GSEB Gujarat Board Textbook Solutions Class 12 Economics Chapter 3 मुद्रा एवं मुद्रास्फीति Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 12 Economics Chapter 3 मुद्रा एवं मुद्रास्फीति
GSEB Class 12 Economics मुद्रा एवं मुद्रास्फीति Text Book Questions and Answers
स्वाध्याय
प्रश्न 1.
स्वाध्याय निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए :
1. ‘वस्तुओं और सेवाओं के बदले में जो सर्वस्वीकृत है वह मुद्रा है ।’ मुद्रा की यह परिभाषा किसने दी है।
(A) मार्शल
(B) केइन्स
(C) पिगु
(D) रोबर्टसन
उत्तर :
(D) रोबर्टसन
2. मांग में वृद्धि होने के कारण हुई भाववृद्धि को कैसी मुद्रास्फीति कहते हैं ?
(A) मांग प्रेरित
(B) खर्च प्रेरित
(C) वेतन प्रेरित
(D) लाभप्रेरित
उत्तर :
(A) मांग प्रेरित
3. सतत और सर्वग्राही भाववृद्धि की स्थिति में मुद्रा का मूल्य ………………………
(A) घटता है ।
(B) बढ़ता है ।
(C) स्थिर रहता है ।
(D) बदलता नहीं है ।
उत्तर :
(A) घटता है ।
4. सरकार ने कानून द्वारा बढ़ते हुये भावों को रोका हो, वह भाववृद्धि किस प्रकार की मुद्रास्फीति है ?
(A) दबी हुयी मुद्रास्फीति
(B) खुली मुद्रास्फीति
(C) दौड़ती मुद्रास्फीति
(D) छिपी मुद्रास्फीति
उत्तर :
(A) दबी हुयी मुद्रास्फीति
5. मुद्रास्फीति की सही स्थिति में अर्थतंत्र में साधनों के पूर्ण रोजगार के बाद भाव बढ़ते है, तब सर्जित होती है । यह किस अर्थशास्त्री का विचार है ?
(A) मार्शल
(B) क्राउथर
(C) केईन्स
(D) पिगु
उत्तर :
(C) केईन्स
6. चावल देकर कपड़ा प्राप्त करने की आर्थिक व्यवस्था किस नाम से जानी जाती है ?
(A) मुद्रापद्धति
(B) बैंकिंग व्यवस्था
(C) वस्तु-विनिमय प्रथा
(D) उधार पद्धति
उत्तर :
(C) वस्तु-विनिमय प्रथा
7. निम्न में से मुद्रा के किस विकल्प में विनिमय मूल्य सबसे सुरक्षित रूप में संग्रह हो सकता है ?
(A) अनाज
(B) पशु
(C) पत्थर
(D) सिक्का
उत्तर :
(D) सिक्का
8. आधुनिक आर्थिक संसार में आर्थिक प्रवृत्तियों के केन्द्र में कौन है ?
(A) मुद्रा
(B) ग्राहक
(C) बाज़ार
(D) सरकार
उत्तर :
(A) मुद्रा
9. मुद्रा किसका माध्यम है ?
(A) खर्च का
(B) विनिमय का
(C) आय का
(D) ग्राहक का
उत्तर :
(B) विनिमय का
10. भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मनुष्य मुद्रा का क्या करते है ?
(A) विक्रय करते हैं ।
(B) खर्च करते हैं ।
(C) बचत करते हैं ।
(D) कमाते है ।
उत्तर :
(C) बचत करते हैं ।
11. मनुष्य की आवश्यकताएँ
(A) सीमित होती है ।
(B) मर्यादित होती हैं ।
(C) तटस्थ होती है ।
(D) अमर्यादित होती हैं ।
उत्तर :
(D) अमर्यादित होती हैं ।
12. शिक्षक को ज्ञान के बदले में क्या मिलता था ?
(A) अनाज
(B) मुद्रा
(C) सम्मान
(D) विद्यार्थी
उत्तर :
(A) अनाज
13. आर्थिक-सामाजिक विकास होने के साथ मनुष्य की आवश्यकताएँ बढी और अर्थतंत्र सरलता में से ……………….
(A) सरल बना
(B) जटिल बना
(C) विस्तृत बना
(D) सीमित बना
उत्तर :
(B) जटिल बना
14. भारत में विशेष रूप से किसे धन के स्वरूप में देखना शुरू किया ?
(A) भैंस
(B) बैल
(C) गाय
(D) घोड़ा
उत्तर :
(C) गाय
15. किस व्यवसाय के विकास ने मूल्य संग्रह और स्थानांतरण शीघ्र और सरल बना ?
(A) होटल
(B) निर्माण
(C) सेवा
(D) बैंकिंग
उत्तर :
(D) बैंकिंग
16. वस्तु और सेवा के बदले में जो सर्वस्वीकृत है वह ……………………….
(A) मुद्रा है ।
(B) सरकार है ।
(C) ग्राहक है ।
(D) बैंक है ।
उत्तर :
(A) मुद्रा है ।
17. मुद्रा का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य क्या है ?
(A) संतोष का है ।
(B) विनिमय का है ।
(C) विक्रय का है ।
(D) क्रय का है ।
उत्तर :
(B) विनिमय का है ।
18. सामान्य रूप से,भाववृद्धि अर्थात् …………………….
(A) महँगाई
(B) मुद्रादर
(C) मुद्रास्फीति
(D) मुद्राकीय
उत्तर :
(C) मुद्रास्फीति
19. बढ़ती हुयी जनसंख्या …………………………… का दबाव खड़ा करती है ।
(A) पूर्ति वृद्धि
(B) बाज़ार में वृद्धि
(C) ग्राहक वृद्धि
(D) मांग वृद्धि
उत्तर :
(D) मांग वृद्धि
20. खर्च में वृद्धि होने के कारण भाववृद्धि किस प्रकार की मुद्रास्फीति है ?
(A) खर्च प्रेरित
(B) मांग प्रेरित
(C) वेतन प्रेरित
(D) लाभ प्रेरित
उत्तर :
(A) खर्च प्रेरित
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए :
1. वस्तु विनिमय प्रथा का अर्थ दीजिए ।
उत्तर :
मुद्रा की अनुपस्थिति में एक वस्तु या दूसरी वस्तु के साथ विनिमय या अदला-बदली को वस्तु विनिमय प्रथा कहते हैं ।
2. मार्शल द्वारा दी गयी मुद्रा की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर :
मार्शल के अनुसार – ‘किसी भी समय और स्थान पर किसी भी प्रकार की संशय या विशेष जाँच के बिना जिसके द्वारा वस्तु और सेवाओं का विनिमय हो सकता हो तो उसे मुद्रा कहते हैं ।’
3. मुद्रास्फीति अर्थात् क्या ?
