GSEB Solutions Class 12 Economics Chapter 9 विदेश व्यापार

GSEB Gujarat Board Textbook Solutions Class 12 Economics Chapter 9 विदेश व्यापार Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 12 Economics Chapter 9 विदेश व्यापार

GSEB Class 12 Economics विदेश व्यापार Text Book Questions and Answers

स्वाध्याय
प्रश्न 1.
स्वाध्याय निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए :

1. व्यापार द्वारा क्या होता है ?
(A) साधनों की गतिशीलता घटती है ।
(B) उद्योगों की संख्या घटती है ।
(C) उत्पादन खर्च घटता है ।
(D) उत्पादन में विविधता आता है ।
उत्तर :
(A) साधनों की गतिशीलता घटती है ।

2. विदेश व्यापार में कौन-सा साधन सबसे कम गतिशील है ?
(A) पूँजी
(B) श्रम
(C) नियोजन शक्ति
(D) जमीन
उत्तर :
(D) जमीन

3. 2005 के बाद भारत के विदेश व्यापार में कौन-सा उल्लेखनीय परिवर्तन आया है ?
(A) व्यापार का कद बढ़ा है और भारत का व्यापार के क्रम में आगे आया है ।
(B) व्यापार का कद बढ़ा है किन्तु भारत का विश्व व्यापार में क्रम पीछे गया है ।
(C) भारत में लेन-देन तुला में हमेशां पुरांत रही है ।
(D) व्यापार में परंपरागत निर्यात का हिस्सा बढ़ा है ।
उत्तर :
(A) व्यापार का कद बढ़ा है और भारत का व्यापार के क्रम में आगे आया है ।

4. भारत के व्यापार के परंपरागत साझेदार देशों में किन देशों का समावेश किया जा सकता हैं ?
(A) इंग्लैण्ड और रशिया
(B) जपान और चीन
(C) मध्य एशिया के देश
(D) ऑस्ट्रेलिया
उत्तर :
(A) इंग्लैण्ड और रशिया

5. व्यापारतुला अर्थात् क्या ?
(A) चालू खाते की तुला
(B) पूँजी खाते की तुला
(C) वस्तु व्यापार की तुला (दृश्य)
(D) सेवा (अदृश्य) व्यापार की तुला
उत्तर :
(C) वस्तु व्यापार की तुला (दृश्य)

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6. लेन-देन की तुलना में कितने खाते होते हैं ?
(A) 2
(B) 1
(C) 3
(D) 4
उत्तर :
(A) 2

7. किसी भी देश की सीमा के अंदर होनेवाली व्यापार प्रवृत्ति को कौन-सा व्यापार कहते हैं ?
(A) आंतरिक व्यापार
(B) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
(C) प्रादेशिक व्यापार
(D) स्थानिक व्यापार
उत्तर :
(A) आंतरिक व्यापार

8. देश की सीमा के बाहर होनेवाली व्यापार प्रवृत्ति को कौन-सा व्यापार कहते हैं ?
(A) आंतरिक व्यापार
(B) विदेश व्यापार
(C) स्थानिक व्यापार
(D) स्थानिक व्यापार
उत्तर :
(B) विदेश व्यापार

9. जमीन की भौगोलिक गतिशीलता ………………………. होती है ।
(A) अधिक
(B) कम
(C) शून्य
(D) अनंत
उत्तर :
(C) शून्य

10. किस राज्य में व्यापार बढ़ाने के लिए Vibrant Gujarat Summit का आयोजन होता है ?
(A) दिल्ली
(B) पंजाब
(C) उत्तर प्रदेश
(D) गुजरात
उत्तर :
(D) गुजरात

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11. 1800वीं सदी के मध्य भाग से विश्व जनसंख्या लगभग गुना बढ़ी है ?
(A) 6
(B) 8
(C) 10
(D) 4
उत्तर :
(A) 6

12. 1800वीं सदी मध्य भाग से विश्व का उत्पादन लगभग कितने गुना बढ़ा है ?
(A) 80
(B) 60
(C) 50
(D) 40
उत्तर :
(B) 60

13. 1800वीं सदी के मध्य भाग से विश्व व्यापार किते गुना बढ़ा है ?
(A) 100 गुना
(B) 120 गुना
(C) 140 गुना
(D) 150 गुना
उत्तर :
(C) 140 गुना

14. अंतिम 30 वर्षों में व्यवसायिक सेवाओं के व्यापार में प्रतिवर्ष कितने प्रतिशत की वृद्धि होती है ?
(A) 5%
(B) 6%
(C) 8%
(D) 7%
उत्तर :
(D) 7%

15. 1980 और 2011 के बीच विकासशील देशों का निर्यात में योगदान उप प्रतिशत से बढ़कर कितने प्रतिशत हो गया ?
(A) 47%
(B) 48%
(C) 29%
(D) 42%
उत्तर :
(A) 47%

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16. 1980 और 2011 के बीच विकासशील देश का आयात का योगदान 29% से बढ़कर कितने प्रतिशत हो गया ?
(A) 47%
(B) 42%
(C) 49%
(D) 50%
उत्तर :
(B) 42%

17. 2015-’16 के समय दरम्यान विश्व व्यापार की वार्षिक औसत वृद्धिदर कितनी थी ?
(A) 5.0%
(B) 6.89%
(C) 2.8%
(D) 7.88%
उत्तर :
(C) 2.8%

18. 2014-’15 में विश्व के कुल व्यापार में भारत के व्यापार का हिस्सा कितने प्रतिशत रहा था ।
(A) 2.0%
(B) 2.02%
(C) 2.04%
(D) 2.07%
उत्तर :
(D) 2.07%

19. 2013-’14 में विश्व की कुल निर्यात में भारत की निर्यात का कितने प्रतिशत हिस्सा था ?
(A) 1.7%
(B) 1.6%
(C) 1.5%
(D) 0.5%
उत्तर :
(A) 1.7%

20. 2005 में विश्व के निर्यात करनेवाले देशों में भारत का क्रम कौन-सा था ?
(A) 19वाँ
(B) 29वाँ
(C) 39वाँ
(D) 9वाँ
उत्तर :
(B) 29वाँ

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21. 2014 में विश्व के निर्यात करनेवाले देशों में भारत का स्थान कौन-सा है ?
(A) दूसरा
(B) 5वाँ
(C) 19वाँ
(D) 29वाँ
उत्तर :
(C) 19वाँ

22. वर्ष-2014 में भारत के व्यापार का GDP में कितने प्रतिशत हिस्सा था ?
(A) 12%
(B) 13.9%
(C) 41.8%
(D) 383%
उत्तर :
(D) 383%

23. किस वर्ष तक भारत विकासशील देश बना ?
(A) 1980
(B) 2000
(C) 1951
(D) 1991
उत्तर :
(A) 1980

24. 2014-’15 में कुल आयात में खाद्य वस्तुओं का कितने प्रतिशत हिस्सा है ?
(A) 19.1%
(B) 3.9%
(C) 15.1%
(D) 4.9%
उत्तर :
(B) 3.9%

25. 2014-’15 में कुल आयात में पूँजीजन्य वस्तुओं का आयात कितने प्रतिशत है ?
(A) 19.8%
(B) 9.1%
(C) 9.8%
(D) 4.9%
उत्तर :
(C) 9.8%

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26. लेन-देन तुला के मुख्य कितने प्रकार हैं ?
(A) 4
(B) 3
(C) 1
(D) 2
उत्तर :
(D) 2

27. रुपये का अवमूल्यन अर्थात् क्या ?
(A) सरकार द्वारा $ 1 की रुपये में भुगतान सस्ता किया जाये ।
(B) बाज़ार में $ 1 के सामने अधिक रुपये भुगतान करना पड़े ऐसी बाज़ार की स्थिति ।
(C) सरकार द्वारा $ 1 की रुपये में भुगतान सस्ता किया जाये ।
(D) बाज़ार में $ 1 के सामने कम रुपये भुगतान करने पड़े ऐसी बाज़ार की स्थिति ।
उत्तर :
(B) बाज़ार में $ 1 के सामने अधिक रुपये भुगतान करना पड़े ऐसी बाज़ार की स्थिति ।

