GSEB Gujarat Board Textbook Solutions Class 12 Economics Chapter 8 कृषि क्षेत्र Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 12 Economics Chapter 8 कृषि क्षेत्र
GSEB Class 12 Economics कृषि क्षेत्र Text Book Questions and Answers
स्वाध्याय
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए :
1. 2011 की जनगणना के अनुसार कितने प्रतिशत जनसंख्या ग्राम्य विस्तारों में निवास करती हैं ?
(A) 68.8%
(B) 72%
(C) 60%
(D) 74%
उत्तर :
(A) 68.8%
2. कृषि क्षेत्र का वर्ष 2011-12 में राष्ट्रीय आय में कितना योगदान था ?
(A) 53.1%
(B) 42.3%
(C) 13.9%
(D) 59.9%
उत्तर :
(C) 13.9%
3. वर्ष 2014-15 मे कृषि क्षेत्र में से रोजगारी प्राप्त करनेवाले लोगों का प्रमाण कितना था
(A) 72%
(B) 49%
(C) 26%
(D) 24%
उत्तर :
(B) 49%
4. नाबार्ड (NABARD) की रचना किस वर्ष में हुयी ?
(A) 1947
(B) 1969
(C) 1975
(D) 1982
उत्तर :
(D) 1982
5. भारत में हरित क्रांति का सर्वागीण उपयोग किस वर्ष से शुरू हुआ ?
(A) 1961
(B) 1966
(C) 1969
(D) 1991
उत्तर :
(B) 1966
6. भारत में जंतुनाशक दवाई का प्रति हेक्टर उपयोग कितना है ?
(A) 0.5 कि.ग्रा.
(B) 2.5 कि.ग्रा.
(C) 6.6 कि.ग्रा.
(D) 7 कि.ग्रा.
उत्तर :
(A) 0.5 कि.ग्रा.
7. भारत में कृषि संशोधन करनेवाली संस्था कौन-सी है ?
(A) ICAR
(B) CIBRC
(C) प्रादेशिक ग्रामीण बैंक
(D) RBI
उत्तर :
(A) ICAR
8. वर्ष 1950-’51 में राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का योगदान कितने प्रतिशत है ?
(A) 53.1%
(B) 48.7%
(C) 42.3%
(D) 36.1%
उत्तर :
(A) 53.1%
9. सामान्य रूप से कृषि क्षेत्र की आय को किस क्षेत्र की आय कहते हैं ?
(A) द्वितीय
(B) प्रथम
(C) तृतीय
(D) चतुर्थ
उत्तर :
(B) प्रथम
10. भारत में किस वर्ष के बाद औद्योगिकीकरण को महत्त्व दिया गया ?
(A) 1951 से
(B) 1991 से
(C) 1956
(D) 2001
उत्तर :
(C) 1956
11. स्वतंत्रता के समय भारत के कितने प्रतिशत लोग कृषि और कृषि संलग्न प्रवृत्तियों से रोजगार प्राप्त करते थे ?
(A) 50%
(B) 60%
(C) 65%
(D) 72%
उत्तर :
(D) 72%
12. वर्ष 2001-’02 में कृषि क्षेत्र में कितने प्रतिशत लोग रोजगार प्राप्त करते थे ?
(A) 58%
(B) 13.9%
(C) 49%
(D) 60%
उत्तर :
(A) 58%
13. फसल के मुख्य रूप से कितने स्वरूप होते हैं ?
(A) चार
(B) दो
(C) तीन
(D) पाँच
उत्तर :
(B) दो
14. वर्ष 2013 में प्रतिव्यक्ति अनाज की प्राप्ति कितनी है ?
(A) 395 ग्राम
(B) 319 ग्राम
(C) 511 ग्राम
(D) 314 ग्राम
उत्तर :
(C) 511 ग्राम
15. वर्ष 2013-’14 में अनाज का उत्पादन कितने मेट्रिक टन था ?
(A) 51.0
(B) 348
(C) 500
(D) 264.4
उत्तर :
(D) 264.4
16. वर्ष 2013-’14 में कपास का उत्पादन कितने मेट्रिक वेल्स (गांठ) था ?
(A) 36.5
(B) 46.5
(C) 26.5
(D) 16.5
उत्तर :
(A) 36.5
17. प्रादेशिक ग्रामीण बैंके किस वर्ष से शुरू की गयी ?
(A) 1951 से
(B) 1975 से
(C) 1991 से
(D) 2001
उत्तर :
(B) 1975 से
18. भारत में किस पंचवर्षीय योजना में कृषि पर अधिक ध्यान दिया था ?
(A) तीसरी
(B) दूसरी
(C) प्रथम
(D) पाँचवी
उत्तर :
(C) प्रथम
19. 1950-’51 में लगभग कितने प्रतिशत अनाज की फसल ली जाती थी ?
(A) 60%
(B) 65%
(C) 70%
(D) 75%
उत्तर :
(D) 75%
20. 1950-’51 में नगदी फसलों का उत्पादन कितने प्रतिशत होता था ?
(A) 25%
(B) 50%
(C) 75%
(D) 100%
उत्तर :
(A) 25%
21. एक अनुमान के अनुसार कितने प्रतिशत फसल सुरक्षा के अभाव में नष्ट हो जाती है ?
(A) 40 से 42%
(B) 15 से 25%
(C) 25 से 35%
(D) 40 से 50%
उत्तर :
(B) 15 से 25%
22. वर्ष 1960-’61 में राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कितने प्रतिशत था ?
(A) 50%
(B) 48%
(C) 48.7%
(D) 42.3%
उत्तर :
(C) 48.7%
23. 2000-01 में राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कितने प्रतिशत था ?
(A) 20%
(B) 21%
(C) 25%
(D) 22.3%
उत्तर :
(D) 22.3%
24. वर्ष 2013-’14 में गन्ने का उत्पादन कितने मेट्रिक टन था ?
(A) 264.4
(B) 348.0
(C) 364.4
(D) 248.0
उत्तर :
(B) 348.0
25. वर्ष 2013-’14 में तिलहन का उत्पादन कितने मेट्रिक टन था ?
(A) 32.4
(B) 30.4
(C) 28.4
(D) 34.4
उत्तर :
(A) 32.4
26. कृषि उत्पादन की गुणवत्ता के अनुसार उनका वर्गीकण करने के लिए किस मार्क की रचना की गयी है ।
(A) हॉलमार्क
(B) इकोमार्क
(C) एगमार्क
(D) ISI मार्क
उत्तर :
(C) एगमार्क
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो वाक्यों में लिखिए :
1. भारत में द्वितीय पंचवर्षीय योजना की शुरूआत कब हुयी ?
उत्तर :
भारत में द्वितीय पंचवर्षीय योजना 1956 से शुरू हुयी ।
2. भारत की निर्यात आय में कृषि क्षेत्र का योगदान कितना है ?
