GSEB Solutions Class 11 Economics Chapter 2 मूलभूत ख्याल और संकल्पनाएँ

GSEB Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Economics Chapter 2 मूलभूत ख्याल और संकल्पनाएँ Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Economics Chapter 2 मूलभूत ख्याल और संकल्पनाएँ

GSEB Class 11 Economics मूलभूत ख्याल और संकल्पनाएँ Text Book Questions and Answers

स्वाध्याय

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए :

1. मानव जीवन के लिए वस्तु कितनी उपयोगी है, यह बात वस्तु का कौन-सा मूल्य दर्शाती है ?
(A) विनिमय मूल्य
(B) उपयोगिता मूल्य
(C) उपयोग मूल्य
(D) आंतरिक मूल्य
उत्तर :
(B) उपयोगिता मूल्य

2. वस्तु या सेवा के बदले में चुकायी जानेवाली मुद्राकीय इकाई का प्रमाण अर्थात् ……………………….
(A) मूल्य
(B) विनिमय
(C) कीमत
(D) संपत्ति
उत्तर :
(C) कीमत

3. निम्न में से किस वस्तु का समावेश भौतिक वस्तु में होता है ? ।
(A) संगीत
(B) शिक्षण
(C) डॉक्टरी सलाह
(D) फ्रीज
उत्तर :
(B) शिक्षण

4. संपत्ति निम्नलिखित विकल्प में से कौन-सा लक्षण नहीं रखती है ?
(A) उपयोगिता गुण रखती है ।
(B) उसकी कमी होनी चाहिए ।
(C) बाह्यरूप रखते हैं ।
(D) विनिमयपात्रता नहीं होनी चाहिए ।
उत्तर :
(D) विनिमयपात्रता नहीं होनी चाहिए ।

5. ‘तमाम प्राकृतिक संपत्ति’ अर्थात् ……………………..
(A) पूँजी
(B) श्रम
(C) जमीन
(D) संपत्ति
उत्तर :
(C) जमीन

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6. मूल्य का अंग्रेजी शब्द ………………………..
(A) Price
(B) Value
(C) Fund
(D) Demand
उत्तर :
(B) Value

7. व्यवहार में मूल्य के कितने प्रकार है ?
(A) दो
(B) चार
(C) छः
(D) आठ
उत्तर :
(A) दो

8. जिन भौतिक बातों से मनुष्य अपनी आवश्यकताएँ संतुष्ट करे वह ………………………..
(A) संपत्ति
(B) वस्तु
(C) साधन
(D) उत्पादन
उत्तर :
(B) वस्तु

9. मानसिक आवश्यकताएँ किससे संतुष्ट होती है ?
(A) वस्तु
(B) साधन
(C) सेवा
(D) भौतिक वस्तु
उत्तर :
(C) सेवा

10. निम्नलिखित में से नाशवंत वस्तु कौन-सी है ?
(A) टी.वी.
(B) फ्रीज
(C) मोटर साइकल
(D) दूध
उत्तर :
(D) दूध

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11. निम्न में से कौन-सी मालिकी की वस्तु स्पर्धात्मक गुण रखती है ?
(A) व्यक्तिगत
(B) सार्वजनिक
(C) संयुक्त
(D) सहकार
उत्तर :
(A) व्यक्तिगत

12. उत्पादन के मुख्य साधन कितने हैं ?
(A) दो
(B) चार
(C) तीन
(D) छः
उत्तर :
(B) चार

13. निम्न में से कौन-सा साधन लाभ का अधिकारी होता है ?
(A) श्रम
(B) पूँजी
(C) जमीन
(D) नियोजक
उत्तर :
(D) नियोजक

14. भूमि को उसके प्रतिफल के रूप में इनमें से क्या मिलता है ?
(A) किराया
(B) वेतन
(C) लाभ
(D) ब्याज
उत्तर :
(A) किराया

15. उत्पादन के साधनों का संयोजन करनेवाले को …………………..
(A) व्यवस्थापक कहते हैं ।
(B) नियोजक कहते हैं ।
(C) श्रमिक कहते हैं ।
(D) निवेशक कहते हैं ।
उत्तर :
(B) नियोजक कहते हैं ।

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16. किस साधन की पूर्ति स्थिर है ?
(A) श्रम
(B) पूँजी
(C) जमीन
(D) नियोजक
उत्तर :
(C) जमीन

17. किसका स्थानांतरण नहीं हो सकता है ?
(A) संपत्ति
(B) विचारों
(C) जमीन
(D) पूँजी
उत्तर :
(C) जमीन

18. सार्वजनिक वस्तुओं का उपयोग किस स्तर पर होता है ?
(A) सामूहिक
(B) व्यक्तिगत
(C) निजी
(D) इनमें से एक भी नहीं
उत्तर :
(A) सामूहिक

19. व्यापार चक्र की परिभाषा किस अर्थशास्त्री ने दी है ?
(A) मार्शल
(B) स्मिथ
(C) रॉबिन्स
(D) होने
उत्तर :
(D) होने

20. अर्थशास्त्र की परिभाषा संपत्ति के शास्त्र के रूप में किसने दी है ?
(A) हेबरलर
(B) होने
(C) एडम स्मिथ
(D) प्रो. मार्शल
उत्तर :
(C) एडम स्मिथ

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के एक वाक्य में उत्तर लिखिए ।

1. मूल्य का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
मूल्य अर्थात् वस्तु या सेवा का अन्य वस्तु के प्रमाण में विनिमय मूल्य ।

2. कीमत अर्थात् क्या ?
उत्तर :
कीमत अर्थात् वस्तु या सेवा के बदले में चुकाया जानेवाला मुद्राकीय इकाई का प्रमाण ।

3. सर्वसुलभ वस्तुओं का अर्थ और उदाहरण दीजिए ।
उत्तर :
जो वस्तुएँ सभी के लिए सरलता से प्राप्त हो जाएँ, आपूर्ति पर किसी का नियंत्रण न हो तो उन्हें सर्वसुलभ वस्तुएँ कहते हैं । जैसे – हवा, सूर्यप्रकाश आदि ।

4. अर्थशास्त्र में नाशवंत वस्तुएँ किसे गिना जाता है ?
उत्तर :
जिन वस्तुओं का उपयोग दीर्घकालीन समय तक न कर सकते हों उन्हें नाशवंत वस्तुएँ कहते हैं । जैसे : बिस्किट, दूध, फल

5. उपयोगी वस्तुओं का अर्थ और उदाहरण दीजिए ।
उत्तर :
जिन वस्तुओं का उपयोग सीधे-सीधे अथवा प्रत्यक्ष रूप से करते हों तो उसे उपयोगी वस्तु कहते हैं । जैसे : भोजन, वस्त्र, आवास

6. किस संपत्ति को व्यक्तिगत संपत्ति कहते हैं ?
उत्तर :
जिस संपत्ति की मालिकी निजी हो और उसके उपयोग का आधार भी निजी निर्णय पर हो तो उसे व्यक्तिगत संपत्ति कहते हैं ।

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7. साधन का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
तुष्टिगुण सर्जन की प्रक्रिया में जो सहायक हो तो उसे साधन कहते हैं ।

8. पूँजी का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
जो भौतिक वस्तुएँ उत्पादन में सहायक हो उसे पूँजी कहते हैं । पूँजी मानवसर्जित साधन है, जो मनुष्य के कार्य को सरल बनाता है ।
जैसे : यंत्र

9. हेबर टेलर के मतानुसार व्यापार चक्र की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर :
व्यापार चक्र की परिभाषा हेबर टेलर के अनुसार – ‘अर्थतंत्र में क्रमश: आनेवाले अच्छे और बुरे (आर्थिक) परिवर्तन अर्थात् व्यापार चक्र ।

10. व्यापार चक्र के कितने सोपान हैं ? कौन-कौन से ?
उत्तर :
व्यापार चक्र के चार सोपान हैं :

  1. तेजी
  2. मंदी
  3. कमी
  4. सुधार

11. व्यवहार की दृष्टि से मूल्य के कितने प्रकार हैं ? कौन-कौन से ?
उत्तर :
व्यवहार की दृष्टि से मूल्य के दो प्रकार हैं :

  1. उपयोगिता मूल्य
  2. विनिमय मूल्य

12. आर्थिक अध्ययन में वारंवार किन दो शब्दों का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर :
आर्थिक अध्ययन में वारंवार संपत्ति और कल्याण दो शब्दों का उपयोग किया जाता है ।

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13. संपत्ति का अर्थ लिखो ।
उत्तर :
बाह्य उपयोगी, विनिमय पात्र और कमीवाली वस्तु अर्थात् संपत्ति ।

14. मालिकी के आधार पर संपत्ति के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर :
मालिकी के आधार पर संपत्ति के दो प्रकार हैं :

