Gujarat Board GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 10 अनेकार्थसप्तकम् Textbook Exercise Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 10 अनेकार्थसप्तकम्
GSEB Solutions Class 11 Sanskrit अनेकार्थसप्तकम् Textbook Questions and Answers
अनेकार्थसप्तकम् Exercise
1. अधोलिखितेभ्यः विकल्पेभ्यः समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत।
પ્રશ્ન 1.
पुल्लिङ्गस्य ‘क’ शब्दस्य कति अर्थाः सन्ति?
(क) सप्त
(ख) पञ्च
(ग) चत्वारः
(घ) दश
उत्तर :
(क) सप्त
પ્રશ્ન 2.
पुल्लिङ्गस्य अजशब्दस्य कः अर्थः अस्ति?
(क) अश्वः
(ख) कामदेवः
(ग) शङ्खः
(घ) छागः
उत्तर :
(ख) कामदेवः
પ્રશ્ન 3.
अर्धे अर्थे अयमव्ययः वर्तते।
(क) भृशम्
(ख) अपि
(ग) अयि
(घ) सामि
उत्तर :
(घ) सामि
પ્રશ્ન 4.
भूः शब्दस्य पर्यायः नास्ति।
(क) धरा
(ख) रसा
(ग) पृथ्वी
(घ) क्षितीशः
उत्तर :
(घ) क्षितीश:
પ્રશ્ન 5.
प्ररोहति – इत्यस्य कः अर्थः?
(क) भवति
(ख) विद्यते
(ग) उद्भवति
(घ) अनुभवति
उत्तर :
(ग) उद्भवति
2. Answer the following questions in mother-tongue:
Question 1.
What are the meanings of the word क used in masculine gender?
उत्तर :
क शब्द पुल्लिंग में ब्रह्मा, आत्मा, रवि, मयूर, अग्नि, यम एवं अनिल इन सात अर्थों में प्रयुक्त होता है।
Question 2.
Why is the word अब्ज used for Dhanvantari and moon?
उत्तर :
अब्ज शब्द पुल्लिंग मे होने पर धन्वन्तरी एवं चन्द्र के अर्थ में प्रयुक्त होता है।
Question 3.
In what situation the word निगरण means food/dinner and throat?
उत्तर :
निगरण शब्द का पुल्लिंग में प्रयोग करने पर उसका अर्थ गला होता है तथा नपुंसक लिंग में प्रयोग करने पर उसका अर्थ भोजन होता है।
Question 4.
Give an idea of difference in meaning of the word अयि and अये.
उत्तर :
अयि अव्ययपद का प्रयोग प्रश्न पूछने के अर्थ में तथा अनुनय-विनय करने के अर्थ में किया जाता है। अये अव्ययपद का प्रयोग क्रोध एवं विषाद-शोक व्यक्त करने के अर्थ में किया जाता है।
Question 5.
Which root verbs are used to say जन्म-क्रिया?
उत्तर :
जन्म-क्रिया की अभिव्यक्ति हेतु उत्पद्यते जायते, प्ररोहति एवं उद्भवति इन क्रियाओं का क्रमश: उत् + पद्द धातु, जन् धातु, प्र + रूह धातु उद्द + भू धातु इन धातुरूपों का प्रयोग किया जाता है।
3. Write a critical note on:
પ્રશ્ન 1.
Change in the meaning of a word with the change in gender.