उत्तर :
भारत की निर्यात आय में कृषि क्षेत्र का योगदान 14.2 प्रतिशत है ।
3. अंग्रेजो के शासनकाल में जमीन-महसूल वसूल करने की रीतियों के नाम बताइए ।
उत्तर :
अंग्रेजो के शासन में जमीन-महसूल वसूल करने की पद्धतियाँ तीन थी –
- जमीनदारी पद्धति
- महालवारी पद्धति
- रैयतवारी पद्धति ।
4. नकद फसल के उदाहरण दीजिए ।
उत्तर :
नगद फसलें कपास, सन, मूंगफली, तिलहन, गन्ना आदि हे ।
5. कृषि उत्पाद के संग्रह के लिए किस निगम की स्थापना की गयी है ?
उत्तर :
कृषि उत्पाद के संग्रह के लिए ‘राष्ट्रीय कोठार निगम’ की स्थापना की गयी ।
6. राष्ट्रीय आय अर्थात् क्या ?
उत्तर :
उत्पादन के साधनो द्वारा वर्ष दरम्यान उत्पादित हुयी वस्तुओं और सेवा के मूल्य को राष्ट्रीय आय कहते हैं ।
7. निर्यात किसे कहते हैं ?
उत्तर :
अन्य देश (सीमा के पार) को होनेवाले विक्रय को निर्यात कहते हैं ।
8. जनसंख्या का भार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जब मर्यादित क्षेत्र या विस्तार में जनसंख्या का बड़ा हिस्सा निवास करता है अथवा रोजगारी का आधार रखता है, तब उस क्षेत्र या विस्तार को जनसंख्या का भार है ऐसा कहते हैं ।
9. हरित क्रांति किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सिंचाई, खाद, बीज जंतुनाशक दवा, यंत्रों द्वारा कृषि क्षेत्र में टेक्नोलोजिकल विकास किया गया उसे हरित क्रांति कहते हैं । दूसरे शब्दों में कहें तो कृषि क्षेत्र में टेक्नोलोजिकल विकास द्वारा अल्पकालीन समय में तीव्र उत्पादन वृद्धि हुयी उसे हरित क्रांति कहते हैं ।
10. नगदी फसल किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिन फसलों का उद्देश्य सीधे-सीधे आय प्राप्त करना हो तथा मुख्य रूप से उद्योगों में कच्चे माल के रूप में उपयोग की जानेवाली फसलों को नगदी फसल कहते हैं ।
11. कृषि क्षेत्र द्वारा देश की जनसंख्या को क्या-क्या उपलब्ध करवाया जाता है ?
उत्तर :
कृषि क्षेत्र द्वारा देश की जनसंख्या को अनाज, सब्जी, फल, फूल तथा उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध करवाया जाता है ।
12. भारत में कौन-सी योजना से औद्योगिकीकरण का प्रयत्न किया गया ?
उत्तर :
भारत में दूसरी पंचवर्षीय योजना से औद्योगिकीकरण का प्रयत्न किया गया ।
13. प्राथमिक क्षेत्र में किसका समावेश होता है ?
उत्तर :
प्राथमिक क्षेत्र में कृषि फसल, मुर्गीपालन, मत्स्यपालन, पशुपालन आदि का समावेश होता है ।
14. 1950-’51 में राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कितने प्रतिशत था ?
उत्तर :
1950-’51 में राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का हिस्सा 53.1 प्रतिशत था ।
15. 2001-’02 में कृषि क्षेत्र में कितने प्रतिशत लोग रोजगार प्राप्त करते थे ?
उत्तर :
2001-’02 में कृषि क्षेत्र में 58 प्रतिशत लोग रोजगार प्राप्त करते थे ।
16. वर्ष 1951 में प्रति व्यक्ति अनाज की प्राप्ति कितनी थी ?
उत्तर :
वर्ष 1951 में प्रति व्यक्ति अनाज की प्राप्ति 395 ग्राम थी ।
17. वर्ष 2013-’14 में कपास का उत्पादन कितना था ?
उत्तर :
वर्ष 2013-’14 में कपास का उत्पादन 36.5 मेट्रिक वेल्स (गांठ) था । –
18. कृषि उत्पादकता किसे कहते हैं ?
उत्तर :
प्रति हेक्टर उत्पादन को कृषि उत्पादकता के नाम से जानते हैं ।
19. संस्थाकीय परिबल किसे कहते हैं ?
उत्तर :
भारत का किसान जिस संस्थाकीय ढाँचे में रहकर काम करता है, उन्हें असर करनेवाले भौतिक, सामाजिक, आर्थिक और कानूनी परिबलों को संस्थाकीय परिबल कहते हैं ।
20. जोता का अधिकार सुरक्षित करने के लिए कोन-सा कानून पारित किया गया ?
उत्तर :
जोता का अधिकार सुरक्षित करने के लिए ‘जो जोते उसकी जमीन’ (काश्त कानून) का कानून बनाया गया ।
21. NABARD का पूरा नाम लिखिए ।
उत्तर :
NABARD का पूरा नाम – National Bank for Agriculture and Rural Development है ।
22. बैंकों का राष्ट्रीयकरण कब-कब किया गया ?
उत्तर :
बैंको का राष्ट्रीयकरण 1969 और 1980 में किया गया ।
23. किसानों को बाज़ारभाव में परिवर्तन होने पर सुरक्षित रखने के लिए सरकार क्या उपाय करती है ?
उत्तर :
किसानों को बाज़ारभाव में परिवर्तन होने पर सुरक्षित रखने के लिए ‘न्यूनतम भाव’ घोषित करती है ।
24. भारत में सिंचाई की सुविधा बढ़ाने के लिए किस योजना की रचना की गयी ?
उत्तर :
भारत में सिंचाई की सुविधा बढ़ाने के लिए ‘सिंचाई क्षेत्र विकास योजना’ और ‘आंतरिक ढाँचाकीय विकास भंडार’ की रचना की गयी है।
25. HYVP का पूरा नाम लिखिए ।
उत्तर :
HYVP का पूरा नाम – High Yielding Varities Program है ।
26. भारत में आधुनिक खेती की शुरूआत कब से हुयी ?
उत्तर :
भारत में आधुनिक खेती की शुरूआत 1966 से हुयी ।
27. अनाज फसल के उदाहरण दीजिए ।
उत्तर :
अनाज फसल में गेहूँ, चावल, मक्का, बाजरा आदि का समावेश होता है ।
28. IADP का पूरा नाम लिखिए ।
उत्तर :
IADP का पूरा नाम – Intensive Agricultural District Program है ।
29. 1950-’51 में अनुमान के अनुसार अनाज और नगदी फसल को खेती की जाती थी ?
उत्तर :
1950-’51 में लगभग 75% अनाज और 25% नगदी फसल ली जाती थी ?
30. 2006-’07 में अनाज और नगदी फसल का उत्पादन होता था ?
उत्तर :
2006-
07 में अनाज और नगदी फसल का उत्पादन 64% और 36 प्रतिशत था ।
31. CIBRC का पूरा नाम लिखिए ।
उत्तर :
CIBRC – Central Insecticide Board and Resitration Committee.
32. ICAR का पूरा नाम लिखिए ।
उत्तर :
ICAR का पूरा नाम – Indian Council of Agricultural Research है ।
33. अमेरिका में प्रति हेक्टर कितना जंतुनाशक दवा का उपयोग होता है ?
