Gujarat Board GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 11 पृथुचरितम् Textbook Exercise Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 11 पृथुचरितम्
GSEB Solutions Class 11 Sanskrit पृथुचरितम् Textbook Questions and Answers
पृथुचरितम् Exercise
1. योग्यं विकल्पं चित्वा रिक्तस्थानानां पूर्तिः करणीया।
પ્રશ્ન 1.
पृथोः पितुः नाम ……………………………. आसीत्।
(क) मनुः
(ख) वेनः
(ग) धर्मः
(घ) वैनः
उत्तर :
(ख) वेनः
પ્રશ્ન 2.
वेनः ……………………………. आसीत्।
(क) क्रूरः
(ख) अक्रूरः
(ग) दयालुः
(घ) धर्मनिरतः
उत्तर :
(क) क्रूरः
પ્રશ્ન 3.
……………………………. गोरूपम् अस्ति।
(क) आकाशम्
(ख) वायुः
(ग) भूतलम्
(घ) जलम्
उत्तर :
(ग) भूतलम्
પ્રશ્ન 4.
गौः ……………………………. दुह्यते।
(क) प्रातः
(ख) सायम्।
(ग) एकदा
(घ) प्रातःसायम्
उत्तर :
(घ) प्रातःसायम्
2. एकेन वाक्येन संस्कृतभाषया उत्तरं लिखत।
પ્રશ્ન 1.
अङ्गनामक: राजा कस्य वंशे अभवत्?
उत्तर :
अङ्गनामक: राजा मनोः वंशे अभवत्।
પ્રશ્ન 2.
वेनेन के सत्कारिता: के च दुष्कारिता:?
उत्तर :
वेनेन दुर्जनाः सत्कारिता: सज्जनाः च दुष्कारिताः।
પ્રશ્ન 3.
क्षुधार्तायाः प्रजाया: परिपालनाय किम् अपेक्षितम्?
उत्तर :
क्षुधार्तायाः प्रजाया: परिपालनाय धान्यम् अपेक्षितमासीत्।
પ્રશ્ન 4.
दुर्जनै: केषां किं परिहतम्?
उत्तर :
दुर्जनैः सज्जनानां धनं धान्यं च परिहृतम्।
પ્રશ્ન 5.
पृथुः किं रूपां भूमिं दुदोह?
उत्तर :
पृथुः गोरूपां भूमिं दुदोह।
3. Answer the following questions in mother-tongue:
Question 1.
How was the king Vena?
उत्तर :
वेन राजा क्रूर एवं अधर्म से युक्त था। उसने यज्ञ, दानादि कर्म को निषिद्ध कर दिया था। वह धर्म-हीन आचरण करता था।
Question 2.
What did the Rishi do to protect the people?
उत्तर :
प्रजा की रक्षा के लिए ऋषियों ने वेन को दण्ड दिया और मार दिया।
Question 3.
How was the condition of people at the time of the coronation of Pruthu?
उत्तर :
पृथु के राज्याभिषेक के समय अकाल के कारण प्रजा भूख से व्याकुल थी। भूतल यज्ञ-दान-रहित एवं धर्महीन थी।
Question 4.
Why did the king Pruthu get ready to burn the land/the earth?
उत्तर :
राजा पृथु ने भूतल को यज्ञ-दानादि रहित एवं धर्महीन देखकर उसे जलाने हेतु उद्यत हुए।
Question 5.
Explain the peculiarity of the act of milking.
उत्तर :
दोहन क्रिया एक रूपक के रूप में प्रस्तुत की गई है। इस दोहन क्रिया के अनुसार राजा पृथु गोपाल (भगवान श्रीकृष्ण) के रूप में, भूतल गाय के रूप में, दोहन की क्रिया कृषिकर्म के रूप में एवं दूध का वर्णन अन्न के रूप में किया गया है। इस प्रकार दोहन-क्रिया का प्रदत्त रूपकानुसार अर्थ है कृषि-कर्म अर्थात् खेती।
4. Write a critical note on:
પ્રશ્ન 1.
