Gujarat Board GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 16 रज्जुः भस्म भवत्यिति Textbook Exercise Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 16 रज्जुः भस्म भवत्यिति
GSEB Solutions Class 11 Sanskrit रज्जुः भस्म भवत्यिति Textbook Questions and Answers
रज्जुः भस्म भवत्यिति Exercise
1. अधोलिखितेभ्यः विकल्पेभ्यः समुचितम् उत्तरं चिनुत :
પ્રશ્ન 1.
अहं ………………………………………………… रूप्यकाणां सहस्रं दास्यामि।
(क) तस्य
(ख) त्वाम्
(ग) त्वम्
(घ) तस्मै
उत्तर :
(घ) तस्मै
પ્રશ્ન 2.
मनुष्यः यावत् पुरुषार्थ न करोति तावत् पदार्थस्य निर्माणे ………………………………………………… समर्थो न भवति।
(क) कृतम्
(ख) कृत्वा
(ग) कर्तुम्
(घ) करणीयम्
उत्तर :
(ग) कर्तुम्
પ્રશ્ન 3.
स्थालिकायां स्थापितायां रज्जौ कालिदासः किं प्राक्षिपत् ?
(क) जलम्
(ख) अग्निम्
(ग) भस्म
(घ) गोधूमचूर्णम्
उत्तर :
(ख) अग्निम्
પ્રશ્ન 4.
प्रशान्ते ………………………………………………… कालिदासः भोजं स्थालिकास्थितां रजुम् अदर्शयत।
(क) अग्निम्
(ख) अग्नौ
(ग) अग्निः
(घ) अग्निना
उत्तर :
(ख) अग्नौ
2. संस्कृतभाषया उत्तरत :
પ્રશ્ન 1.
भोजेन भस्मना रज्जुनिर्माणाय कः पुरस्कारः उद्घोषितः ?
उत्तर :
भोजेन भस्मना रज्जुनिर्माणाय सहस्रं रुप्यकाणां पुरस्कारः उद्घोषितः।
પ્રશ્ન 2.
भोजः कालिदासाय किं न्यवेदयत् ?
उत्तर :
भोजः कालिदासाय न्यवेदत् भवानेव साधयतु भस्मना रज्जुः इति।
પ્રશ્ન 3.
कालिदासेन रज्जुः कुत्र स्थापिता ?
उत्तर :
कालिदासेन रज्जुः स्थालिकायां स्थापिता।
પ્રશ્ન 4.
अग्निमयी रज्जुः केन रूपेण परिणमिता ?
उत्तर :
अग्निमयी रज्जुः भस्मत्वेन परिणमिता।
3. Answer in your mother tongue :
Question 1.
What did Bhoja announce in his court ?
उत्तर :
एकबार भोज ने जन-सभा में घोषणा की कि, ‘यदि कोई व्यक्ति भस्म से रज्जु बनाकर मुझे देगा तो मैं उसे हजार रुपये प्रदान करूँगा।
Question 2.
What three different things are required in creation of anything?
उत्तर :
किसी पदार्थ के निर्माणार्थ पदार्थ, पद्धति-ज्ञान और पुरुषार्थ इन तीन वस्तुओं की आवश्यकता होती है।
Question 3.
Which different things are collected by the people to make a rope ?
उत्तर :
लोगों ने राख की रस्सी बनाने के लिए आवश्यक भस्म, जल आदि पदार्थों को एकत्र किया।
Question 4.
Why did the king Bhoja become unhappy at the end of the day?
उत्तर :
दिन के अंत में राजा भोज निराश हुए क्योंकि नागरिकों ने भस्म-जल आदि के द्वारा रस्सी बनाने के लिए बहुत प्रयत्न किए, किन्तु सम्पूर्ण दिन में किए गए सभी प्रयत्न निष्फल हो गए। नागरिक दिनभर पुरुषार्थ करके भी भस्म से रज्जु का निर्माण नहीं कर सके।
अतः राजा भोज की भस्म से बनी हुई रस्सी देखने की इच्छा पूर्ण न हो सकी अतः राजा भोज निराश हो गए।
Question 5.
How did Kalidas make a rope of ash ?
उत्तर :
कालिदास ने एक रज्जु को थाली में रखा तथा उसमें आग लगा दी परिणामस्वरूप रस्सीराख में परिवर्तित हो गई। इस प्रकार कालिदास ने भस्म से रस्सी का निर्माण किया।
4. Write a critical note on:
Question 1.
