GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 10 अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार

Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 10 अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 10 अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार

GSEB Class 11 Organization of Commerce and Management अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार Text Book Questions and Answers

स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प पसन्द करके लिखिए ।

प्रश्न 1.
एक देश का अन्य देश के साथ का व्यापार अर्थात्
(A) स्थानिक व्यापार
(B) प्रादेशिक व्यापार
(C) राष्ट्रीय व्यापार
(D) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
उत्तर :
(D) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रश्न 2.
व्यापार के प्रकार में से कौन-से व्यापार से विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है ?
(A) निर्यात व्यापार
(B) आयात व्यापार
(C) आन्तरिक व्यापार
(D) प्रादेशिक व्यापार
उत्तर :
(A) निर्यात व्यापार

प्रश्न 3.
इनमें से कौन-से माध्यम द्वारा निर्यात प्रोत्साहन दिया जाता है ?
(A) विश्व बैंक के
(B) व्यापारिक बैंक के
(C) व्यापारी सन्धियों के
(D) व्यापारियों के
उत्तर :
(C) व्यापारी सन्धियों के

प्रश्न 4.
आयातक ऑर्डर में जो विवरण दर्शाता है वह पत्र किस नाम से पहचाना जाता है ?
(A) Input
(B) OGL
(C) L/C
(D) Indent
उत्तर :
(A) Input

प्रश्न 5.
निर्यातक को बिल ऑफ लेडिंग कौन देता है ?
(A) बीमा कम्पनी
(B) जहाजी कम्पनी
(C) जहाज का कप्तान
(D) बैंक
उत्तर :
(B) जहाजी कम्पनी

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प्रश्न 6.
माल जिस देश में उत्पादित हुआ है यह दर्शानेवाला प्रमाण क्या कहलाता है ?
(A) व्यापारी राजदूत का बीजक
(B) उत्पत्ति का प्रमाणपत्र
(C) शीपिंग ऑर्डर
(D) शान पत्र
उत्तर :
(B) उत्पत्ति का प्रमाणपत्र

प्रश्न 7.
शीपिंग ऑर्डर कौन देता है ?
(A) जहाज का कप्तान
(B) जहाजी कम्पनी
(C) जहाज का मालिक
(D) मध्यस्थ बैंक
उत्तर :
(B) जहाजी कम्पनी

प्रश्न 8.
भारत में विदेशी मुद्रा पर कौन-सी बैंक का नियंत्रण है ?
(A) स्थानिक बैंक
(B) व्यापारी बैंक
(C) रिजर्व बैंक
(D) कृषि बैंक
उत्तर :
(C) रिजर्व बैंक

प्रश्न 9.
माल का पैकिंग बराबर न हो तो जहाज का कप्तान निर्यातक को कौन-सी रसीद देता है ?
(A) दोषयुक्त रसीद
(B) दोषरहित रसीद
(C) अपूर्ण रसीद
(D) फटी हुई रसीद
उत्तर :
(A) दोषयुक्त रसीद

प्रश्न 10.
बैंक निर्यातक की सूचना के अनुसार आयातक के पास से बिल की रकम के भुगतान के सामने आयातक को जो दस्तावेज देते है उन्हें किस नाम से पहचाना जाता है ?
(A) D/A
(B) D/P
(C) OGL
(D) LOC
उत्तर :
(B) D/P

प्रश्न 11.
जहाजी कम्पनी और निर्यातक के मध्य पूरा जहाज किराये पर रखने के लिए जो करार होता है उसे किस नाम से पहचाना जाता है ?
(A) इन्डेन्ट करार
(B) शाखा नो करार
(C) चार्टर पार्टी करार
(D) निर्यात करार
उत्तर :
(C) चार्टर पार्टी करार

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2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए :

प्रश्न 1.
आयात (Import) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
आयात अर्थात् विदेश में से भारत में माल आता है तब यह भारत के लिए आयात किया ऐसा कहा जाता है । जैसे जापान से भारत में यंत्र मंगाना ।

प्रश्न 2.
निर्यात से आप क्या समझते है ?
उत्तर :
निर्यात अर्थात् भारत में से विदेश में माल बेचा अथवा भेजा जाये तब निर्यात किया ऐसा कहा जाता है । जैसे गुजरात में से आम जर्मन, जापान तथा अमेरिका भेजना ।

प्रश्न 3.
संज्ञाएँ समझाइए ।
(1) 0.G.L. : अर्थात् Open General Licence, जिसका अर्थ होता है ‘सामान्य लाइसन्स नीति’ । जिस माल का आयात व निर्यात करने के लिए लाइसन्स लेने की आवश्यकता न हो ऐसी वस्तुओं की सूची सरकार प्रति वर्ष प्रस्तुत करती है, उसे O.G.L. कहते हैं ।

(2) WTO : अर्थात् World Trade Organisation, विश्व व्यापार संगठन । ऐसा संगठन जिसके अन्तर्गत विश्व के समस्त व्यापारी एक ही व्यापार मंच पर इकट्ठे हो सके व समझौते कर सके । WTO का कार्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सम्बन्धों का संचालन करना है । भारत इस संगठन का सदस्य प्रारम्भ से ही हैं ।

(3) GATT : अर्थात् General Agreement on Trade and Tariff | भारत सरकार ने अपने देश के उद्योग-धन्धों को विदेशी प्रवाहों के साथ जोड़ने के लिए विभिन्न देशों के साथ करार (अनुबन्ध) किया है, उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि अनुबन्ध (GATT) कहते हैं । सन् 1948 में जिनेवा में 23 राष्ट्रों के मध्य यह करार किया गया था । ऐसे करार का मूलभूत उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को मुक्त व्यापार की । दिशा में ले जाना तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि करके प्रादेशिक श्रम विभाजन को उत्तेजित करना है ।

(4) SEZ : Special Economic Zone विशिष्ट आर्थिक विस्तार । यह एक ऐसा भौगोलिक विस्तार है कि जिसमें आर्थिक कानून अथवा नियम देश में बनाये हुए अन्य कानूनों की अपेक्षाकृत अधिक उदार होते हैं । विशिष्ट आर्थिक विस्तार की श्रेणी में अनेक विशिष्ट विस्तार शामिल किये गये है ।

जिसमें (a) निर्यात प्रोसेसिंग विस्तार, (b) मुक्त व्यापार विस्तार, (c) स्वतंत्र बन्दरगाह, (d) औद्योगिक गृहों का समावेश होता है । जिन का मुख्य उद्देश्य प्रत्यक्ष स्थानिक और विदेशी पूँजी निवेश को आकर्षित करता है ।

विशिष्ट आर्थिक विस्तार में औद्योगिक इकाईयों को चीजवस्तुओं की निर्यात वृद्धि के लिए जरूरी प्रोत्साहन जैसे कि – कस्टम ड्युटी, केन्द्रीय आबकारी जकात, सेवा कर, केन्द्रीय विक्रय कर तथा सिक्योरिटी ट्रान्जेक्शन टेक्स में से मुक्ति प्रदान की जाती है । स्थानिक और विदेशी पूँजी निवेश को आकर्षित करने के लिए प्रोत्साहन देना तथा ऐसे विस्तार में ढाँचाकीय सुविधाओं का विकास करना आदि प्रोत्साहन दिये जाते है ।

(5) EPZ : Export Processing Zone अर्थात् निर्यात प्रक्रिया विस्तार । भारत सरकार ने निर्यात व्यापार के लिए अलग अलग विस्तारों में EPZ की स्थापना की है । निर्यात वृद्धि द्वारा बड़े पैमाने में विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का यह एक प्रयत्न है । EPZ तथा FTZ (निर्यात प्रक्रिया विस्तार व मुक्त व्यापार विस्तार) परस्पर दोनों एकदूसरे के पर्यायवाची है । भारत सरकार द्वारा घोषित नीति के अन्तर्गत कंडला, सान्ताक्रुज (मुम्बई), फाल्टा, नोइडा, कोचीन, चेन्नई, विशाखापट्टनम, द्वारका के पास कोसिन्द्रा तथा भरूच के पास में दहेज इस तरह विविध स्थानों पर मुक्त व्यापार विस्तार स्थापित किये गये है ।

(6) D/A : Documents Against Acceptance : अर्थात् बैंक के माध्यम से हूण्डी के स्वीकार के सामने का दस्तावेज D/A कहा जाता है । हूण्डी स्वीकार के बाद आयातक को दस्तावेज का कब्जा मिल जाता है ।

(7) D/P : Documents Against Payment अर्थात् भुगतान के सामने दस्तावेज । निर्यात करनेवाले व्यापारी के द्वारा आयात करनेवाले को बैंक के द्वारा दस्तावेज के साथ हूण्डी भेजकर उनका भुगतान करने के बाद आयातकार द्वारा दस्तावेज का कब्जा प्राप्त किया जाता है । जिसे D/P की शर्त कहा जाता है ।

प्रश्न 4.
विदेश व्यापार का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
जब एक देश के लोग अथवा संस्थाएँ दूसरे देश के लोगों अथवा संस्थाओं के साथ व्यापार करे तब ऐसी प्रवृत्ति को विदेश व्यापार कहते हैं ।

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3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिये :

प्रश्न 1.
बिल ऑफ लेडिंग (Bill of Lading) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
बिल ऑफ लेडिंग यह निर्यातक और जहाजी कम्पनी के मध्य का करार है । जिसके द्वारा जहाजी कम्पनी एक बन्दरगाह से दूसरे बन्दरगाह तक माल पहुँचाने का विश्वास अथवा भरोसा दिलानेवाला दस्तावेज है । इस दस्तावेज में निर्यातक का नाम, जहाज का नाम, नूर, माल का विवरण, माल का जत्था, मूल्य, वजन, जिस स्थान से माल ले जाना हो उस बन्दरगाह का नाम, हस्तांतरण की शर्ते आदि दर्शायी जाती है ।

प्रश्न 2.
व्यापारी राजदूत का बीजक (Consular’s Invoice) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
आयातक देश का राजदूत निर्यातक के देश में होता है । उनके पास से निर्यातक माल के मूल्य सम्बन्धी प्रमाणपत्र प्राप्त करता है । उन्हें व्यापारी राजदूत का बीजक कहते हैं । जिसमें माल का जत्था व मूल्य आदि बातें दर्शायी जाती है । जिसके आधार पर जकात वसूल की जाती है ।

