Gujarat Board GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 12 मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई, पग धुंघरू बांधि मीरां नाची Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 12 मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई, पग धुंघरू बांधि मीरां नाची
GSEB Class 11 Hindi Solutions मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई, पग धुंघरू बांधि मीरां नाची Textbook Questions and Answers
अभ्यास
कविता के साथ :
प्रश्न 1.
मीरा कृष्ण की उपासना किस रूप में करती है ? वह रूप कैसा हैं ?
उत्तर :
मीरा कृष्ण की उपासना अपने पति के रूप में करती हैं । उनके सगुण साकार रूप का वर्णन करते हुए मीरा कहती हैं वे गिरि को धारण करनेवाले गिरिधर हैं । वे अपने सिर पर मोर-मुकुट धारण करते हैं । वह अपने आपको कृष्ण की दासी बताती हैं ।
प्रश्न 2.
भाव और शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
क. अंसुवन जल सींचि-सीचि, प्रेम-बेलि बोयी
अब त बेलि फैली गई, आणंद-फल होयी ।
भाव : मीरा ने कृष्ण-प्रेम रूपी लता को साधारण जल से नहीं वरन् आँसूरूपी जल से सिंचा है अर्थात् कृष्ण विरह में उसने क्याक्या नहीं सहा है । उनके अनन्य प्रेम की प्रगाढ़ता अकल्पित है । अब वह बेल पुष्पित पल्लवित हो रही है, फैल रही है । उस पर आनंद रूपी फल लग रहे हैं अर्थात् वह श्याम के रंग में वह ऐसी रंग गई है कि वह श्याममय हो गई हैं, आनंदमय हो गई हैं ।
इस पद में भक्ति की चरम-सीमा है । विरह के आँसुओं से मीरा ने कृष्ण-प्रेम की बेल बोयी है । अब यह बेल बड़ी हो गई है और आनंद-रूपी फल मिलने का समय आ गया है । इस पद में मीरा का माधुर्यभाव व्यक्त हुआ है ।
शिल्प सौंदर्य – सींचि-सींचि में पुनरूक्तिप्रकाश अलंकार है ।
- सांगरूपक अलंकार है
- प्रेम-बेलि, आणंद-फल, असुवन जल
- राजस्थानी मिश्रित ब्रज भाषा है ।
- अनुप्रास अलंकार है – बेलि-बोयी
- संमीतात्मकता है ।
ख. दूध की मथनिया बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी ।
भाव : मीरा कहती है कि मैंने कृष्ण के प्रेम रूप दूध को भक्तिरूपी मथानी में बड़े प्रेम से बिलोया है । मैंने दही से सारतत्त्व अर्थात् घी को निकाल लिया है और छाछ रूपी सारहीन तत्त्वों को छोड़ दिया है । अर्थात् कृष्ण के प्रेम में अपने-आपको आलोड़ितविलोड़ित करके यह जान लिया है कि श्याम की शरण ही जगत का सार है ।
शेष सबकुछ सारहीन है, निरर्थक है, व्याज्य है । इन पंक्तियों में कवयित्री ने दूध की मथानी से भक्ति रूपी घी निकाल लिया तथा सांसारिक सुखों की छाछ के समान छोड़ दिया । इस प्रकार उन्होंने भक्ति की महिमा को व्यक्त किया है । श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ भक्ति व्यक्त हुई है। शिल्प सौंदर्य : अन्योक्ति अलंकार है ।
राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है ।
- प्रतीकात्मक है ‘घी’ भक्ति का तथा ‘छाछ’ सांसारिकता का प्रतीक है ।
- दधि, घृत आदि तत्सम शब्द हैं ।
- संगीतात्मकता है, गेयता है ।
प्रश्न 3.
लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं ?
उत्तर :
बायरी अर्थात् पागल लोगों ने मीरा को बावरी इसलिए कहा कि यह कृष्ण के प्रेम में दीवानी हो चुकी थी । उन्हें किसी प्रकार की सुद्ध-बुद्ध ही नहीं रह गई थी । वह कृष्णमय हो चुकी थी । इसीलिए तो उन्होंने राजघराने को छोड़ दिया था । साधु-संतों के साथ रहने लगी थी । न जाने कितनी लोक निंदाएँ सहीं । अपनी कुल, परिवार और परंपरा की परवाह किए बिना पैरों में धुंघरू बाँधकर नाचने लगी । अपनी जान की भी परवाह नहीं की । जहर का प्याला हो या सांप का पिटारा हो कृष्ण प्रेम में सबको सहर्ष स्वीकारा । यह प्रेम की पराकाष्ठा है, चरमसीमा है । इसलिए लोग मीरा को बावरी कहते हैं ।
प्रश्न 4.