Attempts of people to make a rope
उत्तर :
राजा भोज के द्वारा राख्न से रस्सी बनाने के लिए घोषणा सुनकर नागरिक राख्न से रस्सी बनाने के लिए प्रयत्न करने लगे।
नागरिकों ने भस्म, जल आदि एकत्र किए तथा आटे से रोटी बनाने की भाँति भस्म से रज्जु बनाने के लिए पुरुषार्थ किया। दिन भर नागरिक प्रयत्नरत रहे किन्तु भस्म से रज्जु-निर्माण करने में असफल रहे। दिन के अंत तक नागरिकों का सम्पूर्ण प्रयत्न व्यर्थ हो गया तथा राजा भोज निराश हो गए।
Question 2.
Trick adopted by Kalidasa to make a ropeof ash
उत्तर :
राख्न की रज्जु के निर्माणार्थ कालिदास ने सर्वप्रथम एक रज्जु ली तथा तत्पश्चात् उसे एक थाली में रखकर उस रज्जु में आग लगा दी। आग के बुझने पर रस्सी राख में परिवर्तित हो गई। इस प्रकार थाली में कालिदास ने राजा भोज को भस्म की रज्जु का दर्शन कराया। परिणामस्वरूप राजा अत्यन्त प्रसन्न हुए तथा उन्होंने कालिदास को सहस्र रुपयों का पुरस्कार भी प्रदान किया।
Question 3.
What moral do we learn from this lesson?
उत्तर :
राजा भोज ने राजसभा में भस्म से रज्जु का निर्माण करने की घोषणा की तथा साथ ही उस कार्य को पूर्ण करनेवाले व्यक्ति को सहस्र रुपयों का पुरस्कार देने की घोषणा की। परिणामस्वरूप नागरिकजन इस पुरुषार्थ में तल्लीन रहे किन्तु सम्पूर्ण दिन का परिश्रम व्यर्थ हो गया।
अन्य दिन राजा ने कालिदास से उपर्युक्त कार्य करने हेतु निवेदन किया। कालिदास ने रज्जु को भस्मीभूत कर भस्म से निर्मित रज्जु का दर्शन महाराज भोज को करवाया। इस प्रकार इस कथा के द्वारा कालिदास स्वयं समस्त नागरिकों को बोध प्रदान करते हैं कि यद्यपि यह लोक प्रवाह के अनुकूल चलता है तथा कार्य सिद्ध करता है किन्तु कभी-कभी यदि उपर्युक्त प्रचलित रूप से कार्य सिद्ध न हो तो प्रवाह के प्रतिकूल भी जाना चाहिए।
समाज को लोक-मान्य प्रवाह के विरुद्ध चलकर कालिदास की तरह भस्म से रज्जु का निर्माण न होने पर रज्जु को जलाकर उसकी भस्म से रस्सी-निर्माण की भाँति अपने स्व-कार्य सिद्ध करने चाहिए।
Sanskrit Digest Std 11 GSEB रज्जुः भस्म भवत्यिति Additional Questions and Answers
रज्जुः भस्म भवत्यिति स्वाध्याय
1. अधोलिखितेभ्य: विकल्पेभ्य: समुचितम् उत्तरं चिनुत।
પ્રશ્ન 1.
जनसभायां केन उद्घोषितम् ?
(क) भोजेन
(ख) कालिदासेन
(ग) जनेन
(घ) बल्लालेन
उत्तर :
(क) भोजेन
પ્રશ્ન 2.
राज्ञः उद्घोषं श्रुत्वा सर्वेनागरिकाः जनाः केन रज्जुं निर्मातुं प्रयत्नरताः।
(क) स्वर्णेन
(ख) मृत्तिकया
(ग) भस्मना
(घ) तृणैः
उत्तर :
(ग) भस्मना
પ્રશ્ન 3.
अपरस्मिन् दिवसे राजा कस्मै न्यवेदयत् ?
(क) नागरिकेभ्यः
(ख) कालिदासाय
(ग) भोजाय
(घ) बल्लालाय
उत्तर :
(ख) कालिदासाय
પ્રશ્ન 4.
कालिदासेन रज्जुः कुत्र स्थापिता ?
(क) वने
(ख) घटे
(ग) स्वर्णकलशे
(घ) स्थालिकायाम्
उत्तर :
(घ) स्थालिकायाम्
પ્રશ્ન 5.