प्रश्न 3.
विदेश व्यापार में उत्पत्ति के प्रमाणपत्र की आवश्यकता किसलिए पड़ती है ?
उत्तर :
अलग-अलग देशों के मध्य किये गये करार अनुसार सम्बन्धित देश आयात जकात पर छूट देते है । इस करार के अन्तर्गत छूट प्राप्त करने के लिए सूचित माल किस देश में उत्पादित हुआ है, इससे सम्बन्धी प्रमाणपत्र की आवश्यकता पड़ती है । ऐसा प्रमाणपत्र व्यापारी मण्डल, चेम्बर ऑफ कॉमर्स अथवा सरकार के पास से प्राप्त किया जा सकता है ।

प्रश्न 4.
चार्टर पार्टी करार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
यदि निर्यातक पूरा जहाज किराये पर लेता हो तब जहाजी कम्पनी के साथ जो करार हुआ हो उन्हें चार्टर पार्टी करार कहते है ।

प्रश्न 5.
शीपिंग ऑर्डर से आप क्या समझते है ?
उत्तर :
शीपिंग ऑर्डर अर्थात् अपने जहाज के कप्तान को उसमें दर्शाया हुआ माल स्वीकार करने का जहाजी कम्पनी द्वारा किया गया आदेश ।

प्रश्न 6.
विदेश व्यापार (Foreign Trade) का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
यदि किसी एक देश के लोग अथवा संस्थाएँ दूसरे देश के लोग अथवा संस्थाओं के साथ व्यापार करे तब विदेश व्यापार कहा जाता है ।

प्रश्न 7.
बोन्डेड गोदाम :
उत्तर :
यदि आयातकार के पास आयाती माल की निश्चित की गई चुंगी पूरी तरह भरने की सुविधा न हो तो आयातकार आयाती माल को बोन्डेड गोदाम में ले जा सकता है । ऐसे गोदाम बंदरगाह के नजदीक आये हुए होते हैं और कस्टम अधिकारियों की सख्त देखरेख में होते हैं । आयातकार जैसे-जैसे चुंगी भरे वैसे-वैसे प्रमाण में माल का कब्जा प्राप्त कर सकता है । बोन्डेड गोदाम की सुविधा का लाभ यह है कि आयातकार जैसे-जैसे माल की बिक्री करता जाय वैसे-वैसे उसमें से अर्जित रकम में से चुंगी भरकर माल छुड़ा सकता है । यदि पुनः निर्यात के लिए माल हो तो भी बोन्डेड गोदाम में रखा जा सकता है । माल-सम्बन्धी कोई प्रक्रिया करनी हो तो भी यह बोन्डेड गोदाम में संभव है । इस प्रकार विदेश-व्यापार में बोन्डेड गोदाम की सेवा आशीर्वाद स्वरूप है ।

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प्रश्न 8.
बिल ऑफ लैडिंग :
उत्तर :
साथी की रसीद जहाजी कंपनी के ऑफिस में प्रस्तुत करने पर स्टीमर में माल चढ़ाने सम्बंधी पक्की रसीद (बिल ऑफ लैंडिंग) दी जाती है । बिल ऑफ लैडिंग में जहाज में चढ़ाये हुए माल का विवरण स्पष्ट किया गया होता है । यह माल का मालिकी-दर्शक दस्तावेज है । विदेशी आयातकार को बिल ऑफ लैडिंग के सामने जहाजी कंपनी माल का कब्जा देती है । बिल ऑफ लैडिंग जहाजी कंपनी देती है तथा उसमें माल भेजनेवाले का नाम, जहाज का नाम, जहाज के कप्तान का नाम, माल का थोक पैकिंग – मार्किंग का विवरण, आयातकार का नाम, जिस बंदरगाह पर माल भेजना हो उस बंदरगाह का नाम तथा नूर की रकम का समावेश किया जाता है । इसका ट्रान्सफर कर अधिकार-परिवर्तन किया जा सकता है ।

प्रश्न 9.
आयाती पेढ़ी :
उत्तर :
विदेश-व्यापार में आयातकार और निर्यातकार एक-दूसरे के प्रत्यक्ष संपर्क में हों ऐसा कम ही होता है । अधिकतर वे एकदूसरे से परिचित नहीं होते हैं । इसके उपरांत भाषा, रीति-रिवाज इत्यादि की कठिनाई के कारण व्यापारी विदेश-व्यापार में परेशानी अनुभव करते हैं । विदेशी वस्त् की जानकारी भी कम होती है । विदेश-व्यापार में जोखिम भी अधिक होता है । इसलिए आयातकार आयात करने में कठिनाई का अनुभव करता है । इस समस्या में समाधान के रूप में भारत में आयाती पेढ़ी का प्रारंभ हुआ ।

आयाती पेढ़ी भारत में आयातकारों को आयात के कार्य में मददरुप होती है । आयाती पेढ़ी छोटे जत्थे में ऑर्डर रखती है । यह अपने खर्च से अपने जोखिम से आयात कर देती है । इन्डेन्ट पेढ़ी को विदेश-व्यापार का विशाल अनुभव होने तथा बड़े जत्थे में आयात करने से कम खर्च में सरलता से आयात कर सकती है । इसके बदले में आयात पेढ़ी कमीशन वसूल करती है ।

4. निम्न प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर दीजिये :

प्रश्न 1.
निर्यात व्यापार के लिए विभिन्न प्रोत्साहनों को संक्षिप्त में समझाइये ।
उत्तर :
निर्यात व्यापार के निम्नलिखित प्रोत्साहन है ।
(1) व्यापारी समझौते (सन्धिया) : व्यापारी सन्धियों के माध्यम द्वारा निर्यात प्रोत्साहन दिया जाता है । राजकीय दृष्टि से एक-दूसरे को अनुकूल हो ऐसे देश के राजनैतिक इस माध्यम द्वारा सन्धि करते है । इस व्यापारी सन्धि के अनुसार एक अथवा अधिक देश अन्य कोई एक या एक से अधिक देशों के उत्पाद और सेवाओं का आयात करेंगे अथवा उन्हें अग्रिमता देंगे ऐसे करार करते है ।

(2) वित्तीय और आर्थिक उत्तेजन प्रतिफल : वित्तीय और आर्थिक उत्तेजन प्रतिफल के माध्यम द्वारा निर्यात प्रोत्साहन दिया जाता है । यह माध्यम बहुत ही बड़े पैमाने में और दीर्घ समय से उपयोग होता है । इस योजना के अनुसार –
(a) निर्यात कर्ता को निश्चित की गई दर पर प्रत्यक्ष प्रतिफल देना ।
(b) निर्यातपात्र उत्पादों पर के विक्रय कर और आबकारी कर न लेना अथवा कम लेना ।
(c) निर्यात की आय को पूर्ण अथवा अंशतः आयकर से मुक्ति देना ।
(d) निर्यात के उत्पादों का कच्चा माल अन्य साधन और विद्युत कम पर उपलब्ध कराना आदि जैसे उत्तेजित प्रतिफल दिये जाते है ।

(3) संकलित और सुग्रथित आर्थिक प्रोत्साहन : इस योजना में निश्चित की गई रकम की अथवा निश्चित किये गये उत्पादों का निर्यात किया जाये तो उनके बदले में प्राप्त विदेशी मुद्रा के निश्चित किए गए प्रमाण में आयात करने का अधिकार दिया जाता है । निर्यात का विश्वास देने के बदले में –
(a) सस्ती दर पर जमीन प्राप्त करने उन पर निर्यात पात्र उत्पादों का उत्पादन करना ।
(b) कारखाना स्थापित करने का लाभ ।
(c) कर और अन्य नियंत्रणों में से मुक्त ऐसे मुक्त व्यापार विस्तार में कारखाने स्थापित करने के बदले में समस्त अथवा निश्चित किये गये प्रमाण में उत्पाद निर्यात करना इत्यादि जैसे प्रोत्साहन दिये जाते है ।

(4) वित्तीय सविधाएँ और सेवाएँ : वित्तीय सुविधाएँ और सेवाओं के माध्यम द्वारा निर्यात प्रोत्साहन दिये जाते है जैसे कि,
(a) निर्यात कर्ताओं को उत्पादन का जिस दिन निर्यात करे उसी दिन बिल की रकम प्राप्त हो ऐसी व्यवस्था करना ।
(b) विदेशी मुद्रा की दर में परिवर्तन के सामने रक्षण प्रदान करना ।
(c) आयातकर्ता को सरलता से माल प्राप्त हो ऐसी व्यवस्था करना ।
(d) आयातकर्ता की आर्थिक सुदृढ़ता की जाँच करके उनकी जमानत के रूप में सेवा प्रदान करना आदि का समावेश वित्तीय सुविधाएँ
और सेवाओं के माध्यम में होता है ।

(5) बिनआर्थिक सुविधाएँ : निर्यातकर्ताओं को प्रत्यक्ष आर्थिक मदद करने के बदले में बिनआर्थिक सुविधाओं द्वारा भी प्रोत्साहन दिया जाता है जैसे कि –
(a) निर्यात के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करना ।
(b) निर्यातपात्र उत्पादों का उत्पादन करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति तैयार करने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करना । निर्यातकों के बीच स्पर्धा का आयोजन करके सबसे अधिक निर्यात करे उनका सम्मान करना ।
(d) निर्यात बाजारों की जानकारी प्रदान करना ।
(e) निर्यात उत्पादों का उत्पादन करनेवाले कारखानों में हड़ताल और तालाबंदी को अवैध घोषित करना आदि जैसे अनेक बिनआर्थिक निर्यात प्रोत्साहन दिए जाते है ।

(6) विशेष आर्थिक विस्तार : SEZ (Special Economic Zone) : विशेष आर्थिक विस्तार के बारे में कानून संसद द्वारा सन् 2005 में पारित किया गया था और 10 फरवरी सन् 2006 के दिन से लागू किया गया है । विशेष आर्थिक विस्तार यह एक ऐसा भौगोलिक विस्तार है कि जिसमें आर्थिक कानून देश में बनाये हुए अन्य कानूनों की अपेक्षाकृत अधिक उदार होते है । विशेष आर्थिक विस्तार की श्रेणी में अनेक विशिष्ट विस्तार शामिल किए जाते है जिसमें,

(a) निर्यात प्रोसेसिंग विस्तार
(b) मुक्त व्यापार विस्तार
(c) स्वतंत्र बन्दरगाह
(d) औद्योगिक गृहों का समावेश होता है । जिनका मुख्य उद्देश्य प्रत्यक्ष स्थानिक और विदेशी पूँजी निवेश को आकर्षित करना है । .

