GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 7 नाट्यमेतन्मया कृतम्

Gujarat Board GSEB Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 7 नाट्यमेतन्मया कृतम् Textbook Exercise Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Sanskrit Chapter 7 नाट्यमेतन्मया कृतम्

GSEB Solutions Class 11 Sanskrit नाट्यमेतन्मया कृतम् Textbook Questions and Answers

नाट्यमेतन्मया कृतम् Exercise

1. अधोलिखितानां प्रश्नानां संक्षेपतः संस्कृतभाषया उत्तरं लिखत।

પ્રશ્ન 1.
सामवेदात् किं जग्राह?
उत्तर :
सामवेदात् गीतं जग्राह।

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પ્રશ્ન 2.
लोकवृत्तानुकरणं किम् अस्ति?
उत्तर :
लोकवृत्तानुकरणं नाट्यम् अस्ति।

પ્રશ્ન 3.
पाठ्यं कस्मात् वेदात् जग्राह?
उत्तर :
पाठ्यं ऋग्वेदात् जग्राह।

પ્રશ્ન 4.
कति वेदाः सन्ति? तेषां नामानि लिखत।
उत्तर :
वेदाः चत्वारः सन्ति। ऋग्वेदः, यजुर्वेदः, सामवेदः, अथर्ववेदः च इति चत्वारः वेदाः सन्ति।

2. Explain with reference to context :

1. नाट्याख्यः पञ्चमः वेदः

सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्ति पाठ्यपुस्तक के ‘नाट्यमेतन्मयाकृतम्’ नामक पद्य पाठ से ली गई है। इस पद्य पाठ में नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति का इतिहास, विषय-वस्तु, उद्देश्य एवं महत्त्व का वर्णन किया है। इस पंक्ति के माध्यम से नाट्य-शास्त्र की महिमा का गान किया गया है।

अनुवाद : नाटक नामक पंचम वेद है।

विश्व के ग्रन्थालयों में प्राचीनतम ग्रन्थ वेद है। संस्कृत भाषा में विद्यमान देववाणी के रूप में अपौरुषेय वेद भारत की एक गौरवपूर्ण, अद्भुत धरोहर हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद इन चारों वेदों का स्थान न केवल संस्कृत साहित्य में अपितु विश्वसाहित्य में उत्कृष्टतम है।

वेद अद्भुत ज्ञान-कोष के रूप में संस्कृत साहित्य में महनीय है। अत: जब कोई व्यक्ति अपने इष्ट किसी ग्रन्थ को महिमामण्डित करना चाहता है, उसकी महिमा को सर्वोत्कृष्ट रूप से प्रकट करना चाहता है तो उसे वेदों के समकक्ष पंचम वेद के रूप में स्थापित करता है।

इस प्रकार पंचम वेद के रूप में उसे दर्शाते हुए उसकी महिमा का अभिवर्धन करता है। व्यासकृत महाभारत के प्रशंसक उसकी महिमा का गान करते हुए महाभारतं पञ्चमो वेदः अर्थात् महाभारत पंचमवेद है – यह कहते है।

इस प्रकार यहाँ नाट्यशास्त्र को महिमा-मंडित करने हेतु नाट्य-शास्त्र को पंचम वेद कहा गया है। नाट्यशास्त्र को वेदों के समकक्ष कहने का एक मुख्य कारण यह भी है नाट्यशास्त्र के मुख्य अंग पाठ्य, अभिनय, गीत एवं रस चारों वेदों से लिए गए है।

इस प्रकार वेदों एवं वेदांगो से उद्भूत है यह नाट्यशास्त्र। नाट्यशास्त्र का मूल स्रोत वेद एवं वेदांग होने के कारण भी नाट्य-शास्त्र की पंचम वेद के रूप में गणना करना यथोचित ही है।

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2. नाट्यमेतद्भविष्यति :

संदर्भ – प्रश्न 1 के अनुसार है। (प्रथम दो वाक्य)

अनुवाद : यह नाटक होगा।

व्याख्या : नाट्य शास्त्र के प्रथम अध्याय से संग्रहीत इस पंक्ति के माध्यम से नाट्यशास्त्र के उद्देश्य को प्रकट किया है।