28. विश्व व्यापार को एक बनाने के लिए किसकी स्थापना की गयी है ?
(A) RBI
(B) WTO
(C) MRI
(D) IDBI
उत्तर :
(B) WTO

29. 1950 से 1973 के समय दरम्यान विश्व व्यापार की वार्षिक औसत वृद्धिदर कितनी थी ?
(A) 6.55%
(B) 3.65%
(C) 7.88%
(D) 6.89%
उत्तर :
(C) 7.88%

30. 2000-2011 के समय दरम्यान विश्व व्यापार की वार्षिक औसत वृद्धिदर कितनी थी ?
(A) 8%
(B) 7%
(C) 6%
(D) 5%
उत्तर :
(D) 5%

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए :

1. विदेश व्यापार अर्थात् क्या ?
उत्तर :
देश की सीमा के बाहर होनेवाली व्यापार प्रवृत्ति को विदेश व्यापार या अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं ।

2. विदेश व्यापार के कद से आप क्या समझते है ?
उत्तर :
विदेश व्यापार का कद अर्थात् सरल शब्दों में कहें तो आयात और निर्यात द्वारा होनेवाली भौतिक वस्तुओं का कुल मूल्य (तथा कुल जत्था) विदेश व्यापार के कद में आयात द्वारा कितना खर्च हुआ है तथा निर्यात द्वारा कितनी आय प्राप्त होती है । उसका कुल मूल्य को ही विदेश व्यापार का कद कहते हैं ।

3. विदेश व्यापार के स्वरूप का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
विदेश व्यापार का स्वरूप का अर्थ व्यापार की रचना के रूप में लेंगे । अर्थात भारत की भौतिक आयात और निर्यात की. रचना अथवा आयात और निर्यात होनेवाली वस्तुओं के प्रकार ।
विदेश व्यापार के स्वरूप में आयात होने वस्तुएँ और निर्यात होनेवाली वस्तुओं का समावेश किया जाता है ।

4. विदेश व्यापार की दिशा से आप का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
विदेश व्यापार की दिशा अर्थात् किसी देश का विश्व के विविध देशों के साथ व्यापार के लिए सम्बन्ध ।
सरल शब्दों में किन देशों के साथ व्यापार हो रहा है । वह विदेश व्यापार की दिशा कहलाती है ।

5. विनिमय दर का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
जो दर एक देश के चलन को दूसरे देश के चलन में रूपांतर (परिवर्तन) कर सकें वह दर अर्थात् विदेशी विनिमय दर । अथवा एक देश की चलन को दूसरे देश की चलन में व्यक्त होनेवाली कीमत अर्थात् विदेशी मुद्रा विनिमय दर ।

6. व्यापार अर्थात् क्या ?
उत्तर :
व्यापार अर्थात् ऐसी व्यवसायिक प्रवृत्ति कि जिसमें वस्तुओं, सेवाओं, पूँजी, टेक्नोलोजी, टेक्निकल जानकारी, बौद्धिक संपत्ति आदि का विनिमय होता है ।

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7. आंतरिक व्यापार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
देश की सीमा के अंदर होनेवाली व्यापारिक प्रवृत्ति को आंतरिक व्यापार कहते हैं ।

8. विदेश व्यापार का कद मर्यादित प्रमाण में क्यों होता है ?
उत्तर :
साधनों की गतिशीलता कम होने के कारण विदेश व्यापार का कद भी उतने प्रमाण में मर्यादित होता है ।

9. वर्तमान समय में सबसे अधिक गतिशील साधन कौन-सा है ?
उत्तर :
वर्तमान समय में सबसे अधिक गतिशील साधन नियोजन शक्ति है ।

10. विदेश व्यापार चनौती पूर्ण क्यों है ?
उत्तर :
विदेश व्यापार का स्वरूप चुनौती पूर्ण है क्योंकि विविध देशों में विविध प्रकार की जलवायु, भाषा, संस्कृति, मान्यताएँ, रूचि, आदत, पसंदगी आदि होती है । इन सभी अवरोधों को दूर करके व्यापार करना पड़ता है ।

11. गुजरात में विदेश व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रतिवर्ष किसका आयोजन किया जाता है ?
उत्तर :
गुजरात में विदेश व्यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रतिवर्ष Vibrant Gujarat Summit का आयोजन किया जाता है ।

12. W.T.O. का पूरा नाम लिखो ।
उत्तर :
W.T.O. का पूरा नाम – World Trade Organization.

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13. एग्नस मेडिसन (Agnus Maddison) नामक इतिहासकार की खोज को किस रिपोर्ट में दर्शाया गया है ?
उत्तर :
एग्नस मेडिसन (Agnus Maddison) नामक इतिहासकार की खोज को ‘वर्ल्ड ट्रेड रिपोर्ट’ (World Trade Report) 2013 में दर्शाया गया है ।

14. World Trade Report – 2013 के अनुसार विश्व व्यापार कितने गुना बढ़ा है ?
उत्तर :
World Trade Report – 2013 के अनुसार विश्व व्यापार 140 गुना बढ़ा है ।

15. अंतिम 30 वर्षों में व्यवसायिक सेवाओं के व्यापार में प्रति वर्ष औसत कितने प्रतिशत की वृद्धि हुयी है ?
उत्तर :
अंतिम 30 वर्षों में व्यवसायिक सेवाओं के व्यापार में प्रतिवर्ष औसत 7% की वृद्धि हयी है ।

16. वर्ष 2014-’15 में विश्व के कुल व्यापार में भारत के व्यापार का कितने प्रतिशत हिस्सा था ?
उत्तर :
वर्ष 2014-’15 में विश्व के कुल व्यापार में भारत के व्यापार का 2.07% हिस्सा था ।

17. विदेश व्यापार का कद कब बढ़ता है ?
उत्तर :
आयात और निर्यात का जत्था बढ़ने से जब मूल्य बढ़ता है । तब विदेश व्यापार का कद बढ़ता है ।

18. आयात और निर्यात का मूल्य किस प्रकार मापा जाता है ?
उत्तर :
आयात और निर्यात का मूल्य स्थिर भाव पर अथवा USA के $ में मापा जाता है ।

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19. स्वतंत्रता के बाद कौन मूल्य (कद) अधिक रहा है ?
उत्तर :
स्वतंत्रता के बाद आयात मूल्य (कद) अधिक रहा है ।

20. विकासलक्षी आयात किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जब कच्चा माल, निष्णातो की सलाह, मशीनरी आदि का आयात किया जाये तब उसे विकासलक्षी आयात कहते हैं ।

21. निभाव के लिए आयात में किसका समावेश होता है ?
उत्तर :
निभाव के लिए आयात में बिजली, अंतरढाँचाकीय सुविधाएँ, कौशल्य प्राप्ति आदि का समावेश होता है ।

22. 2014 में भारत के व्यापार में GDP में कितने प्रतिशत हिस्सा था ?
उत्तर :
2014 में भारत के व्यापार में GDP में 38.3 प्रतिशत हिस्सा था ।

23. 1951 में भारत देश की पहचान किस रूप में थी ?
उत्तर :
1951 में भारत देश की पहचान कम विकसित देश के रूप में पहचान थी ।

24. किस वर्ष के बाद विश्व के तीव्रता से विकासशील देशों में भारत का समावेश किया गया ?
उत्तर :
2000 बाद विश्व के तीव्रता से विकासशील देशों में भारतीय अर्थतंत्र का समावेश किया गया ।

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25. 2014-’15 में खाद्य वस्तुओं की आयात का कुल वस्तु की आयात में कितने प्रतिशत हिस्सा था ?
उत्तर :
2014-’15 में खाद्य वस्तुओं की आयात का कुल वस्तु की आयात में 3.9% हिस्सा था ।

26. नवीन वस्तुओं का आयात 2014-’15 में कितने प्रतिशत था ?
उत्तर :
नवीन वस्तुओं का आयात 2014-’15 में 46.5% हो गया ।