Pruthu as the king
उत्तर :
राजा के रूप में पृथु :
राजा के रूप में पृथु एक कुशल, धर्मानुरागी, न्यायप्रिय एवं दयालु राजा थे। ऋषियों के द्वारा राज्याभिषेक के पश्चात् राजा पृथु ने अकाल-ग्रस्त क्षुधातुर जनता के कल्याणार्थ कृषिकर्म के रूप में धेनुरूप गाय का दोहन किया। तथा अन्न के रूप में दूध को प्राप्त कर प्रजा का संरक्षण किया।
इस प्रकार न्याय-प्रिय एवं पुत्रवत् प्रजा-पालक राजा के रूप में पृथु राजा का शासनकाल एक आदर्श शासन है। पृथु राजा के द्वारा किया गया कृषि-कर्म-रूपी पुरुषार्थ वर्तमान में भी आदर्श शासन व्यवस्था के लिए अनुकरणीय है।
પ્રશ્ન 2.
Earth as the cow
उत्तर :
गाय के रूप में भूतल :
पृथु – चरितम् नामक गद्य पाठ में वर्णित रूपक के अनुसार भूतल को गाय के रूप में दर्शाया गया है। दान-यज्ञादि कार्यों से धर्म रहित इस धरातल को देखकर राजा पृथु भूमि का दहन करने हेतु तत्पर हुए।
तत्क्षण भूमि गाय का रूप लेकर पलायन करने लगी। तब राजा पृथु ने गो रूपा पृथ्वी से स्थावर व चेतन सर्व जीवों के लिए अभीष्ट वस्तुएँ प्राप्त की। जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण प्रेमपूर्वक गौपालन करते थे उसी प्रकार गोरूपा पृथ्वी का संरक्षण करना चाहिए।
अन्न, कृषि, गोपालन आदि सर्वविध व्यापार का मूल भूतल है। अतः इस धेनु रूपा भूतल संरक्षण नहीं करने पर सब कुछ नष्ट हो जाएगा।
પ્રશ્ન 3.
The act of milking the earth means agriculture
उत्तर :
पृथ्वी की दोहनक्रिया अर्थात् कृषि :
पृथुचरितम् नामक गद्य पाठ में प्रदत्त सुन्दर रूपक के अनुसार भूमि को गाय के रूप में, राजा पृथु को साक्षात् दोग्धा गोपाल के रूप में, दोहन क्रिया को कृषि-कर्म के रूप में तथा दूध को अन्न के रूप में प्रस्तुत किया है। इस रूपक के अनुसार जिस पुरुषार्थ से राजा पृथु गो-दोहन करते हैं उसी प्रकार पृथ्वी को सम्यक् कृषि योग्य बनाकर कृषि-कर्म किया जाना चाहिए।
जिस प्रकार गो दोहन की क्रिया के परिणामस्वरूप दूध की प्राप्ति होती है उसी भाँति कृषि-कर्म के पुरुषार्थ के पश्चात् अन्न की प्राप्ति होती है। अन्नरूपी दुग्ध समस्त संसार का पोषण करता है। इस प्रकार व्यक्ति को भूमि का सम्यक् संरक्षण करना चाहिए तथा भूमि को स्वच्छ करके कृषि योग्य बनाकर कृषि-कर्म के रूप में गाय रूपी भूमि का दोहन कर्म करना चाहिए।
Sanskrit Digest Std 11 GSEB पृथुचरितम् Additional Questions and Answers
पृथुचरितम् स्वाध्याय
1. योग्यं विकल्पं चित्वा रिक्त स्थानानां पूर्ति: करणीया।
પ્રશ્ન 1.
वेनः कस्य पुत्रः।
(क) अङ्गस्य
(ख) पृथोः
(ग) मदनस्य
(घ) कंसस्य
પ્રશ્ન 2.
अङ्गनामकः राजा ………………………………………. आसीत्।
(क) क्रूरः
(ख) अधार्मिक:
(ग) हिंसक
(घ) दयालुः
પ્રશ્ન 3.
