GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 7 सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र और वैश्विक साहस

Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 7 सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र और वैश्विक साहस Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 7 सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र और वैश्विक साहस

GSEB Class 11 Organization of Commerce and Management सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र और वैश्विक साहस Text Book Questions and Answers

स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प पसन्द करके लिखिए ।

प्रश्न 1.
इनमें से कौन-सा स्वरुप सार्वजनिक क्षेत्र नहीं है ?
(A) विभागीय संचालन
(B) व्यक्तिगत मालिकी
(C) सरकारी कम्पनी
(D) सार्वजनिक निगम
उत्तर :
(B) व्यक्तिगत मालिकी

प्रश्न 2.
इनमें से कौन-से स्वरूप के कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारियों के नियम लागू पड़ते है ?
(A) विभागीय संचालन
(B) सार्वजनिक निगम
(C) सरकारी कम्पनी
(D) निजी कम्पनी
उत्तर :
(A) विभागीय संचालन

प्रश्न 3.
धन्धाकीय स्वरूपों में से कौन-सा स्वरूप प्राचीन गिना जाता है ?
(A) सार्वजनिक साहस
(B) निजी साहस
(C) वैश्विक साहस
(D) सार्वजनिक-निजी साझेदारी
उत्तर :
(B) निजी साहस

प्रश्न 4.
निजी वैश्विक साहसों के लिए इनमें से कौन-सा कथन गलत है ?
(A) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बृहद पैमाने पर कार्यरत होते है ।
(B) कद और विक्रय विशाल होता है ।
(C) संसद या विधानसभा का प्रत्यक्ष अंकुश होता है ।
(D) आर्थिक सुदृढ़ता मजबूत होने से राजकीय वर्चस्व अधिक होता है ।
उत्तर :
(C) संसद या विधानसभा का प्रत्यक्ष अंकुश होता है ।

प्रश्न 5.
सार्वजनिक-निजी साझेदारी के लिए इनमें से कौन-सा कथन असत्य है ?
(A) सरकार के पास से आवश्यक जमीन स्वयं खरीदनी पड़ती है ।
(B) लाभार्थियों के पास से निर्धारित समय तक फीस वसूल की जाती है ।
(C) ढाँचागत सेवाओं का सर्जन स्वयं के निवेश से करती है ।
(D) निर्धारित समय के पश्चात् उनके द्वारा निर्मित ढाँचा सरकार को सौंपनी पड़ती है ।
उत्तर :
(A) सरकार के पास से आवश्यक जमीन स्वयं खरीदनी पड़ती है ।

प्रश्न 6.
डाक व तार, रेलवे, संरक्षण उद्योग यह सार्वजनिक साहस का कौन-सा स्वरूप है ? ।
(A) विभागीय संचालन
(B) सरकारी कम्पनी
(C) सार्वजनिक निगम
(D) संयुक्त साहस
उत्तर :
(A) विभागीय संचालन

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प्रश्न 7.
जिस कम्पनी में सरकारी पूँजी का प्रमाण इनमें से कितना होता है, कि सरकारी कम्पनी कहलाती है ।
(A) 25% से अधिक
(B) 51% से कम
(C) 51% से अधिक
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर :
(C) 51% से अधिक

प्रश्न 8.
संसद के विशेष कानून अथवा राज्य की विधानसभा के विशेष कानून द्वारा अस्तित्व में आनेवाला सार्वजनिक साहस अर्थात् …………………….
(A) सरकारी विभाग
(B) सरकारी कम्पनी
(C) संयुक्त साहस ।
(D) सार्वजनिक निगम
उत्तर :
(D) सार्वजनिक निगम

प्रश्न 9.
इनमें से किनको स्वायत्तता नहीं मिलती है ?
(A) विभागीय संचालन
(B) संयुक्त साहस
(C) सरकारी कम्पनी
(D) सार्वजनिक निगम
उत्तर :
(A) विभागीय संचालन

प्रश्न 10.
इनमें से किसमें परिवर्तनशीलता का अभाव होता है ?
(A) सार्वजनिक निगम
(B) विभागीय संचालन
(C) संयुक्त साहस
(D) सरकारी कम्पनी
उत्तर :
(B) विभागीय संचालन

प्रश्न 11.
हिन्दुस्तान मशीन टूल्स लिमिटेड, हिन्दुस्तान ऐरोनोटिक्स लि., हिन्दुस्तान ऐयरक्राफ्ट लिमिटेड, हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड इत्यादि किसके
उदाहरण है ?
(A) संयुक्त साहस
(B) सार्वजनिक निगम
(C) सरकारी कम्पनी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(C) सरकारी कम्पनी

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिये :

प्रश्न 1.
सार्वजनिक क्षेत्र के तीन स्वरूप के नाम दीजिए ।
उत्तर :

  1. विभागीय संचालन
  2. सार्वजनिक निगम
  3. सरकारी कम्पनी

प्रश्न 2.
सरकारी कम्पनी में सरकारी पूँजी का प्रमाण कम से कम कितना होता है ?
उत्तर :
कम से कम 51%

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प्रश्न 3.
सरकारी कम्पनी में शेयर किस नाम से खरीदे जाते है ?
उत्तर :
सरकारी कम्पनी के शेयर राष्ट्रपति के नाम से खरीदे जाते है ।

प्रश्न 4.
धन्धाकीय इकाईयों में सबसे प्राचीन स्वरूप कौन-सा है ?
उत्तर :
निजीक्षेत्र धन्धाकीय इकाइयों में सबसे प्राचीन स्वरूप है ।

प्रश्न 5.
वैश्विक साहस का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
कोई भी धन्धाकीय इकाई जब अपनी धन्धाकीय प्रवृत्तियाँ राष्ट्रीय सीमाओं के बाहर फैलाती है, तब उन्हें वैश्विक साहस कहते हैं ।

प्रश्न 6.
सार्वजनिक – निजी साझेदारी से आप क्या समझते है ?
उत्तर :
ऐसे ढाँचे के विकास हेतु आवश्यक जमीन सरकार उपलब्ध कराये, विकास के लिए निवेश निजी क्षेत्र करें, जिसके बदले में निजी क्षेत्र को निर्धारित वर्षों तक ढाँचा के लाभार्थियों के पास से फीस मिलती है तथा ढाँचे की सुरक्षा का काम भी निजी क्षेत्र करते हैं । निर्धारित समयकाल पूर्ण होने पर यह ढाँचा सरकार को सौंप देना पड़ता है और उनकी सुरक्षा का कार्य अब सरकार करेगी । जैसे अहमदाबाद – बड़ौदा को जोड़ता एक्सप्रेस-वे ।

प्रश्न 7.
सार्वजनिक साहस की इकाईयों पर किस प्रकार का अंकुश होता है ?
उत्तर :
निम्न द्वारा अंकुश होता है :

  1. आन्तरिक ऑडिट
  2. वार्षिक ऑडिट
  3. हिसाब समिति
  4. जाँच समिति
  5. अन्दाज पत्र समिति
  6. संसद में अहेवाल
  7. संसद में प्रश्नोत्तर
  8. विधानसभा में विचार-विमर्श

प्रश्न 8.
सरकारी विभाग की इकाईयों के नाम बताइए ।
उत्तर :

  1. भारतीय डाक व तार विभाग
  2. भारतीय रेलवे
  3. रक्षा विभाग
  4. शिक्षा विभाग
  5. स्वास्थ्य विभाग

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प्रश्न 9.
सार्वजनिक निगम के उदाहरण दीजिए ।
उत्तर :

  1. भारतीय जीवन बीमा निगम
  2. औद्योगिक वित्त निगम
  3. सामान्य बीमा निगम
  4. राष्ट्र कपड़ा निगम

प्रश्न 10.
सार्वजनिक साहस के कितने प्रकार है व कौन-से ?
उत्तर :
तीन प्रकार है :

  1. विभागीय संचालन
  2. सरकारी कम्पनी
  3. सार्वजनिक निगम

प्रश्न 11.
सरकारी विभाग में सत्ता की अंतिम जिम्मेदारी किसकी मानी जाती है ?
उत्तर :
सरकारी विभाग में संचालन की अन्तिम जिम्मेदारी सम्बन्धित खातों के प्रधानों की होती है । संसद में सम्बन्धित विभाग के प्रधान को संसद-सदस्यों द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता है । जैसे रेलवे विभाग के लिए रेलमंत्री जिम्मेदार होते हैं ।

प्रश्न 12.
सार्वजनिक निगम की कार्यक्षमता का मापदंड क्यों निश्चित नहीं है ?
उत्तर :
सार्वजनिक निगम का उद्देश्य सिर्फ सेवा या सिर्फ लाभ कमाना नहीं है । इसलिए इन दोनों के बीच कौन-सा मापदंड रखा जाय जिससे कार्यक्षमता का उचित माप मिल सके, यह अनिश्चित तथा उलझनपूर्ण है ।

प्रश्न 13.
सार्वजनिक साहस किस प्रकार की प्रवृत्ति चलाते हैं ?
उत्तर :
सार्वजनिक साहस का मुख्य उद्देश्य समाज-कल्याण तथा राष्ट्र का विकास करना है । इसलिए जन-समुदायों के हितों के लिए सार्वजनिक साहस प्रवृत्ति करती है ।

प्रश्न 14.
सार्वजनिक साहस को भी क्यों लाभ करना चाहिए ?
उत्तर :
सार्वजनिक साहस का मुख्य उद्देश्य लाभ का नहीं जनता का हित तथा उसे सुविधा प्रदान करना है । किन्तु सार्वजनिक साहस को मुद्रास्फीति से बचने तथा देश के विकास और आर्थिक विस्तृतीकरण के लिए निम्नतम लाभ करना आवश्यक है । ऐसी एक विचारधारा अमली बनी है । इसके उपरांत सार्वजनिक साहस यदि लाभ न करें तो आम जनता पर कर का बोझ बढ़ता जायगा, इसलिए सार्वजनिक साहस को भी लाभ करना चाहिए ऐसे विचार का भी उद्भव हुआ है ।

प्रश्न 15.
सार्वजनिक निगम को किस प्रकार से स्वायत्तता प्राप्त होती है ?
उत्तर :
सार्वजनिक निगम की स्थापना संसद में विशेष कानून पारित करके किया जाता है । इस कानून के अन्तर्गत संचालन तथा प्रशासन के नीति-नियमों की मर्यादा में रहकर सार्वजनिक निगम स्वायत्तता प्राप्त करती है ।

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प्रश्न 16.
सरकारी विभाग के हस्तक किस प्रकार की प्रवृत्ति चलायी जाती है ?
उत्तर :
देश के संरक्षण के लिए आवश्यक साधनों के उत्पादन तथा संरक्षण-प्रवृत्ति, अन्तरिक्ष, अनुसंधान, अणुशक्ति, अनुसंधान इत्यादि प्रवृत्ति राष्ट्र के अस्तित्व एवं उसकी मूलभूत आवश्यकता को सरकारी विभाग के अन्तर्गत समाविष्ट किया गया है ।

प्रश्न 17.
सरकारी विभाग की प्रवृत्ति में विलम्ब का क्या कारण है ?
उत्तर :
सरकारी विभाग में प्रत्येक प्रवृत्ति के निर्णय एवं उसका अमल विधिपूर्वक करना अनिवार्य है । इसके उपरांत जिस व्यक्ति को जो काम दिया गया हो वह व्यक्ति अनुपस्थित हो तो उसका काम दूसरा कोई व्यक्ति नहीं करता है । इस कारण कार्य-बोझ बढ़ जाता है तथा कार्य में विलम्ब होता है ।

प्रश्न 18.
राष्ट्रीयकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
सरकार जब निजी साहस की किसी इकाई को अपने हस्तक कर ले तब उसे राष्ट्रीयकरण कहते हैं । इसके लिए यदि आवश्यक हो तो सरकार कानून में परिवर्तन करके या नये कानून का निर्माण करके निश्चित उद्योगों को अपने हस्तक करती है ।

प्रश्न 19.
स्वायत्तता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
किसी इकाई को संचालन-सम्बन्धी जो संपूर्ण आन्तरिक स्वतंत्रता प्राप्त होती है उसे स्वायत्तता कहते हैं । इसमें आर्थिक या बिनआर्थिक दोनों बातों का समावेश होता है ।