27. स्वतंत्रता के बाद भारत का अधिकांशत: व्यापार किस देश के साथ था ?
उत्तर :
स्वतंत्रता के बाद भारत का अधिकांशत: व्यापार इंग्लैण्ड के साथ था ।

28. भारत का किस देश के साथ मैत्री सम्बन्ध थे ?
उत्तर :
भारत का रशिया के साथ मैत्री सम्बन्ध थे ।

29. लेन-देन तुला अर्थात् क्या ?
उत्तर :
वर्ष दरम्यान देश की भौतिक (दृश्य) और अभौतिक (अदृश्य) चीजवस्तुओं के आयात-निर्यात मूल्य दर्शानेवाले हिसाबी लेखा-जोखा को लेन-देन तुला कहते हैं ।

30. लेन-देन तुला के मुख्य खाते कितने और कौन-कौन से है ?
उत्तर :
लेन-देन तुला के मुख्य खाते दो हैं :

  1. चालू खाता
  2. पूँजी खाता ।

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31. व्यापारतुला किसे कहते हैं ?
उत्तर :
व्यापारतुला अर्थात् निश्चित समयावधि (1 वर्ष) दौरान देश की दृश्य (भौतिक) वस्तुओं का आयात और निर्यात के मूल्यों के हिसाबी लेखा-जोखा को व्यापारतुला कहते हैं ।

32. व्यापारतुला में धारा कब आता है ?
उत्तर :
देश में भौतिक वस्तुओं की आयात भुगतान भौतिक वस्तुओं की निर्याती आय से अधिक हो तब व्यापारतुला में घाटा आता है ।

33. परंपरागत निर्यात किसे कहते हैं ?
उत्तर :
भारत में स्वतंत्रता संपूर्ण और पश्चात् अनेक वर्षों तक जिन निर्यातों का प्रमाण अधिक हो और देश की परम्परागत आर्थिक प्रवृत्तियों द्वारा उत्पादित हुयी वस्तुओं की निर्यातों को परंपरागत निर्यात के रूप में जानते हैं ।

34. अदृश्य आयात-निर्यात में किन-किन बातों का समावेश होता है ?
उत्तर :
अदृश्य आयात-निर्यात में भाड़ा, बैंकिंग, परिवहन, बीमा इत्यादि सेवाओं का समावेश होता है ।

35. आयात से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
आयात अर्थात् एक देश द्वारा दूसरे देश से चीजवस्तुओं और सेवाओं का क्रय करना । आयात देश की भौगोलिक सीमा से बाहर होता है । जैसे – यदि भारत फ्रांस से विमान खरीदे, तो यह भारत का आयात कहलायेगा । आयात दो प्रकार का होता है :

  1. दृश्य आयात
  2. अदृश्य आयात ।

दृश्य आयात अर्थात् देखी जा सके ऐसी भौतिक चीजवस्तुएँ । जैसे – यंत्र, कच्चा माल, लोहा, सीमेन्ट आदि ।
अदृश्य आयात में अभौतिक सेवाओं का समावेश होता है । जैसे – भाड़ा, बीमा, बैंकिंग, परिवहन इत्यादि ।

36. निर्यात से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
निर्यात अर्थात् एक देश द्वारा अपनी चीजवस्तुओं और सेवाओं का दूसरे देश का विक्रय करना । निर्यात भी देश की भौगोलिक सीमा के बाहर होता है । जैसे – भारत-ब्रिटेन या जर्मनी को चाय का बिक्री करे, तो यह भारत का निर्यात कहलायेगा ।

निर्यात भी दो प्रकार के होते है :

  1. दृश्य निर्यात
  2. अदृश्य निर्यात ।

दृश्य निर्यात में देखी जा सके ऐसी भौतिक चीजवस्तुओं का विक्रय किया जाता है । जैसे – कपड़ा, मशीनरी, चाय, कॉफी, लोहा, फौलाद आदि ।
अदृश्य निर्यात में भाड़ा बैंकिंग, परिवहन, बीमा इत्यादि का समावेश होता है ।

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37. व्यापारतुला और लेन-देन की तुला में मुख्य अन्तर क्या है ?
उत्तर :
व्यापारतुला में मात्र भौतिक वस्तुएँ जिनकी Entry कस्टम रिटर्न में होती है । उनका समावेश होता है । जबकि लेन-देन की तुला में भौतिक वस्तुओं के अतिरिक्त अभौतिक सेवाओं और पूँजी का स्थानांतरण भी होता है ।

38. मुद्रा-दर किसे कहते हैं ?
उत्तर :
दो चलनों की विनिमय दर को मुद्रा दर कहते हैं ।

39. लेन देन की तुला हमेशां कैसी होती है ?
उत्तर :
लेन-देन की तुला हमेशां संतुलित होती है ।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए :

1. व्यापारतुला का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
वर्ष के दरम्यान कोई भी देश-विदेशों के साथ लेन-देन का हिसाबी लेखा-जोखा को व्यापारतुला कहते हैं ।

संतुलित व्यापारतुला : जब भौतिक वस्तुओं का निर्यात मूल्य आयात मूल्य के बराबर हो तो उस समय व्यापारतुला संतुलित कहलायेगी ।

प्रतिकूल व्यापारतुला : यदि देश की भौतिक वस्तुओं का निर्यात मूल्य आयात मूल्य की तुलना में कम हो तो देश की व्यापारतुला प्रतिकूल कहलायेगी ।

अनुकूल व्यापारतुला : यदि देश की भौतिक वस्तुओं का निर्यात मूल्य आयात मूल्य की तुलना में अधिक हो तो व्यापारतुला देश के अनुकूल कहलायेगी ।

2. ‘आंतरराष्ट्रीय व्यापार का कद’ की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर :
किसी भी देश में किसी समय दरम्यान आयात और निर्यात होनेवाली वस्तु के कुल मूल्य तथा कुल जत्था अर्थात् व्यापार कद । प्रतिवर्ष यदि आयात के लिए होनेवाले भुगतान और निर्यात में से होनेवाली आय बढ़ती जाये, देश की राष्ट्रीय आय में व्यापार के मूल्य का प्रतिशत हिस्सा बढ़ता जाय तथा विश्व व्यापार में देश की व्यापार का हिस्सा बढ़े तो उसे देश के व्यापार का कद बढ़ा ऐसा कहेंगे ।

3. लेनदेन की तुला का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
लेनदेन तुला की परिभाषा इस प्रकार दे सकते हैं :
वर्ष दरम्यान देश की भौतिक (दृश्य) और अभौतिक (अदृश्य) वस्तुओं के आयात-निर्यात का मूल्य को दर्शानवाला हिसाबी लेखाजोखा अर्थात् लेनदेन तुला ।

इस प्रकार लेनदेन में किसी एक देश के अन्य देशों के साथ व्यापार के मूल्य का लेखा-जोखा जिसमें वस्तुओं तथा सेवाओं के व्यापार का मूल्य, साधनों की हेराफेरी का खर्च और पूँजी व्यापार के मूल्य की नोंध होती है ।

लेनदेन तुला के मुख्य दो प्रकार हैं :

  1. संतुलित व्यापारतुला
  2. असंतुलित व्यापारतुला ।

जब आय (जमा) का योग और व्यय (उधार) का योग समान हो तो उसे संतुलित लेनदेन तुला कहते हैं । असंतुलित व्यापारतुला में दोनों समान नहीं होते हैं । जब जमा पहलू का योग उधार पहलू के योग की अपेक्षा अधिक हो तो लेनदेन में लाभ हुआ है । ऐसा कहेंगे । जब उधार पहलू का योग जमा पहलू के योग से अधिक हो तो लेनदेन तुला में घाटा हुआ है ऐसा कहेंगे ।

4. आय (जमा) और व्यय (उधार) के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए :

आय (जमा) व्यय (उधार)
(1) भारत द्वारा निर्यात किया गया अनाज, कपड़ा जैसे भौतिक वस्तुओं का मूल्य । (1) भारत द्वारा आयात की गई खाद, यंत्र जैसी स्थूल वस्तुओं का मूल्य ।
(2) भारत में बैंक, विमा, जहाजरानी, बीमा कम्पनी आदि की व्यवसायिक सेवाओं का विदेशियों ने जो उपभोग किया हो, उसका मूल्य । (2) भारत में बैंक, विमा, जहाजरानी, बीमा कम्पनी आदि की सेवाओं का भारत के लोगों ने जो उपभोग किया हो उसका मूल्य ।
(3) विदेशी पर्यटकों ने भारत में आकर जो खर्च किया । (3) भारतीय पर्यटकों ने विदेशों में जाकर जो खर्च किया ।
(4) विदेशियों ने अग्रिम उधार ली गई पूँजी यदि वापस की हो, तो वह रकम । (4) भारत ने अग्रिम उधार ली गई पूँजी जो वापस की हो, तो वह रकम ।
(5) भारत द्वारा विदेशों से उधार ली गई पूँजी । (5) भारत ने विदेशों को उधार दी हो वह पूँजी ।
(6) भारत द्वारा निर्यात किए गए स्वर्ण का मूल्य । (6) भारत द्वारा विदेशों से आयात किए गए स्वर्ण का मूल्य ।
(7) भारत द्वारा विदेशों में किए गए पूँजीनिर्वेश की व्याज प्राप्ति । (7) विदेशियों द्वारा भारत में किए गए पूँजीनिवेश के व्याज का भुगतान ।
(8) भारत को विदेशों से प्राप्त दान तथा भेट । (8) भारत द्वारा विदेशों को दिए गए दान तथा भेंट ।

5. व्यापारतुला और लेनदेन की तुला के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए ।

व्यापारतुला लेन-देन की तुला
(1) व्यापारतुला में मात्र दृश्य आयात और द्रश्य निर्यात को ही दर्शाया जाता है । (1) लेन-देन की तुला में दृश्य वस्तुओं के साथ-साथ अदृश्य वस्तुओं के आयात-निर्यात और पूँजी के लेन-देन का भी समावेश होता है ।
(2) व्यापारतुला में लेन-देन की तुला में सम्मलित सभी बातों का समावेश नहीं होता है । (2) लेन-देन की तुला में व्यापारतुला का समावेश हो जाता है, व्यापारतुला लेन-देन की तुला का एक हिस्सा (भाग) है ।
(3) व्यापारतुला से किसी भी देश के विदेश व्यापार की परिस्थिति की सम्पूर्ण जानकारी नहीं प्राप्त होती । (3) लेन-देन की तुला पर से देश के विदेश व्यापार की स्थिति का सही चित्र प्रकट हो सकता है ।
(4) व्यापारतुला में कोई अतिरिक्त खाता नहीं होता क्योंकि इसमें केवल दृश्य वस्तुओं के आयात-निर्यात का समावेश होता है । (4) लेन-देन की तुला में चालू खाता और पूँजी खाता होता है । क्योंकि लेन-देन की तुला देश की पूँजी और सम्पत्ति का तलपट नहीं है । यह देश का अन्य देशों के साथ सभी आर्थिक व्यवहारों का लेखा-जोखा होता है ।
(5) व्यापारतुला में कुल आय और कुल खर्च के बीच का अन्तर वास्तव में दर्शाया जाता है । (5) लेन-देन की तुला को हमेशां संतुलित रखने का प्रयास किया जाता है ।

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6. लेन-देन की तुला हमेशां संतुलित रहती है ।
उत्तर :
हिसाब की दृष्टि से लेन-देन की तुला हमेशां संतुलित रहती है । उसकी आय और खर्च को हमेशां बराबर रखने का प्रयास किया जाता है । लेन-देन की तुला में यदि चालू खाते में घाटा हो तो पूँजी खाते द्वारा या अन्य आर्थिक व्यवहारों द्वारा घाटा पूरा किया जाता है । लेन-देन के तीनों खातों – (1) चालू खाता (2) पूँजी खाता (3) आर्थिक (अदृश्य सेवाओं) का खाता में . एक साथ गणना करने पर आय का पहलू और खर्च के पहलू को सन्तुलित रखने का प्रयास किया जाता है ।

7. व्यापारतुला देश की आर्थिक परिस्थिति का सम्पूर्ण चित्र स्पष्ट नहीं करती ।
उत्तर :
व्यापारतुला में मात्र दृश्य (भौतिक) वस्तुओं के आयात-निर्यात का ही समावेश होता है । इसलिए देश के आर्थिक परिस्थिति का सम्पूर्ण स्पष्ट चित्र नहीं आ पाता । व्यापारतुला अनुकूल हो या प्रतिकूल या फिर सन्तुलित हो उसमें अदृश्य सेवाओं की गणना न होने से उस देश की आर्थिक स्थिति का ख्याल नहीं आता, क्योंकि व्यापारतुला का ख्याल संकुचित होता है ।

8. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा देश को अच्छी और सस्ती वस्तुएँ मिल सकती है ।
उत्तर :
संसार के विभिन्न देशों की भौगोलिक परिस्थिति भिन्न-भिन्न होने के कारण वस्तुओं के उत्पादन में विविधता होती है । इसके अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट योग्यता धारण करनेवाले विशेषज्ञ और श्रमिक विविध देशों में निवास करते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा ऐसी विशिष्ट योग्यता का लाभ अन्य देशों को भी मिलता है । विदेशी व्यापार में स्पर्धा के कारण वस्तुओं की कीमतें कम होती हैं, इसलिए विभिन्न देशों को सही कीमत पर अच्छी वस्तुएँ प्राप्त होती है ।

9. भारत की व्यापारतुला में घाटा निरन्तर बढ़ता जा रहा है ।
उत्तर :
आज़ादी के बाद त्वरित औद्योगिकरण के लिए आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति बड़े पैमाने पर करना पड़ता है । इसके अतिरिक्त रुपये के अवमूल्यन के कारण आयात मँहगा हो जाता है । जिससे आयात के भुगतान का भार बढ़ता है । पेट्रोलियम उत्पादन का निर्यात करनेवाले देशों के संगठन (OPEC) ने खनिज तेलों की कीमतों में वृद्धि की है, जिससे खनिज तेल का आयात मूल्य . बढ़ा है । आयातों की तुलना में निर्यातों में कम वृद्धि हो पायी है, जिससे निर्यात द्वारा प्राप्त आय कम और आयात के लिए किया गया भुगतान अधिक होता है । पिछले तीन दशकों के दौरान भारत के ऊपर विदेशी ऋण का बोझ बढ़ा है । जिसके कारण भारत की व्यापारतुला में घाटा निरन्तर बढ़ता जा रहा है ।

10. भारत में निर्यात बढ़ाना मुश्किल हो गया है ।
उत्तर :
भारत में मुद्रास्फीति और भाववृद्धि जैसे तत्त्व अस्तित्व में होने से निर्यात संवर्धन एक जटिल समस्या बन गयी है । भारत में मुद्रास्फीति के कारण भारत के साथ अन्य देशों के व्यापार में भारत में चीजवस्तुओं के भाव बहुत तेजी से बढ़े है । जिससे यहाँ की वस्तुएँ अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में मँहगी होती है । दूसरी तरफ निर्यातकर्ता को आंतरिक बाज़ार में ही अपनी वस्तुओं की अच्छी कीमतें मिल जाने से उनके अंदर निर्यात करने का उत्साह कम हो जाता है । इस कारण निर्यात बढ़ाना मुश्किल बन गया है ।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर लिखिए :

1. विदेश व्यापार की प्रवर्तमान स्थिति दर्शाइए ।
उत्तर :
देश की सीमा के बाहर से होनेवाले व्यापार को विदेश व्यापार के नाम से जानते हैं ।
स्वतंत्रता से पूर्व भारत का विदेश व्यापार इंग्लैण्ड के साथ पूर्वीय देशों के साथ व्यापार होता था । स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में आयोजन के दरम्यान विदेश व्यापार में ध्यान दिया गया । परिणाम स्वरूप भारत में विदेश व्यापार में वृद्धि हुयी है । भारत में विदेश व्यापार को जानने के लिए एग्नस मेडिसन नाम के इतिहासकार की खोज दर्शानेवाले ‘वर्ल्ड ट्रेड रिपोर्ट’ (World Trade
Report) 2013 के सन्दर्भ में चर्चा करेंगे :

