GSEB Solutions Class 12 Economics Chapter 6 बेरोजगारी

GSEB Gujarat Board Textbook Solutions Class 12 Economics Chapter 6 बेरोजगारी Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 12 Economics Chapter 6 बेरोजगारी

GSEB Class 12 Economics बेरोजगारी Text Book Questions and Answers

स्वाध्याय

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए :

1. प्रवर्तमान वेतन दर पर काम करने की इच्छा, शक्ति और तैयारी होने के बावजूद काम न मिले ऐसा व्यक्ति अर्थात् …………………….
(A) बेरोजगार
(B) गरीब
(C) शेष
(D) कर्मचारी
उत्तर :
(A) बेरोजगार

2. अनिवार्य स्वरूप में बेरोजगारी का विचार किस श्रम पूर्ति के संदर्भ में किया जाता है ?
(A) सक्रिय
(B) निष्क्रिय
(C) बालक
(D) वृद्ध
उत्तर :
(A) सक्रिय

3. बेरोजगारी के प्रकार निश्चित करने के लिए चार मापदण्ड किसने प्रस्तुत किये हैं ?
(A) राजकृष्ण
(B) महालनोविस
(C) केईन्स
(D) रोड़ान
उत्तर :
(A) राजकृष्ण

4. असरकारक मांग के अभाव में किस प्रकार की बेरोजगारी सर्जित होती है ?
(A) घर्षणजन्य
(B) मौसमी
(C) चक्रीय
(D) प्रच्छन्न
उत्तर :
(C) चक्रीय

5. किस प्रकार की उत्पादन पद्धति बेरोजगारी में वृद्धि करती है ?
(A) श्रमप्रधान
(B) पूँजीप्रधान
(C) कृषि प्रधान
(D) शिक्षण प्रथा
उत्तर :
(B) पूँजीप्रधान

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6. बेरोजगारी की समस्या आज ………………………….
(A) वैश्विक समस्या है ।
(B) राष्ट्रीय समस्या है ।
(C) प्रादेशिक समस्या है ।
(D) स्थानिक समस्या है ।
उत्तर :
(A) वैश्विक समस्या है ।

7. सक्रिय श्रमपूर्ति में किस आयुवर्ग का समावेश होता है ?
(A) 15 से 60
(B) 15 से 64
(C) 18 से 60
(D) 18 से 25
उत्तर :
(B) 15 से 64

8. भारत में भी बेरोजगारी ने गंभीर ……………………… समस्या का स्वरूप धारण किया है ।
(A) राजनैतिक
(B) सामाजिक
(C) आर्थिक
(D) भौगोलिक
उत्तर :
(C) आर्थिक

9. समय की दृष्टि से विकसित देशों में बेरोजगारी का कौन सा स्वरूप दिखायी देता है ?
(A) दीर्घकालीन
(B) साप्ताहिक
(C) दैनिक
(D) अल्पकालीन
उत्तर :
(D) अल्पकालीन

10. विकसित देशों में पायी जानेवाली बेकारी ……………………….
(A) चक्रीय
(B) मौसमी
(C) प्रच्छन्न
(D) ढाँचागत
उत्तर :
(A) चक्रीय

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11. भारत जैसे विकासशील देशों में बेकारी का कौन-सा स्वरूप देखने को मिलता है ?
(A) घर्षणजन्य
(B) ढाँचागत
(C) चक्रीय
(D) अल्पकालीन
उत्तर :
(B) ढाँचागत

12. समय की दृष्टि से भारत में कौन-सी बेकारी पाई जाती है ?
(A) अल्पकालीन
(B) साप्ताहिक
(C) दीर्घकालीन
(D) दैनिक
उत्तर :
(C) दीर्घकालीन

13. तीव्र बेरोजगारी में सप्ताह में कितने घंटे से कम काम मिलता है ?
(A) 48
(B) 38
(C) 18
(D) 28
उत्तर :
(D) 28

14. संपूर्ण बेरोजगारी का प्रमाण किस आयु वर्ग में अधिक देखने को मिलता है ?
(A) 15 से 25 वर्ष
(B) 25 से 50 वर्ष
(C) 60 वर्ष से अधिक
(D) 15 वर्ष से कम
उत्तर :
(A) 15 से 25 वर्ष

15. भारत में कृषि क्षेत्र में कौन-सी बेकारी देखने को मिलती है ?
(A) चक्रीय
(B) मौसमी
(C) घर्षणजन्य
(D) औद्योगिक
उत्तर :
(B) मौसमी

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16. कौन-सी बेकारी छिपी बेरोजगारी है ?
(A) मौसमी
(B) औद्योगिक
(C) प्रच्छन्न
(D) चक्रीय
उत्तर :
(C) प्रच्छन्न

17. कौन-सी बेरोजगारी की सीमांत उत्पादकता शून्य होती है ?
(A) चक्रीय
(B) घर्षणजन्य
(C) मौसमी
(D) प्रच्छन्न
उत्तर :
(D) प्रच्छन्न

18. प्रच्छन्न बेरोजगारी की सीमांत उत्पादकता कितनी होती है ?
(A) शून्य
(B) 100
(C) बढ़ती है ।
(D) कम होती है ।
उत्तर :
(A) शून्य

19. अर्थतंत्र में मंदी के कारण सर्जित बेरोजगारी ……………………..
(A) घर्षणजन्य
(B) चक्रीय
(C) मौसमी
(D) खुली बेकारी
उत्तर :
(B) चक्रीय

20. विश्व महामंदी का समय …………………………
(A) 1939-’40
(B) 1941-’42
(C) 1929-’30
(D) 1949-’50
उत्तर :
(C) 1929-’30

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21. भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना के अंत में बेरोजगारों की संख्या ………………………..
(A) 50 लाख
(B) 55 लाख
(C) 60 लाख
(D) 53 लाख
उत्तर :
(D) 53 लाख

22. पाँचवी पंचवर्षीय योजना के अंत में कितने लाख बेरोजगार थे ?
(A) 348.5 लाख
(B) 345.5 लाख
(C) 300 लाख
(D) 100 लाख
उत्तर :
(A) 348.5 लाख

23. एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष कितने करोड़ जनसंख्या बढ़ जाती है ?
(A) 2 करोड़
(B) 1.70 करोड़
(C) 1.50 करोड़
(D) 1.25 करोड़
उत्तर :
(B) 1.70 करोड़

24. भारत में प्रथम तीन दशकों में औसत लगभग कितने प्रतिशत की दर से आर्थिक विकास हआ है ?
(A) 2.5
(B) 1.5
(C) 3.5
(D) 4.5
उत्तर :
(C) 3.5

25. दसवीं योजना में आर्थिक विकास की दर कितनी थी ?
(A) 7.5%
(B) 7%
(C) 7.8%
(D) 7.6%
उत्तर :
(D) 7.6%

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26. ग्यारहवीं योजना में आर्थिक विकास की दर कितने प्रतिशत थी ?
(A) 7.8
(B) 7.6
(C) 8.0
(D) 10
उत्तर :
(A) 7.8

27. बेरोजगारी को कम करने में कौन-सी उत्पादन पद्धति उपयोगी है ?
(A) पूँजी प्रधान
(B) श्रम प्रधान
(C) शिक्षण प्रधान
(D) कृषि प्रधान
उत्तर :
(B) श्रम प्रधान

28. वर्तमान समय में बुद्धिधन की क्या स्थिति है ?
(A) Drain of Gold
(B) Drain of Man
(C) Drain of Brain
(D) Drain of Don
उत्तर :
(C) Drain of Brain

29. विशेष रूप से बेरोजगारी दूर करने के लिए किस योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया गया ?
(A) प्रथम और दूसरी
(B) दूसरी और तीसरी
(C) चौथी और पाँचवी
(D) पाँचवी और छठवीं
उत्तर :
(D) पाँचवी और छठवीं

30. एक समान पूंजीनिवेश द्वारा छोटे उद्योगों में बड़े उद्योगों की अपेक्षा कितने गुना रोजगार के अवसर खड़े होते हैं ?
(A) 7.5 गुना
(B) 2.5 गुना
(C) 3.5 गुना
(D) 4.5 गुना
उत्तर :
(A) 7.5 गुना

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31. किस अर्थशास्त्री के अनुसार भारत में कृषि क्षेत्र में रु. 1 करोड़ पूँजी निवेश करने से 40,000 व्यक्तियों को रोजगार दे सकते हैं ?
(A) राजकृष्ण
(B) महालनोबिस
(C) स्वामीनाथन
(D) केईन्स
उत्तर :
(B) महालनोबिस

32. बड़े उद्योगों में रु. 1 करोड़ का पूँजीनिवेश करने से कितने व्यक्तियों को रोजगार दे सकते हैं ?
(A) 1000
(B) 500
(C) 1500
(D) 2000
उत्तर :
(B) 500

33. किस अर्थशास्त्री के अनुसार कृषि क्षेत्र के विकास की दिशा में अधिक प्रयत्न करके अनेक गुना रोजगार के अवसर बढ़ाते जा सकते हैं ?
(A) केईन्स
(B) महालनोबिस
(C) स्वामीनाथन
(D) पिगू
उत्तर :
(C) स्वामीनाथन

34. भारत में आयोजन की शुरूआत कबसे शुरू हुयी ?
(A) 1950
(B) 1991
(C) 1901
(D) 1951
उत्तर :
(D) 1951

35. कौन-सा दिन रोजगार दिवस के रूप में मनाया जाता है ?
(A) दो फरवरी
(B) दो मार्च
(C) दो मई
(D) 2 अप्रैल
उत्तर :
(A) दो फरवरी

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36. MGNEGA में महिलाओं को कितने प्रतिशत आरक्षण दिया गया है ?
(A) 1/2
(B) 1/3
(C) 1/4
(D) 1/5
उत्तर :
(B) 1/3

37. NGNEGA योजना कब से अमल में आयी ?
(A) 2009
(B) 2005
(C) 2006
(D) 2002
उत्तर :
(C) 2006

38. MGNREGA योजना कब से शुरू हुयी ?
(A) 2001
(B) 1986
(C) 1999
(D) 2009
उत्तर :
(D) 2009

39. MGNREGA योजना में वर्ष एक व्यक्ति को कितने दिन रोजगार की गारंटी दी जाती है ?
(A) 128
(B) 100
(C) 109
(D) 105
उत्तर :
(B) 100

40. दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना का मुख्य उद्देश्य कितने वर्ष के युवानों को रोजगार देना है ?
(A) 18 से 35 वर्ष
(B) 18 से 25 वर्ष
(C) 15 से 30 वर्ष
(D) 15 से 60 वर्ष
उत्तर :
(A) 18 से 35 वर्ष