प्रश्न 20.
सार्वजनिक उत्तरदायित्व का अर्थ समझाइए ।
उत्तर :
सार्वजनिक उत्तरदायित्व अर्थात् जनसमुदाय के सामने आवश्यक प्रश्नों का उत्तर देने की संस्था की जवाबदारी । जो उद्योग सार्वजनिक हित से संलग्न हों उन उद्योगों का सार्वजनिक उत्तरदायित्व बनता है । इस संदर्भ में संसद में सम्बन्धित अधिकारी से आवश्यक प्रश्न पूछा जा सकता है तथा उसका उत्तर देना प्रधान का उत्तरदायित्व बनता है ।

प्रश्न 21.
साहस का अर्थ क्या है ?
उत्तर :
आर्थिक प्रवृत्ति चलाने के लिए विशिष्ट उद्देश्य मालिकी, संचालन तथा अंकुश एवं नियंत्रण का एकसमान गुण रखनेवाली इकाईयों के समूह को साहस कहते हैं ।

प्रश्न 22.
आइ.ए.एस. (I.A.S.) का अर्थ लिखिए ।
उत्तर :
आइ.ए.एस. अर्थात् इन्डियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस । इस सर्विस के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा स्वतंत्रता के पश्चात् सरकारी. विभाग की प्रवृत्ति चलाने के लिए तेजस्वी युवकों को प्रशिक्षण दिया जाता है ।

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प्रश्न 23.
आई.सी.एस. से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
आई.सी.एस. अर्थात् इन्डियन सिविल सर्विस (I.C.S.) इस सर्विस में चयन किये गये तेजस्वी युवकों को विभाग किस तरह चलाया जाय इसका प्रशिक्षण दिया जाता है ।

प्रश्न 24.
पी.एस.यु. का अर्थ लिखिए ।
उत्तर :
पी.एस.यु. अर्थात् पब्लिक सेक्टर युनिट्स । यह सरकार की मालिकी की इकाई है । इसमें सरकार ने स्वयं की पूंजी घटाकर आम जनता को शेयर-पूंजी खरीदने के लिए आमंत्रित किया है ।

प्रश्न 25.
एच.ए.एल. का अर्थ क्या है ?
उत्तर :
एच.ए.एल. अर्थात् हिन्दुस्तान एरोनोटिक्स लि. । यह सरकारी कम्पनी का उदाहरण है ।

प्रश्न 26.
सरकारी विभाग
उत्तर :
सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण अधीनस्थ सम्बन्धित मंत्री को सत्ता का केन्द्र बनाकर एवं प्रवृत्ति के लिए उसी मंत्री को जिम्मेदार बनाकर प्रवृत्ति करनेवाले सार्वजनिक साहस की इकाई के व्यवस्था-स्वरूप को सरकारी विभाग कहा जाता है ।

प्रश्न 27.
सार्वजनिक निगम
उत्तर :
“संसद या विधान सभा में विशेष कानून से स्वतंत्र व्यक्तित्व एवं आन्तरिक स्वायत्तता सम्पन्न सार्वजनिक उद्देश्य के लिए स्थापित सरकारी मालिकी के संस्थाकीय स्वरूप को सार्वजनिक निगम कहते है ।”

प्रश्न 28.
सार्वजनिक क्षेत्र
उत्तर :
सरकारी मालिकी, संचालन तथा अंकुश के अन्तर्गत निश्चित आर्थिक प्रवृत्ति करनेवाली संस्था या इकाई को सार्वजनिक क्षेत्र कहते हैं ।

प्रश्न 29.
सरकारी कम्पनी
उत्तर :
कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत जिस कम्पनी में कम से कम 51 प्रतिशत जितनी अंश-पूंजी केन्द्र या राज्य सरकार के पास हो उसे सरकारी कम्पनी कहते हैं ।

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प्रश्न 30.
उत्तरदायित्व (Accountability)
उत्तर :
अधिकारी को मालिकों से अथवा जनता की ओर से सत्ता प्राप्त होती है । प्राप्त सत्ता का उपयोग इन्होंने कैसे किया तथा मालिकों की अपेक्षा अनुसार सिद्धि मिली या नहीं इसका उत्तर देने के कर्तव्य को उत्तरदायित्व कहा जाता है ।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए ।

प्रश्न 1.
धन्धाकीय व्यवस्था के विविध स्वरूपों की मात्र सूचि बनाइए ।
उत्तर :
सार्वजनिक क्षेत्र –

  1. सरकारी विभाग
  2. सरकारी कम्पनी
  3. सार्वजनिक निगम

निजी क्षेत्र –

  1. व्यक्तिगत मालिकी
  2. साझेदारी संस्था
  3. संयुक्त हिन्दू परिवार ।

इसके अलावा

  1. संयुक्त स्कन्ध प्रमण्डल
  2. सहकारी समिति
  3. संयुक्त साहस
  4. निजी व सार्वजनिक साझेदारी
  5. सार्वजनिक उपयोगिता
  6. वैश्विक साहस ।

प्रश्न 2.
सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा संतुलित प्रादेशिक विकास किस तरह हो सकता है ?
उत्तर :
निजी क्षेत्र के निवेशक पिछड़े विस्तारों में पूँजी निवेश के लिए आकर्षित नहीं होते, वहाँ सरकार पूँजी निवेश करके संतुलित प्रादेशिक औद्योगिक विकास कर सकती है । जैसे राउरकेला, भिलाई, बोकारो आदि जैसे औद्योगिक पिछड़े विस्तारों में सरकार ने लोहे के कारखानों में पूँजी निवेश करके औद्योगिक विकास किया है ।

इस तरह सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाएँ/इकाईयाँ पिछड़े प्रदेशों में प्रस्थापित करके संतुलित प्रादेशिक विकास करती है ।

प्रश्न 3.
विभागीय संचालन से आप क्या समझते है ? उदाहरण से स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
सरकार अपना काम-काज पृथक-पृथक विभागों द्वारा सम्भालती है । ऐसे किसी सरकारी विभाग द्वारा जब सार्वजनिक क्षेत्र का संचालन होता हो तो उन्हें विभागीय संचालन कहते हैं । इनका संचालन सरकारी अधिकारियों द्वारा होता है तथा इनके सभी कर्मचारी सरकारी कहलाते है । जैसे भारतीय डाक व तार विभाग, रेलवे विभाग, शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग, लोक निर्माण विभाग आदि ।

प्रश्न 4.
निजी क्षेत्रों/साहसों का अर्थतंत्र में महत्त्व समझाइए ।
उत्तर :
देश के अर्थतंत्र में निजीक्षेत्र का आज भी महत्त्वपूर्ण योगदान है । देश की आर्थिक प्रगति निजी क्षेत्र की आभारी है । राष्ट्रीय . आय में निजी क्षेत्र का विशेष योगदान है । निजी क्षेत्र का अस्तित्व शताब्दियों से चलता आया है । निजी क्षेत्र का विकास हो इसलिए सरकार ने सकारात्मक अभिगम अपनाया है ।

प्रश्न 5.
‘निजी साहसों का एक मात्र उद्देश्य अधिक लाभ कमाना है ।’ चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
निजी क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है । लाभ के उद्देश्य के साथ साथ सामाजिक दायित्व का भी उद्देश्य निजी क्षेत्रों ने स्वीकार किया है । इसके अलावा पर्यावरण रक्षण, महिला सशक्तिकरण, साक्षरता इत्यादि जैसे सामाजिक ख्याल भी निजी क्षेत्रों ने स्वीकारा है । इस तरह, लाभ को प्राथमिकता देकर के सामाजिक दायित्व को भी स्वीकार किया है ।

प्रश्न 6.
वैश्विक साहसों का भारतीय अर्थतंत्र में क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
वैश्विक साहसों के तहत कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत में आई है जैसे कोकाकोला, पेप्सी, मेकडोनाल्ड, नोकिया, सोनी, जनरल मोटर्स आदि । ऐसे साहसों के आगमन से देश में असंख्य लोगों को रोजगार मिलता है । रोजगार मिलने से बेकारी में कमी आती है, प्रतिव्यक्ति आय बढ़ती है तथा राष्ट्रीय आय भी बढ़ती है । इसके अलावा ऐसे साहस बड़े पैमाने में लाभ भी कमाते है, जिससे विविध प्रकार का कर (Tax) भरती है, जिससे भी राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है । ऐसे साहसों के आने से जनता को विविध वस्तुएँ तथा अच्छी गुणवत्तावाली वस्तुएँ आसानी से मिलती है ।

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प्रश्न 7.
संयुक्त साहसों की भूमिका के बारे में समझाइए ।
उत्तर :
संयुक्त साहस अर्थात् ऐसा साहस जिसमें इकाईयाँ परस्पर के हितों के रक्षण के लिए जुड़ती हो । संयुक्त साहस की इकाई की स्थापना से दोनों पक्षों को लाभ मिलता है । अधिक साधन सम्पत्ति व क्षमता में वृद्धि होती है । नई तकनिकी का उपयोग कर सकती है । नये बाजारों का विकास किया जा सकता है । संशोधन को बल मिलता है । उत्पादन लागत को कम किया जा सकता है तथा इनमें दो इकाईयों के जुड़ने से शान में भी वृद्धि होती है ।

प्रश्न 8.
धन्धाकीय साहस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
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(1) स्थानिक साहस : जो साहस अपनी धन्धाकीय प्रवृत्तियाँ राजकीय सीमाओं तक ही सीमित रख्खे तो उन्हें स्थानिक साहस कहा जाता है।
(2) वैश्विक साहस :

  • धन्धाकीय इकाई राष्ट्रीय सीमाओं के बाहर अर्थात् एक से अधिक देशों में धन्धाकीय प्रवृत्तियाँ फैलाएँ तो उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय साहस कहा जाता है ।
  • स्थानिक बाजार के अनुभव का उपयोग करके अपनी धन्धाकीय प्रवृत्तियों का विस्तार विदेश के बाहर फैलाती है । जिससे विदेश के बाजारों में अपनी शान द्वारा स्थानिक बाजार की व्यूह रचनाओं का भी उपयोग करते हुए दिखाई देते है । ऐसा साहस अर्थात् बहुराष्ट्रीय साहस ।
  • ट्रान्सनेशनल साहस समग्र विश्व में उत्पादन, विक्रय, निवेश और अन्य धन्धाकीय प्रवृत्तियाँ करते है । ये ऐसे संकलित साहस है जो कि समग्र विश्व की साधन सम्पत्तियों का उपयोग करके विश्व के बाजारों में से आय/लाभ प्राप्त करते है ।

4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर दीजिए ।

प्रश्न 1.
सरकारी विभाग का अर्थ एवं लक्षण स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
सरकारी विभाग सरकार द्वारा संचालित जिस इकाई पर संपूर्ण पूंजी सरकार के द्वारा लगाई गयी हो तथा उसका संचालन और अंकुश सरकार द्वारा नियुक्त किये गये मंत्री तथा अधिकारियों के द्वारा किया जाता हो उसे सरकारी खाता कहते हैं । जैसे रेल सेवा आयोग, डाक सेवा आयोग इत्यादि ।

लक्षण :
(1) प्रधान का प्रत्यक्ष अंकुश तथा देखरेख : सरकारी विभाग पर उस विभाग के प्रधान का सम्पूर्ण रूप से अंकुश तथा देखरेख्न रहती है । प्रधान के निर्णय के आधार पर उस विभाग का संचालन होता है । उदा. के तौर पर रेलवे प्रधान का रेलवे विभाग पर सीधी देखरेख और अंकुश रखता है ।

(2) सरकारी नीति के अधीन : सामान्य रूप से सरकारी विभाग अलग-अलग विभाग के प्रधान को देखरेख की संपूर्ण सत्ता सौंपी गई है । किन्तु प्रधान द्वारा संचालकीय नीति तैयार करते समय सरकार के नीति-नियम को ध्यान में रखते हुए नियम तैयार किया जाता है । सरकारी नीति के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जाती ।

(3) विधिपूर्वक निर्णय : सरकारी विभाग के किसी विभाग के निर्णय लेते समय काफी विचार एवं तर्क-वितर्क तथा विविध जानकारी के आधार पर निर्णय लिया जाता है । क्योंकि इस निर्णय से देश की अधिकतर जनता प्रभावित होती है ।

