Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 11 Psychology Chapter 8 व्यक्तित्व Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Psychology Chapter 8 व्यक्तित्व
GSEB Class 11 Psychology व्यक्तित्व Text Book Questions and Answers
स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के योग्य विकल्प चुनकर उत्तर लिखिये ।
प्रश्न 1.
भारतीय दर्शनशास्त्र में व्यक्तित्व के कितने प्रकार है ?
(अ) 1
(ब) 2
(क) 3
(ड) 5
उत्तर :
(क) 3
प्रश्न 2.
सुपर ईगो की स्पष्टता किसने की है ?
(अ) ऑलपोर्ट
(ब) फ्राईड
(क) एरिक्सन
(ड) वॉटसन
उत्तर :
(ब) फ्राईड
प्रश्न 3.
व्यक्तित्व का ‘स्व’ सिद्धांत किसने दिया ?
(अ) ऑलपार्ट
(ब) फ्राईड
(क) एरिक्सन
(ड) रोजर्स
उत्तर :
(ड) रोजर्स
प्रश्न 4.
34 जुड़वा बालकों का अभ्यास किसने किया ?
(अ) रोजर्स
(ब) फ्राईड
(क) गोटेसमन एवं सिल्डज
(ड) रोशार्क
उत्तर :
(क) गोटेसमन एवं सिल्डज
प्रश्न 5.
हरमन रोशार्क कहाँ के नागरिक थे ?
(अ) अमेरिका
(ब) इंग्लैण्ड
(क) जर्मनी
(ड) स्वित्जलैण्ड
उत्तर :
(ड) स्वित्जलैण्ड
प्रश्न 6.
‘स्व’ किसका हार्द है ?
(अ) व्यक्तित्व
(ब) व्यक्ति
(क) विकास
(ड) उत्क्रांति
उत्तर :
(अ) व्यक्तित्व
प्रश्न 7.
‘स्व’ कर्ता के रूप में कैसे है ?
(अ) ज्ञेय
(ब) ज्ञाता
(क) प्रवृत्तिशील
(ड) मार्गदर्शक
उत्तर :
(क) प्रवृत्तिशील
प्रश्न 8.
‘स्व’ विकास से कितनी बातें जुड़ी है ?
(अ) 1
(ब) 2
(क) 3
(ड) 4
उत्तर :
(ड) 4
प्रश्न 9.
‘स्व’ के विषय में तीन रीति से विचारने का किसने कहा ?
(अ) सी. टी. मोर्गन
(ब) हिंगिस
(क) सोक्रेटिस
(ड) लुइस ड्रेप
उत्तर :
(ब) हिंगिस
प्रश्न 10.
मनोविज्ञान की चलती-फिरती प्रयोगशाला क्या है ?
(अ) स्व निरीक्षण
(ब) प्रयोग
(क) उद्दीपक नियंत्रण
(ड) मुलाकात
उत्तर :
(अ) स्व निरीक्षण
प्रश्न 11.
हिपोक्रेटीस के अनुसार सक्रिय एवं आनंदी कौन से व्यक्ति होते है ?
(अ) काला पित्त प्रभावी
(ब) पीला पित्त प्रभावी
(क) कफ प्रभावी
(ड) रक्त प्रभावी
उत्तर :
(ड) रक्त प्रभावी
प्रश्न 12.
क्रेश्मर एवं सेल्डन के अनुसार आंतरस्तर प्रधान व्यक्ति कैसे होते है ?
(अ) कलाप्रेमी
(ब) मिलनसार
(क) नेतृत्वशील
(ड) सक्रिय-साहसी
उत्तर :
(ब) मिलनसार
प्रश्न 13.
शरीर रचना के आधार पर व्यक्तित्व के प्रकार किसने किये है ?
(अ) सेल्डन, क्रेश्मर
(ब) वॉटसन
(क) हिगिंस
(ड) रोजर्स
उत्तर :
(अ) सेल्डन, क्रेश्मर
प्रश्न 14.
मनोगत्यात्मक दृष्टिकोण किसका है ?
(अ) आईजेक
(ब) मिसेल
(क) स्कीनर
(ड) फ्राईड
उत्तर :
(ड) फ्राईड
प्रश्न 15.
स्याही के धब्बे की पद्धति किसकी देन है ?
(अ) मरे
(ब) रोरशाक
(क) आईजेक
(ड) केटल
उत्तर :
(ब) रोरशाक
प्रश्न 16.
सम्पूर्ण स्वसार्थक व्यक्ति कैसे होते है ?
(अ) विरल
(ब) आसक्त
(क) प्रेमी
(ड) ईर्षालु
उत्तर :
(अ) विरल
प्रश्न 17.
स्वसार्थक का सिद्धांत मानव के लिए कैसा है ?
(अ) निराशावादी
(ब) उभयमुखी
(क) विधायक
(ड) तटस्थवादी
उत्तर :
(क) विधायक
प्रश्न 18.
