Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 1 पद Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 1 पद
GSEB Class 10 Hindi Solutions पद Textbook Questions and Answers
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर :
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में यह व्यंग्य निहित है कि उद्धव श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम से वंचित हैं।
प्रश्न 2.
उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किससे की गई है?
उत्तर :
गोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते से की है, जो जल में रहते हुए भी गीला नहीं होता है, उद्धव की दूसरी तुलना तेल युक्त मटके से की गई है, जिस पर पानी की एक भी बूद टिक नहीं पाती है।
प्रश्न 3.
गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्वव को उलाहने दिए हैं ?
उत्तर :
गोपियों ने उद्धव को निम्नलिखित उलाहने दिए हैं –
हम गोपियाँ कमल के पत्ते और तेलयुक्त मटके की तरह नहीं हैं जो कृष्ण के पास रहकर भी उनका प्रेम न पा सकें।
वे उद्धव के प्रेम-संदेश को कड़वी ककड़ी के समान बताती हैं जिसे खाया नहीं जा सकता है।
तुम्हारा योग-संदेश हमारे लिए उपर्युक्त नहीं है।
हम तुम्हारी तरह कठोर नहीं हैं जो पास बहती प्रेम-नदी का स्पर्श भी न करें।
प्रश्न 4.
उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण के चले जाने से गोपिया विरहाग्नि में पहले से ही जल रही थीं। उन्हें बड़ी उम्मीद थी कि कृष्ण लौटकर आएगे, परन्तु ऐसा न हआ। उद्धव कृष्ण का योग-संदेश लेकर आए तो उनकी विरहाग्नि और बढ़ गई। इस तरह उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम किया।
प्रश्न 5.
‘मरजादा न लही के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर :
गोपियाँ कृष्ण से बेहद प्रेम करती थीं और उन्हें पूरा विश्वास था कि उनके प्रेम की मर्यादा का निर्वाह कृष्ण भी वैसा ही करेंगे। परन्तु कृष्ण ने ऐसा नहीं किया, बल्कि उन्होंने योग-संदेश भेजकर प्रेम की मर्यादा को भंग कर दिया।
प्रश्न 6.
कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है ?
उत्तर :
गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को व्यक्त करते हुए कहा कि हमारा प्रेम-बंधन गुड़ से चिपटी हुई चीटियों के समान है। कृष्ण उनके लिए हारिल की लकड़ी की तरह हैं। हम सोते-जागते उन्हीं का स्मरण करती हैं। हमें योग-संदेश से नहीं, कृष्ण से प्रेम है।
प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर :
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा उन लोगों को देने की बात कही है जिनका मन चकरी के समान अस्थिर है, चित्त में चंचलता है।
प्रश्न 8.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर :
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का दृष्टिकोण स्पष्ट है कि वे योग साधना को निरर्थक मानती हैं। उनके अनुसार यह उन लोगों के लिए है, जिनका मन अस्थिर है। वे कृष्ण के प्रति समर्पित हैं। उनके लिए योग ज्ञान कड़वी ककड़ी के समान है।
प्रश्न 9.
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर :
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म है कि वह प्रजा को ना सताए और प्रजा के सुख का ध्यान रखे। प्रजा को अन्याय से मुक्ति दिलाए ।
प्रश्न 10.
गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं ?
उत्तर :
उद्धव द्वारा श्रीकृष्ण का योग-संदेश सुनकर गोपियाँ आश्चर्यचकित हो जाती हैं। उन्हें लगा कि कृष्ण मथुरा जाकर बदल गए है। उनकी बुद्धि पहले से भी अधिक चतुर हो गई है। पहले वे प्रेम का बदला प्रेम से चुकाते थे लेकिन अब योग-संदेश दे रहे हैं। अब वे छल-प्रपंच का भी सहारा लेने लगे हैं इन्हीं परिवर्तनों के कारण गोपियाँ अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं।
प्रश्न 11.