उत्तर :
अमेरिका में प्रति हेक्टर 7.0 किग्रा जंतुनाशक 991 का उपयोग होता है ।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में लिखिए :
1. नीची कृषि उत्पादकता के लिए ‘जनसंख्या का भार’ परिबल को समझाइए ।
उत्तर :
भारत में स्वतंत्रता के समय 72% लोग कृषि क्षेत्र में से रोजगार प्राप्त करते थे । जो 2001-02 में घटकर 58% रह गया । अब 2013-14 में कृषि क्षेत्र में 49% लोग रोजगार प्राप्त करते थे । कृषि क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा प्रमाण अधिक है । विदेशो की तुलना में भी अधिक है । कृषि क्षेत्र के कुल उत्पादन में संलग्न व्यक्तियों से भाग देने से प्राप्त आय श्रम की उत्पादकता कही जाती है । अधिक भार होने अधिक लोगों में वितरित हो जाती है । इसलिए नीची उत्पादकता होती है ।
2. कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि-ऋण के महत्त्व को समझाइए ।
उत्तर :
नीची कृषि उत्पादकता के लिए किसान की कमजोर आर्थिक स्थिति भी जवाबदार होती है । कम आय के कारण छोटे-सीमांत किसान में पूंजीनिवेश नहीं कर पाते हैं परिणाम स्वरूप आधुनिक खेती लाभ नहीं ले पाते । इसलिए सरकार कृषि क्षेत्र ऋण और अन्य मौद्रिक सुविधाएँ पहुँचे इसलिए सरकार 1969 और 1980 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया । इसके उपरांत कृषि पर पर्याप्त ध्यान देने के लिए कृषि क्षेत्र के लिए मध्यस्थ बैंक का अंक NABARD की स्थापना 1982 में की गयी और उसके अंतर्गत RRB (Regional Rural Banks), प्रादेशिक ग्रामीण बैंक और LDB (Land Development Banks) जमीन विकास । बैंको का विकास किया गया । जिससे भारतीय किसानों को समयसर, पर्याप्त और सस्ता ऋण मिल सके और इस प्रकार कृषि कार्य के लिए पूँजी प्राप्त करके आधुनिक खेती करके कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं ।
3. भारत को कृषि प्रधान देश क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
भारत प्राचीनकाल से ही कृषिप्रधान देश है । रोजगार, राष्ट्रीय आय, निर्यात आय में कृषि क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण योगदान है । भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार 68.8% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है । यदि कृषि उत्पादन में कमी आती है । तो इसकी असर देश की अधिकांशतः हिस्से की जनसंख्या पर विपरीत असर पड़ेगी । तथा उद्योगों को भी कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलेगा । और औद्योगिक विकास पर विपरीत असर पड़ेगी । कृषि क्षेत्र का अपर्याप्त विकास होने से लोगों की आय में कमी आयी आयेगी जिससे औद्योगिक वस्तुओं की माँग कम होगी और उद्योग क्षेत्र में रोजगार तथा आय भी कम होगी इसी प्रकार सेवा क्षेत्र पर भी विपरीत असर पड़ेगी । कृषि भारतीय अर्थतंत्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । रोजगार, राष्ट्रीय आय और निर्यात में हिस्सा कम हुआ है । फिर भी विकसित देशों की अपेक्षा अधिक है । इसलिए भारतीय अर्थतंत्र के लिए कृषि मेरुदण्ड के समान है । भारत एक कृषि प्रधान देश है।
4. लोगों के जीवनस्तर में सुधार के लिए कृषि क्षेत्र के योगदान को समझाइए ।
उत्तर :
विश्व में लोगों का प्राथमिक आधार कृषि क्षेत्र रहा है । भारत में भी कृषि क्षेत्र में लोगों के जीवनस्तर में सुधार करने का कार्य सतत किया है । फसल के मुख्य रूप से दो स्वरुप है – अनाज और नगदी फसलें । अनाज में मुख्यरूप से धान्य का समावेश होता है । जिसमें भारत स्वनिर्भर बना है । नगदी फसलों में जैसे कि कपास, सन, मूंगफली, गन्ना आदि का समावेश होता है । जो उद्योगों में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है । इन फसलों का उत्पादन भी बढ़ा है । वर्तमान किसान फल-फूल, सब्जी आदि की भी खेती करते हैं । जिससे कृषि क्षेत्र लोगों के कृषिजन्य आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सफल रहा है । 1951 में प्रतिव्यक्ति अनाज की प्राप्ति 395 ग्राम थी । वह जनसंख्या बढ़ने पर भी 2013 में 511 ग्राम हो गयी । जिससे हम कह सकते हैं कि कृषि क्षेत्र के द्वारा भारतीय लोगों की आवश्यकताओ को खूब अच्छे प्रमाण में संतुष्ट होने से लोगों की औसत आयु भी बढ़ी है । जो लोगों के जीवनस्तर में सुधार का निर्देश है ।
5. हरित क्रांति के अन्य नाम बताइए ।
उत्तर :
कृषि क्षेत्र में सुधरे हुए बीज, रासायनिक खाद, जन्तुनाशक दवाएँ, सिंचाई और यंत्रों का उपयोग करके अल्पकालीन समय में कृषि उत्पादन में शीघ्रता से जो वृद्धि होती है । उसे हरित क्रांति के नाम से जानते हैं । हरित क्रांति का परिचय निम्नानुसार है :
- वर्ष 1960-’61 में कृषि क्षेत्र की नयी टेक्नोलोजी का उपयोग भारत के मात्र सात जिलों में ‘पाइलोट प्रोजेक्ट’ के रूप किया गया ।
- जिसे शुरुआत में IADP (Intensive Agricultural District Program) अर्थात् जिलों के लिए ‘सघन कृषि कार्यक्रम’ के नाम ..
