Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 12 Solutions Rachana गद्य-समीक्षा Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 12 Hindi Rachana गद्य-समीक्षा
निम्नलिखित प्रत्येक गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
1. उन्नति के पथ पर चलनेवाला छात्र प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व ही उठ बैठता है। नित्यकर्म से निवृत्त होकर वह स्नान करता है। तत्पश्चात् भगवान से प्रार्थना करता है कि वह सदा उसका पथ-प्रदर्शक रहे। पूजन के बाद व्यायाम करना उत्तम छात्र के लिए आवश्यक है। उसके बिना शरीर सबल, सुन्दर और सुगठित नहीं हो सकता। जिस मन्दिर में सुन्दरता न हो, उसमें बैठनेवाली मूर्ति कभी सुन्दर नहीं हो सकती।
व्यायाम के बाद थोड़ा जलपान करना अत्यंत हितकर होता है। उसके बाद दैनिक समाचारपत्र भी देखना चाहिए, ताकि संसार, देश, नगर तथा पड़ोसी की गतिविधि का परिचय हो जाए। इसका ज्ञान न होने से कभी-कभी बड़ी हानि होती है। समाचार-पठन के पश्चात् विद्यार्थी अपना पाठ्यविषयक अध्ययन करता है। वह उस पर विचार तथा नवीन अभ्यास का प्रयत्न करता है।
प्रश्न :
- उत्तम छात्र प्रात:काल में कब उठता है? स्नान के बाद वह भगवान की प्रार्थना क्यों करता है?
- छात्र के लिए व्यायाम क्यों आवश्यक माना गया है?
- समाचार-पठन के पश्चात् छात्र को क्या करना चाहिए?
- छात्र के लिए दैनिक समाचारपत्र पढ़ना क्यों अनिवार्य है?
- इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
- उन्नति के पथ पर चलनेवाला छात्र प्रात:काल सूर्य के उदय होने से पहले ही उठता है। स्नान करने के बाद वह भगवान की प्रार्थना इसलिए करता है कि भगवान हमेशा उनका पथ-प्रदर्शक बने ।
- व्यायाम से शरीर सबल, सुंदर और सुगठित बनता है। अतः छात्र के लिए व्यायाम करना आवश्यक माना गया है।
- समाचार-पठन के पश्चात् छात्र को अपने पाठ्यविषयों का अध्ययन करना चाहिए, उन पर विचार करना चाहिए और नवीन अभ्यास का प्रयास करना चाहिए।
- दैनिक समाचारपत्र पढ़ने से संसार, देश, नगर तथा आसपास की गतिविधियों से परिचय हो जाता है। इससे ज्ञान की वृद्धि होती है। अतः छात्र के लिए समाचारपत्र पढ़ना अनिवार्य है।
- उचित शीर्षक उत्तम छात्र की प्रात:कालीन चर्या अथवा आदर्श विद्यार्थी
2. मनुष्य तो मनुष्य ही है। पशु-पक्षी भी जहाँ जन्म लेते हैं, अपने उस देश को प्रेम करते हैं। जंगल में पैदा हुए किसी जानवर को आप पिंजड़े में बंद कर सकते हैं, उसे लाख आराम पहुंचाने की कोशिश कर सकते हैं, पर वह सुखी नहीं हो सकता। उसे तो अपने जंगल का देश ही प्यारा लगता है। उसी तरह मुक्त आकाश में उड़नेवाले पक्षी को पिंजड़े में बंद करके सब तरह का सुख पहुंचाना चाहें तो भी वह कदापि सुखी नहीं हो सकता। उसका देश खुला आकाश, पेड़ों की शाखाएं हैं और घोंसला है। वहाँ वह धूप, वर्षा और ठंड के कष्ट सहकर भी सुखी रह सकता है।
प्रश्न :
- पशु-पक्षी किस स्थान से प्रेम करते हैं?
- पिंजड़े में बंद जंगली जानवर सुखी क्यों नहीं हो सकता?
- पक्षी का देश कौन-सा है?