विशेष आर्थिक विस्तार में औद्योगिक इकाईयों की चीजवस्तुओं की निर्यात वृद्धि के लिए जरूरी प्रोत्साहन जैसे कि – कस्टम ड्युटी, केन्द्रीय आबकारी जकात, सेवा कर, केन्द्रीय विक्रय कर तथा सिक्योरिटी ट्रान्जेक्शन टेक्स में से मुक्ति प्रदान की जाती है । स्थानिक और विदेशी पूँजी निवेश को आकर्षित करने के लिए प्रोत्साहन देना तथा ऐसे विस्तार में ढाँचाकीय सुविधाओं का विकास करने के लिए प्रोत्साहन दिये जाते है ।

(7) निर्यात प्रक्रिया विस्तार (Export Processing Zone) : भारत सरकार ने निर्यात व्यापार के लिए अलग-अलग विस्तारों में निर्यात प्रक्रिया विस्तार की स्थापना की है । निर्यात वृद्धि द्वारा बड़े पैमाने में विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का यह प्रयत्न है । निर्यात प्रक्रिया विस्तार और मुक्त व्यापार विस्तार परस्पर पर्यायवाची है । भारत सरकार द्वारा निर्यात में वृद्धि के लिए सरकार द्वारा घोषित की गई नीति के अन्तर्गत निम्न क्षेत्र (Zone) बनाए गए है ।

  1. कांडला प्रवर्तन/प्रक्रिया क्षेत्र (KEPZ) कांडला, गुजरात
  2. सांताक्रुज इलेक्ट्रोनिक निर्यात प्रवर्तन क्षेत्र (SEEPZ) सांताक्रुज, मुम्बई
  3. मद्रास निर्यात प्रवर्तन क्षेत्र (MEPZ) चैन्नई, तमिलनाडु
  4. नोएडा निर्यात प्रवर्तन क्षेत्र (NEPZ) नोएडा, उत्तर प्रदेश
  5. कोचीन निर्यात प्रवर्तन क्षेत्र (CEPZ) कोचीन, केरल
  6. काल्टा निर्यात प्रवर्तन क्षेत्र (FEPZ) काल्टा, पश्चिम बंगाल
  7. विशाखापट्टनम निर्यात प्रवर्तन क्षेत्र (VEPZ)

द्वारिका के नजदीक कोसींद्रा एवं भरूच के नजदीक ऐसे मुक्त व्यापार क्षेत्र अनेक स्थानों पर स्थापित किये गये हैं । इन विस्तारों या क्षेत्रों का स्वरूप उसके छोटे पैमाने पर मुक्त व्यापार स्वरूप सा है, ऐसे स्थानों को चुंगी (जकात Excise), देश के अन्दर तथा विदेशों के साथ वित्तीय व्यवहार के नियमन एवं मजदूरों से सम्बन्धित कानून व नियमों से मुक्त किया गया है, इसके अलावा कारखाना चलाने के लिए बिजली, टेलिफोन तथा संदेशा-व्यवहार के साधनों, पानी इत्यादि की नियमित रूप से आपूर्ति का विश्वास दिया जाता है । इसको चिन्ता से मुक्त किया जाता है, निर्यात-सम्बन्धी सभी आवश्यक व सम्पूर्ण जानकारी, वाहन की सुविधा, अन्य देशों के उत्पाद की बाजार की स्थिति, निर्यात करने के लिए राजकीय सुविधा दी जाती है । अत: निर्यात-प्रक्रिया विस्तारों को, मुक्तता (स्वतंत्रता) का उद्देश्य निर्यातलक्षी होता है । ऐसे विस्तारों को निर्यात-अवरोधक-मुक्त रखा जाता है ।

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प्रश्न 2.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में विश्व व्यापार संगठन (WTO) की भूमिका समझाओ ।
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में राजकीय समीकरणों में परिवर्तन हुए है । युद्ध से प्रभावित राष्ट्र आर्थिक रूप से कमजोर हुए । नई राजकीय परिस्थिति में विश्व समुदाय को व्यापार में और अन्य क्षेत्रों में सहयोग देने के लिए संगठन की आवश्यकता उत्पन्न हुई । जिसके कारण विदेशी व्यापार संधि अनुबन्ध (GATT) की शुरूआत हुई । प्रत्येक देश ने अपनी जरूरत के अनुसार नाका बन्दी दिवारे बनाई फिर भी इससे जितना होना चाहिए उतना विकास नहीं हो सका जिसके परिणामस्वरूप उदारीकरण की जरूरत उत्पन्न हुई और विश्व व्यापार संगठन (WTO) की शुरुआत हुई ।

(1) विश्व व्यापार संगठन
(2) विदेशी व्यापार संधि अनुबन्ध

(1) विश्व व्यापार संगठन : विश्व व्यापार संगठन का कार्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सम्बन्धों का संचालन करना है, जिससे समस्त विश्व का एक ही व्यापार मंच खड़ा हो और वैश्वीकरण का मार्ग और उनका कद बढ़े । इस संगठन को समर्थन देनेवाले 104 देशों ने हस्ताक्षर किये है । सन् 1995 की जनवरी से इस संगठन ने उनकी विधिवत् कार्यवाही प्रारम्भ की । भारत इस संगठन का प्रारम्भ से ही सदस्य है । विश्व व्यापार संगठन की कार्यवाही और प्रशासकीय व्यवस्था के कारण सेवा क्षेत्र का तेजी से विकास हआ है । बीमा, बैंकिंग तथा परिवहन के क्षेत्र में अलग-अलग देशों के मध्य भौगोलिक सीमाएँ मिटने लगी और समग्र विश्व एक गाँव (Global Village) बन गया है । विश्व बाजार विश्व व्यापार संगठन के कारण विकसित हुआ है । इस संगठन के कारण कृषि, उद्योग और स्वास्थ्य विषयक सुविधाओं के उत्पादन में वृद्धि करके निर्यातों को बढ़ावा मिलने की सम्भावनाएँ बढ़ी है । शिक्षण क्षेत्र में विदेश की युनिवर्सिटी या भारत में प्रवेश करनेवाले के अवसर खुल गये है । अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे विभिन्न देशों की युनिवर्सिटीयाँ ने गुजरात सहित भारत के विभिन्न राज्यों में उनके केम्प का आयोजन किया है ।

प्रश्न 3.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संधि अनुबन्ध (GATT – General Agreement on Trade and Tariff) पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
भारत सरकार ने अपने देश के उद्योग-धन्धों को विदेशी प्रवाहों के साथ जोड़ने के लिए विभिन्न देशों के साथ करार किया है उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय (विदेशी) संधि अनुबन्ध कहते हैं ।

सन् 1948 में जिनेवा में 23 राष्ट्रों के मध्य यह करार किया गया था । ऐसे करार (अनुबन्ध) का मूलभूत उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि करके प्रादेशिक श्रम विभाजन को उत्तेजित करना है । विदेशी व्यापार सन्धि करार यह वैश्वीकरण के अनुरूप मुक्त व्यापार नीति है । शासन व्यवस्था भी अनुकूल है और भौतिक सुविधाएँ भी तेजी से फैल रही है । व्यापार जगत में नवीन प्रवाह अलग-अलग स्वरूप में भारत में आकार प्राप्त कर रहे है ।

प्रश्न 4.
‘जहाज का कप्तान कई बार दोषयुक्त रसीद देता है ।’ विधान समझाइये ।
उत्तर :
उपरोक्त विधान सत्य है, क्योंकि विदेश व्यापार में निर्यात किया जानेवाला माल जहाज में चढ़ाते है तब जहाज का कप्तान जो रसीद देता है उन्हें साथी की रसीद कहा जाता है । यदि माल का पैकिंग बराबर न हो अथवा वाहन के योग्य न हो तब उनकी रसीद में टिप्पणी की जाती है तो ऐसी टिप्पणीवाली रसीद को ‘दोषयुक्त रसीद’ कहते हैं । यदि पैकिंग अनुकूल हो तो ‘दोष रहित’ रसीद दी जाती है । दोषयुक्त रसीदवाले माल को कप्तान स्वीकार नहीं करता है । अत: कहा जाता है कि जहाज का कप्तान कई बार दोषयुक्त रसीद देता है ।

प्रश्न 5.
‘विश्व एक गाँव बन गया है ।’ विधान की यथार्थता समझाइए ।
उत्तर :
विश्व व्यापार संगठन की कार्यवाही और प्रशासकीय व्यवस्था के कारण सेवाक्षेत्र का तेजी से विकास हुआ है । बीमा, बैकिंग तथा परिवहन के क्षेत्र में अलग-अलग देशों के मध्य भौगोलिक सीमाएँ मिटने लगी और समग्र विश्व एक गाँव बन गया है । विश्व बाजार विश्व व्यापार संगठन के कारण विकसित हुआ है । इस संगठन के कारण कृषि, उद्योग और स्वास्थ्य विषयक सुविधाओं के उत्पादन में वृद्धि करके निर्यातों को बढ़ावा मिलने की सम्भावनाएँ बढ़ी है । शिक्षण क्षेत्र में विदेश की युनिवर्सिटी या भारत में प्रवेश करने की अथवा भारत में आने के अवसर खुल गये है । अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे विभिन्न देशों की युनिवर्सिटीयाँ गुजरात सहित भारत के विभिन्न . राज्यों में उनके केम्प का आयोजन किया है ।

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5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दीजिये :

प्रश्न 1.
विदेश-व्यापार (Foreign Trade) का अर्थ बताकर इसका महत्त्व समझाइए ।
उत्तर :
विदेश-व्यापार का अर्थ (Meaning) : सामान्य अर्थ में दो या दो से अधिक देशों के मध्य होनेवाले व्यापार को विदेशी व्यापार कहते हैं । जैसे भारत का व्यापारी अमेरिका (USA) से व्यापार करे, तो यह विदेशी व्यापार कहलायेगा ।

परिभाषाएँ (Definitions):

  1. थॉमस (Thomus) : एक देश के उत्पादक का दूसरे देश के साथ विनिमय अर्थात् विदेश-व्यापार ।
  2. टपस्ट्रा वर्न (Taparstra Varne) : विदेश-व्यापार राष्ट्रीय सीमाओं के बाहर किया जानेवाला विपणन है ।
  3. हेस एवं कटेओरा (Hase & Cateora) : विदेशी व्यापार उन सभी धन्धाकीय क्रियाओं का निष्पादन है, जिसमें एक से अधिक देशों के उपभोक्ता या प्रयोक्ताओं की ओर वस्तुएँ प्रवाहित की जाती है । एवं आवश्यकता की वस्तुएँ क्रय की जाती हैं ।

