GSEB Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Economics Chapter 3 माँग Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Economics Chapter 3 माँग
GSEB Class 11 Economics माँग Text Book Questions and Answers
स्वाध्याय
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए :
1. माँग को असर करनेवाले परिबलों को कितने विभागों में बाँटा गया है ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
उत्तर :
(B) दो
2. माँग रेखा का ढाल कैसा होता है ?
(A) ऋण ढाल
(B) धन ढाल
(C) x-अक्ष पर समांतर
(D) y-अक्ष पर समांतर
उत्तर :
(A) ऋण ढाल
3. हलके प्रकार की वस्तुओं को दूसरे किस नाम से जानते हैं ? ।
(A) प्रतिष्ठामूलक वस्तु
(B) चार
(C) गिफन वस्तु
(D) नकामी वस्तु
उत्तर :
(C) गिफन वस्तु
4. माँग की मूल्य सापेक्षता के कितने प्रकार होते हैं ?
(A) दो
(B) चार
(C) पाँच
(D) सात
उत्तर :
(C) पाँच
5. कीमत और माँग के बीच कैसा सम्बन्ध है ?
(A) धन
(B) व्यस्त
(C) सप्रमाण
(D) शून्य
उत्तर :
(B) व्यस्त
6. पूरक वस्तुएँ कैसी होती हैं ?
(A) जुड़ी हुयी
(B) स्पर्धक
(C) सम्बन्ध बिना की
(D) वैकल्पिक
उत्तर :
(A) जुड़ी हुयी
7. माँग का विस्तरण माँग रेखा पर किस ओर देखने को मिलता है ?
(A) ऊपर
(B) नीचे
(C) दायी ओर से दूसरी माँग रेखा पर
(D) बाँयी ओर दूसरी माँग रेखा पर
उत्तर :
(B) नीचे
8. निम्न में से माँग का किसके साथ सम्बन्ध नहीं है ?
(A) निश्चित समय
(B) निश्चित कीमत
(C) ग्राहक
(D) पूर्ति
उत्तर :
(D) पूर्ति
9. माँग का नियम किसने दिया ?
(A) एडम स्मिथ
(B) अल्फ्रेड मार्शल
(C) रॉबिन्स
(D) केइन्स
उत्तर :
(B) अल्फ्रेड मार्शल
10. मोबाइल और सिमकार्ड का सम्बन्ध कैसा होता है ?
(A) स्थापन्न
(B) पूरक
(C) विरोधी
(D) जरूरी
उत्तर :
(B) पूरक
11. बिल्कुल हलके प्रकार की वस्तु के सम्बन्ध में आय असर कैसी होती है ?
(A) नकारात्मक
(B) सकारात्मक
(C) स्थिर
(D) अस्थिर
उत्तर :
(A) नकारात्मक
12. माँग की संकुचन और विस्तरण में क्या स्थिर होता है ?
(A) कीमत
(B) अन्य कीमत
(C) अन्य परिबल
(D) माँग
उत्तर :
(C) अन्य परिबल
13. माँग में वृद्धि-कमी में स्थिर रहता है ।
(A) अन्य परिबल
(B) भविष्य की अटकले
(C) पसंदगी
(D) कीमत
उत्तर :
(D) कीमत
14. संपूर्ण मूल्य सापेक्ष माँग रेखा का ढाल कैसा होता है ?
(A) x-अक्ष के समांतर
(B) y-अक्ष के समांतर
(C) धन
(D) ऋण
उत्तर :
(A) x-अक्ष के समांतर
15. संपूर्ण मूल्य निरपेक्ष माँग का ढाल कैसा होता है ?
(A) दायीं ओर
(B) बायीं ओर
(C) y-अक्ष के समांतर
(D) x-अक्ष के समांतर
उत्तर :
(C) y-अक्ष के समांतर
16. माँग की आय की सापेक्षता के प्रकार कितने हैं ?
(A) एक
(B) तीन
(C) पाँच
(D) सात
उत्तर :
(B) तीन
17. माँग की मूल्य सापेक्षता मापने की पद्धतियाँ कितनी हैं ?
(A) चार
(B) तीन
(C) दो
(D) एक
उत्तर :
(B) तीन
18. कीमत घटने से कुल खर्च में कमी हो तो उसे ………………………. मूल्य सापेक्ष माँग कहते हैं ।
(A) इकाई से कम
(B) इकाई से अधिक
(C) समान
(D) अनंत
उत्तर :
(A) इकाई से कम
19. कोकाकोला और पेप्सी ……………………… वस्तु का उदाहरण है ।
(A) पूरक
(B) प्रतिस्थापन
(C) जुड़ी
(D) विरोधी
उत्तर :
(B) प्रतिस्थापन
20. प्रतिष्ठा मूल्य रखनेवाली वस्तुओं की कीमत बढ़ने पर माँग ……………… है ।
(A) घटती है ।
(B) स्थिर रहती है ।
(C) बढ़ती है ।
(D) तटस्थ होती है ।
उत्तर :
(C) बढ़ती है ।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए :
1. माँग की आय सापेक्षता अर्थात् क्या ?
उत्तर :
व्यक्ति की आय में प्रतिशत परिवर्तन और माँग में होनेवाला प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात माप को उस वस्तु की माँग की आय सापेक्षता कहते हैं ।
2. माँग की प्रति मूल्य सापेक्षता अर्थात् क्या ? ।
उत्तर :
माँग की प्रति मूल्य सापेक्षता अर्थात् एक वस्तु की कीमत में होनेवाला प्रतिशत परिवर्तन के कारण दूसरी वस्तु की माँग में होनेवाला प्रतिशत परिवर्तन का प्रमाण ।
3. माँग का विस्तरण – संकुचन कब संभव बनता है ?
उत्तर :
जब अन्य परिबल स्थिर हो तब वस्तु की कीमत में कमी हो तब माँग में विस्तरण हो तथा कीमत बढ़े तब माँग में संकुचन संभव बनता है ।
4. माँग में कमी-वृद्धि कब संभव बनती है ?
उत्तर :
जब कीमत स्थिर हो तब अन्य परिबलों में परिवर्तन होने से माँग में कमी-वृद्धि होती है ।
5. माँग का नियम क्यों शरती नियम कहा जाता है ?
उत्तर :
वस्तु की कीमत और उसकी माँग के बीच व्यस्त संबंध दर्शानेवाले नियम कितनी ही धारणाओं पर आधारित होता है । इस नियम में कीमत को छोड़कर अन्य परिबलों को स्थिर मान लिया जाता है । इसी परिस्थिति में माँग का नियम सही होता है । इसलिए शरती नियम कहा जाता है ।
6. माँग के नियम को कितने परिबल असर करते हैं ? कौन-कौन से ?
उत्तर :
माँग के नियम को दो परिबल असर करते हैं :
- वस्तु की कीमत
- अन्य परिबल
7. स्थापन्न वस्तु किसे कहते हैं ?
उत्तर :
एक वस्तु के स्थान पर दूसरी वस्तु की आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए उपयोग कर सकते हों तो उसे स्थापन्न वस्तु कहते हैं ।
8. पूरक वस्तु किसे कहते हैं ?
उत्तर :
पूरक वस्तु अर्थात् सम्बन्धित वस्तु के उपयोग के लिए आवश्यक दूसरी वस्तु । ऐसी वस्तुएँ सदैव एकदूसरे से जुड़ी रहती हैं ।
9. फलन किसे कहते हैं ?
उत्तर :
दो या उससे अधिक परिबलों के बीच के कारण और असर के बीच के सम्बन्ध को फलन कहते हैं ।
10. वास्तविक आय किसे कहते हैं ?
उत्तर :
वस्तु या सेवा के संदर्भ में प्रस्तुत होनेवाली आय को वास्तविक आय कहते हैं ।
11. हल्के प्रकार की वस्तु के सम्बन्ध का ख्याल किसने विकसित किया ?