व्यक्तित्व विकास में किस घटक का प्रमुख योगदान है ?
(अ) पाठशाला
(ब) परिवार
(क) समाज
(ड) समवयस्क
उत्तर :
(ब) परिवार
प्रश्न 19.
मिनेसोटा की विविधलक्षी व्यक्तित्व कौन-सी कसौटी है ?
(अ) MMPI
(ब) EPD
(क) TAT
(ड) AICS
उत्तर :
(अ) MMPI
प्रश्न 20.
आईजेक की व्यक्तित्व प्रश्नावली में व्यक्तित्व के गुणों के कितने परिमाण है ?
(अ) 32
(ब) 46
(क) 16
(ड) 24
उत्तर :
(अ) 32
2. निम्न प्रश्नों के एक वाक्य में उत्तर लिखिये ।
प्रश्न 1.
मानवतावादी अभिगम के प्रणेता कौन हैं ?
उत्तर :
मानवतावादी अभिगम के प्रणेता अब्राहीम मेस्लो है ।
प्रश्न 2.
व्यक्तित्व के विविध अभिगमों के नाम लिखिये ।
उत्तर :
- व्यक्तित्व का प्रकारलक्षी अभिगम ।
- व्यक्तित्व का गुणलक्षी अभिगम
- मानवतावादी अभिगम
- मनोगत्यात्मक अभिगम ।
प्रश्न 3.
केन्द्रगुण लक्षण अर्थात् क्या ?
उत्तर :
प्राय: एक ही गुण व्यक्ति की जीवननिष्ठा में हो ऐसा बहुत कम होता है । लेकिन कई गुण लक्षण उनके व्यक्तित्व एवं व्यवहार में दिखाई देते हैं । उसे 10 गुण अधिकार व्यक्तियों में होते हैं ।
प्रश्न 4.
TAT का पूरा नाम लिखो ।
उत्तर :
Thematic Apperception Test (विषय अधिप्रत्यक्ष कसौटी)
प्रश्न 5.
हताशा एवं आक्रमकता मापन की कौन-सी कसौटी है ?
उत्तर :
रोजीनविंग की चित्र हताशा कसौटी हताशा एवं आक्रमकता मापन पर ध्यान केन्द्रित करती है ।
प्रश्न 6.
कार्ल रोजर्स ने कौन-सा सिद्धांत दिया है ?
उत्तर :
कार्ल रोजर्स ने स्व सिद्धांत सम्पूर्ण कार्यरत एवं आशावादी दूसरों के लिए संवेदनशील रहना ।
प्रश्न 7.
TAT’ कसौटी की रचना किसने की ?
उत्तर :
‘TAT’ कसौटी की रचना मरे एवं मॉर्गन ने की है ।
प्रश्न 8.
बालक को कैसे पर्यावरण में पालना चाहिए ?
उत्तर :
बालक को अनुवंश की तरह स्वस्थ पर्यावरण की आवश्यकता होती है जो परिवार एवं समवयस्क से प्राप्त होता है । उसकी तमाम भावनाओं की पूर्ति सहजरूप से होनी चाहिए ।
प्रश्न 9.
संभवित स्व क्या है ?
उत्तर :
हम क्या बनना चाहते है या बन सकते हैं। यह संभवित स्व है ।
प्रश्न 10.
स्व-प्रबलन क्या है ?
उत्तर :
पुरस्कार एवं शिक्षा के माध्यम से स्व नियमन करना सीखना ।
प्रश्न 11.
कुसमायोजन क्या है ?
उत्तर :
व्यक्ति के स्वविचार एवं वास्तविकता के बीच ज्यादा अन्तर हो तो उसे कुसमायोजन कहते हैं ।
प्रश्न 12.
वर्तनात्मक दृष्टिकोण के प्रणेता कौन है ?
उत्तर :
अमेरिकन मनोवैज्ञानिक जे. वी. वॉटसन वर्तनात्मक (व्यवहारिक) दृष्टिकोण के प्रणेता हैं ।
प्रश्न 13.
वास्तविक स्व क्या है ?
उत्तर :
जब हम वर्तमान समय में स्वयं के गुण दोषों के बारे में विचार करते है, तो उसे वास्तविक स्व कहते हैं ।
प्रश्न 14.
आदर्श स्व क्या है ?
उत्तर :
हमें भविष्य में क्या बनना चाहिए ऐसा विचार करते है तो वह हमारा आदर्श स्व है ।
प्रश्न 15.
स्याही के धब्बे की कसौटी के प्रणेता कौन है ?
उत्तर :
हरमन रोशार्क, मनोवैज्ञानिक उपरोक्त कसौटी के प्रणेता है ।
प्रश्न 16.
भारतीय दर्शनशास्त्र अनुसार व्यक्तित्व के प्रकार कौन से है ?
