ।
  • राज्य फोरम से नाराज हुआ कोई भी पक्ष आदेश की तारीख से 30 दिन में आदेश के नमूने और दावे की रकम के 50% अथवा रु. 35000 डिपोजिट भरकर राष्ट्रीय आयोग में अपील कर सकता है ।

3. राष्ट्रीय कमीशन (राष्ट्रीय फोरम)

  • एक करोड़ से अधिक मुआवजे के दावो संबंधी अर्जी निर्धारित फिस कोर्ट में भरने से शिकायत दर्ज कर सकते है ।
  • पाँच सदस्यों की बेंच इस कमीशन के सदस्य होते है ।
  • राज्य कमीशन और राष्ट्रीय कमीशन संभव हो उतना जल्दी अर्थात् अर्जी दाखल करने की तारीख के 90 दिनों में शिकायत का निवारण करती है ।
  • राष्ट्रीय कमीशन से असंतुष्ट व्यक्ति या पक्ष इस कमीशन के आदेश के 30 दिनों में सुप्रीम कोर्ट में निर्धारित शर्तों पर अपील कर सकता है । अपील से पूर्व 50% या रु. 50,000 रकम जमा करवानी होती है ।

प्रश्न 5.
गुणवत्ता मानक संबंधी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की जानकारी दीजिए ।
उत्तर:
ग्राहकों की सुरक्षा के लिए सरकार ने कानून बनाकर कुछ संस्थाओं की स्थापना की जो उत्पादकों द्वारा तैयार मालसामान, वस्तुओं
की गुणवत्ता और शुद्धता की जाँच करके उसे प्रमाणित करने का कार्य कर रही है ।
1. ISI – सरकार ने.सन् 1947 में गुणवत्ता के नियमन के लिए ‘इण्डियन स्टान्डर्ड इन्स्टिट्युट’ (ISI) की स्थापना की थी । जो बाद में 1986 में ‘ब्यूरो ऑफ इन्डियन स्टान्डर्डस’ नाम से पहचानी गयी है । यह उचित गुणवत्तावाली विविध उत्पादकों को ISI मार्क उत्पादकीय उपकरणों पर लगाने की अनुमति देती है ।

2. DMI – कृषि पर आधारित चीज-वस्तुओं, वन उपजों, बागायती और पशु उत्पादनों की गुणवत्ता का मानक ‘एगमार्क’ का कानून खेती-बाड़ी उत्पन्न कानून – 1937 था । भारत सरकार के ‘मार्केटिंग इन्जेलिजेंट संस्था (DMI)’ द्वारा एगमार्क उपयोग करने का आदेश दिया गया है । यदि ग्राहक को मार्क संबंधी शंका उत्पन्न हो तो वे BIS के नजदिकी प्रादेशिक कार्यालय में शिकायत
कर सकते है ।

3. BSI – जेने के जेवरात का उपयोग करते समय BSI मार्क के साथ सोने की शुद्धता के नंबर उदाहरण 916 अर्थात् 22 केरेट सोने की शुद्धता दर्शाता मार्क के साथ ‘होलमार्क’ केन्द्र का लोगो, ‘J’ उस वर्ष में होलमार्किंग हुआ हो का चिन्ह है । उदाहरण : ‘J’ अर्थात् 2008 के उपरांत ज्वेलरी बनानेवाले और विक्रेता का लोगों शुद्धता और गुणवत्ता की गेरंटी देता है ।

4. FPO – एफ.पी.ओ. का मार्क जाम, फ्रूट, ज्यूस, स्केवेरा, केन और टीन में पेक किये फलों और सब्जियों की उत्पादक वस्तु पर लगाया जाता है ।

5. ISI – टेक्षटाईल, केमिकल, जंतुनाशकों, रबड़-प्लास्टिक की बनावटों, सिमेन्ट की वस्तुओं, इलेक्ट्रोनिक्स उपकरणों पर यह मार्का BIS द्वारा लगाया जाता है । वुलमार्क – ऊन की बनावटों और पोशाकों को दिया जाता है ।