उत्तर :
सामान्य रूप से भाववृद्धि अर्थात् मुद्रास्फीति ।
4. खर्चप्रेरित मुद्रास्फीति किसे कहते हैं ?
उत्तर :
खर्च में वृद्धि होने के कारण उत्पन्न होनेवाली मुद्रास्फीति को खर्चप्रेरित मुद्रास्फीति कहते हैं ।
5. मांगप्रेरित मुद्रास्फीति किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अर्थतंत्र में मांग बढ़ने के कारण जो मुद्रास्फीति सर्जित हो तो उसे मांग प्रेरित मुद्रास्फीति कहते हैं ।
6. लोग मुद्रा की बचत क्यों करते हैं ?
उत्तर :
लोग भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मुद्रा की बचत करते हैं ।
7. प्राचीन समय में वस्तु विनिमय पद्धति क्यों प्रभावशाली थी ?
उत्तर :
प्राचीन समय में ग्राम समाज व्यवस्था थी, कृषि पर परस्पर व्यवहार तथा सीमित आवश्यकताओंवाला सादा जीवन था । इसलिए वस्तु विनिमय पद्धति प्रभावशाली थी ।
8. किसके कारण वस्तु विनिमय प्रथा मर्यादावाली बनी ?
उत्तर :
औद्योगिकरण, शहरीकरण और श्रमविभाजन तथा विशिष्टीकरण के कारण वस्तु विनिमय प्रथा मर्यादावाली बनी ।
9. वस्तु विनिमय प्रथा में विनिमय को सरल बनाने के लिए किसका उपयोग शुरू हुआ ?
उत्तर :
वस्तु विनिमय प्रथा में विनिमय को सरल बनाने के लिए पशु का उपयोग शुरू हुआ ।
10. भारत में विशेष रूप से किस पशु को धन के रूप में देखा गया ?
उत्तर :
भारत में विशेष रूप से गाय को धन के रूप में देखा गया ।
11. पशुओं में मूल्यसंग्रह का प्रश्न क्यों कठिन बना ?
उत्तर :
पशु बीमार हो, मृत्यु हो, दीर्घकालीन समय तक पशुओं में मूल्य संग्रह का प्रश्न विकट बना ।
12. रोबर्ट्स के द्वारा दी गयी मुद्रा की परिभाषा लिखो ।
उत्तर :
रोबर्ट्स के अनुसार ‘वस्तुओं और सेवाओं’ के बदले में जो सर्वस्वीकृत है वह मुद्रा है ।
13. कौन-सा मूल्य तुलनात्मक अध्ययन को सरल बनाता है ?
उत्तर :
मुद्रा का मूल्य तुलनात्मक अध्ययन को सरल बनाता है ।
14. मुद्रा का नया स्वरूप कौन-सा है ?
उत्तर :
क्रेडिट कार्ड या ई-बैंकिंग मुद्रा का नया स्वरूप है ।
15. लर्नर के अनुसार मुद्रास्फीति अर्थात् क्या ?
उत्तर :
लर्नर के अनुसार ‘वस्तु की पूर्ति की अपेक्षा उसकी माँग अधिक प्रमाण हो तो उस स्थिति को मुद्रास्फीति कहते हैं ।’
16. मिल्टन फिडमेन के अनुसार मुद्रास्फीति क्या है ?
उत्तर :
मिल्टन फिडमेन के अनुसार ‘मुद्रास्फीति एक वितिय घटना है जिसमें स्थिर और चालू गति से भाव सतत बढ़ते रहते हैं ।’
17. प्रो. पिगु के अनुसार मुद्रास्फीति अर्थात् क्या ?
उत्तर :
प्रो. पिगु के अनुसार ‘वास्तविक आय की अपेक्षा मुद्राकीय आय अधिक तीव्रता से बढ़े तो उसे मुद्रास्फीति कहते हैं ।’
18. दबी हुयी मुद्रास्फीति किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सरकार कानून और सबसिडी द्वारा भाव स्तर को दबा के रखती हो तो भाव न बढ़ने पर भी मुद्रास्फीति है, जिसे दबी हुयी मुद्रास्फीति कहते हैं ।
19. कब भाव बढ़ने पर भी मुद्रास्फीति नहीं है ?
उत्तर :
यदि अर्थतंत्र में अल्पकालीन समय के लिए कुछ ही सेवा या वस्तु के लिए भाववृद्धि हुयी तो भी मुद्रास्फीति नहीं है ।
20. मुद्रास्फीति कब सर्जित होती है ?
उत्तर :
बहुत सारी मुद्रा कम वस्तुओं को पकड़ने के लिए दौड़े तब मुद्रास्फीति सर्जित होती है ।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में लिखिए ।
1. विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा के कार्य की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
व्यक्ति मुद्रा खर्च करके वर्तमान की वस्तु और सेवाएँ प्राप्त करता है ।
- व्यक्ति मुद्रा की बचत करके भविष्य में वस्तु और सेवाएँ प्राप्त करता है ।
- संक्षिप्त में आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए उपयोगी वस्तु और सेवा खरीदने के लिए मुद्रा का विनिमय के माध्यम के रूप में उपयोग होता है ।
2. मुद्रा के कार्य की चर्चा मूल्य के संग्राहक के रूप में चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
वस्तु या सेवा में मूल्य संग्रह एक समस्या थी, पशु या अनाज के स्वरूप में मूल्य का संग्रह लंबे समय तक संभव नहीं था । इस कार्य को मुद्रा ने सरल बना दिया । वस्तु या सेवा विक्रय करके मुद्रा प्राप्त कर सकते हैं । जिससे मूल्य संग्रह का कार्य सरल बना तथा भविष्य में भी वस्तु और सेवा प्राप्त कर सकते हैं ।
3. मुद्रास्फीति के लक्षण बताइए ।
उत्तर :
मुद्रास्फीति के लक्षण निम्नानुसार है :
- भावस्तर में सतत वृद्धि हो रही है ।
- अर्थतंत्र के सभी क्षेत्रों में भाव (कीमत) बढ़ते हैं ।
- मुद्रा की कीमत (क्रयशक्ति) कम होती है ।
- पूर्ण रोजगारी की स्थिति के बाद बढ़ता हुआ भावस्तर मुद्रास्फीति है ।
4. वस्तु विनिमय में परस्पर सामंजस्य की क्या समस्या है ?
उत्तर :
वस्तु विनिमय में परस्पर सामंजस्य की समस्या होती है, क्योंकि वस्तुविनिमय में गेहूँ के बदले गाय, शिक्षा के बदले अनाज, अनाज के बदले कपड़ा आदि का विनिमय होता है । परंतु अनाज की आवश्यकता न हो या कपड़े की आवश्यकता न हो तब दोनों के सामंजस्य की समस्या सर्जित होती है ।
5. वस्तु या सेवा में मूल्यसंग्रह की क्या समस्या है ?
