GSEB Solutions Class 11 Psychology Chapter 10 चेतना की बदली हुई अवस्थाएँ

Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 11 Psychology Chapter 10 चेतना की बदली हुई अवस्थाएँ Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Psychology Chapter 10 चेतना की बदली हुई अवस्थाएँ

GSEB Class 11 Psychology चेतना की बदली हुई अवस्थाएँ Text Book Questions and Answers

स्वाध्याय
1. निम्न प्रश्नों में से योग्य विकल्प पसंद करके उत्तर लिजिये ।

प्रश्न 1.
मनोविज्ञान में चेतना का अभ्यास विषय के रूप में निषेध किसने किया ?
(अ) विल्हेम वुन्ट
(ब) जे. वी. वॉटसन
(क) विलियम जेम्स
(ड) डॉ. सिगमण्ड फ्राईड
उत्तर :
(ब) जे. वी. वॉटसन

प्रश्न 2.
ASC शब्द का प्रथम उपयोग किसने किया ?
(अ) आर्नोल्ड लुडविग
(ब) चाल्सटार्ट
(क) स्कीनर
(ड) विलियम जेम्स
उत्तर :
(अ) आर्नोल्ड लुडविग

प्रश्न 3.
स्वप्न निंद का कौन-सा सोपान है ?
(अ) N1
(ब) N2
(क) N3
(ड) REM
उत्तर :
(ड) REM

प्रश्न 4.
मस्तिष्क के बाँये गोलार्ध के सक्रिय होने पर कौन-सी तरंगें दिखाई देती है ?
(अ) अल्फा
(ब) बीटा
(क) थीटा
(ड) डेल्टा
उत्तर :
(ब) बीटा

प्रश्न 5.
निन्द्राभ्रमण निंद के किस सोपान में दिखाई देता है ?
(अ) N1
(ब) N2
(क) N3
(ड) REM
उत्तर :
(क) N3

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प्रश्न 6.
भाँग किस प्रकार की औषधि है ?
(अ) खिन्नताप्रेरक
(ब) उत्तेजक
(क) चित्तभ्रमक
(ड) मनोपचारक
उत्तर :
(क) चित्तभ्रमक

प्रश्न 7.
अचेतन संस्कारों का समूह भारतीय मनोविज्ञान के अनुसार किस भाग में संग्रहित है ?
(अ) स्थूल शरीर
(ब) सूक्ष्म शरीर
(क) कारण शरीर
(ड) आत्मा
उत्तर :
(क) कारण शरीर

प्रश्न 8.
भावतीत के ध्यान प्रणेता कौन है ?
(अ) महर्षि पतंजली
(ब) महर्षि महेश योगी
(क) रमण महर्षि
(ड) महर्षि अरविंद
उत्तर :
(ब) महर्षि महेश योगी

प्रश्न 9.
भारतीय परम्परा में आत्मसाक्षात्कार के कितने मार्ग है ?
(अ) दो
(ब) तीन
(क) चार
(ड) आठ
उत्तर :
(क) चार

प्रश्न 10.
हिन्दु धर्म अनुसार मानव व्यक्तित्व कितने तत्त्वों से बना है ?
(अ) तीन
(ब) दो
(क) चार
(ड) उन्नीस
उत्तर :
(ब) दो

प्रश्न 11.
मन की पहचान किस रूप में है ?
(अ) आत्मा
(ब) कारणशरीर
(क) सूक्ष्म शरीर
(ड) स्थूल शरीर
उत्तर :
(क) सूक्ष्म शरीर

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प्रश्न 12.
भारतीय मनोविज्ञान के अनुसार चेतना की कितनी अवस्थाएँ हैं ?
(अ) दो
(ब) चार
(क) पांच
(ड) आठ
उत्तर :
(ब) चार

प्रश्न 13.
किस द्रव्य को लेने के बाद एक दो मिनिट में तरावट, सुख एवं आनंद का अनुभव होता है ?
(अ) हेरोईन
(ब) शराब
(क) तम्बाकू
(ड) चरस
उत्तर :
(अ) हेरोईन

प्रश्न 14.
कितने प्रतिशत शराब मृत्यु का कारण बन सकती है ?
(अ) 0.2%
(ब) 0.1%
(क) 0.4%
(ड) 0.0%
उत्तर :
(क) 0.4%

प्रश्न 15.
स्वप्न को अचेतन मन तक पहुँचने का राजमार्ग किसने कहा ?
(अ) पतंजली
(ब) डॉ. फ्राईड
(क) वॉटसन
(ड) मेस्लो
उत्तर :
(ब) डॉ. फ्राईड

प्रश्न 16.
जाग्रत अवस्था में मस्तिष्क के तरंगों की गति 1 सेकेन्ड में कितनी होती है ?
(अ) 5 से 8 तरंगें
(ब) 8 से 13 तरंगें
(क) 13 से 16 तरंगें
(ड) 16 से 20 तरंगें
उत्तर :
(ब) 8 से 13 तरंगें

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प्रश्न 17.
पतंजली मुनि प्रणित के योग के कितने अंग है ?
(अ) तीन
(ब) पांच
(क) आठ
(ड) दस
उत्तर :
(क) आठ

प्रश्न 18.
किस क्रिया में पूरक एवं रेचक की क्रिया होती है ?
(अ) ध्यान
(ब) योग
(क) श्वसन
(ड) निंद
उत्तर :
(क) श्वसन

प्रश्न 19.
मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य क्या है ?
(अ) ईश्वर की प्राप्ति
(ब) आत्मा
(क) आत्म साक्षात्कार
(ड) मृत्यु
उत्तर :
(क) आत्म साक्षात्कार

