GSEB Solutions Class 11 Accounts Part 2 Chapter 6 हिसाबी पद्धति की प्रणालिकाएँ – धारणाएँ, संकल्पनाएँ और सिद्धांत

Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 11 Commerce Accounts Part 2 Chapter 6 हिसाबी पद्धति की प्रणालिकाएँ – धारणाएँ, संकल्पनाएँ और सिद्धांत Textbook Exercise Questions and Answers.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Accounts Part 2 Chapter 6 हिसाबी पद्धति की प्रणालिकाएँ – धारणाएँ, संकल्पनाएँ और सिद्धांतत

स्वाध्याय – अभ्यास

प्रश्न 1.
हिसाब लिखते समय और वित्तीय पत्रक तैयार करने के लिये उपयोग में लिये जानेवाले हिसाबी सिद्धांत अथवा ख्याल अथवा प्रणालिकाएँ अथवा नियमों या मान्यताओं की आवश्यकता समझाओ ।
उत्तर :
नामा लिखना मात्र व्यवसाय का उद्देश्य नहीं परंतु यह लिखे गये हिसाब सभी समझ सके और व्यवसाय से जुड़े सभी पक्षकार को उपयोगी सिद्ध हो सके इस प्रकार से लिख्ने हुए होने चाहिए । हिसाबों में एकरूपता बनाये रखने के लिये हिसाबी पत्रकों को तैयार करते समय हिसाबी सिद्धांत, प्रणालिकाएँ, मान्यताओं और ख्यालों का उपयोग किया जाता है । अगर ऐसा न किया जाये तो विविध पक्षकार दी गई जानकारी का अपने-अपने हिसाब से अर्थघटन कर अयोग्य निर्णय लेने की संभावनाएँ बढ़ जाती है । इसलिये नामा के द्वारा हिसाबी जानकारियाँ में समानता लाने के लिये और जानकारी देनेवाले और जानकारी प्राप्त करनेवाले दोनों एक ही दिशा में समझ सके इस उद्देश्य से हिसाबी ख्याल, सिद्धांत, प्रणालिकाएँ एवं मान्यताएँ आवश्यक है ।

निम्न बातें इन सभी जानकारियों को आसानी से स्पष्ट करती है :

  1. लिखे गये हिसाबी ख्याल तर्क पर आधारित होते है ।
  2. हिसाब लेखाकार की अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं की इस पर कोई असर नहीं होती ।
  3. इसके कारण हिसाब लिखनेवाले और पढ़नेवाले दोनों की समझ एकसमान रहती है ।
  4. इसके कारण हिसाबों की तुलना करना आसान रहता है ।
  5. यह हिसाब वास्तविकता से जुड़े होते है, जो व्यवसाय के लिये आधारशिला होते है ।
  6. ज्यादातर, लेखाकार इसका उपयोग करने से स्वीकृत हिसाबी सिद्धांत (GAAPS) के रूप में भी जाना जाता है ।
  7. यह सिद्धांत मार्गदर्शक अथवा आधार के रूप में स्वीकार किये जाते है ।

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प्रश्न 2.
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए :

1. चालू पेढ़ी का ख्याल (Going Concern) :
इस ख्याल के अनुसार यह माना जाता है कि जब व्यवसाय प्रारंभ किया जाता है तब यह माना जाता है कि व्यवसाय लंबे समय तक चलेगा । इसे चालू पेढ़ी का ख्याल कहा जाता है । हिसाबी पद्धति का यह एक महत्त्वपूर्ण ख्याल है । व्यवसाय लंबे समय तक चलनेवाला है इस अपेक्षा से लेनदार माल की पूर्ति करता है, सेवा देता है । कर्ज देनेवाली संस्थाएँ अधिक मात्रा में आसानी से कर्ज देती है । इस सिद्धांत के आधार पर स्थिर संपत्ति की घिसाई की गणना में आयुष्य को ध्यान में लिया जाता है ।

निम्नलिखित परिस्थितियों में चालू पेढ़ी का ख्याल ध्यान में नहीं लिया जायेगा –

  1. जब व्यावसायिक इकाई तीव्र आर्थिक तंगी में हो और कुछ ही समय में उसके विसर्जन की संभावना हो ।
  2. कंपनी का विसर्जन करने के लिये लिकवीडेटर की नियुक्ति की गई हो ।
  3. जब औद्योगिक इकाई को बीमार इकाई घोषित किया जाये ।
  4. निश्चित उद्देश्य के लिये स्थापित इकाई का उद्देश्य पूर्ण होने की तैयारी में हो ।

2. एकसूत्रता का ख्याल (Consistency Concept) : एकसूत्रता का ख्याल सूचित करता है कि हिसाब लिखते समय या वित्तीय पत्रकों की प्रस्तुती के समय धंधे में एकसमान हिसाबी नीतियाँ, विधि और पद्धतियों का उपयोग करना चाहिए और प्रति वर्ष एकसमान रहनी चाहिए । अर्थात् एक बार धंधाकीय इकाई ने जो पद्धति हिसाब गिनने के लिये तय की हो वो ही प्रत्येक वर्ष उसी पद्धति से हिसाब की गणना होनी चाहिए । ऐसी एकसूत्रता बनी रहने पर ही हिसाबों के बीच तुलना संभव होती है । अगर यह एकसूत्रता न बनी रहे तो हिसाबों की तुलना नहीं की जा सकती और हिसाब गलत जानकारी दे सकते है । बिना किसी ठोस कारण के हिसाबी पद्धतियों में परिवर्तन नहीं होना चाहिए । जैसे : स्टोक के मूल्यांकन की लागत किंमत या बाजार किंमत दोनों में से जो कम हो उसे ही ध्यान में लेना चाहिए । यहाँ एकसूत्रता के सिद्धांत का भंग नहीं होता । एकसूत्रता का सिद्धांत अलग-अलग समय में एकसूत्रता के संदर्भ में है । इसका मतलब यह नहीं है कि अलग-अलग प्रकार के व्यवहारों में एकसमान ही हिसाबी विधि या पद्धति होनी चाहिए ।

एकसूत्रता के ख्याल का अमल करने से व्यक्तिगत पूर्वग्रह दूर होते है, कारण कि लेखाकार को प्रतिवर्ष एकसमान नियम, पद्धति या विधि का पालन करना पड़ता है ।

3. संपादन का ख्याल (Accrual Concept) :
इस ख्याल को उपज-खर्च के संपादन के सिद्धांत के रूप में भी जाना जाता है । इस सिद्धांत के अनुसार यह माना जाता है कि जिस समय के दरम्यान की आवक या खर्च हो उसी समय की आवक या खर्च के रूप में उसे गिनना चाहिए, फिर चाहे उस समय में नकद प्राप्त न हुई हो या चुकायी न गयी हो । इस प्रकार, उपज या खर्च जिस समय से जुड़ी हो उस समय में उसका संपादन हुआ गिना जायेगा । इस ख्याल के अनुसार आय का संपादन हुआ तभी कहलायेगा जब वह आय की कमाई की गई हो या मिलनयोग्य हो । फिर चाहे वह रोकड़ में प्राप्त हुई हो या न हो ।

आय या खर्च के संपादन की दो अलग-अलग पद्धतियाँ (i) रोकड़ के आधार पर (Cash Basis) और (ii) संपादन के आधार पर (Accrual Basis) में रोकड़ के आधार पर आय तभी लिखी जाती है जब रोकड़ प्राप्त हो गई हो और खर्च तभी लिखा जायेगा जब वह वास्तव में चुकाया गया हो । अमुक प्रकार के व्यवसायी जैसे : डॉक्टर, वकील या चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट रोकड़ पद्धति के अनुसार हिसाब रखते है । जबकि कंपनियों को संपादन पद्धति के अनुसार हिसाब रखना अनिवार्य होता है । जबकि व्यापारी पेढ़ीयाँ संपादन के ख्याल के आधार पर आय या खर्च का लेखा हिसाबों में करती है ।

