Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 11 धन्धे का सामाजिक दायित्व Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 11 धन्धे का सामाजिक दायित्व
GSEB Class 11 Organization of Commerce and Management धन्धे का सामाजिक दायित्व Text Book Questions and Answers
स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प पसन्द करके लिखिए :
प्रश्न 1.
कम्पनी कानून-2013 की व्यवस्था के अनुसार निम्न में से कम्पनी के लिए सामाजिक दायित्व निभाना कानून द्वारा अनिवार्य है ।
(A) जिस कम्पनी का वार्षिक टर्न ऑवर रु. 5 करोड हो
(B) जिस कम्पनी का वार्षिक टर्न ऑवर रु. 50 करोड हो
(C) जिस कम्पनी का वार्षिक टर्न ऑवर रु. 500 करोड हो
(D) जिस कम्पनी का वार्षिक टर्न ऑवर रु. 1000 करोड हो
उत्तर :
(D) जिस कम्पनी का वार्षिक टर्न ऑवर रु. 1000 करोड हो
प्रश्न 2.
कम्पनी कानून-2013 की व्यवस्था के अनुसार कम्पनी को सामाजिक दायित्व के रूप में खर्च करना अनिवार्य है ।
(A) औसत वार्षिक लाभ का कम से कम 2%
(B) औसत वार्षिक लाभ का कम से कम 5%
(C) औसत वार्षिक लाभ का अधिक से अधिक 2%
(D) औसत वार्षिक लाभ का अधिक से अधिक 5%
उत्तर :
(A) औसत वार्षिक लाभ का कम से कम 2%
प्रश्न 3.
कम्पनी में बाह्यहित समूह में समावेश होनेवाला हित समूह पसन्द कीजिए ।
(A) कर्मचारी
(B) निवेशक
(C) मालिक
(D) ग्राहक
उत्तर :
(D) ग्राहक
प्रश्न 4.
धन्धे का सामाजिक दायित्व अर्थात् ………………….
(A) समाज का धन्धे के प्रति उत्तरदायित्व
(B) ग्राहक का समाज के प्रति उत्तरदायित्व
(C) धन्धे का समाज के प्रति उत्तरदायित्व
(D) समाज का ग्राहक के प्रति उत्तरदायित्व
उत्तर :
(C) धन्धे का समाज के प्रति उत्तरदायित्व
प्रश्न 5.
धन्धे का सामाजिक दायित्व कितने हित समूहों के प्रति होता है ?
(A) पाँच
(B) छः
(C) मालिक
(D) कर्मचारी
उत्तर :
(C) मालिक
प्रश्न 6.
सामाजिक दायित्व के सन्दर्भ में बाजार का राजा कहलाता है ।
(A) निवेशक
(B) ग्राहक
(C) मालिक
(D) कर्मचारी
उत्तर :
(B) ग्राहक
प्रश्न 7.
अश्लील या रंगभेद जैसे विचार विज्ञापन में प्रदर्शित न करना यह धन्धे का ……………………
(A) राजकीय दायित्व है ।
(B) धार्मिक दायित्व है ।
(C) आर्थिक दायित्व है ।
(D) सामाजिक दायित्व है ।
उत्तर :
(D) सामाजिक दायित्व है ।
प्रश्न 8.
धन्धे की आचारसंहिता का अमल
(A) कम्पनी कानून के अनुसार
(B) साझेदारी कानून के अनुसार
(C) स्वैच्छिक रूप से
(D) सहकारी समिति के कानून अनुसार
उत्तर :
(C) स्वैच्छिक रूप से
प्रश्न 9.
मनुष्यों के नैतिक व्यवहारों का अर्थघटन करनेवाला शास्त्र अर्थात्
(A) समाजशास्त्र
(B) मानवशास्त्र
(C) राज्यशास्त्र
(D) नीतिशास्त्र
उत्तर :
(D) नीतिशास्त्र
प्रश्न 10.
सामाजिक दायित्व का विचार कम्पनी कानून वर्ष 2013 की कौन-सी कलम के अनुसार अनिवार्य बना है ?
(A) 135
(B) 143
(C) 153
(D) 137
उत्तर :
(A) 135
प्रश्न 11.
इकाई के संचालकों को कर्मचारियों के कार्य के स्थल पर कैसा वातावरण बनाना चाहिए ?
(A) अच्छा
(B) खराब
(C) आर्थिक
(D) परिवर्तनशील
उत्तर :
(D) परिवर्तनशील
प्रश्न 12.
आंतरराष्ट्रीय संगठन किसका विस्तृत रूप है ?
(A) M.R.T.P.
(B) U.T.I.
(C) U.N.O.
(D) B.H.E.L.
उत्तर :
(C) U.N.O.
प्रश्न 13.
मालिक का समाज में क्या स्थान है ?
(A) एजेन्ट
(B) ट्रस्टी
(C) नौकर
(D) सेल्समेन
उत्तर :
(B) ट्रस्टी
प्रश्न 14.
धंधाकीय इकाईयों के द्वारा अपने ग्राहकों को कैसी गुणवत्तावाली वस्तु देनी चाहिए ?
(A) सामान्य
(B) उच्च
(C) मध्यम
(D) खराब
उत्तर :
(B) उच्च
प्रश्न 15.
इकाई को वस्तुबाजार की स्पर्धा में टिके रहने के लिए वस्तु की कीमत कैसे निश्चित करनी चाहिए ?
(A) परिवर्तनशील
(B) अधिक
(C) कम
(D) स्पर्धात्मक
उत्तर :
(D) स्पर्धात्मक
प्रश्न 16.
मालिक अधिक लाभ प्राप्त करने का प्रयत्न करें तब –
(A) अतिरिक्त वेतन देना होगा
(B) नीतिमत्ता का भंग
(C) अधिक विज्ञापन देना होगा
(D) अधिक पूँजी चाहिए
उत्तर :
(B) नीतिमत्ता का भंग
प्रश्न 17.
विनियोजकों के द्वारा पूँजी विनियोजित करने का मुख्य हेतु –
(A) बोनस प्राप्त करना
(B) अधिक मुआवजा प्राप्त करना
(C) नियमित मुआवजा प्राप्त करना
(D) योग्य मुआवजा प्राप्त करना
उत्तर :
(C) नियमित मुआवजा प्राप्त करना
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए :
प्रश्न 1.
शून्य प्रदूषणवाले वातावरण का निर्माण करना यह कौन-सा दायित्व कहलाता है ?
उत्तर :
शून्य प्रदूषणवाले वातावरण का निर्माण करना नैतिक दायित्व कहलाता है ।
प्रश्न 2.
उचित मूल्य से आप क्या समझते है ? .
उत्तर :
उचित मूल्य अर्थात् कीमत (मूल्य) का निर्धारण ऐसा हो कि ग्राहकों को योग्य सन्तुष्टि मिले तथा उत्पादक को योग्य प्रतिफल प्राप्त हो ।
प्रश्न 3.
आचारसंहिता का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
आचारसंहिता अर्थात् व्यवहार अथवा चरित्र्य संबंधित सर्व स्वीकृत सिद्धांतों और प्रमाणभूत स्तरों का समूह । धन्धाकीय आचारनीति (आचारसंहिता) में ऐसे सिद्धांतों तथा स्तरों की चर्चा और अमल किया जाता है कि जो इकाई के अलग-अलग व्यक्तियों के मध्य के सम्बन्धों में सत्य क्या तथा झूठ क्या यह निश्चित करके और उनको अमल में रखते है । उदा. धोखा-धड़ी नहीं करना, रिश्वत लेना – देना नहीं इत्यादि।
प्रश्न 4.