उत्तर :
भारतीय दर्शनशास्त्र के अनुसार व्यक्तित्व के प्रकार –
- सात्विक
- राजसी एवं
- तामसी हैं ।
प्रश्न 17.
कार्लयुग के अनुसार व्यक्तित्व के प्रकार कौन से है ?
उत्तर :
कार्लयुग के अनुसार व्यक्तित्व के
- अन्तर्मुखी एवं
- बहिर्मुखी हैं ।
प्रश्न 18.
फ्राईड के अनुसार व्यक्तित्व की रचना के अंग कौन-से हैं ?
उत्तर :
फ्राईड के अनुसार व्यक्तित्व की रचना के अंग :
- ईड
- ईगो एवं
- सुपर ईगो हैं ।
प्रश्न 19.
बालक के विकास के प्रमुख प्रेरक फ्राईड किसे मानते हैं ?
उत्तर :
फ्राईड के अनुसार बालक के विकास के प्रमुख प्रेरक कामवृत्ति (Sex) है ।
प्रश्न 20.
‘स्व’ किसे कहते हैं ?
उत्तर :
‘स्व’ अर्थात् व्यक्ति स्वयं के आस-पास के जगत साथ अपने सम्बन्धों का जिस अर्थ रूप में करता है ।’
– बी. कुप्पु स्वामी
3. निम्नलिखित प्रश्नों के दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिये ।
प्रश्न 1.
वाक्य पूर्ति की कसौटी को संक्षिप्त में लिखिये ।
उत्तर :
इस कसौटी का सर्वप्रथम उपयोग 1930 में पाईन एवं टन्डलर ने किया था । इस कसौटी में अधूरे वाक्य दिये जाते है जिसमें प्रयोगपात्र अपनी भावना, चिन्ता, भय, डर आदि प्रस्तुत कर वाक्य की पूर्ति करता है । उदा. मेरे गुरु … मेरे पिता… मुझे… अच्छा लगता है ।
प्रश्न 2.
व्यक्तित्व की परिभाषा लिजिये ।
उत्तर :
‘व्यक्तित्व अर्थात् व्यक्ति के मनोशारीरिक तंत्र का ऐसा गत्यात्मक संगठन कि जिसके आधार पर व्यक्ति अपने अलग तरीके से समायोजन करता है ।’
– ऑलपोर्ट (1937)
प्रश्न 3.
MMPI का उपयोग किस क्षेत्र में होता है ?
उत्तर :
मनोरोगों के निदान करने के लिए ‘हेतवे एवं मेक्कीनल’ ने इस कसौटी की रचना 1940 में की जिसका उपयोग काल्पनिक रोग, विकृति, खिन्नता, उन्माद, समाज विरोधी व्यक्तित्व, पुरुषत्व, स्त्रैणता, व्यामोह विकृत थकान, छिन्न व्यक्तित्व, उन्मतता आदि में होता है ।
प्रश्न 4.
‘मुख अवस्था’ में बालक किस प्रवृत्ति के द्वारा कामवृत्ति का संतोष प्राप्त करते हैं ?
उत्तर :
फ्राईड के अनुसार पूर्वलिंग अवस्था के प्रकार ‘मुख अवस्था’ में बालक चूसकर, काटकर, स्तनपान आदि के द्वारा कामवृत्ति के संतोष का अनुभव करते हैं ।
प्रश्न 5.
“TAT’ कसौटी की रचना किसने की है ?
उत्तर :
‘TAT’ कसौटी की रचना ‘हेनरी एवं मरे’ ने की है ।
प्रश्न 6.
‘स्व’ की दो परिभाषाएँ लिखिये ।
उत्तर :
- ‘व्यक्तित्व का स्व अर्थात् व्यक्ति स्वयं को जिस तरह से देखता है वह ।’
– क्रच, क्रचफिल्ड एवं बेलाची । - स्व अर्थात् व्यक्ति अपने एवं अपने आस-पास के जगत के साथ स्वयं के संबंध का जो अर्थ समझता है ।’
– बी. कुप्पु स्वामी
प्रश्न 7.
‘स्व उपदेश’ क्या है ?
उत्तर :
स्व उपदेश अर्थात् व्यक्ति स्वयं के साथ बात-चीत के द्वारा अपने बारे में ख्याल से अपने व्यवहार की रचना एवं नियंत्रण कर सकता है । उदा. ‘लुईस हेय’ का वाक्य ‘Now I love and approve of my self.’ स्व विकास एवं नियमन के लिए उपयोगी बना है ।
प्रश्न 8.
स्व नियमन (नियंत्रण) का अर्थ ?
