Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 12 Solutions Rachana सारलेखन Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 12 Hindi Rachana सारलेखन
निम्नलिखित प्रत्येक गद्यांश का एक-तिहाई भाग में सार लिखकर उसे उचित शीर्षक दीजिए :
प्रश्न 1.
किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को दृढ़ संकल्प होना जरूरी है। गुलामी और आतंक के वातावरण में क्रांतिकारी किस तरह विद्रोह का बिगुल बजा लेते हैं? सूखी रोटियां खाकर और कठोर धरती को शय्या बनाकर भी देश को आजाद कराने का कार्य कैसे कर पाए महाराणा प्रताप? वह कौन-सा बल था, जिसके आधार पर मुट्ठीभर हड्डियोंवाले महात्मा गांधी विश्वविजयी अंग्रेजों को देश के बाहर कर सके? निश्चय ही यह थी मन की सबलता। मन की सबलता के लिए सत्य, न्याय और कल्याण के आदर्श का होना जरूरी है। जिसके मन में सत्य की शक्ति नहीं; जो न्याय के पक्ष में नहीं है, उसके मन में तेज नहीं आ पाता। अनुचित कार्य करनेवाला व्यक्ति आधा मन यूं ही हार बैठता है। उसके मन में एक छिपा हुआ चोर होता है, जो उसे कभी सफल नहीं होने देता।
उत्तर :
सफलता का रहस्य
कार्य की सफलता के लिए हमें दृढ़ संकल्पी होना आवश्यक है। व्यक्तिगत सुख-दुःख की चिंता छोड़ देनी चाहिए। कमजोर मन का और अनुचित कार्य करनेवाला व्यक्ति जीवन में कभी सफल नहीं होता। मन की सबलता के लिए सत्य, न्याय और कल्याण के आदर्श होना अनिवार्य है।
प्रश्न 2.
भारत अपनी धर्म-निष्ठा, प्राचीन आदर्श संस्कृति एवं महान सभ्यता के कारण ही विश्व के राष्ट्रों में अग्रणी एवं सर्वश्रेष्ठ रहा है। धर्म, सभ्यता, संस्कृति एवं देववाणी संस्कृत भाषा इस राष्ट्र की सर्वदा ही अनुपम धरोहर एवं पुनीत आदर्श रहे हैं। जिस दिन भारत अपने इन पुनीत आदर्शों तथा दैवी गुणों को विस्मृत कर देगा तथा उनसे च्युत होकर भ्रष्ट हो जाएगा, उस दिन भारत, भारत न रह जाएगा। राष्ट्र की उन्नति का मूल मंत्र, उस राष्ट्र की संस्कृति, सभ्यता, कर्तव्य-निष्ठा, निजभाषा-प्रेम एवं सदाचार ही है। बिना इन आदर्श गुणों के राष्ट्र निर्जीव, शक्तिहीन एवं पंगु ही बना रहता है। बिना आध्यात्मिक उन्नति के किसी भी राष्ट्र की वास्तविक उन्नति सर्वथा असंभव है। प्रत्येक देशवासी जब इन आदर्श गुणों का पालन करेगा तभी राष्ट्र उन्नति कर सकेगा।
उत्तर :
राष्ट्र की अनुपम धरोहर अथवा भारत की विरासत
संस्कृति, सभ्यता, कर्तव्य-निष्ठा, धर्म-निष्ठा, निजभाषा-प्रेम के : कारण ही कोई राष्ट्र महान बनता है। इसीलिए प्राचीन काल में भारत : सभी देशों में अग्रणी और सर्वश्रेष्ठ रहा है। आध्यात्मिक उन्नति की साधना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
प्रश्न 3.
सिंधु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व ज्यादा था। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मृदू-भांड, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केशविन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक सिद्ध से ज्यादा कला सिद्ध जाहिर करता है। एक पुरात्ववेत्ता के मुताबिक सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य बोध है। “जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।” शायद इसलिए आकार की भव्यता की जगह उसमें कला की भव्यता दिखाई देती है।
उत्तर :
सिंधु घाटी अथवा सिंधु घाटी और कला
कलाप्रेमी सिंधु घाटी के लोगों का सौंदर्य-बोध उनके नगरनियोजन , वास्तुकला, मूर्तियाँ, विभिन्न चित्रों, सुनिर्मित मुहरों, खिलौनों, केश-विन्यास, आभूषण आदि से झलकता है। कला की भव्यता सिंधु घाटी की पहचान है।
प्रश्न 4.
