GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 9 आंतरिक व्यापार

Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 9 आंतरिक व्यापार Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 9 आंतरिक व्यापार

GSEB Class 11 Organization of Commerce and Management आंतरिक व्यापार Text Book Questions and Answers

स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प पसन्द करके दीजिए :

प्रश्न 1.
थोकबन्द व्यापारी और ग्राहकों के मध्य की कडी अर्थात् ……………………..
(A) उत्पादक
(B) दलाल
(C) फुटकर व्यापारी
(D) ग्राहक
उत्तर :
(C) फुटकर व्यापारी

प्रश्न 2.
उत्पादक और फुटकर व्यापारी के मध्य की कडी अर्थात् ……………………………..
(A) ग्राहक
(B) थोकबन्द व्यापारी
(C) फुटकर व्यापारी
(D) दलाल
उत्तर :
(B) थोकबन्द व्यापारी

प्रश्न 3.
माल वितरण के मार्ग में प्रथम मध्यस्थी कौन है ?
(A) थोकबन्द व्यापारी
(B) उत्पादक
(C) फुटकर व्यापारी
(D) ग्राहक
उत्तर :
(A) थोकबन्द व्यापारी

प्रश्न 4.
ग्राहकों के साथ प्रत्यक्ष सम्पर्क करनेवाले व्यापारी अर्थात् ……………………………
(A) दलाल
(B) थोकबन्द व्यापारी
(C) उत्पादक
(D) फुटकर व्यापारी
उत्तर :
(D) फुटकर व्यापारी

प्रश्न 5.
मध्यस्थी कौन-सी दुकानों में होते है ?
(A) विभागीय दुकान
(B) डाक व्यवहार की दुकान
(C) संकलित दुकान
(D) थोकबन्द व्यापारी की दुकान
उत्तर :
(B) डाक व्यवहार की दुकान

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प्रश्न 6.
डाक व्यवहार की दुकाने कैसी वस्तुओं के लिए अनुकूल नहीं होती ?
(A) मूल्यवान
(B) वजन में कम
(C) नाशवान
(D) टिकाऊ
उत्तर :
(C) नाशवान

प्रश्न 7.
एक ही स्थल पर विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ मिलती हो तो उसे किस प्रकार की दुकान कहते हैं ?
(A) फ्रेन्चाईज
(B) संकलित दुकान
(C) डाक व्यवहार की दुकान
(D) शोपिंग मोल
उत्तर :
(D) शोपिंग मोल

प्रश्न 8.
किसी निश्चित ब्रान्ड या ट्रेडमार्क प्राप्त कम्पनी के साथ करार करके उसी कम्पनी की वस्तुएँ विक्रय करने अथवा बनाकर विक्रय करनेवाली
दुकान अर्थात्
(A) सुपर मार्केट
(B) फ्रेन्चाईज
(C) शोपिंग मोल
(D) संकलित दुकान
उत्तर :
(B) फ्रेन्चाईज

प्रश्न 9.
टेलीमार्केटिंग द्वारा ग्राहकों को उचित मूल्य पर वस्तु या सेवा किसलिए प्रदान कर सकते है ?
(A) ग्राहक अधिक संख्या में होने से
(B) सेवा का उद्देश्य से
(C) थोकबन्द विक्रय होने से
(D) मध्यस्थियों का न होना
उत्तर :
(D) मध्यस्थियों का न होना

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए :

प्रश्न 1.
आन्तरिक व्यापार का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
देश की भौगोलिक सीमाओं के मध्य होनेवाले व्यापार को आन्तरिक व्यापार कहते हैं ।

प्रश्न 2.
बड़े पैमाने पर फुटकर व्यापारी की दुकानों के प्रकार बताइए ।
उत्तर :

  1. विभागीय दुकानें इ
  2. संकलित/श्रृंखलाबद्ध दुकानें
  3. ग्राहक सहकारी भण्डार
  4. डाक व्यवहार की दुकानें
  5. फ्रेन्चाईज
  6. सुपर मार्केट
  7. शोपिंग मॉल ।

प्रश्न 3.
डाक व्यवहार की दुकानों में किस प्रकार का माल बेचना अनुकूल है ?
उत्तर :
डाक व्यवहार की दुकानों में वजन में हल्की, टिकाऊ तथा मूल्यवान वस्तुओं की बिक्री की जाती है ।

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प्रश्न 4.
टेलि मार्केटिंग में कैसी वस्तु या सेवा की बिक्री के लिए उपयोगी है ?
उत्तर :
टेलि मार्केटिंग ऋण (Loan), निवेश, बीमा की सेवा, क्रेडिट कार्ड इत्यादि सेवाओं की बिक्री के लिए उपयोगी है ।

प्रश्न 5.
स्वयं संचालित विक्रय यंत्र की खोज किसने की थी ?
उत्तर :
स्वयं संचालित विक्रय यंत्र की खोज ग्रीक अभियन्ता और गणितशास्त्री ऐलेक्जान्ड्रीआ हारो (Alexandria Hero) ने की थी ।

प्रश्न 6.
डाक व्यवहार की दुकानें कौन-से वर्ग में अधिक प्रचलित है ?
उत्तर :
डाक व्यवहार की दुकानें शिक्षित वर्गों में अधिक प्रचलित है ।

प्रश्न 7.
बाटा शूज कम्पनी व रामदेव मसाला की दुकानें किसके उदाहरण है ?
उत्तर :
ऐसी दुकानें संकलित दुकानों के उदाहरण है ।

प्रश्न 8.
कौन-से लोग दुकान की अपेक्षाकृत ग्राहकों को कम कीमत पर वस्तुएँ विक्रय करते है ?
उत्तर :
विभिन्न फेरीवाले दुकानों की अपेक्षाकृत ग्राहकों को कम कीमत पर वस्तुएँ विक्रय करते है ।

प्रश्न 9.
विस्तृत रूप दीजिए ।

  1. COD : Cash On Delivery
  2. FOB : Free On Board
  3. CIF : Cost Insurance and Frieght
  4. E&OE : Errors and Omissions Excepted
  5. VPP : Value Payable by Post

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिये :

प्रश्न 1.
विभागीकृत दुकानों में ग्राहकों के समय तथा श्रम की बचत होती है । समझाइए ।
उत्तर :
उपरोक्त विधान सत्य है । विभागीकृत दुकानों में ग्राहकों के समय तथा श्रम की बचत निम्नरूप से होती है । ऐसी दुकानों में ग्राहकों को छोटी से छोटी वस्तु से लेकर बड़ी से बड़ी वस्तुएँ (Pin To Piano पिन (सुई) से पियानो) एक ही भवन में, एक ही छत के नीचे आसानी से मिल जाती हैं, जिससे ग्राहक को सभी प्रकार की वस्तुएँ एक ही स्थान पर मिल जाने से ग्राहकों के समय एवं श्रम की बचत होती है ।

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प्रश्न 2.
डाक-व्यवहार की दुकानों में डूबत ऋण की संभावना नहीं होती । किसलिए ?
उत्तर :
डाक-व्यवहार की दुकानों में डूबत ऋण (Bed debts) की संभावना इसलिए नहीं होती, क्योंकि ऐसी दुकानों में डाक के माध्यम से ऑर्डर (order) दिया जाता है, विक्रेता को क्रेता द्वारा भेजा गया ऑर्डर डाक के माध्यम से प्राप्त होता है । विक्रेता ऑर्डर के अनुसार क्रेता को डाक-विभाग के माध्यम से V.P.P. वी.पी.पी. (Value Payable by Post) के रूप में पार्सल भेज दिया जाता है । क्रेता उपरोक्त V.P.P. का पार्सल प्राप्त करता है तब आवश्यक रकम चुकाने के बाद ही पार्सल प्राप्त किया जा सकता है । डाक-विभाग के माध्यम से यह रकम विक्रेता को भेज दी जाती है, तो इस प्रकार यह सौदा नकद व्यवहार जैसा ही माना जाता है, इसलिए हम कह सकते हैं कि डाकव्यवहार की दुकानों में डूबत ऋण की संभावना नहीं होती ।