इस प्रकार, संपादन के ख्याल के अभ्यास में सिर्फ आय के संपादन के विषय में नहीं परंतु खर्च कब गिना जाये उसका भी समावेश हो जाता है ।

4. हिसाबी इकाई अथवा व्यावसायिक व्यक्ति अथवा इकाई का ख्याल अथवा अलग अस्तित्व का ख्याल (Accounting Entity Concept) : इस ख्याल को हिसाबी इकाई, व्यावसायिक व्यक्ति अथवा इकाई का ख्याल अथवा अलग अस्तित्व के ख्याल के रूप में भी जाना जाता है । इस ख्याल के अनुसार यह माना जाता है कि हिसाबी इकाई का अलग अस्तित्व है और उसके मालिक का अलग अस्तित्व है । किसी भी व्यवसाय के सही चित्र को प्राप्त करने के लिये व्यवसाय और मालिक को अलग-अलग रखना आवश्यक है । यह ख्याल किसी एक पेढ़ी या कंपनी के अलग-अलग विभाग या शाखा के लिये भी उपयोग में लिया जा सकता है जिससे सभी विभाग अपना स्वतंत्र हिसाब रखें और प्रत्येक विभाग का अपना अलग परिणाम प्राप्त हो जाये । इस ख्याल के अनुसार व्यवसाय को असर करनेवाले व्यवहार ही बही में लिखे जायेंगे । मालिक के निजी व्यवहारों को व्यवसाय की बही में नहीं लिखा जायेगा ।

अलग-अलग इकाई का मालिक कोई एक ही व्यक्ति हो उसके बावजूद प्रत्येक इकाई का अपना अलग अस्तित्व है ऐसा माना जाता है । अलग व्यक्तित्व के सिद्धांत के आधार पर ही मालिक की पूँजी व्यवसाय के आर्थिक चिट्ठा के जिम्मेदारी पक्ष में दर्शाया जाता है । व्यावसायिक इकाई के विभिन्न स्वरूप व्यक्तिगत मालिकी, साझेदारी पेढ़ी, कंपनी, सोसायटी या मंडली अथवा कानूनी रूप से मान्य कानूनी व्यक्तियों का इसमें समावेश किया जा सकता है ।

व्यक्तिगत मालिकी में हिसाबी इकाई का ख्याल इकाई के कानून के ख्याल की अपेक्षा अलग होता है । इस ख्याल के अनुसार मालिक और व्यवसाय दोनों को अलग व्यक्ति गिना जाता है । परंतु कानून पेढ़ी या उसके मालिक को अलग नहीं गिनता ।

मर्यादित जिम्मेदारीवाली साझेदारी पेढ़ी में साझेदारों की जिम्मेदारी अमर्यादित होने से उनकी निजी जिम्मेदारियों को चुकाने के बाद उनकी शुद्ध संपत्तियों का साझेदारी पेढ़ी की जिम्मेदारी चुकाने के लिये उपयोग हो सकता है ।

कानूनी दृष्टि से कंपनी एक कानूनन कृत्रिम व्यक्ति है । वह उसके अंशधारकों से अलग है । अंशधारक प्रत्येक अंश पर तय राशि चुका दे उसके बाद कंपनी की जिम्मेदारियों को चुकाने के लिये अंशधारक जिम्मेदार नहीं होते । इस प्रकार, कंपनी प्रकार के व्यवसाय में मालिक और व्यवसायी इकाई का अलग अस्तित्व आसानी से समझा जा सकता है ।

5. वित्तीय (मौद्रिक) माप का ख्याल (Money Measurement Concept) : सभी व्यवहारों को हिसाब में मुद्रा के स्वरूप में प्रस्तुत किया जाता है । हिसाबों को लिखने के लिये मुद्रा को एक सामान्य मापदंड के रूप में स्वीकृत किया है । मौद्रिक माप का ख्याल दो पद्धति से समझा जा सकता है । जिन व्यवहारों को द्रव्य के मापदंड के द्वारा मापा जा सकता हो वह सभी व्यवहार हिसाबों में मुद्रा के माप से ही लिख्खे जायेंगे और जिन व्यवहारों को द्रव्य में मापा न जा सके उन व्यवहारों को हिसाबों में लिखा नहीं जायेगा । इस ख्याल के आधार पर कितने ही मौद्रिक व्यवहारों में भौतिक इकाईयों का समावेश होने के बावजूद हिसाबों में इन सभी व्यवहारों को मुद्रा के मापदंड में मुद्रा से ही लिखे जायेंगे । इस प्रकार, राजस्व खर्च या राजस्व आय या संपत्ति या जिम्मेदारी के लिये मुद्रा ही मापदंड है और हिसाब लिखने के लिये मौद्रिक माप का ख्याल स्वीकृत हुआ है ।

इस ख्याल की दो महत्त्व की हानियाँ है :

  • जो कोई घटना व्यवसाय को अधिक असर करती हो परंतु अगर उसका मूल्य मुद्रा में दर्शाया न गया हो तो उसे हिसाबी बहीयों में नहीं लिखा जाता ।
  • मुद्रा का मूल्य बारंबार बदलता रहता है, परंतु व्यवहारों का लेखा हिसाबी बही में व्यवहार जिस तारीख को किये गये हो उसी तारीख का मूल्य दर्शाया जाता है । मुद्रा के मूल्य में होनेवाले परिवर्तन को यहाँ ध्यान में नहीं लिया जाता ।

इन मर्यादाओं के होने के बावजूद मौद्रिक माप का ख्याल सर्वस्वीकृत बना है । इस ख्याल को नहीं अपनाने से इकाई को होनेवाले इसके गंभीर परिणाम इसकी मर्यादाओं से अधिक होते है ।

6. हिसाबी समय अथवा हिसाबी अवधि का ख्याल (Periodicity Concept) : इसका दूसरा नाम हिसाबी अवधि (Accounting Period) का ख्याल भी है । यह ख्याल चालू पेढ़ी के ख्याल से जुड़ा है । चालू पेढी या सातत्य के ख्याल के अनुसार अगर व्यवसाय को गलत सूचना मिले और वह व्यवसाय लंबे समय तक चालू रहे ऐसी मान्यता स्वीकार की जाये तो व्यवसाय हानि करेगा या विसर्जित हो जायेगा । इसके अलावा व्यवसाय से जुड़े अन्य पक्षकार जैसे : लेनदार, विनियोगकर्ता, करवेरा अधिकारी वर्ग प्रत्येक वर्ष के दरम्यान के व्यवसाय की जानकारी प्राप्त करने की इच्छा रखता है । इसलिये व्यवसाय को अमुक निश्चित हिसाबी समय या अवधि में बाँट दिया जाता है । प्रत्येक हिसाबी समय के अंत में मौद्रिक (वित्तीय) पत्रकों को तैयार किया जाता है ।