नाट्य शास्त्र का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं है। मनोरंजन के साथ साथ नाटक से धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति ही यश की अभिवृद्धि हो, आयुष्य का हित एवं बुद्धि की अभिवृद्धि हो तथा व्यक्ति मात्र को प्रेरक उपदेश भी प्राप्त हो यह मुख्य उद्देश्य है।

नाट्य-शास्त्र के इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए सभी नाट्यकारों ने अपने नाटकों में इन उद्देश्यों की पूर्ति की है। संस्कृत भाषा की ऐसी कोई नाट्य कृति नहीं है जिससे जन-गण-मन को कोई बोध प्राप्त न हो।

इस प्रकार नाटक से मनोरंजन के साथ-साथ जीवन को उदात्त एवं ऊर्ध्वगामी बनाने का उपदेश भी अत्यंत प्रभावी रूप से जन-जन तक पहुँचता है।

3. नाट्येऽस्मिन् न दृश्यते :

सन्दर्भ : प्रश्न? के अनुसार पूर्ववत् है।

अनुवाद : इस नाटक में दिखाई नहीं देता।

व्याख्या : ब्रह्माजी के द्वारा देवगणों को प्रदत्त एक क्रीडनीयक (खिलौना) जो मनोरंजन के साथ-साथ उपदेश भी दे सके वह नाट्य शास्त्र है। देवगणों के द्वारा आचार्य भरत को यह अद्भुत उपहार प्रदान किया गया। अत: यह शास्त्र न केवल मनोरंजन का शास्त्र है अपितु यह ज्ञान का अद्भुत कोष भी है।

इस पंक्ति के माध्यम से यह दर्शाया गया है कि सम्पूर्ण विश्व में विद्यमान सर्व विद्य ज्ञान नाट्यशास्त्र में अंतर्निहित है। ऐसा कोई ज्ञान नहीं, कोई शिल्प नहीं, कोई विद्या, कला योग या कर्म नहीं जो नाट्य-शास्त्र में वर्णित न हो। नाट्य-शास्त्र सर्व-विधा शिल्प का प्रवर्तक है।

सर्वविध कला, शिल्प, विद्या आदि का वर्णन इस नाट्य-शास्त्र में किया गया है। इस प्रकार ऐसा कोई विषय नहीं है जो नाट्यशास्त्र में दिखाई नहीं देता है।

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3. Answer the following questions in your mother-tongue:

Question 1.
Why is drama said to be the fifth Veda?
उत्तर :
चारों वेद एवं वेदांगों से उद्भूत यह नाट्य-शास्त्र मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान का एक अद्भुत कोष है। अत: नाट्य-शास्त्र की महिमा को वेद के समान महत्त्वपूर्ण दर्शाने के लिए इस शास्त्र की पवित्रता एवं उत्कृष्टता दर्शाने हेतु नाटक को पंचम शास्त्र कहा जाता है।

Question 2.
Whom does a play give repose?
उत्तर :
नाट्य दुःखार्त, श्रमात, शोकात व तपस्वियों को शान्ति प्रदान करता है।

Question 3.
Which different (characteristics) aspects of a play are accepted from the four Vedas?
उत्तर :
ऋग्वेद से पाठ्य, सामवेद से गीत, यजुर्वेद से अभिनय एवं अथर्ववेद से नव रसों को ग्रहण किया है। इस प्रकार चारों वेदों में से क्रमश: पाठ्य, गीत, अभिनय एवं रस आदि विषयों का ग्रहण किया गया है।

4. Write an analytical note on:

(1) Rasa
जिस प्रकार भोजन में छः रस होते हैं उसी प्रकार साहित्य में नव रस होते है। जिस प्रकार एक ही रस का सेवन अरूचिकर हो जाता है उसी प्रकार यदि ये नव-रस न हो तो कोई भी व्यक्ति साहित्य नहीं पढ़ेगा। ये रस साहित्य के प्रति मानव रूचि को बनाए रखती है तथा रस की अभिवृद्धि भी करते है।

