Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 12 Solutions पूरक वाचन Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 12 Hindi Textbook Solutions Purak Vachan
1. वापसी
विषय-प्रवेश :
‘वापसी’ कहानी मध्यम वर्गीय परिवार के नौकरीपेशा लोगों के जीवन की ज्वलंत समस्या पर आधारित हृदयस्पर्शी कहानी है। गजाधर बाबू रिटायर होने के बाद बड़े उछाह से अपने परिवार के साथ जीवन बिताने के लिए अपने घर लौटते हैं। पर परिवार के साथ रहने पर कुछ ही समय में उनके सारे सपने तहस-नहस हो जाते हैं और उन्हें नए सिरे से दुबारा निर्णय लेने पर मजबूर होना पड़ता है।
पाठ का सार :
घर के लिए प्रस्थान : गजाधर बाबू नौकरी से रिटायर होकर अपने घर जा रहे हैं। उनका सारा सामान बंध चुका है। उनकी नजर एक डिब्डे पर जाती है। उनका नौकर गनेशी उन्हें बताता है कि इसमें बेसन के लडू हैं, जिन्हें उसकी घरवाली ने उनके लिए दिए हैं। वे विषाद का अनुभव करते हैं अपने परिचित स्नेही से बिछुड़ते हुए।
गजाधर बाबू की खुशी : पैंतीस वर्ष की नौकरी के बाद गजाधर बाबू रिटायर होकर अपने घर जा रहे थे। इन वर्षों में अधिकांश समय उन्होंने नौकरी पर अकेले रहकर काटा था। उन्हें इस बात की प्रसन्नता थी कि अब वे अपने परिवार के साथ रहेंगे।
अपने परिवार के बीच : गजाधर बाबू अपने परिवार के बीच पहुंच जाते हैं और राहत की सांस लेते हैं।
एक रविवार का वाक्या : गजाधर बाबू एक दिन चारपाई पर बैठे थे। रविवार का दिन था। बच्चे नाश्ता कर रहे थे। अंदर उन्हें रह-रहकर कहकहें की आवाज सुनाई देती है। वे अंदर चले जाते हैं और देखते हैं – उनका बेटा नरेंद्र किसी फिल्म के नृत्य की नकल कर रहा था। बेटी बसंती हंस-हंसकर दोहरी हो रही थी। घर की बहू को अपने तन-बदन, आँचल-बूंघट का कोई होश नहीं था। गजाधर बाबू ने मुस्करा दिया बस।
चाय-नाश्ते का इंतजार : गजाधर बाबू चाय-नाश्ते का इंतजार करते रहते हैं। उन्हें अपने नौकर गनेशी की याद आती है जो रोज सुबह पैसेंजर गाड़ी आने से पहले गर्म-गर्म पूरियाँ और जलेबी बनाता था उनके लिए।
पत्नी का शिकायत भरा स्वर : पत्नी गजाधर बाबू से शिकायत करती है कि सारा दिन खिच-खिच में निकल जाता है। घर का कोई सदस्य हाथ नहीं बटाता। बहू पड़ी रहती है। बसंती को कालेज जाना होता है।
गजाधर बाबू का आदेश : गजाधर बाबू बसंती से कहते हैं कि आज से शाम का खाना बनाने की जिम्मेदारी तुम्हारी और सुबह का भोजन तुम्हारी भाभी बनाएगी।
घर में गजाधर बाबू के लिए स्थान नहीं : घर छोटा होने के कारण गजाधर बाबू के रहने के लिए कोई जगह न थी। उनके लिए बैठक में पतली-सी चारपाई डाल दी गई थी। वे वहीं पड़े रहते थे।
दाल की पतीली गिरी : गजाधर बाबू अपनी पत्नी को समझा रहे थे कि उन्हें किसी बात की कमी कहाँ है। घर में बह है, लड़के बच्चे हैं। पली जवाब देती हैं कि बड़ा सुख है न बहू से! आज रसोई करने गई है, देखो क्या होता है? तभी रसोईघर में कुछ गिरता है। पत्नी भागकर जाती है, तो देखती है, बहू ने रसोईघर खुला छोड़ दिया था। दाल की पतीली बिल्ली ने गिरा दी है। … रात का भोजन बसंती ने ऐसा बनाया था कि निगला न जा सके।