- इस परिच्छेद से हमें क्या सीख मिलती है?
- इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
- पशु-पक्षी अपनी जन्मभूमि से प्रेम करते हैं।
- जंगली जानवर भी अपने देश को, अपनी जन्मभूमि को बहुत प्रेम करते हैं। इसलिए अपनी जन्मभूमि जंगल से दूर रहकर पिंजड़े में बंद जंगली जानवर सुखी नहीं हो सकता।
- पक्षी का देश खुला आकाश, वृक्षों की शाखाएं और घोंसला है।
- इस परिच्छेद से हमें यह सीख मिलती है कि अपनी जन्मभूमि के प्रति हमारे दिल में सच्चा प्रेम होना चाहिए। जीवन का सच्चा आनंद आजादी में है।
- उचित शीर्षक स्वदेशप्रेम अथवा जन्मभूमि और स्वतंत्रता
3. स्त्रियों की शिक्षा का स्वरूप पुरुषों की शिक्षा के स्वरूप से अलग रहना चाहिए। कताई, बुनाई, सिलाई, कटाई आदि की शिक्षा तो उन्हें दी ही जाए, किंतु इसी के साथ उन्हें कुटीर उद्योगों में भी निपुण बनाया जाना चाहिए, जिससे कि बुरा समय आने पर वे किसी की मोहताज न रहें। स्त्रियों को शिक्षित करने से हमारा घर स्वर्ग बन सकता है। नासमझ और फूहड़ औरतों से परिवार के परिवार तबाह हो जाते हैं। जिस घर की स्त्रियाँ सुशिक्षित और सुसंस्कृत होती हैं, वे घर जिंदा विश्वविद्यालय होते हैं। शिक्षा का अर्थ किताबी ज्ञान ही नहीं है और न ही अक्षरज्ञान है, वह तो जीने की कला है।
प्रश्न :
- स्त्रियों को किस प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए?
- हमारा घर स्वर्ग कब बन सकता है?
- शिक्षा का अर्थ क्या है?
- बुरे समय में स्त्रियाँ स्वावलम्बी कैसे रह सकती हैं?
- इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
- पुरुषों को जो शिक्षा दी जाती है उससे भिन्न प्रकार की शिक्षा स्त्रियों को दी जानी चाहिए। कताई, बुनाई, सिलाई, कटाई आदि की शिक्षा के साथ ही साथ स्त्रियों को कुटीर उद्योग की भी शिक्षा देनी चाहिए।
- स्त्रियों को उचित शिक्षा देने से हमारा घर स्वर्ग बन सकता है।
- शिक्षा का सही अर्थ है सुंदरता से जीवनयापन करने की कला। केवल किताबी ज्ञान या अक्षरज्ञान ही शिक्षा नहीं है।
- कताई, बुनाई, सिलाई आदि काम सीखकर तथा कुटीर उद्योगों में निपुणता पाकर इनके सहारे बुरे समय में भी स्त्रियाँ स्वावलम्बी रह सकती हैं।
- उचित शीर्षक: स्त्री-शिक्षा का महत्त्व अथवा शिक्षा और स्त्रियां
4. जीवन एक अनमोल निधि है। यदि आप किसी कारणवश उसका समुचित लाभ अथवा आनंद नहीं उठा पाते, तो आपका पहला कर्तव्य है कि आप अपनी वर्तमान परिस्थिति का अच्छी तरह विश्लेषण करें। आपकी समस्या क्या है, इसे भली-भांति समझें और अपनी मुश्किलों को दूर करने का उपाय सोचें। इसके विपरीत यदि आप परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी होने देते हैं, और अपने वास्तविक एवं कल्पित कष्टों से मन को दुःखी बनाए रहते हैं, तो आप अपने जीवन का रस नहीं ले सकते।
बहुत संभव है, आपका कष्ट आर्थिक हो। परिवार के कई लोगों के भरणपोषण के लिए आपको अप्रिय अथवा अरुचिकर कार्य भी करने पड़ते हों, आपको काफी वेतन न मिलता हो अथवा किसी गंभीर कष्ट से आप दबे हों, लेकिन घबराने से क्या इन सबका निराकरण हो जाएगा? अतः समस्या से डरिए मत, उसकी शिकायत मत कीजिए, बल्कि जूझने के लिए तैयार हो जाइए।
प्रश्न :
- हम जीवन को रसमय कैसे बना सकते हैं?