उत्तर :
हलके प्रकार की वस्तु के संदर्भ में दर्शानेवाला ख्याल सर रोबर्ट गिफन नामक व्यक्ति ने विकसित किया था इसलिए इन्हें गिफन वस्तु कहते हैं ।
12. बाजार माँग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जब बाजार में तमाम व्यक्तियों (ग्राहकों) द्वारा अलग-अलग कीमत पर होनेवाली वस्तुओं की माँग के योग को बाजार माँग कहते हैं ।
13. व्यक्तिगत माँग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
निश्चित समय दरम्यान कोई एक व्यक्ति (ग्राहक) द्वारा बाजार में अलग-अलग कीमत पर होनेवाली वस्तु की माँग को व्यक्तिगत माँग कहते हैं ।
14. माँग की आय सापेक्षता का अर्थ लिखिए ।
उत्तर :
व्यक्ति की आय में प्रतिशत परिवर्तन और माँग में होनेवाला प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात माप को वस्तु की माँग आय सापेक्षता कहते हैं ।
15. सकारात्मक (धन) आय सापेक्ष माँग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
ग्राहक के रूप में व्यक्ति की आय में वृद्धि होने पर वस्तु की माँग में वृद्धि हो अथवा आय में कमी होने पर वस्तु की माँग में कमी हो तो उसे वस्तु की माँग सकारात्मक (धन) आय सापेक्ष माँग कहते हैं ।
16. नकारात्मक (ऋण) आय सापेक्ष माँग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
ग्राहक रूप में व्यक्ति की आय में वृद्धि होने पर वस्तु की माँग घटे अथवा व्यक्ति की आय में कमी होने से वस्तु की माँग बढ़े तो – उसे वस्तु की माँग नकारात्मक (ऋण) आय सापेक्ष माँग कहते हैं ।
17. शून्य आय सापेक्ष माँग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
ग्राहक की आय में परिवर्तन हो परंतु वस्तु की माँग में परिवर्तन न हो तो ऐसी वस्तु की माँग शून्य आय सापेक्ष माँग कहते हैं ।
18. निम्न कोटि की वस्तुओं को कौन-सी वस्तुएँ कहते हैं ?
उत्तर :
निम्नकोटि की वस्तुओं को गिफन वस्तुएँ कहते हैं ।
19. माँग की तालिका के सभी पद कैसे होते है ?
उत्तर :
माँग की तालिका के सभी पद वैकल्पिक होते हैं ।
20. कीमत और माँग के बीच कैसा सम्बन्ध होता है ?
उत्तर :
कीमत और माँग के बीच व्यस्त सम्बन्ध होता है ।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए ।
1. गिफन वस्तु अर्थात् क्या ?
उत्तर :
उपयोग में ली जानेवाली हल्की प्रकार की वस्तुओं को निम्नकोटि की वस्तुएँ कहा जाता है । ऐसी गुणवत्ता आधारित वस्तु का ख्याल सर्वप्रथम इंग्लैण्ड के अर्थशास्त्री सर रोबर्ट गिफन ने ध्यान केन्द्रित किया था, जिससे इन वस्तुओं को गिफन वस्तुओं के रूप में पहचाना जाता है । जैसे : शुद्ध घी की तुलना में वनस्पति घी । ऐसी निम्नकोटि की वस्तुओं का उपयोग अधिकांशतः गरीब वर्ग के लोग अधिक करते हैं । ऐसी वस्तुओं की कीमत बढ़ने पर ग्राहकों की वास्तविक आय में कमी आती है फिर भी ऐसे ग्राहक गरीब होने के कारण वे उच्चकोटि की वस्तुओं की माँग नहीं कर सकते और उन्हें अनिवार्य रूप से ऐसी निम्नकोटि की वस्तुओं का ही उपभोग करना पड़ता है । इसलिए इसे माँग के नियम का अपवाद भी कहते हैं । अर्थात् माँग के नियम की विपरीत स्थिति यहाँ देखने को मिलती है ।
2. माँग फलन (विधेय) अर्थात् क्या ?
उत्तर :
दो या उससे अधिक परिबलों के बीच कारण और असर के बीच के सम्बन्ध को फलन कहते हैं । माँग का फलन, वस्तु या सेवा की माँग और उसको असर करनेवाले परिबलों के कार्यकारण सम्बन्ध को प्रस्तुत करता है । व्यक्तिगत रीति से वस्तु की माँग को वस्तु की कीमत, व्यक्ति की अभिरुचि और पसंदगी, व्यक्ति की आय, संबंधित वस्तु की कीमत, वस्तु के प्रमाण आदि जैसे परिबलों पर आधारित होता है ।
3. व्यक्ति की माँग का गणितीय फलन को बताइए ।
उत्तर :
व्यक्ति की माँग का गणितीय फलन निम्नानुसार हैं :
Dx = f (Px, Py, Pe, T, Y, U)
जहाँ Dx = X वस्तु की माँग (Demand of X)
f = फलन सूचक संज्ञा (Sign of Function)
Px = x वस्तु की कीमत (Price of x)
Py = y वस्तु की कीमत (संबंधित वस्तु की कीमत) (Price of Related Goods)
Pe = अपेक्षित कीमत (Expected Price)
T = ग्राहक की रूचि और पसंदगी (Taste and Preferences)
Y = व्यक्ति की आय (Consumer’s Income)
U = अन्य परिबल (Other factors)
4. प्रतिष्ठामूल्य वस्तु अर्थात् क्या ? ।
उत्तर :
सोने-चांदी के गहने, मँहगी कार, महँगे मोबाइल, आदि जैसी खूब कीमती और प्रतिष्ठा रखनेवाली वस्तुओं के सम्बन्ध में माँग का नियम लागु नहीं पड़ता है । इस प्रकार की वस्तुएँ व्यक्ति की प्रतिष्ठा बढ़ाती हैं । धनवान वर्ग के लोग इन वस्तुओं की कीमत बढ़ने अधिक होंगी, वैसे ही प्रतिष्ठा मूल्य बढ़ेगा परिणामस्वरूप ऐसी वस्तुओं की माँग घटने की बजाय माँग बढ़ती है और इन वस्तुओं की कीमत घटने पर प्रतिष्ठा मूल्य कम होता है इसलिए माँग बढ़ने की बजाय माँग कम हो जाती है ।
5. व्यक्तिगत माँग अर्थात् क्या ?
उत्तर :
निश्चित समय दरम्यान कोई एक व्यक्ति (ग्राहक) द्वारा बाजार में अलग-अलग कीमत पर होनेवाली वस्तु की माँग को व्यक्तिगत माँग कहते हैं ।
6. बाजार माँग अर्थात क्या ?
उत्तर :
जब बाजार में तमाम व्यक्तियों (ग्राहकों) द्वारा अलग-अलग कीमत पर होनेवाली वस्तु की माँग के योग को बाजार माँग कहते
7. माँग की मूल्य सापेक्षता अर्थात् क्या ?
उत्तर :
वस्तु की माँग में प्रतिशत परिवर्तन में वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तन का भाग देने पर जो अंक (मूल्य) प्राप्त होता है तो उसे माँग की मूल्य सापेक्षता कहते हैं ।
8. माँग की सारणी के सभी पद वैकल्पिक हैं । समझाइए ।
उत्तर :
वस्तु की अलग-अलग कीमत दर्शानेवाली सारणी माँग की सारणी है । कोई एक कीमत के सापेक्ष उसकी माँग अस्तित्व में आती है तो उसी समय शेष कीमतें और माँग अस्तित्व में नहीं रहते । अर्थात् उसका निवारण हो जाता है । यहाँ किसी एक विकल्प के अस्तित्व में आ जाने के बाद अन्य विकल्प निरर्थक हो जाते हैं । इसीलिए ऐसा कहा जाता है कि माँग की सारणी के सभी पद वैकल्पिक हैं।
9. किसी भी वस्तु की माँग कब अस्तित्व में आती है ?
उत्तर :
जब किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा हो, वस्तु खरीदने के लिए पर्याप्त आर्थिक क्षमता या खरीद शक्ति हो तथा वस्तु को खरीदने के लिए पैसा खर्च करने की तत्परता हो तो किसी वस्तु की माँग अस्तित्व में आती है ।
10. प्रतिस्थापन वस्तु किसे कहते हैं ?
उत्तर :
किसी एक आवश्यकता को एक से अधिक वस्तुओं के द्वारा संतुष्ट किया जा सके तो उसे प्रतिस्थानापन्न वस्तुएँ कहते हैं । जैसे : सॉफ्ट ड्रींक पीने की इच्छा हो तो थम्स अप, लिमका, गोल्डस्पोट, कोकाकोला या पेप्सी इत्यादि से संतुष्ट कर सकते हैं ।
11. कीमत का प्रभाव किसे कहते हैं ?
उत्तर :
समाज में तमाम ग्राहकों की आय एकसमान नहीं होती है । जब वस्तु की कीमत ऊँची होती है तब कम आय वर्ग के लोग इन वस्तुओं की खरीदी नहीं कर पाते या प्रमाण में कम खरीदी करते हैं । वस्तु की कीमत जैसे-जैसे घटती जाती है वैसे-वैसे नये-नये ग्राहक चीजवस्तुओं की खरीदी करते हैं । इसके अलावा भूतकाल में जो ग्राहक कीमत अधिक होने के कारण वस्तु की खरीदी नहीं कर सके थे या अपेक्षाकृत कम खरीदी कर सके थे ऐसे ग्राहक चीजवस्तुओं की खरीदी बढ़ा देते हैं जिससे चीजवस्तुओं की माँग बढ़ जाती है । इस प्रभाव को कीमत प्रभाव कहते हैं ।
12. आय का प्रभाव क्या है ?