प्रश्न 3.
थोक व्यापारी उत्पादक तथा फुटकर व्यापारी के बीच महत्त्व की कड़ी है । क्यों ?
उत्तर :
थोक व्यापारी यह उत्पादक तथा फुटकर व्यापारी के बीच महत्त्व की कड़ी है, क्योंकि थोक व्यापारी उत्पादकों से माल खरीदकर फुटकर व्यापारियों को बेचते हैं । थोक व्यापारी उत्पादनकर्ताओं को बाजार की सुविधा प्रदान करते हैं, व नकद में क्रय करके वित्तीय कमी को पूर्ण करते हैं, विज्ञापन-खर्च, परिवहन की सुविधा, गोदाम की सुविधा भी थोक व्यापारी प्रदान करते हैं । इसके अलावा थोक व्यापारी फुटकर व्यापारी को भी ये सुविधाएँ देते हैं एवं थोक व्यापारी फुटकर व्यापारियों को शान की सुविधा भी प्रदान करते हैं । इसके उपरान्त फुटकर व्यापारियों को उनकी आवश्यकतानुसार माल की आपूर्ति करते हैं व अनेक उत्पादकों की वस्तुएँ पसन्द करने का अवसर प्रदान करते हैं । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि थोक व्यापारी उत्पादक तथा फुटकर व्यापारी के बीच कड़ी के रूप में कार्य करते हैं ।

प्रश्न 4.
फुटकर व्यापारी किस प्रकार की जोखिम उठाते है ? ।
उत्तर :
फुटकर व्यापारी वस्तुओं का नुकसान, माल में कमी अथवा वस्तुओं के मूल्य में कमी व वृद्धि इत्यादि जोखिम उठाते है । फुटकर व्यापारी नाशवान किस्म की कई वस्तुएँ जैसे कि फल, साग-सब्जी, दूध, दूध से निर्मित वस्तुएँ विक्रय के बिना पड़ी रहे तब खराब होने की सम्भावना रहती है । जिससे फुटकर व्यापारियों को नुकसान सहन करना पड़ता है ।

प्रश्न 5.
टेलीविजन मार्केटिंग में रकम का भुगतान किस प्रकार किया जा सकता है ? ।
उत्तर :
टेलीविजन मार्केटिंग में वस्तुओं के मूल्य का भुगतान दो तरह से किया जा सकता है ।

  1. डेबिट कार्ड अथवा क्रेडिट कार्ड द्वारा पहले से ही भुगतान किया जा सकता है ।
  2. वस्तु जब घर पर पहुँचाई जाये तब नकद से भुगतान किया जा सकता है ।

प्रश्न 6.
स्वयं संचालित विक्रय यंत्र की खोज किसने की थी ?
उत्तर :
स्वयं संचालित विक्रय यंत्र की खोज ग्रीक अभियन्ता और गणितशास्त्री अलेक्जान्ड्रीया हीरो ने की थी ।

प्रश्न 7.
प्रत्यक्ष विक्रय पद्धति और परोक्ष विक्रय पद्धति के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए ।

अन्तर का मुद्दा प्रत्यक्ष विक्रय परोक्ष विक्रय
1. मध्यस्थी प्रत्यक्ष विक्रय पद्धति में उत्पादक और ग्राहकों के बीच कोई मध्यस्थी नहीं होता है । (1) परोक्ष विक्रय पद्धति में उत्पादक और ग्राहक के बीच कोई मध्यस्थी होता है ।
2. समय माल का वितरण शीघ्र होता है । (2) परोक्ष विक्रय में माल के वितरण में समय लगता है।
3. मूल्य बीच में मध्यस्थी न होने के कारण ग्राहकों को माल सस्ता पड़ता है । (3) बीच में मध्यस्थी होने के कारण ग्राहकों को माल महँगा पड़ता है ।
4. बाजार बाजार स्थानिक हो और ग्राहकों की संख्या कम हो तब प्रत्यक्ष विक्रय संभव है । (4) बाजार बड़ा हो और ग्राहकों की संख्या अधिक हो तब परोक्ष विक्रय संभव रहता है ।

प्रश्न 8.
संकलित दुकानों के दो उदाहरण दीजिए ।
उत्तर :
संकलित (श्रृंखलाबद्ध) दुकानों के उदाहरण निम्नलिखित हैं :

  1. बाटा शूज कम्पनी
  2. नेशनल टेक्सटाइल कोर्पोरेशन
  3. मफतलाल की दुकान
  4. रेयमण्ड एवं डिग्जाम के शो रूम ।
  5. वाघ-बकरी चाय
  6. रामदेव मसाला इत्यादि ।

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प्रश्न 9.
उत्पादक या थोक व्यापारी की अपेक्षा फुटकर व्यापारी का ग्राहकों पर अधिक प्रभाव होता है । क्यों ?
उत्तर :
उत्पादक या थोक व्यापारी की अपेक्षाकृत फुटकर व्यापारी का ग्राहकों पर अधिक प्रभाव इसलिए होता है, क्योंकि फुटकर व्यापारी ही ग्राहकों के सबसे नजदीक होते हैं, ग्राहकों से ज्वलंत सम्पर्क बनाये रखते हैं, ग्राहकों की रूचि, माँग, फैशन से अवगत रहते है, ग्राहकों को अनेक प्रकार की वस्तुएँ उपलब्ध करवाते हैं, ग्राहकों को शाख की सुविधा एवं विक्रय के पश्चात् की सेवाएँ भी प्रदान करते हैं । इसलिए हम कह सकते हैं कि उत्पादक या थोक व्यापारी की अपेक्षा फुटकर व्यापारी का ग्राहकों पर अधिक प्रभाव होता है ।

प्रश्न 10.
विभागीकृत दुकानों के दो उदाहरण दीजिए ।
उत्तर :

  1. अहमदाबाद की पारेख्स
  2. मुम्बई की अकबर अली की दुकान

प्रश्न 11.
वी.पी.पी. द्वारा कौन-सी दुकानों द्वारा व्यापार व रकम का भुगतान किया जाता है ?
उत्तर :
पोस्ट व्यवहार की दुकानों द्वारा ।

प्रश्न 12.
बाटा रु कम्पनी किस प्रकार की दुकान कहलाती है ?
उत्तर :
संकलित/श्रृंखलाबद्ध दुकान ।

4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर दीजिए :

1. अन्तर बताइए : विभागीय दुकान और संकलित दुकान/श्रृंखलाबद्ध दुकान

अन्तर का मुद्दा विभागीकृत भण्डार (Departmental Stores) श्रृंखलाबद्ध दुकानें / संकलित दुकानें (Chain shop)
1. वर्ग विभागीय भण्डार उच्च आयवाले लोगों से सम्बन्धित ग्राहकों को आकर्षित करते हैं । श्रृंखलाबद्ध दुकानों में सभी श्रेणियों के आयवाले के ग्राहकों को आकर्षित किया जाता हैं ।
2. हेतु ऐसी दुकानों में ग्राहकों की सभी आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु माल एक ही स्थान पर उपलब्ध कराते हैं । ऐसी दुकानों में व्यापारिक माल की सीमित किस्मों में एक ही वस्तु अलग-अलग स्थानों पर बेचना है ।
3. पूँजी ऐसी दुकानों में विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ भारी मात्रा में स्टॉक में रखनी पड़ती हैं एवं ग्राहकों को अनेक सेवाएँ प्रदान की जाती हैं । इसलिए इनमें

अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है ।

ऐसी दुकानों में अपेक्षाकृत कम पूँजी की आवश्यकता होती है, क्योंकि इनमें अन्य सेवाएं प्रदान नहीं की जाती हैं।
4. शान की सुविधा विभागीकृत दुकानों में सामान्यतः नियमित ग्राहकों को शान की सुविधाएँ दी जाती हैं । श्रृंखलाबद्ध दुकानों में सामान्यतः नकद बिक्री की जाती है, उधार नहीं ।
5. दुकान का स्थल ऐसी दुकानें शहर के मध्य में पाई जाती हैं । ऐसी दुकानें जहाँ ग्राहक होते हैं, उनके पास ही स्थापित की जाती है ।
6. मूल्य इनमें बेची जानेवाली वस्तुओं की कीमतें अधिकहोती हैं । इनमें वस्तुओं की कीमतें अपेक्षाकृत कम होती हैं ।
7. जोखिम विक्रय की प्रवृत्ति एक ही स्थल पर होने से जोखिम अधिक होती है । विक्रय की प्रवृत्ति विभिन्न स्थानों पर शाखा द्वारा होती है, जिससे जोखिम का प्रमाण कम होता है ।