‘विस का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरा हँसी’ इसमें क्या व्यंग्य छिपा है ?
उत्तर :
राजघराने को छोड़कर साधु-संतों के साथ मंदिर-मंदिर पैरों में घुघरू बाँधकर नाचनेवाली राजवधू को राणा कैसे सह सकते थे । उन्होंने मीरा को मारने के लिए विष का प्याला भेजा । मगर मीरा अपने प्राणों की परवाह किए बिना विष का प्याला गटगटा गयी । उसे अपने कृष्ण पर भरोसा था । उनकी हँसी में यह व्यंग्य निहित है कि कृष्ण के प्रति निष्काम भक्ति करनेवाले लोगों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
प्रश्न 5.
मीरा जगत को देखकर क्यों रोती है ?
उत्तर :
मीरा ने जगत का सारतत्त्व – कृष्ण के मर्म को समझ लिया था । इसलिए राजपाट छोड़कर कृष्णमय हो गयी थी । उसे मालूम था कि भौतिक सुख-सुविधाएँ अनित्य हैं, व्यर्थ हैं । जब वह संसार के लोगों को इस मिथ्या मोह-माया में उलड़ो हुए देखती है तो उन्हें लगता है कि ये अपने अमूल्य जीवन को व्यर्थ ही गँवा रहे हैं । ये लोग जो मिथ्या है उसे ही सच समझा बैठे हैं । यह देखकर मीरा रोती है ।
पद के आस-पास
प्रश्न 1.
कल्पना करें, प्रेम प्राप्ति के लिए मीरा को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा ।
उत्तर :
प्रेम प्राप्ति के लिए मीरा को अनेक प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पड़ा होगा, जैसे कि –
- दाम्पत्य जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा ।
- परिवारवालों की ओर से अनेक प्रकार की पाबंदियों का सामना करना पड़ा होगा ।
- परिवारजनों की उपेक्षा और ताने सहने पड़े होंगे ।
- समाज में लोकनिंदा की शिकार हुई होंगी ।
- राजघराने को छोड़कर मंदिर-मठों में रहते हुए अनेक प्रकार की तकलीफें पड़ी होंगी ।
- राणा की ओर से उन्हें मारने के कई दुष्प्रयासों का सामना करना पड़ा होगा ।
- भूख, प्यास तथा अन्य कई शारीरिक, मानसिक यातनाओं का सामना करना पड़ा होगा ।
प्रश्न 2.
लोक-लाज खोने का अभिप्राय क्या है ?
उत्तर :
लोक-लाज खोना अर्थात् समाज विरोधी कार्य करके, समाज की मर्यादाओं को तोड़कर बेशर्म होना । मीरा कृष्ण के प्रेम में बेहद पागल थी । इस पागलपन में उन्होंने तमाम प्रकार की मर्यादाओं को तोड़ दिया था । मीरा . राजघराने से संबंध रखती थीं, जहाँ महिलाओं को पर्दे में रहना होता था । ऐसे में पग में धुंघरू बाँधकर साधु-संतों के साथ मंदिरों में नाचनेवाली को कैसे अच्छी नजर से देखा जा सकता है ? यही कारण है कि मीरा को किसी ने बावरी कहा तो किसी ने कुलनासी ।।
प्रश्न 3.
मीरा ने ‘सहज मिले अविनासी’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
अविनासी अर्थात् जिसका कभी विनाश न हों, जो अनश्वर है, अमर है, वही अविनासी है । कृष्ण अविनासी हैं । मीरा के अराध्य हैं । ऐसा अविनासी सहज ही नहीं मिलता । मीरा की तरह एकनिष्ठ, निष्काम और अनन्य समर्पण भाव से ही वह अविनासी अपने भक्त को सहज ही मिल जाते हैं ।
प्रश्न 4.
