GSEB Solutions Class 11 Secretarial Practice Chapter 3 कम्पनी की स्थापना विधि

Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 11 Commercial Correspondence and Secretarial Practice Chapter 3 कम्पनी की स्थापना विधि Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Secretarial Practice Chapter 3 कम्पनी की स्थापना विधि

GSEB Class 11 Secretarial Practice कम्पनी की स्थापना विधि Text Book Questions and Answers

स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प पसन्द करके लिखिए ।

प्रश्न 1.
इनमें से कौन-सी बात कम्पनी का लक्षण नहीं है ?
(A) स्वतंत्र व्यक्तित्व
(B) सदस्यों का सीमित दायित्व
(C) स्थायी अस्तित्व
(D) मेट्रो शहर में मुख्य कार्यालय
उत्तर :
(D) मेट्रो शहर में मुख्य कार्यालय

प्रश्न 2.
इनमें से कौन-सा दस्तावेज कम्पनी को रजिस्ट्रेशन कराते समय कम्पनी रजिस्ट्रार को भेजना नहीं पड़ता ?
(A) नियमन पत्र
(B) संचालकों की सूचि
(C) आवेदन पत्र
(D) लाभ-हानि के बारे में विवरण
उत्तर :
(D) लाभ-हानि के बारे में विवरण

प्रश्न 3.
वैचारिक ख्याल की सम्भावनाओं को किसके द्वारा जाँचा जाता है ?
(A) संचालक
(B) अंशधारी
(C) एडवोकेट
(D) निष्णात
उत्तर :
(D) निष्णात

प्रश्न 4.
कम्पनी के सदस्य की मृत्यु होने पर क्या होता है ?
(A) कम्पनी बन्द हो जाती है ।
(B) दूसरे सदस्य लेने पड़ते है ।
(C) कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।
(D) दूसरी कम्पनी की स्थापना करनी पड़ती है ।
उत्तर :
(C) कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।

प्रश्न 5.
कम्पनी का संचालन करते हैं ।
(A) सचिव
(B) अंशधारी
(C) संचालक मण्डल
(D) विभागीय अधिकारी
उत्तर :
(C) संचालक मण्डल

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प्रश्न 6.
स्थापक के विचार मूर्तस्वरूप धारण करे तब कम्पनी अस्तित्व में आती है इसलिए कम्पनी को क्या कहा जाता है ?
(A) सरकारी कम्पनी
(B) सार्वजनिक कम्पनी
(C) स्थापक की मानस सन्तान
(D) टेबल ‘अ’
उत्तर :
(C) स्थापक की मानस सन्तान

प्रश्न 7.
कम्पनी का कौन-सा पत्र आधारभूत/मूलभूत दस्तावेज है ?
(A) नियमन-पत्र
(B) आवेदन-पत्र
(C) विज्ञापन पत्र
(D) बदले का निवेदन
उत्तर :
(B) आवेदन-पत्र

प्रश्न 8.
कम्पनी कानून की व्यवस्था के अनुसार कम्पनी को अस्तित्व में लाने का कार्य इनमें से कौन करते हैं ?
(A) CEO
(B) प्रवर्तक
(C) सचिव
(D) प्रबन्धक
उत्तर :
(B) प्रवर्तक

प्रश्न 9.
कम्पनी का नाम अंश बाजार की सूचि में दर्ज कराने को कहते हैं ?
(A) Table ‘A’
(B) Promoter
(C) Listing
(D) Under writers
उत्तर :
(C) Listing

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए ।

प्रश्न 1.
रजिस्ट्रेशन का प्रमाणपत्र कौन दे सकता है ?
उत्तर :
रजिस्ट्रेशन का प्रमाण-पत्र रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनिज (कम्पनी मामलों से सम्बन्धित रजिस्ट्रार) दे सकता है ।

प्रश्न 2.
प्रवर्तक किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
कम्पनी को कृत्रिम कानूनी व्यक्तित्व को अस्तित्व में लाने का कार्य करनेवाला स्थापक – प्रयोजक या प्रवर्तक (Promotors) कहा जाता है।