से जानते हैं । - समय व्यतीत होने पर उसे पूरे देश में लागू किया गया तब उसे HYVP (High Yielding Varities Program । अर्थात् कि ‘ऊँची उत्पादकता देने जाति का कार्यक्रम’ के नाम से जाना गया ।
- इसे ही हरित क्रांति के नाम से जानते है । इसके उपरांत इसे ‘आधुनिक कृषि टेक्नोलोजी के कार्यक्रम’ अथवा ‘बीज, खाद और पानी की टेक्नोलोजी का कार्यक्रम’ के नाम से जानते हैं ।
6. कृषि संशोधनों का परिचय दीजिए ।
उत्तर :
ICAR (Indian Council of Agricultural Research) यह एक मात्र संस्था है जो भारत में विविध प्रकार के कृषि संशोधन करवाती है, इसके लिए व्यवस्था करती है और उसके लिए सहायता भी करती हैं । इसके उपरांत कृषि सहित बागायती कृषि, मत्स्यपालन और पशुपालन विज्ञान के सम्बन्ध में ज्ञान को फैलाने में मदद करती है । ICAR यह हरित क्रांति के लिए आधारभूत कार्य करती है । किसान को राष्ट्रीय अनाज प्राप्ति और पोषणयुक्त रक्षण प्राप्त हो इसके लिए संभव जितने प्रयत्न भी किये हैं ।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्देसर दीजिए :
1. फसल की अदलाबदली को समझाइए ।
उत्तर :
फसल की अदलाबदली यह देश में लिये जानेवाले अलग-अलग फसलों के लिए उपयोग में ली जानेवाली जोती गयी जमीन के विस्तार द्वारा प्राप्त कर सकते हैं । फसल की अदला-बदली खेती के कार्यों के स्वरूप को दर्शाती है । सामान्य रूप से फसल के मुख्य रूप से दो स्वरूप है –
(1) अनाज की फसल जिसमें गेहूँ, चाबल, बाजरा, ज्वार, मक्का तथा तिलहन का समावेश होता है ।
(2) नगदी फसल या अनाजेतर फसल जिसमें विविध तिलहन, गन्ना, रबर, कपास, सन आदि का समावेश होता है ।
फसल की अदला-बदली के मुख्य दो कारण है :
(1) टेक्नोलॉजिकल परिबल
(2) आर्थिक परिबल
(1) टेक्नोलोजिकल परिबल : किसी एक विस्तार में फसल की अदलाबदली यह जमीन, जलवायु, वरसाद आदि बातों पर आधारित है । जैसे : मध्य प्रदेश में वर्षों तक बाजरे की फसल के बाद चाबल की फसल ली जाती है । भारत में बहुत से राज्यों में सिंचाई की सुविधाओं के आधार पर गन्ना, तमाकू जैसी फसल ली जाती है । इस प्रकार फसल की अदला-बदली पूँजी, नये बीज, खाद, ऋण की सुविधा आदि पर आधार रखता है ।
(2) आर्थिक परिबल : फसल की अदलाबदली लिए आर्थिक परिबल भी महत्त्वपूर्ण है । यह आर्थिक परिबल निम्नानुसार है :
- कीमत और आय को महत्तम बनाना
- कृषिजन्य साधनों की उपलब्धता
- खेत का कद
- वीमा रक्षण
- समय (जमीन मालिक पास से प्राप्त जमीन का समय) आदि ।
इन परिबलों के आधार पर फसल की अदला-बदली के लिए जवाबदार होते हैं । 1950-’51 में लगभग 75% अनाज और 25% नगदी फसलें ली जाती थी । उसके बाद 1966 से हरित क्रांति के बाद 1970’71 में अनाज 74% और नकदी फसलें 26% ली जाती थी । यह अनुपात 2006-’07 में 64% और 34% हो गया । और 2010-’11 में लगभग अनाज की फसल 66% और नकदी फसलें 34% ली जाती थी ।
2. हरित क्रांति अर्थात् क्या ?
उत्तर :
आयोजनकाल के दरम्यान 1966 के बाद देश में कृषि क्षेत्र के उत्पादन में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई उससे हरियाली क्रांति हुई।
हरियाली क्रांति के लिए निम्नलिखित जवाबदार परिबल है –
- आयोजनकाल के दरम्यान आधुनिक टेक्नोलॉजी का विकास हुआ जैसे ट्रेक्टर, थ्रेसर, पम्पसेट, बोने के यंत्र आदि ।
- नये-नये सुधरे हुए बीजों की खोज हुई । जैसे गेहूँ, चाबल, मक्का, कपास आदि के सुधरे हुए बीज अस्तित्व में हैं ।
- पुरानी उत्पादन पद्धति की जगह नई वैज्ञानिक उत्पादन पद्धति से भारत में खेती की जाने लगी ।
- सिंचाई की पर्याप्त सुविधाओं में वृद्धि की गई ।
- सहायक सेवाएँ जैसे गोदाम, सड़क, वाहनव्यवहार सेवाएँ, बाज़ार आदि की सुविधाएँ उपलब्ध कराई गई ।
- किसान को आर्थिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई गईं ।
इन सब कारणों से भारत में कृषि उत्पादन में अनेक गुनी वृद्धि हुई । मात्र उत्पादन में ही नहीं प्रति हेक्टर उत्पादन में भी वृद्धि हुई । स्वतंत्रता से पूर्व जहाँ अनाज की आयात की जाती थी वहीं अब आयात तो बंध हुई ही लेकिन अब हम कृषि उपजों का लगभग 14.2% निर्यात करके विदेशी कमाई कर रहे हैं ।
यह सब हरियाली क्रांति का ही परिणाम है ।
3. कृषि संशोधन की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
ICAR (Indian Council of Agricultural Research) : यह एक एसी मात्र संस्था है, जो भारत में विविध प्रकार के कृषि संशोधन करवाती है । तथा कृषि संसाधनों के लिए व्यवस्था करती है । उसके लिए सहायता करवाती है । इसके उपरांत देश में कृषि सहित बागायती खेती, मत्स्लपालन और पशुपालन वैज्ञानिक ढंग से हो इसके सम्बन्ध में जानकारी फैलाने में मदद करती है । ICAR यह हरित क्रांति के विस्तार के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य करती है । उन्हें राष्ट्रीय अनाज प्राप्ति और पोषणयुक्त सुरक्षा मिले इसके लिए संभव हो उतने प्रभाव भी किये है ।
4. कृषि का महत्त्व दर्शानेवाले तीन मुद्दों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
भारत एक कृषि प्रधान देश है । रोजगार, राष्ट्रीय आय, निर्यात आय में कृषि का महत्त्वपूर्ण योगदान है । भारत कृषि क्षेत्र देश की जीवनदोरी के समान है, इसलिए उसे अर्थतंत्र की रीड की हड्डी (मेरुदण्ड) के समान माना गया है । भारतीय अर्थतंत्र में विविध क्षेत्र (उद्योग-सेवा) कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर हैं । इसे ऐसे समझ यदि कृषि उत्पादन में निष्फल जाये तो अनाज, सब्जी, फल आदि फूल ही नहीं उद्योगों में भी कच्चे माल के रूप में उपयोग होने वाली नगदी फसलें भी निष्फल हो जायेंगी । इस परिस्थिति में देश के लोगों को कृषिजन्य चीजवस्तुएँ पर्याप्त प्रमाण नहीं मिलेंगी परिणाम स्वरुप कीमत अधिक होगी । जिससे लोगों का जीवन प्रभावित होता है ।