वेनः ………………………………………. दण्डित: भारितः च।
(क) ऋषिभिः
(ख) देवैः
(ग) अङ्गेन
(घ) पृथुना
પ્રશ્ન 4.
ऋषयः कं राज्यासने प्रस्थापितवन्त:?
(क) वेनम्
(ख) पृथुम्
(ग) अङ्गं
(घ) गोपालम्
પ્રશ્ન 5.
भूतलं दग्धुम् कः उद्यतः अभवत्।
(क) वेनः
(ख) अङ्गः
(ग) पृथुः
(घ) गोपाल:
પ્રશ્ન 6.
दुरवस्थायां प्रजारक्षणार्थम् के प्रवृत्ताः
(क) ऋषयः
(ख) गोपालः
(ग) वेनः
(घ) अङ्गः
પ્રશ્ન 7.
गोरूपां पृथिवीं कः दुदोह?
(क) ऋषिः
(ख) मनुः
(ग) पृथुः
(घ) वेनः
પ્રશ્ન 8.
………………………………………. गोपाल: भूतलरूपां गां कृषिकर्मणा दुदोह।
(क) पृथुरूपः
(ख) भूतलरूपः
(ग) कृषिकर्म रूपः
(घ) अन्नरूपः
2. एकेन वाक्येन संस्कृतभाषया उत्तरं लिखत।
પ્રશ્ન 1.
पृथुः दोहनकर्मणि किं रूपं दुग्धं प्राप्तवान्।
उत्तर :
पृथुः दोहन कर्मणि अन्नरूप दुग्धं प्राप्तवान्।
પ્રશ્ન 2.
पृथुः कीदृशः राजा आसीत्?
उत्तर :
पृथुः दयालुः धार्मिक: च राजा आसीत्?
પ્રશ્ન 3.
बहुधान्यप्रवृत्त: लोलुपमानस: जन: भूतलं न रक्षेत् चेत् किं भविष्यति?
उत्तर :
बहुधान्यप्रवृत्त: लोलुपमानस: जनः भूतलं न रक्षेत् चेत् हानिः एव भविष्यति।
પ્રશ્ન 4.
ऋषिभिः का का दण्डित: मारित: च?
उत्तर :
ऋषिभिः वेनः दण्डित: मारितः च।
પ્રશ્ન 5.
यज्ञकर्माभावे किम् अभवत्?
उत्तर :
यज्ञकर्माभावे दुभिक्षः प्रावर्तत।
પ્રશ્ન 6.
पृथुचरिते वर्णितं रूपकानुसारं गोपालः कः?
उत्तर :
पृथुचरिते वर्णितं रूपकानुसारं राजा पृथुः गोपालः अस्ति।
3. निम्न प्रश्नों के उत्तर मातृभाषा में लिखिए।
પ્રશ્ન 1.
राजा पृथु का जन्म किस वंश में हआ था तथा उनके पिता एवं पितामह का नाम क्या था?
उत्तर :
राजा पृथु का जन्म स्वायम्भुव मनु के वंश में हुआ था तथा उनके पिता का नाम वेन एवं पितामह राजा अङ्ग थे।
પ્રશ્ન 2.