2. फुटकर व्यापारी और थोकबंद व्यापारी

अनु. अन्तर के मुद्दे फुटकर व्यापारी थोकबन्द व्यापारी
1. पूँजी का प्रमाण फुटकर व्यापार में पूँजी निवेश का प्रमाण कम होता है । थोकबन्द व्यापार में अपेक्षाकृत अधिक पूँजी निवेश का प्रमाण अधिक होता है ।
2. क्रय व विक्रय इसमें छोटे अथवा बड़े जत्थे में माल को क्रय करके ग्राहकों को उनकी आवश्यकतानुसार फुटकर विक्रय करते है । इसमें बड़े जत्थे में माल क्रय करके फुटकर व्यापारियों को छोटे जत्थे में माल का विक्रय करते है ।
3. वस्तुओं की बिक्री ये अनेक उत्पादकों अथवा थोकबन्द व्यापारियों की विभिन्न वस्तुओं की बिक्री करते है । ये सीमित उत्पादकों की विविधतावाली वस्तुओं की बिक्री करते है ।
4. वितरण कडी ग्राहकों व थोकबन्द व्यापारियों के मध्य वितरण कडी के समान है । फुटकर व्यापारी व उत्पादक के मध्य वितरण कडी समान है ।
5. संख्या फुटकर व्यापारियों की संख्या प्रमाण में अधिक होती है । थोकबन्द व्यापारियों की संख्या प्रमाण में कम होती है ।
6. शान की सुविधा फुटकर व्यापारी सामान्यत: नकद व्यापार करते है । थोकबन्द व्यापारी शान पर भी व्यापार करते है ।
7. वस्तु फुटकर व्यापारी बहुत-सी वस्तुओं का व्यापार करते है । थोकबन्द व्यापारी सामान्यत: निश्चित वस्तु का व्यापार करते है ।

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3. संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।

प्रश्न 1.
डाक व्यवहार की दुकान :

ग्राहकों को उनके पते पर डाक द्वारा सूची-पत्र भेजकर उनके पास से ऑर्डर प्राप्त किये जाते है । उनके बाद वस्तु की सुपुर्दगी भी डाक के माध्यम से की जाती है और वस्तु के भुगतान (वित्त) की सुपुर्दगी भी डाक द्वारा ही वसुल की जाती है । जिसे डाक-व्यवहार की दुकाने कहते हैं ।

पोस्ट व्यवहार की दुकानें फुटकर व्यापार के ऐसे प्रकार हैं जिनमें व्यापार की तमाम प्रवृत्तियाँ पोस्ट द्वारा होती हैं । इस प्रकार की दुकानों में ग्राहकों का व्यक्तिगत सम्पर्क नहीं किया जाता तथा ग्राहक भी व्यापारी की मुलाकात नहीं लेते हैं । माल की खरीदी भी ग्राहक बिना जाँच-पड़ताल लिए ही करते हैं । विज्ञापन सूचीपत्र इत्यादि पर ही आधार रखा जाता है, और उनके द्वारा ही ग्राहकों का सम्पर्क किया जाता है । ऑर्डर रकम की वसूली, माल की खानगी समस्त प्रक्रियाएँ पोस्ट द्वारा ही होती हैं । सामान्यतः वजन में हल्की तथा कीमत में अधिक हों ऐसी वस्तुएँ इस प्रकार की दुकान के लिए अधिक सुयोग्य मानी जाती हैं ।

प्रश्न 2.
फ्रेन्चाईज :
उत्तर :
फ्रेन्चाइज शॉप (Franchise Shop) या विशेषाधिकारवाली दुकान : ऐसी संस्था किसी निश्चित ब्रान्ड तथा ट्रेडमार्कवाली कम्पनी के साथ ठहराव या करार (Agreement) करके उसी नाम, ब्रान्ड, ट्रेड मार्क से वस्तु बनाकर बेचनेवाली संस्था है । ऐसी व्यवस्था वाली फुटकर दुकान की सजावट मूल (मुख्य) कम्पनी (Parent Company) जैसी ही होती है, इसे विशेषाधिकारवाली दुकान (Franchise Shop) कहते हैं, जैसे बेनटॉन, मेकडोनाल्ड, पीत्झा हट, एन.आई.आई.टी. (NIIT), एप्टेक APTECH इत्यादि ।

इसमें मूल कम्पनी अपने ब्रान्ड या ट्रेडमार्क के उपयोग हेतु छूट देती है । जिसके बदले में निश्चित किया लायसन्स एवं कमीशन अर्जित करते हैं, कई परिस्थितियों में ऐसे विशेषाधिकार प्राप्त व्यापारी के स्थायी गुमास्तों (कर्मचारियों) को मूल कम्पनी द्वारा प्रशिक्षित (Trainied) किया जाता है । भारत में कई रेस्टोरन्ट, कम्प्यूटर की ट्रेनिंग देनेवाले केन्द्र, इस पद्धति के अन्तर्गत काम करते दिखाई देते हैं । इनमें विज्ञापन एक ही स्थल से किया जाता है । इनमें प्रत्येक इकाई को अलग से विज्ञापन खर्च नहीं करना पड़ता है । मूल कम्पनी द्वारा धन्धा करने की पद्धति, दुकानों का विन्यास (Lay out) (अर्थात् साज-सजावट) वस्तु की किस्म-सम्बन्धी निरन्तर निरीक्षण व सुधार हेतु मार्गदर्शन दिया जाता है ।

प्रश्न 3.
सुपर मार्केट/बाजार :
उत्तर :
सुपर मार्केट/सुपर बाजार बड़े पैमाने पर फुटकर विक्रय करनेवाली दुकान है । इसमें विक्रय की जानेवाली वस्तुएँ प्रतिष्ठित कम्पनियों अथवा उत्पादकों के पास से बड़े जत्थे में क्रय करके ग्राहकों को उचित मूल्य पर वस्तुओं का विक्रय करते है । इस प्रकार के स्टोर्स (दुकान) छोटे दुकानदारों को भी आकर्षित करते है । सुपर बाजार में समस्त प्रकार की जीवन-जरूरी वस्तुओं का विक्रय किया जाता है । देश के विभिन्न बड़े शहर या नगर में सुपर बाजार स्थित है । इनका आकार अथवा कद निर्माण की दृष्टि से बड़ा होता है ।

प्रश्न 4.
शोपिंग मोल :
उत्तर :
आधुनिक समय में विभागीय दुकानों में जो परिवर्तन आया है, वह शोपिंग मोल के रूप में विकसित हुआ । शोपिंग मोल का निर्माण कार्य सुपर मार्केट की अपेक्षाकृत बड़ा होता है । जिसमें छोटी व बड़ी अनेक दुकानें एक मालिक अथवा एक से अधिक मालिकों द्वारा आरम्भ की जाती है ।

शोपिंग मोल में ग्राहकों को विविध प्रकार की ब्रान्डेड जीवन-जरुरी तथा मौज-शोख की वस्तुएँ एकसाथ एक ही स्थान पर मिलती है । इसमें विविध प्रकार की विक्रय अभिवृद्धि की दरखास्तों द्वारा ग्राहकों को आकर्षित करने के प्रयत्न किये जाते है । विविध उत्पादकों की एक-समान उत्पादों के मध्य स्पर्धा यह शोपिंग मोल का विशिष्ट लक्षण है । जिससे ग्राहकों की वस्तुओं की पसन्दगी के पर्याप्त अवसर मिल जाते है । शोपिंग मोल में ग्राहकों के लिए आधुनिक सुविधाएँ जैसे कि नास्तागृह, बालकों के लिए मनोरंजन विभाग, वाई-फाई, सिनेमागृह आदि होते है ।

