GSEB Class 10 Hindi Vyakaran अर्थ की दृष्टि से शब्द के प्रकार (1st Language)

Gujarat Board GSEB Solutions Class 10 Hindi Vyakaran अर्थ की दृष्टि से शब्द के प्रकार (1st Language) Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Std 10 Hindi Vyakaran अर्थ की दृष्टि से शब्द के प्रकार (1st Language)

1. एकार्थी शब्द :
जिन शब्दों का एक ही अर्थ हो, उन्हें एकार्थी शब्द कहते हैं।

जैसे –
उत्तम, शस्त्र, पाप, निंदा, मित्र, पुष्प, श्रद्धा, निधन, अपयश, कलंक, ऋषि, तंद्रा, स्वागत, अर्बन, आसक्ति, यातना आदि।

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2. अनेकार्थी शब्द :
जिन शब्दों के एक से अधिक अर्थ होते हैं उन्हें अनेकार्थी शब्द कहा जाता है। जैसे –

  • प्राण – जीवन, श्वास, बल, वायु
  • फल – लाभ, परिणाम, खाद्य-पदार्थ
  • शून्य – आकाश, निर्जन, ब्रह्म, अभावसूचक वर्ण
  • वर्ण – अक्षर, जाति, रंग
  • कर – किरण, टैक्स, हाथ, करने की क्रिया
  • जड़ – मूर्ख, निर्जीव, मूल, अचेतनता
  • मत – नहीं, वोट, विचार

3. समानार्थी शब्द :
एक ही अर्थ को प्रकट करनेवाले एक से अधिक शब्दों को पर्यायवाची शब्द कहा जाता है। परन्तु प्रत्येक शब्द की अपनी अर्थगत विशेषता होती है।

  • सूर्य – भास्कर, दिनकर, प्रभाकर, दिनेश, रवि, भानु
  • कमल – जलज, पंकज, सरोज, नलिन, राजीव
  • अग्नि – आग, पावक, अनल
  • कृष्ण – मोहन, गोपाल, कान्हा, घनश्याम, श्याम, वासुदेव
  • इच्छा – अभिलाषा, लालसा, कामना, मनोरथ
  • ईश्वर – प्रभु, परमेश्वर, ईश, भगवान
  • नदी – सरिता, तटिनी, तरंगिणी, सरित
  • प्रेम – प्यार, स्नेह, अनुराग, राग, प्रणय
  • पक्षी – खग, विहग, नभचर, पंछी
  • पृथ्वी – भूमि, धरा, अवनि, वसुंधरा, धरती, धरणी

4. विपरीतार्थक शब्द :
ऐसे दो शब्द जो अर्थ की दृष्टि से परस्पर विरोधी हों, उन्हें विलोम या विपरीतार्थक शब्द कहा जाता है।

  • शब्द – विलोम
  • अर्थ ✗ अनर्थ
  • विष ✗ अमृत
  • अग्रज ✗ अनुज
  • शोक ✗ हर्ष
  • अंगीकार ✗ बहिष्कार
  • निश्चित ✗ अनिश्चित
  • अनिवार्य ✗ वैकल्पिक (ऐच्छिक)
  • वरदान ✗ अभिशाप
  • आलस्य ✗ स्फूर्ति
  • विधवा ✗ सधवा
  • आधुनिक ✗ प्राचीन
  • अस्त ✗ उदय
  • अवनि ✗ अम्बर
  • तरल ✗ ठोस
  • गुप्त ✗ प्रकट
  • बंजर ✗ उपजाऊ
  • आस्था ✗ अनास्था
  • वियोग ✗ संयोग
  • आयात ✗ निर्यात
  • पुरस्कार ✗ दंड

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5. कुछ शब्दों के समानार्थी या पर्यायवाची शब्द :

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6. शब्द एक अर्थ अनेक :

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7. एक वाक्यांश के लिए एक सार्थक शब्द :

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8. समध्वनि भिन्नार्थक शब्दयुग्म :
1. आँचल (साड़ी/धोती का छोर) – वह स्त्री अपने आँचल से बच्चे को ढंके हुए थी।
अंचल (किसी इलाके का पार्श्व) – भारत के उत्तर-पूर्वी अंचल में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।