उत्तर :
हमारा अधिकतर व्यवहार समय, संजोग एवं परिस्थिति के प्रति प्रतिभाव के रूप में होता है । स्वयं के व्यवहार के नियंत्रण के लिए उत्तेजित करनेवाले उद्दीपकों पर नियंत्रण करना चाहिए जैसे, उत्तेजक, दृश्य, साहित्य, फिल्म आदि ।
प्रश्न 9.
‘आदर्श स्व’ क्या है ?
उत्तर : स्व के मुख्य तीन प्रकार है :
- वास्तविक स्व
- संभवित स्व एवं
- आदर्श स्व ।
‘हमें कैसा होना चाहिए भविष्य के बारे में सोचना’ इसे आदर्श स्व कहते हैं ।
प्रश्न 10.
‘स्व विकास’ किसे कहते हैं ?
उत्तर :
स्व विकास से चार बातें जुड़ी हुई है :
- स्वयं की नजर से स्वयं के शरीर के विषय में छवि
- माता-पिता, परिवार के संस्कार एवं बचपन की जानकारी एवं संदेश
- आस-पास के लोगों एवं पर्यावरण के साथ बालक के सम्बन्ध
- जीवन के आदर्श, मूल्य एवं लक्ष्य ।
प्रश्न 11.
मनोगत्यात्मक अभिगम के अंग ?
उत्तर :
फ्राईड के अनुसार व्यक्तित्व की रचना में इसके निम्न तीन अंग हैं :
- ईड – जैविक प्रवृत्ति, जातीयता आक्रमकता आदि ।
- ईगो – ईड की पशुता की वृत्ति पर नियंत्रण करना एवं वास्तविकता एवं जिम्मेदारी की तरफ जाना ।
- सुपरईगो (अधि अहम्) – व्यवहारिक मूल्य, आदर्श, नीति की ओर अभिमुख होना ।
प्रश्न 12.
फ्राईड के अनुसार व्यक्तित्व विकास के सोपान ।
उत्तर :
फ्राईड के अनुसार व्यक्तित्व विकास के मुख्य दो प्रकार हैं :
(i) पूर्व लिंग अवस्था
(ii) पूर्ण लिंग अवस्था
(i) पूर्व लिंग अवस्था के तीन सोपान हैं ।
(A) मुख अवस्था – जन्म से दो वर्ष तक
(B) गुदा अवस्था – 2 से 3 वर्ष
(C) लिंग अवस्था – 3 से 6 वर्ष तक
(ii) पूर्ण लिंग अवस्था – 6 से 12 वर्ष तक का समय
(A) सजातीय अवस्था
(B) विजातीय अवस्था
प्रश्न 13.
मानवतावादी अभिगम क्या है ? ।
उत्तर :
इस अभिगम में मानव स्वभाव का विधायक एवं आशावादी ख्याल प्रस्तुत किया गया है ।
इसमें रोजर्स एवं मेस्लो के सिद्धांत प्रमुख हैं ।
- रोजर्स का स्वसिद्धांत – व्यक्ति का ध्येय, क्रियाशीलता दूसरों के अधिकार एवं आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए ।
- मेस्लो का स्व-सार्थकता का सिद्धांत – विधायक एवं आशावादी, प्रेम, आनंद, सर्जन शक्ति का उपयोग कर जीवन को योग्य एवं सार्थक बनाया जा सकता है ।
प्रश्न 14.
व्यक्तित्व को प्रभावित करनेवाला मनोवैज्ञानिक परिबल क्या है ?
उत्तर :
व्यक्तित्व के विकास में बुद्धि, कल्पनाशक्ति, प्रत्यक्षीकरण, तर्कशक्ति, स्मृति, निर्णय शक्ति आदि का महत्त्व है । अनुवंश के द्वारा प्राप्त उपरोक्त सभी लक्षण उपयोगी हैं । व्यक्तित्व के सामाजिक विकास में ये सभी आत्मविश्वास उत्पन्न करते हैं ।
प्रश्न 15.