प्रश्न 5.
स्वयं संचालित विक्रय यंत्र (Automatic Vending Machine) :
उत्तर :
वेन्डींग मशीन एक स्वयंसंचालित यंत्र है जिसमें वस्तु पहले से रख दी जाती है और निश्चित सिक्के डालने से वस्तु बाहर आती है । इस प्रकार की मशीन सप्ताह के सातों दिन और चौबीस घंटे काम करती है । आधुनिक समय में वेन्डींग मशीन अथवा स्लोट मशीन का उपयोग किया जाता है । शुरू में रेलवे और हवाई अड्डों तथा बस स्टॉप पर सिगरेट और चॉकलेट का वितरण करने के लिए इस प्रकार की मशीन रखी गयी थी । अब तो दूध, पेय पदार्थ जैसे चाय, कॉफी, पुस्तकों, न्यूज पेपर्स के लिए भी इस प्रकार की व्यवस्था की गई है ।

विदेशों में इस प्रकार के यंत्रों का प्रचार इतना बढ़ गया है कि कारखाने की केन्टीन में सामग्री का वितरण इस यंत्र में होता है । दूध, कॉफी के लिए भारत में वेन्डींग मशीन उपलब्ध हैं । भारत में तो अब मसाला ढोसा की बिक्री के लिए भी इस प्रकार के यंत्र की व्यवस्था स्थापित होगी । कुछ लोग तो ऐसा मानते हैं कि देर-सबेर बहुत-सी वस्तुओं को ऐसे स्वयंसंचालित यंत्रों से बेचा जा सकेगा जो फुटकर व्यापारियों के लिए एक बड़ी समस्या बन सकती है । ऐसे यंत्र की खोज ग्रीक अभियन्ता और गणितशास्त्री अलेक्जान्ड्रीया हीरो ने की थी ।

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5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक दीजिए :

प्रश्न 1.
थोकबन्द व्यापार का अर्थ बताकर, इनकी विभिन्न सेवाएँ समझाइए ।
उत्तर :
थोकबन्द व्यापार (Wholesale Trade) का अर्थ : ऐसा व्यापार जिसमें व्यापारी उत्पादकों के पास से बड़े जत्थे में माल क्रय करते है और फुटकर व्यापारियों को आवश्यकतानुसार छोटे जत्थे में माल का विक्रय करते है तो उन्हें थोकबन्द व्यापार कहते हैं । थोकबन्द व्यापारी यह उत्पादनकर्ता और फुटकर व्यापारी के मध्य कडी के समान है ।
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उत्पादकों के प्रति सेवाएँ :

  • जानकारी देना : थोक व्यापारी का फुटकर व्यापारी के साथ सीधा सम्बन्ध होता है । फुटकर व्यापारी से वह ग्राहकों की, अलग-. अलग जाति के माल के सम्बन्ध में पसन्दगी तथा माल के विषय की शिकायतें या सलाह-सूचन जानता है और यह जानकारी उत्पादक को पहुँचाता है ।
  • विज्ञापन : बाजार की नस परखने में कुशल ऐसे थोक व्यापारी विज्ञापन का कार्य भी बाजार के अनुरुप व्यवस्थित कर देते हैं । विज्ञापन में कितनी ही बार उत्पादक को स्थान मिलता है । उत्पादक को माल के विज्ञापन की जिम्मेदारी में से मुक्ति मिलती है ।
  • आर्थिक सहायता : थोक नकद खरीदी द्वारा थोक व्यापारी उत्पादक की इतने मात्रा में पूँजी-विनियोग की जवाबदारी कम करते हैं । कई बार ऋण की सुविधा भी देते हैं ।
  • माल के विक्रय से मुक्ति : थोक व्यापारी उत्पादक के पास से थोक माल खरीद कर विक्रय की सारी प्रक्रिया खुद करता है । उत्पादक को माल-विक्रय की जिम्मेदारी में से मुक्ति मिलती है और वह अपना पूरा ध्यान उत्पादन की ओर केन्द्रित कर सकता है ।
  • माल के संग्रह से मुक्ति : थोक व्यापारियों की अपेक्षित माँग के आधार पर उत्पादक अपने उत्पादन का स्वरूप निश्चित करता है । थोक व्यापारी की खरीदी के कारण उत्पादक का गोदाम का प्रश्न इतने प्रमाण में अवरोधक नहीं बनता ।।
  • बड़ी मात्रा में उत्पादन करवाना : थोक व्यापारी बड़ी मात्रा में खरीदी करता है जिससे उत्पादक आदेशानुसार बड़ी मात्रा में उत्पादन करता है ।
  • विशिष्टीकरण : थोक व्यापारी बाजार की प्रक्रिया को स्वयं करता है । इस कारण उत्पादक उत्पादन के ऊपर ध्यान दे सकता है और कार्य-विभाजन के द्वारा विशिष्टीकरण ला सकता है ।
  • पूँजी की बचत : माल का संग्रह करना या बाजार में संशोधन का कार्य करने में उत्पादक को खर्च नहीं करना पड़ता है क्योंकि यह कार्य थोक व्यापारी करता है जिससे पूँजी की बचत होती है ।
  • ग्राहकों से विशेष जानकारी : थोक व्यापारी बाजार में संशोधन करता है । ग्राहकों से विशेष जानकारी संग्रह करता है । वह जानकारी उत्पादक को दे देता है जिससे उत्पादकों को वैकल्पिक उत्पादन का ध्यान रहता है और उत्पादक गुणवत्ता में सुधार कर सकता है ।

(ब) फुटकर व्यापारी के प्रति सेवाएँ :

  • बड़ी मात्रा में स्टॉक रखने से मुक्ति : थोक व्यापारी फुटकर व्यापारी को जब और जितना चाहिए उतना माल देता है । फुटकर व्यापारी को बड़े प्रमाण में माल का संग्रह नहीं करना पड़ता है । इसलिए छोटी जगह में भी फुटकर व्यापारी अपना धंधा कर सकता है । गोदाम की सुविधा के सम्बन्ध में उसे चिन्ता नहीं करनी पड़ती है ।
  • कम पूँजी के आधार : फुटकर व्यापारी छोटे जत्थे में माल खरीद सकता है । खरीदी के समय शान प्राप्त कर सकता है और उसे नकद नहीं चुकाना पड़ता है । इसीलिए कम पूँजी से धंधा किया जा सकता है अर्थात् शान की सुविधा मिलती है ।
  • बिक्री में वृद्धि : शाख की सुविधा मिलने से फुटकर व्यापारी भी ग्राहक को उधार बिक्री करने की सुविधा कर सकता है और इसके द्वारा अपनी बिक्री बढ़ा सकता है ।
  • सलाह-सूचन और जानकारी : अपने अनुभव के आधार पर थोक व्यापारी माल की उपयोगिता, गुणवत्ता, भाव इत्यादि विषयों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सलाह-सूचन और समझ फुटकर व्यापारी को दे सकता है ।
  • विज्ञापन में मदद : थोक व्यापारी माल के वितरण के सम्बन्ध में सजग होने के कारण फुटकर व्यापारी को विज्ञापन के लिए अधिक खर्च नहीं करना पड़ता ।
  • पुराने भाव से माल खरीदी का लाभ : थोक व्यापारी ने माल का संग्रह किया हो तो उसका लाभ भाव बढ़ते रहने की परिस्थिति में फुटकर व्यापारी को पुराने भाव पर माल खरीदने से मिल सकता है ।
  • वैविध्यपूर्ण माल की प्राप्ति : जहाँ थोक व्यापारी विविध उत्पादकों का माल रखते हैं वहाँ उनसे ही फुटकर व्यापारी को वैविध्य पूर्ण माल मिलता रहता है ।
  • अन्य लाभ : थोक व्यापारी अपने विशेष सम्पर्कों के कारण तथा बड़े जत्थे में खरीदी करने के कारण दूर के उत्पादकों का माल भी सरलता से ला सकते हैं, परिवहन की सुविधा भी सरलता से हो सकती है । इसका प्रत्यक्ष लाभ फुटकर व्यापारी को मिलता है ।
  • माल का वितरण : थोक व्यापारी फुटकर व्यापारी को उसकी दुकान पर माल पहुंचाता है ।
  • माल को बिक्री योग्य बनाने में सहायता : कई बार थोक व्यापारी माल का प्रमाणीकरण, वर्गीकरण, प्रभावशाली पैकिंग, ब्रान्डिंग एवं निशानी लगाकर फुटकर व्यापारी को बेचता है जिससे फुटकर व्यापारी को माल की बिक्री करने में सरलता रहती है ।

