Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Chapter 16 भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 9 Hindi Textbook Solutions Chapter 16 भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध
Std 9 GSEB Hindi Solutions भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध Textbook Questions and Answers
स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
प्राचीन काल में भारतीय शिक्षा केन्द्र कैसे थे?
उत्तर :
प्राचीनकाल में भारतीय शिक्षाकेन्द्र एक प्रकार के आश्रम अथवा मंदिर जैसे थे।
प्रश्न 2.
जब रवीन्द्रनाथ ठाकुर को नोबल पुरस्कार मिला तब बंगाली लोग कौन-सा राग आलापने लगे?
उत्तर :
जब रवीन्द्रनाथ ठाकुर को नोबल पुरस्कार मिला, तब है बंगाली लोग ‘अमादेर ठाकुर, अमादेर कठोर सपूत’ राग अलापने लगे।
प्रश्न 3.
भगवान रामकृष्ण बरसों तक योग्य शिक्षा पाने के लिए क्या करते थे?
उत्तर :
भगवान रामकृष्ण परमहंस योग्य शिष्य पाने के लिए बरसों तक रो-रोकर भगवान से प्रार्थना करते थे।
प्रश्न 4.
भगवान ईसा का कौन-सा कथन सदा स्मरणीय है?
उत्तर :
भगवान ईसा का यह कथन सदा स्मरणीय है- मेरे अनुयायी मुझसे कहीं अधिक महान हैं और उनकी जूतियां धोने लायक योग्यता भी मुझमें नहीं है।
प्रश्न 5.
गांधीजी किन्हें. अच्छे लगते है?
उत्तर :
गांधीजी उन्हें अच्छे लगते हैं, जिनमें गांधीजी बनने की क्षमता है और जो उनका अनुसरण करना चाहते हैं।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के विस्तार से उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
युरोप के प्रभाव के कारण आज गुरु-शिष्य संबंधो में क्या अंतर आया है?
उत्तर :
प्राचीन भारत में विद्यालय मंदिर के समान माने जाते थे। शिक्षा देना एक आध्यात्मिक कार्य था। पैसे देकर शिक्षा खरीदी नहीं जाती थी। शिष्य पुत्र से अधिक प्रिय होते थे। परंतु वर्तमान भारत में शिक्षा व्यावसायिक हो गई है। गुरु वेतनभोगी हो गए हैं। विद्यार्थी शुल्क देकर शिक्षा प्राप्त करते हैं। आज का शिष्य गुरु में परमेश्वर का रूप नहीं देखता। इस प्रकार यूरोप के प्रभाव के कारण आज गुरु-शिष्य संबंधों में जमीन-आसमान का अंतर आ गया है।
प्रश्न 2.
पुजारी की शक्ति मूर्ति में कैसे विकसित होने लगी?
उत्तर :
पत्थर की मूर्ति तो जड़ होती है। उसमें चेतना डालने का काम पुजारी करता है। मूर्ति की पूजा करने का अर्थ ही उसे चेतनवंत बनाना है। पूजा करते समय पुजारी की भावना में जितनी उत्कटता होगी, मूर्ति उतनी ही प्रभावशाली होगी। पुजारी की भावपूजा की शक्ति से हो धीरे-धीरे मूर्ति में शक्ति विकसित होने लगती है।
प्रश्न 3.
विवेकानंद और रवीन्द्रनाथ ठाकुर को इस देश में अधिक महत्त्व कब मिला?
उत्तर :
विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। आरंभ में उन्हें भारत में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हुआ था। वे जब अमेरिका गए और उन्होंने वहाँ नाम कमाया, तब भारतवासियों ने उन्हें सम्मान देना शुरू किया। इसी प्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर को यहां कोई नहीं जानता था। उन्हें जब नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया तब बंगालवासियों ने उनकी प्रतिभा पहचानी। वे बंगाल के नहीं, सारे देश के लिए गौरव बन गए। इस प्रकार विदेशों में सम्मानित होने पर ही विवेकानंद और रवीन्द्रनाथ ठाकुर को इस देश में महत्व मिला।
3. आशय स्पष्ट कीजिए :
प्रश्न 1.
सम्मान पानेवालों से सम्मान देनेवाले
उत्तर :
सम्मान पानेवाले अपने किसी विशेष गुण के कारण सम्मानित होते हैं। जैसे हीरे के गुण की पहचान की जाए तो ही वह बहुमूल्य है। यदि पहचाना न जाए तो वह भी एक पत्थर ही है। उसी तरह सम्मान पानेवालों की विशेषता को परख लिया जाए, पहचान लिया जाए तो ही वे सम्माननीय हैं, नहीं तो वे साधारण मनुष्य ही समझे जाएंगे। उनकी विशेषता को समझकर उन्हें प्रकाश में लानेवाले लोग ही उनका सम्मान करते हैं। इसलिए सम्मान पानेवाले से भी सम्मान देनेवाले अधिक महान होते हैं।
प्रश्न 2.