2. अंत (समाप्त) – मार्च के अंत में हमारी परीक्षाएँ आरंभ हो रही हैं।
अंत्य (अंतिम) – उसके जीवन का अंत्य समय बड़ी तकलीफ़ों में गुजरा।

3. अंश (हिस्सा) – संपत्ति में अब स्त्रियों को भी अंश दिया जाने लगा है।
अंस (कंधा) – देश के नवयुवकों के मजबूत अंसों पर निर्माण का दायित्व है।

4. अनल (आग) – मई-जून में सूर्य मानो अनल बरसा रहा होता है।
अनिल (हवा) – मलयानिल सुगंधित होती है।

5. अन्य (दूसरा) – इस दुकान की कोई अन्य शाखा नहीं है।
अन्न (अनाज) – भारत अन्न उत्पादन में लगभग आत्मनिर्भर है।

6. अपेक्षा (तुलना में, उम्मीद) – (1) भारत की अपेक्षा लंका बहुत छोटा देश है। (2) हमें मित्रों से सहयोग की अपेक्षा है।
उपेक्षा – हमें सबकी बात सुननी चाहिए, किसी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

7. अविराम (निरंतर) – वह साइकिल सवार अविराम चौबीस घंटे तक साइकिल चलाता रहा।
अभिराम (सुंदर) – वसंतऋतु के अभिराम उत्सव ने सबको आकर्षित किया।

8. अभेद (कोई अंतर न हो) –
अभेद्य (जिसे भेदा न जा सके) – रायगढ़ का किला अभेद्य माना जाता था।

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9. अमूल (बिना जड़ की) – अमेरबल अमूल वनस्पति है।
अमूल्य (बहुत किंमती) – आपका सुझाव अमूल्य है।

10. अर्जन (कमाई) – समर खेती से अपनी जीविका अर्जित करता है।
अर्जुन (एक पांडव) – अर्जुन तीरंदाजी में बेजोड़ थे।

11. अवधि (निश्चित समयखंड) – बैंक ऋण जमा कराने की अवधि पूरी हो गई।
अवधी – अवधी हिंदी की एक बोली है।

(12) अवयव (अंग) — स्वन भाषा के सबसे छोटे अवयव हैं।
अव्यय (अविकारी शब्द) – अव्ययों के रूप में परिवर्तन नहीं होता।

(13) अवरोध (रुकावट) – बढ़ती जनसंख्या देश के विकास में अवरोध पैदा कर रही है।
अविरोध (बिना विरोध के) – इस गाँव के सभापति का चुनाव अविरोध संपन्न हुआ।

(14) अवश – विपिन अवश होगा वर्ना वह अवश्य आया होता।
अवश्य – मेहनत का फल अवश्य मिलता है।

(15) अविलंब (बिना देर किए) – दुर्घटना का समाचार मिलते ही सहायता दल अविलंब वहाँ पहुँच गया।
अवलंब (सहारा) – बुढ़िया भिखारिन का कोई अवलंब नहीं है।

(16) आकर (खजाना) – समुद्र रत्नों का आकर है, इसलिए रत्नाकर कहलाता है।
आकार – फुटबॉल का आकार गोल होता है।

(17) आधि (मानसिक पीड़ा) – अज्ञानता के कारण लोग आधि-व्याधि से पीड़ित हैं।
आदी (आधा) – वह आधी रात तक जगकर पढ़ता है।

(18) आचार (व्यवहार) – आपका आचार ही आपके मान-सम्मान का आधार है।
आचार्य (विद्वान) – हमारे संस्कृत के अध्यापक व्याकरण के आचार्य हैं।

(19) आदि (आरंभ) – उसने आदि से अंत तक पूरी कथा सुनी।
आदी (आदती) – वह डाँट सुनने का आदी हो चुका है।

(20) आभास (भ्रम-सा) – बादलों में कभी-कभी जीव चित्रों का आभास होता है।
अभ्यास (आदत) – उसे मेहनत करने का अभ्यास है।

