GSEB Gujarat Board Textbook Solutions Class 12 Economics Chapter 10 औद्योगिक क्षेत्र Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 12 Economics Chapter 10 औद्योगिक क्षेत्र
GSEB Class 12 Economics औद्योगिक क्षेत्र Text Book Questions and Answers
स्वाध्याय
प्रश्न 1.
स्वाध्याय निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर के लिए सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए :
1. भारत की राष्ट्रीय आय में उद्योगों का योगदान वर्ष 2013-’14 के अनुसार कितना था ?
(A) 16.6%
(B) 27%
(C) 40%
(D) 60%
उत्तर :
(B) 27%
2. वर्ष 2011-’12 में औद्योगिक क्षेत्र में रोजगारी का प्रमाण कितना था ?
(A) 10%
(B) 24.3%
(C) 27%
(D) 49%
उत्तर :
(B) 24.3%
3. बड़े पैमाने के उद्योगों में कितना पूँजीनिवेश आवश्यक है ?
(A) 2 करोड़
(B) 5 करोड़
(C) 10 करोड़ से अधिक
(D) 100 करोड़
उत्तर :
(C) 10 करोड़ से अधिक
4. सार्वजनिक क्षेत्र अर्थात् क्या ?
(A) लोगों द्वारा संचालित क्षेत्र
(B) सरकार द्वारा संचालित क्षेत्र
(C) सहकार वृत्तिवाले क्षेत्र
(D) अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र
उत्तर :
(B) सरकार द्वारा संचालित क्षेत्र
5. विशिष्ट आर्थिक विस्तार का अमल भारत में कब हुआ ?
(A) 1947
(B) 1991
(C) 2000
(D) 2011
उत्तर :
(C) 2000
6. इनमें से कौन-सा देश कृषिप्रधान होते हुए भी विकसित देश है ?
(A) ऑस्ट्रेलिया
(B) अमेरिका
(C) जापान
(D) ब्रिटेन
उत्तर :
(A) ऑस्ट्रेलिया
7. निम्नलिखित में से कौन-सा देश उद्योगप्रधान हैं ?
(A) भारत
(B) जापान
(C) बांग्लादेश
(D) न्यूजीलेन्ड
उत्तर :
(B) जापान
8. वर्ष 1951 में भारत की राष्ट्रीय आय में उद्योगों का हिस्सा कितना था ?
(A) 60%
(B) 40%
(C) 16.6%
(D) 27%
उत्तर :
(C) 16.6%
9. वर्ष 1951 में कितने प्रतिशत श्रमिक उद्योग क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करते थे ?
(A) 40%
(B) 15%
(C) 24.3%
(D) 10.6%
उत्तर :
(D) 10.6%
10. वर्ष 2013-14 में देश की कुल निर्यात आय में कितना हिस्सा उद्योग क्षेत्र का था ?
(A) 2/3
(B) 1/3
(C) 1/2
(D) 1/4
उत्तर :
(A) 2/3
11. अत्यंत छोटे पैमाने के उद्योगों में पूंजीनिवेश की मर्यादा कितनी है ?
(A) 3 करोड़
(B) 25 लाख
(C) 25 करोड़
(D) 3 लाख
उत्तर :
(B) 25 लाख
12. जिन उद्योगों में पूँजीनिवेश रु. 25 लाख से अधिक और रु. 5 करोड़ कम पूँजीनिवेशवाले उद्योगों का प्रकार कौन-सा है ?
(A) बड़े पैमाने के उद्योग
(B) गृह उद्योग
(C) छोटे पैमाने के उद्योग
(D) मध्यम पैमाने के उद्योग
उत्तर :
(C) छोटे पैमाने के उद्योग
13. निम्न में से कौन-सा उद्योग खाताकीय उद्योग है ?
(A) सीमेंट
(B) चीनी
(C) धातु
(D) रेलवे
उत्तर :
(D) रेलवे
14. विशिष्ट आर्थिक विस्तारों को अंग्रेजी में क्या कहते हैं ?
(A) SEZ
(B) IBZ
(C) IIT
(D) IMF
उत्तर :
(A) SEZ
15. कितने नये विशिष्ट आर्थिक विस्तारों की रचना के लिए आवेदन किया गया है ?
(A) 20
(B) 18
(C) 22
(D) 25
उत्तर :
(B) 18
16. वर्ष 2011-’12 में छोटे पैमाने के उद्योगों में कितने लोग रोजगार प्राप्त कर रहे हैं ?
(A) 191.40 लाख
(B) 249.33 लाख
(C) 1012.59 लाख
(D) 150.3 लाख
उत्तर :
(C) 1012.59 लाख
17. वर्ष 2011-’12 में छोटे पैमाने की इकाईयाँ कितनी थी ?
(A) 79.60 लाख
(B) 105.21 लाख
(C) 430.50 लाख
(D) 447.73 लाख
उत्तर :
(D) 447.73 लाख
18. छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा वर्ष 2006-’07 में कितने रूपये निर्यात कमायी करते हैं ?
(A) 1,77,600 रु.
(B) 1,17,750 रु.
(C) 1,17,500 रु.
(D) 77,400 रु.
उत्तर :
(A) 1,77,600 रु.
19. भारत किस प्रकार का देश है ?
(A) विकसित देश
(B) कषि प्रधान देश
(C) साम्यवादी देश
(D) उद्योग प्रधान
उत्तर :
(B) कषि प्रधान देश
20. सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई है …………………………
(A) रिलायन्स
(B) TISCO
(C) रेलवे
(D) टोरेन्ट
उत्तर :
(C) रेलवे
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो वाक्यों में लिखिए :
1. छोटे पैमाने के उद्योग किस प्रकार की उत्पादन पद्धति का उपयोग करते हैं ?
उत्तर :
छोटे पैमाने के उद्योग श्रम प्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग करते हैं ।
2. मध्यम कद के उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिन उद्योगों में रु. 5 करोड़ से अधिक और रु. 10 करोड़ से कम पूँजीनिवेश किया हो, श्रमप्रधान या पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग करते हों तो उन्हें मध्यम पैमाने के उद्योग कहते हैं ।
3. सार्वजनिक निगम का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
जिन इकाइयों की मालिकी केन्द्र या राज्य सरकार की होती है । परंतु उसका संचालन स्वतंत्र रुप से निगम (कोर्पोरेशन) द्वारा किया जाता है । परंतु निगम के संचालन और निर्णय प्रक्रिया में सरकार का विशेष प्रभाव देखने को मिलता हो जैसे – IFFCO, GSFC, GNFC आदि ।
4. भारत में कितने विशिष्ट आर्थिक विस्तार हैं ?
उत्तर :
भारत में 8 विशिष्ट आर्थिक विस्तार हैं ।
5. विश्व में ऑस्ट्रेलिया किस प्रकार के देश के रुप में जाना जाता है ?
उत्तर :
विश्व में ऑस्ट्रेलिया कृषि पर आधारित विकसित देश के रुप में जाना जाता है ।
6. विश्व के देशों में किन तीन उत्पादकीय क्षेत्रों का समन्वय देखने को मिलता है ?