दूसरी और 2011 की जनगणना के आधार पर 68.8% जनसंख्या ग्राम विस्तार में रहती है । जिनका मुख्य व्यवसाय खेती हैं। कृषि के निष्फल होने से इतना बड़ा वर्ग प्रभावित होता है । यदि कृषि क्षेत्र का विकास होगा तो इतने बड़े वर्ग के जीवनस्तर को सुधार सकते हैं । जीवनस्तर में सुधार होने से औद्योगिक वस्तुओं की माँग बढ़ेगी जिससे उद्योगों का विकास होगा । आर्थिक विकास होने से सेवाओं की माँग बढ़ती है । परिणाम स्वरूप सेवा क्षेत्र का विकास होगा ।
इस प्रकार हम कह सकते हैं । भारतीय अर्थतंत्र अभी कृषि क्षेत्र पर आधारित है और भारतीय अर्थतंत्र के साथ विश्व अर्थतंत्र के लिए भी कृषि क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है ।
5. नीची कृषि उत्पादकता के किन्हीं तीन महत्त्वपूर्ण परिबलों को समझाइए ।
उत्तर :
भारत कृषिप्रधान देश है फिर भी कृषि से सम्बन्धित अनेक समस्या है । जिनमें एक सबसे बड़ी समस्या नीची कृषि उत्पादकता की है । जिसके मुख्य तीन कारण है :
(1) संस्थाकीय परिबल
(2) टेक्नोलोजिकल परिबल
(3) अन्य परिबल
* संस्थाकीय परिबल : संस्थाकीय ढाँचे में रहकर भारतीय किसान खेती करता है । जिसे भौतिक, सामाजिक, आर्थिक और कानूनी परिबल असर करते हैं जिन्हें संस्थाकीय परिबल कहते हैं । संस्थाकीय परिबलों की चर्चा निम्नानुसार करेंगे :
(1) जमीन-महसूल वसूल करने की प्रथा : भारत में स्वतंत्रता के समय जमीन-महसूल वसूल करने की तीन पद्धतियाँ प्रचलित थी जमीनदारी प्रथा, महालवारी प्रथा और रैयतवारी प्रथा । इनमें खेती करने वाले काश्तकार, बटाईदार या कृषि मजदूर खेती करते थे । उत्पादन में से बड़ा हिस्सा जमीनदारो वसूल कर लेते हैं । जबकि खेती करनेवाले को जीवननिर्वाह जितना उत्पादन ही मिलता था । इसलिए उत्पादन बढ़ाने में कोई रुचि नहीं थी । अर्थात् कृषि उत्पादन की नीची उत्पादकता देखने को मिलती है ।
(2) कृषि ऋण : भारत का किसान गरीब है । उसकी नीची आय के कारण कृषि में पूंजीनिवेश नहीं करवाता है । परिणाम स्वरूप कृषि ऋण द्वारा वे बीज, खाद, जंतुनाशक दवा आदि खरीदने के लिए शक्तिमान बनता है और उत्पादन प्रक्रिया संभव बनती है । परंतु स्वतंत्रता के बाद से ही किसान सेठ, शाहूकार, व्यापारियों, जैसे असंगठित क्षेत्रों से ऋण लेता है । यह प्रमाण 1951 में 71.6% सर्राफों से ऋण लेता था । जो ऊँचा व्याज वसूल करते हैं । उसकी संपत्ति गिरवी लिखवा लेता था । अर्थात् किसान का शोषण होता था । इसलिए उनसे ऋण लेकर उत्पादन के लिए प्रोत्साहित नहीं होता था । अर्थात् नीची उत्पादकता देखने को मिलती थी ।
(3) कृषि उत्पादनों की विक्रय व्यवस्था : भारत में कमजोर आधारभूत सुविधाओं के कारण दूर-दूर के ग्राम्य विस्तार और कृषि बाज़ारों को जोड़नेवाले उचित रोड-रास्ते या वाहनव्यवहार की सुविधा उचित नहीं है । इसके उपरांत कृषि बाज़ारों में कृषि उत्पादन के बाद तुरंत बाजारभाव और मौसम के अंत में मिलनेवाले भाव के बीच बड़ा अंतर होता है । ऊँचे भाव का लाभ किसानों की बजाय व्यापारियों और संग्रहखोरों को ही मिलता है । कर्ज में डूबे किसान अपने कर्ज को चुकाने के लिए अपने कृषि उत्पादन को कई बार उत्पादन से पहले ही स्थानिक शाहूकार या दलाल को बेच देते हैं । बाज़ार की जानकारी का अभाव के कारण उसे अपने उत्पादक का अच्छा प्रतिफल नहीं मिलता परिणाम स्वरूप नीची उत्पादकता होती है।
(4) ग्रामीण समाज व्यवस्था : भारत के किसान अधिकतर प्रारब्धवादी और अपर्याप्त जानकारी रखते हैं । यह भाग्यवादी या प्रारब्धवादी होने से भाग्यवादी बन जाते है । जिससे गरीबी को ईश्वर की देन समझकर सरलता से स्वीकार कर लेते हैं । ये जीवननिर्वाह खेती करके संतोष कर लेते हैं । वे आर्थिक विकास करने के लिए, कृषि विकास, आय में वृद्धि जैसी प्रेरणाओ और परिवर्तनो को स्वीकार नहीं करते हैं । परिणाम स्वरूप उत्पादकता नीची देखने को मिलती है ।
6. कृषि की नीची कृषि उत्पादकता के टेक्नोलोजिकल परिबलों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
भारत के कृषि क्षेत्र में फसल के सम्बन्ध में परम्परागत एसी पुरानी उत्पादन पद्धति का उपयोग किया जाता है ।
- खेती में पुराने साधन, पुरानी विचारधारा, पद्धति आदि कृषि क्षेत्र को कमजोर बनाती है ।
- वर्तमान समय में भी भारत के किसान ट्रेक्टर के बदले हल और बैल का उपयोग करते हैं ।
- सुधरे हुए बीजों के बदले परंपरागत बीजों का उपयोग करते हैं ।
- रासायनिक खाद के स्थान गोबर के खाद का उपयोग किया जाता है ।
- फसल सुरक्षा के लिए जंतुनाशक दवा और नवीन पद्धतियों का उपयोग भारतीय किसान बहुत कम करता है ।
उपर्युक्त टेक्नोलोजिकल परिबलो (रासायनिक खाद), सुधरे हुए बीज, जंतुनाशक दवा, सिंचाई यांत्रीकरण के अभाव के कारण भारत में कृषि उत्पादकता नीची देखने को मिलती है ।
7. कृषि की नीची खेत उत्पादकता के लिए अन्य परिबलों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
भारत में खेती की नीची उत्पादकता के लिए संस्थाकीय परिबल और टेक्नोलॉजिकल परिबलों के अतिरिक्त अन्य परिबल भी जवाबदार हैं । जिनमें मुख्य रूप से दो परिबलों का समावेश होता है ।
(1) जनसंख्या का भार : भारत में कृषि क्षेत्र की नीची उत्पादकता के लिए सबसे बड़ा कारण कृषि पर जनसंख्या का अधिक भार भी जवाबदार है । जिसे हम कृषि क्षेत्र में रोजगार से समझ सकते हैं । स्वतंत्रता के समय 72% लोग कृषि क्षेत्र में से रोजगार प्राप्त करते है । 2001-02 में घटकर 58% रह गया है । जबकि 2013-14 में 49% लोग कृषि क्षेत्र में से रोजगार प्राप्त करते हैं । इस प्रकार हम देख रहे हैं कृषि क्षेत्र में रोजगार का प्रमाण कम हुआ है । फिर भी अन्य क्षेत्रों से अधिक है । विदेशों की तुलना में बहुत अधिक है । इस प्रकार आवश्यकता अधिक कृषि क्षेत्र में लोग कार्य करते हैं । जिससे कृषि उत्पादन अन्य लोगों में वितरित हो जाती है । जिससे नीची उत्पादकता देखने को मिलती है ।