प्रश्न 3.
कम्पनी का विशिष्ट लक्षण क्या है ?
उत्तर :
कम्पनी का व्यक्तित्व स्वतंत्र है । यह कम्पनी का एक विशिष्ट लक्षण है । इस तरह कम्पनी का कानूनी स्वतंत्र व्यक्तित्व है ।

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प्रश्न 4.
निवेदन-पत्र (घोषणापत्र) में कौन हस्ताक्षर करते है ?
उत्तर :
निवेदन-पत्र में कम्पनी के नियमन पत्र में जो संचालक, प्रबन्धक अथवा सेक्रेटरी के रूप में जिसका नाम हो उनको सही/हस्ताक्षर करना पड़ता है ।

प्रश्न 5.
कोर्पोरेट क्षेत्र किसे आकर्षित करने की क्षमता रखते है ?
उत्तर :
कोर्पोरेट क्षेत्र व्यावसायिक प्रबन्धकों को आकर्षित करने की क्षमता रखता है ।

प्रश्न 6.
प्रवर्तक का मानस पुत्र किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
प्रवर्तक का मानस पुत्र कम्पनी को कहा जाता है ।

प्रश्न 7.
नियमन पत्र में कौन-सी बातें होती है ?
उत्तर :
आवेदनपत्र में कम्पनी का जो उद्देश्य निश्चित किया गया है, उनको साकार करने के लिए नीतिनियम नियमन पत्र में बनाये जाते है । अर्थात् कम्पनी के आन्तरिक प्रशासकीय नीतिनियम बनाये जाते है ।

प्रश्न 8.
रजिस्ट्रेशन/स्थापना का प्रमाणपत्र प्राप्त करना कौन-सी कम्पनियों के लिए अनिवार्य है ?
उत्तर :
निजी कम्पनी एवं सार्वजनिक कम्पनी के लिए रजिस्ट्रेशन का प्रमाण प्राप्त करना अनिवार्य होता है ।

प्रश्न 9.
संचालकों द्वारा शेयरबाजार में शेयर के लिस्टिंग के लिए आवेदन किसलिए किया जाता है ?
उत्तर :
संचालकों द्वारा शेयर बाजार में शेयर के लिस्टिंग के लिए इसलिए आवेदन किया जाता है जिससे शेयर के क्रय व विक्रय हेतु विस्तृत बाजार मिल सके ।

प्रश्न 10.
कम्पनी द्वारा किस प्रकार के अनुबन्ध किये जाते हैं ?
उत्तर :
कम्पनी द्वारा विभिन्न प्रकार के करार किये जाते है जैसे कि बैंक के साथ, निष्णातों की नियुक्ति सम्बन्धी, प्रत्याभूति अथवा गारन्टी सम्बन्धी, सचिव सम्बन्धी, ऑडिटर सम्बन्धी अनुबन्ध किये जाते हैं ।

प्रश्न 11.
कम्पनी की स्थापना विधि किसे कहते हैं ? ।
उत्तर :
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति कम्पनी की स्थापना का विचार करे तब से लगाकर व्यवसाय प्रारम्भ हो तब तक जो विधि/कार्यवाही की जाती है उन्हें कम्पनी की स्थापना विधि कहा जाता है ।

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प्रश्न 12.
विज्ञापन पत्र कौन-से स्वरूप में हो सकता है ?
उत्तर :
विज्ञापन पत्र नोटिस, परिपत्र या विज्ञापन के स्वरूप में हो सकता है ।

प्रश्न 13.
‘लघुत्तम भरपाई राशि’ संज्ञा समझाइए ।
उत्तर :
लघुत्तम भरपाई राशि अर्थात् विज्ञापन पत्र में दर्शायी गयी कम से कम जितनी पूँजी नकद स्वरूप में एकत्रित होने के बाद ही कम्पनी व्यवसाय प्रारम्भ कर सकती है । उपरोक्त राशि को लघुत्तम भरपाई राशि कहते हैं ।