उत्तर :
विश्व के देशों में कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र इस प्रकार तीन उत्पादकीय क्षेत्रों का समन्वय देखने को मिलता है ।
7. भारत जैसे विकासशील देशों में औद्योगिकरण क्यों जरूरी है ?
उत्तर :
भारत जैसे विकासशील देशों में दिखायी देनेवाली बेरोजगारी और गरीबी जैसी विकट समस्या को दूर करने के लिए औद्योगिकरण जरुरी है ।
8. औद्योगिक क्षेत्र का योगदान किस क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर :
सेवा क्षेत्र के विकास में भी औद्योगिक क्षेत्र का योगदान महत्त्वपूर्ण है ।
9. रोजगार की दृष्टि से कौन-से उद्योग महत्त्वपूर्ण होते हैं ?
उत्तर :
रोजगार की दृष्टि से छोटे पैमाने के उद्योग महत्त्वपूर्ण होते हैं ।
10. रोजगार की दृष्टि से कौन-सी उत्पादन पद्धति महत्त्वपूर्ण हैं ?
उत्तर :
रोजगार की दृष्टि से श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति महत्त्वपूर्ण मानी जाती है ।
11. उद्योग कृषि क्षेत्र को कौन-सी टेक्नोलोजी उपलब्ध करवाता है ?
उत्तर :
उद्योग कृषि क्षेत्र को ट्रेक्टर, थ्रेसर, सबमर्सिबल पंप, जंतुनाशक दवा छाटने से आधुनिक यंत्र उपलब्ध करवाते हैं ।
12. गृह उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
मुख्य रुप से परिवार के सदस्य और सादा ओजारो द्वारा बिजली यंत्रों के उपयोग बिना नहिवत पूँजीनिवेश द्वारा चलनेवाले उद्योगों को गृहउद्योग कहते हैं । जैसे : खादी, पापड़, अगरबत्ती ।
13. अत्यंत छोटी इकाई किसे कहते हैं ?
उत्तर :
बिन उद्योग में पूंजीनिवेश की मर्यादा 25 लाख रूपये हो तथा श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग करनेवाले उद्योगों को अत्यंत छोटी इकाई कहते हैं । जैसे – धातु, चमड़ा, उद्योग ।
14. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिन उद्योगों की मालिकी सरकार की और संचालन भी सरकार द्वारा किया जाता हो तो उसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग कहते हैं । जैसे – रेलवे, डाक विभाग ।
15. निजी क्षेत्र के उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिन औद्योगिक इकाई की मालिकी और संचालन 10 व्यक्तिगत (निजी) हो तो उसे निजी क्षेत्र के उद्योग कहते हैं ।
16. उपभोग के उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिन वस्तुओं का उपयोग व्यक्ति सीधे-सीधे (प्रत्यक्ष) उपभोग के लिए करता हो तो उसे उपभोग के उद्योग कहते हैं । जैसे : घी, तेल, साबुन
17. SEZ का पूरा नाम लिखिए ।
उत्तर :
SEZ का पूरा नाम : Special Economic Zone है ।
18. SEZ की स्थापना कब की गयी ?
उत्तर :
SEZ की स्थापना 1 अप्रैल 2000 को हुयी ।
19. FDI का पूरा नाम लिखिए ।
उत्तर :
FDI = Foreign Direct Investment.
20. विशिष्ट आर्थिक विस्तार का उपयोग किन देशों ने किया है ?
उत्तर :
विशिष्ट आर्थिक विस्तार का उपयोग – चीन, भारत, जोर्डन, पोलेन्ड, फिलिपाईन्स, रशिया और उत्तर कोरिया जैसे देशों ने किया है ।
21. छोटे पैमाने के उद्योगों में रोजगार सर्जन की क्षमता अधिक क्यों होती है ?
उत्तर :
छोटे पैमाने के उद्योगों में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग किया जाता है, इसलिए रोजगार सर्जन की क्षमता होते हैं ।
22. संतुलित आर्थिक विकास किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जब देश के सभी क्षेत्रों में एन समान विकास हो तब उसे संतुलित आर्थिक विकास कहते हैं ।
23. आयात-जकात किसे कहते हैं ?
उत्तर :
आयात (विदेशों में से खरीदी) पर कर (Tax) को आयात-जकात कहते हैं ।
24. विशिष्ट आर्थिक विस्तार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
एक ऐसा विस्तार जो विदेशी पूँजीनिवेशकों को आकर्षित करे और नियंत्रणमुक्त वातावरण सर्जित हो, देश की निर्यात बढ़े ऐसे प्रयास करनेवाला विस्तार ।
25. प्रत्यक्ष विदेशी पूँजीनिवेश किसे कहते हैं ?
उत्तर :
दूसरे देश के लोगों द्वारा देश में उत्पादन के उद्देश्य से व्यक्तिगत स्तर पर पूँजीनिवेश किया जाता है तब उसे प्रत्यक्ष विदेशी पूँजीनिवेश कहते हैं ।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए :
1. छोटे पैमाने के उद्योग अर्थात् क्या ?
उत्तर :
जिन उद्योगों में रु. 25 लाख से अधिक और रु. 5 करोड़ से कम पूंजीनिवेश किया गया हो, मात्र श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग किया जाता हो और बड़े उद्योगों के लिए सहायक वस्तुओं का उत्पादन करते हों उन्हें छोटे पैमाने के उद्योग कहते हैं ।
जैसे : ओजार, वाहनों की मरम्मत, उपभोग वस्तुओं का उत्पादन आदि ।
2. संयुक्त पूँजी कंपनी का उदाहरण दीजिए ।
उत्तर :
जिन इकाइयों का संचालन सरकार निजी क्षेत्र की तरह प्रवर्तमान कंपनी धारा के अनुसार करती है । इसके उपरांत यह इकाइयों निश्चित मालिकी अधिकार सरकार सम्बन्धित इकाई के शेयर प्रकाशित करके लोगों या संस्थाओं को बेचकर पूँजी एकत्रित करते हैं । यह इकाइयाँ सरकार के सीधे अंकुश से मुक्त होती हैं । यह ईकाइयों विभागीय इकाई और सार्वजनिक निगम से अलग होती है।
उदाहरण : हिन्दुस्तान मशीन टुल्स, ऑयल एण्ड नेचरल गैस लिमिटेड (ONGC), इन्डियन ऑयल कोर्पोरेशन आदि ।
3. औद्योगिकीकरण से सामाजिक ढाँचे में कैसे परिवर्तन किया जा सकता है ?