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी ऊद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुय की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर :
गोपिया स्पष्टवादी हैं, वे उद्धव के योग संदेश को बिना संकोच के कड़वी ककड़ी बता देती हैं। वे बड़े ही प्रभावशाली ढंग से व्यंग्य करती हुई उद्धव से कहती हैं कि तुमसे बढ़कर और कौन भाग्यवान होगा जो कृष्ण के समीप रहकर उनके अनुराग से वंचित रहे । गोपियाँ बड़ी भावुक हैं, वे कहती हैं कि हम अपनी प्रेमभावना को उनके सम्मुख प्रकट नहीं कर पाई।
प्रश्न 12.
संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएं:
- वियोग शृंगार का मार्मिक चित्रण है।
- गोपियों का एकनिष्ठ प्रेम है।
- निर्गुण ब्रह्म का विरोध और सगुण ब्रह्म की बड़ाई है।
- गोपियों की वाक्पटुता के सामने उद्धव मौन हो जाते हैं।
- प्रेमभरा उपालम्भ है।
- शुद्ध ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 13.
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर :
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, हम निम्न तर्क दे सकते हैं
कृष्ण ने गोपियों को धोखा दिया है।
कृष्ण गोपियों को तो योग-संदेश भेजते हैं, परन्तु अपने साथ रहनेवालों को योग-संदेश क्यों नहीं देते हैं।
पहले प्रेम करना और फिर योग-साधना का ज्ञान देना उचित नहीं है।
प्रश्न 14.
उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे, गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर :
उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे परन्तु प्रेम क्षेत्र में एकदम अनभिज्ञ थे। गोपियों के पास उनके मन में कृष्ण के प्रति प्रेम की अद्भुत शक्ति थी जिसके कारण उनके तर्कों के सामने उद्धव को हार माननी पड़ी।
प्रश्न 15.
गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं ? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नजर आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं ?’ – ऐसा गोपियों ने इसलिए कहा कि कृष्ण ने सीधी-सरल बातें न करके बड़े नाट्यात्मक ढंग से उद्धव के द्वारा अपनी बात गोपियों तक पहुंचाई। आज की राजनीति में भी ऐसा ही चारों तरफ दिखाई दे रहा है। आज की राजनीति में झूठ और छल-कपट भरा हुआ है। नेता सीधे-सीधे मुद्दे और काम की बात नहीं करते हैं, बल्कि इतना घुमा-फिराकर बात करते हैं कि जनता समझ नहीं पाती है।
Hindi Digest Std 10 GSEB पद Important Questions and Answers
अतिरिक्त प्रश्न
प्रश्न 1.
गोपियों ने स्वयं को अबला’ और ‘भोली’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
गोपियाँ प्रेम के परिणाम को जाने बिना कृष्ण से प्रेम कर बैंठी । आज वही प्रेम उनके लिए पीड़ादायी बन गया है इसीलिए वे स्वयं को ‘अबला’
और ‘भोली’ मानती हैं।
प्रश्न 2.
गोपियों ने उद्धव को बड़भागी क्यों कहा है ?
उत्तर :
उद्धव ने किसी से प्रेम नहीं किया है। वे विरह-वेदना नहीं जानते हैं इसीलिए गोपियों ने उन्हें बड़भागी कहा है।
प्रश्न 3.
गोपियों की कौन-सी बात उनके मन में रह गई?
उत्तर :
गोपियाँ अपनी विरह-वेदना कृष्ण से मिलकर सुनाना चाहती थीं, परन्तु ऐसा न हो सका । यही बात उनके मन में रह गई।
प्रश्न 4.
कृष्ण ने किस मर्यादा का पालन नहीं किया ?
उत्तर :
कृष्ण ने गोपियों के प्रेम के बदले योग-संदेश भेजकर प्रेम की मर्यादा का पालन नहीं किया।
प्रश्न 5.
गोपियाँ योग को किसके समान बताती हैं ?
उत्तर :
गोपियाँ योग को ‘कड़वी ककड़ी’ और ‘रोग’ के समान बताती हैं।
प्रश्न 6.
गोपियाँ हारिल की लकरी’ किसे कहती हैं ?
उत्तर :
गोपियाँ हारिल की लकरी कृष्ण को कहती हैं।
प्रश्न 7.
श्रीकृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है, गोपियों को कैसे पता चला ?