  1. 1800वीं सदी के मध्यकाल से विश्व की जनसंख्या 6 गुना बढ़ा है ।
  2. इसी समय विश्व का उत्पादन 60 गुना बढ़ा है । जबकि विश्व व्यापार में 140 गुना बढ़ा है ।
  3. वर्ल्ड ट्रेड रिपोर्ट – 2013 के अनुसार विश्व में वाहनव्यवहार और संदेशाव्यवहार के खर्च में उल्लेखनीय कमी आयी है जिससे व्यापार को गति मिली है । इसके उपरांत प्रदेशों के बीच राजनैतिक सम्बन्धों का विकास होने से व्यापार में वृद्धि हुयी है ।
  4. अंतिम 30 वर्षों में व्यवसायिक सेवाओं के व्यापार में हर वर्ष औसत 7 प्रतिशत की वृद्धि हुयी है ।
  5. 1980 से 2011 के बीच विकासशील देशों के निर्यात में योगदान उप प्रतिशत से बढ़कर 47% और आयात में उनका योगदान 29 प्रतिशत से बढ़कर 42% हो गया है ।
  6. एशिया के देश वर्तमान में विश्व व्यापार में उल्लेखनीय योगदान दे रहे है ।
  7. अंतिम कुछ दशकों के दरम्यान विश्व उत्पादन भी वृद्धिदर की अपेक्षा विश्व व्यापार की वृद्धिदर दुगने प्रमाण में वृद्धि हुयी है। जो विश्व विक्रय व्यवस्था का विकास हुआ है ।

विविध समय दरम्यान विश्व व्यापार की वार्षिक वृद्धिदर

समयांतराल व्यापार की वृद्धिदर
1950-1973 7.88%
1973-1985 3.65%
1985-1996 6.55%
1996-2000 6.89%
2000-2011 5.00%
2015-2016 2.8%

इस प्रकार उपर की सारणी में विश्व व्यापार की वृद्धिदर को देख सकते हैं ।

2. रुपये का बाज़ारमूल्य घटना, अवमूल्यन होना, रुपये का बाज़ारमूल्य बढ़ना और अधिक मूल्य होना – इन चारों के बीच अंतर उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :
रुपये का बाज़ार मूल्य : जब भारत देश के लिए रुपये की दर अर्थात् विदेशी चलन की इकाई अपने देश के चलन में व्यक्त होती हो तो उस कीमत अर्थात् कि विदेशी चलन की एक इकाई खरीदने के लिए अपने देश की चलन जितनी इकाई चुकानी पडे वह कीमत ।

जैसे : US $ = रु. 60 का विनिमय दर का अर्थ ऐसा हो कि US $ 1 खरीदने के लिए भारतीय नागरिक को रु. 60 चुकाने पड़ते है ।
रुपये का बाज़ार मूल्य घटना : जब भारत के लिए विनिमय दर अधिक हो तब भारत का चलन का अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में मूल्य घटा है । कारण कि विदेशी चलन की एक इकाई खरीदने के लिए अधिक रूपया देना पड़ेगा । अर्थात् कि विदेशी चलन की कीमत महँगी यी और भारत के रु. का मूल्य कम हुआ (घटा) ।
पहले US $1 = रु. 60
दर अधिक होने से US $1 = रु. 65

रुपये का अवमूल्यन होना : रुपये की कीमत जब कम होती है जब अत्यधिक कम हो जाती है । तब देश की सरकार विदेश व्यापार को स्थिर करने के लिए रुपये का अवमूल्यन करती है । अर्थात् गिरते रुपये की दर सरकार पुनः निर्धारित करती है ।

रुपये मूल्य बढ़ना और अधिकमूल्य होना : जब भारत के लिए विदेशी विनिमय दर नीची हो तब रु. का मूल्य बढ़ता है । अर्थात् विदेशी चलन की एक इकाई खरीदने के लिए कम रुपये चुकाने पडेंगे अर्थात् कि विदेशी चलन की कीमत कम हुयी और भारत के रुपये का मूल्य अधिक हुआ ।
पहले US $1 = रु. 65
दर कम होने से US $1 = रु. 60

3. विनिमय दर पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
जब भारतीय नागरिक विदेश घूमने जाते है तब वे भारतीय चलन रु. में वहाँ खरीदी नहीं कर सकते हैं । उन्हें रु. को सम्बन्धित देश के चलन में परिवर्तन करना पड़ता है । उसी प्रकार भारत में कोई आयातकार विदेशी वस्तु की आयात करे तब उसे भुगतान उस देश के चलन या अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत चलन में करना पड़ता है । यह उदाहरण भारत के विदेशी विनिमय दर के लिए माँग को दर्शाता है । उसी प्रकार विदेशी भारत के रु. की माँग कर सकते हैं ।

ऐसे प्रवासियों या व्यापारियों बैंकों के पास से अथवा चलन के कानून मान्य व्यापारियों के पास जाकर अपने देश की चलन को अन्य चलन में रूपांतरण या परिवर्तित करवाते हैं ।

इस प्रकार का रूपांतरण या परिवर्तन किसी निश्चित दर पर होता है । इस दर को विदेशी विनिमय दर कहते हैं । विदेशी विनिमय दर की परिभाषा देख लें – ‘जिस दर पर एक देश की चलन को दूसरे देश की चलन में परिवर्तित कर सके उस दर को विदेशी विनिमय दर कहते हैं ।’
‘एक देश की चलन दूसरे देश की चलन में व्यक्त होनेवाली कीमत अर्थात् विदेशी विनिमय दर ।’

4. विदेशी व्यापार के कारणों को संक्षिप्त में समझाइए ।
उत्तर :
विदेश व्यापार के निम्नलिखित कारण हैं :
(1) देशों में उपलब्ध उत्पादन के साधनों में अंतर : अलग-अलग देशों में उत्पादन के साधनों की भिन्नता होती है । सभी प्रकार के संशोधन भी प्रत्येक देश के पास नहीं होते है । इसलिए दुनिया के देशों के संसाधनों और साधनों का लाभ लेने के लिए विदेश व्यापार की आवश्यकता होती है ।

(2) उत्पादन खर्च : साधनों और संसाधनों की उपलब्धि अलग-अलग होने के कारण वस्तु और सेवा का उत्पादन खर्च भी अलगअलग होता है । कुछ साधनों की कमी और अधिक कीमत के कारण कुछ वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन खर्च अधिक होता है । जब घरेलू खर्च अधिक हो तब ऐसी वस्तुएँ आयात करना सरल और सस्ती बनती है ।

(3) टेक्नोलोजिकल प्रगति : प्रत्येक देश में समान रूप से टेक्नोलोजिकल प्रगति नहीं होती है । कुछ देश कुछ विशेष प्रकार की टेक्नोलोजी में सिद्ध होते हैं । तो कुछ देश दूसरे प्रकार की टेक्नोलोजी में कुशल होते हैं । इसलिए प्रत्येक देश की वस्तु के उत्पादन में एक स्थान कार्यक्षम नहीं होते है । इस कारण से भी देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार होता है ।

(4) श्रमविभाजन और विशिष्टीकरण : प्रत्येक देश में श्रम की उत्पादकता और कौशल्य भिन्न होती है । फिर नियोजन शक्ति की कार्यक्षमता भी अलग होती है । इसलिए देशों के बीच श्रमविभाजन और विशिष्टीकरण देखने को मिलता है । इसी श्रमविभाजन और विशिष्टीकरण का लाभ लेने के लिए भी विदेश व्यापार अस्तित्व में आया है ।

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5. लेनदेन की तुला के चालू खाता और पूंजी खाता के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए ।
अथवा
आंतरिक और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक दीजिए :