उत्तर :
वस्तु या सेवा में मूल्य संग्रह को बनाये रखना कार्य कठिन है । गैंहू का उत्पादन करते जूते या कपड़ा तथा अन्य आवश्यकताओं को पूरा करता है । परंतु उत्पादन अधिक हो तो गेंहू को किस प्रकार संभालकर रखा जाय । भविष्य में वस्तु के बिगड़ने का भी डर होता है । इसलिए मूल्य कम हो जाता है । अर्थात् मूल्य संग्रह की समस्या खड़ी होती है ।
6. वस्तु के मूल्य मापदण्ड की समस्या क्या है ?
उत्तर :
औद्योगिक आर्थिक जगत में वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य के मापदण्ड का प्रश्न कठिन बना है । गेंहू के बदले में चावल का विनिमय सरल था । गेंहू के सामने अनेक वस्तुएँ आ गई । जिनका विनिमय दर याद रखना, निश्चित करना कठिन था । एक मन गेंहू बराबर दो मन चावल, एक मन गेंहू बराबर दस मीटर कपड़ा या पाँच किलो घी । तो एक किलो घी बराबर कितना कपड़ा ? यह सब निश्चित करना और याद रखना कठिन था । यह सब बातें मूल्य मापदण्ड की समस्या सर्जित करती है ।
7. मुद्रा का मूल्य मापदण्ड के रूप में कार्य बताइए ।
उत्तर :
वस्तु विनिमय प्रथा में वस्तु का विनिमय मूल्य याद रखना कठिन था । एक मन गैंह बराबर कितना चावल ? कितने मीटर कपड़ा ? कितने किलो घी, कितनी जोड़ी चप्पल ? आदि …..
मुद्रा ने इस कार्य को सरल बना दिया । मुद्रा के कारण कीमत निर्धारण सरल बना । वस्तु और सेवा की कीमत निश्चित होती है । परिणाम स्वरुप मूल्य की गणना सरल बनती है । मुद्रा मूल्य का तुलनात्मक अध्ययन सरल बनाता है ।
8. मुद्रा के प्रकार बताइए ।
उत्तर :
वस्तु विनिमय प्रथा के समय से ही विनिमय के माध्यम या मूल्यसंग्रह के रूप में काम करनेवाले पशु या कीमती पत्थरों का उपयोग किया जाता था । उसके बाद धातु के सिक्को ने काम किया और बाद में कानूनमान्य मुद्रा के रूप में चलनी नोट और सिक्का आये । तथा बैंकिंग सिस्टम के विकास से बैंक-मुद्रा आयी । अब तो क्रेडिट कार्ड या ई-बैंकिंग में मुद्रा ने नया स्वरूप धारण किया ।
संक्षिप्त में मुद्रा के निम्नलिखित प्रकार हैं :
- वस्तु मुद्रा
- पशु मुद्रा
- धातु मुद्रा
- कागजी मुद्रा
- प्लास्टिक मुद्रा
- बैंक मुद्रा । अदृश्य या ई-मनी ।
9. मुद्रास्फीति किस प्रकार से आर्थिक विकास को अवरोधित करती है ?
उत्तर :
पूर्ण रोजगार की स्थिति के बाद अर्थतंत्र के सभी क्षेत्रों में भावस्तर निरंतर बढ़ता रहे तो वह मुद्रास्फीति है । और ऐसी मुद्रास्फीति आर्थिक विकास का अवरोधित करती है ।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्देसर लिखिए :
1. मुद्रा का कार्य देकर उसके कार्यों को संक्षिप्त में वर्णन कीजिए ।
उत्तर :
मार्शल के अनुसार : “किसी भी समय और किसी भी स्थान पर बिना किसी संदेह एवं जाँच पड़ताल के वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय हो सकता हो तो उसे मुद्रा कहते हैं ।
रोबर्टस के मतानुसार : ‘वस्तुओं और सेवाओं के बदले में जो सर्वस्वीकृत हो वह मद्रा है ।’
मुद्रा की एक उपयुक्त एवं पूर्ण परिभाषा : ‘मुद्रा वह वस्तु है जिसे एक व्यापक क्षेत्र में विनिमय के माध्यम, मूल्यमापक ऋण भुगतान और मूल्य संचय के रूप में स्वतंत्र एवं सामान्य स्वीकृति प्राप्त हो ।’
सामान्य अर्थ में ‘मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करें ।’ मुद्रा को समझने के लिए उसके कार्यों को समझेंगे :
मुद्रा के प्रमुख कार्य हैं :
(1) विनिमय का माध्यम
(2) मूल्य का मापदण्ड
(3) मूल्य के संग्रह के रूप में
(4) दीर्घकालीन भुगतान के साधन के रूप में ।
अब इन मुद्रा के कार्यों की चर्चा करेंगे :
(1) विनिमय का माध्यम : मुद्रा का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य विनिमय का माध्यम के रूप में होता है । मुद्रा अपने आर्थिक व्यवहारों को सरल बनता है और वस्तु विनिमय पद्धति में आवश्यकताओं के परस्पर समन्वय में जो परेशानी पड़ती थी उसे मुद्रा ने दूर कर दिया । किसान गेंहू को बेचकर मुद्रा प्राप्त करता है । और फिर मुद्रा देकर चावल, कपड़े, घी आदि खरीद सकता है । व्यक्ति मुद्रा खर्च करके वर्तमान में वस्तु और सेवाएँ प्राप्त करते हैं । बचत करके भविष्य में वस्तु और सेवाएँ खरीद सकते हैं । मूलभूत भय से आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोगी वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदने के लिए मुद्रा का माध्यम के रूप में उपयोग होता है ।
इस प्रकार सर्वस्वीकृत माध्यम के रूप में मुद्रा अर्थतंत्र में अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।।
(2) मूल्य के मापदण्ड के रूप में कार्य : मुद्रा मूल्य के मापदण्ड के रूप में महत्त्वपूर्ण कार्य करता है । वस्तु विनिमय प्रथा में प्रत्येक वस्तु के विनिमय मूल्य को याद रखना पड़ता था । एक मन गैंहू बराबर कितने मन चाबल ? कितने मीटर कपड़े ? कितने किलो घी, कितनी जोड़ी चप्पल ? आदि । मुद्रा इस बात को सरल बनाता है । जब से मुद्रा विनिमय का सर्वस्वीकृत माध्यम बना है । मुद्रा के कारण कीमतों का तंत्र काम करता है और प्रत्येक वस्तु और सेवा की कीमत निश्चित होती है परिणाम स्वरूप मूल्य की गणना सरल बनती है । मुद्रा के मूल्य से तुलनात्मक अध्ययन सरल बनता है । शीघ्रता से निर्णय ले सकते हैं ।