महत्त्व (Importance) : विदेश-व्यापार का महत्त्व निम्नलिखित है :
1. श्रम-विभाजन तथा विशिष्टीकरण का लाभ : विश्व के पृथक-पृथक देशों के मध्य प्राकृतिक साधन-सम्पत्ति का असमान विवरण हुआ होने से देश की जरूरतमंद सभी वस्तुएँ उत्पादित नहीं होती । जिस देश में जिस वस्तु का उत्पादन अनुकूल हो वह वस्तु कम खर्च पर सरलता से उत्पादन करके अन्य देश में निर्यात कर सकते है । और देश की आवश्यकतावाली वस्तुएँ विदेश से आयात की जा सकती है । अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण आयातकर्ता देश एवं निर्यातकर्ता देश को श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण का लाभ मिलता है ।

2. अल्पविकसित देशों का विकास : विदेशी व्यापार के कारण विदेशी टेक्नोलॉजी, आधुनिक संचालकीय ज्ञान, संशोधन, विदेशी पूँजी आदि का आयात कर सकते है । अल्पविकसित देश अन्य देशों के साथ सहयोग के अनुबन्ध (करार) करके उद्योग-धन्धे स्थापित करके देश का विकास आसानी से किया जा सकता है ।

3. साधन-सम्पत्ति का अधिकतम उपयोग : विश्व के पृथक-पृथक देशों की साधन-सम्पत्ति का ज्यादातर उपयोग विदेशी व्यापार के कारण होता है । प्रत्येक देश अपनी आवश्यकता के अनुसार टेक्नोलॉजी, यंत्र और मानवीय श्रम का आयात करके अपने साधनों का महत्तम . उपयोग सम्भव बनाते है । विभिन्न देशों में स्थित लोग अपने देश की प्राकृतिक सम्पत्ति का उपयोग उनकी योग्यता अनुसार करके उत्पादन में वृद्धि करते है और अतिरिक्त उत्पादन का निर्यात करते है ।

4. आनुषांगिक/सहायक सेवाओं का विकास : विदेशी व्यापार के कारण आयात और निर्यात होने से वाणिज्य विषयक सहायक सेवाएँ जैसे कि बैंक, बीमा, गोदाम, संदेशा व्यवहार, परिवहन की सेवाएँ, आढ़तिया आदि सेवाओं का विकास होता है ।

5. मूल्य स्तर को स्थिर बनाये रखना : विदेशी व्यापार द्वारा देश में जिस वस्तु की अधिक से अधिक घट (कमी) है उनका निर्यात करके घटते मूल्य को रोका जा सकता है, और इस तरह वस्तु की घट (कमी) को उनका आयात करके बढ़ते हुए मूल्य को रोका जा सकता है । इस तरह विदेशी व्यापार द्वारा मूल्य स्तर को स्थिर रखा जा सकता है ।

6. ऊँचा जीवन स्तर : विदेशी व्यापार में अलग-अलग देशों के मध्य स्पर्धा होती रहती है । स्पर्धा में बने रहने के लिए उत्पादक अपनी वस्तु की कीमत (मूल्य) कम हो और अधिक अच्छी गुणवत्ता बनी रहे इसके लिए प्रयास करते है । उत्तम गुणवत्तावाली वस्तु कम मूल्य पर मिलने से लोगों के जीवन स्तर में सुधार होता है ।

7. संस्कृति, फैशन और ज्ञान का विनिमय : विदेशी व्यापार के कारण अलग-अलग देश एक-दूसरे के सम्पर्क में आते है, एक-दूसरे के बारे में जानकारी प्राप्त करते है और एक-दूसरे की संस्कृति समझते है, जिससे दीर्घ समय पर विदेशी सुमेल और संवादिता बनाई जा सकती है । इस तरह, अलग-अलग देशों के मध्य संस्कृति, फैशन और ज्ञान का विनिमय (आदान-प्रदान) होता है ।

8. आपत्तिकाल में सहायक : अकाल, भूकम्प, रोग का फैलना, आँधी जैसी प्राकृतिक अथवा मानवसर्जित आपत्तियों में वस्तु की आपूर्ति अनियमित हो जाती है, तब विदेशी व्यापार का विशेष महत्त्व होता है । भारत जैसे देश में अधिकांशत: कृषि वर्षा पर आधारित है । यदि पर्याप्त मात्रा में वर्षा न होने पर कृषि असफल हो जाती है । ऐसे समय पर विदेश से अनाज आयात करके प्राकृतिक आपत्तियों का सामना किया जा सकता है ।

9. विश्व एक बाजार : औद्योगिक रूप से विकसित और समृद्ध राष्ट्र उच्च (ऊँची) टेक्नोलॉजी का उपयोग करके बड़े पैमाने पर उत्पादन करते है । ऐसे उत्पादन को बेचने के लिए सतत नये बाजार खोजने के प्रयत्न करते है, इसके लिए देश की सीमाए पार करते है । जिसके कारण विदेशी बाजार विकसित होता है । इस तरह विश्व के बहुत से देश अन्तर्राष्ट्रीय (विदेशी) बाजार में प्रवेश करते है। जिससे विश्व एक बाजार बन गया है ।

प्रश्न 2.
आयात विधि (Import Procedure) संक्षेप में समझाइये ।
उत्तर :
आयात व्यापार अर्थात् जब दूसरे देश से माल मँगाया जाये अथवा खरीदा जाये तो उन्हें आयात व्यापार कहते हैं । इसकी विधि निम्नानुसार है :
(1) आयात लाइसन्स प्राप्त करना : हमारे देश में विदेशों से आयात करने के लिए लाइसन्स प्राप्त करना आवश्यक है । इसके लिए सामान्य अथवा विशिष्ट लाइसन्स प्राप्त करना होता है । सामान्य लाइसन्स द्वारा किसी भी देश से माल आयात किया जा सकता है । जबकि विशिष्ट लाइसन्स द्वारा मात्र उसमें दर्शाये गये देशों से ही आयात किया जा सकता है । हालांकि सरकार के उदारीकरण की नीति से अब . धीरे-धीरे इस लाइसन्स का महत्त्व कम होने लगा है ।

लाइसन्स प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा निर्धारित की गई फीस सरकारी ट्रेजरी, रिझर्व बैंक या स्टेट बैंक में जमा करानी पड़ती है । इस रसीद के आधार से उसमें निर्दिष्ट कीमत पर आयात किया जा सकता है । यदि आयात-कर्ता ने पिछले वर्ष आयात की हो तो उसे चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट से सर्टिफिकेट प्राप्त करना पड़ता है जिसमें उसने कितना आयात किया गया है उस सम्बन्ध में चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट प्रमाणपत्र देता है । इसी प्रकार आयात-कर्ता की आय के बारे में भी आयकर-अधिकारी से प्रमाणपत्र प्राप्त करना होता है । वैसे OGL – (Open General Licence) की सूची में सामिल वस्तु के अलावा की वस्तु आयात करनी हो तो आयात लाइसन्स प्राप्त करना होता है ।

उपरोक्त दस्तावेज प्राप्त करने के बाद आयात-कर्ता का संलग्न अधिकारियों को निवेदन भेजना पड़ता है जिसके आधार पर उसे आयात- . लाइसन्स प्राप्त होता है । आयात-लाइसन्स की दो प्रतिलिपियाँ होती हैं । एक नकल आयातकार के लिए होती है तथा दूसरी प्रतिलिपि विदेशी मुद्रा के लिए होती है । आयातकार की प्रतिलिपि के आधार पर माल लाया जा सकता है, और दूसरी प्रतिलिपि के आधार पर अन्य देश में कीमत का भुगतान किया जा सकता है ।

यदि सरकार ने स्वयं माल के संबंध में विशिष्ट प्रमाण निश्चित किया हो तो संलग्न अधिकारी प्रमाण (क्वोटा) का सर्टीफिकेट भी देता है । आयात-कर्ता किस कीमत का माल कितनी मात्रा में मँगा सकता है वह उसमें दर्शाया जाता है ।

(2) विदेशी मुद्रा प्राप्त करना : विदेश से माल मँगाना हो तो धन का भुगतान विदेशी मुद्रा में ही करना होगा । हमारे देश में अब तक विदेशी मुद्रा-प्राप्ति पर नियंत्रण लगा हुआ है और किसे कितनी विदेशी मुद्रा देनी है इसका निर्णय भी RBI करती है । अर्थात् विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए निर्धारित तरीके से RBI को निवेदन भेजना होता है । परन्तु उसके पहले जिस बैंक को सरकार ने विदेशी मुद्रा का व्यापार करने का अधिकार दिया हो वह बैंक यह कर सकती है । बैंक में आवेदन-पत्र पर शेयर प्राप्त करने होते हैं । आयात-लाइसन्स के आधार पर बैंक पृष्ठांकन कर देती है । शेयरों के साथ अरजी बैंक में भेजी जाती है जिसके आधार पर रिजर्व बैंक आवश्यक मुद्रा देती है । अब सरकार की नई नीति के कारण निर्यातकारों को निर्यात किए गये माल या सेवा की कीमत में निश्चित प्रतिशत से मुद्रा अपने नाम से अलग रख सकती है । इस मुद्रा की सहायता से वह सीधे आयात कर सकता है ।

(3) ऑर्डर देना : आयात लाइसन्स और विदेशी मुद्रा की कार्यवाही पूर्ण होने के बाद आयातकर्ता, निर्यातकर्ता देश के विविध उत्पादकों व निर्यातकों के पास से माल का विवरण, मूल्य तथा अन्य शर्तों की जानकारी प्राप्त करते है । जिस उत्पादक अथवा निर्यातकर्ता की शर्ते अनुकूल लगे उनको ऑर्डर देते हैं । आयातकर्ता माल के आयात के बारे में जो ऑर्डर दिया जाता है, उन्हें ‘Indent’ ‘इन्डेन्ट’ कहते हैं । इन्डेन्ट में माल का विवरण, मूल्य, पैकिंग, बीमा, ट्रान्सपोर्ट कम्पनी का नाम आदि बातों की स्पष्टता की जाती है ।

(4) शाखपत्रक भेजना (L/C – Letter of Credit): माल का ऑर्डर देने के बाद धन के भुगतान की व्यवस्था करनी होती है । विदेशी व्यापार में लेटर ऑफ क्रेडिट द्वारा धन का भुगतान होता है । आयात-कर्ता अपने बैंक द्वारा लेटर ऑफ क्रेडिट प्राप्त करता है तथा विदेशी व्यापारियों को भेज देता है । यह लेटर ऑफ क्रेडिट बैंक द्वारा धन भुगतान की गारंटी देता है । जिससे विदेशी व्यापारी निश्चित रहते हैं कि धन का भुगतान अवश्य होगा ।