जीवन में साहित्य की उपयोगिता अनिवार्य है। साहित्य मानवजीवन को वाणी देने के साथ समाज का पथ-प्रदर्शन भी करता है। उपयोगिता की दृष्टि से देखें तो साहित्य के अध्ययन से अनेक लाभ है। साहित्य मानवजीवन के अतीत का ज्ञान कराता है, वर्तमान का यथार्थ चित्रण करता है और भविष्य के निर्माण की प्रेरणा देता है। प्रत्येक आनेवाला समाज और युग इनसे प्रेरणा लेता है। साहित्य ही हमें मनुष्य की कोटि में बनाए रखता है। किसी समाज का साहित्य क्षीण होने लगे तो वह समाज भी रसातल को चला जाता है। साहित्य समाज के साथ कार्य करते हुए भी समाज के लिए प्रकाश के स्तंभ का कार्य करता है। साहित्य का आलोक-पुंज सूर्य की भाँति समाज के समस्त विकारों का हरण करता है तभी वह सत्-साहित्य कहलाने का अधिकारी होता है।
उत्तर :
साहित्य की उपयोगिता
साहित्य की जीवन में बहुत उपयोगिता है। साहित्य के अध्ययन के अनेक लाभ हैं। इससे हमें प्रेरणा मिलती है। साहित्य समाज का दर्पण है। इससे मानवीय गुणों का विकास होता है। साहित्य हमारा पथ-प्रदर्शक है। जो साहित्य जीवन की उन्नति करे वही सत्-साहित्य है।
प्रश्न 5.
प्रेम एक ऐसी अलौकिक शक्ति है, जिससे मनुष्य को अनंत लाभ होते हैं। प्रेम से मानसिक विकास दूर होते हैं, विचारों में कोमलता आती है, सद्गुणों की पुष्टि होती है, दुःखों का नाश और सुखों की वृद्धि होती है और यहाँ तक कि मनुष्य की आयु भी बढ़ती है। प्रेम ही मनुष्य को साहसी, धौर और सहनशील बना देता है। माता अपने पुत्र के लिए अनंत कष्ट सहती है और स्वयं सब प्रकार के दुःख। भोगकर उसे सुख देती है। माताओं को बहुधा ऐसी अवस्था में रहना पड़ता है, जिसमें यदि प्रेम का सहारा न हो तो वे बहुत शीघ्र बीमार हो जाएँ, पर वह प्रेम उन्हें रोगी होने से बचाता है। उलटे शुद्ध प्रेम उन्हें बलिष्ठ और सुंदर बनाता है। बिना प्रेम के अच्छी सुख-सामग्री भी हमें तनिक भी प्रसन्न नहीं कर सकती, पर प्रेम की सहायता से हम बिना और किसी सुख-सामग्री के भी परम सुखी हो सकते हैं। अत: प्रत्येक मनुष्य को अपना स्वभाव मिलनसार और प्रेमपूर्ण बनाना चाहिए।
उत्तर :
प्रेम का महत्त्व
प्रेम की दिव्य शक्ति से मनुष्य के मन का विकास, दुःखों का नाश तथा सुखों और सद्गुणों की अभिवृद्धि होती है। पुत्रप्रेम के कारण माता अनेक प्रकार के कष्ट उठाकर भी स्वस्थ रहती है। प्रेम के अभाव में सुख के साधन मनुष्य को आनंदित नहीं बना सकते, इसलिए उसे प्रेममय बनना चाहिए।
प्रश्न 6.