6. MPO – MPO मार्क के मांस, मटन के उत्पादकों और उससे बनी वस्तुओं पर लगाया जाता है ।

7. HACCPE (हेजार्ड एनालीसिस एण्ड क्रिटिकल कंट्रोल पोइन्ट) – मार्का प्रक्रिया द्वारा तैयार किये गये खाद्य उत्पादकों को BIS देती है।

8. ECO – मार्का साबुन, डिटरजन्ट, कागज, लुब्रीकेटिंग ओईल, पेकेजिंग मटीरीयल, रंगरसायनों, पावडर कोटींग, बेटरी, सौंदर्य प्रसाधनों, लकड़ी के बदले उपयोगी वस्तुओं, चमड़ा की और प्लास्टिक की बनावटों को ISI (वर्तमान में BIS) द्वारा दिया जाता

अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ :

  • ISO (इन्टरनेशनल स्टान्डर्डाइजेशन ऑर्गेनाइजेशन) : इसका मुख्यालय ‘जीनिवा’ में है, जिसकी स्थापना 1947 में हुई थी । यह संस्था अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता की वस्तुओं को प्रमाणपत्र और मार्का देती है ।
  • CAC (कोडेक्ष एलीमेन्टरीयस कमिशन) : खाद्य पदार्थों की अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की जाँच कार्य करती है । इस कमीशन की स्थापना FAO और WHO ने 1963 में की थी जिसका मुख्यालय इटली की राजधानी रोम में है । दूध, दूध की वानगियों, माँस, मछली, खाद्य पदार्थों को प्रमाणित करने और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार नीतिनियम बनाने का कार्य करती है।

प्रश्न 6.
ग्राहक को वस्तु खरीदते समय कौन-सी बातें ध्यान रखनी चाहिए ?
अथवा
ग्राहक के कर्तव्यों की जानकारी दीजिए । (कोई 10 मुद्दे)
उत्तर:
ग्राहकों के पास जितने अधिकार है उतने उनके कर्तव्य भी है, जिनका इन्हें निर्वाह करना चाहिए ।
1. चीजवस्तु खरीदने से पहले ग्राहक को वस्तुओं या सेवाओं की सही पसंदगी करते समय गुणवत्ता, उसके भाव, गारंटी, विक्रय के बाद की सेवाओं का आग्रह रखना चाहिये । ग्राहक ने हमेशा (आई.एस.आई.) मार्कावाली, एगमार्क जैसी गुणवत्ता के मार्कवाली चीजवस्तुओं को ही खरीदनी चाहिए ।

2. ग्राहक की खरीदी संबंध में निर्णय लेने से पहले वस्तु की सही पसंदगी करते समय वस्तु की सघन जानकारी तथा सेवा की जानकारी लेना चाहिये । यदि ग्राहक समझदारीपूर्वक, बुद्धिपूर्वक, विवेक दृष्टि और जवाबदारीपूर्वक वर्तन करता है तो ग्राहक आकर्षक विक्रय कला का भोग बनने से और शोषण से बचेगा ।

3. खरीदे हुए माल या सेवाओं का पक्का बिल या असली रसीद, वारंटी कार्ड आदि अवश्य लेना चाहिये ।

4. ग्राहकों को अराजनैतिक (बिनराजकीय) और स्वैच्छिक स्तर पर ग्राहक सुरक्षा मंडलों की रचना करनी चाहिए । सरकार की विभिन्न समितिओं में ग्राहक सम्बन्धी विषयों के लिये प्रतिनिधित्व मांगना चाहिये ।

5. ग्राहक को अपनी शिकायत अवश्य करनी चाहिये । समाज पर व्यापक प्रभाव रखनेवाली शिकायतों के निवारण के लिये ग्राहक मंडल को विविध सेवाभावी संस्थाओं की मदद लेनी चाहिये ।

6. ग्राहक को वस्तु खरीदने से पहले वस्तु को देखकर, निरीक्षण करके, कीमत, पेकिंग, वजन, अंतिमतिथि, उत्पादन का पूर्ण पता आदि देखकर वस्तु को खरीदना चाहिये । उदाहरण के तौर पर दवा तथा खाद्य पदार्थों की खरीदी के समय ।

