GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 9 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

Std 9 GSEB Hindi Solutions प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं ?
उत्तर :
हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ
उभरकर आती हैं –

  1. प्रेमचंद का व्यक्तित्व बहुत सीधा-सादा था, उनके व्यक्तित्व में कहीं भी दिखाया नहीं था । फटे जूते पहनना इस बात का प्रमाण है।
  2. उनका जीवन संघर्षशील था । वे स्वाभिमानी व्यक्ति थे । किसी से वस्तु मांगना उनके व्यक्तित्व के खिलाफ था । वे स्वाभिमानी व्यक्ति थे ।
  3. प्रेमचंद जीवनमूल्यों में कभी समझौता नहीं करते थे । इसीलिए सामाजिक कुरीतियों का डटकर मुकाबला करते थे । वे परिस्थितियों के गुलाम नहीं थे ।
  4. वे एक महान कथाकार थे, उपन्यास-सम्राट थे । अपनी रचनाओं में उन्होंने सामाजिक समस्याओं को उठाया और निराकरण करने का प्रयास किया ।
  5. वे उच्च विचारों से युक्त आडम्बरहीन व्यक्ति थे ।

प्रश्न 2.
सही कथन के सामने (✓) का निशान लगाइए ।
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अंगुली बाहर निकल आई है ।
(ख) लोग तो इन चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए ।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम पृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो ?
उत्तर :
(ख) सही है।

प्रश्न 3.
नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए
क. जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है । अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं ।
उत्तर :
यहाँ जूते का स्थान नीचे पाँव में तथा टोपी का सिर पर (सम्माननीय) है, पर है इसके विपरीत । समाज में जिनके पास रुपया पैसा है उनका महत्त्व अधिक है । ज्ञानवान और गुणी लोगों को अमीरों के सामने कई बार झुकना पड़ता है । तभी लेखक ने कहा है कि एक जूते पर पचीसों टोपिया न्योछावर होती हैं ।

ख. तुम परदे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं ।
उत्तर :
वास्तव में परदे के भीतर लोग अपनी कमियों को छिपा सकते हैं । प्रेमचंद आडंबर एवं दिखाये से दूर रहनेवाले व्यक्ति थे । वे जैसे बाहर से थे, वैसे ही भीतर से थे अतः उन्हें परदे की कोई आवश्यकता नहीं थी । दूसरी तरफ समाज में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बाह्य दिखावा करने के लिए परदे पर कुर्बान होते हैं । अर्थात् अपनी कमियों को छिपाने का प्रयास करते हैं ।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

ग. जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो ?
उत्तर :
प्रेमचंद जिस व्यक्ति या सामाजिक बुराई से घृणा करते हैं उसकी तरफ हाथ की अंगुली से इशारा नहीं करते । ऐसा करके वे अपने महत्त्व को कम नहीं करना चाहते । वैसे भी घृणित वस्तु का स्थान पैरों तले ही होता है । इसलिए वे उस ओर अपनी पैर की अंगुली से इशारा करते हैं ।

प्रश्न 4.
पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी लेकिन अगले ही पल बह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी ।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती है ?
उत्तर :
हमारे समाज में व्यक्ति दो तरह की पोशाकें रखता है । किसी विशिष्ट अवसर के लिए वह अच्छे कपड़े पहनता है और घर पर साधारण या पुराने कपड़े । पाठ में लेखक सोचते हैं यदि फोटो खिंचाने की यह पोशाक है तो पहनने की तो इससे भी खराब होगी । बाद में लेखक ने अपनी विचारधारा बदल दी । क्योंकि लेखक अच्छी तरह से जानते हैं कि प्रेमचंद का व्यक्तित्व दिखावे की दुनिया से अलग था । वे जैसे फोटो में दिख रहे हैं वैसे ही अपने जीवन में भी हैं । प्रेमचंद का जीवन आडंबरों से दूर सादगीपूर्ण था ।

प्रश्न 5.
आपने यह व्यंग्य पढ़ा । इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं ?
उत्तर :
हरिशंकर परसाई एक प्रसिद्ध व्यंग्य लेखक हैं । कोरे हास्य से अलग उनका व्यंग्य लेखन समाज में क्रांति की भावना को जगाता है । प्रस्तुत पाठ में परसाईजी ने लेखक प्रेमचंद के फटे जूतों पर अपना व्यंग्य प्रस्तुत करते हैं । वे प्रेमचंद की पोशाक के द्वारा दिखावा करनेवाले लोगों पर कटाक्ष करते हैं

। लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व को दर्शाने के लिए जिन उदाहरणों का प्रयोग किया है, वे व्यंग्य को और भी सटीक बनाते हैं । समाज में फैली रूढ़ियाँ, कुरीतियाँ व्यक्ति की राह में बाधा डालती हैं, इसे लेखक ने बखूबी चित्रित किया है । व्यंग्य की भाषा कसी हुई व व्यंजनापूर्ण है, जो सभी को अपनी ओर खींचती है । लेखक ने कहवी से कड़वी बातों को अत्यंत सरलता से व्यक्त किया है । लेखक अप्रत्यक्ष रूप से समाज के दोषों पर व्यंग्य करता है ।

प्रश्न 6.
पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदों को इंगित करने के लिए किया होगा ?
उत्तर :
सामान्यतया ‘टीला’ मिट्टी या रेती का ढेर है । यहाँ यह शब्द राह में आनेवाली बाधाओं, अड़चनों का प्रतीक है । प्रेमचंद इस शब्द द्वारा समाज की कुरीतियों, बुराइयों की ओर संकेत करते हैं । समाज की इन कुरीतियों, बुराइयाँ व्यक्ति व समाज के विकास में बाधक बनती हैं । जिन्हें प्रेमचंद ने अपने जूते से ठोकर मार-मारकर उसे अपने व समाज के रास्ते से दूर करने का प्रयास करते हैं ।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 7.
प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है । आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए ।
उत्तर :
आज हर कोई कम मेहनत में अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहता है । ईश्वर यदि मेहरबान हो जाए तो फिर बात ही क्या ? हमारे इलाके में एक ऐसे ही सज्जन हैं जिन पर लक्ष्मीदेवी की कृपा हुई और अब वे धीरे-धीरे अमीरी की दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं । ये माँ सरस्वती की तरह श्वेत कपड़ों में हमेशा सज्ज रहते हैं और समाज के विकास की बातें करते रहते हैं ।