गजाधर बाबू से परेशानी : पत्नी ने गजाधर बाबू से बताया कि अमर अलग रहने की सोच रहा है। उसका कहना है कि आप हमेशा बैठक में ही पड़े रहते हैं। किसी आने-जानेवाले को बैठाने की जगह नहीं होती। … अगले दिन गजाधर बाबू बाहर घूमकर आते हैं, तो उनकी चारपाई बैठक से हटाकर उनकी पत्नी की कोठरी में अचार, रजाइयों, कनस्तरों के बीच लगा दी गई थी। उन्हें नौकरी के समय अपना बड़ासा खुला हुआ क्वार्टर याद आता है। अचानक ही वे निश्चित करते हैं कि अब घर की किसी बात में दखल नहीं देंगे।
फिर दखल : गजाधर बाबू ने एक दिन घर के नौकर की छुट्टी कर दी, तो उन्हें अमर की बहू, नरेंद्र, बसंती और अमर सबकी बातें सुननी पड़ी।
नौकरी का नियुक्ति-पत्र : एक दिन गजाधर बाबू हाथ में एक चिट्ठी लिए आते हैं। वे पत्नी से कहते हैं कि उन्हें सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नौकरी मिल गई है। खाली बैठे रहने से तो अच्छा है चार पैसे घर में आएं। फिर उन्होंने धीमे स्वर में कहा, ‘मैंने सोचा था कि अवकाश पाकर परिवार के साथ रहूँगा … खैर, परसों जाना है।’
गजाधर बाबू का प्रस्थान : गजाधर बाबू ने रिक्शे पर अपना टिन का बक्सा, पतला सा बिस्तर रखा। एक दृष्टि उन्होंने अपने परिवार पर डाली और वे दूसरी ओर देखने लगे। रिक्शा उन्हें लेकर चल पड़ा। गजाधर बाबू की पत्नी ने नरेंद्र से कहा कि वह बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे।
शब्दार्थ :
- विषाद – खेद, दुःख।
- कुरूप – बदसूरत।
- विलीन हो जाना – घुल-मिल जाना।
- आकांक्षी – इच्छुक।
- मनोविनोद – मन बहलाव।
- सलज्ज – लज्जाशील, शरमाते हुए।
- स्निग्ध – जिसमें स्नेह व प्रेम हो।
- उन्मुक्त – खुला हुआ।
- खिन्नता – उदासीनता, अप्रसन्नता।
- बिट्टी – विटिया, बेटी।
- अर्थ्य – पूजा में देने योग्य (जल, फूल आदि)।
- व्याघात – बाधा।
- खिच-खिच – व्यर्थ का वाद-विवाद।
- अस्थायी – थोड़े समय तक रहनेवाला।
- अनायास – अकस्मात, अचानक।
- आहत – घायल।
- विस्मित – चकित, अचम्भित।
- हैसियत – आर्थिक योग्यता, बिसात।
- श्रीहीन – शोभाहीन।
- रूखा – नीरस, जो चिकना न हो।
- निस्संग – अकेला, निर्लिप्त।
- हाड़तोड़ – कठिन।
- शऊर – अच्छी तरह काम करने की योग्यता।
- रोष – कुढ़न, क्रोध।
- चिग्घाड़ – चीत्कार, गर्जन।
- हस्तक्षेप – दखल देना।
- धनोपार्जन – धन कमाना।
- असंगत – जो मेल न खाता हो, अलग।
- खटकना – खलना, बुरा मालूम होना।
- सिर पिटाना – असमंजस या दुविधा में पड़ जाना।
2. दो कलाकार
विषय-प्रवेश :
प्रस्तुत एकांकी हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण है। इस एकांकी में दो कलाकारों के साहस एवं बुद्धिचातुर्य के द्वारा शोषण से मुक्त होने का चित्रण किया गया है। कवि चूड़ामणि और चित्रकार मार्तड द्वारा प्रकाशक परमानंद, रईस रामनाथ तथा मकान मालिक बुलाकीदास से बुद्धिबल के द्वारा लोहा लेने का मनोरंजक चित्रण किया गया है।