1. भारत के विदेश व्यापार के स्वरूप में हुये परिवर्तनों को विस्तारपूर्वक समझाइए ।
उत्तर :
‘विदेश व्यापार का स्वरूप अर्थात् व्यापार-प्रवृत्ति की ऐसी विशिष्ट बातें और पहलू जो उन्हें अन्य प्रवृत्तियों से अलग करे और उन्हें अलग पहचान दे ।’

विदेश व्यापार का स्वरूप, उसे असर करनेवाली परिस्थितियाँ, उससे सम्बन्धित नीतियाँ और कानून के आधार पर निश्चित होती हैं । विदेश व्यापार के स्वरूप को निम्नलिखित तत्त्व प्रभावित करते हैं :

(1) विदेश व्यापार में साधनों की भौगोलिक या व्यावसायिक गतिशीलता कम होती है :
विदेश व्यापार में राजनैतिक और सामाजिक कारणों से श्रम कम गतिशील होती है । कुछ पूँजी स्थायी और स्थिर होने से कम गतिशील होती है । कुछ पूँजी की गतिशीलता पर कानूनी प्रतिबंद होते है । नियोजक भी श्रम की तरह कम गतिशील होते हैं । परंतु नियोजनशक्ति सबसे अधिक गतिशील होती है । जमीन की भौगोलिक गतिशीलता शून्य होती है । गतिशीलता कम होने से विदेश व्यापार का कद भी मर्यादित होता है ।

(2) विविधता रखनेवाली वस्तुओं का व्यापार : विदेश व्यापार में अनेक प्रकार की विविधतावाली वस्तुएँ और सेवाएँ होती है । इसलिए जीवनस्तर में विविधता रखनेवाले लोगों की विविध प्रकार की मांग को संतुष्ट कर सकते हैं ।

(3) चुनौती स्वरूप : विदेश व्यापार में विविध देशों की विविध प्रकार की जलवायु, भाषा, संस्कृति, रिवाज, रुचि, आदत, पसंदगी होती है । यह सभी विदेश व्यापार में अवरोधक होती हैं । इसलिए विदेश व्यापार का स्वरूप अधिक चुनौतीपूर्ण है ।

(4) राजनैतिक प्रयत्न : विदेश व्यापार की स्थापना में व्यापारियों के साथ-साथ सरकार के राजनैतिक प्रयत्न भी जरूरी हैं । तथा साथ-साथ व्यापार मेला, अनौपचारिक मीटिंग आदि भी जरूरी है । गुजरात सरकार को Vibrant Gujarat Summit इसका उदाहरण है।

(5) विविध चलनों का भाव और उनके मूल्य की अटकतें : विदेश व्यापार में सर्वस्वीकृत मान्य चलन में भुगतान करना पड़ता है । इसलिए व्यापार करनेवाले देशों को अपने देश के चलन को अन्तर्राष्ट्रीय चलन में रूपांतर करना पड़ता है । इसलिए विदेशी मुद्रा की विनिमय दर की जानकारी होनी चाहिए । यदि अधिक कीमत में विदेशी मुद्रा खरीदी जाये तो नुकसान होने की संभावना होती है।

(6) विविध राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का संयुक्त प्रयास : विदेश व्यापार को विकसित करने के लिए अनेक देशों की सरकारें तथा विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी संस्थाओं के साथ प्रयत्न करना पड़ता है । व्यापार का कद बढ़ाने के लिए प्रत्येक देश को दृढ निश्चय से आगे बढ़ना चाहिए ।

(7) राजनैतिक और सामाजिक विचारधाराओं की असर : विदेश व्यापार का कद और दिशा पर राजनैतिक और सामाजिक बातें भी प्रभावित करती है । जैसे : विश्व युद्ध जैसी घटनाएँ के बाद अनेक देशों के बीच व्यापारिक सम्बन्ध बिगड़ते हैं, तो कभी विश्व के नेता एक साथ मिलकर व्यापार बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं । जिससे देशों का ध्यान युद्ध से हटकर व्यापार की ओर मुड़ें ।

फिर भी किसी देश का व्यापार अपने विचार, सामाजिक ढाँचा, इतिहास तथा अन्य देशों साथ सम्बन्ध पर आधारित होता है ।

(8) अत्यंत बड़े पैमाने का व्यापार : विदेश व्यापार में अनेक देश, असंख्य वस्तुएँ, अनेक कानून, अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ आदि जुड़ी होती है । इसलिए विदेश व्यापार का कद और स्वरूप विशाल होता है ।

(9) अधिक प्रमाण में टेक्स और लाइसन्स : अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार करने के लिए प्रत्येक देश को अपने देश और दूसरे देश की अनेक जांचो और अनुभूतियों से पार करना पड़ता है । जिसमें व्यापारजन्य वस्तु और सेवाओं की अनुमति और जाँच, गुणवत्ता सर्टीफिकेट, ट्रान्सपोर्ट व्यवस्था, वस्तु मापदण्ड आदि का समावेश किया जाता है । सम्बन्धित देश के सम्बन्ध में इन सबका ध्यान रखना पड़ता है ।

(10) स्पर्धा और जोनम अधिक : कोई एक वस्तु या सेवा अनेक देश उत्पन्न करके विश्व बाज़ार में विक्रय करने के प्रयास करते हैं । इसलिए विक्रेताओं के बीच स्पर्धा का प्रमाण अधिक होता है । फिर किसी वस्तु या सेवा मांग भी अनेक देशों के ग्राहक करते हैं । इसलिए ग्राहकों के बीच स्पर्धा होती है ।
विश्व व्यापार में वस्तु की माँग और बाज़ार खड़ा करने में अनेक खतरे होते हैं ।

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2. आंतरिक व्यापार और विदेश व्यापार के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
विदेश व्यापार का स्वरूप और चुनौतियाँ आंतरिक व्यापार से अलग होती है, उनमें अंतर होता है । इसलिए दोनों के बीच अंतर जानना जरुरी है । जिसे हम नीचे के मुद्दों से समझेंगे :

  • परिभाषा (अर्थ) : देश की सीमा के अंदर होनेवाले व्यापार को आंतरिक (राष्ट्रीय) व्यापार कहते हैं ।
    विविध देशों (सीमा के बाहर) के बीच होनेवाले व्यापार को विदेश व्यापार कहते हैं ।
  • कद के आधार पर अंतर : विदेश व्यापार में अनेक देशों, वस्तुओं और सेवाओं, कानूनों, पद्धतियाँ आदि अलग होने से विदेश व्यापार का कद आंतरिक व्यापार की अपेक्षा अनेक गुना बड़ा होता है ।
  • विविध चलन एवं भुगतान की पद्धतियाँ : आंतरिक व्यापार में भुगतान अपने देश के चलन में ही होता है अर्थात् एक ही चलन होता है । विदेश व्यापार में अपने देश का चलन एक सर्वस्वीकृत अन्तर्राष्ट्रीय चलन में रूपांतर करना पड़ता है । तथा प्रत्येक देश की विनिमय दर भिन्न-भिन्न होती है ।
  • भाषा, संस्कृति और समाज से सम्बन्धित अंतर : आंतरिक व्यापार में विनिमय एक समान भाषा, संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था होती है । परंतु विदेश व्यापार में प्रत्येक देश की भाषा, संस्कृति, समाज आदि अलग-अलग होती है । इसलिए विदेश व्यापार में इस बात का ध्यान रखना पड़ता है ।
  • वाहनव्यवहार का खर्च : विदेश व्यापार में आंतरिक व्यापार की तुलना में खर्च अधिक होता है । इसके उपरांत प्रत्येक देश की सीमा पर अनेक टेक्स भरने पड़ते है । इसलिए विदेश व्यापार में खर्च अधिक होता है ।
  • स्पर्धा का प्रमाण : आंतरिक व्यापार में किसी वस्तु के अनेक उत्पादक हो तो भी उत्पादन के साधनों, टेक्नोलोजी आदि में समानता होने के कारण स्पर्धा कम होती है । विदेश व्यापार में प्रत्येक उत्पादक वर्गीकरण और विभिन्नता के आधार पर स्पर्धा करते हैं । इससे अधिक स्पर्धा होती है ।
  • ग्राहक को संतोष : एक ही देश में समाज, शिक्षा, सचेतता, जानकारी, पसंदगी, मूल्य, सत्शीलता मापदण्ड समान होने से विक्रेता ग्राहक के संतोष (संतुष्टि) का अनुमान सरल मिलता है । और उत्पादन, विक्रय तथा विज्ञापन करते है ।
    विदेश व्यापार में इन बातों में विभिन्नता होती है । इसलिए ग्राहक को संतोष देना कठिन होता है ।