हिसाबी समय सामान्यत: 12 मास का माना जाता है और हिसाबी समय के अनुसार हिसाब प्रति वर्ष के अंत में तैयार किया जाता है । 12 मास का समय इसलिये ध्यान में लिया जाता है कारण कि इस समय के दरम्यान तीनों ऋतुओं की धंधे पर होनेवाली असर ध्यान में आ जाती है । ऐसा हिसाबी वर्ष वार्षिक हिसाब के रूप में भी जाना जाता है । ऐसा हिसाबी वर्ष केलेन्डर वर्ष, संवत् वर्ष, सहकारी वर्ष या अन्य कोई भी समय हो सकता है । भारत में आयकर कानून के अनुसार प्रत्येक करदाता को प्रत्येक मौद्रिक वर्ष अर्थात् 1 अप्रेल से 31 मार्च के दिन पूरा होनेवाले 12 मास के समय की आय के विवरण की असर को दर्शाना होता है ।

भारत में सभी स्टोक एकस्टोक पर पंजीकृत तमाम कंपनीयों को त्रिमासिक मौद्रिक हिसाब तैयार करने होते है । कितनी इकाईयाँ खुद के आंतरिक उपयोग के लिये मासिक हिसाब तैयार करती है जिसका हिसाबी समय 1 मास का होता है ।

इस प्रकार, जब अमुक समय के अंतर पर हिसाब तैयार किये जाये उस समयावधि को हिसाबी समय या हिसाबी अवधि कहते हैं ।

7. पूर्ण प्रस्तुती अथवा पूर्ण उल्लेख का ख्याल (Full Disclosure Concept) : इस ख्याल को पूर्ण प्रस्तुती या पूर्ण उल्लेख के ख्याल के रूप में जाना जाता है । इस ख्याल के अनुसार वित्तीय पत्रकों में सभी बातों की संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए, जिससे उसका उपयोग करनेवालों के लिये उचित निर्णय लेने के लिये आवश्यक जानकारी वित्तीय पत्रकों से प्राप्त हो जाये । विनियोग करनेवाले वर्ग के हित से जुड़ी महत्त्वपूर्ण सभी जानकारियाँ वित्तीय पत्रकों में शामिल होनी चाहिए । इस जानकारी को छुपाना नहीं चाहिए ।

कंपनी कानून, 2013 की कलम 219(1) के अनुसार प्रत्येक कंपनी को अपनी सही आर्थिक परिस्थिति की जानकारी देनी अनिवार्य है । इसके अलावा कंपनी कानून की कलम 133 के अनुसार परिशिष्ट III में दिये गये नमूने के अनुसार होना चाहिए । हिसाबी मान्यता के अनुसार प्रस्तुती या उल्लेख्न करने की जानकारी अतिरिक्त पत्रक स्वरूप में दर्शानी रहेगी ।

पूर्ण प्रस्तुती के ख्याल का आधार हिसाबी पत्रकों के साथ अतिरिक्त जानकारी परिशिष्ट के रुप में देने की प्रथा है । जैसे : विनियोग की बाजारकिंमत की जानकारी, स्टोक के मूल्यांकन की पद्धति की जानकारी, संभवित जिम्मेदारी की जानकारी और कंपनी की हिसाबी नीतियों की जानकारी प्रस्तुती के लिये ही दी जाती है । हिसाबी नीति की यह माँग है कि प्रत्येक जानकारी की प्रस्तुती होनी आवश्यक है ।

महत्त्वत्ता का ख्याल (Materiality Concept) : यह ख्याल पूर्ण प्रस्तुती के ख्याल के साथ जुड़ा है । सभी महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ वित्तीय पत्रकों में प्रस्तुत करना चाहिए । महत्त्वता का आधार जानकारी के प्रस्तुतीकरण और विश्वसनीयता पर रहा हुआ है । दी गई जानकारी अगर असरदायक हो तब वह जानकारी महत्त्व की कहलायेगी ।

इस ख्याल के अनुसार यह माना जाता है कि वित्तीय पत्रकों में विवरण तभी लिखा जाना चाहिए जब वह विवरण उपयोग करनेवालों के लिये उपयोगी सिद्ध हो । बिन आवश्यक जानकारी का इसमें समावेश नहीं होना चाहिए सिर्फ आवश्यक महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ ही इसमें शामिल की होनी चाहिए । जैसे : स्टेशनरी खर्च में सभी स्टेशनरी पेंसिल, रबड़, सभी वस्तुओं का समावेश हो जाता है । इसलिये ऐसे छोटी-छोटी वस्तुओं का अलग से खाता खोलना बिनमहत्त्वपूर्ण है । ”

इसके अलावा कंपनी कानून, 2013 के परिशिष्ट III के लाभ-हानि के पत्रक तैयार करने की सामान्य सूचना में यह बताया गया है । की कंपनी की आय या खर्च की कोई एक रकम की आय 1% अथवा रु. 1,00,000 दोनों में से जो अधिक हो ऐसे आय या खर्च का विवरण अतिरिक्त जानकारी के स्वरूप में प्रस्तुत किया जायेगा । महत्त्वता के ख्याल के अनुसार हिसाबी लेखाकार की अपनी विवेकबुद्धि और निर्णय के आधार पर महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ लिखनी चाहिए, बिनआवश्यक घटनाएँ या जानकारी जो महत्त्वपूर्ण न हो ऐसी जानकारियों का लेखा नहीं करना चाहिए ।

9. दूरदर्शिता या बुद्धिमता का ख्याल (Predence Concept) : हिसाब लिखते समय तथा वित्तीय पत्रक तैयार करते समय लेखाकार बुद्धिमता या बुद्धिचातुर्य या दूरदर्शिता के ख्याल को ध्यान में . रखता है । वास्तव में व्यवसाय की जो भी परिस्थिति हो उससे अलग लाभ या हानि या संपत्ति की स्थिति दर्शाना वह योग्य नहीं है । जो भी परिस्थिति हो उससे अधिक अच्छी हो या उससे अधिक खराब परिस्थिति नहीं बतानी चाहिए ।

दूरदर्शिता के ख्याल के आधार पर बुद्धिमता या बुद्धिचातुर्य से जानकारी की प्रस्तुती से परिणामों की विश्वसनीयता बढ़ती है । इस वित्तीय पत्रकों का उपयोग करनेवाले को लंबे समय तक उसके हित की रक्षा होती है । इस प्रकार बुद्धिमता का ख्याल अस्तित्व में आता है । इस ख्याल के अनुसार संभवित आय या लाभ को ध्यान में नहीं लिया जाता परंतु संभवित हानि को ध्यान में लिया जाता है । इस सिद्धांत के आधार पर लेखाकार उपज का कम अंदाज और खर्च के दायित्व का अधिक अंदाज दर्शाकर सुरक्षित मार्ग का अनुसरण करता है । अनिश्चितता के सामने काम पूरा करने के लिये यह एक उत्तम मार्ग है और इसके द्वारा लेनदारों के हित का उचित रक्षण भी होता है ।

इस सिद्धांत की सीमा यह है कि इस सिद्धांत के उपयोग द्वारा जरूरी रकम से अधिक रकम का प्रावधान करके संपत्तियों का मूल्य संभव उतना कम दर्शाया जाये या अधिक खर्च दर्शाकर लाभ कम दर्शाने का दृष्टिकोण अपनाया जाये तब गुप्त अनामत उपस्थित होती है जो कानूनी दृष्टि से उचित नहीं है । बुद्धिमता के दो अंग निम्न अनुसार प्रस्तुत किये जा सकते है :

  1. खर्च या हानि तभी संपादित गिनी जायेगी जब उसके संबंध में योग्य संभावना हो ।
  2. आय तथा लाभ को तभी संपादित गिना जायेगा जब वह प्राप्त होगा ही ऐसी निश्चितता हो ।