उत्तर :
संस्कृत भाषा में किसी शब्द के लिंग परिवर्तन होने पर उसके अर्थ में भी परिवर्तन हो जाता है। एक ही शब्द का लिंग परिवर्तन होने पर भिन्न पदार्थों की संज्ञा के रूप में भिन्न-भिन्न अर्थों में उस शब्द का प्रयोग किया जाता है।
पाठ्य-पुस्तक के अनेकार्थ – सप्तकम् नामक पद्य पाठ में लिंगभेद के परिणामस्वरूप होनेवाले अर्थ भेद के कुछ उदाहरण प्रस्तुत किए गए है। इस पद्य पाठ में प्रथम चार पद्य हेमचन्द्राचार्य रचित अनेकार्थ संग्रह से उद्धृत किए गए हैं।
अनेकार्थ संग्रह में ऐसे अनेक उदाहरण दिए गए हैं जिनमें से कुछ उदाहरणों का प्रयोग पाठ्यपुस्तक में किया गया है। पाठ्यपुस्तक में प्रदत्त उदाहरणों के अनुसार निगरण शब्द का प्रयोग पुल्लिंग में निगरण: गले के संदर्भ में तथा नपुंसक लिंग में निगरणम् के रूप में भोजन के अर्थ में किया जाता है।
इसी प्रकार अब्ज: पुल्लिंग शब्द का प्रयोग धन्वन्तरी शंख व चंद्र के अर्थ में तथा अब्जम् – नपुंसकलिंग शब्द का प्रयोग कमल एवं संख्या अरब (एक के पश्चात् नव शून्यों के प्रयोग से बननेवाली संख्या) के अर्थ में होता है। इस भाँति क: पुल्लिंग शब्द के अर्थ होते हैं।
ब्रह्मा, आत्मा, रवि, मयूर, अग्नि यम एवं अनिल तथा इसी क शब्द के नपुंसकलिंग में प्रयोग करने पर अर्थ होते हैं शीष, जल एवं सुख। इसके अतिरिक्त मित्र शब्द का पुल्लिंग में प्रयोग करने पर अर्थ होता है सूर्य एवं नपुंसकलिंग में यह मित्र सुहृद के रूप में प्रयुक्त होता है।
પ્રશ્ન 2.
Meanings of Aja अज
उत्तर :
भाषा में प्रयुक्त संज्ञा शब्द यौगिक, रूढ, योगरूढ एवं यादृच्छिक चार प्रकार के माने जाते हैं। ये अर्थों का निर्धारण करने में महत्त्व की भूमिका का निर्वहन करते हैं। उदाहरणतया अज: पद का जब यौगिक पद माना जाता है, तब न जायते सः – अजः अर्थात् जो उत्पन्न नहीं होता है – वह।
इस प्रकार यह शब्द विष्णु के अर्थ में भी प्रयुक्त होता हैं। विष्णु कभी उत्पन्न नहीं हुए हैं। वे तो नित्य हैं। इस प्रकार भगवान् विष्णु के लिए इस शब्द का प्रयोग होता है। अज शब्द को रुढ मानने पर उसका अर्थ होता है ‘बकरा’।
इस प्रकार अज: पद को यादृच्छिक मानने पर इसका अर्थ होता है सूर्यवंश के महाराजा रघु के पुत्र अज। माता-पिता की इच्छानुसार किये गये नामकरण संस्कार के कारण यह व्यक्ति के नाम का वाचक अज शब्द यादृच्छिक कहा जाता है। इस प्रकार संस्कृत भाषा का एक शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है।
પ્રશ્ન 3.
Different meanings of कः
उत्तर :
संस्कृत भाषा की एक मुख्य विशेषता यह है कि संस्कृत भाषा की वर्णमाला का प्रत्येक वर्ण अर्थपूर्ण है। संस्कृत भाषा वैज्ञानिक भाषा है। इस भाषा का एक भी वर्ण ऐसा नहीं है जो निरर्थक हो। अत एव कहा गया है – अमन्त्रमक्षरो नास्ति। संस्कृत भाषा का एक भी वर्ण ऐसा नहीं है जो मन्त्रमय न हो।
अतः प्रत्येक वर्ण तत्तद् अर्थों में प्रयुक्त होता है। उन अर्थों का निर्देशक शब्दकोष भी संस्कृत भाषा में विद्यमान है। एक वर्ण की अनेकार्थकता के वै शिष्ट्य के कारण ऐसे काव्य भी संस्कृत भाषा में विद्यमान हैं जिनमें मात्र एक वर्ण के प्रयोग से सम्पूर्ण पद्य की रचना की गई है।
संस्कृत भाषा के इस वैशिष्ट्य के कुछ उदाहरण अनेकार्थसप्तकम् नामक पद्य पाठ में प्रस्तुत किए है। पाठ्य-पुस्तक में प्रदत्त उदाहरण के अनुसार कः शब्द के पुल्लिंग में प्रयोग करने पर इसके भिन्न-भिन्न सात अर्थ होते है।
यह शब्द रवि, मयूर, अग्नि, ब्रह्मा, आत्मा यम एवं अनिल (वायु) के अर्थ प्रयुक्त होता है तथा नपुंसक लिंग में कम् शब्द शीष, जल एवं सुख इन तीन अर्थों में प्रयुक्त है।
પ્રશ્ન 4.