राजा वेन की शासन-व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
राजा वेन क्रूर एवं अधार्मिक थे। उन्होंने यज्ञ-दानादि सत्कर्म निषिद्ध कर दिए। राजा वेन के शासन में दुर्जनों का सत्कार एवं सज्जनों का अपमान किया जाता है। धरातल यज्ञ-दान हीन हो गया। फलस्वरूप उनके शासन काल में अकाल पड़ गया।
पृथुचरितम् Summary in Hindi
सन्दर्भ : महर्षि वेद व्यास ने अठारह पुराणों की रचना की है।
वेद-व्यास रचित पुराणों का संस्कृत साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। पुराणों की रचना के सन्दर्भ में उनके लक्षणों का वर्णन करते हुए कहा गया है – पुराणं पञ्च लक्षणम्।
अर्थात् पुराणों के पाँच लक्षण होते हैं। यथा –
- सर्ग – सृष्टि की उत्पत्ति,
- प्रतिसर्ग – सृष्टि का प्रलय
- वंश – (सूर्यवंश एवं चन्द्रवंश में उत्पन्न राजाओं का वर्णन
- मन्वन्तर – दो मनुओं के अस्तित्व के कालखंड में घटी हुई घटनाओं का वर्णन।
- वंशानुचरित – भिन्न-भिन्न वंशों में उत्पन्न प्रतापी राजाओं के चरित का वर्णन।
प्राचीन भारतीय परंपराओं एवं इतिहास के ज्ञानार्थ पुराण-साहित्य का अध्ययन आवश्यक है। एतदुपरान्त सामान्य जन मानस पुराणों का स्वाध्याय करके उसमें वर्णित महानुभावों के जीवन को जान सकते हैं। तथा तदनुसार स्व जीवन को उदात्त, ऊर्ध्वगामी या उत्कृष्ट बनाने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं।
मत्स्य पुराण में वर्णित पृथुचरित के आधार पर इस पाठ को सम्पादित किया है। पुराणों में भूमि का दोहन कर के अन्न की प्राप्ति का सर्वप्रथम उपक्रम करनेवाले राजा के रूप में पृथु का निर्देश है। भूमि का दोहन अर्थात् कृषि कर्म।
कृषि-कर्म के पुरस्कर्ता के रूप में पुराणों में वर्णित पृथु चरित अत्यन्त मार्मिक है। यहाँ भूमि को गाय के रूप में तथा पृथु का दोग्धा के रूप में वर्णन किया है। इस दोहन क्रिया के पीछे का मर्म प्रकट करना यहाँ इस पाठ का मुख्य प्रतिपाद्य – विषय है।
पृथुचरितम्श ब्दार्थ :
स्वायम्भुवस्य मनो: = स्वायम्भुव नामक मनु के। धर्मनिरतः = धर्म में रत (संलग्न) रहनेवाला – धर्मे निरतः – सप्तमी तत्पुरुष समास। समभवत् = हुआ – सम् + भू धातु + ह्यस्तन भूतकाल, अन्यपुरुष, एकवचन। सत्कारिता: = सत्कार किया गया। दुष्कारिता: = दुष्कार किया गया। फलत: = परिणामस्वरूप (अपमन), प्रवर्तिता = प्रवर्तित हो गई। परिहतम् = चुरा लिया गया – परि + ह धातु + क्त – कर्मणि – भूतकृदन्त। दुर्भिक्षः = अकाल – वृष्टि के अभाव में अन्न न होने पर भिक्षा प्राप्त नहीं हो सकती है।
अत: अकाल के लिए संस्कृत भाषा में दुर्भिक्ष शब्द का प्रयोग किया जाता है। दुर्भिक्ष शब्द में प्रथम दुर् उपसर्ग का प्रयोग दुखद रूप से अर्थात् कठिनता के अर्थ में किया गया है।