उत्तर :
वस्तु की कीमत घटे तो उस वस्तु का उपभोग करनेवाले ग्राहकों को उस वस्तु की प्रत्येक इकाई के लिए पहले की अपेक्षा कम मुद्राकीय आय खर्च करनी पड़ती है । परिणामस्वरूप उसकी वास्तविक आय में बढ़ोत्तरी होती है । जिससे वह वस्तु की अधिक इकाई खरीदने के लिए प्रेरित होता है । इसके विपरीत वस्तु की कीमत बढ़े तो उस वस्तु का उपभोग करनेवाले ग्राहकों को उस वस्तु के लिए पहले की अपेक्षा अधिक मुद्राकीय आय खर्च करनी पड़ती है । परिणामस्वरूप ग्राहकों की वास्तविक आय में कमी होती है, जिससे वह वस्तु की खरीदी घटाने के लिए प्रेरित होता है । वस्तु की कीमत घटे तो उस वस्तु की माँग में विस्तार होता है और वस्तु की कीमत घटे तो उस वस्तु की माँग में संकुचन होता है । जिसे आय का प्रभाव कहते हैं ।
13. माँग की मूल्य सापेक्षता किसे कहते हैं ? ।
उत्तर :
माँग के नियमानुसार वस्तु की कीमत घटे तो माँग में बढ़ोत्तरी होती है और वस्तु की कीमत बढ़े तो माँग में कमी होती है । किंतु कीमत में परिवर्तन करने पर माँग में कितना परिवर्तन होगा, इस संदर्भ में माँग का नियम कोई स्पष्टता नहीं करता है ।
कई वस्तुएँ ऐसी होती हैं कि जिनकी कीमत में थोड़ी-सी कमी की जाय तो उसकी माँग में खूब बढ़ोत्तरी होती है । इसके अतिरिक्त कुछ वस्तुएँ ऐसी भी होती हैं कि जिनकी कीमत में खूब बढ़ोत्तरी की जाय तो उसकी माँग में बहुत कम कमी होती है । इस प्रकार वस्तु की कीमत में हुए परिवर्तन के परिणामस्वरूप उसकी माँग में हुए परिवर्तन के तुलनात्मक अनुपात को माँग की मूल्यसापेक्षता कहते हैं ।
14. माँग का नियम सिद्ध करने के लिए अन्य तत्त्वों को स्थिर क्यों मान लेते हैं ?
उत्तर :
कीमत और माँग के बीच व्यस्त संबंध में अन्य तत्त्व विक्षेप पैदा करते हैं । परिणामस्वरूप कीमत और माँग के बीच व्यस्त के बदले धनात्मक संबंध दिखाई देता है । ऐसा न होने पाये इसलिए नियम सिद्ध करते समय अन्य तत्त्वों को स्थिर मान लिया जाता है ।
15. माँग रेखा का ढाल कैसा है ? क्यों ?
उत्तर :
माँग रेखा का ढाल ऋणात्मक है । क्योंकि माँग रेखा पर आए हुए किन्हीं दो बिंदुओं के बीच tan θ की कीमत हमेशा ऋणात्मक मिलती है । इसलिए माँग रेखा का ढाल ऋणात्मक है जो बायीं ओर से दाहिनी ओर नीचे की तरफ झुकती रेखा है ।
16. वास्तविक आय किसे कहते हैं ?
उत्तर :
वस्तु या सेवा के संदर्भ में प्रस्तुत होनेवाली आय को वास्तविक आय कहते हैं । जब वस्तु की कीमत कम होती है तब ग्राहक की खरीदशक्ति बढ़ती है अर्थात् वास्तविक आय बढ़ती है । कीमत बढ़ने पर खरीदशक्ति घटती है । अर्थात् वास्तविक आय घटती है ।
17. माँग के नियम की धारणाएँ बताइए ।
उत्तर :
माँग के नियम में कुछ धारणाएँ पहले से ही मान ली जाती हैं । धारणाएँ निम्नानुसार हैं :
- ग्राहकों की रुचि और पसंदगी स्थिर रहती है ।
- ग्राहकों की आय स्थिर रहती है ।
- स्थापन्न और पूरक वस्तुओं की कीमत स्थिर रहती है ।
- भविष्य की कीमत से सम्बन्धित अटकलें नहीं लगायी जाती है ।
- वस्तु का प्रमाण स्थिर रहता है ।
18. वस्तु की कीमत घटने पर वस्तु की माँग क्यों बढ़ती है ?
उत्तर :
चीजवस्तु की कीमत घटने पर वस्तु की माँग दो तरह से बढ़ती है ।
(a) भूतकाल में जब वस्तु की कीमत अधिक थी तब जो ग्राहक कम आय के कारण खरीदी नहीं कर सके थे वे वर्तमान में कीमत घटने से खरीदी करने बाजार में आते हैं, ये नये ग्राहक होते हैं ।
(b) भूतकाल में कीमत अधिक होने से जो ग्राहक प्रमाण में कम खरीदी कर पाये थे वे वर्तमान में कीमत घटने से खरीदी बढ़ा देते हैं । ये पुराने ग्राहक होते हैं । इस प्रकार संयुक्त रूप से कीमत घटने पर उसकी माँग बढ़ जाती है ।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्देसर लिखिए :
1. माँग में विस्तरण और संकुचन आकृति सहित समझाइए ।
उत्तर :
“अन्य परिबल स्थिर रहने पर और वस्तु की कीमत घटने पर वस्तु माँग में वृद्धि होती है, उसे माँग का विस्तरण कहते हैं और वस्तु की कीमत बढ़ने पर, वस्तु की माँग में कमी होती है, जिसे माँग का संकुचन कहते हैं ।” इस प्रकार माँग का विस्तरण-संकुचन वस्तु की कीमत के परिवर्तन पर आधारित होती है । जिसे नीचे की तालिका और आकृति से समझ सकते हैं :
उपर्युक्त तालिका में वस्तु की कीमत रु. 3 हो और यदि कीमत घटकर 1 रु. हो जाय तब वस्तु की माँग 3 इकाई से बढ़कर 5 इकाई हो जाती है । आकृति में मूल कीमत रु. 3 को बिंदु ‘a’ से दर्शाया गया है । जब कीमत घटकर रु. 1 होने को ‘c’ से दर्शाया गया है । बिंदु ‘a’ से ‘c’ माँग का विस्तरण दर्शाता है ।
इसी प्रकार वस्तु की कीमत रु. 3 अर्थात् ‘a’ बिंदु से बढ़कर रु. 5 हो तो ग्राहक माँग 3 इकाई से घटकर 1 इकाई हो जाती है, जो ‘b’ बिंदु हैं । यहाँ बिंदु ‘a’ से ‘b’ तक का परिवर्तन माँग का संकोचन दर्शाता है ।
2. माँग में वृद्धि-कमी को आकृति सहित समझाइए ।
उत्तर :
“जब वस्त की कीमत स्थिर हो और अन्य परिबलों में परिवर्तन के कारण वस्तु में माँग बढे तो उसे माँग में वृद्धि और माँग घटे तो उसे माँग में कमी कहते हैं ।” इस प्रकार माँग में वृद्धि या कमी अन्य परिबलों पर आधारित होती है ।
तालिका में दर्शाये अनुसार वस्तु की कीमत 3 रु. स्थिर हो और अन्य परिबलों में परिवर्तन होने से माँग बढ़कर 3 इकाई हो तो माँग में वृद्धि है । आकृति में मूल बिंदु का ‘a’ माँग रेखा D1 D1 पर है । परंतु अन्य परिबलों पर आधारित माँग बढ़कर बिंदु ‘c’ अर्थात् माँग रेखा D3D3 हो तब माँग रेखा दायीं ओर परिवर्तन होने से माँग में वृद्धि सूचित करती है ।
इसी प्रकार वस्तु की कीमत 3 रु. स्थिर हो और अन्य परिबल प्रेरित माँग 3 इकाई हो तो आकृति में बिंदु ‘a’ द्वारा D1D1 दर्शाया है । उस स्तर से वस्तु की माँग घटकर ‘b’ बिंदु माँग रेखा D2D2 हो तो माँग में कमी हुयी है । माँग रेखा बायीं ओर परिवर्तन होने माँग में कमी सूचित करती है ।
3. आय असर और स्थापन्न असर का अर्थ समझाइए ।
उत्तर :
वस्तु की कीमत और उसकी माँग के बीच का व्यस्त सम्बन्ध समझने के लिए आय और स्थापन्न असर सहाय है ।