पर जाननेघाले जानते हैं कि उन्होंने मात्र और मात्र पहाड़ की तरह अपना ही विकास किया है । पहनते हैं माँ सरस्वती के समान धवल वस्त्र और भीतर से जितने भी काले कारनामें है, उन पर अपना हाथ आजमाएँ हुए हैं और आगे बढ़ रहे हैं । श्वेत और काला का अद्भुत संगम हमने पहले कहीं नहीं देखा ।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 8.
आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है ?
उत्तर :
पहले तन ढकने के उद्देश्य से ही लोग कपड़े पहनते थे । किन्तु समय परिवर्तित होने के साथ-साथ लोगों की सोच में बदलाव आया । आज लोग वेशभूषा को सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक मानने लगे हैं । वास्तव में समाज में पोशाक ही व्यक्ति का दरजा निश्चित करती हैं । यदि वेशभूषा अच्छी है तो आपको मान सम्मान मिलेगा । यदि वेशभूषा ठीक नहीं है, तो उस व्यक्ति को हेय की दृष्टि से देखते हैं ।

समाज में अपनी प्रतिष्ठा अपनी हैसियत दिखाने के लिए लोग आधुनिक फैशन के कपड़े पहनने लगे हैं । वेशभूषा को लेकर महिलाओं की सोच में भी भारी बदलाव आया है । महिलाएँ एक समारोह या प्रसंग में कोई साड़ी पहनेंगी तो दूसरी बार उसे पहनने में शर्मीदगी महसूस करती हैं । परिणामस्वरुप वार्डरोब (अलमारी) में महिलाओं के कपड़े दूंसतूंस कर भरे होते हैं, फिर भी नये कपड़ों की संख्या में लगातार वृद्धि होती रहती है । आज वेशभूषा व्यक्ति की जरूरत न होकर फैशन का प्रतीक बन गया है ।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 9.
पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
मुहावरों की सूचि निम्नवत् है :

  • न्योछावर होना – एक माँ अपने बेटे की खुशी के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देती है ।
  • कुर्बान होना – स्वतंत्रता संग्राम में अनेक भारतवासी कुर्बान हो गये ।
  • हौसले परत करना – समय पर बरसात न होने के कारण कृषकों के हौसले पस्त हो गये ।
  • लहूलुहान होना – बस दुर्घटना में कई लोग लहूलुहान हो गये ।
  • चक्कर काटना – पके अमरूद तोड़ने के लिए लड़कों का दल कब से चक्कर काट रहा है।
  • ठोकर मारना – अमरेश ने अपने पिता की करोड़ों की दौलत को ठोकर मारकर देवयानी से शादी रचाई ।
  • पहाड़ फोड़ना – रमेश स्कूल से आते ही बिस्तरे पर ऐसे गिर पड़ा मानो पहाड़ फोड़कर आया हो ।
  • संकेत करना – ट्राफिक पुलिस के संकेत करते ही गाड़िया चल पड़ी ।

प्रश्न 10.
प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।
उत्तर :
हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व का सही आंकलन करने के लिए अनेक विशेषणों का प्रयोग किया है, मुख्य नीचे दिए गए हैं:

  1. जनता के लेखक
  2. साहत्यिक पुरखे
  3. महान कथाकार
  4. उपन्यास-सम्राट
  5. युग-प्रवर्तक गयांश

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

GSEB Solutions Class 9 Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Important Questions and Answers

आशय स्पष्ट कीजिए ।

प्रश्न 1.
‘आवत जात पन्हैया घिस गई बिसर गयो हरि नाम ।’
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियाँ अष्टछाप के प्रसिद्ध ब्रजभाषा कवि कुंभनदास द्वारा लिखी गई है । एक बार अकबर बादशाह के बुलाने पर इन्हें फतेहपुर सीकरी जाना पड़ा । जहाँ इन्हें सम्मानित किया गया । किन्तु आने-जाने में इनके जूते घिस गये और हरि नाम का स्मरण करना भूल गये । उन्हें हरि स्मरण का समय ही नहीं मिला । और जिन्हें देखने मात्र से पीड़ा होती है उनको भी झुककर सलाम करना पड़ा ।

प्रश्न 2.
‘सभी नदियाँ पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं, कोई रास्ता बदलकर घूमकर भी तो चली जाती हैं।’
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से लेखक कहना चाहते हैं कि सभी नदियाँ पहाड़ को फोड़कर रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ जाती हैं, किन्तु कुछ नदियाँ पहाड़ को न फोड़ते हुए बगल से निकल जाती हैं अर्थात् समाज में कुछ लोग रास्ते में आनेवाली बाधाओं से डटकर मुकाबला करते हैं । किन्तु कुछ लोग सरल मार्ग अर्थात् बाधाओं को छोड़ दूसरे रास्ते से आगे बढ़ जाते हैं ।

अतिरिक्त लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
प्रेमचंद फोटो में कैसे दिख रहे हैं ?
उत्तर :
फोटो में प्रेमचंद अपनी पत्नी के साथ बैठे हैं । ये कुरता-धोती पहने हैं तथा उन्होंने सिर पर मोटे कपड़े की टोपी पहनी है । कनपटी चिपकी है, गालों पर हड्डियाँ उभर आई हैं, घनी मूंछे चेहरे को हरा-भरा बनाती हैं ।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 2.
लेखक ने प्रेमचंद के जूतों का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार प्रेमचंद ने केनवास के जूते पहने हैं, जिनके बंद (फीते) बेतरतीब बँधे हैं । लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है, और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है, तब भी बंद को जैसे-तैसे कस लिया गया है तथा बाएँ जूते में बड़ा सा छेद हो गया है ।

