Gujarat Board GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 3 अपू के साथ ढाई साल Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Aaroh Chapter 3 अपू के साथ ढाई साल
GSEB Class 11 Hindi Solutions अपू के साथ ढाई साल Textbook Questions and Answers
अभ्यास
पाठ के साथ
प्रश्न 1.
पथेर पांचाली फिल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक क्यों चला ?
उत्तर :
पथेर पांचाली फिल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक निम्नलिखित कारणों से चला –
- लेखक विज्ञापन कंपनी में काम करते थे। काम से फुर्सत मिलने पर ही शूटिंग की जाती थी।
- कलाकार को इकट्ठा करने में समय लग जाता था।
- पैसे का अभाव था।
- तकनीकि पिछड़ापन।
- सही दृश्य का अभाव रहना।
प्रश्न 2.
अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता ? – उसमें से ‘कंटिन्युइटी’ नदारद हो जाती’ – इस कथन के पीछे क्या भाव है ?
उत्तर :
पथेर पांचाली फिल्म के दृश्य में अपू के साथ काशफूलों के बन में शूटिंग करनी थी। सुबह शूटिंग करके शाम तक सीन का आधा भाग चित्रित हुआ। निर्देशक, छायाकार, छोटे अभिनेता-अभिनेत्री सभी इस क्षेत्र में नवागत होने के कारण बौराए हुए ही थे, बाकी का सीन बाद में चित्रित करने का निर्णय लेकर सब घर चले गए।
सात दिन बाद शूटिंग के लिए उस जगह गए. बीच के सात दिनों में जानवरों ने ये सारे काशफूल खा डाले थे। उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल नहीं बैठता। उसमें ‘कंटिन्युइटी’ नदारद हो जाती। दृश्य दर्शकों के गले नहीं उतरता, वह उन्हें अस्वाभाविक लगता।
प्रश्न 3.
किन दो दृश्यों में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शूटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है ?
उत्तर :
पथेर पांचाली फिल्म के एक दृश्य में श्रीनिवास नामक घूमते मिठाईवाले से मिठाई खरीदने के लिए अपू और दुर्गा के पास पैसे नहीं है। वे तो मिठाई खरीद ही नहीं सकते, इसलिए अपू और दुर्गा उस मिठाईवाले के पीछे-पीछे मुखर्जी के घर के पास जाते हैं। मुखर्जी अमीर आदमी हैं। उनका मिठाई खरीदना देखने में ही अपू और दुर्गा की खुशी है।
इस दृश्य का कुछ अंश कि फिल्मांकन होने के बाद शूटिंग कुछ महिनों तक के लिए स्थगित हो गई। पैसे हाथ में आने पर फिर जब उस गाँव में शूटिंग करने के लिए गए, तब खबर मिली कि श्रीनिवास मिठाईवाले की भूमिका जो व्यक्ति कर रहे थे, उनकी मृत्यु हो चुकी थी। अब पहलेयाले श्रीनिवास का मिलता-जुलता दूसरा आदमी ढूँढ़कर दृश्य का बाकी अंश चित्रित किया गया।
पहला शॉट – श्रीनिवास बाँसबन से बाहर आता है। दूसरा शॉट (नया आदमी) – श्रीनिवास कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर जाता है। यही कारण है कि दर्शक मूल श्रीनिवास और नये श्रीनिवास के बीच के अंतर को समझ नहीं पाते।
एक दृश्य में अपू खाते-खाते ही कमान से तीर छोड़ता है। उसके बाद खाना छोड़कर तीर वापस लाने के लिए जाता है। सर्वजया बाएँ हाथ में वह थाली और दाहिने हाथ में निवाला लेकर बच्चे के पीछे दौड़ती है, लेकिन बच्चे का भाव देखकर जान जाती है कि यह अब कुछ नहीं खाएगा। भूलो कुत्ता भी खड़ा हो जाता है।
उसका ध्यान सर्यजया के हाथ में जो भात की थाली है, उसकी ओर है। इसके बाद वाले शॉट में ऐसा दिखाना था कि सर्यजया थाली में बचा भात एक गमले में डाल देती है, और भूलो वह भात खाता है। लेकिन यह शॉट निर्देशक ले नहीं सके, क्योंकि सूरज की रोशनी और पैसे दोनों खत्म हो गए।
छह महिने बाद, फिर से पैसे इकट्ठा होने पर गाँव में उस सीन का बाकी अंश चित्रित करने के लिए गए। तब भूलो मर चुका था। फिर भूलो जैसे दिखनेवाले एक कुत्ते के साथ शूटिंग पूरी की गई। यह इतना स्वाभाविक था कि दर्शक मूल भूलो और नये भूलो को एक ही समझ लेता है।
प्रश्न 4.
“भूलो की जगह दूसरा कुत्ता क्यों लाया गया ? उसने फिल्म के किस दृश्य को पूरा किया ?
उत्तर :
भूलो की मृत्यु होने की वजह से उसके साथ किए हुए अधूरे शॉट को पूरा करने के लिए उसके जैसे दिखनेवाला दूसरा कुत्ता लाया गया। सर्वजया थाली में बचा भात एक गमले में डाल देती है और नया भूलो वह भात खाता है। यह दृश्य पूरा किया।
प्रश्न 5.
फिल्म में श्रीनिवास की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुज़र जाने के बाद किस प्रकार फिल्माया गया ?