Words used for the earth.
उत्तर :
पाठ्यपुस्तक में ‘अनेकार्थ सप्तकम्’ नामक पद्य-पाठ में पृथ्वीवाचक शब्दों का संग्रह प्रस्तुत किया है। संस्कृत भाषा के कोषग्रन्थ, अमरकोष से पृथ्वी के पर्याय शब्दों को चयन कर यहाँ उद्धृत किया गया है।
पद्य पाठ में प्रदत्त पृथ्वी के पर्याय शब्द हैं :
- भूः
- भूमि:
- अचला
- अनन्ता
- रसा
- विश्वम्भरा
- स्थिता
- धरा
- धरित्री
- धरणि
- क्षोणिः
- ज्या
- काश्यपी
- क्षिति
- सर्वसहा
- वसुमती
- वसुधा
- ऊर्वी
- वसुन्धरा
- गोत्रा
- कु:
- पृथिवी
- पृथ्वी
- ६मा
- अवनि:
- मेदनी
- मही।
इस प्रकार पाठ में प्रदत्त के कुल 27 शब्द पृथ्वी के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य शब्द भी पृथ्वी के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होते है। पृथ्वी को विष्णु-पत्नी भी कहा जाता है। इस प्रकार किसी वस्तु या व्यक्ति के लक्षण, आकार, प्रकार, कुल आदि का अवलोकन करते हुए भिन्न-भिन्न पर्याय शब्दों का निर्माण किया जाता है। जैसे एक ही भू भाग पर स्थिर रहने के कारण पृथ्वी को अचला एवं स्थिता कहा जाता है।
अन्तहीन होने के कारण यह अनन्ता है। वसु अर्थात् धन-ऐश्वर्य से युक्त होने के कारण इसे वसुधा, वसुमती, वसुन्धरा कहा जाता है। रस-युक्त होने के कारण रसा तथा धारण करने के कारण धरा, धरित्री, धरणि एवं विश्वभर का पोषण करने के कारण इसे विश्वम्भरा कहा जाता है।
पक्षियों के कलरव से युक्त है अतः क्षोणि तथा वय की हानि-कीं होने के कारण ज्या तथा कश्यप ऋषि से सम्बद्ध होने के कारण काश्यपी एवं महाराज पृथु से सम्बद्ध होने के कारण पृथ्वी, पृथिवी कहा जाता है। इस प्रकार संस्कृत भाषा में शब्द-रचना का वैशिष्ट्य अत्यन्त सरल एवं अद्भुत है।
4. Write analytical note on:
(1) Yaugika word.