प्रश्न 3.
लेखक की दृष्टि प्रेमचंद के जूतों पर क्यों अटक गई ?
उत्तर :
प्रेमचंद ने जो जूते पहने हैं, उनमें से बाएँ पैर के जूते में बड़ा-सा छेद है और प्रेमचंद की अँगुली बाहर निकल आई है, इसे देखते ही लेखक की दृष्टि प्रेमचंद के जूतों पर अटक गई।

प्रश्न 4.
प्रेमचंद ने अपने जूते को ढकने का प्रयास क्यों नहीं किया होगा ?
उत्तर :
प्रेमचंद यथार्थवादी लेखक हैं । उन्हें सीधा-सादा जीवन ही पसन्द था । वे जैसा वास्तव में थे फोटो में भी वैसा ही दिखना चाहते होंगे, इसलिए उन्होंने अपने जूतों को धोती से ढकने का प्रयास नहीं किया होगा ।

प्रश्न 5.
प्रेमचंद के चेहरे पर अधूरी मुसकान क्यों थी ?
उत्तर :
फोटो खिंचवाते समय फोटोग्राफर ने ‘रेडी प्लीज़’ कहा होगा तब दर्द के गहरे तल में कहीं पड़ी मुसकान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होंगे कि फोटोग्राफर ने बीच में ही क्लिक कर लिया होगा । उनकी मुसकान पूरी तरह से आ नहीं पाई थी इसलिए लेखक ने प्रेमचंद की मुसकान को अधूरी कहा है ।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 6.
लेखक ने प्रेमचंद के लिए ट्रेजडी शब्द का प्रयोग क्यों किया है ?
उत्तर :
प्रेमचंद हिन्दी के बहुत बड़े साहित्यकार थे । वे युग-प्रवर्तक, उपन्यास-सम्राट, महान कथाकार के रूप में प्रसिद्ध थे । इतने बड़े साहित्यकार के पास फोटो खिंचवाने के लिए एक जोड़ी अच्छे जूते भी नहीं है । इसलिए लेखक ने प्रेमचंद की दशा दिखाने के लिए ट्रेजडी शब्द का प्रयोग किया है ।

प्रश्न 7.
फोटो खिंचाने के लिए लोग कौन-कौन-सी वस्तुएँ मांगते हैं ? क्यों ?
उत्तर :
फोटो में अच्छा दिखने के लिए लोग जूते, कोट, दूसरे की बीबी, गाडी तक मांगने में संकोच नहीं करते । ऐसा करके वे मात्र बाह्य दिखावा ही करते है । दूसरों के सामने अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने के लिए वे ऐसा करते हैं ।

प्रश्न 8.
लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है ?
उत्तर :
जूता धन समृद्धि का प्रतीक है और टोपी ज्ञान का । समाज में जो लोग धनवान हैं, रुपये पैसेवाले हैं, समाज उनका मान सम्मान करता है । ज्ञानी व्यक्तियों को धनयानों से कम आँका जाता है । कई बार धनवानों के सामने ज्ञानी व्यक्तियों को भी झुकना पड़ता है । इसलिए लेखक ने कहा है कि जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है ।

प्रश्न 9.
लेखक ने अपने जूते से प्रेमचंद के जूतों को क्यों बेहतर माना है ? ।
उत्तर :
लेखक का जूता ऊपर से अच्छा दिखता है पर अंगुठे के नीचे का तला फट गया है । उसका अँगूठा जमीन से रगड़ खाता है और पैनी मिट्टी से रगड़कर लहूलुहान हो जाता हैं । दूसरी तरफ प्रेमचंद का जूता अंगूठे के पास ऊपर से फटा है जिसमें से अँगुली दिखती जरूर है पर पूरा पाँव सुरक्षित है. । इसलिए लेखक ने अपने जूते से प्रेमचंद का जूता अच्छा माना है ।

प्रश्न 10.
लेखक ने कुंभनदास का उदाहरण देकर क्या सिद्ध करना चाहा है ?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि चक्कर लगाने से जूता फटता नहीं घिस जाता है । इसी बात की पुष्टि के लिए लेखक ने कुंभनदास का उदाहरण दिया है । फतेहपुर सीकरी आने-जाने में उनका जूता घिस गया था । चलने से जूता घिस जाता है, फटता नहीं ।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 11.
लेखक के अनुसार प्रेमचंद का जूता क्यों फटा होगा ?
उत्तर :
(देखें उत्तर पृ. 62)

प्रश्न 12.
लेखक ने ‘सदियों से परत-दर-परत’ कहकर किस विडंबना की ओर इशारा किया है ?
उत्तर :
लेखक ने ‘सदियों से परत-दर-परत’ कहकर समाज में सदियों से चली आ रही सामाजिक की कुरीतियों, रुढ़ियों, बुराइयों की ओर इशारा किया है, जो हमारे समाज में परत-दर-परत जमती जा रही हैं । लोग उन्हें बिना सोचे-समझे अपनाए हुए हैं । इनकी जड़े समाज में भीतर तक गड़ गई हैं जिन्हें चाहकर भी दूर नहीं किया जा सकता । यह हमारे समाज की सबसे बड़ी विडंबना है ।

दीर्घ उत्तरी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पाठ के आधार पर प्रेमचंद की वेशभूषा और उनकी स्वाभाविक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।
अथवा
प्रेमचंद की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर :
पाठ के आधार पर प्रेमचंद की वेशभूषा और उनकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :

वेशभूषा : प्रेमचंद की वेशभूषा अत्यंत साधारण है । उन्होंने मोटे कपड़े की टोपी और कुरता तथा धोती पहना है । केनवास के जूते पहने हैं । बाएँ पैर का जूता अँगूठे के ऊपरी भाग से फटा था जिनमें से पैर की अंगुलियों झाँक रही थीं । इतने बड़े साहित्यकार होने पर भी उनकी यह सादगी देखते ही बनती थी । वेशभूषा उनके लिए कोई मायने नहीं रखती । प्रेमचंद जीवनमूल्यों को प्राथमिकता देते हैं ।