पर्यावरण का रक्षण करना यह कौन-सा दायित्व कहलाता है ?
उत्तर :
पर्यावरण का रक्षण करना यह समाज के प्रति धन्धे का दायित्व है ।
प्रश्न 5.
कर्मचारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कर्मचारियों को प्रो. फंड, ग्रेज्यूटी, पेन्शन, अस्वस्थ का अवकाश, बीमा इत्यादि की सुविधा को कर्मचारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा की सुविधा मानी जाती है ।
प्रश्न 6.
हित समूह अर्थात् क्या ?
उत्तर :
धंधे का उद्भव एवं विकास में समाज के जिस वर्ग द्वारा निश्चित हेतु ध्यान में रखते हुए योगदान दिया हो उस वर्ग को हित समूह द्वारा जाना जाता है ।
प्रश्न 7.
सामाजिक जिम्मेदारी अर्थात् क्या ?
उत्तर :
धंधाकीय इकाई के साथ सम्बन्ध रखनेवाले ग्राहकों, लेनदारों, देनदारों, विनियोजकों, कर्मचारियों, समाज, राष्ट्र इत्यादि समस्त पक्षकारों को योग्य न्याय देने का ख्याल अर्थात् सामाजिक जिम्मेदारी ।
प्रश्न 8.
धंधाकीय इकाई को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर :
सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए अस्पताल खुलवाने चाहिए, मुफ्त एवं राहत दर से दवा का वितरण करना चाहिए, स्वास्थ्य निरीक्षण केन्द्र का अच्छे स्वास्थ्य संबंधी जानकारी पोस्टरों एवं टी.वी. के माध्यमों से प्रदान करना इत्यादि धंधाकीय इकाई को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है ।
प्रश्न 9.
धंधाकीय नीतिमत्ता अर्थात् क्या ?
उत्तर :
धंधाकीय नीतिमत्ता अर्थात् धंधाकीय इकाई में इस प्रकार के नैतिक मूल्यों का उपयोग करना कि जिससे इकाई की प्रतिष्ठा में वृद्धि हो तथा सम्बन्धों का विकास हो । नैतिक मूल्यों में भ्रष्टाचार न करना, शोषण न करना, शुद्ध वस्तु का उत्पादन एवं वितरण करना इत्यादि ।
प्रश्न 10.
नीतिशास्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर :
किसी एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति के साथ कैसा नैतिक व्यवहार रखना इसका मार्गदर्शन अर्थात् नीतिशास्त्र ।
प्रश्न 11.
कर्मचारियों के मन में असंतोष कब उत्पन्न होता है ?
उत्तर :
यदि कर्मचारी को उनके कार्य के बदले में योग्य प्रमाण में प्रतिफल अथवा वेतन न मिलता हो तब कर्मचारी के मन में असंतोष उत्पन्न होता है ।
प्रश्न 12.
कर्मचारियों के कार्य के दौरान कौन-सी सुविधाएँ दी जानी चाहिए ?
उत्तर :
कर्मचारी को कार्य के दौरान हवा-प्रकाश, स्वच्छता, स्नानागृह, शौचालय, केन्टीन, आरामगृह के लिए स्थान इत्यादि सुविधाएँ । प्रदान की जानी चाहिए ।
प्रश्न 13.
कर्मचारियों श्रमिक संगठन की रचना किसलिए करते है ?
उत्तर :
कर्मचारी अपने प्रश्नों की प्रस्तुति संचालकों के समक्ष प्रस्तुत कर सकें इसके लिए श्रमिक संगठन की रचना की जाती है ।
प्रश्न 14.
कानून किसलिए होते है ?
उत्तर :
धन्धे के विकास को गति मिले तथा समाज को उनके अच्छे परिणाम मिले तथा उनके दुष्परिणाम समाज को भोगना न पड़े, इसके लिए कानून होते है ।
प्रश्न 15.
आचारसंहिता का उल्लंघन कब होता है ?
उत्तर :
जब धन्धार्थी तेजी से तथा अधिक लाभ कमाना चाहता है, तब आचारसंहिता का उल्लंघन होता है ।
प्रश्न 16.
धन्धा तथा समाज दोनों एकदूसरे के अभिन्न अंग है । किस तरह ?
उत्तर :
कोई भी धन्धाकीय प्रवृत्ति, अन्त में समाज में ही जन्म लेती है, आकार प्राप्त करती है, वृद्धि करती है तथा उसका अन्त भी . समाज में ही होता है । धन्धाकीय प्रवृत्ति को समाज से अलग करके नहीं देखा जा सकता । धन्धा तथा समाज दोनों एकदूसरे के अभिन्न अंग हैं ।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिये :
प्रश्न 1.
समय पर और योग्य वेतन वह इकाई का सामाजिक दायित्व बनता है – समझाइए ।
उत्तर :
कर्मचारी के कार्य करने का मुख्य हेतु प्रतिफल प्राप्त करना होता है । यदि प्रतिफल योग्य प्रमाण में न मिले तो कर्मचारी के मन में असन्तोष उत्पन्न होता है । इसके अलावा उनको मिलनेवाला वेतन समय पर मिलता रहे तथा कर्मचारियों का शोषण न करना व उनको उचित वेतन व समय पर वेतन देना यह इकाई का सामाजिक दायित्व बनता है ।
प्रश्न 2.
ग्राहक के हित का रक्षण इकाई की प्रतिष्ठा में वृद्धि करता है ।
उत्तर :
उपरोक्त कथन सत्य हैं कि किसी भी धन्धाकीय इकाई के अस्तित्व की कल्पना ग्राहकों के बिना मुश्किल है । ग्राहक किसी भी इकाई के केन्द्रस्थान में होता है, इसलिए ग्राहक को बाजार का राजा कहा जाता है । अतः इकाई की ओर से ग्राहकों के प्रति सामाजिक दायित्व निभाकर इकाई की प्रतिष्ठा में वृद्धि की जाती है । इकाई की ओर ग्राहकों के प्रति निम्न दायित्व निभाये जाते है ।
- योग्य गुणवत्तावाली वस्तुएँ समय पर देना
- उचित मूल्य लेना
- बाजार में नियमित माल की पूर्ति करते रहना
- गलत दिशावाले विज्ञापन न देना
- विक्रय के पश्चात् की सेवाएँ नियमित प्रदान करना
प्रश्न 3.
धन्धे की सामाजिक जिम्मेदारी बनती है कि वह मानव अधिकारों का उल्लंघन करने की प्रवृत्ति न करे ।
उत्तर :
यह विधान सत्य है । मानव अधिकारों के मूलभूत अधिकारों में वाणी स्वतंत्रता, समानता, जीवन जीने का सांस्कृतिक एवं शिक्षण प्राप्त करने के अधिकारों का समावेश होता है ।
धंधाकीय इकाई यदि उपरोक्त मानव अधिकारों का भंग करे तो कर्मचारियों, ग्राहकों एवं शेयर होल्डरों का अहित होता है । कर्मचारियों का असंतोष इकाई की कार्यक्षमता को कम करता है ।.ग्राहकों का शोषण इकाई में बिक्री एवं लाभ में कमी करता है । इस प्रकार के मानव अधिकारों का भंग करने से इकाई को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ प्रतिष्ठा में भी कमी आती है । इसलिए किसी भी इकाई में मानव अधिकारों का भंग न हो इसके लिए योग्य प्रवृत्ति करनी चाहिए ।
प्रश्न 4.