संस्कृत साहित्य में इन नव रसों पर विस्तृत विवेचन किया गया है। ये नव रस है – शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत एवं शान्त रस।

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(2) Abhinaya-Acting
अभिनय नाटक का एक अभिन्न अंग है। भारतीय संस्कृति में संस्कृत साहित्य में कला शब्द के द्वारा चौंसठ प्रकार की कलाओं का वर्णन है। इन चौंसठ कलाओं में से एक कला अभिनय भी है। संस्कृत नाट्य परंपरा में अभिनय के चारों प्रकार स्वीकृत है।

1. आंगिक, 2. वाचिक, 3. आहार्य, 4. सात्विक नाट्यशास्त्रियों ने नाट्य के अंग के रूप में अभिनय को स्वीकारने की प्रेरणा यजुर्वेद से ली है। नाट्यशास्त्र में अभिनय के आंगिकादि चारों अंगों का विस्तृत वर्णन किया गया है।

(3) Veda
विश्व-साहित्य में प्राचीनतम ग्रन्थ वेद हैं। वेद ज्ञान का अक्षयकोष है। वेदों में वर्णित विषय मानवमात्र के कल्याण के लिए सर्वत्र एवं सर्वदा, हर काल में उपयोगी है। वेदों को अपौरुषेय कहा जाता है। भारत के परं वैज्ञानिक ऋषियों ने वेदों का दर्शन अपने ध्यान में किया था।

तत्पश्चात् गुरु-शिष्य-परंपरा के निर्वहन के कारण आज तक वेद सुरक्षित रहे हैं तथा उनके उच्चारण की परंपरा भी पूर्ववत् सुरक्षित है। प्राचीनतम वेद चार हैं – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद। वेद अखिल-धर्म का एवं भारतीय संस्कृति का मूल है – अत: कहा गया है –

‘वेदोऽखिलो धर्ममूलम्।’

इस प्रकार, नाट्यशास्त्र का आधार भी पावन वेद ही है। ऋग्वेद से पाठ्य, यजुर्वेद से अभिनय, सामवेद से गीत एवं अथर्ववेद से रसों का ग्रहण किया है। अत: भारत के समस्त ग्रन्थों, विचारों, शास्त्रों, पुराणों का मूलाधार वेद ही है।

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5. Write a critical note on:

(1) Origin of a Netyaveda
नाट्यवेद की उत्पत्ति :

विश्व साहित्य में सर्वप्रथम नाट्य विद्या का प्रारंभ संस्कृत साहित्य में हुआ है यदि यह कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। संस्कृत साहित्य के नाट्य-विद्या के आद्य ग्रन्थ के रूप में नाट्य-शास्त्र कीर्ति-पताका दिगदिगन्त में आज भी व्याप्त है।

नाट्य-शास्त्र में ही इस विद्या की उत्पत्ति के इतिहास का वर्णन है। नाट्य-शास्त्र के प्रथम अध्याय में नाट्योत्पत्ति से सम्बद्ध एक कथा का वर्णन किया है। नाट्योत्पत्ति की इस कथा के अनुसार देवगण ब्रह्मा के पास जाकर एक ऐसे क्रीडनीयक (खिलौने) की याचना करते है जो आनंद के साथ उपदेश भी प्रदान कर सके तथा जन-सामान्य भी इससे लाभान्वित हो सके।

देवगणों की याचना के अनुसार ब्रह्माजी ने जो क्रीडनीयक देवगणों को प्रदान किया वह नाट्य-शास्त्र ही था। देवगणों ने यह क्रीडनीयक रूपी नाट्यशास्त्र आचार्य भरत को प्रदान किया।

आचार्य भरत के माध्यम से सर्वशास्त्रों से युक्त सर्वविध-शिल्पों का प्रवर्तक यह वेद एवं वेदांगों से निष्पन्न यह अद्भुत उपहार मानव-मात्र को प्राप्त हुआ है। आचार्य भरतमुनि ने अपने शत-पुत्रों की सहायता से इन्द्रध्वज महोत्सव के प्रसंग पर सर्वप्रथम इस नाटक का मंचन किया।