(3) मूल्य के संग्रह के रूप में कार्य : वस्तु विनिमय प्रथा में वस्तु का संग्रह करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं था । आकस्मिक समय में द्रव्य की अनुपस्थिति में कई समस्याएँ सामने आती रही । नाशवान वस्तुओं का लंबे समय तक संग्रह कर पाना मुश्किल था । लंबे समय तक नाशवान वस्तुओं का संग्रह करने से मूल्य का नाश होता है । वस्तुओं के रूप में (मुद्रा का) संग्रह करने पर, वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की समस्या भी सामने आयी । मुद्रा की खोज़ से उपरोक्त परेशानियाँ समाप्त हो गयी । मुद्रा को लंबे समय तक संग्रह किया जा सकता है । मुद्रा के सड़ने या बिगड़ जाने की संभावना नहीं होती । द्रव्य को एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता है ।
आकस्मिक परिस्थिति से निपटने के लिए लोग द्रव्य की बचत भी करते हैं । विकट परिस्थिति में द्रव्य लोगों के काम आने के कारण मूल्य के संग्राहक के रूप में लोग द्रव्य की बचत करते हैं । बचत का अर्थतंत्र में पूंजीनिवेश होता है । पूँजीनिवेश से अर्थतंत्र का विकास होता है । अतः द्रव्य मूल्य के संग्राहक के रूप में द्रव्य अर्थतंत्र में अतिमहत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
(4) द्रव्य दीर्घकालीन भुगतान के रूप में : द्रव्य दीर्घकालीन लेन-देन में बहुत ही उपयोगी है । वस्तुविनिमय प्रथा में वस्तु के रूप में लेन-देन में कई समस्याएँ आती थी । मानलीजिए कोई किसान अन्य किसान के पास से 50 किग्रा बाज़री ले आता है और एक साल पश्चात् उसे लौटाता है । यह संभव है कि एक साल बाद जब किसान बाज़री लौटाता है तब बाज़री की कीमत कम हो और उसकी किस्म भी खराब हो । इस प्रकार वस्तुविनिमय प्रथा में दीर्घकालीन भुगतान में कई समस्याएँ सामने आती, द्रव्य का आसानी से संग्रह किया जा सकता है । द्रव्य की कीमत लगभग स्थिर रहने से द्रव्य के रूप में किया गया भुगतान लोगों को स्वीकार्य होता है ।
द्रव्य के उपरोक्त कार्यों के कारण आधुनिक अर्थव्यवस्था में द्रव्य की बचत द्वारा पूंजीनिवेश होता है । पूँजीनिवेश से अर्थतंत्र का विकास होता है । “मुद्रा के हैं चार कार्य : माध्यम, माप, मान और भण्डार । यदि इससे काम न सरे तो हस्तान्तरण को आगे करें ।”
“Money is a matter of functions four,
a medium, a measure, a standard & a store,
If it does not complete the picture,
add transferability more.”
2. मुद्रा का उद्भव और विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
वस्तु विनिमय प्रथा जब अमल में थी तब मूल्य संग्रह और विनिमय को सरल बनाने के लिए पशुओं को सर्वसामान्य माध्यम के रूप उपयोग किया ।
- भारत में पशुओं में भी विशेष गाय को धन के रूप में माना गया ।
- कृषि प्रधान भारत में अनाज का उपयोग के बाद बचे हुए अनाज से पशुओं को खरीदा जाता था ।
- आवश्यकता पड़ने पर पशुओं को बेचकर अनाज पुनः खरीद लेते थे ।
- इस प्रकार अनाज बेचकर पशु खरीदता और पशुओं के द्वारा अन्य आवश्यकताएँ पूरी करते थे । इस प्रकार गाय, भैंस, घोड़ा जैसा पशु विनिमय का माध्यम और संग्राहक बने ।
- पशु बीमार हों, मृत्यु हों, दीर्घकालीन समय उसी स्वरूप में भी मूल्य संग्रह संभव नहीं था । एक सीमा के बाद पशु संग्रह भी कठिन बना । स्थानांतरण का कार्य कठिन बना ।
- पशु विनिमय की मर्यादा के कारण इनके स्थान पर कीमती पत्थरों का उपयोग होने लगा ।
- राजाशाही युग आने पर सिक्के शुरु हुये और राजधानी तथा शहरों में सिक्कों का विनिमय के रूप में उपयोग होने लगा ।
- सिक्कों का विनिमय के रूप में उपयोग सीमित विस्तारों में होता था ।
- लोकतंत्र का उद्भव तथा औद्योगीकरण आधुनिक द्रव्य या मुद्रा के स्वरूप के लिए प्रेरक बना ।
- केन्द्रीय सत्ता के समर्थन से प्रकाशित मुद्रा को सर्वस्वीकृति मिली ।
- विनिमय के माध्यम रूप में मुद्रा को मान्यता मिली ।
- मूल्य के संग्रह में भी आधुनिक मुद्रा अधिक सफल रही ।
- बैंकिंग व्यवसाय के विकास से मूल्य संग्रह तथा स्थानांतरण शीघ्र और सरल बना ।
3. ‘अधिक मात्रा में मुद्रा कम वस्तु को पकड़ने को दोड़े तब मुद्रास्फीति सर्जित होती है ।’ विधान समझाइए ।
उत्तर :
मुद्रास्फीति एक मुद्राकीय घटना है । देश में जब मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि होने से देश के नागरिकों की मुद्राकीय आय बढ़ती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि होती है । मुद्रा आपूर्ति के प्रमाण में वस्तु और सेवा की आपूर्ति में वृद्धि नहीं होती है, लगभग स्थिर रहती है । मांग अधिक और पूर्ति के कारण वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में वृद्धि होती है । मुद्राकीय अर्थतंत्र में वस्तुओं और सेवाओं की अपेक्षा मुद्रा का प्रभाव बढ़ने से मुद्रास्फीति सर्जित होती है । इसलिए मेचलेप कहते हैं कि ‘अधिक मात्रा में मुद्रा कम वस्तुओं को पकड़ने के लिए दौड़े तब मुद्रास्फीति सर्जित होती है ।’
4. मांगप्रेरित मुद्रास्फीति किसे कहते हैं ? उसके कारणों को संक्षिप्त में समझाइए ।
उत्तर :
अर्थतंत्र में माँग बढ़ने के कारण जो मुद्रास्फीति सर्जित होती है उसे मांगप्रेरित मुद्रास्फीति कहते हैं ।
मांगप्रेरित मुद्रास्फीति के कारण निम्नानुसार हैं :