उत्तर :
औद्योगिकीकरण से नयी औद्योगिक संस्कृति का सर्जन होता है । जिससे समाज में अनुशासन, कठोरता, परिश्रम, स्पर्धा, टीमवर्क, स्वनिर्भरता, साथ-सहकार, समझ, नवीन संशोधन वृत्ति, संस्थाकीय क्षमता जैसे गुणों का विकास होता है । जबकि अंधश्रद्धा, प्रारब्धवाद, संकुचित मानसिकता जड़ प्रवृत्ति आदि में कमी आती है । समाज परिवर्तनशील बनता है । यह सामाजिक परिवर्तन अर्थतंत्र को विकास के लिए प्रेरक बनते हैं ।
4. कृषि क्षेत्र में आधुनिकीकरण करने के लिए उद्योग किस प्रकार उपयोगी हैं ?
उत्तर :
कृषि क्षेत्र के तीव्र विकास के लिए एवं जमीन एवं श्रम की उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से खेती का आधुनिकीकरण आवश्यक है । जिसमें उद्योगों का महत्त्वपूर्ण योगदान है । उद्योग क्षेत्र कृषि क्षेत्र को आधुनिक टेक्नोलोजी के रुप में ट्रेक्टर, थ्रेसर, पंप, जंतुनाशक दवा छांटने के यंत्र उपलब्ध करवाते हैं । तथा उद्योगों में रासायनिक खाद, जंतुनाशक दवा आदि का उत्पादन भी किया जाता है । संक्षिप्त में ऐसा कह सकते हैं कि उद्योगों के द्वारा कृषि क्षेत्र का खूब अधिक विकास होता है ।
5. विशिष्ट आर्थिक विस्तार अर्थात् क्या ?
उत्तर :
विशिष्ट आर्थिक विस्तारों को अंग्रेजी में SEZ (Special Economic Zone) के नाम से जानते हैं । भारत में विशिष्ट आर्थिक विस्तार का अमल 1 अप्रैल 2000 से शुरू हुआ । जिसका मुख्य उद्देश्य विदेशी पूँजीनिवेश को आकर्षित करना और अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धा के अनुसार अंकुश मुक्त निर्यात करने के लिए वातावरण सर्जित करना । जिससे देश में निर्यात बढ़े और देश के उत्पादक क्षेत्र विश्व के समकक्ष बन सकें ।
6. अर्थतंत्र के मजबूत ढाँचे के लिए औद्योगिकीकरण जरूरी है ? कैसे ?
उत्तर :
औद्योगिक क्षेत्र द्वारा लोहा, स्टील, सीमेन्ट जैसी वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जो देश में सिंचाई योजना, सड़क-रास्ते, पुल आदि के निर्माण में उपयोगी हैं । इसके उपरांत उद्योगों द्वारा वाहनव्यवहार के साधन जैसे कि बस, ट्रक, रेलवे, हवाई जहाज, कार, द्विचक्रीय वाहन आदि उपलब्ध करवाये जाते हैं । जो अर्थतंत्र के ढाँचे को मजबूत बनाता है । संरक्षण से संबंधित शस्त्रों का उत्पादन करने से अर्थतंत्र विदेशों पर से अवलंबन कम होता है । और अर्थतंत्र मजबूत बनता है ।
7. विभागीय उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जब सरकार कुछ औद्योगिक इकाइयों की अपने सीधे देखरेख के अंतरगत एक खाते (विभाग) के रुप में चलाती है । ऐसी इकाइयों की आय और खर्च की व्यवस्था अंदाजपत्र में समाविष्ट की जाती हैं । ऐसे औद्योगिक क्षेत्रों को विभागीय उद्योगों के नाम से जानते हैं । जैसे – रेलवे, डाक सेवा आदि ।
8. सहकारी क्षेत्र के उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
छोटे मालिकों के शोषण को रोकने के लिए, श्रमिको के शोषण को रोकने के लिए, ग्राहकों के शोषण को रोकने के लिए तथा इन सभी को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से की जानेवाली ऐसी प्रवृत्तियाँ सहकारी क्षेत्र के उद्योग कहते हैं । जैसे – IFFCO, KRIBHCO आदि ।
9. पूँजी वस्तु उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिन वस्तुओं का उत्पादन अर्ध स्वरुप में हो अर्थात् ऐसी वस्तुओं कि जिसका उत्पादन हुआ है परंतु उत्पादन का एक और सोपान बाकी हो इस प्रकार की वस्तुओं को पूँजी वस्तु कहते हैं । और इस प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करनेवाली इकाईयाँ पूँजी वस्तु के उद्योग कहते हैं । जैसे – सूत, लोहे के पतरा, यंत्र आदि ।
10. सरकार टेक्निकल कौशल्य और प्रशिक्षण क्यों देती है ?
उत्तर :
उदारीकरण और वैश्वीकरण के समय में स्थानिक उद्योग स्पर्धा में टिक सके और सफलता प्राप्त कर सके इस उद्देश्य से सरकार उद्योगों के मालिको को टेक्निकल और व्यवसायिक प्रशिक्षण देती है । उन्हें विश्व में प्रवर्तित नयी टेक्नोलोजी, नवीन वस्तुएँ, नवीन विक्रय व्यवस्था, नवीन संचालन आदि के गुण सिखाने के उद्देश्य से प्रशिक्षण देती है । जिससे स्थानिक उद्योग स्पर्धा में टिक सकें ।
11. सरकार की विविध संस्थाओ और नीतियों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
सरकार विविध औद्योगिक नीति की रचना और समयानुसार उसमें आवश्यक परिवर्तन करके उद्योगों की सहायता करते है । इसके उपरांत आयातनीति, निर्यात नीति, मुद्राकीय नीति, राजकोषीय नीति, करनीति आदि नीतियों उद्योगों के अनुकूल बने ऐसी व्यवस्था करते है । इसके उपरांत इन्डस्ट्रियल एक्ट, कंपनी एक्ट, बैंकिंग एक्ट, कम्पटीशन एक्ट आदि कानून बनाकर अयोग्य स्पर्धा को रोकने का प्रयत्न करते है । तथा IDBI, SIDBI, ICICI, IFCI, LIC, GIC आदि संस्थाओं की रचना करके वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाती है । तथा विदेशी पूँजी को आकर्षित करती है ।
12. भारत में कितने विशिष्ट आर्थिक विस्तारों (SEZ) की रचना की गयी है ? कौन-कौन से ?