(2) आर्थिक आयोजन का अभाव : कृषि क्षेत्र में नीची उत्पादकता के लिए आर्थिक आयोजन का अभाव भी जवाबदार है । भारत सरकार ने प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया । परंतु दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956) से भारत का आर्थिक आयोजन उद्योग केन्द्रित बना है । भारत सरकार ने उद्योगों के विकास के पीछे जितने प्रयत्न, समय खर्च करती है । उतना खर्च कृषि क्षेत्र में नहीं करती है । कुल मिलाकर ऐसा कह सकते हैं कि भास्त का कृषि क्षेत्र अनियमित और धीमी गति से विकास करनेवाला क्षेत्र होने से सरकार भी कृषि क्षेत्र को आवश्यक प्रमाण में सहायक नहीं बनी है । जिसके कारण भारतीय कृषि क्षेत्र की स्थिति चिंताजनक है ।
8. फसल संरक्षण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
भारत में एक अनुमान के अनुसार 15 से 25% फसल कीटाणुओं, रोगों, घास और पशु-पक्षियों के कारण नष्ट हो जाती है । जिसे फसल संरक्षण के द्वारा बचाकर कृषि उत्पादकता बढ़ा सकते हैं । भारत में अपेक्षा से कम जंतुनाशक दवा का प्रति हेक्टर उपयोग किया जाता है । आर्थिक सर्वे 2015-16 के अनुसार भारत में मात्र 0.5 किग्रा प्रति हेक्टर जंतुनाशक दवा का उपयोग होता है । जबकि अमेरिका में यह प्रमाण 7.0 किग्रा, युरोप में 2.5 किग्रा, जापान में 12 किग्रा और कोरिया में 6.6 किग्रा है । जो हमसे कहीं अधिक है।
जन्तुनाशक दवाओं के कम उपयोग के लिए उचित जानकारी का अभाव, नीची गुणवत्तावाली जंतुनाशक दवा और जन्तुनाशक के उपयोग की जानकारी का अभाव भी जवाबदार है । भारत में जो जन्तुनाशक दवा का अयोग्य उपयोग पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।
फसल संरक्षण के लिए भारतीय किसानों को कीटनाशक दवाओं के अलग-अलग प्रकार और उनके झहरीलापन के सम्बन्ध में CIBRC संस्था कार्यरत है । जो किसानों को जानकारी देकर मार्गदर्शन भी देती है । इस प्रकार यह संस्था किसान जंतुनाशक दवा का उचित प्रमाण में उचित रूप से उपयोग करके फसल संरक्षण द्वारा कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए भारत सरकार
प्रयत्नशील है ।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक दीजिए :
1. भारत में कृषि की वर्तमान स्थिति की समीक्षा कीजिए ।
उत्तर :
भारत प्राचीनकाल से ही कृषिप्रधान देश है । भारतीय अर्थतंत्र कृषि पर आधारित है । इसलिए कृषि अर्थतंत्र की रीड की हड्डी है । कृषि क्षेत्र के महत्त्व को समझने के लिए हम कृषि क्षेत्र की वर्तमान स्थिति की चर्चा करेंगे :
(1) राष्ट्रीय आय : भारत की राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण योग गान है । कृषि क्षेत्र को प्राथमिक क्षेत्र भी कहते हैं । जिसमें कृषि फसल, मुर्गीपालन, मत्स्यपालन, पशुपालन आदि का समावेश होता है । 2011-’12 के आर्थिक सर्वे के अनुसार भारत की राष्ट्रीय आय में 1950-51 में कृषि क्षेत्र का हिस्सा 53.1% था जो घटकर 2011-’12 में 13.9% रह गया है । जो भारत में बिन कृषि क्षेत्र के विकास का निर्देश है । भारत में कृषि क्षेत्र का विकास भी एक जटिल प्रश्न बन गया है ।
(2) रोजगार : भारत में कृषि क्षेत्र सबसे अधिक रोजगार देनेवाला क्षेत्र है । स्वतंत्रता के समय 72% कृषि क्षेत्र और उससे सम्बन्धित प्रवृत्तियों से रोजगार प्राप्त करते थे । स्वतंत्रता के बाद उद्योग क्षेत्र और कृषि क्षेत्र का विकास होने से रोजगारी का प्रमाण घटा है । जैसे – 2001-’02 में कृषि क्षेत्र 58% और 2014-’15 में 49% रोजगार उपलब्ध करवाता है ।
(3) जो अन्य क्षेत्रों से अधिक है। निर्यात आय : भारत कृषि उत्पादनों का निर्यात करके विदेशी मुद्रा प्राप्त करता है । जैसे चाय, मिर्च-मसाला, फल आदि कृषि उत्पादों का निर्यात करता है । स्वतंत्रता के समय 70% विदेशी मुद्रा कृषि निर्यात से प्राप्त होती थी । जो घटकर 2013-’14 . में 14.2 प्रतिशत रह गयी ।
(4) जीवनस्तर : लोगों के जीवनस्तर में सुधार के लिए कृषि क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है । कृषि उत्पादन बढ़ाकर हम कम कीमत में कृषिजन्य आवश्यकता को पूर्ण कर सकते हैं । तथा उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध करवाकर औद्योगिक विकास को भी गति प्रदान करता है । वर्तमान समय कृषि क्षेत्र भारत में स्वनिर्भर बना है । जैसे 1951 में प्रतिव्यक्ति अनाज की प्राप्ति 395 ग्राम थी वह बढ़कर 2013 में 511 ग्राम होग गयी । जिससे हम कह सकते हैं कि लोगों के जीवनस्तर में सुधार हुआ है और लोगों की औसत आयु भी बढ़ी है ।
(5) कृषि उत्पादन में वृद्धि : स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने कृषि विकास पर ध्यान दिया परिणाम स्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि हुयी है जैसे अनाज, दलहन, गन्ना और तिलहन का उत्पादन 1950-’51 में क्रमश: 51.0, 8.4, 69.0 और 5.1 मेट्रिक टन था जो बढ़कर क्रमश: 2013-’14 में 264.4, 19.6, 348.0 और 32.4 मेट्रिक टन हो गया । इस प्रकार अनाज के उत्पादन में पाँच गुना, दलहन में ढाई गुना, गन्ना में पाँच गुना तथा तिलहन का उत्पादन 6.35 गुना वृद्धि हुयी है । कपास का उत्पादन 1950’51 मे 2.1 मेट्रिकस वेल्स (गांठ) था वह बढ़कर 2013-’14 में 36.5 मेट्रिक वेल्स(गांठ) हो गया अर्थात् 17 गुना वृद्धि हुयी है । कृषि उत्पादन के साथ-साथ कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुयी है।
(6) औद्योगिक विकास का आधार : कृषि क्षेत्र का विकास औद्योगिक विकास के लिए भी महत्त्वपूर्ण है । उद्योगों को कच्चा माल ।
कृषि क्षेत्र उपलब्ध करवाती है । और औद्योगिक विकास को गति प्रदान करती है । दूसरी दृष्टि से देखें तो 69 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण विस्तार में रहती है, जिसकी आय का मुख्य स्रोत कृषि क्षेत्र है । तो कृषि क्षेत्र का विकास होने से ग्रामीण लोगों की आय बढ़ेगी जिससे टी.वी., फ्रीज, मोटर साइकल आदि औद्योगिक वस्तुओं की मांग बढ़ेगी और उद्योगों का विकास होगा ।