उत्तर :
फिल्म में श्रीनिवास की भूमिका मिठाई बेचनेवाले की थी। उसके देहांत के बाद उसकी जैसी कद-काठी का व्यक्ति ढूँढ़ा गया। उसका चेहरा अलग था, परंतु शरीर श्रीनिवास जैसा ही था। ऐसे में फिल्मकार ने तरकीब लगाई। नया – आदमी कैमरे की तरफ पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर आता है अतः कोई भी अनुमान नहीं लगा पाता कि यह अलग व्यक्ति है।
प्रश्न 6.
बारिश का दृश्य चित्रित करने में क्या मुश्किल आई और उसका समाधान किस प्रकार हुआ ?
उत्तर :
फिल्मकार के पास पैसे का अभाव था, अतः बारिश के दिनों में शूटिंग नहीं कर सके। अक्टूबर माह तक उनके पास पैसे इकट्ठे हुए तो बरसात के दिन समाप्त हो चुके थे। शरद ऋतु में बारिश होना भाग्य पर निर्भर था। लेखक हर रोज अपनी टीम के साथ गाँव में जाकर बैठे रहते और बादलों की ओर टकटकी लगाकर देखते रहते।
एक दिन उनकी इच्छा पूरी हो गई। अचानक बादल छा गए और धुआँधार बारिश होने लगी। फिल्मकार ने इस बारिश का पूरा फायदा उठाया और दुर्गा और अपू का बारिश में भीगनेवाला दृश्य शूट कर लिया। इस बरसात में भीगने से दोनों बच्चों को ठंड लग गई, परंतु दृश्य पूरा हो गया।
प्रश्न 7.
किसी फिल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर :
किसी फिल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है –
- धन की कमी
- कलाकारों का चयन
- कलाकारों के स्वास्थ्य, मृत्यु आदि की स्थिति
- पशु-पात्रों के दृश्य की समस्या
- बाहरी दृश्यों हेतु लोकेशन ढूँढ़ना
- प्राकृतिक दृश्यों के लिए मौसम पर निर्भरता
- स्थानीय लोगों का हस्तक्षेप व असहयोग
- संगीत
- दृश्यों की निरंतरता हेतु भटकना।
पाठ के आसपास
प्रश्न 1.
तीन प्रसंगों में राय ने कुछ इस तरह की टिप्पणियों की हैं कि दर्शक पहचान नहीं पाते कि… या फिल्म देखते हुए इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया कि…. इत्यादि। ये प्रसंग कौन से हैं, चर्चा करें और इस पर भी विचार करें कि शूटिंग के समय की असलियत फिल्म को देखते समय कैसे छिप जाती है ?
उत्तर :
फिल्म शूटिंग के समय तीन प्रसंग प्रमुख हैं –
- भूलो कुत्ते के स्थान पर दूसरे कुत्ते को भूलो बनाकर प्रस्तुत किया गया।
- एक रेलगाड़ी के दृश्य को तीन रेलगाड़ीयों से पूरा किया गया ताकि धुआँ उठने का दृश्य चित्रित किया जा सके। यह दृश्य काफी बड़ा था।
- श्रीनिवास का पात्र निभानेवाले व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी। अतः उसके स्थान पर मिलती-जुलती कद-काठीवाले व्यक्ति से मिठाईवाला दृश्य पूरा करवाया गया। हालाकि उसकी पीठ दिखाकर काम चलाया गया।
शूटिंग के समय अनेक तरह की दिक्कतें आती है, परंतु निरंतरता बनाए रखने के लिए बनावटी दृश्य डालने पड़ते हैं। दर्शक फिल्म के आनंद में डूबा होता है, अतः उसे छोटी-छोटी बारीकियों का पता नहीं चल पाता। इसका सबसे बड़ा कारण है, सत्यजित राय जैसे समर्पित फिल्म निर्माताओं की कलात्मक सूझ-बूझ।
प्रश्न 2.
मान लीजिए कि आपको अपने विद्यालय पर एक डॉक्यूमैंट्री फिल्म बनानी है। इस तरह की फिल्म में आप किस तरह के दृश्यों को चित्रित करेंगे ? फिल्म बनाने से पहले और बनाते समय किन बातों पर ध्यान देंगे ?
उत्तर :
विद्यालय पर डॉक्यूमैंट्री फिल्म बनाने के लिए हमें अपने प्रधानाचार्य, शिक्षक, विद्यार्थी आदि की दिनभर की गतिविधियों के दृश्यों को चित्रित करेंगे। उन लोगों से कई सवाल जैसे – शिक्षा का महत्त्व, पंसदीदा विषय के बारे में पूछेगे और उन्हें चित्रित करेंगे। फिल्म बनाते समय हमें वास्तविकता और निरंतरता को बरकरार रखना होगा। हमें दृश्यों को इस तरह से पेश करना होगा ताकि वे काल्पनिक न लगें।
प्रश्न 3.
‘पथेर पांचाली फिल्म’ में इंदिरा ठाकरुन की भूमिका निभानेवाली अस्सी साल की चुन्नीबाला देवी ढाई साल तक काम कर सकीं। यदि आधी फिल्म बनने के बाद चुन्नीबाला देवी की अचानक मृत्यु हो जाती तो सत्यजित राय क्या करते ? चर्चा करें।
उत्तर :
यदि इंदिरा ठाकसन की भूमिका निभानेवाली अस्सी साल की चुन्नीबाला देवी की मृत्यु हो जाती तो सत्यजित राय उससे मिलती जुलती कद-काठी शक्ल की वृद्धा को ढूँढ़ते। यदि वह संभव नहीं हो पाता तो संकेतों के माध्यम से इस फिल्म में उनकी मृत्यु दिखाई जाती। कहानी में बदलाव किया जा सकता था।
प्रश्न 4.