5. लेनदेन तुला का अर्थ देकर उसके प्रकार, खाते और लेनदेन तुला को असर करनेवाले परिबलों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
लेनदेन तुला अर्थात् कोई एक देश अन्य देशों के साथ के व्यापार के मूल्य का लेखा-जोखा जिसमें वस्तुओं तथा सेवाओं के व्यापार का मूल्य, साधनों के हेरफेर का खर्च और पूँजी व्यापार के मूल्य की नोंध होती है ।

परिभाषा : ‘एक वर्ष के दरम्यान भौतिक (दृश्य) और अभौतिक (अदृश्य) चीजवस्तुओं के आयात-निर्यात के मूल्य दर्शानेवाला हिसाबी लेखा-जोखा अर्थात् लेनदेन तुला ।’

लेन-देन में दो पहलू अर्थात् कि जमा (आय) पहलू और व्यय (उधार) पहलू । विदेशों के पास से देश को होनेवाली सभी प्रकार की आय जमा पहलू में लिखी जाती है । और विदेशो को होनेवाले सभी भुगतानों को उधार (व्यय) पहलू में लिखा जाता है ।

* लेनदेन तुला के प्रकार : लेनदेन तुला के मुख्य दो प्रकार हैं :
(1) संतुलित लेनदेन तुला
(2) असंतुलित लेनदेन तुला

(1) संतुलित लेनदेन तुला : संतुलित लेनदेन तुला में जमा (आय) और उधार (व्यय) दोनों का योग समान होता है ।

(2) असंतुलित लेनदेन तुला :

  • लाभ की लेनदेन तुला : जमा (आय) का पहलू का योग उधार (व्यय) के पहलू से अधिक हो तो लेनदेन तुला लाभवाली कही जाती है ।
  • घाटे की लेनदेन तुला : जब उधार (व्यय) के पहलू का योग जमा (आय) के पहलू के योग से अधिक हो तो लेनदेन तुला घाटे की कही जाती है ।

* लेनदेन तुला के खाते : लेनदेन तुला में दो खाते होते हैं :
(1) चालू खाता
(2) पूँजी खाता

(1) चालू खाता : इस खाते में निम्नलिखित आय और व्यय की नोंध होती है ।

  • भौतिक वस्तुओं का व्यापार मूल्य : भौतिक वस्तुओं की निर्यात आय जमा पहलू और भौतिक वस्तुओं की आयात के पीछे किया हुआ खर्च उधार पहलू में लिखा जाता है ।
    इस विभाग के लेखा-जोखा का व्यापारतुला कहते हैं ।
  • अभौतिक वस्तुएँ या सेवाओं की निर्यात या आयात से होनेवाली आवक-जावक की नोंध भी चालू खाते में होती है ।
    (i) और (ii) के संयुक्त योग को चालू खाते की तुला कहते हैं ।

(2) पूँजी खाता : इस खाते में एक देश के अन्य देशों के साथ पूँजी व्यवहार के मूल्य की नोंध होती है जैसेकि बॉन्ड, शेयर, सोना, पूँजी प्रकार के ऋण आदि तथा स्थायी पूँजी निवेश ।
* चालू खाते और पूँजी खाते के योग को लेन-देन तुला कहते हैं । लेनदेन तुला को असर करनेवाले परिबल : लेनदेन तुला को असर करनेवाले परिबल अर्थात् कि देश में आयात, निर्यात, पूँजी परिवर्तन, साधनों की हेराफेरी, पूँजी निवेश, ऋण आदि को प्रभावित करनेवाले परिबल । इन परिबलों के कारण लेनदेन तुला में लाभ या घाटा हो सकता है ।
यह परिबल मुख्य रूप से देश के आर्थिक विकास के स्तर पर आधारित होते हैं । ऐसे परिबल निम्नानुसार हैं :

  1. विदेशी मुद्रा की विनिमय दर
  2. व्यापार होनेवाली वस्तुएँ और सेवाएँ अपने देश तथा दूसरे देशों में कीमत
  3. व्यापार होनेवाली वस्तुओं की विविधता और गुणवत्ता
  4. अनिवार्य आयाते
  5. देश के आर्थिक विकास का स्तर
  6. व्यापार पर राजनैतिक और कानूनी अंकुश
  7. व्यापार को उधार देनेवाली सुविधाएँ जैसेकि वाहनव्यवहार, संदेशाव्यवहार, अन्य आंतर ढाँचाकीय सुविधाएँ आदि ।

6. नीचे विश्व विविध देशों की भारत की वस्तु आयातों को वर्ष 2014-’15 के अनुसार प्रतिशत में दर्शाया गया है । इस पर से वृत्तांश आकृति बनाकर विश्लेषण कीजिए ।

देश भारत की आयात में प्रतिशत हिस्सा गणना
ऐशिया 59 ऐशिया : 59 × 3.6 = 212.4°
यूरोप 16 यूरोप : 16 × 3.6 = 57.6°
अफ्रीका 08 अफ्रीका : 8 × 36 = 28.8°
लेटिन अमेरिका 07 लेटिन अमेरिका : 7 × 3.6 = 25.2°
नोर्थ अमेरिका 06 नोर्थ अमेरिका : 6 × 3.6 = 21.6°
CIS और प्रदेश : CIS और बाल्टिक
बाल्टिक प्रदेश 02 प्रदेश : 2 × 3.6 = 7.2°
अन्य 02 अन्य : 2 × 3.6 = 7.2° 100
कुल 100

उत्तर :
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विश्लेषण :

  1. तुलनात्मक अध्ययन के लिए वृत्तांश आकृति अधिक अनुकूल है ।
  2. एशिया के देशों में से भारत में 59% वस्तुएँ आयात की जाती है ।
  3. यूरोप के देशों से 16% और अफ्रीका के देशो से 8% वस्तुओं का भारत आयात करता है ।
  4. लेटिन अमेरिका से 7% और नोर्थ अमेरिका से वस्तुओं का आयात 6% होता है ।
  5. CIS और बाल्टिक प्रदेशों से 2% वस्तुओं का आयात होता है ।
  6. अन्य देशों से मात्र 2% वस्तुओं का आयात किया जाता है ।
  7. उपर्युक्त विश्लेषण पर से ऐसा कह सकते हैं कि सबसे अधिक आयात ऐशिया के देशों से ही होता है ।
  8. सबसे कम आयात CIS और बाल्टिक देशों से आयात होता है ।

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7. नीचे विविध देशों की भारत की वस्तु-निर्यात में प्रतिशत में हिस्सा दिया गया है । इस पर से वृत्तांश आकृति बनाकर विश्लेषण कीजिए :

देश भारत की निर्यात में हिस्सा % में गणना
ऐशिया 50 एशिया : 50 × 3.6 = 180°.0
यूरोप 18 यूरोप : 18 × 3.6 = 64.8°
नोर्थ अमेरिका 14 नोर्थ अमेरिका : 14 × 3.6 = 50.4°
अफ्रीका 11 अफ्रीका : 11 × 3.6 = 39.6
लेटिन अमेरिका 05 लेटिन अमेरिका : 5 × 3.6 = 18.0
CIS और बाल्टिक प्रदेश 01 CIS और बाल्टिक के प्रदेश : 1 × 3.6 = 3.6° ।
अन्य 01 अन्य : 1 × 3.6 = 3.6°
कुल 100

उत्तर :
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विश्लेषण :