(5) योग्य दस्तावेज प्राप्त करना : निर्यात-कर्ता आवश्यक सभी दस्तावेज अपने बैंक के माध्यम से भेज देता है । विदेशी बैंक ये दस्तावेज आयात-कर्ता के देश में अपनी शाखा अथवा प्रतिनिधि बैंक को भेज देता है । आयातकर्ता योग्य भुगतान कर बैंक से ये दस्तावेज प्राप्त कर लेता है । सामान्यतः बैंक के माध्यम से हुण्डी के स्वीकार के सामने का दस्तावेज (DA – Document Against Acceptance) अथवा भुगतान के सामने दस्तावेज DP – Document Against Payment भेजता है ।

(6) माल प्राप्ति का ऑर्डर प्राप्त करना : बिल ऑफ लेडिंग माल की मालिकी दर्शानेवाला दस्तावेज है । इस दस्तावेज पर निर्यातक हस्तांतरण करके आयातक को माल की मालिकी सौंप देता है ।

यह दस्तावेज जहाजी कम्पनी के कार्यालय में प्रस्तुत करना पड़ता है । जहाज के माध्यम से आनेवाले माल का कब्जा जहाजी कम्पनी के पास में होता है । यदि आयातक को नूर भरना हो तो वह भर देने से बिल ऑफ लेडिंग पर जहाजी कम्पनी हस्तांतरण (शेरो) करके जहाज के कप्तान को आयातक के पक्ष में माल देने का आदेश देते हैं । जिसके आधार पर आयातक माल छुड़ा सकता है ।

(7) आयात चुंगी की अदायगी : आयात चुंगी भरने के लिए कस्टम हाउस में से बिल ऑफ एन्ट्री नामक दस्तावेज की तीन प्रतिलिपियाँ प्राप्त की जाती है । जिस माल पर आयात चुंगी लागू न पड़ती हो उसके लिए दूसरा पत्रक तथा जिस माल का पुनः निर्यात करना हो उसके लिए तीसरा पत्रक होता है । तीनों ही पत्रक अलग-अलग रंग के होते हैं ।

इस बिल ऑफ एन्ट्री के पत्रक में जहाज में माल विदेश के जिस बंदरगाह से चढ़ाया गया हो उस बंदरगाह का नाम, आयातकार का नाम, पता और माल की पूर्ण जानकारी भरी जाती है । इसमें दर्शाई गई जानकारी के बारे में शंका हो तो माल की जाँच की जाती है । बिल ऑफ एन्ट्री की तीन प्रतिलिपियाँ होती हैं । एक चंगी जकात अधिकारी रखता है तथा शेष दो चंगी दलाल को देता है ।

(8) डाक-चार्ज की अदायगी : माल उतारने के लिए निश्चित रकम चुकानी पड़ती है जिसे डाक-चार्ज कहा जाता है । क्लियरिंग एजन्ट डाक-चार्ज भरे तब उसे जो रसीद दी जाती है उसे डाक रसीद कहा जाता है । इस रसीद के द्वारा माल का कब्जा प्राप्त किया जा सकता है ।

(9) माल का कब्जा प्राप्त करना : उपर्युक्त सभी विधि पूरी होने के बाद क्लियरिंग एजेन्ट माल का तुरन्त कब्जा प्राप्त करता है । यदि वह ऐसा न करे तो उसे डेमरेज भरना होता है । यदि माल को नुकसान हुआ हो तो जहाज के कप्तान को तुरन्त सूचित किया जाता है और दलाल जहाजी कंपनी अथवा बीमा-कंपनी से नुकसानी का मुआवजा लेने का अधिकारी बनता है ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 10 अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रश्न 3.
निर्यात विधि (Export Procedure) के सोपान अथवा अवस्थाएँ समझाइये ।
उत्तर :
एक देश का व्यापारी दूसरे देश के व्यापारी को माल भेजता है तब उसे दूसरे देश में निर्यात किया ऐसा कहा जाता है । विदेशव्यापार द्वारा विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है । अलग-अलग देशों में निर्यात विधि अलग-अलग पाई जाती है । परन्तु भारत में सामान्यत: निम्न विधि पाई जाती है ।

(1) ऑर्डर प्राप्त करना : सर्वप्रथम ऑर्डर या इन्डेन्ट प्राप्त करना होता है । आयात-विधि के अनुसार ऑर्डर ओपन या क्लोज्ड हो सकता है । ओपन ऑर्डर में विवरण नहीं होता तथा निर्यातकार स्वयं विवरण भर देता है । जबकि क्लोज्ड ऑर्डर में सम्पूर्ण विवरण अर्थात माल की थोक कीमत, पैकिंग आदि का विवरण होता है ।

ऑर्डर प्राप्त होते ही निर्माता माल भेज दे यह आवश्यक नहीं है । पहले वह आयातकार के विषय में जानकारी प्राप्त करता है । यदि आयातकार की शान अच्छी हो तो ही माल भेजने की विधि आगे बढ़ाता है ।

(2) निर्यात लाइसन्स प्राप्त करना : भारत में आयात-निर्यात व्यापार पर बहुत नियंत्रण है । कुछ निश्चित वस्तुओं का निर्यात करना हो तो कानून के अंदर दिये गये परिशिष्ट में इसका उल्लेख है या नहीं यह जानना आवश्यक होता है और ऑर्डर के अनुसार माल की निर्यात अवधि संभव है या नहीं यदि माल परिशिष्ट में शामिल न हो तो इस माल का निर्यात उचित लाइसन्स धारण करनेवाला आसानी से कर सकता है ।

जिस माल पर निर्यात के लिए नियंत्रण होता है उसे भी दो भागों में बाँटा जाता है । ओपन जनरल लाइसन्स के अनुरूप माल और खास नियंत्रण लागू होनेवाला माल । ओपन जनरल लाइसन्स जिसे OGL कहा जाता है के अनुरूप किसी निश्चित समय के लिए माल के निर्यात की मंजूरी मिलती है । इस तरह का लाइसन्स प्राप्त करने के लिए उचित अधिकारी से निर्धारित रूपरेखानुसार निवेदन करना पड़ता है । रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सरकारी खाते में निर्यात लाइसन्स-फीस भरनी पड़ती है और निर्यातकार आयकर नियमित भरता है ऐसा प्रमाणपत्र भी प्राप्त करना होता है । आवेदन-पत्र के साथ लाइसन्स फीस की रसीद तथा आयकर का प्रमाणपत्र योग्य अधिकारी को देना होता है ।

जिस माल की तंगी हो और उसका निर्यात करना हो तो उसके लिए क्वोटा परमिट दिया जाता है ।
निर्यात लाइसन्स देने के सम्बन्ध में निर्यातकार के तीन प्रकार किए गये हैं : स्थापित निर्यातकार, उत्पादक तथा नवागंतुक स्थापित निर्यातकार अर्थात् ऐसे निर्यातकार जिन्होंने निर्दिष्ट समय के अन्दर माल का निर्यात किया हो । उत्पादक अर्थात् वस्तु के ऐसे उत्पादक जिन्होंने अपने उत्पादन के कुछ हिस्सों का निर्यात करने के लिए लाइसन्स प्राप्त किया हो । नवागंतुक अर्थात् वस्तु के आंतरिक व्यापार में संलग्न व्यापारी अथवा जिन्होंने निर्दिष्ट समय के उपरांत अन्य समय में निर्यात किया हो । लाइसन्स देने के सम्बन्ध में स्थानिक निर्यातकों को प्राथमिकता दी जाती है ।

(3) माल इकट्ठा करना : निर्यातक को निर्यात लाइसन्स मिलता है – अर्थात् आयताकार के ऑर्डर अनुसार माल इकठ्ठा करता है । निर्यातक यदि उत्पादक हो तो ऑर्डर के अनुसार माल का उत्पादन करता है और यदि व्यापारी हो तो ऑर्डर के अनुसार माल इकठ्ठा करता है ।

(4) विदेशी मुद्रा की व्यवस्था करना : भारत में अभी-अभी उदारीकरण की नीति अमली हुई है । परन्तु अभी भी कुछ मात्रा में नियंत्रण है मगर पहले तो सम्पूर्ण विदेशी मुद्रा पर नियंत्रण होता था जिससे निर्यातकों को उसके लिए आवेदन करना पड़ता था । आज निर्यात की कुल रकम के निर्धारित प्रतिशत की रकम रिजर्व बैंक में जमा करानी पड़ती है ऐसा निवेदन कस्टम अधिकारी अथवा रिजर्व बैंक के अधिकारी को करना होता है । इसके लिए निर्यात को चार फोर्म भरने पड़ते हैं जिन्हें जी. आर. पत्रक कहा जाता है । इस पत्रक में निर्यातकार निर्यात किए गये माल की कीमत, धन किस तरह प्राप्त करना है तथा विदेशी मुद्रा से संबंधित अधिकृत व्यापारी बैंक का नाम इत्यादि दर्शाया जाता है । इस पत्रक की एक प्रतिलिपि माल भेजते समय कस्टम अधिकारी को दी जाती है तथा शेष तीन प्रतिलिपियाँ विदेशी मुद्रा से व्यवहार करनेवाले बैंक को भेजी जाती हैं । बैंक उनमें से दो प्रतिलिपियाँ रिजर्व बैंक को भेजती है ।

(5) शानपत्रक प्राप्त करना : आयात तथा निर्यात दोनों व्यापार में शानपत्र द्वारा ही व्यापार किया जाता है जिससे सामने के पक्ष को शान के विषय में जानकारी प्राप्त हो । भारत में जिस बैंक की शाखा हो उस बैंक का शानपत्र अथवा लेटर ऑफ क्रेडिट आयात को भेजना पड़ता है । यदि आयातकार की प्रतिष्ठा हो और उसके साथ बार-बार व्यापार होता हो तब बैंक रेफरन्स भी जारी कर सकता है ।

(6) शिपिंग ऑर्डर प्राप्त करना : आयातकार की शान की जानकारी हो जाने के बाद स्टीमर अथवा एयरकार की व्यवस्था करनी होती है । इसलिए संबंधित कंपनी के साथ वाहन में जगह प्राप्त करने के लिए करार करना पड़ता है । इसके लिए निर्यात से पूर्व जहाज के लिए आवेदन-पत्र देना होता है । आवेदन-पत्र में निर्यातकार माल का सम्पूर्ण विवरण देता है तथा कब तक जगह चाहिए उसकी संभवित तारीख देता है । कप्तान शिपिंग ऑर्डर देता है । शिपिंग ऑर्डर द्वारा कंपनी जहाज के कप्तान को आदेश देती है कि निश्चित माल निश्चित जगह से चढ़ाना है । कई बार पूरा जहाज या विमान भाड़े पर ले लिया जाता है । इस प्रकार के लिए गये करार को चार्टर्ड पार्टी करार . कहा जाता है । स्टीमर तथा विमान में स्थान प्राप्त करने के लिए दलाल नियुक्त किये जाते हैं । वे इस तरह के काम में सही जानकारी रखते हैं तथा सभी परिस्थिति से परिचित होते हैं ।