“जो गुरु से मार खाते हैं उनका भविष्य उज्जवल होगा ही।”
उत्तर :
पढ़ाई के लिए विद्यार्थी का ध्यान पढ़ाई में होना जरूरी है। गुरु पढ़ा रहा है और विद्यार्थी का ध्यान कहीं और है तो वह जो पढ़ाया जा रहा है उसे ग्रहण नहीं कर सकता। गुरु के मार से विद्यार्थी का ध्यान पढ़ाई में लग जाता है। इस तरह जब वह एकान होकर पढ़ता है तो उसे सचमुच ज्ञानप्राप्ति होती है, उसकी बुद्धि का विकास होता है और उसमें योग्यता आती है। ऐसा होने पर ही उसका भविष्य उज्ज्वल होने में संदेह नहीं रहता।
4. सूचना के अनुसार काल परिवर्तन कीजिए :
प्रश्न 1.
इसमें ओर मुजमें फरक ही कुछ नहीं है। (भविष्यकाल)
उत्तर :
इसमें और मुझमें फरक ही कुछ नहीं होगा।
प्रश्न 2.
हम अपने शिष्यों से कम प्रमुख रहें। (पूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
हम अपने शिष्यों से कम प्रमुख रहे थे।
प्रश्न 3.
उपनिषदों में आचार्यों ने कहाँ है। (सामान्य भूतकाल)
उत्तर :
उपनिषदों में आचार्यों ने कहा।
5. मुहावरों का अर्थ देकर वाक्यप्रयोग कीजिए :
प्रश्न 1.
1. ताकते रहना
2. पसीने की कमाई
3. रंग जाना
उत्तर :
1. ताकते रहना – आश्चर्य से देखते रहना
वाक्य : मेरे हाथ में ट्रॉफी देखकर पिताजी मुझे ताकते रह गए।
2. पसीने की कमाई – कठिन परिश्रम का फल
वाक्य : इंजीनियरिंग की यह डिग्री मेरे पसीने की कमाई है।
3. रंग जाना – गहरा प्रभाव पड़ना
वाक्य : विदेश में रहकर वे वहीं के रंग में रंग गए।
6. विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
प्रश्न 1.
- रोगी × ……….
- असहाय × ……….
- वृद्ध × ……….
उत्तर :
- निरोगी
- सहाय
- युवा
GSEB Solutions Class 9 Hindi भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध Important Questions and Answers
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर यांच-छ: वाक्यों में लिखिए :
प्रश्न 1.
मामा पहलवान ने भारत की गुरु-शिष्य परंपरा के बारे में क्या कहा?
उत्तर :
एक पारसी पत्रकार ने गामा पहलवान से पूछा था कि विश्व के पहलवानों को ललकार ने के पहले आप अपने अमुक शिष्य को कुश्ती में जीतकर क्यों नहीं दिखाते? उत्तर में गामा ने कहा कि आप जिसकी बात कर रहे हैं, वह मेरा शिष्य मुझे मेरे बेटे से भी अधिक प्यारा है। हम लोगों में वंशपरंपरा से अधिक शिष्यपरंपरा का महत्त्व है। हम चाहते हैं कि हम अपने शिष्यों से कम रहे। वे संसार में मुझसे अधिक नाम कमाएं। इस प्रकार गामा पहलवान ने पत्रकार को भारत की गुरु-शिष्य परंपरा के बारे में बताकर उसका मुंह बंद कर दिया।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए :
प्रश्न 1.
गामा पहलवान अपने शिष्य से लड़ने के लिए क्यों तैयार नहीं थे?
उत्तर :
गामा पहलवान भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा को मानते थे। इसके अनुसार गुरु-शिष्य को अपने से अधिक यशस्वी देखना चाहता है। इसलिए वे अपने नामी शिष्य से लड़ने के लिए तैयार नहीं थे।
प्रश्न 2.
किस तरह के लोगों को गुरु-शिष्य परंपरा की महिमा समझाना व्यर्थ है?
उत्तर :
भारतवासियों को अपने यहाँ की चीजों में खूबसूरती दिखाई नहीं देती पर पराए देशों की सुंदरता पर वे मुग्ध हो जाते हैं। जिस देश में ज्ञान पाने के लिए मैक्समूलर ने जीवनभर प्रार्थना की, उस देश के लोग जर्मनी और विलायत जाने में स्वर्ग जैसा सुख अनुभव करते हैं। लेखक कहते हैं कि ऐसे लोगों को भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा की महिमा समझाना व्यर्थ है।
प्रश्न 3.
भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा जाति-धर्म से ऊपर किस प्रकार रही है?
उत्तर :
भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा में संकुचित दृष्टिकोण कभी नहीं रहा। यही कारण है कि हमारे देश में कितने ही मुसलमान पहलवानों के हिन्दू शिष्य हैं और हिन्दू पहलवानों के मुसलमान शिष्य हैं। यहाँ व्यक्ति के गुण, साधना और प्रतिभा को परखा जाता है, उसके जाति-संप्रदाय, आचार-विचार और धर्म को नहीं। पुराने जमाने में मौलवी लोग बड़ेबड़े रामायणी होते थे। आज भी भरत मियां, रंजीत मियाँ आदि हिंद मुसलमान गुरुओं के शिष्य हैं। इस प्रकार भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा जाति-धर्म के ऊपर रही है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए :
प्रश्न 1.
प्राचीनकाल में गुरु की शिक्षादान-क्रिया क्या थी?
उत्तर :
प्राचीनकाल में गुरु की शिक्षादान-क्रिया उनका आध्यात्मिक अनुष्ठान और परमेश्वरप्राप्ति का एक माध्यम था।
प्रश्न 2.
प्राचीन समय में गुरु को क्या समझा जाता था?
उत्तर :
प्राचीन समय में गुरु को साक्षात परमेश्वर समझा जाता था।
प्रश्न 3.
आज हमारे समाज में कैसी संस्कृति का बोलबाला है?
उत्तर :
आज हमारे समाज में व्यावसायिक संस्कृति का बोलबाला है।
प्रश्न 4.
व्यावसायिक संस्कृति की जड़ कहाँ है?
उत्तर :
व्यावसायिक संस्कृति की जड़ यूरोप में हैं।
प्रश्न 5.
शिक्षण-कार्य आज किसका साधन बन गया है?
उत्तर :
शिक्षण-कार्य आज पेट पालने का साधन बन गया है।
प्रश्न 6.
भारतवासी मालाएँ लेकर किसका स्वागत करने दौडे?
उत्तर :
भारतवासी मालाएं लेकर स्वामी विवेकानंद का स्वागत : करने दौड़े क्योंकि उन्होंने अमेरिका में अपना नाम कमाया था।
प्रश्न 7.
भारत के लोगों को अपनी मूल्यवान चीजों का मूल्य : कब समझ में आता है?
उत्तर :
भारत के लोगों को अपनी मूल्यवान चीजों का मूल्य तब – समझ में आता है, जब विदेशों में उनकी कदर की जाती है।
प्रश्न 8.
स्वामी विवेकानंद किन्हें अच्छे लगते हैं?
उत्तर :
स्वामी विवेकानंद उन्हें अच्छे लगते हैं, जिनमें विवेकानंद बनने की अद्भुत शक्ति निहित है।
प्रश्न 9.
प्रारंभ में किसे महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हुआ था?
उत्तर :
प्रारंभ में स्वामी विवेकानंद को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हुआ था।
प्रश्न 10.
भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा का भव्य रूप आज भी कहाँ दिखाई देता है?
उत्तर :
भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा का भव्य रूप आज भी साधुओं, पहलवानों और संगीतकारों में दिखाई देता है।
सही विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
प्रश्न 1.
- विदेश जाना भारतीय लोगों को …… जैसा लगता है। (स्वर्ग, नर्क)
- रवीन्द्रनाथ ठाकुर को ……….. पुरस्कार मिला था। (ज्ञानपीठ, नोबल)
- एक बार सुप्रसिद्ध भारतीय ………. गामा मुंबई गए। (संगीतकार, पहलवान)
- रामकृष्ण परमहंस वर्षों तक योग्य ………. खोजते रहे। (गुरु, शिष्य)
- अब शिक्षण-कार्य …….. पालने का साधन बन गया है। (पेट, परिवार)
उत्तर :
- स्वर्ग
- नोबल
- पहलवान
- शिष्य
- पेट
निम्नलिखित विधान ‘सही’ है या ‘गलत’ यह बताइए :
प्रश्न 1.
- आज शिष्यों को शुल्क देकर विद्या प्राप्त करनी पड़ती है।
- विदेशों में कदर होने के बाद भारत में लोग व्यक्ति को सम्मान देते हैं।
- संगीतकार की अपेक्षा श्रोता अधिक मूल्यवान है।
- सेवा लेने और देने की वस्तु है।
- हमारे देश में ज्ञान पाने के लिए मैक्समूलर ने जीवनभर प्रार्थना की।
उत्तर :
- सही
- सही
- सही
- गलत
- सही
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक शब्द में लिखिए :
प्रश्न 1.