प्रवाहपतितो लोक: किम् अनुसेवते ?
(क) प्रवाहम्
(ख) विरुद्धप्रवाहम्
(ग) कथाम्
(घ) नृपम्
उत्तर :
(क) प्रवाहम्
પ્રશ્ન 6.
पुरस्कारं कः ददौ ?
(क) भोजः
(ख) बल्लाल:
(ग) नागरिक:
(घ) कालिदासः
उत्तर :
(क) भोजः
પ્રશ્ન 7.
स्थालिकायां स्थिता रज्जुः यथा-यथा अग्निमयी जाता ………………………………………….. भस्मत्वेन परिणमिता ?
(क) यथा तदा
(ख) यथा तथा
(ग) तथा तथा
(घ) तथा व्यथा
उत्तर :
(ग) तथा तथा
2. संस्कृतभाषया उत्तरत :
પ્રશ્ન 1.
राजा भोज: कस्मै पुरस्कारं ददौ ?
उत्तर :
राजा भोजः कालिदासाय पुरस्कारं ददौ।
પ્રશ્ન 2.
कस्यचित् पदार्थस्य निर्माणाय किम अपेक्षितं भवति ?
उत्तर :
कस्यचित् पदार्थस्य निर्माणाय पदार्थाः पद्धतिज्ञानं पुरुषार्थश्चेति वस्तुत्रयम् अपेक्षितं भवति।
પ્રશ્ન 3.
राज्ञः उद्घोषं श्रुत्वा नागरिका: किं कृतवन्त: ?
उत्तर :
राज्ञः उद्घोषं श्रुत्वा नागरिका: भस्मना रज्जु निर्मातुं प्रयत्नरताः सजाताः।
પ્રશ્ન 4.
प्रवाहं सेवमान: लोक: किं साधयते ?
उत्तर :
प्रवाहं सेवमानः लोक: मुदा कार्यं साधयते।।
પ્રશ્ન 5.
जनसभायां भोजेन किम् उद्घोषितम् ?
उत्तर :
जनसभायां भोजेन उद्घोषितम् – यदि कश्चित् जनः भस्मना रज्जु निर्माय मह्यं दास्यति तहि अहं तस्मै रुप्यकाणां सहस्रं प्रदास्यामीति।
3. मातृभाषा में उत्तर दीजिए।
પ્રશ્ન 1.
कालिदास द्वारा निर्मित रस्सी को देखने पर राजा की क्या प्रतिक्रिया थी ?
उत्तर :
कालिदास द्वारा निर्मित रस्सी को देखने पर राजा भोज अत्यन्त प्रसन्न हुए तथा पूर्वकृत घोषणा के अनुसार राजा भोज ने कालिदास को सहस्र रुपयों का पुरस्कार प्रदान किया।
रज्जुः भस्म भवत्यिति Summary in Hindi
रज्जुः भस्म भवत्विति सन्दर्भ :
संस्कृत साहित्य में प्राणियों को पात्र बनाकर अनेक नीति-कथाओं की रचना की गई है। ये नीतिकथाएँ कभी किसी ग्रन्थ के रूप में संग्रहित की गई है या किंवदन्ति के रूप में लोकमुख से प्रवाहित होते हुए सुरक्षित है। ये नीति-कथाएँ कर्णोपकर्ण रूप से जनसामान्य तक पहुँची हैं।
इस प्रकार की कथाओं ने जहाँ एक ओर मानव समुदाय को मार्ग-दर्शन प्रदान किया है वहीं दूसरी ओर शिष्योपदेशार्थ विद्वत्समुदाय को नूतन कथाओं की कल्पना हेतु प्रेरणास्पद कार्य भी किया है। अतः आज भी संस्कृत में नई उपदेशात्मक कथाओं की रचना की जा रही है।
कथा संरचना की इस प्रवृत्ति में जिस तरह विविध प्राणियों का चयन किया जाता है, उसी प्रकार भोज एवं कालिदास – इन दो पात्रों के काल्पनिक संवादों को ध्यान में रखकर कई कथाओं की रचना की गई है। संस्कृत भाषा में इस प्रकार की कथाएँ महाकवि बल्लाल कृत भोजप्रबन्ध में संग्रहित है।
यह कथा-संग्रह भी इस प्रकार की कथाओं की रचना के लिए प्रेरक है। इस प्रकार की प्रेरणा के फलस्वरूप प्रस्तुत कथा की संरचना की गई है।