अत: दुर्भिक्ष शब्द का शाब्दिक अर्थ है कठिनता से भिक्षा प्राप्त हो वह काल। प्रावर्तत = प्रवृत्त हुई – प्र + वृत् धातु + हस्तन भूतकाल, अन्य पुरुष – एक वचन। निर्धमम् = धर्म से रहित। दण्डितः = दंड (सजा) दिया गया – दण्ड् धातु + क्त – कर्मणि भूत – कृदन्त। मारितः = मारा गया – मृ धातु (प्रेरणार्थक) + कृत् प्रत्यय। प्रस्थापितवन्तः = स्थापना की, प्रस्थापित किया। प्र + स्था धातु + (प्रेरणार्थक) क्तवतु प्रत्यय-तवत् – कर्तरि भूत-कृदन्त। अभिषिक्तम् = अभिषेक किया गया = अभि + सिच् धातु + क्त प्रत्यय – प्राचीन परंपरानुसार राजा के रूप में घोषित होने से पूर्व एक विधि का आयोजन किया जाता था।
इस विधि में राजा होनेवाले व्यक्ति को राज-सिंहासन पर बैठाकर मंत्रोच्चारपूर्वक जलाभिषेक किया जाता था। जब तक इस प्रकार जल के द्वारा राज्याभिषेक नहीं होता था तब तक उस व्यक्ति प्राप्त राज-पद मान्य नहीं होता था।
उपतस्थुः = उपस्थित किया – उप + स्था धातु + परोक्ष भूतकाल, अन्य पुरुष बहुवचन। क्षुधार्ताः = क्षुधा (भूख) से पीडित – क्षुधया आर्ताः – तृतीया तत्पुरुष। दग्धुम् = जलाने के लिए – दह् धातु + तमुन् – हेत्वर्थक कृदन्त। उद्यतः = सज्ज, तैयार। गोरूपम् = गाय के रूप को – गावः रूपम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। आस्थाय. = स्थित रहकर – आ + स्था धातु + क्त्वा प्रत्यय – सम्बन्धक भूत कृदन्त। पलायितुम् – पलायन करने हेतु – पलाय् + तुमुन् हेत्वर्थक कृदन्त। उद्यता: = तत्पर हुए। अब्रवीत् = कहा – बृ धातु + ह्यस्तन भूतकाल, अन्य पुरुष – एकवचन। स्थावरस्य = स्थावर का (जो एक स्थान पर स्थिर खड़ा हो) उसे स्थावर कहते है यथा वृक्ष, वनस्पति आदि।
चरस्य = चलायमान – चैतन्य जीव का। ईप्सितम् = चाहा हुआ, इच्छित। देहि = दो – दा + विधिलिङ्, मध्यम पुरुष – एकवचन। प्रजारक्षणार्थम् = प्रजा के रक्षण के लिए। गोरूपाम् = गाय का रूप जिसने लिया है उसे (पृथ्वी को) – गोः रूपम् यस्याः सा – बहुव्रीहि समास। दुदोह = दोह लिया, दुहा, दोहन किया – दुह् + परोक्ष भूतकाल + अन्य पुरुष, एकवचन। रूपकम् = रुपक – जिसमें किसी अन्य वस्तु का आरोप किया गया हो वह – यहाँ राजा पृथु में गोपाल का, भूमि में गाय का तथा दोहन क्रिया में कृषि-कर्म का तथा दूध में अन्न का आरोप किया गया है। दोहनकर्मणि = दोहन के कर्म में।
नियतकालम् = निश्चित समय पर – नियतः चासौ कालः, तम् – कर्मधारय समास। नियतपरिमाणम् = निश्चित नाप को – नियत: चासौ परिमाणः, तम् – कर्मधारय समास। दोग्धि = दुह् + वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचनम् = दुहता है। परिपालयेत् = परि + पाल् विधिलिङ् = पालन करना चाहिए। दुह्यात् = दोहन किया जाना चाहिए – दुह – विध्यर्थ, अन्यपुरुष, एकवचन। दुह्युः = दोहन किया जाना चाहिए।
दुह् धातु, विध्यर्थ, अन्य पुरुष, बहुवचन। यतो हि = क्योंकि। बहुधान्यप्रवृत्तः = अधिक अनाज प्राप्त करने के लिए – बहुधान्याय प्रवृत्तः – चतुर्थी तत्पुरुष। लोलुपमानस: = लोभी मनवाला – लोभी, लोलुपं मानसं यस्य सः – बहुव्रीहि समास। न रक्षेत् = रक्षण न करे। सस्यम् = अनाज। कृषि = खेती। गोरक्ष्यम् = गोपालन। वणिक्पथ: = व्यापार। नश्यति = नष्ट होता है, समाप्त होता है।