‘लोग कहै, मीरा भइ बावरी, न्यात कहै कुल-नासी’ मीरा के बारे में लोग (समाज) और न्यात (कुटुंब) की ऐसी धारणा क्यों
उत्तर :
मीरा के बारे में लोग (समाज) और न्यात (बिरादरी) की धारणाएँ अच्छी नहीं थीं । इसका कारण यह था कि समाज के लोग भौतिक सुख-सुविधा, सत्ता-सम्पन्नता आदि को ही सच मानते हैं, सबकुछ मानते हैं । जब कि मीरा इन सबसे ऊपर उठकर राजघराने को छोड़कर गलियों में भटकती रहती थीं
। अतः नासमझ लोग मीरा की एकनिष्ठ भक्ति को समझ नहीं सके अतः वे उसे बावली कहते थे । इधर बिरादरी के लोग उसे कुल-नासी कहते थे । क्योंकि मीरा ने अपने परिवार की तमाम मर्यादाओं (पर्दाप्रथा न मानना आदि) को तोड़ दिया था ।
Hindi Digest Std 11 GSEB मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई, पग धुंघरू बांधि मीरां नाची Important Questions and Answers
पद के साथ
प्रश्न 1.
‘प्रेम-बेलि’ का रूपक समझाइए ।
उत्तर :
मीरा ने प्रेम को एक लता का रूपक दिया है । यह लता साधारण लता नहीं है, प्रेम-लता है । अतः साधारण जल से नहीं आँसुओं से सिंची जाती है । अर्थात् प्रेम में अनेक कठिनाइयों को सहन करना पड़ता है । अनेक प्रकार का त्याग और बलिदान करना पड़ता है । विरह में तपना पड़ता है । तब जाकर वह लता पुष्पित, पल्लवित होती हैं ।
प्रश्न 2.
‘भगत देखि राजी हुई, जगत देखि रोयी’ का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
मीरा कृष्ण को ही जगत का सर्वस्व और सारतत्त्व समझती थी । इसीलिए कृष्णभक्ति में तन्मय भगत (भक्तों) को देखकर वह प्रसन्न होती थीं । जबकि सांसारिक मोह-माया में उलझे हुए जगत (लोगों) को देखकर उनकी मूर्खता पर रो पड़ती थीं।
प्रश्न 3.
आनंद फल की प्राप्ति के लिए मीरा ने क्या किया ?
उत्तर :
आनंद फल की प्राप्ति के लिए उन्होंने कुल की मर्यादा त्यागी, परिवार के ताने सहे, साथ ही संतों की संगति की । उन्होंने आँसुओं
से प्रेम-घेल को सींचा, अनेक प्रकार के कष्ट सहे, लोकनिंदा सही तब जाकर उन्हें आनंद-फल प्राप्त हुआ ।
योग्य विकल्प पसंद करके रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए ।
प्रश्न 1.
मीराबाई का जन्म सन् ………. में हुआ था ।
(A) 1498
(B) 1499
(C) 1497
(D) 1496
उत्तर :
मीराबाई का जन्म सन् 1498 में हुआ था ।
प्रश्न 2.
‘मीरा पदावली’, ‘नरसीजी-रो-मोहरो’ रचना की कवयित्री . ………….. हैं ।
(A) मीराबाई
(B) सुभद्राकुमारी चौहान
(c) निर्मला पुतुल
(D) महादेवी वर्मा
उत्तर :
‘मीरा पदावली’, ‘नरसीजी-रो-मोहरो’ रचना की कवयित्री मीराबाई हैं ।
प्रश्न 3.
मीराबाई की मृत्यु सन् …………….. में हुई थी ।
(A) 1555
(B) 1546
(c) 1556
(D) 1545
उत्तर :
मीराबाई की मृत्यु सन् 1546 में हुई थी।
प्रश्न 4.
मीराबाई के पिताजी का नाम … …….. था ।
(A) रावदूदाजी
(B) वीरमदेव
(C) रत्नसिंह
(D) विक्रमजीत
उत्तर :
मीराबाई के पिताजी का नाम रत्नसिंह था ।
प्रश्न 5.
मीराबाई का विवाह राणा सांगा के बड़े पुत्र कुंवर …………… से हुआ था ।
(A) विक्रम
(B) रत्नसिंह
(C) वीमलदेव
(D) भोजराज
उत्तर :
मीराबाई का विवाह राणा सांगा के बड़े पुत्र कुंवर भोजराज से हुआ था ।
प्रश्न 6.