(7) जकात का भुगतान : निर्यात अथवा उसके द्वारा नियुक्त फार्वडिंग एजेन्ट उसके बाद चुंगी-विधि तैयार करता है । इसके लिए शिपिंग बिल नामक दस्तावेज की तीन नकल तैयार की जाती है । शिपिंग बिल अर्थात् ऐसा प्रारूप जिसमें निर्याता अपना नाम, माल का वर्णन, जहाज का नाम किस बंदरगाह पर माल उतारना है आदि विवरण लिखता है । जकात अधिकारी द्वारा यह प्रारूप प्राप्त किया जा सकता है।

जकात के संबंध में माल को तीन भागों में विभाजित किया जाता है :

  • मुक्त माल – जिस पर जकात नहीं लगती
  • जकात लेने के पात्र माल
  • पुनः निर्यात के लिए माल

इसके उपरांत निर्यात आवेदन-पत्र भी दो प्रतिलिपियों में होती है । पोर्ट-ट्रस्ट लैडिंग तथा शिपिंग न्यूज ऑफिस द्वारा यह अरजी प्राप्त की जा सकती है ।

शिपिंग बिल तथा निर्यात आवेदन-पत्र लैंडिंग तथा शिपिंग न्यूज ऑफिस में प्रस्तुत किया जाता है । इस ऑफिस में निश्चित फीस भरनी होती है । इसके उपरांत फीस भरने की रसीद के साथ निर्यात आवेदन-पत्र की रकम प्रतिलिपि और शिपिंग बिल की तीन प्रतिलिपियाँ वापस मिलती हैं ।

ये दोनों दस्तावेज निर्यात ऑफिस में दिये जाते हैं तब अधिकारी भुगतान पात्र जकात की गिनती करता है और जकात भरने के बाद अधिकारी मंजूरी देता है ।

(8) पैकिंग तथा मार्किंग : निर्यात व्यापार में पैकिंग महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पैकिंग मजबूत होनी चाहिए । इसके उपरांत पैकिंग में थोडा परिवर्तन नूर में कभी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन ला सकता है । क्योंकि जहाजी कंपनी कप्तान मात्र माल के वजन से नूर निश्चित करता है ऐसा नहीं है । माल का वजन और कीमत दोनों बातें ध्यान में रखी जाती हैं । इसलिए कम से कम जगह रोके ऐसी पैकिंग करनी चाहिए । पैकिंग पर माल जहाँ पहुँचाना है उसका नाम, पता, क्रेता पेढ़ी का नाम, पैकिंग का वजन और आकार के अलावा अन्य विवरण भी दिया जाता है ।

ठीक ढंग की पैकिंग करने के बाद इस पैकिंग में ऊपर स्टेन्सिल के द्वारा मार्किंग की जाती है जिससे माल का पैकिंग आसानी से पहचाना जा सके ।

(9) माल का बीमा लेना : समुद्री मार्ग द्वारा निर्यात करना हो तब समुद्री जोखिम जैसे कि समुद्री आँधी, वातावरण से माल को होनेवाला नुकसान, समुद्री लुटेरों द्वारा होनेवाली माल की लूट आदि की मदद से होनेवाले नुकसान के सामने आर्थिक मुआवजा प्राप्त करने के लिए माल का बीमा लेना पड़ता है । बीमा कम्पनी के साथ इसके बारे में करार किया जाता है । बीमा कम्पनी प्रीमियम निश्चित करे वह भरने से निर्यातक को ‘कवर नोट’ दिया जाता है । बीमा पॉलिसी तैयार होती है अर्थात् कवर नोट के बदले में बीमा कम्पनी पोलिसी होती है ।

(10) कार्टेग ऑर्डर प्राप्त करना : कार्टिंग ऑर्डर अर्थात् जहाज पर माल चढ़ाने के लिए अनुमति । कार्टिंग ऑर्डर प्राप्त करने के लिए जिस बन्दरगाह से माल निर्यात करना हो उनके सक्षम अधिकारियों को निर्यातक को आवेदन करना पड़ता है । इस आवेदन में शापिंग बिल में दर्शायी हुई समस्त जानकारी के उपरान्त जकात भुगतान किया है, इसकी जानकारी दर्शायी जाती है । निर्यातक बन्दरगाह पर के खर्च जैसे कि माल स्थानान्तरण का खर्च और जहाज पर माल चढ़ाने का खर्च आदि भरते है तब निर्यातक को कार्टिंग ऑर्डर देते है ।

(11) कप्तान या साथी की रसीद (Mate Receipt) : कार्टिंग ऑर्डर के आधार पर माल जहाज पर चढ़ाया जाता है । जहाज के कप्तान को प्रतिनिधि ‘मेट’ से पहचाना जाता है । शीपिंग बिल के अनुसार माल है या नहीं यह मेट जाँच कर लेता है । जब जहाज पर माल चढ़ाया जाये तब जहाज के कप्तान अथवा उनका प्रतिनिधि की तरफ से माल स्वीकार किया है । इस संदर्भ की जो रसीद दी जाती है उन्हें साथी की रसीद कहते है, जहाज का कप्तान माल के पैकिंग की जाँच करते है । यदि माल का पैकिंग योग्य/सन्तोषप्रद न हो अथवा वाहन के लिये योग्य न हो तो उनकी रसीद में टिप्पणी की जाती है । ऐसी टिप्पणी लिखी हुई रसीद को दोष सहित रसीद (Foul Receipt) अथवा डर्टी चीट के रूप में पहचाना जाता है । यदि समस्त सूचनाएँ योग्य हो तो क्लीन रसीद दी जाती है । यदि साथी की रसीद दोषमुक्त हो तो इसका अर्थ होता है कि जहाज में चढ़ाया जानेवाला माल का ऑर्डर के अनुसार पैकिंग नहीं है और माल के स्थानान्तरण के दौरान यदि माल को नुकसान हो तो इसके लिए जहाजी कम्पनी जिम्मेदार नहीं होती ।

(12) बिल ऑफ लेडिंग (Bill of Leding) या जहाजी बिल्टी : साथी की रसीद जहाजी कम्पनी के कार्यालय में प्रस्तुत करने पर जहाज में माल चढ़ाने सम्बन्धी पक्की रसीद (बिल ऑफ लेडिंग) दी जाती है । इस रसीद में जहाज में चढ़ाए गए माल का विवरण होता है । यह माल की मालिकी दर्शाता है । विदेशी आयात-कर्ता को बिल ऑफ लेडिंग के सामने जहाजी कम्पनी माल का कब्जा देती है । बिल ऑफ लेडिंग जहाजी कम्पनी देती है, जिसमें माल भेजनेवाले का नाम, जहाज का नाम, जहाज के कप्तान का नाम, माल का थोक, पैकिंग एवं मार्किंग का विवरण, आयातकार का नाम, जिस बन्दरगाह पर माल भेजना है उस बन्दरगाह का नाम व नूर की रकम का समावेश होता है । इसका ट्रान्सफर कर अधिकार परिवर्तन किया जा सकता है ।

(13) उत्पत्ति-प्रमाण पत्र (Certificate of origin) : कई बार दो देशों के बीच चुंगी-मुक्ति का करार किया जाता है । उस समय उत्पत्ति-प्रमाण पत्र आवश्यक बनता है । यह प्रमाणपत्र माल किस देश में उत्पन्न किया गया है, यह दर्शाता है जिससे आयातकार चुंगी-मुक्ति का लाभ उठा सकता है । निर्यातकार माल के उत्पत्ति-स्थान से सम्बन्धित प्रमाणपत्र प्राप्त करके आयातकार के पास भेजता है । उत्पत्ति का प्रमाणपत्र निर्यातकार के अपने देश में से मजिस्ट्रेट या चैम्बर ऑफ कॉमर्स द्वारा प्राप्त करना पड़ता है ।

(14) कोन्स्युलर इन्वोइस (व्यापारी राजदूत का बीजक) (Consular’s Invoice) : व्यापारी राजदूत के बीजक में निर्यात माल की कीमत दर्शायी जाती है । निर्यात किया गया माल जब आयातकार के देश में पहुंचे तब वह चुंगी निश्चित करता है । यदि माल की कीमत को आधार बनाकर चंगी निश्चित की जाती हो तो माल की कीमत जानने के लिए पैकिंग खोलकर माल की सही कीमत जानी जाती है, और उसके बाद चुंगी निश्चित की जाती है । यदि निर्यातकार के देश के राजदूत से माल की कीमत से सम्बन्धित प्रमाणपत्र लेकर आयातकार को भेज देता हो तो चुंगी-अधिकारी प्रमाणपत्र में दर्शाई गई कीमत के आधार पर चुंगी निश्चित कर सकता है और पैकिंग खोलने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है ।

(15) दस्तावेज भेजना : निर्यातक अपनी बैंक के माध्यम से आयतक को बीजक, बीमा पॉलिसी अथवा कवर नोट, बिल ऑफ लेडिंग, माल की उत्पत्ति का प्रमाणपत्र, व्यापारी राजदूत का बीजक तथा हुण्डी आदि महत्त्वपूर्ण दस्तावेज आयातकर्ता की बैंक को भेज देता है ।

(16) रकम/वित्त की वसूली : निर्यातक माल के रकम की वसूली के लिए बैंक को सूचना देते है । बीजक में दर्शायी हुई रकम वसूल करने के लिए निर्यातक आया तक पर हुण्डी लिखता है । यह हूण्डी स्वीकार के सामने हो अथवा भुगतान के सामने हो सकती है । यदि स्वीकार के सामने की हूण्डी हो तो निर्यातक की बैंक यह हूण्डी आयातक के समक्ष प्रस्तुत करके उनका आयातक द्वारा स्वीकार किये जानेवाले जरूरी दस्तावेज देता है परन्तु यदि वह रकम के भुगतान के सामने हो तो हुण्डी की रकम पूरी रकम चुकाने के बाद बैंक दस्तावेज देती है। स्वीकार सामने की हूण्डी की रकम परिपक्व (पकने की) तारीख पर बैंक वसुल करके निर्यातक को भेज देता है । जब भुगतान सामने की हूण्डी की रकम निर्यातक को भेज दी जाती है ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 10 अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रश्न 4.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की समस्याएँ समझाइये ।
उत्तर :
विश्व के अलग-अलग देशों के मध्य होनेवाला व्यापार अर्थात् अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार । ऐसे व्यापार में अलग-अलग देशों के विविध तरह के नियंत्रण होते है । जिसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की समस्याओं के रूप में जानते है । जो कि निम्नलिखित है :