  1. व्यक्तिगत संपत्ति
  2. सामाजिक संपत्ति ।

15. राष्ट्रीय संपत्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर :
देश की मालिकी की संपत्ति को राष्ट्रीय संपत्ति कहते हैं । जैसे : नदी, पर्वत, रास्ते आदि ।

16. कल्याण अर्थात् क्या ?
उत्तर :
कल्याण अर्थात् अच्छी स्थिति, परिस्थिति में सुधार । आर्थिक रूप से कहें तो भौतिक जीवन स्तर में सुधार बहुत अच्छी स्थिति का निर्माण ।

17. उत्पादन के साधन कितने और कौन-कौन से हैं ?
उत्तर :
उत्पादन के चार साधन हैं :

  1. भूमि
  2. पूँजी
  3. श्रम
  4. नियोजक ।

18. पूँजी कैसा साधन है ?
उत्तर :
पूँजी मानवसर्जित साधन है ।

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19. व्यापार चक्र में व्यापार के मुख्य दो सोपान कौन-कौन से है ?
उत्तर :
व्यापार चक्र में व्यापार के मुख्य दो सोपान है – अच्छा (अनुकूल) और बुरा (प्रतिकूल)

20. श्रम के प्रतिफल के रूप में क्या मिलता है ?
उत्तर :
श्रम के प्रतिफल के रूप में वेतन मिलता है ।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए :

1. वस्तुओं और सेवाओं का अर्थ उदाहरण के साथ समझाइए ।
उत्तर :
वस्तुओं : मनुष्य अपनी विविध आवश्यकताओं को विविध रीति से संतुष्ट करने का प्रयत्न करता है । जिन भौतिक वस्तुओं द्वारा आवश्यकताएँ हों तो उसे वस्तुएँ कहते हैं । जैसे : भोजन, वस्त्र, आवास ।

सेवाएँ : जिन अभौतिक वस्तुओं के द्वारा मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता हो तो उसे सेवाएँ कहते हैं । जैसे : शिक्षा, स्वास्थ्य ।

2. टिकाऊ वस्तुओं का अर्थ उदाहरण देकर समझाइए ।
उत्तर :
जिन वस्तुओं का उपयोग दीर्घकालीन समय तक कर सकते हों, उन्हें हम टिकाऊ वस्तुएँ कहते हैं । जैसे : टी.वी., फ्रीज, रेडियो, आदि ।

3. व्यक्तिगत वस्तु और सार्वजनिक वस्तुओं के बीच अंतर के दो मुहे बताइए ।
उत्तर :
इस प्रश्न के उत्तर के लिए मुद्देसर प्रश्नों के प्रश्न 12 का उत्तर देखिए ।

4. अर्थशास्त्र में किन वस्तुओं को उपयोग या उपभोग की वस्तुएँ कहते हैं ?
उत्तर :
अर्थशास्त्र में जिन वस्तुओं का उपयोग सीधे-सीधे या प्रत्यक्ष रूप से कर सकते हो तो उन्हें उपयोग या उपभोग की वस्तुएँ कहते हैं । उपयोग की वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैं : टिकाऊ वस्तुएँ और नाशवंत वस्तुएँ ।

5. प्रो. मार्शल के अनुसार संपत्ति का अर्थ बताओ ।
उत्तर :
प्रो. मार्शल के अनुसार – “जो वस्तु उपयोगी हो, कमी हो, विनिमय पात्र हो और जिस पर व्यक्तिगत मालिकी संभव हो तो वह संपत्ति है ।”

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6. व्यक्तिगत संपत्ति और सामाजिक संपत्ति का अर्थ दीजिए ।
उत्तर :
व्यक्तिगत संपत्ति : जिस वस्तु की मालिकी व्यक्तिगत हो, इस वस्तु के उपयोग का निर्णय व्यक्ति का व्यक्तिगत हो तो उसे व्यक्तिगत संपत्ति कहते हैं । जैसे : बिस्किट, मोबाइल फोन आदि ।

सामाजिक संपत्ति : जिस वस्तु की मालिकी सार्वजनिक या सरकार की हो तथा जिस वस्तु का उपयोग व्यक्ति के अधीन न हो तो उसे सामाजिक संपत्ति कहते हैं । जैसे : सार्वजनिक बगीचे ।

7. उत्पादन का अर्थ समझाइए ।
उत्तर :
मनुष्य की आवश्यकताओं को संतुष्ट कर सकें इस प्रकार से वस्तु या सेवा को उपयोगी स्वरूप दिया जाये तो वह उत्पादन है । सरल शब्दों में कहें तो उपयोगिता का गुण सर्जन करना (तुष्टिगुण सर्जन) करने की प्रक्रिया अर्थात् उत्पादन । जैसे लकड़ी को कुरशी के रूप में बदलने से उसमें उपयोगिता का गुण बढ़ता है ।

8. उत्पादन के साधन के संदर्भ में श्रम का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
अन्य व्यक्ति के अंतरगत (या सूचना के अनुसार) प्रतिफल की अपेक्षा के साथ होनेवाला मानसिक या शारीरिक कार्य करें तो उसे श्रम कहते हैं तथा श्रम करनेवाले को श्रमिक कहते हैं ।

9. सार्वजनिक वस्तुओं के दो लक्षण लिखिए ।
उत्तर :
सार्वजनिक वस्तुओं के लक्षण निम्नानुसार हैं :

  1. जिन वस्तु की मालिकी सरकार या सार्वजनिक संस्था की हो वह सार्वजनिक वस्तु है ।
  2. सार्वजनिक वस्तु का उपयोग सामूहिक स्तर पर होता है ।
  3. सार्वजनिक वस्तु बिन स्पर्धात्मक होती है ।
  4. सार्वजनिक वस्तु से कोई भी वंचित नहीं रहता है ।
  5. सार्वजनिक वस्तु का उपयोग विशाल क्षेत्र है ।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्देसर लिखिए :

1. कीमत और मूल्य के बीच अंतर उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
दैनिक जीवन में हम ‘कीमत’ और ‘मूल्य’ को समानार्थी शब्द के रूप में उपयोग करते हैं । जैसे – ‘यह वस्तु मूल्यवान है’ ‘यह वस्तु कीमती है ।’ परंतु अर्थशास्त्र में दोनों शब्दों के अर्थ अलग-अलग हैं ।

मूल्य के मुख्य रूप से दो स्वरूप हैं – उपयोगिता मूल्य और विनिमय मूल्य । अर्थशास्त्र में जहाँ मूल्य शब्द का उपयोग विनिमय मूल्य के संदर्भ में किया जाता है । अर्थशास्त्र के अध्ययन में मूल्य शब्द का अर्थ – ‘एक वस्तु के बदले में अन्य वस्तु की कितनी इकाई मिलेंगी, उसका प्रमाण यह उस वस्तु का मूल्य दर्शाता है ।’ और जब वस्तु के बदले में मुद्राकीय इकाई का भुगतान हो तब वस्तु के बदले में भुगतान की मौद्रिक इकाई उस वस्तु की कीमत दर्शाती है । इस प्रकार, मूल्य अर्थात् वस्तु या सेवा का अन्य वस्तु के प्रमाण में विनिमय मूल्य ।

कीमत अर्थात् वस्तु या सेवा के बदले में भुगतान की जानेवाली मौद्रिक इकाई का प्रमाण ।
जैसे : 100 किलोग्राम गेहूँ के लिए 200 किलोग्राम चावल दिये जायें तो 100 किलोग्राम गेहूँ का मूल्य 200 किग्रा चावल है ।
जब 100 किलोग्राम गेहूँ के लिए 3000 रु. भुगतान किये जायें तब ऐसा कहेंगे कि 100 किलोग्राम गेहूँ की कीमत 3000 रु. है ।

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2. वस्तुओं के प्रकार बताकर उपयोग की वस्तुएँ और उत्पादक वस्तुओं का ख्याल उदाहरण देकर समझाइए ।
उत्तर :
वस्तुओं के निम्नलिखित प्रकार हैं :

  1. भौतिक और अभौतिक वस्तुएँ
  2. सर्वसुलभ और आर्थिक (कमीवाली) वस्तुएँ
  3. टिकाऊ और नाशवंत वस्तुएँ
  4. व्यक्तिगत और सार्वजनिक वस्तुएँ
  5. उपयोग और उत्पादक वस्तुएँ

अब इनमें से उपयोग और उत्पादक वस्तुओं की चर्चा करेंगे । मनुष्य की आवश्यकताओं को संतुष्ट करनेवाली वस्तुएँ दो प्रकार से संतुष्ट प्रदान करती हैं । प्रत्यक्ष अर्थात् सीधे-सीधे संतोष प्रदान कर सके । अथवा परोक्ष रूप से संतोष देने में सहायता करे । जैसे : भोजन मनुष्य की आवश्यकता को सीधे-सीधे संतुष्टि प्रदान करता है । जबकि भोजन बनाने के लिए बर्तनों का उपयोग किया जाता है । तो बर्तन परोक्ष रूप से संतोष प्रदान करते है ।