किसी वस्तु का निर्माण करते समय अधिकांश जन-परंपरानुसार प्राप्त पदार्थ एवं पद्धति को ध्यान में रखकर प्रवृत्त होते हैं। परंतु इस प्रकार सर्वत्र सफलता प्राप्त हो, यह संभव नहीं है। इस स्थिति में परंपरा के विपरीत पद्धति का भी कभी आश्रय लेना अनिवार्य हो जाता है।
इस विचार को केन्द्र में रखकर भोज-कालिदास की इस संवादात्मक कथा का ग्रन्थन किया गया है। राजा भोज भस्म में से रज्जु निर्माण करने हेतु कहते हैं। परंपरागत पद्धति का आश्रय लेकर, भस्म एकत्र कर रज्जु बनाने का उपक्रम किया जाता है। परंतु इस कार्य में उन्हें सफलता प्राप्त नहीं होती है।
अंत में कालिदास यह कार्य कर देते हैं। वे भस्म से रज्जु बनाने के स्थान पर रज्जु को ही भस्म बना देते हैं। इस प्रकार भोज की इच्छा को पूर्ण करते हैं, तथा पुरस्कार प्राप्त करते हैं। व्यक्ति को सदा यह स्मरण रखना चाहिए कि पुरुषार्थी एवं बुद्धिमान व्यक्ति के लिए विश्व में कुछ भी असंभव नहीं है।
रज्जुः भस्म भवत्विति शब्दार्थ
रज्जुः = रस्सी (स्त्रीलिंग)। भस्म = राख, नपुंसक लिंग, प्रथमा विभक्ति, एकवचन। कश्चित् = कोई एक। भस्मना = राख से – भस्मन्, तृतीया विभक्ति, एकवचन। निर्माय = बना करके निर्माण करके, निर् + मा + ल्यप् – सम्बंधक – भूत कृदन्त। मह्यम् = मुझे, मेरे लिये – अस्मद् सर्वनाम शब्द, चतुर्थी विभक्ति, एकवचन। दास्यति = देगा – दा धातु, भविष्य काल, अन्य पुरुष, एकवचन। तर्हि = तो – अव्यय पद। तस्मै = उसे, उसके लिए – तत् पुल्लिंग, सर्वनाम शब्द, चतुर्थी विभक्ति, एकवचन। रुप्यकाणां सहस्रम् = हजार रुपये। प्रदास्यामि = मैं दूंगा – प्र + दा धातु, भविष्यकाल, प्रथम पुरुष, एकवचन।
उद्घोषम् = उद्घोष को। श्रुत्वा = सुनकर – श्रु धातु + क्त्वा प्रत्यय – सम्बन्धक – भूत कृदन्त। निर्मातुम = निर्माण करने के लिए – निर् + मा + तुमुन् – हेत्वर्थक कृदन्त। प्रयत्नरताः = प्रयत्न में रत, प्रयत्नशील – प्रयत्ने रताः – सप्तमी तत्पुरुष समास। सजाता: = हो गए – सम् + जन् धातु + क्त प्रत्यय – कर्मणि भूत कृदन्त। प्रायः = हमेशा। कस्यचित् = किसी का। निर्माणाय = निर्माण के लिए। वस्तुत्रयम् = तीन वस्तुएँ। अपेक्षितम् = आवश्यक, जिसकी अपेक्षा की गई हो वह। कारणभूताः = कारण रूप हुआ। शक्यते = सकता है – शक् (सकना) भावे वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचन।
सत्सु = होते हुए भी। कारणभूतेषु = कारण रूप बने हुए में। न अवगता = समझ में नहीं आया, समझा नहीं। तदापि = तब भी। न पारयामः = हम पार नहीं पा सकते है। (हम नहीं सकते हैं।), निर्माणरीति: = निर्माण की रीति – निर्माणस्य रीतिः – षष्ठी तत्पुरुष समास। अवगता = जान लिया, समझा। यावत्पर्यन्तम् = जहाँ तक, जब तक। तावत्पर्यन्तम् = जब तक। स्वकीयेन = स्वयं से। उपर्युक्तेन = उपर्युक्त से। रज्जुनिर्माणे = रस्सी के निर्माण में – रज्ज्वाः निर्माणम् – तस्मिन् – षष्ठी तत्पुरुष समास। न साधयति स्म = सिद्ध नहीं होता था, असफल होता था।