स्वभावगत विशेषताएँ : प्रेमचंद अत्यंत सीधे-सादे स्वभाव के थे । उनके व्यक्तित्व में कहीं भी दिखाया नहीं था । वे बहुत ही स्वाभिमानी थे । किसी वस्तु को मांगना उनके व्यक्तित्व के खिलाफ था । अन्यथा वे जूते मांगकर भी पहन सकते थे । वे उच्च विचारों से युक आडम्बरहीन व्यक्ति थे । वे जिस हाल में थे, उसी में खुश रहते थे । वे जैसी स्थिति में थे फोटो में भी वे वैसा ही दिखना चाहते थे । वे अपनी कमजोरियों, अपनी गरीबी, अपनी कमियों को छिपाना नहीं चाहते थे । अत: वे अत्यंत सीधे-सादे एवं सरल स्वभाव के थे ।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 2.
लेख्नक के अनुसार जूता फटने के पीछे कौन-कौन से कारण हो सकते हैं ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार जूता फटने के पीछे कई कारण हो सकते हैं –
1. प्रेमचंद बहुत अधिक चक्कर काटते होंगे ।
2. बनिए के तगादे से बचने के लिए मील-दो मील का चक्कर लगाकर घर लौटते रहे होंगे ।
3. किसी सख्न चीज को ठोकर मारते रहे होंगे । कोई चीज जो परत-दर-परत सदियों से जम गई है, शायद उन्होंने ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया होगा । कोई टीला जो रास्ते पर खड़ा हो गया था, उस पर उन्होंने अपने जूते से ठोकर मारा होगा । बार-बार ठोकर मारने से संभवतः जूता फट गया होगा ।

प्रश्न 3.
लेखक ने ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में प्रेमचंद की आर्थिक स्थिति का वर्णन करते-करते जाने-अनजाने अपनी आर्थिक स्थिति
का भी वर्णन किया है । उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :
लेखक हरिशंकर परसाई, प्रेमचंद का एक फोटो, जिसमें उनके बाएँ पैर का जूता फटा है और उसमें से उनके पैर की अंगुली झाँक रही है इसको देखकर विचलित हो जाते हैं, और उस फटे जूते की विवेचना करते-करते अपने जूते का भी जिक्र कर बैठते हैं । वे कहते हैं कि ‘मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है । यों ऊपर से अच्छा दिखता है ।

अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अंगूते के नीचे तला फट गया है । अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खोकर लहूलुहान भी हो जाता है । पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी ।’ यह अंश इस बात का सबूत है कि लेखक की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी । किन्तु वे प्रेमचंद की तरह फटे जूते पहन कर फोटो खिंचवाने की हिम्मत उनमें नहीं थी । वे परदे द्वारा उसे रोकना चाहते हैं । वास्तविकता का दिखाना नहीं चाहते ।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गये विकल्पों में से चुनकर लिखिए :

प्रश्न 1.
प्रेमचंद किसके साथ फोटो खिंचा रहे हैं ?
(क) अपनी बेटी के साथ
(ख) अपने परिवारजनों के साथ
(ग) अपनी पत्नी के साथ
(घ) अपने मित्र के साथ
उत्तर :
(ग) अपनी पत्नी के साथ

प्रश्न 2.
फोटोग्राफर के ‘रेडी-प्लीज़’ कहने पर प्रेमचंद ने क्या किया होगा ?
(क) परम्परा के अनुसार मुसकान लाने की कोशिश की होगी ।
(ख) चेहरे पर गंभीरता का भाव लाने की कोशिश की होगी ।।
(ग) जोरों से हँसने का प्रयास किया होगा ।
(घ) चेहरे को सँवारने की कोशिश की होगी ।
उत्तर :
(क) परम्परा के अनुसार मुसकान लाने की कोशिश की होगी ।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 3.
उस जमाने में टोपी और जूते की क्या कीमत रही होगी ?
(क) टोपी : आठ आने और जूता : पाँच रुपये ।
(ख) टोपी : चार आने और जूते दो रुपये ।
(ग) टोपी पाँच रुपये और जूता आठ आने ।
(घ) टोपी 10 रुपये और जूता 50 रुपये ।
उत्तर :
(क) टोपी : आठ आने और जूता : पाँच रुपये ।।

प्रश्न 4.
निम्न में से प्रेमचंद के लिए किस विशेषण का प्रयोग नहीं किया गया है ?
(क) उपन्यास-सम्राट
(ख) महान कथाकार
(ग) युग-प्रवर्तक
(घ) महाकवि र
(घ) महाकवि

प्रश्न 5.
अकबर ने फतेहपुर सीकरी किसे बुलवाया था ?
(क) हरिशंकर परसाई को
(ख) प्रेमचंद को
(ग) सूरदास को
(घ) कुंभनदास को
उत्तर :
(घ) कुंभनदास को

प्रश्न 6.
‘आवत जात पन्हैया घिस गई, बिसर गयो हरि नाम ।’ किसकी प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं ?
(क) सूरदास की
(ख) नाभादास की
(ग) कुंभनदास की
(घ) हरिदास की
उत्तर :
(ग) कुंभनदास की

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं । सिर पर किसी मोटे कपडे की टोपी, करता और धोती पहने हैं । कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूंछे चेहरे को भरा-भरा बतलाती है। पाँवों में केनवस के जूते हैं, जिनके बंद बेतरतीब बँधे हैं । लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है । तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं ।

प्रश्न 1.
प्रेमचंद की वेशभूषा का वर्णन कीजिए ।
उत्तर :
प्रेमचंद ने धोती-कुरता पहन रखा है, उनके सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी है । पोशाक एकदम सादा है । उनके पैरों में केनवस का जूता है, जो जूते फटे हुए हैं ।

प्रश्न 2.
प्रेमचंद के जूते बेतरतीब से क्यों बंधे हैं ?
उत्तर :
प्रेमचंद ने जो जूते पहने है उनका उपयोग लापरवाही से होने के कारण बंद के सिरों पर लोहे की पतरी निकल आई हैं जिराक कारण बंद छेदों में नहीं जा सकता । इसलिए उनके जूते बेतरतीबी से बाँध लिए गये हैं ।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 3.
‘लापरवाही’ में से उपसर्ग व प्रत्यय दोनों अलग कीजिए ।
उत्तर :
ला उपसर्ग तथा ई प्रत्यय है ।