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(21) आयत (लंब-चौरस) – आयत का लंबाई-चौड़ाई में अंतर होता है।
आयात (बाहर से माल देश में लाना) – भारत विभिन्न देशों से पेट्रोलियम पदार्थों का आयात करता है।

(22) आर्त (दुःखी) – आर्त व्यक्ति भगवान के सम्मुख गिड़गिड़ाता है।
आर्द्र (गीला) – विधवा के नेत्र आई थे।

(23) आसन (बैठक) – मेहमान को उचित आसन देना चाहिए।
आसन्न (निकट का) – परीक्षा एकदम आसन्न है।

(24) इत्र (अतर, सुगंधि) – कभी कन्नौज इत्र-उत्पादन का बड़ा केन्द्र था।
इतर (अन्य) – हमें पढ़ाई के साथ-साथ इतर प्रवृत्तियों में भी भाग लेना चाहिए।

(25) उधार (कर्ज) – बैंक किसानों को सस्ते दर पर उधार दे रही हैं।
उद्धार (मुक्ति) – ग्रामोद्धार की अनेक योजनाएं चल रही हैं।

(26) उपस्थित (हाजिर) – उसने सभा में उपस्थित सभी लोगों को संबोधित किया।
उपस्थिति (हाजिरी) – आपकी उपस्थिति हमें उत्साहित करेगी।

(27) ऋत (सत्य) – वेद में कहा गया है कि ऋत से सृष्टि हुई।
ऋतु (मौसम) – वर्षाऋतु में नदी-नाले सभी पानी से भर जाते हैं।

(28) ओर (तरफ़) – अध्यापक विद्यार्थियों की ओर ध्यान देते हैं।
और (दूसरा) – मेरे पास इस पुस्तक के सिवा और कोई पुस्तक नहीं है।

(29) कंकाल (अस्थि-पिंजर) – बीमारी के बाद उसके शरीर में केवल कंकाल भर बचा है।
कंगाल (दरिद्र) – जुए की लत ने उसे कंगाल कर दिया है।

(30) कटिबद्ध (एकदम तैयार) – भारत अपनी रक्षा के लिए कटिबद्ध है।
कटिबंध (पृथ्वी का भूभाग) – दक्षिण भारत उष्ण कटिबंध में आता है।

(31) करकट (कचरा) – हमें सफाई के बाद कूड़ा-करकट निश्चित जगह पर डालना चाहिए।
कर्कट (केकड़ा) – कर्कट के आठ पैर होते हैं।

(32) कुल (सारा) – पवन को कुल पचास अंकों में से चालीस अंक मिले।
कूल (किनारा) – नदी के कूल के साथ रेतीला तट फैला हुआ है।

(33) कृपण (कंजूस) – वह धनवान है किन्तु बहुत कृपण भी है।
कृपाण (कटार) – सिख कृपाण रखते हैं।

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(34) कोश (शब्द-संग्रह) – मेरे पास हिंदी कोश है।
कोष (खज़ाना) – भारत के राजकोष में विदेशी मुद्रा पर्याप्त है।
कोस (दो मील की दूरी) – हमारे गाँव से सबसे निकट का शहर दो कोस दूर है।

(35) क्षति (हानि) – इस वर्ष अतिवृष्टि ने फसल को बहुत क्षति पहुंचाया।
क्षिति (पृथ्वी) – क्षिति-जल-पावक-गगन-समीरा, पंचरचित यह अधम शरीरा।

(36) खरा (विशुद्ध) – आभूषण का सोना खरा नहीं होता, उसमें ताँबे या चाँदी का मिश्रण होता है।
खर्रा (लंबा चिट्ठा) – उसने मजदूरी के हिसाब का खर्रा तैयार कर दिया है।

(37) खाद (उर्वरक) – खेत में खाद डाली गई।
खाद्य (खाने योग्य) – सभी तेल खाद्य नहीं होते।

(38) खोआ (मावा) – दूध को औंटाकर खौआ बनाते हैं।
खोया (खो दिया) – किसी भी कीमत पर हमें अपना ईमान नहीं खोना चाहिए।