(1) मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि : मुद्रास्फीति एक मुद्राकीय घटना है । देश में मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि होने से लोगों की आय में वृद्धि होती है । परिणाम स्वरूप वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ती है । दूसरी और वस्तु और सेवा की आपूर्ति स्थिर रहती है । जिससे उनकी कीमत बढ़ती है, जिसे मुद्रास्फीति सर्जित होती है ।
(2) सरकार के सार्वजनिक खर्च में वृद्धि : भारत जैसे विकासशील देशों में सरकार आर्थिक विकास की प्रक्रिया में जडती है । आंतरिक ढाँचे के निर्माण, आवश्यक आधारभूत सेवाएँ उपलब्ध करवाना या रोजगारी सर्जन के लिए सरकार सार्वजनिक खर्च करती है। जिससे देश में मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि होती है । लोगों की आय में वृद्धि होती है, मांग में वृद्धि होने से कीमत में वृद्धि होती है । यदि सरकार देश में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की अपेक्षा बड़े पैमाने पर मुद्रा आपूर्ति अर्थतंत्र में करे, सार्वजनिक खर्च करे तो मुद्रास्फीति अधिक गति से बढ़ती है ।
(3) जनसंख्या में वृद्धि : भारत में औसत जनसंख्या वृद्धिदर 2 प्रतिशत है । जिसके कारण मांग में वृद्धि या दबाव खड़ा हुआ है । निरंतर जनसंख्या वृद्धि के कारण दैनिक उपभोग की वस्तुओं की मांग में वृद्धि होती है, और बढ़ती हुयी जनसंख्या की मांग यदि पूरी नहीं हो तब भावस्तर बढ़ता है । जनसंख्या स्थिर हो परंतु उसकी आय बढ़े तो भी मांग में वृद्धि होती है परिणाम स्वरूप मद्रास्फीति में वृद्धि होती है ।
5. खर्चप्रेरित मुद्रास्फीति किसे कहते हैं ? उसके कारणों को संक्षिप्त में समझाइए ।
उत्तर :
खर्च में वृद्धि के कारण सर्जित मुद्रास्फीति को खर्चप्रेरित मुद्रास्फीति कहते हैं ।
खर्चप्रेरित मुद्रास्फीति में विभिन्न खर्चों का समावेश होता है । कीमत को प्रभावित करनेवाले तत्त्वों में मांग के साथ पूर्ति भी जवाबदार होती है । पूर्तिलक्षी अर्थशास्त्र के समर्थक मानते हैं कि उत्पादन खर्च में वृद्धि हो तो भी वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होती है । उत्पादन खर्च में निम्नलिखित खर्च का समावेश होता है –
- कच्चे माल की कीमत में वृद्धि
- बिजली की दर में वृद्धि
- पानी की दर में वृद्धि
- श्रमिको के वेतन में वृद्धि
- परिवहन खर्च में वृद्धि
इन सभी वर्गों के कारण वस्तु और सेवाओं की कीमत में वृद्धि होती है जिससे मुद्रास्फीति सर्जित होती है ।
6. मुद्रास्फीति के अन्य कारणों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
मुद्रास्फीति के मूल में दो कारण ही जवाबदार हैं :
(i) मांग में वृद्धि और
(ii) खर्च में वृद्धि । परंतु इनके अतिरिक्त भाववृद्धि के लिए अन्य परिबल भी जवाबदार हैं जिनकी चर्चा नीचे करेंगे :
(1) करनीति : सरकार की टेक्सनीति में परिवर्तन हो, विशेष सरकार वस्तुओं और सेवाओं पर ऊँची दर से टेक्स बढ़ाये तब वस्तु का उत्पादन खर्च और कीमत में वृद्धि होती है । इस प्रकार ऊँची कर दर मुद्रास्फीति के लिए जवाबदार बन सकती है ।
(2) आयाती वस्तुओं की कीमत में वृद्धि : भारत में बहुत सारी वस्तुओं का आयात होता है । और अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में कीमत बढ़ने से मुद्रास्फीति सर्जित होती है ।
जैसे : भारत में पेट्रोलियम उत्पादन में 70% पूर्ति आयात द्वारा होती है । अब यदि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में क्रूड ऑयल की कीमत बढ़े तो पेट्रोल-डीज़ल के भाव भी बढ़ते हैं । और पेट्रोल-डीज़ल यह ऐसी वस्तु है कि उसकी कीमत बढ़ने से अन्य अनेक वस्तुओं के भाव बढ़ते हैं।
(3) अभाव : जब कच्चा माल, बिजली या उत्पादन के लिए आवश्यक किसी भी बात की कमी खड़ी हो तब कीमत में वृद्धि होती है । उत्पादन प्रक्रिया में सम्मलित कोई भी घटना व्यापक और दीर्घकालीन कमी मुद्रास्फीति के लिये जवाबदार है ।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए :
1. वस्तु विनिमय प्रथा का अर्थ देकर वस्तुविनिमय प्रथा की मर्यादाओं को समझाइए ।
उत्तर :
मुद्रा की अनुपस्थिति में एक वस्तु या दूसरी वस्तु के साथ विनिमय या अदलाबदली को वस्तुविनिमय प्रथा कहते हैं । प्राचीन समय में इसे अदला-बदली प्रथा (Barter System) कहते हैं । वस्तु विनिमय की प्रथा की मर्यादाएँ निम्नलिखित थी जिसके कारण मुद्रा विनिमय प्रथा अस्तित्व में आयी ।
(1) आवश्यकताओं के परस्पर सामंजस्य का अभाव : सट्टा पद्धति अथवा वस्तुविनिमय प्रथा में दो व्यक्तियों के बीच विनिमय तभी संभव हो पाता है जब दोनों व्यक्तियों को उसकी आवश्यकता हो । दो में से किसी एक व्यक्ति को यदि इसकी आवश्यकता न हो तो द्विपक्षीय (परस्पर) समझौता नहीं हो पाता एवं वस्तुविनिमय प्रथा का भंग होता है जिसे एक उदाहरण से समझें :
A व्यक्ति के पास गेहूँ है और बदले में उसे कपड़ा चाहिए ।
B व्यक्ति के पास कपड़ा है परंतु उसे कुर्सी चाहिए ।
C व्यक्ति के पास कुर्सी है किन्तु उसे घड़ा चाहिए ।
D व्यक्ति के पास घड़ा है परंतु उसे गेहूँ चाहिए ।