इस प्रकार :
जो वस्तुएँ सीधे-सीधे प्रत्यक्ष उपयोग द्वारा आवश्यकताओं को संतुष्टि प्रदान करें उन्हें उपयोग की वस्तुएँ कहते हैं ।
जो वस्तुएँ उत्पादन प्रक्रिया में हिस्सा लेकर तुष्टिगुण का सर्जन करने में सहायक हों उन्हें उत्पादक वस्तुएँ कहते हैं ।

3. संपत्ति के प्रकार बताकर राष्ट्रीय संपत्ति और अंतर्राष्ट्रीय संपत्ति का ख्याल उदाहरण देकर समझाइए ।
उत्तर :
संपत्ति के मुख्य प्रकार निम्नानुसार हैं :

  1. व्यक्तिगत संपत्ति और सामाजिक संपत्ति
  2. राष्ट्रीय संपत्ति और अंतर्राष्ट्रीय संपत्ति
    अब इसमें से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संपत्ति की चर्चा करेंगे ।

(i) राष्ट्रीय संपत्ति : देश की मालिकी की संपत्ति को राष्ट्रीय संपत्ति कहते हैं । जैसे : नदी, पर्वत, रणप्रदेश, सार्वजनिक रास्ते, ऐतिहासिक इमारतें यह सब राष्ट्रीय संपत्ति है । जिन पर सभी देशवासियों का समान अधिकार है ।
(ii) अंतर्राष्ट्रीय संपत्ति : जो संपत्ति अन्तर्राष्ट्रीय मालिकी की हो तो उसे अंतर्राष्ट्रीय संपत्ति कहते हैं । जैसे : हवा, पानी, आदि ।

4. उत्पादन-साधन का अर्थ उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :
मनुष्य की आवश्यकताएँ अमर्यादित है । इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाता है । प्रकृति में से प्राप्त वस्तु का मनुष्य सीधे-सीधे उपयोग नहीं कर सकता है । मनुष्य उस वस्तु को मनुष्य की आवश्यकता को संतुष्टि देने में वस्तु या सेवा को उपयोगी स्वरूप दिया जाये तो उसे उत्पादन कहते हैं । सरल शब्दों में उपयोगिता का गुण सर्जन करना (तुष्टिगुण का सर्जन) करने की प्रक्रिया अर्थात् उत्पादन ।

उदाहरण स्वरूप लकड़ी में से कुरशी बनायी जाये तो उसमें तुष्टिगुण (उपयोगिता) में वृद्धि होती है और तुष्टिगुण सर्जन की प्रक्रिया में जो सहायक हो उन्हें साधन कहते हैं ।

उत्पादन के चार साधन हैं :

  1. भूमि
  2. श्रम
  3. पूँजी
  4. नियोजक

5. व्यापार चक्र की परिभाषा देकर उसके आधार पर व्यापार चक्र के महत्त्वपूर्ण सोपान बताइए ।
उत्तर :
विस्तार वाले प्रश्नों में प्रश्न नं. 3 का उत्तर देखें ।

6. व्यापार चक्र की परिभाषा और उसके लक्षण बताइए ।
उत्तर :
‘व्यापार के अच्छे और बुरे सोपान क्रमश: आयें तो उसे व्यापार चक्र कहते हैं ।’
व्यापार चक्र के लक्षण निम्नानुसार हैं :

  1. अर्थतंत्र में आर्थिक उतार-चढ़ाव आता है, जिससे व्यापार चक्र प्रभावित होता है ।
  2. अर्थतंत्र में अच्छे (अनुकूल) और बुरे (प्रतिकूल) ऐसे दो व्यापार सोपान देखने को मिलते हैं ।
  3. मूलभूत रूप से अर्थतंत्र में उपयोग के परिणामस्वरूप उत्पन्न माँग में परिवर्तन होता है ।
  4. व्यापार चक्रीय आरोह-अवरोह समान समयांतर पर उत्पन्न नहीं होता है ।

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7. भूमि अर्थात् क्या ? उसके लक्षण बताइए ।
उत्तर :
“मनुष्य के उत्पादन में सहायक होनेवाले प्राकृतिक तत्त्वों को जमीन कहते हैं ।” अर्थशास्त्र में भूमि अर्थात् जमीन नहीं । भूमि अर्थात् संपूर्ण प्राकृतिक तत्त्व जो मनुष्य के उत्पादन में उपयोग किया जानेवाला कच्चा माल । जैसे : खनिज, खान, पर्वत, नदी, हवा, पानी, सूर्यप्रकाश, जलवायु आदि ।

भूमि के लक्षण निम्नानुसार है :

  1. जमीन प्रकृति की देन है । अर्थात् वह मानवसर्जित नहीं है ।
  2. जमीन की कुल आपूर्ति स्थिर है । अर्थात् मनुष्य अपने प्रयत्नों से बढ़ा-घटा नहीं सकता है ।
  3. जमीन अगतिशील है । अर्थात् मनुष्य अपने प्रयत्नों से एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जा सकता है ।
  4. जमीन की फलद्रुपता अलग-अलग होती है ।
  5. जमीन के प्रतिफल के रूप में मिले उसे किराया कहते हैं ।

8. श्रम का अर्थ बताकर उसके लक्षण बताइए ।
उत्तर :
“अन्य व्यक्ति के अंतर्गत (या सूचनानुसार) प्रतिफल की अपेक्षा के साथ होनेवाला मानसिक या शारीरिक कार्य करे तो उसे . श्रम कहते हैं और श्रम करनेवाले को श्रमिक कहते हैं ।”

श्रम के लक्षण निम्नानुसार हैं :

  1. श्रम और श्रमिक अविभाज्य हैं ।
  2. श्रम नाशवंत है ।
  3. श्रम का संग्रह नहीं हो सकता है ।
  4. सामाजिक-मानसिक कारण गतिशीलता को प्रभावित करते हैं ।
  5. प्रत्येक इकाई की कार्यक्षमता भिन्न भिन्न होती है ।
  6. श्रम पूर्ति आधार जनसंख्या पर है ।
  7. श्रम का चुकाये जानेवाले प्रतिफल को वेतन कहते हैं ।

9. पूँजी अर्थात् क्या ? लक्षण लिखिए ।
उत्तर :
पूँजी अर्थात् ऐसी भौतिक वस्तुएँ जो उत्पादन में सहायक हों ।
जैसे : यंत्र, रेलवे इंजन, हवाई जहाज, ट्रेक्टर आदि ।
पूँजी के लक्षण निम्नानुसार हैं :

  1. पूँजी उत्पादन का मानवसर्जित साधन है ।
  2. पूँजी सबसे अधिक गतिशील उत्पादन का साधन है ।
  3. पूँजी में कमी का तत्त्व होता है ।
  4. पूँजी के प्रतिफल को व्याज कहते हैं ।

10. नियोजक अर्थात् क्या ? उसके लक्षण बताइए ।
उत्तर :
“उत्पादन के साधनों का संयोजन करनेवाले को नियोजक कहते हैं ।” यहाँ ध्यान रहे व्यवस्थापक और नियोजक के बीच अंतर है । व्यवस्थापक (Manager) वेतन प्राप्त कर्मचारी है, जो साधनों की व्यवस्था करता है ।

नियोजक के लक्षण निम्नानुसार है :

  1. नियोजक ही उत्पादन सम्बन्धी निर्णय लेता है ।
  2. नियोजक सभी जोखमों का सामना करता है ।
  3. नियोजक यह नियोजक का गुण है ।
  4. नियोजक शेष आय का अधिकारी है ।
  5. नियोजक को प्राप्त होनेवाले प्रतिफल को लाभ कहते हैं ।

11. संपत्ति और कल्याण के बीच सम्बन्ध की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
सामान्य रूप से ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति की संपत्ति में वृद्धि हो तो उसके कल्याण में वृद्धि होगी । देश की संपत्ति में वृद्धि हो तो देश के लोगों का कल्याण होगा । परंतु व्यक्ति के लिए यह बात सत्य है परंतु देश के उपर यह लागू नहीं पड़ता है । क्योंकि कल्याण का आय के वितरण के साथ सम्बन्ध है । देश की संपत्ति में वृद्धि हो परंतु उसका वितरण असमान होने से कुछ लोगों के हाथ में ही केन्द्रित हो तो देश के सभी लोगों का कल्याण संभव नहीं है ।