उत्तर :
राजा बनने के बाद कृष्ण बदल गए हैं जैसे राजनेता सत्ता पाने के बाद बदल जाते हैं। अब वे प्रेम के बदले योग-संदेश भेज रहे हैं इसीलिए गोपियाँ कहती हैं कि कृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है।
भावार्थ और अर्थबोधन संबंधी प्रश्न
1. उधौ, तुम हौ अति बड़भागी ।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी ।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यों जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाऊँ न बोर्यो, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाटी ज्यौं पामी।
भावार्थ :
गोपियाँ उद्धव से व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि तुम कैसे भाग्यशाली हो? जो कृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम-बंधन से वंचित हो। तुम कमल के पत्ते की तरह हो, जैसे कमल का पत्ता पानी में रहते हुए भी उसमें डूबता नहीं है। पानी की एक बूंद भी उस पर नहीं ठहरती है। तुम तेल-युक्त मटकी की तरह हो ।
मटकी को जल में चाहे जितना भिगोया जाए परन्तु एक भी बूंद पानी उस पर ठहर नहीं पाती है, ठीक उसी प्रकार तुम कृष्णरूपी प्रेम-नदी के साथ रहते हुए भी उसमें अपना पैर तक नहीं डुबोया, प्रेम के महत्त्व को समझने की बात तो दूर की है। तुम किसी के सौन्दर्य पर मुग्ध नहीं हुए। परन्तु हम भोली-भाली गोपिकाएं हैं जो कृष्ण के सौन्दर्य में वैसे ही उलझ गई हैं, जैसे चौटियाँ गुड़ के प्रति आकर्षित होकर उससे चिपट जाती हैं।
प्रश्न 1.
गोपियाँ किसे बड़भागी कहती हैं?
उत्तर :
गोपिया उद्धव को बड़भागी कहती हैं।
प्रश्न 2.
गोपियों द्वारा उद्धव को बड़भागी कहने में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
गोपियाँ व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि हे उद्धव ! तुम कैसे बड़भागी हो, कृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रेम-बंधन से वंचित हो।
प्रश्न 3.
उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर :
उद्धव के व्यवहार की तुलना पानी के ऊपर तैरते हुए कमल के पत्ते और तेल लगे मटके से की गई है।
प्रश्न 4.
गोपियों ने अपनी तुलना किससे की है?
उत्तर :
गोपियों ने अपनी तुलना गुड़ से चिपटी चींटियों से की है।
प्रश्न 5.
प्रीति-नदी में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर :
प्रीति नदी में रूपक अलंकार है।
2. मन की मन ही माझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही ।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतों गुहारि जितर्हि , उत तें धार बही ।
‘सूरदास’ अब धीर धरहि क्यों, मरजादा न लही ।
भावार्थ :
गोपियाँ उद्धव से अपनी व्यथा कह रही हैं। वे कहती है कि वे अपनी मन की पीड़ा को व्यक्त करना चाहती है परन्तु मन की बात मन में ही रह जाती है, वे किसी के सामने कह नहीं पाती हैं। पहले तो कृष्ण के लौटने की मन में आशा थी। उनके आने की अवधि को अपने जीने का आधार बनाकर वे तन
और मन की व्यथा को सह रही थीं लेकिन अब कृष्ण के स्थान पर तुम्हारे योग-संदेश को सुनकर विरह-वेदना अचानक बढ़ गई है। हमें जिनसे अपनी रक्षा का सहारा था, जिसे हम पुकार सकते थे अब उसी की ओर से योग की धारा बहने लगी है अर्थात् योग का संदेश आया है। हे उद्धव ! प्रेम की मर्यादा है कि प्रेम के बदले प्रेम ही दिया जाए परन्तु कृष्ण ने हमारे साथ छल किया है। उन्होंने अपनी मर्यादा का पालन नहीं किया। अब हम कैसे धैर्य धारण करें।
प्रश्न 1.
‘मन की मन ही माझ रही’ – का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘मन की मन ही माँझ रही’ का आशय है कि गोपियां कृष्ण से प्रेम करती हैं। लेकिन अपने प्रेम को कृष्ण के समक्ष प्रकट नहीं कर पाई थीं।
प्रश्न 2.
गोपियों की विरह-वेदना क्यों बढ़ गई?