10. लागत का ख्याल (Cost Concept): प्रत्येक व्यवहारों का लेखा उसकी वित्तीय या मौद्रिक लागत के आधार पर किया जाता है । अगर लागत है तब उसका लेखा जो भी वित्तीय लागत होगी उसी किंमत से होगी उससे अधिक या कम रकम से लेखा नहीं होगा । प्रत्येक हिसाबों का मूलभूत सिद्धांत यह है कि प्रत्येक व्यवहारों का लेखा उसकी लागत के आधार पर ही होना चाहिए । यह ख्याल अपनी खुद की मनमर्जी के अनुसार व्यवहारों . का लेखा नहीं करने देगा । इस ख्याल का मुख्य उपयोग संपत्ति की खरीदी के व्यवहारों में किया जाता है जहाँ हिसाब की राशि दो पक्षकारों के बीच तय किये गये किंमत के आधार पर होता है । इसके बावजूद कभी-कभार अंदाज का सहारा लेना पड़ता है । जैसे : संपत्ति पर घिसाई गिनने की पद्धति में आयुष्य का अंदाजित समय ही ध्यान में लेना पड़ता है ।

11. व्यवहारों की दोहरी असर अथवा द्विअसर का ख्याल (Dual Aspect Concept) : द्विलेखा नामा पद्धति के मूलभूत हिसाबी प्रणालिका के रूप में इसे जाना जाता है । इस ख्याल के अनुसार प्रत्येक व्यवहारों की हिसाब में दो असर दी जाती है, (i) लाभ देनेवाला और (ii) लाभ प्राप्त करनेवाला । जैसे : 20,000 रु. का यंत्र रोकड़ से खरीदा । इस व्यवहार में रु. 20,000 का यंत्र आता है और बदले में रु. 20,000 की रोकड़ जाती है । अगर यंत्र की उधार खरीदी की गई हो तब यंत्र प्राप्त होता है और उतनी ही राशि भविष्य में चुकाने की जिम्मेदारी उपस्थित होती है । इस प्रकार ‘प्रत्येक प्राप्त करनेवाला देनेवाला है’ और ‘प्रत्येक देनेवाला प्राप्त करनेवाला है ।’ प्रत्येक व्यवहार की दोहरी असर देने के लिये ‘उधार’ और ‘जमा’ इन शब्दों का उपयोग किया जाता है । हिसाबी पद्धति का यह ढाँचा द्विअसर के ख्याल के आधार पर रचित है ।

प्रत्येक व्यवहार की कुल उधार असर और जमा असर तथा उसकी खतौनी हमेशा समान ही होती है । नामा पद्धति की रचना के समय दोनों असर दी जाती है उसे द्विनोंधी नामा पद्धति कहते हैं ।

प्रत्येक इकाई में रहे हुए आर्थिक संसाधन संपत्ति कहलाते है । इस संपत्ति के सामने विविध पक्षकारों द्वारा लगाई गई पूँजी और जिम्मेदारी को शामिल किया जाता है । पूँजी यह व्यवसाय की संपत्ति के सामने का मालिक का दायित्व है । व्यक्तिगत मालिकी में उसे मालिकी की पूँजी, साझेदारी में साझेदारों की पूँजी, कंपनी स्वरूप में उसे मालिकों की पूँजी अथवा अंशधारकों की पूँजी के रुप में जाना जाता है । जिम्मेदारी यह लेनदारों का व्यवसाय की संपत्ति के सामने का एक है । इस प्रकार धंधे की सभी संपत्ति पर लेनदार और मालिकी का हक होने से ऐसे हक की राशि संपत्ति से अधिक नहीं हो सकती ।
हिसाबी समीकरण में उसे निम्न अनुसार दर्शाया जायेगा –
संपत्ति = जिम्मेदारी + पूँजी
A = L + C जिसमें A = Assets
L = Liabilities
C = Capital

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प्रश्न 3.
चालू पेढ़ी का ख्याल उदाहरण सहित समझाओ ।
उत्तर :
चालू पेढ़ी का ख्याल आधारित अमुक उदाहरण निम्न अनुसार है :
(i) अग्रीम चुकाया खर्च आर्थिक चिट्ठा के संपत्ति पक्ष में दर्शाया जाता है कारण कि धंधा लंबे समय तक चलनेवाला है और यह माना जाता है कि अग्रीम चुकाये खर्च का लाभ भविष्य में प्राप्त होगा ।

(ii) हिसाबी अवधि के अंत में वित्तीय पत्रक तैयार किये जाते है । चालू पेढ़ी के ख्याल के अनुसार व्यवसाय खूब लंबे समय तक चलनेवाला है, ऐसी परिस्थिति में इतने लंबे समय तक व्यवसाय से जुड़े पक्षकार धंधे के परिणाम की राह नहीं देखेंगे । ऐसा मानकर नियत समय के अंतर पर धंधे के लाभ-हानि या संपत्ति-दायित्व की जानकारी प्राप्त होती रहे इसके लिये नियमित हिसाब लिख्खे जाते है ।

(iii) प्रसारित राजस्व खर्च कितनी बार आर्थिक चिट्ठा के संपत्ति लेना पक्ष में बताये जाते है । कारण कि यह माना जाता है कि पेढ़ी लंबे समय तक चलनेवाली है और व्यवसाय को उस खर्च का लाभ लंबे समय तक प्राप्त होता रहेगा ।

(iv) स्थिर संपत्तियाँ आर्थिक चिट्ठे में घिसाई घटाने के बाद की किंमत से बताई जाती है । स्थिर संपत्तियाँ पुनः विक्रय के लिये नहीं परंतु लंबे समय तक उपयोग के लिये खरीदी जाती है, इसलिये चालू पेढ़ी के ख्याल के अनुसार आर्थिक चिट्टे में उसकी बाजार किंमत दर्शाने के बदले उसकी घिसाई घटाने के बाद की किंमत दर्शायी जाती है ।

(v) अर्धतैयार माल का मूल्यांकन उसके लिये हुए लागत के आधार पर किया जाता है । किसी भी समय व्यवसाय में अर्धतैयार माल पर
प्रक्रिया की जा सकती है । अगर व्यवसाय बंद हो जाये तब ऐसे अर्धतैयार माल की खूब ही कम किंमत प्राप्त होगी इस लिये इन परिस्थितियों में ऐसे स्टोक की प्राप्त होनेवाली किंमत ही गिननी चाहिए ।

परंतु चालू पेढ़ी के ख्याल के अनुसार हम यह मानते है कि उत्पादन की प्रक्रिया माल पूर्ण हो जाये तब तक चलेगी जिससे तैयार माल अस्तित्व में आयेगा । इसलिये ऐसे अर्धतैयार माल का मूल्यांकन उसकी प्राप्त होनेवाली किंमत के बदले उसके पीछे किये गये खर्च या लागत के आधार पर किया जाता है ।

प्रश्न 4.
एकसूत्रता का ख्याल उदाहरण सहित समझाओ ।
उत्तर :
एकसूत्रता के ख्याल का उदाहरण निम्न है :
(i) प्रत्येक वर्ष में घिसाई गिनने की पद्धति एकसमान होनी चाहिए । घिसाई की पद्धति में प्रत्येक वर्ष एकसत्रता बनी रहने से हिसाबीं पत्रकों का अभ्यास करनेवाले को अलग-अलग समय की लाभकारकता का अभ्यास करने में आसानी रहती है । अगर घिसाई घटती शेष पद्धति से गिना जा रहा हो तब प्रत्येक वर्ष उसी पद्धति से गिना जाना चाहिए । परंतु अगर एक वर्ष सीधी रेखा पद्धति हो और दूसरे वर्ष घटती शेष पद्धति हो तब उसका अभ्यास करनेवालों के लिये इस अंतर से लाभ-हानि पर क्या परिवर्तन होगा वह भी ध्यान में लेना पड़ेगा । परंतु अगर घिसाई की पद्धति में कोई परिवर्तन न हो तब दोनों वर्ष के लाभ-हानि की तुलना करना आसान रहेगा ।

