GSEB Solutions Class 11 Economics Chapter 11 आर्थिक विचार

GSEB Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Economics Chapter 11 आर्थिक विचार Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Economics Chapter 11 आर्थिक विचार

GSEB Class 11 Economics आर्थिक विचार Text Book Questions and Answers

स्वाध्याय

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए ।

1. विश्व महामंदी के समय खर्च, आय और रोजगार से सम्बन्धित समग्रलक्षी आर्थिक विचार प्रस्तुत करनेवाले ………………………
(A) एडम स्मिथ
(B) प्रो. मार्शल
(C) प्रो. केईन्स
(D) रोबिन्स
उत्तर :
(C) प्रो. केईन्स

2. . भारतीय ग्रंथों में अर्थशास्त्र से सम्बन्धित प्रस्तुत हुए विचारों में किस ग्रंथ का अग्रस्थान है ?
(A) मनुस्मृति
(B) कौटिल्य का अर्थशास्त्र
(C) शुक्रनीति
(D) रामायण
उत्तर :
(B) कौटिल्य का अर्थशास्त्र

3. कौटिल्य ने राज्य की आय के मुख्य कितने स्रोत दर्शाये हैं ?
(A) सात
(B) पाँच
(C) नौ
(D) आठ
उत्तर :
(A) सात

4. ‘अन टू द लास्ट’ के लेखक कौन हैं ?
(A) थोरो
(B) रस्किन
(C) तोलस्तोय
(D) गाँधीजी
उत्तर :
(B) रस्किन

5. ट्रस्टीशिप (अभिभावक) का सिद्धांत किसने प्रस्तुत किया ?
(A) कौटिल्य
(B) पंडित दीनदयाल
(C) गाँधीजी
(D) केईन्स
उत्तर :
(C) गाँधीजी

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6. ‘एकात्म मानववाद’ के पुरस्कर्ता …………………………
(A) गाँधीजी
(B) पंडित दीनदयाल
(C) कौटिल्य
(D) प्रो. मार्शल
उत्तर :
(B) पंडित दीनदयाल

7. श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति के संदर्भ में पंडित दीनदयाल ने कौन-सा सिद्धांत अपनाने के लिए कहा है ?
(A) प्रत्येक व्यक्ति को काम
(B) प्रत्येक व्यक्ति को अनाज
(C) प्रत्येक व्यक्ति को आराम
(D) प्रत्येक व्यक्ति को मकान
उत्तर :
(A) प्रत्येक व्यक्ति को काम

8. विश्व महामंदी का समय ……………………………..
(A) 1929-30
(B) 1930-31
(C) 1931-32
(D) 1932-33
उत्तर :
(A) 1929-30

9. निम्न में से किसने पूर्ण राष्ट्र का स्वप्न देखा था ?
(A) गाँधीजी
(B) पंडित दीनदयाल
(C) कौटिल्य
(D) विवेकानंद
उत्तर :
(C) कौटिल्य

10. शुद्धता के साथ संपूर्ण ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ ग्रंथ का प्रकाशन वर्ष ………………………
(A) 1908
(B) 1901
(C) 1919
(D) 1909
उत्तर :
(D) 1909

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11. राजा को वर्ष में कितनी बार कर लेना चाहिए ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
उत्तर :
(A) एक

12. कौटिल्य ने भूमि को कितने प्रकारों में विभाजित किया ?
(A) चार
(B) दो
(C) तीन
(D) एक
उत्तर :
(B) दो

13. गाँधीजी का जन्म किस राज्य में हुआ था ?
(A) महाराष्ट्र
(B) मध्य प्रदेश
(C) गुजरात
(D) पंजाब
उत्तर :
(C) गुजरात

14. गाँधीजी की कल्पित अर्थव्यवस्था के केन्द्र में ……………………..
(A) शहर थे ।
(B) नगर थे ।
(C) धनवान थे ।
(D) गाँव थे ।
उत्तर :
(D) गाँव थे ।

15. मानवजीवन के दुर्भाग्य के कितने कारण बताये ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
उत्तर :
(C) तीन

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16. पंडित दीनदयाल का जन्म कब हुआ ?
(A) 25 सितम्बर, 1916
(B) 25 दिसम्बर, 1916
(C) 25 नवम्बर, 1916
(D) 25 फरवरी, 1916
उत्तर :
(A) 25 सितम्बर, 1916

17. पंडित दीनदयाल ने किस योजना का विश्लेषण किया ?
(A) पहली
(B) दूसरी
(C) तीसरी
(D) पाँचवी
उत्तर :
(B) दूसरी

18. पोलिटिकल डायरी किसकी कृति है ?
(A) गाँधीजी की
(B) नेहरूजी की
(C) पंडित दीनदयाल की
(D) थोरो की
उत्तर :
(C) पंडित दीनदयाल की

19. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने पूर्ण रोजगारी के लक्ष्य को महत्त्व देते हुए सूत्र दिया कि
(A) हर व्यक्ति को काम दो
(B) हर व्यक्ति को आराम दो
(C) हर हाथ को काम हर खेत में पानी
(D) हर हाथ में उद्योग
उत्तर :
(C) हर हाथ को काम हर खेत में पानी

20. ‘श्रमेव जयते’ योजना कब शुरू हुयी ?
(A) 16 अक्टूबर, 2014
(B) 16 अक्टूबर, 2004
(C) 16 अक्टूबर, 2015
(D) 16 अक्टूबर, 2009
उत्तर :
(A) 16 अक्टूबर, 2014

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के एक वाक्य में उत्तर लिखिए ।

1. ‘किन भारतीय ग्रंथों में अर्थशास्त्र से संबंधित आर्थिक विचार प्रस्तुत हुये हैं ?
उत्तर :
महाभारत के शांतिपर्व, मनुस्मृति, शुक्रनीति और कामंदकीय नीतिसार जैसे भारतीय ग्रंथों में अर्थशास्त्र से संबंधित आर्थिक विचार प्रस्तुत हुये हैं ।

2. शुद्धता के साथ संपूर्ण ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ ग्रंथ का प्रकाशन किसने और कब किया ?
उत्तर :
शुद्धता के साथ संपूर्ण ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ ग्रंथ का प्रकाशन पंडित श्यामशास्त्री ने ई.स. 1909 में किया ।

3. कौटिल्य के मतानुसार अर्थशास्त्र का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
कौटिल्य के मतानुसार अर्थशास्त्र अर्थात् ‘मनुष्य की वृत्ति अर्थ है, मनुष्य के आवासवाली भूमि अर्थ है । ऐसी पृथ्वी के लाभ, मरम्मत, निभाव खर्च, पशुपालन के उपाय दशनिवाला शास्त्र अर्थात् अर्थशास्त्र ।’