यदि समाज में धंधादारी व्यक्तियों द्वारा आचारनीति का पालन किया जाए तो कानूनी नियमों के नियंत्रण की आवश्यकता नहीं रहती ।
उत्तर :
यह विधान सत्य है । प्रत्येक धंधादारी व्यक्ति योग्य नीतिमत्ता के आधार पर समाज के हितों को ध्यान में रखते हुए योग्य प्रवृत्ति करे तो धंधे पर कानूनी नियंत्रण आवश्यक नहीं बनता । धंधे के मालिक द्वारा योग्य माप, योग्य गुणवत्ता, योग्य कीमत, शुद्ध वस्तु, कर्मचारियों को समयानुसार वेतन विनियोजकों के मुद्र की सुरक्षा इत्यादि नीतियों का पालन किया जाए तो इकाई की प्रवृत्तियों पर कानूनी नियंत्रण आवश्य ही नहीं ।
प्रश्न 5.
सामाजिक जिम्मेदारी वर्तमान समय में इकाईयों के लिए अनिवार्य है ।
उत्तर :
यह विधान सत्य है । सामाजिक जिम्मेदारी अर्थात् इकाई की समाज के प्रति जवाबदारी अर्थात् समाज के विविध वर्गों हितों को ध्यान में रखते हुए इकाई का हेतु निश्चित करना । समाज विविध वर्गों में ग्राहक, कर्मचारी, शेयरहोल्डर, सरकार, समाज इत्या का समावेश होता है । वर्तमान में सरकारी नियंत्रण एवं समाज सुधारक अभियान के कारण इकाईयों में अलग-अलग कानूनों की व्यवस्थ की है । जैसे – लघुत्तम वेतन, कामदार राज्य वीमा योजना, ग्राहक सुरक्षा, प्रदूषण नियंत्रण, प्रो. फंड इत्यादि अन्य कानून बनाए गए हैं । इसलिए वर्तमान समय में आदर्श समाज एवं इकाई के विकास हेतु इकाई को सामाजिक जिम्मेदारियों का परिपालन अति आवश्यक है ।
4. निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर मुद्दासर दीजिये :
प्रश्न 1.
धन्धाकीय इकाई को पर्यावरण के सन्दर्भ में कौन-कौन-से क्षेत्र में कर्तव्य अदा करने चाहिए ? समझाइए ।
उत्तर :
धन्धाकीय इकाईयों की पर्यावरण की सुरक्षा को अलग-अलग चार क्षेत्रों को ध्यान में रखकर अपना कर्तव्य अदा करना चाहिये ।
(1) भूमि व जंगल की सुरक्षा : इकाई की स्थापना के लिए भूमि की आवश्यकता रहती है, भूमि के लिए सम्भव है या वृक्ष काटने की आवश्यकता पड़े तो उनके प्रमाण में वृक्षारोपण करके नये वृक्ष लगाने का सामाजिक दायित्व होता है । इसके साथ ही इकाई का कचरा और केमिकल के निकाल द्वारा आसपास की उपयोगी भूमि की उत्पादकता पर असर न पड़े यह देखना इकाई की जिम्मेदारी होती है । अन्यथा इकाई का सामाजिक बहिष्कार जैसा अन्तिम कदम उठाने से भी समाज नहीं हिचकिचाता ।
(2) जल सम्पत्ति की सुरक्षा : उत्पादन प्रक्रिया के दौरान दूषित धन और प्रवाही कचरा दूर करने की ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि जिससे बाह्य और आन्तरिक जलस्त्रोत प्रदूषित न हो ।
(3) हवा व वायु की सुरक्षा : इकाई की उत्पादन प्रक्रिया के दौरान घन, प्रवाही और वायु कचरे को दूर करने की व्यवस्था हवा के प्रदूषण को न बढ़ाये ऐसा आयोजन करना चाहिए । इकाईयों के जहरीली गैसों के कारण जान-हानि और बच्चों में शारीरिक क्षतियाँ भूतकाल में हुई है । समाज के सामान्य स्वास्थ की सुरक्षा इकाईयों की सामाजिक जिम्मेदारी का भाग बनती है ।
(4) ध्वनि प्रदूषण को रोकना : उत्पादन प्रवृत्ति में उपयोग में लिये जानेवाले यंत्रों की व्यवस्था और कारखाने का निर्माण ऐसा करना . चाहिए जिससे ध्वनि का प्रदूषण कम होना चाहिए ।
प्रश्न 2.
धन्धे का मालिकों के प्रति सामाजिक दायित्व समझाइये ।
उत्तर :
धन्धे का मालिक के प्रति सामाजिक दायित्व :
छोटे धन्धों में व्यक्तिगत मालिकी व साझेदारी संस्थाएँ देखने को मिलते है । जबकि बृहद इकाई के रूप में कम्पनी स्वरुप अस्तित्व . में आया । कम्पनी स्वरूप में सच्चे मालिक अंशधारी कहलाते है । इनके प्रति धन्धे का सामाजिक दायित्व निम्नानुसार है :
- निर्णय प्रक्रिया में सहभागी : कम्पनी के शेयरधारक मालिक कहलाते है, इसलिए कोई भी नीति विषयक निर्णय लेते समय उनको विश्वास में लेना अनिवार्य है । अतः निर्णय निर्माण की प्रक्रिया में उनको सहभागी अथवा साझेदार बनाने के लिए वह कम्पनी का सामाजिक दायित्व बनता है ।
- पूँजी की सुरक्षा और वृद्धि : संचालक को अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को एक तरफ रखकर के अपनी कुशलता अथवा विशिष्ट ज्ञान का उपयोग अंशधारियों की पूँजी की सुरक्षा तथा मूल्य में वृद्धि हो सकें, यह कम्पनी का मालिकों के प्रति सामाजिक दायित्व बनता है ।
- मालिकों के हितों का रक्षण : मालिकों के हित में सदैव पूँजी की सुरक्षा व सलामती, मूल्य में बढ़ोत्तरी व कम्पनी के विकास में रहता हुआ दृष्टिगत होता है । कम्पनी का दीर्घकालीन अस्तित्व राष्ट्र, समाज तथा मालिकों के लिए इच्छनीय है । इस प्रकार कम्पनी द्वारा अपने मालिकों का यह दीर्घकालीन हित का रक्षण करना यह संचालकों का सामाजिक दायित्व बनता है ।
- विकास को महत्त्व : जब इकाई अथवा कम्पनी में विकास की योजना अमल में रखी गई हो तब वहाँ मूल मालिकों के पास . से पूँजी प्राप्ति के लिए अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए और उनको आवश्यकता के अनुरूप ‘अधिकार के अंश’ देना यह सामाजिक दायित्व बनता है ।
प्रश्न 3.