(2) Benefits of a play / a drama
नाट्य की लोकोपकारकता :

नाट्य विद्या का परं उद्देश्य व्यक्ति मात्र का परं हित करना है। नाट्योत्पत्ति की कथा के अनुसार यह स्पष्ट है ब्रह्माजी ने न केवल मनोरंजन करने हेतु परंतु जन-जन के सर्वविध हित को साधनेवाला क्रीडनीयक देवताओं को प्रदान किया। देवगणों के द्वारा आचार्य भरत को प्रदान किया गया नाट्य-शास्त्र के रूप में एक अद्भुत उपहार समस्त शास्त्रों से युक्त है। नाट्यशास्त्र समस्त प्रकार की शिल्पकलाओं से युक्त है।

इतना ही नहीं प्रत्युत चारों वेदों एवं वेदों के छ: अंग जो सम्पूर्ण विश्व के ज्ञानकोष के रूप में प्रसिद्ध है उन वेदांगों के ज्ञान से युक्त है यह नाट्य-शास्त्र। नाट्यशास्त्र शिल्प-विद्या का प्रवर्तक है। नाट्यशास्त्र में वर्णित अथाह ज्ञान-सिन्धु की महिमा को समझते हुए इसे पंचम वेद भी कहा जाता है।

नाट्यशास्त्र में वर्णित पाठ्य, अभिनय, गीत एवं रस इन चार अंगों को क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद से लिया गया है। नाट्यशास्त्र का उद्देश्य यह है कि नाटक को देखने के पश्चात् दर्शकों के मन में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो। दर्शक . के मन में धर्मार्थ-काम-मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों को प्राप्त करने की एक अदम्य इच्छा-शक्ति उत्पन्न हो।

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इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु नाट्य शास्त्र में कहीं पर धर्म का वर्णन है तो कहीं पर अर्थ, काम, क्रीडा, हास-परिहास, युद्ध, वध एवं शान्ति का वर्णन भी होता है। धर्म में प्रवृत्त लोगों के कल्याणार्थ यहाँ धर्म का एवं कामोपसेवी जनों के हितार्थ काम का, दुर्विनीत जनों के निग्रह का वर्णन नाट्य शास्त्र में किया गया है। दुःखातों, श्रमातों, शोकातों एवं तपस्वियों को विश्रान्ति प्रदान करते हुए नाट्य-शास्त्र धर्म, यश, आयुष्य, हित, बुद्धि की अभिवृद्धि करता है।

लोकोपदेश करने हेतु सर्वाधिक प्रभावशाली साधन है यह नाट्य-शास्त्र। ऐसा कोई भी ज्ञान, शिल्प, विद्या या कला योग या कर्म नहीं है जिसका वर्णन नाट्य-शास्त्र में न किया गया हो। आशय यह है कि नाट्य-शास्त्र मानवोपयोगी सर्वविध ज्ञान-कला एवं शिल्प आदि से समृद्ध पंचम वेद के रूप में प्रख्यात है तथा इससे श्रेष्ठतर लोकोपकारक साधन और कोई भी उपलब्ध नहीं हो सकता है।

Sanskrit Digest Std 11 GSEB नाट्यमेतन्मया कृतम् Additional Questions and Answers

नाट्यमेतन्मया कृतम् स्वाध्याय

1. अधोलिखितेभ्य: विकल्पेभ्य: समुचितम् उत्तरं चिनुत।

પ્રશ્ન 1.
पञ्चमः वेदः कः अस्ति?
(क) ऋग्वेदः
(ख) यजुर्वेदः
(ग) नाट्यम्
(घ) नृत्यम्
उत्तर :
(ग) नाट्यम्

પ્રશ્ન 2.
चतुर्वेदाङ्गसम्भवम् किम्?
(क) नाट्यम्
(ख) गीतम्
(ग) अथर्ववेदः
(घ) आयुर्वेदः
उत्तर :
(क) नाट्यम्