  1. तुलनात्मक अध्ययन के लिए वृत्तांश आकृति का अधिक उपयोग किया है ।
  2. एशिया के देशों में भारत में से 50% वस्तुओं का निर्यात होता है ।
  3. यूरोप में 18% और नोर्थ अमेरिका के देशों में 14% वस्तुओं का निर्यात होता है ।
  4. अफ्रीका के देशों में 11% और लेटिन अमेरिका के देशों में 5% वस्तुओं का निर्यात किया जाता है ।
  5. CIS और बाल्टिक प्रदेशों में भारत में से मात्र 1% वस्तुओं का निर्यात किया जाता है ।
  6. अन्य देशों में मात्र 1% वस्तुओं का निर्यात किया जाता है ।

8. भारत के विदेश व्यापार के कद में हुये परिवर्तनों को विस्तारपूर्वक समझाइए ।
उत्तर :
विदेश व्यापार का कद अर्थात् सरल शब्दों में कहें तो आयात और निर्यात होनेवाली भौतिक वस्तुओं का कुल मूल्य अथवा कुल जत्था ।

प्रतिवर्ष यदि आयात के लिए भुगतान और निर्यात में से होनेवाली आय बढ़ती जाये, देश की राष्ट्रीय आय में व्यापार के मूल्य का प्रतिशत हिस्सा बढ़ता जाये तथा विश्व व्यापार में देश के व्यापार का हिस्सा बढे तो वह देश के व्यापार का कद बढ़ा है। ऐसा कहेंगे ।

भारत के विदेश व्यापार के कद में हये परिवर्तनों को नीचे की तालिका में देखें :

1991 के बाद भारत के विदेश व्यापार का कद (मि. US $ में)

1991-’92 1998-’99 2014-’15
वस्तुओं की निर्यात 17.9 33.2 310.5
वस्तुओं की आयात 19.4 42.4 448.0
व्यापारतुला -1.5 -9.2 -187.5
  1. उपर की तालिका में स्वतंत्रता के आरम्भ के वर्षों में आर्थिक विकास की दर नीची होने से आयात का कद खूब अधिक है ।
  2. निर्यात करने की क्षमता नीची होने से निर्यात भी कम है ।
  3. 1980 के बाद भारत का विकास होने पर बड़े उद्योगों के टिकाने के लिए टेक्नोलोजिकल वस्तुओं के आयात में वृद्धि हुयी । जिससे उद्योगों के विकास के लिए आयात बढ़ा ।
  4. उद्योगों के विकास और विस्तार से लोगों की आय में वृद्धि हुयी जिससे देश में औद्योगिक वस्तुओं की माँग में वृद्धि हुयी । परिणाम स्वरुप निर्यात के लिए उत्पादन कम होने से निर्यात में कमी आयी ।
  5. 1991 के बाद निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुयी । वैश्विक स्पर्धा में टिके रहने के लिए टेक्नोलोजी, पेट्रोल आदि की आयात अधिक रही परंतु निर्यात के प्रमाण में वृद्धि हुयी ।

9. भारत की GDP (कुल सकल घरेलू उत्पादन) में व्यापार का हिस्सा % में दर्शाया गया है । इस पर से सामायिक श्रेणी बनाकर विश्लेषण कीजिए ।

भारत की GDP में (कुल सकल घरेलू उत्पादन) में व्यापार का हिस्सा

वर्ष भारत के व्यापार का GDP में प्रतिशत हिस्सा
1981 (व्यापार की USA $ में मापन के आधार पर)
1991 12
2001 13.9
2011 19
2014 41.8

उत्तर :
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विश्लेषण :

  1. एक ही प्रकार की जानकारी के लिए सामयिक या स्तंभाकृति का उपयोग करते हैं ।
  2. 1981 में भारत की राष्ट्रीय उत्पादन (GDP) में व्यापार हिस्सा मात्र 12% है ।
  3. 1991 में व्यापार हिस्सा बढ़कर 13.9% हुआ जो धीमी दर थी ।
  4. 1991 से 2001 में व्यापार का सकल घरेलू उत्पादन में हिस्सा बढ़कर 19% हो गया ।
  5. 2011 में व्यापार का राष्ट्रीय आय में हिस्सा 41.8% है ।
  6. 2014 में व्यापार का प्रमाण 38.3% है । अर्थात मामूली सी कमी आयी है ।
  7. उपर्युक्त विश्लेषण पर से ऐसा कह सकते हैं कि भारत की GDP में व्यापार हिस्सा बढ़ा है । कुछ अपवादों को छोड़कर ।

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10. भारत के विदेश व्यापार की दिशा में आये हुए परिवर्तनों की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
विदेश व्यापार की दिशा अर्थात् किसी भी देश का विश्व के विविध प्रदेशों (देशों) के साथ व्यापार के लिए सम्बन्ध ।
अलग-अलग दिशा के प्रदेशों के साथ व्यापार करने के लिए किसी भी देश के पास निम्नलिखित बातें होनी चाहिए :

  1. विविध प्रकार का उत्पादन करने की शक्ति होनी चाहिए ।
  2. अनेक देशों के साथ अच्छे राजनैतिक सम्बन्ध होने चाहिए ।
  3. अनेक प्रकार के राजनैतिक प्रयत्न करने की तैयारी होनी चाहिए ।
  4. विक्रय-व्यवस्था और व्यापार-व्यवस्थापन के लिए कौशल्य तथा टेक्नोलोजी होनी चाहिए ।
  5. अधिक प्रमाण में निर्यातजन्य उत्पादन होना चाहिए ।

भारत के विदेश व्यापार की दिशा :

  1. स्वतंत्रता के बाद भारत का अधिकतर व्यापार इंग्लैण्ड के साथ होता था क्योंकि इंग्लैण्ड के साथ स्वतंत्रता पूर्व से व्यापार स्थापित था ।
  2. 1960-’61 में भारत की कुल आयात में इंग्लैण्ड का हिस्सा 19% था जो 2007 में घटकर 2% से भी कम रह गया ।
  3. स्वतंत्रता के बाद भारत में अमेरिका से आयात बढ़ा था । 1960-’61 में वस्तुओं और सेवाओं का कुल आयात USA से 29% था जो 2007 के बाद घटकर 8% से भी कम रह गया है ।
  4. देश में औद्योगिकीकरण और विकास होने से खनिज तेल की आयात बढ़ी । इसलिए OPEC से आयात का प्रमाण बढ़ा है ।
  5. रशिया के साथ मैत्रिक सम्बन्ध होने आयात का प्रमाण अधिक था परंतु 1980 के बाद रशिया में कटोकटी होने से घटा ।
  6. परम्परागत हिस्सेदार देशों से व्यापार घटा परंतु विकासशील देश के साथ व्यापार बढ़ा है ।
  7. 1960-’61 में एशिया, मध्य एशिया और अफ्रीका के विकासशील देशो से कुल आयात 11.8 प्रतिशत थी जो 2007-’08 में 32%
    जितनी हो गयी । तथा 2014-’15 में 59% हो गयी है ।
  8. 1960-’61 में इंग्लैण्ड में भारत मेंम 26.8% वस्तुएँ निर्यात होती थी जो घटकर 2007- ’08 में 4% रह गयी है ।
  9. 1960-’61 में अमेरिका में 16% निर्यात होता था जो घटकर 2007-’08 में 12.7% रह गया ।
  10. इसी समय दरम्यान रशिया में निर्यात 4.5% से घटकर 0.6% रह गयी ।
  11. OPEC के देशों में अपनी निर्यात 1960-’61 में 4.1% थी जो बढ़कर 2007-’08 में 16% से अधिक हो गयी ।
  12. इसी समय दरम्यान विकासशील देशों में वस्तुओं का निर्यात 14.8% था जो बढ़कर 42.6% हो गया ।
  13. 2014-’15 में एशिया के देशों में अपनी वस्तुओं का निर्यात 50% था ।
    इस प्रकार अलग-अलग देशों के साथ और दिशा का व्यापार विकसित करने में भारत ने सफलता प्राप्त करने का सफल प्रयत्न किया है ।

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