कल्याण को प्रजा के सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यों के साथ जोड़ा जाये तो संपत्ति और कल्याण का सीधा सम्बन्ध माप नहीं सकते हैं । कारण कि अर्थशास्त्र नैतिक मूल्यों का निर्णय नहीं करता है ।

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12. व्यक्तिगत वस्तु और सार्वजनिक वस्तुओं के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :

व्यक्तिगत वस्तु सार्वजनिक वस्तु
1. जिस वस्तु का स्वामित्व व्यक्तिगत हो तो उसे व्यक्तिगत वस्तु कहते हैं । 1. जिस वस्तु की मालिकी सार्वजनिक संस्था या सरकार की हो तो उसे सार्वजनिक वस्तु कहते हैं ।
2. वस्तु के उपयोग का निर्णय निजी व्यक्ति के अधीन होता है । 2. वस्तु के उपयोग का निर्णय किसी भी व्यक्ति का व्यक्तिगत स्तर पर नहीं होता है ।
3. निजी वस्तु में स्पर्धात्मक गुण होता है । 3. इसमें स्पर्धात्मक गुण नहीं होता है ।
4. इस वस्तु का उपयोग क्षेत्र मर्यादित होता है । 4. इस वस्तु का उपयोग क्षेत्र विशाल होता है ।

13. उपयोगिता मूल्य और विनिमय मूल्य के बीच सम्बन्ध की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
वस्तु का मूल्य दो प्रकार का होता है :

  1. उपयोगिता मूल्य
  2. विनिमय मूल्य ।

वस्तु मानवजीवन के लिए कितना उपयोगी है उसे उसका उपयोगिता मूल्य कहते हैं । जब वस्तु या सेवा से अन्य वस्तु या सेवा कितनी इकाई खरीद सकते हैं तो उसे विनिमय मूल्य कहते हैं । वस्तु का उपयोगिता मूल्य तो उसका विनिमय मूल्य होगा ही ऐसा नहीं कह सकते हैं । परंतु जिसका विनिमय मूल्य होगा उस वस्तु का उपयोगिता मूल्य होगा ही । जिन वस्तुओं का उपयोगिता मूल्य खूब अधिक हो, इन वस्तुओं की आपूर्ति अभाव हो, उस पर किसी व्यक्ति या पेढ़ी का नियंत्रण न हो ऐसी वस्तुओं का विनिमय मूल्य कम होता है । जैसे : सूर्यप्रकाश, हवा, पानी आदि । जबकि वस्तु की कमी हो आपूर्ति पर एकाध या कुछ लोगों का नियंत्रण ऐसी वस्तुओं का उपयोगिता मूल्य कम हो तो भी इन वस्तुओं का विनिमय मूल्य अधिक होता है । जैसे – सोना, चाँदी, हीरा, माणिक आदि । विनिमय मूल्य अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग होता है ।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए :

1. संपत्ति का अर्थ देकर संपत्ति के लक्षणों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
एडम स्मिथ ने अर्थशास्त्र की परिभाषा संपत्ति (धन) के शास्त्र के रूप में दी तभी से आर्थिक अध्ययन में संपत्ति का अर्थ और महत्त्व की चर्चा होने लगी । आल्फ्रेड मार्शल ने संपत्ति की परिभाषा निम्नानुसार दी : जो वस्तु उपयोगी हो, कमी हो, विनिमय पात्र हो और जिस पर व्यक्तिगत स्वामित्व हो सकता हो उसे संपत्ति कहते हैं ।’

संपत्ति के लक्षण :
संपत्ति के लक्षण निम्नानुसार है :
(1) संपत्ति उपयोगिता का गुण रखती है : मानव आवश्यकता को संतुष्ट करने का गुण अर्थात् उपयोगिता का गुण । संपत्ति का प्रथम लक्षण उपयोगिता का है । वह मनुष्य की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने का गुण रखती है अर्थात् वह उपयोगी है । जैसे : मकान, वाहन, सोना, चांदी आदि संपत्ति हैं ।

(2) संपत्ति में कमी का गुण होना चाहिए : जिस वस्तु की कमी होती है उसी वस्तु का विनिमय मूल्य होता है । सर्वसुलभ वस्तुएँ सभी को सरलता से मिल जाती हैं, इसीलिए उन्हें संपत्ति नहीं कह सकते क्योंकि उनमें विनिमय-गुण नहीं होता है । इसलिए जिस वस्तु की कमी हो वही संपत्ति गिनी जायेगी ।

(3) संपत्ति भौतिक या बाह्य रूप रखती हैं : संपत्ति का भौतिक या बाह्य स्वरूप यह महत्त्वपूर्ण लक्षण है । उस वस्तु में प्रथम या द्वितीय स्वरूप में विनिमय संभव होना चाहिए । व्यक्ति में ज्ञान, समझ, कला यह संपत्ति नहीं है क्योंकि इनका विनिमय नहीं हो सकता । यह संबंधित व्यक्ति के साथ ही रहती है वह उसका आंतरिक गुण है ।

(4) संपत्ति विनिमय पात्र होनी चाहिए : संपत्ति में विनिमय पात्र होना यह महत्त्वपूर्ण गुण या लक्षण है । उसे दूसरों को देकर उसके बदले दूसरी वस्तु प्राप्त करने का गुण होना चाहिए । संपत्ति मात्र वर्तमान ही नहीं भविष्य की आवश्यकताओं को भी संतुष्ट करने की क्षमता होनी चाहिए । यह तभी संभव हैं जब उसमें विनिमय क्षमता हो । जैसे : मकान वर्तमान में रहने की आवश्यकता को संतुष्ट कर रहा है । साथ ही भविष्य में उसे बेचकर भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं ।

(5) संपत्ति में टिकाऊपन का गुण होता है : जो वस्तु – सेवाएँ नाशवंत है, जिसके जत्थे को दीर्घकालीन समय तक नहीं रख सकते। उसे संपत्ति नहीं कह सकते । जिस वस्तु में टिकाऊपन हो, लंबे समय तक उपयोग कर सकते हों उसे संपत्ति कहते हैं । जैसे : सोना, जमीन, मकान, शेर आदि संपत्ति के लक्षण है ।

2. अर्थतंत्र में आनेवाले चक्राकार आर्थिक परिवर्तनों के प्रकारों की विस्तृत जानकारी दीजिए ।
उत्तर :
मानवजीवन की तरह अर्थतंत्र में भी चक्राकार परिवर्तन आते रहते हैं । अर्थतंत्र में आनेवाले असंतुलन, उतार-चढ़ाव आदि । परिवर्तनों को निम्नलिखित चार प्रकारों में प्रस्तुत कर सकते हैं :
(1) आकस्मिक आर्थिक परिवर्तन
(2) मौसमी आर्थिक परिवर्तन
(3) दीर्घकालीन आर्थिक परिवर्तन
(4) चक्रवात आर्थिक परिवर्तन

इन प्रकारों की विस्तृत चर्चा नीचे देखेंगे :
(1) आकस्मिक आर्थिक परिवर्तन : अर्थतंत्र में आकस्मिक और अचानक परिवर्तन आ सकते हैं । जैसे : तूफान का आना, अत्यधिक बरसात, बाढ़, अकाल जैसी घटनाओं के कारण अर्थतंत्र में बड़े पैमाने पर उथल-पुथल सर्जित होती हैं, जिसकी असर लंबे समय तक होती है । कभी कभी ऐसे परिवर्तन किसी एक निश्चित भाग या प्रदेश तक मर्यादित होते हैं । जैसे : कृषि, उद्योग क्षेत्र ।

(2) मौसमी (ऋतुगत) आर्थिक परिवर्तन : अर्थतंत्र में मौसम के अनुसार भी परिवर्तन आते हैं । ठंडी, गर्मी, बरसात में बाजार में अलग-अलग माँग सर्जित होती हैं और उसी के अनुसार उत्पादन-रोजगार में भी परिवर्तन आते हैं । जैसे : प्रतिवर्ष मौसम के अनुसार परिवर्तन का चक्र चलता रहता है, उसमें समयांतर पर परिवर्तन आता है ।

(3) दीर्घकालीन आर्थिक परिवर्तन : अर्थतंत्र में किसी निश्चित दिशा में लंबे समय तक परिवर्तन की प्रक्रिया चलती है उसे दीर्घकालीन आर्थिक परिवर्तन कहते हैं ।

(4) चक्रवात आर्थिक परिवर्तन : एक समयांतराल में ऊर्ध्वगामी और निम्नगामी आर्थिक व्यवहार सर्जित हों तो उसे चक्रीय आर्थिक परिवर्तन कहते हैं और ऐसे परिवर्तन निश्चित न होने पर भी जान सकते हैं । व्यापार चक्र ऐसे चक्रीय परिवर्तन होते हैं ।