धन्धे का समाज के प्रति सामाजिक दायित्व समझाइये ।
उत्तर :
धन्धे का निवेशकों के प्रति सामाजिक दायित्व :
यदि इकाई का कद बढ़ता है, तो पूँजी की आवश्यकता भी बढ़ती है । इन निवेशक के रुप में ऋण, प्रेफरन्स शेयर, ऋण-पत्र जैसे । विभिन्न स्वरूपों से प्राप्त की जाती है । इन निवेशकों के प्रति धन्धे का सामाजिक दायित्व निम्नानुसार है :
- प्रतिफल का समय पर भुगतान : किसी भी इकाई में निवेशक पूँजी का निवेश अधिक नियमित तथा उचित प्रतिफल की अपेक्षा से करते है, ऐसे निवेशकों को नियमित प्रतिफल का भुगतान करना इकाई का सामाजिक दायित्व उत्पन्न होता है ।
- आवश्यक जानकारी प्रदान करना : इकाई का सामाजिक दायित्व होता है कि वो अपने निवेशकों को इकाई की वर्तमान स्थिति तथा भावी योजनाओं की जानकारी देना ।
- निवेश के मूल्य में बढ़ोतरी : किसी भी इकाई के मौद्रिक परिणामों के आधार पर निवेशक का बाजार मूल्य निश्चित होता है । अतः निवेशकों के निवेश मूल्य में वृद्धि हो उसके अनुसार इकाई में मौद्रिक निर्णय लिये जाने चाहिये ।
- पूँजी की सुरक्षा करना : धन्धे का सामाजिक दायित्व होता है कि निवेशकों की पूँजी का योग्य उपयोग व सुरक्षा करना । जिससे भविष्य में जब भी इकाई को मौद्रिक आवश्यकता पड़े तब आसानी से पूँजी प्राप्त हो सकें ।
- सूचन को स्वीकारना : पूँजी का निवेश करनेवाले निवेशक सामान्यतः बाजार के अभिगम एवं परिस्थिति से परिचित होते है इसलिए उनके सूचनों को स्वीकार कर लेना चाहिए ।
प्रश्न 4.
धन्धाकीय इकाई सामाजिक दायित्व निभाकर प्रतिष्ठा में वृद्धि कर सकती है, समझाइए ।
उत्तर :
धन्धाकीय इकाई की ओर से विक्रय के पश्चात् की सेवाएँ प्रदान की जाये व ग्राहकों की शिकायत निवारण के लिए नजदिक में ही सेवा केन्द्र की प्राप्ति हो तथा ग्राहक को उत्पादन पसन्द न हो तो वापस करने की स्वतंत्रता, ग्राहक का कानूनी अधिकार है और इकाई का सामाजिक दायित्व होता है । यदि इकाई स्वैच्छिक अथवा इच्छानुसार इनको स्वीकार करे तब इकाई की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है ।
इसके उपरान्त पूर्ति/आपूर्ति देनेवाले को आकस्मिक कारण के अलावा पूर्व से ही इकाई की मांग के संदर्भ में अवगत करने से पूर्ति की समस्या उत्पन्न नहीं होती । जिसके कारण उत्पादन होता है तथा इकाई की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है ।
प्रश्न 5.
कर्मचारी के प्रति का सामाजिक दायित्व इकाई में से विवादों को दूर करता है ।
उत्तर :
कर्मचारी के प्रति का सामाजिक दायित्व इकाई में से विवादों को दूर निम्न कारणों से किया जा सकता है ।
- कर्मचारी को उचित वेतन देना तथा समय पर प्रदान करना
- कर्मचारियों को कार्य के दौरान योग्य वातावरण व सुविधाएँ देना
- कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना
- कर्मचारी द्वारा बने गए संगठनों को मान्यता प्रदान करना
- कर्मचारियों के प्रश्नों व समस्याओं को हल करना
- कार्यरत कर्मचारियों को अभिप्रेरित करना
अर्थात् इकाई द्वारा यह सभी सभी दायित्व निभायें जायेंगे तो कर्मचारी प्रोत्साहित होंगे व विवाद दूर होंगे ।
प्रश्न 6.
धन्धाकीय आचारसंहिता का कानून द्वारा अमल सम्भव नहीं है ।
उत्तर :
यदि समाज में धन्धाकीय इकाईयाँ आचारनीति/ आचारसंहिता के स्तरों का योग्य रूप से पालन करें तो अनिवार्य स्वरूप में कानूनी रूप में अमल कराने की आवश्यकता नहीं पड़ती । समाज भी यह प्रत्येक धन्धाकीय इकाई के पास से अपेक्षा रखता है कि वह आचार नीति से प्रवृत्ति करें ।
5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक दीजिये :
प्रश्न 1.
धन्धे के आन्तरिक सामाजिक दायित्वों को विस्तार से समझाइये ।
उत्तर :
धन्धे का आन्तरिक सामाजिक दायित्व अथवा आन्तरिक हित समूह निम्न के प्रति होता है ।
(1) मालिक
(2) निवेशक
(3) कर्मचारी
(1) धन्धे का मालिक के प्रति सामाजिक दायित्व :
छोटे धन्धों में व्यक्तिगत मालिकी व साझेदारी संस्थाएँ देखने को मिलते है । जबकि बृहद इकाई के रूप में कम्पनी स्वरुप अस्तित्व . में आया । कम्पनी स्वरूप में सच्चे मालिक अंशधारी कहलाते है । इनके प्रति धन्धे का सामाजिक दायित्व निम्नानुसार है :
- निर्णय प्रक्रिया में सहभागी : कम्पनी के शेयरधारक मालिक कहलाते है, इसलिए कोई भी नीति विषयक निर्णय लेते समय उनको विश्वास में लेना अनिवार्य है । अतः निर्णय निर्माण की प्रक्रिया में उनको सहभागी अथवा साझेदार बनाने के लिए वह कम्पनी का सामाजिक दायित्व बनता है ।
- पूँजी की सुरक्षा और वृद्धि : संचालक को अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को एक तरफ रखकर के अपनी कुशलता अथवा विशिष्ट ज्ञान का उपयोग अंशधारियों की पूँजी की सुरक्षा तथा मूल्य में वृद्धि हो सकें, यह कम्पनी का मालिकों के प्रति सामाजिक दायित्व बनता है ।
- मालिकों के हितों का रक्षण : मालिकों के हित में सदैव पूँजी की सुरक्षा व सलामती, मूल्य में बढ़ोत्तरी व कम्पनी के विकास में रहता हुआ दृष्टिगत होता है । कम्पनी का दीर्घकालीन अस्तित्व राष्ट्र, समाज तथा मालिकों के लिए इच्छनीय है । इस प्रकार कम्पनी द्वारा अपने मालिकों का यह दीर्घकालीन हित का रक्षण करना यह संचालकों का सामाजिक दायित्व बनता है ।
- विकास को महत्त्व : जब इकाई अथवा कम्पनी में विकास की योजना अमल में रखी गई हो तब वहाँ मूल मालिकों के पास . से पूँजी प्राप्ति के लिए अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए और उनको आवश्यकता के अनुरूप ‘अधिकार के अंश’ देना यह सामाजिक दायित्व बनता है ।