उत्तर :
गोपियों को आशा थी कि प्रेम के बदले प्रेम-संदेश मिलेगा लेकिन जब उद्धव द्वारा योग-संदेश मिला तो उनकी विरह वेदना बढ़ गई।
प्रश्न 3.
गोपियाँ धैर्य क्यों नहीं धारण करना चाहती हैं ?
उत्तर :
कृष्ण ने मर्यादा का पालन नहीं किया इसीलिए गोपियां धैर्य धारण करना नहीं चाहती हैं।
प्रश्न 4.
गोपियां विरह-वेदना को किस आधार पर सहन कर रही थी ?
उत्तर :
गोपियों को आशा थी कि कृष्ण एक दिन आएंगे और उन्हें प्रेम के बदले प्रेम मिलेगा। बस, इसी आधार पर वे विरह-वेदना सहन कर रही थीं।
3. हमार हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि एकरी ।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौँ करुई ककरी ।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी ।
यह तौ ‘सूर’ तिनहि लै सौंपौ, जिनके मन चकरी ।
भावार्थ:
गोपियाँ उद्धव से कहती है कि कृष्ण हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी की तरह हैं, जिन्हें हम छोड़ नहीं सकते। जैसे हारिल पश्ची अपने पैरों में कोई लकड़ी या तिनका पकड़े रहता है और उसे किसी स्थिति में नहीं छोड़ता, ठीक उसी तरह हम कृष्ण को छोड़ने में असमर्थ हैं, कृष्ण हमारे जीवन के आधार हैं। हम अपने कृष्ण को मन, कर्म, वचन से अपने हृदय में बसाए हुए हैं।
सोते, जागते या सपने में, दिन में, रात में हमारा मन कृष्ण की रट लगाए रहता है। हे उद्धव ! तुम्हारा यह योग-संदेश कड़वी ककड़ी के समान लग रहा है, जिसके प्रति कोई रूचि नहीं है। हमारे लिए तो योग-साधना एक ऐसा रोग है, जिसके बारे में न कभी सुना है, न देखा है और न कभी इसको भोगा ही है। अत: आप ऐसे लोगों को इसका ज्ञान बाँटिए जिनका मन चकरी तरह घूमता रहता हैं, चंचल है।
प्रश्न 1.
गोपियाँ अपनी तुलना किस पक्षी से करती हैं ?
उत्तर :
गोपियाँ अपनी तुलना हारिल पक्षी से करती हैं।
प्रश्न 2.
हारिल पक्षी की क्या विशेषता है?
उत्तर :
हारिल पक्षी अपने पैरों में कोई लकड़ी या तिनका पकड़े रहता है और उसे किसी स्थिति में नहीं छोड़ता है।
प्रश्न 3.
गोपियां दिन-रात किसकी रट लगाए रहती हैं ?
उत्तर :
गोपियाँ दिन रात कृष्ण की रट लगाए रहती हैं।
प्रश्न 4.
गोपियों को योग-संदेश कैसा लगता है ?
उत्तर :
गोपियों को योग-संदेश कड़वी ककड़ी जैसा लगता है।
प्रश्न 5.
‘जिनके मन चकरी’ में क्या भाव है?