दाहिने पाँव का जूता ठीक है, मगर बाएँ जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है। मेरी दृष्टि इस जूते पर अटक गई है । सोचता हूँ – फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है, तो पहनने की कैसी होगी ? नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी – इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है । यह जैसा है, वैसा ही फोटो में खिंच जाता है।

प्रश्न 1.
लेखक की दृष्टि जूते पर जाकर क्यों अटक गई ?
उत्तर :
लेखक प्रेमचंद का फोटो देख रहे थे । उनकी दृष्टि जूतों पर जाकर इसलिए अटक गई क्योंकि उनके बायें पैर के जूते में बड़ा छेद हो गया है और उससे से उनकी अँगुलियाँ दिखाई दे रही हैं ।

प्रश्न 2.
सोचता हूँ – फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है, तो पहनने की कैसी होगी ? का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
लेखक सोचते हैं कि इतने बड़े कथाकार यदि फोटो इस प्रकार के पोशाक में खिचाते हैं, तो इनके रोजिंदा पहनने के कपड़े तो इससे भी खराब हालत में होंगे ।

प्रश्न 3.
पोशाक के संदर्भ में प्रेमचंद में कौन-सा गुण नहीं है और क्यों ?
उत्तर :
प्रेमचंद में पोशाक बदलने का गुण नहीं है । उनमें दिखावे की भावना नहीं है । वे भीतर-बाहर एक सरीखे हैं ।

प्रश्न 4.
‘मेरी दृष्टि इस जूते पर अटक गई है ।’ में वाक्य का कौन-सा प्रकार है ?
उत्तर :
यह सरल वाक्य है ।

मैं चेहरे की तरफ़ देखता हूँ । क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरख्खे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अँगुली बाहर दिस्य रही है ? क्या तुम्हें इसका ज़रा भी अहसास नहीं है ? ज़रा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है ? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अँगुली ढक सकती है ? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है !

फोटोग्राफर ने जब ‘रेडी-प्लीज़’ कहा होगा, तब परंपरा के अनुसार तुमने मुसकान लाने की कोशिश की होगी, दर्द के गहरे कुएँ के तल में कहीं पड़ी मुसकान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होंगे कि बीच में ही ‘क्लिक’ करके फोटोग्राफर ने ‘थेंक यू’ कह दिया होगा । विचित्र है यह अधूरी मुसकान । यह मुसकान नहीं, इसमें उपहास है, व्यंग्य है !

प्रश्न 1.
साहित्यिक पुरख्ने शब्द का प्रयोग लेखक ने किसके लिए किया है ? क्यों ?
उत्तर :
साहित्यिक पुरख्ने शब्द का प्रयोग लेखक ने प्रेमचंदजी के लिए किया है। क्योंकि वे लेखक की पुरानी पीढ़ी के बहुत पहले के रचनाकार हैं।

प्रश्न 2.
प्रेमचंद की मुस्कान अधूरी क्यों रह गई थी ?
उत्तर :
प्रेमचंद को फोटोग्राफर ने ‘रेडी प्लीज़’ कहा होगा तब वे दर्द के गहरे कुएँ के तल में कहीं पड़ी मुसकान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होगे तभी बीच में ही फोटोग्राफर ने फोटो खींचकर बैंक यू कह दिया होगा। इसलिए प्रेमचंद की मुसकान अधूरी रह गई होगी।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार अधूरी मुसकान कैसी है ?
उत्तर :
लेखाक के अनुसार अधूरी मुसकान विचित्र है। उसमें उपहास है, व्यंग्य है।

प्रश्न 4.
‘दर्द’ और ‘कोशिश’ का अर्थ लिखिए।
उत्तर :
‘दर्द’ का अर्थ पीड़ा तथा ‘कोशिश’ का अर्थ प्रयत्न है।

यह केसा आदमी है, जो खुद तो फटे जूते पहने फोटो ख्रिचा रहा है, पर किसी पर हंस भी रहा है ! फोटो ही खिंचाना था, तो ठीक जूते पहन लेते, या न खिचाते । फोटो न खिंचाने से क्या बिगड़ता था। शायद पत्नी का आग्रह रहा हो और तुम, ‘अच्छा, चल भई’ कहकर बैठ गए होंगे । मगर यह कितनी बड़ी ‘ट्रेजड़ी’ है कि आदमी के पास फोटो खिंचाने को भी जूता न हो । मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते, तुम्हारे क्लेश को अपने भीतर महसूस करके जैसे रो पड़ना चाहता हूँ, मगर तुम्हारी आँखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य मुझे एकदम रोक देता है।

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार प्रेमचंद को फोटो खिंचाने के लिए क्या करना चाहिए था ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार प्रेमचंद को फोटो खिंचाने के लिए ठीक-ठाक जूता पहनना चाहिए था। अन्यथा फोटो नहीं खिंचाना चाहिए था।

प्रश्न 2.
प्रेमचंद ने किसके आग्रह पर फोटो खिंचवाया होगा ? क्यों ?
उत्तर :
प्रेमचंद ने अपनी पत्नी के आग्रह पर फोटो खिंचवाया होगा । क्योंकि संभवतः ये अपनी पत्नी की बात रखना चाहते होंगे । इसलिए जैसे थे उसी हालत में उन्होंने फोटो खिंचवा ली होगी ।

प्रश्न 3.
‘ट्रेजडी’ शब्द का अर्थ लिखिए ।
उत्तर :
‘ट्रेजडी’ शब्द का अर्थ है – दुःखद घटना ।

मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है । यों ऊपर से अच्छा दिखता है । अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अंगूठे के नीचे तला फट गया है । अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है । पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी । तुम्हारी अंगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है । मेरी अंगुली ढंकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है । तुम परदे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।