उत्तर :
भारत में आठ विशिष्ट आर्थिक विस्तारों (SEZ) की रचना की गयी है । जिनमें सांताक्रूज (महाराष्ट्र) कोचीन (केरल), कंडला और सूरत (गुजरात), चैन्नई (तमिलनाडु), विशाखापट्टनम् (आंध्र प्रदेश), फाल्ता (पश्चिम बंगाल) और नोइडा (उत्तर प्रदेश) का समावेश होता है ।
13. ‘भारत में छोटे पैमाने के उद्योग अधिक उपयोगी हैं ।’ विधान की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
भारत जैसे विकासशील देशों में जहाँ पूँजी की कमी हो तथा श्रम अधिक हो तो कम पूँजी में अधिक रोजगार दे सके ऐसे उद्योगों की आवश्यकता होती है । इस संदर्भ में कम पूँजीनिवेश में छोटे पैमाने के उद्योग स्थापित हो सकते हैं । तथा इन उद्योगों में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग होने से रोजगार के अवसर भी अधिक सर्जित होते हैं । इस प्रकार भारत जैसे जनसंख्या बाहुल्यवाले देशों में छोटे पैमाने के उद्योग अधिक उपयोगी हैं ।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर दीजिए :
1. उद्योगों का महत्त्व दर्शानेवाले तीन मुद्दे समझाइए ।
उत्तर :
उद्योगों का महत्त्व निम्नानुसार हैं :
(1) राष्ट्रीय आय में वृद्धि : स्वतंत्रता के बाद भारत में उद्योगों का विकास हुआ है । जिससे राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कम हुआ है । और उद्योगों का राष्ट्रीय आय में हिस्सा बढ़ा है । जैसे : 1950-51 में राष्ट्रीय आय में उद्योगों का हिस्सा 16.6% था, जो बढ़कर 2013-14 में 27% हो गया है । इस प्रकार राष्ट्रीय आय की दृष्टि से उद्योग क्षेत्र महत्त्वपूर्ण माना जाता है ।
(2) रोजगारी : बेरोजगारी की समस्या को हल करने में उद्योग सहायक बने हैं । उद्योग क्षेत्र का विकास होने से रोजगार के अवसर सर्जित हुये हैं । और रोजगारी में औद्योगिक क्षेत्र का हिस्सा बढ़ा है । जैसे – 1951 में 10.6% श्रमिक उद्योग क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करते थे । वह बढ़कर 2011-12 में 24.3 प्रतिशत हो गया है ।
(3) निर्यात आय : अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उद्योगिक क्षेत्र की वस्तुओं का मांग और कीमत अधिक होती है । इसलिए औद्योगिक क्षेत्रों का विकास करके उत्पादन बढ़ाकर निर्यात करके विदेशी मुद्रा प्राप्त कर सकते हैं । तथा आयात प्रतिस्थापन्न वस्तुओं का उत्पादन करके विदेशी मुद्रा की बचत भी करते हैं । जैसे : 2013-14 में कुल निर्यात कमाई में उद्योगों का हिस्सा 2/3 है ।
(4) अर्थतंत्र का संतुलित विकास : अर्थतंत्र के संतुलित विकास के उद्योग क्षेत्र महत्त्वपूर्ण माना जाता है । उद्योगों का विकास होने लोगों की कृषिजन्य (प्राथमिक) आवश्यकताओं की माँग बढ़ती है । तथा बचत होने से मोजशोन की वस्तुओं की मांग बढ़ती है । जो उद्योगों द्वारा उत्पादन किया जाता है । तथा सरकार भी सार्वजनिक साहस स्थापित करके पिछड़े क्षेत्रों का विकास किया जाता है ।
(5) कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण के लिए : कृषि क्षेत्र के तीव्र विकास, जमीन और श्रम की उत्पादकता बढ़ाने के लिए आधुनिकीकरण जरूरी हैं । जिसमें उद्योग क्षेत्र महत्त्वपूर्ण हैं । उद्योग खेती को ट्रेक्टर, थ्रेसर, पंप, आदि आधुनिक टेक्नोलोजी तथा रासायनिक खाद, जन्तुनाशक दवा आदि का उत्पादन करके कृषि उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं ।
2. पूंजीनिवेश के आधार पर औद्योगिक ढाँचे को समझाइए ।
उत्तर :
औद्योगिक ढाँचे का विचार पूँजीनिवेश, मालिकी उत्पादित वस्तु के आधार पर किया जाता है । पूँजीनिवेश के आधार पर उद्योगों के प्रकार निम्नानुसार हैं :
- गृह उद्योग : मुख्य रुप से परिवार के सदस्य और सादा औजारों द्वारा बिजली के यंत्रों के बिना तथा नहींवत पूँजीनिवेश द्वारा चलनेवाले उद्योगों को गृह उद्योग कहते हैं । जैसे – खादी, पापड़, खाखरा आदि ।
- अत्यंत छोटी इकाई : जिन उद्योगों में पूँजीनिवेश की मर्यादा रु. 25 लाख हो तथा संपूर्ण पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग होता हो तो ऐसे उद्योगों को अत्यंत छोटे उद्योग कहते हैं । जैसे : धातु, चमड़ा उद्योग आदि ।
- छोटे पैमाने के उद्योग : जिन उद्योगों में पूँजीनिवेश की मर्यादा रु. 25 लाख से रु. 5 करोड़ तक होती है । तथा मात्र श्रमप्रधान
उत्पादन पद्धति का उपयोग होता हो तथा बड़े उद्योगों के लिए सहायक वस्तुओं का उत्पादन करते हो तो उसे छोटे पैमाने के उद्योग कहते हैं । जैसे : ओजार, वाहनों की मरम्मत, उपभोग वस्तुओं का उत्पादन । - मध्यम पैमाने के उद्योग : जिन उद्योगों में रु. 5 करोड़ से अधिक और रु. 10 करोड़ से कम पूंजीनिवेश किया हो, श्रमप्रधान अथवा पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग होता हो ऐसे उद्योगों को मध्यम पैमाने के उद्योग कहते हैं । जैसे – यंत्र, रसायन, इलेक्ट्रोनिक साधन आदि ।
- बड़े पैमाने के उद्योग : जिन उद्योगों में रु. 10 करोड़ से अधिक पूँजीनिवेश किया हो, मात्र पूँजी प्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग होता हो तो उसे बड़े पैमाने के उद्योग कहते हैं । जैसे : रेलवे के साधन, लोहा, सीमेंट आदि ।
3. मालिकी के आधार पर औद्योगिक ढाँचे को समझाइए ।
उत्तर :
मालिकी के आधार पर उद्योगों के प्रकार निम्नानुसार हैं :
(1) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग : जिन औद्योगिक इकाई की मालिकी और संचालन सरकार के द्वारा किया जाता हो तो उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग कहते हैं ।
उदा. रेलवे, टेलीफोन, डाक विभाग आदि ।
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में विभागीय उद्योग, सार्वजनिक निगम, संयुक्त पूँजी कंपनी आदि स्वरूप भी देखने को मिलते हैं ।