प्रश्न 2.
फुटकर व्यापार (Retail Trade) का अर्थ एवं इनकी थोकबन्द व्यापारी व उत्पादकों के प्रति सेवाएँ समझाइए ।
उत्तर :
फुटकर या खुदरा व्यापारी का अर्थ : फुटकर व्यापार से जुड़े व्यापारी फुटकर या खुदरा व्यापारी के नाम से जाने जाते हैं । उत्पादन के प्रारंभ से उपभोक्ता तक माल का वहन होता है उसमें अंतिम स्थान फुटकर व्यापारी का है । जिसका मुख्य कार्य उपभोक्ता की जरूरत, अभिरुचि का अंदाज लगाकर उपभोक्ताओं को सही जगह एवं समय पर माल देना ।

फुटकर व्यापारी को अंग्रेजी में रीटेइलर ‘Retailer’ कहते हैं । यह फ्रेन्च भाषा से आया हआ शब्द हैं जिसका अर्थ ‘फिर से करना’ फिर से विभाजित करना होता है । फुटकर व्यापारी उपभोक्ता की आवश्यकता के अनुरूप छोटे-छोटे हिस्से में माल की बिक्री करता है । फुटकर व्यापारी थोकबन्द व्यापारी व ग्राहकों के मध्य कडी समान है ।

जेम्स स्टीफन्स : “फुटकर व्यापारी अर्थात् जो उपभोक्ता के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध रखता हो, ऐसा उपयोगी चीज-वस्तु के वितरण से जुड़ा हुआ व्यापारी, मध्यस्थी ।”

लिफन्टन के मतानुसार : “फुटकर व्यापारी कम मात्रा में माल खरीदकर उपभोक्ता को देता है ।”
फुटकर व्यापारी द्वारा थोक व्यापारी व उत्पादकों के प्रति सेवाएँ – निम्नलिखित है :

  • फुटकर बिक्री से मुक्ति : उत्पादित माल के वितरण की प्रक्रिया में फुटकर व्यापारी की सेवाएँ उपलब्ध न हों तो अनेक प्रकार की कठिनाइयों का अनुभव करना पड़ता है ।
  • जानकारी प्रदान करता है : फुटकर व्यापारी उपभोक्ता ग्राहकों के साथ सीधे सम्पर्क में आते हैं । लोगों की रुचि, पसंदगी सबसे अंतिम और आधुनीकतम फैशन प्रवाह इत्यादि से अच्छी तरह परिचित होने से वे उत्पादक अथवा थोक व्यापारी को बाजार संशोधन की सेवाएँ भी दे सकते हैं ।
  • विज्ञापन की सुविधा : फुटकर व्यापारी बिक्री-वृद्धि और विज्ञापन के कार्यों को भी सरल बनाते हैं । व्यक्तिगत संपर्क और सिफारिश, साईनबोर्ड, आकर्षक व्यवस्थीकरण इत्यादि द्वारा यह संभव बनता है ।
  • बाजार की सुविधा : थोक व्यापारी का माल अंतिम उपभोक्ता को बेचकर फुटकर व्यापारी थोक व्यापारी को बाजार की सुविधा देता है ।
  • वितरण-खर्च बचाता है : यदि फुटकर व्यापारी न हो तो थोक व्यापारी को कम मात्रा में पैकिंग करके उपभोक्ताओं को माल की बिक्री करनी पड़ती है जिसके लिए वाहन-व्यवहार पैकिंग का बड़ा खर्च उठाना पड़े पर फुटकर व्यापारी यह सभी काम अपने जिम्मे लेता है । इसी वजह से थोक व्यापारी इन सभी वर्गों से बच जाता है ।
  • बिक्री-वृद्धि का लाभ : फुटकर व्यापारी बिक्री बढ़ाने के लिए सदा प्रयत्नशील रहता है । इतना ही नहीं उपभोक्ता उसके ऊपर अवलंबित रहकर उसकी सलाह के अनुसार नई चीज भी खरीदते हैं जिससे आम तौर पर थोक व्यापारी की बिक्री में वृद्धि होती है।
  • शाख में वृद्धि : फुटकर व्यापारी अच्छी गुणवत्तावाली और योग्य कीमत पर उपलब्ध करानेवाले थोकबन्द व्यापारी या उत्पादकों से माल क्रय करके ग्राहकों को विक्रय करते है । जिसके परिणामस्वरूप बाजार में शान में वृद्धि होती है ।

प्रश्न 3.
फुटकर व्यापार के लाभ व मर्यादाएँ समझाइये ।
उत्तर :
फुटकर व्यापार के लाभ : इसके लाभ निम्नलिखित होते हैं :

  1. फुटकर व्यापारी ग्राहकों की आवश्यकतानुसार माल का संग्रह करते हैं एवं ग्राहकों को घर तक माल पहुँचाने की सेवा देते हैं ।
  2. फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं की पसन्द व रूचि की जानकारी थोक व्यापारी को देते रहते हैं ।
  3. फुटकर व्यापारी शान की सुविधा देते हैं, जिससे बिक्री को बढ़ाया जा सकता है ।
  4. फुटकर व्यापारी बिक्री के बाद की सेवाएँ भी प्रदान करते हैं ।
  5. फुटकर व्यापारी कलात्मक ढंग से सजावट करते हैं, जिससे खरीदी में सुविधा रहती है ।
  6. फुटकर व्यापारी ग्राहकों की शिकायतें प्राप्त करके थोकबन्द व्यापारी अथवा उत्पादक के पास पहुँचाकर उनका हल शीघ्र करने में मददरूप होते है ।
  7. फुटकर व्यापारी ग्राहकों को विक्रय के पश्चात् की सेवाएँ जैसे मरम्मत, नुकसानी, माल को वापस लेना अथवा माल को बदल देना इत्यादि सुविधाएँ प्रदान करते है ।
  8. फुटकर व्यापारी ग्राहकों को योग्य मार्गदर्शन जैसे वस्तुओं का मूल्य, वस्तु की पूर्ति व वस्तु का उपयोग की पद्धति आदि दिया जाता है ।

फुटकर व्यापार के दोष :

  1. ये व्यापारी अस्तित्व में आने से वितरण-मार्ग लम्बा बन जाता है जिससे मध्यस्थी खर्च के कारण वस्तएँ महँगी हो जाती हैं ।
  2. वितरण-प्रणाली लम्बी होने से ग्राहकों तक वस्तु पहुँचाने में समय लगता है ।
  3. नाशवान किस्म की वस्तुओं का व्यापार करना असंभव होता है क्योंकि समय अधिक लगने से वस्तुएँ खराब हो जाती हैं ।
  4. ऐसे व्यापार में फुटकर व्यापारी को अनेक उत्पादकों से वस्तुएँ क्रय करनी पड़ती है, जिससे बड़े पैमाने में पूँजी निवेश करना पड़ता है ।
  5. ऐसे व्यापार में वस्तुओं के अप्रचलित होने की जोखिम बनी रहती है, जैसे ग्राहकों की पसन्द, अभिरूचि, फैशन व तकनिकी इत्यादि ।
  6. फुटकर व्यापार में व्यापारी कई बार उत्पादक अथवा अनेक उत्पादन के बारे में पूर्व ग्रन्थि से पीड़ित होने से उत्पादक की वस्तुओं का विक्रय नहीं करते ।

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प्रश्न 4.
घूमती दुकानों के प्रकार समझाइये ।
उत्तर :
(1) फेरिया : विभिन्न फेरीवाले माल लेकर के ग्राहकों के अलग-अलग स्थान जैसे कि घर, रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन इत्यादि जैसे सार्वजनिक स्थानों पर माल का विक्रय करते है । सामान्य रूप से वर्तमान पत्र/समाचार पत्र, साग-सब्जी, फल तथा घरेलू उपयोग की वस्तुओं का विक्रय करते है । ऐसे फेरीवाले दुकान की अपेक्षाकृत कम मूल्य पर देते है । क्योंकि उनकी लागत और अन्य खर्च भी कम होते है ।

(2) कामचलाऊ व्यापार : निश्चित प्रसंग, त्योहार अथवा मौसम दौरान निश्चित वस्तुओं का विक्रय करते है, जिसे कामचलाऊ व्यापार कहते है, जैसे कि मेले में माल का विक्रय करनेवाले व्यापारी, मकरसंक्रान्ति पर पतंग-डोरी बेचनेवाले, दिपावली पर पटाखे बेचनेवाले तथा विभिन्न मौसम में रेइनकोट, छाता, गरम कपड़े बेचनेवाले आदि ।