(4) एकाधिकार : सरकारी विभाग को सरकार द्वारा एकाधिकार दिया गया है । जिससे सरकारी खाता जनजीवन के लिए आवश्यक वस्तु या सेवा प्रदान करता है । सेवा में एकरूपता रहे, सेवा में कमी होने पर जिम्मेदार व्यक्ति या संस्था को दोषी ठहराना सरकार के लिए सरल रहे, इसलिए सरकारी खाते को एकाधिकार दिया गया है ।

(5) सरकारी कर्मचारियों द्वारा संचालन : सरकारी विभाग का संचालन सरकार द्वारा नियुक्त किये अधिकारी या कर्मचारियों द्वारा किया जाता है । यदि अधिकारी या कर्मचारी ठीक ढंग से सेवा देते हैं तो उन्हें पदोन्नति का अवसर प्रदान किया जाता है । इसके विपरीत यदि अधिकारी या कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी ठीक ढंग से नहीं निभाते हैं तो उनकी बदली अवनति या निवृत्ति कर दी जाती है । इस कारण कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी के प्रति सजग रहते हैं ।

(6) रहस्यों की गुप्तता : सरकारी विभाग के रहस्यों की गुप्तता बनाये रखना देश के हित में आवश्यक है । क्योंकि सरकार के कुछ विभाग के रहस्य यदि गुप्त न रख्ने जाएँ तो राष्ट्र को अहित होने की संभावना रहती है । जैसे : मिलिटरी विभाग । अतः सरकारी खाते के रहस्यों को गुप्त रखने का प्रयास किया जाता है ।

(7) निर्णय के अमल में विलम्ब : सरकारी विभाग में जो निर्णय लिये जाते हैं, उसमें अधिक विलम्ब होता है क्योंकि सभी निर्णयों का पालन नियमपूर्वक होता है । एक बार निर्णय लेने के बाद उसका पालन पूर्ण दृढ़ता से किया जाता है ।

(8) आधारभूत आर्थिक विकास : देश के आर्थिक विकास के लिए आधारभूत उद्योग जैसे : पैट्रोल, केमिकल, इस्पात (लोहा) इत्यादि उद्योगों का संचालन सरकार के द्वारा किया जाता है, क्योंकि इन उद्योगों पर अन्य छोटे-छोटे उद्योग तथा देश का आर्थिक विकास निर्भर रहता है ।

(9) हिसाबों पर सरकारी नियंत्रण : सरकारी विभाग में बजट, हिसाब, ऑडिट इत्यादि सरकारी नियंत्रण के अन्तर्गत रहता है ।

(10) सेवा में एकरूपता : सरकारी विभाग में जो सेवा प्रदान की जाती है उसमें एकरूपता, समान नीति-नियम व बिना भेद-भाव के सेवाएं देने का प्रयास किया जाता है ।

(11) सरकार की सम्पूर्ण सुरक्षा : ऐसे विभाग द्वारा की जानेवाली प्रवृत्ति पर सरकार की सुरक्षा रहती है ।

(12) सरकारी तंत्र का भाग : सरकारी विभाग सरकारी तंत्र का एक भाग है । इसलिए इसके सभी कर्मचारी सरकारी होते हैं ।

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प्रश्न 12.
“सार्वजनिक निगम निजी साहस की परिवर्तनशीलता एवं लोक साहस के उत्तरदायित्व का श्रेष्ठ मिश्रण है ।” इस कथन को समझाइए।
अथवा
सार्वजनिक निगम का अर्थ बताकर उसके लक्षण समझाइए ।
अथवा
सार्वजनिक साहस के व्यवस्था तंत्र के स्वरूप में सार्वजनिक निगम को श्रेष्ठ क्यों माना जाता है ? समझाइए ।
उत्तर :
सार्वजनिक निगम सार्वजनिक साहस का सबसे श्रेष्ठ स्वरूप माना गया है । इसकी स्थापना संसद या राज्य की विधान सभा में विशेष कानून द्वारा की जाती है । इसकी परिभाषा अनुसार “संसद या विधान सभा के विशेष कानून से स्वतंत्र व्यक्तित्व एवं आन्तरिक स्वायत्तता सम्पन्न सार्वजनिक उद्देश्य के लिए स्थापित सरकारी मालिकी का संस्थाकीय स्यरूप अर्थात् सार्वजनिक निगम ।” इसका संचालन सरकार द्वारा नियुक्त किये गये संचालक मंडल द्वारा किया जाता है । इस मंडल में सिर्फ सरकारी अधिकारी ही नहीं बल्कि कुशल उद्योगपतियों का भी समावेश किया जाता है । इस कारण इसमें व्यापारी कौशल भी निहित होता है। इसलिए कहा गया कि “सार्वजनिक निगम के पास कानूनी आवरण, सरकार का पीठबल तथा निजी साहस की परिवर्तनशीलता है ।”

सार्वजनिक निगम के लक्षण :
(1) विशेष अधिनियम द्वारा निर्मित : सार्वजनिक साहस की स्थापना राज्य की विधान सभा तथा देश की संसद में विशेष कानून का निर्माण करके सार्वजनिक निगम की स्थापना की जाती है । इसमें निगम के निर्माण का उद्देश्य स्वायत्तता, सत्ता तथा जिम्मेदारी और संचालन के नियम बताए जाते हैं ।

(2) स्वतंत्र अस्तित्व : कानून द्वारा निगम को स्वतंत्र व्यक्तित्व मिलता है । यह अपने नाम और सार्वमुद्रा से पहचाना जाता है । आम जनता की तरह यह करार करता है, व्यवहार प्रवृत्ति कर सकता है और अदालती कार्यवाही का पक्षकार बनता है ।

(3) सरकार की मालिकी : सार्वजनिक निगम की संपूर्ण पूंजी सरकार के द्वारा लगायी जाती है । इस कारण इसकी मालिकी राज्य अथवा केन्द्र सरकार की होती है । निगम की सफलता या विफलता सरकार की मानी जाती है । अत: सरकार लोगों के विश्वास का संपादन करने के लिए कार्यक्षम संचालन करती है ।

(4) स्वायत्तता : कानूनी सीमा में रहकर निगम को प्रवृत्ति करने के लिए संपूर्ण स्वायत्तता दी जाती है ।

(5) संस्थाकीय स्वरूप : सार्वजनिक निगम का स्वरूप संस्थाकीय होता है । एकाकी व्यापार या संयुक्त हिन्दू परिवार की तरह निजी या व्यक्तिगत आधार पर इसका अस्तित्व नहीं होता है ।

(6) नागरिकों के हित का उद्देश्य : सार्वजनिक निगम की स्थापना तथा उसका संचालन नागरिकों के हित के लिए किया जाता है । अतः संस्था का लाभ गौण माना गया है । लोगों को अधिकतम सुविधा प्राप्त हो सके, इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर सार्वजनिक निगम का संचालन किया जाता है ।

(7) सार्वजनिक उत्तरदायित्व : सार्वजनिक निगम के संचालन-सम्बन्धी तथा हिसाबी व्यवस्था संसद के समक्ष उस विभाग के प्रधान के द्वारा प्रस्तुत की जाती है । संसद में इसके संचालन-सम्बन्धी तथा हिसाबी व्यवस्था पर चर्चा-विचारणा की जाती है । यदि संचालन में कहीं कमी होती है तो इसकी जिम्मेदारी संसद के सभी सदस्यों की सामूहिक रूप से गिनी जाती है । इस प्रकार निगम में सत्ता, जिम्मेदारी एवं उत्तरदायित्व का समत्रिकोण बनता है ।

(8) निश्चित उद्देश्य : सार्वजनिक निगम की रचना संसद के विशेष अधिनियम के द्वारा निश्चित उद्देश्य को सिद्ध करने के लिए स्थापित किया जाता है । अतः सार्वजनिक निगम द्वारा स्थापित संस्था देश के सम्पूर्ण भागों में एकरूपता के आधार पर नागरिकों के हित को ध्यान में रखते हुए सामूहिक विकास के लिए संचालन करती है ।

(9) जवाबदारी के अनुसार सत्ता : निगम की जिम्मेदारी के अनुसार ही निगम के अधिकारियों को सत्ता दी जाती है । इस प्रकार सत्ता, जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व के बीच सन्तुलन रहता है ।

(10) धन्धाकीय अभिगम : निगम के अधिकारी सरकार या खाते के प्रधान के दबाव में आकर नहीं, बल्कि अपने विशिष्ट धन्धाकीय अभिगम तथा अनुभव के आधार पर अपने कार्य करते हैं ।

(11) निजी साहस के रूप में कुशलता : निगम के संचालक-मंडल में निजी या सहकारी क्षेत्र में सफल निष्णात व्यक्तियों की नियुक्ति की जाती है । इससे निगम को निजी साहस की कुशलता प्राप्त होती है ।

(12) हिसाबी स्वतंत्रता : निगम को सरकारी बजट से कोई सम्बन्ध नहीं है । धन्धा या इकाई के विकास के लिए ये कानूनी मर्यादा में रहकर आय-खर्च स्वतंत्र रूप से कर सकते है जिसमें सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करती ।

(13) ऋण लेने की स्वतंत्रता : निगम धंधे के विकास के लिए पूंजी की आवश्यकता होने पर विभिन्न स्थानों से स्वतंत्र रूप से ऋण ले सकती है । इसलिए सरकार से मान्यता लेने की जरूरत नहीं होती है । निगम पूंजी-कोष अंशों में विभाजित करके सार्वजनिक जनता को शेयर खरीदने का आमंत्रण देकर पूंजी एकत्र कर सकता है ।

(14) स्वतंत्र संचालन : निगम का संचालन उसके स्वतंत्र संचालक मंडल (बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स) के द्वारा किया जाता है । इस संचालकमंडल में उच्च सरकारी अधिकारियों एवं निजी उद्योगपतियों की संयुक्त रूप से कानून की मर्यादा में रहकर स्वतंत्र रूप से संचालन-व्यवस्था होती है ।

समीक्षा : सार्वजनिक निगम के लक्षण को देखते हुए हम कह सकते हैं कि सार्वजनिक निगम सरकार द्वारा संचालित धन्धाकीय स्वरूप में सबसे श्रेष्ठ है, जिसमें संचालन-व्यवस्था तथा उसके नीति-नियम सरकार द्वारा देश के नागरिकों को ध्यान में रखकर तैयार किए जाते हैं । इसमें सरकारी तंत्र के अवगुणों का समावेश नहीं होता । अतः सार्वजनिक निगम धन्धाकीय स्वरूप का सबसे श्रेष्ठ स्वरूप माना जाता है ।

प्रश्न 3.
सरकारी कम्पनी की परिभाषा देते हुए उसके लक्षण समझाइए ।
उत्तर :
सरकारी कम्पनी का अर्थ : कम्पनी अधिनियम में उद्धृत परिभाषा के अनुसार “कोई भी कम्पनी जिसमें केन्द्र सरकार, राज्य सरकार या राज्य सरकारों अथवा केन्द्र सरकार सहित एक या एक से अधिक राज्य सरकारों के पास कुल अंश पूंजी के 51 प्रतिशत से अधिक शेयर हों तो वह सरकारी कम्पनी कहलायेगी ।”

सरकारी कम्पनी के शेयर अलग अधिकारियों के पद के नाम से खरीदे जाते हैं । इसमें राज्यपाल तथा राष्ट्रपति का भी समावेश किया जाता है । इसमें सरकार अंशधारी बनती है । इस कम्पनी की स्थापना, संचालन-विकास तथा विसर्जन कम्पनी अधिनियम के अनुसार किया जाता है । जैसे हिन्दुस्तान एरोनोटिक्स लि. (HAL), हिन्दुस्तान मशीन टूल्स लि. (HMT), हिन्दुस्तान स्टील (H.S.L.), BHEL इत्यादि ।

सरकारी कम्पनी के लक्षण :

(1) सरकार द्वारा स्थापना : सरकारी कंपनियों की स्थापना केन्द्र सरकार, राज्य सरकार या राज्य सरकारों या केन्द्र और राज्य सरकार संयुक्त रूप से करते हैं ।

(2) सरकार का संचालक-मंडल : सरकारी कम्पनी के संचालक मंडल में सरकारी अधिकारियों का बहुमत रहता है । क्योंकि 51% या उससे अधिक शेयर सरकार के पास रहते हैं । इस कारण संचालक-मंडल के सदस्य तथा अध्यक्ष की नियुक्ति सरकार के द्वारा की जाती है । यह सरकार द्वारा नियुक्त संचालक-मंडल सरकारी कम्पनी का संचालन करते हैं ।