(2) निजी क्षेत्र के उद्योग : जिन उद्योगों की मालिकी और संचालन व्यक्तिगत (निजी) हो उसे निजी क्षेत्र के उद्योग कहते हैं । जैसे : कार, टीवी, बूट-चंपल आदि बनानेवाली इकाइयाँ ।
(3) संयुक्त क्षेत्र के उद्योग : संयुक्त क्षेत्र के उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में सरकार उद्योगों की मालिकी अधिकार शेयर
स्वरूप में लोगों ओर पेढियों को 51% या उससे अधिक प्रमाण विक्रय करती है जिससे उद्योग संयुक्त क्षेत्र के होने पर भी वह सरकार के अधिकार क्षेत्र में ही रहती है, जैसे : GSPC
(4) सहकारी क्षेत्र के उद्योग : छोटे (सीमांत) मालिकों का शोषण रोकने के लिए, श्रमिकों का शोषण रोकने के लिए, ग्राहकों के शोषण को रोकने के लिए और सभी के हित के लिए मुख्य उद्देश्य से की जानेवाली प्रवृत्तियों को सहकारी क्षेत्र के उद्योग कहते हैं । जिनमें जीवन उपयोगी वस्तुओं की कुछ दुकाने, दूध की डेरी, कुछ बैंकें आदि का संचालन सहकारी स्तर पर होता है ।
जैसे – IFFCO, KRIBHCO आदि ।
4. छोटे पैमाने के उद्योग का महत्त्व दर्शानेवाले तीन मुद्दे समझाइए ।
उत्तर :
छोटे पैमाने के उद्योगों का महत्त्व निम्नानुसार हैं :
(1) रोजगारी का सर्जन : छोटे पैमाने के उद्योगों में श्रम प्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग किया जाता है । जिससे रोजगारी के अवसर अधिक सर्जित होते हैं । जैसे – 1994-’95 में छोटे पैमाने के उद्योगों ने 191.40 लाख रोजगारी सर्जित किये थे वह बढ़कर 2011-’12 में 1012.59 लाख रोजगार देनेवाला क्षेत्र बन गया है ।
(2) उत्पादन वृद्धि : बड़े पैमाने के उद्योगों में यंत्रों का उत्पादन होता है । लेकिन उपभोग की वस्तुओं का उत्पादन छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा किया जाता है । और इन उद्योगों द्वारा तीव्र उत्पादन वृद्धि कर सकते है । वर्ष 1994-95 में रु. 4,22,154 करोड़ का उत्पादन हुआ था वह बढ़कर वर्ष 2011-12 में बढ़कर रु. 18,34,332 करोड़ का हो गया । इस प्रकार कम पूंजीनिवेश में अधिक उत्पादन किया जाता है ।
(3) निर्यात में वृद्धि : भारत की निर्यात में छोटे पैमाने के उद्योगों का योगदान उल्लेखनीय है । छोटे पैमाने के उद्योगों के द्वारा वर्ष 1994-95 में रु. 29.068 करोड़ की निर्यात हुयी थी । वह बढ़कर 2006-07 में रु. 1,77,600 तक की वृद्धि हुयी है । इस प्रकार छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की मांग बढ़ी है ।
(4) श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति : श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति में उत्पादन श्रम पर आधारित होता है । जिसमें श्रम अधिक और कम पूँजी का उपयोग होता है । तब नियोजक और जमीन के प्रमाण को स्थिर रख सकते हैं । तथा रोजगार के अवसर भी बढ़ते है ।
(5) संतुलित प्रादेशिक विकास : बड़े उद्योगों की अपेक्षा छोटे पैमाने के उद्योग कम पूँजी, कम साधन, कम संसाधनों द्वारा देश की किसी भी हिस्से में शुरू कर सकते हैं । जिससे मात्र विकसित प्रदेशों तक ही लाभ नहीं संतुलित विकास होता है । इस प्रकार छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा धनिकों और गरीबों, विकसित और अल्पविकसित प्रदेशों की असमानता को कम कर सकते हैं ।
5. विशिष्ट आर्थिक विस्तार का महत्त्व संक्षिप्त में समझाइए ।
उत्तर :
भारत में विशिष्ट आर्थिक विस्तार का अमल 1 अप्रैल, 2000 से हुआ । जिसका मुख्य उद्देश्य विदेशी पूँजीनिवेश को आकर्षित करना और अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धा के अनुसार नियंत्रण मुक्त निर्यात करने के लिए वातावरण सर्जित करना है । जिसमें निर्यात बढ़ाकर देश के उत्पादन क्षेत्रों को विश्व के समकक्ष बनाना हैं । विशिष्ट आर्थिक विस्तार (SEZ) का महत्त्व निम्नानुसार हैं :
- SEZ में टेक्स में राहत देकर विदेशी पूँजीनिवेश को आकर्षित किया जाता है ।
- भारत में SEZ की स्थापना चीन के विशिष्ट आर्थिक विस्तार के मोडल से विकसित किया गया है ।
- SEZ प्रत्यक्ष विदेशी पूँजीनिवेश (FDI = Foreign Direct Investment) द्वारा निर्यात करनेवाले उत्पादित क्षेत्रों के विकास में उपयोगी है ।
- SEZ एक एसा विस्तार है जहाँ आर्थिक कानून देश के कानून से भिन्न होते हैं ।
- SEZ की स्थापना चीन, भारत, जोर्डन, पोलेन्ड, फिलिपाईन्स, रशिया और उत्तर कोरिया जैसे देशों ने की है ।
- कोई भी निजी व्यक्ति, सरकार, संयुक्त क्षेत्र, राज्य सरकार या उनके प्रतिनिधि संस्था द्वारा विशिष्ट आर्थिक विस्तार (SEZ) का निर्माण किया जाता है ।
- विदेशी संस्था द्वारा SEZ का निर्माण भारत में कर सकते हैं ।
- इन सभी विशिष्ट आर्थिक विस्तारों को सरकार द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है ।
6. उत्पादित वस्तु के स्वरूप के आधार पर उद्योगों के प्रकारों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
उत्पादित वस्तु के स्वरूप के आधार पर उद्योगों के प्रकार दो हैं :
- उपभोग की वस्तु के उद्योग : जो वस्तुएँ लोगों की प्रत्यक्ष आवश्यकताओं को संतुष्ट करे ऐसी वस्तुओं को उपभोग की वस्तुएँ कहते हैं । ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करनेवाले उद्योगों को उपभोग की वस्तु के उद्योग कहते हैं । जैसे : घी, तेल, साबुन, शेम्पु, पाउडर आदि बनानेवाले उद्योग ।
- पूँजी वस्तु के उद्योग : जिन वस्तुओं का उत्पादन अर्धस्वरूप हो अर्थात् ऐसी वस्तुएँ कि जिसका उत्पादन हुआ हो परंतु उत्पादन के एक और सौपान बाकी हो ऐसी वस्तु को पूँजी वस्तु कहते हैं । और इस प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करनेवाले उद्योगों को पूँजी वस्तु के उद्योग कहते हैं । जैसे : सूत, लोहे के पतरे, यंत्र आदि ।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक दीजिए :
1. औद्योगिक क्षेत्र का महत्त्व विस्तारपूर्वक समझाइए ।