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41. अर्थशास्त्र में बेरोजगारी तक ही सीमित है ?
(A) सक्रिय श्रम
(B) अनिवार्य
(C) स्वैच्छिक
(D) राजकीय
उत्तर :
(A) सक्रिय श्रम

42. किस क्षेत्र में गुप्त बेकारी अधिक है ?
(A) कृषि
(B) उद्योग
(C) शिक्षा
(D) सेवा
उत्तर :
(A) कृषि

43. अर्थशास्त्र में बेरोजगारी के किस स्वरूप को समावेश किया है ?
(A) अपेक्षित
(B) इच्छनीय
(C) अनिवार्य
(D) स्वैच्छिक
उत्तर :
(C) अनिवार्य

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए ।

1. बेरोजगारी का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
प्रवर्तमान वेतन दर पर व्यक्ति की काम करने की इच्छा शक्ति और तैयारी होने पर भी काम न मिले तो उसे बेरोजगारी कहते है।

2. विकसित देशों में सामान्य रूप किस प्रकार की बेरोजगारी देखने को मिलती है ?
उत्तर :
विकसित देशों में सामान्य रूप से चक्रीय और घर्षणजन्य बेकारी देखने को मिलती है।

3. प्रच्छन्न बेरोजगारी का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
किसी एक व्यवसाय में प्रवर्तमान टेक्नोलोजी के संदर्भ में आवश्यकता से अधिक श्रमिक संलग्न हो, ऐसे अतिरिक्त श्रमिकों को इस क्षेत्र में से हटा भी लिया जाये तो भी कुल उत्पादन में कोई परिवर्तन न हो तो उसे प्रच्छन्न बेरोजगारी कहते हैं ।
अथवा
देखने में ऐसा लगता हो कि व्यक्ति कार्य कर रहा है लेकिन उसके कार्य का उत्पादन पर किसी प्रकार का फर्क न पड़ता हो । अर्थात् सीमांत उत्पादकता शून्य हो तो उसे प्रच्छन्न बेकार कहते हैं ।

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4. किस मंदी को विश्व महामंदी के रूप में जाना जाता हैं ?
उत्तर :
1929-’30 की मंदी को विश्व महामंदी के नाम से जानते हैं ।

5. भारत में बेरोजगारी का प्रमाण की जानकारी कहाँ से प्राप्त होती है ?
उत्तर :
भारत में बेरोजगारी के प्रमाण की जानकारी योजना आयोग, सेन्ट्रल स्टेटिस्टिक्स ओर्गेनाइजेशन (CSO), नेशनल सेम्पल सर्वे, रोजगार विनिमय कचेरी द्वारा प्रकाशित होनेवाले बेरोजगारी के अहवाल से प्राप्त कर सकते हैं ।

6. किस आयु समूह को उत्पादकीय आयु समूह के रूप में जाना जाता हैं ?
उत्तर :
15 से 64 वर्ष के आयु वर्ग को उत्पादकीय आयु वर्ग के कहते हैं ।

7. बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए किन उद्योगों का विकास करना चाहिए ?
उत्तर :
बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए श्रमप्रधान छोटे एवं मध्यम पैमाने के उद्योगों का विकास करना चाहिए ।

8. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में कौन-सा सूत्र दिया गया है ?
उत्तर :
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में ‘हर खेत को पानी’ सूत्र दिया गया है ।

9. ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते योजना’ कब शुरु की गयी है ?
उत्तर :
पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते योजना 16 अक्टूबर 2014 से शुरू की गयी है ।

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10. भारत में ग्रामीण विस्तारों में किस प्रकार की बेरोजगारी देखने को मिलती है ?
उत्तर :
भारत में ग्रामीण विस्तारों में मौसमी और प्रच्छन्न बेरोजगारी देखने को मिलती है ।

11. चक्रीय बेरोजगारी किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अर्थतंत्र में मंदी के कारण सर्जित बेरोजगारी को चक्रीय बेरोजगारी कहते हैं ।

12. पिगु के अनुसार बेरोजगारी किसे कहते हैं ?
उत्तर :
पिगु के अनुसार बेरोजगारी अर्थात् – ‘कोई व्यक्ति मात्र ‘तभी बेकार कहा जायेगा कि जब उसकी काम करने की इच्छा होने पर भी काम न मिले ।’

13. अनिवार्य स्वरूप की बेरोजगारी किसे कहते हैं ?
उत्तर :
प्रवर्तमान दर पर व्यक्ति काम करने की इच्छा, शक्ति और तैयार होने पर भी काम बिना रहना पड़े तब इसे बेरोजगारी का अनिवार्य स्वरूप या अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं ।

14. स्वैच्छिक बेरोजगार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
यदि व्यक्ति काम करने की इच्छा और शक्ति न हो और वह प्रवर्तमान वेतनदर काम बिना बैठा रहे ऐसे व्यक्ति को स्वैच्छिक बेरोजगार कहते हैं । भारत में इसे बेरोजगार में शामिल नहीं किया जाता है ।

15. असरकारक मांग के अभाव में किस प्रकार की बेरोजगारी देखने को मिलती है ?
उत्तर :
असरकारक माँग के अभाव में चक्रीय बेरोजगारी सर्जित होती है ।

16. तीव्र रूप से बेरोजगार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जो व्यक्ति काम करने की वृत्ति और शक्ति होने पर भी परंतु सप्ताह में 28 घंटे या उससे कम घंटे काम मिले तो उसे तीव्र रूप से बेरोजगार गिना जाता है ।

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17. सप्ताह में 28 घंटे से 42 घंटे तक का काम मिले तो वह किस स्वरूप की बेरोजगारी है ?
उत्तर :
सप्ताह में 28 घंटे से 42 घंटे का काम मिले तो उस बेरोजगारी की तीव्रता कम है ऐसा कहेंगे ।

18. आय की दृष्टि से बेरोजगार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
व्यक्ति को काम में से इतनी कम आय प्राप्त हो कि जिससे उसकी गरीबी दूर न हो सके तो उसे आय की दृष्टि से बेरोजगार कहते हैं ।

19. अर्ध बेरोजगार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिस व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार काम न मिले तब वह कम योग्यतावाला काम करना पड़े और कम आय प्राप्त होने से वह अर्ध बेरोजगार कहा जाता है ।

20. संपूर्ण बेरोजगारी किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जो व्यक्ति प्रवर्तमान वेतन दर पर रोजगारी प्राप्त करना चाहता हो आवश्यक योग्यता भी परंतु उसे बिलकुल रोजगारी न मिले तो उसे संपूर्ण बेरोजगार या खुला बेरोजगार कहलाता है ।

21. घर्षणजन्य बेरोजगारी किसे कहते हैं ?
उत्तर :
पुरानी उत्पादन पद्धति के स्थान पर नयी उत्पादन पद्धति का उपयोग करने से सर्जित बेरोजगारी को घर्षणजन्य बेरोजगारी कहते है ।

22. भारत में प्रतिवर्ष लगभग कितनी जनसंख्या बढ़ जाती है ?
उत्तर :
भारत में प्रतिवर्ष लगभग 1.70 करोड़ जनसंख्या बढ़ जाती है । जो ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या से अधिक है ।

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23. बड़े उद्योगों से छोटे पैमाने के उद्योगों में कितने रोजगार के अवसर बढते है ?
उत्तर :
बड़े उद्योगों से छोटे उद्योगों में 7.5 गुना रोजगार के अवसर बढ़ाने की क्षमता होती है ।

24. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (MGNREGA) में मजदूर को उसके निवासस्थान से कतने किलोमीटर के अंतरगत ही रोजगार दिया जाता है ?
उत्तर :
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (MGNREGA) में मजदूर को उसके निवासस्थान से 5 किलोमीटर के अंतरगत ही काम दिया जाता है ।

25. MNREGA में 10% अधिक मजदूरी कब दी जाती है ?
उत्तर :
MNREGA में जब मजदूर को उसके निवासस्थान से 5 किलोमीटर से अधिक दूर मजदूरी दी जाये तब 10% अधिक मजदूरी दी जाती है ।

26. दीनदयाल उपाध्याय ग्रामज्योति योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर :
दीनदयाल उपाध्याय ग्रामज्योति योजना का मुख्य उद्देश्य ग्राम्य विस्तार में 24×7 सतत बिजली की सेवा उपलब्ध कराना है।

27. दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना की शुरूआत कब से हुयी है ?
उत्तर :
दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना की शुरूआत 25 सितम्बर, 2014 से की गयी ।

28. दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर :
दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना का मुख्य उद्देश्य 18 से 35 वर्ष के युवानों को रोजगार देना है ।

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29. कौन-सा दिन रोजगार दिन के रूप में मनाया जाता है ?
उत्तर :
दो फरवरी के दिन को रोजगार दिन के रूप में मनाया जाता है ।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में लिखिए :

1. संपूर्ण बेरोजगारी का अर्थ समझाइए ।
उत्तर :
जो व्यक्ति प्रवर्तमान वेतन दर पर रोजगार प्राप्त करना चाहता हो और आवश्यक योग्यता भी रखता हो परंतु उसे बिलकुल रोजगार न मिलता हो तो उसे संपूर्ण बेरोजगार या खुल्ला बेरोजगार कहते हैं । सामान्य रूप से श्रमपूर्ति अधिक हो और शहरीकरण की प्रक्रिया भी तीव्र हो तब संपूर्ण बेरोजगारी का दर अधिक होती है ।

यह गाँव की अपेक्षा शहरों में अधिक देखने को मिलती है ।

2. घर्षणजन्य बेरोजगारी का अर्थ और उदाहरण दीजिए ।
उत्तर :
जब उत्पादन पद्धति में चीजवस्तुओं की माँग या उत्पादन में परिवर्तन होने से या संशोधन और नयी टेक्नोलोजी के कारण बाज़ार में नयी वस्तु के प्रवेश करने से जो बेरोजगारी सर्जित होती है तो उसे घर्षणजन्य बेरोजगारी कहते हैं ।

विकसित देशों में पुरानी उत्पादन पद्धति के स्थान पर नयी उत्पादन पद्धति का उपयोग होने से नयी पद्धति को सीखने में समय लगता है, तब तक उसे बेरोजगार रहना पड़ता है । नयी उत्पादन पद्धति सीखकर पुनः रोजगार प्राप्त कर लेते हैं । इस प्रकार यह अल्पकालीन समय की बेरोजगारी होती है ।