7. नकली माल, बनावटी माल तथा वजन में कमी के सम्बन्ध में व्यापारी को तुरंत ध्यान दिलाना चाहिये । आवश्यक मात्रा में ही वस्तुएँ खरीदना चाहिए । आकर्षक विज्ञापनों, देखा-देखी के कारण अनावश्यक और गलत खरीदी करने से पहले विचार करना चाहिये । कहीं नकली वस्तु या हल्की गुणवत्तावाली वस्तु न खरीदी जाय इस बात का ध्यान रखना चाहिये ।

8 खरीदी करते समय वजन काँटे, मापतौल के साधन बराबर है, निरीक्षकों द्वारा समय-समय पर निरीक्षण करके सत्यापित किये है या नहीं साधन प्रत्येक वर्ष प्रमाणित किये हुये न हों तो तौल-माप अधिकारी कानूनी माप विज्ञान और नियामक ग्राहक संबंधी स्थानीय कार्यालय का संपर्क करके ध्यान दिलाना चाहिये । आवश्यक होने पर शिकायत भी करनी चाहिये । सत्य और प्रमाणिक साधनों की वस्तु खरीदने का आग्रह रखना चाहिये ।

9. गैस सिलेन्डर में सील का निरीक्षण करना चाहिये । रिक्शा और टैक्सी में मीटर 0 कराकर ही बैठना चाहिये, पेट्रोल-डीजल भराते समय पंप पर इन्डिकेटर पर 0000 मीटर रीडींग देखकर ही भराना चाहिये । केरोसीन भराते समय मापनी में झाग नीचे बैठाकर पूरा भरवाकर खरीदना चाहिये ।

10. कोई भी सेवा जैसे कि बीजली सप्लाय, टेलिफोन सेवा, बीमा सेवा, बैंकिंग सेवा, ट्रेवेलिंग सेवा, चिकित्सानीय सेवा एवम अन्य सेवाएँ कमी युक्त एवम् लापरवाही युक्त सेवाओं से ग्राहक को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से हानि होती है, तो उसकी जानकारी ग्राहक संस्था को पहुँचानी चाहिये । सेवा संस्था के विरुद्ध शिकायत करनी चाहिये । जागृत ग्राहक स्वयं के साथ हुए अन्याय के विषय में वर्तमान समाचारपत्रों को जानकारी देकर अन्यों को जागृत करके भोग बनने से रोकना चाहिये ।

11. ग्राहकों को स्वयं के अधिकारों और उनके उपयोग का ज्ञान और समय आने पर उपयोग करने की क्षमता होनी चाहिये ।

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2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर लिखिए:

प्रश्न 1.
भाववृद्धि आर्थिक विकास में पोषक भी है और अवरोधक भी है ।
उत्तर:
बहुत-सी वस्तुओं के भावों में साधारण और स्थिर वृद्धि आर्थिक विकास की पूर्वशर्त है । भाववृद्धि प्रत्येक वर्ष 3 प्रतिशत की दर से होती है तो देश के लिये लाभदायक है । उत्पादन चीजवस्तुओं का या सेवाओं का उत्पादन भाववृद्धि करते है । भाववृद्धि के लाभ-वेतन वृद्धि, बोनस अन्य सुविधाओं कुल साधन-सामग्री के साथ जुड़े हुए मजदूर या कारीगर तक पहुँचते है ।

इस लिये स्थिरता के साथ भाववृद्धि आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है, परंतु कितनी बार व्यापारियों और उत्पादनों का मुख्य उद्देश्य अधिक लाभ लेने का हो तो वे अनेक अनैतिक रीतियाँ अपनाकर भाववृद्धि करते हैं । परन्तु कारीगर या मजदूर स्वयं एक ग्राहक भी है जिसे नई वेतन में एकसमान वृद्धि नहीं होती है । जिससे जीवन निर्वाह की वस्तुओं को पर्याप्त मात्रा में खरीद नहीं सकता है । अंत में उसके जीवन स्तर में गिरावट, सामाजिक अशांति जैसी अनेक समस्याएँ पेदा होती है । जिससे व्यापारी नफाखोरी न करे इसलिये सरकार द्वारा भाववृद्धि पर नियंत्रण रखने की जरूरत है ।