4. कौटिल्य के मतानुसार बाह्य शुल्क का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
कौटिल्य के मतानुसार बाह्य शुल्क (कर) अर्थात् अपने राष्ट्र में उत्पन्न होनेवाली वस्तु पर लिया जानेवाला कर या शुल्क ।

5. थोरों के विचार में से गाँधीजी ने कौन-सा विचार अपनाया ?
उत्तर :
थोरों के विचार में से गाँधीजी ने ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ अपनाया ।

6. गाँधीजी के मतानुसार ‘सर्वोदय’ का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
गाँधीजी के मतानुसार – ‘निराधार, दीन, हीन, सब का उदय हो उसे सर्वोदय कहते हैं ।’ ‘संक्षिप्त में सर्व का उदय अर्थात् सर्वोदय ।’

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7. भारत में आर्थिक समस्या के हल के लिए पंडित दीनदयाल ने तीसरे विकल्प के रूप में कौन-सी नीति सूचित की थी ?
उत्तर :
भारत में आर्थिक समस्या के हल के लिए पंडित दीनदयाल ने तीसरे विकल्प के रूप में ‘एकात्म मानववाद’ नीति सूचित की थी ।

8. पंडित दीनदयाल के मतानुसार भारत में उत्पादन की कौन-सी पद्धति अधिक अनुकूल है ?
उत्तर :
पंडित दीनदयाल के मतानुसार भारत में उत्पादन की श्रमप्रधान पद्धति अधिक अनुकूल है ।

9. विश्व महामंदी का समय बताइए ।
उत्तर :
विश्व महामंदी का समय 1929-30 है ।

10. कौटिल्य का मूल नाम क्या था ?
उत्तर :
कौटिल्य का मूल नाम विष्णुगुप्त था ।

11. कौटिल्य के अनुसार सत्ता की चाबी किसमें है ?
उत्तर :
कौटिल्य के अनुसार सत्ता की चाबी ‘अर्थ’ में है ।

12. कौटिल्य के अनुसार किनको करमुक्ति देनी चाहिए ?
उत्तर :
कौटिल्य के अनुसार आचार्य, पुरोहित और क्षत्रियों को करमुक्ति देनी चाहिए ।

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13. कौटिल्य के अनुसार राज्य की आय स्रोत कितने और कौन-कौन से हैं ?
उत्तर :
कौटिल्य के अनुसार राज्य की आयस्रोत सात हैं :

  1. नगर
  2. ग्राम
  3. सिंचाई
  4. खान
  5. जंगल
  6. पशुपालन
  7. व्यापार-वाणिज्य का समावेश होता है ।

14. राजकोष अधिकांशतः किस स्वरूप में होता है ?
उत्तर :
राजकोष अधिकांशतः वस्तु स्वरूप में होता है ।

15. आभ्यन्तर शुल्क (कर) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
राज्य या राजधानी में उत्पादित वस्तु पर लिये जानेवाले कर को आभ्यन्तर शुल्क (कर) कहते हैं ।

16. आतिथ्य शुल्क (कर) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
विदेशों में से लायी जानेवाली वस्तु पर लिये जानेवाले कर को आतिथ्य शुल्क (कर) कहते हैं ।

17. कौटिल्य के अनुसार पशुओं के तीन प्रकार कौन-कौन से है ?
उत्तर :
कौटिल्य के अनुसार पशुओं के तीन प्रकार हैं :

  1. पालतू पशु
  2. दूध देनेवाले पशु
  3. मृग्यावन (जंगल) के पशु

18. कौटिल्य के विचार किससे प्रेरित थे ?
उत्तर. :
कौटिल्य के विचार राजनैतिक और आर्थिक चिंतन से प्रेरित थे ।

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19. गाँधीजी का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर :
गाँधीजी का जन्म गुजरात के पोरबंदर नामक शहर में हुआ था ।

20. गाँधीजी को ‘अन टू द लास्ट’ पुस्तक में से क्या प्रेरणा मिली ?
उत्तर :
गाँधीजी को ‘अन टू द लास्ट’ पुस्तक में से सर्वोदय की प्रेरणा मिली ।

21. रशियन के महान चिंतक लियो तोलस्तोय की किन-किन पुस्तकों का प्रभाव गाँधीजी पर पड़ा ?
उत्तर :
रशियन के महान चिंतक लियो तोलस्तोय की ‘वॉट सेल वी डू देन’ और ‘द किंगडम ऑफ गोड इज विधिन यू’ पुस्तकों का गाँधी पर प्रभाव पड़ा ।

22. गाँधीजी ने बचपन में कौन-सा नाटक देखा ?
उत्तर :
गाँधीजी ने बचपन में ‘सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र’ नाटक देखा ।

23. सर्वोदय अर्थात् क्या ?
उत्तर :
सर्वोदय अर्थात् सब का उदय ।

24. सर्वोदय के समाजवाद को सिद्ध करने के लिए गाँधीजी ने कौन-सा सिद्धांत दिया ?
उत्तर :
सर्वोदय के समाजवाद को सिद्ध करने के लिए गाँधीजी ने ‘इच्छा रहितता’ का सिद्धांत दिया ।

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25. गाँधीजी ने सर्वोदय के अमल के लिए कौन-से विचार प्रस्तुत किए ?
उत्तर :
गाँधीजी ने सर्वोदय के अमल के लिए त्याग, स्वैच्छिक, सेवा यंत्र का विरोध, श्रम का बचाव, विकेन्द्रीकरण और शोषण को रोकना जैसे विचार प्रस्तुत किये ।

26. गाँधीजी ने आर्थिक प्रवृत्तियों को कितने भागों में बाँटा तथा उनमें से किसे अधिक महत्त्व दिया ?
उत्तर :
गाँधीजी ने आर्थिक प्रवृत्तियों को तीन भागों में

  1. निजी क्षेत्र
  2. ट्रस्टीशिप का क्षेत्र
  3. सार्वजनिक क्षेत्र में बाँटा है ।
    इनमें से गाँधीजी ने ट्रस्टीशिप का क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया ।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए :

1. किस ग्रंथ को ‘कौटिल्य का अर्थशास्त्र’ के रूप में जाना जाता है ?
उत्तर :
कौटिल्य ने ई.स. पूर्वे तीसरी सदी के आस-पास नंद वंश के अंतिम राजा धनानंद के कुशासन का अंत लाने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य का साथ लेकर उन्होंने नैतिक मूल्यों पर आधारित मजबूत अर्थ व्यवस्थावाले सुसमृद्ध राष्ट्र की रचना के लिए प्रबल पुरुषार्थ ‘किया । राजनीति, कानून, अर्थनीति, कुशल प्रबंध, कर नीति, समाजव्यवस्था, व्यापार, कृषि और उद्योग आदि विषयों का सूक्ष्म अध्ययन किया और ‘अर्थशास्त्र’ जैसे विशिष्ट ग्रंथ की रचना की जिसे ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ के नाम से जानते हैं ।