(3) निश्चित दिन का व्यापार : कई शहरों में, नगरों में अथवा गाँवों में सप्ताह या महिने के निश्चित दिन पर और निश्चित स्थान पर ऐसे बाजार भरे जाते है । जिसमें बहुत से व्यक्ति अथवा व्यापारी अनेक प्रकार की वस्तुएँ विक्रय हेतु लाते है ।

(4) गली/शेरी विक्रेता : शेरी विक्रेता अर्थात् ग्राहकों का जीवन जरूरी वस्तुएँ फुटपाथ पर बेचते है और उनके आस-पास में रहनेवाले शेरी, पोल अथवा सोसायटी के ग्राहक यह वस्तुएँ क्रय करते है । जैसे कि – साग-सब्जी, फल विक्रेता ।

प्रश्न 5.
विभागीय दुकान किसे कहते हैं ? इसके लक्षण समझाइए ।
उत्तर :
अर्थ : ‘विभागीकृत (विभागीय) दुकान अर्थात् एक ही मकान में एक ही प्रशासन के अन्तर्गत, एक ही मालिक के हस्तक काम करनेवाली अनेक छोटी विशिष्ट दुकानों का समूह ।’

विभागीय दुकानों में बृहद पैमाने पर फुटकर बिक्री होती है । जिसमें अनेक प्रकार की वस्तुएँ एक ही स्थान उपलब्ध होती है । ऐसी दुकानों में प्रत्येक प्रकार की वस्तुओं के विक्रय हेतु अलग खाता या विभाग होता है । इसलिए इसे विभागीय दुकान (विभागीय भण्डार अथवा विभागीकृत दुकान) कहते हैं ।

ऐसी दुकानों की मालिकी और संचालन एक ही व्यक्ति के अधिन या हस्तक होता है । इस प्रकार की दुकानों में अधिकांशतः जीवन जरूरी वस्तुओं से लेकर के मौज-शोख की वस्तुएँ ग्राहक खरीद सकते है ।
लक्षण :

  1. बड़े पैमाने पर विक्रय : विभागीय दुकानों में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का बड़े पैमाने में फुटकर व्यापार होता है ।
  2. अलग वस्तुओं के लिए अलग विभाग : विभागीय दुकानों में प्रत्येक प्रकार की वस्तुओं के विक्रय के लिए अलग विभाग होता
  3. मालिकी और संचालन : विभागीय दुकानों की मालिकी और संचालन एक ही व्यक्ति के हाथ में होता है ।
  4. शहेरी विस्तारों में : विभागीय दुकाने विशेष करके शहरी विस्तारों में देखने को मिलती है ।
  5. कर्मचारियों के प्रशिक्षण : विभागीय दुकानों के कर्मचारियों को ग्राहकों के साथ योग्य व्यवहार और विक्रय वृद्धि के लिए विशिष्ट
    प्रशिक्षण दिया जाता है ।
  6. अधिक खर्च : विभागीय दुकानों में ढाँचागत सुविधाएँ देने के लिए और उनकी सुरक्षा में अधिक खर्च होता है ।
  7. ग्राहकों को सुविधा : विभागीय दुकानों में ग्राहकों के लिए मनोरंजन, रेस्टोरन्ट, वाई-फाई जैसी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जाती
  8. मार्गदर्शन : विभागीय दुकानों के कर्मचारी ग्राहकों का स्वागत करके, वस्तुओं का निदर्शन करके, सलाह-सूचन देकर के ग्राहकों को वस्तु की पसन्दगी के लिए मार्गदर्शन देते है ।

प्रश्न 6.
संकलित दुकान किसे कहते हैं ? इसके लक्षण समझाइए ।
उत्तर :
श्रृंखलाबद्ध (संकलित) दुकान का अर्थ : बहुविध दुकानों के रूप में भी प्रसिद्ध इस प्रकार की दुकानें एक ही व्यवस्था द्वारा . अपनी वस्तुएँ बेचने के लिए शहर के, राज्य के या देश के भिन्न-भिन्न भागों में चलाई जाती हैं । श्रृंखलाबद्ध दुकानें अर्थात् अलग-अलग स्थानों पर स्थित दुकानें, एक व्यवस्थापक की देखभाल के अन्तर्गत एक-दूसरे के साथ सम्बद्ध होती हैं । ऐसी दुकानें एक ही प्रकार की वस्तुएँ बेचती हैं । दूर-दूर के ग्राहकों को निर्धारित स्थान पर स्थित दुकान पर आकर्षित करने के बदले यहाँ ग्राहकों के समीप जाने का प्रयास किया जाता है । इस प्रकार श्रृंखलाबद्ध दुकानें स्थान की अपेक्षा माँग को अधिक महत्त्व देती हैं ।

सामान्यतः दैनिक जीवन में उपयोगी हों वैसी वस्तुएँ, लोगों में पसन्दगी प्राप्त और स्वीकृत प्राप्त वस्तुएँ, निशानी की गई वस्तुएँ तथा जो वस्तुएँ सरलता से उठाकर ले जा सकें ऐसी वस्तुओं के लिए ऐसी दुकानें उपयोगी हैं । बाटा कंपनी या कैरोना कंपनी ऐसी दुकानों के उदाहरण हैं ।

लक्षण :

  1. एक ही मालिक : संकलित दुकानों की मालिकी एक ही व्यक्ति की होती है ।
  2. एक-समान सजावट : संकलित दुकानों की बाह्य सजावट एक-समान होती है ।
  3. कर्मचारियों को प्रशिक्षण : धन्धाकीय इकाई की नीतियाँ, ग्राहकों के साथ व्यवहार आदि में समानता दिखाई देती है । इसके लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है ।
  4. केन्द्रीय संचालन : संकलित दुकानों का संचालन एक ही स्थान से अर्थात् मुख्य कार्यालय से होता है ।
  5. समान पहचान : संकलित दुकानों की बाह्य सजावट तथा कर्मचारियों की पोशाक एकसमान होने से समान पहचान प्रस्थापित होती है ।

प्रश्न 6.
टेलीमार्केटिंग और इन्टरनेट मार्केटिंग के बारे में समझाइए ।
उत्तर :
टेलीमार्केटिंग : टेलीमार्केटिंग को दो भागों में बाँटा गया है :
(i) टेलीफोनिक मार्केटिंग
(ii) टेलीविजन मार्केटिंग

(i) टेलीफोनिक मार्केटिंग : इस पद्धति में संभावित ग्राहकों को टेलीफोन या मोबाइल द्वारा सम्पर्क करके उत्पादित वस्तु अथवा सेवा के बारे में जानकारी प्रदान करती है । इसके पश्चात् इच्छुक ग्राहकों को टेलीफोन अथवा मोबाइल द्वारा समय लेकर के उनके अनुकूल समय पर और स्थान पर प्रत्यक्ष सम्पर्क करके जानकारी प्रदान की जाती है । इस तरह विक्रय करने की पद्धति को टेलिफोनिक मार्केटिंग कहते हैं ।

यह पद्धति ऋण (Loan), निवेश, बीमा की सेवा क्रेडिट कार्ड इत्यादि सेवाओं के लिए उपयोगी है । इनमें मध्यस्थी न होने के कारण उचित मूल्य पर वस्तुएँ अथवा सेवाएँ मिलती रहती है और ग्राहकों का समय बचता है ।

(ii) टेलीविजन मार्केटिंग : इस पद्धति में टेलीविजन द्वारा ग्राहकों को विभिन्न वस्तुओं का जीवंत निदर्शन (प्रदर्शन) कराके वस्तु अथवा सेवा की सम्पूर्ण जानकारी देकर ग्राहकों को आकर्षित किया जाता है । इसके साथ-साथ वस्तु अथवा सेवा की खरीदी के लिए ग्राहकों को फोन नम्बर अथवा वेबसाइट का नाम दिया जाता है । ग्राहक इसके अनुसार सम्पर्क करके ऑर्डर दे सकते है । ग्राहक के घर पर वस्तु पहँचाई जाती है । इस पद्धति द्वारा घर में उपयोग की जानेवाली वस्तुएँ तथा मौज-शोख और सुख-सुविधावाली वस्तुओं की बिक्री की जाती है । ऐसी वस्तुओं के मूल्य का भुगतान दो तरह से किया जा सकता है ।