यौगिक शब्द :
संस्कृत भाषा में संज्ञा शब्द रचना के चार प्रकार मुख्य है। यौगिक, रूढ, योग-रुढ एवं यादृच्छिक ये चार प्रकार शब्द रचना के क्रम को प्रकट करते हैं। यौगिक शब्द के लिए हम व्युत्पत्ति-परक शब्द का प्रयोग कर सकते हैं। उदाहरणतया अज शब्द का अर्थ विष्णु हैं।
यौगिक या व्युत्पत्ति की दृष्टि से अज शब्द का अर्थ है – न जायते यः सः – अजः। इसका आशय है जिसका जन्म नहीं होता है वह अज। अज शब्द में प्रथम वर्ण अकार है जो प्रायः नकारात्मक अर्थ में प्रयुक्त होता है। द्वितीय वर्ण जकार है जिसका अर्थ है जन्म लेना या जन्म लेनेवाला।
इस प्रकार ऊपर दर्शित व्याख्या के अनुसार जिसका जन्म नहीं होता है वह। अतः अज शब्द विष्णु के लिये प्रयुक्त होता है क्योंकि विष्णु का जन्म नहीं होता है वे नित्य हैं। अतः यौगिक दृष्टि से शब्दों की रचना का ज्ञान होता है।
(2) Meanings of indeclinable word अयि
अयि अव्यय की अर्थच्छटा :
संस्कृत भाषा में प्रयुक्त अव्यय भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त होते हैं। अव्यय पदों का कभी किसी भी अन्य रूप में परिवर्तन नहीं होता है। अयि अव्यय का प्रयोग प्रश्न पूछने के सन्दर्भ में किया जाता है तथा अनुनय विनय करने के लिए किया जाता है।
(3) Names of earth based on वसु
वसु आधारित पृथ्वी के नाम :
वसु शब्द का अर्थ है धन समृद्धि ऐश्वर्य। धन-ऐश्वर्य अर्थात् वसु से युक्त होने के कारण पृथ्वी को वसुमती वसुधा एवं वसुन्धरा कहा जाता है। पृथ्वी के ये तीन नाम वसुधा वसुमती एवं वसुन्धरा इस अर्थ के द्योतक हैं कि पृथ्वी वसु को धारण करती है।
Sanskrit Digest Std 11 GSEB अनेकार्थसप्तकम् Additional Questions and Answers
अनेकार्थसप्तकम् स्वाध्याय
1. अधोलिखितेभ्य: विकल्पेभ्यः समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत।
પ્રશ્ન 1.
मही शब्दस्य पर्याय-शब्दः कः?
(क) पृथ्वी
(ख) भृशम्
(ग) निगरणम्
(घ) शल:
उत्तर :
(क) पृथ्वी
પ્રશ્ન 2.
विष्णुः शब्दस्य का पर्याय:?
(क) अब्जः
(ख) अब्जम्
(ग) अजः
(घ) गलः
उत्तर :
(ग) अजः
પ્રશ્ન 3.
नपुंसक-लिङ्गस्य क शब्दस्य कति अर्थाः?
(क) त्रयः
(ख) चत्वारः
(ग) पञ्च
(घ) षट्
उत्तर :
(क) त्रयः
પ્રશ્ન 4.
अब्जम् शब्दस्य अर्थम् किम्?
(क) चन्द्रः
(ख) शङ्खः
(ग) पद्म
(घ) हरः
उत्तर :
(ग) पद्म
પ્રશ્ન 5.
अब्ज: शब्दस्य कः अर्थः नास्ति?
(क) शवः
(ख) चन्द्रः
(ग) यमः
(घ) धन्वन्तरी
उत्तर :
(ग) यमः
2. निम्न प्रश्नों का उत्तर मातृभाषा में दीजिए।
પ્રશ્ન 1.
क शब्द के नपुंसकलिंग में प्रयुक्त होने पर क्या-क्या अर्थ होते हैं?