प्रश्न 1.
लेखक और प्रेमचंद के जूतों में क्या अंतर है ?
उत्तर :
लेखक का जूता ऊपर से अच्छा दिखता है, किन्तु अँगूठे के नीचे तला घिसकर फट गया है । प्रेमचंद के जूतों में अंगूठे के पास फटा हुआ है और उसमें से अँगुलियाँ बाहर निकल आई हैं । प्रेमचंद का जूता फटा दिखता है, पर परसाई जी नहीं ।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

प्रश्न 2.
लेखक ने प्रेमचंद के जूते को अपने जूते से बेहतर क्यों माना है ?
उत्तर :
लेखक के जूते नीचे से घिस गये थे । नीचे का तल्ला फट गया था । उसमें अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान हो जाता था । प्रेमचंद के जूते में से केवल अँगुली दिखती है किन्तु पाँच सुरक्षित हैं । इसलिए लेखक ने प्रेमचंद के जूते को अपने जूते से बेहतर माना है । प्रेमचंदजी के जूते का फटना दिखता तो है, इसलिए यह बेहतर है ।

मैं तुम्हारा जूता फिर देखता हूँ । कैसे फट गया यह, मेरी जनता के लेखक ? क्या बहुत चक्कर काटते रहे ? क्या बनिये के तगादे से बचने के लिए मील-दो मील का चक्कर लगाकर घर लौटते रहे ? चक्कर लगाने से जूता फटता नहीं है, घिस जाता है । कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी जाने-आने में घिस गया था। उसे बड़ा पछतावा हुआ । उसने कहा – ‘आवत जात पन्हैया घिस गई, बिसर गयो हरि नाम ।’

प्रश्न 1.
लेखक के मुताबिक प्रेमचंद का जूता कैसे फटा होगा ?
उत्तर :
लेखक के मुताबिक प्रेमचंद का जूता कई कारणों से फटा होगा। या तो उन्होंने बहुत चक्कर काटा होगा, या बनिए की तगादे से बचने के लिए मील-दो मील का चक्कर लगाकर घर लौटते होंगे। या मार्ग के टीले को बार-बार ठोकर मारने से जूता फट गया होगा ।

प्रश्न 2.
कुंभनदास का जूता कैसे फटा था ? उन्हें क्यों पछतावा हुआ ?
उत्तर :
बादशाह अकबर ने कुंभनदास को बुलाया था इसलिए अकबर से मिलने थे पैदल ही फतेहपुर सीकरी गये थे । आने-जाने में उनका जूता घिस गया था । आवा जाही में ईश्वर का नाम स्मरण करना भूल गये । उन्हें इस बात का पछतावा था ।

प्रश्न 3.
‘पन्हैया’, ‘बिसर’ शब्द का अर्थ लिखिए ।
उत्तर :
पन्हैया – जूता
बिसर – भूल जाना

चलने से जूता घिसता है, फटता नहीं । तुम्हारा जूता कैसे फट गया ? मुझे लगता है, तुम किसी सख्त चीज़ को ठोकर मारते रहे हो । कोई चीज़ जो परत-पर-परत रादियों से जग गई है, उसे शायद तुमने ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया । कोई टीला जो रास्ते पर खड़ा हो गया था, उस पर तुमने अपना जूता आज़माया । तुम उसे बचाकर, उसके बगल से भी तो निकल सकते थे । टीलों से समझौता भी तो हो जाता है । सभी नदियों पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं, कोई रास्ता बदलकर, घूमकर भी तो चली जाती है ।

प्रश्न 1.
प्रेमचंद ने टीले पर अपना जूता क्यों आजमाया ?
उत्तर :
वास्तव में यहाँ टीला शब्द सामाजिक कुप्रथाओं के समूह के लिए प्रयोग किया गया है जो व्यक्ति के विकास में बाधक है । इन सामाजिक कुरीतियों को समाज में से खत्म करने के लिए ही प्रेमचंद ने टीले पर अपना जूता अजमाया होगा ताकि उसे रास्ते से हटाया जा सके ।

प्रश्न 2.
प्रस्तुत गद्यांश में टीला किसका प्रतीक है ?
उत्तर :
प्रस्तुत गद्यांश में टीला समाज में व्याप्त कुप्रथाओं और कुरीतियों से उत्पन्न अवरोध का प्रतीक है जो व्यक्ति व समाज के विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं।

प्रश्न 3.
रास्ता बदलकर जानेवाली नदियाँ किसका प्रतीक हैं ?
उत्तर :
रास्ता बदलकर जानेवाली नदियाँ समझौतावादी लोगों का प्रतीक हैं, ये लोग सामाजिक कुरीतियों, गलत रीतिरिवाजों को देखकर भी अनदेखा कर देते हैं और कतराकर रास्ता बदलकर निकल जाते हैं ।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

तुम्हारी यह पाँव की अंगुली मुझे संकेत करती-सी लगती है, जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो ? तुम क्या उसकी तरफ़ इशारा कर रहे हो, जिसे ठोकर मारते-मारते तुमने जूता फाड़ लिया ? मैं समझाता हूँ । तुम्हारी अँगुली का इशारा भी समझता हूँ और यह व्यंग्य-मुसकान भी समझता हूँ । तुम मुझ पर या हम सभी पर हँस रहे हो, उन पर जो अँगुली छिपाए और तलुआ घिसाए चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकाकर बाजू से निकल रहे हैं ।

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार प्रेमचंद का जूता क्या संकेत करता है ?
उत्तर :
लेखक के अनुसार प्रेमचंद का जूता यह संकेत करता है कि जिसे प्रेमचंद जी घृणा करते हैं, उन्हें वे हाथ की अंगुली से नहीं बल्कि पाँव की अंगुली से इशारा करते हैं ।

प्रश्न 2.
लेखक ने प्रेमचंद की व्यंग्यभरी मुस्कान का क्या अर्थ निकाला ?
उत्तर :
लेखक ने प्रेमचंद की व्यंग्यभरी मुस्कान का यह अर्थ निकाला कि प्रेमचंद स्वयं लेखक पर या हम सभी पर हँस रहे हैं, उन पर जो अँगुली छिपाए और तलुआ घिसाये चल रहे हैं, उन पर हँस रहे हैं । जो टीले को बरकाकर बाजू से निकल रहे हैं अर्थात् समाज में व्याप्त कुरीतियों से बचकर जो रास्ता बदलकर निकल जाते हैं ।