प्रश्न 2.
काला धन भाववृद्धि का एक कारण है ।  समझाइए ।
उत्तर:
आयकर से बचने के लिये देश के अनेक लोग स्वयं की ऊँची आय को छिपाते है । वही खातों में बिना लिखी बेहिसाबी आय को कालाधन कहते हैं । काला धन रखनेवाले लोग चीजवस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि करते है । ये लोग वस्तुओं का उपयोग फिजूलखर्च के रूप में करते है । इससे वस्तुओं की माँग में वृद्धि होने से भाव बढ़ते हैं ।

अनेक समय कालाधन संग्रहखोरी (नफाखोरी) के लिये सट्टेबाजी की प्रवृत्तियों को जरुरी धन देता है । इस प्रकार काला धन भी भाववृद्धि का पोषण करता है । इस प्रकार बिना जानकारी का धन (कालाधन) रखनेवाले व्यक्ति आयकर विभाग के समक्ष पकड़े जाने के डर से धन का संग्रह करने के बदले तेजी से खर्च करने की स्थिति रखते हैं । जिससे इन्हें पसंद आनेवाली वस्तु या माल चाहे जितना भी ऊँचा दाम क्यों न हो खरीदने में झिझकते नहीं है, जिससे भाव बढ़ता है ।

प्रश्न 3.
मूल्यवृद्धि नियंत्रण में सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की भूमिका स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
मूल्यवृद्धि नियंत्रण की व्यूहरचना का एक कदम सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) है, जो भारत में सन् 1977 से लागू की गयी थी।

  • इसका उद्देश्य समाज के निम्न आय समूहों (अंत्योदय) और गरीबी रेखा के नीचे जीनेवाले लोगों (BPL) और गरीबी रेखा के ऊपर के कम आयवाले वर्गों को आवश्यक चीजवस्तुएँ उचित भाव पर उचित मूल्य की दुकानों (FPSS) द्वारा उपलब्ध करवायी जाती है ।
  • वर्तमान में देश में लगभग 4.92 लाख उचित मूल्य की दुकानें है ।
  • इन दुकानों में बिकनेवाली वस्तुओं के भाव खुले बाजार की दुकानों की तुलना में कम होता है ।
  • इन उचित मूल्यों की दुकानों तथा बाजार भाव के अंतर को सरकार चुकाती है, जिसे सबसीडी कहते हैं ।
  • कृत्रिम कमी, संग्रहखोरी और कालाबाजारी में मनचाहे मूल्य वृद्धि की परिस्थिति में गरीबों के जीवन स्तर को टिकाए रखने में यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) आशीर्वाद स्वरूप बनी है, जो मूल्यवृद्धि को नियंत्रित रखती है ।
  • इस व्यवस्था की सफलता का आधार अनाज वितरण और बिक्री की व्यवस्था के लिए कुशल और कार्यक्षम प्रशासन तंत्र पारदर्शी और प्रमाणिक दुकानों पर होता है ।

प्रश्न 4.
ग्राहक का शोषण होने के कौन से कारण है ?
उत्तर:
ग्राहकों का शोषण निम्नानुसार विविध कारणों से होता है –
1. मर्यादित माहिती : पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में निर्माता और विक्रेता किसी भी वस्तु या सेवा का चाहे जितनी मात्रा में उत्पादन और विक्रय करने के लिये स्वतंत्र हैं । उनके भाव और गुणवत्ता निर्धारण संबंध में कोई विशेष नियम नहीं हैं । ऐसी परिस्थिति में ग्राहक को किसी वस्तु के उपयोग के संबंध में सही जानकारी, ज्ञान के अभाव में कीमत, गुणवत्ता, उपयोगिता, वस्तु के उपयोग की विधि, विक्रय की शर्ते, विक्रय के बाद की सेवा, गारंटी जैसी जानकारी के अभाव में ग्राहक खरीददारी करते समय वस्तु की सच्ची पसंदगी में भूल करता है और शारीरिक, मानसिक और आर्थिक नुकसान भुगतता है ।

2. मर्यादित आपूर्ति : जब वस्तु या सेवा की माँग के सामने पूर्ण रूप से वस्तुओं की आपूर्ति न हो तो कृत्रिम कमी खड़ी कर संग्रहखोरी करके अधिक भाव लेकर कालाबाजार जैसी असामाजिक आचरण करके ग्राहकों का शोषण किया जाता है ।