प्रश्न 14.
टेबल ‘अ’ यानि क्या ?
उत्तर :
टेबल ‘अ’ अर्थात् कम्पनी कानून के अन्तिम भाग में कम्पनी का आदर्श नियमन पत्र दिया गया है । इसे ही Table ‘A’ कहा जाता है ।

प्रश्न 15.
अन्डर्राइटिंग का क्या उद्देश्य है ?
उत्तर :
निश्चित समयमर्यादा में लघुत्तम भरपाई जितनी रकम एकत्रित हो जायेगी ऐसा विश्वास प्राप्त करना अर्थात् शेयर अन्डराइटिंग ।

प्रश्न 16.
व्यक्तिगत मालिकी और साझेदारी संस्था इन दोनों स्वरूपों की तुलना में कम्पनी की स्थापना विधि कैसी है ?
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी और साझेदारी संस्था इन दोनों की तुलना में कम्पनी की स्थापना विधि लम्बी, खर्चीली एवं जटिल है ।

प्रश्न 17.
कम्पनी को अस्तित्व में लाने की प्रक्रिया अर्थात क्या ?
उत्तर :
कम्पनी को अस्तित्व में लाने की प्रक्रिया अर्थात् स्थापना विधि, जिसे प्रमोशन ‘Promotion’ प्रवर्तन के नाम से पहचाना जा सकता है ।

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3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए ।

प्रश्न 1.
कम्पनी के सदस्यों का दायित्व कैसा होता है ?
उत्तर :
कम्पनी के सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा प्राप्त किए गए शेयर तक ही सीमित होता है । अर्थात् सीमित दायित्व होता है ।

प्रश्न 2.
कम्पनी का अस्तित्व किस प्रकार है ?
उत्तर :
कम्पनी का अस्तित्व कायमी/स्थायी है । कम्पनी के सदस्यों की मृत्यु या बीमारी की स्थिति में कम्पनी के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।

प्रश्न 3.
शेयरधारक शेयर परिवर्तन किस आधार पर कर सकते है ?
उत्तर :
नियमन पत्र में दर्शाए हुए नियमों के अनुसार कम्पनी के शेयर में परिवर्तन हो सकता है ।

प्रश्न 4.
विस्तृत जाँच किसलिए जरूरी होती है ?
उत्तर :
यदि विस्तृत जाँच न की जाए तो विपरीत परिणाम आ सकते है । सरकार की नीति, कानूनी नियंत्रण, कच्चे माल की उपलब्धि, माँग एवं आपूर्ति की स्थिति, सहायक सेवाओं की सुविधाएँ इत्यादि बातों की जाँच की जाती है । विस्तृत जाँच से चित्र स्पष्ट होता है और आगे बढ़ना अथवा योजना को बन्द रखना इत्यादि के बारे में निर्णय लिया जाता है ।

प्रश्न 5.
आवेदन-पत्र किस प्रकार का दस्तावेज है ?
उत्तर :
आवेदन-पत्र आधारभूत व मूलभूत दस्तावेज है ।

प्रश्न 6.
नियमन-पत्र किस प्रकार का दस्तावेज है ?
उत्तर :
नियमन पत्र यह कम्पनी का आन्तरिक प्रशासकीय/प्रबन्धकीय नीतिनियम को दर्शानेवाला दस्तावेज है ।

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4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर दीजिए ।

प्रश्न 1.
कम्पनी का अर्थ व व्याख्या दीजिए ।
उत्तर :
अर्थ : कम्पनी का कानूनी रूप से एवं तकनिकी दृष्टि से कोई निश्चित अर्थ नहीं होता । ब्रिटिश कॉमन लॉ के अनुसार, कम्पनी को, ‘कानूनी व्यक्ति’ अथवा ‘कृत्रिम व्यक्ति’ ऐसा अर्थ होता है । व्याख्या (Definition) : कम्पनी अधिनियम 2013 के अनुसार ‘कम्पनी अर्थात् कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार स्थापित हुई या इससे पहले कोई भी कम्पनी अधिनियम के अनुरूप स्थापित कम्पनी ।’