(39) गण (समूह) – विद्यार्थीगण अपने स्थान पर बैठ जाएँ।
गण्य (गिने जाने योग्य) – आज नगर के कई गण्य-मान व्यक्ति यहाँ पधारे हैं।

(40) गूंथना (पिरोना) – रमणिका फूलों का माला गूंथ रही है।
गूंधना (सानना) – विवेका रोटी बनाने के लिए आटा गूंध रही है।

(41) ग्रंथ (पुस्तक) – भगवद्गीता एक ज्ञान-ग्रंथ है।
ग्रंथि (गाँठ) – लार ग्रंथि से लार निकलता है।

(42) गत (बीता हुआ) – गत पचास वर्षों में भारत ने हर क्षेत्र में प्रगति की है।
गति (चाल) – भीड़ के कारण सड़क पर वाहनों की गति धीमी पड़ गई है।

(43) चरम (सबसे अधिक) – इस समय डीजल-पेट्रोल के दाम अपनी चरम सीमा पर हैं।
चर्म (चमड़ा) – कानपुर के आस-पास चर्म-उद्योग विकसित हुआ है।

(44) चित (पीठ के बल) – छोटे पहलवान ने बड़े को चारों खाने चित कर दिया।
चित्त (मन) – विक्टोरिया प्रपात का दृश्य चित्त को आकर्षित करनेवाला है।

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(45) चिता (लकड़ियों का समूह जिन पर शब जलाते हैं) – शब को चिता पर लिटाकर अग्निदाह करते हैं।
चिंता – मेरी पढ़ाई की चिंता मत कीजिए।

(46) छत (पाटन) – इस कमरे की छत से पानी टपकता है।
क्षत (जख्मी) – गोलियाँ लगने से वह क्षत-विक्षत हो गया।

(47) जलद (बादल) – जलद, वारिद, नीरद आदि बादल के समानार्थी हैं।
जल्द (शीघ्रता) – मेरा यह काम जल्द पूरा होनेवाला है।

(48) डीठ (दृष्टि) – उस सुंदर बच्चे को किसी की डीठ (नजर) लग गई है।
ढीठ (घृष्ठ) – यह बहुत ही ढीठ लड़का है, किसी की नहीं सुनता।

(49) तडाक (जल्दी) – प्रश्न पूछने पर माया ने तड़ाक से जवाब दिया।
तड़ाग (तालाब) – पुराने समय में राजा लोग दान में मंदिर, कुएँ, तड़ाग आदि बनवा देते थे।

(50) तरणी (नाव) – नदी में तरणी तैर रही है।
तरुणी (युवती) – तरुणी बोझ सिर पर उठाकर ले जा रही है।

(51) तरंग (लहर) – पानी में पत्थर फेंकने पर तरंगे उठती है।
तुरंग (घोड़ा) – चेतक नाम तुरंग वायुवेग से दौड़ता था।

(52) दश (दस) – दशशीश रावण का एक पर्याय है।
दंश (डंक) – बिच्छू का डंक विषैला होता है।

(53) दिन (दिवस) – आज का दिन अच्छा है।
दीन (गरीब) – सड़क पर बैठा दीन भिखारी भीख माँग रहा है।

(54) धन (दौलत) – धन आवश्यक है, पर एक सीमा तक ही।
धन्य (पुण्यवान) – धन्य हैं हम, जो भारतभूमि पर हमारा जन्म हुआ है।

(55) नगर (शहर) – कानपुर एक औद्योगिक नगर है।
नागर (चतुर) – गोपियों ने श्रीकृष्ण को नागर कहा था।

(56) नियत (तय) – सूर्य नियत समय पर ही उदय-अस्त होता है।
नियति (किस्मत) – नियति का निर्माण पुरुषार्थ से संभव है।

(57) निर्वाण (मोक्ष) – निर्वाण को भारतीय सर्वोच्च पुरुषार्थ मानते हैं।
निर्माण (रचना) – मकान के निर्माण की सामग्री उत्तम होनी चाहिए।