पुस्तक का मानवजीवन में बहुत महत्त्व है। मानव ने सर्वप्रथम पुस्तक का आरंभ अपने अनुभूत ज्ञान को विस्मृति से बचाने के लिए किया था। विकास के आदिकाल में पत्ते, ताड़-पत्र, कांस्य-पत्र आदि साधन इस ज्ञान-संग्रह के सहायक रहे हैं, ऐसा पुस्तक का इतिहास स्वयं बताता है। पुस्तकें मानव को अपना अनुभव विस्तृत करने में सहायक हैं, साथ ही अपने पूर्वजों के सभी प्रकार के कृत्यों को जीवित रखने की जिम्मेदारी भी संभाली हुई है। आज के युग में पुरातन वीर, धार्मिक महात्माओं, ऋषियों, नाट्यकारों, कवियों आदि का पता हम इन्हीं पुस्तकों के सहारे पाते हैं। पुस्तकें ही आंतरराष्ट्रीय विचारक्षेत्र में विभिन्न देशों के दृष्टिकोणों को एक आधार पर सोचने के लिए बाध्य करती हैं।
उत्तर:
पुस्तक का महत्त्व
पत्ते, ताड़-पत्र, कांस्य-पत्र आदि पुस्तक के प्रारंभिक रूप हैं । मानव के ज्ञान को विस्मृत होने से बचाने, मानवीय अनुभव विस्तृत करने तथा प्राचीन वीरों, महात्माओं, ऋषियों एवं साहित्यकारों की जानकारी देने के लिए पुस्तकें सहायक रही हैं। पुस्तकें विभिन्न दृष्टिकोणवाले देशों को एकजूट होकर सोचने के लिए बाध्य करती हैं।
प्रश्न 7.
जीवन एक अनमोल निधि है। यदि आप किसी कारणवश उसका समुचित लाभ अथवा आनंद नहीं उठा पाते, तो आपका पहला : कर्तव्य है कि आप अपनी वर्तमान परिस्थिति का अच्छी तरह विश्लेषण करें। आपकी समस्या क्या है, इसे भली-भांति समझें और अपनी मुश्किलों को दूर करने का उपाय सोचें । इसके विपरीत यदि आप परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी होने देते हैं और वास्तविक एवं कल्पित कष्टों से मन को दुःखी बनाए रहते हैं, तो आप जीवन का रस नहीं ले सकते। बहुत संभव है, आपका कष्ट आर्थिक हो । परिवार के कई लोगों के भरण-पोषण के लिए आपको अप्रिय अथवा अरुचिकर कार्य भी करने पड़ते हो, आपको काफी वेतन न मिलता हो अथवा किसी गंभीर कष्ट से : आप दबे हों, लेकिन घबराने से क्या इन सबका निराकरण हो जाएगा? अतः समस्या से डरिए मत, उसकी शिकायत मत कीजिए, बल्कि जूझने : के लिए तैयार हो जाइए।
उत्तर :
जीवन जीने की कला
जीवन का सच्चा आनंद पाने के लिए मनुष्य को अपनी वर्तमान : कठिनाइयों को समझकर उन्हें दूर करने के उपाय सोचने चाहिए। समस्याओं का सच्चा हल, शिकायत करना या घबराना नहीं है, बल्कि उनसे लड़ना : है। निडर होकर उनका सामना करके ही मनुष्य सुखी हो सकता है।
प्रश्न 8.
अकर्मण्यता दरिद्रता की सहेली है। अतः परिश्रम का संबल लेकर इससे बचना ही उचित है। यदि परिश्रम विवेक और व्यवस्था : सहित उचित शिक्षा में संलग्नता के साथ किया जाए तो उसका परिणाम आश्चर्यजनक होता है। शारीरिक और मानसिक दोनों ही परिश्रम अपनेअपने स्थान पर महत्त्वपूर्ण हैं। दोनों के सम्मेलन से एक पूर्ण परिश्रम का निर्माण होता है। दोनों के सहयोग एवं समन्वय से ही जीवन सुखमय एवं पूर्ण हो सकता है। परिश्रम की सफलता के साथ-साथ आनंद की भी प्राप्ति होती है। जब कोई कार्य परिश्रम के पश्चात् सफल होता है, तो हृदय उल्लास से पूर्ण हो जाता है। असफल होने पर भी साहस टूटता नहीं, क्योंकि इस बात का संतोष रहता है कि हमने अपना कर्तव्य निभा : दिया। मानसिक शांति मिलने के साथ-साथ पुनः प्रयत्न की प्रेरणा प्राप्त होती है।
उत्तर :
परिश्रम का महत्त्व
परिश्रम से सुख-शांति प्राप्त होती है। शारीरिक एवं मानसिक परिश्रम के समन्वय से जीवन सुखमय होता है। परिश्रम सफल होने पर एक विशेष आनंद की प्राप्ति होती है। परिश्रम के पश्चात् यदि असफलता भी मिली तो इस बात का संतोष रहता है कि हमने अपना कर्तव्य किया है। इससे मानसिक शांति के साथ पुनः प्रयास करने की प्रेरणा मिलती है।