आय असर : ग्राहक की मुद्राकीय आय स्थिर हो और यदि वस्तु की कीमत में कमी हो तो ग्राहक की खरीदशक्ति में वृद्धि होती है । जिससे ग्राहक की वास्तविक आय बढ़ती है । जैसे : ग्राहक दूध खरीदने के लिए रु. 50 खर्च करने के लिए तैयार है और यदि दूध की प्रति लीटर कीमत 50 रु. हो तो ग्राहक मात्र 1 लीटर दूध खरीद सकता है । अब यदि दूध की कीमत घटकर 10 रु. प्रति लीटर हो जाये तो 50 रु. में 5 लीटर दूध खरीद सकता है । इस प्रकार कीमत घटने से ग्राहक की खरीदशक्ति बढ़े जिससे माँग में वृद्धि होती है उसे आय असर कहते हैं ।
स्थापन्न असर : किसी एक मूल वस्तु की कीमत में वृद्धि हो तब एकसमान ऐसी स्थापन्न वस्तु की तुलना में वह वस्तु महँगी बनती है कारण कि स्थापन्न वस्तु की कीमत स्थिर रहती है । इसलिए ग्राहक मूल वस्तु की माँग घटाकर उसकी तुलना में सस्ती ऐसी स्थापन्न वस्तु की माँग में वृद्धि करता है । जैसे : विडियोकोन टी.वी. और एल.जी. की टी.वी. दोनों स्थापन्न वस्तुओं में से यदि विडियोकोन की टी.वी. की कीमत बढ़े और एल.जी. की टी.वी. की कीमत स्थिर रहने से दोनों टी.वी. की तुलना में एल.जी. की टी.वी. सस्ती लगेगी जिससे ग्राहक विडियोकोन टी.वी. की माँग घटाकर एल.जी. की टी.वी. की माँग बढ़ाता है । इस प्रकार ग्राहक मूल वस्तु की माँग घटाकर उसकी तुलना में सस्ती ऐसी स्थापन्न वस्तु की माँग बढ़ाये तो उसे ‘स्थापन्न असर’ कहते हैं ।
4. माँग की आय सापेक्षता की समझ दीजिए ।
उत्तर :
“व्यक्ति की आय का प्रतिशत परिवर्तन और माँग में प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात की कीमत को माँग की आय सापेक्षता कहते हैं ।” ग्राहक के रूप में व्यक्ति की आय में होनेवाले परिवर्तनों द्वारा वस्तु की माँग में होनेवाले परिवर्तन को भाग देने पर आय की सापेक्षता ज्ञात कर सकते हैं । जिसे निम्नलिखित सूत्र के रूप में परिवर्तन कर सकते हैं ।
5. माँग के नियम के अपवादों को समझाइए ।
उत्तर :
वैसे माँग का नियम यह कहता है कि यदि वस्तु की कीमत बढ़ेगी तो माँग घटेगी और वस्तु की कीमत कम होगी तो माँग बढ़ेगी । लेकिन सदैव ऐसा नहीं भी होता । कई ऐसी वस्तुएँ हैं जिनकी कीमत में परिवर्तन होने के बावजूद भी उनकी माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता । ऐसी वस्तुओं को हम माँग के नियम के अपवाद कहते हैं । माँग के नियम के अपवाद निम्नलिखित हैं –
1. हल्की प्रकार की वस्तुएँ (गिफन वस्तुएँ) : हल्की प्रकार की वस्तुओं को निम्नकोटि की वस्तुएँ भी कहा जाता है । इन वस्तुओं की ओर सर्वप्रथम इंग्लैण्ड के अर्थशास्त्री सर रोबर्ट गिफन ने ध्यान केन्द्रित किया था, जिससे इन वस्तुओं को गिफन वस्तुएँ भी कहते हैं । कुछ वस्तुएँ अन्य वस्तुओं की तुलना में हल्की या निम्नकोटि की वस्तुएँ मानी जाती है । उदा. जीन्स के कपड़े की तुलना में सूती कपड़ा हल्का माना जाता है । शुद्ध घी की तुलना में वनस्पति घी निम्नकोटि का माना जाता है । उसी प्रकार गेहूँ की तुलना में ज्वार निम्नकोटि का अनाज माना जाता है । समाज का गरीब वर्ग कम आय के कारण निम्नकोटि की वस्तुओं की माँग करते हैं ।
यही वर्ग सतत ऊँचा जीवनस्तर प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहता है जिससे वे निम्नकोटि की वस्तुएँ छोड़कर उच्च कोटि की वस्तुओं का उपभोग बढा देते हैं । इस परिस्थिति में यदि निम्नकोटि की वस्तुओं के भाव घटते हैं तब उनकी वास्तविक आय में वृद्धि होती है । जिससे वे निम्नकोटि की वस्तुओं की माँग घटाकर अच्छी वस्तुओं की माँग करते हैं, इसके विपरित स्थिति में यदि निम्नकोटि की वस्तुओं की कीमत बढ़ जाय तो गरीब वर्ग की वास्तविक आय में कमी हो जाती है । जिससे वे उच्च कोटि की वस्तुओं का उपभोग करने के बजाय निम्नकोटि की वस्तुओं का ही उपयोग करते हैं । इस प्रकार निम्नकोटि की वस्तुओं के भाव घटें तो उसकी माँग भी घटती है और इन वस्तुओं के भाव बढ़े तो उसकी माँग भी बढ़ती है । अर्थात् माँग के नियम के विपरीत स्थिति यहाँ देखने को मिलती है ।
2. प्रतिष्ठामूल्य रखनेवाली वस्तुएँ : कई अत्यंत कीमती वस्तुओं में केवल प्रतिष्ठामूल्य ही होता है । उनका उपयोगितामूल्य बहुत ही कम या नहिंवत् होता है । उच्च कोटि के हीरे, मोती, सोना, चांदी, नीलम इत्यादि अत्यंत कीमती वस्तुएँ हैं । इन वस्तुओं की खरीदी केवल धनिक वर्ग ही अपनी ऊँची प्रतिष्ठा को प्रदर्शित करने या बनाये रखने के लिए करता है । इस प्रकार की वस्तुएँ अत्यंत कीमती होने के कारण समाज का अन्य वर्ग जिनकी आय कम है वे इन वस्तुओं की खरीदी नहीं करते हैं । इस प्रकार की कीमती वस्तुओं की कीमत जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे इन वस्तुओं में रहा हुआ प्रतिष्ठामूल्य भी बढ़ता जाता है ।
इसलिए धनिक वर्ग इन वस्तुओं की माँग करता है । इस प्रकार प्रतिष्ठामूल्य रखनेवाली वस्तुओं की कीमत बढ़ने से उसमें रहा हुआ प्रतिष्ठामूल्य बढ़ता है जिससे माँग भी बढ़ती है और कीमत घटने से उसमें रहा हुआ प्रतिष्ठामूल्य भी घटता है जिससे माँग भी घटती है । अर्थात् इस प्रकार की वस्तुओं के संदर्भ में कीमत और माँग के बीच सीधा संबंध देखने को मिलता है ।
3. अत्यंत सस्ती वस्तुएँ : पैन्सिल, रबर, दियासलाई, नमक, पिन, पोस्टकार्ड, मोमबत्ती, अगरबत्ती इत्यादि वस्तुएँ अत्यंत सस्ती होने के कारण ग्राहकों की आय का बहुत कम भाग इन वस्तुओं के पीछे खर्च होता है । इसलिए ऐसी सस्ती वस्तुओं की कीमत में कमी-वृद्धि हो तो व्यक्ति के कुल खर्च पर उसका बहुत कम प्रभाव पड़ता है । अतएव ऐसी वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन होने से वस्तु की माँग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । अर्थात् सस्ती वस्तुओं के लिए माँग का नियम लागू नहीं पड़ता है ।
4. ग्राहकों की अज्ञानता : ग्राहकों में कई बार वस्तुओं की गुणवत्ता या उपयोगिता के सदर्भ में गलत खयाल रहता है । इन परिस्थितियों में भी माँग के नियम के अपवाद अस्तित्व में आते हैं । कई बार ग्राहकों में ऐसी मान्यता रहती है कि जिन वस्तुओं की कीमतें ऊँची है उनकी गुणवत्ता भी ऊँची होगी । सड़क पर कपड़े बेचनेवाले की अपेक्षा ऊँची दुकान में कपड़े बेचनेवाले के कपड़ों की गुणवत्ता ऊँची होगी ऐसी ग्राहकों की मान्यता होती है । किसी विज्ञापन में फिल्मी कलाकार को किसी खास वस्तु का उपभोग करते हुए बताया जाता है तो लोग ऐसी मान्यता रखते हैं कि अवश्य उस वस्तु की गुणवत्ता भी ऊँची होगी ।