उत्तर :
‘जिनके मन चकरी’ का आशय उन लोगों से है जिनका मन चंचल है, जिनका प्रेम स्थिर नहीं है।
4. हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए ।
इक अति चतुर हुते पहिलै ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए ।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-संदेस पठाए ।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए ।
अब अपनै मन फेर पाइहँ, चलत जु हुते चुराए ।
ते क्यों अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए ।
भावार्थ :
गोपियाँ भ्रमर के माध्यम से उद्धव से कहती हैं कि अब तो श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली है। वे राजनीति में पूरी तरह निपुण हो गए हैं। आपके योग-संदेश को सुनकर पहले ही समझ गई थीं, परन्तु अब तो पूर्ण विश्वास हो गया है। हे उद्धव ! तुम पहले ही चतुर थे, अब तो अपने गुरु श्रीकृष्ण से ग्रंथ भी पढ़ आए हो। उनकी बुद्धि कितनी विशाल है, इसका अनुमान तो इसी बात से मिल गया है कि वह युवतियों के लिए योग-साधना करने का संदेश भेज रहे हैं अर्थात् यह सिद्ध हो गया है कि वह बुद्धिमान नहीं हैं, क्योंकि कोई भी युवतियों के लिए योग-साधना को उचित नहीं मान सकता ।
हे उद्धव ! पुराने जमाने के लोग कितने भले थे जो दूसरों का भला चाहते थे, परन्तु आजकल के सज्जन तो दूसरों को दुःख देने और सताने के लिए ही यहाँ तक दौड़े चले आए हैं। हम तो केवल इतना ही चाहती हैं कि हमारे मन को श्रीकृष्ण ने जाते समय चुरा लिया था, उसे हम पुनः प्राप्त कर लें। हमें तो इस बात से बड़ा आचर्य है कि जो कृष्ण दूसरों को अन्याय से रोकते थे, वे खुद अन्याय के रास्ते पर चल पड़े हैं। वे योग-साधना का संदेश भेजकर हमारे ऊपर क्यों अन्याय कर रहे हैं ? उनको राजधर्म नहीं भूलना चाहिए । राजधर्म के अनुसार प्रजा को न सताकर उसकी भलाई का ध्यान रखना चाहिए।
प्रश्न 1.
‘अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए’ में क्या व्यंग्य है?
उत्तर :
इसमें उद्धव के प्रति व्यंग्य है। गोपियाँ कहती हैं कि तुम पहले से ही चतुर थे, पर अब राजनीति पढ़े हुए श्रीकृष्ण जैसे राजनीतिज्ञ के सिखाएं हुए हो।
प्रश्न 2.
पहले के लोग किस प्रकार के थे?
उत्तर :
पहले के लोग सज्जन थे जो दूसरों की भलाई के लिए भागे चले आते थे।
प्रश्न 3.
सूर की गोपियों के अनुसार राजधर्म क्या हैं?
उत्तर :
सूर की गोपियों के अनुसार प्रजा को सताए बिना उसकी भलाई का ध्यान रखना ही राजधर्म है।
प्रश्न 4.
‘बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-संदेश पठाए’ – में किस पर व्यंग्य किया गया है?
उत्तर :
‘बढी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-संदेश पठाए’ – में कृष्ण पर व्यंग्य किया गया है।
प्रश्न 5.
काव्यांश की भाषा बताइए।
उत्तर :
काव्यांश की भाषा ब्रज है।
पद Summary in Hindi
कवि परिचय :
कृष्णभक्ति के अनन्य कवि सूरदास का जन्म दिल्ली के निकट सोही नामक गाँव में हुआ था। वे दिली-मथुरा मार्ग पर यमुना के किनारे गऊघाट पर रहते थे और कृष्णभक्ति के पद रचकर गाया करते थे। आरंभ में वे दैन्य भाव की रचनाएँ रचा करते थे किंतु बाद में वल्लभाचार्यजी की प्रेरणा से दैन्य भाव त्यागकर श्रीकृष्ण बाललीलाओं का वर्णन करने लगे थे। उनकी भक्ति-भावना पर ‘श्रीमद् भागवत’ की भी पर्याप्त प्रभाव है। उनकी भक्ति मूलतः सख्य भाव की भक्ति है क्योंकि वे कृष्ण को अपने बाल-सखा के रूप में देखते हैं।