2. नीची कृषि उत्पादकता के लिए जिम्मेदार कारणों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
भारत में कृषि से सम्बन्धित अनेक समस्याएँ हैं, उनमें कृषि में नीची उत्पादकता महत्त्वपूर्ण समस्या है । भारत में कृषि की नीची
उत्पादकता के लिए निम्नलिखित कारण हैं :
(1) संस्थाकीय परिबल : नीची कृषि उत्पादकता के लिए भौतिक, सामाजिक, आर्थिक कानूनी परिबल जैसे संस्थाकीय परिबल जवाबदार
है । जिनकी चर्चा निम्नानुसार करेंगे :
(i) संस्थाकीय परिबल : नीची कृषि उत्पादकता के लिए संस्थाकीय ढाँचा सबसे अधिक जवाबदार है । जिनकी चर्चा करेंगे :
(1) जमीन-महसूल वसूल करने की प्रथा : भारत में स्वतंत्रता के बाद महसूल वसूल करने की प्रथा तीन प्रकार की थी – (1) जमीनदारी प्रथा,
(2) महालवारी प्रथा और (3) रैयतवारी प्रथा थी । जिसमें जमीन भाड़े या लगान पर देते थे । उत्पादन का अधिकांश हिस्सा जमीनदार, मालिक भाडे के रूप वसूल करते थे । उन्हें मात्र जीवननिर्वाह जितना ही मिलता था । कभी-कभी कर्ज के नीचे भी दब जाता था । परिणाम स्वरूप काश्तकार, बटाईदार या कृषि मजदूरों को कृषि उत्पादकता बढ़ाने में रुचि नहीं थी । परिणाम स्वरुप नीची उत्पादकता देखने को मिलती है ।
(2) कृषि ऋण : भारत का छोटा एवं सीमांत किसान गरीब होता है । कम आय के कारण कृषि क्षेत्र में निवेश नहीं कर । पाता है । तथा कृषि ऋण के लिए भी सर्राफा बाज़ार पर निर्भर होता है । या सेठ शाहूकारों से ऋण लेता जो उससे ऊँचा व्याज वसूल करते हैं । और किसान का शोषण होता है । अर्थात् किसान इन असंगठित क्षेत्रों से कर्जा लेकर आधुनीकरण के लिए प्रोत्साहित नहीं होता है । परिणाम स्वरूप नीची उत्पादकता देखने को मिलती है ।
(3) कृषि उत्पादन की विक्रय व्यवस्था : भारत में आंतरिक ढाँचे के अभाव के कारण भारत का किसान अपने उत्पादन को बाज़ार तक नहीं पहुंचा पाता । साथ ही किसान और बाज़ार के बीच दलालों, आडतिया, व्यापारी और संग्रहखोर अधिक होते हैं । तत्कालन भाव और फसल के बाद के भाव के बीच का अंतर अधिक होने से किसान को उचित मूल्य प्राप्त नहीं होता । परिणाम स्वरूप नीची उत्पादकता देखने को मिलती है ।
(4) ग्रामीण समाजव्यवस्था : भारत के किसान अधिकतर प्रारब्धवादी, भाग्यवादी, अंधविश्वासी एवं पुरानी परम्पराओं को माननेवाले स्थिर प्रवृत्ति के होते हैं । परिणाम स्वरुप गरीबी, अभाव और समस्याओं को ईश्वर की देन समझकर स्वीकार कर लेते हैं । आधुनिक परिवर्तनों को स्वीकार नहीं करते हैं । परिणाम स्वरूप नीची उत्पादकता देखने को मिलती है ।
(2) टेक्नोलोजी परिबल : भारत में अभी भी परम्परागत प्रकार की खेती देखने को मिलती है । ट्रेक्टर की जगह हल-बैल से खेती
करते हैं । सुधरे हुए बीजों के स्थान पर परम्परागत बीजों का उपयोग करते हैं । रासायनिक खाद के स्थान पर गोबर के खाद : का उपयोग करते हैं । तथा किसान गरीब होने से निवेश नहीं कर पाते हैं । परिणाम स्वरूप भारतीय कृषि में सुधरे हुए बीज, रासायनिक खाद, जन्तुनाशक दवा टेक्नोलोजी आदि के उपयोग का अभाव होता है । परिणाम स्वरूप नीची उत्पादकता देखने को मिलती है ।
(3) अन्य परिबल : नीची उत्पादकता के लिए जवाबदार अन्य परिबल निम्नानुसार हैं :
(1) जनसंख्या का भार : भारत में अभी भी 2013-14 में देश की आधी आबादी अर्थात् 49% कृषि क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करती है । अधिक भार के कारण कृषि उत्पादन अधिक लोगों में बट जाता है । अर्थात् उत्पादकता नीची देखने को मिलती है ।
(2) आर्थिक आयोजन का अभाव : भारत में प्रथम योजना में कृषि क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया । परंतु दूसरी पंचवर्षीय योजना से औद्योगिक विकास पर अधिक ध्यान दिया । धीमी गति होनेवाले कृषि विकास की उपेक्षा सरकार ने भी की परिणाम स्वरूप कृषि से सम्बन्धित आर्थिक आयोजन के अभाव के कारण भी नीची उत्पादकता देखने को मिलती है ।
3. कृषि उत्पादकता बढ़ाने के उपायों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
भारत एक कृषिप्रधान देश है । भारतीय अर्थतंत्र के लिए कृषि रीड़ की हड्डी है । इसलिए भारतीय अर्थतंत्र के विकास के लिए
कृषि उत्पादकता बढ़ाना जरूरी है । इसलिए हम यहाँ कृषि उत्पादकता बढ़ाने के उपाय निम्नानुसार हैं :
(1) संस्थाकीय सुधार : कृषि क्षेत्र की कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए निम्नलिखित संस्थाकीय सुधार किये गये हैं :
(i) जमीन सम्बन्धी सुधार : भारत में किसान को जमीन मालिकी मिले तथा काश्तकार को जोत के अधिकार सुरक्षित करने के लिए जमीनदारी प्रथा समाप्त, जोत-अधिकार सुरक्षा तथा काश्त नियमन सम्बन्धी कानून पारित किया गया । जिससे किसानों का आर्थिक शोषण रुके तथा कृषि उत्पादकता का बड़ा हिस्सा प्राप्त कर सके ऐसी स्थिति का निर्माण होने से वे कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील होते हैं ।
(ii) संस्थाकीय ऋण की प्राप्ति : नीची कृषि उत्पादकता के लिए कृषि ऋण का अभाव भी जवाबदार है । इसलिए भारत में कृषि क्षेत्र तक ऋण और अन्य वित्तीय सुविधाएँ पहुँचाने के लिए सरकार ने 1969 और 1980 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया । NABARD की स्थापना की गयी जो कृषि क्षेत्र के लिए मध्यस्थ बैंक का एक अंग है । 1982 में RRBs और C.D.Bs की स्थापना करके किसानों को कर्जा समयसर, कमव्याज पर सरलता से मिल सके ऐसी व्यवस्था की है । जिससे किसान कृषि कार्य के लिए पूँजी प्राप्त करके कृषि उत्पादकता बढ़ा सकता है ।
(iii) कृषि उत्पादन की विक्रय व्यवस्था में सुधार : कृषि उत्पादो की विक्रय व्यवस्था में रही हुयी कमीयों दूर करने के लिए निम्नलिखित
कदम उठाये हैं :
- नियंत्रित बाज़ार की स्थापना की गयी है ।
- कृषि उत्पादनों की गुणवत्ता अनुसार उनका वर्गीकरण करने के लिए ‘ऐगमार्क’ (AGMARK = Agriculture Marketing) की प्रथा दाखिल की गयी है ।