उत्तर :
क शब्द के नपुंसकलिंग में प्रयुक्त होने पर शीश, जल एवं सुख ये तीन अर्थ होते हैं।
अनेकार्थसप्तकम् Summary in Hindi
सन्दर्भ : संस्कृत साहित्य में एक लोकोक्ति प्रसिद्ध है अष्टाध्यायी जगन्माता अमरकोषः जगत्पिता। अर्थात् अष्टाध्यायी विश्व की माता है एवं अमरकोष विश्व के पिता हैं। अष्टाध्यायी व्याकरण का ग्रन्थ है तथा अमरकोष कोषग्रन्थ है।
संस्कृत-भाषा-शिक्षण रूपी विश्व में जो कोई भी प्रवेश करता है उसके लिए अष्टाध्यायी माता की भाँति है एवं अमरकोष पिता की भाँति सहायक होता है। प्राचीन परंपरा में संस्कृत-शिक्षण का प्रारंभ इन दोनों ग्रन्थों के अध्ययन से किया जाता था।।
व्याकरण के द्वारा भाषा में शब्द का व्युत्पत्ति से संबद्ध शब्द-रचना के विषय का ज्ञान होता है तथा कोष के द्वारा किसी शब्द का प्रासंगिक अर्थ-बोध होता है। इस स्थिति में संस्कृत भाषा-शिक्षण हेतु व्याकरण के अध्ययन की व्यापकता होती है। यह स्वाभाविक ही है तथापि कोष-ग्रन्थ का अध्ययन भी प्रासंगिक बन जाता है।
इस विषय का गहनावलोकन करते हुए इस पाठ में प्रथम चार पद्य आचार्य हेमचन्द्राचार्य द्वारा रचित अनेकार्थ संग्रह में से तथा पाँचवा एवं छठा पद्य अमरसिंह द्वारा रचित अमरकोष में से तथा अन्तिम पद्य भट्टमल्ल-विरचित आख्यानचन्द्रिका में से लिया गया है। ये तीनों ही संस्कृत के सुप्रसिद्ध कोष-ग्रन्थ है।
पाठ में प्रयुक्त प्रथम पद्य में क वर्ण के विविध – अर्थों का संग्रह है। द्वितीय पद्य में एक शब्द अज के अनेकार्थ दर्शाए गए . है। तृतीय पद्य में लिंग-परिवर्तन के कारण होनेवाले अर्थ-परिवर्तन का उदाहरण देता है। चतुर्थ पद्य में संभाषण के संदर्भ में प्रयुक्त अव्ययपद किस प्रकार अर्थभेद से युक्त होते हैं यह समझाया गया है। पंचम एवं छठे पद्य में संस्कृत भाषा में प्रयुक्त पृथ्वी के इक्कीस पर्याय-शब्दों का संग्रह किया गया है।
एतदुपरान्त संस्कृत भाषा में पृथ्वी के अन्य ग्यारह और पर्याय शब्दों का प्रयोग होता है। इस प्रकार संस्कृत भाषा में कुल तैंतीस शब्दों का प्रयोग पृथ्वी के पर्याय शब्दों के रूप में किया जाता है। अन्तिम एवं सप्तम पद्य में क्रियापद के भिन्न-भिन्न अर्थों को संस्कृत कोषकार किस प्रकार प्रयोग करते हैं इस विषय का उदाहरण प्रस्तुत किया है।
इस पाठ के अध्ययन से कालान्तर में अस्तित्व में आनेवाले पदार्थों के नामकरण करने की संस्कृत भाषा की पद्धति का ज्ञान भी हो सकेगा। पाठ में प्रयुक्त सभी पद्य अनुष्टुप छन्द में हैं।
अन्वय, शब्दार्थ एवं अनुवाद
1. अन्वय : लोकवेदयो: का ब्रह्मणि, आत्मनि रवौ, मयूरे, अग्नौ, यमे, अनिले च कं एवं शीर्षे, अप्सु, सुख्ने युज्यते।
शब्दार्थ : लोकवेदयोः = लौकिक और वैदिक संस्कृत में। कः (पुं.) क वर्ण। ब्रह्मणि = ब्रह्मा के अर्थ में। आत्मनि = आत्मा के अर्थ में। खौ = रवि-सूर्य के अर्थ में। मयूरे = मयूर के अर्थ में, अग्नौ = अग्नि के अर्थ में। यमे = यम के अर्थ में। अनिले = वायु के अर्थ में। कम् – (नपुंसक लिंग) – क वर्ण। शीर्षे = शीश – सिर के अर्थ में। अप्सु = पानी के अर्थ में – ‘अप्’ शब्द बहुवचन में प्रयुक्त होता है, अतः यहाँ सप्तमी-विभक्ति, बहुवचन का प्रयोग किया गया है। सुख्खे = सुख के अर्थ में। युज्यते = प्रयुक्त होता है।