  1. क्रेडिट अथवा डेबिट कार्ड द्वारा पहले से ही भुगतान किया जा सकता है ।
  2. वस्तु जब घर पर पहुँचाई जाये तब नकद से भुगतान किया जा सकता है । मध्यस्थी न होने से उचित मूल्य पर वस्तुएँ मिल । जाती है और ग्राहकों को समय की बचत होती है ।

* इन्टरनेट मार्केटिंग :
उत्पादक अपनी वस्तुओं.का विज्ञापन इन्टरनेट के पृथक-पृथक माध्यम जैसे कि ई-मेईल, पोर्टल, ब्राउजर ऊपर रखते है । कई बार उनकी स्वयं की वेबसाईट भी होती है । जैसे कि फ्लीपकार्ट, स्नेपड़ील, अमेजोन डोटकॉम आदि ।

ग्राहक ऐसे विज्ञापन देखकर स्पर्धियों की वस्तुओं के साथ तुलना करके वस्तु के बारे में अपनी पसन्दगी करते है और इन्टरनेट द्वारा ही ऑर्डर देते है और इनका भुगतान ऑनलाईन अथवा केश ऑन डिलिवरी (माल की सुपुर्दगी के समय नकद भुगतान) से चुकाते है ।

वर्तमान समय में ग्राहक इन्टरनेट के माध्यम की ओर अधिक मुडे है । क्योंकि बीच के मध्यस्थी, शॉ-रुम के खर्च इत्यादि न होने के कारण वस्तुएँ स्थानिक बाजार की तुलना में सस्ते मूल्य पर मिलती है । इसके साथ-साथ ग्राहकों को विक्रय के पश्चात् की सेवाएँ भी मिलती रहती है ।

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6. निम्न प्रश्नों का उत्तर विस्तार से समझाइये ।

प्रश्न 1.
फुटकर व्यापार के प्रकार की आकृति बताइये ।
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प्रश्न 2.
टेलीविजन मार्केटिंग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
टेलीमार्केटिंग : टेलीमार्केटिंग को दो भागो में बाँटा गया है :
(i) टेलीफोनिक मार्केटिंग
(ii) टेलीविजन मार्केटिंग

(i) टेलीफोनिक मार्केटिंग : इस पद्धति में संभावित ग्राहकों को टेलीफोन या मोबाइल द्वारा सम्पर्क करके उत्पादित वस्तु अथवा सेवा के बारे में जानकारी प्रदान करती है । इसके पश्चात् इच्छुक ग्राहकों को टेलीफोन अथवा मोबाइल द्वारा समय लेकर के उनके अनुकूल समय पर और स्थान पर प्रत्यक्ष सम्पर्क करके जानकारी प्रदान की जाती है । इस तरह विक्रय करने की पद्धति को टेलिफोनिक मार्केटिंग कहते हैं ।

यह पद्धति ऋण (Loan), निवेश, बीमा की सेवा क्रेडिट कार्ड इत्यादि सेवाओं के लिए उपयोगी है । इनमें मध्यस्थी न होने के कारण उचित मूल्य पर वस्तुएँ अथवा सेवाएँ मिलती रहती है और ग्राहकों का समय बचता है ।

(ii) टेलीविजन मार्केटिंग : इस पद्धति में टेलीविजन द्वारा ग्राहकों को विभिन्न वस्तुओं का जीवंत निदर्शन (प्रदर्शन) कराके वस्तु अथवा सेवा की सम्पूर्ण जानकारी देकर ग्राहकों को आकर्षित किया जाता है । इसके साथ-साथ वस्तु अथवा सेवा की खरीदी के लिए ग्राहकों को फोन नम्बर अथवा वेबसाइट का नाम दिया जाता है । ग्राहक इसके अनुसार सम्पर्क करके ऑर्डर दे सकते है । ग्राहक के घर पर वस्तु पहुँचाई जाती है । इस पद्धति द्वारा घर में उपयोग की जानेवाली वस्तुएँ तथा मौज-शोख और सुख-सुविधावाली वस्तुओं की बिक्री की जाती है । ऐसी वस्तुओं के मूल्य का भुगतान दो तरह से किया जा सकता है ।

  1. क्रेडिट अथवा डेबिट कार्ड द्वारा पहले से ही भुगतान किया जा सकता है ।
  2. वस्तु जब घर पर पहुँचाई जाये तब नकद से भुगतान किया जा सकता है । मध्यस्थी न होने से उचित मूल्य पर वस्तुएँ मिल जाती है और ग्राहकों को समय की बचत होती है ।

प्रश्न 3.
व्यापार के रूप में काम में आनेवाले पारिभाषिक शब्द समझाइए ।
अथवा
संज्ञा समझाइये : (1) COD (2) FOB (3) CIF (4) E & OE
उत्तर :
(1) केश ऑन डिलीवरी (COD) (Cash on Delivery) : जब उत्पादक अथवा विक्रयकर्ता ग्राहक को माल की सुपुर्दगी . करें तब नकद रकम भुगतान की जाए तो उसे केश ऑन डिलीवरी कहते हैं ।

(2) फ्री ऑन बोर्ड : FOB (Free on Board) : निर्यातकर्ता आयातकर्ता के बन्दरगाह तक माल पहुँचाने के लिए जो खर्च चुकाते है जिन्हें फ्री ऑन बोर्ड कहते हैं ।

(3) माल की लागत, बीमा और लारी भाड़ा : CIF (Cost Insurance and Freight) : जिस चलन के अन्दर माल की लागत, बीमा और वहन खर्च शामिल किया जाये तो उसे C.I.F. चलन (भरतिया) कहते हैं ।

(4) भूल-चूक लेनी देनी : E & OE (Errors and Ommissions Excepted) : चलन में सामान्यत: भूलचूक लेनीदेनी लिखा जाता है जिसका अर्थ होता है कि हिस्सा बने अथवा वित्त (रकम) की गणना में किसी भी प्रकार की भूल हुई हो तो रसीद देनेवाले के लिए यह स्वीकार्य बनती है ।

7. निम्नलिखित विधान सत्य है या असत्य स्पष्ट कीजिए ।

प्रश्न (i)
थोक व्यापारी केवल फुटकर व्यापारी को ही सेवा प्रदान करता है ।
उत्तर :
यह विधान असत्य है । थोक व्यापारी फुटकर व्यापारी के अलावा उत्पादक को और समाज को भी सेवा देता है । थोक व्यापारी उत्पादक का माल खरीदता है, उसे ऋण देता है, ग्राहकों की आवश्यकताओं से उसे परिचित कराता है । इसी प्रकार थोक व्यापारी सम्पूर्ण समाज को नियमित रूप से, सभी जगह माल की आपूर्ति कराता है, भावों की समतुला बनाये रखता है ।

प्रश्न (ii)
फुटकर व्यापारी समग्र समाज के लिए उपयोगी है ।
उत्तर :
यह विधान सही है । फुटकर व्यापारी समाज की आवश्यकतावाली वस्तुएँ, पर्याप्त प्रमाण में पूरी करता है । चीज वस्तुओं के संदर्भ में जानकारी देता है, शान पर माल बेचता है, बिक्री के बाद की सेवाएँ देता है । इस प्रकार फुटकर व्यापारी समाज को अनेक तरह से उपयोगी है ।

प्रश्न (iii)
भारत में पोस्ट व्यवहार की दुकानें प्रमाणित (प्रचलित) नहीं है ।

उत्तर :
यह विधान सही है । भारत में कुछ अप्रमाणिक व्यापारी गलत विज्ञापन देकर ग्राहकों की वी.पी.पी. से गुणवत्ता में हल्की वस्तुएँ भेजने का धंधा करते हैं । पैसा चुकाने के बाद ही ग्राहकों के हाथ में माल आता है । इसलिए ठगे जाने का ख्याल आने के बाद भी वे विक्रेता के सामने कोई कदम नहीं उठा सकते हैं । इसके अलावा भारत में पढ़े-लिखे लोगों का प्रमाण भी कम है तथा पोस्ट ऑफिस की सुविधा छोटे-छोटे गाँवों में उपलब्ध नहीं है । इन कारणों से पोस्ट-व्यवहार की दुकानों में से लोगों का विश्वास उठ गया है । इसलिए इनका प्रचलन कम है।