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(58) नीर (पानी) – दुःख में आँखों से अश्रु-नीर निकलता है।
नीड़ (घोंसला) – शाम को चिड़ियाँ अपने नीड़ों को लौट जाती हैं।

(59) पट (परदा, कपड़ा) – अध्यापकजी श्यामपट पर हमारे लिए घरकाम लिखकर लाते हैं।
पट्ट (तख्त) – काले श्यामपट्ट पर चॉक से लिखा जाता है।

(60) पति (घरवाला) – रमा का पति बैंक में नौकरी करता है।
पत्ती (हिस्सा) – सामान्यतया पत्ती का रंग हरा होता है।

(61) पद (ओहदा) – मेरा पड़ोसी सरकारी नौकरी में किसी ऊँचे पद पर काम करता है।
पद्य (कविता) – पद्य याद रखने में आसानी होती है।

(62) परुष (कठोर) – हमें परुष वचन नहीं बोलना चाहिए।
पुरुष (आदमी) – पुरुष अपेक्षाकृत कठोर होते हैं।

(63) पानी (जल) – पानी है तो जिंदगानी है।
पाणि (हाथ) – हमें पाणिबद्ध नमस्कार करना चाहिए।

(64) पवन (हवा) – गतिशील वायु को पवन कहते हैं।
पावन (पवित्र) – गंगाजल पावन माना जाता है।

(65) प्रदीप (दीपक) – दीपावली पर सभी जगहें प्रदीप की रोशनी से जगमगाती है।
प्रतीप (उलटा) – उत्तर का प्रतीप प्रश्न हैं।

(66) परदेश (दूसरा देश) – श्रीलंका हमारे लिए परदेश है।
प्रदेश (क्षेत्र) – गुजरात का चरोतर प्रदेश तम्बाकू के लिए विख्यात है।

(67) प्रणाम (अभिवादन) – शिष्य ने गुरु को प्रणाम किया।
प्रमाण (सबूत) – बिना ठोस प्रमाण के हमें किसी पर आरोप नहीं लगाना चाहिए।

(68) प्रसाद (देवता का भोग) – हमने अम्बाजी मंदिर में प्रसाद चढ़ाया।
प्रासाद (महल) – राजस्थान में अधिकांश राजप्रासाद होटलों में बदल गए हैं।

(69) फण (साँप का सिर) – कोबरा का फण (फन) देखकर डर लगता है।
फन (हुन्नर) – वह सिलाई के फ़न में माहिर है।

(70) बास (महक) – बंद कमरे को खोलते ही उसमें से बास आने लगी।
बाँस (एक वनस्पति) – असम में बास के अनेकविध सामान बनाए जाते हैं।

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(71) बुरा (खराब) – खाँसी से उसका बुरा हाल हैं।
बूरा (कच्ची चीनी) – खाड़ से बूरा चीनी बनाई जाती है।

(72) भवन (महल) – गुजरात का विधानसभा भवन जीवराज मेहता भवन कहलाता है।
भुवन (लोक) – तीनों भुवनों में ईश्वर की सत्ता विद्यमान है।

(73) भट (योद्धा) – रण में भट भागते नहीं भले ही काम आ जाएँ।
भट्ट (पंडित) – बाणभट्ट ने कादंबरी लिखी।

(74) मास (महीना) – साल में बारह मास होते हैं।
मांस (गोश) – विश्व में बहुत से लोग मांस खाते हैं।

(75) मोर (मयूर पक्षी) – भारत का राष्ट्रीय पक्षी मोर हैं।
मौर (मुकुट) – विवाह के समय सिर पर मौर बाँधने की प्रथा है।

(76) मुक्त (बरी) – व्यसन से मुक्त व्यक्ति सुखी रहता है।
भुक्त (भोगा हुआ) – मैं भी सामाजिक अन्याय का भुक्तभोगी हूँ।

(77) रत (लीन) – श्रमिक सुबह से कार्यरत हैं।
रक्त (खून) – रक्त का रंग लाल होता है।
रति (प्रेम) – रति स्त्री-पुरुष प्रेम का परिणाम है।