इस प्रकार नीची कीमतवाली वस्तु की कीमत बढ़ती है तो ग्राहक यह मान लेता है कि उसकी गुणवत्ता में सुधार हुआ है और कीमत बढ़ने के बावजूद उसकी माँग बढ़ाता है । यदि वस्तुओं की कीमत एकाएक घट जाय तो ग्राहक यह मान लेता है कि जरूर इन वस्तुओं की गुणवत्ता भी नीची होगी । इस प्रकार वस्तुओं की कीमत घटने पर उसकी माँग भी घट जाती है । यहाँ वस्तु की कीमत और माँग के बीच में सीधा संबंध देखने को मिलता है । अर्थात् वस्तु की कीमत बढ़ती है तो माँग बढ़ती है और वस्तु की कीमत घटती है तो माँग भी घटती है ।
इन तमाम परिस्थितियों में माँग का नियम लागू नहीं पड़ता है, जिससे इन्हें माँग के नियम के अपवाद के रूप में जाना जाता . है । यहाँ एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि माँग के नियम के ऐसे अपवाद वास्तव में बहुत कम प्रमाण में देखने को मिलते हैं । ये ऐसे तीव्र अपवाद नहीं है कि जिसमें माँग रेखा का ढाल ही धन ही बन जाए ।
6. माँग की आय सापेक्षता के प्रकारों को समझाइए ।
उत्तर :
माँग की आय सापेक्षता के मुख्य तीन प्रकार है :
1. सकारात्मक (धन) आय सापेक्ष माँग : ग्राहक की आय में वृद्धि होने पर वस्तु की माँग में वृद्धि हो अर्थात् आय में कमी होने पर वस्तु की माँग में कमी हो तो ऐसी वस्तु की माँग को सकारात्मक (धन) आय सापेक्ष माँग कहते हैं । सकारात्मक आय सापेक्ष माँग के भी तीन प्रकार हैं :
(i) इकाई मूल्य सापेक्ष माँग (εy = 1) : यदि वस्तु की कीमत में कोई भी परिवर्तन हो, फिर भी ग्राहकों का वस्तु की खरीदी पर होनेवाले कुल खर्च में कोई भी परिवर्तन न हो अर्थात् कुल खर्च स्थिर रहे, तो वस्तु की माँग इकाई मूल्य सापेक्ष कहलाएगी, जिसे निम्नदर्शित उदाहरण द्वारा समझते हैं ।
कीमत (रुपये में) | माँग (इकाई) | कुल खर्च (रुपये) |
5 | 20 | 100 |
4 | 25 | 100 |
(ii) इकाई से अधिक मूल्य सापेक्ष माँग (εy > 1) :
यदि कीमत बढ़ने के कारण ग्राहकों के कुल खर्च में कमी हो और कीमत घटने के कारण ग्राहकों के कुल खर्च में वृद्धि हो तो ऐसे में उसे माँग की इकाई से अधिक मूल्य सापेक्षता कहते हैं । जैसे :
कीमत (रु.) | माँग (इकाई) | कुल खर्च (रु.) |
5 | 20 | 100 |
3 | 40 | 120 |
(iii) इकाई से कम मूल्य सापेक्ष माँग (εy < 1) :
यदि कीमत के बढ़ने के कारण ग्राहकों के कुल खर्च में भी वृद्धि हो और कीमत घटने के कारण ग्राहकों के कुल खर्च में भी कमी हो, तो उस वस्तु की माँग इकाई से कम मूल्य सापेक्ष है, ऐसा कह सकते हैं । जैसे :
कीमत (रु.) | माँग (इकाई) | कुल खर्च (रु.) |
5 | 20 | 100 |
3 | 30 | 90 |
इस प्रकार इस पद्धति में कीमत और माँग के बीच के व्यस्त सम्बन्ध के आधार पर ही अभ्यास किया जाता है लेकिन उन दोनों के परिवर्तन के कारण कुल खर्च में जिस प्रकार का परिवर्तन पाया जाता है, उसको ही आधार मानकर माँग की मूल्य सापेक्षता के प्रकारों को प्रस्तुत किया जाता है ।
2. नकारात्मक (ऋण) आय सापेक्ष माँग : ग्राहक की आय में वृद्धि होने पर वस्तु की माँग घटे अथवा व्यक्ति की आय में कमी होने पर वस्तु की माँग बढ़े तो ऐसी वस्तु की माँग नकारात्मक (ऋण) आय सापेक्ष माँग कहते हैं । सामान्य रूप से वस्तुएँ हलके प्रकार की (निम्न गुणवत्ता) हो तो आय असर नकारात्मक असर होती हैं । जैसे : बाजरा, नमक, पेन्सिल, कपड़ा आदि ।
3. शून्य आय सापेक्ष माँग : ग्राहक की आय में परिवर्तन हो परंतु वस्तु की माँग में परिवर्तन न हो तो ऐसी वस्तु की माँग को शून्य आय, आय सापेक्ष माँग कहते हैं । सामान्य रूप से खूब ही सस्ती वस्तुओं की माँग शून्य आय सापेक्ष माँग होती है । जैसे : नमक, पोस्टकार्ड, पिन, दियासिलाई आदि ।
7. माँग की प्रतिमूल्य सापेक्षता अर्थात् क्या ? समझाइए ।
उत्तर :
जब एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने से दूसरी वस्तु की (स्थापन्न या पूरक वस्तु) माँग पर उसकी असर होती है तब उसकी असर को मापने को जानने के लिए माँग की प्रतिमूल्य सापेक्षता का उपयोग होता है । इस प्रकार माँग की प्रति मूल्यसापेक्षता अर्थात् एक वस्तु की कीमत में होनेवाले प्रतिशत परिवर्तन कारण दूसरी वस्तु की माँग में होनेवाला प्रतिशत परिवर्तन का प्रमाण । जिसे नीचे की सूत्र के द्वारा प्रस्तुत कर सकते हैं :
8. अंतर स्पष्ट कीजिए :
(1) व्यक्तिगत माँग – बाज़ार माँग
व्यक्तिगत माँग | बाज़ार माँग |
(1) किसी एक ही ग्राहक की माँग का अभ्यास अर्थात् व्यक्तिगत माँग । | (1) एक से अधिक (अनगिनत) ग्राहकों की माँग का अभ्यास अर्थात् बाजार माँग । |
(2) व्यक्तिगत माँग के अभ्यास के लिए बाजार माँग अध्ययन आवश्यक नहीं है । | (2) बाज़ार माँग के अभ्यास के लिए व्यक्तिगत माँग का अभ्यास आवश्यक है । |
(3) व्यक्तिगत माँग के आधार पर लिए गए आर्थिक निर्णय सही नहीं हो सकते । | (3) बाज़ार माँग के आधार पर लिए गए आर्थिक निर्णय सही हो सकते हैं । |
(4) व्यक्तिगत माँग का अभ्यास कम समय में सरल है । | (4) बाज़ार माँग के अभ्यास अधिक समय और कठिनाई भरा है । |
(2) माँग की मूल्य सापेक्षता – माँग की प्रतिमूल्य सापेक्षता
माँग की मूल्य सापेक्षता | माँग की प्रति मूल्य सापेक्षता |
(1) माँग की मूल्य सापेक्षता = वस्तु की माँग में होनेवाला प्रतिशत परिवर्तन / वस्तु की कीमत में होनेवाला प्रतिशत परिवर्तन । | (1) माँग की प्रति मूल्य सापेक्षता = x वस्तु की माँग में होनेवाले प्रतिशत परिवर्तन / y वस्तु की माँग में होनेवाला प्रतिशत परिवर्तन । |
(2) कीमत में होनेवाले परिवर्तन के कारण माँग में होनेवाले परिवर्तन की माप को माँग की मूल्य सापेक्षता कहते हैं । | (2) प्रतिस्थापन में मिलनेवाली वस्तु की कीमत में होनेवाले परिवर्तन के कारण मूल वस्तु की माँग में होनेवाले परिवर्तन की माप को माँग की प्रति मूल्य सापेक्षता कहते हैं । |
(3) माँग की मूल्य सापेक्षता का ख्याल वस्तु की माँग की संवेदनशीलता के समझाने में सहायक बनती है । | (3) माँग की प्रति मूल्य सापेक्षता का ख्याल दोनों वस्तुओं के बीच के संबंध को समझाने में सहायक बनती है । |
(4) माँग की मूल्य सापेक्षता ऋण हो सकती है लेकिन समझाने के लिए उसे धन इकाई में प्रस्तुत की जाती है । | (4) दोनों वस्तु एक-दूसरे यदि पूरक वस्तुएँ हों तो माँग की प्रतिमूल्य सापेक्षता ऋण होगी । |