उत्तर :
देश के आर्थिक विकास के लिए, कृषि क्षेत्र के विकास के लिए, रोजगार के नये अवसर सर्जित करने के लिए अर्थतंत्र के आंतरिक
साधनों के महत्तम उपयोग के लिए लोगों की आय में तीव्र वृद्धि के लिए और जीवनस्तर को सुधारने के लिए औद्योगिकीकरण आवश्यक है । उद्योगों का महत्त्व निम्नानुसार है :
(1) राष्ट्रीय आय में योगदान : भारत में स्वतंत्रता के समय कृषि क्षेत्र का अर्थतंत्र पर प्रभुत्व था । परंतु उद्योगों के विकास के कारण कम हुआ है । कृषि क्षेत्र की अपेक्षा उद्योगों का राष्ट्रीय आय में हिस्सा बढ़ा है । जैसे – 1951 में राष्ट्रीय आय में उद्योगों का हिस्सा 16.6% था वह बढ़कर 2013-14 में 27% हो गया है ।
(2) रोजगार में योगदान : भारत अति जनसंख्या रखनेवाला देश है । जिसमें श्रम पूर्ति अधिक होने से और रोजगार के अवसर कम होने से बेरोजगारी की समस्या खड़ी होती है । इसलिए छोटे पैमाने के उद्योगों में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग करके रोजगार के अवसर सर्जित होते हैं । जिससे बेरोजगारी की समस्या दूर होती है । रोजगार देने में भी उद्योगों का हिस्सा बढ़ा है । जैसे 1951 में 10.6% श्रमिको को उद्योग क्षेत्र रोजगार उपलब्ध करवाता था । वह बढ़कर वर्ष 2011-12 में 24.3% हो गया ।
(3) निर्यात द्वारा आय : अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर औद्योगिक वस्तुओं की कीमत और माँग अधिक होती है । इसलिए औद्योगिक वस्तुओं का उत्पादन करके निर्यात रके विदेशी मुद्रा कमा सकते है । वर्ष 2013-14 में देश की कुल निर्यात में उद्योगों का हिस्सा 2/3 है । इस प्रकार विदेशी मुद्रा की दृष्टि से उद्योग महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं ।
(4) अर्थतंत्र का संतुलित विकास : देश के औद्योगिक विकास होने से लोगों की प्राथमिक आवश्यकता की माँग बढ़ने के साथ आय का एक हिस्सा बचत होने से लोगों की मौज-शोख और आनंद प्रमोद की आवश्यकता की माँग बढ़ती है । जिसे उद्योगों द्वारा ही पूरा किया जाता है । सरकार भी पिछड़े विस्तारों में सार्वजनिक साहस स्थापित करके संतुलित विकास करने का प्रयत्न किया जाता है ।
(5) कृषि का आधुनिकीकरण : कृषि क्षेत्र के तीव्र विकास के लिए और जमीन और श्रम की उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण आवश्यक है । उद्योग क्षेत्र द्वारा कृषि क्षेत्र के सहायक के रुप में नवीन टेक्नोलोजी ट्रेक्टर थ्रेसर, सबमर्सिबल पंप उपलब्ध करवाता है । तथा उद्योग क्षेत्र में रासायनिक खाद, जंतुनाशक दवा आदि का उत्पादन भी संभव है । कुल मिलाकर उद्योग कृषि क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
(6) अर्थतंत्र का मजबूत ढाँचा : अर्थतंत्र के मजबूत ढाँचे के सर्जन में औद्योगिक क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है । औद्योगिक क्षेत्र द्वारा लोहा (स्टील), सीमेन्ट, जैसी वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जो देश में सिंचाई योजना, सड़क-रास्ते, पुल आदि निर्माण में उपयोगी हैं । इसके उपरांत संरक्षण के साधन, वाहन-व्यवहार के साधन जैसे बस, ट्रक, रेलवे, हवाई जहाज, कार आदि भी उद्योगों द्वारा उपलब्ध कराये जाते हैं । इस प्रकार अर्थतंत्र का मजबूत ढाँचा बनता है ।
2. औद्योगिक ढाँचे की विस्तृत चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
भारत में आयोजन दरम्यान औद्योगिक क्षेत्र अधिक प्रगतिशील बना है । औद्योगिक क्षेत्र का ढाँचा पूँजीनिवेश मालिकी या उत्पादित वस्तु के स्वरूप पर आधारित होता है । जिसकी चर्चा निम्नानुसार करेंगे :
(A) पूँजीनिवेश के कद के आधार पर उद्योगों के प्रकार : पूँजीनिवेश के आधार पर उद्योगों के पाँच प्रकार हैं :
- गृह उद्योग : जिन उद्योगों में उत्पादन परिवार के सदस्यों द्वारा घर में नहींवत् पूँजीनिवेश द्वारा किया जाये तो उसे गृह उद्योग कहते हैं । जैसे : पापड़, खादी उद्योग आदि ।
- अत्यंत छोटी इकाई : जिन उद्योगों में पूंजीनिवेश की मर्यादा रु. 25 लाख तक ही हो तथा संपूर्ण श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति द्वारा
उत्पादन किया जाता हो तो उसे अत्यंत छोटी इकाई कहते हैं । जैसे : धातु, चमड़ा आदि । - छोटे पैमाने के उद्योग : जिन उद्योगों में पूंजीनिवेश की मर्यादा रु. 25 लाख से अधिक और रु. 5 करोड़ से कम किया गया हो। तथा मात्र श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग किया जाता हो और बड़े उद्योगों के लिए सहायक हो तो उन्हें छोटे पैमाने के उद्योग कहते हैं । जैसे : रंग-रसायन, स्टार्च, उपभोग की वस्तुओं का उत्पादन आदि ।
- मध्यम पैमाने के उद्योग : जिन उद्योगों में रु. 5 करोड़ से अधिक और रु. 10 करोड़ से कम पूंजीनिवेश किया गया हो श्रमप्रधान अथवा पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग होता हो ऐसे उद्योगों को मध्यम पैमाने के उद्योग कहते हैं । जैसे : यंत्र, रसायन, इलेक्ट्रोनिक साधन आदि ।
- बड़े पैमाने के उद्योग : जिन उद्योगों में पूँजीनिवेश रु. 10 करोड़ से अधिक हो, पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग होता हो तो ऐसे उद्योगों को बड़े पैमाने के उद्योग कहते हैं । जैसे : रेलवे के साधन, बड़े साधन, लोहा आदि ।
(B) मालिकी के आधार पर उद्योगों के प्रकार :
(1) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग : जिन औद्योगिक इकाई की मालिकी एवं संचालन सरकार का हो तो उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग कहते हैं । जैसे – रेलवे, टेलीफोन, डाक सेवा आदि ।
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को तीन विभागों में वर्गीकृत किया गया है :