(2) धन्धे का निवेशकों के प्रति सामाजिक दायित्व :
यदि इकाई का कद बढ़ता है, तो पूँजी की आवश्यकता भी बढ़ती है । इन निवेशक के रुप में ऋण, प्रेफरन्स शेयर, ऋण-पत्र जैसे । विभिन्न स्वरूपों से प्राप्त की जाती है । इन निवेशकों के प्रति धन्धे का सामाजिक दायित्व निम्नानुसार है :
- प्रतिफल का समय पर भुगतान : किसी भी इकाई में निवेशक पूँजी का निवेश अधिक नियमित तथा उचित प्रतिफल की अपेक्षा से करते है, ऐसे निवेशकों को नियमित प्रतिफल का भुगतान करना इकाई का सामाजिक दायित्व उत्पन्न होता है ।
- आवश्यक जानकारी प्रदान करना : इकाई का सामाजिक दायित्व होता है कि वो अपने निवेशकों को इकाई की वर्तमान स्थिति तथा भावी योजनाओं की जानकारी देना ।
- निवेश के मूल्य में बढ़ोतरी : किसी भी इकाई के मौद्रिक परिणामों के आधार पर निवेशक का बाजार मूल्य निश्चित होता है । अतः निवेशकों के निवेश मूल्य में वृद्धि हो उसके अनुसार इकाई में मौद्रिक निर्णय लिये जाने चाहिये ।
- पूँजी की सुरक्षा करना : धन्धे का सामाजिक दायित्व होता है कि निवेशकों की पूँजी का योग्य उपयोग व सुरक्षा करना । जिससे भविष्य में जब भी इकाई को मौद्रिक आवश्यकता पड़े तब आसानी से पूँजी प्राप्त हो सकें ।
- सूचन को स्वीकारना : पूँजी का निवेश करनेवाले निवेशक सामान्यतः बाजार के अभिगम एवं परिस्थिति से परिचित होते है इसलिए उनके सूचनों को स्वीकार कर लेना चाहिए ।
(3) धन्धे का कर्मचारी के प्रति सामाजिक दायित्व :
किसी भी इकाई की कामगीरी करने के लिए कर्मचारियों की आवश्यकता रहती है । इकाई में कार्यदक्ष कर्मचारियों के बिना उद्देश्य . प्राप्ति सम्भव नहीं, ऐसा कहना गलत नहीं होगा । जिससे कर्मचारियों का हित बना रहे और उनकी देखरेख रखना यह प्रत्येक धन्धाकीय इकाई का मुख्य सामाजिक दायित्व बनता है ।
(1) कर्मचारी जीवनस्तर की सुरक्षा : कर्मचारी के कार्य करने का मुख्य उद्देश्य प्रतिफल प्राप्त करना होता है । यह प्रतिफल योग्य प्रमाण में न मिले तो कर्मचारी के मन में असन्तोष उत्पन्न होता है । इसके उपरान्त उनको प्राप्त होनेवाले वेतन समय पर मिलता रहे यह देखने का कम्पनी का दायित्व होता है । इस तरह कर्मचारियों का शोषण न करना और उनको उचित और समय पर प्रतिफल प्रदान करना चाहिए ।
(2) कामगिरी के लिए योग्य वातावरण और सुविधाएँ देना : किसी भी धन्धाकीय इकाई को कार्यक्षम रखने के लिए उचित वातावरण बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है । धन्धाकीय इकाई में अनुकूल वातावरण हो, कर्मचारी सम्बन्धों का योग्य रूप से विकास हो यह देखना इकाई की सामाजिक जिम्मेदारी है । इकाई विविध सुविधाओं द्वारा ऐसा वातावरण प्रदान कर सकती है ।।
उदा. रेस्टोरेन्ट की सुविधा प्रदान करना, परिवहन तथा इकाई में स्वच्छता और हवा-प्रकाश सम्भव हो तो वातानुकूलित सुविधा की तरह स्त्री कर्मचारियों को अलग व्यवस्था देना ।
(3) कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना : कर्मचारियों को प्रोविडन्ट फंड, ग्रेज्युटी, पेन्शन, अस्वस्थ का अवकाश, बीमा की सुरक्षा इत्यादि सुविधाएँ कर्मचारी के लिए सामाजिक सुरक्षा की सुविधाएँ कहलाती है । इन सभी सुविधाओं द्वारा कर्मचारी वर्ग आर्थिक एवं सामाजिक तौर से सुरक्षित बनता है तथा अपना कार्य कार्यक्षम से कर सकते है ।
(4) कर्मचारी संगठनों को मान्यता प्रदान करनी : कर्मचारी वर्ग अपनी समस्याओं की शिकायत संचालक मंडल के सामने कर सके इसलिए कर्मचारी संगठन की रचना की जाती है । इस प्रकार के संगठनों की रचना करने की स्वीकृति संचालक मंडल से लेनी होती है । यदि कर्मचारी संगठन का मुख्य हेतु स्पष्ट और धंधे के प्रति हितप्रद हो तो कर्मचारियों में उत्साह बढ़ता है । अतः कर्मचारी संगठन की रचना करने की मंजूरी प्रदान करना यह धंधे की समाज के प्रति जिम्मेदारी बनती है ।
(5) उच्च संचालकों का समाधानकारी मनोवृत्ति रखना : कर्मचारी इकाई के हाथ-पैर समान है, वो अपने कार्य में कार्यक्षम रहे ऐसी किसी भी इकाई की अपेक्षा रहती है । इसके सामने कर्मचारी भी अपने हित के विभिन्न प्रश्नों के लिए व्यक्तिगत या संगठन द्वारा प्रस्तुत करते हुए दिखाई देते है । ऐसी प्रस्तुति को उचित समय पर ध्यान में लेकर के समाधानकारी मनोवृत्ति रखने से इकाई का और कर्मचारियों का हित बना रहता है और इकाई में पारिवारिक वातावरण का निर्माण होता है ।
(6) अभिप्रेरणा : आप अपने कर्मचारी के काम के घण्टे खरीद सकते हो, लेकिन उनकी योग्यता को जीतना पड़ता है । किसी भी इकाई के कर्मचारियों का उत्साह सतत प्रोत्साहन के बिना नहीं टिक सकता । जिससे कर्मचारियों का उत्साह बढ़ाने के लिए वेतनवृद्धि, पदोन्नति, पुरस्कार आदि दिये जाने चाहिए जिससे कर्मचारियों में आत्मविश्वास सुदृढ़ होता है । उदा. इकाई के मालिक द्वारा कर्मचारी और उनके परिवार के साथ प्रवास में ले जाकर कर्मचारियों को प्रोत्साहित करना, कर्मचारी को अधिक संशोधन अथवा नई कार्यपद्धति के लिये पुरस्कार (इनाम) देना इत्यादि ।
(7) अन्य दायित्व : कर्मचारी के प्रति अन्य जिम्मेदारियाँ में कर्मचारियों के द्वारा लिये जानेवाले निर्णयों में भागीदारी योग्य जानकारी – प्रदान करना, नोकरी की आकर्षक शर्ते नियुक्ति के समय ही निश्चित करना इत्यादि का समावेश होता है ।
प्रश्न 2.