(3) माँग की तालिका और माँग रेखा
माँग की तालिका | माँग रेखा |
(1) वस्तु की अलग-अलग कीमत पर कितनी माँग है यह दर्शाने के लिए माँग की तालिका बनती है । | (1) माँग की अनुसूचि के अनुसार x और y अक्ष पर प्राप्त बिंदुओं को जोड़नेवाली रेखा को माँग रेखा कहते हैं । |
(2) माँग के नियम को सांख्यिकी दृष्टि से समझाती है। | (2) माँग के नियम को आकृति के रूप में समझाती है । |
(3) माँग की अनुसूचि में अलग-अलग कीमत पर कितनी माँग रहेगी यह जान सकते हैं । | (3) माँग रेखा पर कीमत और माँग के संबंध स्पष्ट करनेवाले बिंदु होते हैं । |
(4) कीमत और माँग में होनेवाले अधिक परिवर्तनों का एक ही सारणी में समावेश कठिन है । | (4) कीमत और माँग में होनेवाले अधिक परिवर्तनों का एक माँग रेखा पर समावेश सरल है । |
(4) आय प्रभाव – प्रतिस्थापन प्रभाव
आय प्रभाव | प्रतिस्थापन प्रभाव |
(1) वास्तविक आय में होनेवाले परिवर्तन का ग्राहक माँग पर पड़नेवाले प्रभाव को आय प्रभाव कहते हैं । | (1) प्रतिस्थापन में मिलनेवाली वस्तु की कीमत में होनेवाले परिवर्तन के कारण मूल वस्तु की माँग पर होनेवाले प्रभाव को प्रतिस्थापन प्रभाव कहते हैं । |
(2) जिस वस्तु की कीमत में परिवर्तन होता है उसी वस्तु की माँग में परिवर्तन होता है । | (2) जिस वस्तु की कीमत में परिवर्तन होता है उसके साथ-साथ उसके प्रतिस्थापन में मिलनेवाली वस्तु की माँग में भी परिवर्तन होता है । |
(3) कीमत घटने से होनेवाले माँग के प्रभाव को माँग में विस्तार कहते हैं । | (3) कीमत घटने के कारण प्रतिस्थापन में मिलनेवाली वस्तु की माँग के प्रभाव को माँग में वृद्धि कहते हैं । |
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए :
1. माँग का अर्थ बताकर माँग को असर करनेवाले परिबलों को समझाइए ।
उत्तर :
सामान्य व्यवहार की भाषा में माँग अर्थात् किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा । जैसे : किसी व्यक्ति को बुखार आया हो और उसे दवा की आवश्यकता हो तो सामान्य व्यवहार की भाषा में उस व्यक्ति की दवा की माँग है ऐसा अर्थघटन किया जा सकता है । किन्तु अर्थशास्त्र की दृष्टि से माँग शब्द एक विशिष्ट अर्थ के साथ सम्बन्ध रखता है । अर्थशास्त्र में माँग केवल इच्छा नहीं है । व्यक्ति की वस्तु प्राप्ति की इच्छा हो, खरीदशक्ति भी हो लेकिन खरीदने की तत्परता न हो तो वह माँग नहीं बन सकती । वस्तु की माँग समय, कीमत, वस्तु खरीदने की इच्छाशक्ति और तैयारी इस प्रकार पाँच परिबलों के आधार पर सर्जित होती है । माँग तभी संभव होगी जब किसी एक निश्चित स्थान, समय और कीमत पर ग्राहक उस वस्तु की खरीदने की इच्छा, शक्ति (मुद्रा) और तैयारी (मुद्रा खर्चने की तैयारी) रखता हो ।
परिभाषा : “किसी निश्चित समय और कीमत पर व ग्राहक की वस्तु खरीदने की इच्छाशक्ति और तैयारी को वस्तु की माँग कहते हैं ।”
आय प्रभाव
माँग को प्रभावित करनेवाले कारक :
किसी भी वस्तु की माँग को प्रभावित करनेवाले कारक (परिबल) दो प्रकार के हैं :
(1) वस्तु की कीमत
(2) कीमत के अतिरिक्त अन्य परिबल ।
(1) वस्तु की कीमत : सामान्य रूप से वस्तु की कीमत बढ़े तो वस्तु की माँग में संकुचन होता है और वस्तु की कीमत घटे तो विस्तार होता है । इस प्रकार कीमत में होनेवाला परिवर्तन माँग पर असर करनेवाला सबसे महत्त्वपूर्ण परिबल है । इस कीमत प्रेरित परिवर्तन को माँग में विस्तार-संकुचन के रूप में जाना जाता है ।
(2) कीमत के अलावा अन्य परिबल : कई बार वस्तु की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता या कीमत स्थिर रहती है फिर भी वस्तु की माँग में परिवर्तन देखने को मिलता है । यह कीमत के अलावा अन्य परिबलों में होनेवाले परिवर्तन के कारण होता है । ये परिबल नीचे दर्शाये अनुसार हैं :
1. ग्राहकों की रुचि एवं पसंदगी : समय के प्रवाह के साथ ग्राहकों की रुचि व फैशन में लगातार परिवर्तन देखने को मिलता है । ऐसी परिस्थिति में किसी एक वस्तु के प्रति ग्राहकों की रुचि या पसंदगी विशेष हो तो उस वस्तु की माँग में बढ़ोत्तरी होती है । यदि किसी वस्तु के प्रति ग्राहकों की अरुचि हो या ग्राहक उस वस्तु को नापसंद करते हों तो उस वस्तु की माँग घट जायेगी । उदा. बड़ौदा में रिक्शे की माँग बढ़ जाने से घोड़ागाड़ी की माँग घट गई, स्कूटर की माँग बढ़ जाने से साईकिल की माँग घट गई । इस प्रकार किसी एक वस्तु की माँग बढ़ती है तो उससे संबंधित अन्य वस्तु की माँग घट जाती है ।
2. ग्राहकों की आय : आय ग्राहक की खरीदशक्ति को निश्चित करती है । यदि व्यक्ति की आय बढ़े तो उसकी खरीदशक्ति बढ़ती है जिससे वह अधिक माँग करता है । क्योंकि आय बढ़ने से वह अधिक से अधिक आवश्यकताओं को संतुष्ट करके आरामदायक जिंदगी जीना चाहता है और चीजवस्तुओं की माँग बढ़ाता है । यदि किसी कारणवश ग्राहकों की आय में कमी हो तो वह अपनी आवश्यकताओं को कम प्रमाण में संतुष्ट करता है, क्योंकि उसकी खरीदशक्ति घट जाती है परिणामस्वरूप वह वस्तु की माँग घटा देता है ।
3. संबंधित वस्तुओं की कीमत : सामान्य रूप से वस्तुओं की अन्य वस्तुओं के साथ दो प्रकार के होते हैं :
(i) स्थानापन्न का सम्बन्ध
(ii) पूरक वस्तुएँ ।
(i) स्थानापन्न वस्तु की कीमत : किसी एक आवश्यकता को एक से अधिक साधनों के द्वारा संतुष्ट किया जा सके तो उन्हें स्थानापन्न वस्तुएँ कहते हैं । उदा. कोलगेट – प्रोमिस, साईकिल – स्कूटर, थम्स-अप-लिमका इत्यादि स्थानापन्न वस्तुएँ हैं । इनकी संख्या में वृद्धि हो. तथा किसी एक की कीमत घटे तो उसकी माँग में बढ़ोत्तरी होती है और अन्य वस्तुओं की माँग में कमी आती है । उसी प्रकार किसी एक वस्तु की कीमत बढ़े तो उस वस्तु की माँग घटती है और अन्य स्थानापन्न वस्तुओं की माँग बढ़ती है ।
(ii) पूरक वस्तु की कीमत : किसी एक आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए एक से अधिक वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है, ऐसी वस्तुओं को पूरक वस्तुएँ कहते हैं । उदा. जूता-मोजा, कलम-स्याही, स्कूटर-पेट्रोल, टेलिविजन-बिजली, चाय-दूध इत्यादि पूरक वस्तुएँ है । इन पूरक वस्तुओं में किसी एक वस्तु की कीमत बढ़े तो उस वस्तु की माँग घटती है । साथ ही उसकी पूरक वस्तु की माँग भी घट जाती है । ठीक उसी प्रकार किसी एक वस्तु की कीमत घटे तो उस वस्तु की माँग बढ़ जाती है, साथ ही उसकी पूरक वस्तु की माँग भी बढ़ जाती है।
