Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 11 Solutions Chapter 15 बाज़ लोग Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
GSEB Std 11 Hindi Textbook Solutions Chapter 15 बाज़ लोग
GSEB Std 11 Hindi Digest बाज़ लोग Textbook Questions and Answers
स्वाध्याय
1. निम्नलिखित दिए गये विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
प्रश्न 1.
बाज़ लोग झुण्ड बनाकर किसके पास बैठते हैं.?
(क) पानी
(ख) अलाव
(ग) मिट्टी के ढेर
(घ) पत्थर
उत्तर :
बाज़ लोग झंड बनाकर अलाव के पास बैठते हैं।
प्रश्न 2.
बाज़ लोग किसे आशिष देते हैं ?
(क) जल को
(ख) दूध को
(ग) आग को
(घ) बच्चों को
उत्तर :
बाज़ लोग आग को आशीष देते हैं।
प्रश्न 3.
बाज़ लोग फावड़ा कैसे चलाते हैं ?
(क) अकेले
(ख) झुंड में
(ग) धीरे-धीरे
(घ) रो-रोकर
उत्तर :
बाज़ लोग फावड़ा झंड में चलाते हैं।
प्रश्न 4.
बाज़ लोग के उबड़-खाबड़ पैंरों तक धरती की गहराइयों से क्या उमड़ आते हैं. ?
(क) पानी का सोते
(ख) तेल के सोते
(ग) दूध के सोते
(घ) बारिश के सोते
उत्तर :
बाज़ लोग के उबड़-खाबड़ पैरों तक धरती की गहराइयों से पानी के सोते उमड़ आते हैं।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर दीजिए :
प्रश्न 1.
कवयित्री किन्हें बाज़ लोग कहती है ?
उत्तर :
कवयित्री उन गरीब, लाचार और कठोर परिश्रम करनेवाले मजदूत को बाज़ लोग कहती है, जो अपने श्रम से दुष्कर कार्य कर दिखाते हैं, पर समाज में उन्हें कोई महत्त्व नहीं दिया जाता।।
प्रश्न 2.
बाज़ लोग किसको आशिष देते हैं ?
उत्तर :
बाज़ लोग अलाव में जलती हुई और कड़कड़ाती ठंड में उन्हें ऊर्जा देनेवाली आग को आशीष देते हैं।
प्रश्न 3.
सारी बाजियाँ हाकर बाज़ लोग कैसे रहते हैं ?
उत्तर :
सारी बाजियाँ हारकर भी बाज़ लोग निश्चित और अलमस्त रहते हैं।
प्रश्न 4.
बाज़ लोग झुण्ड बनाकर कहाँ बैठते हैं ?
उत्तर :
बाज़ लोग आग तापने के लिए झुंड बनाकर अलावों के चारों तरफ बैठते हैं।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के दो-दो वाक्यों में उत्तर दीजिए :
प्रश्न 1.
प्रस्तुत कविता में किस वर्ग के समाज का वर्णन किया गया है?
उत्तर :
बड़ी-बड़ी योजनाओं और निर्माण कार्यों को पूरा करने में गरीब, लाचार, कड़ी मेहनत करनेवाले मजदूरों का प्रमुख योगदान होता है, पर वे इसके श्रेय से वंचित रह जाते हैं। ‘बाज़ लोग’ कविता में इसी सर्वहारा मजदूर समाज का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 2.
‘जहाँ भी बची है, वह जीती रहे.’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
‘जहाँ भी बची है, वह जीती रहे’ कविता की कड़ी कवयित्री ने अग्नि को लक्ष्य करके कहा है। आग ऊर्जा का प्रतीक है। गरीब, लाचार मजदूर आशावादी होते हैं। उन्हें ‘राई’ में ‘पर्वत’ के दर्शन होते हैं। इसलिए वे बुझती हुई आग के जीवित रहने, बची रहने की कामना करते हैं। मजदूरों का जीवन ही ‘ऊर्जा’ का पर्याय है।
प्रश्न 3.
पानी के सोते कहाँ से निकलते हैं. ? कैसे ?
उत्तर :
पानी के सोते धरती के अंदर बहुत गहराई में स्थित होते हैं। मजदूरों को फावड़े चलाकर अथक परिश्रम करने के पश्चात् धरती की गहराई तक पहुंचना संभव होता है। मजदूरों के प्रयास से धरती की – गहराई से पानी के सोते निकलते हैं।
4. निम्नलिखित प्रश्नों के पाँच-छः वाक्यों में उत्तर दीजिए :
प्रश्न 1.
‘बाज़ लोग कहीं के नहीं होते’ यह कहने के पीछे कवयित्री का आशय क्या है?
उत्तर :
गरीब, लाचार और कड़ी मेहनत करनेवाले बाज़ लोगों का अपना कोई नहीं होता। वे महत्त्वपूर्ण चीजों का निर्माण करते हैं, पर उनके कार्यों की सराहना कोई नहीं करता। उन्हें ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिलता जिसे वे अपना कह सकें। लोगों को केवल उनकी मेहनत से वास्ता होता है। काम पूरा होने के बाद लोगों के लिए उनका कोई उपयोग नहीं रह जाता। जिनके लिए उन्होंने खून-पसीना एक किया, उनके लिए वे अस्तित्व रहित हो जाते हैं। इसीलिए कवयित्री कहती है कि बाज़ लोग कहीं के नहीं होते।
प्रश्न 2.
सारी बाजियाँ हारकर भी बाज़ लोग अलमस्त क्यों कहलाते हैं ?
उत्तर :
गरीब, लाचार और कड़ी मेहनत करनेवाले बाज़ लोग अपने परिश्रम के बल पर दुनिया में चमत्कारों का सृजन करते हैं। अनेक महत्त्वपूर्ण चीजों का निर्माण करने पर भी उनका श्रेय दूसरों को दे दिया जाता है। अपने किसी भी निर्माण से उनका न मोह होता है और न वे उस पर गर्व करते हैं। अपने किसी निर्माण का मालिक बनने की उन्हें चाह नहीं होती। अपनी मजदूरी के सिवाय वे और कुछ पाने की इच्छा नहीं रखते। वे जानते हैं कि उन्हें अपना कहनेवाला कोई नहीं है। उनसे काम लेने के बाद उन्हें कोई नहीं पूछेगा। इसलिए अपने बल पर जीनेवाले बाज़ लोग अलमस्त रहते हैं।
आशय स्पष्ट कीजिए:
प्रश्न 1.
‘बाज़ लोग सारी बाजियाँ हारकर भी होते हैं. अलमस्त बाजीगर’
उत्तर :
बाज लोग मेहनत, मजदूरी करके अपना जीवनयापन करते हैं। वे मेहनत करके बड़े-बड़े काम कर जाते हैं। इनमें बड़ी-बड़ी इमारतों तथा पुलों आदि का निर्माण भी शामिल होता है। लेकिन इनको अपने किए गए कार्यों पर गर्व नहीं होता। इनका श्रेय दूसरों को लेते देख भी इन्हें कोई कष्ट नहीं होता। श्रेय न पाने पर भी ये मजदूर बेफिक्र रहते हैं। इन्हें किसी बात की चिंता नहीं होती और ये हर हाल में अलमस्त होते हैं।
GSEB Solutions Class 11 Hindi बाज़ लोग Important Questions and Answers
व्याकरण
समानार्थी शब्द लिखिए :
- बेडौल = भद्दा
- आशीष = आशीर्वाद
- बाजी = खेल
- अलमस्त = बेफिक्र, मौजी
- बाजीगर = खेल दिखानेवाला
विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
- बेडौल × बाडौल, डौलदार
- आशीष × शाप
- हार × जीत
शब्दों में से उपसर्ग अलग कीजिए :
- बेडौल – बे
- आशीष – आ
- अलमस्त – अल
- विशिष्ट – वि
- निश्चिंत – निः
- बेफिक्र -बे
- निर्माण – निः
शब्दों में से प्रत्यय अलग कीजिए :
- गहराई – ई
- बाजीगर – गर
- खुरदरी – ई
- महत्त्व – त्व
- मौजी – इ
- खुदाई – ई
- महत्त्वपूर्ण – पूर्ण
बाज़ लोग Summary in Gujarati
ભાવાત્મક અનુવાદ :
ગરીબ, લાચાર અને સખત મહેનત કરનારા મજૂર જેવા કેટલાક વિશિષ્ટ લોકો પોતાના પરિશ્રમના બળે ભલે વિભિન્ન પ્રકારની મહત્ત્વપૂર્ણ ચીજોનું નિર્માણ કરતા હોય, પરંતુ તેમનાં કાર્યોની પ્રશંસા કરનાર કોઈ હોતું નથી. તેમને એવી કોઈ વ્યક્તિ મળતી નથી, જેને તેઓ પોતાનું કહી શકે. લોકોને ફક્ત તેમની મહેનતથી મતલબ હોય છે. તે પછી લોકોને તેમનો કશો ઉપયોગ હોતો નથી, એટલે તેઓ બીચારા ક્યાંયના હોતા નથી.
મહેનત મજૂરી કરનારા આ મજૂર ફુરસદની ઘંડીઓમાં, ઠંડીની ઋતુમાં ક્યારેક ક્યારેક તાપણું કરવા બેસી જાય છે. તેઓ તાપણાંની ઓલવાતી આગની પાસે પોતાની બેડોળ, ખરબચડી હથેલીઓ ફેલાવીને આગથી તાપણું કરતા રહે છે. કવયિત્રી કહે છે કે ઓલવાતાં તાપણાં પાસે બેઠા રહેવાથી એમ લાગે છે કે જાણે તેઓ આગથી તાપણું કરતા નથી, પરંતુ તેઓ આગને જાણે આશીર્વાદ આપી રહ્યા છે કે તે હંમેશને માટે સળગતી રહે. તાપણાંરૂપે અથવા બીજી કોઈ જગ્યાએ તે હંમેશાં બળતી રહે, જીવંત રહે અને લોકોને શક્તિ પ્રદાન કરતી રહે.
ગરીબ, લાચાર અને સખત મહેનત કરનારા કેટલાક લોકો (મજૂરો) એવી રીતે રહે છે કે જાણે તેમનું પોતાનું કોઈ હોતું નથી. તે બીચારાઓનું કશું અસ્તિત્વ હોતું નથી અને તેઓ ક્યાંયના હોતા નથી.
આ મહેનતુ મજૂરનાં ટોળેટોળાં કુહાડાથી ખોદકામ શરૂ કરે છે, ધરતીનું પડ ખોદતાં ખોદતાં ઊંડે સુધી પહોંચે છે અને ત્યાંથી શીતળ જળનાં ઝરણાં ફૂટી નીકળે છે, પરંતુ પોતાના આ પરાક્રમનું શ્રેય મજૂરો લેતા નથી; કારણ કે આ ઝરણાંથી પ્રાપ્ત થનારી વિપુલ જળસંપત્તિના માલિક તેઓ હોતા નથી. તેમના પોતાના ભાગ્યમાં કશું શ્રેય પ્રાપ્ત ન થાય છતાં મહેનત મજૂર બેફિકર રહે છે. તેમને કશી વાતની પરવા હોતી નથી.
बाज़ लोग Summary in Hindi
विषय-प्रवेश :
इस कविता में उन गरीब, लाचार और कठोर परिश्रम करनेवाले मजदूरों का चित्रण किया गया है, जो अपने श्रम से दुष्कर कार्य कर दिखाते हैं, पर समाज में उन्हें कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। हर ओर से उन्हें ठुकराया जाता है। फिर भी वे निश्चिंत होकर निष्ठापूर्वक सृजन कार्य में जुटे रहते हैं।
कविता का सरल अर्थ :
बाज़ लोग …………… कहीं के नहीं होते।
गरीब, लाचार और कड़ी मेहनत करनेवाले मजदूर जैसे बाज़ (कुछ) लोग अपने परिश्रम के बल पर भले ही विभिन्न प्रकार की महत्त्वपूर्ण चीजों का निर्माण करते हों, पर उनके कार्यों की सराहना करनेवाला कोई भी नहीं होता। उन्हें ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिलता, जिसे वे अपना कह सकें। लोगों को केवल उनकी मेहनत से वास्ता होता है। इसके बाद लोगों के लिए उनका कोई उपयोग नहीं रह जाता – इसलिए वे बेचारे कहीं के नहीं होते।
झुंड बनाकर …….. कहीं के नहीं होते।
मेहनत, मजदूरी करनेवाले ये मजदूर फुर्सत के क्षणों में जाड़े के मौसम में कभी-कभी समूह में आग तापने के लिए अलाव के चारों ओर गोलाई में बैठ जाते हैं। वे अलाव की बुझती आग तक अपनी भद्दी, खुरदरी हथेलियाँ फैलाकर आग तापते रहते हैं। कवयित्री कहती हैं कि बुझते अलावों के पास उन मजदूरों के बैठे रहने से ऐसा लगता है, मानो वे आग नहीं ताप रहे हों, बल्कि वे आग को जैसे आशीर्वाद दे रहे हों कि वह हमेशा-हमेशा बनी रहे।
अलाव हो या अन्य कोई स्थान, आग सदा बनी रहे, जीवित रहे और लोगों को ऊर्जा प्रदान करती रहे। गरीब, लाचार और कड़ी मेहनत करनेवाले कुछ लोग (मजदूर) ऐसे होते हैं कि उनका अपना (सहारा) कोई नहीं होता। उन बेचारों का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता और वे कहीं के नहीं होते। .
झुंड बनाकर ……. अलमस्त बाजीगर।
ये मेहनतकश मजदूर झुंड के झुंड फावड़े चलाते हैं और धरती का सीना फाडकर खुदाई करते हुए उस गहराई तक पहुँच जाते हैं, जहाँ से उमड़ पड़ते हैं, शीतल जल के सोते। पर अपने इस पराक्रम का गर्व वे नहीं करते। (क्योंकि उन सोतों से प्राप्त होनेवाली विपुल जल संपदा के मालिक वे नहीं, सोतों के मालिक होते हैं। इनका अपने हिस्से में कोई श्रेय न आने पर भी ये मेहनतकश मजदूर बेफिक्र रहते हैं। इन्हें किसी बात की परवाह नहीं होती।
बाज़ लोग शब्दार्थ :
- बाज़ लोग – कुछ विशिष्ट लोग, कोई-कोई।
- जिनका कोई – जिनका कोई सहारा न हो।
- जो कोई – जिनकी कोई गणना न हो।
- अलाव – तापने की आग।
- बेडौल – भद्दा।
- खुरदरी – जो चिकना न हो।
- अश्ववस्त्र – घोड़ों की पीठ पर कसने की जीन।
- पसारना – फैलाना।
- आग तापना – आग की लौ से हाथ सेंकना।
- आशीष – आशीर्वाद।
- आग जिए – आग बनी रहे।
- झुंड – बहुत से मनुष्यों का समूह।
- ऊबड़-खाबड़ – ऊँचा-नीचा, जो समतल न हो।
- उमड़ना – द्रववस्तु का अधिकता के कारण ऊपर उठना।
- सोता – प्राकृतिक रूप से निरंतर बहती रहनेवाली जल की धारा।
- बाजियाँ – शर्ते, दौव।
- अलमस्त – मतवाला, मौजी।
- बाजीगर – जादूगर।