- प्राचीन समय में भारत में विद्यालय किसके समान थे?
- शिक्षक आज कैसे बन गए हैं?
- विदेश जाना भारतीय लोगों को कैसा लगता है?
- रामकृष्ण परमहंस के बहुत प्रार्थना करने के बाद कौन-सा शिष्य मिला?
उत्तर :
- आश्रम अथवा मंदिर के समान
- वेतनभोगी
- स्वर्ग जैसा
- स्वामी विवेकानंद
सही वाक्यांश चुनकर निम्नलिखित विधान पूर्ण कीजिए :
प्रश्न 1.
गुरु-शिष्य संबंधों में परिवर्तन आ गया है, क्योंकि …
(अ) अब पहले की तरह गुरुकुल नहीं रह गए हैं।
(ब) वर्तमान शिक्षा में अनुशासन का महत्त्व नहीं रहा है।
(क) आज हमारी संस्कृति व्यावसायिक हो गई है।
उत्तर :
गुरु-शिष्य संबंधों में परिवर्तन आ गया है, क्योंकि आज हमारी संस्कृति व्यावसायिक हो गई है।
प्रश्न 2.
गुरु को संतान न होने पर उतना दु:ख नहीं होता था, जितना …..
(अ) सम्मान न पाने पर होता था।
(ब) उत्तम शिष्य न पाने पर होता था।
(क) अच्छा शिक्षण संस्थान न पाने पर होता था।
उत्तर :
गुरु को संतान न होने पर उतना दुःख नहीं होता था, जितना उत्तम शिष्य न पाने पर होता था।
प्रश्न 3.
उपनिषदों में आचार्यों ने कहा है कि ….
(अ) सेवा देने की वस्तु है, लेने की नहीं।
(ब) मूर्ति की पूजा ही सच्ची पूजा है।
(क) बिना दंड के शिक्षा नहीं दी जा सकती।
उत्तर :
उपनिषदों में आचार्यों ने कहा है कि सेवा देने की वस्तु है, लेने की नहीं।
निम्नलिखित प्रश्नों के साथ दिए गए विकल्पों से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
रवीन्द्रनाथ ठाकुर को कौन-सा पुरस्कार मिला था?
A. भारतरत्न
B. नोबल
C. भारतीय अकादमी
D. ज्ञानपीठ
उत्तर :
B. नोबल
प्रश्न 2.
गामा कौन था?
A. पहलवान
B. उद्योगपति
C. खिलाड़ी
D. संगीतकार
उत्तर :
A. पहलवान
प्रश्न 3.
भगवान रामकृष्ण वर्षों तक ………… खोजते रहे।
A. सुन्दर आश्रम
B. मनपसंद मंदिर
C. सच्चा मित्र
D. योग्य शिष्य
उत्तर :
D. योग्य शिष्य
प्रश्न 4.
उत्तम गुरु में कौन-सी भावना नहीं रहती?
A. स्वार्थ भावना
B. प्रतिशोध भावना
C. जाति भावना
D. बैर भावना
उत्तर :
C. जाति भावना
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए :
प्रश्न 1.
- उत्तम
- बोलबाला
- साक्षात्
- शुल्क
- निजी
- चेला
उत्तर :
- श्रेष्ठ
- प्रचलन
- प्रत्यक्ष
- फीस
- अपना
- शिष्य
निम्नलिखित शब्दों के विरोधी शब्द लिखिए :
प्रश्न 1.
- प्रारंभ
- गुरु
- रसिक
उत्तर :
- अंत
- शिष्य
- निरस
निम्नलिखित प्रत्येक वाक्य में से भाववाचक संज्ञा पहचानकर लिखिए :
प्रश्न 1.
- पराया सौंदर्य देखकर लोग मोहित हो जाते हैं।
- आप अपने अमुक शिष्य से ही लड़कर विजय प्राप्त करके दिखाओ।
- उनके जैसे व्यक्ति को भी उत्तम शिष्य के लिए रो-रोकर प्रार्थना करनी पड़ी थी।
- उत्तम गुरु में जाति भावना भी नहीं रहती।
- सहृदयता रखनेवाले ज्ञानी और तपस्वी पुरोहित आजकल के गुरु नहीं रह गए।
उत्तर :
- सौंदर्य
- विजय
- प्रार्थना
- जाति भावना
- सहदयता
निम्नलिखित प्रत्येक वाक्य में से विशेषण पहचानकर लिखिए।
प्रश्न 1.