सूरदास की कविता पद-परंपरा के अंतर्गत आती है। उनके पदों में भक्ति के साथ-साथ शृंगार और वात्सल्य का बेजोड़ वर्णन हुआ है। शृंगार और वात्सल्य के संयोग और वियोग दोनों रूपों का निरूपण उनकी कविता में हुआ है। बाललीला के पदों में बाल-मनोभावों का बड़ा ही सहज चित्रण देखने को मिलता है। सूरसागर’ उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना है।
‘भ्रमरगीत’ उनका सर्वोत्तम उपालंभ काव्य है, जिसमें उद्धव के समक्ष गोपियों की विरह-वेदना का मार्मिक चित्रण हुआ है। ‘साहित्य लहरी’ ‘सूर’ के दृष्टकूट पदों का संग्रह है। सूर के पदों की भाषा ब्रज भाषा है जिसमें माधुर्य के साथ नाद-सौंदर्य फूट पड़ा है। सूर के पद अनेक राग-रागिनियों में बंधे हैं। जिन्हें आज भी बड़े चाव से गाया जाता है।
कविता-परिचय :
‘पद’ के अंतर्गत ‘सूरसागर’ के ‘भ्रमरगीत’ से चार पद लिए गए हैं। ‘भ्रमरगीत’ में गोपियों की विरह-वेदना को चित्रित किया गया है। कृष्ण मथुरा जा चुके हैं। वहाँ से स्वयं तो नहीं लौटते परन्तु उद्धव के जरिए गोपियों के पास संदेश भेजते हैं। उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म और योग का संदेश देकर गोपियों की विरह-वेदना को शांत करने का प्रयास किया।
प्रेम संदेश की चाहक गोपियों ने उद्धव पर व्यंग्य-बाण छोड़े, जिसमें कृष्ण के प्रति उनका अनन्य प्रेम प्रकट हुआ है। पहले पद में गोपियों की शिकायत है कि यदि उद्धव कभी प्रेम के धागे में बंधे होते तो वे विरह-वेदना का अनुभव कर पाते। दूसरे पद में गोपियों ने स्वीकार किया है कि उनके मन की अभिलाषाएँ मन में ही रह गईं, इस स्वीकृति से कृष्ण के प्रति उनके प्रेम की गहराई का पता चलता है।
तीसरे पद में वे उद्धव की योग साधना को कड़वी-कड़वी जैसा बताकर अपने एकनिष्ठ प्रेम में दृढ़ विश्वास प्रकट करती हैं। चौथे पद में गोपियाँ उलाहना देती हैं कि कृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है, फिर पंत में कृष्ण को वे राजधर्म (प्रजा का हित) की याद दी जाती हैं।
शब्दार्थ-टिप्पण :
- बड़भागी – भाग्यवान
- अपरस – अलिप्त, नीरस
- सनेह – स्नेह, प्रेम
- तगा – धागा, बंधन
- अनुरागी – प्रेमी
- पुरइन – पात कमल का पत्ता
- दागी – दाग, धब्बा
- माह – में
- प्रीति-नदी – प्रेम की नदी
- पाऊ – पैर
- बौयौ – डुबोया
- परागी – मुग्ध होना
- अबला – नारी
- भोरी भोली
- गुर चाटी ज्यौं पागी – जिस प्रकार चौंटी गुड़ में लिपटी है, उसी प्रकार हम भी कृष्ण के प्रेम में अनुरक्त हैं
- माझ – में
- अवधि – समय
- अधार – आधार
- आवन – आगमन
- बिथा – व्यथा, पीड़ा
- बिरहिन – वियोग में जीनेवाली
- बिरह दही – विरह की आग में जल रही हैं।
- हुती – थी
- गुहारि – रक्षा के लिए पुकारना
- जितहिं तें – जहाँ से
- उत – उधर, वहाँ
- धार – योग की प्रवल धारा
- धीर – धैर्य
- मरजादा – मर्यादा, प्रतिष्ठा
- न लही – नहीं रही, नहीं रखी
- हारिल – हारिल एक पक्षी है जो अपने पैरों में सदैव एक लकड़ी लिए रहता है, उसे छोड़ता नहीं है
- लकरी – लकड़ी
- नंद-नंदन उर – पकरी नंद के नंदन कृष्ण को हमने भी अपने हृदय में बसाकर कसकर पकड़ा हुआ है
- निसि – रात
- जकरी – रटती रहती हैं।
- सु – वह
- करुई – कड़वी
- ब्याधि – रोग, पीड़ा पहुचानेवाली वस्तु
- करी – भोगा
- तिनहिं – उनको
- मन चकरी – जिनका मन स्थिर नहीं रहता
- मधुकर – भौरा, उद्धव के लिए गोपियों द्वारा प्रयुक्त संबोधन
- हुते – थे
- पठाए – भेजा
- आग – के पहले के
- पर हित – दूसरों की भलाई के लिए
- डोलत धाए – घूमते फिरते थे
- फेर – फिर
- पाइहै – प्राप्त कर लेंगी
- अनीति – अन्याय
- आपुन – स्वयं।