पठित पाठ के आधार पर यह कह पाना कहाँ तक उचित है कि फिल्म को सत्यजित राय एक कला-माध्यम के रूप में देखते हैं, व्यावसायिक-माध्यम के रूप में नहीं ?
उत्तर :
यह बात पूर्णतया उचित है कि फिल्म को सत्यजित राय एक कला-माध्यम के रूप में देखते हैं, व्यावसायिक-माध्यम से नहीं। वे फिल्मों के दृश्यों के संयोजन में कोई लापरवाही नहीं बरतते। वे दृश्य को पूरा करने के लिए समय का इंतजार करते हैं। काशफूलवाले दृश्य के लिए उन्होंने साल भर का इंतजार किया। पैसे की तंगी के कारण वे परेशान हुए, परंतु उन्होंने किसी से पैसा नहीं माँगा। वे स्टूडियों के दृश्य के बजाय प्राकृतिक दृश्य फिल्माते थे। वे कला को साधना मानते थे। उनकी लोकप्रियता और शोहरत समर्पित कला-साधना का ही परिणाम है।
प्रश्न 5.
‘सुबोध दा’ कौन थे ? उनका व्यवहार कैसा था ?
उत्तर :
‘सुबोध दा’ 60-65 आयु के विक्षिप्त वृद्ध थे। वह हर वक्त कुछ-न-कुछ बड़बड़ाते रहते थे। पहले यह फिल्मवालों को मारने दौड़ते हैं, परंतु बाद में वह लेखक को वायलिन पर लोकगीतों की धुनें सुनाते हैं। वह आते-जाते व्यक्ति को रूजवेल्ट, चचिल, हिटलर, अब्दुल गफ्फार खान आदि कहते हैं। उनके अनुसार सभी पाजी और उसके दुश्मन हैं।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
पाठ में कई स्थानों पर तत्सम, तद्भव, क्षेत्रीय सभी प्रकार के शब्द एकसाथ सहज भाव से आए हैं। ऐसी भाषा का प्रयोग करते हुए अपनी प्रिय फिल्म पर एक अनुच्छेद लिखें।
उत्तर :
मेरी प्रिय फिल्म बागबान है। इस फिल्म में अपने बच्चों पर अपना सर्वस्व लुटाकर उनको यथासंभव जीवन की हर सुख-सुविधा प्रदान करनेवाले माता-पिता की जिम्मेदारियाँ सँभालने की बारी जब उन बच्चों पर आती है, तो उनको किस प्रकार अपने यही माता-पिता बोझ लगने लगते हैं इसी सर्वकालिक सत्य को आधार बनाकर इस फिल्म का निर्देशन किया गया है। इस फिल्म द्वारा आज के युवापीढ़ी को उनके माता-पिता के प्रति उनके कर्तव्य को याद दिलाने का प्रयास किया गया है।
प्रश्न 2.
हर क्षेत्र में कार्य करने या व्यवहार करने की अपनी निजी या विशिष्ट प्रकार की शब्दावली होती है। जैसे ‘अपू के साथ . ढाई साल’ पाठ में फिल्म से जुड़े शब्द शूटिंग, शॉट, सीन आदि। फिल्म से जुड़ी शब्दावली में से किन्हीं दस की सूची बनाइए।
उत्तर :
ग्लैमर, लाइट्स, सीन, रिकॉर्डिंग, कैमरा, फिल्म, हॉलीवुड, कट, अभिनेता, एक्शन, डबिंग, रोल, पटकथा आदि।
प्रश्न 3.
नीचे दिए गए शब्दों के पर्याय इस पाठ में ढूंढ़िए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
इश्तहार, खुशकिस्मती, सीन, वृष्टि, जमा
उत्तर :
- इश्तहार – विज्ञापन – विज्ञापन भी एक कला है।
- खुशकिस्मती – सौभाग्य – यह मेरा सौभाग्य है कि आपसे मुलाकात हुई।
- सीन – दृश्य – वाह ! क्या सुंदर दृश्य है।
- वृष्टि – बारिश – मुंबई की बारिश का कभी भरोसा नहीं किया जा सकता।
- जमा – इकट्ठा – शूटिंग देखने के लिए बहुत से लोग इकट्ठा हो गए।
Hindi Digest Std 11 GSEB अपू के साथ ढाई साल Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘वास्तुसर्प’ क्या होता है ? इससे लेखक का कार्य कब प्रभावित हुआ ?
उत्तर :
वास्तुसर्प वह होता है जो घर में रहता है। लेखक ने एक गाँव में मकान शूटिंग के लिए किराये पर लिया। इसी मकान के कुछ कमरों में शूटिंग का सामान था। एक कमरे में साउंड रिकार्डिग होती थी। जहाँ भूपेन बाबू बैठते थे। वे साउंड की गुणवत्ता बताते थे। एक दिन उन्होंने उत्तर नहीं दिया। जब लोग कमरे में पहुँचे तो साँप कमरे की खिड़की से नीचे उतर रहा था। इसी डर से भूपेन ने जवाब नहीं दिया।
प्रश्न 2.