(78) लक्ष (लाख) – राणा ने राजकवि को लक्ष स्वर्णमुद्राएँ पुरस्कार में दी।
लक्ष्य (निशाना) – हमें अपना लक्ष्य सदा ऊँचा रखना चाहिए।

(79) लता (बेल) – लता पेड़ के तने से लिपट कर ऊपर चढ़ गई है।
लत्ता (फटे कपड़े) – भिखारी का कपड़ा लत्ता हो चुका हैं।

(80) वित्त (रुपया-पैसा) – वित्त को लेन-देन में सावधानी रखना जरूरी है।
वृत्त (गोल घेरा) – परिकर की सहायता से वृत्त बना सकते हैं।

(81) व्यजन (पंखा) – गरमियों में व्यजन डुलाना पड़ता है।
व्यंजन (पकवान) – मेरी माँ मेरे लिए अच्छे-अच्छे व्यंजन बनाती है।

(82) शंकर (शिव) – शंकरजी को अर्द्धनारीश्वर कहा जाता है।
संकर (मिश्र जाति) – संकर-चार कपास की उन्नत किस्म है।

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(83) शव (लाश) – हिंदुओं में शव जलाने की तथा मुसलमानों में उसे दफनाने का रिवाज है।
शब (रात) – शब के बाद सुबह आती ही है।

(84) शस्त्र (हथियार) – लड़ाई के शस्त्र दिन-प्रतिदिन आधुनिकतम होते जा रहे हैं।
शास्त्र (धर्मग्रंथ) – सभी शास्त्र हमें अच्छा इंसान बनने की शिक्षा देते हैं।

(85) शिरा (नाड़ी) – शिराएँ रक्त का वहन करती हैं।
सिरा (छोर) – पृथ्वी का कोई सिरा नहीं है, क्योंकि वह गोल हैं।

(86) सदेह (संशरीर) – त्रिशंकु स्वर्ग में सदेह जाना चाहता था।
संदेह (शंका) – मित्र पर संदेह न करें।

(87) सती (साध्वी) – सती-प्रथा कानूनन अपराध है।
शती (सौ वर्ष) – आजकल इक्कीसवीं शती चल रही है।

(88) सर (तालाब) – सर और सरोवर समान अर्थवाले शब्द हैं।
शर (बाण) – राम के शर से घायल मारीच ने लक्ष्मण को पुकारा।

(89) साला (पत्नी का भाई ) – पिता के साले हमारे मामाजी लगते हैं।
शाला (पाठशाला) – वह शाला में पढ़ने नहीं जाता।

(90) सुधि (याद) – वह खंभे से टकराया, उस समय उसे सुधि न रही।
सुधी (बुद्धिमान) – सुधी व्यक्ति सोच-समझकर बोलते हैं।

(91) सुर (देवता) – सुरों के राजा इंद्र हैं।
स्वर (आवाज) – लता मंगेशकर का स्वर मधुर है।

(92) सूचि (सुई) – इस सूचि की नोक भोथरी हैं।
सूची (तालिका) – पुस्तकों की सूची अभी तक नहीं छपी है।

(93) स्वेद (पसीना) – गर्मियों में स्वेद अधिक निकलता है।
श्वेत (सफेद) – आजकल श्वेत-श्याम फिल्में लगभग नहीं बनती हैं।

(94) हरण (ले जाना) – स्त्रियों के हरण की घटनाएँ एक सामाजिक कलंक है।
हरिण (मृग) – हरिण चौकड़ी मारकर दौड़ता है।

(95) हरि (विष्णु) – हारे को हरि नाम।
हरी (हरे रंग की) – गार्ड ने हरी झंडी दिखाई, गाड़ी चल दी।

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रचना के आधार पर शब्द के प्रकार

रचना के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं :

  1. मूल शब्द,
  2. व्युत्पन्न शब्द

1. मूल शब्द –
वे शब्द जो दूसरे शब्द या शब्दांश (उपसर्ग-प्रत्यय) के योग से न बने हों, उन्हें मूल शब्द कहते हैं; जैसे – फूल, घर, गाय, कुरसी आदि। इन्हें रूढ शब्द भी कहते हैं। इनके सार्थक टुकड़े नहीं हो सकते।