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પ્રશ્ન 3.
एतत् नाट्यं कदा भविष्यति?
(क) प्रात:काले
(ख) उद्योगकाले
(ग) विश्रान्तिजननकाले
(घ) वर्षाकाले
उत्तर :
(ग) विश्रान्तिजननकाले

પ્રશ્ન 4.
ऋग्वेदात् किं ग्रहीतम्?
(क) पाठ्यम्
(ख) गीतम्
(ग) नृत्यम्
(घ) अभिनयम्
उत्तर :
(क) पाठ्यम्

પ્રશ્ન 5.
गीतम् कुतः ग्रहीतम्?
(क) ऋग्वेदात
(ख) आयुर्वेदात्
(ग) नाट्यवेदात्
(घ) सामवेदात्
उत्तर :
(घ) सामवेदात्

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પ્રશ્ન 6.
रसाः कस्मात् ग्रन्थात् गृहीताः?
(क) आयुर्वेदात्
(ख) अथर्ववेदात्
(ग) नाट्यवेदात्
(घ) यजुर्वेदात्
उत्तर :
(ख) अथर्ववेदात्

2. अधोलिखितानाम् प्रश्नानाम् संक्षेपत: संस्कृतभाषया उत्तरं लिखत।

પ્રશ્ન 1.
पञ्चमः वेदः कः?
उत्तर :
नाट्यम् पञ्चमः वेदः अस्ति।।

પ્રશ્ન 2.
सर्वशास्त्रार्थ-सम्पन्नं किम् अस्ति?
उत्तर :
सर्वशास्त्रार्थ-सम्पन्नं नाट्यशास्त्रम् अस्ति।

પ્રશ્ન 3.
अभिनयम् कस्मात् वेदात् जग्राह?
उत्तर :
अभिनयम् यजुर्वेदात् जग्राह।

नाट्यमेतन्मया कृतम् Summary in Hindi

नाट्यमेतन्मया कृतम् (यह नाट्यशास्त्र मेरे द्वारा किया गया अथवा यह नाट्यशास्त्र मैंने रचा।)

सन्दर्भ : संस्कृत साहित्य में नाट्य विद्या का आरम्भ आचार्य भरत से हुआ है। नाट्याचार्य के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त आचार्य भरत का कालखंड ई.स. की तृतीय शताब्दी के आसपास माना जाता है। आचार्य भरत के द्वारा रचित ग्रन्थ नाट्य-शास्त्र के रूप संस्कृत भाषा के विद्वानों में तो सुप्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है ही साथ ही नाट्य-विद्या से सम्बद्ध विश्व की अनेक भाषाओं के विद्वानों में भी उतना ही प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है।

अन्य रूप से यदि कहा जाय तो विश्व-पटल पर ऐसा कोई भी नाट्यविद् मिलना सम्भव नहीं है जो आचार्य भरत एवं नाट्यशास्त्र से परिचित न हो।

नाट्यशास्त्र में नाट्य-विद्या से सम्बद्ध सर्वविध शास्त्रीय विषयों पर विचार किया गया है। नाट्य शास्त्र के प्रथम अध्याय में नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति से सम्बद्ध एक कथा का वर्णन किया गया है। इन कथा के अनुसार देवगण ब्रह्माजी के समीप गए तथा उनसे एक ऐसे क्रीडनीयक (खिलौने) की यातना की, जो आनन्द के साथ-साथ उपदेश प्रदान करने में भी समर्थ हो तथा हर व्यक्ति उसका उपयोग कर सके।

देव-गण द्वारा की गई याचना की पूर्ति हेतु ब्रह्माजी के जो क्रीडनीयक प्रदान किया गया वह यही नाट्यशास्त्र था। देवों ने यह नाट्यरूपी क्रीडनीयक भरत-मुनि को प्रदान किया। आचार्य भरत ने अपने शत-पुत्रों की सहायता से इन्द्रध्वज महोत्सव के प्रसंग पर सर्वप्रथम नाटक का मंचन किया।