पाठ का सार :
चूडामणि और मार्तड : चूडामणि कवि है और प्रकाशक के लिए कविताएं लिखता है। मार्तड चित्रकार है। वह चित्र बनाता है। दोनों भाड़े के एक कमरे में साथ-साथ रहते हैं।
चूडामणि और परमानंद : चूड़ामणि प्रकाशक परमानंद के यहाँ पैसे लेने गए थे, पर उसने किताबें न बिकने का बहाना करके उसे टरकाना चाहा। पर चूडामणि को मालूम था कि परमानंद ने कल ही मोटर खरीदी है और पैसे न होने का बहाना कर रहा है। इसलिए वह परमानंद की सोने की घड़ी उठाकर यह कहता हुआ भाग आया था कि अगर उसने दो घंटे के अंदर पैसे न दिए तो वह घड़ी बेच देगा।
मार्तड और लाला रामनाथ : मार्तड रईस लाला रामनाथ के यहाँ एक चित्र लेकर गया था, जिसकी कीमत पचास रुपए से कम नहीं होनी चाहिए थी। पर रामनाथ ने उसे सात रुपए के ऊपर एक कौड़ी न देने की बात सुना दी। इस पर मार्तंड ने उसे चोर, उठाईगीर और गिरहकट तक कह डाला। पर वह रामनाथ के घर में था। उसने नौकरों को आवाज दे दी और चार लोग आ पहंचे। उसने कहा मारो, तो मार्तड ने समझा कि रामनाथ उससे कह रहा है। उसने उसकी नाक पर घूसा जमा दिया। नौकरों ने रामनाथ को संभाला और मार्तड तस्वीर उठाकर वहां से भाग आया। यह तस्वीर रामनाथ के बाप की थी।
कमरे का किराया : चूड़ामणि और मार्तड दोनों मकान मालिक बुलाकीदास के कमरे में किराएदार हैं, पर किराया छ: महीने से नहीं दिया है। बुलाकीदास किराया मांगने आता है, तो दोनों उससे कहते हैं, किराया तो उन्होंने कभी का दे दिया है। चूड़ामणि कहता है, उसने उनके नाती के मुंडन के निमंत्रण-पत्र पर मंगलाचरण की कविता लिखी थी और उनके लड़के के विवाह पर कवि सम्मेलन करवाया था।
इनसे दो महीने का किराया अदा हुआ। मार्तड कहता है, उसने पूजा करने के लिए उनको राधा-कृष्ण की तस्वीर बनाकर दी थी और जन्माष्टमी पर उनके मंदिर की झांकी सजवाई थी। इनसे दो महीने का किराया अदा हुआ। बुलाकीदास आश्चर्य से दोनों को देखता है।
बुलाकीदास की धमकी : बुलाकीदास को दोनों की हरकतों पर आश्चर्य होता है, पर वह इनकार भी नहीं कर पाता। वह उन दोनों को धमकाता है कि कोई बात नहीं, बाकी दो महीने का किराया दो और कमरा खाली करो। चूड़ामणि कहता है – लालाजी, संसार का एक महाकवि आपके चिडियाखाने नुमा मकान में रहा। पाँचवें महीने का किराया वह अदा हुआ। मार्तड कहता है- लालाजी, संसार का एक श्रेष्ठ चित्रकार आपके इस जानवरों के रहने के काबिल मकान में रहा, छठे महीने का किराया वह अदा हुआ। बुलाकीदास दंग रह जाता है। वह ज्यादा जोर देता है, तो वे परमानंद पुराण को बुलाकीपुराण बनाने की धमकी देते हैं।
परमानंद का आगमन : प्रकाशक परमानंद अपनी सोने की घड़ी वापस लेने के लिए चूडामणि को उसके पैसे देने आया है। चूडामणि उससे कहता है कि उसने उसकी कीर्तिगाथा पर एक पुराण आरंभ किया है। वह उसे सुनाता है- ‘झूठ, दगाबाजी, मक्कारी, दुनिया के बिटने छल छंद नहीं बचे हैं इनसे कोई। धन्य हैं प्रकाशक परमानंद।’ यह सुनकर सदानंद हाथ जोड़ता है।