- हमारे समाज में व्यावसायिक संस्कृति का बोलबाला है।
- प्राचीन काल में गुरु की शिक्षादान-क्रिया उनका आध्यात्मिक अनुष्ठान थी।
- एक बार सुप्रसिद्ध भारतीय पहलवान गामा मुंबई आए।
- हमारा अपना एक निजी रहन-सहन है, इससे आप परिचित नहीं है।
- गुरु के लिए अपना शिष्य कितना महंगा और महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर :
- व्यावसायिक
- प्राचीन, आध्यात्मिक
- सुप्रसिद्ध
- निजी, परिचित
- महंगा, महत्त्वपूर्ण
निम्नलिखित शब्दसमूह के लिए एक शब्द लिखिए :
प्रश्न 1.
- गुरु के पदचिह्नों पर चलनेवाला
- अच्छी तरह से प्रसिद्ध हुआ हो।
- संगीत को जाननेवाला
- जमौन और आसमान की मिलनेवाली आभासी रेखा
- वेतन पर गुजारा करनेवाला
- याद रखने लायक
- रस का आस्वाद करना
- राम की कथा कहनेवाला
उत्तर :
- अनुयायी
- सुप्रसिद्ध
- संगीतज्ञ
- क्षितिज
- वेतनभोगी
- स्मरणीय
- रसास्वादन
- रामाणी
निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ देकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
गधे को गणित सिखाना – अयोग्य को ज्ञान देना, व्यर्थ प्रयास करना
वाक्य : मूर्ख को पढ़ाना गधे को गणित सिखाने जैसा है।
हैरान कर देना – चकित कर देना
वाक्य : जिसे मैं साधु समझता था, उसने शैतान बनकर मुझे हैरान कर दिया।
नाम कमाना – यश पाना, प्रसिद्धि पाना
वाक्य : मुझे विश्वास है कि यह लड़का एक दिन दुनिया में नाम कमाएगा।
निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग पहचानकर लिखिए :
प्रश्न 1.
- उज्ज्वल
- परमेश्वर
- प्रार्थना
- संगीत
- असहाय
- तदनुरूप
- साक्षात्
- निहित
- विश्वास
- प्रसिद्ध
- अपव्यय
- खूबसूरत
- संकोच
- प्रतिभा
- पुनर्विवाह
- परिश्रम
- अनुसरण
- परिवर्तन
- प्रतिशोध
- स्वार्थ
- निरोगी
- आजीवन
- अपकार
- अवज्ञा
- सपूत
- विपक्ष
- संयोग
उत्तर :
- उपवल – उत् + ज्वल
- परमेश्वर – परम् + ईश्वर
- प्रार्थना – प्र + अर्थना
- संगीत – सम् + गीत
- असहाय – अ + सहाय
- तदनुरूप – तद् + अनु + रूप
- साक्षात् – स + अक्षात्
- निहित – नि + हित
- विश्वास – वि + श्वास
- प्रसिद्ध – प्र + सिद्ध
- अपव्यय – अप + व्यय
- खूबसूरत – खूब + सूरत
- संकोच – सम् + कोच
- प्रतिभा – प्रति + भा
- पुनर्विवाह – पुनः + विवाह
- परिश्रम – परि + श्रम
- अनुसरण – अनु + सरण
- परिवर्तन – परि + वर्तन
- प्रतिशोध – प्रति + शोध
- स्वार्थ – स्व + अर्थ
- निरोगी – निः + रोगी
- आजीवन – आ + जीवन
- अपकार – अप + कार
- अवज्ञा – अव + ज्ञा
- सपूत – स + पूत
- विपक्ष – वि + पक्ष
- संयोग – सम् + योग
निम्नलिखित शब्दों के प्रत्यय पहचानकर लिखिए :
प्रश्न 1.