प्रश्न 20.
विविध द्रव्यों एवं मनोऔषधियों के सेवन गंभीर प्रभाव किस पर पड़ता है ?
(अ) हृदय
(ब) मन
(क) मस्तिष्क एवं चेतातंत्र
(ड) आत्मा
उत्तर :
(क) मस्तिष्क एवं चेतातंत्र

2. निम्न प्रश्नों के एक वाक्य में उत्तर लिखिये ।

प्रश्न 1.
चेतना की परिभाषा लिजिये ।
उत्तर :
‘चेतना अर्थात् बाह्य उद्दीपक तथा आंतरिक प्रक्रियाओं के विषय में व्यक्ति की सभानता ।’

प्रश्न 2.
चेतना की बदली हुई अवस्था क्या है ?
उत्तर :
सामान्य जाग्रत अवस्था से विशिष्ट रीति से अलग एवं कामचलाऊ चेतना की अवस्था को चेतना की बदली हुई अवस्था (ASC) के रूप में जानी जाती है ।

प्रश्न 3.
‘मन में है परन्तु जुबान पर नहीं आ रहा है’ यह चेतना की कौन-सी अवस्था है ?
उत्तर :
उपरोक्त अवस्था चेतना की पूर्व सभान अवस्था को सूचित करती है ।

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प्रश्न 4.
स्वप्न को किस प्रकार की निंद्रा कहते हैं ?
उत्तर :
निंद्रा का चतुर्थ सोपान R.E.M. स्वप्न अवस्था को सूचित करता है ।

प्रश्न 5.
मंद तरंग निंद्रा कब देखने को मिलती है ?
उत्तर :
निंद्रा की गहनता का तीसरा सोपान ‘मंद तरंग निंद्रा (Slow wave sleep – S.w.s.) के रूप में जाना जाता है ।

प्रश्न 6.
निंद्रा प्रलाप एवं निंद्राभ्रमण निंद के किस सोपान में दिखाई देती है ?
उत्तर :
निंद के गहनता के तीसरे सोपान में निंद्राप्रलाप एवं निंद्राभ्रमण दिखाई देती है ।

प्रश्न 7.
L.S.D. का पूरा नाम बताईये ।
उत्तर :
(Lysergenic Acid Diethylamide) एक चित्तभ्रमक औषधि है ।

प्रश्न 8.
अष्टांग योग के बाह्य अंगों के नाम क्या हैं ?
उत्तर :
यम, नियम, आसन, प्राणायाम एवं प्रत्याहार अष्टांग योग के बाह्य अंग हैं ।

प्रश्न 9.
अष्टांग योग के प्रणेता कौन है ?
उत्तर :
महर्षि पतंजलि मुनि प्रणित अष्टांग योग के प्रणेता हैं ।

प्रश्न 10.
सूक्ष्म शरीर किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिसे हम ‘मन’ के रूप में पहचानते हैं वही सूक्ष्म शरीर है ।

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प्रश्न 11.
मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला की स्थापना किसने कब एवं कहाँ स्थापित की ?
उत्तर :
मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला की स्थापना 1879 में विल्हेम वुन्ट ने जर्मनी के लिपजिंग युनिवर्सिटी में की ।

प्रश्न 12.
मनोविज्ञान को एक वर्तनात्मक (व्यवहारिक) विज्ञान के रूप में किसने स्थापित किया ?
उत्तर :
1913 में वॉटसन एवं स्कीनर ने मनोविज्ञान को एक व्यवहारिक विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया ।

प्रश्न 13.
सर्वप्रथम मनोविज्ञान में अचेतन मन का विचार किसने दिया ?
उत्तर :
डॉ. सिग्मंड फ्राईड ने मनोविज्ञान में अचेतन मन का विचार प्रस्तुत किया ।

प्रश्न 14.
निंद्रा के डेल्टा तरंगें किसे कहते हैं ?
उत्तर :
निंद्रा की महत्तम गहनता के दौरान मस्तिष्क की तरंगें सबसे धीमे (मंद) होती है उसे डेल्टा तरंगें कहते हैं ।

प्रश्न 15.
योग के अतरंग अंग कौन-कौन से है ?
उत्तर :
ध्यान, धारणा, समाधि ये अष्टांग योग के अतरंग अंग (चरण) हैं ।

प्रश्न 16.
हेरोईन नशीला द्रव्य कैसे बनता है ?
उत्तर :
अफीम के बीज के रेसे से मोर्फीन बनता है और उसमें से नशीले पदार्थ के रूप में हेरोईन बनता है ।

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प्रश्न 17.
मस्तिष्क के बाँये गोलार्द्ध के अतिशय सक्रिय होने से कौन-सी तरंगें दिखाई देती है ?
उत्तर :
मस्तिष्क के बाँये गोलार्द्ध की विशेष सक्रियता से ‘बीटा’ तरंगें दिखाई देती हैं ।

प्रश्न 18.
भावातीत ध्यान की प्रक्रिया क्या है ?
उत्तर :
भावातीत ध्यान एक महर्षि महेश योगी प्रणित ध्यान की एक वैज्ञानिक पद्धति है ।

प्रश्न 19.
मनोऔषधियों को कौन से विभागों में बाँटा गया है ?
उत्तर :
मनोऔषधियों को निम्न तीन विभागों में बाँटा गया है :

  1. खिन्नताप्रेरक औषधि,
  2. उत्तेजक औषधि,
  3. चित्तभ्रामक औषधि ।

प्रश्न 20.
हिन्दु धर्म अनुसार मानव व्यक्तित्व कौन से तत्त्वों का बना हुआ है ?
उत्तर :
हिन्दु धर्म अनुसार मानव व्यक्तित्व दो तत्त्वों से बना है :