धन्धाकीय इकाई के बाह्य सामाजिक दायित्वों का ख्याल/विचार विस्तार से समझाइए ।
उत्तर :
बाह्य सामाजिक दायित्व –
(i) ग्राहक
(ii) पूर्ति प्रदान करनेवाले
(iii) सरकार
(iv) समाज
(i) ग्राहकों के प्रति धन्धे का सामाजिक दायित्व :
किसी भी धन्धाकीय इकाई के अस्तित्व की कल्पना ग्राहकों के बिना मुश्किल है । ग्राहक यह किसी भी इकाई के अस्तित्व में केन्द्र स्थान पर है । इसलिए इन्हें बाजार का राजा कहा जाता है ।
(1) योग्य गुणवत्तावाली वस्तु एवं सेवा प्रदान करना : इकाई के द्वारा वस्तु या उत्पादन एवं सेवा देने के पीछे ग्राहक केन्द्र बिन्द में होता है । उत्पादित वस्तु योग्य गुणवत्तावाली हो यह धंधे के प्रति सामाजिक जिम्मेदारी है । इसमें योग्य पेकिंग, वजन, निशानी का भी समावेश होता है । इसके उपरांत ग्राहकों को मिलावटवाली वस्तु प्रदान न करना भी सामाजिक जिम्मेदारी का एक भाग माना जाता है ।
(2) योग्य कीमत लेना : योग्य कीमत अर्थात् जिसमें ग्राहकों को योग्य संतोष तथा उत्पादक को योग्य लाभ प्राप्त हो ऐसी योग्य कीमत निश्चित करना यह सामाजिक जिम्मेदारी है । योग्य कीमत निर्धारित न करने से स्पर्धा को वेग मिलता है और ग्राहक वर्ग अन्य उत्पादक की वस्तु खरीदने के लिए प्रेरित होता है । इकाई को स्पर्धा में बने रहने के लिए उचित लाभ आवश्यक है ।
(3) बाजार में पूर्ति का सातत्य बनाये रखना : कई बार ग्राहकों के पास से अधिक किमत वसूल करने के लिए माल की कृत्रिम कमी दर्शायी जाती है । बाजार में पूर्ति का सातत्य बनाये रखकर कमी न होने देना । यह इकाई की सामाजिक जिम्मेदारी है ।
(4) गलत विज्ञापनों का उपयोग न करना : अनेक उत्पादक वर्ग अपने द्वारा उत्पादित की जानेवाली वस्तु का विक्रय सरल बनाने के हेतु मात्र ग्राहकों को आकर्षक करने के लिए गलत विज्ञापनों का सहारा लेते है । जिसमें ग्राहक वर्ग खराब एवं बिन उपयोगी वस्तु खरीदने के लिए प्रेरित होता है । अत: गलत विज्ञापनों का सहारा न लिया जाए यह भी धंधे की सामाजिक जिम्मेदारी बनती है ।
(5) वस्तु का विक्रय के बाद की सेवाएँ : ग्राहकों को वस्तु या सेवा का विक्रय करने के बाद इकाई का दायित्व पूर्ण नहीं होता । वास्तव में जिम्मेदारी शुरू होती है । चीज-वस्तु या सेवा के बारे में ग्राहकों को शिकायत निवारण के लिए नजदीक में ही सेवा केन्द्र की प्राप्ति और ग्राहक को उत्पादन पसन्द न हो तो वापस करने की स्वतंत्रता, ग्राहक का कानूनी अधिकार है और इकाई का सामाजिक दायित्व होता है । जो इकाई इच्छानुसार इनको स्वीकार करें वह इकाई की सामाजिक प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी होती है, अन्यथा वर्तमान में कानून द्वारा अनिवार्य रूप से लागू किया जाता है तब इकाई की सामाजिक और धन्धाकीय प्रतिष्ठा में कमी आती है ।
(ii) पूर्ति पूर्ण करनेवाले प्रति धन्धे का सामाजिक दायित्व :
किसी भी इकाई की सफलता का आधार सतत व गुणवत्ता पूर्ति पर होता है । पूर्ति भौतिक सामग्री का हो अथवा सेवा का भी हो सकता है । इकाई के बाह्य परिबलों में पूर्ति प्रदान करनेवाले के प्रति इकाई का सामाजिक दायित्व निम्नानुसार होता है ।
- पूर्ति के बारे में पहले से ही सूचना : पूर्ति देनेवाले को आकस्मिक कारण सिवाय पहले से ही इकाई की मांग के संदर्भ में अवगत करने से पूर्ति की समस्या उत्पन्न नहीं होती । जिसके कारण उत्पादन होता रहता है तथा इकाई की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है ।
- गुणवत्ता और कौशल्य की स्पष्टता : किसी भी इकाई को अपने अपने कच्चे माल व सेवा की पूर्ति करनेवालों के साथ में अपनी आटश्यकतानुसार गुणवत्ता व कौशल्य की स्पष्टता पहले से ही कर देनी चाहिए, जिससे पूर्ति का सातत्य बना रहता है ।
- समयानुसार भुगतान : प्रत्येक इकाई का सामाजिक दायित्व बनता है कि कच्चा माल तथा कर्मचारियों की पूर्ति करनेवाले को तय, ही गई शर्तों के अधिन रकम अथवा रकम का भुगतान कर देना चाहिए ।
(iii) सरकार के प्रति धन्धे का सामाजिक दायित्व :
प्रत्येक इकाई का सरकार के प्रति निम्नलिखित दायित्व होता है :
(1) कानून का पालन करना : प्रत्येक इकाई का सामाजिक दायित्व बनता हैं कि सरकार द्वारा बनाये गये कानून व नियम का योग्य रुप से पालन किया जाना चाहिए ।
(2) ईमानदारी से सभी प्रकार के कर (Tax) भरना : सरकार द्वारा विभिन्न इकाईयों पर समय-समय पर विभिन्न प्रकार के कर (Tax) लगाये जाते है, यह समस्त प्रकार के कर प्रत्येक इकाई को ईमानदारी से तथा समय पर भर देना चाहिए ।
(3) सरकारी कार्यक्रमों के अमल में सहभागी : समय-समय पर सरकार के द्वारा अपने देश की प्रगति और विकास के लिए अनेक कार्यक्रम निर्मित किये जाते है । ऐसे निर्मित कार्यक्रमों में हिस्सा लेना अथवा लोगों तक ऐसे कार्यक्रम पहुँच सके ऐसी जन भागीदारी में इकाई को शामिल होना चाहिए । जैसे सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान अमल में लाया, इसके पश्चात् अनेक इकाईयाँ स्वच्छता कार्यक्रम करके सहभागी बनी है।
(4) औद्योगिक नीति के अमल में सहायक बनना : सरकार देश की आवश्यकताओं को ध्यान में लेकर औद्योगिक नीति का निर्माण करती है । इस तरह औद्योगिक नीति के अमल में सहायक होना यह इकाई का सामाजिक दायित्व होता है ।
(iv) समाज के प्रति धन्धे का सामाजिक दायित्व :
संचालन शास्त्री पीटर एफ. ड्रकर बताते है कि कोई भी धन्धाकीय इकाई का संचालन इस तरह से किया जाना चाहिए कि जिसमें इकाई और समाज के विविध वर्गों के हितों के मध्य सन्तुलन बना रहे । इकाई द्वारा संचालन करते समय समाज के आर्थिक और सामाजिक हित बने रहने चाहिए ।