प्रश्न 2.
कम्पनी की स्थापना में विस्तृत जाँच में किन बातों की जाँच की जाती है ?
उत्तर :
कम्पनी की स्थापना में सरकारी नीति, कानूनी नियंत्रण, कच्चे माल की उपलब्धि, मांग और आपूर्ति की स्थिति, सहायक सेवाओं की सुविधाएँ इत्यादि बातों की विस्तृत जाँच की जाती है ।

प्रश्न 3.
आवेदन-पत्र में किन बातों का समावेश किया जाना चाहिए ?
उत्तर :
आवेदन-पत्र मूलभूत दस्तावेज है । जिसमें नाम, उद्देश्य, पूँजी, रजिस्टर्ड ऑफिस इत्यादि बातों का समावेश होता है ।

प्रश्न 4.
संचालकों की सूचि प्रस्तुत करते समय कौन-सी बातें दर्शानी पड़ती है ?
उत्तर :
संचालकों की सूचि प्रस्तुत करते समय कम्पनी के संचालक के रूप में जो व्यक्ति कार्य करनेवाला है, उनका नाम, पता, धन्धा, उम्र, राष्ट्रीयता, इत्यादि बातें दर्शाकर उनके नाम की सूचि कम्पनी रजिस्ट्रार के समक्ष रखी जाती है ।

प्रश्न 5.
संचालकों के सहमति पत्रक (सौगन्धनामा) में कौन-सी बातें दर्शायी जाती है ?
उत्तर :
संचालकों के सहमति पत्रक में निम्न बातें दर्शायी जाती है :

  1. वो किसी भी गुनाह के लिए गुनेगार साबित नहीं हुआ ।
  2. वो किसी भी विश्वासघात या अवैध के लिए गुनेगार साबित नहीं हुआ ।
  3. रजिस्ट्रार के समक्ष जो माहिती दी जा रही है वह सत्य व पूर्ण है ।

प्रश्न 6.
रजिस्ट्रेशन का प्रमाणपत्र प्राप्त करने में आए हुए निवेदन में किसके हस्ताक्षर चाहिए ?
उत्तर :
निवेदनपत्र में एडवोकेट, चार्टर्ड एकाउन्टन्ट, कोस्ट एकाउन्टन्ट अथवा कम्पनी सेक्रेटरी में से जो इस कम्पनी की स्थापना विधि में जुड़े हुए हो उनके हस्ताक्षर करने पड़ते है । कम्पनी के नियमन पत्र में जो संचालक, प्रबन्धक या सेक्रेटरी के रूप में जिसका नाम हो उनको हस्ताक्षर करने पड़ते है ।

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5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दीजिए ।

प्रश्न 1.
कम्पनी के लक्षण समझाइए ।
उत्तर :
कम्पनी के लक्षण निम्न है :

  • स्वतंत्र व्यक्तित्व (Independent Existence) : कम्पनी का व्यक्तित्व स्वतंत्र है । यह कम्पनी का विशिष्ट लक्षण कहलाता है । इस प्रकार कम्पनी का कानूनी स्वतंत्र व्यक्तित्व है ।
  • सीमित दायित्व (Limited Liability) : कम्पनी कानूनी व्यक्तित्व धारण करती है । कम्पनी स्वरूप में शेयरधारकों द्वारा खरीदे गये शेयर तक ही दायित्व सीमित होता है ।
  • स्थायी अस्तित्व (Perpetual Succession) : कम्पनी कृत्रिम व्यक्तित्व धारण करनेवाला व्यक्ति है और यह स्थायी अस्तित्व रखती
    है । कम्पनी के सदस्यों की मृत्यु हो, चाहे बीमार हो कम्पनी के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।
  • अलग सम्पत्ति (Separate Property) : कम्पनी एक अलग व्यक्ति होने के कारण ये अपने नाम से सम्पत्ति खरीद सकती है, बेच सकती है । किसी भी शेयरधारक को कम्पनी की सम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता है ।
  • अंशों में परिवर्तन (Transferability of Shares) : नियमन-पत्र में दर्शाए हुए नियमों के अनुसार कम्पनी के अंशों में परिवर्तन
    अथवा हस्तांतरण हो सकता है ।
  • कम्पनी मुकदमा दायर कर सकती है, कम्पनी के उपर मुकदमा दायर हो सकता है (Capacity of the Company to Sue and be sued) : कम्पनी कानून की दृष्टि से कानूनी व्यक्ति होने के कारण वो किसी के भी सामने कानूनी कदम उठा सकती है । इसी तरह कोई भी त्राहित व्यक्ति कम्पनी द्वारा करार भंग या अन्य किसी कारण से कम्पनी के सामने मुकदमा दायर कर सकता है ।
  • व्यावसायिक संचालन (Professional Management) : कोर्पोरेट क्षेत्र धन्धाकीय प्रबन्धकों को आकर्षित करने की क्षमता रखते है । व्यावसायिक प्रबन्धकों कार्यदक्ष और गतिशील होते है, जो कि कम्पनी के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते है ।
  • वित्तीय व्यवस्था (Finance) : कम्पनी अंश या ऋण-पत्र द्वारा प्राप्त की गई पूँजी से धन्धा को प्रारम्भ कर सकती है ।

प्रश्न 2.
स्थापना के पूर्व की अवस्था/चरण में किन बातों का समावेश होता है ?
उत्तर :
पंजीयन पूर्व की अवस्था/पंजीकरण का प्रमाणपत्र प्राप्त करने की पूर्व की अवस्था (Promotion Preliminary Stage) : सर्वप्रथम
कम्पनी का विचार प्रवर्तक के मन में आता है उसके बाद में पूर्व तैयारी करते है । इस विषय को संक्षिप्त में निम्नानुसार समझाया जा सकता है ।
(1) व्यापार का विचार
(2) प्राथमिक जाँच
(3) विस्तृत गहन जाँच
(4) साधनों की व्यवस्था
(5) वित्तीय व्यवस्था

(1) व्यापार का विचार (Idia Generation) : जब किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को व्यवसाय के विषय में विचार आये तभी से व्यवसाय की स्थापना का बीज बोया गया है ऐसा माना जाता है । स्थापक के मन में जो विचार आया उसमें स्थापक की कल्पनाशक्ति, सृजन शक्ति और चातुर्य कार्य करता है । मानवशक्ति, साधन-सामग्री और पूँजी का समन्वय व संकलन करके जो बीज बोया गया है वह समय बीतने पर विशाल वटवृक्ष का रूप धारण करता है । स्थापक/प्रवर्तक के विचार मूर्त स्वरूप धारण करे तब कम्पनी अस्तित्व में आती है, इसलिए कम्पनी को ‘स्थापक की मानस संतान’ कहा जाता है ।

(2) प्राथमिक जाँच (Primary Investigation) : कम्पनी सम्बन्धी जो प्राथमिक विचार पैदा हुआ हो, अवसर सम्बन्धी विचार किया हो, उसका व्यवहारिक रूप से अमल सम्भव है या नहीं यह जाँच की जाती है । इसके बारे में निष्णातों की सलाह, आय व व्यय का सम्भावित अंदाज लगाने के बाद जाँच संतोषजनक लगे तो विस्तृत जाँच की जाती है ।

(3) विस्तृत जाँच (Intensive Investigation) : उपरोक्त कार्य करने के पश्चात् विस्तृत जाँच अनिवार्य होती है । सरकार की नीति, कानूनी नियंत्रण, कच्चे माल उपलब्धता, माँग व पूर्ति में सामंजस्य, सहायक सेवाओं की प्राप्ति इत्यादि विषयों पर सूक्ष्म निरीक्षण करके जाँच की जाती है । विस्तृत जाँच करने के बाद ही यह निर्णय लिया जाता है कि कम्पनी की योजना आगे बढ़ाई जाये अथवा योजना को बन्द किया जाये ।

(4) साधनों की व्यवस्था (Mobility of Resources) : विस्तृत जाँच के बाद आगे बढ़ने का निर्णय लिया जाये तब आवश्यक यंत्र, साधनसामग्री, औजार, सरकारी लाइसन्स स्थान का चुनाव सम्बन्धी विचार विमर्श किया जाता है । इसके बारे में आवश्यक पत्रव्यवहार, अनुबन्ध/करार करने की कार्यवाही की जाती है ।