3. व्यापार चक्र की परिभाषा देकर उसके आधार पर व्यापार चक्र के महत्त्वपूर्ण सोपानों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
अर्थतंत्र में चक्रीय परिवर्तन निश्चित न होने पर भी पहचान सकते हैं । व्यापार चक्र ऐसे चक्रीय परिवर्तन होते हैं । व्यापार चक्र की अलग-अलग अर्थशास्त्रीयों ने अलग-अलग परिभाषा दी है :

हेबलर के अनुसार : “अर्थतंत्र में क्रमश: आनेवाले अच्छे और बुरे आर्थिक परिवर्तन अर्थात् व्यापार चक्र ।”
होट्रे के अनुसार : “व्यापार के अच्छे और बुरे सोपान क्रमश: आते हैं वह व्यापार चक्र है ।”
व्यापार चक्र के सोपान : व्यापार चक्र के चार सोपान निम्नानुसार हैं :

(1) तेजी : व्यापार चक्र के इस सोपान में व्यापार प्रवृत्ति उच्च स्तर पर उपयोग और माँग बढ़ने के कारण अर्थतंत्र में लाभ के अवसर अधिक होते हैं, इसलिए पूँजीनिवेश और रोजगारी की दर ऊँची होती है । इस परिस्थिति को तेजी कहते हैं ।

(2) मंदी : माँग में कमी पूर्ति को कम करता है । कीमत कम होती है और लाभ कम होता है । लाभ कम होने से पूंजी निवेश और रोजगारी में कमी होने लगती है । अर्थतंत्र में अधिक कीमत घटने की आशा से माँग भी स्थिर हो जाती है । इस परिस्थिति को मंदी कहते हैं ।

(3) कमी : लाभ की अपेक्षा से पूँजीनिवेश घटता जाता है । साधनों की माँग अधिक होने से कीमत बढ़ने लगती हैं । इसलिए उत्पादन खर्च में वृद्धि होने से लाभ कम होने लगता है । दूसरी ओर लोगों का उपभोग (उपयोग) घटते दर से बढ़ते अर्थतंत्र में नरमी देखने को मिलती है । माँग नीची होती है । उपयोग कम होता है और नया पूँजीनिवेश आकर्षित नहीं होते हैं ।

(4) सुधार : अर्थतंत्र में व्यापक निराशा में से स्वयं ही क्रय के पक्ष में वातावरण सर्जित होता है । माँग बढ़ने से लाभ की आशा सर्जित होती है । अनुपयोगी साधनों का उपयोग होने से आय बढ़ती है । आय बढ़ने से खर्च में वृद्धि होती है और खर्च माँग पर प्रभाव डालने से लाभ सर्जित होता है । इस परिस्थिति के कारण अर्थतंत्र सुधार की ओर गति करता है ।

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4. वस्तुओं के प्रकारों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
आवश्यकताओं को संतुष्ट करनेवाली वस्तुओं और सेवाओं का वर्गीकरण या प्रकार निम्नानुसार हैं :

(1) भौतिक और अभौतिक वस्तुएँ : भौतिकता के आधार पर वस्तुएँ दो प्रकार की हैं : भौतिक वस्तुएँ और अभौतिक वस्तुएँ या सेवाओं के नाम से जानते हैं । गेंद, बैट, स्टोव, टी.वी., फ्रीज, मोबाइल को माप सकते है, देख सकते है वे सभी भौतिक वस्तुएँ हैं । जबकि संगीत, शिक्षा, डॉक्टरी सलाह जिसे माप नहीं सकते हैं, देख नहीं सकते हो उन्हें अभौतिक वस्तुएँ या सेवाएँ कहते हैं ।

(2) सर्वसुलभ वस्तुएँ या आर्थिक वस्तुएँ : जिस वस्तु या सेवा की पूर्ति पर किसी का नियंत्रण न हो और जो वस्तु या सेवा सभी को जब, जितने प्रमाण में चाहिए तब प्राप्त हो जाएँ ऐसी वस्तुओं को सर्वसुलभ वस्तुएँ कहते हैं, जैसे : हवा, सूर्यप्रकाश ।
जिस वस्तु की पूर्ति को नियंत्रण रख सकते हों, जिसकी कमी हो और इसलिए जिनका क्रय-विक्रय हो सकता हो वे सभी वस्तुएँ और सेवाएँ आर्थिक वस्तु या कमीवाली वस्तु के नाम से जानते हैं ।

(3) टिकाऊ और नाशवंत वस्तुएँ : जिन वस्तुओं का उपयोग अल्पकालीन समय तक किया जाये तो उसे नाशवंत वस्तुएँ कहते हैं, जैसे ब्रेड, मक्खन, पनीर, बिस्कीट, दूध, फल आदि ।

जिन वस्तुओं का उपयोग दीर्घकालीन समय तक कर सकते हैं, उन्हें टिकाऊ वस्तुएँ कहते हैं । जैसे : बूट, कपड़ा, फ्रीज, टी.वी. आदि ।

(4) व्यक्तिगत वस्तुएँ और सार्वजनिक वस्तुएँ : वस्तुओं की मालिकी तथा उपयोग के आधार पर वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैं :

  1. व्यक्तिगत वस्तु और
  2. सार्वजनिक वस्तु ।

जिन वस्तु की मालिकी निजी, व्यक्तिगत हो तो उसे व्यक्तिगत वस्तु कहते हैं । उस वस्तु का उपयोग का निर्णय निजी व्यक्ति के अधीन होता है ।

जिन वस्तु की मालिकी सार्वजनिक संस्था या सरकार की हो तो उसे सार्वजनिक वस्तु कहते हैं । ऐसी वस्तु के उपयोग का निर्णय कोई व्यक्ति व्यक्तिगत स्तर पर नहीं कर सकता है ।

(5) उपयोग की वस्तुएँ और उत्पादक वस्तुएँ : जो वस्तुएँ मनुष्य की आवश्यकताएँ सीधे या प्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करती हों तो उन्हें उपयोग की वस्तुएँ कहते हैं, जैसे : भोजन ।

जिन वस्तुओं के द्वारा मनुष्य की आवश्यकताएँ परोक्ष रूप से संतुष्ट होती हो उन्हें उत्पादक वस्तुएँ कहते हैं । जैसे : भोजन तैयार करने के लिए वर्तन आवश्यकताओं को परोक्ष रूप से संतुष्ट करते हैं ।

5. भूमि का अर्थ समझाते हुए, उसके लक्षणों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
1. भूमि (Land) :
Meaning & Definition of Land : साधारण बोलचाल की भाषा में भूमि का अर्थ भूमि की सतह से होता है । जिस पर खेती की जाती है, मकान बनाए जाते हैं, मार्ग बनाएँ जाते हैं । परन्त अर्थशास्त्र में “भूमि के अन्तर्गत वे सभी उपहार सम्मिलित किए जाते हैं जो मानव को प्रकृति की ओर से निःशुल्क प्राप्त होते हैं ।” जैसे : भूमि की सतह, जंगल, समुद्र, नदियाँ, वायु, प्रकाश वर्षा, कोयला, खनिज तेल, कच्चा लोहा, सोना, एवं सभी खनिज पदार्थ जो पृथ्वी के गर्भ से प्राप्त होते हैं । भूमि अर्थात् प्रकृति द्वारा प्रदान । की गई सभी प्राकृतिक संपत्ति ।

प्रो. अल्फ्रेड मार्शल के अनुसार According to Prof. Alfred Marshall : “भूमि का अर्थ केवल भूमि ही नहीं बल्कि उसमें वे सभी वस्तुएँ एवं शक्तियाँ सम्मिलित की जाती हैं, जिन्हें प्रकृति बिना मूल्य मनुष्य की सहायता के लिए भूमि में, जल में, वायु में, प्रकाश में और गरमी में प्रदान करती है ।”

भूमि के लक्षण : भूमि प्राकृतिक उपहार है । इस प्राकृतिक संपत्ति के बिना उत्पादन संभव नहीं है इसलिए भूमि उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण साधन है । भूमि के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं –

1. भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व हो सकता है : भूमि एक ऐसी संपत्ति है जिस पर व्यक्तिगत स्वामित्व स्थापित किया जा सकता है । जैसे : खेत की भूमि, तालाब, जंगल इत्यादि । साम्यवादी देशों में भूमि पर सरकार का स्वामित्व होता है ।