सत्यजित राय को कौन-सा गाँव सर्वाधिक उपयुक्त लगा तथा क्यों ?
उत्तर :
सत्यजित राय को बोडाल गाँय शूटिंग के लिए सबसे उपयुक्त लगा। इस गाँव में अपू-दुर्गा का घर, अपू का स्कूल, गाँव के मैदान, खेत, आम के पेड़, बाँस की झुरमुट आदि सब कुछ गाँव में या गाँव के आसपास में ही था।
प्रश्न 3.
लेखक को धोबी के कारण क्या परेशानी होती थी ?
उत्तर :
लेखक बोडाल गाँव के जिस घर में शूटिंग करते थे, उसके पड़ोस में एक धोबी रहता था। वह अक्सर ‘भाइयों और बहनों’ कहकर किसी राजनीतिक मामले पर लंबा-चौड़ा भाषण शुरू कर देता था। शूटिंग के समय उसके भाषण से साउंड रिकार्डिंग का काम प्रभावित होता था। बाद में धोबी के रिश्तेदारों ने उसे सँभाला।
प्रश्न 4.
पुराने मकान में शूटिंग करते समय फिल्मकार को क्या-क्या कठिनाइयाँ आई ?
उत्तर :
पुराने मकान में शूटिंग करते समय फिल्मकार को निम्नलिखित कठिनाइयाँ आई पुराना मकान खंडहर था। उसे ठीक कराने में काफी पैसा खर्च हुआ और एक महीना उस घर की मरम्मत में ही चला गया। मकान के एक कमरे में साँप निकल आया, जिसे देखकर आवाज रिकार्ड करनेवाले की बोलती बंद हो गई।
ससंदर्भ व्याख्या कीजिए। “एक दिन शॉट के बाद मैंने साउंड के बारे में उनसे सवाल किया, लेकिन कुछ भी जवाब नहीं आया। फिर मैंने एक बार पूछा, ‘भूपेन बाबू, साउंड ठीक है न ?’ इस पर भी जवाब न आने पर मैं उनके कमरे में गया, तो देखा कि एक बड़ा-सा साँप उस कमरे की खिड़की से नीचे उतर रहा था। वह साँप देखकर भूपेन बाबू सहम गए थे और उनकी बोलती बंद हो गई थी।”
संदर्भ : उपर्युक्त गद्यांश ‘आरोह’ नामक पुस्तक में से लिया गया है। पाठ का नाम ‘अपू के साथ ढाई साल जिसके लेखक सत्यजित राय है। यहाँ लेखक एवं साउंड रिकॉर्डिस्ट भूपेन बाबू के साथ घटित एक घटना के बारे में लिखा गया है।।
व्याख्या : एक दिन जब लेखक किसी सीन की शूटिंग कर रहे थे तब बगल के एक कमरे में साउंड-रिकॉर्डिस्ट भूपेन बाबू साउंड रिकार्ड कर रहे थे। जब दृश्य की शूटिंग खत्म हो गई तब लेखक ने भूपेन बाबू से पूछा की साउंड ठीक है कि नहीं पर भूपेन बाबू ने कोई जवाब नहीं दिया। लेखक ने जब दुबारा पूछा तब भी कोई जवाब नहीं आया।
लेखक चिंता में पड़ गये और दूसरे कमरे में जाकर देखा तो वे चौंक उठे। उन्होंने देखा कि एक बड़ा-सा साँप खिड़की से नीचे उतर रहा है और कमरे में घुस रहा है उसे देख लेने के कारण भूपेन बाबू की बोलती बंद हो गई थी। वह एक वास्तुसर्प या जो उस घर में बहुत समय से रहता था। लेखक और उनकी टीम ने उसे मारना भी चाहा पर गाँववालों ने ऐसा करने से उन्हें रोक दिया।
विशेष :
- यहाँ हमें लेखक ने वन्य जीवों के प्रति गाँव के लोगों का स्नेह एंव अहिंसा का भाव दिखाना चाहा है।
- लेखक ने यहाँ पर्यावरण से खिलवाड़ न करने की भावना दिखाई है।
- फिल्म निर्माण में आनेवाली दिक्कतों की ओर इशारा है।
- सत्यजित राय की कला के प्रति सच्ची समर्पण भावना दिखाई देती है क्योंकि फिल्म की शूटिंग स्टूडियो में न करके दृश्य के अनुसार प्राकृतिक (Real) लोकेशन पसंद करते थे।
एक-एक वाक्य में उत्तर दें।
प्रश्न 1.
लेखक को अपू की भूमिका निभाने के लिए कितने वर्ष के लड़के की तलाश थी ?
उत्तर :
लेखक को अपू की भूमिका निभाने के लिए छह वर्ष के लड़के की तलाश थी।
प्रश्न 2.
‘पथेर पांचाली’ फिल्म की शूटिंग का काम कितने वर्ष तक चला ?
उत्तर :
‘पथेर पाचाली’ फिल्म की शूटिंग का काम ढाई वर्षों तक चला।
प्रश्न 3.
लेखक इंटरव्यू किस जगह पर करते थे ?
उत्तर :
लेखक इंटरव्यू रासबिहारी एवेन्यू की एक बिल्डिंग में किराए के एक कमरे में करते थे।
प्रश्न 4.