अनुवाद : लौकिक एवं वैदिक संस्कृत में पुल्लिंग क वर्ण का प्रयोग ब्रह्मा के अर्थ में, आत्मा के अर्थ में, सूर्य के अर्थ में, मयूर, अग्नि, यम एवं वायु. के अर्थ में तथा नपुंसक लिंग क वर्ण का प्रयोग शीष, जल और सुख के अर्थ में किया जाता है।
2. अन्वय : अज: छागे, हरे, विष्णौ, रघुजे, वेधसि, स्मरे, अब्ज: धन्वन्तरौ, चन्द्रे, शळे अन्जम् पद्म-सङ्ख्ययोः (प्रयुज्यते)।
शब्दार्थ : अजः = अज शब्द। छागे = बकरे के अर्थ में, हरे = हर – शिव के अर्थ में। रघुजे = रघु से जन्मे उनके पुत्र – अज – के अर्थ में। वेधसि = ब्रह्मा के अर्थ में। स्मरे = कामदेव के अर्थ में। अन्ज: = पुं. शब्द – अब्ज शब्द। धन्वन्तरौ = धन्वन्तरी के अर्थ में। शो = शंख के अर्थ में। अब्जम् – अब्ज नपुं. शब्द। पद्मसङ्ख्ययोः = कमल एवं संख्या – (एक के पश्चात् नव शून्य रखने पर बननेवाली संख्या) के अर्थ में।
अनुवाद : अज शब्द का प्रयोग बकरे, शिव, विष्णु, रघु-पुत्र – (अज), ब्रह्मा एवं कामदेव के अर्थ में तथा अब्ज-पुल्लिंग-शब्द धन्वन्तरी, चन्द्र एवं शङ्ख के अर्थ में तथा अब्ज नपुंसक लिंग शब्द का प्रयोग कमल एवं संख्या (एक के पश्चात् नव शून्य रखने पर निर्मित संख्या) के अर्थ में किया जाता है।
3. अन्वय : निरूपणम् विचारावलोकनयो: निदर्शने, निगरणम् भोजने पुन: निगरण: गले स्यात्।
शब्दार्थ : निरूपणम् = निरूपण शब्द। विचारावलोकनयोः = विचार करना एवं अवलोकन करना, जाँच करना इन दो अर्थों में। निदर्शने = निदर्शन, निश्चित रूप से देखने या दिखाने के अर्थ में। निगरणम् = निगरण, नपुं. लिंग का शब्द। भोजने = भोजन के अर्थ में। निगरणः = निगरण पुल्लिंग शब्द। गले = गले के अर्थ में।
अनुवाद : निरुपण नपुं. लिंग शब्द का प्रयोग विचार, देखने – जाँचने एवं निश्चित रूप से देखने या दिखाने के अर्थ में तथा निगरण नपुं. लिंग शब्द का प्रयोग भोजन के अर्थ में तथा निगरण – पुं. शब्द का प्रयोग गले के अर्थ में किया जाता है।
4. अन्वय : भृशं प्रकर्षे, अत्यर्थे च सामि तु अर्धे, जुगुप्सिते (च) अयि प्रश्ने अनुनये, अये क्रोधविषादयोः स्यात्।
शब्दार्थ : भृशम् = यह एक अव्यय-पद है। प्रकर्षो = प्रकर्ष अर्थात् अधिकता, उत्कृष्टता के अर्थ में। अत्यर्थे = अति अर्थात् अत्यधिक होने के अर्थ में। सामि = यह एक अव्यय-पद है। अर्धे = आधा (सौ का दूसरा भाग अथवा सम्पूर्ण का आधा भाग) जुगुप्सिते = निंदनीय के अर्थ में। अयि = यह एक अव्ययपद हैं। प्रश्ने = प्रश्न करने के संदर्भ में। अनुनये = अनुनय – विनय करने के संदर्भ में। अये = यह एक अव्यय है। क्रोधविशादयोः = क्रोध एवं विषाद – शोक व्यक्त करने के संदर्भ में।