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इस प्रकार नाट्यशास्त्र सोद्देश्य होते हुए विभिन्न पात्रों की भूमिकाओं एवं व्यवहार को स्पष्ट करता है। नाट्योत्पत्ति की कथा के प्रसंग में नाट्य-सम्बद्ध कई महत्त्वपूर्ण विषयों का विवेचन किया गया है। इस पाठ का अंश नाट्योत्पत्ति की कथा से उद्धृत किया गया है।

श्लोक संख्या 1 से 3 तक नाट्य-शास्त्र के उद्गम स्रोत एवं उसके आकार से सम्बद्ध विषय का वर्णन किया गया है। श्लोक संख्या 4 से 8 तक नाट्यशास्त्र के उद्देश्य का वर्णन किया गया है, तथा नवम श्लोक में नाट्य-शास्त्र को संक्षिप्त रूप से परिभाषित किया गया है।

इस प्रकार उपर्युक्त विषयों का वर्णन करते हुए नव श्लोकों का संग्रह यहाँ किया गया है। पाठ में प्रदत्त सभी श्लोक अनुष्टुप छन्द में हैं।

अन्वय, शब्दार्थ एवं अनुवाद

1. अन्वय : अहम् सर्वशास्त्रार्थ – सम्पन्नं, सर्वशिल्पप्रवर्तकम्, नाट्याख्यम् पञ्चमं वेदं सेतिहासं करोमि।

शब्दार्थ : सर्वशास्त्रार्थसम्पन्नम् = सर्व शास्त्रों से युक्त – सर्व चामी शास्त्रार्थः सर्वशास्त्रार्थाः (कर्मधारय समास), तैः सम्पन्नम्, तृतीया तत्पुरुष समास। सर्वशिल्पप्रवर्तकम् = सर्व-शिल्पों को प्रवर्तमान करनेवाला – सर्वं च तत् शिल्पम् इति सर्वशिल्पम् – कर्मधारय समास, तेषां प्रवर्तकम् – षष्ठी तत्पुरुष समास। नाट्याख्यम् = नाट्य नामक।

अनुवाद : मैं सर्वशास्त्रों से सम्पन्न, सर्व शिल्पों के प्रवर्तक, नाट्य नामक पाँचवे वेद को इतिहास के साथ वर्णन करता हूँ।

2. अन्वय : तत: एवं संकल्प्य सर्ववेदान् अनुस्मरत् भगवान् चतुर्वेदाङ्गसम्भवम् नाट्यवेदं चक्रे।।

शब्दार्थ : संङ्कल्प = संकल्प करके – सम् उपसर्ग + कल्प् धातु + ल्यप् प्रत्यय – संबंधक – भूत-कृदन्त। अनुस्मरत् = स्मरण करते हुए – अनु (उपसर्ग) + स्मृ धातु + शतृ प्रत्यय – वर्तमान कृदन्त। चतुर्वेदाङ्गसम्भवम् = चारों वेद एवं उनके छ: अगों से उत्पन्न हुआ।

अनुवाद : इस प्रकार संकल्प कर के वेदों का स्मरण करते हुए भगवान ने चारों वेद एवं वेदांगों से उत्पन्न नाट्य नामक पंचम वेद की रचना की।

3. अन्वय : ऋग्वेदात् पाठ्यम्, सामभ्य: गीतम् एवं यजुर्वेदात् अभिनयान् रसान् आथर्वणादृ अपि जग्राह।

शब्दार्थ : पाठ्यम् = पाठ, संवाद, उक्ति। सामभ्यः = सामवेद से। रसान् = रसों को, संस्कृत साहित्य मे नव प्रकार के रसों का वर्णन है। यथा – शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत एवं शान्त। जग्राह = ग्रहण किया, लिया। ग्रह धातु, परोक्ष भूतकाल, अन्य पुरुष, एकवचन।

अनुवाद : (उन्होंने) ऋग्वेद से पाठ्य, सामवेद से गीत एवं यजुर्वेद से अभिनय तथा अथर्ववेद से रस भी ग्रहण किया।