लेखक को किस बात का अंदाजा नहीं था ?
उत्तर :
लेखक को यह अंदाजा नहीं था कि उसकी फिल्म ढाई साल में पूरी होगी। उसे फिल्म निर्माण में आनेवाली कठिनाइयों का . अंदाजा नहीं था।
प्रश्न 5.
चुन्नीबाला देवी कौन थीं ?
उत्तर :
चुन्नीबाला देवी अस्सी वर्ष की एक वृद्धा थीं। जिन्होंने फिल्म में इंदिरा ठाकरुन की भूमिका निभाई थी।
प्रश्न 6.
फिल्म में काशफूलों के बिना शूटिंग करने में क्या कठिनाई थी ?
उत्तर :
लेखक यदि काशफूलों के बिना इस जगह पर आधे सीन की शूटिंग करते तो पहलेवाले आधे सीन के साथ उसका मेल नहीं बैठ सकता था। सीन में निरंतरता नहीं रह पाती।
प्रश्न 7.
लेखक ने आधे सीन की शूटिंग कब की तथा क्यों ?
उत्तर :
लेखक ने रेलगाड़ीवाले दृश्य का आधा भाग शरद ऋतु में शूट किया। इस समय यह मैदान पुनः काशफूलों से भर गया। इसके लिए पूरे साल भर इंतजार किया गया।
प्रश्न 8.
काले धुएँ की जरूरत क्यों थी ?
उत्तर :
इंजन से काला धुआँ निकलना जरूरी था, क्योंकि सीन की पृष्ठभूमि सफेद काशफूलों की थी। ऐसी पृष्ठभूमि पर काले धुएँ से दृश्य अच्छा बनता है।
प्रश्न 9.
भूलो की भूमिका में दो अलग-अलग कुत्तों से काम क्यों लेना पड़ा ?
उत्तर :
‘पथेर पांचाली’ उपन्यास में भूलो नामक कुत्ता था। लेखक ने गाँव के कुत्ते से भूलो के दृश्य फिल्माए। धन के अभाव के कारण छह महीने शूटिंग नहीं हुई। जब दोबारा शूटिंग करने गए तो पहले कुत्ते की मृत्यु हो गई थी। दृश्य को पूरा करने के लिए भूलो जैसा नया कुत्ता खोजा गया। अतः भूलो की भूमिका में दो अलग-अलग कुत्तों से काम लेना पड़ा।
प्रश्न 10.
फिल्म में मिठाईवाले का किरदार कौन निभा रहा था ?
उत्तर :
फिल्म में मिठाईवाले का किरदार श्रीनिवास निभा रहा था।
प्रश्न 11.
फिल्म में अमीर आदमी का क्या नाम था ?
उत्तर :
फिल्म में अमीर आदमी का नाम मुखर्जी था।
प्रश्न 12.
लेखक को शूटिंग के समय किससे बहुत परेशानी होती थी ?
उत्तर :
लेखक को शूटिंग के समय उनके पड़ोस में रहनेवाले धोबी से बहुत परेशानी होती थी।
उचित विकल्प चुनकर उत्तर दें।
प्रश्न 1.
सत्यजित राय का जन्म ………………. में हुआ था।
(a) सन् 1920
(b) सन् 1925
(c) सन् 1918
(d) सन् 1921
उत्तर :
(d) सन् 1921
प्रश्न 2.
निम्न में से …………. रचना सत्यजित राय की है।
(a) गलता लोहा
(b) बादशाही अंगूठी
(c) मियाँ नसीरुद्दीन
(d) नमक का दारोगा
उत्तर :
(b) बादशाही अंगूठी
प्रश्न 3.
‘अपू के साथ ढाई साल’ ……………… विधा में लिखा गया पाठ है।
(a) काव्य
(b) रेखाचित्र
(c) संस्मरण
(d) कहानी
उत्तर :
(c) संस्मरण
प्रश्न 4.
‘पथेर पांचाली’ फिल्म की शूटिंग ………… वर्षों तक चली।
(a) दो वर्षों
(b) ढाई वर्षों
(c) तीन वर्षों
(d) डेढ़ वर्षों
उत्तर :
(b) ढाई वर्षों
प्रश्न 5.
लेखक ……………… की कंपनी में नौकरी करते थे।
(a) विज्ञापन
(b) कपड़ा मिल
(c) नाटक
(d) राइस मिल
उत्तर :
(a) विज्ञापन
प्रश्न 6.
अपू की भूमिका निभाने के लिए ……………… साल का लड़का चाहिए था।
(a) पाँच
(b) आठ
(c) छह
(d) सात
उत्तर :
(c) छह
प्रश्न 7.
अपू का किरदार निभानेवाले लड़के का नाम ………… था।
(a) सुबीर बनर्जी
(b) राहुल चेटर्जी
(c) कुमार दा
(d) धीरज बनर्जी
उत्तर :
(a) सुबीर बनर्जी
प्रश्न 8.
इंदिरा ठाकरुन की भूमिका निभानेवाली चुन्नीबाला देवी की उस …
(a) अस्सी साल
(b) नब्बे साल
(c) पचासी साल
(d) सत्तर साल
उत्तर :
(a) अस्सी साल
प्रश्न 9.
फिल्म के एक दृश्य में मैदान ………… के फूलों से भरा हुआ था।
(a) काश
(b) गुलाब
(c) मोगरा
(d) चम्पा
उत्तर :
(a) काश
प्रश्न 10.