परमानंद उसे नोट देता है, चूडामणि – कविता काटता है। परमानंद अपनी घड़ी मांगता है, तो चूड़ामणि घड़ी निकालकर उसे देता है और फिर परमानंद पुराण लिखने लगता है – ‘उनकी बीवी मना रही है हो जाए वह जल्दी बेवा।’ परमानंद हाथ जोड़ता है और कहता है- यह घड़ी मेरी ओर से आपको भेंट। चूडामणि घड़ी भी ले लेता हैं।
लाला रामनाथ का आगमन : रईस लाला रामनाथ अपने पिताजी की तस्वीर लेने चित्रकार मार्तड के पास आता है। वह उससे कहता है कि वह अपनी तस्वीर की जगह उसके पिताजी की तस्वीर उठा लाया है। वह अपनी तस्वीर ले ले और उसके पिता की तस्वीर दे दे। मार्तड रामनाथ को तस्वीर देता है। तस्वीर में पिता की नाक गायब है।
पूछने पर मार्तड कहता है कि नाक तो उसने अपने पिता की कटवा दी पचास रुपए के चित्र के दाम सात रुपए लगाकर। रामनाथ मार्तड की तस्वीर लेकर उसे पचास रुपए देता है और अपने पिता के चित्र में नाक ठीक करने के लिए कहता है। मार्तड तूलिका से नाक ठीक कर देता है। रामनाथ चित्र लेकर जाता है। साथ में परमानंद भी जाता है।
शब्दार्थ :
- उठाईगीर – आँख बचाकर चीज उठाकर भागनेवाला, उचक्का।
- गिरहकट – जेब या गाँठ में बंधा हुआ मालकाट लेनेवाला।
- बेजा – अनुचित।
- पिटना – मार खाना। विलायत – इंग्लैंड।
- लिहाजा – अतएव।
- मंगलाचरण – वह वह जो शुभ कार्य के पहले मंगल की कामना से पढ़ा या कहा जाता है।
- काबिल – योग्य।
- पुराण – मनुष्यों, दानवों, देवताओं की परंपरा से चली आ रही कथाएँ।
3. दुश्मन को अपना हृदय जरा देकर देखो
विषय-प्रवेश :
आज संसार में नफरत और वैमनस्य का साम्राज्य है। हर ओर युद्ध का माहौल है। कवि ने प्रस्तुत कविता के माध्यम से स्नेह और प्रेम की शक्ति से लोगों के दिलों को जीतने का आवाहन किया है – स्नेहपूर्ण व्यवहार करके सबके साथ प्यार बाँटा जा सकता है। केवल स्नेह से युद्ध की विभीषिका से बचा जा सकता है और अमनचैन स्थापित किया जा सकता है।
कविता का सरल अर्थ :
यह नफरत …… स्वछंद करो।
कवि लोगों से वैमनस्य की भावना त्यागकर प्यार मुहब्बत से काम लेने का आवाहन करते है। वे कहते हैं कि हे साथी, घृणा का जहर मत फैलाओ। आपस में युद्ध भड़कानेवाले नारों का उछालना बंद करो। हर समस्या को प्यार-मुहब्बत से सुलझाने की कोशिश करो। प्यार की भाषा से काम लो।
मृत मानवता …….. दीया उसमें बोला।
लोगों में मानवता की भावना नहीं रही है। लोगों में मानवता की भावना जाग्रत करो, उसे जीवन दो। उसे स्नेह, प्यार देने की जरूरत है। उसे प्यार दो। मनुष्य का स्वर्ग माना जानेवाला यह संसार मरघट में तब्दील होता जा रहा है, उसे स्नेह-प्यार देने की आवश्यकता है। इस दिशा अपना सहयोग दो।
निर्माण घृणा …….. बज पिघलते हैं।
कवि कहते हैं कि हमें घृणा की भावना त्यागनी होगी। रचनात्मक कार्य घृणा की भावना से नहीं, प्यार-मुहब्बत से ही होते हैं। सुख-शांति युद्ध से कभी नहीं मिल सकती, उसके लिए आपसी प्यार और सद्भावना की आवश्यकता होती हैं। आदमी शारीरिक-बल से नहीं, स्नेह के बल पर सुख-चैन से जीवन जी सकता है। समस्या का समाधान बमों से नहीं, बातचीत से ही हो सकता है। बातचीत से तो वज्र भी पिघल जाता है।