3. मर्यादित स्पर्धा : जब भी कोई एक ही उत्पादन या उत्पादन समूह किसी वस्तु में उत्पादन और विक्रय में स्वयं का एकाधिकार रखते है तब वस्तु का भाव हल्की गुणवत्ता, मिलावट, बनावट की संभावना बढ़ जाती है । इस प्रकार ग्राहकों को खराब मालसामान
तथा कमी युक्त सेवा प्राप्त होती है ।

4. निरक्षरता का ऊँचा प्रमाण : ग्राहकों का शोषण होने का एक कारण प्रजा की निरक्षरता है । ग्राहक जागृति का प्रमाण भी कम है । ग्राहक निरक्षर होने से उत्पादनों, बाजार संबंधी जानकारी का अभाव देखने को मिलता है । इस कारण उत्पादक व्यापारी विविध प्रकार के छल-कपट द्वारा ग्राहकों का अनुचित लाभ उठाते हैं ।

प्रश्न 5.
ग्राहक सुरक्षा में ग्राहक मंडलों की भूमिका स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
ग्राहक सुरक्षा मंडल, ग्राहक परिषद या ग्राहक सुरक्षा शिक्षण और संशोधन तालीम केन्द्र संस्थाएँ कन्जयूमर्स गाइडन्स सोसायटी ऑफ इण्डिया जैसे स्वैच्छिक मंडल इस दिशा में धीमी गति से परन्तु काम कर रही है ।

  • ग्राहकों में जागृति लाने के लिये और प्रभावित वस्तुओं के उपयोग के लिए विशेष अभिगम प्राप्त करने के लिए ऐसे सुरभा मंडलों-एजन्सियाँ को शुरू किया गया है । ऐसे मंडल तहसील, जिला, शहरों-नगरों में स्थापित किए गये हैं ।
  • ये शिक्षण, तालीम और मार्गदर्शन देनेवाले सेमिनार, परिषदों, परिसंवादों, परदर्शनों जैसी शैक्षणिक प्रवृत्तियाँ आयोजित करते है ।
  • प्रचार माध्यमों का उपयोग करके तथा ग्राहकों में ग्राहक सुरक्षा इनसाइड धी कन्जयूमर द्विमासिक पत्रिका जैसे सामायिक
  • प्रकाशित करके ग्राहकों में जागृति और शिक्षण प्रचार-प्रसार का कार्य करते हैं ।
  • ऐसे मंडल उत्पादनों, व्यापारियों की मिलावट या काला बाजारी जैसे प्रवृत्तियों की जानकारी एकत्रित करके उस पर नियमानुसार कार्यवाही करते है । ग्राहक को न्याय दिलाते है ।

आर्थिक नुकसान और मानसिक, शारीरिक यातना के सामने राहत (लाभ) दिलाते हैं । दोषियों को दंड या सजा, साधन-सामग्री उत्पादकों, सेवा प्रदान करनेवाली संस्थाएँ, रकम के बदले में ग्राहक को प्रमाणिक रूप से योग साधन-सामग्री और सेवा उचित कीमत (मूल्य) सरल, तीव्र और गुणवत्ता युक्त रूप से उपलब्ध कराए इसके लिए ग्राहकों के अधिकारों, नियम, उपायों, सुरक्षित और टिकाऊ उत्पादनों जैसे विषयों पर जानकारी देकर ग्राहक जागृति के अनेक कार्यक्रमों को ग्राहक सुरक्षा मंडल आयोजित करता है । इस प्रकार स्वस्थ और विकासशील समाज के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए तैयार रहता है ।

जिस ग्राहक को धोखा हुआ है वह व्यक्ति ऐसे सुरक्षा मंडल की स्थानिक कार्यालय की मदद ले सकता है, शिकायत कर सकता है । मंडल ग्राहक की तरफ से वकील नियुक्त करके व्यापारी को नोटिस भेजकर आवश्यकता होने पर व्यापारी के विरुद्ध कोर्ट में केस रजिस्टर करवाकर ग्राहक को न्याय दिलाता है ।

GSEB Solutions Class 10 Social Science Chapter 18 मूल्यवृद्धि और ग्राहक जागृति

प्रश्न 6.
शिकायत कौन कर सकता है तथा शिकायत में समाविष्ट सूचनाएँ बताइए ।
उत्तर:
शिकायत कौन कर सकता है :