  1. शरीर,
  2. आत्मा ।

प्रश्न 21.
भारतीय मनोविज्ञान के अनुसार चेतना की कौन-सी अवस्थाएँ हैं ?
उत्तर :
भारतीय मनोविज्ञान के आधार पर चेतना की निम्न चार अवस्थाएँ हैं :

  1. जाग्रत
  2. स्वप्न
  3. सुषुप्ति
  4. तुरीप ।

3. निम्न प्रश्नों के दो-तीन वाक्यों में उत्तर दीजिये ।

प्रश्न 1.
मनोविज्ञान में ‘चेतना’ का अभ्यास विषय के रूप में पुन: प्रवेश कब एवं क्यों हुआ ?
उत्तर :
20मी सदी जब चिन्ता का युग बन गयी तीव्र मनोभार, हताशा, अर्धशून्यता से लोगों को बाहर लाने की आवश्यकता पड़ गई तब मनोवैज्ञानिकों ने चेतना की बदली अवस्था (ASC) का अध्ययन विषय के रूप में पुनः प्रवेश किया ।

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प्रश्न 2.
स्व का सातत्य क्या है ?
उत्तर :
स्व की पहचान एवं ‘स्व के सातत्य के लिए आवश्यक साक्षीरूप चेतना हमारे सब सेचतन, अचेतन, बिनचेतन या निम्न चेतन (आदतन क्रियाएँ) क्रियाओं एवं व्यवहार का नियंत्रण करती है ।

प्रश्न 3.
अपने आप होनेवाली ड्राईविंग चेतना की किस अवस्था को दर्शाती है एवं क्यों ?
उत्तर :
अपने आप होनेवाली ड्राईविंग की क्रिया चेतना की निम्न सभान अवस्था है क्योंकि इस अवस्था में व्यक्ति न तो सम्पूर्ण सभान (चेतन) होता है न सम्पूर्ण अचेतन होता है ।

प्रश्न 4.
चेतना की बदली हुई अवस्था विभाजित चेतना की अवस्था क्यों है ? ।
उत्तर :
चेतना की बदली हुई अवस्था विभाजित चेतना की अवस्था नहीं है । यह चेतना की सामान्य एक रूपांतरित अवस्था है । विभाजित चेतना में व्यक्ति की पहचान एवं सातत्य ही बदल जाता है जबकि चेतना की बदली हुई अवस्था में व्यक्ति की पहचान एवं सातत्य वही रहता है ।

प्रश्न 5.
R.E.M. निंद्रा को विरोधाभासी निंद्रा क्यों कहते हैं ?
उत्तर :
R.E.M. निंद्रा स्वप्नावस्था को सूचित करती है । यह निंद्रा NERM निंद्रा जितनी गहन नहीं होती है परंतु स्वप्न के कारण व्यक्ति को इस सोपान से जगाना कठिन होता है । इसलिए REM निंद्रा को विरोधाभासी निंद्रा कहते हैं ।

प्रश्न 6.
निंद्रा के वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए ई.ई.जी. तथा REM पद्धति को समझाईये ।
उत्तर :
निंद्रा के विषय में वैज्ञानिक संशोधन EE.G. तथा REM के द्वारा किये गये ईलेक्ट्रो ऐन्सीफेलोग्राफ नाम के साधन के द्वारा मस्तिष्क में चलती बीजरसायनिक प्रक्रियाओं की नोट आलेख स्वरूप में प्राप्त किया जा सकता है । इसे संक्षिप्त में ई.ई.जी. कहते हैं । ई.ई.जी. एवं REM संशोधनों के आधार पर निंद्रा के सोपानों का प्रमाणीकरण किया गया है ।

प्रश्न 7.
अल्फा, बीटा, डेल्टा तथा थीटा तरंगों के बीच के अन्तर को स्पष्ट कीजिये ।
उत्तर :
जाग्रत अवस्था में EEG के द्वारा नोट किये गये मस्तिष्क की तरंगें 1 सेकेन्ड में 8 से 13 आल्फा तरंगों के रूप में पहचाने जाते है ।

निंद्रा की गहनता के तीसरे सोपान में (N3) निंद के महत्तम गहनता के तीसरे सोपान में मस्तिष्क की तरंगें सबसे धीमी डेल्टा तरंगों के रूप में पहचाने जाते हैं ।

मस्तिष्क के बाये गोलार्द्ध के सक्रिय होने से बीटा तरंगें देखने को मिलते हैं । आल्फा तरंगों की आराम की अवस्था या ध्यानावस्था तथा थीटा एवं डेल्टा तरंगों की अवस्था को सूचित करते है ।

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प्रश्न 8.
उत्तेजक एवं खिन्नताप्रेरक औषधि के बीच अन्तर को स्पष्ट कीजिये ।
उत्तर :
जिन औषधियों के सेवन से उदासीनता, शुष्कता, निष्क्रियता एवं शिथिलता उत्पन्न होती है उन्हें ‘खिन्नताप्रेरक’ औषधि जैसे ‘शराब’ एवं ‘अफीम’ को पहचाना जाता है ।

जिस औषधि के सेवन से व्यक्ति में तुरंत तत्परता एवं उत्तेजना बढ़ती है उसे ‘उत्तेजक औषधि’ कहते हैं जैसे :- ‘एम्फेटेमाईन्स’ एवं कोकेईन ।

प्रश्न 9.
भारतीय मनोविज्ञान के अनुसार ‘शरीर’ के विषय में ख्यालों को स्पष्ट कीजिये ।
उत्तर :
व्यक्तित्व का जंडाश जिसे शरीर कहते हैं । इसके तीन प्रकार है :
(i) स्थूल शरीर,
(ii) सूक्ष्म शरीर एवं
(iii) कारण शरीर ।