तुम डरो न, ……. पहुँचा आती है।
कवि कहते हैं कि तुम्हें डरने की जरूरत नहीं हैं। समस्या के हल के लिए तुम खुद सामने आकर पहल करो। जहाँ प्यार से पहल होती है, वहाँ युद्ध की बात नहीं होती। कवि कहते हैं जिस नौका को प्रेमरूपी पतवार मिल जाती है, उस नौका को मंझधार पार करने में कोई कठिनाई नहीं होती।
जिसके अधरों …….. हाथ मिलता है।
कवि कहते हैं कि जो लोग प्यार से समस्याओं का हल निकालने में विश्वास करते हैं, उनके लिए वे लोग बड़े-बड़े तूफानों का भी हंसते
हुए सामना कर लेते हैं। जो व्यक्ति विश्व की समस्याओं से चिंतित है, वह बड़े से बड़े संकट का सामना करने से नहीं डरता।
कितना ही क्यों ……. कर सकता है।
कवि कहते हैं कि प्यार हर समस्या का समाधान हो। किसी के हृदय पर कितना भी बड़ा घाव क्यों न लगा हो, प्यार उस घाव को भर सकता है। कैसा भी विद्रोही, कैसा भी दुश्मन क्यों न हो, पर आँसुओं के सामने उसे पानी-पानी होने में देर नहीं लगती।
कितना ही. … सुबह ले आएगा।
कवि कहते हैं, रास्ते में कितनी भी रुकावटें, कितनी भी समस्याएं क्यों न आएँ, किन्तु प्यार के बल पर उन रुकावटों को दूर करना अपने मार्ग पर आगे बढ़ना सरल हो जाएगा। कवि कहते हैं कि कितनी भी भयंकर अंधेरी रात हो, यह एक स्नेहरूपी दीपक नई सुबह अवश्य लेकर आएगा।
मैं इसीलिए …….. पिन्हाओ तुम।
कवि कहते हैं कि हमें नफरत से दूर रहना चाहिए। जहाँ लोग एकदूसरे से नफरत करते हों, वहां लोगों में आपस में प्यार की भावना विकसित करो। यदि कोई तुम पर वार करे, तो उसे प्यार से समझाओ। जो तुम्हें जलील करे, तुम्हें गालियाँ दे, उस पर ध्यान मत दो। उसके लिए अपने मन में बुरे भाव मत लाओ।
तुम शांति …. जरा देकर देखो।
कवि कहते हैं कि तुमने युद्ध किए, पर क्या तुम शांति स्थापित कर पाए? बिलकुल नहीं। अब जरा तलवार फेंक दो और अपने मन से युद्ध की भावना निकाल दो। प्यार से नाता जोड़ो। दुश्मन से अपने हृदय की बातें करो, उसे प्यार से समझाओ। सच मानो, निश्चित रूप से तुम्हारी विजय होगी।
शब्दार्थ :
- नफरंत – घृणा।
- जहरीला – विषयुक्त, जिसमें जहर हो।
- नारा – किसी शिकायत की ओर बुलंद की जानेवाली सामूहिक आवाज।
- तिजोरी-सेफ – मजबूत अलमारी।
- बंधन – कैद।
- स्वच्छंद – स्वतंत्र।
- मृत – मरी हुई, बेजान।
- स्नेह – प्रेम, प्यार।
- ढालना – उड़ेलना।
- आदम – मनुष्य।
- मरघट – वह स्थान जहाँ मुर्दै जलाए जाते हैं।
- ममता – ममत्व, स्नेह, प्रेम।
- बालो – जलाओ, प्रज्वलित करो।
- बोल – बातचीत।
- वज – बहुत कठोर, भीषण।
- निज – अपनी।
- भुज – भुजा।
- पतवार – कर्ण, नाव में पीछे लगी तिकोनी लकड़ी, जिससे नाव को घुमाया या मोड़ा जाता है।
- किश्ती – नाव, डोंगी।
- मझधार – नदी के बीच में, धारा के बीच में।
- अधर – होंठ।
- खिलाता – खेलाना।
- सैलाबो- बाढ़, पानी का चढ़ाव।
- बागी – विद्रोही, बगावत करनेवाला।