2. मानव प्रयासों से भूमि में वृद्धि नहीं की जा सकती : भूमि प्रकृति द्वारा सर्जित होने के कारण मनुष्य भूमि की वर्तमान पूर्ति में एक इंच की भी वृद्धि नहीं कर सकता । भूमि के सतत उपयोग से इसमें कमी तो हो सकती है परन्तु वृद्धि नहीं । जैसे : कोयला, लोहा, पेट्रोलियम आदि के भंडारों में कमी आ सकती है । अगर मनुष्य किसी झील या नदी को सुखाकर कृषि योग्य . भूमि प्राप्त करता है तो ऐसा नहीं कह सकते कि भूमि की पूर्ति में वृद्धि हो गयी । धरती तल तो वहाँ पहले से ही विद्यमान था । मनुष्य ने तो केवल अपने उपयोग के लिए उसे सुधार लिया है ।

3. भूमि की गतिशीलता सीमित है : भूमि में भौगोलिक गतिशीलता नहीं होती अर्थात् भूमि अचल सम्पत्ति है । भूमि की सतह को एक स्थल से दूसरे स्थल नहीं ले जाया जा सकता । जैसे : बंगाल और बिहार की खानों को पंजाब में नहीं ले जा सकते । पंजाब की उपजाऊ भूमि को कच्छ के रेगिस्तान में नहीं ले जा सकते । भूमि की व्यावसायिक गतिशीलता होती है । जैसे : खेती की जानेवाली भूमि पर मकान बनाया जा सकता है, कारखाना बनाया जा सकता है, खेल का मैदान बनाया जा सकता है, रेलमार्ग बनाया जा सकता है ।

4. भूमि का उपयोग न होने से आर्थिक विकास अवरुद्ध होता है : मनुष्य को प्रकृति की तरफ से भूमि का विपुल भंडार प्राप्त हुआ है । परन्तु पूँजी की कमी के कारण इन प्राकृतिक सुविधाओं का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता । जैसे : सिंचाई की सुविधा के अभाव में कृषि का विकास नहीं हो पाता ।

5. भूमि की उर्वरता एकसमान नहीं : सभी भूमि एक जैसी नहीं होती, कुछ भूमि बंजर होती है कुछ अत्यन्त उपजाऊ । जैसे : राजस्थान के रेगिस्तानी प्रदेश की अपेक्षा गंगा के मैदान की भूमि अधिक उर्वर है । इस प्रकार भूमि की उर्वरता एक जैसी नहीं होती ।

6. भूमि उत्पादन का निष्क्रिय साधन है : भूमि को उत्पादन का निष्क्रिय साधन माना जाता है । इसकी उपयोगिता एवं कार्यक्षमता तकनीकी विकास पर निर्भर करती है । जब तक श्रम द्वारा यह काम में न लायी जाये शिथिल एवं निष्क्रिय पड़ी रहती है । यदि प्राकृतिक संपत्ति के उपयोग के लिए कार्यक्षम तकनीक का विकास किया जाये, तो भूमि का उपयोग अधिक कार्यक्षम तरीके से हो सकता है ।
इस प्रकार भूमि उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण साधन है ।

6. पूँजी का अर्थ बताकर उसके लक्षणों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
सामान्य अर्थ में पूँजी शब्द द्रव्य अथवा धन के अर्थ में प्रयुक्त होता है । परंतु अर्थशास्त्र में पूँजी शब्द का अर्थ विस्तृत है । पूँजी धन का वह भाग है जो अधिक आय कमाने के उद्देश्य से किसी कार्य में व्यय किया जाए । रुपया-पैसा, सोना-चांदी, पशुपक्षी, मकान, शेयर आदि को पूँजी कहा जाता है, परंतु अर्थशास्त्र में पूँजी शब्द का प्रयोग एक निश्चित अर्थ में किया जाता है । इसके अनुसार पूँजी उत्पादन का भौतिक एवं मानवसर्जित साधन है । भूमि उत्पादन का भौतिक साधन है परंतु वह मानवसर्जित नहीं है ।

भूमि प्राकृतिक उपहार है । इसलिए उसका समावेश पूँजी में नहीं किया जाता । इसी प्रकार मानवसर्जित हो परंतु यदि उसका उपयोग उत्पादन के लिए नहीं होता तो वह पूँजी नहीं है । ठीक उसी प्रकार संपर्ण द्रव्य पूँजी नहीं है । द्रव्य का जो हिस्सा उत्पादकीय कार्य में उपयोग में लिया जाता है वही हिस्सा पूँजी है । ट्रेक्टर, हल, थ्रेसर, पम्पिंग सेट, ट्यूबवेल आदि उपक्रमों का उपयोग कृषि उत्पादन बढ़ाने में होता है । इसलिए इनकी गणना पूँजी साधनों में होती है ।

“प्रकृति की निःशुल्क देनों को छोड़कर सब प्रकार की सम्पत्ति जिससे आय होती है, पूँजी कहलाती है ।”
– प्रो. मार्शल
“पूँजी सम्पत्ति का वह भाग है, जो अधिक आय प्रदान करती है ।” .
– प्रो. चैपमैन

पूँजी के लक्षण :

(1) पूँजी गतिशील होती है : पूँजी में भौगोलिक एवं व्यावसायिक दोनों प्रकार की गतिशीलता पाई जाती है । अहमदाबाद के किसी कारखाने के यंत्र, वाहन, कच्चा माल दिल्ली ले जाया जा सकता है । पूँजी के उपरोक्त प्रकार के साधनों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलता से एवं बिना किसी रूकावट के स्थानान्तरण किया जा सकता है । एक स्थान से दूसरे स्थान की इस प्रकार की गतिशीलता को भौगोलिक गतिशीलता कहते हैं । इसी प्रकार मौद्रिक पूँजी को एक व्यवसाय से हटाकर दूसरे व्यवसाय में लगाया जा सकता है । जैसे : किसी एक कंपनी के शेयर बेचकर दूसरी कंपनी के शेयर या डिबेंचर खरीदना ।

(2) पूँजी का सर्जन बचत द्वारा होता है : बचत के कारण ही पूँजी अस्तित्व में आती है । पूँजी सर्जन के लिए बचत का होना आवश्यक है । अपनी प्राप्त आय या सम्पत्ति में से कुछ हिस्सा बचाकर (कटौती) उसका निवेश करना पड़ता है । अर्थात् उपभोग कम करके बचत की जा सकती है । इस बचत का उपयोग पूँजी साधनों के रूप में किया जा सकता है । इस प्रकार पूँजी बचत का परिणाम

(3) पूँजी मानवसर्जित है : पूँजी उत्पादन का मानवसर्जित एवं महत्त्वपूर्ण साधन है । पूँजी, भूमि की भाँति उत्पादन का प्रकृति दत्त एवं मूल साधन नहीं है । पूँजी को प्रकृति एवं मानव प्रयासों के संयोजन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है । जैसे : किसी भी प्रकार का यंत्र बनाने में लोहा आदि का उपयोग होता है, जो प्रकृतिदत्त है परंतु लोहे का टुकड़ा यंत्र नहीं है । मानव की बुद्धिमत्ता एवं तकनीक का प्रयोग करके लोहे की मदद से यंत्र बनाया जा सकता है । यंत्र इस प्रकार प्रकृति एवं मानव प्रयासों का समायोजन है । मानवसर्जित यह यंत्र उत्पादन कार्य में सहायक होता है, जो कि पूँजी कहलाता है ।

(4) पूँजी के कारण श्रमिकों की उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है : पूँजी अथवा पूँजी के साधनों के उपयोग से श्रमिकों की उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है । हाथ से सूत कातकर कपड़ा बनाने में बहुत वक्त लगता है । परंतु वही कपड़ा यंत्र की सहायता से बहुत कम समय में तैयार किया जा सकता है । इसी प्रकार यदि किसान हल की अपेक्षा ट्रेक्टर से खेती करेगा तो कम समय में अधिक उत्पादन कार्य कर सकता है । ऐसे पूँजी के उपकरणों के द्वारा श्रमिक की कार्यक्षमता का अत्याधिक उपयोग होने से उसकी कार्यक्षमता में वृद्धि की जा सकती है ।

(5) पूँजी का ह्रास होता है : पूँजी उत्पादन का ऐसा साधन है जिसका ह्रास होता है । पूँजी (यंत्रों) का उपयोग करने से उनकी उत्पादन क्षमता में कुछ समय के बाद कमी आती है, उसके मूल्य में कमी आती है जिसे उस यंत्र की घिसाई कहते हैं । एक निश्चित समय के बाद वह यंत्र बेकार हो जाता है । इसलिए निश्चित समय बाद पूँजी-यंत्रों में बदलाव (परिवर्तन) करना पड़ता है । उसकी समयसमय पर मरम्मत करवानी पड़ती है । पुराने यंत्रों के स्थान पर नये यंत्र बसाने पड़ते हैं ।