- विद्यालय
- आध्यात्मिक
- खरीदी
- वेतनभोगी
- मूल्यवान
- पत्रकार
- हिन्दुस्तानी
- संगीतकार
- अधिक
- आवश्यक
- नीजी
- प्रसिद्धि
- सम्मानित
- खूबसूरती
- सुंदरता
- भारतीय
- संकुचित
- व्यावसायिक
- उत्कटता
- स्मरणीय
- रसिक
- चचेरा
- भिन्नता
- जाटनी
- संदूकड़ी
- देवरानी
- सजावट
- पुजारिन
- चाची
- लड़ाई
- दयालु
उत्तर :
- विद्यालय – विद्या + आलय
- आध्यात्मिक – आध्यात्म + इक
- खरीदी – खरीद(ना) + ई
- वेतनभोगी – वेतन + भोग + ई
- मूल्यवान – मूल्य + बान
- पत्रकार – पत्र + कार
- हिन्दुस्तानी – हिन्दुस्तान + ई
- संगीतकार – संगीत + कार
- अधिक – अध + इक
- आवश्यक – अवस्य + क
- निजी – निज + ई
- प्रसिद्धि – प्रसिद्ध + ई
- सम्मानित – सम्मान + इत
- खूबसूरती – खूबसूरत + ई
- सुंदरता – सुंदर + ता
- भारतीय – भारत + इय
- संकुचित – संकोच + इत
- व्यावसायिक – व्यवसाय + इक
- उत्कटता – उत्कट + ता
- स्मरणीय – स्मरण + ईय
- रसिक – रस + इक
- चचेरा – चाचा + एरा
- भिन्नता – भिन्न + ता
- जाटनी – जाट + नी
- संदूकड़ी – संदूक + डी
- देवरानी – देवर + आनी
- सजावट – सजा(ना) + वट
- पुजारिन – पुजा(री) + इन
- चाची – चाचा + ई
- लड़ाई – लड़ना + ई
- दयालु – दया + लु
भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध Summary in Gujarati
ગુજરાતી ભાવાર્થ :
પહેલાં વિદ્યાલય મંદિર સમાન હતાં પ્રાચીન ભારતમાં વિદ્યાલયને મંદિર સમાન માનવામાં આવતાં હતાં. શિક્ષણ આપવું એક આધ્યાત્મિક અનુષ્ઠાન સમાન હતું. વિદ્યા પૈસા આપીને ખરીદી શકાતી નહોતી અને પૈસા લઈને તે વેચી શકાતી નહોતી. શિક્ષણ આપવું એ પરમેશ્વરને પ્રાપ્ત કરવાનું એક માધ્યમ હતું. શિષ્ય પુત્ર કરતાં વધારે પ્રિય હતા.
આજની સ્થિતિ : આજે યુરોપના પ્રભાવથી શિક્ષણક્ષેત્રમાં વ્યાવસાયિક સંસ્કૃતિ આવી ગઈ છે. શિક્ષક વેતનભોગી થઈ ગયા છે અને શિષ્યોએ ફી આપીને વિદ્યા પ્રાપ્ત કરવી પડે છે. આજે શિક્ષણકાર્ય પેટ ભરવાનું સાધન બની ગયું છે.
ભારતીયોનો સ્વભાવ : ભારતના લોકોને પોતાની મૂલ્યવાન ચીજોનું મૂલ્ય ત્યારે સમજાય છે, જ્યારે વિદેશોમાં તેમની કદર થાય છે. ભારતમાં વિવેકાનંદનું સ્વાગત ત્યારે થયું જ્યારે અમેરિકામાં તેઓ નામ કમાયા. નોબલ પુરસ્કાર મળ્યા પછી બંગાળી લોકો રવીન્દ્રનાથ ઠાકુરનું સન્માન કરવા લાગ્યા. ભરતનાટ્યમ અને કથકલી જેવાં નૃત્યો વિદેશોમાં લોકપ્રિય થયાં પછી જ ભારતમાં પણ લોકપ્રિય થયાં. આજે ભારતમાં અમેરિકા, ઇંગ્લેન્ડ અથવા જર્મની જવું સ્વર્ગ જેવું લાગે છે તેમને એ ખબર નથી કે જર્મનીના વિદ્વાન મેક્સમૂલર ભારત આવવા માટે જીવનભર પ્રાર્થના કરતા રહ્યા.
પત્રકારને ગામા પહેલવાનનો ઉત્તરઃ સુપ્રસિદ્ધ પહેલવાન ગામાએ મુંબઈ આવીને દુનિયાના બધા પહેલવાનોને પોતાની સાથે કુસ્તીમાં જીતવાનો પડકાર કર્યો. એક પત્રકારે ગામાને કહ્યું, “દુનિયાના પહેલવાનોને પડકાર આપતાં પહેલાં તમે તમારા અમુક શિષ્ય સાથે મુકાબલો કરીને જીતી બતાવો.” ગામાએ એ પત્રકારને ઉત્તર આપ્યો, તમે જેની વાત કરી રહ્યા છો એ મારો પ્રિય શિષ્ય છે. તે મને મારા પુત્ર કરતાં પણ પ્રિય છે. તેના અને મારામાં કશો ફરક નથી. હું લડું કે તે લડે બંને બરાબર જ થઈશું. હું ઇચ્છું છું કે તે મારા કરતાં વધારે નામ કમાય. મને લાગે છે કે આપ હિંદુસ્તાની નથી.”
ઉત્તમ શિષ્ય મળવો બહુ મુશ્કેલ છે. આપણા દેશમાં જો ગુરુશિષ્ય પરંપરા જીવિત હોય, તો તે પહેલવાનો અને સંગીતકારોમાં નજરે પડે છે. ભગવાન રામકૃષ્ણ પરમહંસને બહુ પ્રાર્થના પછી વિવેકાનંદ મળ્યા હતા. ઈસુ ખ્રિસ્ત પોતાના અનુયાયીઓને પોતાના કરતાં વધારે મહત્ત્વ આપ્યું હતું. સંગીતકારો કરતાં તેમના શ્રોતાઓ વધુ શ્રેષ્ઠ હોય છે. આપણે ત્યાં પૂજ્ય કરતાં પૂજારીને વધારે મહત્ત્વ અપાય છે.