(3) कम्पनी अधिनियम के अनुसार रचना : सरकारी कम्पनी की स्थापना के लिए कोई अलग अधिनियम नहीं हैं । कम्पनी के संचालकमंडल को तथा उसके अध्यक्ष को कम्पनी की स्थापना के उद्देश्य को स्पष्ट करना पड़ता है । सरकार इन कंपनियों के संचालन के दैनिक कार्य में हस्तक्षेप नहीं करती है ।

(4) वार्षिक हिसाब एवं रिपोर्ट : निजी कम्पनी की तरह सरकारी कम्पनी को भी वार्षिक हिसाब तथा रिपोर्ट तैयार करके प्रस्तुत करना पड़ता है । यद्यपि उसके संचालक-मंडल में सरकारी अधिकारियों की संख्या ही अधिक होने के कारण इन हिसाबों की विशेष चर्चा नहीं की जाती। यदि कोई विशेष घटना हो तो संसद-सदस्य या सम्बन्धित मंत्री कम्पनी की रिपोर्ट एवं हिसाब की चर्चा करते हैं ।

(5) संचालक-मंडल द्वारा निर्णय : निजी कम्पनी का निदेशक-मंडल की तरह सरकारी कम्पनी का निदेशक-मंडल भी निर्णय लेता है तथा उसका अमल भी करता है ।

(6) सरकार द्वारा अधिकारियों की नियुक्ति : सरकारी कम्पनी के अधिकारियों एवं पदाधिकारियों की नियुक्ति सरकार करती है । कम्पनी के संचालन के लिए इन्हें सरकार के नीति-नियम से अवगत कराया जाता है । संलग्न विभाग में मंत्री से इन्हें कार्य करने की सूचना . मिलती रहती है ।

(7) कर्मचारियों के लिए स्वतंत्र नियम : कम्पनी के उच्च अधिकारी एवं पदाधिकारी कर्मचारियों की नियुक्ति करते हैं । ये कर्मचारी सरकारी तंत्र का भाग नहीं कहलाते हैं । इनके लिए सरकारी कम्पनी एक स्वतंत्र नियम बनाती है ।

(8) कम्पनी द्वारा वित्तीय साधनों का प्रावधान : सरकारी कम्पनी के लिए वित्तीय साधनों का प्रावधान सरकारी विभाग से बिलकुल अलग है । सरकारी कम्पनी को आवश्यक वित्तीय साधनों की व्यवस्था स्वयं ही करनी पड़ती है । पूंजी में सरकार एवं नागरिकों की संयुक्त मालिकी होती है । किन्तु संचालन में सरकार का प्रत्यक्ष नियंत्रण रहता है ।

(9) निजी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व : सरकारी कम्पनी में 51% पूँजी सरकार की रहती है तथा अन्य शेयर आम जनता के रहते हैं । इसलिए आम जनता के कुशल तथा निष्णात प्रतिनिधि तथा ग्राहक एवं मजदूर प्रतिनिधि को भी संचालक मंडल में स्थान दिया जाता है ।

(10) लाभ तथा सेवालक्षी प्रवृत्ति : सरकारी कम्पनी में मात्र सेवालक्षी प्रवृत्ति ही नहीं होती है । लाभ और सेवा का दोहरा समन्वय सरकारी कम्पनी में रहता है । जैसे कि : हिन्दुस्तान मशीन टूल्स लि., हिन्दुस्तान स्टील लि. इत्यादि ।

समीक्षा : सरकारी कम्पनी के पास सरकार को पूंजीगत पीठबल प्राप्त रहता है तथा निजी क्षेत्र के कुशल एवं निष्णात उद्योगपतियों का प्रतिनिधित्व रहता है । इसलिए सरकारी कम्पनी ने उल्लेखनीय विकास किया है ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 7 सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र और वैश्विक साहस

प्रश्न 4.
सार्वजनिक साहसों की बदलती हुई भूमिका समझाइए ।
उत्तर :
सार्वजनिक साहस की बदलती हुई भूमिका : सार्वजनिक साहस की बदलती हुई भूमिका पर विचार करें तो इसमें आमूल परिवर्तन देखने को मिलता है । भारत ने वर्ल्ड ट्रेड ओर्गेनाइजेशन (WTO = World Trade Organization) में हस्ताक्षर करने के बाद अपने देश में निजीकरण (Privatization) का अभियान चल रहा है । ऐसी स्थिति में सरकार ने सार्वजनिक साहस को निजी साहस में परिवर्तन करने का विचार कर लिया है । सार्वजनिक साहस को विनिवेश (Disinvestment) करने के लिए विशेष तौर पर मंत्रियों को नियुक्त किया गया है । वर्तमान समय में सार्वजनिक साहस बड़े पैमाने पर नुकसान (Loss) कर रहे हैं । जिससे अब यह माना जाता हैं कि सार्वजनिक साहस को भी लाभ का उद्देश्य रखना पड़ेगा । धन्धे को टिकाए रखने, विकसित करने व संशोधन हेतु लाभ को अनिवार्य रूप से स्वीकार करना होगा । यदि सार्वजनिक साहस नुकसान करते हैं तो जो नुकसान होता है उसका समग्र भुगतान आम जनता को करना पड़ता है जो कि योग्य नहीं हैं । सार्वजनिक साहस की संस्थाएँ लोगों के कल्याण के लिए स्थापित की जाती हैं। कल्याण का असर लोगों को सहन करना पड़े ऐसा नहीं होना चाहिए । ऐसी धारणा प्रचलित बनी है ।

दूसरी ओर आम जनता की यह धारणा हैं कि सार्वजनिक साहसों का निजीकरण नहीं किया जाना चाहिए अर्थात् सार्वजनिक साहस को सार्वजनिक साहस ही बनाये रखना चाहिए । सार्वजनिक साहसों को स्पर्धा में टिकाए रखने के लिए अपनी कार्यवाही सुधारनी होगी एवं सेवा में सुधार करना पड़ेगा, तभी सार्वजनिक साहस टिक सकते हैं तथा उसका विकास हो सकता है ।

वर्तमान समय में सार्वजनिक साहस का भावी अंधकारमय ही है। आमजनता, कर्मचारी भी यही चाहते हैं कि सार्वजनिक साहस चालू रहें । अब यह निश्चित है कि सार्वजनिक साहस की संस्थाओं को अच्छी सेवाएँ देनी होंगी व अधिक लोकप्रियता प्राप्त करनी होगी । तभी सार्वजनिक साहस सफल हो पायेंगे ।

सन् 1991 के बाद के वर्षों में आर्थिक नीति में निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण अपनाया गया । जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका में परिवर्तन आए ।

सन् 1950 से 1990 का समयकाल सार्वजनिक क्षेत्र के लिए महत्त्वपूर्ण रहा है ।

प्रश्न 5.
निजी साहस एवं सार्वजनिक साहस के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निजी साहस एवं सार्वजनिक साहस में अन्तर निम्नलिखित अन्तर है :

अंतर के मुद्दे निजी साहस / क्षेत्र सार्वजनिक साहस / क्षेत्र
1. उद्देश्य निजी साहस की इकाईयों का उद्देश्य लाभ कमाना होता है । 1. सार्वजनिक साहस की संस्थाएँ अपने सार्वजनिक (लोक) कल्याण के उद्देश्य से अस्तित्व में आती हैं ।
2. मालिकी निजी साहस की मालिकी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह की होती है । 2. सार्वजनिक साहस की संस्थाओं की मालिकी (स्वामित्व) सरकार की होती है ।
3. शोषण इसमें अधिकतम लाभ कमाने के उद्देश्य से समाज के विभिन्न वर्गों का शोषण भी किया जाता है । 3. सार्वजनिक साहस की संस्थाओं में सेवा देने का उद्देश्य होता है । विभिन्न वर्गों का शोषण नहीं किया जाता है ।
4. नियंत्रण निजी साहस की संस्थाओं पर सरकार का अंकुश होता है, लेकिन दैनिक व्यवहारों पर नियंत्रण नहीं होता है । 4. सार्वजनिक साहस के अन्तर्गत आनेवाली इकाईयाँ सरकारी नीति-नियमों के अन्तर्गत चलती हैं ।
5. स्वरूप निजी साहस में व्यक्तिगत मालिकी, साझेदारी संस्था एवं संयुक्त हिन्दू परिवार नामक संस्थाओं का समावेश होता है । 5. सार्वजनिक साहस में सरकारी विभाग, सरकारी कम्पनी, सार्वजनिक निगम इत्यादि संस्थाओं का समावेश होता है ।
6. मुनाफाखोरी निजी साहस मुनाफाखोरी करते हुए दिखाई देते है । 6. सार्वजनिक साहस सरकारी अंकुश के कारण मुनाफाखोरी नहीं करते ।

प्रश्न 6.
वैश्विक साहस का अर्थ देकर इसके लक्षण बताइए ।
उत्तर :
वैश्विक साहस का अर्थ : यदि कोई भी धन्धाकीय इकाई जब अपनी धन्धाकीय प्रवृत्तियाँ राष्ट्रीय सीमाओं के बाहर फैलाती है, तब उन्हें वैश्विक साहस कहते हैं ।

लक्षण :

  • एक से अधिक देशों में धन्धा : वैश्विक साहस अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बृहद पैमाने पर कार्यरत होते है । ये विश्व के एक से अधिक देशों में फरते रहते है । अपनी धन्धाकीय प्रवृत्तियाँ अलग-अलग देशों में एकसाथ अलग-अलग प्रकार से देखने को मिलती है ।
  • प्राधान्य : वैश्विक साहस निवेश, उत्पादन और वितरण में सम्बन्धित प्रदेश/राज्य की विशेष बातों को महत्त्व देते है । प्रत्येक देश की धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और व्यवहारलक्षी मान्यताएँ अलग होती है और ऐसी बातों को ध्यान में रखकर वैश्विक साहस सम्बन्धित देश में अपनी धन्धाकीय प्रवृत्तियाँ फैलाती है ।
  • कद और विक्रय : वैश्विक साहसों का कद और विक्रय विशाल पैमाने में होता है । कई बार अमुक छोटे देशों की कुल राष्ट्रीय आय की अपेक्षाकृत वैश्विक साहसों के विक्रय की आय अधिक होती है ।
  • आर्थिक सुदृढ़ता : वैश्विक साहस आर्थिक रूप से सुदृढ़ होते है । कई बार वो बहुत ही कम लाभ अथवा आवश्यकता हो तो नुकसान उठा करके भी बाजार का विकास कर सकते है । वैश्विक साहसों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने से बृहद पैमाने में उत्पादन और विक्रय के बारे में आयोजन बना सकते है ।
  • राजकीय वर्चस्व : वैश्विक साहसों की बहुत ही सुदृढ़ आर्थिक स्थिति होने से उनका राजकीय वर्चस्व भी अधिक होता है । वो कई बार अपनी अनुकूलता के अनुसार आर्थिक नीति को भी सम्बन्धित देश के राजकीय नेताओं द्वारा बनवा सकते है ।
  • वफादारी : वैश्विक साहस विश्व के अनेक देशों में एकसाथ धन्धा करते है, परन्तु कई बार वो सम्बन्धित देश के वफादार नहीं रहते, लेकिन वो अपने मुख्य देश के प्रति वफादार होते है ।
  • आर्थिक सुदृढ़तावाले देशों में उद्भव : वैश्विक साहसों का उद्भव अधिकांशतः आर्थिक रूप विकासित देशों में होता है जब उनकी धन्धाकीय प्रवृत्तियाँ अधिकांशतः विकासशील और अल्पविकसित देशों में करते है ।
  • संशोधन और विकास हेतु अधिक खर्च : वैश्विक साहस संशोधन और विकास के लिये बड़े पैमाने खर्च करते है तथा अपने ज्ञान में वृद्धि करते है । वो अपनी आय का अधिकांश भाग संशोधन और विकास के पीछे खर्च करके नई वस्तुएँ, सेवाएँ और आधुनिक तकनिकी का निरन्तर विकास करतें है । परिणामस्वरूप पूँजी प्रधान उत्पादन पद्धति अपना सकते है ।
  • जीवनशैली में परिवर्तन : वैश्विक साहस अपने उत्पाद या सेवा के विलास के लिये आवश्यकतानुसार सम्बन्धित देश के लोगों . की जीवनशैली में परिवर्तन लाते है । ऐसे परिवर्तनों का आरम्भ मूलभूत आवश्यकताओं से करते है ।