मीराबाई के गुरु संत कवि …………… माने जाते हैं ।
(A) कबीर
(B) रैदास
(C) मलूकदास
(D) दादू दयाल
उत्तर :
मीराबाई के गुरु संत कवि रैदास माने जाते हैं ।
प्रश्न 7.
मीरा …………… को अपना सर्वस्व और पति मानती हैं ।
(A) भोजराज
(B) कृष्ण
(C) विष्णु
(D) शंकर
उत्तर :
मीरा कृष्ण को अपना सर्वस्व और पति मानती है ।
प्रश्न 8.
मीरा ने अपने ………… से कृष्ण प्रेमरूपी बेल को सींचा है ।
(A) जल
(B) गंगाजल
(C) आँसुओं
(D) कोई नहीं
उत्तर :
मीरा ने अपने आँसुओं से कृष्ण प्रेमरूपी बेल को सींचा है ।
प्रश्न 9.
मीरा …………. को देखकर प्रसन्न होती है ।
(A) भक्तों
(B) परिवारजनों
(C) पति
(D) पिता
उत्तर :
मीरा भक्तों को देखकर प्रसन्न होती है ।
प्रश्न 10.
मीरा ………….. के अज्ञान व दुर्दशा को देखकर रोती है ।
(A) परिवार
(B) पति
(C) जगत
(D) तीनों
उत्तर :
मीरा जगत के अज्ञान व दुर्दशा को देखकर रोती है ।
प्रश्न 11.
मीरा अपने पैरों में घुघरू बाँधकर ………….. के सामने नाचने लगीं ।
(A) कृष्ण
(B) लोगों
(C) भक्तों
(D) परिवार
उत्तर :
मीरा अपने पैरों में घुघरूँ बाँधकर कृष्ण के सामने नाचने लगीं ।।
प्रश्न 12.
लोग मीरा को …………… कहते हैं ।
(A) भक्तिन
(B) पतिव्रता
(C) वीरांगना
(D) बावरी
उत्तर :
लोग मीरा को बावरी कहते हैं ।
प्रश्न 13.
न्यात (बिरादरी) के लोग मीरा को …………… कहते हैं ।
(A) कुलनासी
(B) डायन
(C) सत्ती
(D) कोई नहीं
उत्तर :
न्यात (बिरादरी) के लोग मीरा को कुलनासी कहते हैं ।
प्रश्न 14.
राणा ने मीरा को मारने के लिए ……………… का प्याला भेजा ।
(A) अमृत
(B) विष
(C) मदिरा
(D) रस
उत्तर :
राणा ने मीरा को मारने के लिए विष का प्याला भेजा ।
अपठित पद्य
इस कविता को ध्यान से पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिनिए ।
वह तोड़ती पत्थर ।
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर ।
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार,
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार :
सामने तरु मालिका अट्टालिका, प्राकार ।
चढ़ रही थी धूप;
गर्मियों के दिन दिवा
का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू,
रूई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगीं छा गयीं,
प्रायः हुई दुपहर :
वह तोड़ती पत्थर ।
देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोयी नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार
एक क्षण के बाद वह काँपी सुधर,
दुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा
– ‘मैं तोड़ती पत्थर !’ – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
प्रश्न 1.
पत्थर तोड़ती खी के लिए कवि ने किन विशेषणों का प्रयोग किया है ?
उत्तर :
पत्थर तोड़ती स्त्री के शरीर के लिए कवि ने श्याम (तन), यौवन के लिए भरपूर बँधा, नयन के लिए नत (झुकी), कर्म के लिए प्रिय तथा मन के लिए रत (लगा हुआ) विशेषणों का प्रयोग किया है ।
प्रश्न 2.
दोपहर की गर्मी का वर्णन कवि ने किस तरह किया है ?
उत्तर :
कवि कहता है कि गर्मियों के दिन है । सूर्य तमतमाया हुआ (क्रोधित) है । इसी बीच झुलसा देनेवाली लू चल दी । पृथ्वी जलती हुई रुई जैसी गर्म हो गई है । चारों ओर गर्द की चिनगारी छा गई है । अर्थात् प्रचंड गर्मी और लू से वातावरण से मानो आग झर रही है।
प्रश्न 3.