उदाहरण : सादा मोबाइल के स्थान पर स्मार्ट मोबाइल फोन आने से सादा मोबाईल फोन का उत्पादन, विक्रय और सर्विस क्षेत्र में काम करनेवाले मजदूरों को रोजगार न मिलने से बेरोजगार बनते है । यह घर्षणजन्य बेकारी है ।

3. भारत में बेरोजगारी की समस्या के लिए बचत और पूंजीनिवेश का नीचा दर जवाबदार है । संक्षिप्त में समझाइए ।
उत्तर :
भारत में आयोजनकाल के दरम्यान राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुयी है । परंतु राष्ट्रीय आय की वृद्धि के साथ-साथ जनसंख्या वृद्धि भी अधिक होने से प्रतिव्यक्ति आय में धीमी गति से वृद्धि होती है । साथ-साथ में उपभोग खर्च होने से बचत का प्रमाण कम होता है । बचत कम होने से पूँजीनिवेश की दर भी नीची रहती है । परिणाम स्वरूप उद्योग क्षेत्र, कृषि क्षेत्र या अन्य क्षेत्रों में रोजगार के अवसर कम खड़े होते हैं परिणाम स्वरूप बेरोजगारी सर्जित होती है । इस प्रकार बचत और पूँजीनिवेश की नीची दर बेरोजगारी की समस्या के लिए जवाबदार है ।

4. भारत में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति अधिक अनुकूल है । समझाइए ।
उत्तर :
भारत जैसे विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धिदर अधिक है और पूँजी की कमी है । इसलिए कम पूँजीनिवेश में छोटे एवं गृह उद्योगो की स्थापना कर सकते हैं । तथा इन उद्योगों में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग होता है । जिससे रोजगार के अवसर अधिक सर्जित होते हैं । इस प्रकार भारत में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति अधिक अनुकूल है ।

5. ग्राम्य विस्तारों में सतत बिजली की सेवा उपलब्ध करवाने के लिए कौन-सी योजना शुरू की गयी ?
उत्तर :
ग्राम्य विस्तार में सतत बिजली की सेवा उपलब्ध करवाने के लिए दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना शुरू की गयी । जिसका मुख्य उद्देश्य ग्राम्य विस्तारों में 24 × 7 सतत बिजली रकी सेवा उपलब्ध करवाना है ।

6. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना कब और किस उद्देश्य से शुरू की गयी ? ।
उत्तर :
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की शुरूआत 1 जुलाई 2015 से की गयी । जिसका उद्देश्य कृषि उत्पादकता बढ़ाने और देश के उपलब्ध साधनों का श्रेष्ठ उपयोग हो सके, उसी के अनुसार कृषि क्षेत्र के लिए सिंचाई योजनाओं का आयोजन करने का लक्ष्य इस कार्यक्रम में रखा गया है । इस उद्देश्य को सार्थक बनाने के लिए ‘हर खेत का पानी’ का सूत्र दिया है ।

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7. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ‘श्रमेव जयते योजना’ (PDUSTY) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ‘श्रमेव जयते योजना’ की शुरूआत 16 अक्टूबर, 2014 से शुरू हुयी ।
इस योजना का उद्देश्य असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिको को स्वास्थ्य और सुरक्षा के साथ अच्छा संचालन, कौशल्य, विकास और श्रमिको का कल्याण करना है ।

8. ‘गरीबी आयोजन की मर्यादा है ।’ विधान समझाइए ।
उत्तर :
भारत जैसे विकासशील देशों में गरीबी की समस्या अधिक देखने को मिलती है । गरीबी मात्र भारत की ही नहीं एक वैश्विक समस्या है । भारत में गरीबी को दूर करने के लिए आयोजन के आरम्भ से ही प्रयास किया गया । विशेष रूप से पाँचवीं और छठवीं योजना में गरीबी को दूर करने का विशेष लक्ष्य रखा गया था । भारत में ग्यारह योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं । फिर भी भारत में गरीबी देखने को मिलती है । अर्थात् आयोजन गरीबी को दूर करने में निष्फल गया है । इसलिए ऐसा कहते हैं कि गरीबी आयोजन की मर्यादा है ।

9. ‘आयोजन का एक उद्देश्य बेरोजगारी को दूर करना था ।’ फिर भी बेरोजगारी दूर नहीं हुयी है । समझाइए ।
उत्तर :
बेरोजगारी एक वैश्विक समस्या है । भारत भी बेरोजगारी की समस्या से मुक्त नहीं है । प्रथम योजना से ही बेरोजगारी को दूर करने का लक्ष्य रखा गया था । आर्थिक विकास पर भार दिया गया था । आयोजन काल के दरम्यान भारत में आर्थिक विकास तेजी से बढ़ा । परंतु आर्थिक विकास के संदर्भ में रोजगारी के अवसर नहीं बढ़ सके । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी को दूर करने में आयोजन निष्फल गया है । जो आयोजन की मर्यादा है ।

10. ‘बेरोजगारी मात्र आर्थिक समस्या नहीं, सामाजिक, नैतिक और राजनैतिक समस्या है ।’ समझाइए ।
उत्तर :
बेरोजगारी मुख्य रूप से आर्थिक समस्या है । बेरोजगार व्यक्ति आर्थिक रूप से अन्य पर आश्रित होता है । और समाज में स्वमानपूर्वक जीवन नहीं जी सकता है । समाज में बेरोजगार व्यक्ति ही चोरी, लूट, आतंकवाद जैसी अनैतिक प्रवृत्तियों में जुड़ते हैं । जो समाज के लिए हानिकारक हैं । साथ ही देखा गया है कि राजनैतिक अस्थिरता भी बेरोजगारों के कारण ही उत्पन्न
होती है । इसलिए बेरोजगारी मात्र आर्थिक समस्या नहीं परंतु सामाजिक, नैतिक और राजनैतिक समस्या है ।

11. भारत में ढाँचागत बेरोजगारी देखने को मिलती है ।’ विधान समझाइए ।
उत्तर :
भारत जैसे विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धिदर अधिक होने से श्रमपूर्ति में तीव्रता से वृद्धि होती है । परंतु दूसरी ओर देश में ढाँचागत कमी के कारण रोजगारी के अवसरों में धीमी गति से वृद्धि होती है । जिससे ढाँचागत बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । जो दीर्घकालीन समय के लिये होती है । इस बेरोजगारी को दूर करना हो तो आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक ढाँचे में उचित परिवर्तन लाना होगा और आंतर ढाँचाकीय सुविधाओं का विस्तार करना पड़ेगा । इसलिए ऐसा कहते हैं कि भारत में ढाँचागत बेरोजगारी देखने को मिलती है ।

12. ‘शहरी क्षेत्रों में खुली या संपूर्ण बेरोजगारी देखने को मिलती है ।’ विधान समझाइए ।
उत्तर :
ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या देखने अधिक मिलती है । रोजगारी की तलाश में 15 से 25 वर्ष के आयु वर्ग के लोग काम की तलाश में शहर आते हैं । जिससे रोजगार की मांग बढ़ती है । परंतु उतने प्रमाण में रोजगार के अवसर नहीं बढ़ पाते, परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । इसलिए शहरों में खुली या संपूर्ण बेरोजगारी देखने को मिलती है ।

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13. कृषि क्षेत्र में अर्धबेरोजगारी क्यों देखने को मिलती है ?
उत्तर : कृषि क्षेत्र में अर्धबेरोजगारी को देखने से पहले परिभाषा देख लें – श्रमिक अपनी शक्ति का पूर्ण उपयोग न कर सकते हो अर्थात् कि कम समय के लिए यो योग्यता की अपेक्षा कम योग्यतावाला कार्य स्वीकार करना पड़े उसे अर्धबेरोजगारी कहते हैं।

भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्य रूप से कृषि में से रोजगार प्राप्त करते हैं । भारत की कृषि मौसम पर आधारित है । इसलिए विशेष मौसम में काम मिले शेष मौसम बेकार बैठा रहना पड़ता है । इसलिए कृषि क्षेत्र में अर्धबेरोजगारी देखने को मिलती है ।

14. भारत में ‘Drain of Brain’ देखने को मिलता है । समझाइए ।
उत्तर :
भारत में मानवशक्ति के आयोजन का अभाव देखने को मिलता है । देश में वर्तमान समय में जिस प्रकार के श्रम की माँग होती है उतने प्रमाण में श्रमपूर्ति प्राप्त हो ऐसी व्यवस्था नहीं हुयी है । परिणाम स्वरूप लाखो शिक्षित युवान डिग्री प्राप्त करते है । परंतु उनके पास वर्तमान आर्थिक विकास के अनुरूप ज्ञान, प्रशिक्षण या शिक्षण न होने से शिक्षित होने पर भी बेरोजगारी का शिकार बनते हैं । कुछ परिस्थितियों में रोजगार या विकास के अपर्याप्त अवसरो के कारण उच्च योग्यता रखनेवाले डॉक्टरो और इन्जिनियरो को देश को उचित काम न मिलने से विदेश जाते हैं । इस प्रकार ‘Drain of Brain’ भारत में से विदेशी की ओर देखने को मिलता है ।

15. ‘आंतरिक ढाँचे की सेवाओं का विस्तार बेरोजगारी को दूर करने में सहायक है ।’ समझाइए ।
उत्तर :
भारत में शहरी विस्तार की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगारी के कम अवसरों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त ढाँचाकीय सुविधाएँ भी हैं । इसलिए सरकार द्वारा ग्राम्य विस्तारों में शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास-बिजली, सड़क, व्यवसायिक प्रशिक्षण केन्द्र जैसी ढाँचाकीय सुविधाएँ उपलब्ध करवाकर, स्थानिक साधनों की सहायता से अपने निवासस्थान के नजदीक रोजगारी प्राप्त करना संभव होगा । तथा ग्रामीण क्षेत्रों में ढाँचाकीय सुविधा बढ़ने से नये रोजगार के अवसर बढ़ते है । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या भी
हल होती है ।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर लिखिए :

1. बेरोजगारी के स्वरूप जानने के लिए श्री राजकृष्ण ने प्रस्तुत किये मापदण्डों को समझाइए ।
उत्तर :
बेरोजगारी के स्वरूप जानने के लिए श्री राजकृष्ण समिति ने 2011-12 की रिपोर्ट में निम्नलिखित चार मापदण्ड प्रस्तुत किये है:

(1) समय : जिस व्यक्ति को सप्ताह में 28 घंटे से कम काम मिलता हो तो उसे तीव्र रूप से बेरोजगार कहते हैं । और यदि सप्ताह में 28 घंटे से अधिक परंतु 42 घंटे से कम काम मिले तो वह बेरोजगारी की तीव्रता कम मानी जाती है ।