(ii) स्टोक के मूल्यांकन की पद्धति वर्षोवर्ष एकसमान रखनी चाहिए उसमें बारंबार परिवर्तन नहीं करना चाहिए । अर्थात हिसाबी नीति
प्रतिवर्ष एकसमान रहनी चाहिए । यह एकसूत्रता के सिद्धांत पर आधारित है ।

प्रश्न 5.
संपादन का ख्याल उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :
संपादन का ख्याल के उदाहरण निम्न है :
(i) संपादन के सिद्धांत के आधार पर जिस समय का जो खर्च हो उसी समय ध्यान में लेना चाहिए । फरवरी, 2016 के मास का चुकाया किराया भले मार्च, 2016 में चुकाया जाये फिर भी फरवरी, 2016 के मास का ही खर्च गिना जायेगा ।

(ii) माल के विक्रय के व्यवहार में अगर पहले से रोकड़ प्राप्त हो गई हो परंतु जब तक माल की बिक्री न हो तब तक या जबतक ओर्डर के सामने माल की डिलीवरी न दी गई हो तब तक आवक संपादित नहीं गिनी जाती । अर्थात् जब तक प्राप्त होने योग्य या चुकाने योग्य व्यवहार संपूर्ण न हो जाये तब तक हिसाबों में कोई भी आवक संपादित हुई नहीं कहलायेगी ।

(iii) जब माल का उधार विक्रय किया जाये तब हिसाबों में आवक संपादित हुई गिनी जाती है, भले ही रोकड़ न मिली हो । यह माना जाता है कि जिस व्यक्ति को उधार माल बेचा गया है वह व्यक्ति करार के अनुसार कानूनी दृष्टि से इस माल के पैसे चुकाने के लिये जिम्मेदार माना जायेगा जिससे भविष्य में उससे राशि प्राप्त हो जायेगी । इस प्रकार, संपादन के ख्याल के अनुसार माल का विक्रय किया जाये तब भले ही रोकड़ मिली हो या न मिली हो परंतु विक्रय की आय प्राप्त हुई है ऐसा मान लिया जाता है ।

प्रश्न 6.
व्यावसायिक (धंधाकीय) इकाई का ख्याल उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :
व्यावसायिक इकाई या अलग व्यक्ति के ख्याल के कुछ उदाहरण निम्न है :

  • जब साझेदार पेढ़ी में पूँजी लाये तब यह राशि साझेदार के पूँजी खाते जमा की जाती है । यह ख्याल धंधाकीय इकाई के आधार पर रहा हुआ है, कारण कि हिसाबी दृष्टि से साझेदार और साझेदारी पेढ़ी यह दोनों अलग व्यक्ति है ।
  • जब धंधाकीय इकाई में से मालिक अपने निजी उपयोग के लिये कोई राशि लेता है तब ऐसी राशि मालिक के आहरण खाते उधार की जाती है । पेढ़ी का मालिक व्यवसाय का संपूर्ण मालिक होने के बावजूद हिसाबों के लिये मालिक और व्यावसायिक इकाई को अलग व्यक्ति गिना जाता है ।
  • करार के आधार पर साझेदारी पेढ़ी साझेदारों को पूँजी पर ब्याज देती है और साझेदारों के आहरण पर ब्याज वसूल करती है ।
    धंधाकीय इकाई के ख्याल के अनुसार साझेदार और साझेदारी पेढ़ी दोनों अलग व्यक्ति गिने जाते है ।
  • स्वतंत्र शाखा खुद का अलग सकल तलपट तैयार करती है कारण कि व्यावसायिक इकाई के ख्याल के अनुसार वह हिसाबों के लिये अलग व्यक्ति है ।

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प्रश्न 7.
एकसूत्रता का ख्याल उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :
एकसूत्रता का ख्याल के उदाहरण निम्न है :
(i) अगर किसी भी एक वर्ष के दरम्यान घटती शेष पद्धति से घिसाई गिना गया हो तब बाद के वर्षों में भी उसी पद्धति से घिसाई गिनना चाहिए । घिसाई की पद्धति में प्रत्येक वर्ष एकसूत्रता रखने से हिसाबी पत्रकों का अभ्यास करनेवालों के लिये लाभदायकता का अभ्यास करने में सरलता रहती है और इस प्रकार की तुलना करने के लिये किसी परिवर्तन के समायोजन की आवश्यकता नहीं रहती ।

(ii) स्टोक के मूल्यांकन की पद्धति प्रतिवर्ष एकसमान रखनी चाहिए। उसमें बारंबार परिवर्तन करना नहीं चाहिए । अर्थात् हिसाबी नीति या पद्धति प्रतिवर्ष एकसमान रहनी चाहिए । एक वर्ष में एक पद्धति से स्टोक का मूल्यांकन और दूसरे वर्ष में दूसरी पद्धति से मूल्यांकन योग्य नहीं है ।

प्रश्न 8.
मौद्रिक माप का ख्याल उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :
मौद्रिक माप के ख्याल को समझने के लिये निम्न उदाहरण है :

  • कोई कुशल उत्पादन संचालक ने त्यागपत्र दे दिया हो जिससे उत्पादन पर खूब गहरी असर होने के बावजूद लेखाकार के द्वारा उसका कोई उल्लेख न किया गया हो । यह घटना मुद्रा के मापदंड के द्वारा मापी नहीं जा सकती । इसलिये मौद्रिक माप के ख्याल के अनुसार इसका कोई हिसाबी लेखा नहीं किया जाता ।
  • कारखाना के कर्मचारियों की हड़ताल व्यवसाय को असर करनेवाली घटना होने के बावजूद उसका कोई हिसाबी लेखा नहीं किया जाता । यह घटना द्रव्य के मापदंड में मापी जा सके ऐसी न होने से मौद्रिक माप के सिद्धांत के अनुसार उसका कोई लेखा नहीं होता ।
  • मौद्रिक माप के ख्याल के अनुसार मुद्रा को हिसाब लिखने के एक सामान्य मापदंड के रूप में स्वीकार किया जाता है । बिक्री किये गये माल भौतिक इकाई के आधार पर नहीं परंतु बेचे गये माल के मौद्रिक मूल्य के आधार पर बिक्री का लेखा किया जाता है ।

प्रश्न 9.
हिसाबी समय या हिसाबी अवधि का ख्याल उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :
हिसाबी समय या हिसाबी अवधि के ख्याल पर आधारित उदाहरण निम्न है :

  • व्यवसाय का आयुष्य खूब ही लंबे समय तक और अनिश्चित समय तक का होता है इस ख्याल के आधार पर अंदाजित आयुष्य को अमुक निश्चित हिसाबी समय में बाँट दिया जाता है जिससे व्यावसायिक इकाई की प्रत्येक हिसाबी समय के लिये परिणाम और परिस्थिति जानी जा सके ।
  • हिसाबी समय या हिसाबी अवधि के ख्याल के आधार पर प्रत्येक वर्ष का लाभ-हानि खाता और वार्षिक चिट्ठा तैयार किये जाते है ।

प्रश्न 10.
पूर्ण प्रस्तुती (प्रकटीकरण) या संपूर्ण उल्लेख का ख्याल उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :
संपूर्ण प्रस्तुती (प्रकटीकरण) के उदाहरण निम्न है :