व्यतीतः = व्यतीत हुआ – वि + अति + इ + क्त – कर्मणि भूत कृदन्त। परिणामतः = फलस्वरूप। आवश्यकानाम् – आवश्यक (वस्तुओं, व्यक्तियों आदि) का। भस्म – जलादीनाम् = रख-पानी आदि का भस्म च जलं च – इतरेतर द्वन्द्व समास। भस्मजले आदिः येषां ते – बहुव्रीहि समास – राख-पानी आदि का। एकत्रीकरणे = एकत्र करने में। प्रवृत्तः = प्रवृत्त हो गया – प्र + वृत् + क्त प्रत्यय – कर्मणिभूत कृदन्त। गोधूमचूर्णेन = गेहूँ के आटे से। रोटिकाया: = रोटी का – आकारान्त स्त्री लिंग शब्द, षष्ठी विभक्ति, एकवचन। यादृशी = जैसी। उद्यतः = प्रयत्नशील, तत्पर।
जलार्द्रम् = पानी से गीला – जलेन आर्द्रम् – तृतीया तत्पुरुष समास। रज्जुरूपता प्रदानकाले = रस्सी का रूप बनाते समय, रस्सी बनाते समय, रज्ज्वाः रुपता – षष्ठी तत्पुरुष समास, रज्जुरुपतायाः प्रदानम् – षष्ठी तत्पुरुष समास – रज्जुरुपताया प्रदानस्य कालः – तस्मिन् – षष्ठी तत्पुरुष समास। विशीर्णाम् = विशीर्ण – नष्टप्राय – वि + श्ट + क्त – कर्मणि – भूत कृदन्त। सत् = होना। रज्जुरूपम् = रस्सी का रूप – रज्ज्वा: रूपम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। प्रणीताम् = प्रणीत हुई – प्र + नी + क्त – कर्मणि भूत कृदन्त – स्त्रीलिंग, – कर्मणि भूत कृदन्त। अवलोकयितुकामः = देखने की इच्छावाला।
नैराश्यम् – निराशा के भाव को। अभजत = प्राप्त हुआ – भज् धातु ह्यस्तन भूतकाल, अन्य पुरुष, एकवचन। अपरस्मिन् दिवसे = दूसरे दिन। न्यवेदयत् = निवेदन किया – नि + विद् धातु, ह्यस्तन भूतकाल, अन्य पुरुष, एकवचन। साधयतु = सिद्ध करो, बनाओ – साध् धातु, प्रेरणार्थक आज्ञार्थ, अन्य पुरुष, एकवचन। सद्यः एव = तत्काल ही। पूर्वम् = पहले। समानीता = लाई गई। स्थालिकायाम् = थाली में। स्थापिता – रखी गई। प्राक्षिपत् = फैंका, रखा – प्र + क्षिप् धातु, ह्यस्तन भूतकाल, अन्य पुरुष, एकवचन। अग्निमयी जाता = जलने लगी, अग्निमय हो गई। भस्मत्वेन = राख्न रूप से।
परिणमिता = परिवर्तित हो गई, बदल गई – परि + नम् + क्त – कर्मणि भूतकृदन्त। प्रशान्ते अग्नौ = अग्नि के शान्त – बुझने पर – यह सति सप्तमी का प्रयोग है। स्थालिकास्थिताम् = थाली में स्थित – स्थालिकायां स्थिता ताम् – सप्तमी तत्पुरुष समास। भस्मभूताम् = भस्म हो चुकी (यहाँ रस्सी का विशेषण) को। अदर्शयत् = दिखाया – दृश् धातु, ह्यस्तन – भूतकाल, अन्य पुरुष, एकवचन। भूत्वा = हो करके – भू धातु, क्त्वा प्रत्यय – सम्बन्धक भूत कृदन्त। ददौ = दिया – दा धातु, परोक्ष भूतकाल, अन्य पुरुष, एकवचन। प्रसन्नवदनः = प्रसन्न मुखवाला – प्रसन्न वदनं यस्य सः – बहुवचन।
प्रत्यवोचत् = कहा – प्रति + वच् धातु ह्यस्तन भूतकाल, अन्य पुरुष, एकवचन। प्रवाहपतित: = प्रवाह में गिरा हुआ – प्रवाहे पतित: – सप्तमी तत्पुरुष समास। लोकः = समाज। अनुसेवते = अनुसरण करता है – अनु + सेव् धातु, वर्तमान काल, अन्य पुरुष, एकवचन। सेवमानः = सेवा करता हूँ – सेव् धातु + शानच् (आनः) प्रत्यय – वर्तमान कृदन्त। साधयति = सिद्ध करता है – साध् धातु, वर्तमान काल, अन्य पुरुष एकवचन। वैचित्र्यात् = विचित्रता से। कार्यसाधनवेलायाम् = कार्य को सिद्ध करने के समय पर – कार्यस्य साधनम् – षष्ठी तत्पुरुष समास, कार्यसाधनस्य वेला, तस्याम् – षष्ठी तत्पुरुष समास।