(5) वित्तीय व्यवस्था (Arrangement of Finance) : स्थापना सम्बन्धी खर्च करना होगा, विभिन्न साधन सुविधाओं को क्रय करने के लिए पूँजी की आवश्यकता होगी, कम्पनी के प्रारम्भ के प्राथमिक खर्च, कानूनी खर्च, स्थिर सम्पत्तियों को क्रय सम्बन्धी खर्च आदि असंख्य बातों पर खर्च करना पड़ता है, इसलिए पूँजी की सामान्य सूचि बनाने के बाद पूँजी की व्यवस्था करनी पड़ती है ।

प्रश्न 3.
पंजियन (रजिस्ट्रेशन) की अवस्थाओं में क्या करना पड़ता है ?
अथवा
पंजीकरण का प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए आवश्यक दस्तावेजों की सूचि दीजिये, पंजीकरण का प्रमाणपत्र प्राप्त करने की अवस्था की विधि समझाइये ।
उत्तर :
निजी कम्पनी व सार्वजनिक कम्पनी को पूर्व विचार करने के बाद पंजीकरण/रजिस्ट्रेशन/स्थापना का प्रमाणपत्र प्राप्त करना पड़ता है ।
इस हेतु निम्न दस्तावेजों को प्रस्तुत रजिस्ट्रार के समक्ष करना पड़ता है ।

(1) आवेदनपत्र (Memorandum of Association)
(2) नियमन-पत्र (Articles of Association)
(3) संचालकों की सूचि (List of Directors)
(4) संचालकों की लिखित सहमति पत्र (Written Consent of Directors) और सौगन्दनामा
(5) निवेदन (Declaration)
(6) अन्य कम्पनी में हित के बारे में घोषणा (Disclosure of Interest In other Company)

(1) आवेदनपत्र (Memorandum of Association) : यह कम्पनी का मूलभूत दस्तावेज है । इसमें जो कलमें तैयार की जाती है उसके आधार पर कम्पनी का कार्यक्षेत्र स्पष्ट होता है । इनमें कम्पनी का नाम, उद्देश्य, पूँजी, दायित्व, रजिस्टर्ड, पता व स्थापना आदि कलमों का समावेश होता है । सार्वजनिक जनता इसी प्रकार सम्बन्धित पक्षकारों के साथ सम्बन्ध आवेदन पत्र के आधार पर निश्चित रहते है । प्रत्येक कम्पनी अर्थात् निजी कम्पनी व सार्वजनिक कम्पनी के लिये आवेदनपत्र तैयार करके उसको पंजिकृत करवाना अनिवार्य होता है ।

(2) नियमन-पत्र (Articles of Association) : यह कम्पनी का आन्तरिक प्रबन्ध और नीति-नियम और कानून दर्शानेवाला दस्तावेज है । आवेदनपत्र में जो उद्देश्य निश्चित हुआ है उनको साकार करने के लिए कम्पनी के नीति-नियम निश्चित होते हैं । नियमन-पत्र व आवेदनपत्र एकदूसरे का पूरक दस्तावेज कहलाता है । निजी कम्पनी के लिए नियमन-पत्र अनिवार्य होता है जबकि अंशपूँजी से सीमित दायित्ववाली कम्पनी के लिए नियमन-पत्र अनिवार्य नहीं है । इसके बदले में टेबल ‘अ’ Table ‘A’ अपना सकती है ।

(3) संचालकों की सूचि (List of Directors) : कम्पनी के संचालक के रूप में जिसका नाम मनोनित हुआ है उनका नाम, पता, व्यवसाय, उम्र, राष्ट्रीयता आदि दर्शाते हुए उनके नामों की सूचि कम्पनी रजिस्ट्रार को भेजनी पड़ती है ।

(4) संचालकों की लिखित सहमति पत्र व सोगन्दनामा (Written Consent of Directors) : कम्पनी के संचालक के रूप में जिनको
कार्य करना है वह कार्य उनको स्वीकार्य है व उनका नाम इच्छा के विरुद्ध तो नहीं रखा गया है ऐसा दर्शाता हुआ लिखित सहमति पत्रक प्रत्येक संचालक को दना हाता ह ।