स्थूल शरीर माता-पिता द्वारा प्राप्त भौतिक शरीर है । उपनिषद की भाषा में उसे ‘अन्नमय कोष’ कहते हैं । जिसे ‘मन’ के रूप में पहचानते हैं वह ‘सूक्ष्म शरीर’ है । ‘कारण शरीर’ इस जन्म एवं पूर्वजन्म के अचेतन संस्कारों का समूह है ।

प्रश्न 10.
मांडुक्य उपनिषद में वर्णित चेतना की अवस्थाओं को स्पष्ट कीजिये ।
उत्तर :
मांडुक्य उपनिषद के अनुसार चेतना की जाग्रत अवस्था सूक्ष्म शरीर के साथ तादात्म्य साधती है । तब स्वप्नावस्था कारण शरीर के साथ गहन स्वप्नविहीन निन्द्रा में हो तब तादात्म्य साधती है तब उसे सुषुप्ति अवस्था के रूप में जाना जाता है और जब आत्मा इन तीनों शरीर से अलग अपनी मूल सत्ता के रूप में होती है तब उसे तुटीय अवस्था कहते हैं । इस तरह चेतना की चार अवस्थाएँ (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्त एवं तुरीय) का वर्णन किया गया है ।

प्रश्न 11.
अष्टांग योग के अंगों का नाम लिजिये ।
उत्तर :
महर्षि पतंजलि द्वारा प्रस्तुत योग के अंगों को दो भागों में बाँटा गया है :
(i) बहिरअंग एवं
(ii) अतरंग अंग

(i) बहिरअंग के सोपान : यम, नियम, आसन, प्राणायाम एवं प्रत्याहार ।
(ii) अतरंग अंग : धारणा, ध्यान, समाधि हैं ।

प्रश्न 12.
हिन्दु धर्मानुसार मानव व्यक्तित्व के तत्त्व ।
उत्तर :
उपरोक्त अनुसार मानव व्यक्तित्व के मुख्य दो तत्त्व है :
(i) शरीर
(ii) आत्मा

शरीर जड़, भौतिक एवं द्रव्यात्मक अंश से बना है जबकि आत्मा अभौतिक एवं चेतना द्वारा बना है । शरीर के तीन प्रकार हैं :
(i) स्थूल शरीर
(ii) सूक्ष्म शरीर एवं कारण शरीर । आत्मा सत्य, चित्त एवं आनन्द अर्थात् नित्य, चैतन्य एवं आनंद स्वरूप है, जो हमारी स्व पहचान एवं तथा सातत्य के लिए जिम्मेदार है ।

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प्रश्न 13.
भारतीय चिंतन परम्परा अनुसार आत्मसाक्षात्कार के मार्ग स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
आत्मसाक्षात्कार के निम्न चार मार्ग हैं :

  1. ज्ञानयोग – शरीर आत्मा का भेद का ज्ञान जानना ।
  2. भक्तियोग – परमात्मा की शरण में आधीन होकर जीना ।
  3. कर्मयोग – अहम भाव या पहचान के साथ नहीं परन्तु आत्मा की पहचान से निष्काम कर्म करना ।
  4. राजयोग – पतंजलि द्वारा निर्देशित अष्टांग योग सिद्ध करना ।

4. संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये ।

1. निंद्राप्रलाप एवं निंद्राभ्रमण :
उत्तर :
निंद्रा के दौरान अचेतन अवस्था में व्यक्ति बोलने लगता है वह निंद्राप्रलाप एवं अचेतन अवस्था में चलने लगता है तो उसे निंद्राभ्रमण कहते हैं । प्रयोगशाला प्रयोग में 13-प्रयोगपात्रों पर निंद्रा दौरान कुल 206 निंद्रा प्रलाप नोट किये गये थे, जिसमें 75-80% प्रत्लाप NREM निंद्रा के दौरान 20-25% प्रलाप REM निंद्रा के दौरान देखे गये थे । निंद्राभ्रमण में कुछ अंशों में NREM निंद्रा के दौरान याने निंद्रा की गहनता के दौरान विशेषकर निंद्रा की गहनता के तीसरे सोपान में दिखायी देते है ।

2. चेतना एक नियंत्रक के रूप में :
उत्तर :
विलियम जेम्स के अनुसार चेतना व्यक्ति की सभी शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं का नियंत्रण करती है । शरीर की कुछ क्रियाओं पर ऐच्छिक नियंत्रण सम्पूर्ण नियंत्रण, कुछ क्रियाओं पर आंशिक नियंत्रण तो कितनी ही क्रियाओं पर बिलकुल नियंत्रण नहीं होता है । जिससे हम सम्पूर्ण सचेत हैं उन पर ऐच्छिक नियंत्रण दिखाई देता है । उदा. हाथ-पैर का नियंत्रण सचित रूप से होता है । हमारा अनैच्छिक नियंत्रण उदा. हृदय की धडकन कुछ क्रियाओं से बिलकुल अचेतन होते हैं शरीर के अनैच्छिक कार्य उदा. किडनी का कार्य ।

इस तरह ऐच्छिक चेतन, अनैच्छिक चेतन तथा अनैच्छिक अचेतन की तमाम शारीरिक क्रियाओं की नियंत्रक की भूमिका चेतना की दिखाई देती है । मात्र शारीरिक नहीं मानसिक क्रियाओं पर भी चेतना का नियंत्रण होता है । हमारी आदत अनुसार क्रियाएँ उदा. नाहना, धोना, ब्रुस करना, गाड़ी चलाना आदि का संचालन का कार्य भी चेतना करती है, जो क्रियाएँ मानो अपने आप होती रहती है ।