हमने उपर देखा कि पूँजी उत्पादन का मानवसर्जित एवं महत्त्वपूर्ण साधन है । पूँजी उत्पादन करने एवं बढ़ाने में सहायक होती है । श्रम की तुलना में पूँजी की गतिशीलता अधिक है । लेकिन पूँजी श्रम की तरह प्रकृतिदत्त नहीं है । पूँजी उत्पादक का मूलभूत एवं प्राकृतिक साधन भी नहीं है ।

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7. श्रम की व्याख्या देते हुए उसके विशिष्ट लक्षणों को समझाइए ।
उत्तर :
श्रम का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning of Definition of Labour) : सामान्य व्यवहार की भाषा में श्रम अर्थात् मेहनत करना । जैसे कि बोझ उठानेवाला कुली या लारी खींचनेवाला मजदूर, परन्तु अर्थशास्त्र में श्रम का अर्थ होता है, जब बदले की अपेक्षा से शारीरिक अथवा मानसिक श्रम किया जाता है । श्रम की परिभाषा में तीन बातों का समावेश होता है ।

  1. बदले की अपेक्षा से किए गये कार्य को ही श्रम कहा जाता है । जैसे : कोई सिंगर स्वआनन्द के लिए गीत गाता है, तो वह श्रम नहीं कहलायेगा परन्तु यदि वह स्टेज पर गाता है और बदले में पारिश्रमिक लेता है तो श्रम कहा जायेगा ।
  2. स्वतन्त्र रूप से अथवा अपनी इच्छानुसार कार्य करे तो उसे श्रम नहीं कहते हैं । जैसे : कोई डाक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस करता है तो वह श्रमिक नहीं नियोजक कहलायेगा । अगर वही डाक्टर सरकारी चिकित्सालय में नौकरी करता है तो वह श्रम है ।
  3. केवल शारीरिक श्रम ही नहीं मानसिक श्रम करनेवाले का समावेश भी श्रम की परिभाषा में होता है । जैसे : क्लर्क, शिक्षक, दूरदर्शन, आकाशवाणी केन्द्र में कार्य करनेवाले सभी लोगों का समावेश भी श्रम में होगा ।

प्रो. अल्फ्रेड मार्शल के अनुसार (According to Prof. A. Marshall) : “श्रम का अर्थ मनुष्य के आर्थिक कार्य से है, चाहे वह हाथ से किया जाये अथवा मस्तिष्क से ।”

प्रो. थोमस के अनुसार (According to Prof. Thomas) : “श्रम मनुष्य का वह शारीरिक व मानसिक प्रयत्न है जो किसी प्रतिफल की आशा से किया जाता है ।”

श्रम के लक्षण : श्रम के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं –
1. श्रम नाशवान होता है : Labour is Perishable : धन की तरह श्रम का संग्रह नहीं किया जा सकता । जैसे : यदि किसी दिन मजदूर काम न करे तो उस दिन का श्रम सदा के लिए नष्ट हो जाता है । आज के श्रम का संग्रह करके वह कल उस श्रम कार्य को नहीं बेच सकता । इसी कारण श्रम की सौदाशक्ति कम हो जाती है।

2. श्रम तथा श्रमिक अविभाज्य हैं : भूमि तथा पूँजी और उनके मालिक भिन्न होते हैं । पूँजी को पूँजीपति से, भूमि को भूस्वामी से अलग किया जा सकता है । परन्तु श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता । श्रमिक की अनुपस्थिति में श्रम नहीं हो सकता ।

3. श्रमिकों की कार्यशक्ति समान नहीं होती : प्रत्येक श्रमिक की कार्यशक्ति समान नहीं होती है । कई श्रमिक अधिक कार्यकुशल होते हैं तो कई श्रमिक कम कार्यकुशल होते हैं । इसीलिए एक ही व्यवसाय में अलग-अलग श्रमिकों के वेतन में अन्तर दिखाई देता है ।

4. श्रमिकों की कार्यशक्ति में वृद्धि की जा सकती है : श्रमिक की कार्यक्षमता में परिवर्तन की सम्भावना रहती है । जैसे कि संतुलित तथा पौष्टिक आहार शिक्षण और प्रशिक्षण द्वारा श्रमिकों की कार्यक्षमता में वृद्धि की जा सकती है ।

5. श्रम उत्पादन का सजीव साधन है : श्रम उत्पादन का सजीव साधन है । श्रमिक बुद्धिशाली, भावनाशील तथा सामाजिक प्राणी है । श्रम श्रमिक द्वारा ही किया जाता है और श्रमिक संजीव है । निर्जीव साधनों की तुलना में श्रम की भौगोलिक गतिशीलता कम होती है ।

6. श्रम गतिशील होता है : श्रम उत्पादन का एक ऐसा साधन है जो गतिशील होता है, जैसे उ.प्र. और बिहार के श्रमिक कार्य की तलाश में दिल्ली और कलकत्ता जैसे शहरों में चले जाते हैं । भारत के श्रमिक अरब देशों में कार्य की तलाश में चले जाते हैं : यह तो श्रमिकों की भौगोलिक गतिशीलता कहलायेगी । अगर कोई क्लर्क अनुभव और योग्यता के आधार पर मैनेजर बन जाये तो यह व्यावसायिक गतिशीलता कहलायेगी ।

8. नियोजन अर्थात् क्या ? नियोजक के लक्षणों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
भूमि, पूँजी, श्रम के संयोजन का कार्य अर्थात् नियोजन । नियोजन करनेवाले व्यक्ति को नियोजक कहते हैं । नियोजक उत्पादन के क्षेत्र में कप्तान की भूमिका निभाता है । अर्थात् उत्पादन के नेता के रूप में नियोजक का स्थान है । नियोजक के बिना उत्पादन कार्य संभव नहीं बनता । क्योंकि उत्पादन संबंधी सभी निर्णय वह स्वयं ही करता है । उत्पादन कार्य कहाँ शुरू करना, किस वस्तु का, किस पद्धति से, कितनी मात्रा में उत्पादन करना ? उत्पादन प्रक्रिया के सभी प्रकार की अनिश्चितताओं का वहन उसका उत्तरदायित्व बनता है । जिस प्रकार किसी समूह को दिशा कोई एक नेता, समुद्र में जहाज का संपूर्ण संचालन कप्तान करता है उसी प्रकार समुद्र समान अर्थतंत्र की विशाल स्पर्धावाले बाज़ार में वह अपनी उत्पादन इकाई का संचालन करता है । इसीलिए उसे उत्पादन का कप्तान कहते हैं । नियोजक को कप्तान की उपाधि देने के लिए उसमें निम्नलिखित गुण होने चाहिए ।

नियोजक के लक्षण :

(1) नियोजक उत्पादन का नेता है : नियोजक की अनुपस्थित में उत्पादन लगभग असंभव हो जाता है । नियोजक उत्पादन के अन्य तीन साधनों को एकत्रित करके उसका सुचारू रूप से समायोजन करता है । उत्पादन की समस्त प्रक्रिया ठीक ढंग से चले इसका वह निरन्तर ख़याल रखता है । उत्पादन संबंधी रोज़मर्रा के निर्णय भी नियोजक ही लेता है । इसी कारण नियोजक को उत्पादन का नेता अथवा कैप्टन कहा जाता है ।

(2) नियोजक साधन संयोजक है : उत्पादन के अन्य तीन साधन, भूमि, श्रम एवं पूंजी अलग-अलग स्थान पर बिखरे हुए होते हैं । इन साधनों को उचित स्थान एवं समय पर इकट्ठा करने का कार्य नियोजक करता है । भूमि, श्रम एवं पूँजी का इस प्रकार समायोजन करता है कि उत्पादन खर्च कम से कम हो उपरोक्त तीनों साधनों को कितना बदला देना यह भी नियोजक निश्चित करता है । नियोजक इन साधनों के कार्य पर देखरेख भी रखता है ।

(3) नियोजक उत्पादन से सम्बन्धित तमाम निर्णय लेता है : नियोजक उत्पादन से संबंधित तमाम निर्णय अपनी सूझबूझ से लेता है । किस वस्तु का उत्पादन करना, कितनी मात्रा में उत्पादन करना, कब उत्पादन करना, किसके लिए उत्पादन करना, किस पद्धति से उत्पादन करना, वस्तु की क्या कीमत रखनी ? आदि सभी प्रकार के निर्णय नियोजक को स्वतंत्र रूप से लेने होते हैं । नियोजक का मुख्य हेतु कम से कम खर्च करके अधिक से अधिक उत्पादन करने का होता है । इस प्रकार नियोजक को उत्पादन सम्बन्धी तमाम निर्णय अपनी सूझबूझ के साथ एवं स्वतंत्र रूप से लेने होते हैं ।