इसके अलावा आवश्यक रकम भरनेवाला तथा प्रथम संचालक को रजिस्ट्रार के समक्ष निम्न बातों का सोगन्दनामा (affidavit) प्रस्तुत करना पड़ता है।

  1. वो किसी भी गुनाह के लिए गुनेगार सिद्ध नहीं हुआ |
  2. वो किसी भी विश्वासघात व अवैध कार्यों के लिए गुनेगार सिद्ध नहीं हुआ ।
  3. रजिस्ट्रार के समक्ष जो माहिती दी गई है व सत्य है व पूर्ण है ।

(5) निवेदन (Declaration) : कम्पनी की स्थापना के लिए कानूनी व्यवस्थाओं का पालन किया गया है, यह दर्शाता हुआ निवेदन कम्पनी रजिस्ट्रार के समक्ष पंजिकृत कराना पड़ता है । यह निवेदन छपा हुआ होना चाहिए जिसमें वकील, चार्टर्ड एकाउन्टन्ट, कोस्ट एकाउन्टन्ट . अथवा कम्पनी सेक्रेटरी में से इस कम्पनी की स्थापना विधि में जुड़ा हुआ है, उनको हस्ताक्षर करने पड़ते है । कम्पनी के नियमन पत्र में जो संचालक, प्रबन्धक या सेक्रेटरी के रूप में जिसका नाम हो उनको हस्ताक्षर करने पड़ते है ।

(6) अन्य कम्पनी में हित के बारे में घोषणा (Disclosure of Interest in other Company) : कम्पनी के संचालक, प्रबन्धक, सेक्रेटरी
या रकम भरनेवाला जो दूसरी कम्पनी के साथ जुड़ा हुआ हो और उनमें उनका हित हो तो उनके बारे में माहिती/जानकारी देनी पड़ती है।

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6. विधान समझाओ ।

प्रश्न 1.
‘स्थापना अर्थात् स्थापक की मानस संतान ।’ (Promotion is the brain child of the promoters)
उत्तर :
उपरोक्त विधान सत्य है । जब से स्थापकों के मन में कम्पनी की स्थापना का विचार आये तभी से वैचारिक दृष्टि से कम्पनी का जन्म हो गया है ऐसा कहेंगे । स्थापक अपनी कल्पनाशक्ति, व्यावसायिक सूझ और योग्यता के द्वारा नये व्यवसाय की खोज करके, उसकी जाँच करके, आवश्यक पूँजी, साधन-सामग्री और मानवशक्ति एकत्र करके व्यवसाय की स्थापना करते है । इसलिए कहा जा सकता है कि कम्पनी की स्थापना अर्थात् स्थापक की मानस संतान ।

प्रश्न 2.
‘स्थापक आर्थिक जगत के फरिश्ते है ।’
उत्तर :
स्थापक का कम्पनी की स्थापना में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है, क्योंकि स्थापक कम्पनी की स्थापना की पूर्व तैयारी से लगाकर कम्पनी का पंजियन हो तब तक की विधि अपने नाम से करता है, इस हेतु पूर्वतैयारी, जाँच-पड़ताल, विशेषज्ञों की सलाह, व्यवसाय का प्रकार, लाभ की सम्भावना, व्यवसाय का स्थल, आवश्यक पूँजी, पूँजी के प्राप्ति स्थान आदि के बारे में विचार करता है । इस हेतु आवश्यक सामग्री, जमीन, मकान, यंत्र सामग्री, कच्चा माल, औजार, श्रमिक आदि प्राप्त करते हैं । आवश्यक दस्तावेज निष्णातों से तैयार करवाते हैं तथा कम्पनी का पंजियन करवाते हैं । ये सब निजी जिम्मेदारी को स्वीकार करते हुए करता है । इस तरह स्थापक की कम्पनी की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । अतः कहा गया है कि स्थापक आर्थिक जगत के फरिश्ते है ।

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