4. भविष्य की भाव संबंधी अटकलें : कई बार बाजार में कुछ खास वस्तुओं की कीमत घटने या बढ़ने संबंधी भविष्य की अटकलें लगायी जाती हैं । जिसका चीजवस्तुओं की माँग पर प्रभाव पड़ता है । यदि किसी वस्तु की कीमत भविष्य में बढ़नेवाली है, ऐसी अटकल बाजार में प्रवर्तमान हो जाय तो वर्तमान में उस वस्तु की माँग बढ़ जाती है । यदि भविष्य में किसी वस्तु की कीमत घटने की अटकल प्रवर्तमान हो जाय तो वर्तमान में उस वस्तु की माँग घट जायेगी । क्योंकि ग्राहक भविष्य में कम कीमत में वस्तु खरीदने के लिए आकर्षित होता है ।
5. जनसंख्या और जनसंख्या का आय व वर्ग : जनसंख्या प्रमाण भी वस्तु की बाजार माँग को असर करनेवाला महत्त्वपूर्ण परिबल है । देश की जनसंख्या जितनी हो, उसी प्रमाण ही वस्तुओं का उपयोग होता है इसलिए ऐसा कह सकते हैं कि जनसंख्या बढ़ेगी तो वस्तुओं की मांग भी बढ़ेगी और जनसंख्या घटेगी तो वस्तुओं की माँग भी घटेगी । जनसंख्या का आयुवर्ग में होनेवाले परिवर्तन भी वस्तु की माँग में परिवर्तन लाते हैं ।
6. वातावरण में परिवर्तन : वातावरण या ऋतु परिवर्तन होने से चीजवस्तुओं की माँग में परिवर्तन होता है । उदा. शीतकाल में गरम कपड़े, हीटर्स, गरम मसाले, अंडे, मांस, मछली इत्यादि की माँग बढ़ती है तो इसी समय छाता, सूती कपड़े, पंखे, ठंडे पेय इत्यादि की माँग में कमी हो जाती है । गरमी में पतले कपड़े, ठंडे पेय, पंखे, कूलर, फ्रिज इत्यादि की माँग बढ़ती है तो इन्हीं चीजों की माँग शीतकाल में घट जाती है । उसी प्रकार विविध त्यौहारों में भी कुछ खास प्रकार की वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है । स्कूलें खुलने के समय शिक्षा से संबंधित चीजवस्तुओं की माँग बढ़ती है तो अवकाश के समय पर्यटन से संबंधित चीजवस्तुओं की माँग बढ़ती है और शिक्षा से संबंधित चीजवस्तुओं की माँग घट जाती है ।
7. नवीन खोजें : ज्ञान-विज्ञान में निरंतर नई-नई खोजें होती रहती हैं । जिससे ग्राहक उनसे आकर्षित होकर अपने जीवन को और अधिक सुखमय तरीके से जीना चाहता है और इन वस्तुओं की माँग बढ़ाता है । उदा. वाहन, घड़ी, टेलिविजन इत्यादि में निरंतर खोजें होती रहती हैं, जिससे ऐसी वस्तुएँ की माँग निरंतर बढ़ती रहती है ।
8. सामाजिक रीत-रिवाजों में परिवर्तन : सामाजिक रीत-रिवाजों में निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं । जिनका प्रभाव वस्तुओं की माँग पर पड़ता है । शादी के दौरान शादी से संबंधित चीजवस्तुएँ जैसे साड़ियाँ, कपड़े, सौंदर्यप्रसाधन, गहने व खाने-पीने की चीजों की माँग विशेष रूप से बढ़ जाती है । उसी प्रकार त्यौहारों में कुछ खास प्रकार की वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है । जैसे : होली में रंग व पिचकारी, दीपावली में मिठाई व पटाखों, उत्तरायण में पतंग व डोर की माँग बढ़ जाती है ।
9.तेजी-मंदी की परिस्थिति : अर्थतंत्र में चीजवस्तुओं के भाव सतत बढ़ते रहें तो उसे तेजी या मुद्रास्फीत कहते हैं । ऐसी परिस्थिति में ग्राहकों की मुद्राकीय आय में बढ़ोत्तरी होती है किंतु वास्तविक आय या खरीदशक्ति में कमी होती है क्योंकि मुद्रा के मूल्य में निरंतर कमी होती जाती है । जिससे ग्राहक चाहते हैं कि भविष्य में वस्तु की ऊँची कीमत न चुकानी पड़े इसलिए वे वर्तमान में चीजवस्तुओं की माँग बढ़ाते हैं । इससे विपरीत यदि चीजवस्तुओं की कीमतें सतत घटती हों तो उसे मंदी की परिस्थिति कहते हैं । ऐसे समय मुद्रा का मूल्य बढ़ने से उसकी खरीदशक्ति बढ़ती है । लेकिन ग्राहक यह सोचते हैं कि भविष्य में और भाव घटेंगे तब चीजवस्तु की खरीदी करेंगे तो वर्तमान में भाव घटे होने के बावजूद चीजवस्तुओं की माँग में कमी आ जाती है ।
10. सरकार की नीति : सरकार की आयात-निकास नीति, टैक्स नीति, आय एवं सार्वजनिक खर्च नीति इत्यादि में परिवर्तन होने से वस्तुओं की माँग पर प्रभाव पड़ता है । उदा. यदि सरकार आलू, प्याज का निर्यात करने की नीति अमल में लाये तो भविष्य में वस्तुओं की कमी होने से उसके भाव बढ़ जाने की संभावना रहती है । किंतु आलू, प्याज की निर्यात बंद कर दी जाय तो बाजार में इनका प्रमाण विशेष होने से माँग घट जाती है । यदि सरकार गरीब वर्ग के लोगों को सार्वजनिक सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से खर्च करे तो प्राथमिक वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है । किंतु विज्ञान और टेक्नोलॉजी के पीछे सरकार विशेष खर्च करे तो मौजशौख व विलासी वस्तुओं की माँग बढ़ती है ।
11. विज्ञापन : अनुकरण करना यह मानवस्वभाव बन गया है । टी.वी., रेडियो, चलचित्र एवं अन्य माध्यमों के द्वारा किसी खास वस्तु का विज्ञापन दिया जाय तो ग्राहक उस विज्ञान से आकर्षित होकर उस वस्तु की माँग करता है । यदि फिल्मी कलाकारों के द्वारा सौंदर्य प्रसाधन या अन्य चीजवस्तुओं का विज्ञापन किया जाय तो ग्राहकों में अनुकरण वृत्ति विशेष होने के कारण वे उस वस्तुओं की माँग करते है । उसी प्रकार सरकार बीड़ी, सिगरेट इत्यादि वस्तुएँ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, ऐसा विज्ञापन दे तो ऐसी चीजवस्तुओं की माँग घट जायेगी ।
2. माँग का नियम तालिका और आकृति की सहायता से समझाइए ।
उत्तर :
वस्तु की कीमत और वस्तु की माँग के बीच संबंध की समझ देनेवाले नियम को माँग के नियम के नाम से जानते है । जिसमें वस्तु की कीमत में होनेवाले परिवर्तन के कारण और वस्तु की माँग में होनेवाले परिवर्तन को असर करता है । माँग के नियम को प्रो. आल्फ्रेड मार्शल ने प्रस्तुत किया : “यदि अन्य परिबल स्थिर हों तो वस्तु की कीमत और माँग के बीच व्यस्त संबंध है । अर्थात् वस्तु की कीमत बढ़ने से उसकी माँग में संकुचन होता है और कीमत घटने से उसकी माँग में विस्तार होता है ।” इस नियम, पर ऐसा कह सकते हैं, यदि अन्य परिबल स्थिर हों तो वस्तु की कीमत बढ़ने से उसकी माँग घटती है और कीमत घटने से उसकी माँग बढ़ती है । इस प्रकार माँग का नियम वस्तु की कीमत और माँग के बीच व्यस्त सम्बन्ध स्थापित होता है ।
माँग की तालिका (अनुसूचि) :