2. जनपद (राज्य) की स्थापना करते समय राजा को कौन-कौन सी बातों का ख्याल रखना चाहिए ?
उत्तर :
जनपद (राज्य) की स्थापना करते समय राजा को प्रजा और राज्य के विकास के लिए अनुकूल ढाँचाकीय सुविधाएँ खड़ी . करनी चाहिए । राज्य में कृषि और उद्योग के विकास के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए । जैसे कि खान, कारखाना, वन, पशुशाला, आयात-निर्यात, रास्ते और बाजार की रचना करनी चाहिए । कृषि के लिए जलाशय, देवालय और धर्मशाला का निर्माण करने में राजा को सहायता करनी चाहिए । आचार्य, पुरोहित और क्षत्रियों को करमुक्ति देनी चाहिए और असहाय अवस्था में किसानों को मदद करनी . चाहिए ।

3. कौटिल्य के मतानुसार शहरों का विकास किस प्रकार करना चाहिए ?
उत्तर :
कौटिल्य के मतानुसार राजा को राज्य में नयी-नयी खान खुदवाना, हुन्नर उद्योगों के कारखाने बढ़ाना, उद्योगों के विकास के लिए राज्य की अनुकूलता कर देना चाहिए और इसलिए परिवहन, संचार, सुविधाएँ बढ़ाना और उद्योग द्वारा उत्पादित माल-सामान के विक्रय के लिए बाजार मिले इस प्रकार से शहर का विकास करना चाहिए ।

4. ‘गाँधीवाद जैसा कोई वाद नहीं’ समझाइए ।
उत्तर :
गाँधीजी के आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक जीवन से सम्बन्धित सामान्य दर्शन को बहुतबार ‘गाँधीवाद’ के नाम से जानते हैं । परंतु गाँधीजी ने किसी अर्थशास्त्र की तरह किसी निश्चित विचारधारा नहीं दी थी । अपने विचारों को निश्चित ‘वाद’ के ढाँचे में रखना योग्य नहीं है । उनके ही शब्दों में कहें तो ‘गाँधीवाद’ जैसी कोई वस्तु है ही नहीं और मुझे मेरे पीछे कोई सम्प्रदाय छोड़ के नहीं जाना है । मैंने कोई नया तत्त्व या नया सिद्धांत ढूंढ़ निकाला है ऐसा मेरा कोई दावा नहीं है । मैंने तो मात्र जो शाश्वत सत्य है उसे अपना नित्य जीवन के प्रश्नों में अमल करने का प्रयास किया है । इसलिए गाँधीवाद जैसा कोई वाद नहीं है ।

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5. पंडित दीनदयाल उपाध्याय का संक्षिप्त में परिचय दीजिए ।
उत्तर :
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर, 1916 के दिन जन्मे पंडित दीनदयाल मात्र बावन वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हुयी । पंडित दीनदयाल सादा जीवन, सरल व्यक्तित्व, आँखों में अनोखी चमक रखनेवाले सज्जन, आर्थिक विचारों के प्रेरणा बिंदु, मौलिक चिंतन और विचारों की अटूट सरवाणी रखनेवाले व्यक्तित्व रखनेवाले थे । पंडित दीनदयाल ने 52 वर्ष के जीवनकाल में देश की वर्तमान परिस्थिति को ध्यान में रखकर देश के अंतिम शिरे के मनुष्य को साथ लेकर देश का सर्वांगी विकास हो ऐसे आर्थिक विचार प्रस्तुत किये । उन्हें तत्त्वज्ञान, अर्थशास्त्र तथा समाज जीवन के, साहित्य के विषय में अपने विचारों से सभी को प्रभावित किया । उन्होंने एकात्म मानववाद, राष्ट्रजीवन की दिशा, राष्ट्रचिंतन, भारतीय अर्थनीति, विकास की एक दिशा, पोलिटिकल डायरी प्रथम और दूसरी पंचवर्षीय योजना का विश्लेषण जैसी अनेक कृतियाँ प्रस्तुत की ।

6. ‘कौटिल्य का अर्थशास्त्र वास्तव में नीतिशास्त्र है ।’ विधान समझाइए ।
उत्तर :
कौटिल्य के मतानुसार अर्थशास्त्र अर्थात् ‘मनुष्य की वृत्ति अर्थ है, मनुष्य के आवासवाली भूमि अर्थ है । ऐसी पृथ्वी के . लाभ, मरम्मत, निभाव खर्च, पशुपालन के उपाय दर्शानेवाले शास्त्र अर्थात् अर्थशास्त्र ।’ वे मनुष्य की आजीविका और आवास के उपयोग . के लिए भूमि को संपत्ति गिनते हैं और उसके लाभ और पालन के उपाय सूचित करते हैं । कौटिल्य ने देश और समय के अनुरूप विचार प्रस्तुत किये हैं । इसलिए उनका (कौटिल्य) अर्थशास्त्र वास्तव में नीतिशास्त्र है ।

7. कौटिल्य के अनुसार कर किस प्रकार वसूल करना चाहिए ?
उत्तर :
कौटिल्य ने कर निश्चित करने के लिए कहा जैसे बगीचे में फल के पेड़ पर से पके फल को तोड़कर एकत्रित किया जाता है वैसे ही राजा को भी प्रजा की शक्ति और स्थिति का विचार करके कर लेना चाहिए ।

8. कौटिल्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए ।
उत्तर :
कौटिल्य का जन्म दांत के साथ चणक ब्राह्मण के यहाँ हुआ । इसलिए वे चाणक्य के नाम से प्रसिद्ध हुए । उनका मूल नाम विष्णुगुप्त था । पाटलीपुत्र राज्य में कुसुमपुर गाँव में बचपन व्यतीत हुआ । कौटिल्य ने ई.स. पूर्व तीसरी सदी के आस-पास नंद वंश के अंतिम राजा धनानंद के कुशासन का अंत लाने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य का साथ लेकर उन्होंने नैतिक मूल्यों पर आधारित मजबूत अर्थव्यवस्थावाले सुसमृद्ध राष्ट्र की रचना के लिए पुरुषार्थ किया । राजनीति, कानून, अर्थनीति, कुशल प्रशासन, करनीति, समाजव्यवस्था, व्यापार, कृषि और उद्योग आदि विषयों का सूक्ष्म अध्ययन किया और अर्थशास्त्र जैसे विशिष्ट ग्रंथ की रचना की जो ‘कौटिल्य का अर्थशास्त्र’ के नाम से जाना गया ।

9. गाँधीजी के ‘श्रम का गौरव’ आर्थिक विचार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर :
गाँधीजी के अनुसार श्रम करनेवाले सबको समान वेतन अथवा रोजगार मिलना चाहिए । जिसके पास श्रमशक्ति है उसे गौरवशाली जीवन जीने का अधिकार मिलना चाहिए । गाँधीजी ने कहा – ‘बुद्धि का काम शरीर की मजूरी का काम जितना महत्त्व पूर्ण और जरूरी है और जीवन की सलंग योजना में उसका निश्चित स्थान है, परंतु मेरा आग्रह प्रत्येक मनुष्य को अपने शरीर के द्वारा मजदूरी करनी चाहिए । मेरा दावा है कि कोई भी मनुष्य शारीरिक श्रम करने के दायित्व से मुक्त न हो ।’ आज श्रम की प्रतिष्ठा और . गौरव घटा है और उसकी कीमत भी घटी है । इसके उपाय के रूप में गाँधीजी ने श्रम का गौरव का स्वीकार सूचित किया है । कारण कि श्रम के प्रति निष्ठा मनुष्य को निर्मोही बनायेगा और गरीबी तथा बेरोजगारी की समस्या से मुक्ति मिलेगी ।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्देसर लिखिए ।

1. कौटिल्य के मतानुसार जनपथ की रचना में किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर :
कौटिल्य के मतानुसार जनपथ की रचना में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :

  1. जनपद की स्थापना करते समय राजा को प्रजा और राज्य के विकास के लिए अनुकूल ढाँचाकीय सुविधाएँ खड़ी करनी चाहिए ।
  2. राज्य में कृषि और उद्योग के विकास के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए ।
  3. राज्य में खान, कारखाने, वन, पशुशाला, आयात-निर्यात, रास्ते और बाजार की रचना करनी चाहिए ।
  4. कृषि के लिए जलाशय और देवालय और धर्मशाला का निर्माण करने में राजा को सहायता करनी चाहिए ।
  5. आचार्य, पुरोहित और क्षत्रियों को करमुक्ति देनी चाहिए ।
  6. असहाय अवस्था में किसानों को सहायता करनी चाहिए ।

2. गाँधीजी सादगी और अपरिग्रह व्रत के हिमायती हैं ।’ समझाइए ।
उत्तर :
गाँधीजी अपरिग्रह व्रत के हिमायती थे, अर्थात् कि वे आवश्यकताओं से अधिक न उपयोग करना और न रखना इस बात के वे दृढ़ आग्रही थे । गाँधीजी सदैव ‘सादा जीवन उच्च विचार’ इस सूत्र का आचरण करते थे । इसके लिए उन्होंने आवश्यकताओं पर संयम रखने की सिफारिश की थी । आज मनुष्य नैतिक मूल्यों को भूलकर समृद्धि की ओर अंधी दौड़ लगा रहा है, वह आज की अशांत परिस्थिति का कारण है । मानवजीवन की कमनसीबी के लिए गाँधीजी ने तीन कारण बताये :

  1. निरंतर बढ़ती आवश्यकताएँ
  2. संयुक्त यंत्रों का बढ़ता हुआ उपयोग
  3. वितरण की प्रवर्तमान पद्धति ।

आवश्यकताओं का प्रमाण और सुखाकारी के बीच सम्बन्ध है । आवश्यकताएँ मर्यादित रखने से सुख अधिक मिल सकता है नहीं कि अधिक वस्तुओं के उपयोग से ऐसा गाँधीजी मानते थे । सादगीपूर्ण जीवन द्वारा सच्चे सुख का अनुभव हो सकता है । सभी को आवश्यकताओं के अनुसार सब वस्तुएँ मिलती रहें इस प्रकार वस्तुओं का उत्पादन हो यह भी अधिक महत्त्वपूर्ण है । सादगी के संदर्भ में गाँधीजी बताते हैं कि, “सबका पोषण किसी का भी शोषण नहीं’ इस आधारभूत बात को स्वीकार करने के लिए कहा ।

3. संपत्ति की मालिकी के संदर्भ में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार बताइए ।
उत्तर :
संपत्ति के उपयोग के संदर्भ में उसकी मालिकी का प्रश्न खूब ही महत्त्वपूर्ण है । पूँजीवाद में व्यक्ति का उसकी संपत्ति पर निरंकुश अधिकार होता है । जबकि समाजवाद में निजी संपत्ति को कोई स्थान नहीं है । इस संदर्भ में पंडित दीनदयाल ने ऐसा विचार प्रस्तुत किया कि, निजी संपत्ति संपूर्ण रूप से समाप्त करना उचित नहीं है । ऐसा करने से व्यक्ति की प्रतिष्ठा, सुरक्षा, संतोष और कार्यशक्ति नष्ट हो जायेगी । इसलिए वे संपत्ति के अधिकार की सीमा निश्चित करने के लिए कहते हैं और व्यक्ति और समाज की आवश्यकताओं और जीवनमूल्यों के आधार पर संपत्ति की मर्यादा निश्चित होनी चाहिए ।

वे मानते थे कि संपत्ति के प्रभाव और संपत्ति का अभाव मानव के अधःपतन का कारण न बने इस प्रकार निजी संपत्ति पर नियंत्रण सीमा निश्चित करनी चाहिए, कारण कि भौतिक साधनों का अमर्यादित उपयोग और निरंकुश राजकीय सत्ता यह दोनों व्यक्ति तथा समाज के मानसिक और नैतिकता की अवन्नति का कारण बनती है । उनके मतानुसार मनुष्य का सर्वांगी विकास करना यही संपत्ति का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए और इस हेतु को . सिद्ध करने के लिए सामाजिक नियंत्रण न्याय की स्थापना तथा पूर्ण विकेन्द्रीकरण की ये सिफारिश करते हैं ।

4. पंडित दीनदयाल के मतानुसार आर्थिक समस्या के हल के लिए संयमित उपभोग की नीति योग्य है । विस्तार से समझाओ ।
उत्तर :
पंडित दीनदयाल कहते हैं कि ‘एक और अपने नयी उत्पन्न आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए नये-नये साधनों और पद्धतियों की खोज करते हैं और दूसरी ओर उससे अनेक नयी समस्याएँ खड़ी होती रहती है । उससे मानवता के नष्ट होने का संकट खड़ा होता है । इसलिए अपनी अर्थव्यवस्था का उद्देश्य अमर्यादित उपभोग नहीं, परंतु संयमित उपभोग करना चाहिए ।’ देश के हित को ध्यान में रखकर उत्पादन और उपभोग की मर्यादा बनाये रखना यह भी उतना ही आवश्यक है । इस संदर्भ में वे संयमित उपभोग की नीति द्वारा देश को आत्मनिर्भर बनाने की सिफारिश करते हैं ।

विकसित पूँजीवादी देश की आज पंडित दीनदयाल के ‘संयमित उपभोग’ के विचार से प्रभावित है । कारण कि आज ऐसे देशों में भी कच्चे माल की अपर्याप्तता, खनिज तेल का बढ़ता हुआ भाव, मुद्रास्फीति, शस्त्रों की दौड़, मानसिक तनाव, नीची गुणवत्ता और पर्यावरणीय समस्या जैसे अनेक प्रश्न खड़े हुए हैं । इनमें से बाहर आने के लिए संयमित उपभोग का मार्ग अपनाने की दिशा में चलने का प्रयास कर
रहे हैं ।

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5. ‘साध्य-साधन के विवेक’ के सम्बन्ध में पंडित दीनदयाल के विचार स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
पंडित दीनदयाल के अनुसार ‘स्वतंत्रता से पूर्व अपने प्रत्येक प्रश्न को राष्ट्रीय दृष्टिकोण से देखते थे । परंतु अब अपने प्रत्येक प्रश्न को आर्थिक दृष्टिकोण से देखने लगे है । उसका कारण आज साध्य और साधन का विवेक नहीं रहा है ।’ मानव जीवन का उद्देश्य और जीवन में संपत्ति के स्थान से सम्बन्धित विचारों को जब तक निश्चित नहीं करेंगे तब तक अपने उनके लिए आवश्यक साधन निश्चित नहीं कर सकते ।

इसलिए आर्थिक विकास का मूल्यांकन मनुष्य के सर्वांगी विकास के संदर्भ में ही होना चाहिए । मनुष्य का मुख्य साध्य सुख के लिए संपत्ति कमाना है और मानवशक्ति को उसे प्राप्त करना मुख्य साधन है । इसलिए मानव श्रम को बेकार रखकर कभी भी मनुष्य का विकास नहीं कर सकता । इस वास्तविकता को ध्यान में रखकर उत्पादन-व्यवस्था विकसित नहीं करनी चाहिए । जिसमें मनुष्य का सर्वांगी विकास ही अपनी मुद्रानीति और अर्थ व्यवस्था का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए ऐसा वे दृढ़ता से मानते थे ।

6. ‘प्रत्येक व्यक्ति को काम’ सिद्धांत समझाइए ।
उत्तर :
पंडित दीनदयाल ने बताया कि भारत में श्रमशक्ति विपुल प्रमाण है और पूँजी साधनों की कमी है । इस परिस्थिति में अपने को उत्पादन कार्य के लिए श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति अपनाना अधिक अनुकूल होगा । यदि अपने पूँजी प्रधान उत्पादन पद्धति अपनायें तो अल्पपूँजी भी विदेशी महँगे यंत्रों के पीछे खर्च हो जाएगी और पूंजीनिवेश के प्रमाण में रोजगार के अवसर खड़े नहीं होंगे और मानवश्रम बेकार होने की संभावना बढ़ जायेगी । इस समस्या के हल के लिए तथा कृषिक्षेत्र पर श्रम का भार कम कर सके ऐसे सीधे-सादे यंत्रों से उत्पादन हो सके ऐसे छोटे उद्योगों की सिफारिश की इसलिए अपने को योजनाएँ बनाने से पहले ‘प्रत्येक व्यक्ति को काम’ सिद्धांत अपनाकर अपनी योजनाओं को श्रमप्रधानलक्षी बनानी पड़ेगी ।

प्रश्न 5.
निम्लनिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए :

1. राजकोष और करनीति से सम्बन्धित कौटिल्य के विचारों को विस्तार से समझाइए ।
उत्तर :
कौटिल्य का चिंतन ‘अर्थ’ पर आधारित है । उनके अनुसार सत्ता की चाबी ‘अर्थ’ ही है । मनुष्य का निर्वाह ‘अर्थ’ पर आधारित है । कौटिल्य मानते थे कि मनुष्य बिना साधन के श्रम द्वारा अर्थ प्राप्त कर सकता है । जैसे-जैसे श्रम की उत्पादकता बढ़ेगी, वैसे-वैसे साधनों का भी विकास होगा । इसलिए वे मानवसर्जित श्रम को वास्तविक अर्थ कहते हैं । इस संदर्भ में कौटिल्य का अर्थशास्त्र अर्थात् ‘मनुष्य की वृत्ति अर्थ है, मनुष्य के निवासवाली भूमि अर्थ है । ऐसी पृथ्वी के लाभ, मरम्मत, निभाव खर्च, पशु-पालन के उपायों को दर्शानेवाला शास्त्र अर्थात् अर्थशास्त्र ।’ कौटिल्य ने देश और समय के अनुरूप आर्थिक विचार प्रस्तुत किया है । उनमें से राजकाप और कर नीति की चर्चा यहाँ करेंगे :

(1) राजकोष : कौटिल्य ने राज्य की समृद्धि और सुरक्षा के लिए जो उपाय और साधन बताये हैं उनमें राजकोष का महत्त्वपूर्ण स्थान है । राज्य का संगठन, समृद्धि, स्थिरता और संचालन राजकोष पर आधारित है । इसलिए सर्वप्रथम राजा को राजकोष का ध्यान रखकर बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए । कौटिल्य ने राज्य की आय के सात स्रोत दर्शाये है जिसमें (1) नगर (2) ग्राम (3) सिंचाई (4) खान (5) जंगल (6) पशुपालन (7) व्यापार-वाणिज्य का समावेश होता है । उन्होंने कहा राजा को वर्ष में एक बार ही कर लेना चाहिए । इसे उघराने के लिए प्रजा पर जोर-जबरदस्ती के बिना राजकोष को बढ़ाना चाहिए । अकाल-बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा में करवसूली में कठोरता नहीं करनी चाहिए । कौटिल्य ने राजकोष को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक संपत्ति, कीमती उपहार, दंड, व्यापार वृद्धि और विपुल धान्य उत्पादन बढ़ाने के उपाय सूचित किए ।

राजकोष के लिए गोदामों की व्यवस्था करके संग्रह करके उसे प्रजा कल्याण के लिए खर्च करना चाहिए । किस के पास से कितना कर लेना चाहिए इस व्यवस्था का उल्लेख भी कौटिल्य ने किया है जैसे : अनाज उत्पन्न करनेवाले किसान से उत्पादन का चौथा भाग, वन्य, कपास, उन, रेशम, लाख, दवा जैसी वस्तु के उत्पादन का आधा भाग, इसी प्रकार व्यवसाय में कर वसूली की स्पष्टता की है । कौटिल्य का कल्याणलक्षी विचार आज भी प्रजा के कल्याणलक्षी कार्यों के लिए उपयोगी है ।

(2) कर नीति : कर नीति के सम्बन्ध में कौटिल्य ने निश्चित सिद्धांत प्रस्तुत किये हैं । जिसमें राजा के लिए कर मर्यादा, अल्पकालीन और दीर्घकालीन कर नीति बातों की स्पष्टता देखने को मिलती है । आकस्मिक परिस्थिति में कर की दर ऊँची ले जाने की व्यवस्था भी दर्शायी है । जैसे बगीचा में फल के पेड़ पर से पके फलों को तोड़कर एकत्रित किया जाता है । उसी प्रकार राज्य को भी प्रजा की शक्ति और स्थिति का विचार करके कर लेना चाहिए । कर प्रजा पर भाररूप नहीं होना चाहिए । इस संदर्भ में कौटिल्य ने निम्नानुसार कर ढाँचे के नियम प्रस्तुत किये हैं :
(1) भूमि कर : राज्य को कृषि उत्पादन का निश्चित भाग किसान या मालिक के पास से भूमि कर लेने का अधिकार था । जमीन का प्रकार जमीन की उत्पादकता, कृषि उत्पादन का स्वरूप, सिंचाई का प्रकार और सुविधाएँ आदि पहलूओं को ध्यान में रखकर कौटिल्य ने भूमि कर का प्रमाण निश्चित करने के नियम दिये और राज्य ने किसानों को कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए कर में छूट देने की भी सिफारिश की ।

(2) आयात-निर्यात कर : कौटिल्य ने आयात-निर्यात कर संदर्भ में वस्तुओं को तीन भागों में बाँटकर कर व्यवस्था सूचित की जैसे :

  • बाह्य शुल्क (कर) : अपने राष्ट्र (देश) में उत्पन्न वस्तु पर लिये जानेवाले कर को बाह्य शुल्क (कर) कहते हैं ।
  • आभ्यन्तरक शुल्क (कर) : राज्य या राजधानी में उत्पादित वस्तु पर लिये जानेवाले कर या शुल्क को अभ्यान्तरक शुल्क (कर) कहते हैं ।
  • आतिथ्य शुल्क (कर) : विदेशों में से लायी जानेवाली वस्तु पर लिये जानेवाले कर को आतिथ्य शुल्क कहते हैं ।

अंत में कौटिल्य ने वस्तु के प्रकार और महत्त्व के आधार पर कर लेने के नियम दर्शाये हैं । जकात (चुंगी) के लिए जकातनाका खड़े करना और मार्ग कर और संपत्ति कर के नियम भी प्रस्तुत किये हैं ।

GSEB Solutions Class 11 Economics Chapter 11 आर्थिक विचार

2. कृषि-पशुपालन और उद्योग के संबंध में कौटिल्य के विचार स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कौटिल्य ने अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में कृषि-पशुपालन और उद्योगों के सम्बन्ध में अपने विचार प्रस्तुत किए :
(1) कृषि : कौटिल्य ने कृषि को जीवन-निर्वाह का मुख्य साधन बताया है । कौटिल्य ने भूमि को दो प्रकारों में विभाजित किया

  • राज्यहस्तक की भूमि
  • व्यक्तिगत मालिकी की भूमि

इसमें से राज्यहस्तक की भूमि दासों, मजदूरों और केदीओं के पास से जुतवाकर, बुवाई करवायी जाती थी । भूमि का पूरा उपयोग कृषि के लिए हो ऐसा कौटिल्य मानते थे । इसलिए बंजर जमीन को कृषिलायक बनाने की सिफारिश करते हैं । कारण कि अनुत्पादक. भूमि का कोई अर्थ नहीं है । किसान कृषि उत्पादन करेगा, तो राज्य को महसूल प्राप्त होगा और किसान को उसकी आजीविका मिलेगी ।

(2) पशुपालन : कृषि के साथ ही पशुपालन जुड़ा हुआ है । इसलिए कौटिल्य ने पशुपालन के व्यवसाय के विकास का भी उल्लेग्व किया है और आय के साधनों में सम्मिलित किया है । इसमें कौटिल्य ने तीन प्रकार के पशुओं का उल्लेख किया है :

  • प्रशिक्षित पालतू पशुओं
  • दूध देनेवाले पशु
  • मृग्यावन के (जंगल के) पशु
    पशुपालन सम्बन्धी नियम और दंड की व्यवस्था भी कौटिल्य ने निर्देश दिया है ।

(3) उद्योग : कौटिल्य मानते थे कि आर्थिक दृष्टि से साधन-संपन्न राज्य ही समृद्ध और विकसित बन सकता है । इसलिए कौटिल्य । ने उद्योगों के विकास के लिए मार्गदर्शक विचार प्रस्तुत किये हैं । उनके अनुसार राजा को राज्य में नयी-नयी खाने खुदाना, कौशल्य (हुन्नर) उद्योग के कारखाने बढ़ाना, उद्योग के विकास के लिए राज्य को अनुकूलता का सर्जन करना और इसलिए परिवहन, संचार की सुविधाएँ बढ़ाना और उद्योगों द्वारा उत्पादित माल-सामान के विक्रय के लिए बाजार मिले इस प्रकार के शहरों का विकास करना चाहिए ।

3. यंत्रों के उपयोग संबंधित गाँधीजी के विचार स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
गाँधीजी ने राजनैतिक विचारों के साथ आर्थिक विचार भी प्रस्तुत किये जिनमें यंत्रों के उपयोग से संबंधित विचार प्रस्तुत किये । गाँधीजी का कहना था कि आज का युग यंत्र युग के नाम जाना जाता है । कारण कि समग्र अर्थव्यवस्था पर यंत्रों का प्रभुत्व है । यंत्र श्रम को अधिक कार्यक्षम बनाने के बदले यंत्र स्वयं ही श्रम का स्थान ले ले यह गाँधीजी को स्वीकार नहीं था । उन्होंने यंत्रों के अन्धे उपयोग का विरोध किया । इसलिए कितनी ही बार गाँधीजी को यंत्रों का विरोधी माना गया । परंतु गाँधीजी का यंत्रों का विरोध यह ‘यंत्रों की अतिशयता’ के सामने विरोध था । यंत्रों के विवेकपूर्ण उपयोग की सिफारिश भी की थी । गाँधीजी के यंत्रों के उपयोग संबंधी विचार निम्नानुसार है :

  • गाँधीजी प्राथमिक और सादा यंत्रों का आग्रह रखते हैं, कारण कि ऐसे यंत्रों को गरीब सस्ता से बसा सकते हैं ।
  • श्रमिक की महेनत बचाये और उनका बोझ कम करे ऐसे सादा यंत्रों का गाँधीजी स्वागत करते थे । परंतु जो यंत्र मनुष्य
    का स्थान ले और उन्हें बेरोजगार बनाये ऐसे यंत्रों का गाँधीजी ने विरोध किया ।
  • यंत्रों का उपयोग समग्र मानवजाति और विशेष रूप से भारत के दरिद्र-नारायण के कल्याण के लिए उपयोग हो ऐसे यंत्रों के सामने विरोध नहीं था ।
  • यंत्रों से श्रम की बचत हो यह सही है, परंतु यंत्रों के उपयोग के कारण यदि हजारों लोग बेरोजगार बने तब श्रम की
    बचत योग्य नहीं है । उसी प्रकार यंत्रों के कारण समय, श्रम और पूँजी का बचत हो तो व्यक्ति के लाभ के नहीं, परंतु समग्र समाज के लिए होना चाहिए ।
  • यंत्रों के कारण संपत्ति का केन्द्रीकरण होता हो तो गाँधीजी ऐसे यंत्रों के उपयोग का विरोध करते थे । यंत्र श्रीमंतों के लिए गरीबों के शोषण का साधन न बने ऐसा ध्यान रखने के लिए भी गाँधीजी ने कहा था ।
  • गाँधीजी ऐसा मानते थे कि यंत्रों का उपयोग इस हद तक नहीं होना चाहिए कि, मनुष्य उनका गुलाम बन जाये । गाँधीजी ने कहा – ‘यंत्र मनुष्य के लिए है, मनुष्य यंत्रों के लिए नहीं ।’
    उपर्युक्त विचार गाँधीजी ने यंत्रों संबंधित प्रस्तुत किये ।

4. गाँधीजी ने प्रस्तुत किये ट्रस्टीशिप (अभिभावक) का सिद्धांत विस्तार से समझाइए ।
उत्तर :
गाँधीजी के आर्थिक विचारों में से एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत ट्रस्टीशिप का सिद्धांत है । इसमें किसी एक व्यक्ति को वसियत में विपुल प्रमाण में मिली हो तो भले वह उसका कानूनी मालिक हो परंतु उसे उसका उतना ही उपयोग करना चाहिए जितना लाखों लोग स्वमानपूर्वक जीवन के लिए जरूरी है । शेष संपत्ति समाज की मालिकी है उसे उसका उपयोग और प्रबंध उस व्यक्ति को समाज के कल्याण के लिए करना चाहिए । इस संपत्ति का वह ट्रस्टी (अभिभावक) है ऐसा व्यवहार करना चाहिए ।

ट्रस्टीशिप के मुख्य मुद्दे निम्नानुसार हैं :

(1) धनिकों का हृदय परिवर्तन संभव है : गाँधीजी का यह सिद्धांत धनिकों को हृदय परिवर्तन पर रचित है । गाँधीजी के मतानुसार धनवानों को उदार मन रखकर अपने पास की संपत्ति का उपयोग समाज के कल्याण और लाभ के लिए करना चाहिए । धनिकों के पास जो संपत्ति है उसके मालिक वे नहीं समाज है ऐसा व्यवहार करना चाहिए । इस प्रकार यह सिद्धांत धनिकों के हृदय परिवर्तन में खूब श्रद्धा रखता है ।

(2) अधिकार के स्थान पर दायित्व : गाँधीजी ट्रस्टीशिप के सिद्धांत में संपत्ति के मालिकी के अधिकार के स्थान पर दायित्व पर भार दिया । धनिकों को अपनी संपत्ति का समाज के लिए महत्तम उपयोग इस प्रकार दायित्व निभाना चाहिए ।

(3) लोकमत की जागृति : ट्रस्टीशिप के सिद्धांत का अभाव मात्र कानून द्वारा नहीं हो सकता है । क्योंकि कानून में शक्ति और अनिवार्यता का भाव रहता है । इसलिए गाँधीजी इस सिद्धांत का अमल कानून द्वारा नहीं परंतु प्रेम और हृदय परिवर्तन द्वारा ही अमल के पक्ष में थे । इसलिए गाँधीजी ने शिक्षा और लोकमत की जागृति का मार्ग सूचित किया ।

(4) समग्र समाज हित को महत्त्व : इस सिद्धांत में कुछ थोड़े व्यक्तियों के हित की अपेक्षा समग्र समाज के हित को अधिक महत्त्व दिया जाये ऐसा गाँधीजी चाहते थे । इसलिए समाज के बड़े वर्ग को ध्यान में रखकर उत्पादन करना चाहिए ।

(5) ट्रस्टी (अभिभावक) को प्रतिफल : संपत्ति का उपयोग मालिक जब अभिभावक के रूप में करे तो उसका प्रतिफल (राज्य) सरकार को करना चाहिए ऐसा गाँधीजी मानते थे ।

(6) राष्ट्रीयकरण का विरोध : आर्थिक समानता लाने के लिए निजी संपत्ति के अधिकार की समाप्ति या साधनों के राष्ट्रीयकरण … के पक्ष में गाँधीजी नहीं थे । कारण कि राष्ट्रीयकरण करने से व्यक्ति विरुद्ध सरकार की सत्ता में वृद्धि होगी और लोगों में नैतिकता . का भाव कम होगा । इस सिद्धांत में गाँधीजी कहते हैं – ‘मैं पूँजीपति और जमीनदार के पास जमीन रहने दूंगा, परंतु मैं उसकी संपत्ति के वे ट्रस्टी हैं ऐसा स्वीकार करने के लिए समझाऊँगा ।’

(7) वारिसदार की नियुक्ति : ट्रस्टीशिप के सिद्धांत के साथ वारिसदार का प्रश्न जुड़ा हुआ है, जो संपत्ति का मालिक है वह संपत्ति का अभिभावक रहे ऐसा गाँधीजी चाहते थे । संपत्ति का उपयोग समाज के ट्रस्टी बनकर करना चाहिए इसलिए सच्चा वारिसदार समाज है । परंतु उस संपत्ति के मालिक के अवसान के बाद जिसकी ट्रस्टी के रूप में नियुक्ति करे वही नया ट्रस्टी है । जैसे मृत्यु. प्राप्त ट्रस्टी सच्चा मालिक नहीं था, वैसे ही नया ट्रस्टी भी संपत्ति का सच्चा मालिक नहीं परंतु सरकार उस संपत्ति को जप्त नहीं कर सकती । कानून या सरकार की स्वीकृति द्वारा वारिसदार निश्चित करना चाहिए ।

(8) राज्य (सरकार) का नियंत्रण : पूँजीपतियाँ जब ट्रस्टी के रूप में निष्फल जायें इस परिस्थिति में गाँधीजी निजी संपत्ति के उपयोग पर सरकार का नियंत्रण और कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में निजी संपत्ति कम से कम हिस्सा का उपयोग करके सरकार को अपने हाथ में ले लें इस बात को मान्य रखते थे । मालिक के पास संपत्ति किस रास्ते से आयी है इसकी जाँच सरकार को करनी चाहिए । आवश्यक हो तो संपत्ति का प्रतिफल दिये बिना सरकार को अपने हाथ में लेना चाहिए । परंतु साथ गाँधीजी ने सभी प्रकार की संपत्ति को जप्त करने के लिए नहीं कहा था ।

5. पंडित दीनदयाल ने भारतीय अर्थव्यवस्था किन उद्देश्यों को सूचित किया है ? वह बताइए ।
उत्तर :
पूँजीवाद और समाजवाद मनुष्य या मनुष्य की चिंता को समझे नहीं हैं । इसलिए पंडित दीनदयाल कहते हैं – ‘अपने को समाजवाद या पूँजीवाद नहीं, परंतु मनुष्य का उत्कर्ष और उसका सुख चाहते हैं । इस संदर्भ में उन्होंने अपनी अर्थ-व्यवस्था के उद्देश्य प्रस्तुत किये जो निम्नानुसार हैं :

  1. प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम जीवनस्तर का आश्वासन (गारंटी) मिलनी चाहिए ।
  2. राष्ट्र की सुरक्षा और सामर्थ्य का लक्ष्य होना चाहिए ।
  3. समाज की उत्तरोत्तर समृद्धि बढ़े जिससे व्यक्ति और राष्ट्र को ऐसा साधन उपलब्ध हो कि जिनके द्वारा समाज अपनी प्रकृति के आधार पर विश्व की प्रगति में अपना योगदान दे सकता हैं ।
  4. निश्चित किये गये लक्ष्यांकों को सिद्ध करने के लिए प्रत्येक युवान और स्वस्थ व्यक्ति को जीवननिर्वाह का अवसर मिलना चाहिए ।
  5. प्राकृतिक साधनों का मितव्यतापूर्वक उपयोग करना चाहिए ।
  6. राष्ट्र के उत्पादक साधनों का ख्याल करके उसके अनुरूप उत्पादन पद्धति अपनानी चाहिए ।
  7. देश की अर्थव्यवस्था में मनुष्य की अवहेलना नहीं करना चाहिए और विकास के लिए तथा समाज के सांस्कृतिक और अन्य जीवनमूल्यों का रक्षण करना चाहिए ।
  8. विभिन्न उद्योगों में राज्य, व्यक्ति तथा अन्य संस्था की मालिकी का निर्णय व्यवहारिक पद्धति से करना चाहिए ।

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6. पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ‘अर्थशास्त्र का तीसरा विकल्प की खोज’ और ‘एकात्म मानववाद’ आर्थिक विचारों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अनेक आर्थिक विचार प्रस्तुत किये उनमें से यहाँ ‘अर्थशास्त्र का तीसरे विकल्प की खोज’ और ‘एकात्म मानववाद’ विचारों का यहाँ परिचय देंगे ।

(1) अर्थशास्त्र के तीसरे विकल्प की खोज : आर्थिक उद्देश्यों को सिद्ध करने के लिए विश्व के पास पूँजीवाद और समाजवाद के दो विकल्प व्यवहार में थे । पंडित दीनदयाल ने यहाँ तीसरा विकल्प प्रस्तुत किया है । विश्व में आज उत्पादन क्षेत्र में आधुनिक उत्पादन पद्धति और यंत्रों का उपयोग बढ़ता जा रहा है और प्राकृतिक संपत्ति के अनेक स्रोत आज विश्व के पास हैं । फिर भी आर्थिक समृद्धि के पीछे अंधी दौड़ के कारण आज मानव समुदाय अनेक समस्याओं से घिरा हुआ है ।

समाजवाद और पूँजीवाद के द्वारा विश्व के अनेक देशों ने सिद्धियाँ हांसिल की हैं । परंतु उसके सामने आर्थिक शोषण, असमानता, आर्थिक अस्थिरता, वर्ग विग्रह और पर्यावरण को नुकसान सम्बन्धी अनेक समस्याएँ भी खड़ी हयी है । भारत ने भी अंधा अनुकरण किया है । परिणामस्वरूप भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के आयोजन के बावजूद उद्योग और कृषिक्षेत्र में नीची उत्पादकता, ग्रामीण क्षेत्र में अपर्याप्त सुविधा, शहरीकरण, पर्यावरणीय समस्या, गरीबी, बेकारी, भाववृद्धि, मुद्रा का अवमूल्यन जैसी अनेक समस्याएँ बढ़ी हैं । इन समस्याओं से बाहर आने के लिए पंडित दीनदयाल ने ‘एकात्म अर्थनीति’ तीसरा विकल्प दिया ।

(2) एकात्म मानवता : पंडित दीनदयाल एकात्म मानववाद के पुरस्कर्ता है । उन्हें एकात्म अर्थनीति के संदर्भ में एकात्म मानववाद की संकल्पना प्रस्तुत की है । वे बताते हैं कि ‘एकात्म मानववाद यह भारतीय संस्कृति का जीवन दर्शन है ।’ एकात्म मानववाद अर्थात् मानवजीवन का ऐसा दर्शन जहाँ,
(1) मनुष्य का मात्र आर्थिक मनुष्य के रूप में विचार नहीं होता परंतु मानवजीवन के प्रत्येक पहलू पर विचार होता है ।
(2) यहाँ मनुष्य का अन्य मनुष्य के साथ का सम्बन्ध तथा मनुष्य का अन्य जगत के साथ परस्पर पूरक सम्बन्ध को ध्यान में रखकर समृद्ध और सुखी जीवन का दर्शन हो ऐसा वाद ।

पंडित दीनदयाल के मतानुसार एकात्म मानववाद की सार्थकता,

(i) समाज के अज्ञानी तथा कुचले मनुष्य की सेवा ।
(ii) उनके हाथ-पैर में शक्ति बढ़ाकर उद्योग-धंधे का शिक्षण दिया जाये ।
(iii) उनकी आय बढाकर उनके लिए पक्के घर बनाने में रहा हआ है ।

इसके लिए उन्होंने देश की प्रकृति को ध्यान में रखकर पश्चिम की सिद्धियों में से अच्छी बातें पसंद करके देश का सर्वांगी विकास के लिए प्रयोजन की सिफारिश की है ।

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