  • संपूर्ण प्रस्तुती के ख्याल के आधार पर प्रत्येक परिवर्तन की प्रस्तुती वित्तीय पत्रकों में होनी चाहिये और ऐसे परिवर्तन से होनेवाली असर का भी उल्लेख होना चाहिए । घिसाई की पद्धति में परिवर्तन यह महत्त्वपूर्ण बात है कारण कि इससे लाभ-हानि पर असर होती है और स्थिर संपत्ति की आर्थिक चिट्ठे में दर्शायी जानेवाली बही किंमत पर भी असर होती है ।
  • स्टोक के मूल्यांकन की पद्धति में परिवर्तन संबंधी जानकारी तथा उसके परिवर्तन से होनेवाली असर का उल्लेख भी वित्तीय पत्रकों में होना चाहिए ।

प्रश्न 11.
महत्त्वत्ता का ख्याल उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :
महत्त्वता के ख्याल का उदाहरण निम्न है :
(i) अगर अन्य कोई प्रावधान न हो तब, कंपनी के लाभ-हानि खाते में कोई भी आय या खर्च जो आवक का 1% अथवा रु. 1,00,000 दोनों में से जो अधिक हो उसकी अपेक्षा कम हो तब उसे अलग बताने की आवश्यकता नहीं रहती ।

(ii) तारीख 2.3.2015 से तारीख 1.4.2015 के समयावधि का लाईट बिल प्राप्त हुआ है, तथा हिसाबी वर्ष 31.3.15 के दिन पूरा होता है । इस परिस्थिति में 1 दिन का खर्च वर्ष 2015-16 में लिखने के बजाय संपूर्ण लाइट बिल तारीख 31.3.2015 के दिन पूरा होते वर्ष के लाभ-हानि खाते उधार किया जायेगा ।

(iii) कितनी बार हमारे द्वारा उपयोग में ली जानेवाली नोटबुक में अमुक पन्नों का हमारे द्वारा उपयोग किया जाता हो और अमुक पन्ने खाली छोड़ दिये जाते हो तब नोटबुक यह सैद्धांतिक रूप से व्यवसाय की संपत्ति गिनी जाने से उपयोगी और बिनउपयोगी पन्नों की गणना की जा सकती है । परंतु सामान्य रूप से कोई लेखाकार यह नहीं करता । जब यह नोटबुक खरीदी जाती हो तब उसकी किंमत खर्च के रूप में अपलिखित की जाती है ।

प्रश्न 12.
बुद्धिमता या बुद्धिचातुर्य या दूरदर्शिता का ख्याल उदाहरण सहित समझाओ ।
उत्तर :
बुद्धिमता या दूरदर्शिता का ख्याल के उदाहरण निम्न है :

  1. अंतिम स्टोक का मूल्यांकन उसकी मूलकिंमत अथवा बाजार किंमत दोनों में से जो कम हो उसी किंमत से गिनना चाहिए ।
  2. हिसाबों में लेनदार बट्टा अनामत का प्रावधान नहीं किया जाता ।
  3. हिसाबों में डूबत ऋण अनामत का प्रावधान किया जाता है ।
  4. हिसाबों में देनदार बट्टा अनामत का प्रावधान किया जाता है ।
  5. अगर विनियोग की किंमत में कमी हो तो उसे हिसाबी बहियों में लिखा जाता है ।
  6. दीर्घकालीन करार में अगर 25% से कम काम हुआ हो तब सभी लाभ भविष्य के लिये अनामत रखी जाती है और उसे चालू काम में परिवर्तित कर दिया जाता है ।
  7. किये जानेवाले तमाम संशोधनों और विकास खर्च का लाभ भविष्य में मिलनेवाला होने के बावजूद जिस वर्ष खर्च किया हो उस वर्ष के लाभ-हानि खाते उधार किया जाता है ।
  8. जिस माल का बीमा न लिया गया हो उस माल की चोरी से हुआ नुकसान का प्रावधान तुरंत कर दिया जाता है ।
  9. बैंक द्वारा शकमंद ऋण पर का ब्याज ब्याज खाते जमा करने के बदले ब्याज उचिंत खाते जमा किया जाता है । रूढिचुस्तता के सिद्धांत के अनुसार ऐसे ब्याज की राशि ब्याज खाते जमा करने के बदले ब्याज उचिंत खाते जमा किया जाता है ।

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प्रश्न 13.
द्विअसर का ख्याल उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर :
द्विअसर के ख्याल के उदाहरण निम्न है :

  • नकद से फर्निचर की खरीदी की । इस व्यवहार में संपत्ति अर्थात् फर्निचर में वृद्धि होगी और अन्य संपत्ति अर्थात् रोकड़ में कमी होगी ।
  • अगर रु. 8,000 का माल उधार खरीदा । तब इस व्यवहार के अनुसार स्टोक अथवा संपत्ति में रु. 8,000 की वृद्धि होगी और लेनदार अथवा जिम्मेदारी में रु. 8,000 की वृद्धि होगी अर्थात् द्विअसर के सिद्धांत के अनुसार संपत्ति में रु. 8,000 की वृद्धि होती है और दायित्व में रु. 8,000 की वृद्धि होती है ।

प्रश्न 14.
इन्स्टिट्युट ओफ चार्टर्ड एकाउन्टन्ट्स ओफ इंडिया (ICAI) के द्वारा किन तीन ख्यालों को मूलभूत हिसाबी मान्यताएँ गिनी जाती
उत्तर :
इन्स्टिट्युट ओफ चार्टर्ड एकाउन्टन्टस ओफ इंडिया (ICAI) के द्वारा निम्न तीन ख्यालों को मूलभूत हिसाबी मान्यताएँ गिनी जाती है :

  1. चालू पेढ़ी (Going Concern)
  2. एकसूत्रता (Consistency)
  3. संपादन (Accrual)

प्रश्न 15.
निम्न विधान अथवा परिस्थितियाँ किस हिसाबी सिद्धांत, ख्याल या प्रणालिकाओं से जुड़ा है यह बताइए :

(1) अग्रीम चुकाया राजस्व खर्च आर्थिक चिट्ठा में संपत्ति के रूप में दर्शाया जाता है ।
उत्तर :
अग्रीम चुकाया राजस्व खर्च आर्थिक चिट्ठा में संपत्ति के रूप में दर्शाया जाता है, इसमें चालू पेढ़ी का ख्याल रहा हुआ है ।

(2) अर्धतैयार माल का मूल्यांकन उसकी प्राप्त होनेवाली किंमत के आधार पर नहीं परंतु उसकी लागत के आधार की जाती है ।
उत्तर :
अर्धतैयार माल का मूल्यांकन उसकी प्राप्त होनेवाली किंमत के आधार पर नहीं परंतु उसकी लागत के आधार पर की जाती है, इसमें चालू पेढ़ी का ख्याल रहा हुआ है ।

(3) हिसाबी समय के अंत में वित्तीय पत्रक तैयार किये जाते है ।
उत्तर :
हिसाबी समय के अंत में वित्तीय पत्रक तैयार किये जाते है, इसमें हिसाबी समय या अवधि का ख्याल/अथवा चालू पेढ़ी का ख्याल रहा हुआ है ।

(4) अगर किसी एक वर्ष में सीधी रेखा की पद्धति से घिसाई का प्रावधान किया जाता हो तब वर्षोवर्ष इसी पद्धति का अनुसरण करना चाहिये ।
उत्तर :
अगर किसी एक वर्ष में सीधी रेखा की पद्धति से घिसाई का प्रावधान किया जाता हो तब वर्षोवर्ष इसी पद्धति का अनुसरण करना चाहिए, इसमें एकसूत्रता का ख्याल रहा हुआ है ।