  • चलन अथवा मुद्रा की समस्या : अलग-अलग देशों के अलग-अलग चलन होने से सौदो को हल करने में चलन की समस्या आती है । आयातकर्ता व निर्यातकर्ता के पास में विभिन्न विदेशी मुद्रा सम्बन्धी जानकारी न होने से समस्याएँ आती है ।
  • भाषा में विविधताएँ : विश्व के विभिन्न देशों की भाषाएँ भी अलग-अलग होने से भाषा सम्बन्धी समस्या आती है । जबकि अंग्रेजी भाषा के उपयोग करने से कुछ हद तक समस्या दूर करती है । फिर भी अभी भी पिछड़े देशों के साथ किये जानेवाले व्यापार में यह समस्या रहती है ।
  • दूरी की समस्या : अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार जब दो देशों के मध्य अन्तर (दूरी) अधिक होने से संदेशा व्यवहार तथा माल-सामान के हस्तांतरण करने में काफी अधिक समय लग जाता है ।
  • प्रतिबन्ध और अंकुश (नियंत्रण) : अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में विभिन्न देश अपनी राजकीय नीति तथा आर्थिक नीति के अनुसार अनेक प्रकार के नियंत्रण रखती है । अतः सरकार द्वारा कठोर नियंत्रण के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार रूक जाता है ।
  • जोखिम का प्रमाण : अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अधिकांशतः भाग समुद्री मार्ग द्वारा होने से समुद्री मार्ग से माल को वातावरण से होनेवाला नुकसान, माल का समुद्र में डूब जाना, समुद्री लूटेरों द्वारा माल की लूट इत्यादि जोखिमे रहती है ।
  • कानून अथवा नियम में अन्तर : अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अन्तर्गत अलग-अलग देशों के व्यापार सम्बन्धी नियम अलग-अलग होते है, जिससे इन नियमों को समझने में समस्याएँ आती है ।
  • व्यापारी सम्पर्क का अभाव : ऐसे व्यापार में व्यापारी सम्पर्क में कम होते है । तथा दो देशों के मध्य दूरी भी अधिक होती है, तब व्यापारी एकदूसरे से एकदम अनभिज्ञ होते है । आयातक और निर्यातक व्यापारी के मध्य परस्पर प्रत्यक्ष सम्पर्क न होने से भुगतान के बारे में समस्या रहती है ।
  • तोलमाप सम्बन्धी समस्या : अलग-अलग देशों की तोलमाप की व्यवस्था भी अलग-अलग होती है, जिससे तोलमाप की समस्याएँ भी देखने को मिलती है ।

प्रश्न 5.
आन्तरिक व्यापार और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के मध्य अन्तर समझाइये ।
उत्तर :
आन्तरिक व्यापार और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के बीच निम्नलिखित अन्तर है :

अन्तर का मुद्दा आन्तरिक व्यापार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
1. अर्थ देश की सीमा के अन्दर होनेवाला व्यापार आन्तरिक व्यापार कहलाता है । 1. देश की सीमा के बाहर से अन्य देशों के बीच व्यापार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है ।
2. पैमाना व्यापार बड़े पैमाने पर और फुटकर दोनों तरह से हो सकता है । 2. अधिकांशतः ऐसे व्यापार में रकम और मात्रा का प्रमाण अधिक होता है ।
3. चलन व तोलमाप चलन और तौल-माप की इकाई समान होती है । 3. अलग-अलग देशों में चलन और तोलमाप की इकाई अलग-अलग होती है ।
4. सम्पर्क क्रेता और विक्रेता दोनों में सम्पर्क आसानी से संभव है । 4. क्रेता और विक्रेता में अंतर अधिक होने से संपर्क और विश्वास की संभावना कम रहती है ।
5. रीति-रिवाज व्यापारी रीति-रिवाजों के बीच भिन्नता बहुत कम पाई जाती है । 5. व्यापारी रीति-रिवाज बहुत भिन्न पाये जाते हैं ।
6. खर्चीली व्यापार-विधि सरल और कम खर्चीली है । 6. व्यापार-विधि जटिल और अधिक खर्चीली है ।
7. जाखिम व्यापार में जोखिम का प्रमाण कम होता है । 7. इस तरह के व्यापार में जोखिम अधिक होता है ।
8. नियम सरकारी नियम सामान्य व सरल होते हैं । 8. सरकारी नियम बहुत कठिन होते हैं ।
9. राजकीय परिवर्तन राजकीय परिवर्तन का असर प्रमाण में कम होता है । 9. राजकीय परिवर्तन का असर प्रमाण में अधिक होता है ।
10. वस्तुओं का व्यापार नाशवान व टिकाऊ वस्तुओं का व्यापार सम्भव बनता है। 10. केवल टिकाऊ वस्तुओं का व्यापार ही सम्भव बनता है, तथा वस्तुओं के रखरखाव की उचित व्यवस्था होनी चाहिए ।
11. बीमा बीमा लेना अनिवार्य नहीं है । 11. बीमा लेना अनिवार्य होता है ।
12. बाजार बाजार सीमित होता है । 12. बाजार विशाल होता है ।

प्रश्न 6.
विदेश-व्यापार में उपयोग में आनेवाले आवश्यक दस्तावेज समझाइए ।
उत्तर :
विदेश-व्यापार में निम्नलिखित आवश्यक दस्तावेज उपयोग में लाए जाते हैं ।

(1) बिल आफ लेडिंग (Bill of Leding) या जहाजी बिल्टी : साथी की रसीद जहाजी कम्पनी के कार्यालय में प्रस्तुत करने पर जहाज में माल चढ़ाने सम्बन्धी पक्की रसीद (बिल ऑफ लेडिंग) दी जाती है । इस रसीद में जहाज में चढ़ाए गए माल का विवरण होता है । यह माल की मालिकी दर्शाता है । विदेशी आयात-कर्ता को बिल ऑफ लेडिंग के सामने जहाजी कम्पनी माल का कब्जा देती है । बिल ऑफ लेडिंग जहाजी कम्पनी देती है, जिसमें माल भेजनेवाले का नाम, जहाज का नाम, जहाज के कप्तान का नाम, माल का थोक, पैकिंग एवं मार्किंग का विवरण, आयातकार का नाम, जिस बन्दरगाह पर माल भेजना है उस बन्दरगाह का नाम व नूर की रकम का समावेश होता है । इसका ट्रान्सफर कर अधिकार परिवर्तन किया जा सकता है ।

(2) चार्टर पार्टी (Charter Party) : बड़ी मात्रा में माल भेजना हो तब संपूर्ण जहाज भाड़े पर रखना उचित होता है । जहाज भाड़े रखने के इस करार को चार्टर पार्टी करार कहते हैं । चार्टर पार्टी में पक्षकारों का नाम, जहाज भाड़े रखने की शर्त, भेजे गये माल का वर्णन, नूर की रकम तथा समुद्री मार्ग की जानकारी लिखी जाती है ।

(3) उत्पत्ति-प्रमाणपत्र (Certificate of original) : कई बार दो देशों के बीच चुंगी-मुक्ति का करार किया जाता है । उस समय उत्पत्ति-प्रमाणपत्र आवश्यक बनता है । यह प्रमाणपत्र माल किस देश में उत्पन्न किया गया है, यह दर्शाता है जिससे आयातकार चुंगी-मुक्ति का लाभ उठा सकता है । निर्यातकार माल के उत्पत्ति-स्थान से सम्बन्धित प्रमाणपत्र प्राप्त करके आयातकार के पास भेजता है । उत्पत्ति का प्रमाणपत्र निर्यातकार के अपने देश में से मजिस्ट्रेट या चैम्बर ऑफ कॉमर्स द्वारा प्राप्त करना पड़ता है ।

(4) विदेशी राजदूत का बीजक (Consular’s Invoice) : अन्तर्राष्ट्रीय सहकार के सन्दर्भ में अनेक देशों के बीच आयात-निर्यात को सरल बनाने के लिए करार (Agreement) किया जाता है । इस करार का लाभ प्राप्त करने के लिए निर्यात के देश में आयात के देश का व्यापारी प्रतिनिधि (राजदूत) नियुक्त किया जाता है । निर्यातक अथवा प्रतिनिधि तीन प्रतियों में बीजक बनाता है, जिस पर आयातक देश का प्रतिनिधि या राजदूत हस्ताक्षर व मुहर लगाता है । यह हस्ताक्षरवाला बीजक व्यापारी राजदूत (विदेशी राजदूत) कहलाता है । इस बीजक के आधार पर आयात-निर्यात चुंगी में छूट (राहत) प्राप्त की जाती है ।

(5) इन्डेन्ट (Indent) : जब किसी उत्पादक को अलग-अलग व्यापारियों से माल आयात करना हो तब विदेश स्थित निर्यात एजेन्ट द्वारा माल मँगाता है तब एजेन्ट को माल मँगाने का ऑर्डर दिया जाता है उसे इन्डेन्ट कहते हैं । इन्डेन्ट में माल का वर्णन, आकार, वजन, पैकिंग, मार्किंग, मूल्य, शर्त आदि विवरण होता है ।

आयातकार विदेश में उत्पादक को माल मँगाने का प्रत्यक्ष ऑर्डर दे उसे ऑर्डर कहते हैं तथा एजेन्ट के द्वारा ऑर्डर दे तो उसे इन्डेन्ट कहते हैं । ऑर्डर शब्द का उपयोग आंतरिक तथा विदेश दोनों व्यापार में किया जाता है जबकि इन्डेन्ट का उपयोग मात्र विदेश-व्यापार में ही होता है ।

(6) शीपिंग ऑर्डर (Shipping Order) : बिल ऑफ लेडिंग यह निर्यातक और जहाजी कम्पनी के मध्य का करार है । जिसके द्वारा जहाजी कम्पनी एक बन्दरगाह से दूसरे बन्दरगाह तक माल पहुँचाने का विश्वास अथवा भरोसा दिलानेवाला दस्तावेज है । इस दस्तावेज में निर्यातक का नाम, जहाज का नाम, नूर, माल का विवरण, माल का जत्था, मूल्य, वजन, जिस स्थान से माल ले जाना हो उस बन्दरगाह का नाम, हस्तांतरण की शर्ते आदि दर्शायी जाती है ।

(7) मेइट रसीद (Mate Receipt) : जहाज का कप्तान अथवा उसके साथीदार माल प्राप्ति की जो रसीद बन्दरगाह के अधिकारियों को देते है, उसे मेइट रसीद कहते हैं । यदि माल सभी तरह से योग्य हो तो दोषरहित एवं माल में कमी हो तो दोषयुक्त रसीद दी जाती है ।