अनुवाद : भृशम् अव्यय शब्द का प्रयोग उत्कृष्टता, अधिकता एवं अति अर्थात् अत्यधिकता के अर्थ में तथा सामि अव्यय पद का प्रयोग आधे (सौ के द्वितीय भाग के रूप में या सम्पूर्ण के आधे) के अर्थ में तथा जुगुप्सा अर्थात् निन्दा के अर्थ में प्रयोग होता है। अयि अव्ययपद का प्रयोग प्रश्न पूछने के अर्थ में तथा अनुनय-विनय करने के संदर्भ में एवं अये अव्यय-पद का प्रयोग क्रोध तथा विषाद – शोक व्यक्त करने के संदर्भ में किया जाता है।
5. अन्वय : भूः, भूमिः, अचला, अनन्ता, रसा, विश्वम्भरा, स्थिता, धरा, धरित्री, धरणिः, क्षोणिः, ज्या, काश्यपी क्षितिः।।
शब्दार्थ : अचला = विचलित न होनेवाली। अनन्ता = अंत रहित। रसा = रसों से युक्त, रसों को धारण करनेवाली – पृथ्वी। विश्वम्भरा = विश्व का भरण-पोषण करनेवाली पृथ्वी। स्थिता = स्थिर रहनेवाली – पृथ्वी। धरा = धारण करनेवाली – पृथ्वी, . धर अर्थात्, पर्वत, पर्वतों को धारण करने के कारण पृथ्वी को धरा साथ ही समस्त विश्व को धारण करने के कारण पृथ्वी को – धरित्री, धरणि भी कहा जाता है। क्षोणि: = पक्षियों को कलरव करानेवाली – पृथ्वी। ज्या = वय की हानि करानेवाली – पृथ्वी। काश्यपी = (कश्यप मुनि की है अतः) पृथ्वी। क्षितिः = (निवास-स्थली होने के कारण) धरती।
अनुवाद : भू भूमि, अचला, अनन्ता, रसा, विश्वम्भरा, स्थिता, धरा, धरित्री, धरणि, क्षोणि, ज्या, काश्यपी एवं क्षिति हैं। (अर्थात् ये सभी पृथ्वी के पर्याय-शब्द हैं।)
6. अन्वय : सर्वंसहा वसुमतिः, वसुधोर्वी, वसुन्धरा, गोत्रा, कु:, पृथिवी, पृथ्वी, क्षमा, अवनि:, मेदनी, मही (अस्ति)।
शब्दार्थ : सर्वंसहा = सबकुछ सहन करनेवाली पृथ्वी। वसुमती = वसु अर्थात् धन-ऐश्वर्य, अतः वसु से युक्त अथवा वसु को धारण करने के कारण पृथ्वी को वसुमती, वसुधा एवं वसुन्धरा कहा जाता है। ऊर्वी = विस्तार को धारण करनेवाली – पृथ्वी। गोत्रा = गोत्र – पर्वतों से युक्त – पृथ्वी। कुः = शब्द करनेवाली – पृथ्वी। पृथिवी = विस्तार युक्त है एवं पृथु राजा की संतान रूप होने के कारण भूमि को पृथ्वी भी कहा जाता है। क्ष्मा = सहन करनेवाली है अतः (भूमि)। अवनिः = रक्षण कत्री है अतः (भूमि)। मेदनी = मेद-चरबी युक्त है अतः (भूमि)। मही = जिसमें प्राणियों की पूजा होती है वह (भूमि)।
अनुवाद : सर्वंसहा वसुमति, वसुधा, ऊर्वी, वसुन्धरा, गोत्रा, कु, पृथिवी, पृथ्वी, क्षमा, अवनि, मेदनी (एवं) मही (है।)
7. अन्वय : अथ अस्ति, भवति, विद्यते सत्तायाम् च उत्पद्यते, जायते, च प्ररोहति उद्भवति अपि जन्मनि।
शब्दार्थ : अस्ति = एक क्रियापद। भवति = एक क्रियापद। विद्यते = एक क्रियापद। सत्तायाम् = सत्ता अर्थात् अस्तित्व अथवा होने के भाव में। उत्पद्यते = एक क्रियापद है, जायते – यह एक क्रियापद है। जन्मनि = जन्म के अर्थ में।।
अनुवाद : अस्ति, भवति और विद्यते का प्रयोग सत्ता अर्थात् होने (है, होता है) के अर्थ में और उत्पद्यते, जायते, प्ररोहति (एवं) उद्भवति भी उत्पन्न होने के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं।