GSEB Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Economics Chapter 8 आर्थिक सुधार Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Economics Chapter 8 आर्थिक सुधार
GSEB Class 11 Economics आर्थिक सुधार Text Book Questions and Answers
स्वाध्याय
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प पसंद करके लिखिए :
1. भारत में आर्थिक सुधार किस वर्ष से अमल में आये ?
(A) ई.स. 1947
(B) ई.स. 1991
(C) ई.स. 1969
(D) ई.स. 1980
उत्तर :
(B) ई.स. 1991
2. भारत में FEMA कानून किस वर्ष में आया ?
(A) ई.स. 1973
(B) ई.स. 1980
(C) ई.स. 1991
(D) ई.स. 1999
उत्तर :
(C) ई.स. 1991
3. नीचे में से कौन-सा उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित है ?
(A) खाद
(B) टेलीविजन
(C) मोटरकार
(D) रेलवे
उत्तर :
(D) रेलवे
4. आयात होनेवाली वस्तु जैसी ही वस्तु का उत्पादन देश में किया जाए तो उसे क्या कहते हैं ?
(A) निजीकरण
(B) उदारीकरण
(C) आयात प्रतिस्थापन
(D) वैश्वीकरण
उत्तर :
(C) आयात प्रतिस्थापन
5. विदेशी कंपनियों द्वारा अन्य देशों में किया जानेवाला पूँजी निवेश को क्या कहते हैं ?
(A) FERA
(B) FEMA
(C) FDI
(D) NRI
उत्तर :
(C) FDI
6. आर्थिक सुधार में से कौन-सा सौपान गलत है ?
(A) उदारीकरण
(B) निजीकरण
(C) शहरीकरण
(D) वैश्वीकरण
उत्तर :
(C) शहरीकरण
7. FERA में से Regulation शब्द हटाकर कौन-सा शब्द रखा ?
(A) Money
(B) Management
(C) Restriction
(D) Market
उत्तर :
(B) Management
8. कितने प्रतिशत शेयर बेचे जाय तो संचालन निजी क्षेत्रों का होता है ?
(A) 51%
(B) 51% से कम
(C) 51% से अधिक
(D) 49%
उत्तर :
(C) 51% से अधिक
9. भारत WTO का कब सदस्य बना ?
(A) ई.स. 1947
(B) ई.स. 1951
(C) ई.स. 1991
(D) ई.स. 1995
उत्तर :
(D) ई.स. 1995
10. 1951 में भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयाँ थी ?
(A) 5
(B) 217
(C) 233
(D) 10
उत्तर :
(A) 5
11. भारत की विदेश व्यापार नीति के कितने सोपान है ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
उत्तर :
(B) दो
12. 1991 की नीति में सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए कितने उद्योग आरक्षित हैं ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
उत्तर :
(C) तीन
13. 1990 में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयाँ कितनी थी ?
(A) 233
(B) 217
(C) 5
(D) 15
उत्तर :
(A) 233
14. आर्थिक सुधार के कितने सौपान है ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार
उत्तर :
(C) तीन
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए :
1. FERA का पूरा नाम दो ।
उत्तर :
FERA क पूरा नाम – Foreign Exchange Regulation Act है ।
2. FEMA का पूरा नाम दो ।
उत्तर :
FEMA का पूरा नाम – Foreign Exchange Management Act है ।
3. FDI का पूरा नाम लिखो ।
उत्तर :
FDI का पूरा नाम – Foreign Direct Investment.
4. उदारीकरण का अर्थ लिखो ।
उत्तर :
सरकार नियंत्रित अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र, व्यक्तिगत निर्णयों का स्वतंत्र, बाजार परिबलों द्वारा आर्थिक निर्णय का विस्तार बढ़े तो उसे उदारीकरण कहते हैं । संक्षेप में उदारीकरण अर्थात् नियंत्रित अर्थतंत्र से मुक्त अर्थतंत्र की ओर जाना ।
5. वैश्वीकरण का अर्थ दीजिए ।
उत्तर :
वैश्वीकरण अर्थात् अपने देश के अर्थतंत्र को विश्व के अर्थतंत्र के साथ अधिक से अधिक जोड़ने की प्रक्रिया ।
6. आर्थिक नीति के कितने सोपान है ? कौन-कौन से ?
उत्तर :
आर्थिक नीति के तीन सोपान हैं –
- उदारीकरण
- निजीकरण
- वैश्वीकरण
7. FERA की जगह पर कौन-सा कानून बनाया गया ?
उत्तर :
FERA की जगह पर FEMA कानून बनाया गया ।
8. आर्थिक सत्ता का केन्द्रीयकरण और एकाधिकारशाही कानून को रोकने के लिए कौन-सा कानून बनाया गया ?
उत्तर :
आर्थिक सत्ता का केन्द्रीयकरण और एकाधिकारशाही कानून को रोकने के लिए MRTP कानून बनाया गया ।
9. MRTP Act को किस में बदला गया ?
उत्तर :
MRTP Act को Competition Act में बदला गया ।
10. निजीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर :
सार्वजनिक क्षेत्र की मालिकी और संचालन निजी क्षेत्रों को सौंपने की प्रक्रिया को निजीकरण कहते हैं ।
11. कितने प्रतिशत शेयर बेचे जाये तो सरकार का नियंत्रण रहता है ?
उत्तर :
51% प्रतिशत से कम शेयर बेचे जाये तो संचालन पर सरकार का नियंत्रण रहता है ।
12. किन क्षेत्रों में सरकार के साथ निजी क्षेत्रों को भी छूट दी गयी है ?
उत्तर :
बैंकिंग व्यवसाय, शिक्षण, संचार, परिवहन जैसे क्षेत्रों में निजी क्षेत्रों को भी छूट दी गयी है ।
13. 2010 में सार्वजनिक क्षेत्र की कितनी इकाईयाँ थी ?
उत्तर :
2010 में सार्वजनिक क्षेत्र की 217 इकाईयाँ थी ।
14. भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) का सदस्य कब बना ?
उत्तर :
भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) का सदस्य 1995 में बना ।
15. भारत की आर्थिक नीति में बड़े पैमाने पर किस वर्ष में परिवर्तन किया गया ?
उत्तर :
भारत की आर्थिक नीति में बड़े पैमाने पर 1991 में परिवर्तन किया गया ।
16. FII का पूरा नाम बताइए ।
उत्तर :
FII का पूरा नाम – Foreign Institutional Investment है ।
17. देश के अर्थतंत्र में अस्थिरता का जोखम कब होता है ?
उत्तर :
विदेशी कंपनियाँ जितनी शीघ्रता से शेयर बाजार में मुद्रा रोकती है उतनी ही शीघ्रता से वापस भी ले लेती है जिसके कारण अर्थतंत्र में अस्थिरता का खतरा रहता है ।
18. MRTP का पूरा नाम बताइए ।
उत्तर :
MRTP का पूरा नाम – Monopolies and Restrictive Trade Practices Act.
19. आयात किसे कहते हैं ?
उत्तर :
देश की आवश्यकताओं के लिए विदेशों में से खरीदी गयी वस्तुएँ और सेवाएँ को आयात कहते हैं ।
20. निर्यात किसे कहते हैं ?
उत्तर :
विदेशों द्वारा देश की वस्तुओं और सेवाओं को खरीदा जाए तो उसे निर्यात कहते हैं ।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में लिखिए :
1. आर्थिक सुधार का अर्थ लिखो । आर्थिक सुधार के पहलू बताइए ।
उत्तर :
1991 की आर्थिक नीति में जो बड़े पैमाने पर परिवर्तन किया गया उसे आर्थिक सुधार कहते हैं ।
आर्थिक सुधारों के तीन पहलू (सोपान) हैं :
- उदारीकरण
- निजीकरण
- वैश्वीकरण
2. पूँजी विनिवेश का अर्थ देकर उसके प्रकार बताइए ।
उत्तर :
सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयों के कुछ शेयर (29% या 49%) निजी क्षेत्रों को सौंपे और अधिक मात्रा में शेयर (51% से अधिक) सरकार अपने पास रख्खे और संचालन करे तो उसे पूँजी विनिवेश कहते हैं । इसके दो प्रकार है :
- सार्वजनिक इकाईयों के सभी शेयर निजी क्षेत्रों को बेचकर, मालिकी का संपूर्ण स्थानांतरण ।
- सार्वजनिक इकाईयों शेयर निजी क्षेत्रों को कुछ मात्रा में बेचे (29% या 49%) उसे अंशत: निजीकरण कहते हैं ।
3. MRTP Act का पूरा नाम लिखो । इस कानून की रचना किसलिए की गयी ?
उत्तर :
MRTP Act का पूरा नाम Monopolies and Restrictive Trade Practices Act है । इस कानून का उद्देश्य आर्थिक सत्ता का केन्द्रीकरण और एकाधिकारशाही को रोकना था । जिसमें बड़े उद्योगों को पूँजी निवेश करने के लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ती थी ।
4. विदेशी संस्थाकीय पूँजीनिवेश को समझाइए ।
उत्तर :
जब विदेशी निवेशकर्ता वस्तु या सेवा के उत्पादन में फेकट्री या धंधे की स्थापना करने की बजाय देश के मुद्रा बाजार, पूँजी बाजार में शेयर या बॉन्ड खरीदकर निवेश करती है उसे विदेशी संस्थागत निवेश कहते हैं ।
5. भारत में 1991 में आर्थिक सुधार क्यों करना पड़ा ?
उत्तर :
1947 से 1990 के समय दरम्यान भारत ने अपनायी आयोजित विकास की व्यहरचना और अर्थतंत्र पर सरकार के अधिक मात्रा में नियंत्रण के कारण अपने आर्थिक उद्देश्यों को सिद्ध करने में कठिनायी आयी और बहत से आर्थिक विशेषज्ञों को लगा । विश्व के विकसित देश तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी भारत को मुद्राकीय सहायता के लिए पूर्व शरत रखी कि भारत को भी अपनी आर्थिक नीति में परिवर्तन करे और अर्थतंत्र को सरकार नियंत्रण मुक्त करे । इसलिए भारत में 1991 में आर्थिक सुधार करने पड़े ।
6. उदारीकरण में किन-किन बातों का समावेश किया जाता है ?
उत्तर :
उदारीकरण में निम्नलिखित बातों का समावेश किया जाता है :
- अर्थतंत्र पर सरकार के नियंत्रण घटते जाते हैं ।
- आर्थिक निर्णय की प्रक्रिया में बाजार की माँग-पूर्ति में परिबलों की असर बढ़ती जाती है ।
- क्रमशः सार्वजनिक क्षेत्रों में निजीक्षेत्रों को प्रवेश दिया जाता है ।
- देश के उद्योगों को अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धा के सामने दिया जानेवाला विशेष नीतिगत रक्षण क्रमशः घटता जाता है ।
7. प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जब विदेशी व्यक्ति, संस्था या कंपनियाँ देश के अर्थतंत्र में वस्तु या सेवा के उत्पादन या विक्रय क्षेत्रों सीधा पूँजी निवेश किया जाय तो उसे प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश कहते हैं ।
8. प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश का स्वरूप बताइए ।
उत्तर :
प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश का स्वरूप निम्नलिखित है :
- यह संस्थाकीय निवेश के स्वरूप में होती है ।
- यह यंत्रों, कच्चा माल, संपत्ति के स्वरूप में होती है ।
- यह देश में टेक्नोलॉजी के स्वरूप में होती है ।
- इसमें सीधा पूँजी निवेश स्वरूप में होता है ।
- वह कार्य संस्कृति खडी करता है ।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्देसर लिखिए :
1. निजीकरण का अर्थ और प्रक्रिया को समझाइए ।
उत्तर :
भारत में 1991 की आर्थिक नीति में बड़े पैमाने पर परिवर्तन किये गये जो आर्थिक सुधार के नाम से जाने गये । 1991 की आर्थिक नीति में उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण को शामिल किया गया । हम यहाँ निजीकरण की चर्चा करेंगे :
निजीकरण का अर्थ : निजीकरण अर्थात् औद्योगिक मालिकी का सार्वजनिक क्षेत्र में से निजी क्षेत्र में स्थानांतरण ।
निजीकरण की प्रक्रिया : सरकार देश में सार्वजनिक क्षेत्र उद्योगों की मालिकी और संचालन करता है । यह मालिकी और संचालन पूर्ण रूप से अथवा आंशिक रूप से निजी क्षेत्रों को सौंपने की प्रक्रिया अर्थात् निजीकरण की प्रक्रिया ।
भारत में निजीकरण की प्रक्रिया : भारत में निजीकरण की प्रक्रिया को दो भागों में बाँटकर अध्ययन करेंगे :
(1) सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का शेयर निजी क्षेत्रों को बेचकर मालिकी परिवर्तन करें तो उसे निजीकरण कहते हैं । ऐसा निजीकरण दो प्रकार से होता है :
- सार्वजनिक क्षेत्र के सभी शेयर निजी क्षेत्रों को बेच दें । अर्थात् मालिकी का संपूर्ण स्थानांतरण ।
- सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ शेयर (29% या 49%) निजी क्षेत्रों को बेच दें तो उसे अंशत: निजीकरण कहते हैं ।
यहाँ समझना होगा कि 51% शेयर से कम शेयर सरकार बेचे तो सरकार का नियंत्रण होता है । 51% से अधिक शेयर बेचें। तो संचालन निजी क्षेत्रों के हस्तक जाता है ।
(2) सरकार कुछ उद्योगों की मालिकी रखती है और कुछ क्षेत्रों पर अंकुश रखती है । विशेष तो सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र । जहाँ निजी निवेशकों के प्रवेश पर प्रतिबंद होता है । यहाँ सरकार के निजी क्षेत्रों को काम करने की छूट दी गयी है ।
जैसे – बैंकिंग व्यवसाय, शिक्षा, संचार, परिवहन में अब निजी औद्योगिक समूह भी सेवा उपलब्ध करवाता है ।
प्रभाव (असर):
- 1991 के आरम्भ के वर्षों में भारत के सार्वजनिक क्षेत्रों का विस्तरण हुआ था । 31 मार्च, 1951 में भारत में सार्वजनिक इकाईयाँ 5 थी । वह बढ़कर 1990 में 233 हो गयी । 1991 से यह इकाईयाँ घटी और मार्च, 2010 में 217 इकाईयाँ रह गयी है ।
- सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित रखे गये क्षेत्रों में से निजी क्षेत्रों के लिए पूँजी निवेश के लिए खोल दिए । वर्तमान अणु ऊर्जा के लिए नियंत्रित साधन तथा रेलवे सरकार के अन्तर्गत है ।
2. वैश्वीकरण का अर्थ देकर उसके महत्त्व की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने उसके नीचे अधिक मात्रा में ऋण में डूबे विकासशील देशों को 1991 में उनकी संरक्षणात्मक आर्थिक नीतियों को बदलने के लिए विवश किया, परिणामस्वरूप भारत ने भी उद्योगों को संरक्षण देनेवाली आर्थिक नीतियों में से मुक्त अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहक नीतियाँ स्वीकार की और भारत में वैश्वीकरण की प्रक्रिया शुरू हुयी ।
अर्थ : ‘वैश्वीकरण अर्थात देश के अर्थतंत्र को विश्व के अर्थतंत्र के साथ अधिक से अधिक जोड़ने की प्रक्रिया ।’
वैश्वीकरण की प्रक्रिया : भारत में वैश्वीकरण की प्रक्रिया में निम्नलिखित बातों का समावेश होता है :
आयात-निर्यात की लाइसन्स नीति में छूट-छाट (मुक्त) दी गयी ।
- 1995 में भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO – World Trade Organization) का सदस्य बना ।
- भारतीय चलन रुपये को अन्य देशों के चलन के साथ विनिमयदर क्रमश: मुक्त की । उसके क्रय-विक्रय को भी सरल बनाया गया ।
- देश में सीधा विदेशी निवेश क्षेत्रों में क्रमश: अधिक से अधिक मुक्त बनाया गया ।
- भारतीय उद्योगपतियों, निवेशकों को अन्य देशों के साथ आर्थिक व्यवहार में अधिक से अधिक छूट (खुला माहोल) दी गयी ।
- देशी और विदेशी उत्पादकों, व्यापारियों, निवेशकों के लिए सरकार नीतिगत तटस्थ रही ।
- अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक – सामाजिक आदान-प्रदान भी सरल बना ।
3. प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश का अर्थ देकर उसके स्वरूप की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
जब विदेशी व्यक्ति, संस्था या कंपनियाँ देश के अर्थतंत्र में वस्तु या सेवा के उत्पादन या विक्रय के क्षेत्रों में सीधे-सीधे पूँजीनिवेश करे तो उसे प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश कहते हैं ।
प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश में भारतीय सरकारी या निजी कंपनी शेयर खरीदकर प्रत्यक्ष हिस्सेदारी कर सकती है अथवा स्वयं ही उद्योग स्थापित करके मालिक बन सकती है ।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को दो प्रकार से समझ सकते हैं :
(i) विदेशी संस्थाकीय पूँजी निवेश (FII – Foreign Institutional Investment) : जब विदेशी निवेशकर्ता वस्तु या सेवा के उत्पादन में फेकट्री या धंधे की स्थापना करने के बदले देश के मुद्रा बाजार में शेयर या बाँड खरीदकर निवेश करती है उसे विदेशी . संस्थागत निवेश कहते हैं । ऐसी कंपनियों को विदेशी संस्थागत निवेशकर्ता (Foreign Institutional Investor) के रूप में रजिस्ट्रेशन करवाना आवश्यक है । सरकार द्वारा निर्धारित की गई मात्रा में ही निवेश कर सकते हैं । अधिकांशतः ऐसे निवेश बैंकों, बीमा कंपनियाँ, म्युच्युअल फंड आदि में होता है, इसमें अस्थिरता का जोखम अधिक होता है ।
(ii) प्रत्यक्ष विदेशी निवेशकों का स्वरूप : भारत में विदेशी व्यक्तियों या वित्तिय संस्थाओं द्वारा सीधे-सीधे पूँजीनिवेश हुआ है, उसका स्वरूप निम्नानुसार हैं :
- विदेशी निवेश संस्थाकीय निवेश के स्वरूप में होता है ।
- वह यंत्र, कच्चा माल, संपत्ति के स्वरूप में होता है ।
- वह देश में नयी टेक्नोलॉजी के स्वरूप में होता है ।
- ऐसा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कार्य संस्कृति खड़ी करता है ।
4. भारत में विदेश व्यापार नीति के सामने चुनौतियों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
भारत सरकार ने 1991 की मुक्त आर्थिक नीति में मुक्त विदेश व्यापार नीति अपनायी फिर भी कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे :
- अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा के सामने घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयातों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है ।
- गृह उद्योगों में उत्पादन बढ़ाने के लिए तथा आयात प्रतिस्थापन्न के लिए टेक्नोलॉजी यंत्र, पूरक यंत्रों तथा संसाधनों की आयात का प्रमाण निश्चित करना ।
- विदेशी मुद्रा बचाने के लिए अनावश्यक वस्तुओं की आयात पर नियंत्रण रखना या नहीं यह प्रश्न रहता है ।
- आवश्यक आयातों के भुगतान (खर्च) के लिए आवश्यक विदेशी मुद्रा कमाने के लिए निर्यात को प्रोत्साहन देना ।
- बहुत-सी भारतीय वस्तुएँ गुणवत्ता के प्रश्न पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में टिक सकती नहीं । विदेशनीति के लिए यह प्रश्नों के हल के लिए चुनौती स्वरूप था ।
- विदेश व्यापारनीति की रचना में रोजगारी का व्यापक आधार समान छोटे और गृहउद्योग के उत्पादन तथा विकास को प्रोत्साहन देना ।
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में विदेशी मुद्रा की आवश्यकता खड़ी होती है तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की समस्या को आंतरिक व्यापार की समस्याओं की अपेक्षा अलग होती है ।
5. आर्थिक नीति के परिवर्तन के लिए उद्देश्य बताइए ।
उत्तर :
सरकार के नियंत्रणवाली अर्थव्यवस्था को बाजार आधारित मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर ले जाना तथा मिश्र अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार कम करके निजी क्षेत्रों का विस्तार बढ़ाने के लिए भारत में आर्थिक कानून परिवर्तित किए गए और आर्थिक नीति भी बदली जिसके उद्देश्य निम्नानुसार हैं :
- भारत की विपुल प्राकृतिक तथा मानव संपत्ति का आर्थिक विकास में उपयोग हो इसके लिए निजी और विदेशी पूँजी निवेश को अधिक प्रोत्साहन देना ।
- देश के संशाधनों का अधिक कार्यक्षम वितरण करना और महत्तम उपयोग करना ।
- सरकार के खर्च में कमी करना और सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण के कारण वापस मिली मुद्रा को प्रजा-कल्याण की अन्य सुविधाओं के लिए खर्च करना ।
- देश की आय-रोजगार तथा निर्यात-आय में वृद्धि करना ।
- देश के आर्थिक क्षेत्र में स्पर्धात्मकता बढ़ाना ।
- दीर्घकालीन समय के बाद देश का आर्थिक विकास और वृद्धिदर सातत्यपूर्वक वृद्धि करना ।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के विस्तारपूर्वक उत्तर लिखिए :
1. उदारीकरण का अर्थ दीजिए । उदारीकरण के कारण भारत में आए हुए परिवर्तन बताइए ।
उत्तर :
सरकार नियंत्रित अर्थव्यवस्था में निजीक्षेत्र, व्यक्तिगत निर्णय की स्वतंत्रता, बाजार परिबलों द्वारा आर्थिक निर्णयों का विस्तार बढ़े तो उसे उदारीकरण कहते हैं, ।
भारत के मिश्र अर्थतंत्र में राज्य के नियंत्रणवाले आर्थिक निर्णयों में निजी और बाजार आधारित क्षेत्र के स्वीकार को उदारीकरण कहते हैं ।
उदारीकरण के कारण भारत में निम्नलिखित परिवर्तन हुए :
- आर्थिक सत्ता का केन्द्रीयकरण एवं एकाधिकारशाही को रोकने के लिए रचित कानून MRTP Act (Monopolies and Restrictive Trade Pratices Act) को समाप्त करके Competition Act में परिवर्तित किया गया है अर्थात् प्रतिबंध को हटाकर स्पर्धा को प्रोत्साहन दिया गया है ।
- FERA (Foreign Exchange Regulation Act) में से Regulation के स्थान पर Management लाया गया । अर्थात् अब तो नियंत्रण के बदले संचालन किया जाता है । जिससे FERA का स्थान FEMA ने ले लिया ।
- औद्योगिक नीति में बड़े पैमाने पर परिवर्तन किया । सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए आरक्षित 18 उद्योगों में से घटाकर तीन कर दिये गये है ।
- छोटे पैमाने के उद्योगों में पूँजीनिवेश की मर्यादा बढ़ा दी गयी जिससे वे नवीनीकरण के पीछे खर्च कर सकते हैं ।
- विदेशी पूँजी निवेश की प्रक्रिया सरल बनी और बहुत सारे क्षेत्रों में विदेशी पूँजी निवेश की अनुमति अपने आप ही मिल गयी ।
- राजकोषीय नीति, व्यापार नीति और आयात-निर्यात नीति द्वारा सरकार ने बाजार परिबलों को आर्थिक निर्णय प्रक्रिया में अधिक महत्त्व दिया है ।
- सबसिडी खर्च कम किया गया, आयात-निर्यात लाइसन्स नीति हल की गयी, विदेशी मुद्रा की दर अधिक मुक्त बनी ।
2. भारत में 1991 से किये गये आर्थिक सुधारों की असर की चर्चा कीजिए ।
उत्तर :
भारत में 1991 से सरकार की नियंत्रणवाली बाजार आधारित निजी सम्पत्ति और निर्णय की स्वतंत्रतावाली मुक्त अर्थतंत्र की ओर गति की गयी, जिसे आर्थिक सुधारों के नाम से भी जानते हैं । 1951 से भारत में नियंत्रित समाजवादी ढंग की समाजरचना का उद्देश्य था । इस नीति में 1991 में परिवर्तन किया गया । आज लगभग 25 वर्ष के अनुभव पर से इसकी असरों का मूल्यांकन दो भागों में कर सकते हैं ।
(1) आर्थिक सुधार की अनुकूल असर (इच्छनीय असर) : आर्थिक सुधारों की मुक्त नीति की अनुकूल असरें निम्नानुसार हैं :
- देश के ग्राहकों को अन्तर्राष्ट्रीय गुणवत्तावाली वस्तुएँ सरलता से, कम कीमत पर मिलने लगी ।
- देश की विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुयी ।
- भारत की निर्यात में वृद्धि हुयी ।
- सरकार विदेशी ऋण का बोझ घटा और सीधे-सीधे प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश बढ़ा जिसका खतरा सरकार पर नहीं था ।
- बड़े पैमाने पर निवेश द्वारा निजी क्षेत्रों का विकास हुआ, जिससे उत्पादन-रोजगार बढ़ा ।
- साधनों की गतिशीलता में वृद्धि हुयी ।
- सरकार के नियंत्रण के कारण भ्रष्टाचार, अफ्सरशाही, निर्णय विलंब, जड़ता थी जो क्रमशः कम हुये ।
- सरकार के नियंत्रण तथा पूँजी की कमी के कारण उपेक्षित क्षेत्रों में निजी पूँजी निवेश द्वारा गति दी ।
- वस्तु और सेवाओं का अभाव घटा, वैविध्य में वृद्धि हुयी ।
- अन्य देशों के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक सम्बन्ध मजबूत बने ।
(2) आर्थिक सुधारों की प्रतिकूल असर (अनिच्छनीय असर) : आर्थिक सुधारों की अनुकूल असरों के साथ-साथ कुछ प्रतिकूल असर भी हुयी जो निम्नानुसार है :
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विज्ञापन खर्च और स्पर्धा के सामने छोटे पैमाने तथा गृह उद्योग टिक नहीं सके । बहुत बड़ा नुकसान हुआ।
- अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धा में राष्ट्रीय उद्योगों को बहुत नुकसान हुआ और बहुत से उद्योग बंद हो गये ।
- सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण हुआ । सबसिडी घटी परिणामस्वरूप सार्वजनिक सेवाओं की सुविधाएँ महँगी हुयी । जिससे सभी वस्तु-सेवा के उत्पादन खर्च में वृद्धि हुयी ।
- भारतीय चलन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खूब कमजोर हुआ । परिणामस्वरूप आयात खर्च में खूब वृद्धि हुयी ।
- बहुराष्ट्रीय कंपनी, बड़ी कंपनियों ने नीचे दर पर पूर्ति बड़े पैमाने पर रखी ।
- विकसित देशों ने भारतीय वस्तुओं-सेवाओं पर अपने देश में जैसे-तैसे नियंत्रण चालू रख्खे जिससे भारत में विदेश व्यापार का बहुत अधिक लाभ नहीं हुआ ।
- निजीकरण के कारण बड़े पैमाने पर उद्योग स्थापित हुये परंतु उन्हें रास्ते, बिजली, पानी, कच्चे माल की सुविधाएँ नहीं मिली जिससे तंगी सर्जित हुयी ।
- आर्थिक असमानता में वृद्धि हुयी है ।
- जीवन जरूरी वस्तुओं – सेवाओं के स्थान पर समाज के निम्न वर्ग की आवश्यकताओं को संतुष्ट करनेवाली मोजशौक की वस्तुओं का उत्पादन-विक्रय बढ़ा ।
- सामाजिक-सांस्कृतिक वसियत को व्यापक नुकसान हुआ है ऐसा बहुत से मानते हैं ।