(1) पर्यावरण का रक्षण करना : इकाई की उत्पादन प्रक्रिया का चयन ऐसा करना चाहिए कि जिससे प्रदूषण कम फैले और पर्यावरण का रक्षण होता रहे ।
(2) राष्ट्रीय विकास के कार्य में योगदान : राष्ट्र का विकास यह व्यक्ति का विकास का संयुक्त परिणाम है । इकाई को अपने मौद्रिक साधनों के महत्तम उपयोग द्वारा राष्ट्रीय विकास में योगदान देना चाहिए ।
(3) संशोधन को महत्त्व देना : राष्ट्र के विकास में औद्योगिक संशोधन का योगदान होता है । विकसित देश की इकाईयाँ अपने लाभ का कुछ हिस्सा संशोधन कार्य द्वारा इकाई को अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धा में आगे रहने के लिए करते है । इस प्रकार इकाई को संशोधन कार्य को महत्त्व देकर के समाज की आवश्यकता के अनुसार वस्तु अथवा सेवा का उत्पादन करना चाहिए ।
(4) आपातकाल अथवा आपत्ति के समय जिम्मेदारी निभाना : प्राकृतिक आपत्ति के संजोगों में इकाई को सरकारी अथवा अर्द्ध सरकारी तंत्र के साथ सहायक बनकर सामाजिक जिम्मेदारी निभाना चाहिए ।
(5) सामाजिक – सांस्कृतिक परम्पराओं का विकास (संगठन) : इकाई को अपना उत्पादन या सेवा द्वारा राष्ट्र के सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का विकास होता हो तो उसकी सावधानी रखनी चाहिए । प्रचार या प्रसार के ऐसे माध्यमों और ख्यालों को उपयोग में लिया जाना चाहिए कि जिससे सांस्कृतिक मूल्यों का हनन न हो । उदा., विज्ञापनों में अश्लीलता या रंगभेद जैसे ख्यालों का निरूपण नहीं करना चाहिए ।
(6) समाज उत्थान में सहभागी : किसी भी समाज का विकास सामाजिक समानता के बिना सम्भव नहीं । सामाजिक समानता प्रत्येक वर्ग को उचित अवसर की प्राप्ति द्वारा हासिल होती है । इकाई को समाज के कमजोर वर्गों को उचित अवसर प्रदान करके विकास में सहायक बनना चाहिए ।
(7) रोजगार के अवसरों का निर्माण करना : इकाई को विकास करके रोजगार के अवसरों का निर्माण करना चाहिए । राष्ट्रीय विकासदर या राष्ट्रीय समानता रोजगार के अवसरों द्वारा हासिल/प्राप्त किया जा सकता है ।
(8) मानव अधिकारों की सुरक्षा : प्राकृतिक और संवैधानिक मानवीय अधिकारों की सुरक्षा करना यह इकाई की सामाजिक जिम्मेदारी का भाग है ।
प्रश्न 3.
धन्धे के सामाजिक दायित्व का महत्त्व बताइये ।
उत्तर :
सामाजिक जिम्मेदारी का अर्थ : सामाजिक जिम्मेदारी अर्थात् समाज के सभी वर्गों के हितों को लक्ष्य में रखकर धंधाकीय इकाई के उद्देश्यों को निश्चित करना तथा समाज के कल्याण के लिए संचालन करने का बंधन सामाजिक जिम्मेदारी कहलाता है ।
श्री हर्वड के मतानुसार “सामाजिक जिम्मेदारी” अर्थात् समाज के लोगों की महत्त्वाकांक्षा को समझना तथा इसे संतुष्ट करने के लिए योग्य सहकार प्रदान करने का कार्य सामाजिक जिम्मेदारी कहलाता है ।
महत्त्व : धंधाकीय इकाई की स्थापना समाज में की जाती है । धंधाकीय इकाई समाज का बालक है । धंधाकीय इकाई की प्रत्येक प्रवृत्ति का समाज में ही जन्म होता है । समाज में आकार, वृद्धि एवं अन्त भी समाज में ही होता है । संक्षिप्त धंधाकीय इकाई की प्र पेक प्रवृत्ति का विचार समाज को लक्ष्य में लेकर किया जाता है । समाज को ध्यान में लिए बिना धंधा की किसी भी प्रवृत्ति का विचार नहीं कर सकते । धंधा एवं समाज दोनों एकदूसरे के पूरक है । समाज होगा तो धंधाकीय प्रवृत्तियों का अस्तित्व होगा । देश के आर्थिक . त्रों का विकास समाज का आभारी है । धंधाकीय इकाईयों में होनेवाले वार्षिक लाभ में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समाज का हिस्सा अवर ही होता है । अत: धंधाकीय इकाई के द्वारा प्राप्त की गई समृद्धियों में समाज का हिस्सा होना चाहिए । यह धंधे की नैतिक जिम्मेदारी है । धंधाकीय इकाई के द्वारा समाज को दिया जानेवाला लाभ सामाजिक जिम्मेदारी कहलाती है ।
धन्धे का सामाजिक दायित्व विविध हित समूहों के प्रति होता है । जिसमें मालिक, निवेशक, कर्मचारी, ग्राहक, पूर्ति प्रदान करनेवाले, सरकार एवं समग्र समाज इत्यादि । अत: प्रत्येक इकाई को इन सभी हित समूहों के प्रति सामाजिक दायित्व निभाना चाहिए । वैसे वर्तमान समय में जो इकाईयाँ सामाजिक दायित्व नहीं निभाती वो इकाई समाज में लम्बे समय तक नहीं टिक पायेगी ।
कम्पनी कानून सन् 2013 की कलम 135 के अनुसार 1 अप्रैल, 2014 से जिस कम्पनी का वार्षिक टर्न आवर (बिक्री का प्रमाण) 500 करोड़ से अधिक हो अथवा किसी एक वित्तीय वर्ष का लाभ रु.5 करोड़ से अधिक हो ऐसी कम्पनी को अनिवार्य कम्पनी लक्षी सामाजिक व्यवस्था लागू पड़ती है । ऐसी कम्पनियों को उनके वित्तीय वर्ष के पूर्व के तीन वर्ष के औसत लाभ का कम से कम 2% सामाजिक दायित्व की प्रवृत्तियों के लिए खर्च करना अथवा ऐसे खर्च न करने के पीछे के कारणों का अहेवाल दर्शाना पड़ता है ।
प्रश्न 4.
नीतिशास्त्र के नियम और कानूनी नियम के मध्य अन्तर बताइए ।
उत्तर :
नीतिशास्त्र के नियम अथवा सिद्धान्तों को सार्वजनिक सत्ता द्वारा अमल नहीं कराया जा सकता है ।
जबकि कानूनी नियमों को सार्वजनिक सत्ता अमल अथवा लागू करवाया जा सकता है ।
प्रश्न 5.
धन्धे के सामाजिक दायित्व की व्याख्या दीजिए । एवं धन्धे के सामाजिक दायित्व के मुख्यत: कितने स्तर में विभाजित किया जा सकता है ? आकृति सहित बताइए ।
उत्तर :
‘किसी भी धन्धे की उत्पत्ति तथा विकास में समाज के विभिन्न अंगों तथा संस्थाओं ने जो सेवा तथा योगदान दिया है, उसके उत्तरदायित्व के रूप में धन्धे का समाज के प्रति ऋण चुकाने का जो कर्तव्य पैदा होता है, उसे धन्धे का सामाजिक दायित्व कहते हैं ।’
धन्धे के सामाजिक दायित्व को मुख्यत: चार स्तरों में विभाजित किया जा सकता है ।
(1) आर्थिक दायित्व
(2) कानूनी दायित्व
(3) नैतिक दायित्व
(4) पसन्दगी के अनुसार दायित्व
आकृति :
प्रश्न 6.