2. व्युत्पन्न शब्द –
दो शब्दों या शब्द तथा शब्दांश/शब्दांशों के योग से बने शब्द को व्युत्पन्न (वि + उत्पन्न) शब्द कहते हैं। व्युत्पन्न शब्द दो प्रकार के हैं –

(क) यौगिक
(ख) योगरूढ़।

यौगिक शब्द : दो शब्दों या शब्द तथा शब्दांश/शब्दांशों के योग से बने शब्द को यौगिक शब्द कहते हैं, जैसे – प्रधानमंत्री (शब्द + शब्द) प्रधान + मंत्री; भारतीय (शब्द + शब्दांश) भारत + ईय; अनुशासन (शब्दांश + शब्द) अन् + शासन्, भारतीयता (शब्द + शब्दांश + शब्दांश) भारत + ईय + ता; गैरहाजिरी (शब्दांश + शब्द + शब्दांश) गैर + हाजिर + ई।

योगरूढ़- जो यौगिक शब्द एक ही अर्थ में रूढ़ हो जाते हैं, उन्हें योगरूढ़ कहा जाता है; जैसे- जलज (जल + ज) जल से उत्पन्न, किंतु यह जल में उत्पन्न सभी के लिए प्रयुक्त न होकर केवल ‘कमल’ के लिए रूढ़ हो गया है। इसी प्रकार के कुछ अन्य शब्द है-पंकज, नीरज, लंबोदर आदि।

प्रयोग के आधार पर शब्दों के प्रकार

प्रयोग के आधार पर शब्दों को दो वर्गों में बाँटा जाता है –

  1. सामान्य शब्द,
  2. पारिभाषिक शब्द

1. सामान्य शब्द –
इस तरह की शब्दावली में आनेवाले शब्दों का संबंध आम जन-जीवन से होता है। इनका प्रयोग भाषा-समुदाय के सदस्य अपने दैनिक व्यवहार में करते हैं; जैसे – घर, बाजार, गाँव, शहर, चावल, दाल, शाम, सुबह, दिन, रात, मेहनत, काम आदि।

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2. पारिभाषिक शब्द –
ऐसे शब्द जो ज्ञान-विज्ञान या विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों में किसी निश्चित – खास अर्थ में प्रयोग किये जाते है; उन्हें पारिभाषिक शब्द कहते हैं। जैसे – संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, संधि, समास आदि व्याकरण से संबंधित पारिभाषिक शब्द हैं, तो कोशिका, घनत्व, जड़त्व, ध्वनि, तरंगलंबाई, रसाकर्षण, मूलरोम, परागण आदि विज्ञान से संबंधित पारिभाषिक शब्द हैं। इन्हें तकनीकी शब्द भी कहा जाता है। आपके विज्ञान, गणित तथा सामाजिक विज्ञान आदि की पाठ्यपुस्तकों में ऐसे शब्दों की एक लंबी सूची अंत में दी गई होती है। ये शब्द प्रायः अंग्रेजी शब्दों के अनुवाद हैं, इसलिए इनके साथ कोष्ठक में अंग्रेजी शब्द भी दिये जाते हैं।

व्याकरणिक प्रकार्य के आधार पर शब्दों के प्रकार

व्याकरण की दृष्टि से शब्दों को उनके प्रकार्य (Function) के आधार पर दो वर्गों में बाँटा जाता है –

  1. विकारी शब्द
  2. अविकारी शब्द

1. विकारी शब्द –
विकारी शब्द वे होते हैं, जिनमें लिंग, वचन, कारक, काल, पक्ष के कारण परिवर्तन होता है। हिन्दी के संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रियापद विकारी शब्द हैं। जैसे – गाँव-गाँवों, लड़का-लड़की, लड़के-लड़कियाँ, वह-उसने, उसका, तुम-तुम्हें, तुम्हारा, मैं – मुझे, मेरा, हम-हमें, हमकों, हमारा – हमारे आदि। कुछ विशेषण शब्दों में कभी-कभी परिवर्तन नहीं भी होता। क्रिया पद लिंग, वचन, काल के कारण परिवर्तित होते हैं। जैसे – जाना, जाता है, जाते हैं, जाती है, जा रहा, जा रही, जा रहे तथा गया, गये, गई – आदि।