- किसान अपने उत्पादन को संग्रह कर सके इस उद्देश्य से ‘राष्ट्रीय कोठार निगम’ और राज्य कोठार निगमों की स्थापना की है।
- कृषि उत्पादों के भाव की जानकारी प्राप्त हो ऐसी व्यवस्था की गयी है । (दूरदर्शन पर कृषि समाचार)
- किसानों का उत्पादन उचित मूल्य प्राप्त हो इसलिए सरकार द्वारा ‘न्यूनतम भाव’ घोषित किया गया है ।
(iv) कृषि संशोधन : भारतीय किसान कम शिक्षित होने से वह स्वयं संशोधन नहीं कर सकते हैं । इसलिए कृषि संशोधन की जवाबदारी
NABARD को सैंप दी है । जो विविध प्रकार के कृषि संशोधन करते हैं । इसके लिए प्रशिक्षण और समझ किसान तक पहुँचाई जाती है । जिससे किसान परम्परागत कृषि का उत्पादन न करे, परंतु बाज़ार में जिस वस्तु की मांग अधिक उसी के अनुसार बुआई करके अधिक आय प्राप्त करने के लिए बाज़ारलक्षी फसल का उत्पादन करे यह प्रयत्न किया जाता है । इसके उपरांत कृषि सुधार के कार्यक्रमों में किसानों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए, सामूहिक ग्राम विकास योजना, पंचायती राज, संकलित ग्रामविकास योजना, जनधन योजना आदि शुरू करके कृषि क्षेत्र आधुनिकीकरण की ओर प्रेरित करके कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए मोड़ सकते हैं ।
(2) टेक्नोलोजिकल सुधार : कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित टेक्नोलोजिकल सुधार निम्नलिखित हैं :
(i) सुधरे हुए बीज : राष्ट्रीय कृषि संशोधन समिति, राष्ट्रीय बीज निगम और कृषि विश्व विद्यालयों में सुधरे हुये बीज विकसित करने के लिए अग्रिमता देकर कृषि उत्पादकता बढ़ा सकते हैं । सुधरे हुए बीज (हाइब्रिड बीज) विकसित करने से अधिक उत्पादन कर सकते हैं, रोगों से सामना कर सकते है । जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है । जिसे कृषि क्रांति के स्थान पर ‘बीज क्रांति’ के नाम से जानते हैं ।
(ii) रासायनिक खाद का उपयोग : जमीन की उर्वरक शक्ति को बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद का उपयोग बढ़ा है । जिससे फसल को पर्याप्त पोषण मिले और तीव्रता से अधिक विकास हो इस उद्देश्य से विविध फसलों पर रासायनिक खाद का प्रयोगों से सिद्ध हुये रासायनिक खाद कृषि उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं । संबंधित फसल को आवश्यक नाइट्रोजन, फोस्फेट, पोटाश जैसे रासायनिक खाद का उपयोग किया जाये । इसके लिए सरकार किसानों को सबसिड़ी प्रदान की जाती है ।
(iii) सिंचाई की सुविधा में वृद्धि : भारत की खेती अभी भी वरसाद पर आधारित है । वरसाद अनियमित होने से उसकी असर कृषि उत्पादन पर पड़ती है । इसलिए हमें सिंचाई की सुविधा बढ़ाकर फसल को बचाना चाहिए । इसके लिए भारत में सिंचाई सुविधा बढ़ाने के लिए ‘सिंचाई क्षेत्र विकास योजना’ और ‘आंतर ढाँचाकीय विकास भंडार’ की रचना की गयी है । इस प्रकार सिंचाई की सुविधा बढ़ाकर उत्पादन बढ़ाना चाहिए ।
(iv) यंत्रो का उपयोग : भारत में नीची कृषि उत्पादकता के लिए एक कारण परम्परागत साधन या यंत्र भी हैं । वर्तमान समय में इन्जिनियरिंग और ओटोमोबाइल विकास के साथ ट्रेक्टर, ट्रेलर, थ्रेसर, इलेक्ट्रिक पम्पसेट, ऑयल इन्जिनो, दबा छिड़कने के लिए पंप आदि आधुनिक यंत्रो की खोज हुयी है । इसलिए इन यंत्रों का उपयोग करके कृषि में तीव्रता आती है और उत्पादन में वृद्धि होती है ।
(v) जंतुनाशक दवा : फसल संरक्षण के अभाव में फसल नष्ट होती है । इसलिए विविध प्रकार के जंतुनाशक दवाओं का उपयोग करके फसल संरक्षण के द्वारा कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं । इसके लिए सरकार भी किसानो ऋण और आर्थिक सहायता पहुँचाती है ।
(vi) भूमि परीक्षण : वर्तमान समय में वैज्ञानिक ढंग से कृषि में फसल लेने के लिए भूमि परीक्षण (Soil testing) करने की पद्धति प्रचलित बनी है । जो परीक्षण फसल के अनुकूल जमीन की गुणवत्ता है या नहीं तथा जमीन में जिन घटकों की गुणवत्ता है या नहीं तथा जमीन में जिन घटकों की कमी है । उसकी जानकारी देता है । जिससे फसल लेने से पहले जमीन की विशेष प्रकार की कमी को दूर करके कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं ।
(3) अन्य परिबल : कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए किसानों को शिक्षित करने के लिए तथा नवीन प्रकार की पद्धतियों से परिचित करवाकर किसान की कार्यप्रणाली को परिवर्तित होती है । तथा शिक्षित होने से ग्रामीण क्षेत्र में अंधविश्वास, प्रारब्धवाद समाप्त होता है । और नये परिबलों को स्वीकार करते हैं । तथा कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती है ।
इसके उपरांत कृषि से सम्बन्धित उद्योग जैसे पशुपालन, मुर्गीपालन, बतक पालन, फुड प्रोसेसिंग कार्य, जंगल जैसे संशोधनों का
उपयोग बढ़ने से कृषि क्षेत्र पर भार कम होता है । जिससे उत्पादकता में वृद्धि होती है ।
4. नीचे अलग-अलग वर्षों में राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का हिस्सा प्रतिशत में दर्शाया गया है । उस पर से योग्य आलेख बनाकर विश्लेषण कीजिए ।
उत्तर :
विश्लेषण :
- एक ही प्रकार की जानकारी के लिए सामयिक श्रेणी अधिक उपयोगी मानी जाती है ।
- x-अक्ष पर वर्ष और y-अक्ष पर राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र में हिस्सा दर्शाया गया है ।
- 1950-51 में राष्ट्रीय आय का हिस्सा 53.1 प्रतिशत था जो घटकर 1960-61 में 48.7% रह गया है ।
- 1970-71 में राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का हिस्सा 42.3% और 1980-81 और 1990-91 में प्रमाण क्रमश: 36.1% और 29.6%
- 2000-01 में 22.3% था जो घटकर 2011-12 में 13.9 प्रतिशत रह गया है ।
- उपर्युक्त विश्लेषण पर ऐसा कह सकते हैं कि राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का हिस्सा घटा है । जो अन्य क्षेत्र के विकास को दर्शाता है ।