सामाजिक-सांस्कृतिक परिबल का परिचय दीजिये ।
उत्तर :
सामाजिक परिबल जैसे परिवार, पाठशाला, समाज में भावात्मक सम्बन्ध स्थापित होते हैं । इसके अलावा समाज में प्रचलित मूल्य प्रेरक एवं प्रोत्साहित हो योग्य सामाजिक आंतरक्रिया के अवसर स्नेह, सहानुभूति स्वीकृति सर्जन के अवसर व्यक्ति विकास के लिए आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण हैं ।
4. संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये ।
1. व्यक्तित्व को प्रभावित करनेवाले परिबल :
उत्तर :
व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करनेवाले तत्त्व (परिबल) निम्न हैं :
(i) जैविक परिबल
(ii) शारीरिक परिबल
(iii) मनोवैज्ञानिक परिबल
(iv) सामाजिक-सांस्कृतिक परिबल ।
(i) जैविक परिबल : जैविक परिबल व्यक्तित्व की रचना करनेवाला प्राथमिक परिबल है जिसमें वंश, परिवार माता-पिता के द्वारा । रंगसूत्रों के द्वारा अनुवंश प्राप्त होता है । व्यक्तिगत भिन्नता के उद्गम के रूप में इसका प्रभाव निर्णायक माना जाता है । जिसके लिए ‘गोटेसमेन एवं शिल्डज’ का 1972 का प्रयोग उल्लेखनीय है ।
(ii) शारीरिक परिबल : व्यक्ति शरीर का रसायनिक संतुलन ग्रन्थितंत्र, चेतातंत्र एवं शारीरिक गठन बाह्य जगत के साथ सम्पर्क का नियमन करता है । शरीर में पानी की मात्रा, क्षार, विटामीन, अन्ताव ग्रन्थियों का संतुलन, चेतातंत्र की कमी से हमारे व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है ।
(iii) मनोवैज्ञानिक परिबल : व्यक्तित्व के विकास में बुद्धि, कल्पनाशक्ति, प्रत्यक्षीकरण, तर्कशक्ति, स्मृति, निर्णयशक्ति आदि का महत्त्वपूर्ण
योगदान है । उपरोक्त सभी गुण-लक्षण अनुवंश द्वारा प्राप्त होते है । जिनके द्वारा व्यक्ति समाज एवं विविध परिस्थितियों में श्रेष्ठ
समायोजन साधने में सफल होता है ।
(iv) सामाजिक-सांस्कृतिक परिबल : व्यक्ति के विकास में सामाजिक परिबल, परिवार, पाठशाला एवं समाज का उत्तम योगदान रहा
है । परिवार के द्वारा बालक की आवश्यकताओं की पूर्ति वयस्क व्यक्ति बनाने तक भावात्मक सम्बन्ध स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान है । इसके उपरांत समाज में प्रचलित मूल्य, पर्यावरण, संस्कृति, रीति-रीवाज, रहन-सहन में सामाजिक आंतरक्रिया करने का अवसर प्राप्त होता है । जिससे व्यवहार में प्रेरणा एवं प्रोत्साहन प्राप्त होता है । जिससे व्यक्ति को विकास के उत्तम अवसर प्राप्त होते है जो उसके व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं ।
2. रोशार्क के स्याही के धब्बे की कसौटी :
उत्तर :
हरमन रोशार्क नामके स्वित्जलैण्ड के एक मनोवैज्ञानिक ने (1921) में इस कसौटी की रचना की । जिसमें 10 से 7 ईंच के सफेद कार्डो पर स्याही गिराकर कागज को बीच से मोड़कर स्याही के धब्बों को फैलाया जिससे कार्ड के दोनों तरफ चित्र बन जाते हैं । उनमें से दस आकृतियाँ पसंद की थी । जिनमें से पाँच में काले एवं हल्के धब्बे दिखते हैं । दो में काले एवं थोड़े लाल बाकी तीन में अलग-अलग रंग हैं ।
उपरोक्त दस चित्रों को प्रयोगपात्र को एक-एक करके दिखाये जाते हैं उनमें प्रयोगपात्र की प्रतिक्रिया का समय दिया जाता है । उस समय उसकी बेचैनी, चिन्ता, उदासी व्यवहार के आधार पर नोट की जाती है । उसकी प्रतिक्रियाओं का मूल्यांकन (i) स्थान (ii) वस्तु (iii) निर्धारकों को ध्यान में रखकर किया जाता है । जिसके आधार पर प्रयोगपात्र के मन के विचार, बुद्धि, मानसिक स्थिति का अर्थघटन किया जाता है । वस्तुलक्षी अर्थघटन के आधार पर व्यक्ति की सांस्कृतिक भूमिका महत्त्वपूर्ण योगदान देती है । मानसिक अस्वस्थत व्यक्तियों की उलझन को स्पष्ट करने में चिकित्सा की दृष्टि से यह कसौटी बहुत उपयोगी है ।
3. स्व के प्रकार लिखिये । (Type of Self)
उत्तर :
स्व अर्थात् स्वयं के विषय में ख्याल । हिगिंस के मतानुसार स्व के विषय में तीन रीति से विचार किया जा सकता है । दूसरी तरह कहे तो स्व के निम्न तीन प्रकार हैं :
(i) वास्तविक ‘स्व’
(ii) संभवित ‘स्व’
(iii) आदर्श ‘स्व’