अनुवाद :
स्वायम्भुव मनु के वंश में अंगनामक राजा हुए। वे दयालु और धर्म में रत थे। उनका वेन नामक पुत्र हुआ। वह क्रूर और अधर्म-युक्त था। उसके द्वारा यज्ञ-दानादि सत्कर्म निषिद्ध कर दिए गए थे। दुर्जनों का सत्कार और सज्जनों का अपमान किया जाता था। चोरी आदि प्रवृत्तियाँ सर्वत्र आरंभ हो गई।
सज्जनों का धन और धान्य दुर्जनों के द्वारा चुरा लिया गया। यज्ञ-कर्मों के अभाव से अकाल पड़ गया। यह भूतल यज्ञ-दान-रहित और धर्म-हीन हो गया।
इस दुर्दशा में प्रजा के रक्षणार्थ ऋषि प्रवृत्त हुए। उनके द्वारा वेन को दण्ड दिया गया तथा मार दिया गया। तदनन्तर ऋषियों ने उसके पृथु नामक पुत्र को राज्यासन पर स्थापित किया। पृथु दयालु और धार्मिक थे। वेन के शासन में पीडित प्रजा ने धार्मिक पृथ् को उपस्थित किया जिनका राज्याभिषेक हो चुका था। क्षुधार्त प्रजा के पालन के लिए अन्न अपेक्षित था। भूतल यज्ञ-दान-रहित एवं धर्महीन था।
उस प्रकार के धरातल को देखकर पृथु उसे दहन करने हेतु तत्पर हुए। तब यह भूमि गाय का रूप लेकर पलायन करने के लिए तत्पर हुई। पृथु उसके पीछे-पीछे गए। अन्त में एक स्थान पर जाकर भूमि ने कहा – मैं क्या करूँ। पृथु ने भी उससे (गोरूप पृथ्वी) कहा स्थावर एवं चैतन्य (जीव) को उसकी इच्छित वस्तु प्रदान करो। भूमि भी वैसा ही हो (तथास्तु) कहकर वहाँ खड़ी हो गई। पृथु ने उस गोरुप भूमि का दोहन किया।
इस दोहन कर्म में अन्न के रूप में अत्यधिक दूध प्राप्त हुआ। उस अन्न से पृथु के द्वारा प्रजा का संरक्षण किया गया और प्रसन्नता (प्रजा-हित-कार्य) प्रदान की गई।
इस प्रकार का पृथुचरित पुराणों में वर्णित है। वस्तुतः यह एक रुपक है। तदनुसार राजा (पृथु) गोपाल है, भूतल गाय है, दोहन क्रिया कृषि कर्म है और दूध अन्न है। अर्थात् पृथु राजा के रूप में गोपाल ने भूतल रूपी गाय से कृषि-कर्म रूपी दोहन किया। इस दोहन-कर्म में अन्न रूपी दूध प्राप्त किया।
इस रूपक का यह सन्देश है – जिस प्रकार गोपाल अपनी गाय का प्रेम-पूर्वक पालन करते हैं। वे (प्रेमपूर्वक) पाली हुई गाय को प्रातः काल और सायंकाल नियत समय पर और नियत मात्रा में दुहते हैं उसी प्रकार राजा को भी अपने भूतल का प्रेमपूर्वक पालन करना चाहिए।
और पालित भूतल का उसे शरद एवं वर्षा ऋतु में नियत-काल और नियत परिमाण में दोहन करना चाहिए। इस प्रकार ही कृषि-कर्म में प्रवृत्त प्रजा को भी अपने भूतल का उसी प्रकार पालन करना चाहिए। पालित धरातल का नियतकाल और नियत परिमाण में दोहन करना चाहिए।
क्योंकि –
अन्वय : बहुधान्यप्रवृत्त: लोलुपमानस: अयं जनः भूतलं न रक्षेत् चेत् हानि: एवं भविष्यति।।
भूतले सस्य, कृषिः च गोरक्ष्यं सर्व एव वणिक्पथ: नित्यम् भूतले अरक्षिते नश्यति एव न संशयः।।
अनुवाद : अत्यधिक अन्न की प्राप्ति हेतु लोभी यह मानव यदि इस भूमि की रक्षा न करे तो हानि ही होगी। अनाज, खेती और गोपालन ये सब व्यापार है, भूतल की रक्षा न होने पर नष्ट ही होते हैं। (इस विषय में) इसमें संशय नहीं है।