अत: वस्तुविनिमय प्रथा में A व्यक्ति सीधा कपड़ा नहीं ले सकता क्योंकि B के पास कपड़ा तो है, परंतु उसे गेहूँ नहीं कुर्सी चाहिए । अत: A व्यक्ति को कपड़ा प्राप्त करने में परेशानी का सामना करना पड़ेगा । यही परिस्थिति C और D की है । इसी के स्थान पर यदि द्रव्य होता तो A व्यक्ति गेहूँ बाज़ार में बेचकर द्रव्य (मुद्रा) प्राप्त करता एवं इस मुद्रा की मदद से बाज़ार में से कपड़ा सरलता से खरीद सकता ।
परिणाम स्वरूप कह सकते हैं कि वस्तुविनिमय प्रथा में द्विपक्षीय साम्राज्य बैठाने में कठिनाई होती है ।
(2) मूल्य के संग्रह की कठिनाई : वस्तुविनिमय प्रथा में व्यक्ति को मूल्य संग्रह में भी अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था । यहाँ ध्यान रहे मूल्य अर्थात् विनिमय मूल्य । वस्तुविनिमय पद्धति में लेन-देन वस्तु के रूप में होती है । एवं कई वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनका लम्बे समय तक संग्रह नहीं किया जा सकता । उदाहरणार्थ वस्तुविनिमय प्रथा में अनाज दूध, घी, सागसब्जी, फल इत्यादि को लंबे समय तक संग्रहित नहीं किया जा सकता । इन चीजों को यदि लंबे समय तक संग्रहित किया जाए तो वे सड़ जाती है । अथवा खराब हो जाती हैं, जिससे उनका मूल्य भी नष्ट हो जाता है । इसी प्रकार गाय, भैंस, हाथी, ऊँट इत्यादि की अदला-बदली सरलता से नहीं की जा सकती । इन चीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है ।
(3) मूल्य के मापदंड का प्रश्न : श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण के बाद औद्योगिक आर्थिक जगत में वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य मापने का प्रश्न भी खूब महत्त्वपूर्ण बना । गेहूँ के बदले में चाबल का विनिमय करने तक तो ठीक था । परंतु अब गेहूँ के स्थान पर अनेक वस्तुएँ आ गयी जिनका विनिमय दर याद रखना, निश्चित करना कठिन था । एक मन गेहूँ बराबर दो मन चाबल, एक मन गेहूँ बराबर दस मीटर कपड़ा, एक मन गेहूँ किलो घी तो किलो घी बराबर कितना कपड़ा ? और कितने चाबल ? यह निश्चित करना और उसी के अनुसार व्यापार करना कठिन बना । इसलिए एक सर्व-सामान्य मापदण्ड की आवश्यकता पड़ी ।
(4) विभाजन की कठिनाई : वस्तुविनिमय प्रथा में लेन-देन अथवा विनिमय के दौरान कई बार विभाजन की समस्या सामने आती है। कुछ वस्तुएँ ऐसी होती है जिनका छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजन आसानी से किया जा सकता है । गेहूँ, अन्य प्रकार के अनाज, कपड़ा, . तेल आदि वस्तुओं का छोटी-छोटी इकाईयों में विभाजन संभव है । परंतु मकान, स्कूटर, मोटर साइकिल, गाय, भैंस, बकरी आदि को छोटी-छोटी इकाईयों में विभाजित नहीं किया जा सकता । परिणामस्वरूप विनिमय की प्रक्रिया में कठिनाई आती है ।
उदा. – 10 किग्रा गेहूँ और आधा बैल ? 25 किग्रा बाज़री के बराबर आधी साईकल ? इस प्रकार की कई समस्याएँ हमारे सामने आती है । अतः कहा जा सकता है कि कई वस्तुओं की अविभाज्यता के कारण विनिमय में कठिनाई आती है ।
(5) दीर्घकाल के लेन-देन में कठिनाई : वस्तुविनिमय प्रथा में दीर्घकालीन लेन-देन में कठिनाई आती है । मान लीजिए कोई व्यक्ति खेती करने के लिए किसी अन्य किसान के यहाँ से बैल ले जाता है और इन बैलों को वह पाँच साल बाद लौटाता है । ऐसी स्थिति में जिस किसान ने बैल खेती के लिए दूसरे किसान को दिए थे उसे नुकसान सहना पड़ता है । क्योंकि पाँच साल बाद उन्हीं बैलों की कार्यक्षमता उम्र अधिक हो जाने के समय कम हो जाती है । इसी प्रकार कोई व्यक्ति A किसी व्यक्ति B के पास 5 किग्रा लहसुन ले जाता है और उसे एक वर्ष के बाद लौटाता है तो संभव है कि जब उसने लहसुन माँगे थे तब लहसुन की कमी के कारण उसकी कीमत अधिक हो और जब लौटाए तब लहसुन की उपलब्धता के कारण लहसुन की कीमत कम हो । इस प्रकार ऐसी स्थिति में देनेवाले को नुकसान एवं लेनेवाले व्यक्ति को फायदा होता है । इस प्रकार वस्तुविनिमय पद्धति में . लंबी अवधि में लेनदार पूर्व देनदार को कठिनाई का सामना करना पड़ता है ।
(6) मुआवजा चुकाने का प्रश्न : वस्तुविनिमय प्रथा में डॉक्टर, वकील, नर्स, शिक्षक, धोबी, नाई, आदि की सेवाओं के मूल्य निर्धारण की विकट समस्या सामने आती है । डॉक्टर को ऑपरेशन के बदले में कितना मुआवजा दिया जाए, शिक्षक को ज्ञान देने के बदले में कितना मुआवजा दिया जाए आदि कई प्रश्न वस्तुविनिमय प्रथा में सामने आते हैं जिसका हल आसानी से नहीं निकाला जा सकता ।
संक्षेप में वस्तुविनिमय प्रथा की उपरोक्त कमियों के कारण वस्तुविनिमय प्रथा लंबे अरसे तक नहीं चल सकी एवं वैकल्पिक व्यवस्था का आरंभ हुआ ।
2. मुद्रास्फीति का अर्थ बताकर उसके कारणों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
सामान्य रूप से भाववृद्धि अर्थात् मुद्रास्फीति : मुद्रास्फीति एक आर्थिक समस्या है और मौद्रिक घटना है । सामान्य प्रजा वस्तुओं की कीमत वृद्धि को मुद्रास्फीति मानती है । परंतु अर्थशास्त्र में मुद्रास्फीति का अर्थ निम्नानुसार है :
लर्नर के अनुसार : ‘वस्तु की पूर्ति की अपेक्षा मांग अधिक हो तो इस स्थिति को मुद्रास्फीति कहते हैं ।’
मिल्टन फिडमेन के अनुसार : ‘मुद्रास्फीति एक मौद्रिक घटना है जिसमें स्थिर और चालू गति से भाव सतत बढ़ते रहते हैं ।’
डॉ. पिगु के अनुसार : ‘वास्तविक आय की अपेक्षा मुद्राकीय आय अधिक तेजी से बढ़े तो उसे मुद्रास्फीति कहते हैं ।’