‘पथेर पांचाली’ फिल्म में पालतू कुत्ते का नाम ………….. था।
(a) टोमी
(b) भूलो
(c) टाइगर
(d) कूलो
उत्तर :
(b) भूलो
प्रश्न 11.
अपू की बहन का नाम ……….. था।
(a) सीता
(b) पार्वती
(c) लक्ष्मी
(d) दुर्गा
उत्तर :
(d) दुर्गा
प्रश्न 12.
दुर्गा और अप्पू की माँ का नाम …….. था।
(a) सावित्री
(b) सर्वजया
(c) सरस्वती
(d) दुर्गा
उत्तर :
(b) सर्वजया
प्रश्न 13.
‘पथेर पांचाली’ फिल्म की शूटिंग ………. गाँव में हुई थी।
(a) बस्ती
(b) कोड़ाल
(c) बोडाल
(d) टेकारी
उत्तर :
(c) बोडाल
प्रश्न 14.
फिल्म में मिठाईवाले का नाम ……… था।
(a) सधुआ
(b) श्रीनिवास
(c) बद्रीनाथ
(d) कन्हैया
उत्तर :
(b) श्रीनिवास
प्रश्न 15.
सत्यजित राय की मृत्यु सन् ……….. में हुई।
(a) 1991
(b) 1995
(c) 1994
(d) 1992
उत्तर :
(d) 1992
सही-गलत का निशान लगाइए।
प्रश्न 1.
- सत्यजित राय का जन्म सन् 1922 में हुआ था।
- अपू के साथ ढाई साल एक शब्दचित्र है।
- अपू के साथ ढाई साल के लेखक का नाम सत्यजित राय है।
- ‘पथेर पांचाली’ नामक फिल्म बांग्ला भाषा में बनाई गई थी।
- सत्यजित राय को ऑस्कर पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है।
- सत्यजित राय ने लगभग 30 जितनी फिल्में बनाई हैं।
- ‘पधेर पांचाली’ फिल्म की शूटिंग दो वर्षों तक चली।
- ‘पथेर पांचाली’ फिल्म में भूलो एक घोड़े का नाम है।
- अपू की उम्र फिल्म में सात वर्ष की बताई गई है।
- लेखक विज्ञापन कंपनी में नौकरी करते थे।
- फिल्म में अपू का किरदार सुबीर बनर्जी ने निभाया था।
- फिल्म के एक दृश्य में रेल लाइन के पास का मैदान काशफूलों से भरा हुआ था।
- अपू की माँ का नाम सावित्री था।
- ‘भूलो’ के किरदार के लिए लेखक ने दो अलग-अलग कुत्तों का इस्तेमाल किया था।
- मिठाईवाले का नाम श्रीवास्तव था।
- ‘सुबोध दा’ वायलिन पर लोकगीतों की धुनें बजाकर लेखक को सुनाते थे।
- लेखक को फिल्म की शूटिंग के दौरान सब्जीवाला परेशान किया करता था।
- फिल्म के साउंड-रिकॉर्डिस्ट का नाम भूपेन बाबू था।
- भूपेन बाबू साँप को देखकर अवाक् हो गये थे।
- सत्यजित राय की मृत्यु सन् 1995 में हुई।
उत्तर :
- गलत
- गलत
- सही
- सही
- सही
- गलत
- गलत
- गलत
- गलत
- सही
- सही
- सही
- गलत
- सही
- गलत
- सही
- गलत
- सही
- सही
- गलत
अपठित गद्य
भारतीय मनीषियों ने अनेक दिशाओं से चलकर इस रस वस्तु तक पहुँचने का प्रयास किया है। शासन या अनुशासन अनेक हैं। उनके अनुसंधान के मार्ग भिन्न-भिन्न हैं। पर लक्ष्य एक ही है। परिदृश्यमान जगत् में उस तत्त्व की खोज जो समस्त परिदृश्यमान जगत् को रूप दे रहा है पर स्वयं अरुप है, जो बहुधा विभक्त विश्व का अन्तःस्पन्दन सँभालते हुए भी स्वयं अविभक्त है, जो नानात्व, के भीतर अभिन्न होकर विद्यमान है।
इस प्रयत्न में व्याकरण, छन्द, अर्थ-मीमांसा, शब्द-शक्ति-अलंकार, दोष, गुण आदि बातों का बहुत सूक्ष्म विवेचन किया गया है। भावाभास, भावसबलता, भावसांकर्य आदि का मनोविज्ञान सम्मत विवेचन किया गया है। रस और रसाभाव का विवेक किया गया है और शब्द और अर्थ के सम्बन्धों का विशाल साहित्य प्रस्तुत हुआ है।
ऐसा नहीं कहा जा सकता कि भारतवर्ष के हजारों वर्ष की चिन्तन-धारा का इतिहास केवल एक ही लीक पर चलता आ रहा है, तत्त्वदृष्टियाँ अनेक हैं। उनके अनुसार पद और पदार्थ के स्वरूप और सम्बन्धों के स्वरूप भी बहुविचित्र हैं। अध्यात्म तत्त्व तो और भी बहुविचित्र है पर सर्वत्र यह प्रयत्न दृष्टिगोचर होता है कि भासमान सत्ता को ही चरम और परम न मानकर उस वस्तु की खोज की जाए जो वास्तव में इस भासमान सत्ता के परे है।
इसमें रहकर भी जो इससे भिन्न है। जिसके होने से ही सबकुछ सत्तावान है। सहस्त्रों वर्ष की साधना में अनेक मोड़ आये हैं, अनेक ग्रहण और त्याग के प्रयास हुए हैं। पर मूल अनुसन्धानिक यही है – परे, अतीत। रस केवल साहित्य का लक्ष्य नहीं है, जीवन के विविध प्रयत्नों का भी वैसा ही लक्ष्य है। पर स्वरूप उसका वही, सन्दर्भ बदलने पर वह बदला हुआ-सा लगता है। मूर्ति में, चित्र में, सामाजिक आकार में, वैयक्तिक विचारों में, धर्म में, साधना में सन्दर्भ बदल जाते हैं, पर लक्ष्य उसी का अनुसंधान होता है।
साहित्यिक चिन्तन के क्षेत्र में भारतवर्ष ने बहुत दिया है। शब्द और अर्थ के विविध अनुशासनों का जैसा सूक्ष्म विवेचन हमारे साहित्य में हुआ वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। पर खास चिन्तन-मननशील संसार भारतवर्ष की इस महिमा को स्वीकार करता है। सर्वत्र ऐसा लगता है कि विविध क्षेत्रों के सूक्ष्म चिन्तन-मनन का लक्ष्य वह चिन्तन-मनन ही नहीं है। उनसे कुछ विशिष्ट, कुछ परे का सन्धान ही मुख्य है। उपर्युक्त गांश को पढ़िए तथा नीचे उस पर पूछ गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
प्रश्न 1.