ગુરુ-શિષ્યમાં જાતિ-ધર્મને સ્થાન હોતું નથી: ગુરુ-શિષ્ય પરંપરામાં જાતિ-ધર્મ નહિ, પરંતુ ગુણને મહત્ત્વ અપાય છે. એટલે અનેક હિંદુઓ મુસલમાન ગુરુના શિષ્ય હતા અને અનેક મુસલમાનો હિંદુ ગુરુઓના શિષ્યો હતા.
સેવા લેવાની નહિ, આપવાની વસ્તુ છેઃ ઘણાખરા ગુરુઓ સેવા લેવામાં જ પોતાની ચતુરાઈ સમજે છે. હકીકતમાં સેવા લેવાની નહિ, આપવાની વસ્તુ છે. બાળકો, રોગી, અસહાય અને વૃદ્ધ સેવા લેવાના અધિકારી છે. આ સર્વની સેવાને ઈશ્વરની સેવા માનવી જોઈએ. આજે જ્ઞાની અને તપસ્વી ગુરુઓ રહ્યા નથી, કારણ કે તેઓ શિષ્યને તૈયાર કરવામાં જરૂરી શ્રમ કરતા નથી. પૂજારી જે પ્રેમ અને ભાવથી મૂર્તિની પૂજા કરે છે, મૂર્તિમાં એટલી જ શક્તિ આવે છે. ગુરુ અને શિષ્યની બાબતમાં પણ આ જ સિદ્ધાંત કામ કરે છે.
भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध Summary in English
Schools were like temples : In ancient India schools were believed like temples. Giving education was like preparation of spirituality. Learning was not bought or sold by money. Giving education was the medium of gaining God. The desciple was dearer than the son.
Today’s position : Today commercial culture has come in the education field because of Europe influence. Teachers have become money-minded and the students have to gain education by paying fees. Today education is nothing but a source of collecting money.
Indian’s nature: Indians realise the value of their things when they are appreciated in abroad. Vivekanand was welcomed in India only when he earned his name in America. People in Bengal began to honour Rabindranath Thakur only when he was awarded Nobel prize.
Dances like Bharatnatyam and Kathkali became popular in India, after they had become popular in abroad. Today in India people like to go to America, England or Germany as heaven but they don’t know that the learned Mexmular of Germany used to pray his whole life to come to India.
Reply of the wrestler Gama to a reporter: The well-known wrestler Gama once came to Mumbai and challenged all the wrestlers of the world to win against him. A reporter asked Gama. “Before challenging the wrestlers of the world please win against your some disciples.”
Gama replied to that reporter, “The disciple for whom you are talking is my favourite disciple. He is dearer than my son to me. There is no difference between 1 and he. Either I or he may fight. Both are equal. I wish he may earn his name more than I. I feel you are not Indian.”
It is difficult to get the best disciple: If the tradition is alive between Guru-Shishya, it is seen only in wresters and musicians. Lord Ramkrishna got Vivekanand after many prayers. Lord christ gave more importance to his followers than himself.
Listeners are greater than musicians. Here worshiper is given more importance than worshipping There is no place of caste religion between the relation of Guru-Shishya : In the tradition of Guru-Shishya more importance is given to virtue. not to caste and religion. So many Hindus were the disciples of Muslim Gurus and many Muslims were the disciples of Hindu Gurus.
Selfless-service is a thing of giving. not of taking : Many Gurus believe them clever to take service. In fact service is a thing of giving, not of taking. The children, the sick persons, the helpless persons and the old persons have right to take service. We should believe that the service to these persons is the service to God.
There are no learned and penance Gurus today, because they do not do necessary work to prepare disciples. The idols have as much power as the worshiper worships the idols with love. This is the same principle in the relation of Guru and Shishya.
भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध Summary in Hindi
विषय-प्रवेश :
प्राचीन भारत में गुरु-शिष्य संबंध की एक उज्वल परंपरा थी। तब गुरु का आश्रम विद्यामंदिर के समान होता था। वहाँ पैसे का कोई स्थान नहीं था। आज पश्चिम के प्रभाव से गुरु-शिष्य संबंध बदल गए हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध के बारे में बताया है।
पाठ का सार :
पहले विद्यालय मंदिर के समान : प्राचीन भारत में विद्यालय मंदिर के समान माने जाते थे। शिक्षा देना एक आध्यात्मिक अनुष्ठान था। विद्या पैसे देकर खरीदी और पैसे लेकर बेची नहीं जाती थी, शिक्षा देना परमेश्वर को पाने का एक माध्यम था। शिष्य पुत्र से अधिक प्रिय होते थे।
आज की स्थिति : आज यूरोप के प्रभाव से शिक्षा-क्षेत्र में व्यावसायिक संस्कृति आ गई है। शिक्षक वेतनभोगी हो गए हैं और शिष्यों को शुल्क देकर विद्या प्राप्त करनी पड़ती है। आज शिक्षण-कार्य पेट पालने का साधन बन गया है।
भारतीयों का स्वभाव : भारत के लोगों को अपने यहां की मूल्यवान चीजों का मूल्य तभी समझ में आता है जब विदेशों में उनकी कदर की जाती है। भारत में विवेकानंद का स्वागत तभी हुआ जब अमेरिका में उन्होंने नाम कमा लिया। नोबल पुरस्कार मिलने पर ही बंगाली लोग रवीन्द्रनाथ ठाकुर का सम्मान करने लगे। भरतनाट्यम् और कथकली जैसे नृत्य विदेशों में लोकप्रिय होने के बाद ही यहाँ लोकप्रिय हुए। आज भारत में अमेरिका, इंग्लैंड या जर्मनी जाना स्वर्ग जाने जैसा लगता है। वे यह नहीं जानते कि जर्मनी का विद्वान मैक्समूलर भारत में आने के लिए जीवनभर प्रार्थना करता रहा।
पत्रकार को गामा पहलवान का उत्तर : सुप्रसिद्ध पहलवान गामा ने मुंबई आकर दुनिया के सारे पहलवानों को उनसे कुश्ती में जीतने के लिए ललकारा। एक पत्रकार ने गामा से कहा- दुनिया के पहलवानों को ललकार ने से पहले आप अपने अमुक शिष्य से लड़कर तो जीतकर दिखाइए। गामा ने उस पत्रकार को उत्तर दिया – आप जिसकी बात
कर रहे हैं, वह मेरा शिष्य है, मुझे वह मेरे बेटे से भी प्रिय है। उसमें और मुझमें कोई फर्क नहीं है। मैं लड़ा या वह लड़ा, दोनों बराबर ही होगा। मैं चाहता हूँ कि वह मुझसे ज्यादा नाम कमाए। मुझे लगता है, आप हिंदुस्तानी नहीं हैं।
उत्तम शिष्य मिलना बहुत मुश्किल : हमारे देश में गुरु-शिष्य परंपरा यदि कहीं जीवित है तो वह पहलवानों और संगीतकारों में है। भगवान रामकृष्ण परमहंस को बहुत प्रार्थना के बाद विवेकानंद मिले थे। ईसामसीह ने अपने अनुयायिओं को अपने से अधिक महत्व दिया था। संगीतकार की अपेक्षा उसके श्रोता अधिक श्रेष्ठ होते हैं। हमारे यहाँ पूज्य की अपेक्षा पुजारी को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
गुरु-शिष्य में जाति-धर्म का स्थान नहीं : गुरु-शिष्य परंपरा में जाति-धर्म नहीं, गुण को प्रमुखता दी जाती है। इसलिए कई हिंदू मुसलमान गुरुओं के शिष्य रहे और कई मुसलमान हिंदू गुरुओं के शिष्य रहे।
सेवा लेने नहीं, देने की वस्तु : अधिकतर गुरु सेवा लेने में ही अपनी चतुराई समझते हैं। सच यह है कि सेवा लेने की नहीं, देने की वस्तु है। बच्चे, रोगी, असहाय और वृद्ध लोग सेवा लेने के अधिकारी हैं। इनकी सेवा को ईश्वर की सेवा माननी चाहिए। आज के ज्ञानी और तपस्वी गुरु नहीं रह गए हैं, क्योंकि वे शिष्य को तैयार करने में आवश्यक श्रम नहीं उठाते। पुजारी जितने प्रेम और भाव से मूर्ति की पूजा करता है, मूर्ति में उतनी ही शक्ति आती है। गुरु और शिष्य के बारे में भी यही सिद्धांत काम करता है।
भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध शब्दार्थ :
- बोलबाला – प्रचलन।
- तदनुरूप – उसके अनुसार।
- वेतनभोगी – वेतन पर गुजारा करनेवाला।
- शुल्क – फीस, फी।
- साक्षात् – प्रत्यक्ष।
- निजी – अपना।
- स्मरणीय – याद रखने लायक।
- निहित – समाई हुई।
- रसास्वादन – रस (संगीत आदि) का आनंद लेना।
- चेला – शिष्य।
- रामाणी – राम की कथा कहनेवाले।