मुद्रास्फीति में मुद्रा की क्रयशक्ति सतत घटती है । और अर्थतंत्र पर प्रतिकूल असर डालती है ।
मुद्रास्फीति के कारण निम्नानुसार हैं :
(1) मांग में वृद्धि : अर्थतंत्र में मांग बढ़ने से सर्जित मुद्रास्फीति को मांग प्रेरित मुद्रास्फीति कहते हैं । वस्तु की मांग में वृद्धि हो . और वस्तु की पूर्ति में वृद्धि न हो तब वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है । जिसके लिए मांग जवाबदार मानी जाती है । वस्तु की मांग में वृद्धि के निम्नलिखित कारण :
(i) मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि : मुद्रास्फीति एक मुद्राकीय घटना है । देश में मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि होने से लोगों की आय में वृद्धि होती है । परिणाम स्वरूप वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ती है । दूसरी ओर वस्तु और सेवा की आपूर्ति स्थिर रहती है । जिससे उनकी कीमत घटती है, जिसे मुद्रास्फीति सर्जित होती है ।
(ii) सरकार के. सार्वजनिक खर्च में वृद्धि : भारत जैसे विकासशील देशों में सरकार आर्थिक विकास की प्रक्रिया में जुड़ती है । आंतरिक ढाँचे के निर्माण, आवश्यक आधारभूत सेवाएँ उपलब्ध करवाना या रोजगारी सर्जन के लिए सरकार सार्वजनिक खर्च करती है । जिससे देश में मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि होती है । लोगों की आय में वृद्धि होती है, मांग में वृद्धि होने से कीमत में वृद्धि होती है । यदि सरकार देश में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की अपेक्षा बड़े पैमाने पर मुद्रा आपूर्ति अर्थतंत्र में करे, सार्वजनिक खर्च करे तो मुद्रास्फीति अधिक गति से बढ़ती है ।
(iii) जनसंख्या में वृद्धि : भारत में औसत जनसंख्या वृद्धिदर 2 प्रतिशत है । जिसके कारण मांग में वृद्धि का दबाव खड़ा हुआ है । निरंतर जनसंख्या वृद्धि के कारण दैनिक उपभोग की वस्तुओं की मांग में वृद्धि होती है, और बढ़ती हुयी जनसंख्या की मांग यदि पूरी नहीं हो तब भावस्तर बढ़ता है । जनसंख्या स्थिर हो परंतु उसी आय बढ़े तो भी मांग में वृद्धि होती है परिणाम स्वरूप मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है ।
(2) खर्च में वृद्धि : खर्च में वृद्धि के कारण सर्जित मुद्रास्फीति को खर्चप्रेरित मुद्रास्फीति कहते हैं ।
खर्च प्रेरित मुद्रास्फीति में विभिन्न वर्गों का समावेश होता है ।
कीमत को प्रभावित करनेवाले तत्त्वों में मांग के साथ पूर्ति भी जवाबदार होती है । पूर्तिलक्षी अर्थशास्त्र के समर्थक मानते हैं कि उत्पादन खर्च में वृद्धि हो तो भी वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होती है ।
उत्पादन खर्च में निम्नलिखित खर्च का समावेश होता है :
कच्चे माल की कीमत में वृद्धि
बिजली की दर में वृद्धि
पानी की दर में वृद्धि
श्रमिकों के वेतन में वृद्धि
परिवहन खर्च में वृद्धि
इन सभी वर्गों के कारण वस्तु और सेवाओं की कीमत में वृद्धि होती है जिससे मुद्रास्फीति सर्जित होती है ।
(3) अन्य कारण : मुद्रास्फीति के मूल में दो कारण ही जवाबदार है ।
(i) मांग में वृद्धि और (ii) खर्च में वृद्धि । परंतु इनके अतिरिक्त भाववृद्धि के लिए अन्य परिबल भी जवाबदार हैं जिनकी चर्चा नीचे करेंगे :
(i) करनीति : सरकार की टेक्सनीति में परिवर्तन हो, विशेष सरकार वस्तुओं और सेवाओं पर ऊँची दर से टेक्स बढ़ाये तब वस्तु का उत्पादन खर्च और कीमत में वृद्धि होती है । इस प्रकार ऊँची कर दर मुद्रास्फीति के लिए जवाबदार बन सकती ।
(ii) आयाती वस्तुओं की कीमत में वृद्धि : भारत में बहुत सारी वस्तुओं का आयात होता है । और अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में कीमत बढ़ने से मुद्रास्फीति सर्जित होती है ।
जैसे : भारत में पेट्रोलियम उत्पादन में 70% पूर्ति आयात द्वारा होती है । अब यदि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में क्रूड ऑयल की कीमत बढ़े तो पेट्रोल-डीज़ल के भाव भी बढ़ते हैं । और पेट्रोल-डीज़ल यह ऐसी वस्तु है कि उसकी कीमत बढ़ने से अन्य अनेक वस्तुओं के भाव बढ़ते हैं ।
(iii) अभाव : जब कच्चा माल, बिजली या उत्पादन के लिए आवश्यक किसी भी बात की कमी खड़ी हो तब कीमत में वृद्धि होती है । उत्पादन प्रक्रिया में सम्मलित कोई भी घटना व्यापक और दीर्घकालीन कमी मुद्रास्फीति के लिये जवाबदार है ।
3. मुद्रा की मांग और मुद्रा की आपूर्ति की संकल्पना समझाइए । उनके मुख्य घटक कौन-कौन से है ? (अभ्यासक्रम में नहीं है ।)
उत्तर :
मुद्रा की माँग : मुद्रा द्वारा लोग अपनी आवश्यक्ताओं की पूर्ति करते है, जिसका उपयोग वे चीजवस्तुओं और सेवाओं की खरीदी के लिए करते हैं । क्योंकि मुद्रा सीधे तौर पर लोगों की कोई आवश्यकता पूरी नहीं करती । जैसे – भूख मिटाने हेतु मुद्रा को खाया नहीं जा सकता एवं प्यास बुझाने हेतु मुद्रा को पिया नहीं जा सकता, फिर भी लोग मुद्रा को हाथ में नकद रूप में रखना पसंद करते है । क्योंकि मुद्रा के द्वारा लोगों की कितनी ही आवश्यकताओं की पूर्ति होती है । महान अर्थशास्त्री कीन्स ने बताया कि मुद्रा की माँग के तीन उद्देश्य हैं :
(1) विनिमय का उद्देश्य
(2) सावधानी का उद्देश्य
(3) सट्टाकीय उद्देश्य