- विभागीय (खाताकीय) उद्योग : जब सरकार कुछ औद्योगिक इकाइयों को अपने सीधे अन्तरगत एक विभाग के रुप में चलाती है । इन इकाइयों की आय और खर्च की व्यवस्था अंदाजपत्र में होती है । ऐसी औद्योगिक इकाइयों को विभागीय या खाताकीय उद्योग कहते हैं । जैसे – रेलवे, डाक सेवा आदि ।
- सार्वजनिक निगम : जिन इकाइयों की मालिकी केन्द्र या राज्य सरकार की हो । परंतु संचालन स्वतंत्र रुप से निगम (कोर्पोरेशन) द्वारा किया जाता है । परंतु निगम के संचालन और निर्णय प्रक्रिया में सरकार का विशेष प्रभाव देखने को मिलता है । जैसे : जीवन वीमा निगम, स्टेट ट्रान्सपोर्ट निगम ।
- संयुक्त पूँजी कंपनी : जिन इकाइयों का संचालन सरकार निजी क्षेत्र की तरह प्रवर्तमान कंपनी कानून के अनुसार करती है । इन इकाइयों की निश्चित मालिकी अधिकार सरकार सम्बन्धित इकाइयों को शेयर प्रकाशित करके लोगो या संस्थाओं को बेचकर एकत्रित करती है । यह सरकार के सीधे नियंत्रण से मुक्त होती है । यह उपर की दोनों क्षेत्रों से अलग होती है । जैसे – हिन्दुस्तान मशीन टूल्स ।
(2) निजी क्षेत्र के उद्योग : जिन औद्योगिक इकाइयों की मालिकी और संचालन व्यक्तिगत (निजी) हो ऐसी इकाइयों को निजी क्षेत्र के उद्योग कहते हैं । जैसे : कार, टीवी, बूट-चंपल आदि ।
(3) संयुक्त क्षेत्र के उद्योग : संयुक्त क्षेत्र के उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में सरकार उद्योगों की मालिकी अधिकार शेयर स्वरूप में लोगों या पेढियों को 51% या उससे अधिक प्रमाण में देती है । जिससे उद्योग संयुक्त क्षेत्र का होने पर भी वह सरकार
के अधिकार क्षेत्र में ही रहती है । जैसे : GSPC
(4) सहकारी क्षेत्र के उद्योग : छोटे (सीमांत) मालिको, श्रमिकों, ग्राहकों के शोषण को रोकने के लिए और इन सभी के लाभ (हित) के उद्देश्य से की जानेवाली प्रवृत्तियों को सहकारी क्षेत्र के उद्योग कहते हैं । जिनमें जीवनजरूरी वस्तुओं की कुछ दुकाने, दूध की डेरी, बैंक आदि का संचालन सहकारी स्तर पर होता है । जैसे : IFFCO, KRIBHCO (C)
(C) उत्पादित वस्तु के स्वरूप के आधार पर उद्योगों के प्रकार :
(1) उपभोग की वस्तु के उद्योग : जो वस्तुएँ लोगों की प्रत्यक्ष आवश्यकताओं को संतुष्ट करें ऐसी वस्तुओं को उपभोग की वस्तुएँ कहते हैं । और एसी वस्तुओं के उत्पादन करनेवाले उद्योगों को उपभोग की वस्तु के उद्योग कहते हैं । जैसे : घी, तेल, साबुन, शेम्पू, पाउडर आदि ।
(2) पूँजी वस्तु के उद्योग : जिन वस्तुओं का उत्पादन, अर्ध स्वरूप में होता है अर्थात् कि ऐसी वस्तु कि जिसका उत्पादन हुआ है परंतु उत्पादन का एक सोपान बाकी (शेष) हो तो ऐसी वस्तुओं को पूँजी वस्तुएँ कहते हैं । और इस प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करनेवाली इकाइयों को पूँजी वस्तु के उद्योग कहते हैं । जैसे – सूत, सन, कपास, यंत्र, लोहे के पतरा आदि ।
3. छोटे पैमाने के उद्योगों का महत्त्व विस्तारपूर्वक समझाइए ।
उत्तर :
जिन देशों में पूँजी का अभाव हो, जनसंख्या अधिक हो उन देशों में कम पूंजीनिवेश में छोटे पैमाने के उद्योगों की स्थापना करके, श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग करके रोजगार के अवसर बढ़ाकर देश का विकास कर सकते हैं । भारत जैसे विकासशील देशों में छोटे पैमाने के उद्योग महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं ।
भारत में छोटे पैमाने के उद्योगों का महत्त्व निम्नानुसार हैं :
(1) रोजगारी का सर्जन : छोटे पैमाने के उद्योगों में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग किया जाता है । परिणाम स्वरूप पूंजी प्रधान बड़े उद्योगों से रोजगार सर्जन की क्षमता अधिक होती है । जैसे : वर्ष 1994-’95 में छोटे पैमाने के उद्योगों ने 191.40 लाख रोजगारों का सर्जन किया था, वह बढ़कर 2011-’12 में 1012.59 लाख रोजगार देनेवाला क्षेत्र बन गया ।
(2) उत्पादन वृद्धि : सामान्य रुप से बड़े पैमाने के उद्योग यंत्रों का उत्पादन करते हैं, परंतु दैनिक उपभोग की वस्तुओं का उत्पादन छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा किया जाता है । और इन उद्योगों द्वारा तीव्र उत्पादन वृद्धि भी की जा सकती है । जैसे : वर्ष – 1994-’95 में रु. 4,22,154 करोड़ का उत्पादन हुआ था जो बढ़कर 2011-’12 में रु. 18,34,332 करोड़ का हो गया है । इस प्रकार छोटे पैमाने के उद्योग उत्पादन वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका कर सकते हैं ।
(3) उत्पादन इकाइयों में वृद्धि : छोटे पैमाने के उद्योग देश को अनेक प्रकार के लाभ देते है । इसलिए लोगों या प्रजा की रूचि इन उद्योगों में खूब होती है । उत्पादन वृद्धि भी इकाई वृद्धि के कारण ही संभव बनती है । 1994-’95 में छोटे पैमाने की इकाई 79.60 लाख थी । वह बढ़कर 2011-’12 में 447.73 लाख हो गयी । जो महत्त्वपूर्ण है ।
(4) निर्यात : विश्व या अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़े उद्योगों की अपेक्षा छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की माँग अधिक है । इसलिए इन उद्योगों का भारत के निर्यात में उल्लेखनीय योगदान है । इन उद्योगों द्वारा वर्ष 1994-’95 में रु. 29.068 करोड़ की निर्यात हुयी थी । वह बढ़कर 2006-’07 में रु. 1,77,600 तक पहुँच गयी है । इस प्रकार विदेशी मुद्रा की दृष्टि से भी यह उद्योग महत्त्वपूर्ण हैं ।
(5) श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति : उत्पादन पद्धति दो प्रकार की होती है (i) श्रमप्रधान (ii) पूँजी प्रधान । पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति में उत्पादन पूँजी पर आधारित होता है । जिसमें पूँजी अधिक और श्रम साधन कम होते हैं । परंतु इससे उलटा पूँजी श्रम प्रधान उत्पादन पद्धति में श्रम अधिक और पूँजी का कम उपयोग होता है । इस प्रकार इस उत्पादन पद्धति में रोजगार के अवसर अधिक होते हैं । तथा जमीन और नियोजक को स्थिरता अधिक होती है ।