  1. ग्राहक स्वयं
  2. केन्द्र, राज्य सरकार अथवा केन्द्रशासित प्रदेशों की सरकार
  3. ग्राहक मण्डल और जो कंपनी कानून या अन्य प्रवर्तमान कानून के अधिक दर्ज हो अथवा
  4. कोई माल, चीज-वस्तु या सेवा खरीदने की संपत्ति से उपयोग करनेवाले परिवार का कोई सदस्य माल और सेवा में कमी के बदले हुए नुकसान के विरुद्ध शिकायत कर सकता है ।

यदि उत्पादक या विक्रेता ग्राहक की सही, उचित और स्पष्ट शिकायत का कोई निवारण के लिए पहल न बताए और तैयारी न बताए तब भोग बननेवाले ग्राहक या उसके परिवार के सदस्य द्वारा स्थानीय जिला फोरम, राज्य कमिशन, राष्ट्रीय कमिशन में केश करके स्थानीय पूर्ति विभाग, तोलमाप विज्ञान और ग्राहक न्यायालय, ग्राहक मण्डलों, कलेक्टर ऑफिस में शिकायत दर्ज कर सकता है । जब वस्तु या सेवा में कमी अनुभव हो अथवा करार के तहत या जिसमें कानून का पालन नहीं किया हो, वस्तु की गुणवत्ता, प्रकार और शुद्धता, वजन संबंधी कमी के लिए ग्राहक शिकायत कर सकता है ।

शिकायत किस तरह कर सकते है :

  • शिकायत का आवेदन स्पष्ट, सरल भाषा में टाईप करके या हस्ताक्षर में या ई-मेइल से हो सकती है । यदि कोर्ट में वकील के माध्यम से केस करना हो तो शपथनामा करना पड़ता है । आवेदन में आवेदक का नाम, पता, संपर्क नंबर होना चाहिए ।
  • शिकायत का विस्तृत वर्णन, शिकायत के कारण स्पष्ट होने चाहिए ।
  • आरोप के संदर्भ में जो कोई आधार या सबूत हो उनकी प्रमाणित की गयी नकल जोड़ना । कभी भी मूल दस्तावेज / सबूत नहीं देना चाहिए ।
  • बिल, बिल की कच्ची/पक्की रसीद जोड़नी । यदि भुगतान चेक से हुआ हो तो उसकी जानकारी लिखनी ।
  • बिक्रेता द्वारा की गयी शर्तों, सार्वजनिक खबर की नकल, पेम्पफलेट्स या प्रोस्पेक्टर्स की नकल जोड़नी ।
  • आवेदन के साथ माँगे गये बदले के दावे की रकम के अनुसार निश्चित की गयी फीस भरने में ग्राहक फोरम (कोर्ट) में शिकायत दर्ज हो सकती है ।
  • ग्राहक शिकायत दर्ज करने का कारण उद्भव हो उसके दो वर्षों में शिकायत दाखिल कर सकते है ।
  • किसी भी ग्राहकसंबंधी शिकायत करने या कानून संबंधी विशेष जानकारी प्राप्त करने या मार्गदर्शन के लिए गुजरात राज्य की हेल्पलाईन टोल फ्री नंबर 1800-233-0222 और राष्ट्रीय स्तर की हेल्पलाईन नंबर 1800-114000 पर जानकारी प्राप्त कर सकते

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त मे दीजिए :

प्रश्न 1.
मूल्य नियंत्रण क्यों जरुरी हुआ है ?
उत्तर:
संग्रहखोरी, सट्टाखोरी को रोकने, आवश्यक वस्तुओं का भाव के उचित स्तर पर टिकाए रखने के लिए तथा वह आसानी से बाजार में से मिलती रहे इसके लिए सरकार आवश्यक वस्तुओं के मूल्य निर्धारित करती है ।