(i) वास्तविक स्व : जब हम अपने वर्तमान समय में हमारे अन्दर रहे गुण-दोषों के विषय में सोचते है तो उसे वास्तविक स्व कहते हैं ।
(ii) संभवित स्व : जब हम कैसे बन सकते है के विषय में सोचते तो वह हमारा संभवित स्व है ।
(iii) आदर्श स्व : हमें कैसे होना चाहिए भविष्य के विषय में सोचते तो वह हमारा आदर्श स्व कहलाता है । व्यक्ति के आदर्श स्व से वास्तविक स्व अलग होने से समायोजन में प्रतिकूलता उत्पन्न होती है । इन दोनों के बीच अन्तर बढ़ने से तनाव बढ़ता है, जो व्यक्तित्व के लिए हानिकारक होता है ।
4. स्वकर्ता एवं स्व ‘विषयवस्त’ के रूप में ।
उत्तर :
स्वकर्ता (आत्मलक्षी स्वरूप) में व्यक्ति के ऐसे गुण होते हैं जो दूसरे अलग करते हैं । जिसमें उसका परिचय एवं उसकी अलग विचारधारा प्राप्त होती है । ‘मैं प्रमाणिक हूँ । मैं भाग्य को मानता हूँ’ आदि, वह स्वयं की पहचान करने का लगातार प्रयत्न करता है । स्व एक ‘कर्ता’ के रूप में ‘ज्ञाता’ (knower) है । ‘स्व’कर्ता एवं आत्मलक्षी स्वरूप एक ही है ।
‘स्व’ विषयवस्तु : या वस्तुलक्षी स्वरूप : अर्थात् स्व जैसा है वैसा ही स्वरूप का स्वीकार एवं वर्णन स्व का मूल स्वरूप है वही उसका वस्तुलक्षी स्वरूप जाना जाता है । स्व में व्यक्ति जब अच्छे चित्र बनाना हो तो वह स्वयं को चित्रकार के रूप में पहचाना’ जाय यह उसका वस्तुलक्षी समझा जायेगा । अर्थात् स्व विषय वस्तु के रूप में वही उसका वस्तुलक्षी स्वरूप भी है ।
5. ‘स्व’ विकास : (Development of Self) :
उत्तर :
छोटी उम्र में बालक बोलना सीखता है तब उसमें समझ का विकास पहले हो चुका होता है । बालक की आवश्यकताओं पर ध्यान देना उसके विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है । वह अन्य की नजर में क्रेता है, वह उसी आधार पर अपना मूल्यांकन करता है तथा अपने विषय में अभिप्राय रखता है । स्व विकास से चार बातें जुड़ी है ।
- स्वयं की नजर में उसकी शारीरिक छबि ।
- माता-पिता परिवार के संस्कार, तथा बचपन में दूसरों से प्राप्त जानकारी एवं संदेश ।
- आस-पास के लोग एवं पर्यावरण के साथ सम्बन्ध ।
- जीवन के आदर्श मूल्य एवं लक्ष्य ।
माता-पिता की ओर से बालक को प्राप्त उष्मा, उसकी देखभाल, मित्रवर्ग एवं लोगों का उसके प्रति विश्वास, पसंदगीयुक्त लोगों की एक भावना उत्पन्न होती है । उसके ‘स्व’ के विकास के लिए बचपन से विधायक शब्द, एवं पर्यावरण में उसका लालन पालन होना चाहिए, जिससे उसके विधायक ‘स्व की प्रतिमा’ का विकास हो सके ।
5. निम्न प्रश्नों को सविस्तृत रूप से समझाईये ।
प्रश्न 1.
व्यक्तित्व अर्थ एवं व्यक्तित्व का प्रकारलक्षी अभिगम को समझाईये ।
उत्तर :
‘व्यक्तित्व व्यक्ति के लाक्षणिक विचार एवं व्यवहार की रचना करनेवाली मनोशारीरिक व्यवस्थाओं का गतिशील संयोजन ।’
व्यक्तित्व का प्रकारलक्षी अभिगम :
– भारतीय दर्शनशास्त्र में निम्न तीन प्रकार के व्यक्तित्व बताये हैं :
- सात्विक
- राजसी
- तामसी
– भारतीय चिकित्सा चरक संहिता में शरीर के दोष के आधार पर
- वात प्रकृति
- पित्त प्रकृति एवं
- कफ प्रकृति ।
– ग्रीक वैद्य हिपोक्रिटस के रसस्राव के आधार पर चार प्रकार
- रक्तप्रभावी – सक्रिय एवं आनंदी
- कफ प्रभावी – सुस्त
- काले पित्त प्रभावी – उदास एवं
- पीले पित्त प्रभावी – उत्तेजक एवं क्रोधी ।
– क्रेश्मर-सेल्डर की शरीर रचना के आधार पर –
- आंतरस्तर प्रधान – मोटे ठिंगने व्यक्ति, आनंदी मिलनसार, खाने-पीने के शौकीन
- मध्यस्तर प्रधान – ये व्यक्ति स्नायुबद्ध, सक्रिय साहसी, नेता के गुण एवं खतरे के कार्यों में रुचि रखनेवाले होते हैं ।
- बाह्यस्तर प्रधान : ये लोग ऊँचे, पतले, कलाप्रेमी, अंतर्मुखी दिमाग से कार्य करनेवाले अकेले रहनेवाले शर्मिले स्वभाव के होते है ।
युग की प्रवृत्ति दिशा अनुरुप –
- अन्तर्मुखी एवं
- बहिर्मुखी ।
अन्तर्मुखी – अपने विचारों में मग्न, अकेलापन, शर्मिले, संघर्ष के समय पलायन वृत्ति ।
बहिर्मुखी – ये बहार के व्यक्ति एवं पदार्थों से आंतरक्रिया करते है । स्वभाव में मिलनसार होने से लोगों के सम्पर्क में रहकर कार्य करते हैं।
प्रश्न 2.