अनुसरन् = अनुसरण करता हुआ – अनु + सृ धातु + शतृ प्रत्यय, (अत्) वर्तमान कृदन्त। मन्त्रयेत् = मन्त्रणा करनी चाहिए, विचार करना चाहिए – मन्त्र विधिलिङ्ग, अन्य पुरुष, एकवचन। नो – नहीं।
रज्जुः भस्म भवत्विति अनुवाद :
एकबार जनसभा में भोज ने घोषित किया – यदि कोई व्यक्ति भस्म के द्वारा रस्सी का निर्माण करके मुझे देगा, तो मैं उसे सहस्र रुपए प्रदान करूँगा।
राजा के उद्घोष को सुनकर सभी नागरिक जन भस्म के द्वारा रज्जु-निर्माण करने हेतु प्रयत्न-रत हो गए।
प्राय: सभी लोगों का यह अनुभव है, कि किसी पदार्थ के निर्माण के लिए पदार्थ, पद्धति का ज्ञान और पुरुषार्थ तीनों वस्तुएँ अपेक्षित हैं। यदि कारणभूत पदार्थ नहीं हैं तो किसी भी नवीन पदार्थ का निर्माण नहीं हो सकता है।
कारणभूत पदार्थों के होते हुए भी यदि निर्माण की पद्धति ज्ञात नहीं है तब भी पदार्थ का निर्माण नहीं हो सकता है। पदार्थ उपस्थित हो, निर्माण-रीति भी ज्ञात हो तथापि जब तक व्यक्ति पुरुषार्थ नहीं करता है तब तक वह नवीन पदार्थ का निर्माण करने के लिए समर्थ नहीं होता है।।
नगर का प्रत्येक व्यक्ति उपर्युक्त स्व-अनुभव से सर्वप्रथम रज्जू-निर्माण में आवश्यक भस्म-जल आदि पदार्थों को एकत्र करने में प्रवृत्त हो गया। तत्पश्चात् गेहूँ के आटे से रोटी के निर्माण की जैसी पद्धति उसे ज्ञात थी उस पद्धति से रज्जु के निर्माण में प्रचण्ड पुरुषार्थ से प्रयत्न किया।
अत्यधिक प्रयत्न करने पर भी भस्म से रज्जु (रस्सी) नहीं बनी। सम्पूर्ण दिन ऐसे ही व्यर्थ बीत गया। परिणामस्वरूप भस्म से बनी हुई रस्सी को देखने का इच्छुक राजा निराश हो गया।
दूसरे दिन राजसभा में राजा ने कालिदास को निवेदन किया, आप ही भस्म से रज्जु बनाएँ।।
कालिदास ने तत्काल ही रज्जु निर्माणार्थ प्रयत्न आरम्भ किया। उसके द्वारा पहले (प्रथम) रज्जु लाई गई। उसके पश्चात् उसने उस रज्जु को थाली में रखा। थाली में रखी हुई रस्सी में कालिदास ने आग लगाई। अग्नि के शान्त होने पर कालिदास ने भस्मीभूत रज्जु राजा भोज को दिखाई।
राजा ने प्रसन्न होकर कालिदास को सहस्र रुपए प्रदान किए। पुरस्कार से प्रसन्न-मुख कालिदास ने उपस्थित लोगों से कहा –
प्रवाह में गिरा हुआ समाज प्रवाह का अनुसरण करता है, प्रवाह का अनुसरण करते हुए (समाज) प्रसन्नतापूर्वक कार्य सिद्ध करता है। विश्व के प्रवाह में अनुसरण करते हुए भी विचित्रता से यदि कार्य सिद्ध करते समय मानव निष्फल हो तब विद्वान व्यक्ति को कभीकभी मेरा अनुसरण करते हुए (प्रवाह के) विरुद्ध मन्त्रणा करनी चाहिए। भस्म से रज्जु न हो (तब) रज्जु भस्म हो।