दूध की कीमत (रु. में) | दूध की माँग (लीटर में) |
50 | 1 |
40 | 2 |
30 | 3 |
20 | 4 |
10 | 5 |
माँग के नियम को काल्पनिक माँग की तालिका के द्वारा समझाया जा सकता है । किसी एक व्यक्ति के द्वारा दूध की अलग-अलग कीमत पर अलग-अलग माँग को दर्शाया गया है । तालिका में दूध की कीमत 50 रु. है तब व्यक्ति 1 लीटर दूध की माँग करता है । किंतु दूध की कीमत घटकर 40, 30, 20 और 10 रु. होने पर माँग बढ़कर क्रमश: 2, 3, 4 और 5 लीटर हो जाती है । अर्थात् वस्तु की कीमत कम हो तो माँग अधिक होती है और कीमत अधिक होती है तब माँग कम होती है । जिससे वस्तु की कीमत और माँग के बीच व्यस्त सम्बन्ध है । इसी बात को आलेख या आकृति द्वारा समझ सकते हैं :
आकृति में ox अक्ष दूध की माँग (लीटर में) और oy अक्ष पर कीमत (रु. में) दर्शाये गये हैं । दूध की अलगअलग कीमत के सापेक्ष दूध की माँग को आलेख पर दर्शाया जाय तो प्राप्त तमाम बिंदुओं को समाविष्ट करनेवाली रेखा DD दर्शायी जा सकती है । जिसे दूध की माँग रेखा कहते हैं । जब दूध की कीमत 50 रु. है तब माँग 1 लीटर है । अब कीमत बढ़कर 40 रु. हो गई तो माँग बढ़कर 2 लीटर हो गई । इस प्रकार कीमत क्रमशः घटकर 30, 20 और 10 होने पर दूध की माँग बढ़कर क्रमश: 3, 4 और 5 लीटर हो जाती है । इस प्रकार आकृति में a, b, c, d, e को जोड़ने पर DD माँग रेखा प्राप्त होती है, जो बाँयी ओर से दायीं ओर, उपर से नीचे की ओर गति करती है अर्थात् आकृति में ‘DD’ माँग रेखा ऋण ढालवाली है ।
3. व्यक्तिमाँग और बाजार माँग को आकृति से समझाइए ।
उत्तर :
“निश्चित समय दरम्यान किसी एक व्यक्ति (ग्राहक) द्वारा बाजार में अलग अलग कीमत पर होनेवाली वस्तु की माँग को व्यक्तिगत माँग कहते हैं । जबकि बाजार में सभी व्यक्तियों (ग्राहकों) द्वारा अलग अलग कीमत पर होनेवाली वस्तुओं की माँग के योग को बाजार माँग कहते हैं ।”
2. संपूर्ण मूल्य निरपेक्ष माँग (εp = 0) : जब
यदि वस्तु की कीमत में कितना भी परिवर्तन हो जाय फिर भी उस वस्तु की माँग में किसी भी प्रकार का असर (परिवर्तन) न हो तो उसे संपूर्ण मूल्य निरपेक्ष माँग कहते हैं । जिसकी मूल्य सापेक्षता 0 (शून्य) के बराबर होती है ।
जैसे ‘k’ वस्तु की कीमत में 10% वृद्धि हो तो उसके परिणामस्वरूप ‘k’ वस्तु की माँग में कोई परिवर्तन न हो तो उसे वस्तु की माँग को संपूर्ण मूल्य निरपेक्ष माँग कहते हैं ।
संपूर्ण मूल्य निरपेक्ष माँग का अंक हमेशा शून्य होता है । आकृति दर्शाये अनुसार ‘DD’ माँग रेखा y-अक्ष के समांतर है ।
3. इकाई (समप्रमाण) मूल्य सापेक्ष माँग (εp = 1) : यदि वस्तु की कीमत में होनेवाला प्रतिशत परिवर्तन और माँग में होनेवाला प्रतिशत परिवर्तन समान हो तो उसे समप्रमाण मूल्य सापेक्ष माँग कहते हैं । जैसे : ‘s’ वस्तु की कीमत में 5% कमी हो और उस वस्तु की माँग में 5% वृद्धि हो तो उसे वस्तु की माँग की मूल्य सापेक्षता एक है, ऐसा कहेंगे ।
आकृति में दर्शाये अनुसार वस्तु की कीमत PP1 जितनी कमी होने पर जिससे वस्तु माँग में MM1 जितनी वृद्धि होती है जहाँ PP1 कीमत में परिवर्तन और MM1 माँग का परिवर्तन समान परंतु विरुद्ध दिशा में होने से ऐसी वस्तु की माँग को समप्रमाण मूल्य सापेक्ष माँग कहते हैं ।
4. मूल्य सापेक्ष माँग (εp > 1) :
वस्तु की कीमत में होनेवाले प्रतिशत परिवर्तन की अपेक्षा माँग हआ प्रतिशत परिवर्तन अधिक हो तो उसे मूल्य सापेक्ष माँग कहते हैं । जिसका मूल्य हमेशा 1 से अधिक होता है । जैसे ‘R’ वस्तु की कीमत में 10 प्रतिशथ वृद्धि हो और उसके परिणामस्वरूप वस्तु की माँग में 30% कमी हो तो उसे मृत्यु सापेक्ष माँग कहते हैं ।
आकृति में P1P जितनी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से वस्तु की माँग में M1M जितना संकुचन होता है । यहाँ वस्तु की कीमत में हुई वृद्धि की अपेक्षा माँग में हुआ संकोचन अधिक है ।
5. मूल्य निरपेक्ष माँग (εp < 1) :
वस्तु की कीमत में होनेवाले प्रतिशत परिवर्तन की अपेक्षा माँग में होनेवाला प्रतिशत परिवर्तन कम हो तो उसे मूल्य निरपेक्ष माँग कहते हैं । जिसका मूल्य 1 से कम होता है । जैसे – ‘G’ वस्तु की कीमत में 20% वृद्धि हो और उसके परिणामस्वरूप वस्तु की माँग में मात्र 5% कमी हो तो वह वस्तु की मूल्य निरपेक्ष माँग है ।
= \(\frac{-5 \%}{+20 \%}=-\frac{1}{4}\|-0.25\|\)
आकृति में PP1 जितनी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से वस्तु की माँग में MM1 जितनी कमी होती है । यहाँ वस्तु की कीमत में हुयी वृद्धि की अपेक्षा माँग में हुयी कमी कम है ।
5. एक ब्रांड के टी.वी. की प्रति टी.वी. कीमत 11,000 रु. से घटकर 10,000 रु. हो, उसके कारण उसकी माँग 7,000 नंग से बढ़कर 9,800 नंग होनी संभव है । माँग की मूल्य सापेक्षता किस प्रकार की है, उसे प्रतिशत पद्धति से निश्चित कीजिए ।
उत्तर :
कीमत में होनेवाला प्रतिशत परिवर्तन :
यहाँ माँग की मूल्य सापेक्षता 4.4 है जो 1 से अधिक है । जिससे टी.वी. की माँग मूल्य सापेक्ष माँग है ।
6. किसी एक माँग रेखा AB पर स्थित MN माँग के लिए मूल्य सापेक्षता किस प्रकार निर्धारित की जा सकती है, उसे काल्पनिक उदाहरण से समझाइए ।
उत्तर :
माँग रेखा पर कि किसी हिस्से की मूल्य सापेक्षता प्राप्ति का सूत्र :
7. एक काल्पनिक तालिका के अनुसार A, B, C और D परिवारों के लिए व्यक्तिगत माँग रेखा और बाज़ार माँग रेखा एक ही आलेख्न पर दर्शाकर अवलोकन कीजिए ।
उत्तर :
तालिका :
(सूचना : बाजार माँग रेखा संलग्न बनाती है खण्डित नहीं)
आलेख :
आलेख का विवरण :
A व्यक्ति की व्यक्तिगत माँग रेखा A है ।
B व्यक्ति की व्यक्तिगत माँग रेखा B है ।
C व्यक्ति की व्यक्तिगत माँग रेखा C है ।
D व्यक्ति की व्यक्तिगत माँग रेखा D है ।
जब कि बाजार माँग रेखा को DD’ द्वारा आलेख पर दर्शाया गया है ।
निष्कर्ष :
- व्यक्तिगत माँग रेखा की ढलान ऋण प्राप्त होती है ।
- बाज़ार माँग रेखा DD’ का ढाल व्यक्तिगत माँग रेखा से कम है ।
- किसी निश्चित कीमत पर व्यक्तिगत माँग समान और भिन्न दोनों है ।
- अलग अलग व्यक्तिगत माँग रेखाओं की सहायता से बाज़ार माँग रेखा बनाई जाती है ।
- एक ही आलेख में व्यक्तिगत माँग रेखा कई और बाज़ार माँग रेखा एक ही प्राप्त होती है ।