(1) विनिमय का उद्देश्य : यह तो सर्वविदित है, कि लोगों को आय कुछ समय के अंतर से प्राप्त होती है, जबकि खर्च प्रतिदिन करना पड़ता है । इसलिए दो आय प्राप्ति के बीच के समय में विविध खर्चों को पूरा करने के लिए लोगों को अपने पास नकद रूप में मुद्रा को रखना पड़ता है । ठीक इसी प्रकार व्यापारिक संस्थाओं को भी कछ मुद्रा इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नकदी स्वरूप में रखना पड़ता है । ठीक इसी प्रकार व्यापारिक संस्थाओं को भी कुछ मुद्रा इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नकदी स्वरूप में रखना पड़ता है । नकद मुद्रा की उतने अंश तक होनेवाली माँग को विनिमय के उद्देश्य से नकद मुद्रा की माँग कहते हैं ।
(2) सावधानी का उद्देश्य : भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु लोग नकद मुद्रा की माँग करते हैं । उदाहरण स्वरुप – किसी भी प्रकार की दुर्घटना या बीमारी होने पर विविध प्रकार के खर्च जब आकस्मिक रूप में आ जाते है, तो उनकी पूर्ति के लिए लोग मुद्रा को नकद रूप में रखते हैं । व्यापारिक संस्थाएँ भी व्यापार धंधे में आनेवाले आकस्मिक खर्च की पूर्ति करने के उद्देश्य से मुद्रा की माँग करती है । ऐसा नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति या संस्था को भविष्य में ऐसा खर्च करना ही पड़े, परन्तु विकल्प के रूप में मुद्रा उसे एक प्रकार का आश्वासन देती है ।
(3) सट्टाकीय उद्देश्य : कीन्स ने प्रतिभूतियों के संदर्भ में होनेवाली सट्टाकीय हेतु मुद्रा की माँग को प्रस्तुत किया था । सट्टा अर्थात् भविष्य में भावों के अपेक्षित परिवर्तन का लाभ लेने हेतु वर्तमान में प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय । इन प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करके उसमें से लाभ प्राप्त करने हेतु सटोरियें जो मुद्रा नकद रूप में अपने पास रखते है, उसे सट्टाकीय हेतु मुद्रा की माँग कहते हैं । ब्याज की दर और प्रतिभूतियों के भावों के बीच व्यस्त संबंध होता है । ब्याज की दर बढ़ने की अपेक्षा हो तो प्रतिभूतियों के भाव घटेंगे ऐसा अनुमान लोग लगाते है । इसलिए वर्तमान ऊँचे भाव से प्रतिभूतियों को बेचकर लोग नकद मुद्रा अपने पास रखने को प्रेरित होते हैं।
मुद्रा की आपूर्ति :
परम्परागत व्याख्या के अनुसार मुद्रा की आपूर्ति अर्थात् लोगों के पासवाली मुद्रा, चाहे वह उनकी जेब में हो, तिजोरी में हो या . बैंकों में जमाराशि के रूप में हो । लोग इस मुद्रा को अपनी इच्छानुसार खर्च कर सके ऐसा होना चाहिए । इस प्रकार मुद्रा के दो घटक हैं ।
(1) मध्यस्थ बैंक द्वारा और ट्रेजरी द्वारा निर्गमित चलनी नोंटे ।
(2) बैंक में लोगों की चालू जमाराशियाँ जो माँगने पर निकाली जा सकें ।
किसी निश्चित समयावदि में मुद्रा का भंडार जो खर्च किया जा सके, उस रूप में नहीं होता । उदाहरण के तौर पर बैंक की सावधि जमा को मुद्रा की आपूर्ति नहीं कहते । मुद्रा की आपूर्ति की व्याख्या वर्तमान में विस्तृत कर दी गई है और अब बैंकों की चालू जमाराशि के अतिरिक्त अन्य जमाराशि का भी समावेश मुद्रा की आपूर्ति में किया जाता है । मुद्रा आपूर्ति की विस्तृत व्याख्या में जिन आर्थिक सम्पत्तियों का रूपान्तरण मुद्रा में हो सकता हो, उनका समावेश भी कई बार मुद्रा की आपूर्ति में किया जाता है ।
चलनी नोटों को निर्गमित करने का अधिकार अपने देश में सिर्फ रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया को है ।
रिजर्व बैंक द्वारा जो चलनी नोटें निर्गमित की जाती है, वे उसका ऋण और उत्तरदायित्व है । चलनी नोटों में रिजर्व बैंक के . गवर्नर के हस्ताक्षरवाली इस आशय की लिखावट होती है कि उसके सामने उतने ही अंशों की मान्य सम्पत्ति उसके पास होनी चाहिए । इन सम्पत्तियों में स्वर्ण, विदेशी मुद्रा, सरकारी प्रतिभूतियाँ बॉण्ड तथा विनिमय पत्रों का समावेश होता है ।
मुद्रा की आपूर्ति के घटकों में परिवर्तन होने से मुद्रा की आपूर्ति में भी परिवर्तन होता है । जब चलनमुद्रा और बैंक मुद्रा के भंडार (जत्थे) में वृद्धि होती है, तब मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि होती है । इन दोनों का प्रमाण प्रत्येक देश में उसके आर्थिक विकास की कक्षा और मुद्रा पद्धति के विकास पर आधारित है ।
विकासशील देशों में सामान्य रूप से मुद्रा की कुल आपूर्ति में चलन मुद्रा का प्रमाण अधिक होता है । जैसे-जैसे अर्थतंत्र विकसित होता है, वैसे-वैसे बैंक में मुद्रा का प्रमाण भी बढ़ता जाता है । भारत में प्रचलित प्रथा के अनुसार चलन के न्यूनत्तम रक्षित कोष के रूप में रु. 200 करोड़ मूल्य का सोना तथा विदेशी मुद्रा होना अनिवार्य है । जिसमें कुछ निश्चित रकम के रूप में स्वर्ण होना आवश्यक है । परन्तु वर्तमान समय में इस प्रथा का विशेष प्रयोजन नहीं है ।
भारत में अगस्त, 2003 में चलन घटक के तौर पर चलनी नोटें रु. 2,84,226 करोड़ थी । वहीं पर जमाराशि के तौर पर बैंक जमाराशि का प्रमाण रु. 15,33,778 करोड़ था । अर्थात् चलन घटक से 5.39 गुना अधिक जमाराशि घटक का प्रमाण था । मुद्रा की आपूर्ति यदि बढ़ जाए तो उससे भाववृद्धि जैसे समस्याएँ उत्पन्न होती है । इसलिए रिजर्व बैंक मुद्रा की आपूर्ति पर नियंत्रण रखता है।