प्रश्न 7.
सार्वजनिक निगम को किस प्रकार की स्वायत्तता मिलती हैं ?
उत्तर :
सार्वजनिक निगम की स्थापना विशिष्ट अधिनियम के आधार पर की जाती है । सरकार द्वारा सार्वजनिक निगम के विकास के लिए उन्हें निश्चित मर्यादा में रहकर संचालकीय प्रशासनिक तथा मुद्रा-संबंधी संपूर्ण स्वायत्तता प्रदान की जाती है । जब संस्था से सम्बन्धित किसी विशेष मामले का निर्णय करना होता है तो कई संयोगों में सरकार को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता पड़ती है ।

प्रश्न 8.
सार्वजनिक निगम को मुद्रा-सम्बन्धी किस प्रकार की स्वायत्तता प्राप्त है ?
उत्तर :
सार्वजनिक निगम को आर्थिक मामलों में सरकारी अंदाजपत्र (बजट) से कोई सम्बन्ध नहीं रहता है । निगम में संपूर्ण पूंजीविनियोग सरकार द्वारा किया जाता है । फिर भी यदि सार्वजनिक निगम को उचित या आवश्यक लगता हो तो वे अन्य स्थानों से अल्पकालीन या दीर्घकालीन उधार पूंजी (ऋण) लेने के लिए स्वायत्त हैं । इसके अतिरिक्त निगम के आय-खर्च के हिसाब में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं रहता है । अतः सार्वजनिक निगम को पूंजी व्यवस्था एवं आय-खर्च से सम्बन्धित संपूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है ।

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प्रश्न 9.
सार्वजनिक निगम के मार्गदर्शक सिद्धान्त को समझाइए ।
उत्तर :
सार्वजनिक निगम को विशेष कार्यक्षम बनाने में निम्नलिखित मार्गदर्शक सिद्धांत विशेष उपयोगी बन सकता है ।

  1. सार्वजनिक निगम को प्रवृत्ति की निश्चित समय के बाद मूल्यांकन करना चाहिए ।
  2. निगम को ऊपरी अधिकारियों की योग्यता निश्चित करनी चाहिए ।
  3. निगम की प्रवृत्ति में सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए ।
  4. निगम की कार्यक्षमता में वृद्धि करके अधिकतम लाभ प्राप्त करने का उद्देश्य होना चाहिए ।
  5. निगम के कर्मचारी एवं अधिकारियों की कार्यक्षमता का निश्चित माप होना चाहिए ।
  6. निगम की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की प्रतियोगी इकाई को अवसर देना चाहिए ।
  7. निगम के कर्मचारी एवं अधिकारियों द्वारा यदि निगम को क्षति पहुँचे तो उन्हें आवश्यक सजा देने की व्यवस्था होनी चाहिए ।
  8. निगम के आय-खर्च का हिसाबी नियंत्रण होना चाहिए ।

प्रश्न 10.
सरकारी खाते का संचालन किस प्रकार कार्यक्षम बन सकता है ?
उत्तर :
सरकारी खाते का संचालन उचित एवं कार्यक्षम बनाने के लिए आवश्यक तत्त्वों को रखना जरूरी है । जैसे,

  1. सही स्थान पर सही व्यक्ति को नियुक्त करना चाहिए ।
  2. सरकारी खाते में राजकीय हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए ।
  3. अलग-अलग विभागों के अधिकारियों की सत्ता एवं जवाबदारी निश्चित होनी चाहिए ।
  4. विभागीय मुख्य अधिकारी अपने विभाग के संचालन में कुशल होना चाहिए ।
  5. विभागीय अधिकारियों को उनके विभाग के उद्देश्य से अवगत होना चाहिए ।
  6. अधिकारियों के ज्ञान-विकास के लिए आवश्यक तालीम की व्यवस्था होनी चाहिए ।
  7. सरकारी खाते के संचालन में धन्धाकीय उद्देश्य होना चाहिए ।

प्रश्न 11.
सार्वजनिक साहस के संचालन के प्रकार एवं उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर :
सार्वजनिक साहस अर्थात् “निश्चित आर्थिक प्रवृत्ति करने के लिए यदि स्थापित संस्था की मालिकी, उसका संचालन एवं उस पर नियंत्रण सरकार का हो तो वह संस्था सार्वजनिक संस्था बन जाती है ।” सार्वजनिक साहस के संचालन के तीन प्रकार है :

  1. सरकारी विभाग (खाता) पद्धति : जैसे : रेलवे, डाक सेवा इत्यादि
  2. सरकारी कम्पनी : जैसे : HMT, BEL. BHEL
  3. सार्वजनिक वित्त निगम – जैसे – जीवन बीमा निगम (L.I.C.), औद्योगिक वित्त निगम (IFC)

सार्वजनिक साहस का उद्देश्य समाज, राष्ट्र या राज्य के कमजोर वर्गों के जीवन को सुखमय बनाने के लिए आवश्यक प्रवृत्ति करना । इसके अतिरिक्त आवश्यक आर्थिक प्रवृत्ति के द्वारा विदेशी मुद्रा प्राप्त करना जिससे देश की सुरक्षा के लिए उपयोगी साधन-सामग्री तैयार . करने में सहायता प्राप्त हो सके ।

प्रश्न 12.
सार्वजनिक साहस में सत्ता तथा जवाबदारी का मार्ग बताइए ।
उत्तर :
सार्वजनिक साहस में सत्ता तथा जिम्मेदारी की शृंखला लम्बी होती है । इसमें विधान सभा में बहुमत रखनेवाले पक्ष खाता के विभिन्न प्रधान – संचालक मंडल – संचालक मंडल के अध्यक्ष सेक्रेटरी, इस प्रकार उच्च स्तर से निम्नस्तर की दिशा में सत्ता तथा जिम्मेदारी की सुपुर्दगी की रचना की गई है । यह मार्ग विपरीत दिशा में जवाबदारी प्रस्तुत करता है । जिस प्रकार से सेक्रेटरी अपने अध्यक्ष को, अध्यक्ष अपने संचालक मंडल को तथा संचालक मंडल अपने विभाग के प्रधान को उत्तरदायित्व प्रस्तुत करता है । अत: सार्वजनिक साहस में सत्ता तथा जवाबदारी की शृंखला वैज्ञानिक पद्धति से तैयार की जाती है ।

प्रश्न 13.
सार्वजनिक निगम के उद्देश्य बताइए ।
उत्तर :
संसद या विधान सभा के विशेष अधिनियम द्वारा स्थापित सार्वजनिक निगम के उद्देश्य निम्नलिखित हैं :

  1. राष्ट्र के हित के लिए आवश्यक धन्धाकीय प्रवृत्ति करना ।
  2. सार्वजनिक हित के लिए विशाल पूंजी द्वारा सार्वजनिक निगम की रचना करना ।
  3. राजकीय परिवर्तन के प्रभाव से मुक्त दीर्घकालीन सार्वजनिक साहस की स्थापना करना ।
  4. जिस धन्धाकीय अभिगम में कुशल संचालक की आवश्यकता हो ऐसी धन्धाकीय इकाई की स्थापना करना ।
  5. स्वायत्तता की आवश्यकतावाले निगम की स्थापना करना ।
  6. देश के आर्थिक-सामाजिक विकास के लिए आवश्यक इकाई का संचालन करना ।
  7. बैंक, बीमा, वित्तीय संस्था तथा राज्य को यातायात की सेवा प्रदान करना ।

प्रश्न 14.
सार्वजनिक साहस पर किस प्रकार का अंकुश रखा जाता है ?
उत्तर :
सार्वजनिक साहस का आधार देश के अर्थतंत्र से है । अत: सार्वजनिक साहस पर अंकुश रखने के लिए सरकार द्वारा उचित व्यवस्था बनाई गई है । जिसमें आंतरिक अंकुश, आन्तरिक ऑडिट खाता या विभागीय खाता या विभागीय प्रधान का अंकुश, वार्षिक ऑडिट की व्यवस्था. सार्वजनिक हिसाब समिति तथा विशिष्ट समिति के रूप में विविध स्तर से संसद तथा विधान सभा में सार्वजनिक साहस के हिसाबों पर चर्चा, अखबार तथा सामायिक साधनों द्वारा सार्वजनिक साहस पर अंकुश के लिए आवश्यक आलोचना की जाती है ।

प्रश्न 15.
नेशनल टैक्सटाइल कोर्पोरेशन (N.T.C.) के उद्देश्य बताइए ।
उत्तर :
सरकार द्वारा नेशनल टैक्सटाइल कोर्पोरेशन की स्थापना निम्न उद्देश्यों से की गयी है :

  1. बीमार मिलों का संचालन सरकार द्वारा किया जाता है ।
  2. बंद मिल संचालित करने से कामदार बेकार नहीं बनते हैं ।
  3. इसके द्वारा उत्पादित वस्तु की कीमत कम रखी जाती है ।
  4. इन मिलों में सामान्य वर्गों के लिए उपयोगी वस्तु अधिकतम तैयार की जाती है।
  5. N.T.C. मिलों के संचालन से प्राप्त आय से सरकारी आय में वृद्धि होती है ।
  6. इनके द्वारा उत्पादित वस्तु सरकार द्वारा अधिकतम रूप में अपने उपयोग में ली जाती है ।

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प्रश्न 16.
सार्वजनिक साहस राजकीय नेताओं की शतरंज है ।
अथवा
सार्वजनिक साहस राजकीय दाव-पेच का अड्डा बन गया है ।
उत्तर :
सार्वजनिक साहस अर्थात् जिसमें संपूर्ण पूंजी-विनियोग सरकार का हो ऐसी इकाई । जैसे – रेलवे, H.M.T., जीवन बीमा निगम इत्यादि । ये इकाईयाँ सरकारी विभाग, सरकारी कम्पनी अथवा सार्वजनिक निगम द्वारा चलायी जाती है । इसमें सम्बन्धित खाते के प्रधानों का तथा संसद-सदस्यों का बारंबार हस्तक्षेप होता है । चुनाव में हारे हुए उम्मीदवारों को ऐसे निगम के चेयरमेन पद पर अधिकतर नियुक्त कर दिया जाता है । इस कारण यह राजनीति का अड्डा बन जाता है । इस क्षेत्र में राजकीय उथल-पुथल के साथ पक्ष-विपक्ष के प्रधानों का हस्तक्षेप होता रहता है । इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सार्वजनिक साहस राजनीतिक व्यक्तियों की शतरंज है ।

प्रश्न 17.
सरकारी विभाग में कार्यक्षमता का अभाव रहता है ।
उत्तर :
सरकारी विभाग का संचालन नियुक्त किये गये सवेतन अधिकारी या कर्मचारियों के द्वारा किया जाता है । निजी क्षेत्र में उसके मालिकों के द्वारा संचालन होता है । निजी क्षेत्र में लाभ-हानि का सीधा असर उसके मालिकों पर पड़ता है । जबकि सरकारी विभाग की लाभ-हानि का तात्कालिक प्रभाव किसी अधिकारी या कर्मचारी को नहीं होता है । इस कारण अधिकारियों को इकाई की प्रवृत्ति कार्यक्षमतापूर्वक हो तथा इकाई लाभ करे इसमें कोई रुचि नहीं होती है । इन्हें सिर्फ अपने वेतन में रुचि रहती है । इसके उपरांत सरकारी विभाग में जड़ नियम, गतानुगतिक कार्यपद्धति, रिश्वतखोरी इन सबके कारण इकाई की कार्यक्षमता नीची रहती है । सरकारी विभाग. में निर्णय में विलम्ब, परिवर्तनशीलता का अभाव, कार्यक्षम निष्णातों का अभाव, कर्मचारियों की सुरक्षा के कारण आलसीवृत्ति इन सभी कारणों से सरकारी विभाग में कार्यक्षमता का अभाव रहता है ।