- अश्रु – आँसू।
- ऊबड़-खाबड़ – ऊँचा-नीचा, अटपटा।
- अँधियारी – अंधेरी, अंधकार।
- धुआँधुंध – धुएँ जैसी धुंध।
- चोट – प्रहार।
- आशीष – आशीर्वाद।
- पिन्हाना – देना प्रदान करना।
4. मैं एक मजदूर
विषय-प्रवेश :
मेहनतकश वर्ग के लोगों का वस्तुओं को देखने का निराला अंदाज होता है। उन्हें किसी वस्तु के अंदर उसके सुंदर रूप के दर्शन होते हैं और उनका मन उसे आकृति देने के लिए आकुल हो उठता है। प्रस्तुत कविता में कवि ने संगतराश, बढ़ई, लुहार, शिक्षक व बुनकर के माध्यम यही बात बखूब कहा है।
कविता का सरल अर्थ :
पत्थर को ……. हो जाता हूँ।
कवि मजदूर के अंदर के कलाकार का चित्रण करते हुए कहते हैं कि उसे विभिन्न चीजों में अपनी अलग-अलग आकृति दिखाई देती है। वे कहते हैं कि मजदूर जब किसी पत्थर को देखता है, तो उसके अंदर का संगतराश सक्रिय हो जाता है। उसके मन में उस पत्थर से कोई आकृति बनाने की इच्छा होने लगती है। वह काठ के सामने खड़ा होता है, तो उसके अंदर का बढ़ई सक्रिय हो जाता है और उस काठ से किसी सुंदर वस्तु का निर्माण करने की उसके मन में इच्छा होने लगती है।
लोहे को देखते ही उसके भीतर का लुहार सक्रिय हो जाता है और धन और हथौड़े के साथ उसके मन में लोहे से कोई अच्छी चीज बनाने की इच्छा होने लगती है। वह जब कपास से लहलहाते खेत में पैर रखता है, तो उसे हरी-भरी कपास में और कुछ (रुई) दिखाई देने लगती है और उसके अंदर का बुनकर सक्रिय हो जाता है। उसके मन में रुई से कोई सुंदर वस्त्र बनाने की इच्छा होने लगती है।
मिट्टी के हर ……. दिखाई देता है।
कवि कहते हैं कि कोई मजदूर जब किसी ढेले को देखता है, तो उसके अंदर का मूर्तिकार जाग उठता है। उसमें उसे मूर्ति के दर्शन होने लगते हैं। उसे कोई धातु दिखाई देती है, तो उसमें उसे (छुरीचाकू आदि की) धार का अनुभव होने लगता है। मजदूर का मन सदा शिक्षक का होता है। उसे हर मासूम बच्चे में उसका सर्जक रूप दिखाई देता है। वह एक मजदूर है, वह एक कारीगर है और वह एक कलाकार है। उसे प्रत्येक कच्ची चीज में उसकी सुंदरता दिखाई देती है। उसके मन में उसके कच्चे रूप से सुंदर वस्तु बनाने की इच्छा होने लगती है।
शब्दार्थ :
- संगतराश – पत्थर काटने या गढ़नेवाला कारीगर।
- काष्ठ – काठ, लकड़ी।
- कसमसाना – उकताकर हिलना-डोलना।
- लुहार – लोहे की चीजें बनानेवाला।
- घन – लुहार का बड़ा हथौड़ा।
- हथौड़ा – कारीगरों द्वारा चीजों को तोड़ने पीटने का औजार।
- लहलहाना – हरी पत्तियों से युक्त हरा-भरा होना।
- बुनकर – जुलाहा।
- तब्दील – बदला हुआ, परिवर्तित।
- ढेले – मिट्टी का छोटा टुकड़ा।
- मूर्ति – गढ़ी हुई आकृति।
- दर्शन – नेत्रों द्वारा होनेवाला बोध।
- अनुभूति – किसी चीज के बारे में अनुभव होना।
- धार – वह तेज किनारा जिससे कुछ काटते हैं।
- शाश्वत – जो सदा बना रहे, नित्य।
- मासूम – निरीह।
- सर्जक – सृजन करनेवाला।
- कारीगर – सुंदर वस्तुओं की रचना करनेवाला।
- कलाकार – जो कलापूर्ण कार्य करता है, वह।
- सौंदर्य – सुंदरता।