  • सरकार मूल्य स्तर को स्थिर रखने के लिए ‘आवश्यक चीजवस्तुओं के लिए धारा-1955’ अमल में रखा था, जो व्यापारी सरकार द्वारा निर्धारित भाव के अनुसार अपना मालसामान नहीं बेचते । उनके विरुद्ध इस धारा के अधीन कानूनी कार्यवाही हाथ में लेकर दण्ड दिया जाता है ।
  • वस्तुओं के मूल्य सरकार के भाव निर्धारण तंत्र निश्चित करता है । कुछ जीवनरक्षक दवाओं के भाव भी इस रक्षण के अधीन लिये गये है और मूल्यों को नियंत्रित किया जाता है ।

प्रश्न 2.
भाव(मूल्य) वृद्धि के क्या प्रभाव पड़ते है ?
उत्तर:
मूल्यवृद्धि के निम्नलिखित प्रभाव पड़ते है:
1. मूल्य वृद्धि से लाभ में वृद्धि, आय में वृद्धि, क्रयशक्ति में वृद्धि, चीजवस्तुओं, सेवाओं की मांग बढ़े, वस्तु के भाव में वृद्धि यह विषचक्र सतत चलता रहता है । गरीब और मध्यम वर्ग का जीना दुष्कर बन जाता है ।

2. मूल्य वृद्धि से बचत और पूँजी सर्जन की दर में कमी होती है । आवश्यक चीजवस्तुओं का उत्पादन घटता है । नये धंधा-उद्योग रोजगार रूक जाते है ।

3. विदेशी पूँजी निवेश घटता है । आयाती वस्तुओं में वृद्धि होने से हंडियामन खर्च होता है जिससे नयी समस्या सर्जित होती है ।

4. आवश्यक चीज-वस्तुओं का उत्पादन घटता है, कमी सर्जित होती है । प्रजा का जीवनस्तर प्रभावित होता है, गरीब अधिक गरीब : बनते है।

5. देश में चीजवस्तुओं का उत्पादन खर्च बढ़ने से वे भी महँगी होने से देश के निर्याती वस्तुओं के भाव बढ़ने और मात्रा में आयाती वस्तु बाजार में सस्ती होने के कारण देश के निर्यात में कमी होने और आयात बढ़ने हुंडियामन का संतुलन बिगड़ जाता है । आयात-निर्यात में असंतुलन उत्पन्न होता है ।

मूल्यवृद्धि से गरीब और मध्यमवर्ग का जीवनस्तर गिरता है । आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए चोरी, लूटफाट, हत्या, गुनाहखोरी, देह-व्यापार, सट्टाखोरी, संग्रहखोरी, नफाखोरी, कालाबाजार, भ्रष्टाचार, आत्महत्या जैसी अनैतिक प्रवृत्तियाँ समाज में बढ़ती है । समाज का नैतिक पतन होता है ।

प्रश्न 3.
भावनिर्धारण तंत्र की भाव नियमन में क्या भूमिका है ?
उत्तर:
भाव निर्धारण तंत्र भाव वृद्धि को रोकने हेतु व्यापारियों के गोदामों में रखी चीजवस्तुओं का जत्थे का नियमन, चेकिंग, स्टोकपत्रो, भावपत्रको को प्रदर्शित करने के संबंध में कानूनी व्यवस्था और उसके उल्लंघन के लिए कड़क दण्डात्मक कदमों द्वारा भाववृद्धि को रोकने के प्रयास किये है । सरकार ने अभी तक प्याज, चावल, कपास, सिमेन्ट, खाद्यतेल, पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, केरोसीन, चीनी, एल्युमिनियम, लोहा-फौलाद, रेलवेनूर आदि के भाव मूल्य-निर्धारणतंत्र द्वारा निश्चित किये है । कुछ जीवनरक्षक दवाओं के भाव भी इस रक्षण के तहत बाँधे गये है और मूल्य वृद्धि रोकी है ।

प्रश्न 4.
ग्राहक किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जो कोई व्यक्ति किसी भी चीजवस्तु या माल या सेवा को पैसा चुकाकर खरीदे अथवा भुगतान के बदले में खरीदे अथवा वस्तु या सेवा देने के बदले किमत चुकाने की गारण्टी देकर अथवा तो अंशत: किंमत चुकाकर प्राप्त करे और अंशत: बाकी रकम चुकाने की गारण्टी देकर वस्तु या सेवा प्राप्त करे वह व्यक्ति ग्राहक है । हप्ते में चुकाकर अथवा भाड़े पर खरीद पद्धति के अधीन किसी भी माल किमत चुकाकर खरीदे अथवा सेवा किराये पर रख्ने अथवा सेवा प्राप्त करे और उस माल को व्यक्ति या उसका कोई भी व्यक्ति उपयोग करे, सेवा का लाभ प्राप्त करे उसे ग्राहक कहते हैं ।