‘शासन’ या ‘अनुशासन’ अनेक हैं का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
‘शासन’ या ‘अनुशासन’ का तात्पर्य चिंतन-मनन-अध्ययन के विषयों से है। प्राचीन-मध्यकाल में अध्ययन क्षेत्र के अनुशासन शब्द प्रचलित था। हेमचंद्राचार्य के व्याकरण ग्रंथ का नाम ‘सिद्ध हेम शब्दानुशासन’ इसकी पुष्टि करता है। आज भी अनुशासन ” शब्द का उस अर्थ में उपयोग चल रहा है।
प्रश्न 2.
भारतीय मनीषियों के अनुसंधान का लक्ष्य क्या रहा है ?
उत्तर :
भारतीय मनीषियों के अनुसंधान का लक्ष्य एक ही रहा है – इस दृश्यमान जगत में उस तत्त्व की खोज, जो समस्त जगत को रूपाकार दे रहा है पर स्वयं अदृश्य-अरूप है। जो विभक्त विश्व का अंतास्पदन सँभाले हुए भी स्वयं अविभक्त है, अखंड़, अच्छेद . है। जो नाना तत्त्व के भीतर अभिन्न होकर विद्यमान है, उसका अनुसंधान ही भारतीय मनीषा का परम लक्ष्य है।
प्रश्न 3.
भारतीय आध्यात्मिक चिंतन की क्या विशेषताएँ हैं ?
उत्तर :
भारतीय आध्यात्मिक चिंतन की यह विशिष्टता है कि अनेक तत्त्वदृष्टियों के बावजूद वह केवल एक ही मार्ग चला आ रहा है। वह मार्ग भासमान सत्ता को परम न मानकर उस वस्तु की खोज करना जो इस भासमान सत्ता से परे है। इसमें रहकर भी . जो इससे भिन्न है। जिसके होने से ही सब कुछ सत्तायान है। भारतीय अध्यात्म का मूल अनुसांधानिक यही है – परे, अतीत।
प्रश्न 4.
साहित्यिक चिंतन के क्षेत्र में भारत की देन क्या है ?
उत्तर :
साहित्यिक चिंतन के क्षेत्र में भारत की प्रमुख देन रस तथा शब्दार्थ का सूक्ष्म विवेचन है। भरत मुनि का नाट्यशास्त्र इस चिंतन का ही ग्रंथ है। भावाभास, भावसबलता, भावसांकर्य आदि का मनोविज्ञान सम्मत विवेचन तो है साथ ही उसमें रस और रसाभाव का विवेक किया गया है। (हमारे यहाँ रस केवल साहित्य का लक्ष्य नहीं है, जीवन के विविध प्रयत्नों का भी वैसा ही लक्ष्य है।) शब्द और अर्थ के विभिन्न अनुशासनों का जैसा सूक्ष्म विवेचन हमारे साहित्य में हुआ है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है।
प्रश्न 5.
‘रसाभाव’ तथा ‘भावाभास’ का संधिविग्रह कीजिए।
उत्तर :
रसाभाव – रस + अभाव; भावाभास – भाव + आभास
प्रश्न 6.