- जीवन का सच्चा आनंद कैसे लिया जा सकता है?
- मनुष्य अरुचिकर कार्य करने के लिए कब तैयार होता हैं?
- जीवन की समस्याओं का निराकरण किस प्रकार हो सकता है?
- इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
- हम परिस्थितियों का सामना करें और अपने वास्तविक तथा कल्पित कष्टों से मन को दु:खी न होने दें। इस प्रकार हम अपने जीवन को रसमय बना सकते हैं।
- अपनी परिस्थिति और वर्तमान समस्या को भली-भाँति समझकर मुश्किलों को दूर करने का उपाय सोचने व करने पर जीवन का सच्चा आनंद लिया जा सकता है।
- जब मनुष्य को बड़े परिवार के निर्वाह की जिम्मेदारी खूब व्यथित कर रही हो, उसे काफी वेतन न मिलता हो, किसी गंभीर संकट में फंसा हो तभी मनुष्य अरुचिकर कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है।
- जीवन की समस्याओं का निराकरण शिकायत करने से या डरने से नहीं होता। परिस्थितियों का बेधड़क सामना करने से ही जीवन की समस्याओं का निराकरण होता है।
- उचित शीर्षक जीवन-संग्राम अथवा जीवन की समस्या अथवा जीवन जीने की कला
5. मानव के व्यक्तित्व का निर्माण करनेवाले विभिन्न तत्त्वों में चरित्र का सबसे अधिक महत्त्व है। चरित्र एक ऐसी शक्ति है जो मानवजीवन को सफल बनाती है। चरित्र की शक्ति ही आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता उत्पन्न करती है। चरित्र मनुष्य के क्रिया-कलाप और आचरण के समूह का नाम है। चरित्ररूपी शक्ति के सामने पाशविक शक्ति भी नष्ट हो जाती है। चरित्र की शक्ति विद्या, बुद्धि और संपत्ति से भी महान होती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि कई चक्रवर्ती सम्राट धन, पद, वस्तु और विद्या के स्वामी थे, परंतु चरित्र के अभाव में अस्तित्वविहीन हो गए।
प्रश्न :
- चरित्र किसे कहते हैं?
- चरित्र का क्या महत्त्व है?
- मानवजीवन पर चरित्र का क्या असर पड़ता है?
- इतिहास किस बात का साक्षी है?
- इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
- मनुष्य के आचरण तथा व्यवहार को ‘चरित्र’ कहते हैं अर्थात् मनुष्य के सद्गुणों के समूह का नाम ही चरित्र है।
- चरित्र व्यक्तित्व का निर्माण करनेवाला एक ऐसा तत्त्व है जिससे मनुष्य का जीवन सफल बनता है। अतः चरित्र का सबसे अधिक महत्त्व है।
- चरित्र से ही आत्मविश्वास जाग्रत होता है और आत्मनिर्भरता उत्पन्न होती है। इस प्रकार मानवजीवन पर चरित्र का गहरा असर पड़ता है।
- इतिहास इस बात का साक्षी है कि कई चक्रवर्ती सम्राटों के पास अपार धन, पद, विद्या, वैभव सब कुछ था, परंतु चरित्र नहीं था। इसलिए उनका अस्तित्व समाप्त हो गया।
6. हमारे पूर्वजों ने स्त्री का बड़ा महत्त्व माना है। उन्होंने स्त्री को धार्मिक कार्यों में अग्रस्थान दिया है और उसकी बड़ी प्रशंसा की है। वे मानते थे कि जिस घर में विदुषी नारी होती है, वहाँ के नरनारी सद्गुणों से विभूषित हो जाते हैं। इसीलिए तो मनु ने कहा है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।” अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं।
स्त्री तो घर की रानी है। उसका प्रभाव बच्चों पर सबसे ज्यादा होता है। बचपन में बालकों पर जो गहरे संस्कार पड़ते हैं, वे हमेशा के लिए रहते हैं। इस प्रकार स्त्री के कारण ही मानवसमाज ने उन्नति की है। स्त्री ही दुनिया में बड़े-बड़े महापुरुष पैदा करती है। मानवसमाज की उन्नति में उसका जितना हाथ है उतना किसी और का नहीं है। उसकी प्रेरणा से संसार में मनुष्य-रत्न पैदा होते हैं और मानवसमाज को उन्नति के पथ पर ले जाते हैं।
प्रश्न :
- हमारे पूर्वजों ने स्त्री को क्या महत्त्व दिया है?