पत्थर तोड़ती स्त्री ने कवि की ओर किस दृष्टि से देखा ?
उत्तर :
पत्थर तोड़ती स्त्री ने कवि को कातर दृष्टि से देखा । जैसे कोई स्त्री मार खाने के बाद रो न पाई हो ।
प्रश्न 4.
‘दुलक माथे से गिरे सीकर’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
गर्मी और श्रम के प्रभाव से पत्थर तोड़ती स्त्री के माथे से पसीना चू रहा था ।
प्रश्न 5.
‘मैं तोड़ती पत्थर’ का भाव स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
कविता के आरंभ में ‘वह तोड़ती पत्थर’ में कवि द्वारा स्त्री की वेदना का अवलोकन है जब कि कविता के अंत में ‘मैं तोड़ती पत्थर’ में स्त्री मानों यह कह रही कि ‘विषमता के पत्थरों को तोड़ रही हैं।
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई, पग धुंघरू बांधि मीरां नाची Summary in Hindi
कवयित्री परिचय
नाम – मीराबाई
जन्म – सन् 1498, कुड़की गाँव (मारवाड़ रियासत)
प्रमुख रचनाएँ – मीरा पदावली (मीराबाई की पदावली)
– नरसीजी-रो-मोहरो
मृत्यु – सन् 1546
मीराबाई जोधपुर के प्रसिद्ध महाराज राव जोधाजी के सुपुत्र राव दूदाजी की पौत्री थी । राव दूदाजी ने ही अजमेर के मुस्लिम सूबेदार में मेड़ता प्रान्त छीनकर उसमें मेड़ता नगर बसाया था । इसी वजह से उनके वंशज मेड़तिया शाखा के राठौर प्रसिद्ध हुए और मीरा को भी ससुराल में ‘मेड़ती’ कहते थे । राव दूदाजी के पुत्र रत्नसिंह की इकलौती सन्तान मीराबाई थीं ।
बचपन से ही मीराबाई को श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम था । कहा जाता है कि राव रत्नसिंह के घर पधारे एक साधु के पास श्रीकृष्ण की सुन्दर मूर्ति देखकर उसे लेने के लिए बालिका मीराबाई मचल उठी । साधु के चले जाने पर मीरा ने खाना-पीना त्याग दिया । साधु को स्वप्न में आदेश – मिलने पर वह आकर मूर्ति मीरा को दे गया ।
एक अन्य घटना में पड़ोस के एक विवाह-प्रसंग पर माँ से बाल मीरा ने पूछा – ‘माँ मेरा यर कौन है ? माता के कृष्ण-मूर्ति की ओर संकेत करने पर मीरा ‘गिरधर गोपाल’ को अपना बर मानकर उन्हीं में लीन रहने लगी। लड़कपन में चार-पाँच वर्ष की आयु में ही मीरा की माँ की मृत्यु हुई और मीरा अपने बाबा (पितामह) राव दूदाजी के घर रहने लगी । उनकी संगत से मीरा में भी भगवद् भक्ति बढ़ती ही रही ।
जब मीरा लगभग 14 वर्ष की हुई तब उनका विवाह मेवाड़ के विख्यात राणा साँगा के बड़े सुपुत्र कुंवर भोजराज से हुआ । शादी के 7-8 वर्ष बाद ही इनके पति का देहांत हो गया । युवावस्था में विधवा मीरा गहन शोक में डूबकर शनैः शनैः कृष्णनुरागिनी बन गई । वैधव्य के पाँच वर्ष पश्चात् पिता और तत्पश्चात्, महाराणा साँगा के देहावसान से भी मीरा में संसार के प्रति विरक्ति एवं श्रीकृष्ण प्रभु के प्रति अनुरक्ति में वृद्धि हुई ।