(2) आय : व्यक्ति को कार्य में से इतनी कम आय प्राप्त होती हो जिससे उसकी गरीबी दूर न हो तो वह आय की दृष्टि से बेरोजगार मान जाते हैं । भारत में ग्रामीण विस्तारों में इस प्रकार की बेरोजगारी अधिक देखने को मिलती है ।

जैसे : व्यक्ति को अपने परिवार के भरणपोषण के लिए महीने में रु. 30,000 की आवश्यकता है । परंतु व्यक्ति को वर्तमान कार्य में से रु. 15,000 या उससे कम ही प्राप्त कर सकता है । तब वह आय की दृष्टि से बेरोजगार है ।

(3) सहमति : जिस व्यक्ति को योग्यता से कम योग्यतावाला काम मिलता हो तब स्वीकार करना पड़ता है । तब उसको इस प्रकार के काम में से कम आय प्राप्त होने से अर्ध बेरोजगार कहा जाता है ।
जैसे : C.A. की डिग्री रखनेवाला व्यक्ति क्लर्क का काम करता हो ।

(4) उत्पादकता : श्रमिक की वास्तविक उत्पादकता जो हो उसकी अपेक्षा वह व्यक्ति वर्तमान में कम उत्पादकता पर काम करता हो, तो उसकी उत्पादन शक्ति या उत्पादकता की अपेक्षा कम होगी ।

जैसे : कोई व्यक्ति एक दिन में 20 मीटर कपड़ा तैयार करने की क्षमता रखता है । परंतु वह 10 मीटर ही कपड़ा बना सके उतना ही काम मिलता हो ।

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2. अर्धबेरोजगारी की संकल्पना को विस्तार से समझाइए ।
उत्तर :
श्रमिकों उनकी शक्ति का संपूर्ण उपयोग न कर सकते हो अर्थात् कम समय के लिए या योग्यता की अपेक्षा कम योग्यतावाला कार्य स्वीकार करना पड़े तो उसे अर्धबेरोजगार कहते हैं ।

श्रमिक दिन के जितने घंटे अथवा वर्ष के जितने दिन काम करने की वृत्ति और शक्ति रखता हो उसकी अपेक्षा कम घंटे या दिन से कम काम मिले तो वह अर्धबेरोजगार कहा जाता है ।

उदाहरण स्वरूप – एक कारखाने या खेत में श्रमिक को आठ घंटे के बदले मात्र पाँच घंटे ही काम मिलता हो तो वह अर्धबेरोजगार कहा जाता है । इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में दिखायी देनेवाली मौसमी बेकारी भी अर्धबेकारी है । क्योंकि किसान को कटायी बुआई के मौसम में ही काम मिलता है । शेष मौसम में वह काम बिना बैठा रहता है ।

3. प्रच्छन्न बेरोजगारी का ख्याल उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :
प्रच्छन्न बेरोजगारी को छिपी बेरोजगारी, गुप्त बेरोजगारी या अदृश्य बेरोजगारी भी कहते हैं । यह बेरोजगारी भारत जैसे विकासशील देशों में अधिक देखने को मिलती है ।

‘किस एक व्यवसाय में प्रवर्तमान टेक्नोलोजी के संदर्भ में आवश्यकता हो उससे अधिक श्रमिक काम करते हो । ऐसे अतिरिक्त श्रमिको को हटा लिया जाये तो भी उत्पादन में कोई फर्क न पड़ता हो तो उसे प्रच्छन्न बेरोजगारी कहते हैं ।

रग्नार नर्कस प्रच्छन्न बेरोजगारी की परिभाषा निम्नानुसार देते हैं – ‘यदि उत्पादन के साधनो और उत्पादन की टेकनिक दी हो और अधिक जनसंख्या रखनेवाले विकासशील देशो के कृषि क्षेत्र में विशेष प्रमाण में श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य हो, तो । ऐसे देशो में प्रच्छन्न बेरोजगारी प्रवर्तमान है ऐसा कह सकते हैं ।’

इसे एक उदाहरण से समझें – 5 किसान 10 हेक्टर जमीन में काम करते हों और उत्पादन 500 टन होता हो । अब उसमें से दो किसानों को निकाल दिया जाये तो भी उत्पादन 500 टन ही हो । अर्थात् दो घटाने से उत्पादन में कोई फर्क नहीं पड़ता है । अर्थात् उनकी सीमांत उत्पादकता शून्य है । इसलिए वे प्रच्छन्न बेरोजगारी के शिकार है ।

4. चक्रीय बेरोजगारी की संकल्पना को समझाइए ।
उत्तर :
अर्थतंत्र में तेजी-मंदी के चक्रो के दरम्यान सर्जित बेरोजगारी को चक्रीय बेरोजगारी कहते हैं ।
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में पूंजीनिवेशक और बचतकर्ता दोनों अलग-अलग होते हैं । पूँजीनिवेशक और बचतकर्ता के बीच जबतब असंतुलन सर्जित होता है । परिणाम स्वरूप कमी संपूर्ण अर्थतंत्र में तेजी तो कभी मंदी सर्जित होती है । तेजी की स्थिति में अर्थतंत्र में पूंजीनिवेश, उत्पादन, आय, रोजगार के अवसर बढ़ते हैं और बेरोजगारी कम होती है । जबकि मंदी की स्थिति में चीजवस्तुओं और सेवाओं की माँग में कमी आती है । परिणाम स्वरूप असरकारक माँग के अभाव के कारण उद्योगों का यहाँ मंदी बेरोजगारी का कारण है । इसलिए इसे चक्रीय बेरोजगारी या मंदीजन्य बेरोजगारी कहते हैं ।

5. ‘क्षतियुक्त शिक्षण पद्धति बेरोजगारी के लिए जवाबदार है ।’ समझाइए ।
उत्तरं :
भारत में शिक्षित बेरोजगारी एक चुनौती स्वरूप है । भारत में शिक्षित बेरोजगारी के लिए क्षतियुक्त शिक्षण व्यवस्था जवाबदार है । बदलते हुये समय के अनुसार श्रमिक तैयार करना आज की शिक्षण व्यवस्था सफल नहीं हुयी है ।

आर्थिक विकास की दर बढ़ाने के लिए उद्योग क्षेत्र, कृषि क्षेत्र तथा अन्य क्षेत्रों में अत्याधुनिक टेक्नोलोजी और यंत्रों का उपयोग किया गया । उसके कारण इस पद्धति के अनुरूप प्रशिक्षित टेक्निकल ज्ञान रखनेवाले श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है, परंतु इसके विपरीत शिक्षण पद्धति देखने को मिलती है । परिणाम स्वरुप अकुशल श्रमिकों की संख्या बढ़ती है । कुशल श्रमिक नहीं मिलते है । क्योंकि व्यावसायिक शिक्षण का प्रभाव बहुत ही कम है । वर्तमान शिक्षण व्यवस्था मनुष्य की मानसिक और शारीरिक रचना में निष्फल गया है । परिणाम स्वरूप शिक्षित बेरोजगारों का प्रमाण बढ़ता है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि क्षतियुक्त शिक्षण पद्धति बेरोजगारी के लिए जवाबदार है ।

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6. भारत में कृषि क्षेत्र की उपेक्षा से बेरोजगारी की समस्या को बढ़ाया है। समझाइए ।
उत्तर :
भारत एक कृषि प्रधान देश है । भारत की अधिकांश जनसंख्या गाँव में निवास करती है । गाँव के लोगों का मुख्य रोजगार कृषि है । इसलिए ग्रामीण बेरोजगारी को दूर करना हो तो कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़े ऐसा आयोजन जरूरी है । परंतु आर्थिक विकास की नीति में कृषि क्षेत्र की अपेक्षा अन्य क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया गया है । परिणाम स्वरूप कृषि क्षेत्र या विकास संभव नहीं हुआ है । जिससे कृषि क्षेत्र के श्रमिकों को संपूर्ण समय का पूर्ण रोजगार नहीं मिला । हरित क्रांति का लाभ पंजाब, हरियाणा जैसे अमुक राज्यों को ही मिला है । कृषि क्षेत्र पर जनसंख्या वृद्धि का अधिक भार, अपर्याप्त सिंचाई की सुविधा, कृषि ऋण का अभाव, वरसाद की अनियमितता तथा अन्य जोखमों के कारण कृषि क्षेत्र का विकास पर्याप्त मात्रा में नहीं हुआ है । तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बिन कृषि क्षेत्र का विकास भी नहीं हुआ है । इसलिए कृषि क्षेत्र पर आधारित ग्रामीण श्रमिकों में मौसमी बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी का प्रमाण अधिक देखने को मिलता है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कृषि क्षेत्र की उपेक्षा ने भारत में बेरोजगारी को बढ़ाया है ।

7. हरित क्रांति के वेग और विस्तार द्वारा बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकते है । समझाइए ।
उत्तर :
भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि क्षेत्र पर श्रम का भार अधिक होने से कृषि क्षेत्र में मौसमी एवं प्रच्छन्न बेरोजगारी अधिक देखने को मिलती है । इस समस्या को हल करने के लिए अन्य क्षेत्रों का विकास संभव नहीं हुआ है । इसलिए कृषि क्षेत्र के . श्रमिकों की समस्या को हल करने के लिए हरित क्रांति को गति देना और उसका विस्तार करने का प्रयास करना चाहिए जिससे रोजगारी के अवसर बढ़ा सकते है ।

जैसे प्रसिद्ध अर्थशास्त्री पी. सी. महालनोबिस के अनुसार भारत में कृषि क्षेत्र में रु. 1 करोड़ का पूंजीनिवेश करने से 40,000 व्यक्तियों को रोजगार दे सकते है । और उत्पादन में 5.7% की दर से बढ़ा सकते हैं । जब के बड़े उद्योगों में 500 व्यक्तियों को रोजगार तथा 1.4% उत्पादन बढ़ा सकते हैं । इस प्रकार उद्योगों की अपेक्षा कृषि क्षेत्र में रोजगार और उत्पादन की क्षमता अधिक होती है । इसलिए कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति के लिए आवश्यक पूरक प्रवृत्तियों जैसे कि छोटी और मध्यम कद की सिंचाई, जमीन संरक्षण, मिश्र खेती, वनविकास, अधिक फसल लेने की पद्धति, जमीन का नवीनीकरण तथा कृषि से सम्बन्धित ग्राम उद्योगों को गति देकर रोजगार के अवसर बढ़ा सकते हैं । डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के अनुसार ‘कृषि क्षेत्र के विकास की दिशा में अधिक प्रयत्न किये जाये तो अनेक गुना रोजगार के अवसर खड़े कर सकते हैं । इस प्रकार उपर्युक्त चर्चा पर से ऐसा कह सकते हैं कि ‘हरित क्रांति के वेग और विस्तार से बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकते हैं ।

8. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGN) की जानकारी दीजिए ।
उत्तर :
MGNREGA का परिचय निम्नानुसार है :

  1. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट 2 अक्टूबर, 2009 से अमल में आयी ।
  2. फरवरी, 2006 से शुरू की गयी राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी कानून (NREGA) को इसमें शामिल कर दिया । अथवा NREGA का MGNREGA कर दिया गया ।
  3. MGNREGA को सफल बनाने के लिए 2 फरवरी को रोजगार दिन के रूप में घोषित किया गया ।
  4. इस योजना में ग्रामीण परिवारों में से कम से कम एक व्यक्ति को 100 दिन की रोजगार देने की गारंटी दी जाती है ।
  5. इस योजना में 1/3 भाग स्त्रियों को आरक्षण दिया जाता है ।
  6. इस कार्यक्रम में ग्रामीण लोगों को शारीरिक श्रम द्वारा निश्चित किये न्यूनतम वेतन की व्यवस्था की जाती है ।
  7. इस कार्यक्रम में श्रमिकों को सात दिन में उनका पारश्रमिक दे दिया जाता है ।
  8. इस कार्यक्रम में श्रमिक को उसके निवासस्थान के 5 किलोमीटर की त्रिज्या में रोजगार दिया जाता है ।
  9. यदि श्रमिक को इस अंतर से अधिक दूर रोजगार दिया जाये तो 10% अधिक रोजगार दिया जाता है ।
  10. इस योजना में पंजीकृत मजदूरों को जोबकार्ड दिया जाता है । जिसकी अवधि 5 वर्ष की होती है ।
  11. जोबकार्ड धारक को 15 दिनों तक काम न मिले तो उसे निश्चित किया हआ बेरोजगारी भत्था दिया जाता है ।

9. विकसित देशों में पाईजानेवाली बेकारी की चर्चा कीजिए ।
अथवा
विकसित देशों में बेकारी के स्वरूप की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
प्रस्तावना : बेकारी का ख्याल सक्रिय श्रमपूर्ति तक ही सीमित है । सक्रीय श्रमपूर्ति से तात्पर्य है कि जिस में काम करने की शक्ति, इच्छा, तत्परता और प्रवर्तमान दरों पर काम करने के लिए तैयार हो फिर भी काम न मिले तो बेकारी कहते हैं ।

यह बेकारी का स्वरूप विकसित एवं अल्पविकसित देशों में अलग-अलग स्वरूप देखने को मिलता है । अल्पविकसित देशों में खुली बेकारी, प्रच्छन्न बेकारी, मौसमी बेकारी, शिक्षित बेकारी एवं औद्योगिक बेकारी देखने को मिलती है । विकसित देशों में मुख्य रूप से दो प्रकार की बेकारी देखने को मिलते है –
(1) चक्रीय बेकारी
(2) घर्षणजन्य बेकारी

(1) चक्रीय बेकारी : बाज़ार में तेजी-मंदी के परिबलों के कारण अर्थतंत्र में प्राप्त रोजगारी में वृद्धि – कमी होती है । तेजी की स्थिति में अर्थतंत्र में उत्पादन एवं रोजगारी में वृद्धि होती है जिससे कम लोगों को बेरोजगार रहना पड़ता है । मंदी की स्थिति में उलटा होता है । उत्पादन और रोजगार घटते हैं । जिससे अर्थतंत्र बेरोजगारी में वृद्धि होती है ऐसी बेकारी को चक्रीय बेकारी कहते हैं । ऐसी बेकारी अल्पकालीन समय के लिए होती है ।

(2) घर्षणजन्य बेकारी : पुरानी तकनीक (पद्धति) स्थान नई तकनीक (पद्धति) के आने से कुछ समय के लिए श्रम बेरोजगार बनता है । सामान्य रूप से नयी टेक्नोलॉजी श्रम की बचत करनेवाली होती है जिससे कम श्रम की आवश्यकता पड़ती है । इससे बेकार मजदूर दूसरे क्षेत्रों में प्रवेश करते हैं । इसके लिए उन्हें कुशलता प्राप्त करनी पड़ती है जिसमें कुछ समय लगता है । परिणामस्वरूप कुछ समय के लिए बेकार बनते हैं । इसे घर्षणजन्य बेकारी कहते हैं ।

कभी-कभी ऐसी बेरोजगारी बाज़ार में नयी वस्त आने पुरानी वस्त की मांग घटती है । परिणामस्वरूप बेकारी सर्जित होती है जैसे स्टील के बर्तन आने से तांबे-पीतल का धंधा करनेवाले, कम्प्यूटर के आने से टाइपिस्ट लोग बेकार बने हैं ।

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10. ग्रामीण क्षेत्रों की बेकारी घटाने के उपायों की चर्चा कीजिए ।
अथवा
ग्राम अर्थतंत्र की बेरोजगारी कम करने उपायों की चर्चा कीजिएं ।
उत्तर :
प्रस्तावना : भारत में शहर की अपेक्षा गाँव में बेरोजगारी अधिक देखने को मिलती है । गाँव रोजगार के अवसर कम हैं । खेती सिवाय रोजगारों का अधिक विकास नहीं हुआ है । इससे वर्ष में कम दिन रोजगार प्राप्त करनेवालों को अधिक दिन का रोजगार मिले ऐसा प्रयत्न करना चाहिए । गाँव के लोगों को प्रशिक्षण देकर कौशल्य का विकास करना चाहिए । जिससे नये व्यवसायों में प्रवेश करने का अवसर प्राप्त हो ऐसा आयोजन करना चाहिए । ग्रामीण बेरोजगार को कम करने के आय नीचे अनुसार है –

  1. जमीन सुधार कार्यक्रमों को तेज करके कानून द्वारा बेकार जमीन का वितरण का कार्य तेज करना चाहिए ।
  2. साधन, खेती और बहुलक्षी फसल पद्धति का प्रचार और प्रसार करना चाहिए ।
  3. बंजर जमीन को जोतने योग्य बनानी चाहिए ।
  4. रास्ते, वाहनव्यवहार, बिजली, प्रशिक्षण केन्द्र, शिक्षण, स्वास्थ्य आदि का आधारभूत सुविधाएँ के विकास की अग्रमता देनी चाहिए ।
  5. नेती आधारित उद्योग जैसे कि डेरी, मत्स्य, केनिंग, मुर्गा-बतक पालन, प्रोसेसिंग उद्योग आदि का विकास करना चाहिए।
  6. सिंचाई और वॉटरशेड विकास द्वारा खेतउत्पादकता और रोजगारी बढ़ाई जा सकती है ।
  7. सड़क एवं रास्तों का विकास करके गाँव को शहरों से जोड़ना चाहिए, जिससे किसान अपने उत्पादन को बाज़ार तक पहुँचा सके ।
  8. ग्रामीण युवकों को खेती के अलावा अन्य क्षेत्रों में स्वरोजगार प्राप्त हो ऐसे अल्पकालीन समय का प्रशिक्षण कार्यक्रमों को गाँव तक पहुँचाना चाहिए ।
    उपर के कार्यक्रमों को तेज बनाकर ग्रामीण बेकारी को कम किया जा सकता है ।

11. बेरोजगारी के स्वरूप की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
प्रस्तावना : भारत में आयोजन के वर्षों में बेकारी के प्रमाण में क्रमशः वृद्धि होती गयी है । बेकारी के कारण देश में कई सामाजिक, आर्थिक समस्याओं का जन्म हुआ है । भारत सरकार द्वारा इस समस्या को हल करने के अनेक प्रयासों के बावजूद अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो सके हैं । बेकारी की समस्या भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चुनौती है । भारत में बेकारी अनेक रुपों में दिखाई पड़ती है ।

भारत में बेकारी का अर्थ : “प्रवर्तमान वेतन दर पर काम करने की इच्छा तथा शक्ति होने के बावजूद व्यक्ति को काम न मिले तो वह व्यक्ति बेकार है, ऐसा कहा जाता है ।”

बेकारी के लक्षण : “भारत में दिखाई देनेवाली बेकारी की लाक्षणिकताएँ नीचे दर्शाये अनुसार हैं –

  • व्यक्ति प्रवर्तमान वेतनदर पर काम करने के लिए तैयार होना चाहिए । उदा. बाज़ार में प्रवर्तमान दैनिक वेतन दर 100 रु. हो और व्यक्ति 200 रु. की अपेक्षा रखता हो और रु. 100 पर काम को स्वीकार न करे तो वह बेकार नहीं कहा जा सकता । बेकारी के इस प्रकार को स्वैच्छिक बेकारी कहते हैं । जिसे अर्थशास्त्र की दृष्टि से बेकारी में शामिल नहीं किया गया है ।
  • व्यक्ति प्रवर्तमान वेतन दर पर काम करने के लिए तैयार हो किंतु काम करने के लिए शक्तिमान न हो तो भी वह बेकार नहीं कहा जायेगा ।
  • व्यक्ति प्रवर्तमान वेतन दर पर काम करने के लिए शक्तिमान हो किंतु काम करने की तैयारी न हो तो भी वह व्यक्ति बेकार नहीं कहा जायेगा ।”

भारत में बेकारी का स्वरूप : अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान जैसे विकसित देशों में बेकारी का स्वरूप तथा भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे विकासशील देशों में बेकारी का स्वरूप अलग-अलग है । विकसित देशों में सामान्य रूप से असरकारक मांग के अभाव में काम अवधि की बेकारी अस्तित्व में आती है, जबकि विकासशील देशों में बेकारी का स्वरूप भिन्न है । विकसित देशों में नवीन संशोधनों के कारण किसी वस्तु की मांग घट जाय तो उससे संबंधित अन्य वस्तु की मांग बढ़ जाती है । इस प्रकार जिस वस्तु की मांग घट जाती है उस वस्तु के उत्पादन की इकाई में से श्रम उस उत्पादन इकाई की ओर गति लाते हैं कि जिस इकाई द्वारा उत्पादित वस्तु की मांग बढ़ी होती है । इस प्रकार एक उत्पादन इकाई में से दूसरी उत्पादन इकाई में जाने तक अत्यंत कम अवधि के लिए बेकारी की समस्या उपस्थित होती है ।