इसके अलावा अचेतन मन पर आधारित मानवीय व्यवहार स्वप्न, बचावप्रयुक्तियाँ, विक्रत व्यवहार पर भी आयोजन एवं सुग्रथन होता है जिसमें चेतना की नियंत्रक की भूमिका स्पष्ट दिखाई देती है ।

3. उत्तेजक औषधियाँ :
उत्तर :
जिस औषधि के लेने से व्यक्ति में तुरंत ही तत्परता एवं उत्तेजना बढ़ती है उसे उत्तेजक औषधि कहते हैं । इसके सेवन से व्यक्ति में सजगता, तत्परता एवं सक्रियता बढ़ती है । थकान एवं बोरीयन दूर होती है । इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है ।
(i) एम्फेटेमाईन्स एवं
(ii) कोकेईन ।

(i) ऐम्फेटेमाईन्स : यह शक्तिप्रद एवं उत्तेजक रसायनसमूह है, जो मेथेड्राईन, डेक्सेड्राईन तथा बेन्जेड्राईन के नाम से पहचाने जाते है । परिश्रमी एवं खतरोंवाले कार्य करने के लिए ऐम्फेटेमाईन्स उत्तम औषधि है । बालकों को सक्रिय बनाने एवं वजन कम करने तथा भूख कम करने के लिए चिकित्सक इसी दवा का उपयोग करते है । रात्रि के समय ड्राईविंग मलेट्री के कार्य में तथा लम्बे समय तक कार्य करने के लिए सही प्रमाण में एवं मार्गदर्शन के अनुरूप एम्फेटेमाईन्स लिया जा सकता है । अधिक मात्रा में लेने से आधीनता एवं अन्य नुकसानकारक हो सकती है । इसके अति सेवन से अकारण शंकाशील हिंसक व्यवहार तथा स्वयं के विषय में षडयंत्र होने के चित्तभ्रम उत्पन्न होते है ।

(ii) कोकेईन : यह भी उत्तेजक औषधि है जिससे व्यक्ति में उत्साह, उत्तेजना एवं सक्रियता बढ़ती है । फ्राईड के अनुसार इस द्रव्य
से व्यक्ति में उत्साह एवं स्व नियंत्रण होता है । अधिक मात्रा में लेने से आधीनता, व्यसन एवं हृदय की धड़कन में बढ़ौतरी, भूख एवं संवेदन पर प्रभाव पड़ता है तथा बेचैनी तथा विभ्रम उत्पन्न होते हैं ।

4. भावातीत ध्यान :
उत्तर :
20मी सदी में जब मनुष्य जीवन में अर्धशून्यता का अनुभव करने लगा, पश्चिम देशों में युवक जीवन की शांति के लिए योग एवं ध्यान की ओर जाने लगे तब पश्चिम देशों पर आधारित महर्षि महेश योगी प्राणित ‘भावातीत ध्यान’ परम्परा प्रचलित हो गयी । इस पर 50 वर्ष में 50 लाख लोगों ने ध्यान की तालीम प्राप्त की । इस पर बहुत वैज्ञानिक अध्ययन भी हुए हैं । इस ध्यान के कारण लोगों के बोधात्मक, मनोवैज्ञानिक एवं व्यवहारिक आंतरिक शारीरिक प्रक्रियाओं से व्यापक रूप से सामाजिक जीवन पर प्रभाव पड़े हैं । इसके विषय में 30 देशों के 250 युनिवर्सिटी में 600 से अधिक वैज्ञानिक अध्ययन किये गये । लोगों के स्वास्थ्य में सुधार सर्जन, स्मृति, निर्णयशक्ति एवं समस्या समाधान की शक्ति में विधायक प्रभाव देखा गया । इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक रूप से महत्त्वपूर्ण माना गया है ।

इसके निम्न मुख्य नियम इस प्रकार हैं :

  1. शांत चित्त से आँखें बंद करके बैठना
  2. स्नायु को शिथिल करके पैर के अंगूठे से चेहरा तक शिथिलता
  3. नाक से (प्राणायाम) श्वसन क्रिया (पूरक एवं रेचक)
  4. एकाग्रता लाना
  5. प्रातः एवं संध्या के समय दो बार प्रयोग करना । उपरोक्त प्रक्रिया से शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता एवं शांति प्राप्त होती है ।

5. चित्तभ्रामक औषधियाँ :
उत्तर :
जिन औषधियों के द्वारा चित्तभ्रम एवं विभ्राम एवं मनोविकृति के लक्षण उत्पन्न होते हैं उन्हें चित्तभ्रामक औषधि कहते हैं । खिन्नता के मरीजों को उत्तेजक एवं उन्मत्तता (Mania) के मरीजों को शामक औषधि देकर इन औषधियों को मनोपचार औषध के रूप में पहचाना जाता है । चित्तभ्रामक अथवा मनोविकृति के लक्षण की औषधि के दो मुख्य प्रकार है :
(i) एल.एस.डी. एवं भांग ।

(A) L.S.D. (Lysergenic Acid Diethylamide) : इसके सेवन से विविध प्रकार की आवाज एवं रंगों का विभ्रम होता है । व्यक्ति
में जड़ता एवं छिन्न-मानस के लक्षण उत्पन्न होते हैं । व्यक्ति हकीकत से दूर जाकर स्व नियंत्रण खोता है । वह विचलित व्यवहार एवं अबौद्धिक बनकर कभी ऊँचाई से कूदकर आत्मघाती बन जाता है । यह औषधि विभ्रम-चित्तभ्रम, अबौद्धिक आदि के विकृत लक्षण उत्पन्न करती है।