4. अन्वय : क्वचित् धर्मः, क्वचित् क्रीडा, क्वचित् शम:, क्वचित् हास्यम्, क्वचित् युद्धम्, क्वचित् काम:, क्वचित् वधः।

शब्दार्थ : क्वचित् = कहीं। शमः = शान्ति।

अनुवाद : (नाट्यशास्त्र में) कहीं पर धर्म, कहीं पर क्रीडा, कहीं पर अर्थ, कहीं शान्ति, कहीं हास्य, कहीं युद्ध, कहीं काम तो कहीं पर वध (का वर्णन होता है।)

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5. अन्वय : धर्म-प्रवृत्तानाम् धर्म: कामोपसेविनाम् काम:, दुविनीतानां निग्रहः, विनीतानां दमक्रिया (वर्णिता)।

शब्दार्थ : धर्म प्रवृत्तानाम् = धर्म में प्रवृत्त लोगों का – धर्मे प्रवृत्तानाम् सप्तमी तत्पुरुष। कामोपसेवितानाम् = काम का सेवन करनेवाले लोगों का – कामं सेवितुं शीलं येषाम्। निग्रहः = संयम, नियन्त्रण। दम क्रिया = दमन क्रिया।

अनुवाद : (यहाँ नाट्यशास्त्र में) धर्म में प्रवृत्त लोगों का धर्म, काम का सेवन करनेवाले लोगों का काम दुर्विनीतों का निग्रहः एवं विनीतों की दमन क्रिया (का वर्णन किया गया है।)

6. अन्वय : मया नानाभावोपसम्पन्नं, नाना अवस्थान्तरात्मम् लोकवृत्तानुकरणम् एतत् नाट्यम् कृतम्।।

शब्दार्थ : नानाभावोपसम्पन्नम् = विविध भावों से युक्त → नानाभावैः उपपन्नम् – तृतीया तत्पुरुष समास। नानावस्थान्तरात्मकम् = विविध अवस्थाओं से युक्त / नानावस्था: अन्तरे यस्य तत् – बहुव्रीहि समास। लोकवृत्तानुकरणम् = संसार की घटनाओं का वर्णनम्।

अनुवाद : मैंने विविध भावों से युक्त, विविध अवस्थाओं से युक्त तथा संसार की घटनाओं के अनुकरण से युक्त इस नाट्य शास्त्र की रचना की।

7. अन्वय : एतत् नाट्यम् दुःखार्तानाम्, श्रमार्तानां, शोकार्तानां, तपस्विनाम् विश्रान्तिजननं काले भविष्यति।

शब्दार्थ : दुःखार्तानाम् = दुःख से ग्रस्त लोगों का – दुःखैः आर्ताः – तेषाम्। विश्रान्ति – जननं काले = विश्रान्ति जनक समय पर।

अनुवाद : यह नाटक दुःखार्त-जनों के, श्रमात जनों के शोकात जनों के, तपस्वियों के शान्तिप्रद काल में होगा।

8. अन्वय : एतत् नाट्यम् धर्म्यम्, यशस्यम्, हितं, बुद्धिविवर्धनम् लोकोपदेश-जननं भविष्यति।

शब्दार्थ : धर्म्यम् = धर्म को। बुद्धिविवर्धनम् = बुद्धि की अभिवृद्धि करनेवाले को।

अनुवाद : यह नाटक धर्म, यश, हित एवं बुद्धि की अभिवृद्धि करनेवाला तथा लोकोपदेश-कर्ता होगा।

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9. अन्वय : अस्मिन् नाट्ये यत् न दृश्यते तत् ज्ञानं न, तत् शिल्पं न, सा विद्या न, सा कला न, असौ योग: न, कर्म अपि न (वर्तते)।

शब्दार्थ : दृश्यते = दिखाई देता है, दृश् धातु, कर्मणि प्रयोग, वर्तमानकाल, अन्य पुरुष, एकवचन।

अनुवाद : इस नाटक में जो दिखाई नहीं देता वह ज्ञान नहीं है, वह शिल्प नहीं है वह विद्या नहीं है, वह कला नहीं है, यह योग नहीं है तथा वह कर्म (भी) नहीं है।

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