भारत जैसे विकासशील देशों में प्रवर्तमान बेकारी लंबी अवधि की तथा ढाँचागत होती है । भारत में एक ओर जनसंख्या वृद्धि का दर ऊँचा होने के कारण रोजगारी मांगनेवालों की संख्या में वृद्धि हुई है तो दूसरी ओर पूँजी की कमी, टेक्निकल तालिम प्राप्त व्यक्ति की कमी, साहसिक नियोजकों की कमी, आधारभूत सुविधाओं का अभाव, अत्यंत पिछड़ा हुआ सामाजिक-आर्थिक ढाँचा, रोजगारी के अवसरों का अभाव इत्यादि के कारण लंबी अवधि की बेकारी देखने को मिलती है । विकसित देशों में उत्पन्न बेकारी का प्रश्न असरकारक मांग के अभाव में उपस्थित होता है, जिसे मांग में वृद्धि के द्वारा दूर किया जा सकता है । जबकि भारत जैसे देशों में बेकारी की समस्या आर्थिक ढाँचे में रही हुई कमी के कारण उपस्थित होता है । अर्थतंत्र के ढाँचे में परिवर्तन करके बेकारी के प्रश्न को हल किया जा सकता है । यह प्रक्रिया अत्यंत लंबी होने के कारण भारत में लंबी अवधि की बेकारी अस्तित्व में है ऐसा कहा जाता है ।

भारत में मौसमी तथा प्रच्छन्न बेकारी का भी अस्तित्व देखने को मिलता है । भारत में मिश्र अर्थतंत्र की व्यवस्था को स्वीकार किया गया है । इसके बावजूद सार्वजनिक क्षेत्रों को ज्यादा तथा निजी क्षेत्रों को कम महत्त्व दिया गया है । भारत में सार्वजनिक क्षेत्रों की बिनकार्यक्षमता तथा निजी क्षेत्रों की उपेक्षा होने के कारण औद्योगिक विकास मंद रहा है । परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र पर रोजगारी का बोझ बढ़ जाने के कारण कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेकारी की समस्या उपस्थित हुई है । भारत में कृषि वर्षा पर आधारित होती है । भारत में वर्षा अनियमित तथा अपर्याप्त होती है, जिसके कारण कृषि क्षेत्र में मौसमी बेकारी की समस्या उपस्थित हई है । भारत में शिक्षित बेकारों की संख्या भी खूब अधिक है । शिक्षित बेकारी की समस्या सामान्य रूप से शहरी विस्तारों में तथा मौसमी एवं प्रच्छन्न बेकारी की समस्या ग्रामीण विस्तारों में देखने को मिलती है । भारत में बेकारी की समस्या को समझने के लिए मुख्य चार मापदंड निम्नानुसार दर्शाये गये हैं :

  1. समय का मापदंड : जिस व्यक्ति के पास काम करने की शक्ति तथा वृत्ति दोनों हो किंतु सप्ताह में 24 घंटे से कम समय तक ही उसे रोजगारी प्राप्त हो तो वह समय की दृष्टि से बेकार है, ऐसा कहा जायेगा ।
  2. आय का मापदंड : व्यक्ति को काम में से इतनी कम आय प्राप्त हो कि जिससे वह अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को भी संतुष्ट न कर सके तो वह आय की दृष्टि से बेकार है, ऐसा कहा जायेगा ।
  3. सहमति का मापदंड : व्यक्ति को अपनी सहमति के अनुसार काम न मिले तो वह सहमति की दष्टि से बेकार है, ऐसा कहा जायेगा । बेकारी के इस स्वरूप को अर्ध बेकारी भी कहते हैं ।
  4. उत्पादकता का मापदंड : किसी भी व्यक्ति को प्रवर्तमान रोजगारी में से दूर करने के बावजूद कुल उत्पादन में कोई परिवर्तन न हो तो इसे उत्पादकता की दृष्टि से बेकारी कहते हैं । बेकारी के इस स्वरूप को प्रच्छन्न बेकारी भी कहते हैं ।

विकसित देशों में बेकारी मुख्य रुप से चक्रीय बेकारी एवं घर्षणयुक्त बेकारी देखने को मिलती है । चक्रीय बेकारी अर्थात तेजी – मंदी के समय में अल्पकालीन समय के लिए अस्थायी रूप से जो बेकारी सर्जित होती है उसे चक्रीय बेकारी कहते है । पुरानी टेक्नोलॉजी के स्थान पर नई टेक्नोलॉजी का उपयोग करने से अस्थायी रूप से अल्पकालीन समय में जो बेकारी सर्जित होती है उसे घर्षणजन्य बेकारी कहते हैं ।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए :

1. भारत में बेरोजगारी के उत्पन्न होनेवाले कारणों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
श्रमपूर्ति और श्रम की माँग के बीच असंतुलन बेरोजगारी का कारण है । अर्थात् श्रम की माँग की अपेक्षा पूर्ति अधिक हो तब बेरोजगारी सर्जित होती है । भारत में बेरोजगारी के निम्नलिखित कारण हैं :
(1) जनसंख्या वृद्धि का ऊँचा दर : भारत में जनसंख्या वृद्धिदर ऊँची होने से श्रमपूर्ति में वृद्धि होती है । परंतु उतने प्रमाण में रोजगार के अवसर धीमी गति से बढ़ते हैं परिणाम स्वरूप बेरोजगारी और अर्धबेरोजगारी की समस्या बढ़ती है । एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 1.70 करोड़ जनसंख्या बढ़ती है जो ऑस्ट्रेलिया के बराबर है । इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि का ऊँचा दर बेरोजगारी का एक कारण है ।

(2) रोजगारी के धीमे अवसर : रोजगारी वृद्धि का आर्थिक विकास के साथ गहरा सम्बन्ध है । परंतु आयोजन काल दरम्यान आर्थिक विकास दर बढ़ने पर भी रोजगारी के अवसर पर्याप्त मात्रा में सर्जित नहीं हुये हैं । इस प्रकार भारत का ‘आर्थिक विकास रोजगारी बिना का विकास रहा है ।’

भारत में आयोजन के तीन दशकों में आर्थिक विकास औसत 3.5% की दर से बढ़ा है । 10वीं एवं 11वीं पंचवर्षीय योजना में आर्थिक विकास की औसत वृद्धिदर 7.6% और 7.8% रही परंतु रोजगार के अवसर धीमे रहे है । जिससे बेरोजगारी की समस्या तीव्र बनी है ।

(3) बचत और पूंजीनिवेश की नीची दर : भारत में आयोजनकाल के दरम्यान राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुयी है । परंतु जनसंख्या वृद्धिदर भी ऊँची रही है । परिणाम स्वरूप प्रतिव्यक्ति आय में धीमी गति से वृद्धि हयी है । नीची प्रतिव्यक्ति आय और बोझरूप जनसंख्या के पीछे निभाव खर्च अधिक होने से बचत कम होती है । तथा पूँजीनिवेश भी कम होता है । जिससे उद्योग क्षेत्र और कृषि क्षेत्र या अन्य क्षेत्र में पर्याप्त प्रमाण में रोजगार के अवसर सर्जित नहीं होते हैं । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है ।

(4) पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति : भारत में पूँजी की कमी और श्रम खूब है । इस परिस्थिति में बेरोजगारी की समस्या को हल करने में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति अधिक अनुकूल है । परंतु में दूसरी पंचवर्षीय योजना से बड़े और आधारभूत उद्योगों के विकास की नीति अपनायी है । जिनमें पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति का अधिक उपयोग किया जाता है । परिणाम स्वरूप रोजगार के अवसर कम सर्जित होते हैं । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है ।

(5) व्यावसायिक शिक्षा का नीचा प्रभाव : भारत में शिक्षित बेरोजगारी का एक महत्त्वपूर्ण कारण क्षतियुक्त शिक्षण पद्धति है । देश में प्रत्येक क्षेत्र में बदलती हुयी कार्य पद्धति के अनुरूप काम कर सके ऐसे श्रमिक तैयार करने में वर्तमान शिक्षा प्रणाली सफल नहीं हुयी है ।

आर्थिक विकास बढ़ाने के लिए उद्योग, क्षेत्र, कृषि क्षेत्र तथा अन्य क्षेत्रों में नयी टेक्नोलोजी का उपयोग किया जा रहा है । परंतु उसीके अनुरूप व्यावसायिक शिक्षा न होने से अनुकूल श्रम न होने से शिक्षित बेरोजगारी सर्जित होती है । जो भारत के लिए अधिक चिंताजनक बात है ।

(6) मानवशक्ति के आयोजन का अभाव : भारत में आयोजनकाल के दरम्यान मानवशक्ति का उचित आयोजन नहीं हुआ है । देश में वर्तमान समय में जिस प्रकार के श्रम की माँग है उस संदर्भ में पर्याप्त योग्य श्रमपूर्ति प्राप्त हो इस प्रकार का मानवशक्ति आयोजन करने की शिक्षण व्यवस्था नहीं है । देश के आर्थिक विकास के लिए कितने और किस प्रकार के मानवश्रम की आवश्यकता होगी इसका अनुमान लगाये बिना शिक्षा का विस्तार किया जा रहा है । परिणाम स्वरूप प्रतिवर्ष लाखों शिक्षित युवान डिग्री प्राप्त करते हैं परंतु उनके पास आर्थिक विकास के अनुरूप ज्ञान, प्रशिक्षण या शिक्षण न होने से शिक्षित होने पर भी बेरोजगारी सर्जित होती है ।

(7) सार्वजनिक क्षेत्रों की अकार्यक्षमता : स्वतंत्रता के बाद भारत में निजी क्षेत्रों की अपेक्षा सार्वजनिक क्षेत्रों के विकास को अधिक महत्त्व दिया गया है । सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाइयों की संख्या और पूंजीनिवेश में वृद्धि हुयी है । परंतु कमजोर कार्यक्षमता के कारण रोजगार के अवसर सर्जित करने में निष्फल गये हैं । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है ।

(8) कृषि क्षेत्र के विकास की उपेक्षा : भारत एक कृषिप्रधान देश है । भारत में अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है । जिनके रोजगार का मुख्य आधार कृषि क्षेत्र है । परंतु भारत में आर्थिक विकास के लिए उद्योग क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया गया है । कृषि क्षेत्र पर अधिक ध्यान दिया गया है । कृषि क्षेत्र वह अधिक ध्यान न देने से कृषि क्षेत्र में मौसमी बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी अधिक सर्जित होती है ।