(5) घिसाई और स्टोक मूल्यांकन की पद्धति में बारंबार परिवर्तन नहीं करना चाहिए ।
उत्तर :
घिसाई और स्टोक मूल्यांकन की पद्धति में बारंबार परिवर्तन नहीं करना चाहिए, इसमें एकसूत्रता का ख्याल रहा हुआ है ।

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(6) जब माल की उधार खरीदी की जाये तब इस खरीदी का लेखा हिसाबों में होना चाहिए फिर भले ही इस खरीदी के लिये रोकड़ में भुगतान न हुआ हो कारण कि जब माल की खरीदी होती हो तब राशि चुकाने योग्य होती है ।
उत्तर :
जब माल की उधार खरीदी की जाये तब इस खरीदी का लेखा हिसाबों में होना चाहिए फिर भले ही इस खरीदी के लिये रोकड़ में भुगतान न हुआ हो कारण कि जब माल की खरीदी होती हो तब राशि चुकाने योग्य होती है, इसमें संपादन का ख्याल रहा हुआ है ।

(7) जब साझेदार साझेदारी पेढ़ी में से कोई राशि निकाले तब साझेदारी पेढ़ी यह राशि साझेदार के आहरण खाते उधार करेगी ।
उत्तर :
जब साझेदार साझेदारी पेढ़ी में से कोई राशि निकाले तब साझेदारी पेढ़ी यह राशि साझेदार के आहरण खाते उधार करेगी कारण कि इसमें हिसाबी इकाई का ख्याल रहा हुआ है ।

(8) पेढ़ी के महत्त्वपूर्ण कर्मचारी की मृत्यु हो तब यह घटना व्यवसाय को असर करनेवाली महत्त्वपूर्ण बात होने के बावजूद उसका कोई हिसाबी लेखा नहीं होता ।
उत्तर :
पेढ़ी के महत्त्वपूर्ण कर्मचारी की मृत्यु हो तब यह घटना व्यवसाय को असर करनेवाली महत्त्वपूर्ण बात होने के बावजूद उसका कोई हिसाबी लेखा नहीं होता कारण कि इसमें मौद्रिक माप का ख्याल रहा हुआ है ।

(9) किसी विपरीत जानकारी के अभाव में व्यवसाय का खूब ही लंबा आयुष्य माना जाता है और इसी वजह से ऐसा आयुष्य अनुकूल हिसाबी समय में बाँटा दिया जाता है जिससे ऐसे प्रत्येक हिसाबी समय के अंत में इकाई का परिणाम और परिस्थिति जानी जा सके ।
उत्तर :
किसी विपरीत जानकारी के अभाव में व्यवसाय का खूब ही लंबा आयुष्य माना जाता है और इसी वजह से ऐसा आयुष्य अनुकूल हिसाबी समय में बाँट दिया जाता है जिससे ऐसे प्रत्येक हिसाबी समय के अंत में इकाई का परिणाम और परिस्थिति जानी जा सके, कारण कि इसमें हिसाबी समय/अवधि का ख्याल रहा हुआ है ।

(10) अगर कोई अन्य प्रावधान न हो तब, कंपनी के लाभ-हानि खाते में कोई भी आय या खर्च जो आय का 1% अथवा रु. 1,00,000 दोनों में से जो अधिक हो उसकी अपेक्षा कम हो उसे अलग बताने की आवश्यकता नहीं है ।
उत्तर :
अगर कोई अन्य प्रावधान न हो तब, कंपनी के लाभ-हानि खाते में कोई भी आय या खर्च जो आय का 1% अथवा रु. 1,00,000 दोनों में से जो अधिक हो उसकी अपेक्षा कम हो उसे अलग बताने की आवश्यकता नहीं है कारण कि इसमें महत्त्वता का ख्याल रहा हुआ है ।

(11) स्टोक मूल्यांकन पद्धति में परिवर्तन की जानकारी और उसकी असर वित्तीय पत्रकों में दर्शानी चाहिए ।
उत्तर :
स्टोक मूल्यांकन पद्धति में परिवर्तन की जानकारी और उसकी असर वित्तीय पत्रकों में दर्शानी चाहिए कारण कि इसमें संपूर्ण प्रस्तुती (प्रकटीकरण) का ख्याल रहा हुआ है ।

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(12) घिसाई की पद्धति में परिवर्तन की जानकारी और उसकी असर वित्तीय पत्रकों में दर्शानी चाहिए ।
उत्तर :
घिसाई की पद्धति में परिवर्तन की जानकारी और उसकी असर वित्तीय पत्रकों में दर्शानी चाहिए कारण कि इसमें संपूर्ण प्रस्तुती (प्रकटीकरण) का ख्याल रहा हुआ है ।

(13) हिसाबों में देनदार पर बट्टा अनामत का प्रावधान किया जाता है, परंतु लेनदारों पर बट्टा अनामत का प्रावधान नहीं किया जाता ।
उत्तर :
हिसाबों में देनदार पर बट्टा अनामत का प्रावधान किया जाता है, परंतु लेनदारों पर बट्टा अनामत का प्रावधान नहीं किया जाता कारण कि इसमें दूरदर्शिता या बुद्धिमता का ख्याल रहा हुआ है ।

(14) जैसे ही चोरी हो जाये अर्थात् तुरंत बीमा न लिया गया हो ऐसे यंत्र की चोरी से हुआ नुकसान संबंधी प्रावधान हिसाबी बही में किया जाता है । बाद में भले ही पुलिस द्वारा चोर पकड़ लिया जाये तब यह यंत्र वापस प्राप्त करने की संभावना हो ।
उत्तर :
जैसे ही चोरी हो जाये अर्थात् तुरंत बीमा न लिया गया हो ऐसे यंत्र की चोरी से हुआ नुकसान संबंधी प्रावधान हिसाबी बही में किया जाता है । बाद में भले ही पुलिस द्वारा चोर पकड़ लिया जाये तब यह यंत्र वापस प्राप्त करने की संभावना हो कारण कि इसमें रूढिचुस्तता या बुद्धिमता का ख्याल रहा हुआ है ।।

(15) अनिल ने रु. 10 लाख में विमल के पास से एक दुकान खरीदी । अनिल को लगता है कि खूब ही अच्छा सौदा हो गया है । कारण कि यह दुकान मौके की (योग्य जगह) जगह पर आयी हुई है, उसने इस दुकान के लिये 20 लाख भी चुका दिया होता । इसके विपरीत, विमल ऐसा मानता है कि यह दुकान उसके लिये नसीबदार नहीं थी और उसने यह दुकान 5 लाख में भी बेच दी होती । इस भावना के आधार पर, भले यह व्यवहार रु. 10 लाख में हुआ है, परंतु अनिल उसका लेखा खुद की बही में रु. 20 लाख में करना चाहता है और वीमल खुद की बही में रु.5 लाख में लिखना चाहता है, परंतु दोनों के लेखाकार का कहना है कि किसी हिसाबी सिद्धांत के आधार पर इस व्यवहार का लेखा दोनों की बही में रु. 10 लाख से ही होगा; परंतु यह सिद्धांत या प्रणालिका या ख्याल उन्हें याद नहीं है ।
उत्तर :
उपरोक्त परिस्थिति में अनिल और विमल दोनों पक्षकारों के लेखाकार के द्वारा लागत के ख्याल के आधार पर दोनों की बही में रु. 10 लाख से ही लेखा किया जायेगा ।