(B) भाँग (Marijuana) : यह औषधि चित्तभ्रमक एवं मनोविकृति के लक्षणजन्य है । टार्ट नामके मनोवैज्ञानिक ने (1970) में उपरोक्त
औषधि के व्यसनियों पर अध्ययन किया था । उन्होंने प्रयोग के आधार पर बताया है कि भांग के व्यसन के लोगों को स्थल एवं समय का ध्यान नहीं रहता है । उनके संवेदन एवं प्रत्यक्षीकरण में विक्षेप उत्पन्न होते हैं । इस संशोधन के आधार पर व्यसनी व्यक्ति शरीर से मुक्त महसूस करता है । 30 से 70 मिलिग्राम भांग चित्तभ्रम उत्पन्न करती है । उपरोक्त औषधि से व्यक्ति स्वनियंत्रण खोकर मस्तिष्क एवं चेतातंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ता है तथा व्यक्ति रसायनिक आधारित बनकर चेतनता खो देता है ।

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5. निम्नलिखित प्रश्नों को सविस्तृत रूप से समझाइये ।

प्रश्न 1.
चेतना की परिभाषा लिखकर उसकी स्पष्टता कीजिये ।
उत्तर :
चेतना : परिभाषा – ‘व्यक्ति की अपने संवेदनों, प्रत्यक्षीकरणों, विचारों तथा भावनाओं के प्रति सचेत होना (जाग्रत रहना ।)’

चेतना एक सभानता (सचेतना) है । बाह्य पर्यावरण एवं आंतरिक घटनाओं के प्रति सजगता (जाग्रतता) ही चेतना है । हम पाँच ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा विविध उद्दीपकों के संवेदन का अनुभव करते हैं । उनके भेद एवं प्रत्यक्षीकरण के द्वारा रंग, रूप, आकार, उज्ज्वलता एवं चमचमाहट का अनुभव करते हैं । श्रवण प्रत्यक्षीकरण के द्वारा स्त्री, पुरुष एवं बंशी, ड्रम के आवाजों की पहचान करते हैं । इसी तरह सुगंध, स्वाद, स्पर्श को भी पहचान जाते हैं । यही हमारी जाग्रतता एवं सजगता है जिसे चेतना कहते हैं । बाह्य पर्यावरण के अतिरिक्त आंतरिक मनोविश्व से भी सचेत रहते हैं । अपने विचारों, भावनाओं, आवेगों, प्रेरणाओं, आदर्शों से भी जाग्रत रहते हैं । अपनी पसंद-नापसंद आसक्ति, आकर्षण, क्रोध, वैर-भाव, सद्भावना एवं दुर्भावना जैसे भावात्मक बाबतों से भी कई बार सचेत रहते हैं । इस तरह आंतरिक विषयों के प्रति जाग्रतता भी चेतना है । अपनी आंतरिक बाबतों के दृष्टा के रूप में चेतना के सामर्थ्य के कारण ही मनुष्य चेतना का ‘अहम प्रकाशक’ (Self reflexive) कहलाता है । प्राणियों में यह ‘अहम प्रकाश’ की चेतना नहीं होती है ।

संक्षिप्त यह उल्लेखनीय है कि कभी किसी अवस्था में हम कोई बाह्य की आंतरिक विश्व से सचेत या जाग्रत नहीं होते हुए भी हम है । ‘इस होने’ की सचेतता भी चेतना की द्योतक है ।

प्रश्न 2.
चेतना की विविध अवस्थाओं का वर्णन कीजिये ।
उत्तर :
चेतना की मुख्य निम्नलिखित अवस्थाएँ हैं :
(1) चेतन अवस्था
(2) बिनचेतन अवस्था
(3) पूर्व चेतन अवस्था
(4) निम्न चेतन अवस्था
(5) अचेतन अवस्था । इनका परिचय प्राप्त करते हैं ।

(1) चेतन अवस्था : जाग्रत अवस्था में चेतनतापूर्वक होनेवाले हेतुपूर्वक के व्यवहार चेतना की चेतन अवस्था है । चेतना की पसंदयुक्त प्रवृत्तियाँ जिसे मनोविज्ञान में ध्यान के रूप में पहचाना जाता है ये सभी चेतना की चेतन अवस्था को सूचित करते हैं । पर्यावरण में रहे हुए अनेक उद्दीपकों से पसंद किये गये उद्दीपक का संदेश ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुँचकर उस उद्दीपक का चेतन प्रत्यक्षीकरण होता है । पर्यावरण में अनेक आवाजों में से जिसके प्रति हम ध्यान देते है उसके प्रत्यक्षीकरण से हमें श्रवण प्रत्यक्षीकरण होता है । इस तरह प्रत्यक्षीकरण की पूर्वशर्त ध्यान देना है तथा पसंदगीयुक्त प्रवृत्ति भी है । उदा. खाना, पीना, बोलना, चलना, दौड़ना, सुनना आदि जो व्यवहार हम जाग्रत अवस्था में इच्छानुसार करते है वो सब चेतना की चेतन अवस्था को सूचित करते है । चेतन अवस्था की चरमसीमा का अनुभव हम आपत्तिकालीन परिस्थिति में करते हैं ।

(2) बिन चेतन अवस्था : इस अवस्था में लगातार सक्रिय होने के बावजूद भी हम चेतन नहीं होते है यह चेतना की बिन चेतन अवस्था है ।
उदा. शरीर में हार्मोनन के स्राव में परिवर्तन, खून में शक्कर के प्रमाण में कम-ज्यादा होना कंठ ग्रंथि से झरनेवाले थाईरोक्सीन के प्रमाण के कम-ज्यादा से रक्तचाप का कम-ज्यादा होना । ये सब आंतरिक शारीरिक प्रक्रियाएँ लगातार चलती रहती है फिर भी हम उससे सचेत नहीं होते है । संक्षिप्त में आंतरिक शारीरिक प्रक्रियाएँ निरन्तर चलती रहती हैं जिनके प्रभाव के सिवाय व्यक्ति उससे सचेत नहीं होता है । ये सब बिन चेतन अवस्था है ।