(9) श्रम की धीमी गतिशीलता : श्रम की धीमी गतिशीलता के कारण भी बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । श्रम की धीमी गतिशीलता के लिए सामाजिक परिबल, पारिवारिक सम्बन्ध, भाषा, धर्म, रीति-रिवाज, संस्कृति, जानकारी का अभाव, अपर्याप्त परिवहन सेवा जवाबदार है । उच्च शिक्षा प्राप्त लोग गाँव, पिछड़े विस्तारों में जाने की बजाय बेरोजगार रहना पसंद करते हैं । अधिकांशत: लोग शहरों में रोजगार प्राप्त करने की इच्छा रखते है जो संभव नहीं होता है । परिणाम स्वरुप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है ।

(10) अपर्याप्त ढाँचाकीय सुविधा : ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों को कच्चा माल, श्रमिक, सस्ते दर प्राप्त हो जाते हैं । परंतु पर्याप्त मात्रा में नियमित बिजली प्राप्त नहीं होती है । परिवहन, संचार, बाज़ार की अपर्याप्त ढाँचाकीय सुविधा के कारण उद्योगों का विकास नहीं होता है । परिणाम स्वरूप नये रोजगार के अवसर सर्जित नहीं होते हैं । परिणाम स्वरूप ग्रामीण विस्तारों में अपर्याप्त ढाँचाकीय सुविधाएँ बेरोजगारी की समस्या का एक कारण है ।

उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त भारत में राष्ट्रीय रोजगार नीति का अभाव, उद्योग-व्यवसाय को प्रोत्साहन मिले ऐसे वातावरण का अभाव, प्राकृतिक संसाधनों का अपर्याप्त उपयोग भी बेरोजगारी की समस्या बढ़ाने के लिए जवाबदार होते हैं ।

GSEB Solutions Class 12 Economics Chapter 6 बेरोजगारी

2. भारत में बेरोजगारी की समस्या के हल करने के उपाय बताकर कोई भी पाँच उपायो की चर्चा विस्तार से कीजिए ।
उत्तर :
भारत में बेरोजगारी के प्रमाण और कारणों के सम्बन्ध में अध्ययन पर यह स्पष्ट होता है कि भारत में बेरोजगारी की समस्या दिन-प्रतिदिन अधिक से अधिक चिंताजनक बनती जा रही है । बेरोजगारी की समस्या मात्र आर्थिक समस्या ही नहीं, सामाजिक और राजनैतिक समस्या है । इसलिए भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही बेरोजगारी दूर करने का लक्ष्य रखा गया है । विशेष रूप से पाँचवी और छठवीं योजना में विशेष ध्यान दिया गया । आठवीं पंचवर्षीय योजना में रोजगार के अधिकार को मूलभूत अधिकार बनाने के लिए संविधान में संशोधन किया गया । परंतु संभव नहीं हो सका । बेरोजगारी को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय है :

(1) जनसंख्या नियंत्रण : बेरोजगारी की समस्या के लिए जनसंख्या वृद्धि की ऊँची दर अधिक जवाबदार है । जनसंख्या वृद्धिदर अधिक होने से श्रमपूर्ति अधिक होती है । दूसरी और आर्थिक विकास धीमी होने से रोजगार के अवसर कम खड़े होते हैं । परिणामस्वरूप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । इसलिए बेरोजगारी को दूर करने के लिए असरकारक जनसंख्या नियंत्रण जरूरी है । जनसंख्या वृद्धिदर धीमी होगी तो श्रमपूर्ति में कमी होगी । अर्थात् रोजगारी माँगनेवालों की संख्या कम होगी जनसंख्या नियंत्रण से साधन अधिक फाजल होंगे । पूँजीनिवेश की दर बढ़ेंगी और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे । जनसंख्या नियंत्रण करके दीर्घकालीन समय के बाद उत्पादक आयुवर्ग (15 से 64 वर्ष) का यथा उचित नियमन भी कर सकते हैं ।

(2) । आर्थिक विकास की ऊँची दर : देश के आर्थिक विकास के बिना बेरोजगारी को दूर करना संभव नहीं है । आयोजन काल के आरम्भ के वर्षों में आर्थिक विकास की दर 3 से 3.5 प्रतिशत जितनी रही थी । यदि आर्थिक विकास को नियमित ऊँची दर से बढ़ायी जाये तो रोजगारी के अवसर बढ़ाना संभव होगा और बेरोजगारी की समस्या हल होगी । इसके लिए अर्थतंत्र के अलगअलग विभागों के बीच संकलन करके सार्वजनिक निजीक्षेत्र, सहकारी या अन्य स्वरूप के उद्योगो में पूंजीनिवेश बढ़े ऐसा प्रयत्न करना चाहिए ।

कृषि क्षेत्र का विकास हो, हरित क्रांति का लाभ सभी राज्यों को मिले ऐसा प्रयत्न करना चाहिए । जिससे बेरोजगारी की समस्या को हल करने में सफलता मिलेगी ।

(3) रोजगारलक्षी आयोजन : आयोजनकाल के आरम्भ में आर्थिक विकास बढ़ाने के लिए आधारभूत और बड़े उद्योगों की आवश्यकता थी । परंतु वर्तमान समय में आर्थिक विकास के साथ रोजगार के अवसर बढ़े यह जरूरी है । इसलिए सरकार को छोटे और मध्यम पैमाने के श्रमप्रधान उत्पादन करनेवाले उद्योगो को प्रोत्साहन देकर रोजगार के अवसर बढ़ाने चाहिए ।

(4) रोजगारलक्षी शिक्षण : वर्तमान शिक्षण व्यवस्था बेरोजगारी की समस्या के लिए जवाबदार कारण है । वर्तमान शिक्षण पद्धति क्लर्क उत्पन्न करनेवाली पुस्तकीय ज्ञान दनेवाली एक शिक्षण व्यवस्था है । परिणाम स्वरूप विनियन-वाणिज्य के स्नातक होने के बाद भी स्वयं रोजगारी प्राप्त करने की क्षमता नहीं रखते है । इस परिस्थिति में सुधार हो वर्तमान व्यापार, वाणिज्य, उद्योग, कृषि, अन्य क्षेत्रों के अनुरुप व्यवसायलक्षी शिक्षण देने की आवश्यकता है । इसलिए ऐसे अभ्यासक्रम लाने चाहिए जिससे वर्तमान प्रवाह के अनुरूप रोजगार एवं स्वरोजगार प्राप्त कर सके । इ.स. 2015 की नयी शिक्षण नीति में शिक्षण द्वारा रोजगारी सर्जन करने के लिए उद्योगों के साथ संलग्न साधनो उत्पादकीय शिक्षण हेतु निर्धारित किया गया है । और आनेवाले वर्षों में किस क्षेत्र में कितने रोजगार के अवसर है इसका अध्ययन करके उसी के अनुसार अभ्यासक्रम तैयार करना और इस कार्य में निजी क्षेत्रों को भी जोड़ लिया गया है ।

(5) गृह और छोटे उद्योगों का विकास : गृह और छोटे पैमाने के उद्योग कम पूंजीनिवेश में अधिक रोजगार देने की क्षमता रखते हैं । कारण कि छोटे पैमाने के उद्योगों में बड़े पैमाने के उद्योगों की अपेक्षा एकसमान पूँजीनिवेश द्वारा 7.5 गुना अधिक रोजगार सर्जन की क्षमता होती है । इसलिए भारत जैसे विकासशील देशों में जहाँ पूँज की कमी है और श्रम अधिक है । तो कम पूँजीनिवेश में छोटे एवं गृह उद्योग स्थापित करके तथा श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति का उपयोग करके रोजगार के अवसर खड़े करके बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकते हैं ।

(6) आंतर ढाँचाकीय सेवा का विस्तार : भारत में शहरी विस्तार की अपेक्षा ग्राम्य विस्तारों में रोजगारी का सर्जन कम होने का एक कारण अपर्याप्त ढाँचाकीय सुविधाएँ भी है । इसलिए राज्य द्वारा ग्राम्य विस्तार में शिक्षण, स्वास्थ्य, आवास, बिजली, सड़क, व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र जैसी आंतर ढाँचाकीय सुविधाएँ बढ़ायी जाये तो स्थानिक साधनो की सहायता से अपने निवास के पास रोजगारी प्राप्त करना संभव होगा । और ग्राम्य विस्तारों में आंतर ढाँचाकीय सुविधाएँ बढ़ने से नये रोजगार के अवसर बढ़ेंगे । कृषि क्षेत्र और उसके साथ जुड़े हुए अन्य क्षेत्रों में भी रोजगारी बढ़ेगी । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या हल होगी ।

(7) कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति का वेग और विस्तार : देश में ऊँची जनसंख्या वृद्धिदर के कारण रोजगारी के लिए कृषि क्षेत्र में जनसंख्या का भार बढ़ने से प्रच्छन्न बेकारी और अनियमित वरसाद और अपर्याप्त सिंचाई की सुविधा कारण मौसमी बेकारी की समस्या बढ़ती गयी है । इस समस्या को हल करने के लिए अन्य क्षेत्र अभी भी सक्षम नहीं बने है । इसलिए कृषि क्षेत्र का विकास करके हरित क्रांति लाकर रोजगार के अवसर खड़े करने चाहिए ।

कृषि क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा रोजगार सर्जन की क्षमता अधिक होती है । निष्णात अर्थशास्त्री पी. सी. महालनोबिस के अनुसार भारत में कृषि क्षेत्र में रु. 1 करोड़ का पूँजीनिवेश करने से 40,000 व्यक्तियों को रोजगार देकर उत्पादन में 5.7% की दर से वृद्धि कर सकते हैं । जबकि बड़े उद्योगों में रु. 1 करोड़ का पूँजीनिवेश करने से मात्र 500 व्यक्तियों को रोजगार देकर उत्पादन में 1.4% की दर से वृद्धि कर सकते हैं । डॉ. एम. एस. स्वामीनाथ भी इसी का समर्थन करते हुये कहते हैं कि कृषि विकास की दिशा में अधिक प्रयत्न किये जाये तो अनेक गुना नये रोजगार के अवसर खड़े होते हैं । इस प्रकार कृषि विकास में हरित क्रांति को गति और विस्तार देने से बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकते हैं ।

3. भारत में बेरोजगारी की समस्या हल करने के कोई भी तीन कार्यक्रमों की जानकारी दीजिए ।
उत्तर :
भारत में आयोजन की शुरूआत 1951 से हुयी । तब ऐसा विचार किया गया कि आर्थिक विकास संभव होगा तो बेरोजगारी की समस्या हल होगी । परंतु आरम्भ की चार पंचवर्षीय योजना में यह ख्याल गलत सिद्ध हुआ है । परिणामस्वरुप पाँचवी योजना से बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए रोजगारलक्षी कार्यक्रम शुरू किये गये । जिसमें संकलित ग्रामविकास कार्यक्रम, काम के बदले अनाज, जवाहर रोजगार योजना, नेहरू रोजगार योजना, स्वर्ण जयंती ग्राम रोजगार योजना अनेक कार्यक्रम शुरू किये गये । यहाँ कुछ योजनाओं का परिचय देंगे :