क्रिया, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण का परस्पर रूपांतर भी होता है। पद-निर्माण में इसे विस्तारपूर्वक देख चुके हैं। ये परिवर्तन उपसर्ग, प्रत्यय आदि के उपयोग होते हैं।

संज्ञा – ये नामवाची शब्द हैं। नाम किसी व्यक्ति, जाति, वस्तु, स्थान, पदार्थ या भाव का हो सकता है। जैसे – राम, मनुष्य, प्राणी, पेड़, थाली, आम, पेंसिल, कागज, अहमदाबाद, भारत, पर्वत, नदी, हिमालय, गंगा, पढ़ाई, सजावट, बुढ़ापा इत्यादि। संज्ञा शब्द एकवचन या बहुवचन में रहते हैं। इनके लिंग अलग-अलग हो सकते हैं। जैसे – लड़की (एकवचन), लड़कियाँ (बहुवचन); लड़का (एकवचन), लड़के/लड़कों (बहुवचन) आदि। कारक के कारण भी संज्ञा रूपों में परिवर्तन होता है।

सर्वनाम – जो शब्द संज्ञा के बदले में प्रयोग किये जाते हैं, वे सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे – यह, वह, वे, तू, तुम, मैं, हम तथा इनके रूप, कौन, क्या, स्वयं, जो तथा जिसको आदि।

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विशेषण – संज्ञा और सर्वनाम की विशेषता बतानेवाले शब्दरूप को विशेषण कहते हैं; जैसे – ऊँचा लड़का, सुंदर लड़की, भारी बोझ में ऊँचा, सुंदर, भारी तथा कई, कुछ, सब जैसे शब्द रूप विशेषण हैं। विशेषण जिसकी विशेषता बताते हैं उन्हें विशेष्य कहते है। विशेषण-विशेष एक समान लिंग तथा वचन में प्रयोग होते हैं। कुछ विशेषण दोनों लिंगों में प्रयुक्त होते हैं; बढ़िया, सुंदर, सुखी, ज्यादा आदि।

क्रिया – जिनसे किसी कार्य का होना या करना पता चलता है। जैसे – पढ़ना, लिखना, रोना, हँसना, खेलना, कूदना, आना, जाना, लेना, देना, देखना, सुनना, बोलना इत्यादि। इनके मूलरूप में से ‘ना’ हटाने पर क्रिया की ‘धातु’ बचती है। धातु में प्रत्यय जोड़कर संज्ञा, विशेषण तथा क्रिया के विभिन्न कालों में प्रयुक्त होनेवाले रूप बनते हैं। लिंग, वचन, काल के कारण क्रिया-रूपों में अंतर आता है।

2. अविकारी शब्द –
जिन शब्दों के ‘मूल’ रूप में परिवर्तन (विकार) नहीं होता, वे अव्यय या अविकारी शब्द कहलाते हैं। क्रियाविशेषण, समुच्चय बोधक, विस्मयादिबोधक, संबंधबोधक अव्यय तथा निपात अविकारी शब्दों के वर्ग में आते हैं।

जैसे – में, पर, आज, यहाँ, हे, अरे, ही, तक इत्यादि।

नीचे दिये गए शब्दों को विकारी, अविकारी में वर्गीकरण कीजिए :
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उत्तर :

  • विकारी शब्द : संज्ञा – शहर, घर, भारत, नदी, अर्चना, पूजा, देवता, सुंदर, सोमवार, भारत
  • सर्वनाम – आप, हमारा, उनका, वे, तुम
  • विशेषण – मीठी, चिकनी, सम्पन्न, सुंदर, निमग्न, एक
  • क्रिया – सिखाना, लेना, देना, पढ़ाना, चढ़ना, अर्चना

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अविकारी शब्द :

  • अव्यय – वहाँ, तक, तथा, या, पर
  • निपात – ही

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