(3) पूर्व चेतन अवस्था : चेतना की ऐसी अवस्था जिसकी जानकारी थोड़ा प्रयास करने से पुनरावहन किया जा सकता है उसे पूर्व चेतन
अवस्था कहते हैं । कितनी ही जानकारी स्मृति में होने की स्पष्ट प्रतीति होने से इच्छित समय में चेतन अवस्था में लाने में परेशानी होती है लेकिन थोड़ी एकाग्रता लाने से पुनः प्राप्ति हो जाती है । इस अवस्था को पूर्व चेतन अवस्था कहते हैं । यह अवस्था चेतना को चेतन से अचेतन की तरफ ले जानेवाला चेतना का प्रथम स्तर है । उदा. ‘मन में है लेकिन होठों पर नहीं आता है ।’

(4) निम्न चेतन अवस्था : चेतन अवस्था से अचेतन अवस्था की तरफ ले जानेवाला दूसरा स्तर निम्न चेतन अवस्था है । सामान्य रूप से चेतना की अचेतन एवं निम्न चेतन अवस्था को एकदूसरे के पर्याय के रूप में देखा जाता है । लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप से दोनों में अन्तर है । उपरोक्त अवस्था का मुख्य लक्षण यह है कि इसमें व्यक्ति सम्पूर्ण रूप से चेतन एवं सम्पूर्ण रूप से अचेतन भी नहीं होता है । उदा. स्वप्न एवं अपने आप होनेवाली आदतानुसार क्रियाएँ, ड्राईविंग ये निम्न चेतना अवस्था को सूचित करती हैं ।

(5) अचेतन अवस्था : डॉ. सिंग्मण्ड फ्राईड के अनुसार सर्वप्रथम अचेतन मन (Unconscious mind) का ख्याल प्रस्तुत किया । फ्राईड
के अनुसार पानी में बर्फ के टुकड़े डालने से 90% भाग पानी के भीतर तथा 10% ही हमें दिखाई देता है । उसी प्रकार मनुष्य का 90% व्यवहार अचेतन मन से नियंत्रित होता है । 10% व्यवहार जो चेतन प्रेरणाओं से जुड़ा होता है । 90% व्यवहार के कारणों से मनुष्य अज्ञात होता है ।
इस तरह से उपरोक्त पांच चेतना की अवस्थाएँ मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत की गई है ।

प्रश्न 3.
निंद्रा एवं उसके गहनता के सोपानों को स्पष्ट कीजिये ।
उत्तर :
(i) प्रथम सोपान (N1) : व्यक्ति जब निंद्राधीन बनता है तब मस्तिष्क की तरंगें अनियमित बनते हैं । अल्फा तरंगें, आदृश्य होते हैं । तरंगों की गति 4 से 8 प्रति सेकेन्ड एवं उन्हें ‘थीटा’ तरंग कहते हैं । तब स्थानिक हलन-चलन कम एवं पर्यावरण में उद्दीपकों चेतनता नहीं रहती है ।

(ii) दूसरा सोपान (N2) : निंद्रा में गहनता बढ़ती है तथा यह दूसरा सोपान शुरू होता है । मस्तिष्क को तरंगें त्राक रूप में दिखाई देते हैं । इस समय तरंगों की गति 13 से 16 सेकेन्ड होती है तथा ‘अल्फा तरंगें’ सविशेष होते है । मस्तिष्क की सक्रियता एवं राहत के पलों से विशेष दिखाई देती है । अचानक तरंगें त्राक रूप में दिखाई देती है । स्नाविक प्रवृत्ति एकदम कम सचेतनता बिलकुल नहीं तथा वयस्क उम्र के लोग निंद के 50% निंद इस समय लेते हैं ।

(iii) तीसरा सोपान (N3) : निंद्रा की गहनता का महत्तम यह तीसरा सोपान है । मस्तिष्क की तरंगें एकदम धीमे ‘डेल्टा’ के रूप में दिखाई देते हैं । निंद्रा की महत्तम अवस्था में ‘मंद तरंग निंद्रा’ मस्तिष्क की निष्क्रियता रहती है । व्यक्ति को इस निंद से जगाना कठिन होता है । निंद्रा भ्रमण एवं (Bed Wetting) की विकृति इस अवस्था में दिखाई देती है ।

(iv) चौथा सोपान (R.E.M.) : इस सोपान का समय लगभग 90 मिनिट का होता है । व्यक्ति को जगाने में कठिनता दिखाई देती है । उसे जबरदस्ती उठाने पर ‘स्वप्नावस्था’ में दिखाई देता है । स्वप्न बता नहीं सकता है । मस्तिष्क का सीमा तंत्र खासकर ‘एमिगडाला’ आवेगिक उत्तेजना से जुड़ा हुआ रहने से मस्तिष्क की सक्रियता देखने को मिलती है । फ्राईड के अनुसार स्वप्न निंद का रक्षण करते हैं । REM निंद्रा को ‘विरोधाभासी’ निंद के रूप में भी पहचाना जाता हैं ।

GSEB Solutions Class 11 Psychology Chapter 10 चेतना की बदली हुई अवस्थाएँ

प्रश्न 4.
‘स्वप्न’ के विषय में मूलभूत प्रश्नों की चर्चा कीजिये ।
उत्तर : फ्राईड के अनुसार स्वप्न अचेतन मन तक पहुँचने का राजमार्ग है । स्वप्न इच्छापूर्ति एवं प्रतीकात्मक भी होता है । दमित इच्छापूर्ति भी स्वप्नावस्था में होती है ।