इस गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
उचित शीर्षक – भारतीय चिंतन की विशिष्टता।
अपू के साथ ढाई साल Summary in Hindi
नाम : सत्यजित राय
जन्म : सन् 1921, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)
प्रमुख रचनाएँ : प्रो. शंकु के कारनामे, सोने का किला, जहाँगीर की स्वर्ण मुद्रा, बादशाही अंगूठी आदि ।
प्रमुख्न फिल्में : अपराजिता, अपू का संसार, जालसाघर, देवी चारूलता, महानगर, गोपी गायेन, बाका बायेन, पथेर पांचाली (बांग्ला); शतंरज के खिलाड़ी, सद्गति (हिन्दी)
मृत्यु : सन् 1992
जीवन परिचय :
सत्यजित राय का जन्म कोलकाता में 1921 में हुआ । इन्होंने भारतीय सिनेमा को एक बेहतरीन कलात्मक ऊँचाई प्रदान की । इनके निर्देशन में पहली फिचर फिल्म ‘पथेर पांचाली’ (बंग्ला) 1955 में प्रदर्शित हुई । उसने राय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा प्राप्त करनेवाला भारतीय निर्देशक बना दिया । इनकी फीचर फिल्मों की कुल संख्या तीस के लगभग है ।
इन फिल्मों के जरिए इन्होंने फिल्म विधा को समृद्ध ही नहीं किया बल्कि इस माध्यम के बारे में निर्देशकों और आलोचकों के बीच एक समझ विकसित करने में भी अपना योगदान दिया ।
साहित्यिक विशेषताएँ : सत्यजित राय की ज्यादातर फिल्में साहित्यिक कृतियों पर आधारित हैं । इनके पसंदीदा साहित्यकारों में बांग्ला के विभूति भूषण बंधोपाध्याय से लेकर हिन्दी के प्रेमचंद तक शामिल हैं । फिल्मों के पटकथा-लेखन, संगीत-संयोजन एवं निर्देशन के अलावा राय ने बांग्ला में बच्चों एवं किशोरों के लिए लेखन का काम भी बहुत ही संजीदगी के साथ किया है ।
इनकी लिखी कहानियों में जासूसी, रोमांच के साथ-साथ पेड़-पौधे तथा पशु-पक्षी का सहज संसार भी है । प्रमुख सम्मान : फ्रांस का लेजन डी ऑनर, पूरे जीवन की उपलब्धियों पर ऑस्कर और भारतरत्न सहित फिल्म जगत का हर महत्त्वपूर्ण सम्मान ।
पाठ का सारांश :
‘अपू के साथ ढाई साल’ नामक संस्मरण ‘पथेर पांचाली’ फिल्म के अनुभवों से संबंधित है जिसका निर्माण भारतीय फिल्म के इतिहास में एक बड़ी घटना के रूप में दर्ज है । इससे फिल्म के सृजन और उसके व्याकरण से संबंधित कई बारीकियों का पता चलता है । यही नहीं, जो फिल्मी दुनिया हमें अपने ग्लैमर से चुंधियाती हुई जान पड़ती है, उसका एक ऐसा सच हमारे सामने आता है, जिसमें साधनहीनता के बीच अपनी कलादृष्टि को साकार करने का संघर्ष भी है ।
यह पाठ मूलरूप से बांग्ला भाषा में लिखा गया है । जिसका अनुवाद ‘विलास गिते’ ने किया है । किसी फिल्मकार के लिए उसकी पहली फिल्म एक अबूझ पहेली होती है । बनने या न बन पाने की अमूर्त शंकाओं से घिरी । फिल्म पूरी न होने पर ही फिल्मकार जन्म लेता है ।
पहली फिल्म के निर्माण के दौरान हर फिल्म निर्माता का अनुभव संसार इतना रोमांचकारी होता है कि वह उसके जीवन में बचपन की स्मृतियों की तरह हमेशा जीवंत बना रहता है । इस अनुभव संसार में दाखिल होना उस बेहतरीन फिल्म से गुजरने से कम नहीं है ।
शब्दार्थ – टिप्पणी :
- कालखंड – समय का एक हिस्सा, समयावधि
- नाजुक – कोमल
- बेहाल – बुरा हाल
- चित्रित – दिखाया गया
- नवागत – नया आया हुआ
- स्थगित – कुछ समय के लिए टालना
- इंटरव्यू – साक्षात्कार
- नामुमकिन – जो संभव न हो
- छायाकार – फोटो खींचनेवाला, फोटोग्राफर
- बौराए हुए – घबराए हुए
- कंटिन्युइटी – निरंतरता, सातत्यता
- शॉट्स – दृश्य
- बॉयलर – उबालने का यंत्र
- निवाला – टुकड़ा, कौर
- संदर्भ – बारे में, लेख, रचना
- पुकुर – सरोवर, पोखर
- हॉलीवुड – अमेरिकी फिल्म उद्योग का केन्द्र
- धीरज – धैर्य
- धुआँधार – बहुत तेज
- ब्रांडी – शरीर को गरम रखने का पेय (शराब की एक किस्म)
- मुद्दा – विषय
- साउंड-रिकॉर्डिस्ट – आवाज़ सुरक्षित रखनेवाली मशीन को चलानेवाला
- बोलती बंद होना – मुँह से आवाज़ न निकलना, निरुत्तर हो जाना
- नदारद – गायब
- अभाव – कमी
- दुम – पूँछ, छोर-किनारा
- उलझना – परेशान होना, विवाद करना, गुँथ जाना
- झुरमुट – झाड़ियाँ
- जाया होना – खराब होना, व्यर्थ होना
- निरभ्र – बिना बादल के, स्वच्छ
- आसरा – सहारा
- पाजी – दुष्ट
- ध्वस्त – टूटा-फूटा
- सिरदर्द बनना – समस्या बनना
- रिकॉर्डिंग मशीन – दृश्य व ध्वनि सुरक्षित रखनेवाली मशीन
- सहम जाना – डर जाना
- वास्तुसर्प – घर में दिखाई देनेवाला साँप