  1. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) : .
  2. मनरेगा योजना की शुरूआत 2 अक्टूबर, 2009 से हुयी ।
  3. फरवरी-2006 से शुरू की गयी राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी कानून (NREGA) का ही नाम बदलकर मनरेगा कर दिया गया ।
  4. मनरेगा को सफल बनाने के लिए 2 फरवरी को रोजगार दिन के रूप में घोषित किया गया ।
  5. इस योजना में ग्रामीण परिवारों में से कम से कम एक व्यक्ति को 100 दिन का रोजगार देने की गारंटी दी जाती है ।
  6. इस योजना में 1/3 भाग स्त्रियों को रोजगार में आरक्षण दिया जाता है ।
  7. इस योजना में शारीरिक श्रम के बदले न्यूनतम वेतन की व्यवस्था दी जाती है ।
  8. इस कार्यक्रम में श्रमिकों को सात दिनों में वेतन का भुगतान किया जाता है ।
  9. इस कार्यक्रम में मजदूरों को उसके निवासस्थान से 5 किमी के अंतरगत ही रोजगार दिया जाता है ।
  10. यदि 5 किमी से अंतर अधिक हो तो 10% अधिक मजदूरी दी जाती है ।
  11. इस योजना में पंजीकृत मजदूरों को जोबकार्ड दिया जाता है । जो 5 वर्ष तक चलता है ।
  12. इस योजना में यदि 15 दिनों तक सतत काम नहीं मिला तो बेरोजगारी भत्था दिया जाता है ।

(2) पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते योजना (PDUSJY) :

  1. PDUSJY योजना 16 अक्टूबर 2014 से शुरू की गयी ।
  2. इस योजना का मुख्य उद्देश्य असंगठित क्षेत्र में काम करनेवाले श्रमको को स्वास्थ्य और सुरक्षा के साथ अच्छा संचालन, कौशल्य विकास और श्रमिकों का कल्याण करना है ।
  3. औद्योगिक विकास के लिए अनुकूल वातावरण भी खड़ा करना इस योजना का मुख्य उद्देश्य है ।

(3) दीनदयाल उपाध्याय ग्रामज्योति योजना (DUGJY): पहले की ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के स्थान पर यह योजना शुरू की
गयी । जिसका मुख्य उद्देश्य ग्राम्य विस्तार में 24 × 7 बिजली उपलब्ध करवाना है ।

(4) दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DUGKY) : इस योजना की शुरुआत 25 सितम्बर, 2014 से हुयी जिसका मुख्य उद्देश्य 18 से 35 वर्ष के युवानों को रोजगार देना है ।

(5) प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना : इस कार्यक्रम की शुरुआत 1 जुलाई 2015 से की गयी । ‘हर खेत को पानी’ इस सूत्र को सार्थक करने के उद्देश्य से कृषि उत्पादकता बढ़ाने और देश में उपलब्ध साधनों का श्रेष्ठ उपयोग हो सके उसी के अनुसार कृषि क्षेत्र के लिए सिंचाई योजना का आयोजन करने का लक्ष्य इस कार्यक्रम में रखा गया हैं ।

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4. भारत में दिखाई देनेवाली बेरोजगारी (बेकारी) के मुख्य प्रकारों को समझाइए ।
अथवा
बेकारी के विविध प्रकारों को समझाइए ।
अथवा
भारत में ग्रामीण तथा शहरी विस्तारों में प्रवर्तमान के बेकारी के विविध स्वरूपों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
प्रस्तावना : बेकारी भी गरीबी की तरह मानवसर्जित गंभीर समस्या है । बेकार व्यक्ति समाज और राष्ट्र पर बोझ होता है । देश के विकास में रुकावट डालता है । आर्थिक समस्या के साथ सामाजिक समस्या भी खड़ी होती है । देखा गया है कि बेकार व्यक्ति ही चोरी, डकैती एवं आतंकवादी जैसी प्रवृत्तियों की ओर आकर्षित होते हैं ।

काम करने की शक्ति, इच्छा तथा प्रवर्तमान दरों पर काम करने के लिए तैयार हो फिर भी अनैच्छिक रूप से बेकार रहना पड़े तो उसे बेकारी कहते हैं ।
भारतीय अर्थतंत्र की दृष्टि से बेकारी के प्रकारों को नीचे दर्शाये अनुसार अलग-अलग भागों में बाँटा जा सकता है ।
GSEB Solutions Class 12 Economics Chapter 6 बेरोजगारी 1

(1) ग्रामीण विस्तारों में प्रवर्तमान बेकारी :
भारत के ग्रामीण विस्तारों में दो प्रकार की बेकारी देखने को मिलती है :
(1) मौसमी बेकारी और
(2) प्रच्छन्न बेकारी ।

(1) मौसमी बेकारी : भारत की कुल जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा ग्रामीण विस्तारों में निवास करता है । ग्रामीण विस्तारों में रहनेवाले 60% लोग आजिविका के लिए कृषि क्षेत्र पर आधारित होते हैं । भारत में कृषि ज्यादातर वर्षा पर आधारित है । भारत में वर्षा अनियमित तथा अपेक्षा के विपरीत होती है । कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि की स्थिति पैदा होती है । भारत में कृषि क्षेत्र में 6 से 7 महीने के लिए ही कृषि मजदूरों की आवश्यकता होती है । शेष समय के दौरान किसान, कृषि मजदूर तथा गणोत किसानों को कोई वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध न होने के कारण बेकारी की स्थिति में रहना पड़ता है । इस प्रकार कृषि क्षेत्र में रहना पड़ता है । इस प्रकार कृषि क्षेत्र में लगे हुए व्यक्तियों को बारहों महीने रोजगार उपलब्ध न होने के कारण वर्ष के कुछ महीने बेकार रहना पड़ता है । बेकारी के इस प्रकार को मौसमी बेकारी कहते हैं । द्वितीय कृषि मजदूर जांच समिति (1956-57) के मतानुसार भारत में कृषि क्षेत्र में पुरुषों को 254 दिन, महिलाओं को 141 दिन और बच्चों को 204 दिन तक ही काम मिलता था ।

(2) प्रच्छन्न बेकारी : ग्रामीण विस्तारों में कृषि क्षेत्र पर बोझ अधिक है । बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण कृषियोग्य जमीन का खंडविभाजन और उपविभाजन हुआ है, जिसके कारण जहाँ एक व्यक्ति की आवश्यकता हो वहाँ चार से पाँच व्यक्ति काम करते हैं । आवश्यकता से अधिक इन व्यक्तियों को काम से अलग करने के बावजूद उत्पादन में कोई कमी नहीं होती है । आवश्यकता से अधिक व्यक्ति सामान्य रूप से कार्यरत हैं ऐसा प्रतीत होता है किन्तु इनकी सीमांत उत्पादकता शून्य होती है । इस प्रकार से व्यक्ति प्रच्छन्न बेकार है ऐसा कहा जाता है । ग्रामीण विस्तारों में श्रमिक औद्योगिक क्षेत्र में रोजगारी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं । किंतु औद्योगिक क्षेत्र में रोजगारी के अवसर सीमित होने के कारण ग्रामीण विस्तारों में भी औद्योगिक बेकारी देखने को मिलती है ।

(2) शहरी विस्तारों में प्रवर्तमान बेकारी :
भारत के शहरी विस्तारों में दो प्रकार की बेकारी देखने को मिलती है :
(1) औद्योगिक बेकारी और
(2) शिक्षित बेकारी ।

(1) औद्योगिक बेकारी : भारत में हुए तेजी से औद्योगीकरण के कारण शहरीकरण की प्रक्रिया अत्यंत तीव्र बनी है । ग्रामीण विस्तारों से शहरों की ओर होनेवाले इस स्थानांतरण के कारण शहरों की जनसंख्या बढ़ी है । भारत में औद्योगिक विकास का दर अपेक्षाकृत कम है तथा उद्योगों में सामान्य रूप से, पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति की उपयोग होने के कारण रोजगारी के मर्यादित अवसरों का ही सर्जन हो पाया है । औद्योगिक क्षेत्रों में दिखाई देनेवाली इस बेकारी को शहरी बेकारी भी कहा जाता है । औद्योगिक क्षेत्रों में अथवा औद्योगिक बेकारी की समस्या लंबी अवधि की नहीं बल्कि बहुत कम समय के लिए होती है । भारत के शहरी विस्तारों में औद्योगिक बेकारी को खुली बेकारी भी कहते हैं ।

(2) शिक्षित बेकारी : भारत में आयोजन के वर्षों में शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ शिक्षितों की संख्या में भी वृद्धि हुई है । शिक्षितों की संख्या के अनुरूप रोजगारी के अवसरों का सर्जन नहीं हो पाया है । शिक्षित बेकारों में 10वीं, 12वीं, स्नातक, अनुस्नातक, टेक्निकल, डिप्लोमा तथा डिग्री प्राप्त व्यक्तियों का ही समावेश किया जाता है । शिक्षित बेकारी की समस्या ग्रामीण विस्तारों की अपेक्षा शहरी विस्तारों में ज्यादा जटिल है । उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति अपनी अनुकूलता के अनुसार नौकरी प्राप्त न कर सकने के कारण बेकार रहना पसंद करते हैं । शिक्षित बेकारों में स्वैच्छिक बेकारों की संख्या भी खूब अधिक है । भारत में शिक्षित बेकारी के लिए मंद आर्थिक विकास, क्षतियुक्त शिक्षा प्रणाली, व्यवसायलक्षी शिक्षा का अभाव, टेक्निकल ज्ञान देनेवाले शिक्षा संस्थाओं की सीमित संख्या इत्यादि कारक जिम्मेदार हैं ।

किसी भी देश में शिक्षित बेकारी की समस्या एक विकट समस्या रूप है । शिक्षित बेकारी से देश में अनेक प्रकार की सामाजिक, आर्थिक समस्याएँ पैदा होती हैं । हमारे देश में कई प्रांतों में स्वतंत्र राज्य की मांग करनेवालों में शिक्षित बेकारों की संख्या खूब अधिक है । देश की मानवशक्ति का आयोजनबद्ध तरीके से उचित संकलन किया जाय तो बेकारी की संख्या को हल किया जा सकता है ।

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