(i) हरेक को स्वप्न आते है ?
उत्तर :
‘गुडईनफ’ के अनुसार सभी स्वप्न का पुनरावहन नहीं कर सकते हैं । हिलगार्ड एवं एटकीन्सन के अनुसार सभी को स्वप्न आते है लेकिन सभी को याद नहीं रहते हैं । संक्षिप्त में स्वप्न सभी को आते हैं ।

(ii) स्वप्न अनुभव का समय कितना होता है ?
उत्तर :
संशोधनों के आधार पर जितना समय व्यक्ति को स्वप्न देखने में लगता है उतना ही समय वर्णन करने में भी लगता है । REM निंद्रा का समय स्वप्न अनुभव का होता है ।

(iii) स्वप्न में बाह्य उद्दीपकों का समावेश होता है ?
उत्तर :
संशोधनों के आधार पर स्वप्न में बाह्य उद्दीपकों का समावेश होता है । 1958 में डीमेन्ट एवं वोलपर्ट के अनुसार REM निंद्रा के दौरान ठंडा पानी छाँटने से पूछने पर प्रयोगपात्र ने स्वप्न के साथ पानी छाँटना भी सामेल हो गया था इसलिए कई बार अलार्म की घंटी हमारे स्वप्न में परीक्षा की घंटी या मंदिर की घंटी के रूप में सामिल हो जाती है । बाह्य उद्दीपकों के स्वप्न में समावेश होने से स्वप्न को निम्न चेतन अवस्था माना जाता है ।

(iv) निंद्राप्रलाप एवं निंद्राभ्रमण कब होता है ?
उत्तर :
निंद्रा अवस्था में व्यक्ति बोलने लगता है उसे ‘निंद्राप्रलाप’ तथा चलने लगता है तो उसे ‘निंद्राभ्रमण’ कहते हैं । संशोधनों के अनुसार 13 प्रयोगपात्रों की निंद्रा दौरान 206 निंद्राप्रलाप नोट किये गये । 75 से 80% निंद्राप्रलाप NREM के दरम्यान एवं 20-25% निंद्राप्रलाप REM के समय दिखाई दिये थे । निंद्राभ्रमण NRE के दौरान याने निंद्रा की गहनता अर्थात् तीसरे सोपान में दिखाई देती है ।

(v) स्वप्न के समय व्यक्ति स्वप्न अनुभव से सचेत होता है ?
उत्तर :
स्वप्न निम्न चेतन अवस्था में होता है । व्यक्ति जाग्रत अवस्था में स्वप्न का वर्णन करता है तब सचेत या चेतन होता है लेकिन स्वप्न अवस्था में चेतन होता है या नहीं यह वैज्ञानिक संशोधन के आधार पर स्वप्न अवस्था में व्यक्ति सभान होता है ।

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प्रश्न 5.
चेतना के विषय में भारतीय विचारों को दर्शाइये ।
उत्तर :
चेतना के विषय में पूर्व के देशों में भारत में हिन्दु, जैन एवं बौद्ध धर्म की परम्परा में गहन चिन्तन हुआ है । भारत में हिन्दु धर्म विस्तृत रूप से फैले हुए होने से हिन्दु धर्म पर आधारित ‘चेतना’ के विचार संक्षिप्त में प्रस्तुत किये गये हैं । हिन्दु धर्मानुसार मानव शरीर प्रमुख दो तत्त्वों से बना हुआ है :
(i) शरीर और (ii) आत्मा । चिन्तकों के अनुसार व्यक्तित्व का जंडाश जिसे शरीर कहते हैं, उसके तीन प्रकार हैं :

(i) स्थूल शरीर
(ii) सूक्ष्म शरीर एवं
(iii) कारण शरीर

(i) स्थूल शरीर : हड्डियों एवं मांस का बना हुआ माता-पिता द्वारा प्राप्त भौतिक शरीर उपनिषद की भाषा में जिसे ‘अन्नमयकोष’ कहते हैं ।
(ii) सूक्ष्म शरीर : ‘मन’ के रूप में पहचाने जानेवाला ।
(iii) कारण शरीर : जन्म एवं पूर्वजन्मों का अचेतन संस्कारों का समूह है ।

उपरोक्त तीनों मिलकर व्यक्तिगत अनुभव संवेदन, भावनाएँ, विचार एवं प्रत्यक्षीकरण आदि उत्पन्न करते हैं ।
उपरोक्त तीनों शरीर जड़ हैं । आत्मा चेतना है, जो सत्, चित्त एवं आनंद स्वरूप सचिदानंद है । आत्मा हमारी पहचान एवं सातत्य के लिए जिम्मेदार है ।

मांडुक्य उपनिषद के अनुसार जब नित्य, शुद्ध बुद्धमुक्त सच्चिदानंद आत्मा स्थूल शरीर के साथ तादात्म्य स्थापित करती है तब वह ‘चेतना की जाग्रत अवस्था’ तथा सूक्ष्म शरीर के साथ तादात्म्य स्थापित करती है तब ‘स्वप्नअवस्था’ तथा कारण शरीर के साथ गहन स्वप्न विहीन निंद्रा में जब तादात्म्य स्थापित करती है उसे ‘सुषुप्त अवस्था’ के रूप में पहचाना जाता है और जब आत्मा इन तीनों शरीर से अलग स्वयं की मूल सत्ता स्वरूप में होती है उसे ‘तुरीय’ अवस्था कहते हैं । इस तरह भारतीय मनोवैज्ञानिकों के अनुसार चेतना की चार अवस्थाएँ हैं जो जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्त एवं तुरीय के रूप में वर्णन की गई है ।

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