प्रश्न 3.
‘संकेत’ तथा ‘बाजू’ शब्द का अर्थ लिखिए ।
उत्तर :
‘संकेत’ का अर्थ है ईशारा एवं ‘बाजू’ का अर्थ है बगल ।

प्रेमचंद के फटे जूते Summary in Hindi

हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई जी का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गाँव में हुआ था । इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. किया । कुछ दिनों तक अध्यापन करने के बाद आप स्वतंत्र-लेखान के क्षेत्र में आए । हिन्दी साहित्य में हास्य-व्यंग्य को इन्होंने शिष्ट और सम्मानित आसन पर आरुढ़ करवाया।

हिन्दी साहित्य में आप ऐसे पहले कृति व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने व्यंग्य को विधा के रूप में प्रतिष्ठित किया । व्यंग्य विधा को हास्ययाले संचारी भाव से मुक्ति दिलाई और प्रगतिशील साहित्य के सौंदर्य बोध को महत्त्वपूर्ण अवयव-विडंबना और तिरस्कार से जोड़ा । यही कारण है कि कबीर, नजीर, गालिब और निरालावाला विवादी स्वर उनके यहाँ प्रमुखता से उभरा है। आप प्रेमचंद तथा मुक्तबोध की परम्परा को अपनी परंपरा मानते हैं । वर्तमान समाज में फैले भ्रष्टाचार, ढोंग, अवसरवादिता, साम्प्रदायिकता एवं प्रभृति, कुप्रवृत्तियों पर करारा व्यंग्य आपकी रचनाओं में बड़े ही प्रभावशाली ढंग से उभरकर सामने आया है।

इनकी भाषा सरल-सहज, हलकी-फुलकी किंतु तीखी और चुटीली होती है । ‘रानी नागफनी की कहानी’, ‘तट की खोज’ इनके उपन्यास हैं । ‘हंसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’ आपके कहानी संग्रह हैं । ‘अपनी-अपनी बीमारी’, ‘तब की बात और थी’ और ‘सदाचार का तावीज’ आदि आपके प्रसिद्ध निबंध संग्रह हैं । ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ नामक निबन्ध संग्रह पर आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है ।

प्रस्तुत पाठ ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ में लेखक हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंदजी के एक फोटो को देखकर, जिसमें उनके जूते फटे हुए थे, उनके व्यक्तित्व की सादगी, उनकी अंतभेदी सामाजिक दृष्टि का विवेचन किया है और आज के मनुष्य की दिल्याचे की प्रवृत्ति तथा अवसरवादिता पर करारा व्यंग्य किया है । प्रेमचंद जो कथासम्राट, उपन्यास सम्राट के रूप में प्रसिद्ध थे वे कितना सादा जीवन जीते थे, यही इस पाठ का हार्द है ।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

पाठ का सार :

प्रेमचंद का फोटो :

प्रेमचंद का एक फोटो लेखक के सामने है जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ फोटो खिचा रहे हैं । सिर पर मोटे कपड़ों की टोपीकुरता और धोती पहने हैं । कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं । उनके चेहरे पर घनी मूंछ है जो चेहरे को भरा-भरा बनाती हैं ।

प्रेमचंद के जूते :

लेखक की दृष्टि प्रेमचंद के जूतों पर पड़ती है । वे सोच में पड़ जाते हैं कि यदि फोटो की पोशाक ऐसी है तो घर पर कैसे कपड़े पहनते होंगे । लेखक का मानना है कि इनके पास अलग-अलग पोशाकें नहीं होगी । वे जैसे हैं, वैसा फोटो खिचा रहे हैं ।

फटे जूते से अनभिज्ञ प्रेमचंद की मुस्कान :

लेखक सोचते हैं कि प्रेमचंद हमारे साहित्यिक पुरख्ने हैं फिर भी उन्हें फोटो खिचाते समय यह पता नहीं है कि उनका जूता फट गया है और अँगुली बाहर से दिख रही है । उन्हें इसका जरा भी अहसास नहीं है । वे तनिक भी लज्जा या संकोच का अनुभव नहीं करते हैं । बल्कि उनके चेहरे पर बेपरावही के साथ विश्वास है । फोटोग्राफर के ‘रेडी प्लीज़’ कहने पर थोड़ी मुस्कान लाने की कोशिश की होगी । उस मुस्कान के पीछे उनका गहरा दर्द छिपा होगा । यह मुस्कान नहीं, इसमें उपहास है व्यंग्य है ।

जूते न होना एक ट्रेजेडी :

लेखक का मानना है कि प्रेमचंदजी को फोटो खिचाना था तो ठीक जूते पहन लेते, या फिर फोटो न विचवाते । शायद पत्नी के आग्रह पर फोटो खिंचवाने बैठ गये होंगे । प्रेमचंद इतने बड़े रचनाकार थे, उनके पास पहनने के लिए जूते तक नहीं हैं । वास्तव में यह एक ट्रेजेडी ही है । अगर फ़ोटो खिंचवाना ही था तो किसी से जूते मांगकर भी फोटो खिंचवाया जा सकता है । लोग वस्तुएँ न होने पर भी उधार मांग कर अपना काम चलाते हैं । लेखक व्यंग्य करते हैं कि फोटो खिंचाने के लिए लोग बीबी तक उधार मांग लाते हैं ।

प्रेमचंद का फटा जूता देखकर लेखक को बहुत दुःख होता है । वे उस युग में महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक कहलाते थे, मगर फोटो में उनका जूता फटा हुआ है ।

लेखक का जूता :