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प्रश्न 7.
दोषयुक्त (दोषसहित) रसीद आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
दोषयुक्त रसीद अर्थात् माल जहाज पर चढ़ाया जाय तब जहाज के कप्तान द्वारा उसके साथी को माल-प्राप्ति की जो रसीद दी जाती है, उस माल के पैकिंग में अथवा अन्य कोई कमी हो तो खराब अथवा फॉल्ट या डर्टी की जो रसीद दी जाती है, तो वह रसीद दोषयुक्त कहलाती है ।

प्रश्न 8.
दोषरहित रसीद अर्थात् क्या ?
उत्तर :
दोषरहित रसीद अर्थात जहाज के कप्तान द्वारा उसके साथी को माल-प्राप्ति की जो रसीद दी जाती है, उस माल के पैकिंग में या अन्य कोई त्रुटि न हो अर्थात् माल अच्छी स्थिति में हो तो क्लीन (clean) अर्थात् दोषरहित रसीद दी जाती है ।

प्रश्न 9.
प्राइमेज किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जहाज पर माल चढ़ाने के बाद बन्दरगाह के अधिकारी निर्यातक के एजेन्ट को साथी की रसीद दी जाती है । इस रसीद को जहाजी कम्पनी के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तब नूर की गिनती करके फ्रेइट नोट दिया जाता हैं । नूर की मूल रकम के अलावा माल चढ़ाते समय आवश्यक कार्य के लिए जहाजी कम्पनी खास फीस लेती है उसे प्राइमेज कहा जाता है ।

प्रश्न 10.
उत्पत्ति का प्रमाणपत्र कौन दे सकता है ?
उत्तर :
उत्पत्ति का प्रमाणपत्र (Certificate of origin) देने की सत्ता मजदूर महाजन संघ (Chamber of Commerce), निर्यात उत्तेजना (प्रोत्साहन) समिति, व्यापारी मण्डल इत्यादि संस्थाओं को है । इसके अलावा निर्यातक या उसका एजेन्ट यह प्रमाणपत्र देता है । यह प्रमाणपत्र माल किस देश में उत्पन्न किया गया है यह दर्शाता है जिससे आयात-चुंगी मुक्ति का लाभ लिया जा सकता है ।

प्रश्न 11.
कार्टिंग आर्डर (Carting order) अर्थात् क्या ?
उत्तर :
कार्टिंग ऑर्डर अर्थात शीपिंग ऑर्डर, बीमा पॉलिसी, जकात (चुंगी) रसीद इत्यादि प्रस्तुत करने पर, बन्दरगाह पर माल का हस्तांतरण करने के लिए माल चढ़ाने का खर्च चुकाया जाता है । यह खर्च चुकाने के बाद कार्टिंग ऑर्डर दिया जाता है, उसी के द्वारा माल का स्थानान्तरण किया जा सकता है ।

6. निम्नलिखित विधान समझाइए ।

प्रश्न 1.
विदेशी व्यापार आन्तरिक व्यापार का विस्तृत स्वरूप है ।
उत्तर :
विदेशी व्यापार आन्तरिक व्यापार का विस्तृत रूप है यह विधान सही हैं क्योंकि आन्तरिक व्यापार में पूँजी की आवश्यकता कम होती है । आन्तरिक व्यापार में कार्यक्षेत्र सीमित होता है, तौल-माप, व मुद्राएँ ही होती हैं, आन्तरिक व्यापार में जोखिम कम होता है, व्यापार आसानी से किया जाता है । लेकिन विदेश-व्यापार में पूँजी की आवश्यकता अधिक होती है, व्यापार का कार्यक्षेत्र विशाल बनाया जा सकता है तथा मुद्रा एवं तौल-माप की प्रणाली भी अलग पाई जाती है । दो देशों के मध्य मधुर सम्बन्ध भी बनाये जा सकते हैं, इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विदेशी व्यापार आन्तरिक व्यापार का विस्तृत स्वरूप होता है ।

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प्रश्न 2.
विदेश-व्यापार में माल का बीमा लेना अनिवार्य होता है ।
उत्तर :
विदेश-व्यापार के दौरान दो देशों के मध्य काफी लम्बी दूरी होती है । विदेश-व्यापार में माल समुद्री मार्ग के माध्यम से अथवा हवाई मार्ग के माध्यम से किया जाता है, ऐसे व्यापार में माल की चोरी, लूटपाट, आँधी-तूफान, वातावरण, माल का बदल जाना, आग लगना इत्यादि अनेक जोखिम रहते हैं । इसलिए नुकसान के सामने रक्षण प्राप्त करने के लिए बीमा लेना अनिवार्य होता है ।

प्रश्न 3.
पुनः निर्यात के लिए बोन्डेड गोदाम उपकारक हैं ।
उत्तर : यह विधान सही है । किसी देश से आयात किया हुआ माल बाहर ही बाहर किसी दूसरे देश को भेज दिया जाये तो इसे पुनः निर्यात कहते हैं । बोन्डेड गोदाम की सेवा पुनः निर्यात व्यापार के लिए आशीर्वाद स्वरूप है । कारण कि आयात किया हुआ माल ऐसे गोदामों में रखा जाता है और इसके बाद इसी गोदाम में से उसे विदेश भेजा जाये तो व्यापारी को आयात अथवा निर्यात चुंगी नहीं भरनी पड़ती है । इसके अलावा गोदाम में माल-सम्बन्धी कोई बाजार-प्रक्रिया करनी है तो इसकी सुविधा रहती है । इसलिए पुनः निर्यात व्यापार के लिए बोन्डेड गोदाम उपयोगी है ।

प्रश्न 4.
Bill of Leding बिल ऑफ लेडिंग एक कीमती दस्तावेज है ।
उत्तर :
बिल ऑफ लेडिंग एक बहुत ही कीमती दस्तावेज होता है जो कि जहाज पर चढ़ाए गए माल का मालिकी हक दर्शाता है । जहाजी कम्पनी को जो माल मिला है, उस स्वरूप की पक्की रसीद है जिसमें किन-किन शर्तों के अधीन जहाजी कम्पनी ने माल स्वीकार किया है, इसका उल्लेख किया जाता है । बिल ऑफ लेडिंग में माल भेजनेवाले का नाम, माल की मात्रा (जत्था), जहाज का नाम, निशान, मार्का, आयात का नाम, नूर (भाड़े) की रकम, बन्दरगाह का नाम इत्यादि अनेक शर्ते दर्शायी जाती हैं, अर्थात् हम कह सकते हैं कि जहाजी बिल्टी (बिल ऑफ लेडिंग) एक कीमती दस्तावेज होता है ।

प्रश्न 5.
विश्व व्यापार संगठन की रचना किसलिए की गई ?
उत्तर :
विश्व व्यापार संगठन की रचना विश्व के सभी व्यापारी एक ही व्यापार मंच पर इकट्ठे हो सके व समझौते कर सके इसलिए रचना की गई।

7. निम्नलिखित संज्ञाएँ समझाइए :

प्रश्न 1.
चार्टर पार्टी का करार (Agreement of Charter Party) :
उत्तर :
निर्यात एवं जहाजी कम्पनी के समक्ष पूरा जहाज या विमान किराये पर लिया जाये तो चार्टर पार्टी का करार कहलाता है ।

प्रश्न 2.
पनः निर्यात व्यापार (Re Export Trade) :
उत्तर :
जब कोई माल अन्य देश को निर्यात करने के उद्देश्य से आयात किया जाय, उस माल पर योग्य प्रक्रिया करके अथवा प्रक्रिया किए बिना अन्य देश ही भेज देना पुनः निर्यात व्यापार है ।

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प्रश्न 3.
साथी की रसीद (Maite Receipt) :
उत्तर :
जहाज के कप्तान द्वारा शीपिंग ऑर्डर को देखकर जहाज पर माल चढ़ाने पर जो रसीद दी जाती है, उसे साथी की रसीद के रूप में जाना जाता हैं ।

प्रश्न 4.
क्योटा सर्टिफिकेट (Quota certificate) :
उत्तर :
आयात द्वारा आयात का लाइसन्स प्राप्त करने के लिए यह प्रमाणपत्र प्राप्त करना पड़ता है । विदेश-व्यापार से सम्बन्धित अधिकारी संतुष्ट होता है तब आयात प्रमाणपत्र दिया जाता है, इस प्रमाणपत्र में वस्तु का नाम, जत्था, देश का नाम (जिस देश से आयात करने की अनुमति दी हो), वस्तु की कीमत इत्यादि दर्शायी जाती है ।

प्रश्न 5.
क्लियरिंग एजन्ट (Clearing Agent) :
उत्तर :
आयात-कर्ता का माल जहाज में से व्यापारी के निश्चित स्थान तक लाने एवं निर्यात का माल उसके निश्चित स्थान से जहाजी कम्पनी के पास भेजने हेतु जो व्यक्ति कानूनी विधि (प्रक्रिया) करके देते हैं तथा इसके बदले आवश्यक कमीशन स्वीकार करते हैं अर्थात् इस प्रकार के कार्य में सहायक व्यक्ति या संस्था को क्लियरिंग एजन्ट या मारफतिया कहा जाता हैं ।

प्रश्न 6.
F.O.B. = Free on Board :
उत्तर :
आयातकर्ता के बन्दरगाह तक के सभी खर्च (आयात-सम्बन्धी खर्च) निर्यातक को चुकाने हों तो इस शर्त को FOB की शर्त कहते हैं ।

प्रश्न 7.
FOR = Free on Railway Station :
उत्तर :
विक्रेता क्रेता को जब माल भेजता है तब ऐसी शर्त तय होती है कि व्यापारी तक माल भेजने का समस्त खर्च विक्रेता का होता है तो इसे FOR कहते हैं ।

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8. निम्नलिखित संक्षिप्त रूपों के विस्तृत रुप लिखिए :

1. OGL = Open General Licence
2. D.A. = Documents Against Acceptance
3. D.P. = Documents Against Payment
4. E.P.Z. = Export Processing Zones.
5. FTZ = Free Trade Zone
6. RR = Railway Receipt T.R.
7. T.R = Truck Receipt
8. L.C. = Letter of Credit
9. B.L. = Bill of Lending
10. M.R. = Maite Receipt

11. C.O. = Certificate of Origin
12. CIF = Cost Insurance and Freight
13. FOB = Free on Board
14. C.W.O. = Cash with order
15. C.O.D. = Cash on Delivery
16. CIFCT Cost Insurance Freight Commission & Interest
17. Exim Bank = Import Export Bank
18. FOR = Free on Railway Station
19. SARC = South Asian Regional Conference
20. TRAI = Telecom Regulatri Authority of India
21. FAX = Facsimile Transmission
22. GAI = Gas Authority of India
23. QCI = Quality Council of India

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