इसके बाद तो मीरा लोकलज्जा त्यागकर केवल साधु-संगति एवं भगवद् भक्ति में ही रहने लगीं । अब तो वे साधु-संतों के बीच मंदिरों में पाँवों में धुंघरू बाँधकर नाचने भी लगी । उनके इस कीर्ति के फैलते ही उनके सत्संग में एवं दर्शनार्थ लोगों की भारी भीड़ लगने लगी । इन सबसे महाराणा रत्नसिंह . के भाई शासक विक्रमाजीत सिंह चिढ़ने लगे थे और उन्होंने राजघराने की मर्यादावश मीराबाई को अनेक कष्ट देना आरंभ किया ।
कहते हैं उन्होंने मीरा के लिए विष का प्याला, सर्प एवं सूली भी भेजी थी । इन संकटों से सकुशल पार उतरी तो उनके चाचा राव वीरमदेवजी के बुलावे पर पीहर मेड़ता में भगवद्-भक्ति में सुविधा से रहने लगी । पर अव्यवस्था से मेड़ता के बुरे दिन आए और जोधपुर के राव मालदेव ने राव वीरमदेव जी से मेड़ता छीन लिया, तो मीरा मेड़ता से तीर्थयात्रा करते हुए वृंदावन पहुँच गई ।
वृंदावन में उस समय प्रसिद्ध रूपगोस्वामी जी के भतीजे चैतन्य-सम्प्रदायी श्री जीवगोस्वामी जी के पास गईं, तो उन्होंने कहलवाया कि वे स्त्रियों से नहीं मिलते । परन्तु मीरा ने कहलवाया कि वृंदावन में तो भगवान कृष्ण ही एक मात्र पुरुष हैं और अन्य सभी लोग केवल गोपी का स्त्री रूप हैं । इससे अत्यधिक प्रभावित गोस्वामी जी ने मीरा का स्वागत किया ।
मीरा सगुण धारा की महत्त्वपूर्ण भक्त कवयित्री हैं । कृष्ण की उपासिका होने के कारण उनकी कविता में सगुण भक्ति मुख्य रूप से मौजूद है । लेकिन निर्गुण भक्ति का प्रभाव भी मिलता है । संत कवि रैदास उनके गुरु माने जाते हैं । बचपन से ही उनके मन में कृष्ण भक्ति की भावना जन्म ले चुकी थी । इसलिए वे कृष्ण को ही अपना आराध्य और पति मानती रहीं ।
उन्होंने लोकलाज और कुल की मर्यादा के नाम पर लगाए गए सामाजिक और वैचारिक बंधनों का हमेशा विरोध किया । पर्दा प्रथा का भी पालन नहीं किया तथा मंदिर में सार्वजनिक रूप से नाचने-गाने में भी कभी हिचक महसूस नहीं की । मीरा मानती थीं कि महापुरुषों के साथ संवाद (जिसे सत्संग कहा जाता था) से ज्ञान प्राप्त होता है और ज्ञान से मुक्ति मिलती है ।
अपनी इन मान्यताओं को लेकर वे दृढ़निश्चयी थीं । निंदा या बंदगी उनको अपने पथ से विचलित नहीं कर पाई । जिस पर विश्वास किया, उस पर अमल किया । इस अर्थ में उस युग में जहाँ रूढ़ियों से ग्रस्त समाज का दबदबा था, वहाँ मीरा स्त्री मुक्ति की आवाज बनकर उभरीं । मीरा की कविता में प्रेम की गंभीर अभिव्यंजना है । उसमें विरह की वेदना है और मिलन का उल्लास भी । मीरा की कविता का प्रधान गुण सादगी और सरलता है । कला का अभाव ही उसकी सबसे बड़ी कला है ।
उन्होंने मुक्तक गेय पदों की रचना की । लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत दोनों क्षेत्रों में उनके पद आज भी लोकप्रिय हैं । उनकी भाषा मूलतः राजस्थानी है तथा कहीं-कहीं ब्रजभाषा का प्रभाव है । कृष्ण के प्रेम की दीवानी मीरा पर सूफियों के प्रभाव को भी देखा जा सकता है । मीरा की कविता के मूल में दर्द है । वे बार-बार कहती हैं कि कोई मेरे दर्द को पहचानता नहीं न शत्रु न मित्र । हिन्दी भक्ति साहित्य की सगुण शाखा में कृष्ण भक्ति की अनन्य उपासिका मीराबाई एक महत्त्वपूर्ण भक्त कवयित्री हैं ।