हरिशंकर परसाई स्वयं लिखते हैं कि उनके जूते की स्थिति भी ठीक नहीं है । वह ऊपर से ठीक दिखता है किन्तु नीचे से घिरा गया है । इससे चलते समय अँगूठा जमीन से रगड़कर लहूलुहान हो जाता है । लेखक की अंगुली ऊपर से तो ढकी है, पर पंजा लगातार घिस रहा है । लेखक कहते हैं कि प्रेमचंद परदे का महत्त्व नहीं जानते और वे परदे पर कुर्बान हो रहे हैं । लेखक कहते हैं कि इस स्थिति में मैं फोटो कभी भी न खिंचवाऊ, चाहे कोई जीवनी बिना फोटो के ही छाप दे ।

प्रेमचंद के व्यंग्यभरी मुस्कान का अर्थ :

लेखक कहते हैं कि प्रेमचंद की व्यंग्यभरी मुस्कान उनके हौसले पस्त कर देती है । ये उस मुस्कान का अर्थ जानना चाहते हैं । वे पूछते हैं कि कौन-सी मुस्कान है यह – क्या होरी का गोदान हो गया ? क्या पूस की रात में नीलगाय हलकू का खेत चर गई ? क्या सुजान भगत का लड़का मर गया; क्योंकि डॉक्टर क्लब छोड़कर नहीं आ सका ? नहीं, मुझे लगता है कि माधो औरत के कफन के चंदे की शराब पी गया । वही मुस्कान मालूम होती है ।

जूते फटने के संभावित कारण :

लेखक पुनः जूते देखने लगते हैं और सोच में पड़ जाते हैं कि यह जूता फटा कैसे ? क्या प्रेमचंद ने बहुत चक्कर काटा होगा? या बनिये के तगादे से बचने के लिए मील – दो मील का चक्कर लगाकर घर लौटते रहे होंगे ? किन्तु चक्कर लगाने से जूता फटता नहीं, घिस जाता है । लेखक को लगता है कि प्रेमचंद जी किसी सख्त चीज़ को ठोकर मारते रहे होंगे ।

ठोकर मार-मार कर उन्होंने अपना जूता फाड़ लिया होगा । शायद प्रेमचंद ने सदियों से जमे किसी टीले (अवरोध) पर ठोकर मारी हो और जूता फट गया हो । पर टीले से बचकर भी निकला जा सकता है । शायद प्रेमचंदजी नेम-धरम के धक्के थे और वे समझौता न कर सके । तुम्हारी मुस्कान से लगता है कि यह नेम-धरम तुम्हारे लिए बंधन नहीं मुक्ति है ।

प्रेमचंद के पाँव की उँगली का संकेत :

फटे जूते से बाहर झांकनेवाली अंगुली लेखक को संकेत करती है कि जिसे वे घृणा करते थे, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँच की अँगुली से इशारा करते रहे होंगे । क्या ये उसकी तरफ इशारा कर रहे थे, जिसे ठोकर मारते – मारते तुमने जूता फाड़ लिया ? लेखक कहते हैं कि वे प्रेमचंद की अंगुली का इशारा भी समझते हैं और यह व्यंग्य-मुस्कान भी ।

वे कहते हैं कि प्रेमचंदजी तुम मुहा पर या हम सभी पर हँस रहे हो, उन पर जो अँगुली छिपाए और तलुआ घिसाए चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकाकर बाजू से निकल रहे हैं । ऐसे लोग अपना नुकसान ज्यादा करते हैं । अंत में लेख्नक कहते हैं कि वे प्रेमचंद के फटे जूते, अँगुली का इशारा और, व्यंग्य-मुस्कान को समझ गये हैं ।

GSEB Solutions Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

मुहावरे और उनके अर्थ :

  • न्योछावर होना – बलिदान कर देना
  • कुर्बान होना – स्वयं को न्योछावर कर देना
  • हौसले पस्त करना – हताश या निराश होना
  • लहूलुहान होना – रक्तरंजित होना
  • चक्कर काटना – मँडराना; चारों ओर घूमना
  • ठोकर मारना – तुकरा देना
  • पहाड़ फोड़ना – मेहनत का काम
  • टीला खड़ा होना – बीच में रूकावट डालना
  • संकेत करना – इशारा करना

शब्दार्थ :

  • कनपटी – कान के पास का भाग
  • केनवस – एक प्रकार का मोटा कपड़ा जिससे जूते, टेंट आदि बनते है
  • चेतरतीब – बिना ढंग के बंद
  • पतरी – नुकीला, धारदार हिस्सा
  • पोशाक – वस्त्र
  • पुरख्खे – पूर्वज
  • अहसास – महसूस
  • संकोच – झिझक
  • झेप – शर्म
  • बेपरावाही – बिना परवाह किए
  • विचित्र – अनोख्री
  • उपहास – मजाक
  • ट्रेजडी – दुःखपूर्ण
  • क्लेश – दुःख
  • इन – सुगन्धित पदार्थ
  • आनुपातिक मूल्य – तुलनात्मक दाम
  • विडंबना – दुर्भाग्य
  • कथाकार – कहानी, उपन्यास आदि का लेखक
  • युग प्रवर्तक – किसी समय विशेष को अपनी सोच और विचारधारा से प्रभावित करनेवाला,
  • पैनी – तेज
  • लहूलुहान – खून से सना हुआ
  • ठाठ – सुख
  • जीवनी – जीवन चरित्र
  • गोदान – गाय का दान
  • पूस – एक महीना, जिसमें अत्यधिक सर्दी पड़ती है
  • बनिया – व्यापारी, आटा-दाल आदि बेचनेवाला
  • तगादा – मांगना
  • आवत-जात – आते-जाते
  • पन्हैया – जूते
  • बिसर गयो – भूल गया
  • हरि – भगवान
  • उपजत है – उत्पन्न होता है
  • तिनको – उनको
  • करबो परै – करना पड़ा
  • सख्त – कठोर
  • टीला – मिट्टी या बालू का ऊँचा ढेर (यहाँ अवरोध)
  • नेम-धरम – नियम-धर्म
  • जंजीर – बेड़ियाँ
  • मुक्ति – आजादी
  • तलुआ – पैर के नीचे का चिपटा अंश
  • बरकाकर – बचाकर
  • बाजू – बगल।

Leave a Comment

Your email address will not be published.