व्यक्तित्व का ‘मनोगत्यात्मक’ अभिगम को समझाईये ।
उत्तर :
फ्राईड के अनुसार व्यक्तित्व के तीन अंग है :
- ईड – यह जैवीय प्रवृत्ति, जातीयता आक्रमकता से बना है जो सुख की प्राप्ति में विवेकहीन, आत्मकेन्द्री, अहं उद्धत एवं पशुवृत्ति से प्रेरित है ।
- ईगो – ईड की पशुता पर नियंत्रण, वास्तविकता का अनुसरण कर जिम्मेदारीपूर्वक काम करता है ।
- अधिअहम (सुपर ईगो) – ऊत्तर आत्मा, नैतिक आत्मा जैसे वर्तन (व्यवहार) के मूल्य, आदर्श एवं नीति की ओर अभिमुख होने
का कार्य करता है ।
व्यक्तित्व विकास के मुख्य दो सोपान जो फ्राईड के अनुसार इस तरह है ।
(A) पूर्व लिंग अवस्था – इसमें
- ‘मुख अवस्था’ जन्म से 2 वर्ष
- गुदावस्था – 2 से तीन वर्ष
- लिंग अवस्था – 3 से 6 वर्ष
(B) पूर्ण लिंग अवस्था – 6 से 12 वर्ष
- सजातीय अवस्था
- विजातीय अवस्था ।
फ्राईड मानते है कि बालक के विकास का मूलभूत प्रेरक कामवृत्ति (Sex) है । इन अवस्थाओं में सहज रूप से पसार होने पर उसका स्वस्थ व्यक्तित्व बनता है । यदि चिन्ता, हताशा, असुरक्षा का भोग बनकर कामशक्ति में संतोष न होने से स्थिरीकरण (fixation) होने से वयस्क होने पर भी यही लक्षण दिखाई देते हैं ।
मुख अवस्था में बालक चूसकर, काटकर स्तनपान आदि से संतोष पाता है । गुदावस्था में मलमूत्र एवं उसके संवेदन से संतोष, लिंग अवस्था में स्पर्श अनुभव से संतोष प्राप्त करता है । पूर्व लिंग अवस्था में लड़का ‘माता के प्रति ममत्व पिता प्रति ईर्षाभाव’ (इडिपसग्रन्थि) लड़की पिता के प्रति आकर्षण माता के प्रति ईर्षा (ईलेक्ट्राग्रन्थि) का अनुभव करते है ।
6 से 12 वर्ष में बालक में अधिअहम का विकास होता है तथा उनमें सामाजिक, नैतिक, आदर्श के स्तरों का मनोभाव का विकास होता है । उत्तर बाल्यकाल में सजातीय मित्रता, तरुणावस्था में विजातीय आकर्षण, वयस्क होने पर विजातीय व्यक्ति के साथ मैत्री का आकर्षण के कारण स्वस्थ जातीय सम्बन्धों का विकास होना । सारांश यह है कि उपरोक्त अवस्थाओं से स्वस्थतापूर्वक पसार होकर ही व्यक्तित्व का उचित विकास संभव है ।
प्रश्न 3.
आईजेक की व्यक्तित्व प्रश्नावली (Eysenck Personality Questionnaire) EPQ समझाईये ।
उत्तर :
उपरोक्त प्रश्नावली के आधार पर
(i) अन्तर्मुख एवं बहिर्मुख व्यक्तित्व परिणाम ।
(ii) स्थिर आवेगिक एवं अस्थिर आवेगिक व्यक्तित्व परिणाम तथा
(iii) मनोविकृति ।
तीन परिणामों का मापन होता है । जिसमें 32 व्यक्तित्व गुणों का समावेश होता है । इसके उपरांत अन्य भावनाओं का अभाव लोगों के साथ आंतरक्रिया करने की प्रभावशाली रीति सामाजिक परम्पराओं को त्यागने का मनोभाव का समावेश होता है, जो व्यक्ति मनोविकृति के परिणामों पर ऊँचे प्राप्तांक प्राप्त करता है वह दुश्मनीपूर्ण आत्मकेन्द्री और समाज विरोधी मनोभाव रखनेवाला होता है ।
प्रश्न 4.