प्रश्न 18.
सरकारी कम्पनी द्वारा सरकार कम पूंजी से अधिक प्रवृत्ति कर सकती है ।
उत्तर :
सरकारी कम्पनी में 51 प्रतिशत पूंजी-विनियोग, केन्द्र, राज्य या राज्यों की सरकार द्वारा होता है और इसके अतिरिक्त पूंजीनिवेश आम जनता या अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा किया जाता है । सरकारी कम्पनी में अधिकांश पूंजी सरकारी होने के कारण उसके संचालकमंडल में सरकार द्वारा नियुक्त प्रतिनिधियों के द्वारा कार्य होता है । इस प्रकार सरकार 51 प्रतिशत अर्थात् आधी पूंजी से संपूर्ण संचालन की सत्ता प्राप्त करती है । ऐसा कहा जाता है ।

प्रश्न 19.
सरकारी कंपनियों में हिसाबों का ऑडिट मंदगति से (शिथिल) होता है ।
उत्तर :
सरकारी ऑडिटर सरकारी कम्पनी को ऑडिट करने का अधिकार स्वयं नहीं प्राप्त कर सकते हैं । इसके उपरांत कम्पनी अधिनियम अन्य कंपनियों के लिए ऑडिट का जो चुस्त प्रावधान है, वह सरकारी कम्पनी को लागू नहीं पड़ता है । इसलिए सरकारी कंपनियों के हिसाबों में ऑडिट में शिथिलता पाई जाती है ।

प्रश्न 20.
सरकारी कम्पनियाँ सरकार के लिए कामधेनु सिद्ध हुई हैं ।
उत्तर :
सरकारी कम्पनियाँ जनसेवा के साथ लाभ के उद्देश्य को भी महत्त्व का स्थान देती है । इस कम्पनी की उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का उपयोग करनेवाले ग्राहकों से लाभ सहित कीमत वसूल की जाती है । परिणामस्वरूप ऐसी कम्पनियाँ आकर्षक लाभ प्राप्त करती हैं । सरकारी कम्पनी में 51 प्रतिशत या उससे अधिक अंश पूंजी सरकार की होने से कम्पनी के लाभ का अधिकतम हिस्सा सरकार को प्राप्त होता है । अत: लाभ करनेवाली सरकारी कम्पनियाँ सरकार के लिए कामधेनु बनी हैं । जैसे कि – भारत पैट्रोलियम लि. प्रतिवर्ष करोड़ों रुपया डिविडन्ड चुकाती है ।

प्रश्न 21.
इस विधान को समझाइए : “सार्वजनिक निगम जन्म से ही महाकाय होता है ।”
उत्तर :
सार्वजनिक साहस सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए आर्थिक प्रवृत्ति चलाने के लिए स्थापित किया जाता है । सामान्य रूप से जो प्रवृत्ति निजी साहस चलाने के लिए तैयार नहीं होता है या जो प्रवृत्ति निजी साहस को सौंपना सरकार को उचित नहीं लगता, उस प्रवृत्ति के लिए सार्वजनिक साहस की स्थापना की जाती है । विशाल जनहित के लिए इसकी प्रवृत्तियाँ होने से उसका कद विशाल होता हैं । इसमें अत्यधिक मात्रा में पूंजी का विनियोग करना पड़ता है । इसका व्यवस्था-तंत्र विशाल और जटिल होता है । इन कारणों से सार्वजनिक साहस जन्म से ही महाकाय होते हैं ।

प्रश्न 22.
‘सार्वजनिक निगम को सर्वश्रेष्ठ-व्यवस्था स्वरूप कहा जाता है क्योंकि इसे स्वायत्तता दी जाती है ।’ इस विधान को समझाइए ।
उत्तर :
सार्वजनिक निगम को अपने व्यवस्था-संचालन (प्रशासन) के लिए अन्य धंधादारी संस्थाओं की तरह संपूर्ण आंतरिक स्वतंत्रता प्राप्त होती है । जिस कानून के अन्तर्गत निगम का सर्जन हुआ रहता है उसकी मर्यादा में रहकर और संसद तथा प्रधान द्वारा निश्चित किये गये सामान्य नीति विषयक तथा मार्गदर्शक सिद्धांतों की मर्यादा में रहकर वह प्राप्त सभी अधिकारों का उपभोग करती है । उसके दैनिक कार्य में संसद या प्रधान या अन्य सरकारी अधिकारी दखलअंदाजी नहीं करते हैं । इस कारण निगम के संचालक पूर्ण आत्मविश्वास के साथ निगम का संचालन करते हैं । इसके उपरांत सरकार द्वारा प्राप्त पूंजी के बावजूद पूंजीकीय लेन-देन के मामले में संपूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होती है । निगम के खर्च का देश के सामान्य बजट में समावेश नहीं किया जाता है । निगम अपने धंधे के लिए योग्य लगे उस प्रकार आय प्राप्त कर सकता है तथा खर्च कर सकता है । निगम की मुद्राकीय स्वायत्तता के कारण निगम की मालिकी की पूंजी सरकार की तथा उधार पूंजी सरकार की या अन्य स्रोतों से प्राप्त करता है । अतः सार्वजनिक निगम सर्वश्रेष्ठ स्वरूप माना जाता है ।

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प्रश्न 23.
“सरकारी कम्पनी द्वारा सरकार अल्पपूंजी से अधिक प्रवृत्तियाँ कर सकती है ।” विधान समझाइए ।
उत्तर :
कम्पनी-अधिनियम के आधार पर ही सरकारी कम्पनी अस्तित्व में आती है । किन्तु वास्तविकता यह है कि निजी क्षेत्र के किसी भी सार्वजनिक कम्पनी के 51% या उससे अधिक शेयर पर कब्जा करके सरकार उस कम्पनी को अपने अधीनस्थ ले सकती है । उसका राष्ट्रीयकरण कर सकती है । अनेक सार्वजनिक कम्पनियों के शेयर सरकारी या अर्धसरकारी संस्थाएँ खरीदती हैं । इस प्रकार सरकार 1 रुपया से 2 रुपया के जितना कार्य करती है । हाल में पब्लिक सेक्टर युनिट्स (P.S.U.) के नाम से प्रख्यात कई इकाईयों में सरकार अपना पूंजी-विनियोग घटाकर इसके अरबों रुपयों के शेयर आम जनता में बेचने लगी है । इस प्रकार करने से इन इकाईयों पर सरकार की पकड़ भी कम नहीं होती तथा कम पूंजी में विविध प्रवृत्तियाँ कर सकती है ।

प्रश्न 24.
“सार्वजनिक साहस अर्थात् सरकार” इस विधान को समझाइये ।
उत्तर :
‘साहस’ अर्थात् आर्थिक प्रवृत्ति करने के लिए विशिष्ट उद्देश्य से मालिकी संचालन एवं नियंत्रण का एक समान गुण रखनेवाली इकाईयों का समूह ।
सार्वजनिक साहस की स्थापना सरकार द्वारा की जाती है । उसके संचालक-मंडल की रचना भी सरकार करती है ।

सरकार जो कार्य करे अथवा न करे वह राष्ट्र कर रहा है, ऐसी एक मान्यता प्रबल बनी है । सार्वजनिक साहस से सम्बन्धित सम्पत्ति की मालिकी सरकार अर्थात् राष्ट्र की मानी जाती है । किसी भी सार्वजनिक साहस की रचना नियम या कानून के अन्तर्गत की जाती है । सार्वजनिक साहस व्यक्तिगत या पारिवारिक सम्बन्धों के आधार पर तैयार नहीं किया जा सकता । सार्वजनिक साहस की प्रवृत्ति चलाई जाती है, और सरकार यह आम जनता के प्रतिनिधि द्वारा बनती है । सार्वजनिक संस्था की मालिकी सरकार की होती है । अर्थात क्रय-विक्रय, सर्जन करने या विसर्जन करने का संपूर्ण अधिकार सरकार का होता है । इसलिए यह विधान सही सिद्ध होता है कि “सार्वजनिक साहस अर्थात् सरकार”

प्रश्न 25.
जो लाभ करे वह सार्वजनिक साहस नहीं ।
उत्तर :
लाभ करे वह सार्वजनिक साहस नहीं यह विधान सही है, क्योंकि सार्वजनिक साहस की इकाईयों का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं बल्कि उचित कीमत पर, नियमित तौर पर, बिना किसी भेदभाव से सेवाएँ प्रदान करना होता हैं । सार्वजनिक साहस में विशाल पैमाने में पूँजी की आवश्यकता होती है, व इनका कार्य-क्षेत्र भी विशाल (महाकाय) होता है ।

प्रश्न 26.
सामाजिक न्याय सार्वजनिक साहस के उद्भव का पाया है ।
उत्तर :
सार्वजनिक साहस की संस्थाओं की स्थापना सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए की जाती हैं । इन संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य सेवा देना होता है एवं समाज की सुरक्षा, संरक्षण, बैंकिंग व्यवस्था, परिवहन-सेवाएँ, स्वास्थ्य-सेवाएँ, देश के लिए आवश्यक चीज-वस्तुओं का उत्पादन व उनका वितरण, ये सेवाएँ बिना भेदभाव के प्रदान करना होता है । इनके अलावा रोजगार के साधन भी सार्वजनिक साहसों के माध्यम से उपलब्ध कराये जाते हैं । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सामाजिक न्याय सार्वजनिक साहस के उद्भव का पाया है ।

प्रश्न 27.
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ यजमान राष्ट्रों का शोषण करते हुए भी उन्हें आमंत्रित किया जाता है ।
उत्तर :
बहुराष्ट्रीय कम्पनी का मुख्य कार्यालय किसी एक देश में होता है जो मुख्यत: विकसित तथा श्रीमंत देश में होता है । इसकी शाखाएँ अल्पविकसित तथा विकासशील देशों में होती हैं । बहुराष्ट्रीय कम्पनी द्वारा अल्पविकसित देशों में आधुनिक तकनीकी का उपयोग किया जाता है, लोगों को रोजगार का अवसर प्रदान करती हैं । नई चीज-वस्तुओं के उपयोग के अवसर द्वारा लोगों का जीवनस्तर ऊँचा लाने में सहायता करती है । इन सभी कारणों से बहुराष्ट्रीय कम्पनी द्वारा शोषण करने के बावजूद अल्पविकसित देश इसे धंधा करने के लिए आमंत्रित करती हैं ।

प्रश्न 28.
बहुराष्ट्रीय कम्पनी बहुमुखी (अनेकविध) है ।
उत्तर :
जिस कम्पनी का मुख्य कार्यालय किसी एक देश में हो तथा उसकी शाखाएँ अलग-अलग देशों में हों उसे बहुराष्ट्रीय कम्पनी कहते हैं । यह कम्पनी विभिन्न देशों के राजकीय, आर्थिक, सामाजिक एवं कानूनी नियमों को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग व्यापारिक व्यवस्था के स्वरूप तथा उसके प्रकार में परिवर्तन करते हुए उसका विकास करती है । बहुराष्ट्रीय कम्पनी का केन्द्रीय संचालन अर्थात् वस्तु के पेटन्ट, टेक्नोलॉजी, मालिकी इत्यादि का संचालन मुख्य केन्द्र द्वारा किया जाता है । कई बार बहुराष्ट्रीय कम्पनी ऐसी धन्धाकीय पॉलिसी अपनाने का प्रयत्न करती है जिसमें सम्पूर्ण विश्व एक प्रकार से कम्पनी अधीन संचालित हो । इन सभी कारणों से बहुराष्ट्रीय कम्पनी को बहुमुखी कम्पनी के रूप में जाना जाता है ।

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5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक दीजिए :

प्रश्न 1.
सार्वजनिक क्षेत्र अर्थात् क्या ? इनके लक्षण समझाइए ।
उत्तर :
सार्वजनिक क्षेत्र का अर्थ : जिन संस्थाओं की मालिकी, संचालन व नियंत्रण सरकार के अधिन हो तो उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र कहते हैं ।

लक्षण : सार्वजनिक क्षेत्र के लक्षण निम्न होते है :
(1) आधारभूत मूलभूत उद्योगों की स्थापना : सार्वजनिक साहसों को स्थापित करने का उद्देश्य औद्योगीकरण में तेजी लाकर आधारभूत सुविधाएँ प्रदान करना है । इस हेतु बृहद पैमाने में पूँजी निवेश करना अनिवार्य होता है । स्वतंत्रता के बाद अधिक पूँजी निवेश करना निजी उद्योगों के लिये कठिन था । मूलभूत उद्योगों में बृहद पैमाने में निवेश करना जरूरी होता है । सरकार ऐसे उद्योगों में निवेश करके औद्योगिक विकास में तेजी लाई जाती है ।