प्रश्न 5.
ISI, ECO, FPO एगमार्क की जानकारी दीजिए ।
उत्तर:
1. ISI – टेक्षटाईल, केमिकल, जंतुनाशकों, रबड़-प्लास्टिक की बनावटों, सिमेन्ट की धातुओं, इलेक्ट्रोनिक्स उपकरणों पर यह मार्क BIS लगाने का अधिकार देता है ।

2. ECO – यह मार्क साबुन डिटर्जेन्ट, कागज, लुब्रिकेटींग, पेकेजिंग, मटीरीयल, रंगरसायनों, पावडरकोटींग बेटरी, सौंदर्य प्रसाधनों, लकड़ी के स्थान पर उपयोग आती वस्तुओं, चमड़े की वस्तुओं और प्लास्टिक सामान पर लगाने के लिए ISI देती है ।

3. FPO : का मार्क जाम, फ्रूट, ज्यूस, स्केवेरा केन या टीन पेक किये गये फलों और सब्जियों के उत्पादकों पर लगाया जाता है ।

4. एगमार्क : कृषि पर आधारित चीजवस्तुओं, वन उत्पादों, बागायती और पशु पेदाईशों की गुणवत्ता का मानक चिह्न “एगमार्क’ लगाने का कानून खेती वाड़ी उत्पन्न बाजार कानून 1937 था । भारत में मार्केटींग इन्टेलिजेन्ट संस्था (DMI) द्वारा एगमार्क दिया जाता है ।

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4. निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए :

प्रश्न 1.
सरकार द्वारा किस उत्पाद का मूल्य निर्धारित होता है ?
(A) सब्जी
(B) चिकित्सा उपचार
(C) पेट्रोल-डीजल
(D) होटल का खाना
उत्तर:
(C) पेट्रोल-डीजल

प्रश्न 2.
सरकार द्वारा किसमें की गयी पूर्ति मूल्य वृद्धि का कारण बनती है ?
(A) चीजवस्तुओं
(B) अनाज
(C) कच्चा माल
(D) वित्त
उत्तर:
(D) वित्त

प्रश्न 3.
भविष्य में भाववृद्धि होनेवाली है । ऐसी परिस्थिति में लोग क्या करते हैं ?
(A) कालाबाजार
(B) नफाखोरी
(C) सट्टाखोरी
(D) संग्रहखोरी
उत्तर:
(D) संग्रहखोरी

प्रश्न 4.
15 वी मार्च का दिन भारत में किस रूप में मनाया जाता है ?
(A) ग्राहक अधिकार दिवस
(B) विश्व ग्राहक दिवस
(C) ग्राहक जाग्रति दिवस
(D) राष्ट्रीय ग्राहक अधिकार दिवस
उत्तर:
(B) विश्व ग्राहक दिवस

प्रश्न 5.
केन्द्र सरकार ने ग्राहक संबंधी कानून के नियमों के लिए कौन-सी संस्था स्थापित की थी ?
(A) ग्राहक तकरार निवारण तंत्र
(B) राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग
(C) राष्ट्रीय ग्राहक कमिशन
(D) ग्राहक सुरक्षा आयोग
उत्तर:
(C) राष्ट्रीय ग्राहक कमिशन

प्रश्न 6.
ग्राहक शिक्षण-जागृति के लिए कौन-सी सामयिक प्रकाशित होती है ?
(A) इनसाइट
(B) ग्राहक जागृति मंत्र
(C) ग्राहक शिक्षण
(D) कन्ज्युमर एक्स
उत्तर:
(A) इनसाइट

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प्रश्न 7.
खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता का नियमन करनेवाली स्वैच्छिक संस्था कौन-सी है ?
(A) BIS
(B) CAC
(C) ISO
(D) FPO
उत्तर:
(B) CAC

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