‘स्व’ अर्थात् क्या ? उसकी परिभाषा एवं स्वरूप को समझाईये ।
उत्तर :
(i) ‘स्व’ – ‘व्यक्ति का स्व अर्थात् व्यक्ति स्वयं का निरीक्षण जिस तरह करता है वह ।’
– क्रच, क्रचफिल्ड एवं बेलाची
(ii) स्व सरल एकम नहीं है, वह एकात्मक नियम नहीं रखता है, यह एक जटिल एकम है, वह बहु घटनात्मक नियमवाला है ।
– ए. टी. जर्सिल्ड
प्रत्येक व्यक्ति अपने स्व के ख्याल के संदर्भ में ही स्वयं के विषय में अनुभवों का अर्थघटन करता है । स्व के दो स्वरूप है :
(i) स्व का आत्मलक्षी स्वरूप
(ii) स्व का वस्तुलक्षी स्वरूप ।
(i) ख का आत्मलक्षी स्वरूप – व्यक्ति के स्वयं के ऐसे गुण-लक्षण जो उसे दूसरों से अलग करते हो वह स्वयं का परिचय देता है । मैं प्रिया हूँ, मैं प्रमाणिक हूँ । मैं ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखता हूँ । यह व्यक्ति का आत्मलक्षी स्वरूप ही है ।
(ii) व्यक्ति का वस्तुलक्षी स्वरूप – अर्थात् व्यक्ति जैसा है उसी स्वरूप में स्वीकार एवं वर्णन स्व के प्रमुख गुण जब उसके मूल स्वरूप
में दर्शाये जाये तो वह उसका वस्तुलक्षी स्वरूप कहा जायेगा । यदि व्यक्ति अच्छे चित्र बनाता है तो स्वयं को एक चित्रकार के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है । वह उसका वस्तुलक्षी स्वरूप है ।
प्रश्न 5.
स्व नियमन की प्रविधियों को समझाईये ।
उत्तर :
स्वनियमन के लिए ध्यान योग जैसी क्रियाएँ तथा जैवीय प्रतिपुष्टि (Bio-Feedback) एवं स्वसूचन (Auto Suggestion) वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक पद्धतियाँ उपयोगी साबित हुई है । इसके उपरांत व्रत उपवास, हठयोग आदि ग्रह भी सहायक हो सकते है । इसके उपरांत निम्न मोवैज्ञानिक प्रविष्टियाँ हैं :
(1) स्व निरीक्षण
(2) उद्दीपक नियमन
(3) स्व प्रबलन
(4) स्व उपदेश
(i) स्व निरीक्षण – यह मनोविज्ञान की चलती-फिरती प्रयोगशाला है । जिसमें व्यक्ति समय एवं विविध संजोगों में स्वयं का तटस्थतापूर्वक ‘ अवलोकन करते रहने से स्वयं के बारे में अच्छी समझ प्राप्त कर सकता है । वह अपनी शक्ति एवं कमजोरियों से सचेत बनता है । अपनी कमजोरी को दूर करने एवं शक्तियों का सदउपयोग करने में सफल हो सकता है ।
(ii) उद्दीपक नियंत्रण – हमारा अधिकतर व्यवहार समय संजोग एवं परिस्थिति के प्रति प्रतिभाव देना होता है । यदि व्यवहार पर नियमन करना हो तो उत्तेजनापूर्ण उद्दीपकों पर नियमन करना होगा । ऐसा साहित्य, दृश्य, चलचित्रों से दूर रहकर वांचन, ध्यान, प्राणायाम की ओर अग्रसर होकर स्वयं को उद्दीपकों से सुरक्षित रख सकते है ।
(iii) स्व प्रबलन : पुरुस्कार एवं शिक्षा के माध्यम से स्व नियमन प्राप्त करना । जैसे छात्र योग्य नियमित गृहकार्य करता है तो वह स्वयं को धन्यवाद या पुरस्कार प्रदान करता है । अपनी खराब आदतों के लिए स्वयं को शिक्षा या दण्ड भी स्वयं दे सकता है । इसके अलावा परिवार या मित्रों की भी सहायता प्राप्त कर सकता है ।
(iv) स्व उपदेश (सूचन) – स्वयं के साथ बातचीत द्वारा स्वयं के स्थान द्वारा व्यवहार की रचना करना या नियंत्रित करना । उदा. ‘ऐमिली कुआ’ का स्व सूचन विकास के लिए उपयोगी है । उसका वाक्य – ‘Day by day, in every day. I am getting batter and better.’ उपरोक्त वाक्य को बार- बार कहने से रोगी भी विधायक भाव से स्वस्थता प्राप्त कर सकता है । स्व उपदेश से स्वविकास एवं स्व नियमन सरल बनता है । इस तरह उपरोक्त प्रविधियों से स्वविकास सरल एवं सहज बनता है ।