(2) एकाधिकार समाप्त करना : औद्योगिक इकाई की मालिकी जब सरकार की होती है, तब निजी क्षेत्रों का एकाधिकार समाप्त हो जाता है ।

(3) सन्तुलित प्रादेशिक औद्योगिक विकास : निजी क्षेत्र के निवेशक पिछड़े विस्तारों में पूँजी निवेश के लिए आकर्षित नहीं होते है, ऐसे पिछडे विस्तारों में सरकार पूँजी निवेश करके संतुलित प्रादेशिक औद्योगिक विकास किया जाता है । जैसे राउरकेला, भिलाई, बोकारो आदि जैसे औद्योगिक पिछड़े विस्तारों में सरकार ने लोहे के कारखाने में पूँजी निवेश करके औद्योगिक विकास किया है ।

(4) समाज कल्याण का हेतु : निजी क्षेत्रों का हेतु अधिक लाभ कमाना होता है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्रों का हेतु लाभ के साथसाथ समाज कल्याण का भी होता है । सार्वजनिक साहस की इकाईयों द्वारा समाज के सभी वर्गों को भेदभाव बिना सेवाएँ दी जाती है । सार्वजनिक साहसों द्वारा औद्योगीकरण में तेजी लाकर के समस्त समाज का कल्याण करती है ।

(5) आय का नीचा स्तर : सार्वजनिक क्षेत्रों द्वारा बहुत ही कम आय कमाकर अपनी सेवाएँ दी जाती है । कई बार तो प्रारम्भिक समय में तो सार्वजनिक साहस की इकाईया नुकसान करती है, फिर भी सरकार चला लेती थी, लेकिन सन् 1991 से इस नीति में परिवर्तन आया है व सार्वजनिक क्षेत्र में सामान्य आय प्राप्त करें यह इच्छनिय है ।

(6) राष्ट्र हित की सुरक्षा : सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयाँ राष्ट्रीय हितों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुए है + जैसे संरक्षण के क्षेत्र के साधनों का उत्पादन सरकार करती है ।

(7) रोजगार के अवसरों का निर्माण : भारत जैसे विकासशील व अधिक जनसंख्यावाले देशों में रोजगार के अवसरों का निर्माण बहुत ही अनिवार्य है । सार्वजनिक क्षेत्रों में बृहद पैमाने में पूँजी निवेश होने से आनुषांगिक अथवा सहायक इकाईयों का भी विकास होता है, जिसके परिणामस्वरूप रोजगार के अवसरों का निर्माण होता है ।

(8) देश के आर्थिक विकास में सहायक : किसी भी देश के लिए आर्थिक विकास बहुत ही जरूरी है । सार्वजनिक क्षेत्र उद्योगों के . लिए जरूरी आधारभूत सुविधाओं का निर्माण करते हैं । जिससे नये उद्योगों का विकास होता है ।

(9) सामाजिक व आर्थिक न्याय : सार्वजनिक क्षेत्रों का संचालन सरकार के अधिन होता है अतः सरकार की नीतियों का पालन अनिवार्य रूप से होता है । इसके द्वारा समाज के कमजोर वर्गों को बिना मूल्य पर अथवा उचित दर पर सेवा, नौकरी की सुरक्षा, नौकरी की शर्ते, श्रम कानून का पालन, महिलाओं को अग्रिमता इत्यादि मामलों में सार्वजनिक इकाईयों में सकारात्मक अभिगम अपनाया जाता है । इस तरह सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाएँ अधिक अच्छी तरह से सामाजिक न्याय प्रदान करती है ।

(10) आदर्श वेतन और सुविधाएँ : सार्वजनिक क्षेत्र की मालिकी सरकार की होने से इनके कर्मचारियों को उच्च वेतन स्तर अर्थात् मापदण्ड मिल सकते है । कर्मचारियों को निजी क्षेत्रों की अपेक्षाकृत अधिक अच्छी सुविधाएँ मिलती हैं । इस तरह, सरकार आदर्श मालिक बनने के लिए प्रयत्नशील रहती है ।

प्रश्न 2.
अन्तर समझाइए ।
अथवा
सार्वजनिक साहसों के तीनों स्वरूपों के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिये ।

(1) सरकारी कम्पनी तथा सार्वजनिक निगम :

अंतर के मुद्दे सरकारी कम्पनी (Govt. Company) सार्वजनिक निगम (Public Corporation)
1. अर्थ कम्पनी अधिनियम के अनुसार कम्पनी की स्थापना करके सार्वजनिक साहस की प्रवृत्ति करनेवाली इकाई को कम्पनी के रूप में पहचाना जाता है । जैसे : H.M.T. 1. संसद या विधान सभा में विशेष कानून प्रसारित करके सार्वजनिक हित के लिए स्थापित की गई संस्था को

सार्वजनिक निगम कहते हैं ।

जैसे – जीवन बीमा निगम ।

2. कानून 1956 के कम्पनी अधिनियम के अनुसार स्थापना होती है । 2. निगम की रचना के लिए विशेष कानून प्रसारित किया जाता है ।
3. सरकारी हस्तक्षेप सरकारी हस्तक्षेप का प्रमाण अधिक रहता है । 3. सरकारी कम्पनी की तुलना में सरकारी हस्तक्षेप का प्रमाण निगम में कम रहता है ।
4. स्वायत्तता निगम की तुलना में कम स्वायत्तता प्राप्त है । 4. निगम कानून की मर्यादा में रहकर संपूर्ण स्वायत्तता का उपयोग कर सकता है ।
5. पूँजी सरकारी कम्पनी में सरकार को अधिक पूंजी का विनियोग करना पड़ता है । 5. सरकारी कम्पनी की तुलना में कम पूंजी की आवश्यकता पड़ती है ।
6. वित्तीय व्यवस्था सरकारी कम्पनी में 51 प्रतिशत अंश पूंजी सरकारी रहती है । इसके उपरांत उधार पूंजी प्राप्त करने की स्वायत्तता प्राप्त रहती है । 6. संपूर्ण पूंजी-विनियोग सरकार का होता है । उधार पूंजी निजी रहती है ।
7. परिवर्तनशीलता आवेदन-पत्र तथा नियमन-पत्र में आवश्यक परिवर्तन किये जा सकते हैं । 7. निगम के संलग्न कानून में आवश्यक परिवर्तन किये जा सकते हैं ।
8. ब्यौरों की गुप्तता सरकारी कम्पनी में ब्यौरों की गुप्तता नहीं बनी रहती । 8. निगम आवश्यक बातों को निर्धारित समय तक गुप्त रख सकता है ।
9. अनुकूलता अंशत: निजी पूंजी तथा सरकारी पीठबल की जरूरतवाली इकाई के लिए यह स्वरुप उचित है । 9. बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए सार्वजनिक निगम का स्वरुप अधिक योग्य तथा अनुकूल रहता है ।

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(2) सरकारी विभाग तथा सरकारी कम्पनी :

अंतर के मुद्दे सरकारी विभाग (Govt. Dept.) सरकारी कम्पनी (Govt. Company)
1. अर्थ सरकार के अलग-अलग विभागों के द्वारा संचालित इकाइयों को सरकारी विभाग के रूप से पहचाना जाता है । 1. कम्पनी अधिनियम के अनुसार सरकार द्वारा कम्पनी की स्थापना करके संचालित किया जाए उसे सरकारी कम्पनी कहते हैं ।
2. कानून सरकारी तंत्र का एक हिस्सा माना जाता है । 2. अलग कानूनी व्यक्तित्व प्राप्त है ।
3. उदाहरण जैसे : संरक्षण विभाग, डाक-तार विभाग, रेलवे विभाग, हवाई उड्डयन विभाग इत्यादि । 3. जैसे : H.M.T., B.H.E.L., इन्डियन टेलीफोन इन्डस्ट्रीज ।
4. वित्तीय व्यवस्था सरकार के बजट के अनुसार आय प्राप्त करने तथा खर्च करने की व्यवस्था रहती है । 4. सरकार की 51 प्रतिशत पूंजी तथा उधार पूंजी प्राप्त करने की स्वायत्तता रहती है ।
5. उत्तरदायित्व किसी भी कार्य के लिए विभागीय प्रधान जवाबदार माने जाते हैं । 5. सरकारी कम्पनी में प्रधान जवाबदार नहीं होते । कम्पनी के अध्यक्ष जिम्मेदार होते हैं ।
6. अंकुश सरकारी विभाग में विभागीय मंत्री का सीधा अंकुश रहता है । 6. सरकारी कम्पनी में बोर्ड ऑफ डिरेक्टर्स या अध्यक्ष का सीधा अंकुश रहता है ।
7. आधार सरकार की नीति के अनुसार प्रवृत्ति होती है । 7. कम्पनी अधिनियम के अनुसार प्रवृत्ति होती है ।
8. कार्यक्षमता कार्य में विलंब होता है । 8. कार्य तेजी से होता है ।
9. परिवर्तन-शील कम परिवर्तनशील है । जड़ता अधिक है। 9. आवेदन-पत्र तथा नियमन-पत्र में आवश्यक परिवर्तन किया जा सकता है ।

(3) सरकारी विभाग तथा सार्वजनिक निगम :

अंतर के मुद्दे सरकारी विभाग (Govt. Dept.) सार्वजनिक निगम (Public Corporation)
1. स्थापना सरकार के प्रधान-मंडल द्वारा स्थापना की जाती है । 1. विधान सभा या संसद में विशेष कानून प्रसारित करके स्थापना की जाती है ।
2. कानून सरकारी विभाग को सरकारी तंत्र का एक हिस्सा माना जाता है । 2. सार्वजनिक निगम को कानूनन अलग व्यक्तित्व प्राप्त है ।
3. संचालन प्रधान द्वारा नियुक्त किये गये अधिकारियों के द्वारा संचालन होता है । 3. सरकार द्वारा नियुक्त अध्यक्ष तथा संचालक-मंडल के द्वारा संचालन होता है ।
4. परिवर्तन-शीलता सरकारी विभाग में जड़ता अधिक तथा परिवर्तन-शीलता कम रहती है । 4. सार्वजनिक निगम में कानून में परिवर्तन करके नीति में परिवर्तन किया जा सकता है ।
5. स्वायत्तता सरकारी विभाग में स्वायत्तता का संपूर्ण अभाव है । 5. निगम में प्रशासकीय तथा वित्तीय स्वायत्तता प्राप्त है । फिर भी कई बार सरकारी हस्तक्षेप दिखाई पड़ता है ।
6. वित्तीय व्यवस्था सरकारी बजट में किये गये प्रावधान के अनुसार पूंजी प्राप्त की जा सकती है तथा उसका उपयोग किया जा सकता है । 6. सरकार संपूर्ण पूंजी की पूर्ति करती है । उधार पूंजी प्राप्त करने की स्वतंत्रता तथा आय-खर्च-सम्बंधी संपूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है ।
7. कर्मचारी व्यवस्था सभी कर्मचारी सरकारी नौकर माने जाते हैं तथा सभी सरकारी नियम-कानून उन पर लागू होते हैं । 7. निगम में काम करनेवाले कर्मचारी सरकारी नौकर नहीं हैं । वे धन्धाकीय कर्मचारी माने जाते हैं ।
8. अंकुश सरकारी विभाग में विभागीय प्रधानों का असरकारक अंकुश रहता है । 8. विभागीय प्रधान का तथा संसद का दोहरा अंकुश रहता है ।
9. अनुकूलता सार्वजनिक उपयोगिता, सेवा तथा संरक्षण के साधन बनाने में अनुकूल माना जाता है । 9. सार्वजनिक निगम बड़े पैमाने की इकाईयों के लिए अधिक उचित माना जाता है ।

3. निजी साहस का अर्थ एवं इसके लक्षण समझाइए ।
उत्तर :
निजी क्षेत्र (Private Sector) का अर्थ : यदि धन्धे का संचालन किसी एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह द्वारा लाभ के उद्देश्य से किया जाये तो उन्हें निजी क्षेत्र कहा जाता है । इसमें व्यक्तिगत मालिकी, साझेदारी संस्था, संयुक्त हिन्दू परिवार, कम्पनी स्वरुप व सहकारी समिति आदि का समावेश होता है ।