(4) नियोजक अनिश्चितताओं का सामना करता है : नियोजक को समस्त उत्पादन प्रक्रिया दरम्यान अनेक प्रकार के जोखिम एवं अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ता है । कुछ जोखिमों का बीमा करवा कर उन्हें टाला जा सकता है, परन्तु कुछ जोखिमों का बीमा नहीं करवाया जा सकता । जिन जोखिमों का बीमा नहीं करवाया जा सकता वे अनिश्चितता कहलाते हैं । आग, चोरी, लूट, आदि से होनेवाले नुकसान को बीमा करवाकर टाला जा सकता है । नियमित रूप से बीमा कंपनी में प्रीमियम भरकर इस प्रकार की घटनाओं से होनेवाले नुकसान से बचा जा सकता है । ऐसी दशा में नुकसान का संपूर्ण दायित्व बीमा कंपनी का होता है ।

नियोजक इस सम्बन्ध में निश्चित रहता है । परंतु दूसरी ओर कुछ जोखिम ऐसे होते हैं जिनका बीमा नहीं करवाया जा सकता । उदा. वस्तु का उत्पादन होने के पश्चात् वस्तु की कीमत में गिरावट तो नहीं आ जाएगी, उत्पादन आरंभ करने के पश्चात् उत्पादन के साधनों की कीमत तो नहीं बढ़ेगी, उत्पादन खर्च तो नहीं बढ़ेगा, सरकार की नीति परिवर्तन तो नहीं होगा आदि प्रश्नों को नियोजक को झेलना ही होता है । ये सारी बातें अनिश्चित होती हैं । इन अनिश्चितताओं का नियोजक को वहन करना ही पड़ता है । इनका बीमा नहीं करवाया जा सकता । इस प्रकार नियोजक उत्पादन प्रक्रिया से संबंधित तमाम अनिश्चितताओं का वहन करता है । उत्पादन के अन्य तीन साधनों को इस प्रकार की अनिश्चितता का वहन नहीं करना पड़ता ।

(5) नियोजक नवसंशोधन करता है : नियोजक हमेशा नई-नई वस्तु की खोज करता रहता है । नई वस्तुओं की खोज से ग्राहक विविध वस्तुओं का उपभोग कर सकता है । नई खोज से नियोजक के लाभ में वृद्धि होती है । लाभ में वृद्धि होने से नियोजक और नवसंशोधन करने के लिए प्रेरित होता है । अमेरिका जैसे पूँजीवादी देश में नवसंशोधन के परिणामस्वरूप नई-नई वस्तुएँ बाज़ार में उपलब्ध होती है ।

(6) नियोजक उत्पादन की नई पद्धति का शोधनकर्ता है : नियोजक अपने व्यवसाय के विकास के लिए निरंतर सतर्क एवं जागरुक रहता है । नियोजक हमेशा इस बात की कोशिश करता है कि वह जिस वस्तु का उत्पादन करे वह अन्य प्रतिस्पर्धियों की तुलना में सस्ती एवं अच्छी हो । अपनी वस्तु की गुणवत्ता सुधारने एवं कीमत कम करने की कोशिश में वे नई-नई उत्पादन पद्धति की शोध करते हैं । ऐसा करने से उपभोक्ताओं को भी अच्छी वस्तुएँ उचित कीमत पर उपलब्ध होती है ।

(7) नियोजक का पारिश्रमिक या बदला निश्चित नहीं होता : उत्पादन के अन्य तीन साधनों को मिलनेवाला बदला पहले से निश्चित होता है । भूमि को किराया, पूँजी को ब्याज एवं श्रमिक को मिलनेवाला वेतन पहले से ही सुनिश्चित होता है । नियोजक को मिलनेवाला बदला अथवा पारिश्रमिक पहले से निश्चित नहीं होता । हमने ऊपर देखा कि नियोजक जोखिम एवं अनिश्चितताओं का सामना करता है । इन जोखिम एवं अनिश्चितताओं के बदले में नियोजक को जो भी मिलता है वह नियोजक का लाभ अथवा हानि है । परंतु यह निश्चित नहीं है कि नियोजक को कितना लाभ होगा या कितनी हानि होगी । नियोजक को असामान्य लाभ (Super Normal Profit), सामान्य लाभ (Normal Profit) या फिर हानि (Losses) भी उठानी पड़ सकती है । इस प्रकार नियोजक को मिलनेवाला बदला अथवा पारिश्रमिक पहले से निश्चित नहीं होता ।

(8) नियोजक शेष आय का अधिकारी है : नियोजक को व्यवसाय की अनिश्चितताओं एवं जोखिमों का सामना करने के कारण लाभ प्राप्त होता है । परंतु यह लाभ निश्चित नहीं होता । उत्पादन के अन्य तीन साधनों को उनका बदला देने के पश्चात् जो कुछ शेष रहता है, वह नियोजक का लाभ है । नियोजक को कई बार लाभ के बजाय हानि भी उठानी पड़ सकती है । उदा. बॉलपेन बनाने की एक फैक्टरी में प्रतिमाह 10,000 बॉलपेन का उत्पादन होता है । यदि बॉलपेन की एक इकाई की कीमत 5 रुपये हो तो नियोजक की कुल आय 50,000 रुपये होगी । मानलीजिए इन 10,000 इकाईयों का उत्पादन करने में भूमि को 10,000 रु. किराया, पूंजी पर 5,000 रु. ब्याज एवं श्रमिकों को 15,000 रु. वेतन चुकाना पड़ता है तो कुल खर्च 10,000 रु. + 5,000 रु. + 15,000 रु. = 30,000 रु. होता है ।

किरायां + ब्याज + वेतन
यहाँ पर नियोजक की कुल आय 50,000 रु. है ।
कुल आय = उत्पादन × कीमत
10,000 × 5 = 50,000 रु.
कुल आय – कुल खर्च = कुल लाभ
50,000 रु. – 30,000 रु. = 20,000 रु.

इस प्रकार उत्पादन के अन्य तीन साधनों को चुकाने के पश्चात् जो कुछ भी शेष रहता है वह नियोजक का लाभ है । इसमें कमी-वृद्धि होने की संभावना निरंतर रहती है ।

(9) नियोजक अर्थतंत्र में गतिशीलता लाता है : देश में उपलब्ध प्राकृतिक एवं मानवसंपत्ति का उपयोग करके नियोजक उत्पादन प्रक्रिया में गतिशीलता प्रदान करता है । बेकार पड़े हुए एवं निष्क्रिय साधनों का उचित समायोजन करके उत्पादन प्रक्रिया की व्यवस्था करता है । नियोजकों के बीच उत्पादन के साधनों तथा बिक्री के सम्बन्ध में सतत जागरूकता रहती है । इस प्रकार नियोजक अधिक लाभ, अधिक आय प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं जिसे अर्थतंत्र को वेग मिलता है ।

(10) नियोजक कुशाग्र बुद्धिवाला होता है : नियोजक का कार्य कठिन है । उत्पादन संबंधी तमाम निर्णय लेने में नियोजक को धैर्य, संयम, विवेक एवं सूझबूझ का सहारा लेना पड़ता है । नियोजक का दूरदर्शी होना भी अति आवश्यक है । भविष्य में उसकी वस्तु की क्या माँग होगी, सरकार की नीति में परिवर्तन होने पर उसके लाभ में किस प्रकार का परिवर्तन होगा आदि के बारे में निरंतर सोचते रहना पड़ता है । संक्षेप में नियोजक कुशाग्रबुद्धि एवं धैर्यवाला होना चाहिए ।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :

1. दैनिक जीवन में अपने ‘कीमत’ और …………………………. का लगभग समानार्थी शब्द के रूप में उपयोग करते हैं ।
उत्तर :
मूल्य

2. अभौतिक बातें ……………………….. हैं ।
उत्तर :
सेवाएँ

3. बेट, प्राइमस, टी.वी., फ्रिज …………………….. वस्तुएँ हैं ।
उत्तर :
भौतिक

4. बगीचा का लाभ एक व्यक्ति ले तो भी दूसरे के लाभ में ………………….. नहीं आती है ।
उत्तर :
कमी

5. बाह्य, उपयोगी, विनिमय पात्र और कमीवाली वस्तु अर्थात् ……………………….
उत्तर :
संपत्ति

6. नदी, पर्वत, सार्वजनिक रास्ते ………………………. संपत्ति हैं ।
उत्तर :
राष्ट्रीय

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7. आध्यात्मक से लेकर अर्थशास्त्र तक …………………….. शब्द का उपयोग होता है ।
उत्तर :
कल्याण

8. मनुष्य की ………………… आवश्यकताएँ हैं ।
उत्तर :
अमर्यादित

9. देश के कल्याण का सम्बन्ध आय के ………………………. साथ सम्बन्ध है ।
उत्तर :
वितरण

10. उत्पादन के मुख्य …………………………. साधन है ।
उत्तर :
चार

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