काव्य का सार :
यहाँ मीरा के दो पद दिए गए हैं । प्रथम पद में कृष्ण के एकनिष्ठ, प्रेम में डूबी मीरा की अनन्य भक्तिभाव के दर्शन होते हैं । वह अपने बालपन से ही कृष्ण के प्रेम में डूबी हुई थी । उन्होंने मन, कर्म और वचन से कृष्ण को अपना पति स्वीकार कर लिया था । एक जगह पर यह कहती भी है – ‘माई री मैं तो सुपणे वरी गोपाल ।’ अर्थात् मैंने सपने में ही श्रीकृष्ण का वरण कर लिया है ।
यहाँ भी वह कृष्ण के सगुण साकार रूप का उल्लेख करते हुए कहती है कि जिसके सिर पर मोर मुकुट है (कृष्ण) मेरा पति वही है । मेरा पति तो गिरि को धारण करनेवाला गोपाल के सिवा दूसरा कोई नहीं । कृष्ण प्रेम में वह ऐसी दीवानी हुई है कि अब उन्हें कुल की लाज-मर्यादा की परवाह छोड़ दी है । वे बड़े साहस के साथ कहती है – ‘कहा करिहै कोई’ अर्थात् अब मेरा कोई क्या बिगाड़ सकता है ।
मीरा ने संतों के साथ बैठ-बैठकर लोक-लाज खो दी है । उन्होंने कृष्ण-प्रेम रुपी लता को आँसू रूपी जल से सींच-सींचकर बोयी – है । अब वह बेल फूलने-फलने लगी है, आनंदरूपी फल देने लगी है । वे कहती है कि मैंने कृष्ण प्रेम रूपी दूध को भक्ति रूपी मंथनी में बड़े प्रेम से बिलोया है । अर्थात् कृष्ण के प्रति उनका यह प्रेम आकस्मिक और सतही नहीं हैं ।
वरन् उनके हृदय का उल्लास है। उन्होंने यह मार्ग जानबूझ कर अपनाया है । इसलिए तो वह कहती है मैंने दही को मथकर उसमें से घी निकाल लिया है और छाछ को छोड़ दिया है । अर्थात् जगत को सार रूप तत्त्व-कृष्ण-आनंद रूपी सार तत्त्व को ग्रहण कर लिया है और जगत के व्यर्थ कार्यों की व्यस्तता और सांसारिक मोह-माया को छोड़ दिया है ।
यही कारण है कि वे भगत (संतजन, साधुजन) को देखकर राजी होती हैं, प्रसन्न होती हैं और लोगों को मोह-माया में लिप्त देखकर रोती है । मीरा अपने आप को कृष्ण की दासी कहती है और गिरिधर से अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती है । दूसरे पद में मीरा कृष्णमय दिखाई देती है । वह अपने पैरों में घुघरू बाँधकर कृष्ण के समक्ष तन्मयता से नाचने लगी ।
ऐसा – करके उन्होंने इस बात को सही प्रमाणित कर दी है कि वे श्रीकृष्ण की हैं और कृष्ण उनके । अब लोग चाहे उन्हें पागल कहें तो कहें बिरादरी के लोग उन्हें कुलनासी कहें तो कहें उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता । मीरा का विवाह चितौड़ के राजघराने में हुआ था । वह विवाहिता थी ।
राजपूत राजा यह कैसे स्वीकार करते कि मीरा यूँ नाच-गान करे ? इसीलिए राणा ने उसे मारने के लिए जहर का – प्याला भेजा । प्रेम दीवानी मीरा ने उसे हँसते हुए पी लिया । मीरा कहती है कि उसका प्रभु गिरिधर बड़ा चतुर है । मुझे सहज ही उसके दर्शन हो गए ।
पद व्याख्या :
पद 1
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
छोड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई ?
संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी
अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोयी
अब त बेलि फैलि गयी, आणंद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
दघि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरा लाल गिरधर ! तारो अब मोही
मीरा के प्रस्तुत पद में माधुर्य भक्ति के दर्शन होते हैं । मीरा ने गिरिधर गोपाल को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है । वह स्पष्ट रूप से कहती है मेरे तो गिरिधर गोपाल ही पति हैं । उनके अलावा दूसरा और कोई नहीं । प्रेम दीवानी मीरा अपने पति (अराध्य) श्रीकृष्ण का परिचय देते हुए कहती है कि जिसके सिर पर मोर मुकुट है वही मेरा पति है ।
यह बात वह बड़ी निर्भिकता से डंके की चोट पर करती है कि कुल की लाज-मर्यादा मैंने छोड़ दी है । ‘कहा करिहै कोई ?’ अर्थात् कोई मेरा क्या बिगाड़ लेगा । जिसे जो करना है कर ले । वह लोक-लाज की परवाह किये बिना संतों के साथ उठती-बैठती हैं । मीरा ने कृष्ण-प्रेमरूपी बेल को साधारण जल से नहीं वरन् आँसू रूपी जल से सींचा है अर्थात् कृष्ण के विरह में उसने क्या-क्या नहीं सहा ।
उनके अनन्य प्रेम की प्रगाढ़ता अकल्पित है । अब वह बेल पुष्पित-पल्लवित हो रही है, फैल रही है । उस पर आनंदरूपी फल लग रहे हैं । अर्थात् वह श्याम के रंग में वह ऐसी रंग गई है कि वह श्याममय हो गई है; आनंदमय हो गई है । आगे वह कहती है कि मैंने कृष्ण के प्रेमरूप दूध को भक्तिरूपी मंथानी में बड़े प्रेम से बिलोया है ।
मैंने दही से सार तत्त्व अर्थात् घी को निकाल लिया है और छाछरूपी सारहीन तत्त्वों को छोड़ दिया है । अर्थात् कृष्ण के प्रेम में अपने-आपको आलोड़ित-विलोड़ित करके यह जान लिया है कि श्याम की शरण ही जगत का सार है । शेष सब कुछ सारहीन है, निरर्थक है, त्याज्य है । इसीलिए वह कृष्णभक्तों को देखकर प्रसन्न होती हैं और संसार के लोगों को सांसारिक उलझनों में घिरा देखकर रोती हैं । वह अपने-आपको गिरधर की दासी बतलाती हैं और उन्हीं से विनय करती हैं कि इस भवरूपी सागर से मुझे तार दो, पार लगा दो ।
पद 2
पग धुंघरू बांधि मीरा नाची,
मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची
लोग कहै, मीरा भइ बावरी; न्यात कहै कुल-नासी
विस का प्याला राणा भेज्या, पीवत मीरा हाँसी
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी प्रस्तुत पद में प्रेम दीवानी मीरा का श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति-भाव प्रकट हुआ है । उन्होंने तमाम लोक-लाज कुल मर्यादा को त्यागकर पैरों में धुंघरू बाँध लिए हैं और कृष्ण के समक्ष नाचती हैं । ऐसा करके मीरा कृष्ण की हैं और कृष्ण उनके हैं यह प्रमाणित कर दिया है । लोग मीरा को बावरी (पागल) कहते हैं ।
बिरादरी के लोग उसे कुल का नाश करनेवाली कुलनासी कहकर संबोधित करते हैं । मगर मीरा को इसकी कोई परवाह नहीं । इधर राणा ने मीरा को खत्म कर देने के आशय से विष का प्याला भेजा । मीरा ने तो उसे हँसते हुए पी लिया । अंत में मीरा कहती है – मेरे प्रभु गिरधर नागर जो अविनासी हैं मुझे सहज ही मिल गए ।
शब्दार्थ :
- कानि – मर्यादा
- बेलि – बेल, लता
- छोयी – छाछ, सारहीन अंश
- साची – सच्ची
- गोपाल – गायें पालनेवाला, कृष्ण
- सोई – वही
- ढिग – साथ, पास
- विलोयी – मथी
- आपहि – अपने ही आप, बिना प्रयास, स्क्यं ही
- गिरधर – पर्वत को धारण करनेवाला यानी कृष्ण
- मोर मुकुट – मोर के पंखों का बना मुकुट
- जाके – जिसके
- छाँड़ि दयी – छोड़ दी
- कहा – क्या
- असुवन – आँसुओं
- मथनियाँ – मथानी
- दधि – दही
- काढ़ि लियो- निकाल लिया
- तारो – उद्धार
- पग – पैर
- भई – होना
- न्यात – परिवार के लोग, बिरादरी
- विस – जहर, विष
- हाँसी – हँस दी
- अविनासी – अमर
- करिहै – करेगा
- लोक-लाज – समाज की मर्यादा
- सीचि – सींचकर
- विलोयी – मथी
- घृत – घी
- डारि दयी – डाल दी, फेंक दिया
- मोहि – मुझे
- नारायण – ईश्वर
- बावरी – पागल
- कुलनासी – कुल का नाश करनेवाली
- पीवती – पीती हुई
- नागर – चतुर