(16) यह याद रखना चाहिए कि प्रत्येक व्यवहार जिसका हिसाबी बही में लेखा होता है उसकी असर कम से कम दों खाते को होती है और हिसाबी पद्धति इन दोनों असर को लिखने के लिये तैयार की जाती है । इसलिये नामा पद्धति को ‘दिनोंधी पद्धति’ अथवा ‘दिनोंधी नामा पद्धति’ कहा जाता है ।
उत्तर :
प्रत्येक व्यवहार जिसका हिसाबी बही में लेना होता है उसकी असर कम से कम दो खाते को होती है और हिसाबी पद्धति इन दोनों असर को लिखने के लिये तैयार की जाती है । इसलिये नामा पद्धति को ‘द्विनोंधी पद्धति’ अथवा ‘द्विनोंधी नामा पद्धति’ कहा जाता है, कारण कि इसमें द्विअसर का ख्याल रहा हुआ है ।

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(17) किसी इकाई में उत्कृष्ठ गुणवत्ता संचालन पद्धति हो और उससे इकाई की प्रतिष्ठा (शाख) बढ़ती हो तो भी ऐसी उत्कृष्ठ गुणवत्ता संचालन पद्धति का लेखा हिसाबी बही में नहीं होता ।
उत्तर :
किसी इकाई में उत्कृष्ठ गुणवत्ता संचालन पद्धति हो और उससे इकाई की प्रतिष्ठा बढ़ती हो तो भी ऐसी उत्कृष्ठ गुणवत्ता संचालन पद्धति का लेखा हिसाबी बही में नहीं होता कारण कि इसमें मौद्रिक माप का ख्याल रहा हुआ है ।

(18) ग्राहक के पास से पहले से प्राप्त राशि बिक्री खाते जमा नहीं किया जाता ।
उत्तर :
ग्राहक के पास से पहले से प्राप्त राशि बिक्री खाते जमा नहीं किया जाता कारण कि इसमें संपादन का सिद्धांत रहा हुआ है ।

(19) आर्थिक चिट्ठा में पूँजी को जिम्मेदारी (दायित्व) पक्ष में दर्शाया जाता है ।
उत्तर :
आर्थिक चिट्ठा में पूँजी को जिम्मेदारी पक्ष में दर्शाया जाता है, कारण कि इसमें धंधाकीय इकाई का ख्याल रहा हुआ है ।

(20) स्वतंत्र शाखा खुद का अलग सकल तलपट तैयार करती है ।
उत्तर :
स्वतंत्र शाखा खुद का अलग सकल तलपट तैयार करती है, कारण कि इसमें धंधाकीय इकाई का ख्याल रहता है ।

(21) आंकड़ों (संख्याओं) की सत्यता बनी रहे तब सकल तलपट में उधार शेष और जमा शेष का योग हमेशा समान रहता है ।
उत्तर :
संख्याओं की सत्यता बनी रहे तब सकल तलपट में उधार शेष और जमा शेष का योग हमेशा समान होता है कारण कि इसमें द्विअसर का ख्याल रहा हुआ है ।

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प्रश्न 16.
निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

(1) व्यवसाय का मालिक व्यवसाय में से रु. 3,000 का माल ले जाता है, यह रकम किस खाते उधार होगी ? किस हिसाबी ख्याल के अनुसार ?
उत्तर :
व्यवसाय का मालिक व्यवसाय में से रु. 3,000 का माल ले जाता है यह रकम धंधाकीय इकाई के ख्याल के अनुसार मालिक के आहरण खाते उधार की जायेगी ।

(2) आर्थिक चिट्ठा में स्थायी संपत्ति उसकी लागत किंमत अथवा बाजार किंमत दोनों में से एक किंमत पर दर्शायी जाती है, यह विधान सत्य है या असत्य ? अगर असत्य हो तो उसे सुधारकर फिर से सत्य विधान लिखो और उसके साथ जुड़ा सिद्धांत बताओ ।
उत्तर :
यह विधान असत्य है ।
‘आर्थिक चिट्ठा में स्थायी संपत्ति उसकी घिसाई घटाने के बाद की किंमत से दर्शायी जाती है ।’ यह चालू पेढ़ी के सिद्धांत से जुड़ा है ।

(3) किस हिसाबी ख्याल के अनुसार बैंक शंकास्पद ऋण पर का ब्याज उचिंत खाते जमा करती है ?
उत्तर :
दूरदर्शिता या बुद्धिमता के ख्याल के आधार पर बैंक शंकास्पद ऋण पर का ब्याज उचिंत खाते जमा करती है ।

(4) एक व्यापारी ने उसके मित्र के पास से ता. 1.06.2016 के दिन वार्षिक 12% ब्याज की दर से रु. 1,00,000 की लोन ली है । इस पर वार्षिक ब्याज प्रति वर्ष तारीख 1 जून के रोज चुकाना है । प्रथम वार्षिक ब्याज तारीख 1.06.2017 के रोज चुकाना है । इस व्यापारी का हिसाब प्रति वर्ष तारीख 31 मार्च के दिन पूरा होता है । इस व्यापारी की बही में ता. 31.3.2017 के दिन पूरा
होते वर्ष के लिये इस ब्याज का कोई लेखा किया जायेगा ? अगर हा, तो कितनी राशि का ? किस हिसाबी ख्याल के अनुसार ?
उत्तर :
उपरोक्त परिस्थिति में व्यापारी की बही में तारीख 31.3.2017 के दिन पूरा होते वर्ष के लिये ब्याज का लेखा किया जायेगा । तारीख 31.3.2017 के दिन तारीख 31.3.2017 तक चढ़ गये ब्याज का लेखा किया जायेगा । तारीख 31.3.2017 तक संपादित हुआ ब्याज 12 10 रु. 10,000 (1,00,000 × \(\frac {12}{100}\) × \(\frac {10}{12}\) ) होगा जो तारीख 1.06.2016 से तारीख 31.03.2017 तक ऐसे 10 मास के लिये होगा । यह लेखा संपादन के सिद्धांत के आधार पर किया जायेगा ।

(5) एक कर्मचारी ने कंपनी के सामने उसे नौकरी में से निकालने के बदले रु. 1,00,000 के मुआवजे की माँग की है । कंपनी के एडवोकेट के अंदाज के अनुसार रु. 40,000 की राशि चुकाने योग्य संभावना है । इस बारे में कंपनी की बही में कोई लेना होगा ? अगर हा, तो कितनी राशि का ? किस सिद्धांत के अनुसार ? अगर यह दावा अदालत में सुरक्षित (Panding) हो तब मुआवजा संबंधी इस दावे का विवरण वित्तीय पत्रकों में दर्शाना पड़ेगा ? अगर हा, तो किस ख्याल के अनुसार ?
उत्तर :
उपरोक्त परिस्थिति में कंपनी की बही में लेखा, किया जायेगा । रु. 40,000 का लेखा होगा कारण कि यह राशि योग्य खर्च या हानि है । यह दूरदर्शिता या बुद्धिमता के सिद्धांत के अनुसार होगा कारण कि इस ख्याल के अनुसार जब खर्च या हानि की योग्य संभावना हो तब उस खर्च को ध्यान में लेना चाहिए । जबतक इस केस का निर्णय न आये तब तक रु. 1,00,000 के संभवित दायित्व की राशि वित्तीय पत्रक में संभवित दायित्व के रूप में दर्शानी चाहिए । यह उल्लेख संपूर्ण प्रस्तुती (प्रकटीकरण) सिद्धांत के आधार पर होगा ।

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