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प्रश्न (iv)
सहकारी भंडारों की स्थापना उत्पादक करते हैं ।
उत्तर :
यह विधान गलत है । सहकारी भंडारों की स्थापना उत्पादक नहीं परन्तु ग्राहक खुद करते हैं । इसका आशय ग्राहकों की आवश्यकताओं की पूर्ति करना, साथ ही साथ उच्च गुणवत्तावाली वस्तुयें कम कीमत पर उपलब्ध कराना होता है । इस प्रकार की संस्था में ग्राहक और उत्पादकों के बीच के दलालों और मध्यस्थियों को दूर करने का प्रयत्न किया जाता है । जो लाभ पहले मध्यस्थियों को मिलता था वह लाभ अपने सदस्यों को मिले इसकी स्थापना के पीछे यह उद्देश्य होता है ।

प्रश्न (v)
विभागीकृत दुकानों के लिए बड़े पैमाने पर पूँजी-निवेश करना पड़ता है ।
उत्तर :
यह विधान सही है । विभागीकृत दुकानें एकसाथ अनेक वस्तुओं का विक्रय करती हैं । ये दुकानें इन वस्तुओं की अनेक किस्में रखती हैं । इसके अलावा शहर के मध्य में बड़ा मकान, कीमती फर्नीचर, बड़ा स्टाफ, सुशोभन, बड़े पैमाने पर विज्ञापन तथा ग्राहकों को दी जानेवाली सेवाओं के पीछे बड़े पैमाने पर खर्च करती हैं । इस प्रकार कुल मिलाकर विभागीकृत दुकानों में बड़े पैमाने पर पूँजी-विनियोग करना पड़ता है ।

प्रश्न (vi)
श्रृंखलाबद्ध दुकाने विविध उत्पादकों का माल बेचती हैं ।
उत्तर :
यह विधान गलत है । श्रृंखलाबद्ध दुकानें एक-दो वस्तुओं तथा उसके साथ सम्बन्धित वस्तुओं का ही विक्रय करती हैं । इन वस्तुओं का सामान्यतः एक ही उत्पादक से बड़े पैमाने पर खरीदी करती हैं । इसलिए ये दुकाने विविध उत्पादकों का माल बेचती हैं – यह कहना उचित नहीं है ।

प्रश्न (vii)
विभागीकृत दुकानों के लिए विज्ञापन अनिवार्य है ।
उत्तर :
यह विधान सही है । विभागीकृत दुकानों को विज्ञापन माल की सजावट और प्रदर्शन, ग्राहकों को दी जानेवाली सेवा सुविधाएँ, वैतनिक कर्मचारियों का ऊँचा वेतन, घर बैठे माल पहुँचाने की सुविधा आदि के पीछे काफी खर्च करना पड़ता है । ग्राहक ऐसी दुकानों पर काफी दूर से आये हुए होते हैं । उन्हें आकर्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर विज्ञापन करना पड़ता है । विज्ञापन द्वारा ग्राहकों को नयेनये माल के बारे में, अद्यतन फैशन-परिवर्तन के बारे में जानकारी दी जा सकती है । इसलिए विज्ञापन अनिवार्य है ।

प्रश्न (viii)
डाक-व्यवहार की दुकानें मुख्यत: शिक्षित वर्ग में अधिक प्रचलित हैं ।
उत्तर :
उपरोक्त विधान सही है, क्योंकि किसी भी राज्य में निवास करनेवाले सामान्य रूप से शिक्षित वर्ग के ग्राहक घर बैठे माल प्राप्त करने के उद्देश्य से बाजार का सम्पर्क किए बिना विज्ञापन से प्रभावित होकर क्रेता विक्रेता को ऑर्डर देता है । व आवश्यक वस्तु VPP के माध्यम से प्राप्त करता है । अनपढ़ या कम शिक्षित वर्ग के लोग डाक-व्यवहार द्वारा वस्तुएँ प्राप्त नहीं करना चाहते है ।

8. निम्नलिखित संक्षिप्त रूपों के विस्तृत रूप लिखिए ।

1. SMS : Short Message Service
2. V.P.P. : Value Payable by Post
3. R.T.O.: Retail Trade Organisation
4. E-Mail : Electric Mail
5. W.W.W.: World Wide Website
6. P.C. : Personal Computer
7. N.P.A. : Non Porforming Assets

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9. व्यापारिक प्रवृत्तियों का वर्गीकरण आकृति द्वारा संक्षिप्त में समझाइए ।
उत्तर :
प्रवृत्ति के आधार पर व्यापार का वर्गीकरण निम्नानुसार है :
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1. राजकीय सीमा की दृष्टि से : राजकीय सीमा की दृष्टि से व्यापार को दो भागों में बाँटा गया है :
(A) आंतरिक व्यापार
(B) विदेश व्यापार ।

देश की सीमा में होनेवाले व्यापार को आंतरिक व्यापार कहते है । दो देशों के बीच के व्यापार को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं । जब चीज-वस्तु अथवा सेवा विदेश में से खरीदकर देश में लाई जाये तब उसे आयात (Import) व्यापार कहते हैं । जब देश में से विदेश में वस्तु अथवा सेवा को विक्रय द्वारा भेजा जाय तब निर्यात व्यापार (Export) कहलाता है, और जब विदेश में से चीज-वस्तु आयात कर देश में उपयोग करने के बजाय उसे अलग स्वरूप प्रदान कर अन्य किसी देश में विक्रय किया जाय तब इस तरह से निर्यात व्यापार को पुनः निर्यात व्यापार (Re-Export) कहा जाता है ।

2. वितरण की दृष्टि से प्रत्यक्ष व्यापार : ऐसा व्यापार जिसमें बीच (मध्य)में कोई व्यापारी न हो, परोक्ष व्यापार है । बीच में कोई मध्यस्थ व्यापारी हो तो ऐसे व्यापार के दो प्रकार हैं : (A) फुटकर व्यापार (B) थोक व्यापार । वितरण की किस पद्धति का उपयोग किया जाता है उसके अनुसार इसके प्रकार किए जाते हैं । जिस वस्तु का विक्रय बड़े पैमाने पर किया जाता हो और फिर उसे विक्रय के छोटे पैमाने पर विक्रय किया जाता हो तो वह थोक व्यापार कहलाता है । उदाहरण स्वरूप एक बड़ी इकाई में ‘कर्मचारियों के लिए गणवेश के लिए वस्तु खरीदी जाय तो व्यापारी कपड़े का फुटकर विक्रय करता है परन्तु यदि दूसरे व्यापारियों के लिए कपड़ा बेचा जाय तो थोकबंद विक्रय कहलाता है । इस तरह यह प्रकार मात्र मात्रा से नहीं परन्तु वितरण के ख्याल से भी संबंध रखता है ।

3. धन अदायगी की दृष्टि से : धन अदायगी की दृष्टि से व्यापार रोकड़ अथवा उधार दोनों प्रकार का हो सकता है । जब वस्तु की मालिकी का बदला नकद रकम के साथ तुरन्त हो जाता है तो उसे नकद व्यापार कहते हैं और अगर वस्तु की मालिकी मिलती हो परन्तु उसकी रकम तुरन्त न प्राप्त हो और कुछ समय के बाद प्राप्त हो तो उसे उधार शाख अथवा शाख आधारित व्यापार कहा जाता है ।

4. माल की डिलीवरी की दृष्टि से : माल की डिलीवरी की दृष्टि से व्यापार हाजिर (स्पोट) अथवा वायदे का (Future) हो सकता है । जब खरीद-विक्रय का सौदा वस्तु की मालिकी के परिवर्तन होने के साथ करना हो तब उसे हाजिर व्यापार कहा जाता है और जब सौदा करते समय ऐसा समझौता हो कि मालिकी परिवर्तन और विक्रय माल का भुगतान तुरन्त नहीं बल्कि भविष्य में किसी समय होगा तो उसे वायदा व्यापार कहा जाता है ।

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