(6) विदेशी मुद्रा की बचत : विदेशी मुद्रा की दृष्टि से छोटे पैमाने के उद्योग दो दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । एक तो छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तु का निर्यात करके विदेशी मुद्रा कमा सकते हैं । दूसरे आयाती वस्तुओं (प्रतिस्थापन्न) उत्पादन करके आयात कम कर सकते हैं । जिससे विदेशी मुद्रा की बचत होती है । इस प्रकार विदेशी मुद्रा के संतुलन में इन उद्योगों का महत्त्वपूर्ण योगदान है ।
(7) अल्पकालीन समय : इन उद्योगं को कम समय में शुरू कर सकते हैं । इन उद्योगों में निवेश और उत्पादन के बीच समय खूब कम होता है । इस प्रकार खूब अल्पकालीन समय में उत्पादन करके जिन वस्तुओं की कमी हो उसे पूरा कर सकते हैं । इस प्रकार आवश्यक प्रमाण में उत्पादन संभव है ।
(8) संतुलित प्रादेशिक विकास : छोटे पैमाने के उद्योग बड़े पैमाने के उद्योगों की अपेक्षा कम पूँजी, कम साधन, कम संशाधनो द्वारा देश के किसी भी हिस्से में शुरू कर सकते हैं । जिससे पिछड़े क्षेत्रों का भी विकास होता है । संतुलित प्रादेशिक संभव होता है ।
(9) विकेन्द्रीकरण : बड़े पैमाने के उद्योग धनवानों द्वारा खूब कम लोगों द्वारा स्थापित किये जाते हैं । जिससे संपत्ति तथा उद्योगों का केन्द्रीकरण होता है । परंतु छोटे पैमाने के उद्योग कम पूंजीनिवेश में अधिक लोगों द्वारा अलग-अलग क्षेत्रो में स्थापित कर सकते हैं । अनुपयोगी संपत्ति तथा संसाधनों का उपयोग करके देश का उत्पादन बढ़ा सकते हैं । अनेक लोगों को रोजगार मिलता है । तथा अधिक मालिक होने से लाभ का भी वितरण होता है । इस प्रकार विकेन्द्रीकरण की दृष्टि से यह उद्योग महत्त्वपूर्ण होते हैं ।
(10) ऊँची विकासदर : छोटे पैमाने के उद्योग कम पूँजीनिवेश में स्थापित होने से एक और अधिक उत्पादन कार्य शुरू कर सकते हैं । जिससे देश का कुल उत्पादन और कुल आय बढ़ती है । इसके उपरांत इन उद्योगों की स्थापना अल्पकालीन होने से बाज़ार की आवश्यकता अनुसार उत्पादन में परिवर्तन संभव बनता है । जिससे छोटे पैमाने के उद्योग सतत ऊँची विकास दर होती है । इसलिए देश के विकास के लिए खूब जरूरी हैं ।
4. औद्योगिक विकास के लिए सरकार द्वारा उठाए गये कदमों की विस्तृत चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
देश के सर्वांगी विकास के लिए अन्य क्षेत्रों की तरह औद्योगिक क्षेत्र भी आवश्यक है । इसलिए सरकार उद्योग क्षेत्र के लिए निम्नलिखित सहायक कदम उठाए हैं :
(1) राज्य की मालिकी के साहस (क्षेत्र) : जिन उद्योगों में पूँजी की अधिक आवश्यकता हो तथा अधिक जोखमी हो, अधिक साहस की जरूरत हो, ऐसे उद्योगों की स्थापना निजी क्षेत्र नहीं करते हैं । ऐसे उद्योगों की स्थापना सरकार के द्वारा की जाती है । तथा अन्य उद्योगों के लिए उपयोगी साधन-सामग्री का उत्पादन करके देश का विकास किया जाता है ।
(2) निजी क्षेत्रों को प्रोत्साहन : निजी क्षेत्र के उद्योगों को शुरू करने और सफलतापूर्वक चलाने के लिए सरकार विभिन्न प्रकार की सरकार मदद करती है । नये उद्योग शुरु करने के लिए राहतदर पर जमीन, बिजली, पानी के उपरांत कर राहत भी दी जाती है. । सस्ते दरों पर ऋण उपलब्ध करवाया जाता है । इस प्रकार निजी क्षेत्रों को प्रोत्साहन दिया जाता है ।
(3) आयात कर : आयात-जकात अर्थात् आयात पर कर सरकार द्वारा स्थानिक उद्योगों को स्पर्धा में टिकाये रखने के लिए आयात-जकात का उपयोग किया जाता है । आयात होनेवाली वस्तुओं पर टेक्स लगाने महँगी बनती हैं । और अपने देश की चीजवस्तुओं का उत्पादन और विक्रय खर्च समकक्ष बनता है । जिससे स्पर्धा में रक्षण मिलता है ।
(4) टेक्निकल कौशल्य और प्रशिक्षण : उदारीकरण और वैश्वीकरण के समय में स्थानिक उद्योगों में स्पर्धा में सक्षम बने तभी स्पर्धा में टिक सकती हैं । इस उद्देश्य से सरकार उद्योगों के मालिको को टेक्नीकल और व्यवसायिक प्रशिक्षण देती है । उन्हें विश्व में प्रवर्तित नयी टेक्नोलोजी, नये प्रकार की वस्तुएँ, नवीन विक्रय व्यवस्था, नवीन संचालन आदि के गुण सिखाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है ।
(5) आर्थिक सहायता : सरकार द्वारा उद्योगों को आर्थिक सहायता पहुँचाकर उत्पादन खर्च घटाने का प्रयत्न किया जाता है । उत्पादन खर्च कम होने से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विक्रय कीमत घटाकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थानिक उद्योग अपने उत्पादन की माँग को बढ़ा सकते है । सरकार इस प्रकार की आर्थिक सहायता में सस्ती जमीन, बिजली, पानी, वाहनव्यवहार, ऋण आदि क्षेत्र में उद्योगों का सहायक होकर सफल बनाने का प्रयत्न किया जाता है ।
(6) आधारभूत सुविधाएँ : सरकार उद्योगों के विकास के लिए आधारभूत सुविधाएँ जैसे – सड़क-रास्ते, पानी, बिजली, बैंक, बीमा, गटरव्यवस्था जैसी अनेक सुविधाएँ उपलब्ध करवायी जाती हैं । जिसके कारण उद्योग अपने खर्च को अंकुश में रख सकती है। तथा उद्योगों का तीव्र विकास होता है । और उद्योगों को अनुकूल वातावरण मिलने से स्पर्धा में टिके रहते हैं ।
(7) विविध संस्थाएँ और नीतियों की रचना : सरकार विविध औद्योगिक नीतियों की रचना करती है । और समयानुसार उसमें आवश्यक परिवर्तन करके उद्योगों की सहायता करती है । इसके उपरांत आयात नीति, निर्यात नीति, मुद्राकीय नीति, राजकोषीय नीति, Tax नीति आदि उद्योगों के अनुकूल रहे ऐसी व्यवस्था करती है । इसके उपरांत इन्डस्ट्रीयल एक्ट, कंपनी एक्ट, बैंकिंग एक्ट, कम्पीटीशन एक्ट आदि कानून के द्वारा अनुचित स्पर्धा को रोकने का प्रयत्न करती है । इसके उपरांत IDBI, SIDBI, ICICI, .. IFCI, LIC, GIC आदि की स्थापना करके आवश्यक आर्थिक सहायता करती हैं ।