हित समूह किसे कहा जाता है ? धन्धाकीय इकाई का हित कितने हित समूहों के प्रति जुड़ा होता है ? आकृति बनाते हुए, आन्तरिक
हित समूह व बाह्य हित समूह किसे कहते हैं ?
उत्तर :
‘कोई भी धन्धाकीय इकाई समाज के विभिन्न वर्गों या समूहों के योगदान बिना स्वयं विकास नहीं कर सकती । समाज के विविध वर्ग, समूह अथवा संस्थाओं के विभिन्न हित धन्धाकीय इकाई के साथ जुड़े हुए होते है, जो प्रत्येक को हित समूह कहा जाता है ।’
धन्धाकीय इकाई का हित दो हित समूहों के प्रति जुड़ा हुआ है ।
- (1) आन्तरिक हित समूह : ऐसे हित समूह धन्धाकीय इकाई के संचालन के साथ प्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते है और इकाई का ही भाग हो, उन्हें आन्तरिक हित समूह कहते हैं ।
- (2) बाह्य हित समूह : ऐसे हित समूह धन्धाकीय इकाई के संचालन के साथ परोक्ष रूप से जुड़े हुए होते है जिसे बाह्य हित समूह कहते हैं ।
प्रश्न 7.
धन्धाकीय आचारनीति अथवा आचारसंहिता के तत्त्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
आचारसंहिता युक्त व्यवहार यह धन्धे और समाज दोनों के लिए अच्छी बात है । इकाई के दैनिक व्यवहारों में मूल्यों तथा आचारसंहिता का तत्त्व हो तो ही समग्र इकाई में योग्य वातावरण का निर्माण हो सकता है ।
- उच्च संचालक मण्डल की प्रतिबद्धता : आचारसंहिता युक्त व्यवहार को सफल बनाने में उच्च संचालकों की भूमिका निर्णायक बनती है तथा उनके परिणाम प्राप्त करने के लिये इकाई के मुख्य अधिकारियों को हमेशा कटीबद्ध रहना जरूरी है । मूल्यों को बनाये रखने के लिए वो अपनी नेतागीरी द्वारा समग्र इकाई के व्यवहार को प्रेरित करना चाहिए ।
- मार्गदर्शक नियमों का प्रकाशन : इकाई में आचारसंहिता युक्त व्यवहार के लिए इकाई में कर्मचारियों को मार्गदर्शन देने के लिए, उच्च संचालकों को लिखित स्वरूप में मार्गदर्शिका प्रकाशित करना चाहिए । जिससे अलग-अलग परिस्थिति में कर्मचारी को व्यवहार सम्बन्धित प्रेरणा तथा मार्गदर्शन मिल जाये ।
- ढाँचाकीय रचना करना : इकाई द्वारा लिये गये निर्णय इकाई की आचारसंहिता के सिद्धान्तों को निभाते है, इनकी खातरी करने के लिए उनको अमल के लिए योग्य ढाँचों की रचना करनी चाहिए ।
- निर्णयों में सहायक : निर्णयों में कर्मचारियों की सह साझेदारी आचारसंहिता को सफल बनाते है ।
- परिणामों का मूल्यांकन : सामान्य रूप से आचारसंहिता यह गणात्मक पहलू होने से वह सापेक्ष विचार बनता है । जिससे आचारसंहिता के स्तर इकाई में कितने अंश प्रस्तुत बने है वह इकाई के साथ जुड़े हुए अलग-अलग वर्ग के प्रतिभाव द्वारा जाना जा सकता है ।
प्रश्न 8.
धन्धाकीय आचारनीति के विषय में सविस्तार चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
प्रस्तावना : एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के साथ कैसा नैतिक व्यवहार करना चाहिए इसका मार्गदर्शन अर्थात नीतिशास्त्र कहलाता है । नीति अर्थात् व्यक्तिगत वर्ताव और नैतिक जिम्मेदारी का शास्त्र । मानवीय संबंधों में सही क्या है और गलत क्या है ? इसकी नीतिशास्त्र में चर्चा की जाती है । इसमें व्यक्तिगत चरित्र और तत्त्वज्ञान का समावेश होता है ।
प्रत्येक धंधाकीय इकाई में अनेकों नैतिक मूल्य होते है । इन मूल्यों को समाज के हित में प्रयोग करना यह धंधे की जिम्मेदारी बनती है । जैसे – संग्रहवृत्ति, मिलावट, कालाबाजारी, अधिक लाभ इत्यादि का समावेश होता है ।
- धन्धाकीय आचारनीति की आवश्यकता और महत्त्व : (जो कि अभ्यासक्रम में नहीं है ।) धन्धाकीय आचारनीति की आवश्यकता एवं महत्त्व निम्नलिखित दर्शाए गए है ।
- प्रतिष्ठा में वृद्धि : धंधाकीय इकाई का नीतिपूर्ण व्यवहार समाज में दीर्घकालीन समय के लिए प्रतिष्ठा बनती है । इस प्रकार की इकाई के द्वारा तैयार की जानेवाली वस्तु लोकचाहना प्राप्त करती है । इस प्रकार की इकाईयों में विनियोजकों के द्वारा अतिशीघ्र एवं सरलता से पूँजी विनियोग किया जाता है ।
- प्राथमिक आवश्यकता : धंधाकीय इकाई की नीतिमत्ता धंधे की प्राथमिक आवश्यकता को संतुष्ट करती है । ग्राहकों को योग्य संतोष प्राप्त होता है । कर्मचारियों को अपने कार्य के प्रति उत्साह बढ़ता है । अत: धंधे में नीतिमत्तापूर्ण निर्णय लेना चाहिए ।
- कर्मचारियों के संबंधों में विकास : इकाई के द्वारा नीतिपूर्ण व्यवहार उच्च अधिकारियों एवं सामान्य कर्मचारियों के बीच मधुर संबंध प्रगट करता है । धंधाकीय इकाई की नीतिमत्ता के कारण इकाई के कर्मचारियों में भी नीतियुक्त व्यवहार करने की प्रेरणा मिलती है ।
- योग्य निर्णय : नैतिक मूल्यों के कारण योग्य निर्णय लेने में सरलता रहती है । यदि संचालक नीतिमत्ता का आग्रह रख्खे तो आर्थिक, सामाजिक और नैतिक पहलूओं पर योग्य विचार कर सकता है । जिससे संचालक के द्वारा लिये गए निर्णय इकाई के लिए दीर्घकालीन समय में लाभकारक सिद्ध होते हैं ।
- लाभ में वृद्धि : धंधे में नैतिक व्यवहारों का उपयोग करने से इकाई के लाभ में वृद्धि होती है । इकाई की नीतिमत्ता का लाभ के साथ प्रत्यक्ष संबंध होता है ।
- इकाई की सलामती : धंधाकीय इकाई कानून के कर्ता नीतियों से अधिक सलामत है । कानून जो कार्य नहीं कर सकता वह कार्य आदर्श व्यवहार एवं योग्य संबंध कर सकता है ।