लक्षण :
(1) सबसे प्राचीन स्वरूप : निजी क्षेत्र यह धन्धाकीय इकाईयों का सबसे प्राचीन स्वरूप है । धन्धाकीय प्रवृत्तियों का प्रारम्भ ही इन स्वरूप से ही हुआ था और आज भी निजीक्षेत्र अस्तित्व में है ।

(2) अर्थतंत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान : भारतीय अर्थतंत्र में सबसे बड़ा योगदान निजी क्षेत्र का है । निजीक्षेत्र के बिना अर्थतंत्र की कल्पना करना मुश्किल है ।

(3) आवश्यकतानुसार परिवर्तन : निजीक्षेत्र प्रारम्भ से ही परिवर्तनशील रहे है । समय व परिस्थितियों के अनुसार धन्धाकीय स्वरूप में परिवर्तन होते रहे है ।

(4) लाभ को प्राथमिकता और सामाजिक दायित्व को स्वीकार : निजी क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना भी होता है । लाभ के उद्देश्य के साथ साथ सामाजिक दायित्व का उद्देश्य भी निजी क्षेत्रों ने स्वीकार किया है । इसके उपरांत पर्यावरण रक्षण, महिला सशक्तीकरण, साक्षरता इत्यादि जैसे सामाजिक ख्याल भी निजी क्षेत्रों ने स्वीकार किया है । इस तरह, लाभ की प्राथमिकता देकर के सामाजिक दायित्व को भी स्वीकार किया है ।

(5) विश्व के समस्त देशों में अस्तित्व : निजीक्षेत्र एक अथवा दूसरे स्वरूप में विश्व के समस्त देशों में देखने को मिलते है । इसके लिये स्वरूप में विश्व के समस्त देशों में देखने को मिलते है । इसके लिये प्रत्येक देश में निश्चित रूप से अलग-अलग कानून हो सकते है लेकिन समस्त देशों ने निजीक्षेत्र का अस्तित्व स्वीकारा है ।

(6) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का समावेश : धन्धाकीय प्रवृत्तियाँ एक से अधिक देशों में करनेवाली धन्धाकीय इकाई को बहुराष्ट्रीय कम्पनी के रूप में पहचाना जाता है । 19वी शताब्दी में बहराष्ट्रीय कम्पनियों ने विश्व में वर्चस्व बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया था । बहत सी कम्पनियों ने एक से अधिक देशों में उत्पादन व विक्रय करना आरम्भ किया जिसके कारण समग्र विश्व के लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है ।

(7) रोजगार का सर्जन : समग्र विश्व में आज भी सबसे अधिक रोजगार के अवसर निजीक्षेत्र प्रदान करती है । आर्थिक प्रवृत्तियों के विकास के कारण अधिकांश लोगों को रोजगार मिलता है । जिससे लोगों की आय में वृद्धि होती है जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार होता है ।

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प्रश्न 4.
संयुक्त साहस का अर्थ एवं लक्षण समझाइये ।
उत्तर :
संयुक्त साहस (Joint Sector) का अर्थ : धन्धाकीय इकाईयाँ अपने परस्पर (अरसपरस) हितों के रक्षण हेतु जुड़े तो उन्हें संयुक्त साहस कहते हैं । इसमें जुड़नेवाली इकाईयों में निजी, सरकारी मालिकी की अथवा वैश्विक साहस हो सकते है ।

लक्षण : इसके निम्न लक्षण होते है :
(1) दोनों पक्षों के लाभदायक : संयुक्त साहस दोनों पक्षकारों के लिये लाभदायी होते है । वो उनकी विशेषताओं के कारण एकदूसरे . के पूरक सिद्ध होते है ।

(2) अधिक साधन सम्पत्ति और क्षमता : संयुक्त साहस में जब दोनों पक्षकार जुड़ते है तब दोनों पक्षकार अपनी साधन-सम्पत्ति और क्षमता का लाभ एकदूसरे को देते है । इस तरह दोनों पक्षकारों की संयुक्त साधन सम्पत्ति और क्षमता उनको अधिक उत्तम अवसर प्रदान करते है ।

(3) नई तकनिकी (टेक्नोलॉजी) : संयुक्त साहस द्वारा अधिक अच्छी टेक्नोलॉजी का आदान-प्रदान सम्भव बनता है । अधिक अच्छी टेक्नोलॉजी के कारण उच्च गुणवत्तावाली वस्तुओं का उत्पादन सम्भव बनता है । समय, शक्ति और टेक्नोलॉजी के उपयोग से कार्यक्षमता और असरकारकता में वृद्धि होती है ।

(4) नये बाजारों का विकास : एक देश में स्थित धन्धाकीय जब दूसरे देश की इकाई के साथ संयुक्त साहस द्वारा जडती है तब नये बाजारों का विकास करना सम्भव बनता है । उदाहरण के रूप में भारत की कम्पनी के साथ विदेशी कम्पनी संयुक्त साहस के रूप में संलग्न हो तो भारत के बाजार में प्रवेश का मार्ग विदेशी कम्पनी के लिए खुलता है । बहुत-सी कम्पनियाँ अपने देश के बाजार में अधिक से अधिक विक्रय करने के पश्चात् विदेशों के बाजार में संयुक्त साहस द्वारा प्रवेश करके उनका विकास निरन्तर चालु रखती है ।

(5) शोध-खोज : संयुक्त साहस द्वारा नये और सर्जनात्मक उत्पाद बाजार में रखे जाते है । विदेशी-साझेदार कई बार अपने नये विचार और उत्तम टेक्नोलॉजी का लाभ संयुक्त द्वारा प्रदान करते है ।

(6) नीची उत्पादन लागत : आधुनिक टेक्नोलॉजी के उपयोग के कारण और बृहद पैमाने पर उत्पादन के कारण उत्पाद की उत्पादन लागत नीची रहती है । नीची उत्पादन लागत के कारण विक्रय मूल्य कम (नीचा) रहता है जो कि उत्पादन की मांग में वृद्धि करता है ।

(7) इकाई की शान में वृद्धि : दो प्रथक धन्धाकीय इकाईयाँ संयुक्त साहस द्वारा जुड़ती है । इसमें दोनों धन्धाकीय इकाईयों अपनी अपनी शाख का लाभ संयुक्त साहस को मिलता है । कई बार संयुक्त साहस का एक साझेदार अपनी इकाई की शाख का उपयोग संयुक्त साहस को करने देते है । जैसे कि कोई विदेशी कम्पनी संयुक्त साहस के उनके भारतीय साझेदार को अपनी ब्रान्ड का उपयोग करने की अनुमति देते है ।

प्रश्न 5.
सार्वजनिक उपयोगिता से आप क्या समझते है ? इसके लक्षण पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
सार्वजनिक उपयोगिता (Public Utility) ऐसी इकाईयाँ जिसके द्वारा आवश्यक अनिवार्य सेवाएँ और सुविधाएँ कार्यक्षम रूप से बहुत ही कम खर्च पर प्रदान की जाये तो उन्हें सार्वजनिक इकाईयाँ कहते हैं ।

लक्षण :

  1. सेवा का उद्देश्य : सार्वजनिक उपयोगिता देनेवाली संस्थाओं का उद्देश्य सेवा देना होता है ।
  2. सतत सेवाएँ : सार्वजनिक उपयोगिता देनेवाली संस्थाओं द्वारा दी जानेवाली सेवाएँ सतत व नियमित प्रदान की जाती है ।
  3. एकाधिकार : सरकार के द्वारा ऐसी संस्थाओं को एकाधिकार दिया जाता है, जिससे स्पर्धा को रोका जा सके तथा व्यवस्थित रूप से सेवाएँ प्रदान कर सकें ।
  4. बिना-भेदभाव के सेवाएँ : ऐसी संस्थाओं के द्वारा जो सेवाएँ दी जाती है, वो बिना-भेदभाव के दी जाती है, जो न तो धर्म, .. जाति, सम्प्रदाय, अमीर व गरीब सभी वर्ग को सेवाएँ देती है ।
  5. आम जनता को नजदिक से सेवाएँ : सार्वजनिक उपयोगितावाली संस्थाओं की ओर से जो सेवाएँ दी जाती है वह आम जनता को जनता के नजदिक से ही सेवाएँ प्रदान करती है ।
  6. नियंत्रण : ऐसी इकाईयों पर सरकार का अर्थात् केन्द्र सरकार अथवा राज्य सरकार का नियंत्रण देखने को मिलता है ।।
  7. विविध सेवाएँ : सार्वजनिक उपयोगिता की इकाईयाँ जल आपूर्ति, विद्युत आपूर्ति, आवागमन के लिये वाहन, संदेशाव्यवहार, गैस, ड्रेनेज लाईन आदि प्राथमिक सुविधाएँ प्रदान की जाती है ।

प्रश्न 6.
‘सार्वजनिक-निजी साझेदारी यह समय की माँग के कारण उत्पन्न हुई व्यवस्था है ।’ समझाइए ।
उत्तर :
सार्वजनिक – निजी साझेदारी यह समय की मांग के उत्पन्न हुई व्यवस्था है । भारत सरकार ने 1991 से भारत में वैश्वीकरण को स्वीकार किया और असंख्य उत्पाद-सेवाएँ, जो अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में मिलनेवाली वस्तुएँ भारतीय बाजार में मिलने लगी, लेकिन इस हेतु आवश्यक ढाँचा तैयार करने के लिये बड़े पैमाने में निवेश की आवश्यकता पड़ने लगी । उदाहरण के रूप में हवाई सेवा के लिये एयरपोर्ट का विस्तृतीकरण और इससे सम्बन्धित अन्य सेवाएँ बहुत ही जरूरी है । नवीन और आधुनिक कार के लिये अच्छे रोड होना अति आवश्यक है । इस ढाँचे के विकास हेतु बृहद पैमाने में निवेश सरकार के लिये अल्पकाल में करना असम्भव था ।

निजी क्षेत्र ऐसे निवेश करने के लिये सक्षम थे । परन्तु स्थायी स्तर से ऐसे ढाँचे निजीक्षेत्रों को सौंपने से एकाधिकार के दूषण का प्रश्न था । इसलिये एक नवीन व्यवस्था स्वीकार्य हुई जिसके अनुसार सरकार ऐसे ढाँचे के लिये जमीन उपलब्ध कराये, विकास करने के लिये निवेश निजीक्षेत्र करे जिसके बदले में सरकार निजीक्षेत्र को निश्चित वर्ष की समयकाल के लिये उनकी ढाँचे के लाभार्थियों के पास से निर्धारित रकम फीस के रूप में वसूल ने का अधिकार देंगें । निर्धारित समयकाल पूर्ण हो तब तक ऐसे ढाँचे की सुरक्षा का कार्य भी निजीक्षेत्र को रखना पड़ेगा और उनके पश्चात् ऐसे ढाँचे निजी क्षेत्र सरकार को सौंप देंगे इनके पश्चात् इन ढाँचे की सुरक्षा का कार्य सरकार का रहेगा । उदाहरण के रूप में अहमदाबाद – बड़ौदा को जोड़ता एक्सप्रेस-वे ।

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6. निम्न संक्षिप्त रूपों के विस्तृत रूप लिखिए ।

1. W.T.O. = World Trade Organization
2. WHO = World Health Organization
3. HAL = Hindustan Aeronotics Limited
4. MNC = Multinational Company / Corporation
5. VRS = Voluntary Retirement Scheme
6. I.A.S. Indian Administrative Service
7. I.C.S. = Indian Civil Service
8. P.S.U. = Public Sector Unit
9. BEL = Bharat Electrical Limited
10. BHEL = Bharat Heavy Electrical Company Limited

11. H.M.T. = Hindustan Machine Tools Limited
12. IFC = Industrial Finance Corporation
13. AIC = Air India Corporation
14. IAC = Indian Airlines Corporation
15. ECI = Electronics Corporation of India
16. NTC = National Textile Corporation
17. LIC = Life Insurance Corporation of India
18. GIC = General Insurance Corporation
19. W.B. = World Bank
20. IMF = International Monetary Fund

21. NIDC = National Industrial Development Corporation
22. GMDC = Gujarat Minaral Development Corporation
23. TISCO = Tata Iron Steel Company Limited
24. HSL = Hindustan Steel Limited
25. TELCO = Tata Electro Locomotive Company
26. IAL = Indian Air Lines
27. SSNC = Sardar Sarovar Narmda Corporation
28. UNO United Nation and Organisation

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