- मनु ने नारी की महत्ता को किस ऊंचाई तक पहुंचाया है?
- बालकों के जीवन-निर्माण में स्त्री का क्या योगदान होता है?
- मानवसमाज को उन्नति के पथ पर कौन ले जाता है?
- इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
- हमारे पूर्वजों ने स्त्री की महत्ता स्वीकार करते हुए उसे धार्मिक आदि कार्यों में अग्रस्थान दिया है।
- मनु ने नारी की महत्ता को ईश्वर की ऊँचाई तक पहुंचाया है।
- स्त्री घर की रानी है, बच्चों पर उसका प्रभाव सबसे अधिक होता है। अतएव बालकों के जीवन-निर्माण में स्त्री का योगदान अधिक है।
- संसार में उत्पन्न होनेवाले मनुष्य-रल मानवसमाज को उन्नति के पथ पर ले जाते हैं।
- उचित शीर्षक : नारी की महत्ता
7. तुलसीदासजी ने उचित ही लिखा है- “का वर्षा जब कृषि सुखाने, समय चूकि पुनि का पछताने”। अवसर को खोकर पश्चात्ताप करना मूर्खता ही है। समय बलवान है और समय ही स्वर्णिम है। जिन्होंने समय को पहचानकर इसका सदुपयोग किया है, वे विश्व में महान हो गए। बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता, जीवन का हर क्षण मूल्यवान है, इसकी पहचान और सही उपयोग ही सफलता की कुंजी है।
ज्ञान का अमित विस्तार है और जीवन के क्षण कुछमात्र हैं, इन दुर्लभ क्षणों को सही समय पर सही काम में लगाना बड़ी उपलब्धि है। वस्तुतः यह सोचना कि हम समय को नष्ट कर रहे हैं, एक बड़ी भूल है। सच तो यह है कि समय ही हमें नष्ट कर रहा है। काल द्वारा सबको कसा – जाता है, लेकिन उन महात्माओं को नहीं, जो इसका सदुपयोग करते हैं। गांधी, ईसा, न्यूटन, विवेकानंद आदि महान व्यक्तियों के उदाहरण हमारे सामने हैं।
प्रश्न :
- समय को समझने के बारे में हमारी क्या भूल है?
- तुलसीदासजी ने समय के बारे में क्या लिखा है?
- जीवन में सफलता की कुंजी क्या है?
- जीवन में हमें किस मूर्खता से बचना चाहिए?
- इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
- हम समय को नष्ट कर रहे हैं – ऐसा सोचना समय को समझने के बारे में हमारी भूल है।
- तुलसीदासजी ने समय के बारे में लिखा है कि जिस तरह 8 खेती सूख जाने पर पानी का बरसना व्यर्थ है, उसी तरह अवसर को खोकर पछताना मूर्खता है।
- समय की सही पहचान और उसका सदुपयोग ही जीवन 8 में सफलता की कुंजी है।
- जीवन में हमें समय को खोने के बाद उस पर पछतावा करने की मूर्खता से बचना चाहिए।
- उचित शीर्षक : समय का सदुपयोग अथवा जीवन का क्षण-क्षण अनमोल